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तेहरान के अस्थायी इमामे जुमा ने ईरान के खिलाफ अमरीका के संभावित प्रतिबंधों के बारे में कहा कि , इन प्रतिबंधों का परिणाम, अमरीका और स्वंय ट्रम्प की फज़ीहत होगी।

याद रहे ट्रम्प ने गत 8 जूलई को ईरान के खिलाफ निराधार आरोप दोहराते हुए, जेसीपीओए से अमरीका के निकलने और आगामी छे महीनों के भीतर ईरान के खिलाफ प्रतिबंध वापस लौटने की घोषणा की थी। 

आयतुल्लाह मुहम्मद अली मुवह्हेदी ने तेहरान में जुमा की नमाज़ के भाषण में इस बात का उल्लेख करते हुए कि अमरीका के नेतृत्व में साम्रज्वादी, इस्लामी क्रांति को नुक़सान पहुंचाने के लिए अपने सभी साधनों को प्रयोग कर रहे हैं, कहा कि दुश्मन, उन्हीं साधनों से जिन्हें वह यमन , फिलिस्तीन और इलाक़े के कुछ अन्य देशों में अपराध के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, तबाह हो जाएंगे। 

उन्होंने कहा कि अमरीका के लिए केवल उसके हित महत्वपूर्ण हैं और वह किसी भी समझौते का पालन नहीं करता।  

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा है कि अमरीकी राष्ट्रपति की यह स्वीकारोक्ति कि सात ट्रिलियन डाॅलर ख़र्च करने के बावजूद उसे अपने लक्ष्य हासिल नहीं हुए, उनकी खुली पराजय की परिचायक है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने शुक्रवार को तेहरान में ईद की नमाज़ के ख़ुत्बे में समस्त मुसलमानों को ईद की बधाई दी।  उन्होंने कहा कि पवित्र रमज़ान, ईश्वर से निकटता प्राप्त करने के उद्देश्य से मोमिनों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्घा का ज़ामना है और ईदे फ़ित्र, उसी का पुरस्कार प्राप्त करने का दिन है।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरानी राष्ट्र प्रतिवर्ष इस आध्यात्मिक प्रतिसपर्घा में भाग लेकर नेक काम करते हुए पिछले वर्षों की तुलना में अधिक उपलब्धियां अर्जित करता है।

उन्होंने कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति की स्वीकारोक्ति इस बात को सिद्ध करती है कि अरबों डाॅलर ख़र्च करके भी बड़े शैतान को पश्चिमी एशिया में कोई सफलता नहीं मिली।  आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि इतना अधिक धन ख़र्च करके भी जब अमरीका अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सका तो आगे भी इस क्षेत्र में बेहिसाब पैसे ख़र्च करने के बावजूद उसे अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सकता।

उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध शैतानी शक्तियों के षडयंत्रों का मूल कारण यह है कि वे ईरानी राष्ट्र के कड़े प्रतिरोध, स्वावलंबन और उच्च विचारों से चिंतित हैं।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह शैतानी शक्तियां षडयंत्र रचती रहती हैं किंतु हर बार विफलता ही उनके हाथ लगती है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा कि ईरानी राष्ट्र को पूरी होशियारी के साथ षडयंत्रों को समझना चाहिए।  उन्होंने कहा कि इस समय शत्रु का मुख्य षडयंत्र यह है कि अत्यधिक आर्थिक दबाव डालकर ईरानी जनता को निराश किया जाए।

वरिष्ठ नेता ने विश्व क़ुद्स दिवस के अवसर पर ईरान में व्यापक स्तर पर निकाली जाने वाली रैलियों की ओर संकेत करते हुए कहा कि विश्व क़ुद्स दिवस के बारे में विभिन्न देशों के लिए यह स्पष्ट संदेश है कि विदेशियों के दुष्प्रचारों के बावजूद ईरानी राष्ट्र के साथ अन्य मुसलमान राष्ट्रों की मित्रता अधिक बढ़ी है। 

 

ईदुल फ़ित्र के दिन ईरान के वरिष्ठ अधिकारियों, तेहरान में तैनात इस्लामी देशों के राजदूतों तथा जनता के विभिन्न वर्गों के हज़ारों लोगों ने इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।

ईद की नमाज़ के कुछ देर बाद होने वाली इस मुलाक़ात में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने भाषण देते हुए कहा कि इस्लामी जगत के वैभव और गरिमा का सबसे महत्वपूर्ण कारक इस्लामी समुदाय की एकता तथा विवादों का समाधान है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने ज़ोर देकर कहा कि इस्राईल इस इलाक़े में तथा इस्लामी देशों के बीच मतभेद पैदा करने वाली प्रमुख वजह है। उन्होंने कहा कि इस्राईल की सबसे बड़ी समस्या उसका ग़ैर क़ानूनी अस्तित्व है, जायोनी शासन जिसकी स्थापना ग़लत आधारों पर हुई है ईश्वर की कृपा और मुस्लिम राष्ट्रों के हौसले से निश्चित रूप से मिट जाएगा।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना था कि इस समय इलाक़े में साम्राज्यवादी शक्तियों की रणनीति मुसलमानों के बीच मतभेद और विवाद पैदा करना है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि अपराधी अमरीका तथा ज़ायोनियों की इस साज़िश का मुक़ाबला करने की एक मात्र मार्ग दुशमन की साज़िशों का ज्ञान तथा उसके मुक़ाबले में डट जाना है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के अनुसार साम्राज्यवाद की नीतियों के मुक़ाबले में राष्ट्रों के डट जाने के संबंध में इस्लामी जगत की सरकारों और राजनैतिक, धार्मिक व सांस्कृतिक हस्तियों की ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने पश्चिमी एशिया के इलाक़े में ग़ैर क़ानूनी ज़ायोनी शासन की स्थापना के मूल उद्देश्य बयान करते हुए कहा कि एक लक्ष्य मुस्लिम राष्ट्रों के बीच मतभेद की आग भड़काना है लेकिन एतिहासिक अनुभवों से साबित होता है कि ज़ायोनी शासन जिसे अपने अस्तित्व की अवैधता की समस्या का सामना है ज़्यादा टिक नहीं पाएगा।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना था कि इलाक़े की कुछ कमज़ोर इच्छाशक्ति वाली सरकारों का ज़ायोनी शासन के साथ विदित या गुप्त रूप से कूटनैतिक रिश्ते स्थापित करना या अमरीका का अपना दूतावास तेल अबीब से बैतुल मुक़द्दस स्थानान्तरित करना किसी भी समस्या को हल नहीं करेगा। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि इस शासन की स्थापना बल प्रयोग, धमकियों, नरसंहार और एक राष्ट्र को उसके घरबार से निर्वासित कर देने पर हुई है इसीलिए इस्लामी राष्ट्रों के दिलों में ज़ायोनी शासन के अस्तित्व की अवैधता की बात बैठी हुई है कोई भी दुनिया के एतिहासिक मानत्रित्र से फ़िलिस्तीन का नाम नहीं मिटा सकता। निर्वासित कर देने पर हुई है इसीलिए इस्लामी राष्टऔर

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने एक बार फिर ईरान का ठोस स्टैंड दोहराते हुए फ़िलिस्तीनियों में जनमत संग्रह कराए जाने पर ज़ोर दिया जिसमें फ़िलिस्तीनी मुसलमान, ईसाई और यहूदी सब शामिल हों और इस जनमत संग्रह के आधार पर नई शासन व्यवस्था की स्थापना की जाए। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि इस प्रकार कर जनमत संग्रह कराना और फिर फ़िलिस्तीनियों की इच्छा के अनुसार सरकार का गठन वास्तव में जाली ज़ायोनी शासन के मिट जाने के अर्थ में है। और निश्चित रूप से एसा होकर रहेगा।  आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि ज़ायोनी शासन के मिटते ही इस्लामी जगत में एकता और गरिमा बहाल हो जाएगी।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के भाषण से पहले राष्ट्रपति रूहानी ने अपने संक्षिप्त भाषण में एकता और एकजुटता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि इस बात की ज़रूरत है कि अन्य विभाग विशेष रूप से आम जनता सरकार की भरपूर मदद करे।

डाक्टर रूहानी ने कहा कि आज जिस दुशमन का सामना है उसके पास अनुभव और विवेक का अभाव है दुशमन इस कोशिश में है कि केवल ईरानी राष्ट्र के मामले में नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तर के समझौतों के तहत भी अपनी प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन करे।

 

भारत और पाकिस्तान ने एक बार फिर एक दूसरे पर संघर्ष विराम के उल्लंघन का आरोप लगाया है।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम का उल्लंघन करके की जाने वाली फ़ायरिंग में भारतीय बीएसफ़ के 4 जवान मारे गए।

पाकिस्तान का आरोप है कि भारत की ओर से की जाने वाली फ़ायरिंग में एक व्यक्ति की मौत हो गई है।

ज्ञात रहे कि दोनों देशों के बीच हाल ही में होने वाली फ़्लैग मीटिंग सहमति बनी थी कि संघर्ष विराम का सम्मान किया जाएगा।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार अलग अलग घटनाओं में चार जवान मारे गए हैं और कई अन्य घायल हुए हैं।

दूसरी ओर पाकिस्तान का कहना है कि पाकिस्तान नियंत्रित कश्मीर में सीमा के क़रीब गांव में भारीय सेना की ओर से की गई अकारण फ़ायरिंग में एक स्थानीय नागरिक की मौत हो गई।

पुलिस सूत्रों का कहना है कि मारा गया व्यक्ति अपने मवेशी चरा रहा था कि अचानक भारतीय सैनिकों की ओर से फ़ायरिंग शुरू हो गई जिसकी ज़द में आकर 45 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ग़ज़्ज़ा और बैतुल मुक़द्दस में ज़ायोनी शासन के अपराधों पर यूरोप के मौन की आलोचना करते हुए कहा कि एेतिहासिक फ़िलिस्तीन देश में किस प्रकार की सरकार हो इसके लिए दुनिया में प्रचलित शैली और उस शैली का प्रयोग होना चाहिए जिसे जनमत स्वीकार करे।

रविवार की शाम इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसरों, बुद्धिजीवियों और शैक्षिक संस्थाओं के अधिकारियों ने मुलाक़ात की। इस अवसर पर वरिष्ठ नेता ने कहा कि एेतिहासिक फ़िलिस्तीन देश में किस प्रकार की सरकार हो इसके लिए दुनिया में प्रचलित शैली का प्रयोग होना और उस शैली का प्रयोग होना चाहिए जिसे जनमत स्वीकार करे और इसमें समस्त वास्तविक फ़िलिस्तीनियों से चाहे वह मुस्लिम हों, यहूदी हों, या ईसाई हों जो कम से कम 80 वर्षों से इस धरती पर थे, चाहे वह विदेश में हों या अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में हों, पूछा जाए और जनमत संग्रह हो। 

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान का यह सुझाव जो आधिकारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ में पंजीकृत है, क्या दुनिया में प्रचलित मापदंडों के अनुसार नहीं है? तो फिर यूरोप इसको समझने को तैयार क्यों नहीं है।

वरिष्ठ नेता ने बच्चो के हत्यारे ज़ायोनी प्रधानमंत्री के यूरोप दौरे के दौरान स्वयं को अत्याचारग्रस्त दिखाने के ढोंग की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह अपराधी, इतिहास के समस्त अत्याचारों का सरदार है और यूरोपीयों से उसने झूठ बोला कि ईरान हमें और कुछ लाख यहूदियों को तबाह करना चाहता है जबकि ईरान द्वारा फ़िलिस्तीन मुद्दे के समाधान के लिए पेश किया गया सुझाव पूर्ण रूप से तार्किक और लोकतंत्र के मापदंडों के अनुरूप है। 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के वरिष्ठ नेता ने दुनिया के अधिकतर राष्ट्रों में इस्लामी गणतंत्र ईरान के उच्च स्थान की ओर संकेत किया और कहा कि ईरान के अधिकतर दुश्मन, साम्राज्यवादी और तुच्छ सरकारें हैं। उन्होंने कहा कि क्षेत्र के अधिकतर राष्ट्रों और सरकारों के बीच ईरान के बहुत अधिक समर्थन, तेहरान का प्रभाव और उसकी प्रतिष्ठा है और यही कारण है कि दुष्ट दुश्मन हमेशा षड्यंत्रों के प्रयास में रहता है किन्तु ईश्वर की कृपा से वह ईरानी राष्ट्र और ईरान से फिर पराजित होंगे।

वरिष्ठ नेता ने बीस प्रतिशत यूरेनियम संवर्धन को देश के युवाओं की योग्यता और क्षमता का प्रकाशमयी नमूना क़रार दिया और कहा कि उस काल में जब 20 प्रतिशत संवर्धित यूरेनियम की ब्रिक्री के लिए शर्त लगाई थी और कुछ अधिकारियों ने इस बारे में उनको विशिष्टता देने पर रूझान दिखाया तो युवाओं के प्रयासों, आग्रह और प्रतिरोध द्वारा हमने 20 प्रतिशत संवर्धित यूरेनियम हासिल कर दिया और दुनिया ने यह देख लिया कि हमें अमरीकी, रूसी और फ़्रांसीसी यूरेनियम की आवश्यकता नहीं है।

 

क्षेत्र में जो परिवर्तन हुए हैं उनके दृष्टिगत इस वर्ष का विश्व कुद्स दिवस अधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील हो गया है।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि विश्व कुद्स दिवस की रैलियों में भाग लेना वास्तव में बेहतर भविष्य के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने कहा कि ऐसी स्थिति में जायोनी शासन के मुकाबले में फिलिस्तीनी जनता का समर्थन इस्लामी गणतंत्र ईरान के लिए गर्व की बात है कि जब दुश्मन क्षेत्र में ईरान की भूमिका को हस्तक्षेप का नाम देकर उसे एक चुनौती बना देना चाहता है।

वरिष्ठ नेता ने विश्व कुद्स की रैलियों में लोगों की उपस्थिति को महत्वपूर्ण और संवेदनशील बताया और बल देकर कहा कि ईश्वर की कृपा और लोगों की भव्य उपस्थिति से इस साल का विश्व कुद्स दिवस पिछले वर्षों की अपेक्षा अधिक बेहतर होगा।

क्षेत्र में जो परिवर्तन हुए हैं उनके दृष्टिगत इस वर्ष का विश्व कुद्स दिवस अधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील हो गया है। पिछले 70 वर्षों के दौरान जायोनी शासन ने फिलिस्तीनी जनता पर जो अनगिनत अपराध किये हैं वे इस समय अपने चरम पर पहुंच गये हैं जिनके दृष्टिगत इस वर्ष का विश्व कुद्स दिवस अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।

फिलिस्तीन की अत्याचारग्रस्त जनता के समर्थन में विश्व कुद्स दिवस के अवसर पर निकाली जानी वाली रैलियों में बड़े पैमाने पर मुसलमान राष्ट्रों की उपस्थिति से विश्व समुदाय को यह संदेश जायेगा कि फिलिस्तीनी जनता की आकांक्षा एक अंतरराष्ट्रीय आकांक्षा है और शांतिपूर्ण संघर्ष के परिप्रेक्ष्य में उसकी रक्षा फिलिस्तीनी जनता का वैध अधिकार है।

इस समय अवैध अधिकृत फिलिस्तीन की जो स्थिति है उसके दृष्टिगत फिलिस्तीनी जनता की भावना को मजबूत और मनोबल को ऊंचा करना काफी महत्वपूर्ण कार्य है।

इसी संबंध में फिलिस्तीन मुक्ति मोर्चा के एक सदस्य और फिलिस्तीनी कार्यकर्ता काएद अलग़ौल  कहते हैं" जो चीज़ पिछले 10 सप्ताहों के दौरान व्यवहारिक हुई है वह प्रतिरोध के मार्ग को मज़बूत करना और नस्ल भेदी अतिग्रहणकारी जायोनियों को अपमानित करना बहुत महत्वपूर्ण है।

ज्ञात रहे कि ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने रमज़ान के अंतिम शुक्रवार को फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में विश्व कुद्स दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा की थी और प्रतिवर्ष पूरे विश्व में मुसलमान रमज़ान के पवित्र महिने के अंतिम शुक्रवार को फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में रैलियां निकालते और अतिग्रहणकारी जायोनी शासन की भर्त्सना करते हैं।  

तेहरान के जुमे के इमाम ने कहा है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान जितना चाहेगा मीज़ाईल का उत्पादन करेगा और उसकी मारक क्षमता बढ़ाएगा।

जुमे की नमाज़ आयतुल्लाह अहमद ख़ातमी की इमामत में पढ़ी गयी। उन्होंने जुमे की नमाज़ में जो विश्व क़ुद्स दिवस के साथ आयोजित हुयी, कहा कि अमरीका और ज़ायोनी शासन इस्लाम और ईश्वर के संयुक्त दुश्मन हैं और वे फ़िलिस्तीन के विषय को भुलाने या इसे अरबी मुद्दा बनाने की साज़िश रच रहे हैं लेकिन आज ज़ायोनी शासन इतना अपमानित हो चुका है कि उसका प्रधान मंत्री योरोप का चक्कर लगा रहा है।

जुमे के इमाम ने कहा कि इन दिनों क्षेत्र की रूढ़ीवादी पिट्ठू सरकारों के बीच भ्रष्ट ज़ायोनी शासन को मान्यता देने के प्रतिस्पर्धा चल रही है लेकिन वे जान लें कि यह प्रतिस्पर्धा उनके पतन की पृष्ठिभूमि बनेगी।

उन्होंने वरिष्ठ धार्मिक नेतृत्व के सिद्धांत, ज़ायोनी शासन से नफ़रत और मीज़ाईल शक्ति को ईरान में एकता के तीन ध्रुव बताते हुए बल दिया कि मीज़ाईल शक्ति, क्षेत्रीय प्रभाव और शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियां ईरान की शक्ति के तीन तत्व हैं और ईरान ने शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों का मार्ग इसलिए चुना क्योंकि इस्लामी शिक्षा सैन्य आयाम वाली परमाणु गतिविधि से रोकती है।  

 

अंतर्राष्ट्रीय क़ुद्स दिवस के अवसर पर भारत की राजधानी दिल्ली सहित मुम्बई, कोलकता, चेन्नई, हैदराबाद, लखनऊ और इस देश के लगभग सभी छोटे बड़े शहरों से लेकर गांव तक फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के समर्थन में लोगों ने प्रदर्शन किया।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली में जुमे की नमाज़ के बाद हज़ारों की संख्या में न केवल मुसलमान बल्कि सभी धर्मों के लोगों ने, पवित्र रमज़ान के अंतिम शुक्रवार को इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी द्वारा फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के अधिकारों के लिए घोषित किए गए अंतर्राष्ट्रीय क़ुद्स दिवस के अवसर पर, एकत्रित होकर एक आवाज़ में इस्राईल और अमेरिका के अत्याचारों के ख़िलाफ़ नारे लगाए।

दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे लोगों ने जहां इस्राईल और अमेरिका के विरुद्ध नारे लगाए वहीं आले सऊद के ख़िलाफ़ भी जमकर नारेबाज़ी की। रैली में शामिल प्रख्यात शिया धर्मगुरू मौलाना जलाल हैदर नक़वी ने बताया कि भारत की जनता ने हमेशा से फ़िलिस्तीनी जनता और राष्ट्र का समर्थन किया है और सदैव करती रहेगी। उन्होंने कहा कि दुनिया इस्राईल और अमेरिका द्वारा फ़िलिस्तीनी जनता पर किए जा रहे अत्याचारों पर चुप्पी साधे हुए है, लेकिन हम ख़ामोश नहीं रहने वाले हैं क्योंकि ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ख़ामोश रहने वाला भी ज़ालिम कहलाता है।

दूसरी ओर भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की ऐतिहासिक आसफ़ी मस्जिद (बड़ा इमामबाड़ा) में भी जुमे की नमाज़ के बाद भारत के वरिष्ठ शिया धर्मगुरू इमामे जुमा लखनऊ मौलाना सैयद क़ल्बे जवाद नक़वी के नेतृत्व में एक विशाल प्रदर्शन हुआ। हज़ारों की संख्या में शामिल प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि क़ुद्स हमारा है और हम उसे लेकर रहेंगे।

भारत के वरिष्ठ शिया धर्मुगरू मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि इस्राईल प्रेम में अमेरिका मानवाधिकार के अधिकारों का खुला उल्लंघन कर रहा है। उन्होंने कहा कि आज मध्यपूर्व में जो भी संकट है उसका बुनियादी कारण इस्राईल और अमेरिका हैं। मौलाना जवाद ने कहा कि इन दोनों ने पूरी दुनिया की शांति को ख़तरे में डाल रखा है जिसके कारण आज हर तरफ़ आतंकवाद, युद्ध और आर्थिक संकट अपना पैर पसार रहा है।

लखनऊ के इमामे जुमा ने कहा कि अगर दुनिया विश्व में शांति चाहती है तो सबसे पहले इस्राईल को ख़त्म करना होगा। उन्होंने कहा कि एक ग़ैर क़ानूनी शासन के कारण दुनिया के सभी इंसानों की जान ख़तरे में है, इसीलिए अगर कोई चीज़ जिसका अंत होना चाहिए तो वह है इस्राईल क्योंकि इस ग़ैर क़ानूनी शासन के ही कारण पूरी दुनिया में क़ानूनी परेशानियां पैदा हुई हैं।

अतंर्राष्ट्रीय क़ुद्स दिवस के अवसर पर एक बार फिर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रदर्शनकारियों को बड़े इमामबाड़े के गेट से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं दी। इस मौक़े पर मौलाना कल्बे जवाद ने योगी सरकार पर अपना ग़ुस्सा निकालते हुए कहा कि इससे पहले की सरकार ने भी हमारे ऊपर अत्याचार ज़रूर किए थे पर हमे प्रदर्शन करने से नहीं रोका था लेकिन योगी सरकार का रवैया तो पहले की सरकार से भी अधिक ख़राब है।

लखनऊ में आयोजित हुए अंतर्राष्ट्रीय क़ुद्स दिवस के अवसर पर विरोध प्रदर्शन में शामिल प्रदर्शनकारियों ने इस्राईल और अमेरिका के झंडों को भी आग लगाई साथ ही नेतनयाहू और ट्रम्प के पुतले को भी फ़ूंककर अपना विरोध दर्ज कराया।

 

पवित्र रमज़ान की दस तारीख़, पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) की धर्मपत्पनी हज़रत ख़दीजा के स्वर्गवास का दिन है।

यह वह दिन है जब "उम्मुल बनीन" हज़रत ख़दीजा ने इस नश्वर संसार से विदा ली।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने कई कथनों में हज़रत ख़दीजा को संसार की महान एवं परिपूर्ण महिला बता चुके हैं।  हज़रत अबूतालिब के स्वर्गवास के कुछ ही समय के बाद "उम्मुल बनीन" हज़रत ख़दीजा का स्वर्गवास हो गया।

25 वर्षों तक संयुक्त जीवन व्यतीत करने के बाद हिजरत के दसवें साल रमज़ान की दस तारीख़ को हज़रत ख़दीजा का स्वर्गवास हुआ।  आपके स्वर्गवास से पैग़म्बरे इस्लाम (स) को बहुत दुख हुआ।  हज़रत अबूतालिब के स्वर्गवास के थोड़े ही अंतराल से "उम्मुल बनीन" हज़रत ख़दीजा का स्वर्गवास हो गया।  इन दोनों लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम बहुत चाहते थे इसीलिए उन दोनों के स्वर्गवास से वे बड़े दुखी हुए।  यही कारण है कि जिस वर्ष हज़रत अबूतालिब और "उम्मुल बनीन" हज़रत ख़दीजा का स्वर्गवास हुआ उस साल का नाम पैग़म्बरे इस्लाम ने "आमुल हुज़्न" अर्थात दुख वाला वर्ष रखा था।  श्रोताओ हज़रत ख़दीजा के स्वर्गवास की बरसी पर आप सबकी सेवा में श्रंद्धांजलि अर्पित करते हैं।

हज़रत ख़दीजा, इस्लाम की सबसे महान महिला थीं।  वे ऐसी पहली महिला थीं जिन्होंने महिलाओं में सबसे पहले इस्लाम स्वीकार किया था।  पैग़म्बरे इस्लाम के पीछे नमाज़ पढने वाली पहली महिला भी हज़रत ख़दीजा ही थीं।  वे पवित्र, बुद्धिमान और दूरदर्शी महिला थीं।  आपके भीतर पाई जाने वाली कुछ स्पष्ट विशेषताएं इस प्रकार हैं- पवित्रता, दान-दक्षिणा, मेहरबानी, वफ़ादारी, लोगों के साथ अच्छा व्यवहार और दूरदर्शिता आदि।  जिस प्रकार से इस्लाम के आने और क़ुरआन के नाज़िल होने से पहले ही पैग़म्बरे इस्लाम, अमीन अर्थात अमानतदार मश्हूर हो गए थे इसी प्रकार हज़रत ख़दीजा को भी क़ुरैश की सबसे पवित्र महिला कहा जाता था।

हज़रत ख़दीजा ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथ 25 वर्षों तक पारिवारिक जीवन व्यतीत किया।  यह काल बहुत ही उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था।  आप बहुत ही धनवान महिला थीं और उन्होंने अपनी सारी संपत्ति, इस्लाम के प्रचार व प्रसार में ख़र्च कर दी।  आपको "मलिकतुल बतहा" अर्थात अरब जगत की महारानी कहा जाता था।  हज़रत ख़दीजा ने अपनी सारी संपत्ति पैग़म्बरे इस्लाम के चरणों में अर्पित कर दी थी जिससे वे निर्धनों की सहायता, क़र्ज़दारों के क़र्ज़ अदाकरने, बीमारों का इलाज कराने और इसी प्रकार के कार्य किया करते थे।  हज़रत ख़दीजा की क़ुर्बानी इतनी अधिक और निष्ठा से ओतप्रोत थी कि इसका ईश्वर ने भी आभार व्यक्त किया है।

हज़रत ख़दीजा, पैग़म्बरे इस्लाम (स) को ईश्वर के अन्तिम दूत के रूप में देखती थीं और इसपर उनका ईमान था।  उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ जीवन के दौरान सदैव ही यह प्रयास किया कि वे उनके लिए शांति का कारण बनें।  ऐसे समय में कि जब पैग़म्बरे इस्लाम को हर प्रकार से सताया जा रहा था, उस समय घर में आप उनको ढारस देती थीं।  इतिहास में मिलता है कि एक बार मक्के के अनेकेश्वरवादियों ने पैग़म्बरे इस्लाम पर पत्थर फेंके जिससे वे घायल हो गए।  बाद में वे आपका पीछा करते हुए उनके घर तक आए।  बाद में उन्होंने पैग़म्बर के घर पर भी पत्थर फेंके।  इसपर हज़रत ख़दीजा घर से बाहर आ गईं और उन्होंने पत्थर फेंकने वालों को संबोधित करते हुए कहा कि तुमको पता नहीं है कि तुम ऐसी महिला के घर पत्थर फेंक रहे हो जो तुम्हारी जाति की सबसे पवित्र महिला है।  आपकी यह बात सुनकर वे लोग बहुत लज्जित हुए और वहां से चले गए।  बाद में उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के घाव की मरहम पट्टी की।  इसी घटना के बाद आपने हज़रत ख़दीजा को उनके लिए स्वर्ग में ज़मर्रूद के महल की सूचना दी।

हज़रत ख़दीजा के पास बहुत अधिक धन-संपत्ति थी।  उनका सामाजिक (स्टेटस) भी बहुत ऊंचा था।  उनकी ख्याति अरब जगत के कोने-कोने तक फैली थी।  इसके बावजूद वे पैग़म्बरे इस्लाम के साथ बहुत ही विन्रमता पूर्ण जीवन गुज़ारती थीं और उनके भीतर बिल्कुल भी घमण्ड नहीं था।  वे जानती थीं कि पैग़म्बरे इस्लाम को उपासना से बहुत लगाव है इसलिए वे हर उस काम से बचती थीं जिससे आपकी उपासना में विघ्न पड़ता हो।  बेसत से पहले पैग़म्बरे इस्लाम पाबंदी से महीने में कई बार हिरा नामक गुफा जाकर उपासना किया करते थे।  रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान वे अपना अधिकांश समय वहीं पर गुज़ारते थे।  हज़रत ख़दीजा, पैग़म्बरे इस्लाम के लिए वहां पर खाना भेजती थीं और कभी-कभी स्वयं भी वहां पर जाती थीं।

उन्होंने अपनी सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का अच्छा प्रशिक्षण किया था।  आपके प्रशिक्षण की यह विशेषता थी कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के साथ ही उनकी संतान ने भी अपनी नानी के प्रशिक्षण और उनके अस्तित्व पर गर्व किया है।  एक बार इमाम हसन अलैहिस्सलाम जब मोआविया से शास्त्रार्थ कर रहे थे तो उन्होंने मोआविया के पथभ्रष्ट होने और अपने सौभाग्यशाली होने के लिए जो तर्क पेश किया उसमें हज़रत ख़दीजा का भी उल्लेख किया था।  इमाम हसन ने मोआविया को संबोधित करते हुए कहा था कि तुम्हारी मां, "हिंदा" थी और दादी "नसीला" थी।  यह दोनों अपने ज़माने की बदनाम औरतें थीं।  तुम एसे परिवार से संबन्ध रखते हो जबकि मेरी मां फ़ातेमा ज़हरा और मेरी नानी ख़दीजतुल कुबरा थीं।  इसी प्रकार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने भी करबला के मैदान में दस मुहर्रम को यज़ीद के सैनिकों को संबोधित करते हुए अपने परिचय में कहा था कि तुम जान लो कि मेरी नानी ख़दीजा थीं जो ऐसी पहली महिला थीं जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया था।  इसके अतिरिक्त उन्होंने इस्लाम के लिए बहुत बलिदान दिया था।

हज़रत ख़दीजा हालांकि बहुत पैसेवाली थीं किंतु उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ जीवन में बहुत से दुख सहन किये।  अनेकेश्वरवादियों की ओर से लगाए जाने वाली आर्थिक प्रतिबंधों का आपने भी समाना किया था।  हिजरत के सावतें साल अनेकेश्वरवादियों ने मुसलमानों पर अधिक दबाव डालने के उद्देश्य से एक समझौता किया जिसके आधार पर किसी को भी मुसलमानों के साथ व्यापार करने और शादी करने का अधिकार नहीं था।  इसी विषय के दृष्टिगत मुसलमान शाबे अबुतालिब नामक घाटी में एकत्रित हुए।  वहां पर वे 3 वर्षों तक सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करते रहे।  यहां पर रहने वाले मुसलमानों को भूखा और प्यासा रहना पड़ता था क्योंकि उनके साथ सभी लोगों ने लेन-देन बंद करके उनका बायकाट कर दिया था।  शाबे अबूतालिब की कठिनाइयों का उल्लेख करते हुए एक अरब लेखक लिखते हैं कि इन लोगों में हज़रत ख़दीजा भी शामिल थीं। उस समय उनकी आयु ऐसी नहीं थी कि वे इस प्रकार की कठिनाइयां सहन कर पातीं किंतु उन्होंने मरते समय तक कठिनाइयों का डटकर मुक़ाबला किया।

जिस समय हज़रत ख़दीजा बीमार हुईं तो पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने उनसे कहा था कि हे ख़दीजा! क्या तुमको पता है कि ईश्वर ने स्वर्ग में भी तुमको मेरी पत्नी बनाया है।  जब हज़रत ख़दीजा की बीमारी बढ़ने लगी तो आपने पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर मैंने ऐसा काम किया हो जो आपको अच्छा न लगा हो तो आप मुझको क्षमा कर दीजिए।  इसपर हज़रत मुहम्मद (स) ने कहा था कि नहीं तुमने कभी कोई ऐसा काम नहीं किया।  उन्होंने कहा कि तुमने मेरे घर में बहुत परेशानिया सहन कीं और अपनी सारी संपत्ति इस्लाम के मार्ग में ख़र्च की।

हज़रत ख़दीजा के स्वर्गवास के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने आपको ग़ुस्ल व कफ़न दिया।  जब आप ग़ुस्ल दे रहे थे तो उसी समय जिब्रील, स्वर्ग से कफ़न लेकर आए और कहा कि हे पैग़म्बरे, ईश्वर आप पर सलाम भेजता है।  वह कहता है कि ख़दीजा ने मेरे मार्ग में अपनी सारी संपत्ति ख़र्च कर दी ऐसे में उनके कफ़न की ज़िम्मेदारी हम पर हैं।  इस्लामी इतिहास में एक मश्हूर वाक्य मिलता है कि इस्लाम, पैग़म्बरे इस्लाम के शिष्टाचार, हज़रत अली की तलवार और हज़रत ख़दीजा की दौलत का आभारी है और रहेगा।

 

विदेश मंत्री मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने कहा है कि भारत, अमरीका के एकपक्षीय प्रतिबंधों का समर्थन नहीं करेगा।

मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने सोमवार को नई दिल्ली में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाक़ात के बाद कहा कि नई दिल्ली ने स्पष्ट रूप से बताया है कि वह अमरीका के एकपक्षीय प्रतिबंधों का समर्थन नहीं करेगा। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि ईरान व भारत सभी क्षेत्रों में अपने अच्छे संबंधों को विस्तृत करना चाहते हैं, कहा कि इस मुलाक़ात में तेल की खोज, स्वदेशी करंसी के इस्तेमाल, चाबहार बंदरगाह, उत्तर-दक्षिण काॅरीडोर और दोनों देशों के बीच ट्रांज़िट के संबंध में व्यापक सहयोग जैसे विषयों पर वार्ता हुई।

 

ईरान के विदेश मंत्री ने अपनी भारत यात्रा के परिणामों पर ख़ुशी जताई और कहा कि विश्व समुदाय, परमाणु समझौते को बाक़ी रखे जाने का पक्षधर है। ज़रीफ़ ने कहा कि अगर ईरान को अपने घटकों की ओर से आवश्यक गारंटी मिले तो परमाणु समझौता बाक़ी रह सकता है।

 

ज्ञात रहे कि ईरान के विदेश मंत्री मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ सोमवार को एक उच्च स्तरीय राजनैतिक व आर्थिक शिष्टमंडल के साथ नई दिल्ली पहुंचे थे और मंगलवार की सुबह स्वदेश लौट आए।