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ग़ज़्ज़ा में इस्राईल के वहशी हमले जारी, 24 घंटे में 400 से अधिक शहीद और घायल
शहाब न्यूज़ के अनुसार, ग़ज़्ज़ा में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान जारी कर बताया कि ग़ज़्ज़ा पट्टी पर ज़ायोनी शासन के हमले के 237वें दिन में 53 फिलिस्तीनी शहीद हो गए हैं।
रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि ज़ायोनी शासन ने पिछले 24 घंटों में ग़ज़्ज़ा में 5 अलग-अलग युद्ध अपराध करते हुए बर्बर हमले किये जिसके परिणामस्वरूप 53 फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए और 357 अन्य घायल हो गए।
फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि ज़ायोनी हमलों में अब तक शहीदों की संख्या 36,224 तक पहुँच गई है, जबकि 81,777 फ़िलिस्तीनी घायल हुए हैं।
इस बयान में सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों और संबंधित पक्षों से अनुरोध किया गया है कि वह ग़ज़्ज़ा क्रॉसिंग को फिर से खोलने और इलाज के उद्देश्य से मक़बूज़ा क्षेत्रों से बीमारों और घायलों को बाहर निकलने की सुविधा प्रदान करने के लिए हर संभव प्रयास करें।
अमेरिका के अत्याधुनिक MQ-9 रीपर ड्रोन का क़ब्रिस्तान बना यमन
यमनी बलों ने अमेरिका को ज़ोर का झटका देते हुए उसके अत्याधुनिक MQ-9 रीपर ड्रोन को फिर मार गिराया। इसी महीने में यह कम से कम तीसरा अवसर है जब यमनी बलों ने अतिक्रमणकारी शत्रु के इस ड्रोन को मार गिराया।
यमनी बलों ने दावा किया है कि उन्होंने इस ड्रोन को मार गिराया है। इस ड्रोन की ऑनलाइन तस्वीरें बुधवार को वायरल की गईं। बताया जा रहा है कि यह ड्रोन यमन में अंसारुल्लाह के नियंत्रण वाले क्षेत्र में गश्त लगा रहा था। यह तुरंत स्पष्ट नहीं हो पाया कि ड्रोन को किस वजह से गिरा है, लेकिन लेकिन अमेरिकी सेना की सेंट्रल कमांड ने यमन के मध्य मआरिब प्रांत के रेगिस्तानी इलाके में ड्रोन के गिराए जाने की "रिपोर्ट" देखने की बात स्वीकार की।
बता दें कि एक रीपर की कीमत लगभग 30 मिलियन डॉलर है। यह 50,000 फीट (लगभग 15,000 मीटर) की ऊँचाई तक उड़ सकते हैं और उतरने से पहले 24 घंटे तक टिके रह सकते हैं। हाल के महीनों में यमनी बलों ने ग़ज़्ज़ा के खिलाफ जंग रोकने की मांग करते हुए लाल सागर और अदन की खाड़ी में जहाजों पर हमले बढ़ा दिए हैं। यमन ने कहा है कि जब तक ग़ज़्ज़ा के खिलाफ जंग जारी रहेगी हम फिलिस्तीन के समर्थन में अपना अभियान जारी रखेंगे।
चाबहार गोल्डन गेट: एशिया में भारत की बढ़ती ताक़त से क्यों डर रहा है अमेरिका?
भारत ने ईरान के चाबहार रणनीतिक बंदरगाह के विकास और संचालन के लिए 10 साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। नई दिल्ली की योजना मध्य एशिया और अफ़ग़ानिस्तान के देशों के साथ अपने व्यापार संबंधों को बढ़ाने और काकेशस क्षेत्र, पश्चिम एशिया और पूर्वी यूरोप के लिए एक नया मार्ग खोलने की है।
भारत के केंद्रीय जहाजरानी मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने चाबहार में हुए नए घटनाक्रम में ईरान और भारत के बीच सहयोग की बात करते हुए कहा यह (बंदरगाह) भारत को अफ़गानिस्तान और मध्य एशियाई देशों से जोड़ने वाले एक महत्वपूर्ण मुख्य व्यापार मार्ग के रूप में कार्य करता है। लेकिन इस समझौते पर संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर से प्रतिबंध लगाने की धमकी दी गई है। ईरान और भारत दोनों देशों ने पहली बार 2003 में इस परियोजना पर अपनी बातचीत शुरू की, लेकिन ईरान के साथ भारत के संबंधों के विकास के ख़िलाफ़ अमेरिकी दबाव ने किसी भी वास्तविक विकास को रोक दिया। वाशिंगटन द्वारा 2015 के ईरान परमाणु समझौते के तहत प्रतिबंधों में ढील देने के बाद तेहरान और नई दिल्ली ने बातचीत फिर से शुरू की।
चाबहार क्यों महत्वपूर्ण है?
भारत अपने 600 अरब डॉलर के तेज़ी से बढ़ते उद्योग के साथ, पश्चिम में अपने आंतरिक पड़ोसियों के साथ निकटता से व्यापार करने की इच्छा रखता है। चाबहार बंदरगाह के साथ, भारत पहले ईरान तक और फिर रेल या सड़क नेटवर्क के माध्यम से अफ़ग़ानिस्तान और उज़्बेकिस्तान और क़जाक़िस्तान जैसे सूखे से घिरे लेकिन संसाधन-संपन्न देशों तक माल पहुंचा सकता है। एक भारतीय अधिकारी ने तो इस रास्ते से रूस तक पहुंचने का भी ज़िक्र किया है।
नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के फेलो कबीर तनेजा ने कहा:
"भारत के लिए, चाबहार पश्चिम और मध्य एशिया में निवेश के अवसरों के लिए एक प्रकार का गोल्डन गेट है।"
यह बंदरगाह वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण वाणिज्यिक कोरिडोर (INSTC) परियोजना का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत के वित्तीय केंद्र मुंबई और आज़रबाइजान की राजधानी बाकू और मध्य एशिया की राजधानियों को ईरान के माध्यम से सस्ते और तेज़ प्रमुख शहरों को जोड़ना है।
अमेरिका और भारत पर प्रतिबंध
नई दिल्ली द्वारा परमाणु परीक्षण करने के बाद अमेरिका पहले भी दो बार- 1974 और 1998 में- भारत पर प्रतिबंध लगा चुका है। लेकिन शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से, संयुक्त राज्य अमेरिका भारत को अपनी ओर खींचने में कामयाब हो गया है। हालांकि भारत आधिकारिक तौर पर ऐसे किसी भी प्रतिबंध को मान्यता नहीं देता है कि जिसका संबंध संयुक्त राष्ट्र संघ से न हो। लेकिन ज़्यादातर मामलों में उसे अमेरिकी दबाव के आगे झुकते देखा गया है।
अमेरिका को भारत की बढ़ता ताक़त और विकसित होने का डर
भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। एक ऐसा देश जो पुराने महाद्वीप में अपनी जनसंख्या और स्थान के बावजूद, चीन की तरह ख़ुद को अमेरिका और पश्चिम से थोड़ा दूर करने और एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी बनने की क्षमता रखता है। कुछ लोगों का मानना है कि यह बात अमेरिका के लिए बहुत डरावनी है और इसलिए वह दुनिया में भारत के स्वतंत्र प्रभाव के रास्ते बंद करने के लिए कोई भी चाल चलने से परहेज़ नहीं करेगा।
"ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिकी प्रतिबंधों ने पहले ही भारत को बुरी तरह प्रभावित किया है और भारत के दीर्घकालिक प्रभाव को भी बाधित कर दिया है। अमेरिकी प्रतिबंधों के जोखिम से बचने के लिए ईरानी तेल की ख़रीद से बचने से भारत अपने चीनी प्रतिद्वंद्वी की तुलना में अन्य आपूर्तिकर्ताओं के मूल्य दबाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया।"
यदि अमेरिका चाबहार को लेकर सख़्ती दिखाने की कोशिश करता है, तो कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह उस बड़े अवसर का संकेत है जो यह गोल्डन गेट भारत की बड़ी छलांग के लिए प्रदान कर सकता है।
अब मध्य एशिया में अमेरिका के दो बड़े प्रतिद्वंद्वी हैं, रूस और चीन, और उसके लिए यह अच्छा नहीं है कि भारत भी उसके साथ उस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा करे। भारतीय विश्लेषक तनेजा ने कहा: चाबहार अधिक महत्वपूर्ण है और नई दिल्ली इसे लंबे समय तक जीवित रखने के लिए काम करने को तैयार है।
वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक, क्विंसी इंस्टीट्यूट फॉर रिस्पॉन्सिबल स्टेटक्राफ्ट (Quincy Institute for Responsible Statecraf) में ग्लोबल साउथ प्रोग्राम के निदेशक सारंग शिदोरे (Sarang Shidore) ने भी कहा कि ग्लोबल साउथ के देश अपने रणनीतिक लक्ष्यों के साथ संरेखित या अलाइन्ड करने की वाशिंगटन की प्राथमिकताओं के बावजूद अपने हितों को आगे बढ़ाना जारी रखेंगे। वाशिंगटन को भी अपनी नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए जो वैश्विक दक्षिण पर विकल्प थोपती है जो उन्हें पश्चिम से अलग कर सकती है और इस विशाल और बड़े पैमाने पर गुटनिरपेक्ष क्षेत्र में अमेरिकी अवसरों को सीमित कर सकती है।
CAA के तहत बंगाल, हरियाणा व उत्तराखंड में नागरिकता देने की शुरुआत
केंद्र सरकार की ओर से बांग्लादेश, पाकिस्तान व अफगानिस्तान में उत्पीड़न के शिकार और 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत आए हिंदुओं, सिखों, जैनियों, बौद्धों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए लाए गए विवादस्पद क़ानून के बाद देश भर में आंदोलन फूट पड़ा था हालाँकि दिसंबर, 2019 में लागू किए गए इस क़ानून के खिलाफ आंदोलन कोरोना के चलते खत्म हो गया था।
केंद्र सरकार ने बुधवार को बंगाल, हरियाणा और उत्तराखंड में सीएए के तहत नागरिकता देना शुरू कर दिया। गृह मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि तीनों राज्यों के आवेदकों को बुधवार को संबंधित राज्य की अधिकार प्राप्त समिति द्वारा नागरिकता प्रदान की गई।
रफ़ा में इज़रायली हमले के कारण सहायता शिपमेंट आई भारी गिरावट/संयुक्त राष्ट्र
संयुक्त राष्ट्र, जिसने गाज़ा में अकाल की चेतावनी दी है बुधवार को कहा कि इस महीने दक्षिणी गाजा पट्टी में इजरायल के सैन्य आक्रमण शुरू होने के बाद से क्षेत्र में प्रवेश करने वाली मानवीय सहायता की मात्रा में दो तिहाई की गिरावट आई हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने कहा कि गाजा में प्रवेश करने वाले भोजन और अन्य सहायता की मात्रा पहले से ही बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त थी 7 मई के बाद से इसमें और कमी आई है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 7 मई से मंगलवार तक प्रतिदिन औसतन 58 सहायता ट्रक गाजा पहुंचे, जबकि 1 अप्रैल से 6 मई तक प्रतिदिन औसतन 176 सहायता ट्रक पहुंचे, जो निजी क्षेत्र के उपकरण और में 67 प्रतिशत की कमी दर्शाता हैऔर ईंधन भी शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने लंबे समय से कहा है कि हर दिन कम से कम 500 ट्रक सहायता और वाणिज्यिक सामान गाजा में प्रवेश करने की आवश्यकता है।
यमन ने किया अमेरिका के अत्याधुनिक ड्रोन का शिकार, सकुशल ज़मीन पर उतारा
फिलिस्तीन के समर्थन में ज़ायोनी लॉबी और अब अमेरिका और ब्रिटेन के अतिक्रमणकारी हमलों का सामना कर रहे यमन ने अमेरिका को गहरी चोट देते हुए अमेरिका के अत्याधुनिक ड्रोन «MQ-9» का शिकार करते हुए सकुशल उतार लिया।
मिजोरम में रेमल का क़हर, अब तक 34 लोगों की मौत
मिजोरम में सोमवार रात आए रेमल चक्रवात के कारण जिले में 34 लोगों की मौत हो गई। राज्य आपदा प्रबंधन और पुनर्वास विभाग के अधिकारियों ने भारी बारिश और तेज़ तूफ़ान के कारण इमारतों और संरचनाओं को व्यापक क्षति होने की सूचना दी है। विस्तृत क्षति आकलन अभी संकलित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आइजोल जिले में 127 घर क्षतिग्रस्त हो गए है जिनमें से 28 को पूरी तरह से क्षतिग्रस्त, 53 को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त और 46 को आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त के रूप में वर्गीकृत किया गया है। कुल 163 घरों को खाली कराया गया है।
राज्य भर में कई भूस्खलन, पेड़ उखड़ने और बिजली के खंभे गिरने की खबरें आई हैं, जिससे दैनिक जीवन गंभीर रूप से बाधित हुआ है। राज्य लोक निर्माण विभाग और ठेकेदार सड़कों की रुकावटों को दूर करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं, हालांकि आज देर रात तक कई सड़कें भूस्खलन से बाधित रहीं।
भारत पाकिस्तान मैच पर आतंक का साया, ISIS ने दी हमले की धमकी
भारत ओर पाकिस्तान के बीच T20 वर्ल्ड कप 2024 के अंतर्गत होने वाले मैच से पहले ही इस पर संकट के बादल गहराने लगे हैं। न्यूयॉर्क में खेले जाने वाले भारत-पाक (IND vs PAK) के हाई-वोल्टेज मैच से पहले एक बड़ी खबर सामने आई है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन आईएसआईएस- खुरासन (ISIS-K) ने भारत-पाक मैच में हमले की खुली धमकी दे दी है। इस आतंकी संगठन ने एक वीडियो जारी कर स्वतंत्र हमलावरों से इस काम को अंजाम देने को कहा है।
इस आतंकी संगठन ने एक वीडियो जारी कर स्वतंत्र हमलावरों से इस काम को अंजाम देने को कहा है। हालांकि, इस धमकी भरे वीडियो के बाद आईसीसी (ICC) ने चुप्पी तोड़ी है और कहा है कि भारत-पाक मैच के लिए उन्होंने अपनी सुरक्षा बढ़ा दी है।
दरअसल, 9 जून को न्यूयॉर्क के नसाउ काउंटी इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में खेले जाने वाले भारत-पाकिस्तान के मैच को लेकर अमेरिका ने सुरक्षा बढ़ा दी है। डेली मैल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ISIS के एक संगठन ने भारत-पाक मैच पर आतंकी हमले की धमकी दी है।
फिलिस्तीन जनसंहार पर डेविड बैकहम का दर्द छलका, बच्चों का क़त्ले आम बंद करो
ब्रिटिश फुटबॉल टीम के पूर्व स्टार और यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष) के दूत डेविड बैकहम ने इंस्टाग्राम पर अपने एकाउंट पर एक स्टोरी शेयर करते हुए रफह पर ज़ायोनी सेना के बर्बर हमलों पर प्रतिक्रिया व्यक्त की।
बैकहम ने अपनी स्टोरी पर लिखा रफ़ह में शरणार्थियों के ख़ैमों पर बमबारी के दौरान जले हुए बच्चों और परिवारों की वायरल तस्वीरों ने हम सभी को झकझोर कर रख दिया है।
ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनी शासन के हमलों की शुरुआत से अब तक हज़ारों बच्चों की मौत और बड़ी संख्या में उनके घायल होने का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अब बच्चों के इस क़त्ले आम को तत्काल रोक देना चाहिए।
तालिबान सरकार को मान्यता देगा रूस, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में बिखराव
अफ़ग़ानिस्तान ली सत्ता पर क़ाबिज़ तालिबान को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में बिखराव का दौर शुरू हो चुका है। रूस अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के खिलाफ जाते हुए तालिबान सरकार को मान्यता देने का मन बना रहा है।
अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के बाद अगस्त 2021 में तालिबान ने बिना एक भी गोली चलाए सत्ता को अपने हाथ में ले ली। अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के साथ ही क्षेत्री देशों और इंटरनेशनल ताकतों के बीच एक आम सहमति थी। अमेरिका, चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान और ईरान समेत अन्य प्रमुख शक्तियों के बीच इस बात पर आम सहमति थी कि तालिबान सरकार को तब तक मान्यता नहीं दी जाएगी, जब तक वह कुछ शर्तों को पूरा नहीं कर लेता।
इन शर्तों में समावेशी सरकार बनाना, महिलाओं और मानवाधिकारों का सम्मान करना और अफगान धरती को आतंकी समूहों के इस्तेमाल के लिए इस्तेमाल न होने देना शामिल है।
लेकिन तालिबान को लेकर अंतरराष्ट्रीय सहमति टूटती दिख रही है। दरार का पहला संकेत मार्च में दिखा जब चीन ने तालिबान शासन की ओर से नियुक्त पूर्णकालिक राजदूत को स्वीकार कर लिया। चीन ने तालिबान सरकार को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है। लेकिन पूर्णकालिक राजदूत को स्वीकार करना एक मौन मान्यता के तौर पर देखा जा रहा है।
अब अफगान तालिबान के साथ एक और देश पूर्ण संबंध स्थापित करने के करीब पहुंच गया है। रूस ने तालिबान सरकार को मान्यता का संकेत दिया है। पहले कदम के तहत रूसी न्याय और विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रपति पुतिन से अफगान तालिबान को आतंकी संगठनों की लिस्ट से हटाने की सिफारिश की। रूस ने 2003 में अफगान तालिबान पर प्रतिबंध लगा दिया था। अगर रूस प्रतिबंध हटा लेता है, तो तालिबान सरकार की संभावित मान्यता का रास्ता साफ हो जाएगा।