
رضوی
इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व अत्यंत सुंदर एवं आकर्षक था
1970 के दशक में तेल के उत्पादन और उसके मूल्य में वृद्धि के साथ ही ईरान के अत्याचारी शासक मुहम्मद रज़ा पहलवी को अधिक शक्ति का आभास हुआ और उसने अपने विरोधियों के दमन और उन्हें यातनाए देने में वृद्धि कर दी। शाह की सरकार ने पागलपन की सीमा तक पश्चिम विशेष कर अमरीका से सैन्य शस्त्रों व उपकरणों तथा उपभोग की वस्तुओं की ख़रीदारी में वृद्धि की तथा इस्राईल के साथ खुल कर व्यापारिक एवं सैन्य संबंध स्थापित किए। मार्च 1975 के अंत में शाह ने दिखावे के रस्ताख़ीज़ नामक दल के गठन और एकदलीय व्यवस्था की स्थापाना के साथ ही तानाशाही को उसकी चरम सीमा पर पहुंचा दिया। उसने घोषणा की कि समस्त ईरानी जनता को इस दल का सदस्य बनना चाहिए और जो भी इसका विरोधी है वह ईरान से निकल जाए। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने इसके तुरंत बाद एक फ़तवा जारी करके घोषणा की कि इस दल द्वारा इस्लाम तथा ईरान के मुस्लिम राष्ट्र के हितों के विरोध के कारण इसमें शामिल होना हराम और मुसलमानों के विरुद्ध अत्याचार की सहायता करने के समान है। इमाम ख़ुमैनी तथा कुछ अन्य धर्मगुरुओं के फ़तवे अत्यंत प्रभावी रहे और शाह की सरकार के व्यापक प्रचारों के बावजूद कुछ साल के बाद उसने रस्ताख़ीज़ दल की पराजय की घोषणा करते हुए उसे भंग कर दिया।
अक्तूबर वर्ष 1977 में शाह के एजेंटों के हाथों इराक़ में इमाम ख़ुमैनी के बड़े पुत्र आयतुल्लाह सैयद मुस्तफ़ा ख़ुमैनी की शहादत और इस उपलक्ष्य में ईरान में आयोजित होने वाली शोक सभाएं, ईरान के धार्मिक केंद्रों तथा जनता के पुनः उठ खड़े होने का आरंभ बिंदु थीं। उसी समय इमाम ख़ुमैनी ने इस घटना को ईश्वर की गुप्त कृपा बताया था। शाह की सरकार द्वारा इमाम ख़ुमैनी और धर्मगुरुओं के साथ शत्रुता के क्रम को आगे बढ़ाते हुए शाह के एक दरबारी लेखक ने इमाम के विरुद्ध एक अपमाजनक लेख लिख कर ईरानी जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाई। इस लेख के विरोध में जनता सड़कों पर निकल आई। आरंभ में पवित्र नगर क़ुम के कुछ धार्मिक छात्रों और क्रांतिकारियों ने 9 जनवरी वर्ष 1978 को सड़कों पर निकल कर प्रदर्शन किया जिसे पुलिस ने ख़ून में नहला दिया। किंतु धीरे धीरे अन्य नगरों के लोगों ने भी क़ुम की जनता की भांति प्रदर्शन आरंभ कर दिए और दमन एवं घुटन के वातावरण का कड़ा विरोध किया।
आंदोलन दिन प्रतिदनि बढ़ता जा रहा था और शाह को विवश हो कर अपने प्रधानमंत्री को बदलना पड़ा। अगला प्रधानमंत्री जाफ़र शरीफ़ इमामी था जो राष्ट्रीय संधि की सरकार के नारे के साथ सत्ता में आया था। उसके शासन काल में राजधानी तेहरान के एक चौराहे पर लोगों का बड़ी निर्ममता से जनसंहार किया गया जिसके बाद तेहरान तथा ईरान के 11 अन्य बड़े नगरों में कर्फ़्यू लगा दिया गया। इमाम ख़ुमैनी ने, जो इराक़ से स्थिति पर गहरी दृष्टि रखे हुए थे, ईरानी जनता के नाम एक संदेश में हताहत होने वालों के परिजनों से सहृदयता जताते हुए आंदोलन के भविष्य को इस प्रकार चित्रित कियाः “शाह को जान लेना चाहिए कि ईरानी राष्ट्र को उसका मार्ग मिल गया है और वह जब तक अपराधियों को उनके सही ठिकाने तक नहीं पहुंचा देगा, चैन से नहीं बैठेगा। ईरानी राष्ट्र अपने व अपने पूर्वजों का प्रतिशोध इस क्रूर परिवार से अवश्य लेगा। ईश्वर की इच्छा से अब पूरे देश में तानाशाही व सरकार के विरुद्ध आवाज़ें उठ रही हैं और ये आवाज़ें अधिक तेज़ होती जाएंगी”। शाह की सरकार के विरुद्ध संघर्ष को आगे बढ़ाने में इमाम ख़ुमैनी की एक शैली जनता को अहिंसा, हड़ताल और व्यापक प्रदर्शन का निमंत्रण देने पर आधारित थी। इस प्रकार ईरान की जनता ने इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में अत्याचारी तानाशाही शासन के विरुद्ध सार्वजनिक आंदोलन आरंभ किया।
इराक़ की बअसी सरकार के दबाव और विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों के चलते इमाम ख़ुमैनी अक्तूबर वर्ष 1978 में इराक़ से फ़्रान्स की ओर प्रस्थान कर गए और पेरिस के उपनगरीय क्षेत्र नोफ़ेल लोशातो में रहने लगे। फ़्रान्स के तत्कालीन राष्ट्रपति ने एक संदेश में इमाम ख़ुमैनी से कहा कि वे हर प्रकार की राजनैतिक गतिविधि से दूर रहें। उन्होंने इसके उत्तर में कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि इस प्रकार का प्रतिबंध प्रजातंत्र के दावों से विरोधाभास रखता है और वे कभी भी अपनी गतिविधियों और लक्ष्यों की अनदेखी नहीं करेंगे। इमाम ख़ुमैनी चार महीनों तक नोफ़ेल लोशातो में रहे और इस अवधि में यह स्थान, विश्व के महत्वपूर्ण सामाचारिक केंद्र में परिवर्तित हो गया था। उन्होंने विभिन्न साक्षात्कारों और भेंटों में शाह की सरकार के अत्याचारों और ईरान में अमरीका के हस्तक्षेप से पर्दा उठाया तथा संसार के समक्ष अपने दृष्टिकोण रखे। इस प्रकार संसार के बहुत से लोग उनके आंदोलन के लक्ष्यों व विचारों से अवगत हुए। ईरान में भी मंत्रालयों, कार्यालयों यहां तक कि सैनिक केंद्रों में भी हड़तालें होने लगीं जिसके परिणाम स्वरूप शाह जनवरी वर्ष 1979 में ईरान से भाग गया। इसके 18 दिन बाद इमाम ख़ुमैनी वर्षों से देश से दूर रहने के बाद स्वदेश लौटे। उनके विवेकपूर्ण नेतृत्व की छाया में तथा ईरानी जनता के त्याग व बलिदान से 11 फ़रवरी वर्ष 1979 को ईरान से शाह के अत्याचारी शासन की समाप्ति हुई। अभी इस ऐतिहासिक परिवर्तन को दो महीने भी नहीं हुए थे कि ईरान की 98 प्रतिशत जनता ने एक जनमत संग्रह में इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के पक्ष में मत दिया।
इमाम ख़ुमैनी जनता की भूमिका पर अत्यधिक बल देते थे। उनके दृष्टिकोण में जिस प्रकार से धर्म, राजनीति से अलग नहीं है उसी प्रकार सरकार भी जनता से अलग नहीं है। वे इस संबंध में कहते हैः“ हमारी सरकार का स्वरूप इस्लामी गणतंत्र है। गणतंत्र का अर्थ यह है कि यह लोगों के बहुमत पर आधारित है और इस्लामी का अर्थ यह है कि यह इस्लाम के क़ानूनों के अनुसार है”। दूसरी ओर इमाम ख़ुमैनी राजनैतिक मामलों में जनता की भागीदारी को, चुनावों में भाग लेने से इतर समझते थे और इस बात को उन्होंने अनेक बार अपने भाषणों और वक्तव्यों में बयान भी किया था।
ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने ईरान की इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को धराशाही करने का हर संभव प्रयास किया। वे जानते थे कि ईरान की इस्लामी क्रांति अन्य देशों में भी जनांदोलन आरंभ होने का कारण बन सकती है और राष्ट्रों को अत्याचारी शासकों के विरुद्ध उठ खड़े होने के लिए प्रेरित कर सकती है। ईरान की इस्लामी क्रांति से मुक़ाबले हेतु साम्राज्य की एक शैली यह थी कि इमाम ख़ुमैनी की हत्या के लिए देश के कुछ बिके हुए तत्वों को प्रयोग किया जाए क्योंकि वे जानते थे कि सरकार के नेतृत्व में उनकी भूमिका अद्वितीय है किंतु उनकी हत्या का षड्यंत्र विफल हो गया।
इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को उखाड़ फेंकने हेतु शत्रुओं की एक अन्य शैली, देश को भीतर से तोड़ना और उसका विभाजन करना था। शत्रुओं ने ईरान के विभिन्न क्षेत्रों में जातीय भावनाएं भड़का कर बड़ी समस्याएं उत्पन्न कीं किंतु इसका भी कोई परिणाम नहीं निकला और इस्लामी क्रांति के महान नेता की युक्तियों और जनता द्वारा उनके आज्ञापालन से ये समस्याएं भी समाप्त हो गईं। इमाम ख़ुमैनी एकता व एकजुटता के लिए सदैव जनता का आह्वान करते रहते थे और कहते थे कि धर्म और जाति को दृष्टिगत रखे बिना सभी को समान अधिकार मिलने चाहिए और हर ईरानी को पूरी स्वतंत्रता के साथ न्यायपूर्ण जीवन बिताने का अवसर दिया जाना चाहिए।
जब साम्राज्यवादियों को ईरानी जनता की एकजुटता और इमाम ख़ुमैनी के सशक्त नेतृत्व के मुक़ाबले में पराजय हो गई तो उन्होंने ईरान के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंधों और विषैले कुप्रचारों को भी पर्याप्त नहीं समझा और ईरान पर आठ वर्षीय युद्ध थोप दिया। ईरान की त्यागी जनता को, जो अभी अभी तानाशाही शासन के चंगुल से मुक्त हुई थी और इस्लाम की शरण में स्वतंत्रता का स्वाद चखना चाहती थी, एक असमान युद्ध का सामना करना पड़ा। सद्दाम द्वारा ईरान पर थोपे गए युद्ध ने, इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व के एक अन्य आयाम को प्रदर्शित किया और वे युद्ध के उतार-चढ़ाव से भरे काल से जनता को आगे बढ़ाने में सफल रहे। अमरीका, इस्राईल, फ़्रान्स और जर्मनी के अतिरिक्त तीस अन्य देशों ने इराक़ को शस्त्र, सैन्य उपकरण तथा सैनिक दिए जबकि ईरान पर प्रतिबंध लगे हुए थे और इस युद्ध के लिए वह बड़ी कठिनाई से सैन्य उपकरण उपलब्ध कर पाता था। इस बीच ईरानी योद्धाओं का मुख्य शस्त्र, साहस, ईमान और ईश्वर का भय था। अपने नेता के आदेश पर बड़ी संख्या में रणक्षेत्र का रुख़ करने वाले ईरानी योद्धाओं ने अपने देश व क्रांति की रक्षा में त्याग, बलिदान और साहस की अमर गाथा लिख दी।
इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व अत्यंत सुंदर एवं आकर्षक था। वे जीवन में अनुशासन और कार्यक्रम के अंतर्गत काम करने पर कटिबद्ध थे। वे अपने दिन और रात के समय में से एक निर्धारित समय उपासना, क़ुरआने मजीद की तिलावत और अध्ययन में बिताते थे। दिन में तीन चार बार पंद्रह पंद्रह मिनट टहलना और उसी दौरान धीमे स्वर में ईश्वर का गुणगान करना तथा चिंतन मनन करना भी उनके व्यक्तित्व का भाग था। यद्यपि उनकी आयु नब्बे वर्ष तक पहुंच रही थी किंतु वे संसार के सबसे अधिक काम करने वाले राजनेताओं में से एक समझे जाते थे। प्रतिदिन के अध्ययन के अतिरिक्त वे देश के रेडियो व टीवी के समाचार सुनने व देखने के अतिरिक्त कुछ विदेशी रेडियो सेवाओं के समाचारों व समीक्षाओं पर भी ध्यान देते थे ताकि क्रांति के शत्रुओं के प्रचारों से भली भांति अवगत रहें। प्रतिदिन की भेंटें और सरकारी अधिकारियों के साथ होने वाली बैठकें कभी इस बात का कारण नहीं बनती थीं कि आम लोगों के साथ इमाम ख़ुमैनी के संपर्क में कमी आ जाए। वे समाज के भविष्य के बारे में जो भी निर्णय लेते थे उसे अवश्य ही पहले जनता के समक्ष प्रस्तुत करते थे। उनके समक्ष बैठने वाले लोग बरबस ही उनके आध्यात्मिक तेज व आकर्षण से प्रभावित हो जाते थे और उनकी आंखों से आंसू बहने लगते थे। लोग हृदय की गहराइयों से अपने नारों में ईश्वर से प्रार्थना करते थे कि वह इमाम ख़ुमैनी को दीर्घायु प्रदान करे। कुल मिला कर यह कि इमाम ख़ुमैनी का संपूर्ण जीवन ईश्वर तथा लोगों की सेवा के लिए समर्पित था।
अंततः 3 जून वर्ष 1989 को उस हृदय ने धड़कना बंद कर दिया जिसने दसियों लाख हृदयों को ईश्वर व अध्यात्म के प्रकाश की ओर उन्मुख किया था। कई लम्बी शल्य चिकित्साओं के बाद इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने 87 वर्ष की आयु में इस संसार को विदा कहा। उन्होंने अपनी वसीयत के अंत में लिखा थाः“ मैं शांत हृदय, संतुष्ट मन, प्रसन्न आत्मा और ईश्वर की कृपा के प्रति आशावान अंतरात्मा के साथ भाइयों और बहनों की सेवा से विदा लेकर अपने अनंत ठिकाने की ओर प्रस्थान कर रहा हूं और मुझे आप लोगों की नेक दुआओं की बहुत आवश्यकता है”।
इमाम ख़ुमैनी एक बेमिसाल हस्ती का नाम।
चार जून सन 1989 ईसवी को दुनिया एक ऐसी महान हस्ती से बिछड़ हो गई जिसने अपने चरित्र, व्यवहार, हिम्मत, समझबूझ और अल्लाह पर पूरे यक़ीन के साथ दुनिया के सभी साम्राज्यवादियों ख़ास कर अत्याचारी व अपराधी अमरीकी सरकार का डटकर मुक़ाबला किया और इस्लामी प्रतिरोध का झंडा पूरी दुनिया पर फहराया। इमाम खुमैनी की पाक और इलाही ख़ौफ़ से भरी ज़िंदगी इलाही रौशनी फ़ैलाने वाला आईना है और वह पैगम्बरे इस्लाम (स) की जीवनशैली से प्रभावित रहा है। इमाम खुमैनी ने पैगम्बरे इस्लाम (स) की ज़िंदगी के सभी आयामों को अपने लिये आदर्श बनाते हुये पश्चिमी और पूर्वी समाजों के कल्चर की गलत व अभद्र बातों को रद्द करके आध्यात्म एंव अल्लाह पर यक़ीन की भावना समाजों में फैला दी और यही वह माहौल था जिसमें बहादुर और ऐसे जवानों का प्रशिक्षण हुआ जिन्होने इस्लाम का बोलबाला करने में अपने ज़िंदगी को क़ुरबान करने में भी हिचकिचाहट से काम नहीं लिया।
पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद (स) की पैगम्बरी के ऐलान अर्थात बेसत की तारीख़ भी जल्दी ही गुज़री है इसलिये हम इमाम खुमैनी के कैरेक्टर पर इस पहलू से रौशनी डालने की कोशिश करेंगे कि उन्होने इस युग में किस तरह पैगम्बरे इस्लाम (स) के चरित्र और व्यवहार को व्यवहारिक रूप में पेश किया।
पश्चिमी दुनिया में घरेलू कामकाज को महत्वहीन समझा जाता है। यही कारण है कि अनेक महिलायें अपने समय को घर के बाहर गुज़ारने में ज़्यादा रूचि रखती हैं। जबकि पैगम्बरे इस्लाम (स) के हवाले से बताया जाता है कि पैगम्बरे इस्लाम (स) ने एक दिन अपने पास मौजूद लोगों से पूछा कि वह कौन से क्षण हैं जब औरत अल्लाह से बहुत क़रीब होती है? किसी ने भी कोई उचित जवाब नहीं दिया। जब हज़रत फ़ातिमा की बारी आई तो उन्होने कहा वह क्षण जब औरत अपने घर में रहकर अपने घरेलू कामों और संतान के प्रशिक्षण में व्यस्त होती है तो वह अल्लाह के बहुत ज़्यादा क़रीब होती है। इमाम खुमैनी र.ह भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पदचिन्हों पर चलते हुये घर के माहौल में मां की भूमिका पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देते थे। कभी-कभी लोग इमाम ख़ुमैनी से कहते थे कि औरत क्यों घर में रहे तो वह जवाब देते थे कि घर के कामों को महत्वहीन न समझो, अगर कोई एक आदमी का प्रशिक्षण कर सके तो उसने समाज के लिये बहुत बड़ा काम किया है। मुहब्बत व प्यार औरत में बहुत ज़्यादा होता है और परिवार का माहौल और आधार प्यार पर ही होता है।
इमाम खुमैनी अपने अमल और व्यवहार में अपनी बीवी के बहुत अच्छे सहायक थे। इमाम खुमैनी की बीवी कहती हैः चूंकि बच्चे रात को बहुत रोते थे और सवेरे तक जागते रहते थे, इस बात के दृष्टिगत इमाम खुमैनी ने रात के समय को बांट दिया था। इस तरह से कि दो घंटे वह बच्चों को संभालते और मैं सोती थी और फिर दो घंटे वह सोते थे और मैं बच्चों को संभालती थी। अच्छी व चरित्रवान संतान, कामयाब ज़िंदगी का प्रमाण होती है। माँ बाप के लिये जो बात बहुत ज़्यादा महत्व रखती है वह यह है कि उनका व्यवसाय और काम तथा ज़िंदगी की कठिनाइयां उनको इतना व्यस्त न कर दें कि वह अपनी संतान के पालन पोषण एवं प्रशिक्षण की अनदेखी करने लगें।
पैगम्बरे इस्लाम (स) की हदीस हैः अच्छी संतान, जन्नत के फूलों में से एक फूल है इसलिये ज़रूरी है कि माँ-बाप अपने बच्चों के विकास और कामयाबियों के लिये कोशिश करते रहें।
इमाम ख़ुमैनी बच्चों के प्रशिक्षण की ओर से बहुत ज़्यादा सावधान रहते थे। उन्होने अपनी एक बेटी से, जिन्होंने अपने बच्चे की शैतानियों की शिकायत की थी कहा थाः उसकी शैतानियों को सहन करके तुमको जो सवाब मिलता है उसको मैं अपनी सारी इबादतों के सवाब से बदलने को तैयार हूं। इस तरह इमाम खुमैनी बताना चाहते थे कि बच्चों की शैतानियों पर क्रोधित न हों, और संतान के पालने पोसने में मायें जो कठिनाइयां सहन करती हैं वह अल्लाह की निगाह में भी बहुत महत्वपूर्ण हैं और परिवार व समाज के लिये भी इनका महत्व बहुत ज़्यादा है।
इमाम खुमैनी र.ह के क़रीबी संबंधियों में से एक का कहना है कि इमाम खुमैनी का मानना था कि बच्चों को आज़ादी दी जाए। जब वह सात साल का हो जाये तो उसके लिये सीमायें निर्धारित करो। वह इसी तरह कहते थे कि बच्चों से हमेशा सच बोलें ताकि वह भी सच्चे बनें, बच्चों का आदर्श हमेशा माँ बाप होते हैं। अगर उनके साथ अच्छा व्यवहार करें तो वह अच्छे बनेंगे। आप बच्चे से जो बात करें उसे व्यवहारिक बनायें।
हजरत मोहम्मद (स) बच्चों के प्रति बहुत कृपालु थे। उन्हें चूमते थे और दूसरों से भी ऐसा करने को कहते थे। बच्चों से प्यार करने के संबंध में वह कहते थेः जो भी अपनी बेटी को ख़ुश करे तो उसका सवाब ऐसा है जैसे हजरत इस्माईल पैगम्बर की संतान में से किसी दास को ग़ुलामी से आज़ाद किया हो और वह आदमी जो अपने बेटे को ख़ुश करे वह ऐसे आदमी की तरह है जो अल्लाह के डर में रोता रहा हो और ऐसे आदमी का इनाम व पुरस्कार जन्नत है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़िंदगी बहुत ही साधारण, बल्कि साधारण से भी नीचे स्तर की थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके ज़िंदगी के बारे में बताते हैं कि पैग़म्बर (स) ग़ुलामों की दावत को स्वीकार करके उनके साथ भोजन कर लेते थे। वह ज़मीन पर बैठते और अपने हाथ से बकरी का दूध दूहते थे। जब कोई उनसे मिलने आता था तो वह टेक लगाकर नहीं बैठते थे। लोगों के सम्मान में वह कठिन कामों को भी स्वीकार कर लेते और उन्हें पूरा करते थे।
इमाम ख़ुमैनी र.ह भी अपनी ज़िंदगी के सभी चरणों में चाहे वह क़ुम के फ़ैज़िया मदरसे में उनकी पढ़ाई का ज़माना रहा हो या इस्लामी रिपब्लिक ईरान की लीडरशिप का समय उनकी ज़िंदगी हमेशा, साधारण स्तर की रही है। वह कभी इस बात को स्वीकार नहीं करते थे कि उनकी ज़िंदगी का स्तर देश के साधारण लोगों के स्तर से ऊपर रहे।
इमाम ख़ुमैनी के एक साथी का कहना है कि जब वह इराक़ के पाक शहर नजफ़ में रह रहे थे तो उस समय उनका घर, किराये का घर था जो नया नहीं था। वह ऐसा घर था जिसमें साधारण स्टूडेंट्स रहते थे। इस तरह से कहा जा सकता है कि इमाम ख़ुमैनी की जीवन स्तर साधारण स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि उनसे भी नीचे स्तर का था। ईरान में इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद हुकूमती सिस्टम का नेतृत्व संभालने के बाद से अपनी ज़िंदगी के अंत तक जमारान इमामबाड़े के पीछे एक छोटे से घर में रहे। उनकी ज़िंदगी का आदर्श चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) थे इसलिये उन्होंने अपने घर के भीतर आराम देने वाला कोई छोटा सा परिवर्तन भी स्वीकार नहीं किया और इराक़ द्वारा थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध में भी वह अपने उसी साधारण से पुराने घर में रहे और वहीं पर अपने छोटे से कमरे में दुनिया के नेताओं से मुलाक़ात भी करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण, व्यवहार और शिष्टाचार के दृष्टिगत इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेतृत्व की कठिनाइयों को कभी बयान नहीं किया और कभी भी स्वयं को दूसरों से आगे लाने की कोशिश भी नहीं की। वह हमेशा यही मानते और कहते रहे कि “मुझे अगर जनता का सेवक कहो तो यह इससे अच्छा है कि मुझे नेता कहो”।
इमाम ख़ुमैनी जब भी जंग के जियालों के बीच होते तो कहते थे कि मैं जेहाद और शहादत से पीछे रह गया हूं इसलिये आपके सामने लज्जित हूं। जंग में हुसैन फ़हमीदे नामक नौजवान के शहीद होने के बाद उसके बारे में इमाम ख़ुमैनी का यह कहना बहुत मशहूर है कि हमारा नेता बारह साल का वह किशोर है जिसने अपने नन्हे से दिल के साथ, जिसकी क़ीमत हमारी सैकड़ों ज़बानों और क़लम से बढ़कर है हैंड ग्रेनेड के साथ ख़ुद को दुश्मन के टैंक के नीचे डाल दिया, उसे उड़ा दिया और ख़ुद भी शहीद हो गया।
लोगों के प्यार का पात्र बनना और उनके दिलों पर राज करना, विभिन्न कारणों से होता है और उनकी अलग-अलग सीमाएं होती हैं। कभी भौतिक कारण होते हैं और कभी निजी विशेषताएं होती हैं जो दूसरों को आकर्षित करती हैं और कभी यह कारण आध्यात्मिक एवं इलाही होते हैं और आदमी की विशेषताएं अल्लाह और धर्म से जुड़ी होती हैं। अल्लाह ने पाक क़ुरआन में वचन दिया है कि जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और भले काम करते हैं, अल्लाह उनका प्यार दिलों में डाल देता है। इस इलाही वचन को पूरा होते हम सबसे ज़्यादा हज़रत मुहम्मद (स) के कैरेक्टर में देखते हैं कि जिनका प्यार दुनिया के डेढ अरब मुसलमानों के दिलों में बसा हुआ है।
इमाम ख़ुमैनी भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्यार में डूबे हुए दिल के साथ इस ज़माने के लोगों के दिलों में बहुत बड़ी जगह रखते हैं। इमाम ख़ुमैनी के बारे में उनके संपर्क में आने वाले ईरानियों ने तो उनके कैरेक्टर के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा है ही, विदेशियों ने भी माना है कि इमाम ख़ुमैनी समय और स्थान में सीमित नहीं थे। दुनिया के विभिन्न नेताओं यहां तक कि अमरीकियों में भी जिसने इमाम ख़ुमैनी से मुलाक़ात की वह उनके कैरेक्टर और बातों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। इमाम ख़ुमैनी पूरे संतोष के साथ साधारण शब्दों में ठोस और सुदृढ़ बातें करते थे। उनके शांत मन और ठोस संकल्प को बड़ी से बड़ी घटनाएं और ख़तरे भी प्रभावित नहीं कर पाते थे। दुनिया को वह अल्लाह का दरबार मानते थे और अल्लाह की कृपा और मदद पर पूरा यक़ीन रखते थे तथा यह विषय, नेतृत्व संबन्धी उनके इरादों के बारे में बहुत प्रभावी था। इस बात को साबित करने के लिए बस यह बताना काफ़ी होगा कि जब सद्दाम की फ़ौज ने इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के फ़ौरन बाद ईरान पर अचानक हमला किया तो इमाम ख़ुमैनी ने जनता से बड़े ही सादे शब्दों में कहा था कि “एक चोर आया, उसने एक पत्थर फेंका और भाग गया”। इमाम के यह सादे से शब्द, रौशनी और शांति का स्रोत बनकर लोगों में शांति तथा हिम्मत भरने लगे और चमत्कार दिखाने लगे। हमारी दुआ है कि उनकी आत्मा शांत और उनकी याद सदा जीवित रहे।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) के नूरानी अक़वाल
ऐसे कुछ लोग हैं जो दुनिया के लालची हैं और उन्हों ने अपनी ख़ाहिशात को भी हासिल कर लिया हैं यहाँ तक कि उस काम का अंजाम बद नसीबी और नाकामी है। इसी के साथ ऐसा भी होता है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आख़ेरत के कामों से कतराते हैं और उन को हासिल भी कर लेते हैं लेकिन उसी के ज़रिये ख़ुशनसीबी भी हासिल कर लेते हैं। (बिहारुल अनवार)
हज़रत ने फ़रमायाः मैं तुम्हें पाँच चीज़ों की सिफ़ारिश करता हूः-
अगर तुम पर ज़ुल्म किया जाये तो तुम बदले में ज़ुल्म न करो
अगर तुम्हारे साथ धोका किया जाये तो तुम धोका न देना,
अगर तुम्हें झुटलाया जाये तो तुम नाराज़ न होना
अगर तुम्हारी तारीफ़ की जाये तो तुम ख़ुश न होना,
अगर तुम्हें बुरा कहा जाये तो तुम बेचैनी का इज़हार न करना।
(बिहारुल अनवार दारे एहया अर्बी जिल्द )
हज़रत ने फ़रमायाः
अच्छी बातें चाहे जिस से भी हों, चाहे उस पर अमल न किया जाये फिर भी सीख लो,
(बिहारुल अनवार दारे एहया अर्बी जिल्द सफ़्हा,170)
हज़रत ने फ़रमायाः
कोई भी चीज़ ऐसी चीज़ से मिली नहीं है जो कि इल्म के साथ हिल्म जैसी मिला हो।
(बिहारुल अनवार दारे एहया अर्बी जिल्द सफ़्हा 172)
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अ.स. का राजनीतिक संघर्ष
हुकूमत इमाम बाकिर अ.स. से हर कुछ दिन पर पूछताछ करके उनको तकलीफ़ देने और उनका ध्यान भटकाने की कोशिश में लगी हुई थी, ज़ाहिर है इमाम अ.स. अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकते थे, ऐसे घुटन के माहौल में इमाम अ.स. ने दीन के अहकाम और इस्लामी वैल्यूज़ को बाक़ी रखने के लिए कई कामयाब रास्ते अपनाए
इमाम बाक़िर अ.स. के दौर में कैसे कैसे ज़ालिम हाकिम थे और इमाम अ.स. और आपके शियों के लिए हालात कितने सख़्त थे आपने पढ़ा, यहां तक कि इमाम अ.स. से मिलने पर पाबंदी थी, इमाम अ.स. को हर कुछ दिन पर पूछताछ कर के उनको तकलीफ़ देने और उनका ध्यान भटकाने की कोशिश में लगे हुए थे, ज़ाहिर है इमाम अ.स. अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकते थे, ऐसे घुटन के माहौल में इमाम अ.स. ने दीन के अहकाम और इस्लामी वैल्यूज़ को बाक़ी रखने के लिए कई कामयाब रास्ते अपनाए जिनको हम इस भाग में आपके सामने पेश कर रहे हैं।
तक़य्या
तक़य्या की अहमियत के बारे में इमाम बाक़िर अ.स. फ़रमाते हैं कि तक़य्या मेरे और मेरे वालिद के दीन का हिस्सा है जो तक़य्या पर ईमान नहीं रखता उसका ईमान ही कामिल नहीं। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 431)
तक़य्या करने की परिस्तिथियां भी बयान की गई हैं जैसे जान का ख़तरा, अपनी कमाई के लुटने का ख़तरा, इस्लामी वैल्यूज़ की नाबूदी का ख़तरा वग़ैरह... इन हालात में इंसान तक़य्या पर अमल करते हुए इन ख़तरों से ख़ुद को बचा सकता है।
रिवायत में है कि हमरान ने इमाम बाक़िर अ.स. की इस हदीस को सुन कर आपसे सवाल किया कि आपका इमाम अली अ.स. और इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. के बारे में क्या कहना है? इमाम अ.स. ने फ़रमाया ऐ हमरान, अल्लाह ने उन लोगों के लिए उसी तरह ही शहादत लिखी थी और अल्लाह ने पैग़म्बर स.अ. द्वारा उन सभी घटनाओं का इल्म इन पाक हस्तियों तक पहुंचा दिया था इसलिए वह जानते हुए उन तमाम घटनाओं पर सब्र के साथ उसी राह में डटे हुए थे क्योंकि अल्लाह की यही मर्ज़ी थी। (उसूले काफ़ी, जिल्द 2, पेज 30)
इस्लामी हाकिमों को उनकी ज़िम्मेदारी बताना
इमाम अ.स. की यही कोशिश थी कि वह इस्लामी हाकिमों को उनकी ज़िम्मेदारी याद दिलाएं, और आप उनके ग़लत फ़ैसले और उनके ज़ुल्म पर उनकी आलोचना भी करते थे और उनको याद दिलाते रहते थे कि उन्होंने ख़िलाफ़त और हुकूमत को अहलेबैत अ.स. से छीना है, जैसे आपने फ़रमाया पांच चीज़ों पर इस्लाम की बुनियाद रखी गई है, नमाज़, ज़कात, रोज़ा, हज और विलायत, ज़ोरारह ने पूछा इनमें से कौन बेहतर है? इमाम अ.स. ने फ़रमाया विलायत सबसे बेहतर है क्योंकि इमाम ही वह है जो इन चारों की ओर लोगों की हिदायत करेगा। (उसूले काफ़ी, जिल्द 2, पेज 18)
ज़ालिम हुकूमत के सहयोग से रोकना
इमाम अ.स. हमेशा मोमेनीन को ज़ालिम हुकूमत के हर तरह के सहयोग से रोकते, और अपने इस पैग़ाम को हर कुछ समय पर उम्मत तक पहुंचाते, अक़बा इब्ने बशीर असदी का बयान है कि मैंने इमाम बाक़िर अ.स. से कहा कि मैं अपनी क़ौम में से सबसे अच्छे ख़ानदान से हूं, मेरी क़ौम के मामलों को हल करने वाला अब इस दुनिया में नहीं रहा और क़ौम वालों ने अब मुझे उसकी जगह क़ौम के मामलों की देखभाल का ज़िम्मेदार बनाने का इरादा किया है इस बारे में आपका क्या विचार है?
इमाम अ.स. ने फ़रमाया अगर जन्नत में जाना पसंद नहीं तो जाओ क़ौम के मामलों के ज़िम्मेदार बन जाओ, क्योंकि कभी कभी ज़ालिम हाकिम मुसलमानों पर हुकूमत ही इसी लिए करता है ताकि उनका ख़ून बहा सके, तुम हुकूमत के एक छोटे पद को ही स्वीकार करने की बात कर रहे हो लेकिन फिर भी उन्हीं ज़ालिम हाकिमों के जुर्म और अपराध में शामिल रहोगे, ऐसा तो हो सकता है उनकी हुकूमत से तुमको थोड़ा सा भी फ़ायदा न मिले लेकिन उनकी जुर्म की दुनिया के हिस्सेदार ज़रूर कहलाओगे, तभी वहीं बैठे एक शख़्स ने सवाल किया कि मैं हज्जाज के दौर से अब तक (किसी इलाक़े का) हाकिम रहा हूं क्या मेरे लिए तौबा का कोई रास्ता है? इमाम अ.स. उसके सवाल को सुन कर चुप हो गए उसने अपना सवाल फिर दोहराया, इमाम अ.स. ने फ़रमाया जिस जिस का हक़ छीना गया है (चाहे ज़ुल्म किया हो चाहे माल लूटा हो चाहे किसी और तरह से हक़ छीना गया हो) उन सब को उनका हक़ वापस लौटा कर ही तौबा क़ुबूल हो सकती है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 377)
इमाम अ.स. के शियों में से अब्दुल ग़फ़्फ़ार इब्ने क़ासिम नाम के एक शख़्स का बयान है कि मैंने इमाम बाक़िर अ.स. से कहा मेरे हाकिम से क़रीब होने और उसके दरबार में आने जाने के बारे में आपका क्या कहना है? इमाम अ.स. ने फरमाया मेरी नज़र में सही नहीं है, मैंने कहा कभी शाम जाना होता है तो इब्राहीम इब्ने वलीद के पास भी चला जाता हूं? इमाम अ.स. ने फ़रमाया ऐ अब्दुल ग़फ़्फ़ार तुम्हारा हाकिमों के साथ उठने बैठने और उनके दरबार में आने जाने से तीन नुक़सान हैं, पहला यह कि तुम्हारे दिल में दुनिया की मोबब्बत बढ़ेगी दूसरा यह कि मौत को भूल जाओगे और तीसरा यह कि अल्लाह ने जो तुम्हारे मुक़द्दर में रखा है उससे नाराज़ रहोगे।
अब्दुल ग़फ़्फ़ार कहते हैं मैंने कहा मेरा वहां जाने का मक़सद केवल व्यापार करना रहता है, इमाम अ.स. ने फ़रमाया ऐ अल्लाह के बंदे मैं दुनिया से पूरी तरह मुंह मोड़ लेने के लिए नहीं कह रहा बल्कि मेरे कहने का मतलब यह है कि हराम कामों और गुनाहों से बचो, दुनिया की चकाचौंध से मुंह मोड़ लेना फ़ज़ीलत है लेकिन गुनाह को छोड़ना वाजिब है, और इस समय तुम्हारे लिए फ़ज़ीलत हासिल करने से ज़्यादा गुनाहों से बचना ज़रूरी है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 377)
इसी तरह जब लोग मदीने के नए हाकिम के पास मुबारकबाद के लिए जा रहे थे इमाम अ.स. ने फ़रमाया मदीने के नए हाकिम का घर जहन्नम के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है। (उसूल काफ़ी, जिल्द 5, पेज 105)
खुलेआम विरोध करना
इमाम बाक़िर अ.स. ने एक ओर से ज़ालिम हुकूमत के विरुध्द हज़रत ज़ैद और हज़रत मुख़्तार जैसों के आवाज़ उठाने का समर्थन किया दूसरी ओर आपने ख़ुद जब भी सही समय देखा ज़ालिम हुकूमत का विरोध कर उनकी आलोचना की, आप फ़रमाते थे कि जो भी किसी ज़ालिम और पापी हाकिम के पास जा कर उसको तक़वा की ओर दावत देगा और उसके नेक रास्ते पर चलने की नसीहत करेगा उसको सारे इंसानों और जिन्नातों के बराबर सवाब मिलेगा। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 375, वसाएलुश शिया, जिल्द 11, पेज 406)
इसी तरह आपने सभी ज़ालिम हाकिमों की हुकूमत को हराम बताते हुए उनके ख़िलाफ़ विरोध करने को सही ठहराया था। (उसूले काफ़ी, जिल्द 1, पेज 184)
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय
नाम व लक़ब (उपाधियां)
आपका नाम मुहम्मद व आपका मुख्य लक़ब बाक़िरूल उलूम है।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 57 हिजरी मे रजब मास की प्रथम तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।
माता पिता
हज़रत इमाम बाकिर अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़ातिमा पुत्री हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम हैं।
पालन पोषण
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का पालन पोषण तीन वर्षों की आयु तक आपके दादा इमाम हुसैन व आपके पिता इमाम सज्जाद अलैहिमुस्सलाम की देख रेख मे हुआ। जब आपकी आयु साढ़े तीन वर्ष की थी उस समय कर्बला की घटना घटित हुई। तथा आपको अन्य बालकों के साथ क़ैदी बनाया गया। अर्थात आप का बाल्य काल विपत्तियों व कठिनाईयों के मध्य गुज़रा।
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का शिक्षण कार्य़
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत की अवधि मे शिक्षा के क्षेत्र मे जो दीपक ज्वलित किये उनका प्रकाश आज तक फैला हुआ हैं। इमाम ने फ़िक़्ह व इस्लामी सिद्धान्तो के अतिरिक्त ज्ञान के अन्य क्षेत्रों मे भी शिक्षण किया। तथा अपने ज्ञान व प्रशिक्षण के द्वारा ज्ञानी व आदर्श शिष्यों को प्रशिक्षित कर संसार के सम्मुख उपस्थित किया। आप अपने समय मे सबसे बड़े विद्वान माने जाते थे। महान विद्वान मुहम्मद पुत्र मुस्लिम ,ज़ुरारा पुत्र आयुन ,अबु नसीर ,हश्शाम पुत्र सालिम ,जाबिर पुत्र यज़ीद ,हिमरान पुत्र आयुन ,यज़ीद पुत्र मुआविया अजःली ,आपके मुख्यः शिष्यगण हैं।
इब्ने हज्रे हीतमी नामक एक सुन्नी विद्वान इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के ज्ञान के सम्बन्ध मे लिखता है कि इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने संसार को ज्ञान के छुपे हुए स्रोतो से परिचित कराया। उन्होंने ज्ञान व बुद्धिमत्ता का इस प्रकार वर्नण किया कि वर्तमान समय मे उनकी महानता सब पर प्रकाशित है।ज्ञान के क्षेत्र मे आपकी सेवाओं के कारण ही आपको बाक़िरूल उलूम कहा जाता है। बाक़िरूल उलूम अर्थात ज्ञान को चीर कर निकालने वाला।
अब्दुल्लाह पुत्र अता नामक एक विद्वान कहता है कि मैंने देखा कि इस्लामी विद्वान जब इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की सभा मे बैठते थे तो ज्ञान के क्षेत्र मे अपने आपको बहुत छोटा समझते थे। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने कथनो को सिद्ध करने के लिए कुऑन की आयात प्रस्तुत करते थे। तथा कहते थे कि मैं जो कुछ भी कहूँ उसके बारे मे प्रश्न कर ?मैं बताऊँगा कि वह कुरआन मे कहाँ पर है।
इमाम बाक़िर और ईसाई पादरी
एक बार इमाम बाक़िर (अ.स.) ने अमवी बादशाह हश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हुक्म पर अनचाहे तौर पर शाम का सफर किया और वहा से वापस लौटते वक्त रास्ते मे एक जगह लोगो को जमा देखा और जब आपने उनके बारे मे मालूम किया तो पता चला कि ये लोग ईसाई है कि जो हर साल यहाँ पर इस जलसे मे जमा होकर अपने बड़े पादरी से सवाल जवाब करते है ताकि अपनी इल्मी मुश्किलात को हल कर सके ये सुन कर इमाम बाकिर (अ.स) भी उस मजमे मे तशरीफ ले गऐ।
थोड़ा ही वक्त गुज़रा था कि वो बुज़ुर्ग पादरी अपनी शानो शोकत के साथ जलसे मे आ गया और जलसे के बीच मे एक बड़ी कुर्सी पर बैठ गया और चारो तरफ निगाह दौड़ाने लगा तभी उसकी नज़र लोगो के बीच बैठे हुऐ इमाम (अ.स) पर पड़ी कि जिनका नूरानी चेहरा उनकी बड़ी शख्सीयत की गवाही दे रहा था उसी वक्त उस पादरी ने इमाम (अ.स )से पूछा कि हम ईसाईयो मे से हो या मुसलमानो मे से ?????
इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः मुसलमानो मे से।
पादरी ने फिर सवाल कियाः आलिमो मे से हो या जाहिलो मे से ?????
इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः जाहिलो मे से नही हुँ।
पादरी ने कहा कि मैं सवाल करूँ या आप सवाल करेंगे ?????
इमाम (अ.स) ने फरमाया कि अगर चाहे तो आप सवाल करें।
पादरी ने सवाल कियाः तुम मुसलमान किस दलील से कहते हो कि जन्नत मे लोग खाऐंगे-पियेंगे लेकिन पैशाब-पैखाना नही करेंगे ?क्या इस दुनिया मे इसकी कोई दलील है ?
इमाम (अ.स) ने फरमायाः हाँ ,इसकी दलील माँ के पेट मे मौजूद बच्चा है कि जो अपना रिज़्क़ तो हासिल करता है लेकिन पेशाब-पेखाना नही करता।
पादरी ने कहाः ताज्जुब है आपने तो कहा था कि आलिमो मे से नही हो।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः मैने ऐसा नही कहा था बल्कि मैने कहा था कि जाहिलो मे से नही हुँ।
उसके बाद पादरी ने कहाः एक और सवाल है।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बिस्मिल्लाह ,सवाल करे।
पादरी ने सवाल कियाः किस दलील से कहते हो कि लोग जन्नत की नेमतो फल वग़ैरा को इस्तेमाल करेंगें लेकिन वो कम नही होगी और पहले जैसी हालत पर ही बाक़ी रहेंगे।
क्या इसकी कोई दलील है ?
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बेशक इस दुनिया मे इसका बेहतरीन नमूना और मिसाल चिराग़ की लौ और रोशनी है कि तुम एक चिराग़ से हज़ारो चिराग़ जला सकते हो और पहला चिराग़ पहले की तरह रोशन रहेगा ओर उसमे कोई कमी नही होगी।
पादरी की नज़र मे जितने भी मुश्किल सवाल थें सबके सब इमाम (अ.स) से पूछ डाले और उनके बेहतरीन जवाब इमाम (अ.स) से हासिल किये और जब वो अपनी कम इल्मी से परेशान हो गया तो बहुत गुस्से आकर कहने लगाः
ऐ लोगों एक बड़े आलिम को कि जिसकी मज़हबी जानकारी और मालूमात मुझ से ज़्यादा है यहा ले आऐ हो ताकि मुझे ज़लील करो और मुसलमान जान लें कि उनके रहबर और इमाम हमसे बेहतर और आलिम हैं।
खुदा कि क़सम फिर कभी तुमसे बात नही करुगां और अगर अगले साल तक ज़िन्दा रहा तो मुझे अपने दरमियान (इस जलसे) मे नही देखोंगे।
इस बात को कह कर वो अपनी जगह से खड़ा हुआ और बाहर चला गया।
हज़रते इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के कथन
१. जो शख़्स किसी मुसलमान को धोका दे या सताये वह मुसलमान नहीं।
२. यतीम बच्चों पर माँ बाप की तरह मेहरबानी करो।
३. खाने से पहले हाथ धोने से फ़ख़्र (निर्धनता) कम होता है और खाने के बाद हाथ धोने से ग़ुस्सा (क्रोध) ।
४. क़र्ज़ कम करो ताकि आज़ाद रहो और गुनाह (पाप) कम करो ताकि मौत में आसानी हो।
५. हमेशा नेक काम करो ताकि फ़ायदा उठाओ बुरी बातों से परहेज़ (बचो) करो ताकि हमेशा महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहो।
६. ताअत (अनुसरण) व क़नाअत (आत्मसंतोष) बे नियाज़ी (बे परवाही) और इज़्ज़त का बायस है और गुनाह व लालच बदबख़्ती (अभाग्य) और ज़िल्लत का मोजिब (कारण) है।
७. जिस लज़्ज़त में अन्जाम कार पशेमानी हो नेकी नहीं।
८. दुनिया फ़क़त दो आदमियों के लिये बायसे ख़ैर (शुभ होने का कारण) है एक वह जो नेक आमाल में रोज़ इज़ाफ़ा करे ,दूसरा वह जो गुज़िश्ता गुनाहों (भूतकालीन पाप) की तलाफ़ी तौबा (प्रायश्चित) के ज़रिये करे।
९. अक़लमन्द वह है जिसका किरदार (चरित्र) उसकी गुफ़्तार (कथन) की तसदीक़ (प्रमाणित) करे और लोगों से नेकी का बर्ताव (व्यवहार) करे।
१०. बदतरीन शख़्स वह जो अपने को बेहतरीन (अच्छा) शख़्स ज़ाहिर करे।
११. अपने दोस्त के दुश्मनों से रफ़ाक़त (मित्रता) मत करो वरना अपने दोस्त को गवाँ (खो) दोगे।
१२. हर काम को उसके वक़्त (समय) पर अन्जाम (पूरा करो) दो जल्दबाज़ी से परहेज़ (बचो) करो।
१३. बड़े गुनाहों का कफ़्फ़ारा (रहजाना) बेकसों की मदद और ग़मज़दो की दिलजूई में है।
१४. जो दिन गुज़र गया वह तो पलट कर आयेगा नहीं और आने वाले कल पर भरोसा किया नहीं जा सकता।
१५. हर इन्सान अपनी ज़बान के नीचे पोशीदा (छिपा) है जब बात करता है तो पहचाना जाता है।
१६. माहे मुबारक रमज़ान के रोज़े अज़ाबे इलाही के लिये ढाल हैं।
१७. काहिली से बचो (क्योंकि) काहिल अपने हुक़ूक़ (हक़ का बहु वचन) अदा नहीं कर सकता।
१८. तुम में सबसे ज़्यादा अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो नादानों (अज्ञानियों) से फ़रार ( दूर भागे) करे।
१९. बुज़ुर्गों (अपने से बड़ों का) का एहतेराम (आदर) करो क्योंकि उनका एहतेराम (आदर) ख़ुदा की इबादत (तपस्या) के मानिन्द (तरह) है।
२०. सिल्हे रहम (अच्छा सुलूक) घरों की आबादी और तूले उम्र (दीर्घायु) का बायस (कारण) है।
२१. इसराफ़ (अपव्यय) में नेकी (अच्छाई) नहीं और नेकियों में इसराफ़ का वुजूद (अस्तित्व) नहीं।
२२. जिस मामले में पूरी वाक़्फ़ियत (जानकारी) नहीं उसमें दख़्ल मत दो वरना (मौक़े की ताक में रहने वाले) बुरे और बदकिरदार (दुष्कर्मी) लोग तुमकों मलामत का निशाना बनायेंगे।
२३. हमेशा लोगों से सच बोलो ताकि सच सुनों (याद रखो) सच्चाई तलवार से भी ज़्यादा तेज़ है।
२४. लोगों से मुआशेरत (अच्छा रहन सहन) निस्फ़ (आधा) ईमान है और उनसे नर्म बर्ताव आधी ज़िन्दगी।
२५. ज़ुल्म (अन्याय) फ़ौरी (तुरन्त) अज़ाब का बायस है।
२६. नागहानिए हादसात (अचानक घटनायें) से बचाने वाली कोई चीज़ दुआ से बेहतर नहीं ।
२७. मुनाफिक़ (जिसका अन्दरुनी और बाहरी व्यवहार में अन्तर हो ) से भी ख़ुश अख़लाक़ी से बात करो ।
२८. मोमिन से दोस्ती में ख़ुलूस पैदा करो ।
२९. हक़ (सत्य) के रास्ते (पथ) पर चलने के लिए सब्र का पेशा इख़्तियार करो ।
३०. ख़ुदावन्दे आलम मज़लूमों (जिनके साथ अन्याय किया गया हो) की फ़रयाद को सुनता है और सितमगारों (जिन्होंने ज़ुल्म किया हो) के लिए कमीनगाह में है ।
३१. सलाम और ख़ुश गुफ़्तारी गुनाहों से बख़्शिश (मुक्ति) का बायस (कारण) है।
३२. इल्म (ज्ञान) हासिल (प्राप्त) करो ताकि लोग तुम्हें पहचानें और उस पर अमल करो ताकि तुम्हारा शुमार ओलमा (ज्ञानियों) में हो।
३३. इबादते इलाही में ख़ास ख़्याल रखो आमाले ख़ैर (शुभकार्य) में जल्दी करो और बुराईयों से इज्तेनाब (बचो) करो।
३४. जब कोई मरता है तो लोग पूछते हैं क्या छोड़ा लेकिन जब फ़रिश्ते (ईश्वरीय दूत) सवाल करते हैं क्या भेजा ?
३५. बेहतरीन इन्सान वह है जिसका वजूद दूसरों के लिये फ़ायदा रसां (लाभकारी) हो।
३६. क़ायम आले मोहम्मद (अ.स.) वह इमाम हैं जिनको ख़ुदावन्दे आलम तमाम मज़ाहब पर ग़लबा ऐनायत (प्रदान) करेगा।
३७. खाना ख़ूब चबाकर खाओ और सेर होने से पहले खाना छोड़ दो।
३८. ख़ालिस इबादत (सच्चे मन से तपस्या) यह है कि इन्सान ख़ुदा के सिवा किसी से उम्मीदवार न हो और अपने गुनाहों के अलावा किसी से डरे नहीं।
३९. उजलत (जल्दी) हर काम में नापसन्दीदा मगर रफ़े शर (बुराई को दूर करने में) में।
४०. जिस तरह इन्सान अपने लिये तहक़ीराना (अनादर) लहजा नापसन्द करता है दूसरों से भी तहक़ीराना (अनादर) लहजे में गुफ़्तगू (बात चीत) न करे।
शहादत (स्वर्गवास)
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 114 हिजरी मे ज़िलहिज्जा मास की सातवीँ (7) तिथि को सोमवार के दिन हुई। बनी उमैय्या के ख़लीफ़ा हश्शाम पुत्र अब्दुल मलिक के आदेशानुसार एक षड़यन्त्र के अन्तर्गत आपको विष पान कराया गया। शहादत के समय आपकी आयु 57 वर्ष थी।
समाधि
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मदीने के जन्नातुल बक़ी नामक कब्रिस्तान मे है। प्रत्येक वर्ष लाखो श्रृद्धालु आपकी समाधि पर सलाम व दर्शन हेतू जाते हैं।
हौजा इल्मिया सिर्फ दर्स व तदरीस का मरकज़ नहीं है, बल्कि एक बौद्धिक और नैतिक क्रांति की नींव
हुज्जतुल-इस्लाम वा मुस्लेमीन सय्यद अकील अल-गरवी ने मरकजी इमाम बाड़ा बडगाम में चेहलुम सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हौजा इल्मिया सिर्फ दर्स व तदरीस का केंद्र नहीं है, बल्कि बौद्धिक और नैतिक क्रांति की नींव भी है। शिक्षकों को छात्रों के दिमाग और चरित्र के विकास को अपना आदर्श वाक्य बनाना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर राज्य के धर्म प्रचारक, धर्म रक्षक और प्रमुख धर्मगुरू आयतुल्लाह आगा सैयद मुहम्मद बाकिर अल-मूसवी अल-सफ़वी अल-नजफ़ी के चेहलुम के अवसर पर मरकज़ी इमाम बाड़ा बडगाम में मजलिस का आयोजन किया गया, जिसमें हज़ारों लोगों ने भाग लिया। जलसे की शुरुआत पवित्र कुरान की तिलावत से हुई, जिसके बाद मुख्य ज़ाकिरीन ने मरसिया पढ़ा। इसके बाद बा जमाअत ज़ुहर की नमाज़ अदा की गई। नमाज़ के बाद एक मजलिस का आयोजन किया गया, जिसमें भारत के प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अकील अल-ग़रवी ने मजलिस को संबोधित किया। उन्होंने “ज्ञान, अस्तित्व और मानव विकास” विषय पर गहन और व्यावहारिक बिंदु प्रस्तुत किए।
उन्होंने कहा: “आप जीवित रहने के लिए बनाए गए हैं, विनाश के लिए नहीं।” उन्होंने स्पष्ट किया कि जीवित रहने की शर्त गति है, और एक व्यक्ति या राष्ट्र जो ठहराव का शिकार हो जाता है, वह जीवित रहने की अपनी क्षमता खो देता है। उन्होंने जोर दिया: “ज्ञान ठहराव से परिचित नहीं है; यह निरंतर गति और विस्तार का नाम है।”
पवित्र कुरान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा: “कुरान कहता है कि एक दिल है जिसके लिए हमें भेजा गया है।” यह इस बात का प्रमाण है कि रहस्योद्घाटन उन दिलों में आता है जो शुद्ध, जागृत और सक्रिय हैं।
शिक्षा के प्रचार में शब्दावली के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मौलाना अल-ग़रवी ने कहा: “ज्ञान और शिक्षा के विकास के लिए स्पष्ट शब्दावली आवश्यक है। जब तक अवधारणाएँ व्यवस्थित नहीं होती हैं, ज्ञान आगे नहीं बढ़ता है।”
उन्होंने कहा: "ज्ञान में ठहराव नहीं आता। व्यक्ति को शैक्षणिक और व्यावहारिक दोनों स्तरों पर निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।" उन्होंने युवाओं और बुद्धिजीवियों को संदेश दिया कि ज्ञान को सैद्धांतिक स्तर तक सीमित न रखें, बल्कि इसके सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन में भी लागू करें।
मजलिस चेहलुम में भाग लेने से पहले, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन सैयद अकील अल-गरवी ने अंजुमन शरई शिया के अध्यक्ष हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन आगा सैयद हसन अल-मूसवी अल-सफवी के निमंत्रण पर मदरसा जामिया बाब-उल-इल्म मीरगुंड, बडगाम का संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण दौरा किया। इस अवसर पर मौलाना अल-गरवी का जामिया बाब-उल-इल्म के शिक्षकों और मकतबा अल-जहरा, हसनाबाद, श्रीनगर के प्रशासकों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया।
इस अवसर पर हुज्जतुल इस्लाम आगा सैयद मुजतबा अब्बास अल-मूसवी अल-सफवी ने मौलाना अल-गरवी के समक्ष बड़गाम के मूसवी परिवार के महान विद्वानों की धार्मिक एवं सामाजिक सेवाओं पर एक व्यापक प्रस्तुति दी। इसके साथ ही अंजुमन शरिया शिया की धार्मिक, कल्याणकारी, शैक्षिक एवं सामाजिक पहलों एवं सेवाओं पर एक दृश्य एवं बौद्धिक रेखाचित्र भी प्रस्तुत किया गया, जिसकी मौलाना अल-गरवी ने सराहना की। इस दौरान मौलाना अल-गरवी ने शिक्षकों एवं वर्तमान विद्वानों के साथ एक प्रभावी एवं व्यावहारिक चर्चा की। उन्होंने धार्मिक एवं शैक्षिक क्षेत्रों में कार्यरत विद्वानों को नसीहत देते हुए कहा: "हौज़ा ए -इल्मिया केवल दर्स व तदरीस का केंद्र ही नहीं है, बल्कि बौद्धिक एवं नैतिक क्रांति की नींव भी है, यहीं से राष्ट्रों की नियति का निर्माण होता है।"
कुरान की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार पर जोर देते हुए उन्होंने कहा: "शिक्षकों को छात्रों के मन एवं चरित्र निर्माण को अपना आदर्श वाक्य बनाना चाहिए।" मौलाना अलगघरवी ने अंजुमन शरई शिया एसोसिएशन के प्रयासों की सराहना की और कहा: "धार्मिक संस्थाओं का विकास और जमीनी स्तर पर उनका प्रभाव तभी मजबूत होगा जब वे शिक्षा, सेवा और नेतृत्व के सिद्धांतों को एक साथ अपनाएंगे।"
तलाक़ से बड़ी कोई मुसीबत और कोई घातक बीमारी नहीं
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने अपने एक लिखित बयान में इस्लामी समाजों पर तलाक़ के ख़तरनाक प्रभावों को रेखांकित किया है।
आयतुल्लाहिल उज़मा जवादी आमोली ने अपने एक लिखित बयान में इस्लामी समाजों में तलाक़ के खतरनाक प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए फरमाया,तलाक़ से बढ़कर कोई मुसीबत और कोई जानलेवा बीमारी (नासूर) नहीं है।
आप तलाक़ से संबंधित रिवायतों का अध्ययन कीजिए, उनमें कहा गया है कि वह घर जो तलाक़ की वजह से बर्बाद हो जाए, वह आसानी से दोबारा आबाद नहीं होता।
(वसायल शिया जिल्द 18, पृष्ठ 30)
उन्होंने तलाक़ के बढ़ते रुझान का दोष बाहरी (गैर-इस्लामी) सांस्कृतिक प्रभावों को देते हुए कहा,इस पराई संस्कृति ने तलाक़ को आम बना दिया है! आइए, निकाह की ओर रुख कीजिए, परिवार बनाईए, बाप बनिए, माँ बनिए और औलाद की नेमत प्राप्त कीजिए।
क्या आप नहीं चाहते कि आप हमेशा बाक़ी रहें?! तो फिर एक नेक सुलूक औलाद, जो आपके लिए दुआ करेगा, वह आपको हमेशा ज़िंदा रखेगा।"
(अल-काफी, जिल्द 7, पृष्ठ 56)
आयतुल्लाह जवादी आमली ने ज़ोर देते हुए कहा,ख़ुदा की हिकमतभरी मर्ज़ी यही है कि वह समाज को पारिवारिक उसूलों की बुनियाद पर महफूज़ रखे।
किताब "ईमान बह राहे इमाम खुमैनी रह." की रूनुमाई
क़ुम में आयोजित एक सभा इमाम खुमैनी रह.की सोच में ईमान और उम्मीद इमाम ख़ामेनेई की दृष्टि से" के अवसर पर किताब "ईमान बह राहे इमाम खुमैनी (रह.) और चुनिंदा मक़ालात का लोकार्पण किया गया।
क़ुम के मदरसा आली दारुलशिफा में आयोजित सम्मेलन के पहले दिन किताब ईमान बह राहे इमाम खुमैनी (रह.) का लोकार्पण
मदरसा आली दारुलशिफा क़ुम में आयोजित एक सम्मेलन इमाम खुमैनी (र.ह.) में ईमान और उम्मीद इमाम ख़ामेनेई की सोच में के पहले दिन किताब "ईमान बह राहे इमाम खुमैनी (रह.) और इस सम्मेलन में चयनित वैज्ञानिक (इल्मी) लेखों का औपचारिक लोकार्पण किया गया।
इस अवसर पर सम्मेलन की केंद्रीय समिति के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम मुस्तफा निगारशी ने कहा,इस शैक्षणिक सम्मेलन में 30 से अधिक लेख अंतिम समीक्षा के चरण तक पहुँचे हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि विद्वान और बौद्धिक वर्ग इमाम खुमैनी (रह.) और इमाम ख़ामेनेई के विचारों की गहराई को कितनी गंभीरता से ले रहा है।
उन्होंने आगे कहा,क़ुम की वैज्ञानिक क्षमता इमाम राहिल (रह.) और रहबर-ए-मुअज़्ज़म इंक़ेलाब के विचारों की व्याख्या और विस्तार के लिए एक बहुमूल्य पूंजी है। इस समय क़ुम में लगभग 40 शैक्षणिक और शोध संस्थान इमामे इंक़ेलाबैन (दोनों इमामों) के विचारों के प्रसार और विश्लेषण में सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं।
इमाम राहिल (र.ह.) का चरित्र और जीवनशैली
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनज़ादेह ने कहा कि इस्लामी क्रांति की निरंतर प्रगति के लिए इमाम खुमैनी (र.ह.) के विचारधारा की स्पष्ट व्याख्या बेहद आवश्यक है।
क़ुरआनी शोधकर्ता और लेखक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद मोहम्मद मेहदी हुसैनज़ादेह ने तेहरान में हौज़ा न्यूज़ से बातचीत के दौरान कहा,इमाम खुमैनी (रह.) एक बहुआयामी और संपूर्ण व्यक्तित्व के मालिक थे, जिनके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन एक गंभीर शैक्षणिक और शोध कार्य की मांग करता है।
जिसे दिनी मदरसों और विश्वविद्यालयों में दीर्घकालिक योजनाओं के अंतर्गत अंजाम दिया जाना चाहिए।इमाम रहमतुल्लाह अलैह की याद, जीवनी और जीवनशैली का परिचय समाज में धर्मपरस्ती और क्रांतिकारी भावना को ज़िंदा रखने का एक प्रभावशाली माध्यम है।
उन्होंने इमाम खुमैनी र.ह.के क़ुरआनी व्यक्तित्व पर ज़ोर देते हुए कहा,इस्लामी क्रांति के महान नेता क़ुरआन के एक व्याख्याकार (मुफस्सिर) थे, और विलायत-ए-फक़ीह जैसे विषय की विद्वत्तापूर्ण व्याख्या भी उनकी इसी क़ुरआनी सोच का प्रतीक है।
इमाम खुमैनी (र.ह.) की तफ़सीरी कृतियाँ उनके गंभीर और गहरे क़ुरआनी ज्ञान की स्पष्ट मिसाल हैं।इस्लामी गणराज्य की प्रणाली में उनकी लोकप्रियता का कारण भी उनका क़ुरआनी व्यक्तित्व ही था।
हुज्जतुल इस्लाम हुसैनज़ादा ने आगे कहा,इमाम खुमैनी (रह.) ने हमेशा क़ुरआन के आधार पर जनता को विशेष महत्व दिया और उन्हें "वली-ए-नेमत समझा वे शासन और चुनाव की हर प्रक्रिया में जनता की उपस्थिति को निर्णायक मानते थे।इसी कारण इमाम खुमैनी (रह.) ने संसद मजलिस को सभी मामलों की बुनियाद और मूल करार दिया।
उन्होंने कहा,इमाम खुमैनी (रह.) के मकतब की व्याख्या इस्लामी क्रांति की निरंतर प्रगति के लिए बहुत ज़रूरी है।इस सिलसिले में सबसे अच्छा रास्ता यह है कि हम रहबर-ए-मुअज़्ज़म आयतुल्लाह ख़ामेनेई के बयानों और भाषणों का गहराई से अध्ययन करें।
ख़ासकर वे भाषण जो इमाम खुमैनी (रह.) की सालाना बरसी के अवसर पर दिए जाते हैं, क्योंकि उनमें इमाम खुमैनी (रह.) के विचारों और मकतब की एक संपूर्ण और गहन व्याख्या मौजूद होती है।
हमास अब भी शक्ति की स्थिति में जबकि इज़राइल पहले जैसा सशक्त नहीं रहा
कुछ ज़ायोनी अधिकारियों का कहना है कि फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध पर अभूतपूर्व दबाव है जबकि ज़ायोनी मीडिया के विश्लेषक एक अलग नजरिए से जोर देते हैं कि हमास अभी भी ज़ोरदार तरीके से लड़ाई जारी रखे हुए है और उसमें गिरावट या आत्मसमर्पण के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं।
यदीओत अहारोनोत अखबार के विश्लेषक अविव यिसाखरोफ ने अमेरिका के पश्चिम एशिया क्षेत्र के विशेष दूत स्टीव व्हिटकॉफ़ द्वारा दिए गए प्रस्ताव के बारे में हमास की हालिया प्रतिक्रिया पर कहा: हमास का जवाब स्पष्ट रूप से दिखाता है कि इज़राइल के अंदर कुछ दावों के विपरीत, जिनमें कहा जाता है कि हमास भारी दबाव में है और गिरावट के करीब है, ऐसा कुछ अभी तक नहीं हुआ है।
उन्होंने स्वीकार किया कि हमास ने अभी तक आत्मसमर्पण करने या अपने हथियार छोड़ने का कोई संकेत नहीं दिखाया है।
इसी संदर्भ में, इस अखबार के एक अन्य विश्लेषक "असाओ मीडानी" ने इज़राइली शासन की आंतरिक स्थिति को बेहद नाज़ुक बताया और कहा:
समस्या यह है कि इज़राइल अब और महीनों तक इस गतिरोध को सहन करने में सक्षम नहीं है न सैन्य क्षेत्र में, न दक्षिणी और उत्तरी इलाक़ों के पुनर्निर्माण में, न आंतरिक राजनीतिक मोर्चे पर और न ही पश्चिमी दबावों के सामने।
उन्होंने आगे कहा: ये सभी समस्याएँ तब और गहरी हो गई हैं जब इज़राइल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतन्याहू का एकमात्र लक्ष्य अपनी राजनीतिक सत्ता की स्थिरता बनाए रखना है।
ये आकलन ऐसे समय में सामने आए हैं जब हमास और इज़राइली शासन के बीच संघर्ष विराम और बंधकों के आदान-प्रदान को लेकर वार्ता का गतिरोध जारी है और अमेरिका की मध्यस्थता अभी तक कोई ठोस परिणाम नहीं ला सकी है। इसी बीच, हमास ने अमेरिका के हालिया प्रस्ताव का जवाब देते हुए अपनी मुख्य मांगों पर दृढ़ता दिखाई है, खासकर स्थायी संघर्ष विराम और घेराव व प्रतिबंध हटाने की जबकि तेल अवीव ने अब तक ऐसी शर्तें मानने से इंकार किया है।
हमास ने शनिवार की शाम घोषणा की कि उसने ग़ज़ा में संघर्ष विराम स्थापित करने के लिए विटकॉफ़ के प्रस्ताव का जवाब दिया है।
वहीं, स्टीव विटकॉफ़ ने हमास के जवाब को "पूरी तरह अस्वीकार्य" बताया और दावा किया कि इस जवाब ने वार्ताओं को पिछली स्थिति में वापस लौटा दिया है।
फिर भी, हमास ने प्रस्ताव अस्वीकार करने के आरोप को खारिज करते हुए कहा है: "हमारा जवाब बिल्कुल चर्चा के तहत समझौते के दायरे में था, लेकिन इज़राइली शासन ने ऐसे जवाब दिया जो समझौते की शर्तों के विपरीत था।"
हमास ने एक आधिकारिक बयान में स्पष्ट किया कि "विटकॉफ़ का हमास के प्रति रुख़ अन्यायपूर्ण और पूरी तरह पक्षपाती रहा है और उसने मध्यस्थ के रूप में आवश्यक निष्पक्षता का उल्लंघन किया है।