رضوی

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 हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन सय्यद सईद हुसैनी ने क़ुरआन को मानवता के मार्गदर्शन के लिए प्रकाश बताते हुए, अनुवाद सहित क़ुरआन के पाठ पर ज़ोर दिया और कहा: क़ुरआन की आयतें मनुष्य को अंधकार से बचाती हैं और उसे प्रकाश की ओर ले जाती हैं।

काशान के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन सय्यद सईद हुसैनी ने अरान और बिदगुल शहर में मदरसा हज़रत ज़ैनब (स) के छात्रों की शोक सभा को संबोधित करते हुए कहा: पवित्र क़ुरआन हज़रत इब्राहीम (अ) को मुसलमानों के लिए एक आदर्श मानता है, जिन्होंने मूर्तिपूजकों से इनकार किया और कहा: "मुझे तुमसे घृणा है।" दरअसल, हज़रत इब्राहीम (अ) का यह इन्कार आज के दौर में "इज़राइल मुर्दाबाद" और "अमेरिका मुर्दाबाद" जैसे नारों के रूप में झलकता है।

उन्होंने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया कि ज़ियारत ए आशूरा में "लानत" शब्द बार-बार क्यों दोहराया जाता है? और क्या सिर्फ़ "इमाम हुसैन (अ) पर सलाम हो" कहना ही काफ़ी नहीं है? उन्होंने कहा: क़ुरान ने अल्लाह से नज़दीकी हासिल करने पर ख़ास ज़ोर दिया है और यह नज़दीकी दो अहम उसूलों से हासिल होती है: तबर्रा (अल्लाह के दुश्मनों से नफ़रत) और तवल्ला (अल्लाह के औलिया से प्यार); ये दोनों आपस में जुड़े हुए और अविभाज्य हैं।

काशान में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि ने आगे कहा: पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं के अनुसार, यदि किसी सभा या समाज में अल्लाह की आयतों, जिनके उदाहरण धार्मिक मूल्य, मासूम इमाम (अ), वली ए फ़क़ीह इमाम खुमैनी (र), क्रांति के सर्वोच्च नेता, शहीदों और बलिदानियो का मज़ाक उड़ाया जाए और हम चुप रहें और अपनी असहमति व्यक्त न करें, तो हमें भी उनके समान समझा जाएगा।

उन्होंने आगे कहा: इसी कारण हम अमेरिका और इज़राइल के विरुद्ध नारे लगाते हैं ताकि हम पाखंडी न बनें, क्योंकि यदि हम पाखंडी बन गए, तो अल्लाह पाखंडियों और काफ़िरों को नर्क में एक जगह इकट्ठा कर देगा।

 

 हालिया युद्ध में इस्लामी गणराज्य ईरान के विरुद्ध ज़ायोनी आक्रमण के संदर्भ में, इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने विशेष रूप से विश्वासियों को सूर ए फ़त्ह, दुआ ए तवस्सुल और सहीफ़ा सज्जादिया की 14वीं दुआ का पाठ करने की सलाह दी। इस कदम ने प्रतिरोध मोर्चे को एक नया जोश दिया।

हालिया युद्ध में इस्लामी गणराज्य ईरान के विरुद्ध ज़ायोनी आक्रमण के संदर्भ में, इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने विशेष रूप से विश्वासियों को सूर ए फ़त्ह, दुआ ए तवस्सुल और सहीफ़ा सज्जादिया की 14वीं दुआ का पाठ करने की सलाह दी। इस कदम ने प्रतिरोध मोर्चे को एक नया जोश दिया।

इस दुआ को चुनने की बुद्धिमत्ता पर प्रकाश डालते हुए, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुहम्मद रज़ा फ़ोआदियान ने कहा कि सहीफ़ा सज्जादिया न केवल दुआओं का एक संग्रह है, बल्कि एक ऐसा स्कूल भी है जो "जीवन कैसे जिया जाए", यानी उत्पीड़न के दौर में जीने का सही तरीका सिखाता है। उन्होंने कहा कि चौदहवीं दुआ हमें सिखाती है कि उत्पीड़ित होना गर्व का विषय है, लेकिन उत्पीड़न के विरुद्ध खड़ा होना और चेतना जागृत करना उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि अगर क्रांति के नेता को सिर्फ़ दुश्मन को खदेड़ने की दुआ की सिफ़ारिश करनी होती, तो वे दुआ संख्या 49 का निर्देश देते, लेकिन चौबीसवीं दुआ एक व्यापक आध्यात्मिक घोषणापत्र है जो मुस्लिम उम्माह के बौद्धिक और राजनीतिक विकास का एक माध्यम है।

फ़ोऔदियान ने इस दुआ के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह अल्लाह की ताक़त, अत्याचारी के अहंकार और उत्पीड़ितों की पुकार को इस तरह प्रस्तुत करती है कि मनुष्य को केवल ईश्वर पर भरोसा करना चाहिए और विश्व शक्तियों या संगठनों से निराश होना चाहिए, क्योंकि वे अक्सर उत्पीड़न का समर्थन करते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि इमाम सज्जाद (अ) इस दुआ में स्पष्ट रूप से फरमाते हैं: "اللَّهُمَّ فَكَمَا كَرَّهْتَ إِلَيَّ أَنْ أُظْلَمَ فَقِنِي مِنْ أَنْ أَظْلِمَ अल्लाहुम्मा फ़कमा कर्रहता एलय्या अन उज़लमा फ़क़ेनी मिन अन अज़लेमा "ऐ अल्लाह! जैसे तूने मुझे अत्याचार से रोका है, वैसे ही मुझे अत्याचारी बनने से बचा।"

फ़आदियान के अनुसार, यह दुआ एक आध्यात्मिक हथियार है जो न केवल ज़ायोनी उत्पीड़न के विरुद्ध हृदय को मज़बूत करता है, बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता और बौद्धिक जागृति का प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।

उन्होंने यह कहते हुए समापन किया कि 14वीं दुआ एक राजनीतिक और सामाजिक घोषणापत्र है जिसे इमाम सज्जाद (अ) ने हमें दुआओं और प्रार्थनाओं के रूप में दिया है, ताकि हम यह समझ सकें कि उत्पीड़न के समय में आशा, जागृति और स्वतंत्रता का आधार क्या है।

वास्तविक सुधार का अर्थ है: भ्रष्टाचार, नवाचारों और उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष, और इसका उद्देश्य इलाही और धार्मिक रूप से विस्मृत सुन्नतों को पुनर्जीवित करना और समाज को प्रगति और सफलता के पथ पर अग्रसर करना है। यही वह मार्ग है जिसकी शुरुआत इमाम हुसैन (अ) ने आशूरा आंदोलन के माध्यम से की और इसके लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इसलिए, सुधार कोई नारा या खोखला दावा नहीं है, बल्कि यह इमाम हुसैन (अ) के नेक और उच्च लक्ष्यों की ओर एक व्यावहारिक कदम है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन जवाद मुहद्दी ने "दर्स-ए-आशूरा" नामक एक विशेष लेख में इमाम हुसैन (अ) आंदोलन के सुधारवादी पहलू पर प्रकाश डाला है, जिसे विचार और ज्ञान के लोगों के लिए दैनिक आधार पर प्रस्तुत किया जा रहा है।

अस सलामो अलैका या अबा अब्दिल्लाहिल हुसैन (अ)

इमाम हुसैन (अ) सुधारवादियों के नेता और अत्याचारियों के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों के नेता हैं।

सुधारवाद का सही अर्थ यह है कि व्यक्ति समाज में पाप, बुराई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठाए और उन्हें कम करने का प्रयास करे।

इमाम हुसैन के आशूरा आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नवाचारों, विकृतियों, उत्पीड़न, दुराचार और भ्रष्टाचार को समाप्त करना था, जिसके लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी और हमेशा के लिए अमर हो गए।

उनका सुधारवादी और उत्पीड़न-विरोधी आंदोलन आज भी जीवित है और औपनिवेशिक शक्तियों के विरुद्ध दुनिया के उत्पीड़ित लोगों के संघर्ष और स्वतंत्रता के उनके प्रयासों में परिलक्षित होता है।

इमाम हुसैन (अ) ने कहा: "मैं तुम्हें अल्लाह की किताब और अपने नाना, अल्लाह के रसूल (स) की सुन्नत की ओर बुलाता हूँ, ताकि जो सुन्नतें भुला दी गई हैं, उन्हें फिर से ज़िंदा किया जा सके। "فَإِن تَسمَعوا قَولي أَهدِكُم سَبيلَ الرَّشاد" फ़इन तस्मऊ क़ौली अहदेकुम सबीलर रशाद अगर तुम मेरी बात मानोगे, तो मैं तुम्हें समृद्धि और सफलता का मार्ग दिखाऊँगा।"

इसलिए, सुधारवाद केवल एक नारा या दावा नहीं है, बल्कि इसका अर्थ है इमाम हुसैन (अ) के मार्ग पर चलना और उनके ऊँचे लक्ष्यों को अपने जीवन का लक्ष्य बनाना।

जाने-माने इस्लामी विचारक और इमाम खुमैनी शैक्षिक एवं शोध संस्थान के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली अबू-तुराबी ने कहा कि इस्लामी समाज में हिजाब सिर्फ़ एक व्यक्तिगत मुद्दा नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक और नैतिक मुद्दा है, जिसके बिना समाज में अनैतिकता का डर बना रहता है।

जाने-माने इस्लामी विचारक और इमाम खुमैनी शैक्षिक एवं शोध संस्थान के सदस्य हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली अबू-तुराबी ने कहा कि इस्लामी समाज में हिजाब सिर्फ़ एक व्यक्तिगत मुद्दा नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक और नैतिक मुद्दा है, जिसके बिना समाज में अनैतिकता का डर बना रहता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि हिजाब सिर्फ़ एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रथा है जो समाज में नैतिक संतुलन और पवित्रता बनाए रखने में मदद करती है। उनके अनुसार, दुनिया के किसी भी समाज में, जब तक कानून, निगरानी और धार्मिक प्रशिक्षण न हो, किसी भी अच्छी आदत को दिल से अपनाना मुश्किल हो जाता है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह यातायात, शिक्षा या व्यवसाय के लिए कानून होते हैं, उसी तरह नैतिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए भी कानून ज़रूरी हैं। अगर हिजाब को सिर्फ़ व्यक्तिगत पसंद मानकर उसे कानून से मुक्त रखा गया, तो समय के साथ हिजाब का अभाव, आत्म-प्रचार और फ़ैशनपरस्ती आम हो जाएगी, जिससे नैतिक पतन होगा।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अबू तुराबी ने कहा कि नई पीढ़ी को हिजाब के महत्व और उसकी बुद्धिमत्ता के बारे में बताना, धार्मिक प्रशिक्षण देना और अच्छे माहौल में पालन-पोषण करना बेहद ज़रूरी है। लेकिन यह सब तब और भी प्रभावी होता है जब कानून भी इसका समर्थन करता है।

उन्होंने चेतावनी दी कि आज, विदेशों से सांस्कृतिक प्रभाव, सोशल मीडिया पर फैलती नग्नता और आंतरिक मानसिक दबाव, ये सभी हिजाब जैसी महत्वपूर्ण प्रथा को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर हम समय रहते प्रभावी कानून नहीं बनाते हैं, तो इस्लामी मूल्यों को नुकसान पहुँचेगा और युवा पीढ़ी नैतिक संकट से जूझेगी।

अंत में, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सभी इस्लामी देशों के विद्वानों, बुद्धिजीवियों और नीति निर्माताओं को हिजाब को एक सार्वभौमिक इस्लामी कर्तव्य मानना चाहिए और इसकी रक्षा करनी चाहिए, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ एक गरिमापूर्ण, प्रतिष्ठित और सभ्य समाज में रह सकें।

 

 

शहीद फ़ाउंडेशन की सामाजिक मामलों की सहायक श्रीमति फ़रीदा ने एफ़ाफ़ और हिजाब विषय पर आयोजित एक सत्र में हिजाब पर शहीदों की वसीयत का ज़िक्र किया और कहा कि शहीदों की वसीयत में हिजाब और एफ़ाफ़ का सबसे ज़्यादा ज़िक्र होता है, इसलिए हिजाब पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

शहीद फ़ाउंडेशन की सामाजिक मामलों की सहायक श्रीमति फ़रीदा ने एफ़ाफ़ और हिजाब विषय पर आयोजित एक सत्र में हिजाब पर शहीदों की वसीयत का ज़िक्र किया और कहा कि शहीदों की वसीयत में हिजाब और एफ़ाफ़ का सबसे ज़्यादा ज़िक्र होता है, इसलिए हिजाब पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

शहीद फाउंडेशन के सामाजिक मामलों के सहायक ने कहा कि एफ़ाफ़ और हिजाब केवल एक बाहरी मुद्दा नहीं है, बल्कि आंतरिक आस्था की अभिव्यक्ति है। शहीदों की वसीयतों में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक एफ़ाफ़ और हिजाब का मुद्दा है।

ईरान, मिस्र और चीन की प्राचीन सभ्यताओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि एफ़ाफ़ और पाकदामनी इन सभी सभ्यताओं में महिलाओं की पहचान का हिस्सा थी। ये मूल्य इस्लाम में अपने चरम पर पहुँचे। कुरान की कई आयतें, विशेष रूप से सूर ए नूर और सूर ए अहज़ाब, पुरुषों और महिलाओं के लिए एफ़ाफ़ और हिजाब के महत्व पर ज़ोर देती हैं।

श्रीमति फ़रीदा अवलाद क़ुबाद ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) को एक आदर्श मुस्लिम महिला बताया और कहा कि पवित्र पैगंबर पूर्ण हिजाब के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी सक्रिय थे।

उन्होंने आगे कहा कि अन्य आयतों और रिवायतो से तर्क करके, हम युवाओं के मानसिक अंतराल को भर सकते हैं और जिहाद-ए-तबीन के माध्यम से तथ्यों को स्पष्ट कर सकते हैं।

इस्लामी समाज में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा कि एफ़ाफ़ और हिजाब न केवल परिवार की मजबूती का कारण हैं, बल्कि विश्वास और अर्थ का निर्माण भी करते हैं।

हिजाब को बढ़ावा देने में मीडिया की भूमिका पर ज़ोर देते हुए, उन्होंने कहा कि मीडिया इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हमें एफ़ाफ़ और हिजाब की शिक्षा और व्याख्या की समीक्षा करनी चाहिए, ताकि हम युवाओं के लिए इस मुद्दे को स्पष्ट कर सकें। एक महिला की मानवीय पहचान तर्क और एफ़ाफ़ में निहित है; शहीदों की माताएँ और पत्नियाँ इस संबंध में बेहतरीन उदाहरण हैं।

उन्होंने यह कहते हुए समापन किया कि हम शहीदों के खून के वारिस हैं और हमें इस महान विश्वास की रक्षा करनी चाहिए और एफ़ाफ़ और हिजाब इस विरासत का हिस्सा हैं।

इस सत्र के अंत में, शहीद फाउंडेशन में एफ़ाफ़ और हिजाब के क्षेत्र में सक्रिय कार्यकर्ताओं को उनकी सेवाओं के लिए श्रद्धांजलि दी गई।

 

इज़रायली मीडिया ने पुष्टि की है कि, ग़ाज़ा पट्टी के पूर्वी इलाके में इज़रायली सेना पर एक बड़ा हमला हुआ है इस हमले में कई इज़रायली सैनिक घायल हुए हैं।

इज़रायली मीडिया ने पुष्टि की है कि, ग़ाज़ा पट्टी के पूर्वी इलाके में इज़रायली सेना पर एक बड़ा हमला हुआ है, जिसे “सख़्त और गंभीर सुरक्षा घटना” बताया जा रहा है। इस हमले में कई इज़रायली सैनिक घायल हुए हैं।

एक रिपोर्टों के अनुसार, हमला उस समय हुआ जब इज़रायली सैनिक ग़ाज़ा के पूर्वी इलाके में प्रतिरोधी ताक़तों के साथ आमने-सामने की झड़प में शामिल थे इस दौरान हमास से जुड़े लड़ाकों ने भारी हथियारों से हमला किया, जिसके चलते कई सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गए।

स्थानीय सूत्रों ने बताया कि इज़रायली सेना ने हेलीकॉप्टरों के ज़रिए घायलों को तुरंत इलाज के लिए बाहर निकाला और उन्हें सैन्य अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। इस बीच, कुछ हिब्रू मीडिया संस्थानों ने दावा किया है कि ग़ाज़ा में दो अलग-अलग गंभीर घटनाएं हुई हैं।

पहली घटना: इसमें दो इज़रायली सैनिक टैंक-रोधी रॉकेट (Anti-Tank Missile) की चपेट में आकर मारे गए।दूसरी घटना: इसके बारे में अब तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन इसे भी “सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत गंभीर” बताया गया है।

इसके अलावा, कतायब अल-क़स्साम ने बयान जारी कर कहा है कि उन्होंने दक्षिणी ग़ाज़ा के खान यूनुस के उत्तरी इलाके में एक इज़रायली बख़्तरबंद वाहन (Namer APC) को “यासीन-105” नामक रॉकेट से निशाना बनाया।

इस घटनाक्रम को ग़ाज़ा में जारी युद्ध का एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है, क्योंकि इज़रायली सेना को इस प्रकार की सीधी और असरदार जवाबी कार्रवाई से भारी नुकसान पहुंचा है। यह हमला दर्शाता है कि ग़ाज़ा के प्रतिरोधी समूह अब भी पूरी ताक़त और संगठित रणनीति के साथ मैदान में डटे हुए हैं।

 

सिपाह ए पासदारान इंकेलाब के एक उच्च कमांडर जनरल ऐज़्दी ने संकल्प जताया है कि शहीद तहरानी मुकद्दम और हाजीजादेह के मार्ग पर चलते हुए ईरान अपनी रक्षा क्षमताओं को और विस्तार देगा।

इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के सिपाह ए पासदारान-ए-इंकेलाब (IRGC) के एक वरिष्ठ कमांडर ने कहा है कि ईरान के लिए मिसाइल शक्ति को विकसित करना अनिवार्य है और यह पूरी शक्ति से जारी रहेगा। 

मेजर जनरल मोस्तफा एजादी ने कहा कि ईरान के मिसाइल उद्योग को और विकसित किया जाना चाहिए, जो पवित्र रक्षा ईरान-इराक युद्ध में बलिदान होने वाले शहीदों के खून और मुजाहिदीन के निरंतर संघर्ष का परिणाम है। 

उन्होंने ईरानी सशस्त्र बलों की मिसाइल शक्ति को रक्षात्मक क्षमता बताते हुए कहा कि यह ताकत ईरानी राष्ट्र की सुरक्षा के लिए है।

शहीद तहरानी मुकद्दम की शहादत के बाद, इस उद्योग को पहले से अधिक मजबूती मिली है। शहीद जनरल अमीर अली हाजीजादेह की शहादत के बाद भी यह मार्ग और तेज गति से जारी रहेगा।

 

युद्ध के दबाव में ग़ासिब ज़ायोनी सैनिकों की आत्महत्याएँ लगातार बढ़ रही हैं, 3 और सैनिकों ने अपनी नापाक ज़िंदगी खत्म कर ली है।

युद्ध के दबाव में ग़ासिब ज़ायोनी सैनिकों की आत्महत्याएँ लगातार बढ़ रही हैं, 3 और सैनिकों ने अपनी नापाक ज़िंदगी खत्म कर ली है।

ग़ासिब ज़ायोनी मीडिया के अनुसार, ज़ायोनी सेना के तीन सदस्यों ने मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण पिछले 10 दिनों में आत्महत्या कर ली है, जिसके परिणामस्वरूप 7 अक्टूबर, 2023 को गाज़ा युद्ध में भाग लेने वाले ज़ायोनी सैनिकों की आत्महत्याओं की संख्या 44 तक पहुँच गई है।

ज़ायोनी आर्मी रेडियो ने बताया कि "नहल ब्रिगेड" के एक सैनिक ने उत्तरी फ़िलिस्तीन में स्थित गोलान के एक सैन्य शिविर में आत्महत्या कर ली।

हिब्रू अखबार यदूऊत आहारीनूत के अनुसार, यह सैनिक एक साल से भी ज़्यादा समय से गाज़ा में चल रहे युद्ध में शामिल था।

"गोलानी ब्रिगेड" के एक सैनिक ने इससे पहले दक्षिणी फ़िलिस्तीनी रेगिस्तान में स्थित "सादी तेमान" शिविर में आत्महत्या कर ली थी।

रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी सेना की जाँच पुलिस ने सैनिक को पूछताछ के लिए बुलाया था। जाँच के बाद, उसका निजी हथियार ज़ब्त कर लिया गया, लेकिन कुछ घंटों बाद उसने अपने साथी का हथियार लेकर आत्महत्या कर ली।

इस हफ़्ते, इज़राइली समाचार वेबसाइट "वाल्ला" ने खुलासा किया कि एक और ज़ायोनी सैनिक, जो कई महीनों से गाज़ा-लेबनान सीमा पर तैनात था, ने युद्ध के भयावह दृश्यों और आघात के बाद गंभीर मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या कर ली।

ग़ासिब ज़ायोनी मीडिया का कहना है कि पिछले साल 7 अक्टूबर को गाज़ा पर युद्ध शुरू होने के बाद से, कम से कम 44 ज़ायोनी सैनिकों ने युद्ध के आघात, मानसिक बीमारी और तनाव के कारण आत्महत्या कर ली है।

हिब्रू अखबार हारेत्ज़ ने आगे खुलासा किया कि 2025 की शुरुआत से अब तक 15 इज़राइली सैनिकों ने आत्महत्या की है, जबकि 2024 में कुल 21 सैनिकों ने आत्महत्या की होगी।

ये आंकड़े इस बात के प्रमाण हैं कि इज़राइली सेना आंतरिक संकट और गंभीर मनोवैज्ञानिक तनाव से जूझ रही है, जिससे वह सैन्य अभियानों और ज़मीनी हकीकतों से निपटने की अपनी क्षमता खो रही है।

 

 हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन महदी मिश्की बाफ़ ने कहा: अगर हम मैदान पर ज़ायोनी हमले के कारणों को नहीं समझते हैं, तो संभव है कि फ़ैसले ग़लत हों। केवल एक सही समझ ही हमें भविष्य की ओर, यानी ओहद, हुनैन या अहज़ाब जैसी स्थितियों की ओर ले जाएगी।

राजनीतिक शोधकर्ता हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन महदी मिश्की बाफ़ ने "आइंदा पीश रू: अहज़ाब, हुनैन या ओहद?" शीर्षक के तहत अंतर्दृष्टि निर्माण के लिए ऑनलाइन सत्रों की एक श्रृंखला में बोलते हुए कहा: हम वर्तमान में एक संवेदनशील चौराहे पर खड़े हैं। जहाँ भविष्य में युद्ध की संभावना प्रबल है और यदि हम तैयार नहीं हैं, तो भारी क्षति होगी, और यदि हम तैयार हैं, तो सफलता निश्चित है। यही तत्परता तय करेगी कि हमारा अंत पार्टियों के युद्ध जैसा होगा, हुदैबिया की संधि जैसा, या मक्का की विजय जैसा।

उन्होंने कहा: इस्लामी क्रांति की विजय के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईरान पर दो बार हमला किया और दोनों बार पराजित होकर युद्धविराम का अनुरोध किया। पहला हमला तबस रेगिस्तान में "फाइव ईगल्स" नामक हमले के रूप में किया गया था, जो ईश्वरीय कृपा और एक रेगिस्तानी तूफान के कारण विफल हो गया। दूसरा हमला फोर्डो पर हुआ, जिसके बाद अल-उदीद में अमेरिकी सेना को भारी क्षति हुई।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मिश्कि बाफ़ ने कहा: हमें यह समझना होगा कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है, लेकिन इस बार हम ही तय करेंगे कि हम इस इतिहास के किस पक्ष में खड़े होंगे। अगर हम सिर्फ़ हदीस "अल-हम्दु लिल्लाहि जिअल-अदहन्ना मिन अल-हमकी" (अल्लाह का शुक्र है जिसने हमारे दुश्मनों को बेवकूफ़ बनाया) पर भरोसा करें और मैदान में हमारी सेनाओं की महान बहादुरी और रणनीति को नज़रअंदाज़ करें, तो शायद यह उचित नहीं होगा, क्योंकि हमारे सशस्त्र बल हाल के युद्ध में असाधारण रूप से शानदार और सफल रहे हैं।

उन्होंने कहा: अगर हम दुश्मन के हमले को परमाणु प्रतिष्ठानों के विनाश तक सीमित मानते हैं, तो यह एक बड़ी भूल है, क्योंकि नेतन्याहू ने शुरू से ही स्पष्ट रूप से घोषणा की थी कि उनका लक्ष्य इस्लामी गणराज्य ईरान को उखाड़ फेंकना है।

राजनीतिक शोधकर्ता ने आगे कहा: ईरानी राष्ट्र की आंतरिक एकता और सामूहिक सद्भाव, जो इस संकट में उजागर हुआ, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि दुश्मन अपने लक्ष्य में विफल रहा। क्रांति के नेता ने कहा कि अगर आप ईरानी राष्ट्र को जानना चाहते हैं, तो उसे कठिन परिस्थितियों में जानें, जब उनके नायक शहीद होते हैं तो वे कैसी प्रतिक्रिया देते हैं।

उन्होंने कहा: ईरान के हमले का तरीका अप्रत्याशित था, उदाहरण के लिए, कभी सुबह, कभी रात, कभी एक तरह की मिसाइल, कभी दूसरी। इस रणनीति ने दुश्मन की रक्षा प्रणाली को पंगु बना दिया और ज़ायोनी नागरिकों को शरणस्थलों में रहने के लिए मजबूर कर दिया।

हुज्जतुल इस्लाम मिश्की बाफ़ ने कहा: इस हमले ने एक स्पष्ट संदेश दिया कि ईरान युद्ध के मामले में किसी का सम्मान नहीं करता, और इस क्षेत्र के पड़ोसी देशों को भी नहीं बख्शता। ईरान ने दुनिया को दिखा दिया कि अगर युद्ध छिड़ गया, तो इस क्षेत्र का कोई भी सैन्य अड्डा सुरक्षित नहीं रहेगा। यही कारण है कि इस क्षेत्र के देशों ने युद्धविराम के लिए मध्यस्थता की।

अंत में, उन्होंने कहा: ईश्वर की कृपा और क्रांति के सर्वोच्च नेता का बुद्धिमान नेतृत्व इस सफलता के मुख्य कारण थे। इस युद्ध में, क्रांति के नेता स्वयं युद्ध कमान के केंद्र में थे और हमले की रणनीति स्वयं तय कर रहे थे, और यही ईरान की जीत का मुख्य बिंदु था।

 

 क़ुम के हौज़ा एल्मिया के प्रतिष्ठित शिक्षक और नेतृत्व विशेषज्ञ परिषद मजलिस-ए ख़ुबरगान के सदस्य ने कहा कि 12 दिन के युद्ध में अमेरिका को इजरायल के अपराधों से अलग करना सिर्फ मूर्खता है क्योंकि शुरू से ही अमेरिका अतिक्रमणकारी इज़राईली सरकार का साझीदार रहा है।

आयतुल्लाह मोहसिन अराकी ने क़ुम में टेलीविजन की उच्च परिषद के प्रबंधकों की बैठक में, 12 दिन के युद्ध के दौरान राष्ट्र का हौसला अफ़जाई, प्रतिरोध और सतर्कता के लिए राष्ट्रीय मीडिया के प्रयासों का शुक्रिया अदा किया और सियोनी सरकार के राष्ट्रीय टेलीविजन की शीशे की इमारत पर हमले का ज़िक्र करते हुए कहा कि सभी मीडिया सदस्यों की इस मुश्किल समय में प्रतिरोध, ईरानी राष्ट्र के प्रतिरोध की हक़ीक़त को दर्शाता है और यह सीरत-ए अलवी और हुसैनी का अमली नमूना है। 

नेतृत्व विशेषज्ञ परिषद के सदस्य ने यह बयान करते हुए कि टेलीविजन के मज़बूत प्रदर्शन ने इस संवेदनशील समय में युद्ध के बयानों के संतुलन को इस्लामी ईरान के पक्ष में मोड़ दिया, कहा कि थोपे गए 12 दिन के भीषण युद्ध में आपने जनता की राय के संगठित नेतृत्व के ज़रिए इस्लामी ईरान की सैन्य ताक़त को हक़ और हक़ीक़त की दिशा में मोड़ दिया। 

उन्होंने आगे कहा कि वास्तव में मीडिया कर्मियों ने इस अवधि में इस्लामी गणतंत्र ईरान की ताक़त को दुनिया के सामने पूरी तरह से पेश किया। आयतुल्लाह अराकी ने क़ुरान और हदीसों की रौशनी में इस्लाम के इतिहास में मीडिया की भूमिका पर भी ज़ोर दिया। 

उन्होंने अतिक्रमणकारी सियोनी सरकार के साथ 12 दिन के युद्ध को पवित्र रक्षा दफ़ा-ए मुक़द्दस से भी ज़्यादा अहम और मुश्किल बताया और कहा कि इस्लामी ईरान ने अमेरिका जैसी घमंडी ताक़तों के ख़िलाफ़ बहादुराना मुक़ाबला करके यह साबित किया कि मैदान का असली विजेता कौन है। 

आयतुल्लाह मोहसिन अराकी ने यह बयान करते हुए कि इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता, जनता, सशस्त्र बलों और मीडिया ने इस दौरान जो कुछ किया है वह अलवी ताक़त और पहचान की निशानी है, कहा कि इस पहचान को हक़ और सच्चाई के मीडिया के प्रयासों के ज़रिए बयान किया जाना चाहिए और इसे बरकरार रखना चाहिए। 

उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ही अमेरिका के साथ युद्ध के मैदान में अंतिम विजेता है, कहा कि इस्लामी ईरान अमेरिका के ख़िलाफ़ नारों में नहीं, बल्कि युद्ध के मैदान में भी सीना तान कर, ताक़त, सत्ता और काबिलियत के साथ खड़ा है और यह राष्ट्र की यक़ीनी जीत के सिवा कुछ नहीं है। 

उन्होंने अमेरिका की तरफ से युद्धविराम की अपील को दुश्मन को नाकाम बनाने में इस्लामी ईरान की जीत का एक और सबूत बताया और कहा कि इस 12 दिन के युद्ध में इजरायल के अपराधों से अमेरिका को अलग करना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है, क्योंकि शुरू से ही अमेरिका इजरायल का अहम साझीदार रहा है।