
رضوی
शियों के अहले सुन्नत से सवाल 3
17-आप कहते हैं कि पैगम्बर ने कहा कि “मेरे असहाब सितारों के समान हैं तुम जिसका भी अनुसरन करोगे हिदायत प्राप्त कर लोगे।” परन्तु सहीह बुखारी किताब फ़ज़ाइल असहाबुन नबी, बाब मनाक़िबे उस्मान बिन उफ़्फ़ान 75/5 मे लिखा है कि वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी ने शराब पी तथा आदरनीय उस्मान ने उनको अस्सी कोड़े मारने की अज्ञा दी। अब आप बताऐं कि अगर कोई वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी का अनुसरन करते हुए शराब पिये तो क्या वह भी हिदात प्राप्त किये हुए है?
18-खालिद पुत्र वलीद नामक सहाबी ने मालिक पुत्र नुवैरा नामक सहाबी को कत्ल किया। तथा उसी रात्री उनकी पत्नी के साथ बलात्कार किया।(अल कामिल फ़ित्तारीख नामक किताब मे सन् 11 हिजरी क़मरी की घटनाओं का उल्लेख करते हुए हदीसे सक़ीफ़ा व खिलाफ़ते अबु बकर359/2 के अन्तर्गत उपरोक्त कथन का उल्लेख किया गया है।) अब आप बताऐं कि अगर कोई व्यक्ति खालिद पुत्र वलीद नामक सहाबी का अनुसरन करते हुए किसी की हत्या करके उसकी पत्नी के साथ बलात्कार करे तो क्या वह भी हिदायत प्राप्त किये हुए है?
19-कुऑन मे इस बात का वर्णन मिलता है कि असहाब का एक ग्रुप नमाज़े जुमा मे पैगम्बर को अकेला छोड़ कर क्रय विक्रय तथा मौज मस्ती मे लग गया। (सूरए जुमा की 11वी आयत के अन्तर्गत देखें) अब आप बताऐं कि अगर मुसलमान असहाब के इस ग्रुप का अनुसरन करते हुए नमाज़ को छोड़ कर क्रय विक्र व मौज मस्ती के लिए निकल जाऐं तो क्या वह हिदात प्राप्त किये हुए हैं?
20-असहाब का एक ग्रुप ओहद व हुनैन नामक युद्धो मे रण भूमी से भाग गया और पैगम्बर के पुकारने पर भी उन्होने कोई ध्यान नही दिया।(सुराए आले इमरान आयत न.153 के अन्तर्गत देखें) अब आप बताऐं कि अगर मुसलमान असहाब के इस ग्रुप का अनुसरन करते हुए युद्ध भूमी से भागें तो क्या वह हिदायत प्राप्त किये हुए हैं?
21-सआद पुत्र उबादा नामक सहाबी ने आदरनीय अबु बकर की बैअत नही की तथा उनकी खिलाफ़त को स्वीकार नही किया।(अल इसाबत फ़ी तमीज़िस सहाबत नामक किताब मे अस्क़लानी नामक सुन्नी विद्वान ने सआद नामक सहाबी के हालात का वर्णन करते हुए उपरोक्त कथन का उलेलेख किया है। तथा अल कामिल फ़ित्तारीख नामक किताब मे सन् 11 हिजरी क़मरी की घटनाओं का वर्णन करते हुए हदीसे सक़ीफ़ा व खिलाफ़ते अबु बकर के अन्तर्गत उपरोक्त कथन का उल्लेख मिलता है।) अब आप बताऐं कि अगर सभी सहाबी सितारों के समान हैं और उनके अनुसरन मे हिदायत की प्राप्ति है तो सआद पुत्र उबादा नामक सहाबी का अनुसरन करने वालो को हिदायत प्राप्त किये हुए व्यक्तियों के रूप मे क्यो स्वीकार नही करते हो?
22-सहीह बुखारी मे किताबुस्सुलहे बाबे मा जाआ फ़िल इसलाह बैनन नास हदीस न. 1,2व 4 के अन्तर्गत उल्लेखित है कि एक बार कुछ असहाब मे आपस मे झगड़ा हुआ और उनमे मे लाठी डंडे,मुक्के लात व जूते चप्पल चले।अब आप बताऐं कि अगर आज मुसलमान उन असहाब का अनुसरन करते हुए आपस मे इसी प्रकार लड़े तो क्या वह हिदायत प्राप्त किये हुए कहलाऐंगे?
23-इब्ने असीर नामक सुन्नी विद्वान अपनी किताब असदुल ग़ाब्बा फ़ी मारेफ़तिस सहाबा नामक किताब मे लिखा है कि आदरनीय उमर ने हातिब बिन अबी बलताह नामक बद्री सहाबी को अप शब्द कहे तथा उनको मुनाफ़िक़ कह कर सम्बोधित किया। अतः असहाब को बुरा भला कहना आदरनीय उमर का अनुसरन है। और वह भी एक सहाबी थे। और आपकी विचार धारा के अनुसार सहाबी का अनुसरन हिदायत की प्राप्ति का साधन है।
24-तारीखे तबरी नामक किताब मे सन् 36 हिजरी क़मरी की घटनाओं का वर्णन करते हुए उल्लेख किया गया है कि आदरनीय आयशा ने (जो कि पैगम्बर की पत्नि व सहाबिया थी) तृतीय खलीफ़ा आदरनीय उस्मान को नासल कह कर सम्बोधित किया और इस प्रकार उनकी मान हानी की।बस इस प्रकार आदरनीय आयशा का अनुसरन व आदरनीय उस्मान की मान हानी हिदायत प्राप्ति का लक्षण है।
25-अल कामिल फ़ित्ताऱीख नामक किताब मे सन् 38 हिजरी क़मरी की घटनाओं के अन्तर्गत उल्लेखित है। कि जब माविया की अज्ञा से आदरनीय आयशा के भाई मुहम्मद पुत्र अबु बकर की हत्या कर दी गई, तो इस के बाद से आदरनीय आयशा ने प्रत्येक नमाज़ के बाद माविया पर लाअनत की।बस माविया पर लाअनत करना आदरनीय आयशा का अनुसरन व हिदायत प्राप्ति का साधन भी।
26-सहीह मुस्लिम मे किताबुल बर वस्सिलात वल आदाब, बाबे मन लआनाहुन नबी अव सबाहु अव दआ अलैहे, प्रथम हदीस के अन्तर्गत उल्लेखित है कि आदरनीय आयशा ने सूचित किया कि पैगम्बर(स0) ने दो सहाबियों पर नफ़रीन की। क्या यह सिद्ध होने के बाद भी कि पैगम्बर(स0) बुरे सहाबीयों पर स्वंय नफ़रीन करते थे। आप बुरे सहाबीयो पर लाअनत करने को (जो कि नफ़रीन के अन्तर्गत आती है) गुनाहे कबीरा व काफ़िर हो जाने का कारण मानते हो?
शियों के अहले सुन्नत से सवाल 2
9-आप कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम खलीफ़ाओं को स्वीकार किया करते थे।परन्तु आदरनीय उमर कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम हमको झूटा,पापी व धोखे बाज़ मानते थे।( सहीह मुस्लिम किताबुल जिहाद वस्सैर बाबुल फ़ै एक लम्बी हदीस के अन्तर्गत) अब आप बताऐं कि आदरनीय उमर सत्य कहते हैं या आप?
10-दूसरे खलीफ़ा ने अपने देहान्त से पहले छः व्यक्तियों की एक कमैटी बना दी तथा कहा कि इनमे से जिसको चाहना खलीफ़ा बना लेना यह छः के छः व्यक्ति खिलाफ़त की योग्यता रखते हैँ। बाद मे कहा कि अगर इन मे से कोई इस का विरोध करे तो उसकी हत्या कर देना। अब आप बताऐं कि खिलाफ़त पद की योग्यता रखने वाले व्यक्ति की हत्या किस प्रकार जायज़ हो सकती है?
11-पैगम्बर(स0) का सहाबी होना व्यक्ति की अपनी सामर्थ्य मे है या नही? अगर अपनी सामर्थ्य मे नही है तो सहाबा के कार्यो को इतनी महत्ता क्यो दी जाती है
12-केवल पैगम्बर (स0) को देखने मे ऐसा कौनसा गुण है कि जिसने एक बार देख लिय़ा वह आदिल, सितारे के समान तथा हिदायत का साधन बन गया?
13-आप कहते हैं कि सभी सहाबी आदिल थे। जबकि बुखारी लिखते हैं कि वलीद पुत्र उक़बाह सहाबी ने शराब पी।(सहीह बुखारी किताब फ़ज़ाइले असहाबुन नबी(स0) बाब मनाक़िबे उस्मान बिन उफ़्फ़ान75/5 प्रकाशित दारूल क़लम बैरूत) अब आप बताऐं कि आप झूट बोलतें हैं या बुखारी ने झूट बोला है? या शराब पीने से अदालत को कोई नुक़सान नही पहुँचता?
14-आप कहते हैं कि अल्लाह ने सहाबा के गुनाह जैसे जंगे(युद्ध) ओहद से फ़रार(भागना) आदि को क्षमा कर दिया है। अगर अल्लाह ने एक शराब पीने वाले, झूट बोलने वाले,व हत्या करने वाले के गुनाह को क्षमा कर दिया तो क्या इसका अर्थ यह है कि उसने कोई गुनाह नही किया व वह सदैव आदिल रहा?और अगर यह सत्य नही है तो अगर यह मान भी लिय़ा जाये कि कुछ सहाबा के गुनाहों को अल्लाह ने क्षमा कर दिया है तो गुनाहों को क्षमा कर देना इस बात को कहाँ सिद्ध करता है कि वह आदिल और उनके द्वारा वर्णित समस्त हदीसें विश्वसनीय है?
15-आप कहते हैं कि समस्त सहाबा(वह मुसलमान जिस ने पैगम्बर को देखा) सत्यवादी थे। अतः उन्होने पैगम्बरों के जिन कथनो का वर्णन किया है उनको निःसंकोच स्वीकार कर लेना चाहिए।
जबकि कुऑन कहता है कि इन मुसलमानो(असहाब)ने पैगम्बर की पत्नि पर अवैध सम्बन्ध रखने का इलज़ाम लगाया। सूरए नूर आयत 11
क्या ऐसे मुसलमान(असहाब) भी सत्यवादी थे ?
16-कुऑन कहता है कि अगर कोई फ़ासिक़ व्यक्ति तुम्हारे पास कोई सूचना ले कर आये तो उस सूचना के सम्बन्ध मे छान बीन करो। सूरए हुजरात आयत न.6, आपकी तफ़सीर रूहुल मआनी मे इस आयत के सम्बन्ध मे लिखा है कि क्योंकि वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी ने पैगम्बर से झूट बोला था इस सम्बन्ध मे यह आयत नाज़िल(उतरी) हुई। अब आप बताऐं कि वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी को झूटा स्वीकार करते हो या अपने मुफ़स्सेरीन को झूटा मानते हो?
17-आप कहते हैं कि पैगम्बर ने कहा कि “मेरे असहाब सितारों के समान हैं तुम जिसका भी अनुसरन करोगे हिदायत प्राप्त कर लोगे।” परन्तु सहीह बुखारी किताब फ़ज़ाइल असहाबुन नबी, बाब मनाक़िबे उस्मान बिन उफ़्फ़ान 75/5 मे लिखा है कि वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी ने शराब पी तथा आदरनीय उस्मान ने उनको अस्सी कोड़े मारने की अज्ञा दी। अब आप बताऐं कि अगर कोई वलीद पुत्र उक़बा नामक सहाबी का अनुसरन करते हुए शराब पिये तो क्या वह भी हिदात प्राप्त किये हुए है?
18-खालिद पुत्र वलीद नामक सहाबी ने मालिक पुत्र नुवैरा नामक सहाबी को कत्ल किया। तथा उसी रात्री उनकी पत्नी के साथ बलात्कार किया।(अल कामिल फ़ित्तारीख नामक किताब मे सन् 11 हिजरी क़मरी की घटनाओं का उल्लेख करते हुए हदीसे सक़ीफ़ा व खिलाफ़ते अबु बकर359/2 के अन्तर्गत उपरोक्त कथन का उल्लेख किया गया है।) अब आप बताऐं कि अगर कोई व्यक्ति खालिद पुत्र वलीद नामक सहाबी का अनुसरन करते हुए किसी की हत्या करके उसकी पत्नी के साथ बलात्कार करे तो क्या वह भी हिदायत प्राप्त किये हुए है?
जारी है.......
शियों के अहले सुन्नत से सवाल (1)
1-खलीफ़ा की नियुक्ति अच्छा कार्य है या बुरा? अगर अच्छा कार्य है तो फ़िर क्यों कहा जाता है कि पैगम्बर ने किसी को खलीफ़ा नियुक्त नही किया। और अगर यह कार्य बुरा है तो फ़िर आदरनीय अबुबकर व उमर ने यह कार्य क्यों किया?
2-जब हज़रत पैगम्बर सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वसल्लम ने बीमारी की अवस्था मे अपने जीवन के अन्तिम चरण मे कहा कि कलम व काग़ज़ दो ताकि मैं तुम्हारे लिए एक ऐसी बात लिख दूँ कि तुम मेरे बाद भटक न सको। तो आदरनीय उमर ने कहा कि पैगम्बर पर दर्द की अधिकता है जिस कारण ऐसा कह रहे हैं। हमारे लिए अल्लाह की किताब काफ़ी है।( सहीह बुखारी किताबुल इल्म) परन्तु जब आदरनीय अबुबकर ने अपने जीवन के अन्तिम चरण मे वसीयत लिखना चाही तो आदरनीय उमर ने क्यों नही कहा कि यह दर्द की अधिकता के कारण ऐसा कह रहे हैं हमारे लिए अल्लाह की किताब काफ़ी है?
3-मुत्तक़ी हिन्दी ने आदरनीय उमर की इस हदीस का उल्लेख किया है कि “जब भी किसी पैगम्बर के बाद उनकी उम्मत मे इखतेलाफ़ हुआ तो बातिल समुदाय को हक़ समुदाय पर विजय प्राप्त हुई।”(कनज़ुल उम्माल जिल्द 1 पेज 283 हदीस 929)
4-अगर सक़ीफ़ा मे खलीफ़ा का चुनाव व बैअत लेने का तरीक़ा सही था तो आदरनीय उमर ने यह क्यों कहा कि वह बिना विचार विमर्श के एक आकस्मिक कार्य था?( सहीह बुखारी किताबुल मुहारेबीन बाबे रजमुल हलबी मिनज़्ज़िना585/8 एक लम्बी हदीस के अन्तर्गत)
5-अगर परामर्श के बिना किसी की बैअत करना जाइज़ है तो आदरनीय उमर ने क़त्ल की धमकी देकर यह क्यों कहा कि “ अगर इसके बाद कोई यह कार्य करेगा तो बैअत करने वालो व बैअत लेने वालो की हत्या करदी जायेगी। ” व अगर परामर्श के बिना किसी की बैअत करना हराम है तो इस को सक़ीफ़ा मे क्यो लागू नही किया?( सहीह बुखारी किताबुल मुहारेबीन बाबे रजमुल हलबी मिनज़्ज़िना585/8 एक लम्बी हदीस के अन्तर्गत)
6-अगर हज़रत पैगम्बरे अकरम (स0) खिलाफ़त पद पर आदरनीय अबुबकर या उमर को नियुक्त करना चाहते थे तो अपने जीवन के अन्तिम समय मे उनको उसामा के नेतृत्व मे जाने वाली सेना मे सम्मिलित कर युद्ध भूमी मे क्यों भेज रहे थे?
7-आप कहते हैं कुऑने करीम मे अल्लाह ने वचन दिया है कि वह इमानदार व नेक कार्य करने वाले व्यक्तियों को पृथ्वी पर खलीफ़ा बनाएगा।अतः आदरनीय अबुबकर व उमर कुऑने करीम की इस आयत के मिस्दाक़ हैं।
अगर आदरनीय अबु बकर हज़रत पैगम्बर(स0) की अज्ञा का पालन करते हुए उसामा की सेना मे सम्मिलित होकर युद्ध भूमी मे चले जाते तो निश्चित रूप से उनके स्थान पर कोई दूसरा व्यक्ति खलीफ़ा बनता।परन्तु उन्होने हज़रत पैगम्बर(स0) की अज्ञा की अवहेलना की और युद्ध भूमी मे न जाकर शहर के बाहर रुके रहे। और इस प्रकार पैगम्बर के स्वर्गवास के बाद खिलाफ़त पद प्राप्त किया। अब आप बताऐं कि क्या अल्लाह अपने नबी की अवज्ञा कराके अपने वचन को पूरा करता है?
8-बुद्धि कहती है कि सेना पति पद के लिए बलवान, वीर व कुशल नेतृत्व वाले व्यकित का चुनाव किया जाए। अब प्रश्न यह है कि पैगम्बर(स0) ने सेना पति पद का उत्तरदायित्व उसामा को क्यो सौपाँ? व आदरनीय अबु बकर व उमर को इस पद के लिए क्योँ अयोग्य घोषित किया? बस जो व्यक्ति सेना पति पद की योग्यता न रखता हो वह खिलाफ़त पद पर किस प्रकार आसीन हो सकता है। जबकि खिलाफ़त सेना पति से भी उच्च पद है?
क़ुरआन मे तहरीफ नही हुई
क़ुरआन की फेरबदल से सुरक्षा
पैगम्बरों और र्इश्वरीय दूतो के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यह आवश्यक था कि र्इश्वरीय संदेश सही अवस्था और बिना किसी फेर-बदल के लोगों तक पहुँचाऐ ताकि लोग अपना लोक-परलोक बनाने के लिए उससे लाभ उठा सकें।
इस आधार पर, लोगों तक पहुँचने से पूर्व तक क़ुरआने करीम का हर प्रकार के परिर्वतन से सुरक्षित रहना अन्य सभी र्इश्वरीय पुस्तकों की भाँति चर्चा का विषय नही है किंतु जैसा कि हमे मालूम है अन्य र्इश्वरीय किताबें लोगों के हाथों में आने के बाद थोड़ी बहुत बदल दी गयीं या कुछ दिनों बाद उन्हे पुर्ण रूप से भूला दिया गया जैसा कि हज़रत नूह और हजरत इब्राहीम (अ.स) की किताबों का कोर्इ पता नही हैं और हज़रत मूसा व हज़रत र्इसा (अ.स) की किताबो के मूल रूप को बदल दिया गया हैं।
इस बात के दृष्टिगत, यह प्रश्न उठता हैं कि हमें यह कैसे ज्ञात है कि अंतिम र्इश्वरीय संदेश के नाम पर जो किताब हमारे हाथो में है यह वही क़ुरआन है जिसे पैगम्बरे इस्लाम (स.अ.व.व) पर उतारा गया था और आज तक उसमे किसी भी प्रकार का फेर-बदल नही किया गया और न ही उसमे कोर्इ चीज़ बढार्इ या घटार्इ गई।
जबकि जिन लोगों को इस्लामी इतिहास का थोड़ा भी ज्ञान होगा और क़ुरआन की सुरक्षा पर पैगम्बर इस्लाम और उन के उत्तराधिकारयों द्वारा दिए जाने वाले विशेष ध्यान के बारे मे पता होगा तथा मुसलमानो के मध्य क़ुरआन की सुरक्षा के बारे में पाई जाने वाली संवेदनशीलता की जानकारी होगी तो वह इस किताब में किसी प्रकार के परिवर्तन की संभावना का इन्कार बड़ी सरलता से कर देगा। क्योकि इतिहासिक तथ्यो के अनुसार केवल एक ही युध्द में क़ुरआन को पूरी तरह से याद कर लेने वाले सत्तर लोग शहीद हुए थे। इससे क़ुरआन के स्मंरण की परपंरा का पता चलता है जो निश्चित रूप से क़ुरआन की सुरक्षा में अत्याधिक प्रभावी है। इस प्रकार गत चौदह सौ वर्षो के दौरान क़ुरआन की सुरक्षा में किए गये उपाय, उस की आयतो और शब्दो की गिनती आदि जैसे काम भी इस संवेदनशीलता के सूचक हैं। किंतु इस प्रकार के विश्वस्त ऐतिहासिक प्रमाणो से हटकर भी बौध्दिक व ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित एक तर्क द्रवारा क़ुरआन की सुरक्षा को सिध्द किया जा सकता है अर्थात सबसे पहले क़ुरआन में किसी विषय की वृध्दि को बौध्दिक तर्क द्रवारा सिध्द किया जा सकता है और जब यह सिध्द हो जाए कि वर्तमान क़ुरआन ईश्वर की ओर से भेजा गया है तो उसकी आयतो को प्रमाण बना कर सिध्द किया जा सकता है कि उसमे से कोई वस्तु कम भी नही हुई है।
इस प्रकार से हम क़ुरआन मे फेर-बदल न होने को दो अलग- अलग भागो मे सिध्द करेगें।
1.क़ुरआन में कुछ बढाया नही गया हैं
इस विषय पर मुसलमानों के सभी गुट सहमत हैं बल्कि विश्व के सभी जानकार लोगों ने भी इसकी पुष्टि की है और कोई भी ऐसी घटना नही घटी हैं जिस के अन्तर्गत क़ुरआन में जबरदस्ती कुछ बढाना पड़ा हो और इस प्रकार की संभावना का कोई प्रमाण भी मौजूद नही है।किंतु इसी के साथ क़ुरआन में किसी वस्तु के बढ़ाए जाने की संभावना को बौध्दिक तर्क से भी इस प्रकार रद्द किया जा सकता हैः
अगर यह मान लिया जाए कि कोई एक पूरा विषय क़ुरआन में बढ़ा दिया गया हैं तो फिर उसका अर्थ यह होगा कि क़ुरआन जैसी रचना दूसरे के लिए संभव है किंतु यह संभावना क़ुरआन के चमत्कारी पहलू और क़ुरआन का जवाब लाने में मनुष्य की अक्षमता से मेल नही खाती। और यह अगर मान लिया जाए कि कोई एक शब्द या एक छोटी-सी आयत उसमे बढा दी गयी हैं तो उसका अर्थ यह होगा कि क़ुरआन की व्यवस्था व ढॉचा बिगढ़ गया जिस का अर्थ होगा कि क़ुरआन में वाक्यों के मध्य तालमेल का जो चमत्कारी पहलू था वह समाप्त हो गया है और इस दशा में यह भी सिध्द हो जाएगा कि क़ुरआन में शब्दो की बनावट और व्यवस्था का जवाब लाना संभव हैं क्योंकि क़ुरआनी शब्दो का एक चमत्कार शब्दों का चयन तथा उनके मध्य संबंध भी है और उन में किसी भी प्रकार का परिवर्तन, उसके खराब होने का कारण बन जाऐगा।
तो फिर जिस तर्क के अंतर्गत क़ुरआन के मौजिज़ा होने को सिध्द किया गया था उसका सुरक्षित रहना भी उन्ही तर्को व प्रमाणो के आधार पर सिध्द होता है किंतु जहाँ तक इस बात का प्रश्न है कि क़ुरआन से किसी एक सूरे को इस प्रकार से नही निकाला गया है कि दूसरी आयतों पर उसका कोई प्रभाव ना पड़े तो इसके लिए एक अन्य तर्क की आवश्यकता है।
- क़ुरआन से कुछ कम नही हुआ हैं
शिया और सुन्नी समुदाय के बड़े बड़े धर्म गुरूओं ने इस बात पर बल दिया है कि जिस तरह से क़ुरआन में कोई चीज़ बढ़ाई नही गयी है उसी तरह से उसमें से किसी वस्तु को कम भी नही किया गया है। और इस बात को सिध्द करने के लिए उन्होने बहुत से प्रमाण पेश किये हैं किंतु खेद की बात है कि कुछ गढ़े हुए कथनों तथा कुछ सही कथनों की गलत समझ के आधार पर कुछ लोगों ने यह संभावना प्रकट की है बल्कि बल दिया है कि क़ुरआन से कुछ आयतों को हटा दिया गया है।
किंतु क़ुरआन में किसी भी प्रकार के फेर बदल न होने के बारे में ठोस ऐतिहासिक प्रमाणों के अतिरिक्त स्वंय क़ुरआन द्वारा भी उसमें से किसी वस्तु के कम होने को सिध्द किया जा सकता हैं।
अर्थात जब यह सिध्द हो गया कि इस समय मौजूद क़ुरआन ईश्वर का संदेश है और उसमें कोई चीज़ बढ़ाई नही गयी है तो फिर क़ुरआन की आयतें ठोस प्रमाण हो जाएगी। और क़ुरआन की आयतों से यह सिध्द होता है कि ईश्वर ने अन्य ईश्वरीय किताबों को विपरीत कि जिन्हे लोगों को सौंप दिया गया था, क़ुरआन की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी स्वंय ली हैं।
उदाहरण स्वरूप सुरए हिज्र की आयत 9 में कहा गया हैः
إِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ
निश्चित रूप से स्मरण(1) को उतारा है और हम ही उसकी सुरक्षा करने वाले हैं।
यह आयत दो भागों पर आधारित है। पहला यह कि हम ने क़ुरआन को उतारा है जिससे यह सिध्द होता है कि क़ुरआन ईश्वरीय संदेश है और जब उसे उतारा जा रहा था तो उसमें किसी प्रकार का फेर-बदल नही हुआ और दूसरा भाग वह है जिस में कहा गया हैं वह अरबी व्याकरण की दृष्टि से निरतरंता को दर्शाता है अर्थात ईश्वर सदैव क़ुरआन की सुरक्षा करने वाला हैं।
यह आयत हाँलाकि क़ुरआन में किसी वस्तु की वृध्दि न होने को भी प्रमाणित करती है किंतु इस आयत को क़ुरआन मे किसी प्रकार की कमी के न होने के लिऐ प्रयोग करना इस आशय से है कि अगर क़ुरआन मे किसी विषय के बढ़ाऐ न जाने के लिऐ इस आयत को प्रयोग किया जाऐगा तो हो सकता है यह कल्पना की जाऐ कि स्वंय यही आयत बढ़ाई हुई हो सकती है इस लिऐ हमने क़ुरआन मे किसी वस्तु के बढ़ाऐ न जाने को दूसरे तर्को और प्रमाणो से सिध्द किया है और इस आयत को क़ुरआन मे किसी वस्तु के कम न होने को सिध्द करने के लिऐ प्रयोग किया है। इस प्रकार से क़ुरआन मे हर प्रकार के फेरबदल की संभावना समाप्त हो जाती है।
अंत मे इस ओर संकेत भी आवश्यक है कि क़ुरआन के परिवर्तन व बदलाव के सुरक्षित होने का अर्थ ये नही है कि जहाँ भी क़ुरआन की कोई प्रति होगी वह निश्चित रूप से सही और हर प्रकार की लिपि की ग़लती से भी सुरक्षित होगी या ये कि निश्चित रूप उसकी आयतो और सूरो का क्रम भी बिल्कुल सही होगा तथा उसके अर्थो की किसी भी रूप मे ग़लत व्याख्या नही की गई होगी।
बल्कि इसका अर्थ ये है कि क़ुरआन कुछ इस प्रकार से मानव समाज मे बाक़ी रहेगा कि वास्तविकता के खोजी उसकी सभी आयतो को उसी प्रकार से प्राप्त कर सकते है जैसे वह ईश्वर द्वारा भेजी गई थी।इस आधार पर क़ुरआन की किसी प्रति में मानवीय गलतियों का होना हमारी इस चर्चा के विपरीत नही हैं।
(1) यहाँ पर क़ुरआन के लिऐ ज़िक्र का शब्द प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ स्मरण और आशय क़ुरआन है।
सीरिया के विभाजन के साथ ही वर्तमान युद्ध समाप्त हो जाएगा
इज़राइल के वित्त मंत्री का कहना है कि ग़ज़ा में मौजूदा युद्ध तब समाप्त हो जाएगा जब सीरिया विभाजित होगा।
बश्शार अल-असद की सरकार गिरने के बाद, इज़राइली अधिकारी अब सीरिया को विभाजित करने के अपने इरादे को नहीं छिपाते हैं, बल्कि इस मुद्दे को अपने लक्ष्यों और प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखते हैं।
पार्सटुडे के अनुसार, इज़राइल के वित्तमंत्री बेज़ालिल स्मोट्रिच ने मंगलवार शाम को इस बात पर जोर दिया कि इज़राइल सीरिया को विभाजित करना चाहता है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि इज़राइल "ग़ज़ा से हमास की उपस्थिति को समाप्त करने और लाखों फिलिस्तीनियों को अन्य देशों में भेजने के बाद" युद्ध समाप्त कर देगा।
इजराइल ने ग़ज़ा निवासियों को निकालने की योजना की नाकामी का एलान कर दिया
दूसरी ओर, ज़ायोनी मीडिया आउटलेट येदियेत अहारोनोत ने स्वीकार किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प द्वारा प्रस्तावित ग़ज़ा निवासियों को स्थानांतरित करने की योजना, सेना कमांडरों की इच्छा के अनुसार आगे नहीं बढ़ रही है।
इस ज़ायोनी सूत्र ने कहा: सेना कमांडरों के अनुसार, इस योजना के संबंध में अब तक जो अनुरोध किए गए हैं, वे उन देशों की ओर से हैं जो चाहते हैं कि उनके नागरिक ग़ज़ा छोड़ दें।
ज़ायोनी विश्लेषक: नेतन्याहू का नेतृत्व एक क्लंक है
ज़ायोनी राजनीतिक विश्लेषक एवी यिसारोव ने भी येदियेत अहरोनोत समाचार पत्र में प्रकाशित एक लेख में लिखा था: हर हारे हुए युद्ध के आख़िर में, उस युद्ध का कमांडर आमतौर पर अपने सैनिकों के जीवन को बचाने की ज़िम्मेदारी लेता है।
लेकिन इज़राइल के प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू अपने सैनिकों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, वे नाका रहे, उन्होंने मुझे चेतावनी नहीं दी, यह नेतृत्व नहीं, शर्म का दाग़ और क्लंक है।
शिन बेट प्रमुख: मैं जल्द ही चला जाऊंगा
नेतन्याहू और इज़राइली कैबिनेट के अन्य सदस्यों के दबाव की वजह से इज़राइल की आंतरिक सुरक्षा एजेंसी (शाबाक) के प्रमुख ने अंततः अपने पद से हटने का एलान कर दिया। रोनिन बार ने कहा: 15 जून को मैं अपने पद से इस्तीफा दे दूंगा। उन्होंने एलान किया कि वे 7 अक्टूबर के हमले के बारे में चेतावनी देने में डिवाइस की विफलता की जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं।
इज़राइली चैनल 14: हम हाथ पैर मार रहे हैं
इज़राइली शासन के चैनल 14 ने भी स्वीकार किया: जबकि इज़राइली नेता असमंजस में हैं और निर्णय लेने से बच रहे हैं, हमास ने अपना निर्णय ले लिया है, या तो एक व्यापक समझौता या फिर कुछ भी नहीं।
तेल अवीव में अराजकता
तस्नीम समाचार एजेंसी की मंगलवार की रिपोर्ट में कहा गया कि तेल अवीव के सेन्टर में असुरक्षा की भावना ने ज़ायोनी समारोह में बाधाएं उत्पन्न कर दी हैं। जब इस ऑपरेशन की ख़बर फैली तो तेल अवीव में भ्रामक नरसंहार दिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए अनेक ज़ायोनी लोग घबराकर वहां से चले गए, जिससे भयंकर अराजकता फैल गई।
इस संबंध में मआरिव समाचार पत्र ने बताया कि मध्य तेल अवीव के हबीमा स्क्वायर पर आयोजित समारोह में उपस्थित लोग यह सोचकर मौके से भाग निकले कि वहां इज़राइल विरोधी अभियान चल रहा है, जिससे भयंकर अराजकता फैल गई।
ज़ायोनियों ने ईरान की ताक़त का लोहा मान लिया
हिब्रू समाचार आउटलेट "वल्ला" ने भी ज़ायोनी खतरों के विरुद्ध ईरान की उच्च रक्षा क्षमताओं को स्वीकार किया। "वल्ला" ने विदेशी रिपोर्टों का हवाला देते हुए लिखा: ईरान के पास विभिन्न प्रकार की 2 हज़ार बैलिस्टिक मिसाइलें हैं जो इज़राइल तक पहुंच सकती हैं।
यमन सादा प्रांत में अमेरिकी युद्धक विमानों की बमबारी, शहीदों की संख्या में वृद्धि
अमेरिकी युद्धक विमानों ने एक बार फ़िर यमन के विभिन्न क्षेत्रों पर बमबारी की।
पार्सटुडे ने आईआरआईबी के हवाले से बताया है कि अमेरिकी युद्धक विमानों ने गुरूवार की सुबह को यमन के उत्तर में स्थित सादा प्रांत के केताफ़ नगर पर बमबारी की।
अमेरिकी युद्धक विमानों ने बुधवार की शाम को भी यमन के पश्चिम में स्थित हुदैदा प्रांत के अलहूक नगर पर बमबारी की थी।
यमन के विभिन्न क्षेत्रों पर अमेरिका के हवाई और मिसाइली हमले 15 मार्च सन् 2025 से आरंभ हुए हैं जिसमें अब तक यमन के 217 आम नागरिक शहीद हो चुके हैं जबकि 436 लोग घायल हुए हैं और घायलों में महिलायें और बच्चे भी शामिल हैं।
मदरसा इल्मिया-उल-विलाया के प्रबंधकों ने अल्लामा अहमद आबिदी से मुलाकात की
मदरसा इल्मिया अल विलाया के प्रबंधको ने दारुल कुरान अल्लामा तबताबाई में हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन डॉ. अहमद आबिदी से मुलाकात की और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
मदरसा इल्मिया-उल-विलाया के प्रबंधको ने दारुल-कुरान अल्लामा तबातबाई में हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन डॉ. अहमद आबिदी से मुलाकात की और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
इस अवसर पर बोलते हुए, हौजा इल्मिया-उल-विलाया के निदेशक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद हसन रजा नकवी ने मदरसा-अल-विलाया इस्लामाबाद की स्थापना, इसके लक्ष्यों और विशेषताओं, मजलिस-ए-वहदत मुस्लिमीन पाकिस्तान की स्थापना और इसके राजनीतिक संघर्ष पर प्रकाश डाला।
उन्होंने इस्लामिक विश्वविद्यालय में मदरसा-उल-विलायाह इस्लामाबाद के स्नातकों (10 स्वर्ण पदक विजेता), सीरिया, नजफ़ अशरफ़ और क़ुम अल-मुक़द्देसा में शिक्षण और अनुसंधान गतिविधियों की उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला।
अंत में, उन्होंने एक सफल और क्रांतिकारी मदरसे के प्रबंधन, शैक्षिक और प्रशिक्षण क्षेत्रों में प्रगति के लिए हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन आबिदी से मार्गदर्शन का अनुरोध किया।
उन्होंने डॉ. आबिदी से मदरसा अल-विलाया के छात्रों के लिए निरंतर शैक्षणिक सत्र आयोजित करने और मदरसा अल-विलाया के शिक्षकों के लिए न्यायशास्त्र और सिद्धांतों पर शोध कक्षाएं आयोजित करने का अनुरोध किया।
कार्यक्रम में बोलते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन के डॉ. अहमद आबिदी ने कहा कि मेरी राय में पाकिस्तानी छात्रों में विशेष योग्यताएं हैं।
हौज़ा ए इल्मिया के पाठ्यक्रमों को आवश्यक बताते हुए उन्होंने कहा कि हौज़ा ए इल्मिया में अरबी साहित्य पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है, जबकि साहित्य ही अन्य विद्यालयों की ताकत है।
इस्लामी क्रांति की रक्षा की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि प्रतिक्रांतिकारी यह नहीं दिखाते कि वे प्रतिक्रांतिकारी हैं, बल्कि वे छात्रों को इस तरह प्रशिक्षित करते हैं कि वे धीरे-धीरे प्रतिक्रांतिकारी बन जाते हैं।
पाकिस्तान को मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण देश बताते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान जनसंख्या, भौगोलिक महत्व, परमाणु शक्ति और संस्कृति की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण देश है।
अल्लामा अहमद आबिदी ने मुसलमानों की एकता और आम सहमति पर जोर देते हुए कहा कि शिया और सुन्नी एकता बहुत जरूरी है, हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे एकता को नुकसान पहुंचे।
अंत में, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन आबिदी ने छात्रों के साथ बैठकों और सत्रों के आयोजन की निरंतरता को दोहराया और अल-विलाया के छात्रों के बीच साहित्यिक रुचि और शैक्षणिक रुचि पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।
धर्म का संदेश युवाओं तक तर्क और प्रेम की भाषा में पहुँचाया जाना चाहिए
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन मुताहरी-अस्ल ने कहा: हमें युवाओं को अनावश्यक कठोरता के माध्यम से धर्म से दूर नहीं करना चाहिए, बल्कि नम्रता, नैतिकता और प्रेमपूर्ण बातचीत के माध्यम से उनके दिलों को अहले बैत (अ) की शिक्षाओं से जोड़ना चाहिए।
पूर्वी अज़रबैजान में इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन मुताहरी अस्ल ने शहीद मलिक रहमती सांस्कृतिक केंद्र के उद्घाटन समारोह में अपने भाषण के दौरान कहा: हमें युवाओं को अनावश्यक कठिनाइयों के माध्यम से धर्म से दूर नहीं करना चाहिए, बल्कि नम्रता, नैतिकता और प्रेमपूर्ण बातचीत के माध्यम से उनके दिलों को अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं से जोड़ना चाहिए।
उन्होंने हज़रत फातिमा मासूमा (स) को उनके जन्मदिन की बधाई दी और कहा: हज़रत मासूमा (स) का दर्जा बहुत ऊंचा है और महिलाओं, विशेषकर युवा लड़कियों की शिक्षा और समाज के आध्यात्मिक विकास में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।
पूर्वी अज़रबैजान के सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि ने कहा: ये दिन मानव गरिमा के धार्मिक मूल्य को समझाने और लड़कियों और महिलाओं को इस्लामी मूल्यों से परिचित कराने का एक उत्कृष्ट अवसर है।
उन्होंने कहा: युवा लोगों के साथ बातचीत करते समय सौम्य, प्रेमपूर्ण और आकर्षक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। धर्म का संदेश युवाओं तक तर्क और प्रेम की भाषा में पहुँचाया जाना चाहिए।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुताहरी ने आगे कहा: हठधर्मिता और अनावश्यक उग्रवाद युवाओं को धर्म से दूर कर देता है, जबकि अच्छे आचरण और व्यावहारिक उदाहरण दिलों को अहले बैत (अ) की शिक्षाओं की ओर आकर्षित करते हैं।
इस्लामी क्रांति के बाद हौज़ा ए इल्मिया कुम अपने चरम पर पहुंच गया
लेबनान के प्रमुख धार्मिक विद्वान, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन सय्यद अली फ़ज़्लुल्लाह ने "हौज़ा न्यूज़ एजेंसी" के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि इस्लामी क्रांति के बाद, क़ुम के हौज़ा को नया जीवन मिला, छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई, अनुसंधान केंद्र स्थापित किए गए, और अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं को दुनिया के सामने पेश किया गया।
प्रमुख लेबनानी धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अली फ़ज़्लुल्लाह ने हौजा न्यूज़ एजेंसी के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि इस्लामी क्रांति के बाद, क़ुम के हौज़ा को नया जीवन मिला, छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई, अनुसंधान केंद्र स्थापित किए गए और अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं को दुनिया के सामने पेश किया गया।
उन्होंने कहा कि हौज़ा ए इल्मिया क़ुम का पुनरुद्धार स्वर्गीय आयतुल्लाह हाज शेख अब्दुल करीम हाएरी के माध्यम से किया गया था, जिन्होंने इस धार्मिक संस्थान को संगठित आधार पर स्थापित किया था। उनके छात्र बाद में शैक्षणिक क्षेत्र में प्रमुख बन गये। बाद में, आयतुल्लाह बुरूजर्दी ने न केवल शैक्षणिक बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी प्रमुख भूमिका निभाई। उनका अधिकार क्षेत्र व्यापक था और उन्होंने मिस्र में अल-अजहर के साथ संबंध स्थापित करने तथा मुसलमानों के बीच अपनी उपस्थिति स्थापित करने का प्रयास किया।
सय्यद अली फ़ज़्लुल्लाह के अनुसार, इमाम खुमैनी (र) ने हौज़ा में एक नई जान फूंक दी। ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, मदरसा अधिक गतिशील हो गया और धार्मिक विज्ञान का प्रचार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गया। आज, हौज़ा को आधुनिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनसे निपटने के लिए अधिक बुद्धिमत्ता, एकता और नवीनता की आवश्यकता है।
उन्होंने नजफ़ और क़ुम के हौज़ा के बीच संबंधों को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि दोनों संस्थाओं को एक-दूसरे के करीब आना चाहिए तथा विभाजन पैदा करने वालों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके दिवंगत पिता की शिक्षा नजफ़ में हुई थी, लेकिन वे हमेशा क़ुम के विद्वानों के संपर्क में रहे और ये दोनों केंद्र हमेशा इस्लामी दुनिया के लिए मार्गदर्शन का स्रोत रहे हैं।
उनके अनुसार आज के दौर में इस्लाम राजनीतिक क्षेत्र में भी उभर कर सामने आया है, इसलिए धार्मिक संस्थाओं के लिए इस्लामी राजनीतिक विचारों को पारदर्शी तरीके से प्रस्तुत करना जरूरी है। हौज़ा ए इल्मिया को शैक्षणिक और सांस्कृतिक स्तर पर अन्य धर्मों और सभ्यताओं के साथ संपर्क भी बढ़ाना चाहिए।
उन्होंने हौज़ा और विश्वविद्यालय के बीच सहयोग की सराहना करते हुए कहा कि दोनों संस्थान एक-दूसरे के ज्ञान से लाभान्वित हो रहे हैं और सेमिनरी को भी आधुनिक विज्ञान से लाभ मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि आधुनिक बौद्धिक और सैद्धांतिक पुस्तकों के माध्यम से छात्रों को इज्तिहाद के मार्ग पर मदद की जा सकती है, लेकिन इन विज्ञानों को अन्य भाषाओं में स्थानांतरित करना आवश्यक है।
हुज्जतुल इस्लाम फ़ज़्लुल्लाह ने कहा कि हमें इस्लामी ज्ञान के प्रसार के लिए एक वैश्विक तब्लीगी नेटवर्क की आवश्यकता है ताकि शिया धर्म का संदेश स्थानीय हौज़ा के माध्यम से अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में पहुंचाया जा सके। फ़ारसी भाषा से परिचित न होने के कारण कई लोग इन विद्वानों के ग्रंथों से वंचित रह जाते हैं।
उन्होंने कहा कि हौज़ा को किताबी शिक्षा तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि छात्रों को कुरान, न्यायशास्त्र, सिद्धांतों, राजनीति और समाजशास्त्र के क्षेत्र में समकालीन चुनौतियों के लिए तैयार करना चाहिए। उनके अनुसार इमाम महदी (अ) के ज़ुहूर का लक्ष्य युद्ध नहीं, बल्कि एक विश्व सरकार की स्थापना है, जिसके लिए हमें बौद्धिक और सामाजिक रूप से तैयार रहना चाहिए।
इमाम रज़ा (अ) की पवित्र दरगाह में इफ़्फ़त व तहारात का भव्य उत्सव आयोजित
हज़रत फ़ातिमा मासूमा क़ुम (स) के मुबारक जन्म के अवसर पर इमाम रज़ा (अ) के पवित्र मज़ार पर इफ़्फ़त और तहारत के जश्न की एक उज्ज्वल सभा आयोजित की गई।
हज़रत फातिमा मासूमा क़ुम (स) के धन्य जन्म के अवसर पर इमाम रज़ा (अ) के पवित्र दरगाह पर इफ़्फ़्त व तहारत के उत्सव का एक उज्ज्वल समारोह आयोजित किया गया था। इस आध्यात्मिक एवं भावनात्मक समारोह में प्रेम एवं भक्ति से ओतप्रोत बालिकाओं ने तवाशीह, दुआ एवं आध्यात्मिक कविताएं प्रस्तुत कीं, जिसने श्रोताओं के दिलों को छू लिया।
समारोह की शुरुआत पवित्र कुरान के पाठ से हुई, जिसके बाद चयनित लड़कियों ने हजरत मासूमा (स) की पवित्र जीवनी और उनकी स्थिति और स्थिति पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में विभिन्न भाषाओं में भाषण दिए गए ताकि विभिन्न देशों से आए आगंतुक भी इस ज्ञानवर्धक वातावरण का लाभ उठा सकें। विशेष रूप से भारत, पाकिस्तान, ईरान, लेबनान, इराक और खाड़ी देशों से आये तीर्थयात्रियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और आध्यात्मिक वातावरण का लाभ उठाया।
समारोह के अंत में, पवित्र तीर्थस्थल ने तीर्थयात्रियों के बीच आशीर्वाद भी वितरित किया, और इस्लामी दुनिया में महिलाओं की स्थिति और सम्मान को उजागर करने पर जोर दिया गया। इस आयोजन ने आस्था से भरे माहौल में अहल-उल-बैत (अ.स.) के प्रति आध्यात्मिक शांति और प्रेम को और अधिक नवीनीकृत किया।