
رضوی
दुश्मन ने यमन से सबक नहीं लिया जिसे उसके अमेरिकी आकाओं ने सिखाया था
लेबनान की हिज़्बुल्लाह पार्टी ने एक बयान जारी कर यमन की राजधानी सना के हवाई अड्डे पर इज़राइल द्वारा किए गए हमले की कड़ी निंदा की है हिज़्बुल्लाह ने इस हमले को अमेरिका की पूरी समर्थन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शर्मनाक चुप्पी के साये में अंजाम दी गई एक जघन्य वारदात बताया हैं।
अलमिनार टीवी के हवाले से जारी इस बयान में हिज़्बुल्लाह ने कहा,ज़ायोनी दुश्मन अपने क्रूरता और अंधाधुंध हमलों को हमारे क्षेत्र की जनता पर चाहे वह ग़ाज़ा हो लेबनान हो या यमन लगातार जारी रखे हुए है।
हाल ही में उसने ग़ाज़ा में भीषण नरसंहार किया है, भुखमरी और जनसंहार की नीति को आगे बढ़ाते हुए लेबनान की संप्रभुता का रोज़ाना उल्लंघन कर रहा है। और आज उसने सना के नागरिक हवाई अड्डे और वहां बची एकमात्र नागरिक विमान को निशाना बनाया है, जो अंतरराष्ट्रीय और मानवीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है।
बयान में आगे कहा गया,हिज़्बुल्लाह इन बर्बर ज़ायोनी हमलों की कड़ी निंदा करता है और ज़ोर देकर कहता है कि इज़राइल की ये ज्यादतियां अमेरिका की पूर्ण सहायता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शर्मनाक चुप्पी के बिना संभव नहीं थीं।
हिज़्बुल्लाह ने यह भी कहा,यमन पर यह नया हमला इस बात की पुष्टि करता है कि दुश्मन ने अपने अमेरिकी आकाओं से कोई सबक नहीं लिया है जिन्होंने यमन की जनता और नेतृत्व को झुकाने की कोशिश की लेकिन विफल रहे। अमेरिका को अपनी इस हार को स्वीकार करना पड़ा और उसे यमन पर हमले बंद करने पड़े।
हम दुनिया के सभी देशों और स्वतंत्र राष्ट्रों से अपील करते हैं कि वे इन हमलों की कड़ी निंदा करें और ग़ाज़ा और यमन की नाजायज़ घेराबंदी को खत्म करने के लिए ठोस और असरदार कदम उठाएं। हम अरब और इस्लामी देशों और राष्ट्रों से एक बार फिर अपील करते हैं कि वे यमन की बहादुर जनता के साथ खड़े हों और फिलिस्तीन के लिए उनके बहादुर और ऊंचे रुख का समर्थन करें।
पोप लियो चौदहवें ने ग़ज़्जा में तत्काल युद्ध विराम का आह्वान किया
पोप लियो चौदहवे ने अपनी हालिया भाषण में फिर से ग़ज़्ज़ा में तुरंत युद्धविराम और सभी बंदियों की रिहाई की मांग की।
पोप लियो चौदहवे ने अपनी हालिया भाषण में फिर से ग़ज़्ज़ा में तुरंत युद्धविराम और सभी बंदियों की रिहाई की मांग की।
पोप ने कहा: "ग़ज़्ज़ा में युद्धविराम अभी होना चाहिए! साथ ही, सभी बंदियों को सभी मानवीय कानूनों का पालन करते हुए आज़ाद किया जाना चाहिए।"
पोप ने आगे कहा: "आज हम ग़ज़्ज़ा की पट्टी से उन माताओं और पिताओं की चीखें सुन रहे हैं, जो अपने मृत बच्चों के शवों को अपने सीने से लगाये हुए हैं। वे थोड़ा पानी और खाना पाने के लिए आश्रयों को छोड़ रहे हैं, जो शायद थोड़े सुरक्षित हों।"
पोप ने यह भाषण बुधवार को दिया, एक दिन बाद जब लगभग 50 लोग ग़ज़्ज़ा में खाद्य सहायता लेने के प्रयास के दौरान भोजन वितरण केंद्रों पर मारे गए और घायल हुए। उन्होंने तुरंत युद्धविराम की अपील की।
हज 2025 के हाजीयो के लिए सऊदी अरब के गैर-धार्मिक शहरों में जाना मना
हज व ज़ियारात संगठन ने बताया है कि हज 2025 के हाजीयों को सऊदी अरब के गैर-धार्मिक शहरों में यात्रा करने की अनुमति नहीं है, केवल मक्का और मदीना में ही घूमने की अनुमति है।
हज वीज़ा सिर्फ धार्मिक यात्रा के लिए होता है, इसलिए हज के दौरान सभी मुस्लिम देशों के यात्री केवल मक्का और मदीना में ही घूम सकते हैं। किसी भी व्यक्ति का अकेले किसी दूसरे शहर में जाना मना है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, हज के दौरान जारी किया गया वीज़ा केवल मक्का मुकर्रेमा और मदीना मुनव्वरा में रहने के लिए है।
अगर कोई यात्री ताइफ, रियाद, जद्दा या सऊदी अरब के किसी अन्य शहर में अकेले पाया गया, तो इसे गैरकानूनी यात्रा माना जाएगा और नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। हाजी सऊदी अरब में रहते हुए सभी नियमों का पालन करें और बेहतर होगा कि वे समूह में और खास तौर पर ईरानी हज यात्रियों के लिए बने विशेष बसों का उपयोग करें।
हम बातचीत में अपने सिद्धांतों से कभी पीछे नहीं हटेंगें।ईरानी राष्ट्रपति
ईरान के राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया है कि बातचीत के दौरान वे अपने राष्ट्रीय सिद्धांतों से किसी भी हालत में पीछे नहीं हटेंगे हालांकि ईरान तनाव भी नहीं चाहता।
ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़ेश्कियान ने अमेरिका के साथ हो रही अप्रत्यक्ष बातचीत में ईरान के राष्ट्रीय सिद्धांतों को दोहराया।
उन्होंने कहा कि यह बातचीत रहबर-ए-मुअज्ज़म,सुप्रीम लीडर की हिदायतों के अनुसार होगी और उन्हीं की रहनुमाई से बातचीत की दिशा तय की जाएगी।
राष्ट्रपति पिज़ेश्कियान ने साफ़ कहा कि हम बातचीत में किसी भी हालत में अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हटेंगे, लेकिन इसके साथ ही हम तनाव और टकराव भी नहीं चाहते।
उन्होंने अमेरिका के साथ चल रही बातचीत को लेकर कहा कि हमारा भी एक सिद्धांत है जिस सिद्धांत के तहत हम बातचीत करेंगे और हम अपने देश और राष्ट्र के उसूलों के पीछे नहीं हटेंगे।
सुप्रीम लीडर का पैग़ाम हौज़ा ए इल्मिया के लिए एक नए अध्याय की हैसियत रखता है
हौज़ा ए इल्मिया के निदेशक ने इस्लामी शिक्षाओं की रक्षा में हौज़ात ए इल्मिया की ऐतिहासिक भूमिका की ओर इशारा करते हुए कहा,क़ुम ने पिछले सौ वर्षों में हौज़ात ए इल्मिया में बदलाव की एक नई इबारत लिखी है हज़रत आयतुल्लाह खामेनई का हालिया पैग़ाम भी हौज़ा ए इल्मिया के लिए एक नए दौर की शुरुआत है, जिस पर पूरी गंभीरता और तवज्जोह देना ज़रूरी है।
हौज़ा ए इल्मिया के निदेशक आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने ईरान के शहर किरमान में "तरक़्क़ीपसंद और विशिष्ट हौज़ा" के शीर्षक से आयोजित एक सम्मेलन में किरमान के हौज़ात ए इल्मिया के निदेशकों और उस्तादों को संबोधित करते हुए इस्लामी क्रांति के इतिहास में किरमान प्रांत की विशेष अहमियत का उल्लेख किया और इस क्षेत्र को प्राकृतिक और मानवीय दृष्टि से विशिष्ट संसाधनों से भरपूर बताते हुए शहीद हाज क़ासिम सुलेमानी और अन्य शहीदों की सेवाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की हैं।
उन्होंने इस्लाम और इस्लामी क्रांति के परिप्रेक्ष्य में किरमान की अद्वितीय भूमिका की ओर इशारा करते हुए कहा,किरमान ने शहीद सरफ़राज़ हाज क़ासिम सुलेमानी के पवित्र ख़ून की बरकत से मुक़ावमती राजधानी का महान ख़िताब हासिल किया है।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने अपने बयान के एक और हिस्से में शहादत के दिनों में इमाम जवाद अ.स. की शहादत की ताज़ियत पेश की और इमाम रज़ा (अ.स.) की ईरान में ऐतिहासिक भूमिका की ओर इशारा करते हुए कहा,ख़ुरासान में इमाम रज़ा (अ.स.) की दो वर्षों की मौजूदगी इमामत व विलायत के इतिहास में एक बेनज़ीर दौर है, जिसने अब्बासी खलीफ़ा मामून की जटिल रणनीति को नाकाम बना दिया।
उन्होंने कहा,हौज़ात ए इल्मिया का इतिहास हमारे उलमा और बुज़ुर्गों की अनथक मेहनत से भरा हुआ है, जो आज और आने वाले कल की हमारी कोशिशों के लिए प्रेरणा का स्रोत होना चाहिए इसी सिलसिले में रहबर-ए-मोअज़्ज़म का पैग़ाम हौज़ा ए इल्मिया के लिए एक नए अध्याय की हैसियत रखता है।
हौज़ा ए इल्मिया के निदेशक ने प्राचीन हौज़ा की पुनः स्थापना को 14वीं सदी हिजरी की शुरुआत से जोड़ते हुए कहा,इस दौर में हौज़ा ए इल्मिया क़ुम ने तीन महत्वपूर्ण चरण तय किए हैं, इस्लामी आंदोलन से पहले का दौर, आंदोलन के बाद का दौर, और इस्लामी क्रांति के बाद का दौर।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने क़ुम की 1200 साल पुरानी तारीख़ को इस्लामी सोच और विचार के महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक बताया और कहा, पिछले 100 वर्ष हौज़ा ए इल्मिया की तरक़्क़ी और विकास का एक बिल्कुल नया अध्याय माने जाते हैं।
जो कोई अल्लाह पर तवक्कुल और भरोसा करता है, तो अल्लाहा उसके सभी मामलों मे काफ़ी होता है
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा वहीद ख़ुरासानी ने कहा: यदि कोई व्यक्ति सभी कारणों को इदारा ए इलाही के अधीन मानता है, तो निराशा कभी उसके पास नहीं आएगी, वह कठिनाइयों का सामना करने में कमजोर महसूस नहीं करेगा और कठिन परिस्थितियों में दृढ़ रहेगा।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा वहीद ख़ुरासानी ने इमाम जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर लिखे एक लेख में भरोसे के विषय पर प्रकाश डाला और कहा:
इमाम जवाद (अ) फ़रमाते हैं:
"من توکل علی الله کفاه الامور، والثقة بالله حصن لا یتحصن فیه إلا المؤمن मन तवक्कल अलल लाहे कफ़ाहुल उमूर, वस्सिक़तो बिल्लाहे हिस्नुन ला यतहस्सनो फ़ीहे इल्लल मोमिन"
जो कोई अल्लाह पर भरोसा करता है, उसके मामलों के लिए अल्लाह काफ़ी है। अल्लाह पर भरोसा एक किला है जिसमें केवल मोमिन सुरक्षित है। (अल-फ़ुसुल अल-मोहिम्मा, भाग 2, पेज 1051)
फ़क़ीह का कलाम:
मोमिन की निशानियों में से एक यह है कि वह अपने रब पर भरोसा करता है, अपने मामले उसे सौंपता है, और जानता है कि सब कुछ अल्लाह तआला के इरादे से है। अगर कोई व्यक्ति सभी कारणों को इरादा ए इलाही के अधीन मानता है, तो वह कभी निराश नहीं होगा, कठिनाइयों के सामने कमज़ोर महसूस नहीं करेगा, और कठिन परिस्थितियों में भी दृढ़ता दिखाएगा।
इक़्तेबास: मिस्बाह अल-हुदा, भाग 4, आयतुल्लाहिल उज़्मा वहीद ख़ुरासानी
इज़रायली सरकार तुरंत ग़ाज़ा पर हमले बंद करे जबरन विस्थापन अस्वीकार्य है
इटली के विदेश मंत्री ने संसद में भाषण देते हुए ग़ाज़ा पर इज़रायली हमलों को तुरंत रोकने की मांग की है और फिलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन को पूरी तरह अस्वीकार्य करार दिया है।
इटली के विदेश मंत्री ने संसद में भाषण देते हुए ग़ाज़ा पर इज़रायली हमलों को तुरंत बंद करने की मांग की है और फिलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन को पूरी तरह अस्वीकार्य बताया है।
इटली के विदेश मंत्री एंतोनियो तायानी ने रोम में संसद को संबोधित करते हुए कहा,ग़ाज़ा में युद्ध समाप्त होना चाहिए उन्होंने शुरुआत में 7 अक्टूबर के हमले की प्रतिक्रिया को "वैध और कानूनी" बताते हुए इज़राइल के प्रति अपना संतुलित रुख दिखाने की कोशिश की लेकिन मौजूदा हालात को अस्वीकार्य करार दिया।
यह बात उल्लेखनीय है कि इटली अन्य पश्चिमी देशों के साथ मिलकर 7 अक्टूबर के बाद से इज़रायली सरकार की नरसंहार जैसी कार्रवाइयों का समर्थन करता रहा है। हालांकि, तायानी का यह हालिया बयान पश्चिमी दुनिया में ग़ाज़ा की स्थिति को लेकर बढ़ते दबाव को दर्शाता है।
उन्होंने आगे कहा,फिलिस्तीनियों को ग़ाज़ा से बेदखल करना किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता न अब न भविष्य में कभी।
ये बयान ऐसे समय में आया हैं जब हाल के दिनों में यूरोपीय अधिकारियों द्वारा ग़ाज़ा में मानवीय सहायता पहुँचाने पर ज़ोर दिया जा रहा है और कुछ पश्चिमी हस्तियां इज़राइल पर हथियारों की पाबंदी का समर्थन भी कर चुकी हैं।
इसी क्रम में इज़राइली विदेश मंत्री गिदोन सार ने आज चेतावनी दी है कि यदि पश्चिमी सहयोगियों द्वारा इज़राइल पर हथियार संबंधी प्रतिबंध लगाए गए तो यह देश की तबाही का कारण बन सकता है।
अंसारुल्लाह यमन ने शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह के रास्ते पर चलते रहने पर ज़ोर दिया
अंसारुल्लाह यमन ने दक्षिणी लेबनान की आज़ादी और प्रतिरोध,मुक़ावमत के दिन के अवसर पर हिज़्बुल्लाह के महासचिव, लेबनान की इस्लामी प्रतिरोध ताक़तों और लेबनानी जनता को बधाई दी साथ ही इस्लाम और मानवता के शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह के रास्ते को जारी रखने के संकल्प का इज़हार किया।
अंसारुल्लाह यमन के राजनीतिक कार्यालय ने दक्षिणी लेबनान की आज़ादी की 25वीं सालगिरह के मौके पर जारी एक बयान में कहा,25 मई 2000 को इज़रायली ताक़तों की शर्मनाक हार और उनके दक्षिणी लेबनान से बाहर निकाले जाने का ऐतिहासिक दृश्य देखा गया।
यह दिन इस्लामी प्रतिरोध (मुक़ावमत) की वह जीत है जो ज़ायोनी दुश्मन के मुक़ाबले में अरब और इस्लामी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बदलाव साबित हुई।
बयान में आगे कहा गया,हिज़्बुल्लाह के मुजाहिदीनों की इस जीत ने अरब और इस्लामी उम्मत को दोबारा आत्मविश्वास दिया और अपनी क्षमताओं पर विश्वास को और मज़बूत किया। इसी तरह 2006 में दुश्मन पर हिज़्बुल्लाह की विजय ने ज़ायोनी क़ब्ज़ा जमाने वाली सत्ता से मुक़ाबले के लिए नए समीकरण और सिद्धांत स्थापित किए।
अंसारुल्लाह यमन ने एलान किया,हम एक बार फिर हिज़्बुल्लाह और इस्लामी प्रतिरोध के साथ अपनी वफ़ादारी की पुष्टि करते हैं और शहीदों, विशेष रूप से इस्लाम और इंसानियत के शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह के रास्ते पर चलने के अपने संकल्प को दोहराते हैं।
हम लेबनान और इस्लामी प्रतिरोध के साथ अपनी पूरी एकजुटता का इज़हार करते हैं और लेबनान की भूमि और संप्रभुता पर ज़ायोनी हमलों और आक्रामक कार्रवाइयों की कड़ी निंदा करते हैं।
इमाम जवाद (अ) का संक्षिप्त जीवन परिचय
हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म 10 रजब सन 195 हिजरी को मदीना शहर में हुआ था। इल्म, शराफ़त, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से अलग था
हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म 10 रजब सन 195 हिजरी को मदीना शहर में हुआ था। इल्म, शराफ़त, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से अलग था।
ख़ुदाई दायित्व के उचित ढंग से निर्वाह के लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.व.व.) के परिजनों में से प्रत्येक ने अपने काल में हर कार्य के लिए तार्किक और प्रशंसनीय नीति अपनाई थी ताकि ख़ुदाई मार्गदर्शन जैसे अपने दायित्व का निर्वाह उचित ढंग से किया जा सके।
इन महापुरूषों के जीवन में अल्लाह पर केन्द्रियता उनका मूल मंत्र रही। इस प्रकार इंसाफ़ को लागू करने, ख़ुदा के सिवा किसी अन्य की बंदगी से मनुष्यों को मुक्ति दिलाने और व्यक्तिगत एवं सामाजिक संबंधों में सुधार जैसे विषयों पर उनका विशेष ध्यान था।
यद्यपि यह महापुरूष बहुत छोटे और सीमित वक़्त में इमामत के कार्यकाल में सफ़ल रहे किंतु उनकी दृष्टि में इंसाफ़ को स्थापित करने, हक़ व अधिकारों को दिलवाने, अन्याय को समाप्त करने और ख़ुदा के धर्म को फैलाने जैसे कार्य के लिए सत्ता एक माध्यम है। क्योंकि यह महापुरूष अपनी करनी तथा कथनी में मानवता और नैतिक मूल्यों का उदाहरण थे अतः वे लोगों के दिलों पर राज किया करते थे। रजब जैसे बरकतों वाले महीने की दसवीं तारीख़, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की एक कड़ी के शुभ जन्मदिवस से सुसज्जित है।
आज के दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ऐसे परिजन का जन्म दिवस है जो दान-दक्षिणा के कारण जवाद के उपनाम से जाने जाते थे। जवाद का अर्थ होता है अतिदानी। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म दस रजब सन १९५ हिजरी को मदीना में हुआ था। ज्ञान, शालीनता, ख़िताबत तथा अन्य मानवीय गुणों के कारण उनका व्यक्तित्व अन्य लोगों से भिन्न था। वे बचपन से ही ज्ञान, राज़ व नियाज़, शालीनता और अन्य विशेषताओं में अद्वितीय थे।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के इमामत के काल में अब्बासी शासन के दो शासक गुज़रे मामून और मोतसिम। क्योंकि अब्बासी शासक, इस्लामी शिक्षाओं को लागू करने में गंभीर नहीं थे और वे केवल "ज़वाहिर" को ही देखते थे अंतः यह शासक, धर्म के नियमों में परिवर्तन करने और उस में नई बातें डालने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। इस प्रकार के व्यवहार के मुक़ाबले में इमाम जवाद (अ) की प्रतिक्रियाओं और उनके विरोध के कारण व्यापक प्रतिक्रियाएं हुईं और यही विषय, अब्बासी शासन की ओर से इमाम और उनके अनुयाइयों को पीड़ित किये जाने का कारण बना।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अन्य परिजनों की ही भांति इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अब्बासी शासकों के अत्याचारों और जनता को धोखा देने वाली उनकी कार्यवाहियों के मुक़ाबले में शांत नहीं बैठते और बहुत सख़्त परिस्थितियों में भी जनता के समक्ष वास्तविकताओं को स्पष्ट किया करते थे। अत्याचार के मुक़ाबले में इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की दृढ़ता और बहादुरी, साथ ही उनकी बेहतरीन ख़िताबत कुछ इस प्रकार थी जिस को सहन करने की शक्ति अब्बासी शासकों में नहीं थी। यही कारण है कि इन दुष्टों ने मात्र 25 वर्ष की आयु में इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को शहीद करवा दिया। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रयासों के आयामों में से एक, पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के उन विश्वसनीय कथनों को प्रस्तुत करना और उन गूढ़ धार्मिक विषयों को पेश करना था जिनपर उन लोगों ने विभिन्न आयाम से प्रकाश डाला था।
इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम एक ओर तो पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के कथनों का वर्णन करते हुए समाज में धर्म की जीवनदाई संस्कृति और धार्मिक शिक्षाओं को प्रचलित कर रहे थे तो दूसरी ओर समय की आवश्यकता के अनुसार तथा जनता की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक क्षमता के अनुरूप विभिन्न विषयों पर भाषण दिया करते थे। ख़ुदाई आदेशों को लागू करने के लिए इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का एक उपाय या कार्य, पवित्र क़ुरआन और लोगों के बीच संपर्क स्थापित करना था।
उनका मानना था कि क़ुरआन की आयतों को समाज में प्रचलित किया जाए और मुसलमानों को अपनी कथनी-करनी और व्यवहार में पवित्र क़ुरआन और उसकी शिक्षाओं से लाभान्वित होना चाहिए। इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम ख़ुदाई इच्छा की प्राप्ति को लोक-परलोक में कल्याण की चाबी मानते थे। वे पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं के आधार पर इस बात पर बल दिया करते थे कि अल्लाह की प्रसन्नता हर वस्तु से सर्वोपरि है। ख़ुदावंदे करीम सूरए तौबा की ७२ वीं आयत में अपनी इच्छा को मोमिनों के लिए हर चीज़, यहां तक स्वर्ग से भी बड़ा बताता है। इसी आधार पर इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम लोगों से कहते थे कि वे केवल ख़ुदा की प्रसन्नता प्राप्त करने के बारे में सोच-विचार करें और इस संदर्भ में वे अपने मार्गदर्शन प्रस्तुत करते थे। अपने मूल्यवान कथन में एक स्थान पर इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम कहते हैं: तीन चीज़े अल्लाह की प्रसन्नता का कारण बनती हैं। पहले, अल्लाह से अधिक से अधिक प्रायश्यित करना, दूसरे कृपालू होना और तीसरे अधिक दान देना। ख़ुदा की ओर से मनुष्य को प्रदान की गई नेअमतों में से एक नेअमत प्रायश्यित अर्थात अपने पापों के प्रति अल्लाह से क्षमा मांगना है।
प्रायश्चित, ख़ुदा के बंदों के लिए ख़ुदा की नेअमतों के द्वार में से एक है। ख़ुदा से पापों का प्रायश्चित करने से पिछले पाप मिट जाते हैं और इससे इंसान को इस बात का फिर से अवसर प्राप्त होता है कि वह विगत की क्षतिपूर्ति करते हुए उचित कार्य करे और अपनी आत्मा को पवित्र एवं कोमल बनाए। इसी तर्क के आधार पर मनुष्य को तौबा या प्रायश्चित करने में विलंब नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे पछतावा ही हाथ आता है।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के अनुसार शराफ़त (शालीतना) उन अन्य उपायों में से है जिसके माध्यम से ख़ुदाई प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है। उसके पश्चात दूसरे और तीसरे भाग में मनुष्य को लोगों के साथ संपर्क के ढंग से परिचित कराते हैं। दूसरे शब्दों में अल्लाह को प्रसन्न करने का मार्ग अल्लाह के बंदों और उनकी सेवा से गुज़रता है। इस संपर्क को विनम्रता और दयालुता के साथ होना चाहिए।
निश्चित रूप से विनम्र व्यवहार विनम्रता का कारण बनता है जो मानव को घमण्ड से दूर रखता है। घमण्ड, दूसरों पर अत्याचार का कारण होता है। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने ख़ुत्बे के अन्तिम भाग में अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के तीसरे कारण को दान-दक्षिणा के रूप में परिचित करवाते हैं। स्वयं वे इस मानवीय विशेषता के प्रतीक थे। इसी आधार पर उन्हें जवाद अर्थात अत्यधिक दानी के नाम से जाना जाता है। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम लोगों को उस मार्ग का निमंत्रण देते थे जिसे उन्होंने स्वयं भी तय किया और उसके बहुत से प्रभावों को ख़ुदा की रहमत और कृपादृष्टि को आकृष्ट करने में अनुभव किया। दूसरों को सदक़ा या दान देने का उल्लेख पवित्र क़ुरआन में बहुत से स्थान पर नमाज़ के साथ किया गया है। इस प्रकार इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम यह समझाना चाहते हैं कि ख़ुदा की इबादत के दो प्रमुख पंख हैं। इनमें से एक ख़ुदा के साथ सहीह एवं विनम्रतापूर्ण संबंध और दूसरा लोगों के साथ मधुर एवं विनम्रतापूर्ण व्यवहार है। यह कार्य दान से ही संभव होता है जिससे व्यक्ति अल्लाह की इच्छा प्राप्त कर सकता है।
मनुष्य अपनी संपत्ति में से जिस मात्रा में भी चाहे अल्लाह के मार्ग में वंचितों को दान कर सकता है। यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि दान-दक्षिणा में संतुलन होना चाहिए। ऐसा न हो कि यह मनुष्य के लिए निर्धन्ता का कारण बने। दान और परोपकार हर स्थिति में विशेषकर धन-दौलत का दान उन कार्यों में से एक है जो इंसान को ख़ुदा की प्रसन्नता की ओर बढ़ाता है। क्योंकि इंसान के पास जो कुछ है उसे वह अल्लाह के मार्ग में दान दे सकता है। इस प्रकार के लोग हर प्रकार के भौतिक लगाव को त्यागते हुए केवल अल्लाह की प्रशंसा की प्राप्ति चाहते हैं। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के एक कथन से इस लेख का अंत कर रहे हैं।
जैसा कि आप जानते हैं कि बहुत से लोग धन-दौलत, सत्ता, जातिवाद तथा इसी प्रकार की बातों को गर्व और महानता का कारण मानते हैं तथा जिन लोगों में यह चीज़ें नहीं पाई जातीं उन्हें वे तुच्छ समझते हैं किंतु इमाम तक़ी अल जवाद अलैहिस्सलाम सच्ची शालीनता का कारण उस ज्ञान को मानते हैं जो व्यक्ति के भीतर निखार का कारण बने। वे महानता को आध्यात्मिक विशेषताओं में से मानते हैं।
एक स्थान पर आप कहते हैं: वास्तविक सज्जन वह व्यक्ति है जो इल्म से आरास्तां (ज्ञान से सुसज्जित) हो और वास्तविक महानता उसी के लिए है जो ख़ुदाई भय और ख़ुदाई पहचान के मार्ग को अपनाए।
सऊदी अरब में प्रसिद्ध ईरानी आलेमदीन ग़ुलाम रज़ा क़ासिमीयान गिरफ़्तार
रमज़ान के पवित्र महीने में प्रसारित होने वाले कुरआनी कार्यक्रम "महफ़िल" के जज और प्रसिद्ध ईरानी आलिम-ए-दीन हुज्जतुल इस्लाम ग़ुलाम रज़ा क़ासेमीयान को सऊदी अरब में हज के अरकान की अदायगी के दौरान गिरफ़्तार कर लिया गया है।
रमज़ान के महीने में टीवी पर आने वाले मशहूर कुरआनी शो "महफ़िल" के जज और नामचीन ईरानी इस्लामी विद्वान हुज्जतुल इस्लाम ग़ुलाम रज़ा क़ासिमीयान को हज की अदायगी के समय सऊदी अरब में हिरासत में लिया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार, उनकी गिरफ़्तारी की वजह सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो क्लिप बताई जा रही है, जिसमें सऊदी अरब की स्थिति पर आलोचनात्मक टिप्पणी की गई थी।
यह वीडियो कथित तौर पर हुज्जतुल इस्लाम क़ासेमियान से ही जुड़ी हुई है, जिसकी वजह से सऊदी सुरक्षा अधिकारियों ने उन्हें गिरफ़्तार किया है।
फिलहाल हुज्जतुल इस्लाम क़ासिमीयान की वर्तमान स्थिति और उनकी हिरासत की जगह के बारे में कोई पक्की जानकारी नहीं मिल सकी है। ईरानी अधिकारियों और आम जनता के बीच इस गिरफ़्तारी को लेकर गहरी चिंता पाई जा रही है, और यह उम्मीद जताई जा रही है कि ईरान का विदेश मंत्रालय जल्द ही इस मुद्दे पर अपना आधिकारिक प्रतिक्रिया देगा।