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हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद अली लबखंदान ने ईद-ए-ग़दीर खुम की अज़मत पर ज़ोर देते हुए कहा,यह वाक़िया नबूवत और इमामत के पायदार रब्त की अलामत है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद अली लबखंदान ने कहा, ईद-ए-ग़दीर, बे'असत-ए-रसूल-ए-अकरम स.अ.व.के बाद तारीख-ए-बशरियत का सबसे अज़ीम दिन है, जो नबूवत और इमामत के दरमियान नाक़ाबिल-ए-इन्कार रब्त का मज़हर है। रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने 23 साल की तबलीग़ी जद्दोजहद के बाद ग़दीर खुम के मौक़े पर एक इलाही मिशन को मुकम्मल किया, ऐसा मिशन जो क़यामत तक दीन के तसल्सुल की ज़मानत बन गया।

उन्होंने आगे कहा,यह तारीखी वाक़िया रसूल-ए-अकरम (स.अ.व.) की रिहलत से सिर्फ़ 70 दिन पहले अल्लाह तआला के सरीह हुक्म से अंजाम पाया, जैसा कि इरशाद हुआ या अय्युहर रसूलु बल्लिग़ मा उंज़िला इलैका मिन रब्बिका व इन लम तफ़अल फ़मा बल्लग़ता रिसालतहु य ऐ रसूल! जो कुछ आपके रब की तरफ़ से नाज़िल किया गया है, पहुँचा दीजिए और अगर आपने ऐसा न किया तो गोया आपने रिसालत को पहुँचाया ही नहीं यह आयत इस अज़ीम हक़ीकत को वाज़ेह करती है कि दीन की बक़ा और कमाल इमामत से वाबस्ता है।

इस दीनी माहिर ने कहा, जिस तरह दूसरे अंबिया ने अपनी रिसालत के हिफ़ाज़त के लिए जानशीन मुक़र्रर किए, रसूल-ए-गरामी (स.अ.व.) ने भी अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) को अपने बाद वली और जानशीन के तौर पर बा-ज़ाब्ता ग़दीर के दिन मुतारिफ़ कराया।

यह एलान न कोई शख़्सी और न ही सियासी फ़ैसला था, बल्कि बे'असत के समर की हिफ़ाज़त और तौहीद के तसल्सुल को यक़ीनी बनाने के लिए एक इलाही हुक्म था।

उन्होंने कहा,ग़दीर, रिसालत-ए-नबवी (स.अ.व.) की मेराज और दीन-ए-इस्लाम की तकमील का दिन है ग़दीर में अमीरुल मोमिनीन अली (अ.स.) की विलायत का एलान, आनहज़रत (स.अ.व.) के 23 साल की अथक जद्दोजहद का नुक़्ता-ए-अरूज था, जिसका मक़सद इस्लाम को सरबुलंद करना था। 

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हसन साफ़ी गुलपायगानी ने कहा,ग़दीर से अलग होना तबाही है और इससे जुड़ाव इंसान के लिए सुख और सफलता का स्रोत है।

मरहूम हज़रत आयतुल्लाह साफ़ी गुलपायगानी के बेटे हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हसन साफ़ी गुलपायगानी ने इमामत और विलायत के दिनों के आगमन पर मदरसा खातमुल औसिया अ.स. का दौरा किया और वहाँ मौजूद तालिबे इल्म और ग़दीर के प्रचारकों से मुलाकात की। 

उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत कुरआन की आयत یَا أَیُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنْزِلَ إِلَیْکَ مِنْ رَبِّک... से करते हुए कहा,अल्लाह ने अपने नबी को संबोधित करते हुए फरमाया कि जो कुछ भी उनकी तरफ से नाज़िल हुआ है, उसे पूरी तरह लोगों तक पहुँचाएँ।

यहाँ तक कहा गया कि अगर आपने यह संदेश नहीं पहुँचाया, तो मानो आपने रिसालत का हुक्म ही अदा नहीं किया इससे स्पष्ट होता है कि यह महत्वपूर्ण संदेश हज़रत अली अ.स.की विलायत और इमामत की घोषणा थी और अगर यह न होता, तो रिसालत अधूरी रह जाती।

उन्होंने कहा,यह सिर्फ़ उस ज़माने तक सीमित नहीं था, बल्कि आज भी हज़रत अली (अ.स.) की विलायत का संदेश लोगों तक पहुँचाना हर शिया की, खासकर दीनी तालिबे इल्म की ज़िम्मेदारी है। दुश्मन की साजिशों से डरने की ज़रूरत नहीं क्योंकि अल्लाह ने फरमाया है कि वह विलायत के प्रचारकों की हिफाज़त करेगा।

आयतुल्लाह साफ़ी गुलपायगानी ने आज के दौर में प्रचार की सुविधाओं की ओर इशारा करते हुए कहा,आज हमारे पास आधुनिक साधन मौजूद हैं, अगर हम इनका फायदा न उठाएँ, तो हमसे सख्त पूछताछ होगी।

अतीत में उलमाए दीन ने कितनी मुश्किलें झेली, कितने उलमा शहीद हुए, कितने लोग शहरों और देशों से हिजरत करके हदीसों को बचाने निकले। उनके पास न साधन थे, न सुविधाएँ, सिर्फ़ अहले बैत (अ.स.) का इश्क था, जो उन्हें प्रेरित करता था।

उन्होंने अल्लामा अमीनी (किताब अलग़दीर" के लेखक) का उदाहरण देते हुए कहा,जब वह भारत में तेज गर्मी में किताबों के दुकानों में अध्ययन करते थे, तो कहते थे कि अली (अ.स.) की मोहब्बत की गर्मी ने मौसम की गर्मी को भुला दिया। वह अपनी जान भी अली (अ.स.) पर कुर्बान कर देते थे।

उन्होंने आयत یَا أَیُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنْزِلَ إِلَیْکَ مِنْ رَبِّک... की तरफ इशारा करते हुए कहा,यह वही रिसालत है जिसे आयते ग़दीर में बयान किया गया और अल्लाह ने इसे नबी (स.अ.व.) की रिसालत का पूरा होना बताया। प्रचारकों को किसी से डरना नहीं चाहिए, सिर्फ़ अल्लाह का डर काफ़ी है।

उन्होंने आगे कहा,हौज़ए इल्मिया, खासकर हौज़ए इल्मिया क़ुम, की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की विलायत का प्रचार है। हमने अभी तक ग़दीर को दुनिया तक वैसे नहीं पहुँचाया जैसा पहुँचाना चाहिए था। आज नौजवान तालिबे इल्म को चाहिए कि अपनी जवानी जैसी अज़ीम नेमत का फायदा उठाएँ और विलायत के प्रचार में आगे बढ़ें।

उन्होंने ग़दीर के प्रचारकों को मुबारकबाद देते हुए कहा,जब खुद नबी-ए अकरम (स.अ.व.) पहली बार मुबल्लिग़-ए ग़दीर थे, तो आप भी उसी सिलसिले की कड़ी बनने पर फख्र करें।

उन्होंने कहा,ग़दीर का रास्ता सारे अंबिया (अ.स.) की रिसालत से जुड़ा हुआ है। ग़दीर से अलग होना मानो दीन से अलग होना है दीन के बहुत से अरकान हैं, लेकिन अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की विलायत दीन का सबसे बुनियादी रुक्न है। 

उन्होंने ईदे ग़दीर के महत्व को बताते हुए कहा, नबी (स.अ.व.) ने हाजियों को रोका, लौटने वालों को वापस बुलाया, रास्ते वालों को रोका, और तेज गर्मी में हज़ारों लोगों को इकट्ठा करके विलायत का ऐलान किया। फिर फरमायाआल-यौम अकमल्तु लकुम दीनकुम...' यानी अली (अ.स.) की विलायत दीन की तकमील है।

उन्होंने नबी (स.अ.व.) का यह कथन बयान किया,अगर सारे पेड़ कलम बन जाएँ, सारे समय स्याही बन जाएँ, जिन्न और इंसान सब लिखने लगें, तो भी अली (अ.स.) के फज़ाइल को पूरा नहीं लिखा जा सकता।

 

ईरानी राष्ट्रपति ने कज़िकिस्तान के विदेश मंत्री से मुलाकात के दौरान कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान हमेशा तर्कसंगत बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन दबाव धमकी और जबरदस्ती को कभी स्वीकार नहीं करेगा।

ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेिज़ेश्कियान ने कजाकिस्तान के विदेश मंत्री मुराद नूरतिलो से मुलाकात में उन्हें ईदुल अज़हा की बधाई दी। 

उन्होंने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान की परमाणु गतिविधियाँ पूरी तरह से पारदर्शी हैं और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने बार बार इसकी पुष्टि की है। 

राष्ट्रपति पिज़ेश्कियान ने कहा कि हम निरीक्षण के लिए तैयार हैं, लेकिन वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी और उपलब्धियों से किसी भी राष्ट्र को वंचित करने को अस्वीकार्य मानते हैं। 

उन्होंने जोर देकर कहा कि हम यह स्वीकार नहीं करेंगे कि अन्य लोग हमारे राष्ट्र के भविष्य के बारे में निर्णय लें। ईरान हमेशा तर्कसंगत वार्ता के लिए तैयार है, लेकिन वह कभी भी दबाव धमकी या जबरदस्ती को स्वीकार नहीं करेगा। 

इस मुलाकात में कजाकिस्तान के विदेश मंत्री मुराद नूरतिलो ने ईरान के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए अपने देश की गंभीर प्रतिबद्धता की घोषणा की है।

उन्होंने शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों के मामले में इस्लामी गणतंत्र ईरान के सिद्धांतित रुख का समर्थन करते हुए कहा कि हम परमाणु प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण उपयोग के ईरान के वैध अधिकार का समर्थन करते हैं और मुझे विश्वास है कि आपकी सरकार के प्रयास विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

 

 

फ़ुक़्हा की गार्डियन काउंसिल के सदस्य ने उलमा ए इकराम के इस्लाम और मकतब-ए-तशय्यु के मआरिफ़ की हिफ़ाज़त और इशाअत में ऐतिहासिक और तहज़ीबी भूमिका का ज़िक्र करते हुए हौज़-ए-इल्मिया क़ुम को इंक़ेलाब-ए-इस्लामी की तासीस और हिमायत का सरचश्मा बताया।

फ़ुक़हा की गार्डियन काउंसिल के सदस्य आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद रज़ा मदर्रसी यज़्दी ने हौज़-ए-इल्मिया क़ुम के क़याम (स्थापना) की सदी (शताब्दी) के मौक़े पर कहा, इमाम ख़ुमैनी (रह॰) जो इस इंक़ेलाब की क़यादत कर रहे थे, आयतुल्लाह हाएरी यज़्दी (रह॰) के मुमताज़ (प्रतिष्ठित) शागिर्दों (शिष्यों) में से थे और यह उसी हौज़ा की बरकतों का नतीजा था। 

उन्होंने कहा, उलमा-ए-इस्लाम दरअस्ल दुनिया तक इस्लाम का पैग़ाम पहुँचाने वाले हैं और मकतब-ए-तशय्यु और उसकी तहज़ीबी फ़िक्र को भी इन्हीं उलमा ने दुनिया तक पहुँचाया है। 

आयतुल्लाह मदर्रसी यज़्दी ने कहा, उलमा-ए-किराम ग़ैबत-ए-सुग़रा के आग़ाज़ से लेकर ग़ैबत-ए-कुबरा के दौरान, बल्कि उससे भी पहले से इस्लाम और अहल-ए-बैत (अ॰स॰) की ख़िदमत में मसरूफ़ रहे। उन्होंने अहल-ए-बैत (अ॰स॰) के उलूम (ज्ञान) को समाज तक मुंतक़िल किया और इल्मी व अमली दोनों मैदानों में दीन और मआरिफ़ के मुबल्लिग (प्रचारक) रहे। 

आयतुल्लाह मदर्रसी यज़्दी ने आगे कहा, नजफ़ अशरफ़, उससे पहले कूफ़ा और दूसरे उन इलाक़ों में जहाँ शिया मौजूद थे, बड़े-बड़े उलमा ने दीनी सरगर्मियाँ (गतिविधियाँ) अंजाम दीं।

यहाँ तक कि कुछ ऐसे इलाक़ों में जहाँ शिया अक़्सरियत (बहुमत) में नहीं थे, उलमा ने बड़ी मुश्किलात के बावजूद मआरिफ़-ए-अहल-ए-बैत को महफ़ूज़ रखा, हालाँकि उनकी क़द्र व मंज़िलत आज भी पूरी तरह शिनाख़्ता (पहचानी) नहीं है। 

उन्होंने दौर-ए-मोआसिर में उलमा के किरदार की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, जैसा कि रहबर-ए-मोअज़्ज़म क्रांति बार-बा इरशाद फ़रमा चुके हैं, मरहूम आयतुल्लाह शेख़ अब्दुल करीम हाएरी यज़्दी (रह॰) बड़ी दुश्वार (कठिन) ऐतिहासिक हालात में इराक़ से ईरान आए और हौज़-ए-इल्मिया क़ुम की अज़ीम बुनियाद को दोबारा इस्तिवार (मजबूत) किया। 

आयतुल्लाह मदर्रसी यज़्दी ने कहा, हाज़ शेख़ अब्दुल करीम हाएरी यज़्दी (रह॰) ने सख़्तियों और महरूमियों को बर्दाश्त करते हुए अपने शागिर्दों के हमराह (साथ) इस मुबारक शजर को क़ुम में लगाया, जो अल्लाह के फ़ज़्ल से दिन-ब-दिन मज़बूततर हुआ और मराजय ए सलासा (तीन मरजा) के दौर में तरक्की पाया।

 

हाजी मास्टर साग़र हुसैनी अमलोवी: हज जीवन और भक्ति की एक आध्यात्मिक और आस्था-प्रेरक यात्रा है जिसे "इश्क़े इलाही" कहा जाता है।

हज केवल इबादत का एक रूप नहीं है, बल्कि इश्क़े इलाही की एक आध्यात्मिक यात्रा है, जहाँ बंदा खुद को कदम दर कदम "शायरुल्लाह" और "आयत ए बय्येनात" की उपस्थिति में महसूस करता है। उत्तर प्रदेश के राज्य हज निरीक्षक, जिन्हें लगातार तीन वर्षों से हज का सौभाग्य प्राप्त है, कहते हैं कि यह यात्रा हर वर्ष एक नई आध्यात्मिक स्थिति, नई जिम्मेदारी और भक्ति की एक नई भावना लेकर आती है।हाजी मास्टर साग़र हुसैनी अमलोवी ने हज के अपने अनुभव और तास्सुरात साझा कीं, जिन्हें हम प्रश्नोत्तर सत्र के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।

हाजी मास्टर साग़र हुसैनी साहब, आपको लगातार तीन वर्षों तक हज करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इस यात्रा की शुरुआत और निरंतरता के बारे में हमें बताएं।

मास्टर साग़र हुसैनी: अल्हम्दुलिल्लाह, मैंने अपना पहला हज 2023 में अपनी ओर से करने के इरादे से किया था। फिर 2024 में, मुझे उत्तर प्रदेश राज्य हज समिति द्वारा ड्रा के माध्यम से “खादेमुल हुज्जाज” के रूप में चुना गया और मैंने अपनी दादी, मरहूमा अजीज अल-निसा बिन्त हाजी सफ़दर हुसैन की ओर से हज किया। इस वर्ष यानि 2025 में मुझे दूसरी बार उत्तर प्रदेश राज्य हज समिति द्वारा "राज्य हज निरीक्षक" परीक्षा एवं साक्षात्कार उत्तीर्ण कर हज पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ तथा मैंने अपनी परदादी, मरहूमा उम्मे कुलसूम, मरहूम हाजी अब्दुल मजीद की पत्नी की ओर से हज किया।

इस वर्ष हज के दौरान आपकी क्या जिम्मेदारियां रहीं?

मास्टर साग़र हुसैनी: इस वर्ष मैंने राज्य हज निरीक्षक के रूप में अपना कर्तव्य पूरी लगन एवं मेहनत से निभाया। अजीजिया स्थित बिल्डिंग नंबर 121 में मुबारकपुर, आजमगढ़, मऊ, लखनऊ आदि से आए हज यात्रियों से मुलाकात की तथा महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की। अजीजिया स्थित बिल्डिंग नंबर 437 में शिया विद्वानों एवं मुंबई एम्बार्केशन के यात्रियों से भी चर्चा की।


हज के दौरान अपनी कुछ यादगार मुलाकातों के बारे में बताएँ।

मास्टर साग़र हुसैनी: हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी साहिब क़िबला, जो मेलबर्न में इमाम जुमा और ऑस्ट्रेलिया के शिया उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष हैं, एक विशेष बैठक के लिए आए और सामूहिक रूप से मगरिब की नमाज़ की इमामत की। यह मुलाकात मेरे लिए बहुत यादगार रही।

मिन्हाज-उल-कुरान मूवमेंट के संस्थापक और संरक्षक ने कहा कि हज करना एक बड़ी सआदत है। जो लोग हज की बरकत हासिल करते हैं, वे एक मासूम बच्चे की तरह पापों से शुद्ध हो जाते हैं और अल्लाह तआला उन लोगों की हर दुआ को स्वीकार करता है जो ईमानदारी से हज करते हैं। हाजीयो को इस्लामी राष्ट्र की एकता और एकजुटता, शांति और समृद्धि के लिए दुआ करनी चाहिए।

मिन्हाज-उल-कुरान मूवमेंट के संस्थापक और संरक्षक-इन-चीफ डॉ. मुहम्मद ताहिरुल क़ादरी ने हज करने का सवाब प्राप्त करने वाले लाखों हाजीयो को बधाई देते हुए कहा कि हज एक आध्यात्मिक यात्रा है जो एक व्यक्ति को उसके निर्माता से जोड़ती है। हज सिर्फ शारीरिक मेहनत का नाम नहीं है, बल्कि यह दिल और दिमाग की पवित्रता, नीयत की शुद्धता और विनम्रता का प्रतीक है। दुनिया भर से लाखों मुसलमान एक ही लिबास में लब्बैक की आवाज के साथ सजदा करते हैं। हज इस्लामी भाईचारे और बहनचारे को बढ़ावा देने का एक जरिया है।

डॉ. ताहिरुल क़ादरी ने कहा कि आज हमें हज के संदेश को समझने और उसे अपने जीवन में अपनाने की जरूरत है। हमें सांप्रदायिकता, पक्षपात, नफरत और भेदभाव की सभी मूर्तियों को ध्वस्त करना होगा। उन्होंने कहा कि हज करना एक बड़ी नेमत है। हज की नेमत हासिल करने वाला मासूम बच्चे की तरह गुनाहों से पाक हो जाता है और अल्लाह तआला सच्चे दिल से हज करने वाले की हर दुआ कबूल करता है। हाजियों को इस्लामी राष्ट्र की एकता और एकजुटता तथा शांति और समृद्धि के लिए दुआ करनी चाहिए।

उन्होंने अपने संदेश में कहा कि हज इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं में से एक है जो इस्लामी राष्ट्र की एकता और एकजुटता को दर्शाता है। हज मानवीय समानता का एक महान उदाहरण है। हज की रस्में निभाते समय कोई भी गोरा, काला, अमीर, गरीब, छोटा या बड़ा नहीं होता, सभी लोग विनम्रता और नम्रता के साथ अल्लाह के सामने सजदा करते हैं और उसकी रहमत की दुआ मांगते हैं। व्यावहारिक जीवन के हर कोने में यही सोच, चिंतन और दृष्टिकोण दिखना चाहिए।

 

 

आयतुल्लाह सैय्यद मोहम्मद सईदी ने अपने ईद अल-अज़हा की नमाज के खुत्बे में कहा कि ईद अल-अज़हा आज्ञाकारिता और दासता के उत्थान का दिन है और अल्लाह के समक्ष पूर्ण समर्पण और संतुष्टि का दिन है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली खामेनेई को नेतृत्व के पद पर पदोन्नत करना इस कुरानिक वादे की स्पष्ट अभिव्यक्ति है: “अल यौमा यऐसल लज़ीना कफ़रू मिन दीनेकुम।”

क़ुम के इमाम जुमा केआयतुल्लाह सैय्यद मोहम्मद सईदी ने ईद-उल-अज़हा की नमाज़ में अपने उपदेश में कहा कि ईद-उल-अज़हा आज्ञाकारिता और दासता के उत्थान का दिन है और अल्लाह के समक्ष पूर्ण समर्पण और संतुष्टि का दिन है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामेनेई को नेतृत्व के पद पर बिठाना कुरान के इस वादे की स्पष्ट अभिव्यक्ति है: "अल यौमा यऐसल लज़ीना कफ़रू मिन दीनेकुम।" उस दिन से लेकर आज तक, सर्वोच्च नेता के नेतृत्व में राष्ट्र के लिए सबसे अच्छे निर्णय लिए गए हैं।

उन्होंने क़ुम में मुसल्ला ए क़ुद्स में अपने ईद की नमाज़ के उपदेश में कहा कि ईद-उल-अज़हा पैगंबर इब्राहीम (अ) की महान इलाही परीक्षा की याद दिलाता है जिसमें उन्होंने अल्लाह की खातिर हर रिश्ते का त्याग करके दासता का एक उच्च उदाहरण पेश किया।

आयतुल्लाह सईदी ने कहा कि ईद-उल-अज़हा सिर्फ़ बाहरी कुर्बानी का दिन नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि, हृदय की शुद्धि और सांसारिक मोह-माया से मुक्ति का अवसर भी है। जैसा कि इमाम रज़ा (अ) ने कहा: कुर्बानी किसी व्यक्ति के कर्मों और आत्मा को सभी प्रकार के प्रदूषण से शुद्ध करने का एक साधन है।

उन्होंने कहा कि ईद-उल-अज़हा आध्यात्मिक यात्रा का अंत नहीं है, बल्कि ईद-उल-ग़दीर जैसी महान घटना की प्रस्तावना है, वह दिन जब विलायत, जो नबूवत का सार है, क़यामत के दिन तक राष्ट्र को सौंप दी गई थी।

क़ुम में इमाम जुमा ने इमाम खुमैनी (र) और खुरदाद 15 के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि इमाम की याद को ज़िंदा रखना ही काफी नहीं है, बल्कि उनके मार्ग को ज़िंदा रखना ही सच्ची वफ़ादारी है।

उन्होंने कहा कि मरहूम इमाम ख़ुमैनी के निधन के बाद हज़रत आयतुल्लाह खामेनेई को नेता के रूप में चुना जाना विशेषज्ञों की सभा द्वारा एक बहुत ही संवेदनशील और ऐतिहासिक कदम था, जिसने शोकग्रस्त राष्ट्र के दिलों को सांत्वना दी।

आयतुल्लाह सईदी ने कहा कि सर्वोच्च नेता का चुनाव इस ईश्वरीय घोषणा का एक व्यावहारिक प्रकटीकरण था: "अल यौमा यऐसल लज़ीना कफ़रू मिन दीनेकुम," और उस दिन से लेकर आज तक, सर्वोच्च नेता ने राष्ट्र को हर क्षेत्र में सर्वोत्तम मार्ग दिखाया है। अपने हालिया हज संदेश और 15 जून को अपने भाषण में, सर्वोच्च नेता ने विशेष रूप से फिलिस्तीन के उत्पीड़ित और संघर्षरत लोगों के पक्ष में और ज़ायोनी आक्रामकता और अमेरिकी अहंकार के खिलाफ एक मजबूत रुख अपनाया।

 

 

 कब्जे वाले फिलिस्तीन की ओर उड़ानों से संबंधित एयरलाइंस पर संभावित हमलों की श्रृंखला में भारतीय एयरलाइन कंपनी एयर इंडिया ने घोषणा की है कि वह इस महीने के अंत तक तेल अवीव के लिए अपनी उड़ानें निलंबित रखेगी।

कब्जे वाले फिलिस्तीन की ओर उड़ानों से संबंधित एयरलाइंस पर संभावित हमलों की श्रृंखला में भारतीय एयरलाइन कंपनी एयर इंडिया ने घोषणा की है कि वह इस महीने के अंत तक तेल अवीव के लिए अपनी उड़ानें निलंबित रखेगी। 

इजरायली मीडिया सूत्रों के अनुसार, एयर इंडिया ने घोषणा की है कि वह तेल अवीव से आने-जाने वाली अपनी सभी उड़ानों के निलंबन को जून 2025 के अंत तक बढ़ा रही है। यह निर्णय पश्चिमी एशिया में जारी तनाव, विशेष रूप से यमन द्वारा इजरायल पर मिसाइल हमलों के संदर्भ में सुरक्षा चिंताओं के कारण लिया गया है। 

यह पहली बार नहीं है जब एयर इंडिया ने इजरायल की ओर अपनी उड़ानें निलंबित की हों। दो महीने पहले भी ईरान द्वारा कब्जे वाले फिलिस्तीन पर मिसाइल और ड्रोन हमलों के बाद इस कंपनी ने अपनी उड़ानें रोक दी थीं। 

हाल के महीनों में यमनी सेनाओं के मिसाइल हमलों ने इजरायल के बेन गुरियन हवाई अड्डे को कई बार निशाना बनाया है, जिसके कारण कई अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस ने भी अपनी उड़ानें रद्द कर दी हैं। 

इसी संदर्भ में अंसारुल्लाह यमन की मीडिया समिति के उप प्रमुख नसरुद्दीन आमिर ने घोषणा की थी कि बेन गुरियन हवाई अड्डे सहित इजरायल के सभी हवाई अड्डे अब असुरक्षित हो चुके हैं और यमनी फैसले के तहत जायोनी हवाई सीमाओं को वैश्विक उड़ानों के लिए प्रतिबंधित घोषित किया गया है। 

उन्होंने सभी वैश्विक एयरलाइंस को चेतावनी दी थी कि वे अपनी और अपने यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इजरायल के हवाई अड्डों की ओर उड़ानें तुरंत बंद कर दें।

 

कई वर्षों से निर्माणाधीन कर्बला में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का अब उद्घाटन होने वाला है। इराकी प्रधानमंत्री मुहम्मद शिया अल-सुदानी ने घोषणा की है कि इस महत्वपूर्ण परियोजना का औपचारिक उद्घाटन अरबाईन के दिनों में किया जाएगा।

कर्बला में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को इराक की महत्वपूर्ण और रणनीतिक परियोजनाओं में से एक माना जाता है और इसका निर्माण अब अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। इराकी परिवहन मंत्रालय ने हाल ही में एक बयान में कहा कि कर्बला और मोसिल में हवाई अड्डे इस साल पूरे हो जाएंगे और चालू हो जाएंगे।

कर्बला हवाई अड्डे के निर्माण कार्य की समीक्षा करते हुए, प्रधानमंत्री अल-सुदानी ने परिवहन मंत्रालय, कर्बला गवर्नरेट और इमाम हुसैन (अ) दरगाह को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह हवाई अड्डा वैश्विक मंच पर इराक की एक नई पहचान बनेगा और दुनिया भर से जाएरीन के स्वागत के लिए एक गरिमापूर्ण प्रवेश द्वार साबित होगा।

इराकी परिवहन मंत्रालय के अनुसार, 500 मिलियन डॉलर की इस परियोजना का 78 प्रतिशत से अधिक काम पूरा हो चुका है, साथ ही मुख्य रनवे का निर्माण भी लगभग पूरा हो चुका है। इसके अलावा, मोसिल और नासिरियाह के हवाई अड्डे भी इस साल चालू होने वाले हैं। इराकी सरकार ने घोषणा की है कि परियोजना की गति को और तेज़ करने के लिए हर दो महीने में नियमित समीक्षा बैठकें आयोजित की जाएंगी। कर्बला में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के इराकी हवाई परिवहन का एक प्रमुख केंद्र बनने की उम्मीद है, जिसकी क्षमता प्रति वर्ष 20 मिलियन यात्रियों की है।

 

आयतुल्लाह सय्यद अहमद अलमुल हुदा ने ईद-उल-अज़हा की नमाज़ में कहा कि इस्लामी क्रांति की सफलता और निरंतरता उन लोगों के ईमान का परिणाम है जो इमाम और नेतृत्व के ईमान से जुड़े हैं, और दुश्मन इस संबंध को तोड़ने के लिए समाज में भ्रष्टाचार और अनैतिकता को बढ़ावा दे रहा है।

आयतुल्लाह सय्यद अहमद अलमुल हुदा ने ईद-उल-अज़हा की अपनी नमाज़ में कहा कि इस्लामी क्रांति की सफलता और निरंतरता उन लोगों के ईमान का परिणाम है जो इमाम और नेतृत्व के ईमान से जुड़े हैं, और दुश्मन इस संबंध को तोड़ने के लिए समाज में भ्रष्टाचार और अनैतिकता को बढ़ावा दे रहा है।

14वीं और 15वीं खिरदाद की ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इमाम खुमैनी के नेतृत्व में शुरू हुआ आंदोलन किसी ताकत पर नहीं बल्कि विशुद्ध आस्था पर आधारित था। "न तो इमाम के पास ताकत थी और न ही लोगों के पास, लेकिन आस्था की ताकत ने अत्याचारी शासन को गिरा दिया।"

आयतुल्लाह अलमुल हुदा ने चेतावनी दी कि दुश्मन को पता चल गया है कि "आस्था" क्रांति का संरक्षक है, यही वजह है कि वह भ्रष्टाचार और अनैतिकता को बढ़ावा देकर आस्था के इस बंधन को कमजोर करना चाहता है। उन्होंने कहा कि आज कुछ आंतरिक तत्व भी आजादी और प्रगति के नाम पर भ्रष्टाचार को सही ठहरा रहे हैं, जबकि यह सब दुश्मन की साजिश का हिस्सा है।

उन्होंने कहा: "आस्थावान युवा तीर्थयात्री बनकर मातृभूमि की रक्षा करते हैं, लेकिन अगर भ्रष्टाचार आस्था को खत्म कर दे तो न तो युवा बचेगा और न ही क्रांति।"

आयतुल्लाह अलमुल हुदा ने हिजाब की कमी को "आज़ादी" नहीं बल्कि "भ्रष्टाचार का विस्तार" कहा और कहा कि सार्वजनिक गौरव और क्रांतिकारी उत्साह को देश को गुमराही का शिकार नहीं बनने देना चाहिए।

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इमाम खुमैनी (र) का मार्ग आज भी जीवित है, और अगर युवा विश्वासी आस्था की सीमाओं पर अडिग रहेंगे, तो अहंकार पराजित होगा, और यह उभरने में तेज़ी लाने का आधार होगा।