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ईरान की राष्ट्रीय सिटिंग महिला वालीबाल टीम, फाइनल के रास्ते पर
ईरान की मौजूदा राष्ट्रीय सिटिंग वालीबाल टीम जर्मनी के खिलाफ जीत के बाद पैरालंपिक चयन प्रतियोगिता के फाइनल में भाग लेने से केवल एक क़दम की दूरी पर है।
पेरिस पेरालंपिक सिटिंग वालीबाल टूर्नामेंट, चीन के डाली में आयोजित करवाया जा रहा है। इस टूर्नामेंट में ईरान की महिला राष्ट्रीय टीम ने आज जर्मनी का मुक़ाबला करते हुए मैच को 3-0 से जीत लिया।
ईरान की राष्ट्रीय सिटिंग महिला वालीबाल टीम, पहले ही थाईलैण्ड और जापान की टीमों के विरुद्ध जीत दर्ज करा चुकी है। इस प्रतियोगिता की विजेता टीम, पेरिस में 2024 के पेरालंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई करेगी।
आतंकवादियों के हाथों सीरियन महिलाओं के लंबे घेराव का उल्लेख
हैंगिग गार्डन्स नामक किताब, ईरान की एक महिला लेखक सुमय्या आलेमी की नई रचना है।
इस किताब में सीरिया के नुबल व अज़्ज़हरा नगरों की सात सीरियन महिलाओं की ज़िंदगी के बारे में बताया गया हैं जिन्होंने चार वर्षों तक आतंकवादियों के परिवेष्टन वाले नगर में जीवन गुज़ारा था।
सुमय्या आलेमी, हालिया वर्षों में ईरान में सक्रिय कहानीकारों में से एक हैं जो इस समय साहित्य की अग्रणी हस्तियों में गिनी जाती हैं। सुमय्या आलेमी का जन्म सन 1979 में हुआ था। उन्होंने हर्बल चिकित्सा का अध्ययन किया था।
सन 2009 में उन्होंने बायोटेक्नालोजी के विषय को छोडकर कहानी लिखने का काम शुरू किया। सुमय्या आलेमी ने कई उपन्यास लिखने के साथ ही कथाओं और कहानियों का संग्रह भी तैयार किया।
इस ईरानी लेखिका ने अपने जीवन का एक वर्ष सीरिया में गुज़ारा। वहां पर उन्होंने सीरिया की महिलाओं को पढ़ाने का भी काम किया।
सुमैय्या आलेमी, अपनी किताब हैंगिंग गार्डन्स के आरंभिक विचार के बारे में बताया कि किसी नगर में युद्ध के साथ एक महिला के संबन्ध और शांति स्थापित कराने में उसकी भमिका के विचार हमेशा मेरे साथ रहे हैं।
मैने हमेशा यह जानने का प्रयास किया है कि आदर्श समाज में महिला का स्थान कहां पर है। इस आदर्श समाज में मैंने जितनी भी खोज की पश्चिम को मैंने केवल नारीवाद के रूप में ही देखा जो पूंजीवादी संस्कृति से पूरी तरह से चिपका हुआ है। उनका कोई भी संबन्ध मानवीय पूंजी से नहीं है।
अपनी किताब के आइडिये के बारे में वे कहती हैं कि मेरा बचपन, ईरान पर इराक़ के बासी शासन द्वारा थोपे गए युद्ध में गुज़रा। मेरा बचपन हमेशा ही युद्ध की स्थति में माता-पिता की यात्राओं में गुज़र रहा था। मेरी माता, थोपे गए युद्ध के ज़माने में युद्ध के लिए सहायता सामग्री भेजने वाली संस्था में सक्रिय रहीं। उसी काल से मेरे मन में महिलाओं की ज़िम्मेदारी, एक आदर्श के रूप में रचबस गई थी।
वे कहती हैं कि इस बात को चाहे कोई अपने मुंह से न भी कहे लेकिन यह बात मेरे लिए बहुत स्पष्ट थी कि महिलाओं और किसी देश के पतन के बीच घनिष्ठ संबन्ध होता है। जब मैं दमिश्क़ पहुंची तो मेरे दिमाग़ में यह बात आई कि क्यों न सीरिया युद्ध से प्रभावित महिलाओं से मिलकर उनकी बातों को किताब का रूप दूं।
अपनी किताब के नाम, हैंगिंग गार्डन्स के बारे में सुमय्या आलेमी कहती हैं कि बाग़ उस जगह को कहते हैं जहां पर पेड़ होते हैं। उनका कहना है कि वनस्पतियों की तुलना में पेड़ों की जड़ें काफ़ी गहरी और अधिक मज़बूत होती हैं। जड़ें ही पेड़ों के तनों को बहुत ही मज़बूती से ज़मीन के भीतर रोके रखती हैं।
वे पेड़ों से महिलाओं की संक्षा देते हुए कहती हैं कि महिलाएं, बाग़ के पेड़ों की भांति हैं जो जन्म देने के आदर्श के रूप में मौजूद हैं। अपने इस आदर्श के साथ वे परिवार का संचालन भी करती हैं। हालांकि मेरी किताब के शीर्षक का कुछ संबन्ध सीरिया के नगरों के हालात से भी है।
सीरिया के नुबल और अज़्ज़हरा नगरों में सीरिया की महिलाओं ने चार वर्षों तक सशस्त्र आतंकवादियों के परिवेष्टन में अपना जीवन गुज़ारा
हैंगिंग गार्डन्स नामक अपनी किताब की महिलाओं के बारे में वे कहती हैं कि यह वे महिलाएं हैं जिन्होंने बहुआयामी युद्ध के दौरान अपने जीवन के 10 वर्ष, बहुत ही कठिन परिस्थतियों में गुज़ारे थे। इस दौरान इन महिलाओं ने अपने बच्चों को ज़िंदा रखने के लिए जी-तोड़ प्रयास किये थे। वे हमेशा ही सहायता की प्रतीक्षा में रहा करती थीं। यह सहायता कभी-कभी आसमान से नीचे की ओर आया करती थी।
सीरिया में कड़ा प्रतिरोध करने वाली इन महिलाओं के बारे में लेखिका बताती हैं कि यह महिलाएं उस देश में जीवन गुज़ार रही हैं जो लंबे समय तक फ्रांसीसी उपनिवेश रहा है।वर्तमान समय में इसका कुछ भाग इस्राईल के अतिग्रहण में है। सीरिया के गोलान क्षेत्र पर लंबे समय से अवैध ज़ायोनी शासन ने क़ब्ज़ा कर रखा है। सीरिया के भीतर फ़िलिस्तीनी पलायनकर्ता भी ज़िंदगी गुज़ारते हैं। अब वे उनके साथ रचबस गए हैं।
इसके अतिरिक्त सीरिया और फ़िलिस्तीन की सांस्कृतिक तथा भौगौलिक समानताओं ने भी इन दोनो राष्ट्र के लोगों को एक-दूसरे से निकट होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।मेरे हिसाब से ज़ायोनी वर्चस्ववाद के मुक़ाबले में सीरिया की महिलाओं के प्रतिरोध के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है।
राष्ट्रों के प्रतिरोध को बयान करने की आवश्यकता के बारे में सुमय्या आलेमी कहती हैं कि राष्ट्रों के प्रतिरोध की कहानी, युद्ध के समापन और उसके पुनर्निमाण के बाद अपने चरम को पहुंचती है। ईरान में भी यह काम सुरक्षा और सत्ता की छाया में परवान चढ चुका है। एसे में दुनिया भर के प्रतिरोधों की कहानियां पेश करने में ईरानी लेखक अग्रणी रह सकते हैं।
हैंगिंग गार्डन्स की लेखिका आगे कहती हैं कि नए और पुराने उपनिवेशवाद से सुरक्षित रहने के लिए किसी संयुक्त भौगोलिक क्षेत्र के निवासियों के बीच सामुदायिक भावना उत्पन्न करने में प्रतिरोध की कहानियां बहुत प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं।
अगर इस प्रकार की घटनाओं को लिखा न जाए तो बहुत से राष्ट्र, इन घटनाओं को भुला दिये जाने के कारण बाहरी उपनिवेशवाद और आंतरिक तानाशाही की ज़द में आ सकते हैं। वह राष्ट्र जिसके पास प्रतिरोध की कोई कहानी न हो या जो प्रतिरोध को जन्म न दे पाए तो उसको भुला दिया जाता है।
यह लेख, श्रीमती सुमय्या आलेमी के उस इंटरव्यू पर आधारित है जो ईरान आनलाइन साइट पर उपलब्ध है।
माहे रमज़ान के अठ्ठाईसवें दिन की दुआ (28)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
أللّهُمَّ وَفِّرْ حَظِّي فيہ مِنَ النَّوافِلِ وَأكْرِمني فيہ بِإحضارِ المَسائِلِ وَقَرِّبْ فيہ وَسيلَتي إليكَ مِنْ بَيْنِ الوَسائِلِ يا مَن لا يَشْغَلُهُ إلحاحُ المُلِحِّينَ..
अल्लाह हुम्मा वफ़्फ़िर हज़्ज़ी फ़ीहि मिनन नवाफ़िल, व अकरिमनी फ़ीहि बे एहज़ारिल मसाइल, व क़र्रिब फ़ीहि वसीलती इलैका मिन बैनिल वसाइल, या मन ला यश-ग़लुहु इलहाहुल मुलिह्हीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! इस महीने के नवाफ़िल और मुस्तहबात इबादतों में मेरे लिए ज़ियादा से ज़ियादा हिस्सा क़रार दे, और मुझे दीनी मसाएल की समझ देकर इज़्ज़त अता कर, और सारे वसीलों में से मेरे वसीले को ख़ुद से क़रीब फ़रमा, ऐ वह जिस से इसरार करने वालों का इसरार दूसरों से ग़ाफ़िल नहीं करता...
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
ईश्वरीय आतिथ्य- 28
रमज़ान का पवित्र महीना ईश्वरीय उपहार है और महान ईश्वर ने समस्त आसमानी धर्मों के अनुयाइयों को यह उपहार दिया है।
यह वह महीना है जिसमें इंसान महान ईश्वर से अधिक निकट हो सकता है। इंसान का दिल हर दूसरे समय से अधिक इस महीने महान ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने के लिए तैयार होता है और शैतान हर दूसरे समय से अधिक मोमिनों और महान ईश्वर के बंदों से दूर होता है। अतः इस महीने में महान ईश्वर और उसके बंदों के मध्य संपर्क की संभावना हर दूसरे महीने से अधिक है। इस आधार पर पवित्र रमज़ान महीने में दुआओं का कबूल होने की संभावना अधिक निकट है। यह वह महीना है जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया है” रमज़ान वह महीना है जिसमें तुम्हें ईश्वरीय मेहमानी के लिए आमंत्रित किया गया है और तुम्हें इस महीने में प्रतिष्ठित लोगों में करार दिया गया है। इस महीने में तुम्हारी सांसों को तस्बीह अर्थात ईश्वर गुणगान करार दिया गया है, तुम्हारी नींद को उपासना करार दिया गया है। इस महीने में तुम्हारे कार्यों को कबूल किया गया है, इस महीने में तुम्हारी दुआएं कबूल होती हैं। इस महीने में नमाज़ के समय अपने हाथों को दुआओं के लिए ईश्वर की ओर उठाओ। इन वक्तों में ईश्वर अपने बंदों को कृपा दृष्टि से देखता है। अगर उसे बुलाया जाता है तो वह जवाब देता है अगर उससे मांगा जाता है तो वह देता है।"
रमज़ान का महीना ईश्वरीय कृपा के द्वार खुलने का महीना है। रमज़ान का महीना मांगने और स्वीकार करने का महीना है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया रमज़ान की पहली रात को आसमान के दरवाज़े खुल जाते हैं और रमज़ान महीने की अंतिम रात तक बंद नहीं होते हैं। महान ईरानी रहस्यवादी आयतुल्लाह मुजतबा तेहरानी इस हदीस की व्याख्या में कहते हैं” इस समय समस्त द्वार खुले हुए हैं यानी ईश्वर और उसके बंदों के दौरान जो दूरियां हैं ईश्वर की ओर से उसे ख़त्म कर दिया जाता है और ईश्वर से भौतिक एवं आध्यात्मिक जो चीज़ भी कही जाती है वह उस तक पहुंचती है। उसका नतीजा यह है कि उससे जो चीज़ें भी मांगी जाती है वह निरुत्तर नहीं रहती हैं। आज जो बात कही जाती है उसके अनुसार ठंडे बस्ते में नहीं डाली जाती बल्कि वह सीधे तौर पर ईश्वर तक पहुंचती हैं।
रमज़ान के पवित्र महीने को महानता, प्रतिष्ठा और अध्यात्म की दृष्टि से सबसे अच्छा महीना कहा जाता है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे बकरा की आयत नंबर 185 के एक भाग में इस महीने की विशेषता के बारे में कहता है” रमज़ान वह महीना है जिसमें कुरआन नाज़िल किया गया। यह लोगों के लिए मार्ग दर्शन है। यह सत्य को असत्य से अलग करने वाला है।“
दूसरी ओर महान ईश्वर ने इस महीने में जो नेअमतें व अनुकंपायें प्रदान की हैं उससे मोमिनों के लिए आत्म निरीक्षण व स्वयं को पवित्र बनाना सरल हो गया है। इस महीने में इस प्रकार की विशेषता का होना इस बात का कारण बनता है कि मोमिनों का ध्यान महान ईश्वर की ओर अधिक जाता है और उनकी दुआएं कबूल होने के अधिक निकट होती हैं। इस आधार पर हम देखते हैं कि महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे बक़रा की 183 से 185 तक कि आयतों में रमज़ान के रोज़े की अनिवार्यता और कुछ धार्मिक आदेशों को बयान करता और इसी सूरे की आयत नंबर 186 में कहता है” जब मेरे बंदे आप से मेरे बारे में पूछें तो कह दीजिये कि मैं बहुत समीप हूं जब मुझे पुकारा जाता है तो मैं पुकारने वालों का जवाब देता हूं तो उन्हें चाहिये कि मेरे आदेशों का पालन करें और मुझ पर ईमान रखें ताकि उनका मार्गदर्शन किया जाये।"
इस आयत में महान ईश्वर ने दुआ को कबूल करने का वादा किया है। अलबत्ता इसके लिए दो महत्वपूर्ण शर्तें ज़रूरी हैं। पहला यह कि दुआ वास्तव में दुआ हो। यानी दुआ करने वाले का दिल और ज़बान एक हो। एसा न हो कि ज़बान पर कुछ हो और दिल में कुछ और। दूसरी शर्त यह है कि वह दुआ कबूल होती है जो केवल महान ईश्वर से की जाती है न कि किसी और से! तो कोई ईश्वर से ज़बान से दुआ करे और वह दुनिया की चीज़ों से आशा लगाये हो तो इस प्रकार के व्यक्ति ने दिल से ईश्वर को नहीं पुकारा है और दुआ के कबूल होने की शर्त पर ध्यान नहीं दिया है पर इसके विपरीत जो व्यक्ति सच्चे दिल से ईश्वर को पुकारता है निश्चित रूप से उसकी दुआ कबूल होती है। रमज़ान के पवित्र महीने में दुआ के लिए भूमि प्रशस्त है और रोज़ादार अधिक निष्ठा व सच्चे दिल से दुआ कर सकता है कि उसकी दुआ कबूल होने के निकट है।
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम रमज़ान के पवित्र महीने में दुआये सहर में दुआ के कबूल होने को इस प्रकार बयान करते हैं“ यह कि तू अपने बंदों से कहे कि वे मुझसे मांगे किन्तु तू उनकी मांगों को पूरा न करे यह संभव नहीं है।“
जब महान ईश्वर दुआ करने का आदेश देता है और कहता है कि उससे मांगा जाये तो इसका अर्थ यह है कि हम जो कुछ मांगेंगे ईश्वर उसे देना चाहता है। अतः रवायत में है कि ईश्वर उससे महान है कि दुआ का द्वार खोले और देने का द्वार बंद करे। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम दुआये सहर में एक अन्य स्थान पर दुआ के कबूल होने के रहस्य के बारे में कहते हैं” तेरी आदत यह है कि तू अपने बंदों के साथ प्रेम व दया के साथ व्यवहार करता है” यानी सही है कि तूने कहा है कि मुझसे मांगो और मांगने वाले को रद्द नहीं करता यह केवल उस कृपा व दया की वजह से है जो तू अपने बंदों के साथ करता है इसलिए नहीं कि हम उसके पात्र हैं।
रमज़ान का पवित्र महीना दुआ करने और दुआ कबूल होने का सुनहरा अवसर है किन्तु जो चीज़ बहुत महत्वपूर्ण है वह दुआ की वास्तविकता पर ध्यान देना और दुआ के महत्व को समझना है। दुआ केवल ज़रुरत को पा लेने या पा जाने के लिए नहीं होती है बल्कि दुआ दावत से लिया गया है और दुआ में इंसान महान ईश्वर से दावत व आह्वान करता है कि वह उसके दिल को सदगुणों से सुसज्जित कर दे। इस आधार पर दुआ करने वाले की दुआ कबूल हो या न हो उसने महान ईश्वर की उपासना की है और वह महान ईश्वर के निकट हो गया है। पवित्र कुरआन ने हज़रत इब्राहिम को आवा,,,, अर्थात बहुत अधिक दुआ करने वाले की उपाधि दी है। हज़रत इब्राहीम महान ईश्वर को ब्रह्मांड का सब कुछ समझते थे और अपनी हर ज़रूरत महान ईश्वर से कहते थे। अतः वे केवल महान ईश्वर का द्वार खटखटाते थे। अलबत्ता बहुत अधिक खटखटाते थे और उन्हें महान ईश्वर से दुआ करने में बहुत आनंद मिलता था।
दुआ ईश्वरीय खज़ाने की कुंजी है। जब महान ईश्वर अपने बंदों से कहता है कि वे उससे मांगे तो इसका अर्थ यह है कि जो भी ईश्वर की बारगाह में दुआ करेगा ईश्वर उसे पूरा करेगा। जैसाकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने सुपुत्र से फरमाया है” जान लो कि जिसके हाथ में लोक- परलोक की कुंजी है उसने तुमसे कहा है कि उसे बुलाओ और उसने तुम्हारी दुआ को कबूल करने की गैरेन्टी दी है और उसने तुम्हें आदेश दिया है कि उससे मांगो कि ताकि वह तुम्हें दे और वह कृपालु व दयालु है। उसने अपने और तुम्हारे बीच कोई पर्दा नहीं रखा है और उसने तुम्हें मध्यस्थ लाने के लिए मजबूर नहीं किया है। तो उसने खज़ानों की कुंजी जो वही दुआ है तुम्हें दे दी है तो तुम जब भी मांगोगे दुआ करने से उसके खज़ानों के द्वार को खोल लोगे।
यहां यह सवाल किया जा सकता है कि हमने बहुत से अवसरों पर दुआ किया परंतु दुआ कबूल नहीं हुई? अगर दुआ ईश्वरीय दया व कृपा की कुंजी है तो जो इस कुंजी का प्रयोग करे उसे उसका नतीजा मिलना चाहिये। तो हमारी दुआ क्यों कबूल नहीं हुई? हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं” दुआ करने में आग्रह करो इस प्रकार न हो कि अगर एक बार दुआ किये और दुआ कबूल नहीं हुई तो दुआ करना ही छोड़ दो।“
इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिये कि दुआ के विलंब से कबूल होने में भी रहस्य हैं। यानी अगर आपकी दुआ पहली ही बार में कबूल नहीं हुई तो निराश नहीं होना चाहिये। क्योंकि यह संभव है कि महान ईश्वर ने किसी रहस्य की वजह से दुआ को कबूल करने को विलंबित कर दिया है। तो अगर इंसान दोबारा दुआ करता है वह अधिक ईश्वरीय कृपा व दया का पात्र बनता है। अगर पहली ही बार में महान ईश्वर इंसान की दुआ को कबूल कर ले तो वह दूसरी बार महान ईश्वर से दुआ नहीं करेगा और जब वह दुआ नहीं करेगा तो अधिक दया व कृपा का पात्र नहीं बनेगा जबकि महान ईश्वर यह चाहता है कि उसका बंदा अधिक कृपा व दया का पात्र बने।
कभी ऐसा होता है कि इंसान अपनी आदत के अनुसार दुआ करता है। एसी स्थिति में दुआ करने वाले इंसान के अंदर कोई परिवर्तन उत्पन्न नहीं होता है किन्तु कुछ अवसरों पर विशेषकर परेशानी के समय न केवल इंसान अपनी ज़बान से दुआ करता है बल्कि दिल और उसके शरीर के दूसरे अंग भी महान ईश्वर से दुआ करते हैं ऐसी हालत में इंसान के अंदर परिवर्तन उत्पन्न होता है और इंसान महान ईश्वर को उसके विशेष नामों की कसम देता है और वह बार बार दुआ करता है और यह वही चीज़ है जिसे महान ईश्वर चाहता है। हदीसे कुद्सी में आया है” महान ईश्वर हज़रत ईसा मसीह से कहता है हे ईसा! जब मुझे बुलाते हो तो उस इंसान की तरह बुलाओ जो पानी में डूब रहा हो और कोई भी उसकी सहायता करने वाला न हो और मेरी बारगाह में आओ हे ईसा अकेले में मुझे बहुत याद करो और उसके बाद अपनी दुआओं में दिल को मेरे सामने नतमस्तक कर लो और मुझे पुकारो।“
बंदगी की बहार- 28
रमज़ान का पवित्र महीना अपनी सभी विभूतियों और सुंदरताओं के साथ अपने अंत की ओर बढ़ रहा है लेकिन इसकी सुगंध हमारे जीवन के वातावरण में बाक़ी रहेगी।
जिन लोगों ने इस महीने में ईश्वरीय बंदगी का स्वाद चखा है वह इस बात पर प्रसन्न हैं कि वे अपने दायित्वों के पालन में सफल रहे हैं। इसी के साथ वे इस बात से दुखी भी हैं कि रमज़ान अपने प्रकाशमयी क्षणों के साथ गुज़र रहा है। रमज़ान के महीने से हमें पता चलता है कि हमें अपने जीवन में इस तरह के क्षणों, घंटों, दिनों और रातों की कितनी ज़रूरत है। रमज़ान के दिन ईश्वर के आदेशों के आज्ञापालन और रातें दयालु व कृपालु ईश्वर की उपासना व उससे प्रार्थना से परिपूर्ण होते हैं। इस मूल्यवान व पवित्र महीने के क्षण व घंटे बड़ी तेज़ी से गुज़र गए और हमने इसके दिनों व रातों को ईश्वर की दया की प्राप्ति की आशा में बिताया और उसके आदेश पर भूख व प्यास सहन करके पापों से दूर रहे।
रमज़ान के महीने में बहुत से भाग्यशाली लोगों ने अत्यधिक उपलब्धियां अर्जित कीं और परिणाम हासिल किए जो उनके साल भर के काल में नहीं पूरे जीवन में विभूतिपूर्ण रहेंगे। कुछ लोगों ने क़ुरआने मजीद से आत्मीयता पैदा कर ली और उसकी आयतों पर विचार व चिंतन मनन करके अहम क़ुरआनी शिक्षाओं से लाभ उठाया। कुछ अन्य ने इस महीने में ईश्वर से दुआ व प्रार्थना की आदत डाल कर अपने दिल को प्रकाशमयी कर लिया। जिन लोगों ने रोज़े रखे उन्होंने रोज़े के माध्यम से अपने दिल की पवित्र बनाया और यही पवित्रता व प्रकाश उनके व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में बहुत सी विभूतियों का स्रोत है। दिल की पवित्रता मनुष्य को अच्छी सोच प्रदान करती है, उसे ईर्ष्या, कंजूसी, घमंड और अन्य बुराइयों से रोकती है, समाज के वातावरण को सुरक्षित बनाती है। ये सब रमज़ान के पवित्र महीने की उपलब्धियां हैं।
तौबा व प्रायश्चित, ईश्वर की ओर वापसी और अंतरात्मा की पवित्रता रमज़ान के महीन की बड़ी उलब्धियां हैं। जैसा कि हम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की प्रख्यात दुआ अबू हमज़ा सोमाली में पढ़ते हैं कि प्रभुवर! हमें तौबा के चरण तक पहुंचा दे कि हम लौट सकें और बुरे कर्म, बुरी सोच और दुर्व्यवहार से दूर हो सकें। इसी प्रकार वे रमज़ान महीने की विदाई के समय पढ़ी जाने वाली दुआ में कहते हैः प्रभुवर! तूने ही अपनी क्षमा की ओर एक दरवाज़ा खोला है और उसका नाम तौबा रखा है। मनुष्य अपनी मानवीय व आंतरिक इच्छाओं के चलते ग़लतियां कर बैठता है और पाप करने लगता है।
हर पाप हमारी आत्मा पर एक घाव लगाता है और अगर तौबा का मार्ग खुला नहीं होता तो किस प्रकार हम आत्मग्लानी से मुक्ति पा सकते थे। हमारा ईश्वर से क्षमा याचना करना और दयालु व कृपालु ईश्वर की ओर से हमें क्षमा करना, हमारे भीतर आशा की आत्मा फूंक देता है। ईश्वर की दया व कृपा से हम अपने आपको उन सभी अत्याचारों से मुक्त कर सकते हैं जो हमने अपने आप पर किए हैं और अपने पापों की गठरी फेंक कर हम ईश्वर की शरण में जा सकते हैं। ईश्वर ने हमारे लिए यह शरणस्थल खोल रखा है और इसका नाम तौबा व प्रायश्चिम रखा है। यही कारण है कि ईश्वर के पवित्र बंदे हमेशा तौबा का मूल्य समझने पर बल देते हैं। कोई युवा अपनी निश्चेतना व अज्ञान के कारण घर से भाग जाता है लेकिन फिर अपने माता-पिता के पास वापस आ जाता है तो वे उसे गले से लगाते हैं और वह उनकी ओर से प्रेम व स्नेह का ही पात्र बनता है। यही तौबा है। जब हम ईश्वरीय दया के घर की ओर लौटते हैं तो ईश्वर हमें गले से लगाता है और हमारी तौबा स्वीकार कर लेता है। हमें, वापसी के इस अवसर का, जो रमज़ान के महीने में प्राकृतिक रूप से ईमान वाले व्यक्ति के लिए उपलब्ध होता है, मूल्य समझना चाहिए।
एक दिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तूर पर्वत पर ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे और उन्होंने इस प्रकार ईश्वर को पुकाराः हे ब्रह्मांड के ईश्वर! उन्हें जवाब दिया गया। मैंने तुम्हारी पुकार को स्वीकार कर लिया। हज़रत मूसा ने एक बार फिर अनन्य ईश्वर को किसी ओर विशेषता से पुकारा और कहाः हे आज्ञापालन करने वालों के ईश्वर! एक बार फिर ईश्वर ने उनकी बात को स्वीकार कर लिया। ईश्वर के प्रेम भरे उत्तरों से हज़रत मूसा अभिभूत हो गए और इस बार उन्होंने अधिक उत्साह के साथ पुकाराः हे पापियों के ईश्वर! इस पुकार के जवाब में हज़रत मूसा ने तीन बार ईश्वर का उत्तर सुना। उन्होंने पूछा कि प्रभुवर! इसका कारण है कि इस बार तूने मेरी पुकार का तीन मर्तबा जवाब दिया? उनसे कहा गयाः हे मूसा! मेरी पहचान रखने वाले अपनी पहचान से आशा लगाए हुए हैं, सद्कर्मियों को अपने भले कर्मों के प्रति आशावान हैं। मेरा आज्ञापालन करने वालों को अपने आज्ञापालन पर भरोसा है लेकिन पापियों के पास तो मेरे अलावा कोई और शरण है ही नहीं। अगर वे मेरी ओर से भी निराश हो गए तो फिर वे किसकी शरण में जाएंगे?
रमज़ान के पवित्र महीने की एक अन्य उपलब्धि, ईश्वरीय कृपा से अधिक आशा है जो निश्चित रूप से एक अत्याधिक सुंदर, आध्यात्मिक दशा है जो हक़ीक़त में मनुष्य की पूरी उम्र में रहना चाहिए। क़ुरआने मजीद ने अनेक आयतों में मनुष्य को, ईश्वर की दया व कृपा के प्रति आशावान किया है। सूरए यूसुफ़ की आयत नंबर 87 में बड़े सुंदर रूप में कहा गया है कि "और ईश्वर की दया से निराश न हो कि उसकी दया से नास्तिकों के अलावा कोई निराश नहीं होता। वास्तविकता यह है कि कुछ लोग, कुछ चीज़ों को गंवाने या किसी समस्या में ग्रस्त हो जाने के बाद निराश हो जाते हैं और कभी कभी कमज़ोर ईमान और ईश्वर की सही पहचान न होने की वजह से, अकृतज्ञता भी प्रकट करने लगते हैं जबकि मनुष्य को यदि अपने पालनहार की अपार शक्ति पर विश्वास हो तो वह किसी भी दशा में उसकी दया और कृपा की ओर से निराश नहीं हो सकता। जिस ईश्वर ने अपने दूत, हज़रत यूनुस को समुद्र की अंधेरी गहराई और मछली से पेट से छुटकारा दिलाया वह, आस्थावानों की दुआएं सुन कर उन्हें पूरी करने क क्षमता रखता है।
रमज़ान का पवित्र महीना, जाते जाते हमें यह बताता है कि, रमज़ान की ही तरह, जवानी, ताक़त और अवसर भी बड़ी तेज़ी से चले जाते हैं। वास्तव में रमज़ान का चला जाना हमें यह अवसर प्रदान करता है कि हम इस बात पर विचार करें कि हम कहां खड़े हैं? हमने क्या पाया और क्या खोया? और अब आगे जीवन के उतार- चढ़ाव भरे मार्ग पर कैसे चलेंगे? इस्लामी किताबों में लिखा है कि इस्लाम के आरंभिक काल की बड़ी हस्ती, हारिस हमदानी ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से शिकायत की कि आज मैं मस्जिद गया तो देखा कि मुसलमान, गुटों में बैठे हुए हैं और पैग़म्बरे इसलाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के कथनों और हदीसों के बारे में एक दूसरे से बहस कर रहे हैं लेकिन कोई परिणाम नहीं निकल रहा है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उनकी बात सुन कर कहा कि मैंने पैग़म्बरे इस्लाम से स्वंय सुना है कि वह कह रहे थे कि इस्लामी समाज में हमेशा शंकाएं और साज़िशें होती रहेंगी किंतु उन सब का समाधान क़ुरआने मजीद है। श्रोताओ हमें आशा है कि हम रमज़ान के महीने को इस हालत में गुज़ारें कि क़ुरआने मजीद की आयतों को अपने जीवन के लिए आदर्श बना चुके हों। क्योंकि यह निश्चित है कि क़ुरआने मजीद की आयतों और उसकी शिक्षाएं मनुष्य के जीवन में ताज़गी और आशा पैदा करती हैं और यही वजह है कि कुरआने मजीद की आयतों को शिफ़ा अर्थात स्वास्थ्य लाभ भी कहा जाता है।
इस महीने में हर एक की यही कोशिश रही कि वह स्वयं को उन गुणों से सुसज्जित कर ले जिनकी प्रशंसा, कृपालु ईश्वर ने की है। सौभाग्यशाली हैं वे लोग जिन्होंने इस अवसर से लाभ उठाया और स्वयं को मानवीय व नैतिक सद्गुणों से सुसज्जित किया और यह सीख लिया कि जीवन में सब से अच्छा कर्म वह होता है जिसे साफ़ नीयत और ईश्वर की प्रसन्नता के इरादे से किया जाए। हमारे लिए कितना अच्छा है कि हम रमज़ान के पवित्र महीने में अपने आध्यात्मिक अनुभव को, अपने जीवन के हर क्षण पर व्याप्त कर दें। निश्चित रूप से रमज़ान का महीना और उसमें रोज़ा, आध्यात्मिक व भौतिक लाभ लिए हुए है किंतु उसका सब से महत्वपूर्ण लाभ, तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय और पापों से दूरी है। रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने का फल, हमारे मन व मस्तिष्क में ईश्वरीय भय का घर कर जाना है और उसके परिणाम में पापों से बचना है। यदि हम इस चरण पर पहुंच गये तो यह भय और यह तक़वा हमें जीवन के हर मोड़ पर रास्ता दिखाएगा और पाप व पुण्य के पुल पर हमारे क़दम को डगमगाने नहीं देगा और हमें कल्याण के गंतव्य तक पहुंचा देगा।
रमज़ान के पवित्र महीने में हम सबने अनेक सद्गुण हासिल किए और अच्छी आदतें सीखीं। इसी तरह हमने अनेक बुराइयों को अपने आपसे दूर किया। अब अहम बात यह है कि हम इस पवित्र महीने में अर्जित की गई उपलब्धियों को किस प्रकार हमेशा के लिए अपने जीवन में सुरक्षित रख सकते हैं? रमज़ान के महीने ने हमें अनेक विभूतियां प्रदान की हैं लेकिन जो चीज़ आवश्यक है कि वह यह है कि हम इन उपलब्धियों को सुरक्षित रखें और इस बात की अनुमति न दें कि पापों की बिजली इस मूल्यवान खलिहान को जला कर राख कर दे।
इस्फ़हान के मैदाने नक़्शे जहान में यौम क़ुद्स पर प्रदर्शन
,माहे रमज़ान उल मुबारक के आख़िरी जुमआ और यौमे क़ुद्स के अवसर पर हर साल की तरह इस साल भी ईरान के सभी शहरों में फ़िलिस्तीन के समर्थन में विशाल रैलियों का आयोजन किया गया।
यौमे क़ुद्स के मौके पर इस्फ़हान के मैदाने नक़्शे जहान में जवान, बूढ़े, महिलाएं,बच्चें,हिस्सा लिए और फिलिस्तीनियों के समर्थन और बैतूल मुकद्दस की आज़ादी के लिए नारे लगाए
इस साल, क़ुद्स विश्व दिवस ऐसी स्थिति में मनाया गया, जब पिछले 6 महीने से ग़ज़ा के लोगों पर ज़ायोनी शासन ने ज़ुल्म का पहाड़ ढा रखा है। ग़ज़ा पर इस्राईल के बर्बर हमलों ने जहां 33,000 से ज़्यादा लोगों की जान ले ली है,
वहीं पूरा ग़ज़ा तहस-नहस हो गया है और लोग भुखमरी का शिकार हैं। दुनिया भर में इस्राईल के अत्याचारों के ख़िलाफ़ नाराज़गी बढ़ती जा रही है और फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में लगातार वृद्धि हो रही है।
इस्राईल की आलोचना के कारण अमरीकी फ्लोस्फर का निमंत्रण रद्द
जर्मनी के शिक्षा केन्द्रों को भी पसंद नहीं आ रही है अवैध ज़ायोनी शासन की आलोचना।
नेनसी फ़्रेजर, जिनहें कोलोन विश्विद्यालय में अल्बर्ट्स मैगनस प्रोफेसरशिप के लिए आमंत्रित किया गया था, उनके निमंत्रणपत्र को इस यूनिवर्सिटी की ओर से निरस्त कर दिया गया।
ग़ज़्ज़ा में जिस तरह से फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध ज़ायोनियों द्वारा अपराध किये जा रहे हैं उनपर पूरी दुनिया में हर वर्ग की ओर से आलोचना की जा रही है। इन्ही आलोचकों में से एक नेनवी फ़्रेज़र भी हैं जो एक मश्हूर विचारक एवं दार्शनिक हैं। नेनसी फ्रेज़र, वामपंथी नारीवादी दार्शनिक हैं।
सात अक्तूबर के बाद से जर्मनी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कमी आई है विशेषकर वैज्ञानिक केन्द्रों में। हालांकि इससे पहले भी जर्मनी की एकेडमियों में इस्राईल की आलोचना और इस अवैध शासन के बायकाट को सहन नहीं किया जाता था।
ग़ज़्ज़ा में अब भी फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध ज़ायोनियों की हिंसक कार्यवाहियां जारी हैं। ज़ायोनियों की इन कार्यवाहियों में 33 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हुए है जबकि 75 हज़ार से अधिक घायल हो चुके हैं।
याद रहे कि ब्रिटिश उपनिवेशवादा के षडयंत्र के अन्तर्गत सन 1917 में इस्राईल के गठन की योजना तैयार हो चुकी थी किंतु विश्व के अन्य देशों से फ़िलिस्तीन की भूमि की ओर यहूदियों के पलायन के बाद 1948 में अवैध ज़ायोनी शासन के गठन की घोषणा की गई। उस समय से लेकर अबतक ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों की भूमि पर क़ब्ज़ा करने और उनके जातीय सफाए की कार्यवाहियां विभिन्न शैलियों में जारी हैं।
ग़ाज़ा के विभिन्न क्षेत्रों पर ज़ायोनी युद्धक विमानों की बमबारी
कब्जा करने वाले ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने गाजा के दक्षिणी इलाकों और खान यूनिस शहर पर भारी बमबारी की है।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी सेना के ड्रोन ने नुसीरत शिविर की हवा में उड़ान भरी, जबकि ज़ायोनी सेना ने नुसीरत शिविर के उत्तर में अल-मगराबा क्षेत्र पर गोलाबारी की। फ़िलिस्तीनी सूत्रों का कहना है कि ज़ायोनी आक्रमण में कई फ़िलिस्तीनी घायल हुए हैं।
ज़ायोनी युद्धक विमानों ने पूर्वी खान यूनिस में अल-ज़िना और बानी सुहैला के क्षेत्रों पर भी बमबारी की और गाजा के दक्षिणी क्षेत्रों और खान यूनिस शहर के पश्चिमी क्षेत्रों को निशाना बनाया। ज़ायोनी सेना ने ग़ज़ा के दक्षिण-पश्चिमी इलाक़ों में भी भारी गोलाबारी की।
गाजा में 140 पत्रकारों की शहादत
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने रविवार सुबह अपनी नवीनतम रिपोर्ट में गाजा में ज़ायोनी सेना द्वारा मारे गए पत्रकारों की संख्या एक सौ चालीस बताई।
इस संगठन ने घोषणा की है कि ये पत्रकार 7 अक्टूबर से गाजा के खिलाफ हमलों की शुरुआत के बाद से इजरायली सेना के बमबारी और मिसाइल हमलों में शहीद हुए हैं.
संगठन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से गाजा में होने वाली मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए इज़राइल पर दबाव बढ़ाने का आह्वान किया है। एक हजार से अधिक बच्चे शहीद हो गए हैं और अनगिनत संख्या में घायल हुए हैं
तेल अवीव में ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन
तेल अवीव में ज़ायोनी युद्ध मंत्रालय भवन के सामने नेतन्याहू के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हिंसा में बदल गया और ज़ायोनी पुलिस अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों पर चिल्लाया।
तेल अवीव में ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेतन्याहू के ख़िलाफ़ ज़ायोनी प्रदर्शनकारियों का विरोध प्रदर्शन जारी है, जो नेतन्याहू की बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं।
ज़ायोनी सूत्रों ने यह भी बताया है कि इज़रायली प्रदर्शनकारी युद्ध मंत्रालय के सामने एकत्र हुए और नेतन्याहू के इस्तीफे की मांग की। ज़ायोनी प्रदर्शनकारी हमास के साथ कैदी विनिमय समझौते की मांग कर रहे हैं।
ज़ायोनी सूत्रों का कहना है कि तेल अवीव में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान एक पुलिस अधिकारी घायल हो गया। ज़ायोनीस्ट रेडियो टीवी ने यह भी घोषणा की है कि प्रदर्शनकारियों पर एक कार की टक्कर के परिणामस्वरूप तीन प्रदर्शनकारी घायल भी हुए हैं।