رضوی

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यमन की अंसारूल्लाह आंदोलन के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि ईज़राइल कभी सुरक्षित नहीं रहेगा।

यमन की सेना द्वारा सफल ड्रोन हमले के बाद "हिज़ाम अल असद" ने सोशल मीडिया पर हिब्रू भाषा में एक संदेश जारी किया है जिसमें कहा गया कि एयलात और उम अल-रशराश सुरक्षित नहीं हैं पूरा ईज़राइल सुरक्षित नही है।

दूसरी तरफ, यमन सेना के प्रवक्ता याह्या सयरी ने बताया कि दो ड्रोन के जरिए बंदरगाह "उम अल-रशराश" को निशाना बनाया गया और ईज़राइली वायु रक्षा इन हमलों को रोकने में नाकाम रही है।

यह 24 घंटे के अंदर ईज़राइल पर यमन का दूसरा ड्रोन हमला था। सियोनी मीडिया के अनुसार इस हमले में एयलात में 48 लोग घायल हुए, जिनमें से दो की स्थिति गंभीर है।

 

कमांडर अब्बास कुलीज़ादेह ने 12 दिन के युद्ध में तब्रिज के लोगों की प्रशंसा करते हुए कहा कि सबसे बड़ी जीत जनता की वजह से मिली है। उन्होंने कहा कि दुश्मन का मकसद जनमत को भ्रमित करना, प्रतिबंध बढ़ाना और सैन्य हमले करना है, जो वह वार्ताओं के दौरान एक साथ कर रहा है।

कमांडर अब्बास कुलीज़ादेह ने 12 दिन के युद्ध में तब्रिज के लोगों की प्रशंसा करते हुए कहा कि सबसे बड़ी जीत जनता की वजह से मिली है। उन्होंने कहा कि दुश्मन का मकसद जनमत को भ्रमित करना, प्रतिबंध बढ़ाना और सैन्य हमले करना है, जो वह वार्ताओं के दौरान एक साथ कर रहा है।

तब्रिज में गुरुवार को पत्रकारों से बात करते हुए, कमांडर अब्‍बास कुलीजादेह ने कहा कि तब्रिज, तेहरान के बाद दूसरी सबसे बड़ी ऐसी जगह थी जहाँ इज़राइली सेना के साथ संघर्ष हुआ और यहाँ के सशस्त्र बलों ने दुश्मन को परास्त किया।

उन्होंने जनता का धन्यवाद किया और कहा कि जैसा कि हमारे महान नेता ने कहा, इस 12 दिन के युद्ध की असली जीत हमारी जनता की है जिन्होंने दुश्मनों की मंशा के विपरीत काम किया।उन्होंने कहा कि कल राष्ट्रपति का भाषण और संयुक्त राष्ट्र महासभा में इज़राइल की क्रूरताओं की तस्वीरें दिखाना सराहनीय है।

उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि दुश्मन के सामने ताकत ही सबसे अहम है। इतिहास में क़ाजार से लेकर पहलवी और हमारी क्रांति के दौर तक, कोई भी संधि ऐसी नहीं रही जो हमारे देश के हित में हो।

जनरल अब्बास कुलीज़ादेह ने कहा कि दुश्मन का मकसद जनता को भ्रमित करना है। अगर हम पिछले 300 सालों का इतिहास देखें तो पाएंगे कि दुश्मन की नीयत यही रही है कि जनता के विचारों को भटकाया जाए।

उन्होंने कहा कि दुश्मन ने घोषणा की है कि अगर ईरान को नहीं रोका गया तो इस दशक के अंत तक वह दुनिया की प्रमुख शक्तियों में से एक बन जाएगा।

उन्होंने बताया कि पहले के वर्षों में जब वार्ताएं चल रही थीं, तब दुश्मन ने प्रतिबंध बढ़ाए और हाल ही में वार्ता के दौरान सैन्य हमला भी किया।

अंत में उन्होंने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों की एकजुटता, जिम्मेदार मांगें और अधिकारियों से उचित अपेक्षाओं के साथ हम अपने देश की समस्याओं को खुद सुलझा सकते हैं और अपनी कमजोरियों को दूर कर सकते हैं।

कुवैत के क्राउन प्रिंस ने गाज़ा में जारी नरसंहार को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दोहरे मानकों का परिणाम बताया और तुरंत युद्ध बंद करने की मांग की है।

कुवैत के क्राउन प्रिंस सब्बाह अलखालिद सब्बाह ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में कहा कि सुरक्षा परिषद में सुधार आवश्यक हैं ताकि न्याय, पारदर्शिता और दोहरे मानक समाप्त किए जा सकें।

उन्होंने इज़राइल की आक्रामक कार्रवाइयों की कड़ी निंदा की और कहा कि हाल की तनावपूर्ण स्थिति और सैन्य संघर्ष क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिए खतरनाक हैं।

क्राउन प्रिंस ने कतर के साथ पूर्ण एकजुटता दोहराई और कहा कि खाड़ी सहयोग परिषद के किसी भी सदस्य देश के खिलाफ कोई भी आक्रमण सभी सदस्य देशों के लिए खतरा है।सब्बाह ने कहा कि पिछले दो वर्षों से गाज़ा में जो कुछ हो रहा है, वह अंतरराष्ट्रीय कानूनों में दोहरे मानकों के कारण वास्तविक नरसंहार है।

उन्होंने इज़राइल से तुरंत हमले बंद करने और मानवीय आधार पर सहायता की अनुमति देने की मांग की।उन्होंने कहा कि कुवैत फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए सहायता जारी रखने और अवैध बस्तियों और फिलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन के खिलाफ मजबूत रुख रखता है। साथ ही अन्य देशों से भी फिलिस्तीन के पक्ष में कार्रवाई करने की अपील हैं।

 लेबनान की उच्च इस्लामी शिया परिषद के उप प्रमुख, शेख़ अली खतीब ने शहर लबाया की हुसैनिया में नगरपालिका द्वारा आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि लेबनान एक ऐसा समाज है जो फिरकों और मज़हबों की विविधता के बावजूद एकजुट है और इसका रुख इज़राइल जैसे वहशी दुश्मन के मुकाबले में हमेशा एकता और एकजुटता पर आधारित रहना चाहिए।

लेबनान की उच्च इस्लामी शिया परिषद के उप प्रमुख शेख़ अली अलखतीब ने शहर लबाया की हुसैनिया में नगरपालिका द्वारा आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि,लेबनान एक ऐसा समाज है जो विभिन्न धार्मिक समुदायों और मज़हबों की विविधता के बावजूद एकजुट है और इसका रुख इज़राइल जैसे दरिंदे-दुश्मन के खिलाफ हमेशा एकता और एकजुटता पर आधारित रहना चाहिए।

शेख अल-खतीब ने कहा कि प्रतिरोध के जवानों ने इज़राइल की आक्रमणकारी हरकतों का मुकाबला किया लेबनान को सुरक्षित बनाया और उसके उद्देश्य को विफल कर दिया। दुश्मन सोचता था कि वह लेबनान को हरा सकता है, लेकिन जब वह कफ़र क़ला, और अलजबल सहित अन्य सीमावर्ती इलाकों में मुजाहिदीन के सामने आया तो यह स्पष्ट हो गया कि वह लेबनान की धरती पर एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकता।

उन्होंने कहा कि लेबनान के भीतर कुछ तत्वों ने प्रतिरोध पर दबाव डालने और उसे निर्बल करने की कोशिश करके दुश्मन के मकसद पूरे करने का प्रयास किया लेकिन ज़मीनी हक़ीक़तों ने साबित किया कि प्रतिरोध न तो सैन्य रूप से और न ही मानसिक रूप से हार गया है। इसका जन समर्थन मजबूत बना हुआ है और जब तक प्रतिरोध कायम रहेगा लेबनान को हराया नहीं जा सकता।

शेख अल-खतीब ने उन दावों को निराधार करार दिया जो ईरान और प्रतिरोध को अरब दुनिया के लिए खतरा बताकर पेश करते हैं और कहा कि असली खतरा इज़राइल और उसके समर्थक देशों से है। उन्होंने इस बात की भी आलोचना की कि कुछ लोग अमेरिका के समर्थन या कूटनीति पर भरोसा करते हैं, लेकिन आज इज़राइल ने खुद खाड़ी क्षेत्र और दोहा को निशाना बनाया है तो यह समर्थन कहां गया?

उन्होंने कहा कि दुश्मन का मकसद अरब दुनिया को आंतरिक गृहयुद्धों में उलझाना और उसे छोटे-छोटे संप्रदायवादी देशों में बाँटना है, लेकिन अनुभव यह बताता है कि असली सुरक्षा केवल उम्मत के बच्चों के एकता और पारस्परिक सहयोग से संभव है।

लेबनान की उच्च इस्लामी शिया परिषद के उप प्रमुख ने जोर देते हुए कहा कि इज़राइल के साथ युद्ध केवल जमीन या हितों का संघर्ष नहीं है, बल्कि यह एक सभ्यतागत और सर्वव्यापी युद्ध है जो विचार, संस्कृति, मूल्यों, इतिहास और परिवार के बचाव पर आधारित है। गाजा में इज़राइल द्वारा किया गया नरसंहार, अकाल और तबाही दरअसल पश्चिमी सभ्यता की हकीकत को उजागर करता है।

उन्होंने कहा कि प्रतिरोध ने इसलिए सफलता हासिल की क्योंकि उसने इस युद्ध की असली प्रकृति को समझा। यह सिर्फ भौतिक ताकत के संतुलन पर आधारित सैन्य टकराव नहीं है, बल्कि यह इच्छा और संस्कृति की लड़ाई है। इसी वजह से उसने दुश्मन की योजनाओं को नाकाम किया और उसे जमीन पर कब्जा करने से रोका।

शेख अल-खतीब ने कहा कि यह युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि यह एक जारी सभ्यतागत युद्ध है जिसमें धैर्य और मजबूती की जरूरत है। अंत में उन्होंने कहा कि उम्मीद नई पीढ़ी से है, जो प्रतिरोध और सफलता की संस्कृति में पली-बढ़ी है, और कल उन्हीं के हाथों लेबनान, फिलिस्तीन और पूरी उम्मत की इज़्ज़त और गौरव का झंडा बुलंद होगा।

आयतुल्लाह हसन ज़ादेह आमोली ने मन्क़ूल किया है कि जब उन्होंने खिल्क़त-ए-इंसान (इंसान की पैदाइश) के मक़सद और इबादत व मारिफ़त के आपसी तअल्लुक़ के बारे में अल्लामा तबातबाई से सवाल किया तो उन्होंने बेहद मुख्तसर लेकिन अमीक जुमले में फ़रमाया,हगर चे एक नफर यानी,भले ही सिर्फ़ एक ही शख्स क्यों न हो।

आयतुल्लाह हसन ज़ादेह आमोली ने मन्क़ूल किया है कि जब उन्होंने खिल्क़त-ए-इंसान (इंसान की पैदाइश) के मक़सद और इबादत व मारिफ़त के आपसी तअल्लुक़ के बारे में अल्लामा तबातबाई से सवाल किया तो उन्होंने बेहद मुख्तसर लेकिन अमीक जुमले में फ़रमाया,हगर चे एक नफर यानी,भले ही सिर्फ़ एक ही शख्स क्यों न हो।

आयतुल्लाह हसन ज़ादेह बयान करते हैं:

एक रात मैं सोच रहा था कि आख़िर अल्लाह ने इंसान को पैदा क्यों किया? कुरआन की आयत وما خلقت الجن والانس الا لیعبدون
और मैंने जिन्न और इंसान को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी इबादत करें।पर और भी ग़ौर किया इसकी तफ़सीर में कहा गया है 'लिया'बुदून' यानी 'लितअरिफ़ून लेकिन एक शक यह था कि मारिफ़त के बिना इबादत मुमकिन नहीं है, और जब हमारी मारिफ़त अल्लाह के मुक़ाबले में कुछ भी नहीं है, तो फिर इबादत कैसे होगी?

सुबह सबसे पहले मैं अल्लामा तबातबाई की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया,हज़रत उस्ताद! तो फिर आख़िर कौन है जो अल्लाह की इबादत करेगा?

अल्लामा तबातबाई ने बेहद मुख्तसर जवाब दिया,हगर चे एक नफर यानी!(भले ही सिर्फ़ एक ही शख़्स क्यों न हो)।

यह सुनकर मेरे दिल को सुकून मिला। फ़ौरन ज़हन में इमाम ए ज़माना अ.स.की ज़ाते गरामी याद आई और याद आया कि ज़मीन कभी भी उस कामिल व मासूम हस्ती से ख़ाली नहीं रहती।

दूसरे सभी इंसान,इंसान ए कामिल के साए में हैं और ख़ल्क़त का हक़ीक़ी मक़सद उसी कामिल मौजूद की हस्तियत की तरफ लौटता है।यही वह नुक्ता है जिसे अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने वाज़ेह फ़रमाया,
فَإِنَّا صَنَائِعُ رَبِّنَا وَالنَّاسُ بَعْدُ صَنَائِعُ لَنَا

निस्संदेह हम अपने रब की सीधी रचना हैं और उसके बाद के लोग हमारी रचना (सनअत) हैं। यानी, बाक़ी सभी लोग हम अहलेबैत के लिए पैदा किए गए हैं।

 गज़्ज़ा के अस्पतालों के सूत्रों के अनुसार आज सुबह से इजरायली सेना की गोलीबारी से 27 फिलिस्तीनी शहीद हो गए हैं जिनमें सहायता के लिए प्रयासरत 11 लोग और गाज़ा शहर के 16 लोग शामिल हैं।

गज़्जा के अस्पतालों के सूत्रों का कहना है कि आज सुबह से इजरायली सेना की गोलीबारी में 27 फिलिस्तीनी शहीद हो गए जिनमें सहायता की तलाश में निकले 11 लोग और गाज़ा शहर के 16 लोग शामिल हैं।वहीं, एक संयुक्त राष्ट्र अधिकारी ने पुष्टि की है कि गाज़ा में अकाल फैल गया है।

इजरायली सेना ने शुक्रवार को गाज़ा शहर के उत्तर-पश्चिमी इलाके अररमाल में एक आवासीय टावर और उसके आसपास के क्षेत्र को खाली करने की चेतावनी जारी की है, जिस पर बाद में हमला किया जा सकता है।

इजरायली सेना के प्रवक्ता एडमिरल डैनियल हगारी ने एक बयान में कहा कि गाजा बंदरगाह और अररमाल इलाके के विशिष्ट ब्लॉकों के निवासियों को तुरंत क्षेत्र खाली करने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि इजरायली सेना जल्द ही इमारत पर हमला करेगी।

अल जज़ीरा के संवाददाता के अनुसार, खान यूनिस शहर के उत्तरी इलाके में तीन इजरायली हवाई हमले हुए हैं।

अलशिफा अस्पताल के सूत्रों के अनुसार, गाज़ा शहर के रमाल इलाके में एक घर पर इजरायली हवाई हमले में एक फिलिस्तीनी शहीद और कई घायल हुए हैं।

बैप्टिस्ट अस्पताल के सूत्रों के अनुसार, उत्तर-पूर्वी गाजा शहर में एक इजरायली ड्रोन हमले में चार फिलिस्तीनी शहीद और कई लोग घायल हुए हैं।

आपातकालीन सेवाओं के सूत्रों के अनुसार, गाज़ा शहर के पश्चिम में शाटी शरणार्थी शिविर में घरों पर इजरायली हवाई हमलों में चार शहीदों के शव बरामद किए गए हैं।

सैय्यद अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी ने कहा,इजरायली दुश्मन वही अत्याचार जारी किए हुए है जो पूरी दुनिया के सामने खुलेआम हो रहे हैं इजरायली अमेरिका के समर्थन के कारण और भी अधिक धृष्ट हो गया हैं।

 हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की कुछ निशानियाँ और शर्तें हैं, उन्हीं को ज़हूर का रास्ता हमवार होना व ज़हूर की निशानियों के शीर्षक से याद किया जाता है। इन दोनों में फ़र्क यह है कि रास्ते का हमवार होना ज़हूर में प्रभावित है, अर्थात अगर रास्ता हमवार हो गया तो इमाम (अ. स.) का ज़हूर हो जायेगा और अगर रास्ता हमवार न हुआ तो ज़हूर नहीं हो होगा। इसके विपरीत निशानियाँ ज़हूर में प्रभावी नहीं हैं बल्कि सिर्फ़ ज़हूर की निशानी हैं और उनके द्वारा सिर्फ़ ज़हूर के ज़माने या ज़हूर के ज़माने के क़रीब होने का पहचाना जा सकता है।

इस फ़र्क को मद्दे नज़र रखते हुए अच्छी तरह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ज़हूर की शर्तें और रास्ते का हमवार होना, ज़हूर की निशानियों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। अतः निशानियों को तलाश करने से पहले उन शर्तों पर ध्यान दें और अपनी ताक़त के अनुसार उन शर्तों को पैदा करने की कोशिश करें। इसी वजह से हम पहले ज़हूर के रास्तों के हमवार होने और ज़हूर की शर्तों की व्याख्या करते हैं और आख़िर में ज़हूर की निशानियों का संक्षेप में उल्लेख करेंगे।

 संसार की हर चीज़ अपनी शर्तों के पूर्ण व रास्ते के हमवार होने से ही अस्तित्व व वजूद में आ जाती है। इन के बग़ैर कोई भी चीज़ वजूद में नहीं आती। हर ज़मीन दाने को उगाने व उसे परवान चढ़ाने की योग्यता नहीं रखती। प्रत्येक जल वायु हर फूल, फल के फलने व फूलने के लिए उचित नहीं होती है। एक किसान ज़मीन से अच्छी फसल काटने का उसी वक़्त उम्मीदवार हो सकता है जब उसने फसल काटने की ज़रूरी शर्तों को पूरा कर लिया हो।

इसी प्रकार कोई परिवर्तन और सामाजिक सुधार भी शर्तों के पूर्ण होने और रास्ते के हमवार होने पर ही आधारित होता है। जिस तरह ईरान का इस्लामी इन्केलाब शर्तों के पूरा होने और रास्तों के हमवार होने के बाद सफल हुआ है, इसी तरह हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का विश्वव्यापी इन्क़ेलाब, जो कि दुनिया का सब से बड़ा इन्किलाब होगा, भी उसी क़ानून के अन्तर्गत आता है और जब तक उसका रास्ता हमवार न होगा और शर्तें पूरी न होंगी, उस वक़्त तक घटित नही हो सकता।

इस स्पष्टीकरण का उद्देश्य यह है कि हमारे दिमाग़ में यह ख़्याल न रहे कि  हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के क़ियाम (आन्दोलन) व हुकूमत का मसला इस क़ानून से अलग है, और उनका यह समाज सुधार आन्दोलन किसी मोजज़े (चमत्कार) के आधार पर शर्तों व कारकों के बिना घटित हो जायेगा। बल्कि कुरआन व अहले बैत (अ. स.) की शिक्षाएं और अल्लाह की सुन्नत ये है कि संसार के तमाम काम साधारण रूप से और साधारण शर्तों व कारकों के आधार पर ही क्रियान्वित होते हैं।

हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने फरमाया :

ख़ुदा वन्दे आलम सब कामों को उनके कारकों के आधार पर ही पूरा करता है...

एक रिवायत में मिलता है कि किसी इंसान ने हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) से कहा कि मैंने सुना है कि जब हज़रत इमाम महदी (अ. स.) का ज़हूर होगा तो सारे काम उनकी मर्ज़ी के अनुसार होंगे।

इमाम (अ. स.) ने फरमाया : हरग़िज़ ऐसा नहीं है, उस ज़ात की क़सम  जिस के क़ब्जें में मेरी जान है, अगर यह तय होता कि हर किसी का काम ख़ुद बख़ुद हो जायेगा तो फिर ऐसा रसूले इस्लाम (स.) के लिए होता...।

अलबत्ता इस बात का यह अर्थ नहीं है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के वक़्त ग़ैबी और आसमानी मदद नहीं होगी, बल्कि मक़सद यह है कि उस सहायता के साथ साथ आम शर्तों और रास्तों का हमवार होना ज़रुरी है।

इस बात के सेपष्ट हो जाने के बाद हमें चाहिए कि पहले ज़हूर की शर्तों को पहचाने और फिर उनके लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करें।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के आन्दोलन और विश्वव्यापी सुधार व परिवर्तन की शर्तों और भूमिकाओं में से निम्न लिखित चार चीज़ें महत्वपूर्ण हैं, हम इन के बारे में अलग अलग वार्तालाप व बहस करते हैं।

 योजना व प्लान

यह बात पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि प्रत्येक सुधार आन्दोलन के लिए दो चीज़ों की ज़रूरत होती हैः

अ-    समाज में मौजूद बुराईयों का मुक़ाबेला करने के लिए एक पूर्ण योजना।

आ-     समाज की ज़रुरतों के अनुरूप ऐसे पूर्ण और उचित क़ानून जो हुकूमत की न्याय व्यवस्था में समस्त व्यक्तिगत व सामाजिक अधिकारों के रक्षक हो और जिनके आधार पर समाज तरक्की कर के अपने उद्देश्यों तक पहुँच सके।

सच्चा इस्लाम अर्थात कुरआने करीम की शिक्षाएं और मासूमों (अ. स.) की सुन्नत बेहतरीन कानून के रूप में हज़रत इमाम  महदी (अ. स.) के पास होगी और वह अल्लाह के इसी अमर संविधान के आधार पर काम करेंगे...।  कुरआन ऐसी किताब है जिसकी आयतों का ख़ज़ाना उस ख़ुदा वन्दे आलम की तरफ़ से नाज़िल हुआ जो इंसान के तमाम पहलुओं और उसकी समस्त भैतिक व आध्यात्मिक ज़रुरतों को जानता है। अतः इमामे ज़माना (अ. स.) का विश्वव्यापी आन्दोलन हुकूमत के क़ानून के लिहाज़ से बेमिसाल तथ्यों पर आधारित होगा और किसी भी दूसरे अन्दोलन से उसका मुक़ाबेला व उसकी तुलना करना संभव नही है। इस दावे की दलील यह है कि आज की दुनिया ने बहुत से तजर्बे करने के बाद इस बात को क़बूल किया है कि इंसानों द्वारा बनाये गये क़ानूनों में कमज़ोरियाँ पाई जाती हैं। इस लिए आज इंसान आहिस्ता आहिस्ता आसमानी क़ानूनों को क़बूल करने के लिए तैयार होता जा रहा है।

अमेरीकी का राजनीतिक सलाहकार आलवीन टाफलर, इंसानी समाज को गंभीर हालत से निकालने और इसमें सुधार लाने के लिए तीसरी लहर... ...का नज़रिया पेश करता है, लेकिन वह इस बारे में आश्चर्यजनक बातों का इकरार करता है।

हमारे पश्चिमी समाज में मुशकिलों और परेशानियों की लिस्ट इतनी लंबी है कि उसका कोई अन्त नहीं है। औद्योगिक अस्थिरता और अनियमित्ता के कारण अखलाक़ी व सदाचारिक बुराईयाँ इतनी बढ़ गई हैं कि उनकी दुर्गंध से परेशान हो कर इंसान अपने गुस्से को ज़ाहिर करने और समाज में परिवर्तन लाने की कोशिश में और उस पर इसके लिए हर वक़्त दबाव बढ़ रहा है। इस दबाव के जवाब में हज़ारों ऐसी योजनायें पेश की जा चुकी हैं, जिनके बारे में यह दावा किया जाता है कि यह आधारभूत व नई हैं, लेकिन बार बार देखने में आता है कि जो क़ानून और संविधान हमारी मुशकिलों के हल के लिए पेश किये जाते हैं वह हमारी परेशानियों को और ज़्यादा बढ़ा देते हैं। इस कारण इंसान में मायूसी और ना उम्मीदी का एहसास पैदा होता जा रहा है। इसी वजह से इंसान सोचता है कि इनका कोई फायेदा नहीं है किसी क़ानून का कोई असर नहीं होता है। चूँकि यह एहसास हर डिमोक्रेटिक निज़ाम व व्यवस्था के लिए खतरनाक है, इसी लिए मिसालों में बयान होने वाले सफेद घोड़े पर सवार मर्द, की ज़रुरत का बड़ी बेचैनी से इन्तेज़ार से किया जा रहा है...।

 रहबरी  व नेतृत्व

हर इंकेलाब व आन्दोलन में एक रहबर व नेतृत्व करने वाले की ज़रूरत आधारभूत ज़रूरतों में गिनी जाती है। इंन्केलाब का स्तर जितना अधिक व्यापक होगा और उसके उद्देश्य जितने अधिक उच्चय होंगे, उसी के अनुरूप उसके रहबर को भी ताक़तवर व उन उद्देश्यों को प्रप्त करने में समक्ष होना चाहिए।

विश्व स्तर पर ज़ुल्म व सितम से मुक़ाबेला करने वाला, न्याय व समानता पर आधारित विश्वव्यापी हुकूमत स्थापित करने वाला और पूरी ज़मीन पर समानता फैलाने की ताक़त रखने वाला, हर इल्म का जानने वाला और अपने दिल में इंसानियत का दर्द रखने वाला रहबर, उस इंकेलाब का असली स्तंभ है। ऐसा रहबर जो वास्तव में उस इंकेलाब का सही नेतृत्व कर सके। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) जो सब नबियों व वलियों (अ. स.) का सार हैं, वह उस महान रहबर के रूप में ज़िन्दा और हाज़िर हैं। सिर्फ वही एक ऐसे रहबर हैं जो आलमे ग़ैब (अल्लाह, फ़रिश्तें व ......) से संबंध के आधार पर संसार की हर चीज़ के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी रखते हैं और अपने ज़माने के सब से बड़े व महान आलिम व ज्ञानी हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया :

जान लो कि महदी (अ. स.) सारे इल्मों के वारिस होंगे, और सारे इल्मों पर उनका वर्चस्प होगा...।

वह ऐसे रहबर हैं जो हर तरह की पाबन्दियों से आज़ाद होंगे और सिर्फ़ उनका दिल अल्लाह की मर्ज़ी के तहत होगा।

अतः वह विश्वव्यापी इंकेलाब और हुकूमत के रहबर के लिहाज़ से भी बेहतरीन होंगे।

  मददगार

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की ज़रुरी शर्तों मे से उन के अच्छे, उचित और ऐसे लायक मददगारों का वजूद भी है, जो इस इन्केलाब और हुकूमत के ओहदो पर रह कर इमाम (अ. स.) की मदद करें। ज़ाहिर सी बात है कि जब वह विश्वव्यापी इन्केलाब एक महान आसमानी रहबर के ज़रिये बर्पा होगा तो फिर उनके मददगार भी उसी स्तर के होंगे, ऐसा नहीं है कि जिस ने भी मदद करने का वादा कर लिया वही उन की मददगारों में शामिल हो जाये।

इस बारे में निम्न लिखित घटना पर ध्यान देने की ज़रूरत है :

 हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) का सुहैल पुत्र हसन खुरासानी नामक शिया इमाम (अ. स.) की खिदमत में अर्ज़ करता है :

आपके रास्ते में क्या चीज़ रुकावट है कि आप अपने हक़ (हुकूमत) के लिए क़ियाम (आन्दोलन) नहीं करते जबकि आपके एक लाख़ तलवार चलाने वाले घुड़सवार शिया मौजूद हैं ? इमाम (अ. स.) ने हुक्म दिया कि तन्दूर दहकाया जाये। इमाम के हुक्म से तन्दूर दहकाया गया और जब उसमें से आग के शोले बाहर निकलने लगे तो इमाम (अ.स.) ने सुहैल से फरमाया : ऐ खुरासानी ! उठो और इस तन्दूर में कूद जाओ। सुहैल समझे कि इमाम (अ. स.) उसकी बातों से नाराज़ हो गए हैं, अतः उन्हों ने इमाम से माफ़ी माँगते हुए कहा कि :  मौला मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे आग में डाल कर सज़ा न दें। इमाम (अ. स.) ने फरमाया:   मैं तुम्हें छोड़ता हूँ।

उसी वक़्त वहाँ पर इमाम (अ. स.) के एक सच्चे शिया हारुने मक्की आ गये, उन्होंने इमाम (अ. स.) को सलाम किया। इमाम ने सलाम का जवाब देने के बाद कुछ कहे सुने व बताये बग़ैर उन्हें हुक्म दिया कि इस तन्दूर में कूद जाओ।

हारुने मक्की यह सुनते ही फौरन उस तन्दूर में कूद गये और इमाम (अ. स.) उस खुरासानी से बात चीत करने में व्यस्त हो गये और उसे खुरासान की घटनाएं इस तरह सुनाने लगे जैसे इमाम (अ. स.) वहाँ ख़ुद मौजूद हों। कुछ देर के बाद इमाम (अ. स.) ने फरमाया : ऐ खुरासानी उठो और तन्दूर के अन्दर झाँक कर देखो ! जब सुहैल ने उठ कर तन्दूर के अन्दर झाँका तो देखा कि हारुने मक्की आग के शोलों के के बीच पलोथी मारे बैठे हुए हैं।

उस वक़्त इमाम (अ. स.) ने उस ख़ुरासानी से सवाल किया कि बताओ  तुम खुरासान में हारुने मक्की जैसे कितने लोगों को पहचानते हो ? खुरासानी ने जवाब दिया : मैं तो ऐसे किसी इंसान को नहीं जानता !। इमाम (अ. स.) ने फरमाया : जान लो कि जब तक हमें पाँच मददगार नहीं मिलते, हम उस वक़्त तक क़ियाम (आन्दोलन) नहीं करते, हम बेहतर जानते हैं कि क़ियाम और इंकेलाब का कब वक़्त है...?

अतः उचित है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की सिफ़तों व विशेषताओं को रिवायतों के आधार पर पहचानें ताकि हम उनके अनुरूप ख़ुद को परखें और अपने अन्दर पाई जाने वाली कमियों को पूरा करने की कोशिश करें।

 क- इमामत की शनाख़्त व आज्ञापालन

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों को ख़ुदा वन्दे आलम और इमाम की गहरी शनाख्त है और वह पूरी जानकारी के साथ हक़ के मैदान में हाज़िर होते हैं।

हज़रत अली (अ. स.) उनके बारे में फरमाते हैं कि

"वह ऐसे इंसान हैं जो ख़ुदा को इस तरह पहचानते हैं कि जो उसे पहचानने का हक़ है।

इमाम की शनाख्त और इमामत का अक़ीदा भी उनके दिल की गहराइयों में अपनी जड़ें मज़बूत कर चुका है और उनके पूरे वजूद पर अपना वर्चस्व जमाये हुए है। उनकी इमामत के प्रति यह शनाख्त, इमाम (अ. स.) का नाम व नस्ब जानने से उच्च है। इमामत की शनाख़्त की वास्तविक्ता यह है कि इंसान इमाम के विलायत के हक़ और संसार में  उनके बुलन्द मर्तबे को पहचानें। यही वह शनाख़्त है जिससे उनके दिल मुहब्बत से भर जाते हैं, और फिर वह उनकी आज्ञा पालन के लिए हर वक़्त और हर तरह से तैयार रहते हैं। क्योंकि वह जानते हैं कि इमाम (अ. स.) का हुक्म ख़ुदा का हुक्म है और उनकी इताअत (आज्ञा पालन) ख़ुदा की इताअत है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी तारीफ़ में फरमाया कि

वह लोग अपने इमाम की आज्ञा पालन की पूरी कोशिश करते हैं...।

 ख- इबादत और दृढ़ता

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार इबादत में अपने इमाम को नमून ए अमल बनाते हैं और अपना हर दिन व हर रात अल्लाह के  ज़िक्र में ग़ुज़ारते हैं।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने उन के बारे में फरमाया :

वह रात भर इबादत करते हैं, और दिन में रोज़ा रखते हैं...।

और एक दूसरी हदीस में फरमाते हैं कि

वह घोड़ों पर सवारी की हालत में भी अल्लाह की तस्बीह करते हैं...।

यही अल्लाह का ज़िक्र है जिस से वह फ़ौलादी मर्द बनते हैं, अतः उनकी दृढ़ता और मज़बूती को कोई भी चीज़ खत्म नहीं कर सकती।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) फरमाते हैं कि

वह ऐसे मर्द होंगे कि उनके दिल लोहे के टुक्ड़े जैसे होंगे...।

 ग- शहादत की तमन्ना

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की मअरेफ़त उन के दिलों को अपने इमाम की मुहब्बत से भर देती है, अतः वह जंग के मैदान में इमाम को अपने बीच में लेकर कर अपनी जान को इमाम की ढाल बना देंगे।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार जंग के मैदान में उनके चारों तरफ़ हल्का बनाए होंगें और अपनी जान को उनकी ढाल बना कर अपने इमाम की हिफ़ाज़त करेंगे...।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ही ने दूसरी जगह फरमाया :

वह अल्लाह की राह में शहादत पाने की तमन्ना करेंगे...।

 घ- बहादुरी और दिलेरी

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार अपने मौला की तरह बहादुर और लोहपुरूष होंगे।

हज़रत अली (अ. स.) उनकी तारीफ़ में फरमाते हैं कि

"वह ऐसे शेर हैं जो अपने वन से बाहर निकल आये हैं और अगर चाहें तो पहाड़ों को भी हिला सकते हैं...।

 ङ- सब्र और बुर्दबारी

स्पष्ट है कि विश्वव्यापी ज़ुल्म व सितम से मुक़ाबेला करने और विश्व स्तर पर न्याय व समानता पर आधारित हुकूमत की स्थापना करने में बहुत से मुशकिलों व परेशानियों का सामना होगा और इमाम (अ. स.) के मददगार अपने इमाम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मुशकिलों व परेशानियों को बर्दाश्त करेंगे, लेकिन इखलास व निस्वर्थता के आधार पर  अपने काम को साधारण व बहुत छोटा मानेंगे।

हज़रत अली (अ. स.) ने फरमाया :

वह ऐसा गिरोह है जो अल्लाह की राह में काम करने पर अपनी बुर्दबारी और सब्र की वजह से अल्लाह पर एहसान नहीं जतायेंगे, और अपनी जान को हज़रते हक़ के सामने पेश करने पर अपने ऊपर गर्व नहीं करेंगे और उस चीज़ को महत्व नहीं देंगे...।

 च- एकता

हज़रत अली (अ. स.) हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की एकता के बारे में फरमाते हैं कि

"वह लोग एक दिल और एक सूत्र में बंधे होंगे...।

 उस एकता का कारण यह है कि उनके अन्दर स्वार्थता नहीं पाई जायेगी, वह सही अक़ीदे के साथ एक परचम के नीचे और एक मकसद को पाने के लिए क़ियाम (आन्दोलन) करेंगे, और यह दुशमन के मुक़ाबले में उनकी कामयाबी का एक राज़ है।

 छ- ज़ोह्द व तक़वा

हज़रत अली (अ. स.) इमाम महदी (अ. स.) के यारो मददगारों के बारे में फरमाते हैं कि

वह अपने मददगारों से बैअत लेंगे कि सोना व चाँदी जमा न करें और गेहूँ व जौ का भण्डार इकठ्ठा न करें...

उनके उद्देश्य महान हैं और वह एक महान उद्देश्य के लिए ही क़ियाम (आन्दोलन) करेंगे। दुनिया का माल व धन उनको उस महान मक़सद से पीछे नहीं हटा सकता। अतः जिन लोगों की आँखें दुनिया की चमक दमक देख कर चौंधियां जाती हैं और जिनका दिल धन दौलत देख कर पानी पानी हो जाता है, उन लोगों को इमाम महदी (अ. स.) के ख़ास मददगारों में कोई जगह नहीं मिलेगी।

प्रियः पाठकों ! हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों की जिन सिफ़तों व विशेषताओं का वर्णन हुआ है, इन्हीँ सिफ़तों व विशेषताओं की वजह से उन्हें रिवायतों में आदर व एहतेराम के साथ याद किया गया है और सभी मासूम इमामों (अ. स.) की ज़बानों पर उनकी तारीफ़ व प्रशंसा रही हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी तारीफ़ में फरमाया :

  ”اُوْلَئِکَ ہُمْ خِیَارُ الاٴمَّةِ“

अर्थात वह लोग मेरी उम्मत के सब से अच्छे इंसान हैं।

हज़रत अली (अ. स.) फरमाते हैं कि

فَبِاَبِی وَ اُمّی مِنْ عِدّةٍ قَلِیْلَةٍ اَسْمَائُہُمْ فِی الاٴرْضِ مَجْہُولَة“

मेरे माँ बाप उस छोटे से गिरोह पर कुर्बान जो ज़मीन पर गुमनाम हैं।

अलबत्ता हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगार अपनी योग्यता व सलाहियत के आधार पर विभिन्न दर्जों व श्रेणियों में बटे होंगे। रिवायतों में उल्लेख हुआ है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के उन ख़ास 313 मददगारो (जिन के हाथों में क़ियाम का नक्शा होगा) के अलावा दस हज़ार लोगों की एक फ़ौज भी होगी और उनके अतिरिक्त इन्तेज़ार करने वाले मोमिनों की एक बहुत बड़ी संख्या उनकी मदद के लिए दौड़ पड़ेगी।

 आम तैयारियाँ

मासूम इमामों (अ. स.) की ज़िन्दगी में विभिन्न अवसरों पर यह बात देखने में आई है कि लोग इमाम को मौजूद होने की सूरत में उनसे बेहतर फ़ायदा उठाने के लिए ज़रूरी तैयारी नहीं रखते थे। किसी भी ज़माने में मासूम इमाम (अ. स.) के मौजूद होने की क़दर नहीं की गई और उनकी हिदायत से उचित लाभ नहीं उठाया गया। अतः ख़ुदा वन्दे आलम ने अपनी आखरी हुज्जत को ग़ैबत में भेज दिया, ताकि जब सब लोग उनको क़बूल करने के लिए तैयार हो जायेंगे तो इमाम (अ. स.) को ज़ाहिर कर दिया जायेगा और तब सभी उनसे लाभान्वित होंगे।

इस आधार पर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के लिए तैयार रहना महत्वपूर्ण शर्तों में से एक है, क्योंकि इस तैयारी की वजह से इमाम (अ. स.) का समाज सुधार आन्दोलन अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है।

कुरआने क़रीम में बनी इस्राईल के एक गिरोह का वर्णन हुआ है, उस गिरोह के लोग अपने ज़माने के ज़ालिम व आत्याचारी शासक जालूत के ज़ुल्म व अत्याचारों से बहुत ज़्यादा परेशान हो चुके थे, उन्होंने अपने ज़माने के नबी से निवेदन किया कि आप हमारे लिए एक ताक़तवर सरदार निश्चित कर दीजिये ताकि हम उसके आधीन रह कर जालूत से जंग कर सकें।

इस घटना का वर्णन कुरआने मजीद में इस प्रकार हुआ है :

< اٴَلَمْ تَرَ إِلَی الْمَلَإِ مِنْ بَنِی إِسْرَائِیلَ مِنْ بَعْدِ مُوسَی إِذْ قَالُوا لِنَبِیٍّ لَہُمْ ابْعَثْ لَنَا مَلِکًا نُقَاتِلْ فِی سَبِیلِ اللهِ قَالَ ہَلْ عَسَیْتُمْ إِنْ کُتِبَ عَلَیْکُمْ الْقِتَالُ اٴَلاَّ تُقَاتِلُوا قَالُوا وَمَا لَنَا اٴَلاَّ نُقَاتِلَ فِی سَبِیلِ اللهِ وَقَدْ اٴُخْرِجْنَا مِنْ دِیَارِنَا وَاٴَبْنَائِنَا فَلَمَّا کُتِبَ عَلَیْہِمْ الْقِتَالُ تَوَلَّوْا إِلاَّ قَلِیلًا مِنْہُمْ وَاللهُ عَلِیمٌ بِالظَّالِمِینَ>

क्या तुम ने मूसा के बाद बनी इस्राईल के उस गिरोह को नहीं देखा जिस ने अपने नबी से कहा कि हमारे लिए एक बादशाह निश्चित कर दीजिये ताकि हम अल्लाह की राह में जिहाद करें, नबी ने फरमाया कि मुझे यह अंदेशा है कि तुम पर जिहाद वाजिब हो जायेगा और तुम जिहाद नहीं करोगे, उन लोगों ने कहा कि हम क्यों जिहाद नहीं करेंगे जबकि हमें हमारे घरों बाहर निकाल दिया गया है और बाल बच्चों से अलग कर दिया गया है, इसके बाद जब उन पर जिहाद वाजिब कर दिया गया तो थोड़े से लोगों के अलावा सब अपनी बात से फिर गये और अल्लाह ज़ालमीन को अच्छी तरह जानता है।

जंग के लिए सरदार निश्चित करने का आवेदन एक तरह से इस बात को स्पष्ट करता था कि वह जंग के लिए तैयार हैं, जबकि रास्ते में एक बहुत बड़ी संख्या में लोग सुस्त पड़ गये और बहुत कम लोग जंग मैदान में हाज़िर हुए।

अतः इमाम महदी (अ. स.) का ज़हूर भी उसी वक़्त होगा जब सभी लोगों में समाजिक न्याय, अखलाक़ी व सदाचारिक स्वच्छता और आत्मीय शाँति के प्रति जागरूकता पैदा हो जायेंगी। जब लोग अनयाय और क़बीला परस्ती से थक जायेंगे, जब कमज़ोर लोगों के अधिकार मालदारों व ताक़तवरों के पैरों तले कुचले जायेंगे, जब माल व दौलत सिर्फ़ कुछ ख़ास लोगों के क़ब्ज़े में होगी और कुछ लोगों के पास रात में खाने के लिए रोटी भी न होगी, एक गिरोह अपने लिए महल बनाता हुआ दिखाई देगा और अपने परोग्रामों में बहुत ज़्यादा खर्च करेगा और  उनके लिए ऐसे ऐसे खाने व ऐशो आराम के ऐसे ऐसे सामान उपलब्ध होंगे कि उन्हें देख कर आँखें चका चौंध होंगी, तो ऐसे मौक़े पर न्याय व समानता की प्यास अपने चरम बिन्दु पर पहुँच जायेगी।

जब समाज में विभिन्न बुराईयाँ फैलती जा रही हों और लोग बुरे काम करने में एक दूसरे से आगे बढ़ रहे हों, बल्कि अपने बुरे कामों पर गर्व कर रहे हो, इंसानी और इलाही उसूल से दूर भागा जा रहा हो, पवित्रता व पाकीज़गी के विपरीत कामों को कानूनी शक्ल दी जा रही हो जिसके नतीजे में पारिवारिक व्यवस्था चर मरा रही हो, लावारिस बच्चों को समाज के हवाले किया जा रहा हो, तो इस अवसर पर ऐसे रहबर के ज़हूर की अभिलाषा बहुत ज़्यादा की जायेगी जिसकी हुकूमत अखलाकी व आत्मीय सुख व शाँति का पैगाम ले कर आये। जिस वक़्त इंसान के पास मोज मस्ती के समस्त भौतिक साधन मौजूद हों लेकिन वह अपनी ज़िन्दगी से खुश न हो और उसे किसी ऐसी दुनिया की तलाश हो जो आध्यात्म से भरी हो तो उस मौक़े पर इंसान को उस महान इमाम की ज़रूरत का एहसास होगा।

स्पष्ट है कि इमाम (अ. स.) के हाज़िर होने को समझने का शौक़ उस वक़्त अपनी चरम सीमा पर होगा जब आदमी अपने व्यक्तिगत तजर्बे से इंसानी बुद्धिमत्ता के विभिन्न कारनामों को देख कर यह समझ जायेगा कि दुनिया को ज़ुलम व सितम और बुराईयों से छुटकारा दिलाने वाला ज़मीन पर अल्लाह के खलीफ़ा हज़रत इमाम महदी (अ. स.) ही हैं और इंसानों के लिए पाक व साफ और बेहतरीन ज़िन्दगी प्रदान करने वाला विधान सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह का क़ानून हैं। अतः उस मौक़े पर इंसान अपने पूरे वजूद से इमाम (अ. स.) की ज़रुरत का एहसास करेगा और इस एहसास की वजह से उनके ज़हूर के लिए रास्ता हमवार करने की कोशिश करते हुए उस राह में मौजूद रुकावटों को दूर करेगा। यह उसी वक़्त होगा जब फरज और ज़हूर का वक़्त पहुँच जायेगा।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) आख़िरी ज़माने अर्थात ज़हूर से पहले के ज़माने के बारे में फरमाते हैं कि

एक ज़माना ऐसा आयेगा जिसमें मोमिन को पनाह लेने की जगह नहीं मिलेगी ताकि ज़ुल्म व सितम और बर्बादी से छुटकारा मिल सके, अतः उस वक़्त ख़ुदा वन्दे आलम मेरी नस्ल से एक इंसान को भेजेगा...

 ज़हूर की निशानियाँ

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के विश्वव्यापी इंकेलाब और क़ियाम व आन्दोलन के लिए कुछ निशानियों का वर्णन हुआ हैं और उन निशानियों की पहचान बहुत से सकारात्मक प्रभाव रखती हैं। चूँकि यह महदी ए आले मुहम्मद स. के ज़हूर कि निशानियाँ है अतः इनमें से हर एक के प्रकट होने से इन्तेज़ार करने वालों के दिलों में उम्मीद की किरणों में वृद्धी होगी और दुश्मनों व भटके हुए लोगों के लिए ख़तरे की घन्टी बजेगी ताकि वह बुराईयों से दूर हो जायें। इसी तरह इन तरह निशानियों के ज़ाहिर होने से इन्तेज़ार करने वालों में अपने अन्दर इमाम (अ. स.) के साथ रहने और उनकी मदद करने की क्षमता प्राप्त करने का शौक पैदा होगा। इस के अलावा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का परिचय इंसान को भविष्य के लिए योजना बनाने में सहायक सिद्ध होगा  और यह निशानियाँ महदवियत के सच्चे और झूटे दावेदारों को परखने की सबसे अच्छी कसौटी हैं। अतः अगर कोई महदवियत का दावा करे और उसके क़ियाम (आन्दोलन) में यह ख़ास निशानियाँ न पाई जाती हों तो उसके झूठे होने का आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

हमारे मासूम इमामों (अ. स.) की रिवायतों में हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर की बहुत सी निशानियों का वर्णन हुआ हैं. उनमें से कुछ साधारण व प्रकृतिक हैं और कुछ असाधारण व चमत्कारिक हैं।

हम इन निशानियों में से पहले उन स्पष्ट और उच्च निशानियों का उल्लेख करते हैं जिनका वर्णन विश्वसनीय किताबों और विश्वसनीय रिवायतों में हुआ हैं और आखिर में कुछ अन्य निशानियों का संक्षेप में वर्णन करेंगे।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने एक रिवायत के अन्तर्गत फरमाया :

क़ाइम (अ. स.) के ज़हूर की पाँच निशानियां है,  सुफ़यानी का ख़रुज, यमनी का क़ियाम, आसमानी आवाज़, नफ्से ज़किय्या का क़तल और खस्फे बैदा... ...  ।

प्रयः पाठकों ! अब हम उपरोक्त वर्णित इन पाँचो निशानियों के बारे में व्याख्या करते हैं इनका वर्णन अन्य बहुत रिवायतों में भी हुआ हैं, लेकिन इन घटनाओं से संबंधित समस्त व्याख्या हमारे लिए यक़ीनी नहीं है।

 

सुफ़यानी का ख़रुज (आक्रमण)

सुफ़यानी का आक्रमण उन निशानियों में से एक है जिनका वर्णन अनेकों रिवायतों में हुआ है। सुफ़यानी अबू सुफ़यान की नस्ल से होगा और ज़हूर से कुछ समय पहले शाम नामक स्थान से आक्रमण करेगा। वह ज़ालिम व अत्याचारी होगा और क़त्ल व ग़ारत में किसी तरह की कोई पर्वा नहीं करेगा। वह अपने दुशमनों से बहुत ही बुरा व्यवहार करेगा।

हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) उसके बारे में फरमाते हैं कि

“अगर तुमने सुफ]यानी को देख लिया तो ऐसा है जैसे तुमने सब से नीच और बुरे इंसान को देख लिया हो...”

उसका आक्रमण रजब के महीने से शुरु होगा, वह शाम और उसके आस पास के इलाकों पर क़ब्ज़ा करने के बाद इराक़ पर हमला करेगा और वहाँ बड़े पैमाने पर कत्ल व ग़ारत करेगा।

कुछ रिवायतों में वर्णन मिलता है कि उसके आक्रमण और उसके क़त्ल होने तक की मुद्दत 15 महीने होगी...।

 खस्फ़े बैदा

खस्फ़ का अर्थ फटना व गिरना हैं और बैदा मक्के व मदीने के बीच एक जगह का नाम है।

खस्फ़ बैदा से यह अभिप्रायः है कि सुफ़यानी इमाम महदी (अ. स.) से मुक़ाबले के लिए एक फ़ौज को मक्के की तरफ़ भेजेगा और जब उसकी यह फ़ौज बैदा नामक स्थान  पर पहुँचेगी तो चमत्कारिक रूप से ज़मीन फट जायेगी और वह फ़ौज वहीँ ज़मीन में धँस जायेगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने इस बारे में फरमाया कि

“सुफ़यानी की फ़ौज के सरदार को खबर मिलेगी कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) मक्के की तरफ़ रवाना हो चुके हैं अतः वह उनके पीछे एक फ़ौज रवाना करेगा, लेकिन वह फ़ौज उनको नहीं पा सकेगी और जब सुफ़यानी की फ़ौज बैदा नामक ज़मीन पर पहुंचेगी तो एक आसमानी आवाज़ आयेगी कि ऐ बैदा की ज़मीन इनको भस्म कर दे। यह सुनने के बाद वह ज़मीन सुफ़यानी की फौज को अपने अन्दर खींच लेगी...।

 यमनी का क़ियाम  (आन्दोलन)

यमन नामक जगह का एक सरदार का आन्दोलन इमाम (अ. स.) के ज़हूर की निशानी है। यह निशानी इमाम के ज़हूर से कुछ ही दिनों पहले ज़ाहिर होगी। वह एक ऐसा नेक और मोमिन इंसान होगा, जो बुराइयों के खिलाफ़ आन्दोलन चलायेगा और अपनी पूरी ताक़त से बुराइयों व अश्लीलता का मुक़ाबला करेगा, परन्तु उसके आन्दोलन का पूर्ण विवरण हमारे लिए स्पष्ट नहीं है।

इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) उस बारे में फरमाते हैं कि

“हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के क़ियाम से पहले बुलन्द होने वाले झंड़ो के बीच यमनी का झंडा हिदायत करने वालों में सब से बेहतर होगा, क्यों कि वह लोगों को तुम्हारे मौला हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की तरफ़ बुलायेगा...।”

 आसमान से आवाज़ का आना

इमाम (अ. स.) के ज़हूर की निशानियों में से एक निशानी आसमान से चीख़ की आवाज़ आना है। कुछ रिवायत के आधार पर यह आसमानी आवाज़ जनाबे जिब्रइल की आवाज़ होगी, जो रमज़ान के महीने में सुनाई देगी...।

और चूँकि पूर्ण समाज सुधारक का इंकेलाब एक विश्वव्यापी इंकेलाब होगा और सभी को उसका इंतेज़ार होगा, अतः दुनिया भर के लोगों को उसी आसमानी आवाज़ के ज़रिये खबर दी जायेगी।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) ने फरमाया :

“क़ाइम आले मुहम्मद (अ. स.) का ज़हूर उस वक़्त तक नहीं होगा जब तक आसमान से आवाज़ न दी जाये और उस आवाज़ को पूरब व पश्चिम के सभी निवासी सुनेंगे...।”

यह आवाज़ जिस तरह मोमिनों के लिए खुशी का पैग़ाम बनेगी उसी तरह बुरे लोगों के लिए ख़तरे की घन्टी होगी ताकि वह अपने बुरे कामों से दूर हो कर हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के मददगारों में शामिल हो जायें।

 उस आवाज़ की व्याख्या का विभिन्न रिवायतों में वर्णन हुआ हैं, इसके बारे में हज़रत इमाम सादिक (अ. स.) ने फरमाया :

आसमान से आवाज़ देने वाला हज़रत इमाम महदी (अ. स.) को उनके और उनके पिता के नाम के साथ पुकारेगा...।

 नफ़्से ज़किया का क़त्ल

नफ्से ज़किया का अर्थ ऐसा इंसान हैं जो कमाल के बुलन्द दर्जे पर पहुँचा हुआ हो या ऐसा पाक, पाक़ीज़ा व बेगुनाह इंसान जिसने किसी को क़त्ल न किया हो। नफ्से ज़किय्या के क़त्ल से यह अभिप्रायः है कि हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर से कुछ पहले एक उच्च और बेगुनाह इंसान को इमाम (अ. स.) के मुखालिफ़ो के द्वारा क़त्ल किया जायेगा।

कुछ रिवायतों के आधार पर यह घटना इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर से 15 दिन पहले घटित होगी।

इस बारे में हज़रत इमाम सादिक़ (अ. स.) ने फरमाया :

 क़ाइमे आले मुहम्मद (स.) के ज़हूर और नफ्से ज़किय्या के क़त्ल में सिर्फ़ 15 दिन का फ़ासला होगा...। 

प्रियः पाठकों ! उपरोक्त वर्णित निशानियों के अलावा भी कुछ अन्य निशानियों का वर्णन हुआ हैं उनमें से कुछ ख़ास निशानियाँ निम्न लिखित है :

 दज्जाल का ख़रुज, दज्जाल एक ऐसा धोकेबाज़ और मक्कार आदमी होगा जिसने बहुत से लोगों को गुमराह किया होगा,  रमज़ान के मुबारक़ महीने में सूरज ग्रहण होना, चाँद ग्रहण होना, उपद्रवों का फैलना और खुरासानी का आन्दोलन।

उल्लेखनीय है कि इन निशानियों का सविस्तार वर्णन बड़ी किताबों में मौजूद हैं।

 स्पेन के विदेश मंत्री, जोसे मैनुएल अलबार्स ने हाल की घोषणा में इज़राईल को चेतावनी दी कि कोई भी कार्रवाई जो "सुमूद फलुलीता" जहाज के खिलाफ होगी, जो ग़ज़्ज़ा के लोगों के लिए मानवीय सहायता लेकर जा रहा है, उसका गंभीर जवाब दिया जाएगा।

स्पेन के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि ग़ज़्ज़ा के लोगों के लिए मानवीय सहायता लेकर जाने वाले जहाज को किसी भी तरह की धमकी या हमला कड़ी कार्रवाई और जवाबी कदमों को जन्म देगा।

उन्होंने इस जहाज के शांतिपूर्ण और मानवीय मिशन पर जोर दिया और कहा कि मैड्रिड इस जहाज पर मौजूद सभी स्पेनिश नागरिकों की कांसुलर सुरक्षा कर रहा है। जहाज के यात्रियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई विश्व के खुले समुद्र में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन होगी और संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय नियमों का भी। इससे सख्ती से निपटा जाएगा।

स्पेन के विदेश मंत्री ने ट्यूनिशिया के देश में अपने प्रतिनिधि को भी एसाम किया ताकि वह ड्रोन हमले की जांच कर सके, जो ग़ज़्ज़ा को मानवीय मदद पहुंचाने वाले जहाज के बेड़े पर हुआ था।

इज़राईली पर यमन द्वारा किए गए सफल ड्रोन हमलों पर ज़ायोनी कब्ज़े और अमेरिकी दमन के खिलाफ लड़ रहे फिलिस्तीनी प्रतिरोध ने बधाई दी है।

इज़राईली कब्ज़े और अमेरिकी दमन के खिलाफ लड़ रहे फिलिस्तीनी प्रतिरोध ने कब्जाए में लिए गए इलाकों में यमन के सफल ड्रोन हमलों पर बधाई दी है ध्यान रहे कि इन हमलों में ज़ायोनी कब्ज़े को भारी जानी नुकसान पहुंचा है।हिब्रू स्रोतों के अनुसार, कब्जा में लिए गए इलाकों पर यमनी ड्रोन हमले में घायलों की संख्या पचास हो गई है।

इन हमलों के बाद फिलिस्तीनी प्रतिरोध ने इस बात पर जोर दिया है कि यमनियों ने इज़राईली के घमंड और अहंकार को नष्ट कर दिया है और इजरायल की रक्षा, सैन्य और खुफिया प्रणालियों की नाजुकता और कमजोरी को उजागर किया है बयान में कहा गया है कि वे अपने मुजाहिद भाइयों और यमनी अधिकारियों को बधाई देते हैं।

फिलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलनों ने आगे कहा है कि ऐलात में यमनियों का बहादुरी भरा ऑपरेशन इस बात का सबूत है कि यमनी सशस्त्र बल रचनात्मक क्षमताओं, कौशल, सटीकता और विकास के उस स्तर पर पहुंच गए हैं जो उन्हें ज़ायोनियों के अहंकार और झूठे घमंड को चकनाचूर करने और नष्ट करने में सक्षम बनाता है।

बयान में आगे कहा गया कि यमन में धन्य ऑपरेशन, ईमानदारी से काम करने का संकल्प और यमनी सेना व जनता का दृढ़ और अटल संकल्प इस्लामी उम्माह की आवाज और प्रतिरोध का वास्तविक नमूना है।

फिलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलनों ने जोर देकर कहा है कि यमनियों का संकल्प और साहस साबित करता है कि यमनी लोग अजेय हैं और वे जो बलिदान और भारी कीमत चुका रहे हैं वह वास्तव में दुश्मनों को भारी नुकसान पहुंचाने का कारण बनते हैं।

बयान के अनुसार, ऑपरेशन ऐलात ने इजरायली सरकार के वायु रक्षा और पूरे सैन्य व खुफिया तंत्र की नाजुकता और कमजोरी को उजागर किया और यह दिखाया कि नेतन्याहू और उनकी नरसंहार करने वाली ज़ायोनी कैबिनेट में मौजूद अपराधी समूह ज़ायोनी जनता को धोखा दे रहे हैं।

बयान के अंत में जोर देकर कहा गया है कि हम जिहाद और प्रतिरोध की धरती यमन में अपने भाइयों और यमन की बहादुर सेना, अंसारूल्लाह आंदोलन और यमन की बहादुर नेतृत्व को सलाम करते हैं जो फिलिस्तीनी जनता और उनके प्रतिरोध के वास्तविक समर्थक हैं।

यह बयान यमनी सशस्त्र बलों के प्रवक्ता याहया सरीअ द्वारा पिछली रात एक बयान जारी करने के बाद सामने आया है, जिसमें घोषणा की गई थी कि यमनी सशस्त्र बलों ने दो ड्रोन से कब्जाए गए बंदरगाह में दो लक्ष्यों को सफलतापूर्वक निशाना बनाया है।ध्यान रहे कि पिछले 24 घंटों में यह यमन का दूसरा ऑपरेशन था।

यह बात गौरतलब है कि इजरायली मीडिया ने यमनी ड्रोन का मुकाबला करने में कई रक्षा प्रणालियों की विफलता को स्वीकार करते हुए इस विफलता के कारणों के बारे में कब्ज़े की सरकार की वायु सेना की जांच की सूचना दी।

आयरन डोम प्रणाली को रोकने के लिए दागे गए दो मिसाइल यमनी ड्रोन को निशाना बनाने में विफल रहे और ड्रोन कब्जाए में लिए गए इलाकों पर जा गिरा, जबकि कब्ज़े वाले हमेशा अपने हताहतों के आंकड़े छुपाते और सेंसर कर रहे हैं।हिब्रू स्रोतों ने सूचना दी है कि कब्जाए में लिए गए इलाकों पर यमनी ड्रोन हमले में घायलों की संख्या पचास हो गई है।

हिब्रू अखबार जेरूसलम पोस्ट ने इस संबंध में कहा है कि यमनियों को इजरायल की कमजोरियों का पता चल चुका है और उनका प्रभाव लगातार, विनाशकारी और अंततः घातक है।

ज़ायोनी अखबार ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि यमनी ड्रोन की कीमत मिसाइलों से कम है, लेकिन उसने काफी नुकसान पहुंचाया है, लंबी हो रही जंग में खतरे विविध हो चुके हैं। यमनी इजरायल की रक्षा प्रणाली में खाली जगह को पार करने में सफल हो गए हैं।