رضوی

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हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जवाद मोहद्दसी ने अपने विशेष खिताब में "दरस-ए-आशूरा" के तहत इस अहम सवाल का जवाब दिया है कि इमाम हुसैन अ.स.ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन जवाद मोहद्दसी ने अपने विशेष खिताब में "दरस-ए-आशूरा" के तहत इस अहम सवाल का जवाब दिया है कि इमाम हुसैन अ.स.ने यज़ीद से बैअत क्यों नहीं की?

उन्होंने लिखा कि इमाम अ.स. का इनकार न तो किसी निजी दुश्मनी की वजह से था और न ही यह कोई साधारण राजनीतिक विरोध था, बल्कि यह फैसला एक गहरी क़ुरआनी और धार्मिक सोच पर आधारित था। यह इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों की हिफाजत के लिए ज़रूरी था।

इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, हुकूमत का हक सिर्फ उसी को है जो:कुरआन की गहरी समझ रखता हो,अमली तौर पर दीनदार हो,और अल्लाह का आज्ञाकारी हो।

इमाम हुसैन अ.स. ने इन्हीं उसूलों की बुनियाद पर यज़ीद जैसे फासिक और पापी शासक की बैअत से इनकार कर दिया, क्योंकि वह कुरआन, ईमानदारी और इंसाफ की राह से भटक चुका था।

इस्लामी निज़ाम में क़ियादत उन्हें मिलनी चाहिए जो आम जनता से ज़्यादा जागरूक, न्यायप्रिय और परहेज़गार हों, ताकि वो समाज को अल्लाह के दीन के मुताबिक चला सकें। जबकि बनू उमय्या ने ताक़त, फरेब और मुनाफ़िक़त (पाखंड) के ज़रिये हुकूमत पर क़ब्ज़ा कर रखा था और इस्लामी मूल्यों को रौंद रहे थे।

हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का क़ियाम दरअसल एक इलाही जिहाद था, ताकि उम्मत-ए-मुस्लिमा को दोबारा हक़, इंसाफ और तक़्वा (पवित्रता) की राह पर लाया जाए, और ज़ालिम और गुनहगार हुक्मरानों के हाथों में उम्मत की तक़दीर न रहे।

इमाम (अ.स.) के बैअत से इंकार ने यह बात साफ कर दी कि बातिल की इताअत (आज्ञा) मुमकिन नहीं है, चाहे उसकी ताक़त कितनी भी बड़ी क्यों न हो। और यही आशूरा का सबसे बुनियादी सबक है:ज़ुल्म के सामने ख़ामोशी नहीं, बल्कि क़ियाम ही एकमात्र रास्ता है।

अस्सलामु अलैक या अबा अब्दिल्लाहिल हुसैन (अ.स.)

 

हज़रत वहब इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने हवाब कलबी आप बनी क्लब के एक फर्द थे हुस्नो जमाल में नजीर न रखते थे आप खुश किरदार और खुश अतवार भी थे और आपने कर्बला के मैदान में दिलेरी के साथ दर्जऐ शहादत हासिल किया।

आप का नाम वहब इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने हवाब कलबी था । आप बनी क्लब के एक फर्द थे । हुस्नो जमाल में नजीर न रखते थे आप खुश किरदार और खुश अतवार भी थे और आपने कर्बला के मैदान में दिलेरी के साथ दर्जऐ शहादत हासिल किया है।

हम आप के वाकेयाते शहादत को किताब के ज़रिये ज़िक्र-अल-अब्बास से नक़ल करते है कर्बला की हौलनाक जंग में हुस्सैनी बहादुर निहायत दिलेरी से जान दे-दे श्र्फे शहादत हासिल कर रहे थे ।

यहाँ तक की जनाबे वहब बिन अब्दुल्लाह अल-कलबी की बारी आई । यह हुस्सैनी बहादुर पहले नसरानी था और अपनी बीवी और वालिद समेत इमाम हुसैन अलै० के हाथो पर मुसलमान हुआ था ।

आज जब की यह इमाम हुसैन अलै० पर फ़िदा होने के लिए आमादा हो रहे है उनकी वालेदा हमराह है माँ ने दिल बढ़ाने के लिए वहब से कहा , बेटा आज फ़रज़न्दे रसूल पर कुर्बान हो कर रूहे रसूल मकबूल स० को खुश कर दो । बहादुर बेटे ने कहा, मादरे गिरामी आप घबराये नहीं इंशा अल्लाह ऐसा ही होगा।

अलगरज आप इमाम हुसैन अलै० से रुखसत होकर रवाना हुए और रजज पढ़ते हुए दुश्मनों पर हमलावर हुए आप ने कमाले जोश व शुजाअत में जमाअत की जमाअत को कत्ल कर डाला इस के बाद अपनी माँ “कमरी”और बिवी की तरफ वापिस आये ।

माँ से पूछा मादरे गिरामी आप खुश हो गई माँ ने जवाब दिया मै उस वक्त तक खुश न होउंगी जब तक फ़रज़न्दे रसूल के सामने तुम्हे खाको खून में गलता न देखूं । यह सुन कर बीवी ने कहा, ऐ वहब मुझे अपने बारे में क्यों सताते हो और अब क्या करना चाहते हो?

माँ पुकारी “यांनी बनी ल तक्बिल कौल्हा” बेटा बीवी की मोहब्बत में न अ जाना खुदारा जल्द यहाँ से रुखसत होकर फ़रज़न्दे रसूल पर अपनी जान कुर्बान कर दो वहब ने जवाब दिया मादरे गिरामी ऐसा ही होगा।

 

मुझे इमाम हुसैन का इज्तेराब और हजरते अब्बास जैसे बहादुर की परेशानी दिखाई दे रही है भला क्योकर मुमकिन है की मै ऐसी हालत में ज़रा भी कोताही करूँ इस के बाद जनाबे वहब मैदाने जंग की तरफ वापिस चले गए और कुछ अशआर पढ़ते हुए हमलावर हुए यहाँ तक की आपने उन्नेस१९ ब-कौले१२ सवार और १२ प्यादे कत्ल किये इसी दौरान में आप के दो हाथ कट गए

उनकी यह हालत देखकर उनकी बीवी को जोश आ गया और वह एक चौबे खेमा लेकर मैदान की तरफ दौड़ी और अपने शौहर् को पुकार का कहा खुदा तेरी मदद करें । हाँ फ़रज़न्दे रसूल के लिए जान दे दो और सुन इसके लिए मै अब भी अमादा हूँ ।

यह देख कर वहब अपनी बीवी की तरफ इसलिए फौरन्न आये की उन्हें खेमे तक पंहुचा दे उस मुख्द्दर ने उन का दामन थाम लिया और कहा मै तेरे साथ मौत की आगोश में सोउंगी । फिर इमाम हुसैन अले० ने उसे हुकुम दिया की वह खेमो में वापिस चली जाए । चुनाचे वह वापिस चली गई उसके बाद वहब मशगूले कार्जार हो गए ।

और काफी देर तक नबर्द आजमाई के बाद दर्जा-ऐ-शहादत पर फाऐज हुए वहब के ज़मीन पर गिरते ही उनकी बीवी ने दौड़ कर उन् का सर अपनी आगोश में उठा लिया उन के चेहरे से गर्दो-गुबार और सर व आख से खून साफ़ करने लगी इतने में शिमरे लई के हुकुम से उसके गुलाम रुस्तम लई ने उस मोमिना के सर पर गूरजे आहनी मारा और यह बेचारी भी शहीद हो गई ।

मोर्रखींन का कहना है की “वही अव्वल अम्रात क्त्ल्त:फी अस्कर-अल-हुसैन”  यह पहली औरत है जो लश्करे हुसैन में कत्ल की गई । एक रिवायत में है जब वहब ज़मीन पर गिरे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया यानी उनकी लाश पर कब्ज़ा करके सर काट लिया गया ।

उसके बाद उस सर को खेमा-ऐ-हुस्सैनी की तरफ फेक दिया और माँ ने उस सर को उठा लिया बोसे दिए और दुश्मन की तरफ फेक कर कहा, हम जो चीज़ रहे मौला में देते है उसे वापिस नहीं लेते । कहते है की वहब का फेका हुआ सर एक दुश्मन के लगा और वह हालाक हो गया । फिर माँ चौबे खेमा लेकर निकली और दुश्मनों को कत्ल कर के ब-हुक्मे इमाम हुसैन खेमे में वापिस चली गई ।

इरानी सशस्त्र बलों के प्रमुख जनरल मूसवी ने चेतावनी दी है कि अगर ईरान पर दोबारा हमला किया गया तो दुश्मन को सख्त जवाबी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।

इरानी सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ मेजर जनरल सैयद अब्दुलरहीम मूसवी ने कहा है कि अगर इजरायली सरकार ने इरान पर दोबारा हमला करने की हिमाकत की तो हम कड़ा और निर्णायक जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, क्योंकि हमें दुश्मन की युद्धविराम और अन्य वादों पर कोई भरोसा नहीं रह गया है।

सऊदी अरब के रक्षा मंत्री खालिद बिन सलमान से टेलीफोन वार्ता के दौरान जनरल मूसवी ने स्पष्ट किया कि इजरायली सरकार और अमेरिका ने हमला तब किया जब ईरान पूरी तरह धैर्य दिखा रहा था और अमेरिका के साथ अप्रत्यक्ष वार्ता चल रही थी।

इन दोनों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून या नियम को नहीं मानते, और उनकी बेईमानी 12 दिनों के युद्ध के दौरान पूरी दुनिया पर स्पष्ट हो गई। 

उन्होंने आगे कहा कि ईरान ने युद्ध शुरू नहीं किया, लेकिन हमने पूरी ताकत से आक्रामक दुश्मन को जवाब दिया। और चूंकि हमें दुश्मन के युद्धविराम जैसे वादों पर कोई भरोसा नहीं है इसलिए हम किसी भी संभावित हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। 

टेलीफोन वार्ता के दौरान सऊदी रक्षा मंत्री खालिद बिन सलमान ने कहा कि सऊदी सरकार ने ईरान पर हमले के दौरान सिर्फ निंदा करने तक सीमित नहीं रही, बल्कि युद्ध और आक्रामकता को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं। उन्होंने हाल के युद्ध में इरानी सशस्त्र बलों के कमांडरों की शहादत पर संवेदना भी व्यक्त की है।

 

कतर में इजरायल और हमास के बीच हुए वार्ता में इजरायली प्रतिनिधिमंडल के गैर-गंभीर रवैये के कारण कोई प्रगति नहीं हो सकी।

कतर में इजरायल और हमास के बीच युद्धविराम से जुड़े इस दौर की वार्ता में भी कोई सफलता नहीं मिली।

एक फिलिस्तीनी अधिकारी ने कहा,ज़ायोनी प्रतिनिधिमंडल सिर्फ सुनता है, हर मुद्दे पर तेल अवीव से सलाह लेता है खुद प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के पास कोई अधिकार नहीं है।

याद रहे कि कतर ने हमास को 60 दिनों के युद्धविराम का प्रस्ताव दिया था, जिसमें 10 इजरायली बंधकों की रिहाई, 18 शवों की वापसी, गाजा की सीमा से इजरायली सेना की वापसी और मानवीय सहायता की आपूर्ति शामिल थी।

इस प्रस्ताव में यह भी शामिल था कि इस अस्थायी युद्धविराम के दौरान स्थायी युद्धविराम पर वार्ता जारी रहेगी। 

 

हौज़ा ए-इल्मिया के 102 प्रतिष्ठित शिक्षकों ने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामेनेई के प्रति अपना पूर्ण समर्थन घोषित किया है, और इस बात पर ज़ोर दिया है कि हम सर्वोच्च नेता के पवित्र व्यक्तित्व पर किसी भी तरह के अपमान या हमले का अपने जीवन, शब्दों और कर्मों से जवाब देंगे, और हर समय जिहाद के क्षेत्र में मौजूद रहेंगे।

हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के 102 प्रतिष्ठित शिक्षकों ने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खामेनेई के प्रति अपना पूर्ण समर्थन घोषित किया है, और इस बात पर ज़ोर दिया है कि हम सर्वोच्च नेता के पवित्र व्यक्तित्व पर किसी भी तरह के अपमान या हमले का अपने जीवन, शब्दों और कर्मों से जवाब देंगे, और हर समय जिहाद के क्षेत्र में मौजूद रहेंगे।

अपने बयान में शिक्षकों ने अल्लाह के बंदों के शोक दिवस और मुजाहिदीन, बुद्धिजीवियों और हमवतनों की शहादत के अवसर पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान एक ऐसी व्यवस्था है जो शुद्ध शिया न्यायशास्त्र के प्रकाश में ईश्वर के धर्म की स्थापना की व्यावहारिक व्याख्या प्रस्तुत कर रही है। यह व्यवस्था न केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास की ऊंचाइयों पर पहुंच गई है, बल्कि न्याय और निष्पक्षता के क्षेत्रों और भौतिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण सफलताएं हासिल की हैं।

बयान में आगे कहा गया है कि हालांकि इस्लाम के दुश्मनों ने इस्लामी गणतंत्र ईरान की प्रगति को रोकने के लिए मीडिया युद्ध, आर्थिक प्रतिबंध और सैन्य साजिशों का सहारा लिया, लेकिन वेलायत-ए-फकीह की छाया में यह व्यवस्था आज दुनिया भर के उत्पीड़ित और स्वतंत्रता-प्रेमी लोगों की आशा बन गई है।

शिक्षकों ने बताया कि इस्लामी गणतंत्र ने हाल के इतिहास में सबसे बड़े हमले में यह साबित कर दिया है कि यह एकमात्र ऐसा देश है जो न केवल फिलिस्तीन का समर्थन करता है बल्कि व्यावहारिक रूप से ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों को चुनौती भी देता है।

उन्होंने इस जीत को इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता हज़रत अली ख़ामेनेई के नेतृत्व में हिज़्बुल्लाह और जुन्दुल्लाह की जीत बताया और कहा कि यह लड़ाई वास्तव में इस्लाम और कुफ्र के बीच आमने-सामने की लड़ाई बन गई है।

बयान में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि इस्लामी ईरान के प्रतिरोध से बार-बार निराश और पराजित होने वाला दुश्मन अब इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता की महान शख्सियत को निशाना बनाने की हिम्मत कर रहा है, लेकिन मदरसों के विद्वान, महान अधिकारी और ईरानी राष्ट्र इस अपमान का जवाब देने के लिए हर क्षेत्र में तैयार हैं।

अंत में शिक्षकों ने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता की सुरक्षा, सम्मान और दीर्घायु, महान अधिकारियों के अस्तित्व और इस्लामी व्यवस्था के आगे विकास और स्थिरता के लिए प्रार्थना की और घोषणा की कि हम सभी प्रकार के हमलों और अपमान के खिलाफ दृढ़ रहेंगे और किसी भी कीमत पर उम्माह के इमाम की महानता और पवित्रता को धूमिल नहीं होने देंगे। इस्लाम और मुसलमानों की आयतें और तर्क:

  1. मोहसिन अराकी
  2. अलीरेज़ा अराफ़ी
  3. मुहम्मद बाकिर द्वारा लिखित
  4. अली अकबर रशद
  5. अबुल कासिम अलीदोस्त
  6. जवाद फ़ाज़िल लंकारानी
  7. अब्बास काबी
  8. मुहम्मद मोहम्मदी क़ैनी
  9. हादी विंक
  10. सैयद यदुल्लाह यज़दान पनाह
  11. सैयद मुहम्मद हुसैन सईदी हुसैनी
  12. असगर मद्दी
  13. मेहदी रोशन दिल
  14. अलीरेज़ा गोदार्ज़ी
  15. मुहम्मद बाक़ेरी राष्ट्रपति
  16. महमूद खोसरवांजाम
  17. मिहराब ज़ारे
  18. मुहम्मद जनरल
  19. अब्दुल जलील महमूदी
  20. मेहदी शाबान
  21. मयसम कासमी
  22. मेहदी अहमदी
  23. सैयद महदी हाशेमियन
  24. मोहम्मद जवादी राड
  25. मेहदी अबू तालाबी
  26. अहमद राहदार
  27. अलीरेज़ा नेमाती
  28. इनायतुल्लाह रमजानपुर
  29. मुहम्मद इब्राहिम ने इस्तीफा दे दिया
  30. सैयद मुस्तफा हुसैनी
  31. महदी फ़रमानियन
  32. मुहम्मद हुसैन सिद्दीकी नये
  33. मुहम्मद महदी, विद्वान, शाहरुदी
  34. निमातुल्लाह लुत्फी नियासर (काशानी)
  35. मुहम्मद हसन महमूदी
  36. मोहम्मद हसन मोहम्मदी
  37. सैयद मुहम्मद जवाद तादीन
  38. माजिद मोहम्मदी
  39. ईसा मसीह अल्लाह असेफ़ी
  40. सईद जवादी मोघदाम
  41. नासिर रफ़ी मोहम्मदी
  42. मुस्तफ़ा ग़ैबी
  43. मुजतबी छात्र
  44. हसन मोरादी
  45. मोहसिन अलवरी
  46. ​​मेहदी हामती सजंकी
  47. अब्बास अब्दुलाही
  48. मुस्तफा मेहरानपुर
  49. मेहदी अब्दुल्लाही
  50. इब्राहिम मुसाज़ादेह
  51. यासिर सादाती
  52. मुहम्मद महदी इस्लामियन
  53. मुहम्मद बाकिर अदीबी लारिजानी
  54. रुहोल्लाह रसूल
  55. सैयद महदी हाशी नसरबदी
  56. सैयद अली मौसवी

 

  1. हमज़ा फ़ख़रुद्दीन अलीज़ादेह
  2. मुर्तज़ा जहाँशाही
  3. सैयद हुसैन नकीबपुर
  4. अहमद इब्राहिमी क़ैनी
  5. सैयद मसऊद शरीफ़ी
  6. मुहम्मद मोहसिन कांदी
  7. अली असगर हबीबियन
  8. सईद सलीह मिर्ज़ई
  9. मोहम्मद हुसैन रज़ाज़ादे सकाई
  10. अली सादेघी
  11. अकबर रुस्तई
  12. मुहम्मद अस्तवार मैमंडी
  13. हुसैन अहमदी
  14. सैयद सज्जाद एज़ादेही
  15. सैयद हुसैन कश्फ़ी
  16. मोहम्मद अशायरी मोनफर्ड
  17. अब्दुल नासिर जलालियाँ
  18. मोहम्मद कृपाण सादेघी
  19. मोहम्मद अली कमाली न्यू
  20. मेहदी खोसरोबेगी
  21. मुहम्मद अली ख़ादिमी कोशा
  22. अहमद हाजी दे आबादी
  23. सैयद अहमद अलवी और तौकी
  24. अमीन असदलाह ज़ादे दरियानी
  25. महदी रहमाना
  26. मोहम्मद अंसारी परिसराय
  27. हमीद ख्वाजा अरज़ानी
  28. मुहम्मद हसन नहवी
  29. मुहम्मद रज़ा फ़तेह
  30. मुस्तफ़ा मोंटेज़ेरी
  31. मोहम्मद कासमी
  32. जावद रायपुर
  33. अली गंज बख्श (खुरासानी)
  34. सैयद अली अलवी वासुकी
  35. अहमद नकवी
  36. मुजतबी रहबर
  37. मुहम्मद मोमिनपुर
  38. सैयद जवाद मुर्तज़वी
  39. सैयद हुसैन इमाम
  40. सईद कुवंत झारमी
  41. मेहदी जहाँशाही
  42. इब्राहिम दासलान
  43. अलीरेज़ा लियाकाती
  44. हैदर फातेमी निया
  45. अहमदरेज़ा कमाली
  46. मुर्तज़ा रूहानी माज़ंदरानी

इस्लामी देशों के प्रमुख विद्वानों, मुफ़्तियों, बुद्धिजीवियों और अधिकारियों ने पवित्र कुरान, पैगंबर की सुन्नत, स्थापित न्यायशास्त्रीय सिद्धांतों और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की रोशनी में ट्रम्प और नेतन्याहू को "मुहारिब" और "मुफ़्सिद फ़िल अर्ज़" कहा है और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की पुरज़ोर माँग की है।

इस्लामी जगत के विद्वानों, मुफ़्तियों, बुद्धिजीवियों और उच्च अधिकारियों ने एक संयुक्त बयान जारी कर ट्रम्प और नेतन्याहू को मानवता के विरुद्ध अपराधी बताया है और उनके खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय और इस्लामी अदालतों में कानूनी कार्रवाई की माँग की है। इस कथन का मूलपाठ इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

الحمدلله رب العالمین و الصلاۃ و السلام علی سیدنا محمد و آله الطاهرین و صحبه المنتجبین، و بعد؛

हम, इस्लामी देशों के महान विद्वान, मुफ़्ती, बुद्धिजीवी और ज़िम्मेदार हस्तियाँ, पवित्र क़ुरआन, पैगंबर की सुन्नत, इस्लामी न्यायशास्त्र के स्थापित सिद्धांतों और स्थापित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के आधार पर निम्नलिखित बिंदुओं की घोषणा करते हैं:

  1. ट्रम्प और नेतन्याहू की "मुहारिब" और "मुफ़्सिद फ़िल अर्ज़" के रूप में स्पष्ट निंदा:

अल्लाह तआला का मार्गदर्शन है: اِنَّمَا جَزَاءُ الَّذِینَ یُحَارِبُونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَیَسْعَوْنَ فِی الْأَرْضِ فَسَادًا أَنْ یُقَتَّلُوا أَوْ یُصَلَّبُوا.. "जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध करते हैं और धरती में भ्रष्टाचार की तलाश करते हैं, उनका बदला बस यही है कि उन्हें मार दिया जाए या सूली पर चढ़ा दिया जाए..." (सूर ए माइदा, आयत 33)

ट्रम्प, नेतन्याहू और हड़पने वाले ज़ायोनी शासन के अन्य नेताओं ने इस्लामी ज़मीनों पर कब्ज़ा, रक्तपात, फ़िलिस्तीनी लोगों का नरसंहार और मानवता के विरुद्ध अपराध किए हैं। ये लोग अल्लाह और उसके रसूल के दुश्मन हैं और धरती पर भ्रष्टाचार फैलाने वाले हैं, इसलिए इन्हें इस्लामी और अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए।

  1. आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के नेतृत्व को पूर्ण समर्थन:

इस्लामी जागृति के नेता, इस्लामी सम्मान के ध्वजवाहक और प्रतिरोध मोर्चे के नेता के रूप में, हज़रत अयातुल्ला ख़ामेनेई इस्लामी उम्माह को बुद्धि, साहस और विवेक के साथ एकता, सम्मान और दृढ़ता के मार्ग पर मार्गदर्शन कर रहे हैं। हम उन्हें इस्लामी उम्माह के लिए वैध और आदर्श नेतृत्व का आदर्श मानते हैं।

  1. इज़राइल और अमेरिका के साथ सभी प्रकार की मिलीभगत का कानूनी, वैध और नैतिक रूप से खंडन:

शरिया के स्थापित सिद्धांतों के आलोक में, विशेष रूप से "काफिरों और युद्धरत पक्षों के साथ मित्रता और षड्यंत्र के निषेध" के नियम के आधार पर, सभी प्रकार की समझ और मेल-मिलाप को गैरकानूनी माना जाता है।

  1. ज़ायोनीवाद और अहंकार की साजिशों के खिलाफ मुसलमानों और धार्मिक विद्वानों के बीच एकता का आह्वान
  2. 12-दिवसीय युद्ध में इस्लामी गणराज्य ईरान की पूर्ण और व्यापक विजय की मान्यता
  3. ज़ायोनी अपराधियों और उनके समर्थकों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायिक कार्रवाई की मांग:

हम तत्काल अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्र न्यायालयों की स्थापना की मांग करते हैं ताकि ट्रम्प, नेतन्याहू और अन्य ज़ायोनी अपराधियों और उनके समर्थकों को न्याय के कटघरे में लाया जा सके और मानवता और विश्व शांति के खिलाफ उनके अपराधों के लिए जवाबदेह ठहराया जा सके।

  1. इस्लामी उम्माह की फ़िलिस्तीन और कुद्स अल-शरीफ़ के प्रति नई प्रतिबद्धता:

फ़िलिस्तीन, पहला क़िबला और कुद्स अल-शरीफ़ का मुद्दा अभी भी इस्लामी उम्माह की सर्वोच्च प्राथमिकता है, और जब तक फ़िलिस्तीन आज़ाद नहीं हो जाता और ज़ायोनीवाद की सड़ी हुई जड़ें नहीं मिट जातीं, तब तक यह धार्मिक, धार्मिक और सर्वव्यापी संघर्ष जारी रहेगा।

«و ما النصر إلا من عند الله العزیز الحکیم»

नोट: इस वक्तव्य की पीडीएफ फाइल और इस्लामी देशों के हस्ताक्षरकर्ताओं, विद्वानों, मुफ्तियों और अधिकारियों की सूची निम्नलिखित लिंक से डाउनलोड की जा सकती है:

 

ईरान के राष्ट्रपति मसूद पिज़ेश्कियान ने कहा है कि स्वास्थ्य कर्मियों, विशेष रूप से नर्सों ने कोरोना महामारी के दौरान की तरह, मैदान नहीं छोड़ा और युद्ध के खतरनाक पलों में घायलों के ज़ख्मों पर मरहम लगाते हुए देश के चिकित्सा इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ा हैं।

ईरान के राष्ट्रपति मसूद पिज़ेश्कियान ने कहा है कि स्वास्थ्य कर्मियों, विशेष रूप से नर्सों ने कोरोना महामारी के दौरान की तरह, मैदान नहीं छोड़ा और युद्ध के खतरनाक पलों में घायलों के ज़ख्मों पर मरहम लगाते हुए देश के चिकित्सा इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ा हैं।

अपने संदेश में, राष्ट्रपति पिज़ेश्कियान ने12-दिवसीय थोपे गए युद्ध के दौरान चिकित्सा कर्मियों, खासकर नर्सों की सेवाओं की सराहना की और उनके प्रयासों को देश की स्वास्थ्य प्रणाली के इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया।

उन्होंने जोर देकर कहा कि नर्सों ने कोरोना महामारी की तरह ही युद्ध की कठिन परिस्थितियों में घायलों का इलाज किया और दुःखी परिवारों की पूरी मदद की। 

पिज़ेश्कियान ने ज़ायोनी शासन द्वारा थोपी गई आक्रामकता के दौरान देश की रक्षा और सेवाओं को जारी रखने में सशस्त्र बलों, राहतकर्मियों, चिकित्सा कर्मियों और मीडिया की भूमिका की भी प्रशंसा की।

उन्होंने इस राष्ट्रीय एकता को दुश्मन के घिनौने मंसूबों की विफलता का कारण बताया। उन्होंने इस एकजुटता को ईरान की प्रतिष्ठा, आज़ादी और प्रगति का आधार बताया। 

संदेश के अंत में, ईरान के राष्ट्रपति ने देश के चिकित्सा कर्मियों के लिए स्वास्थ्य, सफलता और शुभकामनाएं व्यक्त कीं। उन्होंने युद्ध के कठिन दिनों और उसके बाद जनता की सेवा करने वाले सभी संस्थानों और बलों का हृदय से आभार व्यक्त किया और कहा कि उनका योगदान ईरानी राष्ट्र के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। 

 

इज़रायल में विपक्ष के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री यायर लैपिड ने ग़ाज़ा के उत्तरी क्षेत्र बैते हानून में इज़रायली सैनिकों की मौत पर प्रतिक्रिया देते हुए ग़ाज़ा युद्ध को ख़त्म करने की मांग की है।

इज़रायल में विपक्ष के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री यायर लैपिड ने ग़ाज़ा के उत्तरी क्षेत्र बैते हानून में इज़रायली सैनिकों की मौत पर प्रतिक्रिया देते हुए ग़ाज़ा युद्ध को ख़त्म करने की मांग की है।

लैपिड ने यह बयान उस समय दिया जब बेंजामिन नेतन्याहू, अमेरिका में व्हाइट हाउस की आधिकारिक बैठकों में शामिल हो रहे है उन्होंने कहा,इज़रायल की खातिर, यह युद्ध अब ख़त्म होना चाहिए।

लैपिड ने दो अलग अलग संदेशों में ‘बैत हानून’ ऑपरेशन में मारे गए इज़रायली सैनिकों पर शोक जताया। यह हमला सड़क किनारे बम विस्फोट से शुरू हुआ, जिसने वहाँ से गुजर रही इज़रायली सेना को निशाना बनाया इसके बाद राहत और बचाव दल पर भी दोबारा धमाके और सीधी फायरिंग की गई।

इज़रायली सेना ने अब तक 5 सैनिकों की मौत और 14 के घायल होने की पुष्टि की है, जबकि ग़ैर-इज़रायली सूत्रों के अनुसार मृतकों की संख्या इससे अधिक हो सकती है।हमास के सैन्य विंग ‘कताइब अल-क़स्साम’ के प्रवक्ता अबू उबैदा ने इस ऑपरेशन के बाद चेतावनी दी कि, यदि इज़राइली सेना ग़ाज़ा में बनी रही, तो और सैनिकों की गिरफ़्तारी और मौतें होंगी।

 

 ईरानी विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची ने सऊदी विदेश मंत्री के साथ हुई मुलाक़ात में फ़िलिस्तीन, लेबनान और सीरिया पर इज़राइली हमलों की निंदा की और क्षेत्रीय देशों पर ज़ोर दिया कि वे ज़ायोनी सरकार की विस्तारवादी नीतियों और उसके पैदा किए गए ख़तरों का मिलकर मुक़ाबला करें।

ईरानी विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची ने सऊदी विदेश मंत्री के साथ हुई मुलाक़ात में फ़िलिस्तीन, लेबनान और सीरिया पर इज़राइली हमलों की निंदा की और क्षेत्रीय देशों पर ज़ोर दिया कि वे ज़ायोनी सरकार की विस्तारवादी नीतियों और उसके पैदा किए गए ख़तरों का मिलकर मुक़ाबला करें।

अब्बास अराक़ची ने कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता के क़त्लेआम और नरसंहार, इस्लामी ज़मीनों पर क़ब्ज़े और लेबनान व सीरिया पर इज़राइली हमलों की हम सख़्त मुख़ालफ़त करते हैं यह पूरे इलाक़े के मुल्क़ों की मुश्तरका ज़िम्मेदारी है कि वे इस ख़तरे का सामना करें।

उन्होंने इस मौक़े पर यह भी एलान किया कि इस्लामी जम्हूरी-ए-ईरान, सऊदी अरब के साथ आपसी दिलचस्पी के सभी मामलों में रिश्तों को मज़बूत बनाने के लिए पुरजोर इरादे से काम करेगा। 

वहीं सऊदी विदेश मंत्री ने भी ईरान के ख़िलाफ़ किसी भी हमले और उसकी सॉवरेन्टी के उल्लंघन की मुख़ालफ़त को अपनी और इलाक़े के दूसरे मुल्क़ों की असूली नीति बताया। 

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हालात को और बिगड़ने से रोकने के लिए मिलकर कोशिशें की जानी चाहिए और इस सिलसिले में हर मुमकिन सहयोग का इज़हार किया। 

 

इराक में कताइब अहले हक़ के नेता शेख़ कैस खजअली ने यौम-ए-अशुरा के अवसर पर दिए गए भाषण में इराक की आज़ादी और एकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि हमें इमाम हुसैन अ.स. के संघर्ष से सीख लेकर अमेरिका और वैश्विक साम्राज्यवादी ताकतों की साजिशों का मुकाबला करना चाहिए।

इराक की प्रतिरोध संगठन कताइब अहल अलहक़ के नेता शेख़ कैस खजअली ने यौम-ए-अशूरा के अवसर पर एक बयान में कहा है कि इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत मानवता के इतिहास में एक अद्वितीय घटना है, जो सत्य और असत्य के बीच सीमा रेखा खींचती है तथा बलिदान, सम्मान और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष की महान मिसाल पेश करती है। 

उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) का संघर्ष किसी सांसारिक सत्ता के लिए नहीं था, बल्कि यह सत्य की वह पुकार थी जो अत्याचार और भ्रष्टाचार के खिलाफ उठी, धर्म और दुनिया के नाम पर की जाने वाली सौदेबाजी को अस्वीकार किया और दैवीय न्याय तथा मानवीय गरिमा के संरक्षण का संदेश दिया। 

शेख खजअली ने जोर देकर कहा कि आज इराक जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, वे हमें अशूरा के संदेश की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं। इराक अभी भी विदेशी हस्तक्षेप, आंतरिक मतभेदों और साम्राज्यवादी साजिशों के निशाने पर है, जो इसकी आज़ादी, संप्रभुता और राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुँचा रही हैं। 

उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) के मार्ग ने हमें जो धार्मिक और राष्ट्रीय कर्तव्य सिखाए हैं, उनमें सबसे बड़ा कर्तव्य इराक की पूर्ण आज़ादी और संप्रभुता की रक्षा करना है। हमें राजनीतिक, सैन्य, आर्थिक और सुरक्षा के सभी क्षेत्रों में हर तरह के साम्राज्यवादी वर्चस्व, विशेष रूप से अमेरिकी आक्रामकता और विनाशकारी साजिशों के खिलाफ खड़ा होना होगा। 

शेख खजअली ने आगे कहा कि कर्बला हमें सिखाता है कि अत्याचार के सामने चुप्पी धोखा है और अहंकार के सामने सिर झुकाना इमाम हुसैन (अ.स.) के अनुयायियों के लिए शोभा नहीं देता। इराक की भूमि, जनता और उसकी संप्रभुता की रक्षा करना हम सभी की ज़िम्मेदारी है, और अब समय आ गया है कि हम हर तरह के व्यक्तिगत, गुटीय और सांप्रदायिक हितों को पीछे छोड़कर एकजुट राष्ट्र के रूप में अपने देश की सेवा करें। 

अंत में उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें फूट डालने वाली योजनाओं और वैश्विक साम्राज्यवाद के एजेंटों के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा। इराक तभी वास्तविक स्वतंत्रता, सम्मान और शक्ति प्राप्त कर सकता है जब इसके बेटे और बेटियाँ एकजुट होकर इसकी रक्षा करें और हुसैनी शिक्षाओं पर चलें।