
رضوی
फिलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन के प्रभाव से पश्चिमी देश भी सुरक्षित नहीं रहेंगे
अपने बयान में धार्मिक विद्वानों ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों को फिलिस्तीन के संबंध में अमानवीय, अवैध उत्पीड़न और उत्पीड़न पर आधारित संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल के उत्तेजक रुख के खिलाफ भूमिका निभानी चाहिए।
यूनाइटेड उलेमा फ्रंट और डिफेंस फोर्सेज ऑफ पाकिस्तान फोरम के संस्थापक प्रमुख मौलाना मुहम्मद अमीन अंसारी ने कहा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल ने फिलिस्तीनी मुद्दे को एक विनाशकारी नई स्थिति में डाल दिया है।
उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन के विनाशकारी प्रभावों से पश्चिमी और यूरोपीय देश भी सुरक्षित नहीं रहेंगे।
उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों को फिलिस्तीन के प्रति अमानवीय, अवैध उत्पीड़न और उत्पीड़न पर आधारित संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल के उत्तेजक रुख के खिलाफ भूमिका निभानी चाहिए।
पाकिस्तान में बम विस्फोट में नौ लोगों की मौत कई घायल
पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में शुक्रवार को उस समय नौ कोयला खनिकों की मौत हो गई जब उन लोगों को ले जा रही वाहन एक बम विस्फोट की चपेट में आ गई। इस घटना में नौ लोगो कि मौत और सात लोग घायल हो गए।
पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में शुक्रवार को उस समय नौ कोयला खनिकों की मौत हो गई जब उन लोगों को ले जा रही वाहन एक बम विस्फोट की चपेट में आ गई। इस घटना में नौ लोगो कि मौत और सात लोग घायल हो गए।
हरनाई क्षेत्र के उपायुक्त हजरत वली काकर के अनुसार, यह घटना प्रांत के हरनाई जिले के शाहराग इलाके में हुई पीड़ित एक मिनी ट्रक सवार थे।उन्होंने कहा कि घायलों को नजदीक के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
पुलिस ने कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों के अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए हैं और उन्होंने जांच शुरू कर दी है। पुलिस ने अपराधियों को पकड़ने के लिए तलाशी अभियान शुरू किया है।बलूचिस्तान सरकार के प्रवक्ता शाहिद रैंड ने इस घटना पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि मामले में जांच शुरू कर दी गई है।
उन्होंने कहा कि अभी तक किसी समूह ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है लेकिन अतीत में हुए इस तरह के हमलों के लिए प्रतिबंधित बलूच लिबरेशन आर्मी को जिम्मेदार ठहराया गया है।
गाज़ा युद्ध विराम समझौते के तहत हमास ने तीन और इजरायली बंधकों को रिहा किया
गाजा युद्ध विराम समझौते के तहत शनिवार को बंधकों और कैदियों की छठी अदला बदली के तहत हमास ने तीन इजरायली बंधकों को और रिहा कर दिया।
गाजा युद्ध विराम समझौते के तहत शनिवार को बंधकों और कैदियों की छठी अदला बदली के तहत हमास ने तीन इजरायली बंधकों को और रिहा कर दिया इन तीन के बदले में यहूदी राष्ट्र 369 फिलिस्तीनी कैदियों आजाद करेगा।
फिलिस्तीनी ग्रुप ने जिन तीन बंधकों को रिहा किया है उन्हें गाजा के करीब स्थित किबुत्ज नीर ओज से 7 अक्टूबर 2023 के हमले के दौरान हमास के लड़ाकों ने पकड़ा था।
रिहा किए गए बंधकों में अलेक्जेंडर ट्रोफानोव (29 वर्षीय रूसी-इजरायली), यायर हॉर्न (46 वर्षीय अर्जेंटीनी-इजरायली), सगुई डेकेल-चेन (36 वर्षीय अमेरिकी-इजरायली) शामिल हैं।
19 जनवरी को युद्ध विराम शुरू होने के बाद से हमास ने 16 इजरायली और पांच थाई बंधकों को रिहा किया है वहीं इजरायल ने 766 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा किया है। हमास ने तीनों को रेड क्रॉस को सौंप दिया जो उन्हें लेकर इजरायल की ओर रवाना हो गए।
इससे पहले हमास ने गुरुवार को कहा कि वह समझौते को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें निर्दिष्ट समयसीमा के अनुसार कैदियों की अदला बदली भी शामिल है बता दें सोमवार को हमास ने ऐलान किया कि वह शनिवार को बंधकों को रिहा नहीं करेगा।
हमास की घोषणा के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तब चेतावनी दी थी कि अगर हमास शनिवार तक गाजा में बंधक बनाए गए सभी लोगों को रिहा करने में नाकाम रहा तो तबाही मच जाएगी।
इजरायली पीएम नेतन्याहू ने कहा कि अगर हमास शनिवार दोपहर तक बंधकों को मुक्त नहीं करता है तो इजरायल गाजा में 'तीव्र लड़ाई' फिर से शुरू कर देगा।
इमाम महदी (अ) के शुभ जन्म दिवस पर बडगाम में भव्य रैली का आयोजन
मुंजी ए बशरियत इमाम महदी (अ) के शुभ जन्म दिवस पर अंजुमने शरई शियाने जम्मू कश्मीर द्वारा शरीयताबाद, यूसुफाबाद, बडगाम मे रैली का आयोजन किया गया।
मुंजी ए बशरियत इमाम महदी (अ) के शुभ जन्म दिवस पर अंजुमने शरई शियाने जम्मू कश्मीर द्वारा शरीयताबाद, यूसुफाबाद, बडगाम मे रैली का आयोजन किया गया।
रैली की अध्यक्षता अंजुमने शरई शियाने जम्मू कश्मीर के अध्यक्ष हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन आगा सैयद मुहम्मद हादी अल-मूसवी अल-सफ़वी ने की। रैली मदरसा-ए-कुरान अयातुल्ला आगा सय्यद यूसुफ मीरगुंड, बडगाम से शुरू हुई और इमामबारगाह आयतुल्लाह आगा सैयद यूसुफ फजलुल्लाह रोड़ बेमिना में समाप्त हुई।
इस अवसर पर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन आगा सैयद मोहसिन रिजवी, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना इरफान इसहाक, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना वली मुहम्मद सहित अन्य धर्मावलंबी और अंजुमन से संबद्ध विद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने उपस्थित होकर सर्वोच्च इमाम की सेवा को श्रद्धांजलि अर्पित की।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की ज़िन्दगी पर एक नज़र
शियों के आखरी इमाम और रसूले इस्लाम (स.) के बारहवें जानशीन 15 शाबान सन् 255 हिजरी क़मरी व सन् 868 ई. में जुमे के दिन सुबह के वक़्त इराक के शहर (सामर्रा) में पैदा हुए।
उन के पिता शियों के ग्यारहवें इमाम हज़रत हसन अस्करी (अ. स.) और उन की माता जनाबे नर्जिस ख़ातून थीं। उनकी माता की क़ौम के बारे में रिवायतों में मत भेद पाया जाता हैं। एक रिवायत के अनुसार जनाबे नर्जिस खातून, रोम के बादशाह यशूअ की बेटी थीं और उन की माँ, हज़रत ईसा (अ. स.) के वसी जनाबे शमऊन की नस्ल से थीं। एक
रिवायत के अनुसार जनाबे नर्जिस खातून एक ख्वाब के नतीजे में मुसलमान हुईं और इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की हिदायत (मार्गदर्शन) की वजह से मुसलमानों से जंग करने वाली रोम की फ़ौज के साथ रहीं और जब उस जंग में मुसलमानों को सफलता मिली तो वह भी अन्य बहुत से लोगों के साथ इस्लामी फ़ौज के द्वारा क़ैदी बना ली गईं। हज़रत इमाम अली नकी (अ. स.) ने एक इंसान को वहाँ भेजा ताकि वह उन्हें खरीद कर सामर्रा ले आये।[1]
इस बारे में अन्य रिवायतें भी मिलती हैं [2] लेकिन महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य बात यह है कि हज़रत नर्जिस खातून एक मुद्दत तक हक़ीमा खातून (इमाम अली नक़ी (अ. स.) की बहन) के घर में रहीं और उन्होंने ही जनाबे नर्जिस ख़ातून की तरबियत की, जिस की वजह से जनाबे हकीमा खातून उन का बहुत ज़्यादा एहतिराम किया करती थीं।
जनाबे नर्जिस खातून (अ. स.) वह बीबी हैं जिनकी पैग़म्बरे इस्लाम (स.)[3] हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ. स.)[4] और हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.)[5] ने बहुत ज़्यादा तारीफ़ की है और उन को क़नीज़ों में बेहतरीन क़नीज़ और क़नीज़ों की सरदार कहा है।
यह बात बताना भी ज़रूरी है कि हज़रत इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) की आदरनीय माता को दूसरे नामों से भी पुकारा जाता था, जैसे- सोसन, रिहाना, मलीका, और सैक़ल व सक़ील।
इमामे ज़माना(अ. स.) का नाम कुन्नियत और अलक़ाब
हज़रत इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) का नाम और क़ुन्नियत[6] पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का नाम और कुन्नियत है। कुछ रिवायतों में उनके ज़हूर तक उनका नाम लेने से मना किया गया है।
उन के मशहूर अल्काब इस तरह हैं, महदी, क़ाइम, मुन्तज़िर, बक़ीयतुल्लाह, हुज्जत, ख़लफे सालेह, मंसूर, साहिबुल अम्र, साहिबुज़्ज़मान, और वली अस्र, इन में महदी लक़ब सब से ज़्यादा मशहूर है।
इमाम (अ. स.) का हर लक़ब उनके बारे में एक मख़सूस पैग़ाम रखता है।
खूबियों के इमाम को (महदी) कहा गया है, क्यों कि वह ऐसे हिदायत याफ्ता हैं जो लोगों को हक़ की तरफ़ बुलायें गे और उन को क़ाइम इस लिए कहा गया है क्यों कि वह हक़ के लिए क़ियाम करेंगे और उन को मुन्तज़िर इस लिए कहा गया है क्यों कि सभी उन के आने का इन्तेज़ार कर रहे हैं। उन्हें ब़कीयतुल्लाह लक़ब इस वजह से दिया गया है क्यों कि वह ख़ुदा की हुज्जतों में से बाक़ी हुज्जत हैं और वही अल्लाह का आख़िरी ज़ख़ीर हैं।
(हुज्जत) का अर्थ मखलूक पर ख़ुदा के गवाह, और ख़लफ़े सालेह का अर्थ अल्लाह के नेक जानशीन है। उनको मंसूर इस वजह से कहा गया है कि ख़ुदा की तरफ़ से उनकी मदद होगी। वह साहबे अम्र इस वजह से कहलाये जाते हैं कि अदले इलाही की हुकूमत क़ायम करना उन्हीं की ज़िम्मेदारी है। साहिबुज़्ज़मान और वली अस्र भी इसी अर्थ में हैं कि वह अपने ज़माने के तन्हा हाकिम होंगे।
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[1] . कमालुद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 41, पेज न. 132,
[2] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 5, पेज न. 22, और हदीस 14, पेज न. 11,
[3] . बिहार उल अनवार, जिल्द न. 5 पेज न. 22, और हदीस 14, पेज न. 11.
[4] . ग़ैबते तूसी अलैहिर्रहमा, हदीस 478, पेज न. 470.
[5] . कमालूद्दीन, जिल्द न. 2, बाब 33, हदीस 31, पेज न. 21.
[6] . कुन्नियत ऐसे नाम को कहा जाता है जो (अब) या ( अम) से शुरु होते हैं जैसे अबू अब्दील्लाह और उम्मुल बनीन
जन्म की स्थिति
बहुत सी रिवायतों में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से नक्ल हुआ है कि मेरी नस्ल से महदी नाम का इंसान क़याम करेगा, जो ज़ुल्मो सितम की बुनियादों को खोखला कर देगा।
बनी अब्बास के ज़ालिम व सितमगर बादशाहों ने इन रिवायत को सुन कर यह तय कर लिया था कि इमाम महदी (अ. स.) को जन्म के समय ही क़त्ल कर दिया जाये। इसी वजह से इमाम मुहम्मद तक़ी (अ. स.) के ज़माने से ही अइम्मा ए मासूमीन (अ. स.) पर बहुत ज़्यादा सख्तियाँ की गईं और इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के ज़माने में यह सख्तियां अपनी आख़िरी हद तक पहुँच गईं। हालत यह थी कि अगर कोई हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के घर पर जाता था तो उसका आना जाना उस वक़्त की हुकूमत की नज़रों से छुपा नहीं था। ज़ाहिर है कि ऐसे माहौल में अल्लाह की आखरी हुज्जत का जन्म गोपनीय तरीके से होना चाहिए था। इसी दलील की वजह से इमाम के जन्म को इतना छुपा कर रखा गया कि हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के नज़दीकी साथी भी हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के जन्म से बे खबर थे। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के जन्म से कुछ घण्टे पहले तक भी उनकी माँ जनाबे नर्जिस खातून के जिस्म में किसी बच्चे को जन्म देने की निशानियाँ नही पाई जाती थीं।
जनाबे हकीमा खातून जो कि हज़रत इमाम मुहम्मद तकी (अ. स.) की बेटी हैं, हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के जन्म के बारे में इस तरह विवरण देती हैं।
हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने मुझे बुलाया और कहा : ऐ फुफी जान आज आप हमारे यहाँ इफ़्तार करना, क्यों कि आज पन्द्रहवीं शाबान की रात है और ख़ुदा वन्दे आलम इस रात में अपनी आख़री हुज्जत को ज़मीन पर ज़ाहिर करने वाला है। मैं ने सवाल किया उसकी माँ कौन है ? इमाम (अ. स.) ने जवाब दिया कि नर्जिस खातून। मैं ने कहा कि मैं आप पर कुर्बान, उन में तो हम्ल (गर्भ) की कोई भी निशानी नही दिखाई दे रही हैं। इमाम (अ. स.) ने फरमाया : बात वही है जो मैं ने कही है। इस के बाद मैं नर्जिस ख़ातून के पास गई और सलाम कर के उन के पास बैठ गई। वह मेरी जूतियाँ उतारने के लिए मेरे पास आईं और मुझ से कहा कि ऐ मेरी मलका, आपका क्या हाल है ? मैं ने कहा कि नहीं आप ही मेरी और मेरे खानदान की मलीका हैं। उन्हों ने मेरी बात को नही माना और कहा फुफी जान आप क्या फरमाती हैं ? मैं ने कहा, आज की रात ख़ुदा वन्दे आलम तुम को एक बेटा ऐसा बेटा देगा जो दुनिया और आखिरत का सरदार होगा। वह यह सुन कर शर्मा गईं।
हक़ीमा खातून कहती हैं कि मैं ने इशा की नमाज़ के बाद इफ़्तार किया और उस के बाद आराम के लिए अपने बिस्तर पर लेट गई। आधी रात बीतने के बाद मैं नमाज़े शब पढ़ने के लिए उठी और नमाज़ पढ़ कर नर्जिस की तरफ़ देखा तो वह उस वक़्त तक आराम से ऐसे सोई हुई थीं, जैसे उनके सामने कोई मुश्किल न हो। मैं नमाज़ की ताक़िबात (नमाज़ के बाद पढ़ी जाने वाली दुआओं को ताक़ीबात कहते हैं) के बाद फिर पलटी और नर्जिस खातून की तरफ़ देखा तो वह उसी तरह सोई हुई थीं। थोड़ी देर के बाद वह नींद से जागी और नमाज़े शब पढ़ कर दो बारा सो गईं।
हकीमा खातून का कहना है कि मैं सहन में आई ताकि देखूं कि सुब्हे सादिक (सुब्ह की नमाज़ के वक़्त को सुब्हे सादिक़ कहते हैं) हुई या नहीं, मैं ने देखा कि अभी सुब्हे काज़िब (रात का वह आख़िरी हिस्सा जिस में ऐसा लगता है कि सुब्ह हो गई है, लेकिन वास्तव में रात ही होती है उसे सुब्हे काज़िब कहते हैं) है। मैं जब यह देखने के बाद अन्दर आयी तो उस वक़्त तक भी नर्जिस खातून सोई हुई थीं। मुझे शक होने लगा ! अचानक हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने अपने बिस्तर से आवाज़ दी : ऐ फुफी जान जल्दी न करें बच्चे के जन्म का समय नज़दीक है। मैं ने सूरः ए सजदा और सूरः ए यासीन की तिलावत शुरु कर दी। तभी जनाबे नर्जिस परेशानी की हालत में नींद से जागीं, मैं जल्दी से उन के पास गई और कहा, ”اسم اللہ علیک“ (तुम से बला दूर हो) क्या तुम्हें किसी चीज़ का एहसास हो रहा है ? उन्होंने कहा कि हाँ फुफी जान, मैं ने कहा कि अपने ऊपर कन्ट्रोल रखो, और अपने दिल को मज़बूत कर लो, यह वही वक़्त है जिस के बारे में मैं आपको पहले बता चुकी हूँ। इस मौके पर मुझे और नर्जिस खातून को कमज़ोरी का एहसास हुआ। इस के बाद मेरे सैय्यद व सरदार बच्चे की आवाज़ सुनाई दी। मैं ने उनके ऊपर से चादर हटाई तो उन को सजदे की हालत में देखा, मैं आगे बढ़ी और बच्चे को गोद में ले लिया। मैंने देखा कि बच्चा पूरी तरह से पाक व पाक़ीज़ा है।
उस मौक़े पर हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) ने मुझ से फरमाया : ऐ फुफी जान मेरे बेटे को मेरे पास ले आइये। मैं उस को उनके पास ले गई, उन्होंने अपनी गोद में ले कर फरमायाः ऐ मेरे बेटे कुछ बोलो ! यह सुन कर वह बच्चा बोलने लगा और कहा कि اشھد ان لا الہ الا الله وحدہ لا شریک لہ و اشھد انّ محمداً رسول الله“, इस के बाद अमीरुल मोमिनीन और अन्य मासूम इमामों (अ. स.) पर दुरुद भेजा और अपने पिता का नाम लेने पर रुक गये। इमामे हसन अस्करी (अ. स.) ने फरमायाः फुफी जान! इस बच्चे को इस की माँ के पास ले जाओ, ताकि यह उन्हें सलाम करे।
हकीमा खातून कहती हैं, कि दूसरे दिन जब में इमाम हसन अस्करी (अ. स.) के यहाँ गई तो मैं ने इमाम (अ. स.) को सलाम किया, मैं ने अपने मौला व आक़ा (इमाम महदी) को देखने के लिए पर्दा उठाया, लेकिन वह दिखाई न दिये, अतः मैं ने उन के हज़रत इमाम हसन अस्करी से सवाल किया : मैं आप पर कुर्बान, क्या मेरे मौला व आक़ा के लिए कोई इत्तिफाक़ पेश आ गया है ? इमाम (अ. स.) ने फरमायाः ऐ फुफी जान मैं ने उस को उस ख़ुदा के सुपुर्द कर दिया है जिस को जनाबे मूसा की माँ ने जनाबे मूसा को सिपुर्द किया था।
हकीमा खातून कहती हैं, जब सातवां दिन आया मैं फिर इमाम (अ. स.) के यहाँ गई और सलाम करके बैठ गई। इमाम (अ. स.) ने फरमायाः मेरे बेटे को मेरे पास लाओ, मैं अपने मौला व आक़ा को उन के पास ले गई, इमाम (अ. स.) ने फरमाया : ऐ मेरे बेटे कुछ बात करो, बच्चे ने ज़बान खोली और ख़ुदा वन्दे आलम की वहदानियत (एकेश्वरवाद) की गवाही देने और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) व अपने बाप दादाओं पर दुरुद व सलाम भेजने के बाद इन आयतों की तिलावत फरमाई। بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰن الرَّحِیْمِ
(وَنُرِیدُ اٴَنْ نَمُنَّ عَلَی الَّذِینَ اسْتُضْعِفُوا فِی الْاٴَرْضِ وَنَجْعَلَہُمْ اٴَئِمَّةً وَ نَجْعَلَہُمُ الْوَارِثِینَ ۔ وَنُمَکِّنَ لَہُمْ فِی الْاٴَرْضِ وَنُرِی فِرْعَوْنَ وَہَامَانَ وَجُنُودَہُمَا مِنْہُمْ مَا کَانُوا یَحْذَرُونَ و [ (1) ]2]
शुरु करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा रहमान व रहीम है, और हम ये जानते हैं कि जिन लोगों को ज़मीन में कमज़ोर कर दिया गया है उन पर एहसान करें और उन्हें लोगों का इमाम और ज़मीन का वारीस बनायें और उन्हीं को ज़मीन पर हुकूमत दें और फिरौन व हामान और उनकी फ़ौजों को उन्हीँ कमज़ोरों के हाथों वह मंज़र दिखलायें जिस से ये डर रहे हैं।
हज़रते इमाम महदी (अ. स.) की विशेषताएं
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) और अहलेबैत (अ. स.) की रिवायतों में इमाम महदी (अ. स.) की शक्ल व सूरत और विशेषताओं का जो उल्लेख मिलता है, यहाँ पर उन में से कुछ की तरफ़ इशारा किया जा रहा है।
इमाम के चेहरे का रंग गेहूँआ, ऊँचा व चमकता हुआ माथ, भंवैं गोल और आँखें बड़ी बड़ी, नाक लम्बी और खूबसूरत, दाँत चौड़े और चमकदार, दाहिने गाल पर एक काले तिल का निशान, काँधे पर नबूवत जैसी एक निशानी, जिस्म मज़बूत और दिलरुबा है।
आपकी जो निशानियाँ व विशेषताएं मासूम इमामों (अ. स.) की हदीसों में बयान हुई हैं उन में से कुछ इस तरह हैं।
(हज़रत महदी अ. स.) बहुत इबादत करने वाले हैं और वह रात भर जाग कर इबादत करते हैं। वह ज़ाहिद और सादी ज़िन्दगी बसर करने वाले हैं। वह सब्र और बर्दाश्त करने वाले हैं। वह न्याय से काम करने वाले और नेक किरदार के मालिक हैं। वह इल्म के लिहाज़ से सब लोगों से उत्तम हैं और उनका मुबारक वजूद बरकत और पाकिज़गी का समुन्द्र है। वह जुल्म के ख़िलाफ़ उठ खड़े होंगे और जंग करेंगे। वह पूरी दुनिया के लोगों का नेतृत्व करेंगे और दुनिया में बहुत बड़ा इन्केलाब (परिवर्तन) लायेंगे। वह लोगों को निजात (मुक्ति) दिलाने वाले आख़िरी हादी होंगे और इंसानियत का सुधार करने वाले होंगे। वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की नस्ल से, हज़रत फ़ातिमा (स.अ.) की औलाद हैं और हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) के नवें बेटे हैं। वह अपने ज़हूर के वक़्त खान- ए- काबा की दीवार के सहारे खड़े होंगे और पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का परचम अपने हाथ में लिए होंगे। वह अपने क़ियाम से अल्लाह के दीन को ज़िन्दा करेंगे और अल्लाह के अहकाम (आदेशों) को पूरी दुनिया में लागू करेंगे। वह अपने ज़हूर के बाद दुनिया को अदल व इंसाफ (न्याय) और मुहब्बत से भर देंगे, जैसा कि वह उनके आने से पहले ज़ुल्म व अत्याचार से भरी होगी।[3]
इमाम महदी (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहु शरीफ़) की ज़िन्दगी तीन हिस्सों में बटी हुई है-
- मख़फ़ी ज़माना—जन्म के वक़्त से हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की शहादत तक आपकी ज़िन्दगी लोगों से मख़फ़ी (गुप्त) रही।
- ग़ैबत का ज़माना- हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ. स.) की शहादत के बाद से इमाम (अ. स.) की ग़ैबत का सिलसिला शुरु हुआ और जब तक ख़ुदा वन्दे आलम चाहेगा ये सिलसिला जारी रहेगा।
- ज़हूर का ज़माना- ग़ैबत का वक़्त पूरा होने के बाद इमामे ज़माना (अ. स.) अल्लाह के हुक्म से ज़हूर फरमायेंगे और दुनिया को अदल व इन्साफ़ और नेकियों से भर देंगे। उनके ज़हूर का वक़्त कोई भी नहीं जानता और इमामे ज़माना (अ. स.) से रिवायत है कि जो लोग हमारे ज़हूर के लिए कोई ख़ास वक़्त निश्चित करें वह झूठे हैं।[4]
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[1] सूरः ए क़िसस आयत न. 5 व 6۔
[2] कमालुद्दीन, जिल्द न.2, बाब न. 42, पेज न. 143
[3] मुन्तखिबुलअसर, फ़सले दोवम, पेज न. 239 ता 383.
[4] एतेजाज, जिल्द न. 2, नम्बर 344, पेज न. 542.
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का नाम हज़रत पैगम्बर(स.) के नाम पर है। तथा आपकी मुख्य़ उपाधियाँ महदी मऊद, इमामे अस्र, साहिबुज़्ज़मान, बक़ियातुल्लाह व क़ाइम हैं।
जन्म व जन्म स्थान
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 255हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15वी तिथि को सामर्रा नामक सथान पर हुआ था। यह शहर वर्तमान समय मे इराक़ देश की राजधानी बग़दाद के पास स्थित है।
माता पिता
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत नरजिस खातून हैं।
पालन पोषण
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का पालन पोषण 5वर्ष की आयु तक आपके पिता की देख रेख मे हुआ। तथा इस आयु सीमा तक आप को सब लोगों से छुपा कर रखा गया। केवल मुख्य विश्वसनीय मित्रों को ही आप से परिचित कराया गया था
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत का समय सन् 260 हिजरी क़मरी से आरम्भ होता है। और इस समय आपकी आयु केवल 5वर्ष थी। हज़रत इमाम अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपनी शहादत से कुछ दिन पहले एक सभा मे जिसमे आपके चालीस विश्वसनीय मित्र उपस्थित थे, कहा कि मेरी शहादत के बाद वह (हज़रत महदी) आपके खलीफ़ा हैं। वह क़ियाम करने वाले हैं तथा संसार उनका इनतेज़ार करेगा। जबकि पृथ्वी पर चारों ओर अत्याचार व्याप्त होगा वह उस समय कियाम करेंगें व समस्त संसार को न्याय व शांति प्रदान करेंगें।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत(परोक्ष हो जाना)
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत दो भागों मे विभाजित है।
(1) ग़ैबते सुग़रा
अर्थात कम समय की ग़ैबत यह ग़ैबत सन् 260 हिजरी क़मरी मे आरम्भ हुई और329 हिजरी मे समाप्त हुई। इस ग़ैबत की समय सीमा मे इमाम केवल मुख्य व्यक्तियों से भेंट करते थे।
(2) ग़ैबत कुबरा
अर्थात दीर्घ समय की ग़ैबत यह ग़ैबत सन् 329 हिजरी मे आरम्भ हुई व जब तक अल्लाह चाहेगा यह ग़ैबत चलती रहेगी। जब अल्लाह का आदेश होगा उस समय आप ज़ाहिर(प्रत्यक्ष) होंगे वह संसार मे न्याय व शांति स्थापित करेंगें।
नुव्वाबे अरबा
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने अपनी 69 वर्षीय ग़ैबते सुग़रा के समय मे आम जनता से सम्बन्ध स्थापित करने लिए बारी बारी चार व्यक्तियों को अपना प्रतिनिधि बनाया। यह प्रतिनिधि इमाम व जनता की मध्यस्था करते थे। यह प्रतिनिधि जनता के प्रश्नो को इमाम तक पहुँचाते व इमाम से उत्तर प्राप्त करके उनको जनता को वापस करते थे। इन चारों प्रतिनिधियो को इतिहास मे “नुव्वाबे अरबा” कहा जाता है। यह चारों क्रमशः इस प्रकार हैं।
(1) उस्मान पुत्र सईद ऊमरी यह पाँच वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे।
(2) मुहम्द पुत्र उस्मान ऊमरी यह चालीस वर्ष तक इमाम की सेवा मे रहे।
(3) हुसैन पुत्र रूह नो बखती यह इक्कीस वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे।
(4) अली पुत्र मुहम्मद समरी यह तीन वर्षों तक इमाम की सेवा मे रहे। इसके बाद से ग़ैबते सुग़रा समाप्त हो गई व इमाम ग़ैबते कुबरा मे चले गये।
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम सुन्नी विद्वानों की दृष्टि मे
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम मे केवल शिया सम्प्रदाय ही आस्था नही रखता है। अपितु सुन्नी सम्प्रदाय के विद्वान भी हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम को स्वीकार करते है। परन्तु हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के सम्बन्ध मे उनके विचारों मे विभिन्नता पाई जाती है। कुछ विद्वानो का विचार यह है कि हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम अभी पैदा नही हुए है व कुछ विद्वानो का विचार है कि वह पैदा हो चुके हैं और ग़ैबत मे(परोक्ष रूप से) जीवन यापन कर रहे हैं।
सुन्नी सम्प्रदाय के विभिन्न विद्वान अपने मतों को इस प्रकार प्रकट करते है।
(1) शबरावी शाफ़ाई---,, अपनी किताब अल इत्तेहाफ़ मे इस प्रकार लिखते हैं कि शिया महदी मऊद के बारे मे विश्वास रखते हैं वह (हज़रत इमाम) हसन अस्करी के पुत्र हैं और अन्तिम समय मे प्रकट होगे। उनके सम्बन्ध मे सही हादीसे मिलती है। परन्तु सही यह है कि वह अभी पैदा नही हुए हैं और भविषय मे पैदा होगें तथा वह अहलेबैत मे से होंगें।,,
(2) इब्ने अबिल हदीद मोताज़ली---,,शरहे नहजुल बलाग़ा मे इस प्रकार लिखते हैं कि अधिकतर मोहद्देसीन का विश्वास है कि महदी मऊद हज़रत फ़ातिमा के वंश से हैं।मोतेज़ला समप्रदाय के बुज़ुरगों ने उनको स्वीकार किया है तथा अपनी किताबों मे उनके नाम की व्याख्या की है। परन्तु हमारा विश्वास यह है कि वह अभी पैदा नही हुए हैं और बाद मे पैदा होंगें।,,
(3) इज़्ज़ुद्दीन पुत्र असीर -----,,260 हिजरी क़मरी की घटनाओ का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि अबु मुहम्मदअस्करी (इमामे अस्करी) 232 हिजरी क़मरी मे पैदा हुए और 260 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवासी हुए। वह मुहम्मद के पिता हैं जिनको शिया मुनतज़र कहते हैं।,,
(4) इमादुद्दीन अबुल फ़िदा इस्माईल पुत्र नूरूद्दीन शाफ़ई----,,. इमाम हादी का सन् 254 हिजरी क़मरी मे स्वर्गवास हुआ। वह इमाम हसन अस्करी के पिता थे। इमाम अस्करी बारह इमामों मे से ग्यारहवे इमाम हैं वह उन इमामे मुन्तज़र के पिता हैं जो 255 हिजरी क़मरी मे पैदा हुए।,,
(5) इब्ने हजरे हीतमी मक्की शाफ़ई------,, अपनी किताब अस्सवाइक़ुल मोहर्रेक़ाह मे लिखते हैं कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम सामर्रा मे स्वर्गवासी हुए उनकी आयु 28 वर्ष थी। कहा जाता है कि उनको विष दिया गया। उन्होने केवल एक पुत्र छोड़ा जिनको अबुलक़ासिम मुहम्मद व हुज्जत कहा जाता है। पिता के स्वर्ग वास के समय उनकी आयु पाँच वर्ष थी । लेकिन अल्लाह ने उनको इस अल्पायु मे ही इमामत प्रदान की वह क़ाइमे मुन्तज़र कहलाये जाते हैं।,,
(6) नूरूद्दीन अली पुत्र मुहम्मद पुत्र सब्बाग़ मालकी-----,, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ;की इमामत दो वर्ष दो वर्ष थी । उन्होने अपने बाद हुज्जत क़ाइम नामक एक बेटे को छोड़ा। जिनका सत्य पर आधारित शासन की स्थापना के लिए इंतिज़ार( प्रतीक्षा) किया जायेगा। उनके पिता ने लोगों से गुप्त रख कर उनका पालन पोषण किया। तथा ऐसा अब्बासी शासक के अत्याचार से बचने के लिए किया गया था।,,
(7) अबुल अब्बास अहम पुत्र यूसुफ़ दमिश्क़ी क़रमानी ----- ,,अपनी किताब अखबारूद्दुवल वा आसारूल उवल की ग्यारहवी फ़स्ल मे लिखते हैं कि खलफ़े सालेह इमाम अबुल क़ासिम मुहम्मद इमाम अस्करी के बेटे हैं। जिनकी आयु उनके पिता के स्वर्गवास के समय केवल पाँच वर्ष थी। परन्तु अल्लाह ने उनको हज़रत याहिय की तरह बचपन मे ही हिकमत प्रदान की। वह मध्य क़द सुन्दर बाल सुन्दर नाक व चोड़े माथे वाले हैं।,, इस से ज्ञात होता है कि इस सुन्नी विद्वान को हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के जन्म पर पूर्ण विश्वास था यहाँ तक कि उन्होने आपके शारीरिक विवरण का भी उल्लेख किया है। और खलफ़े सालेह की उपाधि के साथ उनका वर्णन किया है।
(8) हाफ़िज़ अबु अब्दुल्लाह मुहम्मद पुत्र य़ूसुफ़ कन्जी शाफ़ई---- ,,अपनी किताब किफ़ायातुत तालिब के अन्तिम भाग मे लिखते हैं कि इमाम अस्करी सन् 260 हिजरी मे रबी उल अव्वल मास की आठवी तिथि को स्वर्ग वासी हुए व उन्होने एक पुत्र छोड़ा जो इमामे मुन्तज़र हैं।,,
(9) ख़वाजा पारसा हनफ़ी---- अपनी किताब फ़ज़लुल ख़िताब मे इस प्रकार लिखते हैं कि “ अबु मुहम्द हसन अस्करी ने अबुल क़ासिम मुहम्मद मुँतज़र नामक केवल एक बेटे को अपने बाद इस संसार मे छोड़ा जो हुज्जत क़ाइम व साहिबुज़्ज़मान से प्रसिद्ध हैं। वह 255 हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15 वी तिथि को पैदा हुए व उनकी माता नरजिस थीं।,,
(10) इब्ने तलहा कमालुद्दीन शाफ़ई -----अपनी किताबमतालिबुस्सऊल फ़ी मनाक़िबिर रसूल मे लिखते हैं कि “अबु मुहम्मद अस्करी के मनाक़िब (स्तुति या प्रशंसा) के बारे इतना कहना ही अधिक है कि अल्लाह ने उनको महदी मऊद का पिता बनाकर सबसे बड़ी श्रेष्ठता प्रदान की हैं। वह आगे लिखते हैं कि महदी मऊद का नाम मुहम्मद व उनकी माता का नाम सैक़ल है। महदी मऊद की अन्य उपाधियाँ हुज्जत खलफ़े सालेह व मुँतज़र हैं।,,
(11) शम्सुद्दीन अबुल मुज़फ़्फ़र सिब्ते इब्ने जोज़ी -----अपनी प्रसिद्ध किताब तज़किरातुल ख़वास मे लिखते हैं “ कि मुहम्मद पुत्र हसन पुत्र अली पुत्र मुहम्मद पुत्र अली पुत्र मूसा पुत्र जाअफ़र पुत्र मुहम्मद पुत्र अली पुत्र हुसैन पुत्र अली इब्ने अबी तालिब की कुन्नियत अबुल क़ासिम व अबु अबदुल्लाह है। वह खलफ़े सालेह, हुज्जत, साहिबुज्जमान, क़ाइम, मुन्तज़र व अन्तिम इमाम हैं।अब्दुल अज़ीज़ पुत्र महमूद पुत्र बज़्ज़ाज़ ने हमको सूचना दी है कि इबने ऊमर ने कहा कि हज़रत पैगम्बर ने कहा कि अन्तिम समय मे मेरे वँश से एक पुरूष आयेगा जिसका नाम मेरे नाम के समान होगा व उसकी कुन्नियत मेरी कुन्नियत के समान होगी। वह संसार से अत्याचार समाप्त करके न्याय व शाँति की स्थापना करेगा। यही वह महदी हैं।,,
(12) अबदुल वहाब शेरानी शाफ़ई मिस्री---- अपनी प्रसिद्ध किताब अल यवाक़ीत वल जवाहिर मे हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलामके सम्बन्ध मे लिखते हैं कि “ वह इमाम हसन की संतान है उनका जन्म सन् 255 हिजरी क़मरी मे शाबान मास की 15वी तिथि को हुआ। वह ईसा पुत्र मरीयम से भेँट करेगें व जीवित रहेगें। हमारे समय (किताब लिखने का समय) मे कि अब 958 हिजरी क़मरी है उनकी आयु 706 वर्ष हो चुकी है।
।।अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिंव वा आले मुहम्मद व अज्जिल फ़राजहुम।।
ज़ुहूर का रास्ता हमवार होना और ज़हूर की निशानियां
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की कुछ निशानियाँ और शर्तें हैं, उन्हीं को ज़हूर का रास्ता हमवार होना व ज़हूर की निशानियों के शीर्षक से याद किया जाता है। इन दोनों में फ़र्क यह है कि रास्ते का हमवार होना ज़हूर में प्रभावित है, अर्थात अगर रास्ता हमवार हो गया तो इमाम (अ. स.) का ज़हूर हो जायेगा और अगर रास्ता हमवार न हुआ तो ज़हूर नहीं हो होगा। इसके विपरीत निशानियाँ ज़हूर में प्रभावी नहीं हैं बल्कि सिर्फ़ ज़हूर की निशानी हैं और उनके द्वारा सिर्फ़ ज़हूर के ज़माने या ज़हूर के ज़माने के क़रीब होने का पहचाना जा सकता है।
इस फ़र्क को मद्दे नज़र रखते हुए अच्छी तरह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ज़हूर की शर्तें और रास्ते का हमवार होना, ज़हूर की निशानियों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। अतः निशानियों को तलाश करने से पहले उन शर्तों पर ध्यान दें और अपनी ताक़त के अनुसार उन शर्तों को पैदा करने की कोशिश करें। इसी वजह से हम पहले ज़हूर के रास्तों के हमवार होने और ज़हूर की शर्तों की व्याख्या करते हैं और आख़िर में ज़हूर की निशानियों का संक्षेप में उल्लेख करेंगे।
ज़हूर की शर्तें और रास्ते का हमवार होना
संसार की हर चीज़ अपनी शर्तों के पूर्ण व रास्ते के हमवार होने से ही अस्तित्व व वजूद में आ जाती है। इन के बग़ैर कोई भी चीज़ वजूद में नहीं आती। हर ज़मीन दाने को उगाने व उसे परवान चढ़ाने की योग्यता नहीं रखती। प्रत्येक जल वायु हर फूल, फल के फलने व फूलने के लिए उचित नहीं होती है। एक किसान ज़मीन से अच्छी फसल काटने का उसी वक़्त उम्मीदवार हो सकता है जब उसने फसल काटने की ज़रूरी शर्तों को पूरा कर लिया हो।
इसी प्रकार कोई परिवर्तन और सामाजिक सुधार भी शर्तों के पूर्ण होने और रास्ते के हमवार होने पर ही आधारित होता है। जिस तरह ईरान का इस्लामी इन्केलाब शर्तों के पूरा होने और रास्तों के हमवार होने के बाद सफल हुआ है, इसी तरह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का विश्वव्यापी इन्क़ेलाब, जो कि दुनिया का सब से बड़ा इन्किलाब होगा, भी उसी क़ानून के अन्तर्गत आता है और जब तक उसका रास्ता हमवार न होगा और शर्तें पूरी न होंगी, उस वक़्त तक घटित नही हो सकता।
इस स्पष्टीकरण का उद्देश्य यह है कि हमारे दिमाग़ में यह ख़्याल न रहे कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के क़ियाम (आन्दोलन) व हुकूमत का मसला इस क़ानून से अलग है, और उनका यह समाज सुधार आन्दोलन किसी मोजज़े (चमत्कार) के आधार पर शर्तों व कारकों के बिना घटित हो जायेगा। बल्कि कुरआन व अहले बैत (अ. स.) की शिक्षाएं और अल्लाह की सुन्नत ये है कि संसार के तमाम काम साधारण रूप से और साधारण शर्तों व कारकों के आधार पर ही क्रियान्वित होते हैं।
हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने फरमाया :
ख़ुदा वन्दे आलम सब कामों को उनके कारकों के आधार पर ही पूरा करता है...
एक रिवायत में मिलता है कि किसी इंसान ने हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) से कहा कि मैंने सुना है कि जब हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का ज़हूर होगा तो सारे काम उनकी मर्ज़ी के अनुसार होंगे।
इमाम (अ. स.) ने फरमाया : हरग़िज़ ऐसा नहीं है, उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्जें में मेरी जान है, अगर यह तय होता कि हर किसी का काम ख़ुद बख़ुद हो जायेगा तो फिर ऐसा रसूले इस्लाम (स.) के लिए होता...।
अलबत्ता इस बात का यह अर्थ नहीं है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के वक़्त ग़ैबी और आसमानी मदद नहीं होगी, बल्कि मक़सद यह है कि उस सहायता के साथ साथ आम शर्तों और रास्तों का हमवार होना ज़रुरी है।
इस बात के सेपष्ट हो जाने के बाद हमें चाहिए कि पहले ज़हूर की शर्तों को पहचाने और फिर उनके लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करें।
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के आन्दोलन और विश्वव्यापी सुधार व परिवर्तन की शर्तों और भूमिकाओं में से निम्न लिखित चार चीज़ें महत्वपूर्ण हैं, हम इन के बारे में अलग अलग वार्तालाप व बहस करते हैं।
योजना व प्लान
यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि प्रत्येक सुधार आन्दोलन के लिए दो चीज़ों की ज़रूरत होती हैः
अ- समाज में मौजूद बुराईयों का मुक़ाबेला करने के लिए एक पूर्ण योजना।
आ- समाज की ज़रुरतों के अनुरूप ऐसे पूर्ण और उचित क़ानून जो हुकूमत की न्याय व्यवस्था में समस्त व्यक्तिगत व सामाजिक अधिकारों के रक्षक हो और जिनके आधार पर समाज तरक्की कर के अपने उद्देश्यों तक पहुँच सके।
सच्चा इस्लाम अर्थात कुरआने करीम की शिक्षाएं और मासूमों (अ. स.) की सुन्नत बेहतरीन कानून के रूप में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के पास होगी और वह अल्लाह के इसी अमर संविधान के आधार पर काम करेंगे...। कुरआन ऐसी किताब है जिसकी आयतों का ख़ज़ाना उस ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से नाज़िल हुआ जो इंसान के तमाम पहलुओं और उसकी समस्त भैतिक व आध्यात्मिक ज़रुरतों को जानता है। अतः इमामे ज़माना (अ. स.) का विश्वव्यापी आन्दोलन हुकूमत के क़ानून के लिहाज़ से बेमिसाल तथ्यों पर आधारित होगा और किसी भी दूसरे अन्दोलन से उसका मुक़ाबेला व उसकी तुलना करना संभव नही है। इस दावे की दलील यह है कि आज की दुनिया ने बहुत से तजर्बे करने के बाद इस बात को क़बूल किया है कि इंसानों द्वारा बनाये गये क़ानूनों में कमज़ोरियाँ पाई जाती हैं। इस लिए आज इंसान आहिस्ता आहिस्ता आसमानी क़ानूनों को क़बूल करने के लिए तैयार होता जा रहा है।
अमेरीकी का राजनीतिक सलाहकार आलवीन टाफलर, इंसानी समाज को गंभीर हालत से निकालने और इसमें सुधार लाने के लिए तीसरी लहर... ...का नज़रिया पेश करता है, लेकिन वह इस बारे में आश्चर्यजनक बातों का इकरार करता है।
हमारे पश्चिमी समाज में मुशकिलों और परेशानियों की लिस्ट इतनी लंबी है कि उसका कोई अन्त नहीं है। औद्योगिक अस्थिरता और अनियमित्ता के कारण अखलाक़ी व सदाचारिक बुराईयाँ इतनी बढ़ गई हैं कि उनकी दुर्गंध से परेशान हो कर इंसान अपने गुस्से को ज़ाहिर करने और समाज में परिवर्तन लाने की कोशिश में और उस पर इसके लिए हर वक़्त दबाव बढ़ रहा है। इस दबाव के जवाब में हज़ारों ऐसी योजनायें पेश की जा चुकी हैं, जिनके बारे में यह दावा किया जाता है कि यह आधारभूत व नई हैं, लेकिन बार बार देखने में आता है कि जो क़ानून और संविधान हमारी मुशकिलों के हल के लिए पेश किये जाते हैं वह हमारी परेशानियों को और ज़्यादा बढ़ा देते हैं। इस कारण इंसान में मायूसी और ना उम्मीदी का एहसास पैदा होता जा रहा है। इसी वजह से इंसान सोचता है कि इनका कोई फायेदा नहीं है किसी क़ानून का कोई असर नहीं होता है। चूँकि यह एहसास हर डिमोक्रेटिक निज़ाम व व्यवस्था के लिए खतरनाक है, इसी लिए मिसालों में बयान होने वाले सफेद घोड़े पर सवार मर्द, की ज़रुरत का बड़ी बेचैनी से इन्तेज़ार से किया जा रहा है...।
रहबरी व नेतृत्व
हर इंकेलाब व आन्दोलन में एक रहबर व नेतृत्व करने वाले की ज़रूरत आधारभूत ज़रूरतों में गिनी जाती है। इंन्केलाब का स्तर जितना अधिक व्यापक होगा और उसके उद्देश्य जितने अधिक उच्चय होंगे, उसी के अनुरूप उसके रहबर को भी ताक़तवर व उन उद्देश्यों को प्रप्त करने में समक्ष होना चाहिए।
विश्व स्तर पर ज़ुल्म व सितम से मुक़ाबेला करने वाला, न्याय व समानता पर आधारित विश्वव्यापी हुकूमत स्थापित करने वाला और पूरी ज़मीन पर समानता फैलाने की ताक़त रखने वाला, हर इल्म का जानने वाला और अपने दिल में इंसानियत का दर्द रखने वाला रहबर, उस इंकेलाब का असली स्तंभ है। ऐसा रहबर जो वास्तव में उस इंकेलाब का सही नेतृत्व कर सके। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) जो सब नबियों व वलियों (अ. स.) का सार हैं, वह उस महान रहबर के रूप में ज़िन्दा और हाज़िर हैं। सिर्फ वही एक ऐसे रहबर हैं जो आलमे ग़ैब (अल्लाह, फ़रिश्तें व ......) से संबंध के आधार पर संसार की हर चीज़ के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी रखते हैं और अपने ज़माने के सब से बड़े व महान आलिम व ज्ञानी हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
जान लो कि महदी (अ. स.) सारे इल्मों के वारिस होंगे, और सारे इल्मों पर उनका वर्चस्प होगा...।
वह ऐसे रहबर हैं जो हर तरह की पाबन्दियों से आज़ाद होंगे और सिर्फ़ उनका दिल अल्लाह की मर्ज़ी के तहत होगा।
अतः वह विश्वव्यापी इंकेलाब और हुकूमत के रहबर के लिहाज़ से भी बेहतरीन होंगे।
मददगार
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की ज़रुरी शर्तों मे से उन के अच्छे, उचित और ऐसे लायक मददगारों का वजूद भी है, जो इस इन्केलाब और हुकूमत के ओहदो पर रह कर इमाम (अ. स.) की मदद करें। ज़ाहिर सी बात है कि जब वह विश्वव्यापी इन्केलाब एक महान आसमानी रहबर के ज़रिये बर्पा होगा तो फिर उनके मददगार भी उसी स्तर के होंगे, ऐसा नहीं है कि जिस ने भी मदद करने का वादा कर लिया वही उन की मददगारों में शामिल हो जाये।
इस बारे में निम्न लिखित घटना पर ध्यान देने की ज़रूरत है :
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) का सुहैल पुत्र हसन खुरासानी नामक शिया इमाम (अ. स.) की खिदमत में अर्ज़ करता है :
आपके रास्ते में क्या चीज़ रुकावट है कि आप अपने हक़ (हुकूमत) के लिए क़ियाम (आन्दोलन) नहीं करते जबकि आपके एक लाख़ तलवार चलाने वाले घुड़सवार शिया मौजूद हैं ? इमाम (अ. स.) ने हुक्म दिया कि तन्दूर दहकाया जाये। इमाम के हुक्म से तन्दूर दहकाया गया और जब उसमें से आग के शोले बाहर निकलने लगे तो इमाम (अ.स.) ने सुहैल से फरमाया : ऐ खुरासानी ! उठो और इस तन्दूर में कूद जाओ। सुहैल समझे कि इमाम (अ. स.) उसकी बातों से नाराज़ हो गए हैं, अतः उन्हों ने इमाम से माफ़ी माँगते हुए कहा कि : मौला मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे आग में डाल कर सज़ा न दें। इमाम (अ. स.) ने फरमाया: मैं तुम्हें छोड़ता हूँ।
उसी वक़्त वहाँ पर इमाम (अ. स.) के एक सच्चे शिया हारुने मक्की आ गये, उन्होंने इमाम (अ. स.) को सलाम किया। इमाम ने सलाम का जवाब देने के बाद कुछ कहे सुने व बताये बग़ैर उन्हें हुक्म दिया कि इस तन्दूर में कूद जाओ।
हारुने मक्की यह सुनते ही फौरन उस तन्दूर में कूद गये और इमाम (अ. स.) उस खुरासानी से बात चीत करने में व्यस्त हो गये और उसे खुरासान की घटनाएं इस तरह सुनाने लगे जैसे इमाम (अ. स.) वहाँ ख़ुद मौजूद हों। कुछ देर के बाद इमाम (अ. स.) ने फरमाया : ऐ खुरासानी उठो और तन्दूर के अन्दर झाँक कर देखो ! जब सुहैल ने उठ कर तन्दूर के अन्दर झाँका तो देखा कि हारुने मक्की आग के शोलों के के बीच पलोथी मारे बैठे हुए हैं।
उस वक़्त इमाम (अ. स.) ने उस ख़ुरासानी से सवाल किया कि बताओ तुम खुरासान में हारुने मक्की जैसे कितने लोगों को पहचानते हो ? खुरासानी ने जवाब दिया : मैं तो ऐसे किसी इंसान को नहीं जानता !। इमाम (अ. स.) ने फरमाया : जान लो कि जब तक हमें पाँच मददगार नहीं मिलते, हम उस वक़्त तक क़ियाम (आन्दोलन) नहीं करते, हम बेहतर जानते हैं कि क़ियाम और इंकेलाब का कब वक़्त है...?
अतः उचित है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की सिफ़तों व विशेषताओं को रिवायतों के आधार पर पहचानें ताकि हम उनके अनुरूप ख़ुद को परखें और अपने अन्दर पाई जाने वाली कमियों को पूरा करने की कोशिश करें।
क- इमामत की शनाख़्त व आज्ञापालन
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों को ख़ुदा वन्दे आलम और इमाम की गहरी शनाख्त है और वह पूरी जानकारी के साथ हक़ के मैदान में हाज़िर होते हैं।
हज़रत अली (अ. स.) उनके बारे में फरमाते हैं कि
"वह ऐसे इंसान हैं जो ख़ुदा को इस तरह पहचानते हैं कि जो उसे पहचानने का हक़ है।
इमाम की शनाख्त और इमामत का अक़ीदा भी उनके दिल की गहराइयों में अपनी जड़ें मज़बूत कर चुका है और उनके पूरे वजूद पर अपना वर्चस्व जमाये हुए है। उनकी इमामत के प्रति यह शनाख्त, इमाम (अ. स.) का नाम व नस्ब जानने से उच्च है। इमामत की शनाख़्त की वास्तविक्ता यह है कि इंसान इमाम के विलायत के हक़ और संसार में उनके बुलन्द मर्तबे को पहचानें। यही वह शनाख़्त है जिससे उनके दिल मुहब्बत से भर जाते हैं, और फिर वह उनकी आज्ञा पालन के लिए हर वक़्त और हर तरह से तैयार रहते हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि इमाम (अ. स.) का हुक्म ख़ुदा का हुक्म है और उनकी इताअत (आज्ञा पालन) ख़ुदा की इताअत है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी तारीफ़ में फरमाया कि
वह लोग अपने इमाम की आज्ञा पालन की पूरी कोशिश करते हैं...।
ख- इबादत और दृढ़ता
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार इबादत में अपने इमाम को नमून ए अमल बनाते हैं और अपना हर दिन व हर रात अल्लाह के ज़िक्र में ग़ुज़ारते हैं।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने उन के बारे में फरमाया :
वह रात भर इबादत करते हैं, और दिन में रोज़ा रखते हैं...।
और एक दूसरी हदीस में फरमाते हैं कि
वह घोड़ों पर सवारी की हालत में भी अल्लाह की तस्बीह करते हैं...।
यही अल्लाह का ज़िक्र है जिस से वह फ़ौलादी मर्द बनते हैं, अतः उनकी दृढ़ता और मज़बूती को कोई भी चीज़ खत्म नहीं कर सकती।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) फरमाते हैं कि
वह ऐसे मर्द होंगे कि उनके दिल लोहे के टुक्ड़े जैसे होंगे...।
ग- शहादत की तमन्ना
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की मअरेफ़त उन के दिलों को अपने इमाम की मुहब्बत से भर देती है, अतः वह जंग के मैदान में इमाम को अपने बीच में लेकर कर अपनी जान को इमाम की ढाल बना देंगे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार जंग के मैदान में उनके चारों तरफ़ हल्का बनाए होंगें और अपनी जान को उनकी ढाल बना कर अपने इमाम की हिफ़ाज़त करेंगे...।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ही ने दूसरी जगह फरमाया :
वह अल्लाह की राह में शहादत पाने की तमन्ना करेंगे...।
घ- बहादुरी और दिलेरी
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार अपने मौला की तरह बहादुर और लोहपुरूष होंगे।
हज़रत अली (अ. स.) उनकी तारीफ़ में फरमाते हैं कि
"वह ऐसे शेर हैं जो अपने वन से बाहर निकल आये हैं और अगर चाहें तो पहाड़ों को भी हिला सकते हैं...।
ङ- सब्र और बुर्दबारी
स्पष्ट है कि विश्वव्यापी ज़ुल्म व सितम से मुक़ाबेला करने और विश्व स्तर पर न्याय व समानता पर आधारित हुकूमत की स्थापना करने में बहुत से मुशकिलों व परेशानियों का सामना होगा और इमाम (अ. स.) के मददगार अपने इमाम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मुशकिलों व परेशानियों को बर्दाश्त करेंगे, लेकिन इखलास व निस्वर्थता के आधार पर अपने काम को साधारण व बहुत छोटा मानेंगे।
हज़रत अली (अ. स.) ने फरमाया :
वह ऐसा गिरोह है जो अल्लाह की राह में काम करने पर अपनी बुर्दबारी और सब्र की वजह से अल्लाह पर एहसान नहीं जतायेंगे, और अपनी जान को हज़रते हक़ के सामने पेश करने पर अपने ऊपर गर्व नहीं करेंगे और उस चीज़ को महत्व नहीं देंगे...।
च- एकता
हज़रत अली (अ. स.) हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की एकता के बारे में फरमाते हैं कि
"वह लोग एक दिल और एक सूत्र में बंधे होंगे...।
उस एकता का कारण यह है कि उनके अन्दर स्वार्थता नहीं पाई जायेगी, वह सही अक़ीदे के साथ एक परचम के नीचे और एक मकसद को पाने के लिए क़ियाम (आन्दोलन) करेंगे, और यह दुशमन के मुक़ाबले में उनकी कामयाबी का एक राज़ है।
छ- ज़ोह्द व तक़वा
हज़रत अली (अ. स.) इमाम महदी (अ. स.) के यारो मददगारों के बारे में फरमाते हैं कि
वह अपने मददगारों से बैअत लेंगे कि सोना व चाँदी जमा न करें और गेहूँ व जौ का भण्डार इकठ्ठा न करें...
उनके उद्देश्य महान हैं और वह एक महान उद्देश्य के लिए ही क़ियाम (आन्दोलन) करेंगे। दुनिया का माल व धन उनको उस महान मक़सद से पीछे नहीं हटा सकता। अतः जिन लोगों की आँखें दुनिया की चमक दमक देख कर चौंधियां जाती हैं और जिनका दिल धन दौलत देख कर पानी पानी हो जाता है, उन लोगों को इमाम महदी (अ. स.) के ख़ास मददगारों में कोई जगह नहीं मिलेगी।
प्रियः पाठकों ! हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की जिन सिफ़तों व विशेषताओं का वर्णन हुआ है, इन्हीँ सिफ़तों व विशेषताओं की वजह से उन्हें रिवायतों में आदर व एहतेराम के साथ याद किया गया है और सभी मासूम इमामों (अ. स.) की ज़बानों पर उनकी तारीफ़ व प्रशंसा रही हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी तारीफ़ में फरमाया :
”اُوْلَئِکَ ہُمْ خِیَارُ الاٴمَّةِ“
अर्थात वह लोग मेरी उम्मत के सब से अच्छे इंसान हैं।
हज़रत अली (अ. स.) फरमाते हैं कि
فَبِاَبِی وَ اُمّی مِنْ عِدّةٍ قَلِیْلَةٍ اَسْمَائُہُمْ فِی الاٴرْضِ مَجْہُولَة“
मेरे माँ बाप उस छोटे से गिरोह पर कुर्बान जो ज़मीन पर गुमनाम हैं।
अलबत्ता हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार अपनी योग्यता व सलाहियत के आधार पर विभिन्न दर्जों व श्रेणियों में बटे होंगे। रिवायतों में उल्लेख हुआ है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के उन ख़ास 313 मददगारो (जिन के हाथों में क़ियाम का नक्शा होगा) के अलावा दस हज़ार लोगों की एक फ़ौज भी होगी और उनके अतिरिक्त इन्तेज़ार करने वाले मोमिनों की एक बहुत बड़ी संख्या उनकी मदद के लिए दौड़ पड़ेगी।
आम तैयारियाँ
मासूम इमामों (अ. स.) की ज़िन्दगी में विभिन्न अवसरों पर यह बात देखने में आई है कि लोग इमाम को मौजूद होने की सूरत में उनसे बेहतर फ़ायदा उठाने के लिए ज़रूरी तैयारी नहीं रखते थे। किसी भी ज़माने में मासूम इमाम (अ. स.) के मौजूद होने की क़दर नहीं की गई और उनकी हिदायत से उचित लाभ नहीं उठाया गया। अतः ख़ुदा वन्दे आलम ने अपनी आखरी हुज्जत को ग़ैबत में भेज दिया, ताकि जब सब लोग उनको क़बूल करने के लिए तैयार हो जायेंगे तो इमाम (अ. स.) को ज़ाहिर कर दिया जायेगा और तब सभी उनसे लाभान्वित होंगे।
इस आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के लिए तैयार रहना महत्वपूर्ण शर्तों में से एक है, क्योंकि इस तैयारी की वजह से इमाम (अ. स.) का समाज सुधार आन्दोलन अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है।
कुरआने क़रीम में बनी इस्राईल के एक गिरोह का वर्णन हुआ है, उस गिरोह के लोग अपने ज़माने के ज़ालिम व आत्याचारी शासक जालूत के ज़ुल्म व अत्याचारों से बहुत ज़्यादा परेशान हो चुके थे, उन्होंने अपने ज़माने के नबी से निवेदन किया कि आप हमारे लिए एक ताक़तवर सरदार निश्चित कर दीजिये ताकि हम उसके आधीन रह कर जालूत से जंग कर सकें।
इस घटना का वर्णन कुरआने मजीद में इस प्रकार हुआ है :
< اٴَلَمْ تَرَ إِلَی الْمَلَإِ مِنْ بَنِی إِسْرَائِیلَ مِنْ بَعْدِ مُوسَی إِذْ قَالُوا لِنَبِیٍّ لَہُمْ ابْعَثْ لَنَا مَلِکًا نُقَاتِلْ فِی سَبِیلِ اللهِ قَالَ ہَلْ عَسَیْتُمْ إِنْ کُتِبَ عَلَیْکُمْ الْقِتَالُ اٴَلاَّ تُقَاتِلُوا قَالُوا وَمَا لَنَا اٴَلاَّ نُقَاتِلَ فِی سَبِیلِ اللهِ وَقَدْ اٴُخْرِجْنَا مِنْ دِیَارِنَا وَاٴَبْنَائِنَا فَلَمَّا کُتِبَ عَلَیْہِمْ الْقِتَالُ تَوَلَّوْا إِلاَّ قَلِیلًا مِنْہُمْ وَاللهُ عَلِیمٌ بِالظَّالِمِینَ>
क्या तुम ने मूसा के बाद बनी इस्राईल के उस गिरोह को नहीं देखा जिस ने अपने नबी से कहा कि हमारे लिए एक बादशाह निश्चित कर दीजिये ताकि हम अल्लाह की राह में जिहाद करें, नबी ने फरमाया कि मुझे यह अंदेशा है कि तुम पर जिहाद वाजिब हो जायेगा और तुम जिहाद नहीं करोगे, उन लोगों ने कहा कि हम क्यों जिहाद नहीं करेंगे जबकि हमें हमारे घरों बाहर निकाल दिया गया है और बाल बच्चों से अलग कर दिया गया है, इसके बाद जब उन पर जिहाद वाजिब कर दिया गया तो थोड़े से लोगों के अलावा सब अपनी बात से फिर गये और अल्लाह ज़ालमीन को अच्छी तरह जानता है।
जंग के लिए सरदार निश्चित करने का आवेदन एक तरह से इस बात को स्पष्ट करता था कि वह जंग के लिए तैयार हैं, जबकि रास्ते में एक बहुत बड़ी संख्या में लोग सुस्त पड़ गये और बहुत कम लोग जंग मैदान में हाज़िर हुए।
अतः इमाम महदी (अ. स.) का ज़हूर भी उसी वक़्त होगा जब सभी लोगों में समाजिक न्याय, अखलाक़ी व सदाचारिक स्वच्छता और आत्मीय शाँति के प्रति जागरूकता पैदा हो जायेंगी। जब लोग अनयाय और क़बीला परस्ती से थक जायेंगे, जब कमज़ोर लोगों के अधिकार मालदारों व ताक़तवरों के पैरों तले कुचले जायेंगे, जब माल व दौलत सिर्फ़ कुछ ख़ास लोगों के क़ब्ज़े में होगी और कुछ लोगों के पास रात में खाने के लिए रोटी भी न होगी, एक गिरोह अपने लिए महल बनाता हुआ दिखाई देगा और अपने परोग्रामों में बहुत ज़्यादा खर्च करेगा और उनके लिए ऐसे ऐसे खाने व ऐशो आराम के ऐसे ऐसे सामान उपलब्ध होंगे कि उन्हें देख कर आँखें चका चौंध होंगी, तो ऐसे मौक़े पर न्याय व समानता की प्यास अपने चरम बिन्दु पर पहुँच जायेगी।
जब समाज में विभिन्न बुराईयाँ फैलती जा रही हों और लोग बुरे काम करने में एक दूसरे से आगे बढ़ रहे हों, बल्कि अपने बुरे कामों पर गर्व कर रहे हो, इंसानी और इलाही उसूल से दूर भागा जा रहा हो, पवित्रता व पाकीज़गी के विपरीत कामों को कानूनी शक्ल दी जा रही हो जिसके नतीजे में पारिवारिक व्यवस्था चर मरा रही हो, लावारिस बच्चों को समाज के हवाले किया जा रहा हो, तो इस अवसर पर ऐसे रहबर के ज़हूर की अभिलाषा बहुत ज़्यादा की जायेगी जिसकी हुकूमत अखलाकी व आत्मीय सुख व शाँति का पैगाम ले कर आये। जिस वक़्त इंसान के पास मोज मस्ती के समस्त भौतिक साधन मौजूद हों लेकिन वह अपनी ज़िन्दगी से खुश न हो और उसे किसी ऐसी दुनिया की तलाश हो जो आध्यात्म से भरी हो तो उस मौक़े पर इंसान को उस महान इमाम की ज़रूरत का एहसास होगा।
स्पष्ट है कि इमाम (अ. स.) के हाज़िर होने को समझने का शौक़ उस वक़्त अपनी चरम सीमा पर होगा जब आदमी अपने व्यक्तिगत तजर्बे से इंसानी बुद्धिमत्ता के विभिन्न कारनामों को देख कर यह समझ जायेगा कि दुनिया को ज़ुलम व सितम और बुराईयों से छुटकारा दिलाने वाला ज़मीन पर अल्लाह के खलीफ़ा हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ही हैं और इंसानों के लिए पाक व साफ और बेहतरीन ज़िन्दगी प्रदान करने वाला विधान सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह का क़ानून हैं। अतः उस मौक़े पर इंसान अपने पूरे वजूद से इमाम (अ. स.) की ज़रुरत का एहसास करेगा और इस एहसास की वजह से उनके ज़हूर के लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करते हुए उस राह में मौजूद रुकावटों को दूर करेगा। यह उसी वक़्त होगा जब फरज और ज़हूर का वक़्त पहुँच जायेगा।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) आख़िरी ज़माने अर्थात ज़हूर से पहले के ज़माने के बारे में फरमाते हैं कि
एक ज़माना ऐसा आयेगा जिसमें मोमिन को पनाह लेने की जगह नहीं मिलेगी ताकि ज़ुल्म व सितम और बर्बादी से छुटकारा मिल सके, अतः उस वक़्त ख़ुदा वन्दे आलम मेरी नस्ल से एक इंसान को भेजेगा...
ज़हूर की निशानियाँ
हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के विश्वव्यापी इंकेलाब और क़ियाम व आन्दोलन के लिए कुछ निशानियों का वर्णन हुआ हैं और उन निशानियों की पहचान बहुत से सकारात्मक प्रभाव रखती हैं। चूँकि यह महदी ए आले मुहम्मद स. के ज़हूर कि निशानियाँ है अतः इनमें से हर एक के प्रकट होने से इन्तेज़ार करने वालों के दिलों में उम्मीद की किरणों में वृद्धी होगी और दुश्मनों व भटके हुए लोगों के लिए ख़तरे की घन्टी बजेगी ताकि वह बुराईयों से दूर हो जायें। इसी तरह इन तरह निशानियों के ज़ाहिर होने से इन्तेज़ार करने वालों में अपने अन्दर इमाम (अ. स.) के साथ रहने और उनकी मदद करने की क्षमता प्राप्त करने का शौक पैदा होगा। इस के अलावा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का परिचय इंसान को भविष्य के लिए योजना बनाने में सहायक सिद्ध होगा और यह निशानियाँ महदवियत के सच्चे और झूटे दावेदारों को परखने की सबसे अच्छी कसौटी हैं। अतः अगर कोई महदवियत का दावा करे और उसके क़ियाम (आन्दोलन) में यह ख़ास निशानियाँ न पाई जाती हों तो उसके झूठे होने का आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
हमारे मासूम इमामों (अ. स.) की रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की बहुत सी निशानियों का वर्णन हुआ हैं. उनमें से कुछ साधारण व प्रकृतिक हैं और कुछ असाधारण व चमत्कारिक हैं।
हम इन निशानियों में से पहले उन स्पष्ट और उच्च निशानियों का उल्लेख करते हैं जिनका वर्णन विश्वसनीय किताबों और विश्वसनीय रिवायतों में हुआ हैं और आखिर में कुछ अन्य निशानियों का संक्षेप में वर्णन करेंगे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने एक रिवायत के अन्तर्गत फरमाया :
क़ाइम (अ. स.) के ज़हूर की पाँच निशानियां है, सुफ़यानी का ख़रुज, यमनी का क़ियाम, आसमानी आवाज़, नफ्से ज़किय्या का क़तल और खस्फे बैदा... ... ।
प्रयः पाठकों ! अब हम उपरोक्त वर्णित इन पाँचो निशानियों के बारे में व्याख्या करते हैं इनका वर्णन अन्य बहुत रिवायतों में भी हुआ हैं, लेकिन इन घटनाओं से संबंधित समस्त व्याख्या हमारे लिए यक़ीनी नहीं है।
सुफ़यानी का ख़रुज (आक्रमण)
सुफ़यानी का आक्रमण उन निशानियों में से एक है जिनका वर्णन अनेकों रिवायतों में हुआ है। सुफ़यानी अबू सुफ़यान की नस्ल से होगा और ज़हूर से कुछ समय पहले शाम नामक स्थान से आक्रमण करेगा। वह ज़ालिम व अत्याचारी होगा और क़त्ल व ग़ारत में किसी तरह की कोई पर्वा नहीं करेगा। वह अपने दुशमनों से बहुत ही बुरा व्यवहार करेगा।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) उसके बारे में फरमाते हैं कि
“अगर तुमने सुफ]यानी को देख लिया तो ऐसा है जैसे तुमने सब से नीच और बुरे इंसान को देख लिया हो...”
उसका आक्रमण रजब के महीने से शुरु होगा, वह शाम और उसके आस पास के इलाकों पर क़ब्ज़ा करने के बाद इराक़ पर हमला करेगा और वहाँ बड़े पैमाने पर कत्ल व ग़ारत करेगा।
कुछ रिवायतों में वर्णन मिलता है कि उसके आक्रमण और उसके क़त्ल होने तक की मुद्दत 15 महीने होगी...।
खस्फ़े बैदा
खस्फ़ का अर्थ फटना व गिरना हैं और बैदा मक्के व मदीने के बीच एक जगह का नाम है।
खस्फ़ बैदा से यह अभिप्रायः है कि सुफ़यानी इमाम महदी (अ. स.) से मुक़ाबले के लिए एक फ़ौज को मक्के की तरफ़ भेजेगा और जब उसकी यह फ़ौज बैदा नामक स्थान पर पहुँचेगी तो चमत्कारिक रूप से ज़मीन फट जायेगी और वह फ़ौज वहीँ ज़मीन में धँस जायेगी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने इस बारे में फरमाया कि
“सुफ़यानी की फ़ौज के सरदार को खबर मिलेगी कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) मक्के की तरफ़ रवाना हो चुके हैं अतः वह उनके पीछे एक फ़ौज रवाना करेगा, लेकिन वह फ़ौज उनको नहीं पा सकेगी और जब सुफ़यानी की फ़ौज बैदा नामक ज़मीन पर पहुंचेगी तो एक आसमानी आवाज़ आयेगी कि ऐ बैदा की ज़मीन इनको भस्म कर दे। यह सुनने के बाद वह ज़मीन सुफ़यानी की फौज को अपने अन्दर खींच लेगी...।
यमनी का क़ियाम (आन्दोलन)
यमन नामक जगह का एक सरदार का आन्दोलन इमाम (अ. स.) के ज़हूर की निशानी है। यह निशानी इमाम के ज़हूर से कुछ ही दिनों पहले ज़ाहिर होगी। वह एक ऐसा नेक और मोमिन इंसान होगा, जो बुराइयों के खिलाफ़ आन्दोलन चलायेगा और अपनी पूरी ताक़त से बुराइयों व अश्लीलता का मुक़ाबला करेगा, परन्तु उसके आन्दोलन का पूर्ण विवरण हमारे लिए स्पष्ट नहीं है।
इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) उस बारे में फरमाते हैं कि
“हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के क़ियाम से पहले बुलन्द होने वाले झंड़ो के बीच यमनी का झंडा हिदायत करने वालों में सब से बेहतर होगा, क्यों कि वह लोगों को तुम्हारे मौला हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की तरफ़ बुलायेगा...।”
आसमान से आवाज़ का आना
इमाम (अ. स.) के ज़हूर की निशानियों में से एक निशानी आसमान से चीख़ की आवाज़ आना है। कुछ रिवायत के आधार पर यह आसमानी आवाज़ जनाबे जिब्रइल की आवाज़ होगी, जो रमज़ान के महीने में सुनाई देगी...।
और चूँकि पूर्ण समाज सुधारक का इंकेलाब एक विश्वव्यापी इंकेलाब होगा और सभी को उसका इंतेज़ार होगा, अतः दुनिया भर के लोगों को उसी आसमानी आवाज़ के ज़रिये खबर दी जायेगी।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने फरमाया :
“क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) का ज़हूर उस वक़्त तक नहीं होगा जब तक आसमान से आवाज़ न दी जाये और उस आवाज़ को पूरब व पश्चिम के सभी निवासी सुनेंगे...।”
यह आवाज़ जिस तरह मोमिनों के लिए खुशी का पैग़ाम बनेगी उसी तरह बुरे लोगों के लिए ख़तरे की घन्टी होगी ताकि वह अपने बुरे कामों से दूर हो कर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों में शामिल हो जायें।
उस आवाज़ की व्याख्या का विभिन्न रिवायतों में वर्णन हुआ हैं, इसके बारे में हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने फरमाया :
आसमान से आवाज़ देने वाला हज़रत इमाम महदी (अ. स.) को उनके और उनके पिता के नाम के साथ पुकारेगा...।
नफ़्से ज़किया का क़त्ल
नफ्से ज़किया का अर्थ ऐसा इंसान हैं जो कमाल के बुलन्द दर्जे पर पहुँचा हुआ हो या ऐसा पाक, पाक़ीज़ा व बेगुनाह इंसान जिसने किसी को क़त्ल न किया हो। नफ्से ज़किय्या के क़त्ल से यह अभिप्रायः है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर से कुछ पहले एक उच्च और बेगुनाह इंसान को इमाम (अ. स.) के मुखालिफ़ो के द्वारा क़त्ल किया जायेगा।
कुछ रिवायतों के आधार पर यह घटना इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर से 15 दिन पहले घटित होगी।
इस बारे में हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :
क़ाइमे आले मुहम्मद (स.) के ज़हूर और नफ्से ज़किय्या के क़त्ल में सिर्फ़ 15 दिन का फ़ासला होगा...।
प्रियः पाठकों ! उपरोक्त वर्णित निशानियों के अलावा भी कुछ अन्य निशानियों का वर्णन हुआ हैं उनमें से कुछ ख़ास निशानियाँ निम्न लिखित है :
दज्जाल का ख़रुज, दज्जाल एक ऐसा धोकेबाज़ और मक्कार आदमी होगा जिसने बहुत से लोगों को गुमराह किया होगा, रमज़ान के मुबारक़ महीने में सूरज ग्रहण होना, चाँद ग्रहण होना, उपद्रवों का फैलना और खुरासानी का आन्दोलन।
उल्लेखनीय है कि इन निशानियों का सविस्तार वर्णन बड़ी किताबों में मौजूद हैं।
ज़हूर से पहले दुनिया की हालत
हम ने इमामे ज़माना (अज्जल अल्लाहु तआला फरजहू शरीफ़) की ग़ैबत और उसके कारणों का उल्लेख किया है। हम ने बताया कि अल्लाह की वह आख़िरी हुज्जत ग़ायब हो गये हैं और जब उनके ज़हूर का रास्ता हमवार हो जायेगा तो वह ज़ाहिर हो कर दुनिया को अपनी हिदायत व मार्गदर्शन से लाभान्वित करेंगे। ग़ैबत के ज़माने में लोग ऐसे काम कर सकते हैं जिनसे इमाम (अ. स.) के ज़हूर का रास्ता जल्दी से जल्दी हमवार हो जाये। लेकिन वह, शैतान, इच्छाओं के अनुसरण, कुरआन की सही तरबियत से दूरी और मासूम इमामों (अ. स.) की विलायत और इमामत को क़बूल न करने की वजह से ग़लत रास्ते पर चल पड़े है। आज इस दुनिया में हर दिन नये ज़ुल्म व अत्याचार की बुनियादें रखी जाती हैं। पूरी दुनिया में ज़ुल्म व सितम बढ़ता जा रहा है और इंसानियत इस रास्ते के चुनाव से एक बहुत भयंकर नतीजे की तरफ़ बढ़ रही है। आज दुनिया की हालत यह है कि चारों तरफ़ ज़ुल्म व अत्याचार फैला हुआ है, बुराईयों का बोल बाला है, अखलाक़ी व सदाचारिक मर्यादाओं का अंत हो चुका है, शाँति व सुरक्षा का दूर दूर तक भी कहीँ पता नहीं है, ज़िन्दगी आध्यात्म व पवित्रता से खाली है, समाज में मातहत लोगों के हक़ों को पैरों तले रौंदा जा रहा है, यह सब चीज़ें ग़ैबत के ज़माने में इंसान का नाम ए आमाल है। यह एक ऐसी हक़ीक़त है जिस के बारे में मासूमीन (अ. स.) ने शताब्दियों पहले भविषय वाणी कर के इसकी काली तस्वीर पेश कर दी थी।
इमाम सादिक (अ. स.) अपने एक सहाबी से फरमाते हैं कि
"जब तुम देखो कि ज़ुल्म व सितम आम हो रहा है, कुरआन को एक तरफ़ रख दिया गया है, हवा व हवस के आधार पर क़ुरआन की तफ्सीर की जा रही है, अहले बातिल (झूठे) हक़ परस्तों (सच्चों) से आगे बढ़ रहे हैं, ईमानदार लोग ख़ामोश बैठे हुए हैं, रिश्तेदारी के बंधन टूट रहे हैं, चापलूसी बढ़ रही है, नेकियों का रास्ता खाली हो रहा है और बुराइयों के रास्तों पर भीड़ दिखाई दे रही है, हलाल हराम हो रहा है और हराम हलाल शुमार किया जाने लगा है, माल व दौलत गुनाहों और बुराइयों में खर्च किया जा रहा है, हुकूमत के कर्मचारियों में रिशवत का बाज़ार गर्म है, बुरे खेल इतने अधिक चलने लगे कि कोई भी उनकी रोक थाम की हिम्मत नही करता है, लोग कुरआन की हक़ीक़तों को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन बातिल और फुज़ूल चीज़ें सुनना उनके लिए आसान है, अल्लाह के गर का हज दिखावे के लिए किया जा रहा है, लोग संग दिल होने लगें हैं, मोहब्बत का जनाज़ा निकल चुका है, अगर कोई अम्र बिल मअरुफ़ और नेही अनिल मुन्कर करे तो उस से कहा जाये कि यह तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं है, हर साल एक नई बुराई और नई बिदअत पैदा हो रही है, तो ख़ुद को सुरक्षित रखना और इस खतरनाक माहौल से बचने के लिए अल्लाह से पनाह माँगना और समझना कि अब ज़हूर का ज़माना नज़दीक है...।
लेकिन याद रहे कि ज़हूर से पहले की यह काली तस्वीर सब लोगों की नही होगी बल्कि अधिकाँश लोगों की होगी, क्योंकि उस ज़माने में भी कुछ मोमेमीन ऐसे होंगे जो अल्लाह से किये हुए अपने वादों पर बाक़ी रहेंगे और अपने दीन व अक़ीदों की हिफ़ाज़त करेंगे। वह ज़माने के रंग में नहीं रंगे जायेंगे और अपनी ज़िन्दगी का अंजाम बुरा नहीं करेंगे। यह लोग ख़ुदा वन्दे आलम के बेहतरीन बन्दे और मासूम इमामों (अ. स.) के सच्चे शिया होंगे। यही वह लोग होंगे जिनकी रिवायतों में तारीफ़ व प्रशंसा हुई है। यह लोग ख़ुद भी नेक होंगे और दूसरों को भी नेकी की तरफ़ बुलायेंगे, क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि नेकियों और अच्छाईयों को फैलाने और ईमान के इत्र से माहौल को सुगंधित करने से नेकियों के इमाम का ज़हूर जल्दी हो सकता है और उनके क़ियाम व हुकूमत का रास्ता हमवार किया जा सकता है। वह अच्छी तरह समझते हैं कि बुराईयों का मुक़ाबला उसी वक़्त किया जा सकता है जब उस महान सुधारक (इमाम) के मददगार मौजूद हों।
हमारा यह नज़रिया उस नज़रिये के बिल्कुल मुख़ालिफ़ है जिस में कहा गया है कि बुराईयों का फैलाना ज़हूर में जल्दी का सबब बनेगा। क्या यह बात स्वीकारीय है कि मोमेनीन बुराईयों के मुक़ाबले में खामोश बैठे रहें और समाज में बुराईयां फैलती रहें ताकि इस तरह इमाम (अ. स.) के ज़हूर का रास्ता हमवार हो जाये ?! क्या नेकियों और अच्छाईयों का विस्तार इमाम (अ. स.) के ज़हूर में जल्दी का कारण नहीं बन पायेगा।
अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर ऐसा फर्ज़ है जो हर मुसलमान पर वाजिब है और इसको किसी भी ज़माने में नज़र अन्दाज़ नहीं किया जा सकता है। अतः बुराईयों और ज़ुल्म व सितम का फैलाना इमाम ज़माना (अ. स.) के ज़हूर में जल्दी का कारण किस तरह बन सकता है ?
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :
उस उम्मत के आखिर में एक ऐसी क़ौम आयेगी जिसका सवाब व ईनाम इस्लाम के प्रथम चरण के मुसलमानों के बराबर होगा, वह लोग अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर करते हुए बुराईयों का मुक़ाबला करेंगे।
अनेकों रिवायतों में जो यह वर्णन हुआ है कि दुनिया ज़ुल्म व सितम से भर जायेगी, इसका मतलब यह नहीं है कि सभी इंसान ज़ालिम बन जायेंगे !। बल्कि अल्लाह के रास्ते पर चलने वाले कुछ लोग मौजूद होंगे और उस माहौल में भी अखलाक़ी व सदाचारिक मर्यादाओं की खुशबू दिलों को सुगंधित करती हुई नज़र आयेगी।
अतः ज़हूर से पहले का ज़माना वैसे तो बड़ी कड़वाहट ज़माना होगा लेकिन वह ज़हूर के मिठास पर खत्म होगा। वह ज़माना ज़ुल्म, अत्याचार और बुराईयों से तो भरा होगा, लेकिन उस ज़माने में ख़ुद पाक रहना और दूसरों को अच्छाईयों व नेकियों की तरफ़ बुलाना, इन्तेज़ार करने वालों की अत्यावश्यक ज़िम्मेदारी होगी और यह क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) के ज़हूर में प्रभावी होगी।
अब हम इस हिस्से को हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की इस निम्न लिखित हदीस पर खत्म करते हैं।
"हमें अपने शिओं से कोई चीज़ दूर नहीं करती, मगर हम तक पहुँचने वाले, उनके वह क्रिया कलाप जो हमें पसन्द नहीं हैं और न हम उनसे उनको करने की उम्मीद रखते हैं...
मस्जिदे मुकद्दसे जमकरान
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम
वह मक़ामात जो हजरत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की तवज्जोह का मरकज़ रहे हैं उनमें से एक मस्जिदे जमकरान भी है। यह मस्जिद चूँकि जमकरान नामक गाँव के पास वाक़े है, इस लिए इसको मस्जिदे जमकरान कहा जाता है और चूँकि यह मस्जिद हसन बिन मुसलः के ज़रिये बनी है, इस लिए इसको मस्जिदे हसन बिन मुसलः कहा जाता है, और चूँकि हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के हुक्म से बनी है, इस लिए इसको मस्जिदे इमामे ज़माना भी कहते है। यह मस्जिद हसन बिन मुसलः के ज़माने में बनी और जब से अब तक कई बार तामीर हो चुकी है। यह मस्जिद एक बार जनाब मरहूम सदूक़ के ज़माने में, फिर कई बार सफ़वी हुकूमत के ज़माने में, फिर होज़े इल्मिया क़ुम के बानी हज़रत अब्दुल करीम हायरी के ज़माने में, फिर हुज्जतुल इस्लाम मुहम्मद तक़ी बाफ़क़ी के ज़माने में, उनके बाद क़ुम के एक मशहूर ताजिर के ज़रिये तामीर हुई। इन्क़ेलाबे इस्लामी ईरान के बाद जब मोमेनीन की रफ़्तों आमद इस मस्जिद में बहुत ज़्यादा बढ़ गई तो इस मस्जिद की एक इन्तेज़ामिया कमैटी बनाई गी और उसकी देख रेख में इसके अन्दर बहुत से तामीरी काम हुए। अब इस मस्जिद में एक बहुत बड़ा प्रोग्राम हाल, किताब ख़ाना, किताबों के लिए नुमाईशगाह, अस्पताल, क्वाटर्स व......मौजूद है और मस्जिद की इमारत को बढ़ाने का काम चल रहा है। आज यह मस्जिद, मुहिब्बाने अहले बैत अलैहिमु अस्सलाम के जमा होने का एक बहुत बड़ा मरकज़ बन गई है। यहाँ पर हर हफ़्ते बुध और मंगल की दरमियानी रात में हज़ारों मोमेनीन ज़ियारत व इबादत के लिए हाज़िर होते हैं। हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की तारीख़े विलादत 15 शाबान, पर तो यहाँ पर 10, 15 लाख मोमेनीन जमा होते हैं और इबादत दुआ व मुनाजात के साथ साथ अल्लाह से हज़रत इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के ज़हूर की दुआएं करते हैं। मस्जिदे जमकरान के बनने का माजरा क़ुम के मशहूर आलिमे दीन, हसन बिन मुहम्मद बिन हसन अपनी किताब तारीख़े क़ुम में शेख़ सदूक़ अलैहिर्रहमा की किताब मुनिसुल हज़ीन फ़ी मारेफ़तिल हक़्क़े वल यक़ीन के हवाले से मस्जिदे मुकद्दसे जमकरान के बनने के माजरे को इस तरह लिखते हैं। शेख सालेह व अफ़ीफ़, हसन बिन मुसलः जमकरानी का बयान है कि सन् 393 हिजरी क़मरी में 17 रमज़ानुल मुबारक की रात थी मैं अपने घर में सो रहा था। आधी रात गुज़रने के बाद मेरे कानों में कुछ लोगों के बालने की ावाज़े आईं वह मेरे घर के पीछे की तरफ़ जमा थे और मुझे आवाज़ें दे रहे थे। जब मैं जाग गया तो उन्होंने मुझ से कहा कि शेख़ उठो तुम्हें इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम ने अपने पास बुलाया है। शेख़ हसन कहते हैं कि मैंने उनसे कहा कि मुझे इतनी मोहलत तो दो कि मैं लिबास पहन सकूँ, यह कहकर मैंने क़मीस उठाई तो दरवाज़े से आवाज़ आई, यह तुम्हारी नही है ! लिहाज़ा मैंने उसे पहनने का इरादा छोड़ दिया और पाजामा पहनने के लिए उठाया तो फिर दरवाज़े से वही आवाज़ आई कि यह तुम्हारा नही है, तुम अपना पाजामा उठाओ ! मैंने उसे ज़मीन पर फेंक दिया और एक दूसरा पाजामा उठा कर पहन लिया। उसके बाद मैं दरवाज़े का ताला खोलने के लिए चाबी तलाश करने लगा तो फिर दरवाज़े की तरफ़ मुझे वही आवाज़ सुनाई दी, दरवाज़ा खुला हुआ है तुम चले आओ ! जब मैं बाहर आया तो वहाँ पर बुज़ुर्गों की एक जमा्त को खड़ा पाया ! मैंने उन्हें सलाम किया तो सलाम का जवाब देने के बाद उन्होंने मुझे इस वाक़िये पर मुबारकबाद दी और मुझे इस जगह पर ले कर आये (जहाँ आज मस्जिदे जमकरान है।) मैंने वहाँ एक तख़्त देखा जिस पर बेहतरीन क़िस्म का कालीन बिछा था और एक तक़रीबन तीस साला जवान तकिये पर टेक लगाये उस पर बैठा था। एक बूढ़ा आदमी उन्हें एक किताब में से कुछ पढ़ कर सुना रहा था। तक़रीबन साठ आदमी जिनमें से कुछ सफ़ेद और कुछ सब्ज़ लिबास पहने थे, उस जगह के अतराफ़ में नमाज़ पढ़ रहे थे। उस बूढ़े इंसान ने मुझे अपनी बराबर में जगहा दी और उस नूरानी जवान ने मेरा हाल अहवाल पूछने के बाद मुझसे मेरा नाम लेकर कहा (बाद में मालूम हुआ कि वह बूढ़े आदमी हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम और वह जवान हज़रत इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम थे) कि तुम हसन बिन मुस्लिम के पास जाओ और उससे कहना कि तुम पाँच साल से इस ज़मीन को खेती के लिए तैयार करते हो और हम इसे ख़राब कर देते हैं। उससे कहना कि तुम्हारा इस साल भी इसमें खेती करने का इरादा है जबकि तुम्हें ऐसा करने का हक़ नही है। तुम की साल यहाँ खेती करने का फ़ायदा लौटा दो ताकि इस ज़मीन पर एक मस्जिद बन सके। इसके बाद फ़रमाया कि हसन बिन मुस्लिम से यह भी कहना कि यह वह मुक़द्दस ज़मीन है जिसे अल्लाह ने तमाम ज़मीनों में से चुना है और तूने इस ज़मीन को अपनी ज़मीनों में मिला लिया है। अल्लाह ने इस जुर्म की सज़ा ने तेरे दो बेटों को तुझसे छीन लिया, लेकिन तू इस पर भी चाकस नही हुआ। अगर तूने यह काम फिर किया तो अल्लाह की तरफ़ से ऐसी सज़ा मिलेगी जिसका तू तसव्वुर भी नही कर सकता। हसन बिन मुसलः कहते हैं कि मैंने अर्ज़ किया कि मौला मुझे कोई ऐसी निशानी दे दीजिये कि लोग मेरी बात पर यक़ीन कर सकें। हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि हम इस जगह पर ऐसी निशानी छोड़ें गे कि लोग तुम्हारी बात की तसदीक़ करेंगे। तुम से जो कहा गया है तुम उसको अंजाम दो। तुम सैयद अबुल हसन के पास जाओ और उनसे कहो कि वह हसन बिन मुस्लिम को हाज़िर करे और उससे उस फ़ायदे को ले जो उसने कई साल तक इस ज़मीन से कमाया है, और उस रक़म को लोगों में बाँट दो ताकि वह मस्जिद को बनाना शुरू करें। बाक़ी खर्च रहक़ नामी जगह की आमदनी से पूरे किये जायें जो कि इरदहाल के ज़रिये हमारी मिल्कियत है। हमने रहक़ की आधी आमदनी इस मस्जिद को बनाने के लिए वक़्फ़ कर दी है, ताकि हर साल उसकी पैदावार को इस मस्जिद की इमारत बनाने इसे आबाद करने और दूसरो कामों में ख़र्च किया जा सके। इसके बाद इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि कि लोगों से कहो कि वह, इस जगह को मोहतरम व मुक़द्दस माने और यहाँ आकर चार रकत नमाज़ पढ़ें। पहली दो रकअत नमाज़ ताहिय्यत की नियत से इस तरतीब से पढ़े कि हर रकअत में हम्द के बाद सात मर्तबा सूरः ए तौहीद पढ़ें व दोनों रकअतों में ज़िक्रे रुकूअ व ज़िक्रे सजदा सात सात बार पढ़ें। दूसरी दो रकअत नमाज़, नमाज़े इमामे ज़माना की नियत से इस तरतीब से पढ़ेकि हर रकअत में सूरः ए हम्द पढ़ते वक़्त जब ایاک نعبد و ایاک نستعین पर पहुंचे तो इस आयत को सौ बार पढ़े फिर बाक़ी हम्द पढ़ कर एक बार सूरः ए तौहीद पढ़ें और दोनों रकअत में ज़िक्रे रुकूअ व ज़िक्रे सजदा सात सात बार पढ़े । नमाज़ॉ तमाम करने के बाद एक बार لا اله الا الله कहे और हज़रत ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की तस्बीह, 34 बार الله اکبر , 33 बार الحمد لله और 33 बार سبحان الله पढ़ कर सजदा करे व सजदे में सौ बार सलवात पढ़े। इसके बाद हज़रत ने फ़रमाया कि इस नमाज़ का पढ़ना, काबे में नमाज़ पढ़ने की मानिन्द है। हसन बिन मुसलः का कहना है कि जब मैंने यह बात सुनी तो अपने आपसे कहा कि गोया यह जगह मोरिदे नज़र हज़रत है कि मस्जिदे पुर अज़मत इमामे ज़माना होगी। उसके बाद इमाम अलैहिस्स,लाम ने मुझे चले जाने का इशारा किया। मैं वहाँ से चलने लगा, अभी कुछ ही दूर गया था कि हज़रत ने मुझे दोबारा आवाज़ दी और फ़रमाया कि जाफ़र काशनी चौपान (भेड़ बकरियाँ पालने व चराने वाला) के रेवड़ में जा वहां एक बकरी है , अगर लोग उसके क़ीमत दें तो उनके पैसे से और अगर न दे तो अपने पैसे उसे ख़रीदना और बुध के दिन 18 रमज़ानुल मुबारक को उसे यहाँ लाकर ज़िबाह करना और रमज़ानुल मुबारक की उन्नीसवीं रात में उसका गोश्त बीमारों और मुसीबत ज़दो के दरमियान तक़सीम कर देना, अल्लाह उन सबको शिफ़ा अता करेगा। उस बकरी की निशानी यह है कि वह काली और सफ़ेद रंग की लम्बे बालों वीली है। उसके बदन पर सात काले व सफेद धब्बे हैं, जिनमें से तीन बदन एक तरफ़ व चार बदन के दूसरी तरफ़ हैं, और उनमें से हर एक धब्बा एक दिरहम के बराबर है। इसके बाद जब मैं हज़रत से रुखसत हो कर चला तो हज़रत ने मुझे फिर आवाज़ दी और फ़रमाया यहाँ पर सात या सत्तर दिन रहना अगर सात दिन रुके तो शबे क़द्र होगी यानी रमज़ानुल मुबारक की तेइसवीं शब और अगर सत्तर दिन रुके तो ज़ीक़ादा की पच्चीसवीं रात होगी यह दोनों ही रातें बहुत बा अज़मत हैं। हसन बिन मुसलः कहता है कि मैं घर वापस आया और बाक़ी रात इस माजरे के बारे में सोचता रहा जब सुबह हुई तो नमाज़ पढ़ने के बाद अली बिन मुनज़िर के पास गया और उससे पूरा माजरा बयान किया और उसके साथ उस जगह पर गया जहाँ रात में मुझे ले जाया गया था। हसन बिन मुसलः अपनी बात पूरी करते हुए कहता है कि अल्लाह की क़सम हमने देखा कि हज़रत ने जो निशानियाँ छोड़ी थी, उनमें कीलें और ज़ंजीरें थीं, जिससे मस्जिद की हुदूद को घेरा गया था। इसके बाद हम दोनों सैयद अबुल हसन रिज़ा शाह के घर की तरफ़ चल दिये । जब हम उसके दरवाज़े पर पहुंचे तो उसके नौकरों को खड़ा देखा , उन्होंने हमें देख कर कहा कि क्या तुम जमकरान के रहने वाले हो ? हमने जवाब दिया हाँ। उन्होंने कहा कि सैयद अबुल हसन सुबह से तुम्हारा इन्तेज़ार कर रहा है। इसके बाद हम घर में दाख़िल हुए सैयद को सलाम किया उन्होंने अदब व एहतेराम के साथ सलाम का जवाब दिया और मुझे अपनी बराबर में बैठाया। इससे पहले कि मैं कुछ कहता, उन्होंने मुझ से कहा ऐ ! हसन बिन मुसलः मैंने रात ख़वाब में देखा कि किसी ने मुझ से कहा कि सुबह को तुम्हारे पास जमकरान का रहने वाला हसन बिन मुसलः आयेगा। वह जो तुम से कहे उसकी बात की तस्दीक़ करना, क्योंकि उसकी बात हमारी बात है। उसकी बात को हरगिज़ रद्द न करना। यह देख कर मेरी आँख खुल गई और उस वक़्त से अब तक आप ही का इन्तेज़ार कर रहा था। इसके बाद हसन बिन मुसलः ने रात के पूरे वाक़िये को बयान किया। सैयद ने अपने नौकरों को घोड़े तैयार करने का हुक्म दिया और उन पर सवार हो कर उस जगह की तरफ़ चल पड़े। जमकरान के पास रास्ते में उन्हें जाफ़र चौपान का रेवड़ मिला, हसन बिन मुसलः उस रेवड़ में, उस चितली बकरी को ढूँढने लगा जिसके बारे में हज़रत ने फ़रमाया था। वह बकरी रेवड़ के पीछे थी जैसे ही उसकी निगाह हसन बिन मुसलः पर पड़ी वह तेज़ी से उसके पास आई, हसन उसे पकड़ कर जाफ़र के पास लाया और उससे उसे ख़रीदना चाहा। जाफ़र काशानी ने क़सम खाकर कहा कि मैंने आज से पहले इस बकरी को कभी अपने रेवड़ में नही देखा, आज जब मैंने इसे अपने रेवड़ के पीछे चलते देखा तो इसे पकड़ने की कोशिश की लेकिन नही पकड़ सका। मेरे लिए यह बात बहुत ताज्जुब की है कि तुम्हारे पास यह ख़ुद कैसे चली आई !? इसके बाद वह लुस बकरी को लेकर मस्जिद की जगह पर आये और उसको ज़िब्ह करके हज़रत के हुक्म के मुताबिक़ उसका गोश्त मरीज़ों में तक़सीम कर दिया। इसके बाद सैयद ने हसन बिन मुस्लिम को बुलाया और उससे उस ज़मीन की कई साल की आमदनी को वापस लिया और रहक़ नामी जगह की पैदावार की आमदनी में मिला कर उससे मस्जिदे जमकरान की तामीर कराई और उस पर लकड़ी की छत डाली। सैयद उन कीलों व ज़ंजीरों को अपने घर क़ुम ले गये, इस माजरे के बाद से जब कोई बीमार होता था तो अपने आपको उन ज़ंजीरों से मस करता था और अल्लाह उसे शिफ़ा दे दता था। अबुल हसन मुहम्मद बिन हैदर कहते हैं कि मैंने सुना है कि जब सैयद अबुल हसन का इन्तेक़ाल हुआ तो उन्हें मूसवियान नामी जगह पर दफ़्न किया गया। उनके मरने के बाद जब उनका एक बेटा बीमार हुआ तो वह उस सन्दूक़ के पास गया जिसमें वह कीले व ज़ंजीरे रखी हुई थीं। लेकिन जैसे ही उसने उस सन्दूक़ को खोला उससे कीले व ज़ंजीरे ला पता थीं।
इमामे ज़माना (अ) की ग़ैबत में हमारी जिम्मेदारियां।
ग़ैबते कुबरा के ज़माने में उम्मत का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की पहचान हासिल करना है और यह इतना महत्वपूर्ण है कि पैग़म्बर स. ने फ़रमायाः
من مات ولم یعرف امام زمانہ مات میتة جاہلیة
जो इंसान इस हालत में मरे कि उसे अपने ज़माने के इमाम की पहचान न हो वह जाहेलियत (कुफ़्र) की मौत मरता है।
असलिए उम्मत की ज़िम्मेदारी है कि इमाम अलैहिस्सलाम की सही पहचान के लिए संघर्ष करे ख़ास कर उन दुआओं को ज़्यादा पढ़ा जाए जो इस काम में मददगार साबित हों जैसा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रामाया है
اللھم عرفنی نفسک فانک ان لم تعرفنی نفسک لم اعرف نبیک اللھم عرفنی نبیک فانک ان لم تعرفنی نبیک لم اعرف حجتک اللھم عرفنی حجتک فانک ان لم تعرفنی حجتک ضللت عن دینی۔
हे मेरे अल्लाहः मुझे अपनी सही पहचान प्रदान कर क्योंकि अगर तू मुझे अपनी ही सही पहचान प्रदान न करे तो मैं तेरे नबी की पहचान हासिल नहीं कर सकता हूं। हे मेरे अल्लाह मुझे अपने नबी की पहचान प्रदान कर क्योंकि यदि तू मुझे अपने नबी की सही पहचान प्रदान न करे तो मैं तेरी हुज्जत (इमाम) को नहीं पहचान सकता। हे मेर अल्लाह मुझे अपनी हुज्जत की सही पहचान करा दे क्योंकि यदि मुझे अपनी हुज्जत की पहचान नहीं करे तो अपने दीन से भटक जाऊँगा।
عن الی عبداللہ علیہ السلام فی قول اللہ عزوجل من یوت الحکمہ فقد اوتی خیرا کثیرا فقال طاعة اللہ و معرفة الامام
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस आयत के संबंध में जिसको हिकमत दी गई उसे बहुत ज्यादा ख़ैर (नेकी) दिया गया इस हिकमत से मुराद अल्लाह की पैरवी और इमाम की सही पहचान है। (उसूले काफी)
इताअत और पैरवी
कुरान और हदीस के अनुसार इमाम अलैहिस्सलाम की इताअत को बिना किसी क़ैद व शर्त के वाजिब किया गया है लेकिन ग़ैबते कुबरा के जमाने में यह जिम्मेदारी और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
عن الی جعفر علیہ السلام فی قول اللہ عزوجل واٰتمنا ھم ملکا عظیما قال الطاعة المفروضة۔
इस आयत और हमने उनको मुल्के अजीम दिया के संबंध में इमाम मोहम्मद बाकर अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि इससे मुराद हमारी वह पैरवी है जो लोगों पर वाजिब की गई है।
ज़ुहूर की दुआ
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर में जल्दी की बहुत ज्यादा दुआएं मांगे क्योंकि खुद इमाम ज़माना ने फरमाया हैः
اکثر و الدعاءبتعجیل الفرج فان ذلک فرجکم
मेरे ज़ुहूर में जल्दी के लिए बहुत ज्यादा दुआ करो क्योंकि तुम्हारे मुश्किलों का हल इसी में है इसके अलावा दुआ ए फर्ज पढ़ने की भी बहुत ज़्यादै ताकीद की गई है जो अक्सर दुआओं की किताबों में दर्ज है।
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِیمِ
اِلهى عَظُمَ الْبَلاَّءُ وَبَرِحَ الْخَفاَّءُ وَانْكَشَفَ الْغِطاَّءُ وَانْقَطَعَ الرَّجاَّءُ
وَضاقَتِ الاْرْضُ وَمُنِعَتِ السَّماَّءُ واَنْتَ الْمُسْتَعانُ وَاِلَيْكَ
الْمُشْتَكى وَعَلَيْكَ الْمُعَوَّلُ فِى الشِّدَّةِ وَالرَّخاَّءِ اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى
مُحَمَّدٍ وَ الِ مُحَمَّدٍ اُولِى الاْمْرِ الَّذينَ فَرَضْتَ عَلَيْنا طاعَتَهُمْ
وَعَرَّفْتَنا بِذلِكَ مَنْزِلَتَهُمْ فَفَرِّجْ عَنا بِحَقِّهِمْ فَرَجاً عاجِلا قَريباً كَلَمْحِ
الْبَصَرِ اَوْ هُوَ اَقْرَبُ يا مُحَمَّدُ يا عَلِىُّ يا عَلِىُّ يا مُحَمَّدُ اِكْفِيانى
فَاِنَّكُما كافِيانِ وَانْصُرانى فَاِنَّكُما ناصِرانِ يا مَوْلانا يا صاحِبَ
الزَّمانِ الْغَوْثَ الْغَوْثَ الْغَوْثَ اَدْرِكْنى اَدْرِكْنى اَدْرِكْنى السّاعَةَ
السّاعَةَ السّاعَةَ الْعَجَلَ الْعَجَلَ الْعَجَلَ يا اَرْحَمَ الرّاحِمينَ بِحَقِّ
مُحَمَّدٍ وَآلِهِ الطّاهِرينَ
इंतेज़ार
इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़हूर का इंतजार सबसे अच्छी इबादत है इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि हमारा क़ाएम महदी है उनके गायब होने के दौरान उनका इंतजार करना वाजिब है और उसका सवाब इमाम ने यूं बयान किया है कि जो इंसान हमारे महदी का इंतेज़ार करेगा वह उस इंसान की तरह है जो अल्लाह की राह में अपने खून में लथपथ होता है बस यह इंतजार इस तरह होना चाहिए कि किसी भी पल लापरवाही ना हो इमाम सादिक़ अ.स फरमाते हैं
وانتظرو الفرج صباحاً و مساء
तुम लोग सुबह व शाम ज़हूर का इंतजार करो।
ज़ियारत की तमन्ना
अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के शियों की इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम की ग़ैबत में एक बड़ी जिम्मेदारी आप की जियारत की तमन्ना और उसके शौक का इज़हार करना भी है। हर वक्त दिल में उनके दीदार की तड़प रहनी चाहिए अपने आका से बात करने के लिए हर जुमे की सुबह दुआए नुदबा पढ़े जिस में बार-बार यह आया है कि हम तेरे बंदे तेरे उस बली की जियारत के मुश्ताक़ हैं कि जो तेरे व तेरे रसूल की याद ताजा करता है।
इमाम ज़माना की सलामती के लिए दुआ
एक सच्चे मोमिन और शिया की जिम्मेदारी यह है कि वह अपनी दुआओं में अपने मार्गदर्शक और आका की सलामती का इच्छुक रहे खास तौर से इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती के लिए बहुत ज्यादा दुआ मांगे। और लगातार यह दुआ पढ़े
اللھم کن لولیک الحجة ابن الحسن علیہ السلام صلواتک علیہ و علی آبائہ فی ھذة الساعة و فی کل ساعة ولیا و حافظا و قائدا و ناصرا و دلیلا و عینا حتی تسکنہ ارضک طوعا و تمتعہ فیھا طویلا۔
इमाम ज़माना की सलामती के लिए सदका देना
एक और पसंदीदा काम जिसकी हमारे इमामों ने बहुत ज्यादा ताकीद की है वह यह है कि इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती की नियत से सदक़ा दिया जाए सदक़ा अपने आप में एक पसंदीदा काम है और इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की सलामती के नियत से उसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अल्लाह के नजदीक इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के लिए माल खर्च करने से ज्यादा पसंदीदा कोई और काम नहीं है जो मोमिन अपने माल से एक दिरहम इमाम अलैहिसलाम के लिए खर्च करेगा अल्लाह ताला जन्नत में ओहद के पहाड़ के बराबर उसे उसका बदला देगा। (उसूले काफी)
इमाम अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारियों की पैरवी
ग़ैबत के जमाने में कोई इंसान इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का खास उत्तराधिकारी नहीं है बल्कि फ़ुक़हा ही हज़रत इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के आम प्रतिनिधि हैं इसलिए उनकी पैरवी वाजिब है जिसे फ़िक़्ह (धर्मशास्त्र) में तक़लीद कहा जाता है खुद इमामे ज़माना फरमाते हैं हमारी ग़ैबत में पेश आने वाले हालात और समस्याओं के सिलसिले में हमारी हदीसों को बयान करने वाले उलमा से संपर्क करो इसलिए कि वह हमारी तरफ से तुम पर हुज्जत हैं और हम अल्लाह की तरफ से उन पर हुज्जत हैं।
इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम लेने की मनाही
इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम हमारे आख़री नबी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम के नाम पर है लेकिन हदीसों में हज़रत का नाम पुकारने से मना किया गया है बल्कि आपकी जो उपाधियां हैं उनमें से किसी उपाधि द्वारा आपको पुकारे जैसे हुज्जत, महदी-ए-मुंतज़र आर इमाम ग़ाएब या कोई दूसरी उपाध्यि।
सम्मान में खड़े होना
जब इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम का नाम लिया जाए और आपको क़ाएम के उपाधि से पुकारा जाए तो सम्मान के लिए खड़े होना मासूम इमामों की सुन्नत है क्योंकि जब देबिल ख़ुज़ाई ने आठवें इमाम अलैहिस्सलाम की सेवा में अपना कसीदा पेश किया था तो जैसे ही आखरी इमाम अलैहिस्सलाम का नाम आया तो इमाम सम्मान में खड़े हो गए थे।