
رضوی
हिज़्बुल्लाह की नगरपालिका चुनावों में जीत के कारणों का विश्लेषण
एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि लेबनान में हिज़्बुल्लाह की नगरपालिका और दक्षिणी लेबनान के स्थानीय परिषद चुनावों में जीत ने साबित कर दिया कि दुश्मनों के नकारात्मक प्रचार के बावजूद इस पार्टी की लोकप्रियता अभी भी बहुत अधिक है।
लेबनान के दक्षिणी और नबातिया प्रांतों में नगरपालिका और स्थानीय परिषद चुनावों का चौथा और अंतिम चरण शनिवार, 24 मई 2025 को आयोजित किया गया। हिज़्बुल्लाह और अमल आंदोलन से जुड़े "विकास और निष्ठा" चुनावी गठबंधन ने दक्षिणी लेबनान में एक ऐतिहासिक जीत हासिल की और शकरा, जोया, ऐतरून और नबातिया जैसे कई शहरों व गांवों में बढ़त बनाई। वर्ल्ड न्यूज नेटवर्क के हवाले से प्रकाशित रिपोर्ट में, लेबनानी विश्लेषक नासिर नासिरुद्दीन ने कहा: "हिज़्बुल्लाह की इस चुनावी जीत ने साबित कर दिया कि इसके खिलाफ चलाए गए प्रोपेगैंडा के बावजूद पार्टी की जनता में अभूतपूर्व स्वीकार्यता है। यह चुनाव लेबनानी संसद के भविष्य के गठन का संकेत भी देता है और सरकार व मंत्रिमंडल के निर्माण पर इसका प्रभाव पड़ेगा। इससे इज़रायल के खिलाफ हिज़्बुल्लाह और अमल आंदोलन के प्रतिरोध विकल्प को मजबूती मिलेगी।"
नासिरुद्दीन ने आगे कहा: "लेबनान के नगरपालिका चुनावों के दौरान, अमेरिका सहित कई दूतावासों ने कुछ उम्मीदवारों को समर्थन देकर हिज़्बुल्लाह के खिलाफ कार्रवाई करने और परिणामों को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश की, लेकिन मतपेटियों का नतीजा हिज़्बुल्लाह-विरोधी ताकतों के प्रयासों के विपरीत रहा।"
उन्होंने ज़ोर देकर कहा: "जब हिज़्बुल्लाह के खिलाफ़ 'ऑपरेशन पैजर्स' हुआ और सैय्यद हसन नसरुल्लाह व कुछ वरिष्ठ कमांडरों की टारगेट किलिंग की गई, और इज़रायल ने लेबनान पर अपने हमले बढ़ा दिए, तो लोगों की भावनाओं को गहरा ठेस पहुंचा। शेख नईम कासिम को हिज़्बुल्लाह का महासचिव चुना जाना इस बात का प्रमाण था कि पार्टी की तैयारियां अभी भी चरम पर हैं। इस चुनाव ने दिखाया कि हिज़्बुल्लाह कभी भी किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर नहीं रही। पार्टी ने बहुत जल्द खुद को पुनर्गठित किया और ज़ायोनी शासन के दक्षिणी लेबनान में हमलों का मुंहतोड़ जवाब देकर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया।"
इस लेबनानी विश्लेषक ने स्पष्ट किया: "लेबनान के लोग, विशेष रूप से दक्षिण के निवासी, हमेशा इस बात पर जोर देते हैं कि अमेरिकी कभी भी भरोसेमंद नहीं होते। यह तब है जब अमेरिका लेबनान की सरकार और जनता से अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने की अपील करता है, लेकिन ज़ायोनी शासन के आक्रमणों को रोकने के लिए कुछ नहीं करता। हालिया हमलों ने साबित कर दिया कि इजरायल अमेरिकी समर्थन के साथ लेबनान पर हमला करने का बहाना ढूंढ रहा है। लेबनान सरकार को अंतरराष्ट्रीय संगठनों और संयुक्त राष्ट्र का रुख़ करना चाहिए ताकि दक्षिणी लेबनान पर ज़ायोनी शासन के हमले रोके जा सकें।"
उन्होंने हाल के चुनावों में शिया और ईसाई समुदायों के बीच समन्वय को हिज़्बुल्लाह के पिछले वर्षों की सफल नीतियों का परिणाम बताया और कहा: "जब यह पार्टी सीरिया में आतंकवादियों से जूझ रही थी, तब उसने ईसाई बहुल गांवों को आतंकी समूहों से बचाया। इसी तरह, लेबनान में भी कई ईसाई गांव हैं जहां हिज़्बुल्लाह ने उनके आंतरिक मामलों में दख़ल दिए बिना, निवासियों की सुरक्षा की। ईसाई समुदाय ने इन कार्यों को देखकर हिज़्बुल्लाह के साथ अपने संबंध मज़बूत किए और लेबनानी ईसाइयों में इस पार्टी के प्रति गहरा विश्वास पैदा हुआ।"
इस राजनीतिक विश्लेषक ने आगे कहा: **"दक्षिणी लेबनान में हिज़्बुल्लाह की इजरायल पर जीत को 25 साल हो चुके हैं। वर्ष 2000 दक्षिणी लेबनान की मुक्ति का वर्ष था, जब 18 साल के कब्जे के बाद प्रतिरोध के हमलों के आगे ज़ायोनी सेना को शर्मनाक पीछे हटना पड़ा। इस मुक्ति के बाद के 25 वर्षों में, ज़ायोनी शासन की सेना ने हिज़्बुल्लाह पर बड़े पैमाने पर हमले किए, लेकिन प्रतिरोध हमेशा कब्जाधारियों के लिए घात लगाए बैठा रहा। उसने कई बार इजरायली टैंकों को नष्ट किया और उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया। हिज़्बुल्लाह की चुनावी जीत और दक्षिणी लेबनान की मुक्ति व प्रतिरोध के महान त्योहार का जश्न—ये दोनों बड़े अवसर हैं। लेबनान के लोगों, खासकर दक्षिण के निवासियों, ने जोर देकर कहा है कि वे हमेशा प्रतिरोध का समर्थन करेंगे और इज़राइली क़ब्जे को समाप्त करने तक संघर्ष जारी रखेंगे।"
उनके अनुसार, लेबनानी शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह के वक्तव्य और नारे के आधार पर प्रतिरोध को जारी रखेंगे। "ज़ायोनी शासन के आक्रमणों के खिलाफ प्रतिरोध के हथियार हमेशा मौजूद रहने चाहिए, और हिज़्बुल्लाह के शस्त्र हर समय लेबनानी सेना से सहयोग के लिए हमेशा तैयार रहेंगे।"
मुस्लिम महिलाओं को आधुनिक इस्लामी संस्कृति के लिए एक आदर्श बनना चाहिए
जामिया अलज़हेरा की प्रमुख ने कहा, मुस्लिम महिलाओं को आधुनिक इस्लामी संस्कृति के लिए एक मॉडल बनना चाहिए वह एक ऐसी महिला हो जो विचारशील हो, इबादत करने वाली हो, परिवार की व्यवस्था संभालने वाली हो, सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाए और साथ ही पारिवारिक जिम्मेदारियों का भी पालन करे।
लेबनान के शहीदों की विधवाओं और कुछ चुनिंदा महिलाओं ने जामिया अलज़हेरा की प्रमुख सैय्यदा ज़हेरा बरकई से मुलाकात की।
उन्होंने मेहमान महिलाओं का स्वागत करते हुए रहबर-ए मोअज़्ज़म (सर्वोच्च नेता) के कथन का हवाला दिया कि शहीद "महफिलों के चिराग" हैं और कहा, आपकी मौजूदगी हर महफिल को रौशन कर देती है। आज अलज़हरा विश्वविद्यालय को यह सम्मान प्राप्त है कि वह प्रतिरोध के शहीदों के परिवारों की मेज़बानी कर रहा है।
सैय्यदा ज़हेरा बरकई ने कहा कि शहीदों के मार्ग को जारी रखना एक ईश्वरीय जिम्मेदारी है। कुरआन हमें बताता है कि शहीदों के रास्ते को ईमान वाले जारी रखेंगे और उनकी याद को जीवित रखना हमारा मूल कर्तव्य है।
उन्होंने महिलाओं की भूमिका को सांस्कृतिक, पहचान-संबंधी और साम्राज्यवादी चुनौतियों के सामने अत्यंत महत्वपूर्ण बताया और कहा, महिलाएं इस्लामी समुदाय में बौद्धिक और सांस्कृतिक परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में खड़ी हैं, और लेबनानी महिलाओं ने नई पीढ़ी के प्रशिक्षण और प्रतिरोध के संवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने रहबर-ए मोअज़्ज़म के सभ्यता-निर्मात्री महिला के विचार को स्पष्ट करते हुए कहा, मुस्लिम महिला वह व्यक्तित्व है जो धर्म और इबादत से जुड़ी हो, विचार और ज्ञान में लगी हो, परिवार की देखभाल करने वाली हो, सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय हो, और अपने पारिवारिक कर्तव्यों से अनजान न हो।
सैय्यदा बरकई ने प्रतिरोध मोर्चे की हौज़वी (धार्मिक शिक्षा प्राप्त) और विश्वविद्यालयी महिलाओं के लिए एक वैश्विक संघ बनाने का प्रस्ताव रखा और कहा, अल-ज़हरा विश्वविद्यालय (स) इस संघ के केंद्र की स्थापना के लिए तैयार है, ताकि ईरान, लेबनान, सीरिया और अन्य प्रतिरोधी देशों की महिलाओं के बीच वैज्ञानिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
पश्चिमी उपभोक्ताओं का दावा है कि ग़ाज़ा आधुनिक युग का होलोकॉस्ट है
ग़ाज़ा में 19 महीनों से जारी युद्ध, तबाही, बेघर होना, क़ैद, अकाल और भूख ने ज़िंदगी को नर्क बना दिया है जिसे अब पश्चिमी लोग आधुनिक युग के होलोकॉस्ट से तुलना कर रहे हैं।
ट्विटर उपयोगकर्ताओं ने पिछले 24 घंटों में अमेरिकी कार्यकर्ताओं के इज़राइल विरोधी प्रदर्शनों की प्रतिक्रिया में ग़ाज़ा में फ़िलिस्तीनियों की संकटपूर्ण स्थिति को वास्तविक होलोकॉस्ट बताया है और इसे आधुनिक युग में आम नागरिकों के ख़िलाफ़ युद्ध अपराध और नरसंहार का स्पष्ट उदाहरण कहा है।
अमेरिकी संगठन 'कोड पिंक' के कुछ सदस्यों ने बीते शनिवार को वाशिंगटन डी.सी. में स्थित होलोकॉस्ट म्यूज़ियम के सामने प्रदर्शन किया। उन्होंने ग़ाज़ा पट्टी पर जारी बमबारी और फ़िलिस्तीनियों को जानबूझकर भूखा रखने की नीति की निंदा की है।
प्रदर्शनकारियों ने अब कभी नहीं मतलब किसी के लिए भी कभी नहीं" जैसे नारे लगाए और ग़ज़ा युद्ध तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भूख से पीड़ित बच्चों की तस्वीरें दिखाकर ज़ोर दिया कि अगर यहूदियों के ख़िलाफ़ नरसंहार और अत्याचार ग़लत हैं, तो ऐसा किसी और के साथ भी नहीं होना चाहिए।
इतिहास के अनुसार, प्रथम विश्वयुद्ध के बाद केवल 5 से 10 प्रतिशत यूरोपीय यहूदी ही फ़िलिस्तीन की ओर गए थे। यानी, नाज़ियों ने होलोकॉस्ट के दौरान उन अधिकांश यहूदियों को निशाना बनाया जिन्होंने यहूदी राष्ट्रवादियों द्वारा फ़िलिस्तीन प्रवास के आह्वान को अस्वीकार कर दिया था।
होलोकॉस्ट, जिसे लेकर आज भी कई सवाल और विवाद हैं, पश्चिम की ऐतिहासिक स्मृति में एक मानवीय त्रासदी के रूप में देखा जाता है। दशकों से, यहूदी राष्ट्रवाद यानी ज़ायोनिज़्म की आलोचना को यहूदी विरोध या यहूदियों पर अत्याचार की पुनरावृत्ति के रूप में देखा जाता रहा है।
दीनी और इंकेलाबी कला के प्रसार में उस्ताद नजाबती की भूमिका अत्यंत उज्ज्वल है
हौज़ा-ए-इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अ'राफ़ी ने धार्मिक और क्रांतिकारी कला को बढ़ावा देने इस्लामी और शिया मूल्यों के प्रचार, तथा प्रतिबद्ध और क्रांतिकारी युवाओं की प्रशिक्षण में उस्ताद मसऊह नजाबती की वैचारिक और सांस्कृतिक सेवाओं को श्रद्धांजलि और सराहना के साथ याद किया।
क्रांतिकारी कलाकार उस्ताद मसऊह नजाबती के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम "मसऊद-ए-हुनर" में आयतुल्लाह अ'राफ़ी का संदेश हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अली अलीज़ादेह ने पढ़कर सुनाया, जिसका अनुवाद इस प्रकार है।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
ईरान की इस्लामी संस्कृति और कला निस्संदेह एक बहुमूल्य और अनमोल खज़ाना है, जिसे इस भूमि के चिंतनशील और रचनात्मक लोगों ने मानवता के लिए एक तोहफे के रूप में पेश किया है।
इस उज्ज्वल धरोहर की रक्षा और प्रसार उन महान कलाकारों की मेहनत का परिणाम है जिन्होंने शुद्ध धार्मिक शिक्षाओं और ईरानी चिंतन से प्रेरणा लेकर रचनात्मकता और नवाचार के साथ इसकी रक्षा, प्रचार और विकास में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया।
आदरणीय उस्ताद मसऊह नजाबती ज़िद अज़्ज़हुम
आपकी अनथक कोशिशें, राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक और क्रांतिकारी कलाकृतियों की रचना, और धर्म, क्रांति और प्रतिरोध की कला में आपकी सच्ची और संघर्षशील उपस्थिति ये सब आपकी बहुमूल्य, चमकदार और अविस्मरणीय सेवाओं की साक्षी हैं।
आपका विशेष ध्यान इस ओर रहा है कि इस्लामी और शिया मूल्यों को युवा कलाकारों में आम किया जाए। इस प्रशिक्षण का फल एक क्रांतिकारी और प्रतिबद्ध पीढ़ी के रूप में सामने आया है, जो इस उज्ज्वल मार्ग की उत्तराधिकारी है।
इसी तरह "कानून-ए-हुनर-ए-शिया" की स्थापना के माध्यम से शिया कला के पुनर्जीवन और प्रस्तुति के लिए आपकी कोशिशें आपके काम की एक और चमकदार झलक हैं, जिनसे इस्लामी ईरान की सांस्कृतिक पहचान को एक शानदार रूप में जीवित रखा गया।
राष्ट्रीय प्रतिभा संस्थान द्वारा आपको सर-आमद-ए-हुनरी (श्रेष्ठतम कलाकार) की उपाधि दिया जाना आपकी दशकों की वैचारिक और कलात्मक संघर्ष का व्यावहारिक स्वीकार है, जिसने आपको ईरान और समस्त इस्लामी जगत में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है।
अतः मैं अपनी ओर से आपकी इन शुद्ध, प्रभावशाली और स्थायी कोशिशों की गहराई से सराहना करते हुए इस महान उपलब्धि पर आपको और समस्त कला एवं संस्कृति से जुड़े समुदाय को दिल से बधाई देता हूँ।
निश्चित रूप से इस भूमि के कलाकार आपकी निरंतर और ईमानदार मेहनत को हमेशा क़द्र की निगाह से देखते रहेंगे।मैं दुआ करता हूँ कि परवरदिगार आपको और अधिक सम्मान, सफलता और कामयाबियाँ अता फरमाए।
अली रज़ा आराफ़ी
प्रमुख, हौज़ा-ए-इल्मिया ईरान
इमाम ए ज़माना अ.स.के ज़ुहुर के वक्त का मख्फी होना
बेशक सबसे बेहतर इंतेज़ार वही है जो उम्मीद देने वाला और रचनात्मक हो ऐसा इंतेज़ार जो इंसान को हरकत, सक्रियता और इस्तेक़ामत (दृढ़ता) देता हो। यह तभी मुमकिन है जब इमाम ज़माना (अ.ज.) के ज़ुहूर (प्रकट होने) का समय गुप्त रखा गया हो।
सबसे बेहतरीन इंतज़ार वही है जो उम्मीद से भरा और रचनात्मक हो ऐसा इंतज़ार जो इंसान को हरकत, सक्रियता और इस्तेक़ामत (दृढ़ता) बख्शता है यह तभी संभव है जब इमाम ज़माना (अज) के ज़ुहूर (प्रकट होने) का समय गुप्त रखा गया हो।
अल्लाह तआला की हिकमत भरी मर्ज़ी के मुताबिक, इमाम मेंहदी अ.स. के ज़ुहूर का समय हमारे लिए छुपा रखा गया है, और इस छुपे रहने के पीछे कई गहरी हिकमतें हैं, जिनमें से कुछ का ज़िक्र नीचे किया जा रहा है:
- उम्मीद की स्थायित्व (बक़ा)
जब ज़ुहूर का समय मालूम न हो तो हर दौर के मुन्तज़िरीन (इंतज़ार करने वालों) के दिलों में उम्मीद का चिराग़ जलता रहता है। यही उम्मीद इंसान को ग़ैबत (पर्दा-ए-ग़ैब) के कठिन दौर में सब्र और इस्तेक़ामत देती है।
अगर पिछली सदियों के शियाओं को ये मालूम हो जाता कि ज़ुहूर उनके ज़माने में नहीं, बल्कि सदियों बाद होगा, तो वो किन उम्मीदों के सहारे ज़ुल्म, फसाद और आज़माइशों के सामने खड़े होते? वो ग़ैबत की इन अंधेरी घाटियों से कैसे गुज़रते?
- तैयारी और संघर्ष की प्रेरणा
जैसा कि ऊपर ज़िक्र हुआ, रचनात्मक और जीवंत इंतज़ार तभी मुमकिन है जब ज़ुहूर का समय छिपा हो।अगर वक़्त मालूम हो जाए और किसी को यकीन हो जाए कि वह उस समय तक ज़िंदा नहीं रहेगा, तो वह सुस्ती, जड़ता और बे-हिम्मती का शिकार हो सकता है।
लेकिन जब ज़ुहूर का समय मालूम न हो, तो हर इंसान इस उम्मीद में कोशिश करता है कि शायद वही इमाम का ज़ुहूर देख पाए।यही उम्मीद लोगों को हर दौर में सक्रिय रखती है ताकि वे ज़ुहूर के लिए समाज को तैयार करें और एक नेक, जागरूक और मुहैय्या (तैयार) समाज क़ायम करें।
- अक़ीदे की हिफ़ाज़त
अगर ज़ुहूर का समय तय कर दिया जाए और फिर किसी इलाही हिकमत की वजह से उसमें देर हो जाए तो बहुत से लोगों के दिलों में शक पैदा हो सकता है यहां तक कि वो महदवियत के अक़ीदे (विश्वास) पर ही सवाल उठाने लगें।
इस संबंध में इमाम मुहम्मद बाक़िर अ.स.से एक रिवायत है,
کَذَبَ الْوَقَّاتُونَ، کَذَبَ الْوَقَّاتُونَ، کَذَبَ الْوَقَّاتُونَ؛ إِنَّ مُوسَىٰ عَلَیْهِ السَّلَامُ لَمَّا خَرَجَ وَافِدًا إِلَىٰ رَبِّهِ وَاعَدَهُمْ ثَلَاثِينَ يَوْمًا، فَلَمَّا زَادَهُ اللَّهُ عَلَى الثَّلَاثِينَ عَشْرًا، قَالَ قَوْمُهُ: قَدْ أَخْلَفَنَا مُوسَىٰ، فَصَنَعُوا مَا صَنَعُوا."
(الکافی، ج ۱، ص ۳۶۸)
जब हज़रत मूसा (अ.स.) अल्लाह से मुलाक़ात के लिए गए और अपनी क़ौम से तीस दिन का वादा किया, तो अल्लाह ने उसमें दस दिन और बढ़ा दिए।तब उनकी क़ौम ने कहा,मूसा ने हमसे वादा तोड़ा,' और फिर वो कर बैठे जो नहीं करना चाहिए था (यानी बछड़े की पूजा करने लगे)।
(अल-काफ़ी, जिल्द 1, पृष्ठ 368)
ठीक ऐसी ही हालत ज़ुहूर के मामले में भी हो सकती है अगर समय तय कर दिया जाए और फिर किसी कारण से देर हो जाए।
स्रोत: किताब "नगीने-ए-आफ़रीनेश" (थोड़े बदलाव के साथ)
इज़राइल ग़ाज़ा में भुखमरी को अंजाम दे रहा है।हमास
हमास ने एक बयान जारी कर ग़ाज़ा में मानवीय सहायता पहुँचने से रोकने के इस्राईली क़दम की आलोचना की है।
अलजज़ीरा के हवाले से बताया गया है कि इस्राईली शासन पिछले 11 हफ़्तों से ग़ाज़ा को पूरी तरह से मानवीय घेरे में लेकर रखा है और वहाँ मानवीय सहायता पहुँचने की अनुमति नहीं दे रहा है। इस कारण फ़िलस्तीनी लोग भुखमरी के कगार पर पहुँच गए हैं।
इसी सिलसिले में हमास ने अपने बयान में कहा है कि इस्राईल अब भी "ग़ाज़ा पट्टी में मानवीय सहायता के प्रवेश को रोकने" में लगा हुआ है, जबकि कुछ दिन पहले ही बहुत सीमित मात्रा में मदद अंदर पहुँच पाई थी।
यह बयान टेलीग्राम पर जारी किया गया, जिसमें कहा गया है,क़ब्ज़ा करने वाला शासन ग़ाज़ा पट्टी में भुखमरी की इस जुर्म को अंजाम तक पहुँचाना चाहता है और इसे राजनीतिक व ज़मीनी हकीकतें थोपने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है।
बयान में यह भी कहा गया है कि हमास ने "इस्राईल की धोखेबाज़ सहायता योजनाओं" का ज़िक्र किया है, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने खारिज कर दिया है।
हमास ने ज़ोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र और उससे जुड़ी संस्थाओं की सहायता वितरण और निगरानी में भूमिका को वह अहम मानता है और किसी भी तरह से इसे दरकिनार करने की कोशिश को ख़तरनाक क़दम मानता है।
फ़िलस्तीनी जनता को मदद देना एक ऐसा मानवाधिकार है, जिस पर कोई समझौता नहीं हो सकता।अंतरराष्ट्रीय मानवीय संस्थाओं ने अब यह चेतावनी दी है कि ग़ाज़ा में व्यापक भुखमरी का ख़तरा पैदा हो गया है, जो 20 लाख से अधिक आम नागरिकों की जान को खतरे में डाल सकता है।
सर्वोच्च नेता का घोषणापत्र हौज़ा ए इल्मिया के लिए एक रोडमैप
हौज़ा ए इल्मिया की सर्वोच्च परिषद के सचिव आयतुल्लाह शब ज़िंदादार ने हौज़ा ए इल्मिया क़ुम में छात्रों और गणमान्य व्यक्तियों के प्रतिनिधियों की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अपनी सभी धार्मिक और शैक्षणिक गतिविधियों में शुद्ध इरादों और इलाही प्रसन्नता को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि यही वह चीज है जो कार्य की ईमानदारी को "सर्वश्रेष्ठ कार्य" बनाती है।
हौज़ा ए इल्मिया की सर्वोच्च परिषद के सचिव आयतुल्लाह शब ज़िंदादार ने हौज़ा ए इल्मिया क़ुम में छात्रों और गणमान्य व्यक्तियों के प्रतिनिधियों की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अपनी सभी धार्मिक और शैक्षणिक गतिविधियों में शुद्ध इरादों और इलाही प्रसन्नता को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि यही वह चीज है जो कार्य की ईमानदारी को "सर्वश्रेष्ठ कार्य" बनाती है।
पवित्र कुरान की तीन आयतों-सूर ए हूद (आयत 7), सूर ए कहफ (आयत 7) और सूर ए मुल्क (आयत 2) का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इंसान को बनाने का उद्देश्य अल्लाह द्वारा यह परखना है कि कौन सबसे अच्छा काम करता है। उनके अनुसार, केवल शुद्ध इरादे से, केवल अल्लाह की खुशी और ईमानदारी से किए गए कार्य ही वास्तव में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं।
आयतुल्लाह शब ज़िंदादार ने मरहूम आयतुल्लाह हाएरी यजदी को "सर्वश्रेष्ठ कर्मों" का व्यावहारिक उदाहरण बताया और इमाम खुमैनी (र) को उद्धृत किया: "हाज शेख को पद और राज्य का दर्जा पसंद नहीं था।" उन्होंने शहीद आयतुल्लाह मदनी की तबलीगी सेवाओं और ईमानदारी को भी अनुकरणीय माना।
उन्होंने कहा कि धार्मिक विद्वानों और छात्रों को हर कार्य में इमाम अस्र (अ) की खुशी को ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि यही सफलता और प्रगति का मार्ग है। उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता का घोषणापत्र हौज़ा ए इल्मिया के लिए एक व्यापक रोडमैप है, जिसके व्यावहारिक कार्यान्वयन के लिए हौज़ा ए इल्मिया की सर्वोच्च परिषद ने कई समितियों की स्थापना की है। बैठक की शुरुआत में छात्र प्रतिनिधि सभा के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रजवी मेहर ने सभा की स्थापना के इतिहास और इसकी सेवाओं पर प्रकाश डाला और कहा कि वर्तमान यात्रा सभा का नौवां कार्यकाल है, जिसमें सत्तर प्रतिष्ठित शिक्षक और चालीस अंतरराष्ट्रीय मुबल्लिग सेवा कर रहे हैं।
युवाओं को हर क्षेत्र में विशेषज्ञ बनने की जरूरत है
लखनऊ भारत; हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षाओं में उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को सम्मानित करने और उनका जश्न मनाने के लिए आयतुल्लाहिल उज्मा सैयद अली हुसैनी सिस्तानी के कार्यालय, बाब नजफ, सज्जाद बाग कॉलोनी में एक समारोह आयोजित किया गया।
लखनऊ भारत की एक रिपोर्ट के अनुसार; हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षाओं में उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को सम्मानित करने और उनका जश्न मनाने के लिए आयतुल्लाहिल उज्मा सैयद अली हुसैनी सिस्तानी के कार्यालय, बाब नजफ, सज्जाद बाग कॉलोनी में एक समारोह आयोजित किया गया।
समारोह की शुरुआत मौलाना मुहम्मद अली ने हदीस किसा से की, इसके बाद मौलाना सैयद मुहम्मद हुसैन रिजवी, मौलाना सैयद मुहम्मद अब्बास और मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी ने भाषण दिए।
आयतुल्लाहिल उज्मा सय्यद अली हुसैनी सिस्तानी के प्रतिनिधि मौलाना सैयद अशरफ अली अल-ग़रवी ने छात्रों को उनके उत्कृष्ट अंकों के साथ सफलता पर बधाई दी और उन्हें आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस अवसर पर मौलाना सैयद अशरफ अली अल-गरवी ने कहा कि हमारे युवाओं को जिस क्षेत्र में कदम रखना है, उसमें विशेषज्ञ बनना चाहिए, ताकि वे देश और राष्ट्र के लिए बोझ न बनें।
मरजा तकलीद के संदेश का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे युवाओं को समकालीन और धार्मिक शिक्षा से लैस होना चाहिए, ताकि वे जहां भी रहें, धर्म और विश्वास का प्रचार और बचाव कर सकें। छात्रों को सम्मानित करने और उनका जश्न मनाने के लिए आयोजित समारोह में लखनऊ और आसपास के क्षेत्रों के प्रमुख छात्रों ने भाग लिया।
यमन का बिन गोरियन हवाई अड्डे पर ताज़ा हमला
इस्राइली मीडिया ने खबर दी है कि यमन की ओर से कब्ज़ा किए गए फ़िलिस्तीनी इलाकों की तरफ एक आधुनिक बैलिस्टिक मिसाइल दागी गई है जिसके चलते बिन गोरियन हवाई अड्डे की सभी उड़ानों को रद्द कर दिया गया है।
कुछ समय पहले कब्जे वाले इलाकों जिनमें क़ुद्स (यरूशलम) और तेल अवीव के बड़े हिस्से शामिल हैं, वहां सायरन बजने लगे जिससे इस्राइली अधिकारियों में दहशत फैल गई।
इस्राइली मीडिया ने बाद में जानकारी दी कि यमन से फ़िलिस्तीन की तरफ एक आधुनिक बैलिस्टिक मिसाइल दागी गई है इस्राइली सेना के प्रवक्ता ने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि यमन से इस्राइल की ओर एक मिसाइल दागी गई थी, जिसे उनके डिफेंस सिस्टम ने रोकने की कोशिश की।
मिसाइल हमले के बाद इस्राइली मीडिया ने बताया कि बिन गोरियन एयरपोर्ट की सभी उड़ानों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। इसके बाद इस्राइली सेना ने दावा किया कि उन्होंने मिसाइल को रास्ते में ही नष्ट कर दिया।
हालांकि यमन की सशस्त्र बलों की ओर से अब तक इस हमले पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है और जानकारी आने पर साझा की जाएगी।
ब्रिटिश इस्लामी संगठनों का खुला पत्र/ फिलिस्तीन पर सरकार की उदासीनता पर चिंता
लंदन ब्रिटेन के इस्लामी नेताओं और संगठनों ने इज़राइल के साथ चल रही व्यापारिक वार्ताओं को तुरंत रोकने की मांग करते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री को एक संयुक्त खुला पत्र भेजा है। इसमें उन्होंने फिलिस्तीन में चल रहे संघर्ष पर गहरी चिंता जताई है।
लंदन ब्रिटेन के इस्लामी नेताओं और संगठनों ने इज़राइल के साथ चल रही व्यापारिक वार्ताओं को तुरंत रोकने की मांग करते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री को एक संयुक्त खुला पत्र भेजा है। इसमें उन्होंने फिलिस्तीन में चल रहे संघर्ष पर गहरी चिंता जताई है।
ब्रिटेन की कई इस्लामी संस्थाओं और मस्जिदों ने प्रधानमंत्री से इज़राइल के साथ व्यापारिक वार्ताएं तुरंत बंद करने की अपील की है। साथ ही, उन्होंने फिलिस्तीन में तुरंत और प्रभावी कार्रवाई की भी मांग की है।
लंदन की जामा मस्जिद इंस्टीट्यूट, मैनचेस्टर इस्लामिक एकेडमी और एसोसिएशन ऑफ़ मुस्लिम स्कॉलर्स जैसे संगठनों ने कहा है कि इज़राइल द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ़ उठाए गए कदम बहुत धीमे और नाकाफ़ी हैं।
पत्र में लिखा गया है,पिछले 18 महीनों से हम गाजा में मानवता के विरुद्ध हो रहे विनाश को देख रहे हैं। इज़राइल ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए भूख को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।
उन्होंने ब्रिटिश सरकार से निम्नलिखित चार मुख्य मांगें रखी हैं:
- युद्धविराम की बहाली
- .गाजा की नाकाबंदी तुरंत खत्म करना
फिलिस्तीन की वर्तमान स्थिति को मान्यता देना
4.इज़राइल को हथियारों की बिक्री पर रोक लगाना क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है।
पत्र में कहा गया है कि इस गंभीर स्थिति में ब्रिटिश सरकार की निष्क्रियता बेहद चिंताजनक है।
इसमें आगे लिखा गया,अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन चुनिंदा या पक्षपातपूर्ण नहीं होना चाहिए। मानवाधिकार, समानता और नस्लवाद के खिलाफ़ सिद्धांत सार्वभौमिक होने चाहिए हमें न्याय, समानता और अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर शांति का मार्ग अपनाना होगा।
ध्यान देने योग्य है कि इज़राइली सेना ने अंतरराष्ट्रीय युद्धविराम की अपीलों को नज़रअंदाज़ करते हुए अक्टूबर 2023 से गाजा पर कई बर्बर हमले किए हैं, जिनमें अब तक 53,800 से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है। इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।