رضوی

رضوی

इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) और उनके भाई इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने उन्हें इस्लामी तालीमात और इल्म की ऊँचाइयों से सरफ़राज़ किया।

बीबी मासूमा (स.अ) की ज़िन्दगी ईमान, तक़वा और इल्म का बेहतरीन नमूना थी। वह एक ऐसी आला दर्जे की ख़ातून थीं जिनकी मिसाल देना मुश्किल है। उनका असली नाम फ़ातिमा था, लेकिन अपनी पवित्रता और बेहतरीन किरदार की वजह से उन्हें "मासूमा" का लक़ब मिला। उनके वालिद इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) और उनके भाई इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने उन्हें इस्लामी तालीमात और इल्म की ऊँचाइयों से सरफ़राज़ किया।

बीबी मासूमा (स.अ) का शुमार उन खास ख़वातीन में होता है, जिन्होंने इस्लामी समाज को अपने इल्म और तालीम से रौशन किया। उन्होंने अपने घराने से हासिल की गई रूहानी तालीम से इस्लाम की तालीमात को आम किया। उनके पास इल्म और हिकमत का समंदर था, और उन्होंने कई लोगों की इल्मी तिश्नगी को अपने इल्म के समंदर से सैराब किया। वह सिर्फ़ एक बहन या बेटी नहीं थीं, बल्कि वह एक रूहानी और दीनी रहनुमा थीं जिनके किरदार और इल्म से लाखों लोगों ने फ़ायदा उठाया।

उनकी ज़िन्दगी का हर लम्हा इस बात की दलील है कि एक औरत किस तरह से अपने दीन और इल्म के ज़रिये समाज की रहनुमाई कर सकती है। उन्होंने अपने भाई इमाम अली रज़ा (अ.स.) की गैर मौजूदगी में भी दीन और इस्लाम के अहकामात को आम किया और लोगों के दिलों में एहसास और मोहब्बत का चिराग़ रौशन किया।

जब वह अपने भाई से मिलने के लिए ईरान की तरफ़ सफ़र कर रही थीं, रास्ते में बीमार हो गईं और क़ुम में आकर उनका इंतक़ाल हुआ। क़ुम की सरज़मीन को बीबी मासूमा (स.अ) के मुक़द्दस रौज़े से वह मुक़ाम हासिल हुआ जो आज भी अकीदतमंदों के लिए रोशनी का मरकज़ है। उनका रौज़ा आज भी लाखों लोगों के दिलों की क़ुर्बत और दुआओं का मरकज़ बना हुआ है।

क़ुम के हरम में जब तुल्लाब (स्टूडेंट्स) या अन्य अकीदतमंद अपनी माँ की याद में तड़पते हैं, तो बीबी मासूमा (स.अ) के दर पर आकर उनके दिलों को सुकून मिलता है, मानो उन्हें अपनी माँ की ममता का एहसास हो रहा हो। बीबी ने हमें यह सिखाया कि इल्म, तक़वा और सच्चाई की रहनुमाई में ज़िन्दगी बसर की जाए और समाज में अच्छाई और दीन को फैलाया जाए।

मेरी अपनी ज़िन्दगी में, जब मेरी वालिदा का इंतकाल हुआ, तो मेरे दिल की तिश्नगी भी बीबी मासूमा (स.अ) के हरम की क़ुर्बत में सैराब हुई। बीबी का दर उन लोगों के लिए हमेशा से पनाहगाह रहा है, जो दिल से अपनी माँ की ममता और प्यार की तलाश करते हैं।

लेखक :सैयद साजिद हुसैन रज़वी मोहम्मद

हज़रत फ़ातिमा मासूमा स.अ.का जन्म सन 173 हिजरी इस्लामी कैलेंडर के ग्यारहवे महीने ज़ीक़ादा की पहली तारीख में मदीना शहर में हुई, आपका पालन पोषण ऐसे परिवार में हुआ जिसका प्रत्येक व्यक्ति अख़लाक़ और चरित्र के हिसाब से अद्वितीय था, आप का घराना इबादत और बंदगी, तक़वा और पाकीज़गी, सच्चाई और विनम्रता, लोगों की मदद करने और सख़्त हालात में अपने को मज़बूत बनाए रखने और भी बहुत सारी नैतिक अच्छाइयों में मशहूर था।

हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ.)कि विलादत पहली ज़ीक़ादा सन 173 हिजरी में मदीना शहर में हुई, आपकी परवरिश ऐसे घराने में हुई जिसका हर शख़्स अख़लाक़ और किरदार के एतबार से बेमिसाल था, आप का घराना इबादत और बंदगी, तक़वा और पाकीज़गी, सच्चाई और विनम्रता, लोगों की मदद करने और सख़्त हालात में अपने को मज़बूत बनाए रखने और भी बहुत सारी नैतिक अच्छाइयों में मशहूर था ।

सभी अल्लाह के चुने हुए ख़ास बंदे थे जिनका काम लोगों की हिदायत था, इमामत के नायाब मोती और इंसानियत के क़ाफ़िले को निजात दिलाने वाले आप ही के घराने से थे।

इल्मी माहौल

हज़रत मासूमा (स.अ) ने ऐसे परिवार में परवरिश पाई जो इल्म, तक़वा और नैतिक अच्छाइयों में अपनी मिसाल ख़ुद थे, आप के वालिद हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आप के भाई इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने सभी भाइयों और बहनों की परवरिश की ज़िम्मेदारी संभाली, आप ने तरबियत में अपने वालिद की बिल्कुल भी कमी महसूस नहीं होने दी, यही वजह है कि बहुत कम समय में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के बच्चों के किरदार के चर्चे हर जगह होने लगे।

इब्ने सब्बाग़ मलिकी का कहना है कि इमाम मूसा काज़िम (अ) की औलाद अपनी एक ख़ास फ़ज़ीलत के लिए मशहूर थी, इमाम मूसा काज़िम (अ) की औलाद में इमाम अली रज़ा (अ) के बाद सबसे ज़ियादा इल्म और अख़लाक़ में हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) ही का नाम आता है और यह हक़ीक़त को आप के नाम, अलक़ाब और इमामों द्वारा बताए गए सिफ़ात से ज़ाहिर है।

फ़ज़ाएल का नमूना:

हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) सभी अख़लाक़ी फ़ज़ाएल का नसूना हैं, हदीसों में आपकी महानता और अज़मत को इमामों ने बयान फ़रमाया है, इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में फ़रमाते हैं कि जान लो कि अल्लाह का एक हरम है जो मक्का में है, पैग़म्बर (स) का भी एक हरम है जो मदीना में है, इमाम अली (अ) का भी एक हरम है जो कूफ़ा में है, जान लो इसी तरह मेरा और मेरे बाद आने वाली मेरी औलाद का हरम क़ुम है। ध्यान रहे कि जन्नत के 8 दरवाज़े हैं जिनमें से 3 क़ुम की ओर खुलते हैं, हमारी औलाद में से (इमाम मूसा काज़िम अ.स. की बेटी) फ़ातिमा नाम की एक ख़ातून वहां दफ़्न होगी जिसकी शफ़ाअत से सभी जन्नत में दाख़िल हो सकेंगे।

आपका इल्मी मर्तबा:

हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) इस्लामी दुनिया की बहुत अज़ीम और महान हस्ती हैं और आप का इल्मी मर्तबा भी बहुत बुलंद है। रिवायत में है कि एक दिन कुछ शिया इमाम मूसा काज़िम (अ) से मुलाक़ात और कुछ सवालों के जवाब के लिए मदीना आए, इमाम काज़िम (अ) किसी सफ़र पर गए थे, उन लोगों ने अपने सवालों को हज़रत मासूमा (स.अ) के हवाले कर दिया उस समय आप बहुत कमसिन थीं (तकरीबन सात साल) अगले दिन वह लोग फिर इमाम के घर हाज़िर हुए लेकिन इमाम अभी तक सफ़र से वापस नहीं आए थे, उन्होंने आप से अपने सवालों को यह कहते हुए वापस मांगा कि अगली बार जब हम लोग आएंगे तब इमाम से पूछ लेंगे, लेकिन जब उन्होंने अपने सवालों की ओर देखा तो सभी सवालों के जवाब लिखे हुए पाए, वह सभी ख़ुशी ख़ुशी मदीने से वापस निकल ही रहे थे कि अचानक रास्ते में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात हो गई, उन्होंने इमाम से पूरा माजरा बताया और सवालों के जवाब दिखाए, इमाम ने 3 बार फ़रमाया: उस पर उसके बाप क़ुर्बान जाएं।

शहर ए क़ुम में दाख़िल होना:

क़ुम शहर को चुनने की वजह हज़रत मासूमा (स.अ) अपने भाई इमाम अली रज़ा (अ) से ख़ुरासान (उस दौर के हाकिम मामून रशीद ने इमाम को ज़बरदस्ती मदीना से बुलाकर ख़ुरासान में रखा था) में मुलाक़ात के लिए जा रहीं थीं और अपने भाई की विलायत के हक़ से लोगों को आशना करा रही थी। रास्ते में सावाह शहर पहुंची, आप पर मामून के जासूसों ने डाकुओं के भेस में हमला किया और ज़हर आलूदा तीर से आप ज़ख़्मी होकर बीमार हों गईं, आप ने देखा आपकी सेहत ख़ुरासान नहीं पहुंचने देगी, इसलिए आप क़ुम आ गईं, एक मशहूर विद्वान ने आप के क़ुम आने की वजह लिखते हुए कहा कि, बेशक आप वह अज़ीम ख़ातून थीं जिनकी आने वाले समय पर निगाह थी, वह समझ रहीं थीं कि आने वाले समय पर क़ुम को एक विशेष जगह हासिल होगी, लोगों के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करेगी यही कुछ चीज़ें वजह बनीं कि आप क़ुम आईं।

आपकी ज़ियारत का सवाब:

आपकी ज़ियारत के सवाब के बारे में बहुत सारी हदीसें मौजूद हैं, जिस समय क़ुम के बहुत बड़े मोहद्दिस साद इब्ने साद इमाम अली रज़ा (अ) से मुलाक़ात के लिए गए, इमाम ने उनसे फ़रमाया: ऐ साद! हमारे घराने में से एक हस्ती की क़ब्र तुम्हारे यहां है, साद ने कहा, आप पर क़ुर्बान जाऊं! क्या आपकी मुराद इमाम मूसा काज़िम (अ) की बेटी हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स.अ) हैं? इमाम ने फ़रमाया: हां! और जो भी उनकी मारेफ़त रखते हुए उनकी ज़ियारत के लिए जाएगा जन्नत उसकी हो जाएगी।

शियों के छठे इमाम हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं: जो भी उनकी ज़ियारत करेगा उस पर जन्नत वाजिब होगी।

ध्यान रहे यहां जन्नत के वाजिब होने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इंसान इस दुनिया में कुछ भी करता रहे केवल ज़ियारत कर ले जन्नत मिल जाएगी, इसीलिए एक हदीस में शर्त पाई जाती है कि उनकी मारेफ़त रखते हुए ज़ियारत करे और याद रहे गुनाहगार इंसान को कभी अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की हक़ीक़ी मारेफ़त हासिल नहीं हो सकती। जन्नत के वाजिब होने का मतलब यह है कि हज़रत मासूमा (स.अ) के पास भी शफ़ाअत का हक़ है।

अगर हौज़ा-ए-इल्मिया विदेशी विचारों का खुलकर सामना करें और अपने इल्म के ढांचे में सुधार करें, तो इससे इस्लामी सरकार और फिर इस्लामी सभ्यता की स्थापना की उम्मीद बढ़ जाएगी। क्योंकि मौजूदा सरकार से इस्लामी सरकार की ओर बदलाव सिर्फ़ ज्ञान और सोच में बदलाव लाकर ही संभव है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो देश के प्रबंधकों और विचारकों के बीच विचारों का मिलाजुला संकरापन पैदा हो जाएगा, जिससे जनता का लोकतंत्र और इस्लामियत पर विश्वास गहरा नुकसान झेल सकता है।

जनाब अली असगरी ने हौज़ा ए इल्मिया की पुनर्स्थापना की 100वीं वर्षगांठ के विषय पर हौज़ा मीडिया के लिए एक विशेष नोट में लिखा:

मशरूता क्रांति के बाद, जब रोशनफिक्री प‍हलवी शासन की वैचारिक नींव बनी, तो ईरान के ज्ञान (विज्ञान) के संस्थान में एक बुनियादी बदलाव आया।

उस समय के रोशनफिक्रों के अनुसार, धर्म को विज्ञान और राजनीति से अलग करना (यानि सेक्युलरिज़ेशन) ही ईरान के विकास का एकमात्र रास्ता माना जाता था।

शायद बहुत से विश्वविद्यालयों के लोग या आम जनता इस बदलाव पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे; लेकिन धर्म को उसकी असली पहचान से अलग करने के नतीजे में, विदेशी या विरोधी संस्कृतियों के छोटे-छोटे तत्वों को ईरानी समाज की आम संस्कृति में बदलने का रास्ता खुल गया।

ईरान में सेकुलराइजेशन का एक सबसे बड़ा असर यह हुआ कि विदेशी विचारों से प्रभावित संस्थाओं की भूमिका सरकार में बढ़ गई, जबकि धर्म की सभ्यतागत और पहचान बनाने वाली भूमिका कमज़ोर हुई। इस धर्म की सामाजिक और राजनीतिक भूमिका को हौज़ा-ए-इल्मिया निभाता था, लेकिन जब धर्म और विज्ञान अलग हुए तो यह भूमिका धीरे-धीरे कमजोर होती गई।

पहली और दूसरी पहलवी सरकारों की कोशिशें हौज़ा को समाज से अलग करने की, भले ही ज्ञान के संस्थान को गहरा नुकसान पहुंचाया, लेकिन लोगों की जन्मजात ज़रूरत धर्म और अल्लाह की शिक्षाओं की कभी खत्म नहीं हुई।

इस बात का सबूत बीसवीं सदी की एक बड़ी घटना, यानी ईरानी इस्लामी क्रांति है। इस क्रांति ने फिर से "इस्लाम की व्यापकता" को याद दिलाया और दिखाया कि ईरानी राष्ट्र का विकास और प्रगति केवल तभी संभव है जब एक तौहीदी हुकूमत लागू हो [1]।

इस्लामी क्रांति के बाद और विलायत फ़क़ीह के राजनीतिक सिद्धांत के लागू होने से यह उम्मीद थी कि माह्यूमैनिटीज में सुधार होगा। लेकिन शिक्षा संस्थानों में सेक्युलर सोच जारी रहने से यह सुधार नहीं हो पाया और पश्चिमी और इस्लामी विचारधाराओं के बीच टकराव देश की सबसे बड़ी वैज्ञानिक समस्या बन गया। इसलिए, उच्च सांस्कृतिक क्रांति परिषद ने मानविकी को इस्लामी बनाने की जिम्मेदारी ली ताकि देश का ज्ञान और कार्यभार ईरानी-इस्लामी पहचान के अनुसार फिर से परिभाषित हो सके।

पश्चिमी आधुनिक विचारों जैसे सापेक्षवाद, भौतिकवाद, मानवतावाद आदि ने कुछ विश्वविद्यालयी बुद्धिजीवियों के समर्थन से एक मजबूत दीवार बना ली, जिससे धार्मिक विज्ञान को समाज की गहरी तहों तक फैलने से रोका गया और इसे असंभव माना गया।

धीरे-धीरे, 1990 के दशक में पॉपरी सुधारों [2] को राजनीतिक तौर पर स्वीकार करना और धार्मिक बहुलवाद का प्रस्ताव, इस्लामी शिक्षा संस्थानों के लिए आधुनिकता के विचारों का मुकाबला करना जरूरी बना दिया। इस संदर्भ में, आयतुल्लाह मंसूर यजदी ने तेहरान के शुक्रवार की नमाज़ से पहले भाषण में उन विचारों के सवालों का जवाब दिया और "परियोजना वलायत" नामक एक शैक्षिक कार्यक्रम शुरू किया ताकि इस्लामी विचारकों को तैयार किया जा सके।

आयतुल्लाह मंसूर यजदी पर हुए हमलों की संख्या और आज सापेक्षवाद के बढ़ते प्रचार के साथ पश्चिमी मानविकी के स्नातकों द्वारा सांस्कृतिक उदारवाद फैलाने से पता चलता है कि इस्लामी शिक्षा संस्थानों की भूमिका आधुनिक वैज्ञानिक हमलों के खिलाफ लड़ाई में दिन-ब-दिन ज्यादा महत्वपूर्ण होती जा रही है।

यह स्थिति तब और स्पष्ट हो जाती है जब किसी समाज के कार्य, प्रतीक, नियम और अंत में उसके मूल्य, कुछ जिम्मेदार लोगों की निष्क्रियता और आज़ादी की ओर बढ़ते रवैये के कारण बदलने लगें। ऐसा हो सकता है कि पश्चिमी सोच वाले शिक्षित लोगों के ज्ञान और समझ का प्रभाव देश की सांस्कृतिक नीतियों और प्रतीकों पर इतना बढ़ जाए कि फिर से धार्मिक विचारों को अलग-थलग करने का माहौल बन जाए।

इसलिए, हौज़ा-ए-इल्मिया द्वारा विदेशी विचारों का खुलकर सामना कर निहायत सुधार करना, इस्लामी सरकार और बाद में इस्लामी सभ्यता की प्राप्ति की उम्मीद जगाता है [3]। क्योंकि आधुनिक सरकार से इस्लामी सरकार की ओर बदलाव केवल वैज्ञानिक और ज्ञानात्मक परिवर्तन के जरिए ही संभव है। यदि ऐसा न हुआ, तो प्रशासनिक और विचारक वर्ग के बीच मिली-जुली नीतियां देश के राष्ट्रीय विश्वास-चाहे वह लोकतांत्रिक हो या इस्लामी-को गहरा नुकसान पहुंचाएंगी।

हवालाः

1- सुखनरानी टेलीवीजयूनी रहबरे इंकेलाब बे मुनासबत सालगर्द रहलत इमाम ख़ुमैनी (र) / तारीख: 14/03/1399 (ईरानी कैलेंडर)

2- "हफत मौज ए इस्लाहात" / लेखक: हमीद पारसानिया

3- दीदार रहबरे इंकेलाब बा हौज़ावीयान / तारीख: 18/02/1398 (ईरानी कैलेंडर)

धार्मिक अध्ययन के शिक्षक ने कहा: तीन इमामों ने कहा है कि हज़रत मासूमा के पास जाने का इनाम, अल्लाह उसे आशीर्वाद दे और उसे शांति प्रदान करे, स्वर्ग है, या स्वर्ग उस पर अनिवार्य हो जाता है। इसलिए हमें क़ोम शहर में हज़रत मासूमा (स) की तीर्थयात्रा की सराहना करनी चाहिए। तो जिस महिला ने हमारे भविष्य की गारंटी दी है वह हमारी दुनिया को भी आबाद कर सकती है। हमारे जीवन में कठिनाइयों से छुटकारा पाने के लिए हज़रत मासूमा (स) से प्रार्थना करने की आवश्यकता है।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन हबीबुल्ला फरहजाद ने हजरत फातिमा मासूमा के जन्म के मौके पर बीबी की मजार पर जाएरीन की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा: ज़िलक़दा हराम महीनों में से एक है। इस महीने में काफ़िर से लड़ाई करना जायज़ नहीं है और इस महीने में किसी से भी दुश्मनी और द्वेष से बचना चाहिए।

उन्होंने कहा: इस महीने की क्रियाओं में से एक प्रत्येक रविवार को एक विशिष्ट प्रार्थना है। इस प्रार्थना में चार रकअत होते हैं, जिन्हें दो, दो रकअत के रूप में पढ़ना चाहिए। नीतिशास्त्र के विद्वानों ने इस प्रार्थना को पढ़ने पर बहुत बल दिया है। इस प्रार्थना के बारे में इस्लाम के पैगंबर (स) ने कहा: "जो कोई भी इस प्रार्थना को पढ़ता है, सर्वशक्तिमान ईश्वर उसके पश्चाताप को स्वीकार करेगा, उसकी मृत्यु आसान होगी, और धर्मी उसकी गर्दन पर होगा, सर्वशक्तिमान ईश्वर "वह उन्हें इसके बारे में विश्वास दिलाकर उनकी कब्र को रोशन करेगा।"

हुज्जत-उल-इस्लाम फरहजाद ने करामात के दस साल और हजरत मासूमा के जन्मदिन का जिक्र करते हुए, भगवान उन्हें आशीर्वाद दे और उन्हें शांति प्रदान करे, कहा: हजरत मासूमा के क़ोम आने से पहले भी, क़ोम एक पवित्र शहर था और यहाँ रहने वाले लोग अहले-बैत (अ) का विलायत स्वीकार कर लिया था। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक (अ) ने क़ुम शहर के बारे में कहा, "क़ुम अहले-बैत का हरम है"। एक अन्य रिवायत में कहा गया है कि "क़ुम शहर मुहम्मद के परिवार का घर है"। यहां तक ​​कि क़ुम में दफन होने के संकेतों और आशीर्वादों का भी परंपराओं में उल्लेख किया गया है और क़ुम में दफनाए जाने वाले लोग क़यामत के दिन शोक नहीं देखेंगे।

धार्मिक अध्ययन के इस शिक्षक ने कहा: शिया धर्म के प्रचार में क़ोम के लोग भी सबसे आगे हैं। धर्म के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि अगर कोम के लोग न होते तो धर्म खत्म हो जाता।

उन्होंने कहा: यह वर्णन किया गया है कि अंत समय में, अहले-बैत (अ) का ज्ञान क़ुम शहर से अन्य शहरों में पहुंच जाएगा।

हुज्जतुल-इस्लाम फरहज़ाद ने कहा: क़ुम के लोगों के लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद हज़रत मासूमा का अस्तित्व है। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है कि "बहुत जल्द मेरे एक बच्चे को क़ुम शहर में दफ़्न किया जाएगा, जिसका नाम "फ़ातिमा" होगा और वह हज़रत मूसा काज़िम की बेटी होगी, और सभी शिया उसकी सिफ़ारिश से जन्नत में दाख़िल होंगे।

हज़रत इमाम रज़ा अ.स. के हरम के मुतवल्ली हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अहमद मरवी ने हज़रत फ़ातिमा मासूमा स.अ. की विलादत और अशरा-ए-किरामत की शुरुआत के मौके पर एक कार्यक्रम में कहा कि हज़रत मासूमा स.अ. की सीरत हमें यह पैग़ाम देती है कि हमें वक्त के इमाम के पीछे चलना चाहिए, ना कि उनसे आगे निकलने की कोशिश करनी चाहिए।

मुतवल्ली-ए-हरम हुज्जतुल इस्लाम मरवी ने कहा कि हज़रत मासूमा स.अ. ने मदीना से खुरासान का सफ़र सिर्फ़ वली-ए-ख़ुदा इमाम रज़ा अ.स. की ज़ियारत के लिए किया, जो उनके इस्तेक़ाम और वक्त के इमाम से वफ़ादारी का ज़िंदा सबूत है। इसी रास्ते में उनकी शहादत इस्लाम में औरत के किरदार और अहलेबैत अ.स. की पैरवी में दी गई बेनज़ीर क़ुर्बानी है।

आलिमे दीन मुरवी ने रहबर-ए-मुअज़्ज़म की इस नसीहत को दोहराया कि तारीखी इनहिराफ़ात की वजह जल्दबाज़ी, ग़लत तज़ीये और नासमझ एतिराज़ात होते हैं, जो ना सिर्फ़ मौक़े ज़ाया करते हैं बल्कि पूरे तहज़ीबी अमल को पीछे ढकेल देते हैं।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हर गलत बयान और राय को रहबर-ए-इंक़लाब के मयार पर परखना चाहिए, क्योंकि वही उम्मत की रहनुमाई "लिसान-ए-मुबीन" से कर रहे हैं।

हज़रत मासूमा स.अ. की ज़िंदगी एक अमली नमूना है कि कैसे सब्र, शऊर और वफ़ादारी के साथ वक्त के इमाम के पीछे चला जाए। यह सीरत आज के दौर में भी हर शख़्स, ख़ास तौर पर समाज के समझदार और रहनुमा लोगों के लिए एक रौशन रास्ता है।

रोज़-ए-दुख्तर के अवसर पर अल्लामा सैय्यद मोहम्मद हुसैन तबातबाई रहमतुल्लाह अलैह के अपनी बेटियों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार और प्रेमभरे रवैये को उजागर किया गया है। प्रसिद्ध कुरआन के मुफस्सिर अल्लामा तबातबाई रहमतुल्लाह अलैह न केवल अपनी बेटियों से विशेष स्नेह रखते थे बल्कि उनकी परवरिश, मानसिक सुकून और भविष्य के वैवाहिक जीवन को हमेशा प्राथमिकता देते थे।

अल्लामा तबातबाई रहमतुल्लाह अलैह की पारिवारिक जिंदगी में यह बात खास तौर पर सामने आती है कि वह बेटियों के साथ प्रेम सम्मान और नर्मी से पेश आते थे।

उनकी बेटी के अनुसार कई बार हम खाना बनाते जो कुछ ख़राब हो जाता लेकिन वालिद (पिता) कभी नाराज़ नहीं होते थे बल्कि उसकी तारीफ़ ही करते थे।वह अक्सर कहा करते थे बेटियाँ अल्लाह की अमानत होती हैं। उनके साथ मोहब्बत और इज़्ज़त से पेश आओ ताकि अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वआलिही वसल्लम) राज़ी हों।

अल्लामा तबातबाई रहमतुल्लाह अलैह इस बात पर ज़ोर देते थे कि बेटियों के साथ हुस्ने-सुलूक (अच्छा व्यवहार) उनके आत्मविश्वास, खुशी और एक बेहतर भविष्य की बुनियाद रखता है, ताकि वे एक नेक बीवी और अच्छी माँ बन सकें।

यह शिक्षाएँ आज के माता-पिता के लिए एक कीमती आदर्श हैं कि बेटियों को केवल प्यार ही नहीं, बल्कि सम्मान और गरिमा के साथ पाला जाए।

(स्रोत: किताब "जरआहाए जानबख्श", पृष्ठ 393)

हज़रत मासूमा (स) की पवित्र दरगाह पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हबीबुल्लाह फरहज़ाद ने कहा: क़ुम शहर के बारे में कई रिवायते हैं, और इस शहर का सबसे बड़ा गुण हज़रत मासूमा (स शांति हो) का उज्ज्वल अस्तित्व है।

हज़रत मासूमा (स) की पवित्र दरगाह पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हबीबुल्लाह फरहज़ाद ने कहा: क़ुम शहर के बारे में कई रिवायते हैं, और इस शहर का सबसे बड़ा गुण हज़रत मासूमा (स शांति हो) का उज्ज्वल अस्तित्व है।

उन्होंने आगे कहा: हज़रत मासूमा (स) के आगमन से पहले भी, क़ुम शहर के बारे में ऐसी रिवायते थीं जो इस भूमि की आध्यात्मिक महानता और कुलीनता को प्रकट करती हैं।

हौज़ा ए इल्मिया शिक्षक ने कहा: सभी प्राणियों में समझ और चेतना होती है। कुरान और हदीसों में कई तर्क दिए गए हैं कि हर चीज़ अल्लाह की तस्बीह करती है, हालांकि हम उनकी तस्बीह करने के तरीके को नहीं समझते हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन फरहजाद ने कहा: इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने कहा, "क़ुम की भूमि पवित्र है, यह एक ऐसी भूमि है जो अहले बैत (अ) की विलायत को स्वीकार करती है, और यह हमारा शहर है।"

उल्लेखनीय है कि यह रिवायत उस समय वर्णित की गई थी जब हज़रत मासूमा (स) के पिता हज़रत इमाम काज़िम (अ) अभी दुनिया में नहीं आये थे।

उन्होंने जोर दिया: रिवायत में वर्णित है कि जब अंत समय में क्लेश फैलेंगे, तो क़ुम में प्रवास और शरण की सिफारिश की गई है ताकि लोगों को क्लेशों से बचाया जा सके।

उन्होंने कहा: आज, दुनिया भर के सौ से अधिक देशों के छात्र क़ुम में धर्म का अध्ययन कर रहे हैं और अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं को अपने देशों में ला रहे हैं। इस शहर में कई प्रख्यात विद्वान और हदीस विद्वान दफन हैं, और सबसे बढ़कर, हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) की उपस्थिति इस शहर का सबसे बड़ा आशीर्वाद है।

अंत में उन्होंने कहा: इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के कथन के अनुसार, सभी शिया हज़रत मासूमा (अ) की शफ़ाअत के माध्यम से स्वर्ग में प्रवेश करेंगे।

ईरान के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को यमन की राजधानी सना और सादा प्रांत पर अमेरिकी घातक हवाई हमलों की कड़ी निंदा की।

ईरान के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को यमन की राजधानी सना और सादा प्रांत पर अमेरिकी घातक हवाई हमलों की कड़ी निंदा की, जिसमें अफ्रीकी प्रवासियों को रखने वाला केंद्र भी शामिल है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एस्माईल बागई ने एक बयान में रविवार को हुए बम विस्फोटों की निंदा की, जिसमें सादा में एक हिरासत केंद्र में रखे गए 68 अफ्रीकी प्रवासियों सहित कम से कम 78 लोग मारे गए और दर्जनों अन्य घायल हो गए।

बाघई ने यमन के विभिन्न भागों में नागरिक ठिकानों, महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे और लोगों के घरों पर अमेरिकी सैन्य हमलों को युद्ध अपराध बताया जिसने सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान ले ली।

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की इस घोर अपराध और यमन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लगातार उल्लंघन के प्रति चुप्पी और उदासीनता के लिए आलोचना की।

बाघई ने इस्लामी देशों से यमन के मुस्लिम लोगों की हत्या को रोकने और गाजा और पश्चिमी तट में इजरायल के नरसंहार को जारी रखने से रोकने के लिए प्रभावी कार्रवाई करने का आह्वान किया है।

आज़रबाईजान गणराज्य की यात्रा पर जाने से पहले ईरान के राष्ट्रपति ने आज़रबाईजान के सरकारी टीवी से वार्ता की है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने रविवार को आज़रबाइजान गणराज्य के सरकारी टीवी से वार्ता की जिसमें उन्होंने दोनों राष्ट्रों के एतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों पर बल दिया और कहा कि ईरान आज़री लोगों का दूसरा घर है और हम आज़रबाईजान में कभी भी अजनबीपन का एहसास नहीं करते हैं।

 उन्होंने आज़रबाईजान गणराज्य के लोगों के साथ प्रेम का इज़्हार किया और द्विपक्षीय आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और राजनीतिक संबंधों को मज़बूत करने हेतु किये जा रहे प्रयासों की सूचना दी है।

 राष्ट्रपति पिज़िश्कियान ने अपने आज़री समकक्ष इल्हाम अलीओफ़ के साथ होने वाली आगामी मुलाक़ात के बारे में कहा कि उस मुलाक़ात में ऊर्जा और आस्तारा-आस्तारा जैसे ट्रांज़िट मार्ग के विस्तार के बारे में चर्चा होगी। उन्होंने बल देकर कहा कि ईरान देशों की संप्रभुता का सम्मान करते हुए आज़रबाईजान और आर्मीनिया के मध्य शांति प्रक्रिया का समर्थन करना चाहता है।

 

ईरान के राष्ट्रपति ने इसी प्रकार संसदीय, सांस्कृतिक और शिक्षाकेन्द्रों के मध्य होने वाले सहयोग की ओर संकेत करते हुए कहा कि हम आज़रबाईजान गणराज्य के साथ हर प्रकार के सहयोग के लिए तैयार हैं और संयुक्त प्रयासों के लिए किसी प्रकार की कोई सीमा नहीं है।

 राष्ट्रपति ने हैदर बाबा शहरयार के शेरों के एक भाग को पढ़ते हुए अपने आभास व एहसास को आज़री संस्कृति से निकट बताते हुए कहा कि हम अपने पूरे अस्तित्व के साथ आज़रबाईजान में मौजूद अपने भाइयों और बहनों से प्रेम करते हैं।

 राष्ट्रपति पिज़िश्कियान से जब दोनों देशों के बीच अतीत की घटनाओं के बारे में प्रश्न किया गया तो उन्होंने इसके उत्तर में कहा कि असंतुलित व्यवहार से परहेज़ किया जाना चाहिये और इस बात की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये कि कुछ लोगों के ग़ैर सिद्धांतिक व्यवहार हमारे बरादराना संबंधों को आघात व नुकसान पहुंचायें।

 इसी प्रकार ब्रिक्स और शंघाई जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में ईरान और आज़रबाईजान गणराज्य के परस्पर समर्थन का स्वागत किया और उसे क्षेत्रीय सहयोग की मज़बूती की दिशा में एक क़दम बताया।

 ज्ञात रहे कि यह वार्ता और साक्षात्कार उस समय हुआ है जब ईरान के राष्ट्रपति पिज़िश्कियान आज़रबाईजान गणराज्य की यात्रा पर जाने वाले हैं और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह साक्षात्कार व वार्ता दोनों पड़ोसी देशों के संबंधों को मज़बूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम साबित हो सकती है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारम शिराज़ी ने बंदर अब्बास में शहीद रजाई बंदरगाह पर हुए विस्फोट की त्रासदी पर शोक संदेश जारी किया है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकरम शिराजी ने बंदर अब्बास में शहीद रजाई बंदरगाह पर हुए विस्फोट की त्रासदी पर अपने शोक संदेश में कहा: यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से संबंधित अधिकारी, अपनी सारी ऊर्जा घायलों और उनके परिवारों के उपचार, क्षति की मरम्मत और देश की अर्थव्यवस्था और लोगों को और अधिक नुकसान से बचाने में लगाएं। उनके संदेश का मूलपाठ इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

शहीद रजाई बंदरगाह पर हुए विस्फोट और बड़ी संख्या में देशवासियों की मृत्यु और घायल होने की खबर से गहरा दुख और शोक हुआ।

यह आवश्यक है कि सभी व्यक्ति, विशेषकर जिम्मेदार अधिकारी, घायलों और उनके परिवारों की पीड़ा और नुकसान की भरपाई करने तथा राष्ट्रीय और सार्वजनिक अर्थव्यवस्था को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए हर संभव प्रयास करें।

बेशक, ऐसी बड़ी और संदिग्ध घटनाओं के कारणों की पहचान करना, उनका पीछा करना और जनता को पारदर्शी जानकारी प्रदान करना सामाजिक शांति सुनिश्चित करने और आगे होने वाले नुकसान और घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने में कारगर साबित होता है।

यह महत्वपूर्ण है कि लोग सतर्क और जागरूक रहें ताकि वे दुश्मन की साजिशों और उकसावे का शिकार न बनें।

मैं होर्मोज़्गान के बहादुर लोगों, सम्पूर्ण ईरानी राष्ट्र और विशेषकर इस त्रासदी से प्रभावित परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूँ, तथा मृतकों के लिए दया और क्षमा, घायलों के पूर्ण स्वास्थ्य लाभ तथा जीवित बचे लोगों के लिए धैर्य और सद्गुण की अल्लाह तआला से दुआ करता हूँ।

वस सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातोह

क़ुम, नासिर मकारिम शिराज़ी

28 अप्रैल, 2025