
رضوی
इमाम अली रज़ा अ. का संक्षिप्त जीवन परिचय।
अबुल हसन अली इब्ने मूसर्रेज़ा अलैहिस्सलाम जो इमाम रेज़ा अलैहिस्सलाम के नाम से मशहूर हैं, इसना अशरी शियों के आठवें इमाम हैं। आपके वालिद इमाम मूसा काज़िम अ. शियों के सातवें इमाम हैं।
आपका जन्म, मदीने में हुआ मगर अब्बासी ख़लीफा मामून अब्बासी आपको मजबूर करके मदीने से ख़ुरासान ले आया और उसने आपको अपनी विलायते अहदी (उत्तराधिकार) स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। इमाम अ. ने मदीने से खुरासान जाते हुए नैशापूर में एक मशहूर हदीस बयान फ़रमाई जिसे हदीसे सिलसिलतुज़् ज़हब के नाम से याद किया जाता है। मामून ने आपको कम दिखाने की खातिर विभिन्न धर्मों और मज़हबों के उल्मा व बुद्धिजीवियों के साथ मुनाज़रा व बहस कराई लेकिन उसे पता नहीं था आपका इल्म अल्लाह का दिया हुआ है और इसीलिए आपने तमाम बहसों में आसानी के साथ दूसरे मज़हबों के उल्मा को धूल चटा दी और उन्होंने आपकी बड़ाई को स्वीकार कर लिया। आपकी इमामत की अवधि 20 साल थी और आप तूस (मशहद) में मामून के हाथों शहीद किए गए।
इमाम अली रेज़ा अ. मदीने में सन 148 हिजरी में पैदा हुए और सन 203 हिजरी में मामून अब्बासी के हाथों शहीद हुए। आपके वालिद इमाम मूसा काज़िम अ. शियों के सातवें इमाम हैं, आपकी माँ का नाम ताहिरा था और जब उन्होंने इमाम रेज़ा अ. को जन्म दिया था तो इमाम मूसा काज़िम अ. ने उन्हें ताहिरा का नाम दिया।
आपकी उपाधि “अबुल हसन” है। कुछ रिवायतों के अनुसार आपके उपनाम “रेज़ा”, “साबिर”, “रज़ी” और “वफ़ी” हैं हालांकि आपकी मशहूर उपाधि “रेज़ा” है।
आपकी एक ज़ौजा का नाम सबीका था और कहा गया है कि उनका सम्बंध उम्मुल मोमेनीन मारिया क़िबतिया के परिवार से था।
कुछ अन्य किताबों में सबीका के अलावा इमाम अ की एक बीवी और भी थीं, दास्तान इस तरह है:
मामून अब्बासी ने इमाम रज़ा अ को सुझाव दिया कि उसकी बेटी उम्मे हबीब से निकाह कर लें और इमाम अ. ने भी यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
तबरी ने इस घटना को सन 202 हिजरी की घटनाओं के संदर्भ में बयान किया है। कहा गया है कि इस काम से मामून का लक्ष्य यह था कि इमाम रेज़ा अ. से ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब हो सके और आपके घर में घुस कर आपकी ख़ुफिया पालीसियों पर नज़र रख सकें। याफ़ेई के अनुसार मामून की बेटी का नाम “उम्मे हबीबा था जिसकी शादी उसने इमाम रज़ा अ से की। सिव्ती ने भी इमाम रज़ा अ से मामून की बेटी की शादी की ओर इशारा किया है लेकिन उसका नाम बयान नहीं किया है।
इमाम रेज़ा अ. की औलाद की संख्या के बारे में कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि आपकी औलाद की संख्या 6 है: 5 बेटे “मोहम्मद क़ानेअ, हसन, जाफ़र, इब्राहीम, हुसैन और एक बेटी।
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मशहद मे है। जहाँ पर हर समय लाखो श्रद्धालु आपकी समाधि के दर्शन व सलाम हेतू एकत्रित रहते हैं। यह शहर वर्तमान समय मे ईरान मे स्थित है।
नाम व लक़ब (उपाधी)
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम का नाम अली व आपकी मुख्य उपाधि रिज़ा है।
माता पिता
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत नजमा थीं। आपकी माता को समाना, तुकतम, व ताहिराह भी कहा जाता था।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 148 हिजरी क़मरी मे ज़ीक़ादाह मास की ग्यारहवी तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।
शहादत (स्वर्गवास)
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 203 हिजरी क़मरी मे सफर मास की अन्तिम तिथि को हुई। शहादत का कारण अब्बासी शासक मामून रशीद द्वारा खिलाया गया ज़हर था।
समाधि
हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मशहद मे है। जहाँ पर हर समय लाखो श्रद्धालु आपकी समाधि के दर्शन व सलाम हेतू एकत्रित रहते हैं। यह शहर वर्तमान समय मे ईरान मे स्थित है।
हज़रत इमाम रिज़ा की ईरान यात्रा
अब्बासी खलीफ़ा हारून रशीद के समय मे उसका बेटा मामून रशीद खुरासान(ईरान) नामक प्रान्त का गवर्नर था। अपने पिता की मृत्यु के बाद उसने अपने भाई अमीन से खिलाफ़त पद हेतु युद्ध किया जिसमे अमीन की मृत्यु हो गयी। अतः मामून ने खिलाफ़त पद प्राप्त किया व अपनी राजधीनी को बग़दाद से मरू (ईरान का एक पुराना शहर) मे स्थान्तरित किया। खिलाफ़त पद पर आसीन होने के बाद मामून के सम्मुख दो समस्याऐं थी। एक तो यह कि उसके दरबार मे कोई उच्च कोटी का आध्यात्मिक विद्वान न था। दूसरी समस्या यह थी कि मुख्य रूप से हज़रत अली के अनुयायी शासन की बाग डोर इमाम के हाथों मे सौंपने का प्रयास कर रहे थे, जिनको रोकना उसके लिए आवश्यक था। अतः उसने इन दोनो समस्याओं के समाधान हेतू बल पूर्वक हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम को मदीने से मरू (ईरान ) बुला लिया। तथा घोषणा की कि मेरे बाद हज़रत इमाम रिज़ा मेरे उत्तरा धिकारी के रूप मे शासक होंगे। इससे मामून का अभिप्राय यह था कि हज़रत इमाम रिज़ा के रूप मे संसार के सर्व श्रेष्ठ विद्वान के अस्तित्व से उसका दरबार शुशोभित होगा। तथा दूसरे यह कि इमाम के उत्तरा धिकारी होने की घोषणा से शियों का खिलाफ़त आन्दोलन लग भग समाप्त हो जायेगा या धीमा पड़ जायेगा।
सफर महीने की अंतिम तारीख पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय पौत्र हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत का दुःखद अवसर है।
पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने समय में ज्ञान, समस्त सदगुणों और ईश्वरीय भय व सदाचारिता के प्रतीक थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी दूसरे इमामों की भांति अत्याचारी शासकों की कड़ी निगरानी में थे। अधिकांश लोग इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का महत्व नहीं समझते थे।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बारे में एक प्रश्न जो सदैव किया जाता है वह यह है कि इमाम रज़ा ने मामून जैसे अत्याचारी शासक का उत्तराधिकारी बनना क्यों स्वीकार किया? इस प्रश्न के उत्तर में इस बिन्दु पर ध्यान दिया चाहिये कि मामून यह सुझाव इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सामने क्यों प्रस्तुत किया? क्या यह सुझाव वास्तविक व सच्चा था या मात्र एक राजनीतिक खेल था और मामून इस कार्य के माध्यम से अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत करने की चेष्टा में था?
मामून ने अपने भाई अमीन और दूसरे हज़ारों लोगों की हत्या करके सत्ता प्राप्त की थी वह किस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए तैयार हो गया था जबकि वह स्वयं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को एक प्रकार से अपना प्रतिस्पर्धी समझता था। उसके सुझाव की वास्तविकता और उसके लक्ष्य को स्वयं मामून की ज़बान से सुनते हैं।
जब मामून ने आधिकारिक रूप से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सामने अपने उत्तराधिकारी पद का सुझाव दिया तो बहुत से अब्बासियों ने मामून की भर्त्सना की और कहा कि तू क्यों खेलाफत के गर्व को अब्बासी परिवार से बाहर करना और अली के परिवार को वापस करना चाहता है? तुमने अपने इस कार्य से अली बिन मूसा रज़ा के स्थान को ऊंचा और अपने स्थान को नीचा कर दिया है। तूने एसा क्यों किया?
मामून बहुत ही धूर्त, चालाक और पाखंडी व्यक्ति था। उसने इस प्रश्न के उत्तर में कहा मेरे इस कार्य के बहुत से कारण हैं।
इमाम रज़ा के सरकारी तंत्र में शामिल हो जाने से वह हमारी सरकार को स्वीकार करने पर बाध्य हैं। हमारे इस कार्य से उनके प्रेम करने वाले उनसे विमुख हो जायेंगे और वे विश्वास कर लेंगे कि इमाम रज़ा वैसा नहीं हैं जैसा वह दावा करते हैं। मेरे इस कार्य का दूसरा कारण यह है कि मैं इस बात से डरता हूं कि अली बिन मूसा को उनकी हाल पर छोड़ दूं और वह हमारे लिए समस्याएं उत्पन्न करें कि हम उन पर नियंत्रण न कर सकें। इस आधार पर उनके बारे में लापरवाही से काम नहीं लिया जाना चाहिये। इस प्रकार हम धीरे धीरे उनकी महानता एवं व्यक्तित्व को कम करेंगे ताकि वह लोगों की दृष्टि में खिलाफत के योग्य न रह जायें और जान लो कि जब इमाम रज़ा को हमने अपना उत्तराधिकारी बना दिया तो फिर अबु तालिब की संतान में से किसी से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है”
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम मामून के षडयंत्र और उसकी चाल से भलिभांति अवगत थे और जानते थे कि उसने अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत करने के लिए यह सुझाव दिया है परंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा मामून के धूर्ततापूर्ण सुझाव का स्वीकार किया जाना महीनों लम्बा खिंचा यहां तक कि उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को जान से मारने की धमकी दी और इमाम ने विवश होकर इस सुझाव को स्वीकार किया। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब मदीने से मामून की सरकार के केन्द्र मर्व आ रहे थे तो उस समय उन्होंने जो कुछ कहा उससे समस्त लोग समझ गये कि मामून इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को किसी चाल के अंतर्गत उनकी मातृभूमि से दूर कर रहा है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब मदीने से मर्व जाने के लिए तैयार हुए तो वह पैग़म्बरे इस्लाम की पावन समाधि पर गये, अपने परिजनों से विदा और काबे की परिक्रमा की और अपने कार्यों एवं बयानों से सबके लिए यह सिद्ध कर दिया कि यह उनकी मृत्यु की यात्रा है जो मामून का उत्तराधिकारी बनने और सम्मान की आड़ में हो रही है।
उसके बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने हर अवसर से लाभ उठाया और लोगों तक यह बात पहुंचा दी कि मामून ने बाध्य करके उन्हें अपना उत्तराधिकार बनाया है और इमाम हमेशा यह कहते थे कि हमें हत्या की धमकी दी गयी यहां कि मैंने उत्तराधिकारी के पद को स्वीकार किया।
साथ ही इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी बनने की एक शर्त यह थी कि इमाम किसी को आदेश नहीं देंगे, किसी काम को रोकेंगे नहीं, सरकार के मुफ्ती और न्यायधीश नहीं होंगे, किसी को न पद से हटायेंगे और न किसी को पद पर नियुक्त करेंगे और किसी चीज़ को परिवर्तित नहीं करेंगे। इस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने स्वयं को सरकार के विरुद्ध हर प्रकार के कार्य से अलग कर लिया और दूसरी बात यह थी कि उत्तराधिकारी बनने के लिए इमाम रज़ा ने जो शर्तें लगायी थीं वह इमाम की आपत्ति की सूचक थीं। क्योंकि यह बात स्पष्ट थी कि जो व्यक्ति स्वयं को समस्त सरकारी कार्यों से अलग कर ले वह सरकार का मित्र व पक्षधर नहीं हो सकता। मामून भी इस बात को अच्छी तरह समझ गया अतः बारम्बार उसने इमाम से कहा कि पहले की शर्तों का उल्लंघन व अनदेखी करके वह सरकारी कार्यों में भाग लें। इसी तरह वह अपने विरोधियों को नियंत्रित करने हेतु इमाम रज़ा का दुरूप्रयोग करना चाहता था। इमाम रज़ा उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करने की शर्तों को याद दिलाते थे। मामून ने इमाम रज़ा से मांग की कि वह अपने चाहने वालों को एक पत्र लिखकर उन्हें मामून का मुकाबला करने से मना कर दें क्योंकि इमाम के चाहने वालों ने संघर्ष करके मामून के लिए परिस्थिति को कठिन बना दिया था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून की बात के जवाब में कहा” मैंने शर्त की थी कि सरकारी कार्यो में हस्तक्षेप नहीं करूंगा और जिस दिन से मैंने उत्तराधिकारी बनना स्वीकार किया है उस दिन से मेरी अनुकंपा में कोई वृद्धि नहीं हुई है”
ईद की नमाज़
मामून ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से ईद की नमाज़ पढ़ाने के लिए कहा। इसके पीछे मामून का लक्ष्य यह था कि लोग इमाम रज़ा के महत्व को पहचानें और उनके दिल शांत हो जायें परंतु आरंभ में इमाम ने ईद की नमाज़ पढ़ाने हेतु मामून की बात स्वीकार नहीं की पंरतु जब मामून ने बहुत अधिक आग्रह किया तो इमाम ने उसकी बात एक शर्त के साथ स्वीकार कर ली। इमाम की शर्त यह थी कि वह पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शैली में ईद की नमाज़ पढ़ायेंगे। मामून ने भी इमाम के उत्तर में कहा कि आप स्वतंत्र हैं आप जिस तरह से चाहें नमाज़ पढ़ा सकते हैं।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम की भांति नंगे पैर घर से बाहर निकले और उनके हाथ में छड़ी थी। जब मामून के सैनिकों एवं प्रमुखों ने देखा कि इमाम नंगे पैर पूरी विनम्रता के साथ घर से बाहर निकले हैं तो वे भी घोड़े से उतर गये और जूतों को उतार कर वे भी नंगे पैर हो गये और इमाम के पीछे पीछे चलने लगे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम हर १० क़दम पर रुक कर तीन बार अल्लाहो अकबर कहते थे। इमाम के साथ दूसरे लोग भी तीन बार अल्लाहो अकबर की तकबीर कहते थे। मामून इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के इस रोब व वैभव को देखकर डर गया और उसने इमाम को ईद की नमाज़ पढ़ाने से रोक दिया। इस प्रकार वह स्वयं अपमानित हो गया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उत्तराधिकारी के पद से बहुत ही होशियारी एवं विवेक से लाभ उठाया। इमाम ने यह पद स्वीकार करके एसा कार्य किया जो पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के इतिहास में अद्वतीय है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने वह बातें सबके समक्ष कह दीं जिसे पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने एक सौ पचास वर्षों के दौरान घुटन के वातावरण में अपने अनुयाइयों व चाहने वालों के अतिरिक्त किसी और से नहीं कहा था।
मामून ज्ञान की सभाओं का आयोजन करता था और उसमें पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों को बयान करने वालों और धर्मशास्त्रियों आदि को बुलाता था ताकि वह स्वयं को ज्ञान प्रेमी दर्शा सके परंतु इस कार्य से उसका मूल लक्ष्य यह था कि शायद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से कोई कठिन प्रश्न किया जाये जिसका उत्तर वह न दे सकें। इस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अविश्वसनीय हो जायेंगे किन्तु इस प्रकार की सभाओं का उल्टा परिणाम निकला और सबके लिए सिद्ध हो गया कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ज्ञान, सदगुण और सदाचारिता की दृष्टि से पूरिपूर्ण व्यक्ति हैं और वही खिलाफत के योग्य व सही पात्र हैं। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को सत्तर वर्षों तक मिम्बरों से बुरा भला कहा गया और वर्षों तक कोई उनके सदगुणों को सार्वजनिक रूप से बयान करने का साहस नहीं करता था परंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी काल में उनके सदगुणों को बयान किया गया और उन्हें सही रूप में लोगों के समक्ष पेश किया गया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करके बहुत से उन लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से अवगत किया जो अवगत नहीं थे या अवगत थे परंतु उनके दिलों में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के प्रति द्वेष व शत्रुता थी। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी के संबंध में जो बहुत से शेर हैं वे इसी परिचय एवं लगाव के सूचक व परिणाम हैं। उदाहरण स्वरूप देअबिल नाम के एक सरकार विरोधी प्रसिद्ध शायर थे और उन्होंने कभी भी किसी खलीफा या खलीफा के उत्तराधिकारी के प्रति प्रसन्नता नहीं दिखाई थी। इसी कारण सरकार सदैव उनकी खोज में थी और वह लम्बे वर्षों तक नगरों एवं आबादियों में भागते व गोपनीय ढंग से जीवन व्यतीत करते रहे पंरतु देअबिल इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचे और उन्होंने अत्याचारी व असत्य अमवी एवं अब्बासी सरकारों के विरुद्ध अपने प्रसिद्ध शेरों को पढ़ा। कुछ ही समय में देअबिल के शेर पूरे इस्लामी जगत में फैल गये। इस प्रकार से कि देअबिल के अपने नगर पहुंचने से पहले ही उनके शेर लोगों तक पहुंच गये और लोगों को ज़बानी याद हो गये थे। यह विषय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की सफलता के सूचक हैं।
निधन
मामून अपनी सत्ता को खतरे से बचाने के लिए इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को मदीने से मर्व लाया था परंतु जब उसने देखा कि इमाम की होशियारी व विवेक से उसके सारे षडयंत्र विफल हो गये हैं तो वह इन विफलताओं की भरपाई की सोच में पड़ गया। अंत में अब्बासी खलीफा मामून ने गुप्त रूप से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को शहीद करने का निर्णय किया ताकि उसकी सरकार के लिए कोई गम्भीर समस्या न खड़ी हो जाये। अतः उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को विष कर शहीद कर दिया और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम वर्ष २०३ हिजरी क़मरी में सफर महीने की अंतिम तारीख को इस नश्वर संसार से परलोक सिधार गये।
।।अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद।।
हौज़ा ए इल्मिया को लोगों को शुब्हों के खिलाफ सही जवाब देना चाहिए
आयतुल्लाह मोहम्मद मेहदी शबज़िंन्ददार ने क़ुम में हौज़ा-ए-इल्मिया की पुनःस्थापना की सौवीं वर्षगांठ के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के अतिथियों से मुलाक़ात में क़ुम के प्राचीन धार्मिक और वैज्ञानिक इतिहास की ओर इशारा करते हुए इस शहर की इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार में केंद्रीय भूमिका पर ज़ोर दिया।
,क़ुम में हौज़ा इल्मिया की पुनःस्थापना की सौवीं वर्षगांठ पर अंतरराष्ट्रीय मेहमानों की आयतुल्लाह मोहम्मद मेहदी शबज़िंदहदार से मुलाक़ात हुई
हौज़ा इल्मिया की सर्वोच्च परिषद के सचिव आयतुल्लाह मोहम्मद मेहदी शबज़िंदहदार ने कहा कि क़ुम का एक पुराना और रिच र्मिक सांस्कृतिक इतिहास है। यह शहर इमामों के ज़माने से ही शिया इस्लाम और बड़े-बड़े आलिमों का केंद्र रहा है। उन्होंने बताया कि क़ुम के केंद्र में स्थित इमाम हसन अस्करी (अ.स.) की मस्जिद खुद उनकी हिदायत पर बनाई गई थी और इसके आस-पास कई महान विद्वानों की कब्रें मौजूद हैं।
आयतुल्लाह शबज़िंदहदार ने इमाम सादिक़ (अ.स.) के एक कथन का हवाला दिया जिसमें उन्होंने फरमाया था कि “एक समय आएगा जब ‘क़ुम’ नामक शहर से ज्ञान का उदय होगा और यह शहर ज्ञान और पुण्य का स्रोत बन जाएगा।
ऐसा समय आएगा जब धरती पर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं रहेगा, यहाँ तक कि पर्दानशीन महिलाएं भी, जो धार्मिक ज्ञान से वंचित रह जाएं। यह दौर हमारे क़ायम (इमाम मेहदी) के ज़ुहूर के क़रीब होगा। क़ुम और उसके लोग हुज्जत के स्थान पर होंगे, और वहीं से ज्ञान पूरे पूर्व और पश्चिम की ओर फैलेगा।” (بحار الانوار, खंड 23, पृष्ठ 60)
उन्होंने इमाम सादिक़ (अ.स.) की उस भविष्यवाणी की ओर भी इशारा किया जिसमें उन्होंने इमाम काज़िम (अ.स.) के जन्म से 45 साल पहले यह बताया था कि मेरी एक बेटी (हज़रत मासूमा स.) क़ुम में दफन होंगी और उनकी ज़ियारत जन्नत में दाख़िले का कारण बनेगी। यह बात क़ुम की बेशकीमती धार्मिक हैसियत को दर्शाती है।
आयतुल्लाह शबज़िंदहदार ने ज़ोर दिया कि हौज़ा इल्मिया और विद्वानों की जिम्मेदारी है कि वे लोगों को विचारधारा के स्तर पर मज़बूत करें। जिस तरह मेडिकल वैक्सीन शरीर को बीमारियों से बचाती है, उसी तरह मज़बूत दलीलों और प्रशिक्षण से लोगों के दिमाग को शंकाओं से सुरक्षित करना चाहिए। इसके लिए जागरूक और प्रतिबद्ध छात्रों को प्रशिक्षित करना ज़रूरी है।
उन्होंने कहा कि आज के दौर में हौज़ा इल्मिया को विभिन्न भाषाओं और कलात्मक तरीकों से इस्लामी शिक्षाओं को पूरी दुनिया तक पहुँचाना चाहिए। अल-मुस्तफा विश्वविद्यालय के छात्रों का सफल अनुभव इस बात का प्रमाण है कि हौज़ा की शिक्षा में व्यापक प्रभाव और क्षमता है।
यमनियों की मिसाइल ने दुनिया के साथ इस्राईल के संबंधों को तोड़ दिया है
अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में यमन की सशस्त्र सेना के कामयाब हमलों के बाद एक ज़ायोनी विश्लेषक ने सना के हमलों के मुक़ाबले में अतिग्रहणकारी ज़ायोनी सरकार के एअर डिफ़ेन्स सिस्टम की पूर्ण विफ़लता से पर्दा उठाया है।
समाचार पत्र "मआरियो" ने अपने प्रसिद्ध सैन्य और सुरक्षा विश्लेषक "गबी अश्कनाज़ी" के हवाले से खुलासा किया है कि यमन की सेना का एक ड्रोन केवल कुछ मीटर की दूरी पर "अस्कलान" के पास बिजली उत्पादन स्टेशन से टकराने के करीब था और यह मुद्दा तेल अवीव के लिए गंभीर ख़तरे की घंटी है।
अश्कनाज़ी ने पिछले डेढ़ साल में यमन के बड़े हमलों का उल्लेख करते हुए कहा: यमन से इस्राईल की ओर दर्जनों मिसाइलें और ड्रोन लॉन्च किए गए हैं और यह स्पष्ट हो गया है कि सभी को रोकना असंभव है और इस्राईल के आसमान में ऐसी दीवार नहीं बनाई जा सकती जो इन ख़तरों को रोक सके।
उन्होंने यमनी सेना की सफलताओं को "असाधारण" बताया और कहा कि उन्होंने कहा कि इस घटना ने सिद्ध कर दिया कि पश्चिम की अरबों की तकनीक को यमनी जनता के प्रतिरोध के दृढ़ इरादे के मुक़ाबले में नुकसान पहुंचाया जा सकता है। उन्होंने लिखा कि इस समय ज़ायोनी शासन के सुरक्षा सूत्रों व तंत्रों को इस बुनियादी सवाल का सामना है कि अगर एक यमनी मिसाइल हमारे सिस्टम को चकमा दे सकता है तो बड़े व भारी पैमाने पर होने वाले हमले के मुक़ाबले में क्या करेगा?
उन्होंने यमनी सेना की कामयाबियों को अभूतपूर्व बताया और कहा कि यमनियों ने बाहर की दुनिया से इस्राईल के संबंधों को काटने व तोड़ने में बहुत कामयाब व सफ़ल काम किया है।
प्रतिबंधों के बावजूद पिछले वर्ष ईरान की अर्थव्यवस्था लगभग 3 प्रतिशत बढ़ी
ईरान की संसद मजलिसे शुराए इस्लामी के अनुसंधान केंद्र ने एलान किया है कि पिछले शम्सी वर्ष 1403 में, इस्लामी गणतंत्र ईरान की आर्थिक वृद्धि लगभग 3 प्रतिशत थी।
ईरान की संसद मजलिसे शूराए इस्लामी के अनुसंधान केंद्र ने सोमवार को ईरान की आर्थिक वृद्धि की नवीनतम स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की।
सेन्टर के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, 1402 हिजरी शम्सी वर्ष की तुलना में 1403 हिजरी शम्सी में ईरान की आर्थिक वृद्धि 2.8 प्रतिशत अनुमानित की गयी थी और तेल के बिना विकास 2.7 प्रतिशत का अंदाज़ा लगाया गया है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, 1403 हिजरी शम्सी वर्ष के आख़िरी महीने में ईरान की आर्थिक वृद्धि दर पिछले वर्ष के इसी महीने की तुलना में 3.6 प्रतिशत अनुमानित है तथा तेल के बिना आर्थिक वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत का अंदाज़ा लगाया गया है।
सेन्टर के अनुमान यह भी दर्शाते हैं कि 1403 हिजरी शम्सी वर्ष के आख़िरी महीने इस्फ़ंद में, पिछले वर्ष के इसी महीने की तुलना में, "कृषि" क्षेत्र के अतिरिक्त मूल्य में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई जबकि उद्योग और खनन के क्षेत्र में 3.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई तथा "सर्विस" के क्षेत्र में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
ईरानी संसद के अनुसंधान केंद्र के अनुमानों के परिणामों के अनुसार, ईरान की जीडीपी 1403 हिजरी शम्सी वर्ष के आख़िरी महीने इस्फ़ंद में तेल के साथ 3.6 प्रतिशत और तेल के बिना 4.2 प्रतिशत बढ़ी है।
जम्मू- कश्मीर के उलेमा की आयतुल्लाह आराफ़ी से मुलाक़ात
ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने जम्मू और कश्मीर के उलेमा से मुलाकात के दौरान कहा कि हौज़ा इल्मिया क़ुम इस्लामी क्रांति की वैचारिक और बौद्धिक बुनियाद प्रदान करने में केंद्रीय भूमिका निभा रहा है उन्होंने कहा कि यह हौज़ा न केवल इस्लामी क्रांति की स्थापना में प्रभावी रहा है बल्कि इसके वैश्विक प्रभाव को भी बढ़ा रहा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार , ईरान के हौज़ा इल्मिया के प्रमुख, आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने जम्मू-कश्मीर के उलेमा से मुलाकात के दौरान कहा कि हौज़ा इल्मिया क़ुम इस्लामी क्रांति की वैचारिक और बौद्धिक नींव प्रदान करने में एक केंद्रीय भूमिका निभा रहा है उन्होंने कहा कि यह हौज़ा न केवल इस्लामी क्रांति की स्थापना में प्रभावी रहा है, बल्कि इसके वैश्विक प्रभाव को भी बढ़ा रहा है।
आयतुल्लाह आराफी ने उलेमा के एक प्रतिनिधिमंडल से बातचीत करते हुए कहा कि हौज़ा इल्मिया क़ुम की इतिहास को इस्लामी क्रांति से पहले और बाद के दो युगों में विभाजित किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि यह हौज़ा इमाम जाफर सादिक अ.स.के दौर से जुड़ा हुआ है और पिछले सौ वर्षों में इसने शिया फिक़्ह के आधार पर इस्लामी क्रांति और शासन की वैचारिक व बौद्धिक संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने आगे कहा कि इस्लामी क्रांति के बाद, क़ुम एक अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक और वैचारिक आंदोलन का केंद्र बन गया है, जिसका प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इमाम खुमैनी (रह.) ने एक ऐसा अद्वितीय विचार प्रस्तुत किया, जिसने न केवल ईरान बल्कि पूरे विश्व में इस्लामी जागरूकता को बढ़ावा दिया।
आयतुल्लाह आराफी ने इस बात पर जोर दिया कि क़ुम में इस्लामी विज्ञानों का विस्तार किया गया है, जिसमें फिक़्ह, कलाम, दर्शन और आधुनिक इस्लामी अध्ययन शामिल हैं। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि हौज़ा इल्मिया क़ुम ने इस्लामी कानूनों और व्यवस्था को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसकी झलक ईरान के संविधान और इस्लामी कानूनों में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इस्लामी क्रांति के बाद, इस्लामी शिक्षाओं और ज्ञान का दायरा दुनिया के 100 से अधिक देशों तक फैल चुका है, जबकि पहले यह कुछ गिने-चुने देशों तक ही सीमित था। इसके अलावा, महिलाओं के लिए इस्लामी शिक्षा में भी असाधारण प्रगति हुई है, जिसे इस्लामी इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा सकता है।
आयतुल्लाह आराफी ने इस बात पर जोर दिया कि आधुनिक युग में इस्लामी ज्ञान को नई तकनीक के साथ समायोजित करना आवश्यक है, ताकि बदलते वैश्विक हालात के साथ तालमेल बनाए रखा जा सके। उन्होंने इमामिया उलेमा से आग्रह किया कि वे युवा पीढ़ी की बौद्धिक प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दें और अहले सुन्नत के बौद्धिक हलकों के साथ मजबूत संबंध स्थापित करें।
इस मुलाकात के दौरान जम्मू-कश्मीर के उलेमा के प्रतिनिधिमंडल ने अपने क्षेत्र में इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार और विस्तार से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
कलास: ग्रीनलैंड सिर्फ़ इस इलाक़े के लोगों का ही है
यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख ने ग्रीनलैंड पर क़ब्ज़ा करने की वाशिंगटन की योजना की आलोचना की तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि यह ज़मीन केवल ग्रीनलैंडवासियों की है।
यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख काइया कलास ने बुधवार को एक रेडियो इन्टरव्यू में ग्रीनलैंड के नागरिकों के अधिकारों का डिफ़ेंस किया।
कलास ने कहा: वैश्विक व्यवस्था बनाए रखने का एकमात्र तरीक़ा दुनिया भर के देशों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और सीमाओं के सिद्धांतों का पूरी तरह से सम्मान करना है।
कलास ने ज़ोर देकर कहा, ग्रीनलैंड का भविष्य केवल इस क्षेत्र के लोगों द्वारा ही तय किया जाना चाहिए।
ज्ञात रहे कि वाइट हाउस में पुनः प्रवेश के बाद से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने बार-बार कहा है कि वह ग्रीनलैंड को अमेरिका में मिलाना चाहते हैं।
इस दावे के जवाब में कि ग्रीनलैंड और डेनिश अधिकारियों ने बार-बार स्वीकार किया है कि आर्कटिक द्वीप बिक्री के लिए नहीं है।
ईरानी महिला ने रूसी केटलबेल विश्व कप में कांस्य पदक जीता
ईरान की राष्ट्रीय केटलबेल लिफ्टर ने रूस में विश्व कप में कांस्य पदक जीत लिया।
केटलबेल विश्व कप रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित किया गया जिसमें विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
सोमवार को प्रतियोगिता के आख़िरी दिन, ईरानी राष्ट्रीय केटलबेल वेट लिफ़्टर "पेरिसा बयारमी असल तकनानलू" 68 किलोग्राम से अधिक कैटेगरी में सिंगल-हैंड स्नैच (16 किलोग्राम केटलबेल) श्रेणी में तीसरे स्थान पर आईं और उन्होंने कांस्य पदक जीता।
पोलैंड और ब्राज़ील के खिलाड़ी पहले और दूसरे स्थान पर रहे।
उल्लेखनीय है कि केटलबेल एक प्रकार का वजन या डम्बल है जो धनुषाकार हैंडल के साथ गोल आकार का होता है और इसका उपयोग बॉडी बिल्डिंग के लिए किया जाता है।
केटलबेल का मूल आकार बिना टोंटी वाली केतली जैसा होता है, यही कारण है कि इसे अंग्रेजी में केटलबेल (Kettelbell) कहा जाता है। ये उपकरण आमतौर पर कच्चे लोहे या स्टील से बने होते हैं।
हालिया वर्षों में, केटलबेल्स बॉडीबिल्डिंग और फिटनेस उपकरण के रूप में लोकप्रिय हो गए हैं। केटलबेल्स, बारबेल्स, डम्बल्स और प्रतिरोध बैंड जैसे शक्ति प्रशिक्षण उपकरणों का एक लोकप्रिय विकल्प हैं।
इसराइल के खिलाफ कर रहे प्रदर्शन में कई स्टूडेंट गिरफ्तार
अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में फिलिस्तीनीयों की हिमायत और इजरायल के जुल्म के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पुलिस ने बड़ी संख्या में गिरफ्तार किया स्टूडेंट की मांग थी जुल्म खत्म किया जाए और अमेरिका इजरायल की हिमायत करना बंद करें।
अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में फिलिस्तीनीयों की हिमायत और इजरायल के जुल्म के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पुलिस ने बड़ी संख्या में गिरफ्तार किया स्टूडेंट की मांग थी जुल्म खत्म किया जाए और अमेरिका इजरायल की हिमायत करना बंद करें।
न्यूयॉर्क पुलिस ने दर्जनों फ़िलस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया है जिन्होंने बुधवार को कोलंबिया यूनिवर्सिटी की मेन लाइब्रेरी के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी की अध्यक्ष क्लेयर शिपमैन के एक बयान के अनुसार, बुधवार को प्रदर्शनकारी जबरन बटलर लाइब्रेरी में घुस गए. उन्होंने बताया कि इस दौरान यूनिवर्सिटी के दो सुरक्षा अधिकारी घायल हो गए
शिपमैन ने कहा कि उन्होंने न्यूयॉर्क पुलिस से सहायता मांगी थी न्यूयॉर्क सिटी पुलिस डिपार्टमेंट ने भी एक्स पर पोस्ट कर इस घटना की जानकारी दी।
पुलिस की ओर से कहा गया कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अनुरोध पर न्यूयॉर्क पुलिस ने कैंपस की स्थिति पर कार्रवाई की, जहां कई लोगों ने एक लाइब्रेरी पर कब्ज़ा कर लिया था और इजरायल के जुल्फी के खिलाफ नारा लगा रहे थे।
इमाम अली रज़ा (अ.स.) के हरम पहुंचने से दिल को सुकून मिलता है
पाकिस्तान के एक ज़ायर का कहना है कि हज़रत इमाम अली बिन मूसा अल-रज़ा (अ.स.) के हरम तक पहुँचने से मन को शांति मिलती है।
हर साल अलग-अलग देशों से अहलेबैत (अ.स.) के लाखों अनुयायी इमाम रजा (अ.स.) के हरम मे ज़ियारत (दर्शन) करने आते हैं। उन्ही ज़ियारत करने वालो मे से उर्दू भाषा बोलने वालो की भी बड़ी संख्या इमाम अली रज़ा (अ.स.) की ज़ियारत करने के लिए मशहद आते हैं।
लाहौर, पाकिस्तान से एक तीर्थयात्री अपनी भक्ति और प्रेम को इस प्रकार व्यक्त करता है: "मैं यहां चालीस साल पहले अपने माता-पिता के साथ इमाम रजा (अ.स.) की ज़ियारत करने आया था। मैं फिर से इमाम रजा (अ.स.) की ज़ियारत करने जाना चाहता हूं। ईरान और इराक में जब भी जायरीन जियारत के लिए जाते हैं , मैं उन सभी को अलविदा कहने जाता और उनसे कहता कि मेरे लिए दुआ करें ताकि मैं भी इमाम रजा (अ.स.) की फिर से ज़ियारत कर सकूं।
इमाम रज़ा (अ.स.) के तीर्थयात्री गुलाम रज़ा रसूल ने कहा: मैं 21 दिनों से ईरान में हूँ। 10 दिन पहले क़ुम मे हरमे मासूमा की ज़ियारत की और अब 10 दिन से इमामे रज़ा (अ.स.) का मेहमान हूं। इमामे रज़ा (अ.स.) के हरम पहुंच कर मेरे दिल की जो शांति मिली, वह कहीं नहीं मिली। जबकि इमाम रज़ा (अ.स.) के हरम का विस्तार और निर्माणी परियोजना के तहत इन चालीस वर्षो मे बहुत अधिक परिर्वतन देखने मे आया है लेकिन हरम का वही आध्यात्मिक माहौल है और इस तरह दिल को शांति मिलती है और हरम में पहुंचने पर दुनिया के सारे दुख भुला दिए जाते हैं।
उन्होंने कहा कि चालीस साल पहले उर्दू ज़बान ज़ायरीन के लिए इस तरह के संगठित कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाते थे। अलहमदो लिल्लाह मुझे बहुत खुशी हुई जब यह देखा कि इमाम रज़ा (अ.स.) के हरम मे उर्दू ज़बान ज़ायरीन के लिए उर्दू भाषा मे नियोजित मजलिस का आयोजन किया जाता है और हरम की ओर से जायरीन को उपहार दिए जाते हैं।
गौरतलब है कि दारुर रहमा में उर्दू जबान ज़ायरीन के मार्गदर्शन के लिए सुबह से शाम तक उर्दू भाषा के विद्वान मौजूद रहते हैं। दारुर रहमा में जाकर आप मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।