
رضوی
अशरा ए फ़ज्र: इस्लामी क्रांति और वैश्विक परिवर्तन
हज़रत इमाम ख़ुमैनी (र) ने उसी समय इन परिवर्तनों पर गहरी नज़र डाली और वे इस मामले में चिंतित थे कि कहीं ऐसा न हो कि पूर्वी ब्लॉक का पतन पश्चिमी ब्लॉक की सफलता साबित हो और पूर्वी ब्लॉक के देश भी पश्चिम और अमेरिका की गोदी में चले जाएं और पश्चिमी पूंजीवादी व्यवस्था को आदर्श के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित हो जाएं।
दो दशको के दौरान इस्लामी क्रांति के प्रभाव और प्रतिक्रिया केवल ईरान के भीतर, मध्य पूर्व या मुस्लिम जगत तक सीमित नहीं थे, बल्कि ऐसा लगता है कि इस क्रांति ने क्षेत्र से परे, विशेषकर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पर भी अपने प्रभाव डाले हैं।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि ईरान में इस्लामी क्रांति एक ऐसे समय में हुई, जब दुनिया पर द्विध्रुवीय व्यवस्था हावी थी और दुनिया दो ब्लॉकों, पूर्व और पश्चिम में विभाजित थी। दुनिया की दो बड़ी ताकतें, यानी अमेरिका और सोवियत संघ, इन दो ब्लॉकों की नेतृत्व कर रही थीं। हालांकि 1957 में 'तीसरी दुनिया' या 'गैर-संरेखित देशों' का एक गठबंधन अस्तित्व में आया था और धीरे-धीरे आकार ले रहा था, लेकिन यह गठबंधन द्विध्रुवीय व्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं डाल सका।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद द्विध्रुवीय व्यवस्था के अस्तित्व में आने के समय से यह सवाल उठता रहा था और व्यवहार में इसका परीक्षण किया जा रहा था कि दुनिया में होने वाली हर घटना या परिवर्तन या विभिन्न देशों के सिस्टम में होने वाली कोई भी बदलाव एक ब्लॉक की ताकत के संतुलन में लाभ या नुकसान के रूप में परिवर्तन ला सकती है। इसलिए इन दोनों बड़ी शक्तियों का मुकाबला इस घटना के अस्तित्व में आने और इसके कार्यप्रणाली के दायरे में महत्वपूर्ण था। द्विध्रुवीय व्यवस्था का चालीस साल का ऐतिहासिक अनुभव इस सिद्धांत का समर्थन करता है।
1949 में चीन की क्रांति की सफलता, 1952 में कोरिया युद्ध, मध्य पूर्व के अरब देशों में सैनिक विद्रोह, हंगरी संकट, बर्लिन दीवार, क्यूबा मिसाइल संकट और इसी तरह वियतनाम युद्ध कुछ ऐसे घटनाएँ थीं जो इन दो बड़ी शक्तियों में से एक की सहायता से घटीं और टकराव का कारण बनीं।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि ईरान में क्रांति से पहले होने वाली घटनाओं में भी इन दोनों बड़ी शक्तियों की प्रतिस्पर्धा स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। उदाहरण के लिए, इस संदर्भ में सोवियत सैनिकों के माध्यम से अजरबैजान पर कब्जा, तेल के राष्ट्रीयकरण की मुहिम 28 मर्दाद (19 अगस्त) की साजिश और 1950 के दशक की घटनाएँ उल्लेखनीय हैं। हालांकि 1953 में तख्तापलट की साजिश के बाद ईरान को पश्चिमी ब्लॉक के एक हिस्से के रूप में पहचाना गया था और पश्चिमी सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक समझौतों में सदस्यता प्राप्त करने के कारण यह उसका अभिन्न हिस्सा था, फिर भी ईरान की 2500 किलोमीटर लंबी सीमा पूर्वी शक्ति से साझा होने और असाधारण सैनिक परिस्थितियों के मद्देनजर सोवियत संघ की सरकार ईरान के मामलों के बारे में निश्चिंत नहीं रह सकती थी और सामान्यत: ईरान के बाहरी मामलों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करती थी।
इमाम खुमैनी (रह.) की नेतृत्व में इस्लामी आंदोलन की शुरुआत से 5 जून 1963 को इसके चरम तक पहुँचने के बावजूद इमाम (रह.) के हमलों का मुख्य निशाना अक्सर अमेरिका हुआ करता था, फिर भी यह तथ्य सोवियत संघ के लिए इस अमेरिका विरोधी आंदोलन के बारे में सकारात्मक रुख अपनाने का कारण नहीं बना। सोवियत संघ ने न केवल इस आंदोलन का समर्थन नहीं किया, बल्कि एक अजीब स्थिति में यह देखा गया कि इस जन क्रांति के खिलाफ अमेरिका के सहयोगी देशों की तरह उसने नकारात्मक रुख अपनाया। यह नीति दो कारणों से थी:
आंदोलन की धार्मिक और इस्लामी प्रकृति। पूर्व और पश्चिम की शक्तियों के बीच आपसी मतभेद होने के बावजूद, वे धार्मिक, विशेषकर इस्लामी आंदोलनों के खिलाफ समान रुख रखते थे।
इमाम खुमैनी (रह.) ने अपने आंदोलन की शुरुआत में ही इन दोनों बड़ी शक्तियों के बारे में अपनी स्थिति घोषित की थी और उनका प्रसिद्ध वाक्य था: "अमेरिका इंग्लैंड से बदतर है, इंग्लैंड अमेरिका से बदतर है और सोवियत संघ दोनों से बदतर है, ये सभी एक दूसरे से अधिक गंदे हैं, लेकिन आज हमारा काम इन दुष्टों से है, अमेरिका से है।" और या यह मतलब था कि "हम अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद से उतनी ही लड़ाई में हैं जितनी पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों से अमेरिका की नेतृत्व में हैं।"
इन वाक्यों में इन दोनों बड़ी शक्तियों के लिए यह संदेश था कि दोनों शक्तियाँ इस आंदोलन के बढ़ने और सफल होने से नुकसान उठा चुकी हैं और इस क्रांति ने वैश्विक व्यवस्था में उनकी श्रेष्ठता को चुनौती दी है।
1978 और 1979 में इस्लामी क्रांति के शिखर तक पहुँचने और "न पूर्व, न पश्चिम, इस्लामी लोकतंत्र" का नारा लगाने के बाद, दोनों बड़ी शक्तियों द्वारा शाह का समर्थन और इस्लामी क्रांति के शत्रुओं, विशेष रूप से इराकी सरकार द्वारा सामूहिक रूप से युद्ध में मदद करना यह साबित करता है कि इस्लामी क्रांति द्विध्रुवीय व्यवस्था के लिए अस्वीकार्य थी, बल्कि क्रांतिकारी मुस्लिमों द्वारा प्राप्त सफलता और जन सेना और स्वयंसेवकों की इराक-ईरान युद्ध के दौरान स्थिरता और दृढ़ता ने द्विध्रुवीय व्यवस्था की नींव की कमजोरी को साबित किया।
यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इस्लामी क्रांति की सफलता और इसकी दोनों बड़ी शक्तियों में से किसी एक पर निर्भर न होने की नीति द्विध्रुवीय व्यवस्था के पतन में प्रभावी थी।
मिखाइल गोर्बाचोव के कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सचिव और सोवियत संघ के राष्ट्रपति के रूप में सत्ता में आने और "पेरिस्ट्रोइका" और "ग्लासनोस्त" पर आधारित नीति पेश करने के परिणामस्वरूप, पूर्वी ब्लॉक और साथ ही द्विध्रुवीय व्यवस्था के पतन के संकेत दिखाई देने लगे।
इमाम खुमैनी (रह.) ने इसी समय में इन परिवर्तनों पर गहरी नजर डाली और वह इस बारे में चिंतित थे कि कहीं ऐसा न हो कि पूर्वी ब्लॉक का पतन पश्चिमी ब्लॉक की सफलता साबित हो और पूर्वी ब्लॉक के देश भी पश्चिम और अमेरिका की गोद में चले जाएं और पश्चिमी पूंजीवादी व्यवस्था को मॉडल के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए। उन्होंने गोर्बाचोव को भेजे गए अपने एक ऐतिहासिक पत्र में उसे इन खतरों से आगाह किया और पूर्वी ब्लॉक की असली समस्या, यानी भगवान से युद्ध, के बारे में उसे चेतावनी दी और पूरी ताकत से ऐलान किया कि इस्लाम का सबसे बड़ा और शक्तिशाली केंद्र, इस्लामी गणराज्य ईरान, सोवियत संघ के लोगों के धार्मिक शून्यता को भर सकता है।
अमरीका जैसी सरकार से वार्ता नहीं करनी चाहिए
सुप्रीम लीडर ने 8 फ़रवरी सन 1979 को एयरफ़ोर्स के विशेष दस्ते "हुमाफ़रान" की ओर से इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की ‘बैअत’ (आज्ञापालन का एलान) किए जाने की घटना की सालगिरह के मौक़े पर हर साल की तरह इस साल भी इस्लामी गणराज्य ईरान की एयरफ़ोर्स और एयर डिफ़ेंस विभाग के कमांडरों और जवानों से शुक्रवार 7 फ़रवरी 2025 को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की और इस ऐतिहासिक दिन को कामयाब आत्मनिर्भर और पहचान से समृद्ध सेना का जन्म दिवस कहा।
सुप्रीम लीडर ने 8 फ़रवरी सन 1979 को एयरफ़ोर्स के विशेष दस्ते "हुमाफ़रान" की ओर से इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की ‘बैअत’ (आज्ञापालन का एलान) किए जाने की घटना की सालगिरह के मौक़े पर हर साल की तरह इस साल भी इस्लामी गणराज्य ईरान की एयरफ़ोर्स और एयर डिफ़ेंस विभाग के कमांडरों और जवानों से शुक्रवार 7 फ़रवरी 2025 को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की और इस ऐतिहासिक दिन को कामयाब आत्मनिर्भर और पहचान से समृद्ध सेना का जन्म दिवस कहा।
हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने वार्ता के संबंध में अख़बारों और सोशल मीडिया पर होने वाली बहसों और बातों और इस संदर्भ में कुछ लोगों की बयानों की ओर इशारा किया और कहा कि इन बातों का मुख्य बिंदु अमरीका से वार्ता का विषय है और वार्ता को एक अच्छी चीज़ के तौर पर याद करते हैं मानो कोई वार्ता के अच्छा होने का विरोधी भी है।
उन्होंने देश के विदेश मंत्रालय की वार्ता के मैदान में व्यस्तता और दुनिया के सभी देशों में आवाजाही और उनके साथ समझौते करने का ज़िक्र किया और बल दिया कि इस संबंध में सिर्फ़ एक अपवाद मौजूद है और वह अमरीका है। अलबत्ता ज़ायोनी शासन का नाम अपवाद में इसलिए नहीं है क्योंकि यह शासन अस्ल में सरकार नहीं बल्कि एक अपराधी और एक सरज़मीन पर नाजायज़ क़ब्ज़ा करने वाला गैंग है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने वार्ता से अमरीका को अपवाद रखने की वजह को बयान करते हुए कहाः "कुछ लोग ऐसा ज़ाहिर करते हैं कि अगर वार्ता की मेज़ पर बैठेंगे तो मुल्क की फ़ुलां मुश्किल हल हो जाएगी लेकिन जिस हक़ीक़त को हमें सही तरह समझना चाहिए वह यह है कि अमरीका के साथ वार्ता मुल्क की मुश्किल को हल करने में कोई असर नहीं रखती।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने मौजूदा सदी के दूसरे दशक में अमरीका सहित कुछ दूसरे देशों से क़रीब दो साल वार्ता के नतीजे में होने वाले समझौते और इस समझौते के कड़वे अनुभव को, अमरीका के साथ वार्ता के बेफ़ायदा होने की दलील बताया और कहा कि हमारी तत्कालीन सरकार ने उनके साथ बैठक की, अधिकारी आए-गए, वार्ता की, हंसे, हाथ मिलाया, दोस्ती की, सभी काम किए और एक समझौता हुआ कि जिसमें ईरानी पक्ष ने सामने वाले पक्ष के साथ बहुत ज़्यादा उदारता दिखाई और उसे ज़्यादा कंसेशन दिए लेकिन अमरीकियों ने उस पर अमल नहीं किया।
उन्होंने अमरीका के मौजूदा राष्ट्रपति के, उनके इससे पहले वाले दौर में परमाणु समझौते जेसीपीओए को फाड़ने और उस पर अमल न करने से संबंधित बयान की ओर इशारा करते हुए कहा कि उनसे पहले वाली सरकार ने भी जिसने समझौते को क़ुबूल किया था, उस पर अमल नहीं किया, तय यह हुआ था कि पाबंदियां हटा ली जाएंगी, लेकिन नहीं हटायी गयीं और संयुक्त राष्ट्र संघ के संबंध में भी मुश्किल हल नहीं हुयी ताकि वह ईरान के सर पर ख़तरे के तौर पर हमेशा मौजूद रहे।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने 2 साल की वार्ता, उसमें कंसेशन देने और पीछे हटने के बावजूद उसका नतीजा न मिलने के अनुभव से फ़ायदा उठाने पर बल दिया और कहा कि अमरीका ने उस समझौते का कि जिसमें कमियां थीं, उल्लंघन किया और उससे निकल गया, इसलिए ऐसी सरकार से वार्ता अक़्लमंदी नहीं है,
समझदारी नहीं है, शराफ़तमंदाना नहीं है, उससे वार्ता नहीं करनी चाहिए। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने मुल्क की भीतरी और अवाम के बड़े भाग की आर्थिक मुश्किलों की ओर इशारा करते हुए कहा कि जो चीज़ मुश्किल को हल करती है वह आंतरिक तत्व यानी प्रतिबद्ध अधिकारियों की हिम्मत और एकजुट राष्ट्र का सहयोग है कि जिसका प्रतीक 11 फ़रवरी की रैली है और इसमें इंशाअल्लाह इस साल भी हम इस एकता को देखेंगे।
उन्होंने अमरीकियों की दुनिया के नक़्शे को बदलने की कोशिश की ओर इशारा किया और कहा कि इस काम की कोई हक़ीक़त नहीं है बल्कि यह सिर्फ़ काग़ज़ पर है, अलबत्ता वे हमारे बारे में भी विचार व्यक्त करते हैं, बात करते हैं और धमकी देते हैं।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल देकर कहा कि अगर उन्होंने हमको धमकी दी तो हम भी उन्हें धमकी देंगे, अगर उन्होंने अपनी धमकी पर अमल किया तो हम भी अपनी धमकी पर अमल करेंगे और अगर हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर हमला हुआ तो निश्चित तौर पर हम भी उन पर हमला करेंगे।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच के दूसरे भाग में 8 फ़रवरी सन 1979 को एक यादगार व शानदार दिन बताया और कहा कि उन जवानों के शौर्य से भरे क़दम ने, नई सेना के लिए मार्ग निर्धारित कर दिया जो इस बात का सबब बना कि सेना के मुख़्तलिफ़ तत्व और कैडर, उस आज्ञापलन से प्रेरित होकर राष्ट्र से मिल जाएं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अमरीका के सैन्य तंत्र के अधीन काम करने वाली देश की सेना की स्थिति के संबंध में पहलवी शासन की ओर से उठाए गए क़दम की ओर इशारा करते हुए कहा कि सैन्य संगठन, उसके हथियार और सैनिकों की ट्रेनिंग अमरीकियों के हाथ में थी।
अहम उपकरणों स्थापित करने और हथियारों को किस तरह इस्तेमाल करना है, इस संबंध में भी अमरीकियों की इजाज़त लेनी पड़ती थी और निर्भरता इस हद तक थी कि ईरानियों को कलपुर्ज़े खोलने और उसकी मरम्मत करने की भी इजाज़त नहीं थी।
उन्होंने अक्तूबर सन 1964 में कैप्चुलेशन क़ानून के विरोध में इमाम ख़ुमैनी के भाषण को, सेना और मुल्क पर अमरीका के अपमानजनक वर्चस्व पर किया गया एतेराज़ बताया और कहा कि कैप्चुलेशन क़ानून की बुनियाद पर कि जिसे राष्ट्रपति से लेकर पहलवी शासन के निचले अधिकारियों तक सबने क़ुबूल किया था, कोई भी अमरीकी जो भी जुर्म करता उसके ख़िलाफ़ ईरान में कोई भी न्यायिक कार्यवाही नहीं हो सकती थी।
ऑस्ट्रेलिया: नफरत आधारित अपराधों के ख़िलाफ़ सबसे कड़ा क़ानून पारित
आंतरिक मंत्री टोनी बर्क ने इन कानूनों को "ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में नफरत आधारित अपराधों के खिलाफ नाजी सलामी पर अनिवार्य जेल सजा के कानून को अब तक का सबसे कड़ा कानून" बताया।
यहूदियों के खिलाफ हाल की बढ़ती नफरत को रोकने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने नफरत आधारित अपराधों के खिलाफ सख्त कानून पेश किए हैं, जिनमें सार्वजनिक रूप से नाजी सलामी देने पर अनिवार्य जेल सजा का प्रावधान है। नए कानूनों के तहत नफरत आधारित अपराधों और नफरत प्रतीकों की प्रदर्शनी पर कम से कम 12 महीने की सजा और आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए कम से कम 6 साल की सजा का प्रावधान है। आंतरिक मंत्री टोनी बर्क ने कहा कि ये बदलाव "ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में नफरत आधारित अपराधों के खिलाफ अब तक के सबसे कड़े कानून हैं"।
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बेनीज़ ने स्काई न्यूज से कहा, "मैं चाहता हूं कि जो लोग यहूदी विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं, उनका हिसाब लिया जाए, उन पर आरोप लगाया जाए और उन्हें जेल में डाला जाए।" यह ध्यान देने योग्य है कि अल्बेनीज़ ने पहले नफरत आधारित अपराधों के लिए अनिवार्य कम से कम सजा के खिलाफ आपत्ति जताई थी। अल्बेनीज़ को दाएंपंथी विपक्षी दलों ने यहूदियों के खिलाफ बढ़ते अपराधों से निपटने में असफल रहने पर आलोचना का शिकार किया है। लिबरल-नेशनल गठबंधन ने पिछले महीने नफरत से जुड़े अपराधों के बिल में अनिवार्य न्यूनतम सजा को शामिल करने की मांग की थी।
सरकार ने पहली बार नफरत आधारित अपराधों के कानून को पिछले साल संसद में पेश किया था, जिसमें नस्ल, धर्म, जातीयता, राष्ट्रीय या नस्ली मूल, राजनीतिक विचार, लिंग, यौन अभिविन्यास, लिंग पहचान और अंतर लिंग स्थिति जैसे आधारों पर शक्ति या हिंसा की धमकियां देने जैसे अपराधों को शामिल किया गया था।
ऑस्ट्रेलिया में अधिकतर यहूदी विरोधी हमले न्यू साउथ वेल्स राज्य में हुए हैं। बुधवार को राज्य ने घोषणा की कि पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और विक्टोरिया में पहले से मौजूद कानूनों को नफरत आधारित भाषण के खिलाफ और अधिक सख्त किया जाएगा। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पिछले कुछ महीनों में ऑस्ट्रेलिया भर में यहूदी पूजा स्थलों, इमारतों और कारों पर हमलों में वृद्धि हुई है। हाल ही में सिडनी में एक कारवां में विस्फोटक सामग्री बरामद हुई थी, जिसके साथ यहूदी लक्ष्यों की सूची भी मिली थी।
ग़ज़्ज़ा के लोगो की जीत, अमरीका पर जीत
हमास की नेतृत्व परिषद के प्रमुख और सदस्यों ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से शनिवार 8 फ़रवरी 2025 को सुबह तेहरान में मुलाक़ात की।
हमास की नेतृत्व परिषद के प्रमुख और सदस्यों ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से शनिवार 8 फ़रवरी 2025 को सुबह तेहरान में मुलाक़ात की।
इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में हमास की नेतृत्व परिषद के प्रमुख मोहम्मद इस्माईल दरवीश ने ग़ज़ा में रेज़िस्टेंस की बड़ी जीत की बधाई देते हुए इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से कहा, "हम इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के दिनों में ग़ाज़ा में रेज़िस्टेंस को मिलने वाली कामयाबी को अच्छे शगून के तौर पर देखते हैं और हमें उम्मीद है कि यह घटना क़ुद्स और मस्जिदुल अक़्सा की आज़ादी की भूमिका बनेगी।
हमास के पोलित ब्यूरो के उपप्रमुख ख़लील अलहय्या ने भी इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में ग़ज़ा में रेज़िस्टेंस की कामयाबी की बधाई देते हुए इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से कहा, "आज हम ऐसी हालत में आप से मुलाक़ात के लिए आए हैं कि हम सब कामयाब हुए हैं और यह बड़ी कामयाबी हमारी और इस्लामी गणराज्य की संयुक्त कामयाबी है।"
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने भी इस मुलाक़ात में ग़ज़ा के शहीदों, शहीद कमांडरों और ख़ास तौर पर शहीद इस्माईल हनीया के प्रति आदरभाव प्रकट करते हुए हमास के नेताओं से कहा, "अल्लाह ने आपको और ग़ज़ा के अवाम को इज़्ज़त और कामयाबी दी और ग़ज़ा इस आयत की मिसाल क़रार पाया जिसमें वह कहता, "ख़ुदा के हुक्म से कई छोटी जमाअतें बड़ी जमाअतों पर ग़ालिब आ जाती हैं..." इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल दिया कि आप ज़ायोनी शासन पर हावी हो गए बल्कि हक़ीक़त में आप अमरीका पर हावी हो गए और अल्लाह की कृपा से वे अपने किसी भी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाए।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने पिछले डेढ़ साल से ग़ज़ा के अवाम की मुसीबतों की ओर इशारा करते हुए, कहा कि इन सभी तकलीफ़ों और मुसीबतों का नतीजा अंत में बातिल पर हक़ की जीत थी और ग़ज़ा के अवाम उन सभी लोगों के लिए जो दिल से रेज़िस्टेंस के साथ हैं, आदर्श हो गए।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने हमास के वार्ताकारों की सराहना करते हुए, समझौते से हासिल हुयी उपलब्धि को बहुत अहम बताया और कहा कि आज पूरे इस्लामी जगत और रेज़िस्टेंस का सपोर्ट करने वाले सभी लोगों का यह फ़रीज़ा है कि ग़ज़ा के अवाम की उनकी तकलीफ़ों और दुखों को कम करने के लिए मदद करें।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने सांस्कृतिक कामों और मौजूदा मार्ग को जारी रखने के लिए सैन्य मामलों के साथ साथ प्रचारिक कामों को जारी रखने और ग़ज़ा के पुनर्निर्माण पर ज़ोर दिया और कहा, "रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ और हमास ने प्रचारिक और मीडिया के क्षेत्र में अच्छा काम किया और इसी स्ट्रैटेजी को जारी रखना चाहिए।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ईमान को दुश्मन के मुक़ाबले में रेज़िस्टेंस मोर्चे का मुख्य तत्व और असमान हथियार बताया और कहा कि इसी ईमान की वजह से इस्लामी गणराज्य और रेज़िस्टेंस मोर्चा दुश्मनों के मुक़ाबले में कमज़ोरी महसूस नहीं करता।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस्लामी गणराज्य और ईरानी अवाम को अमरीका की हालिया धमकियों की ओर इशारा करते हुए बल दिया कि इस तरह की धमकियों से हमारी क़ौम, हमारे अधिकारी, जवान नस्ल और मुल्क के लोग तनिक भी प्रभावित नहीं होते। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीन की रक्षा और फ़िलिस्तीन के अवाम के प्रति सपोर्ट के मसले में भी ईरानी अवाम के मन में किसी तरह का कोई सवाल नहीं है और यह एक तयशुद मसला है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि फ़िलिस्तीन का मसला हमारे लिए मुख्य मसला और फ़िलिस्तीन की फ़तह हमारे लिए एक यक़ीनी हक़ीक़त है। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि आख़िरकार निश्चित फ़तह फ़िलिस्तीनी अवाम की ही होगी, कहा कि वाक़यात और उतार चढ़ाव, संदेह का सबब न बनने पाएं बल्कि ईमान और उम्मीद की ताक़त के साथ आगे बढ़ना चाहिए और अल्लाह की मदद की ओर से आशावान रहना चाहिए।
उन्होंने आख़िर में हमास के नेताओं से कहा कि अल्लाह की कृपा से वह दिन ज़रूर आएगा जब आप फ़ख़्र के साथ इस्लामी जगत के लिए क़ुद्स के मसले को हल कर चुके होंगे और वह दिन निश्चित तौर पर आएगा।
इस मुलाक़ात में हमास की नेतृत्व परिषद के प्रमुख मोहम्मद इस्माईल दरवीश, हमास के पोलित ब्यूरो के उपप्रमुख ख़लील अलहय्या और वेस्ट बैंक में हमास के प्रमुख ज़ाहिर जब्बारीन ने रेज़िस्टेंस के शहीद नेताओं ख़ास तौर पर इस्माईल हनीया, शहीद हसन नसरुल्लाह, शहीद यहया सिनवार और शहीद सालेह अलआरूरी को श्रद्धांजलि पेश की और वेस्ट बैंक और इसी तरह हासिल होने वाली जीत और कामयाबियों और मौजूदा हालात के बारे में एक रिपोर्ट पेश की और इस्लामी गणराज्य ईरान और ईरानी अवाम की ओर से हमेशा से जारी सपोर्ट का शुक्रिया अदा किया।
ट्रंप की ग़ज़्ज़ा से संबंधित योजना की कड़ी निंदा करते हैं
जर्मन चांसलर ने गाजा से फिलिस्तीनियों को जबरन बाहर निकालने की योजना का कड़ा विरोध करने की घोषणा की है।
जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज़ ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस योजना का कड़ा विरोध किया है, जिसमें ग़ज़्ज़ा के निवासियों को जबरन वहां से निकालकर मिस्र और जॉर्डन में बसाने का प्रस्ताव दिया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, ओलाफ शोल्ज़ ने कहा, "मैं ग़ज़्ज़ा के निवासियों की जबरन बेदखली से संबंधित ट्रंप की योजना का पूरी तरह से विरोध करता हूं। फिलिस्तीनियों का मिस्र और जॉर्डन में बसाया जाना अस्वीकार्य और अव्यावहारिक है।"
यह ध्यान देने योग्य है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग़ज़्ज़ा से फिलिस्तीनियों की बेदखली के बाद अमेरिकी कब्जे की भी योजना पेश की थी, जिसे अधिकांश अरब देशों और सभी फिलिस्तीनी समूहों ने नकारा है। इसके अलावा, कई इस्लामी और यूरोपीय देशों ने भी ट्रंप की इस योजना का विरोध किया है।
धार्मिक सीमाओं पर समझौता संभव नहीं
क़ुम के इमाम ए जुमआ आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने नमाज़े जुमआ के ख़ुतबे में कहा कि इस्लामी क्रांति ने न केवल क्षेत्र में बल्कि पूरी दुनिया में शक्ति संतुलन को बदल दिया है।
क़ुम अलमुकद्देसा में आयोजित जुमे की नमाज़ के दौरान आयतुल्लाह अली रज़ा इराफ़ी ने इस्लामी क्रांति की सालगिरह पर राष्ट्र को मुबारकबाद दी।
उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति केवल एक राजनीतिक बदलाव नहीं थी बल्कि यह एक वैचारिक और सांस्कृतिक क्रांति थी जिसने मुस्लिम उम्मत को एक नई दिशा दी।
उन्होंने कहा कि यह क्रांति एक जन आंदोलन थी, जिसमें सभी वर्गों ने अपने व्यक्तिगत और सामूहिक स्वार्थों से ऊपर उठकर इस्लाम की बुलंदी के लिए कुर्बानियां दीं यह क्रांति ईरान की इस्लामी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ी हुई है, और नई पीढ़ी को इसके वास्तविक अर्थ से अवगत कराना आवश्यक है।
इस्लामी क्रांति और इस्तेकबारी ताक़तों की सच्चाई:
आयतुल्लाह आराफ़ी ने अमेरिका और उसके सहयोगियों की हकीकत पर रौशनी डालते हुए कहा कि ग़ाज़ा में जो कुछ हो रहा है वही साम्राज्यवादी ताक़तों का असली चेहरा है अगर इन्हें नहीं रोका गया, तो वे हर क्षेत्र में ग़ज़ा जैसी तबाही मचाने की कोशिश करेंगे उन्होंने कहा कि ग़ाज़ा की बर्बादी मासूम बच्चों का क़त्ले-आम और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों की धज्जियां उड़ाना, दरअसल अमेरिकी साम्राज्यवाद की पहचान बन चुका है।
इबादत और धार्मिक प्रशिक्षण का महत्व:
अपने पहले ख़ुतबे में आयतुल्लाह इराफ़ी ने इबादत की बुनियादों पर चर्चा करते हुए कहा कि अल्लाह की सही पहचान इंसान की वास्तविक पहचान और दीन के उसूलों पर मज़बूती से अमल करना ही इंसान को इबादत के असली मकाम तक पहुंचाता है।
उन्होंने कहा कि दुआ और इबादत महज़ एक रस्म नहीं बल्कि इंसान की बुनियादी ज़रूरत है, जो उसे रूहानी बुलंदी अता करती है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हमें अपनी ज़िंदगी में ऐसे लम्हे पैदा करने होंगे जहां दुआ और मुनाजात के ज़रिए अपने अंदरूनी हालात को रौशन किया जा सके, क्योंकि यही रूहानी ताक़त हमें साम्राज्यवादी साज़िशों के मुक़ाबले में सब्र और मज़बूती अता करती है।
फ़िलस्तीन की बच्ची का ट्रंप को स्पष्ट और कड़ा जवाब
अमेरिकी राष्ट्रपति के ग़ज़्ज़ा पर कब्ज़े के विवादित बयान पर फ़िलस्तीन की छोटी लड़की मारिया हनून ने डोनाल्ड ट्रंप को स्पष्ट और कड़ा जवाब दिया है।
ग़ज़्ज़ा पट्टी पर कब्ज़े के बयान पर जहां दुनिया भर से अमेरिकी राष्ट्रपति की आलोचना हो रही है, वहीं एक छोटी मगर बहादुर फ़िलस्तीन की लड़की मारिया हनून ने भी ट्रंप को करारा जवाब दिया। 'इंस्टाग्राम' पर एक वीडियो क्लिप वायरल हो रही है, जिसमें छोटी लड़की मारिया हनून अमेरिकी राष्ट्रपति के विवादित बयान पर ट्रंप से सवाल कर रही है, "अगर मैं आपसे कहूं कि आप अपने घर से बाहर निकल जाएं, तो क्या आप बाहर चले जाएंगे?" मारिया कहती है कि जब आप अपने घर से बाहर निकलने से इनकार करेंगे, तो मुझे क्यों कहते हैं कि मैं अपने घर और वतन से बाहर निकल जाऊं।
फ़िलस्तीन की बच्ची ने ट्रंप से साफ शब्दों में कहा, "आप पूरी दुनिया पर हुकूमत कर सकते हैं, सिवाय गाज़ा के, क्योंकि ग़ज़्ज़ा खुद पूरी दुनिया है।" मारिया ने ट्रंप को आइना दिखाते हुए कहा, "आप खुद को एक लोकतांत्रिक और स्वतंत्रता वाले देश के रूप में कहते हैं, लेकिन किसी की और कौन सी स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं?"
स्विस अधिकारियों ने इज़रायली युद्ध अपराधी के खिलाफ जांच शुरू की
इज़रायली युद्ध अपराध की शिकायत के बाद इज़रायली सैनिक के खिलाफ जांच शुरू कर दी है जो फिलहाल स्विट्ज़रलैंड में मौजूद है स्विस सरकार ने इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान जारी किए है।
इज़रायली युद्ध अपराध की शिकायत के बाद इज़रायली सैनिक के खिलाफ जांच शुरू कर दी है जो फिलहाल स्विट्ज़रलैंड में मौजूद है स्विस सरकार ने इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान जारी किए है।
एचआरएफ की शिकायत जिसमें ठोस सबूत पेश किए गए हैं में आरोप लगाया गया है कि संदिग्ध सैनिक ने ग़ाज़ा पट्टी में युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध किए हैं शिकायत में नागरिकों पर हमले घरों और अस्पतालों की तबाही, जबरन विस्थापन और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के गंभीर उल्लंघन जैसे विशेष आरोप शामिल हैं।
स्विट्ज़रलैंड द्वारा यह जांच ऐसे समय में शुरू की गई है जब ग़ाज़ा में इज़रायल की कार्रवाइयों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच-पड़ताल तेज हो गई है। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था।
एचआरएफ ने अपनी शिकायत में यह भी कहा है कि जवाबदेही तय होनी चाहिए और ग़ाज़ा की जमीन पर इन अपराधों को अंजाम देने वालों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने ग़ाज़ा में इज़रायल की कार्रवाइयों को नागरिकों के बड़े पैमाने पर नरसंहार, बुनियादी ढांचे की तबाही और जनसंख्या विस्थापन की संगठित मुहिम करार दिया है।
पिछले चार दशकों से इज़रायली अधिकारी और सेना बिना किसी भय के ऐसी कार्रवाइयां कर रहे हैं और उन्हें राजनीतिक और कूटनीतिक संरक्षण प्राप्त है।हालांकि अंतरराष्ट्रीय न्यायिक अधिकार क्षेत्र के तहत युद्ध अपराधों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए चाहे वे कहीं भी किए गए हों।
हज़रत अली अकबर अलैहिस्सलाम
आपका नामे नामी अली इब्ने हुसैन था।
उपनाम
आपका लक़ब अकबर था।
माता पिता
हज़रत अली अकबर अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रते लैला बिन्ते अबीमुर्रा बिन उरवा बिन मसऊदे सक़फी थी।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत अली अकबर अलैहिस्सलाम की जन्म तिथि के बारे मे कोई खास सबूत नही मिलते लेकिन कहा जाता है कि आप 11 शाबान सन् 33 हिजरी मे शहरे मदीना मे दुनिया मे आऐ ।
मुशाबेहते रसुले अकरम
रिवायात मे आया है कि आप किरदार, गुफ्तार और तमाम सिफात मे रसुले अकरम (स.अ.व.व.) से बेइन्तेहा मुशाबेहत रखते थे ।
सफरे करबला मे आपका एक क़ौल
एक मरतबा करबला के रास्ते मे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ख्वाब से बेदार हुए तो आपने इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन पढ़ा ये देख कर जनाबे अली अकबर अ. स. ने इसकी वजह मालूम की तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया कि अभी मैने ख्वाब मे देखा है कि कोई कह रहा है कि ये क़ाफिला मौत की तरफ जा रहा है तो जनाबे अली अकबर अलैहिस्सलाम ने सवाल किया कि ऐ बाबा क्या हम हक़ पर नही हैं तो इमाम ने जवाब दियाः क्युं नही बेटा ।
ये सुनकर जनाबे अली अकबर अ.स. ने फरमाया कि जब हम हक़ पर है तो राहे खुदा मे मरने मे कोई खौफ नही।
पहला शहीद
मक़ातील मे मिलता है कि बनीहाशिम मे सब से पहले मैदाने जंग मे जाने वाले जनाबे अली अकबर अलैहिस्सलाम ही थे।
शहादत
आप करबला के मैदान मे 10 मौहर्रम सन् 61 हिजरी मे दीने हक़ और अपने वालीद का दिफा करते हुऐ दरजाए शहादत पर फाएज़ हुऐ।
समाधि
हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की एक रिवायत के मुताबिक़ जनाबे अली अकबर अलैहिस्सलाम को करबला मे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के क़दमो की तरफ दफ्न किया गया है।
सैकड़ों क़ैदियों की सज़ाओं में माफी या कमी, सुप्रीम लीडर द्वारा मंज़ूरी
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने ईदे माबअस, माहे शाबानुल मुअज़्ज़म और इस्लामी इंक़लाब की सालगिरह के मुबारक मौके पर तीन हज़ार से ज़्यादा क़ैदियों की सज़ा में माफी या कमी या तब्दीली की मंज़ूरी दी है।
एक रिपोर्ट के अनुसार,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने ईदे माबअस, माहे शाबानुल मुअज़्ज़म और इस्लामी इंक़लाब की सालगिरह के मुबारक मौके पर तीन हज़ार से ज़्यादा क़ैदियों की सज़ा में माफी या कमी या तब्दीली की मंज़ूरी दी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, ईरानी अदलिया (न्यायपालिका) के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन ग़ुलाम हुसैन मुहसिनी अजेहई ने रहबर-ए-इंक़लाब को एक खत भेजकर दरख्वास्त की थी कि इन मुबारक दिनों की मुनासिबत से 3,126 क़ैदियों की सज़ाओं में नरमी बरती जाए।
यह क़ैदी आम और इंक़लाबी अदालतों, सशस्त्र बलों की न्यायिक व्यवस्था और सरकारी सज़ाओं से जुड़े विभिन्न मामलों से संबंधित हैं।
रहबर-ए-इंक़लाब ने इस दरख्वास्त को मंज़ूर करते हुए इन क़ैदियों की सज़ाओं में कमी, माफी या तब्दीली का हुक्म जारी कर दिया इस क़दम को सामाजिक न्याय और इस्लामी परंपराओं के अनुसार रहमत और दरगुज़र की नीति का सिलसिला क़रार दिया जा रहा है।