
رضوی
"...तो इस्लामी गणतंत्र ईरान तेल-अवीव और हैफा को मिट्टी में मिला देगा। ! "
तेहरान में जुमा की नमाज़ के इमाम ने जेसीपीओए से अमरीका के निकलने की ओर संकेत करते हुए कहा कि, अमरीका और युरोपीय संघ में से किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता और ब्रसल्ज़ भी वचन तोड़ने में वाशिंग्टन से कम नहीं है।
आयतुल्लाह अहमद खातमी ने शुक्रवार के दिन तेहरान में आयोजिन जुमा की नमाज़ के दौरान अपने भाषण में कहा कि ईरान की मिसाइल शक्ति का अमरीका और युरोपीय संघ से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि तेहरान की ओर से युरोपीय संघ को दी गयी कुछ हफ्ते की समय सीमा के दौरान ईरान के नुक़सान की भरपाई नहीं हुई तो इस्लामी गणतंत्र ईरान, जेसीपीओए में बाक़ी नहीं रहेगा।
उन्होंने कहा कि ईरान में इस्लामी क्रांति की विजय के बाद से ही दुश्मन, इस व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं और वास्तव में दुश्मन, कमज़ोर ईरान के इच्छुक हैं तथा अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और इलाक़े के कुछ तुच्छ सरकारों को ईरान की शक्ति से परेशानी है।
तेहरान के इमाम जुमा ने इस बात पर बल देते हुए कि इस्लामी गणतंत्र ईरान अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाता रहेगा कहा कि अगर ज़ायोनी शासन ने ईरान के खिलाफ पागलपन दिखाया तो इस्लामी गणतंत्र ईरान तेलअबीव और हैफा को मिट्टी में मिला देगा।
तेहरान के इमामे जुमा ने कहा है कि अमरीका ने अगर ईरान पर युद्ध थोपने की ग़लती की तो उसे पछताना पड़ेगा
तेहरान के इमामे जुमा ने जुमे की नमाज़ में ख़ुतबा देते हुए कहा है कि ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका और उसके घटकों की धमकियां प्रभावहीन हैं।
आयतुल्लाह मोहम्मद अली किरमानी ने कहा, अमरीका और उसके घटकों ने अगर धमकियों से आगे बढ़कर ईरान पर युद्ध थोपने की ग़लती की तो उन्हें अपमानजनक हार का सामना करना पड़ेगा।
आयतुल्लाह किरमानी का कहना था कि अमरीका, यूरोपीय देशों, सऊदी अरब और इस्राईल के साथ मिलकर ईरान विरोधी गठबंधन बनाने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा, ईरान शक्तिशाली है और वह साम्राज्यवादी शक्तियों का डटकर मुक़ाबला करेगा।
तेहरान के इमामे जुमा ने कहा, ईरान एक शक्तिशाली देश है और दुश्मनों की गीदड़ भभकियां उसे अपने रास्ते से हटा नहीं सकेंगी।
उन्होंने कहा, इस्लाम, कुफ़्र के मुक़ाबले में डट गया है और ईरान को इस बात पर गर्व है कि इस्लाम का झंटा उसके हाथों में है।
अमरीका, क्षेत्र से बोरिया बिस्तर बांध लेः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि फ़ार्स की खाड़ी और पश्चिमी एशिया हमारा घर है और इस क्षेत्र से ईरान नहीं बल्कि अमरीका को निकलना होगा।
मई दिवस या श्रमिक दिवस के अंतर्राष्ट्रीय दिन के अवसर पर श्रमिकों और उद्योगपतियों की बड़ी संख्या ने सोमवार को इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
वरिष्ठ नेता ने इस मुलाक़ात में अपने संबोधन के दौरान मानवता के अंतिम मोक्षदाता हज़रत इमाम मेहदी (अ) के शुभ जन्म दिवस की बधाई पेश करते हुए कहा कि शाबान के महीने की विभूतियों से अधिक से अधिक लाभ उठाने की आवश्यकता है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि 15 शाबान, दुनिया के निश्चित सुधार के लिए ईश्वर के अपरिहार्य वादे की शुभसूचना का इतिहास हैै और यह वह वचन है जिसमें कहा गया है कि हज़रत इमाम मेहदी के पवित्र हाथों से अत्याचार समाप्त होगा और दुनिया में न्याय और इंसाफ़ की स्थापना होगी।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अपने संबोधन में क्षेत्र में अमरीका की उपस्थिति के कारण जारी युद्ध और रक्तपात तथा अशांति व संकट का उल्लेख करते हुए कहा कि जिसको क्षेत्र से निकलना होगा वह इस्लामी गणतंत्र ईरान नहीं बल्कि अमरीका है और जैसा कि कुछ साल पहले भी मैंने कहा था कि मार कर भाग जाने का दौर अब ख़त्म हो गया है।
वरिष्ठ नेता ने अमरीका को संबोधित करते हुए कहा कि फ़ार्स की खाड़ी और पश्चिमी एशिया हमारा घर है किन्तु तुम यहां पराए हो और शैतानी लक्ष्यों की प्राप्ति और मतभेद पैदा करने के प्रयास में व्यस्त हो। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने पश्चिमी एशिया में अमरीका की उपस्थिति के परिणाम में पाई जाने वाली अशांति और युद्ध व रक्तपात का हवाला देते हुए कहा कि यही कारण है कि इस क्षेत्र में अमरीका के पैर तोड़कर उसे पश्चिमी एशिया से निकाल बाहर करना चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरान की स्वतंत्र और स्वाधीन व्यवस्था का मुक़ाबला करने के लिए अमरीका ने जो तरीक़ा अपना रखा है उनमें से एक यह है कि वह कुछ ना समझ सरकारों को उकसा कर क्षेत्र में युद्ध और रक्तपात का बाज़ार गर्म कर रहा है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीकियों का प्रयास है कि वह सऊदी सरकार और क्षेत्र के कुछ दूसरे देशों को उकसा कर उन्हें ईरान के मुक़ाबले में ला खड़ा करें किन्तु यदि यह देश बुद्धि रखते होंगे तो उन्हें अमरीका के धोखे में नहीं आना चाहिए।
उन्होंने इस बात का उल्लेख करते हुए कि अमरीकियों का प्रयास है कि वह ईरान की शक्तिशाली जनता और मज़बूत तथा सक्षम इस्लामी व्यवस्था का मुक़ाबला करने की क़ीमत ख़ुद न चुकाएं बल्कि क्षेत्र की कुछ सरकारों के ज़िम्मे डाल दें, कहा कि यह सरकारें ईरान के मुक़ाबले पर आईं तो निश्चित रूप से उन्हें भारी नुक़सान उठाना पड़ेगा और बुरी तरह पराजित होंगी।
चार दशकों से ईरानी राष्ट्र, वर्चस्ववाद के मुक़ाबले में डटा हुआ हैः हुसैन बूतोराबी फ़र्द
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद मुहम्मद हसन अबूतोराबी फ़र्द ने कहा है कि पिछले चार दशकों से ईरान की जनता, विश्व वर्चस्ववाद का मुक़ाबला कर रही है।
तेहरान के इमामे जुमा ने अमरीकी राष्ट्रपति की ओर से परमाणु समझौते से निकल जाने की धमकी पर प्रतिक्रिया स्वरूप कहा है कि ईरानी राष्ट्र कई दशकों से पूरी शक्ति के साथ वर्चस्ववाद का मुक़ाबला कर रहा है।
उन्होंने कहा कि वर्चस्ववादियों ने विभिन्न शैलियों से ईरानी राष्ट्र को दबाने के प्रयास किये किंतु अपने हर प्रयास में वे विफल रहे। सैयद बूतोराबी फ़र्द ने कहा कि ईरान पर युद्ध थोपना, प्रतिबंध लगाना या उसपर राजनैतिक दबाव बनाने जैसी बातें, वर्चस्ववादी शक्तियों की शैलियां रही हैं।
तेहरान के इमामे जुमा ने कहा कि जेसीपीओए सहित विभिन्न क्षेत्रों में अमरीकी उल्लंघनों के कारण ईरान की जनता और यहां के अधिकारियों ने एकमत होकर यह निर्णय लिया है कि तेहरान, विश्वसनीय देश को ही अपना सहयोगी बनाए। हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद मुहम्मद हसन अबूतोराबी फ़र्द ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ईरानी राष्ट्र ने कभी भी वर्चस्वादी व्यवस्था पर भरोसा नहीं किया और वह किसी भी स्थिति में उसपर भरोसा नहीं करेगा।
ज्ञात रहे कि परमाणु समझौते के अन्य पक्षों के विपरीत अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प, इस समझौते को ख़तरनाक समझौता बताकर उससे निकलना चाहते हैं जबकि जेसीपीओए के अन्य सदस्य इसके विरोधी हैं।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की नज़र में अमरीका का मुक़ाबला करने के पीछे ईरान की शक्ति का राज़ पवित्र क़ुरआन पर अमल है
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि इस्लामी गणतंत्र पवित्र क़ुरआन पर अमल की वजह से अमरीका के सामने डटा हुआ है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने बल दिया है कि इस्लामी गणतंत्र पिछले 40 साल से साम्राज्य की दादागीरी के सामने डटा हुआ है और उन दुश्मनों की आंखों के सामने जो इस व्यवस्था को मिटाना चाहते थे, उसकी क्षमता व शक्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने गुरुवार को पवित्र क़ुरआन की 35वीं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेने वालों से मुलाक़ात में इस्लामी जगत की प्रगति का एक मात्र मार्ग पवित्र क़ुरआन पर अमल बताते हुए कहा कि इस्लामी देश पवित्र क़ुरआन से दूर होने की वजह से अपमान से ग्रस्त हैं और अमरीकी राष्ट्रपति का बड़ी निर्लज्जता से यह कहना, "अगर हम न हों तो कुछ अरब देश एक हफ़्ता भी बाक़ी नहीं रह पाएंगे।", इसी बीमारी का नतीजा है।
उन्होंने कहा कि पवित्र क़ुरआन हमसे कहता है कि मोमिनों के बीच आपस में एकता और मेलजोल हो और नास्तिकता के मोर्चे से किसी तरह का संबंध व संपर्क न रखें, लेकिन खेद के साथ कहना पड़ता है कि कुछ इस्लामी देश ज़ायोनी शासन के साथ संबंध बनाए हुए हैं और पवित्र क़ुरआन के आदेश पर अमल न करने का नतीजा क्षेत्र में जंग और मौजूदा अपराध है।
तेहरान में 26 अप्रैल 2018 को आयोजित पवित्र क़ुरआन प्रतियोगिता की तस्वीर
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यमन की जनता की स्थिति को देखिए कि उन्हें किस पीड़ा का सामना है। उनके विवाह समारोह, शोक सभा में बदलते जा रहे हैं या अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और सीरिया की जनता की स्थिति भी इसी वजह से है क्योंकि मोमिनों के बीच एकता व मेलजोल को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है और पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं पर अमल नहीं हो रहा है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि अगर पवित्र क़ुरआन को पढ़ें और उस पर अमल हो तो इस्लामी जगत का कल आज से बेहतर होगा और अमरीका देशों व इस्लामी जगत को धमकी देने की स्थिति में नहीं होगा।
सीरिया पर इस्राईली हमले पूरे क्षेत्र में संकट खड़ा कर देंगेः हसन नसरुल्लाह
लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महासचिव ने मध्यपूर्व के हालात को संवेदनशील बताते हुए कहा है कि सीरिया पर ज़ायोनी शासन के हमले न केवल इस देश के लिए गंभीर ख़तरा हैं बल्कि इससे पूरे क्षेत्र में संकट फैल सकता है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने सोमवार की रात बैरूत के ज़ाहिया क्षेत्र में एक चुनावी सभा में वीडियो काॅन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से भाषण करते हुए क्षेत्र के हालात पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हालात एेसे हैं कि दुश्मन, विशेष कर अमरीका व ज़ायोनी शासन विभिन्न हथकंडों और चालों से क्षेत्रीय देशों के बीच तनाव फैलाने और युद्ध की आग भड़काने की कोशिश में हैं। उन्होंने हालिया हफ़्तों में सीरिया पर ज़ायोनी शासन के हवाई हमले और तोपख़ाने की गोलाबारी जारी रहने की ओर इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनी, अमरीका के समर्थन से सीरिया संकट को क्षेत्र के अन्य देशों तक फैलाना चाहते हैं और इन परिस्थितियों में क्षेत्रीय देशों के अधिकारियों की होशियारी बहुत ज़रूरी है।
लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महासचिव ने इराक़ व सीरिया में दाइश जैसे आतंकी गुटों की निरंतर पराजय को इन आतंकी गुटों के समर्थकों विशेष कर अमरीका व इस्राईल की बौखलाहट का कारण बताया और कहा कि इसी लिए दुश्मन भड़काऊ कार्यवाहियों के माध्यम से अन्य देशों को भी किसी तरह संकट और अशांति में ग्रस्त करना चाहते हैं। सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि अगर हिज़्बुल्लाह के जियाले और लेबनान की सेना के जवान अपने देश और सीरिया के सीमावर्ती इलाक़ों में दाइश से नहीं लड़ते तो इस समय लेबनान में संसदीय चुनावों के आयोजन की संभावना ही नहीं होती। ज्ञात रहे कि लेबनान में 6 मई को संसदीय चुनाव आयोजित होंगे।
सेना की शक्ति में वृद्धि की जाएः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के प्रभावी और मूल्यवान अनुभवों की सराहना की और ताज़ा दम जवानों के प्रकाशमयी भविष्य की आशा व्यक्त करते हुए सैन्य क्षमताओं में निरंतर वृद्धि किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान की सशस्त्र सेना के सुप्रिम कमान्डर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार को थल सेना के वरिष्ठ कमान्डरों और सैन्य अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि सैन्य विभाग में विकास और प्रगति का क्रम जारी रहना चाहिए ताकि हमारी कल की सेना, आज की सेना से अधिक बेहतर, मज़बूत और प्रभावी सिद्ध हो सके।
सशस्त्र सैन्य दिवस के अवसर पर होने वाली इस मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने बल दिया कि मैं प्यारे जवानों से इस बात की इच्छा करता हूं कि वह सैन्य विभाग में विकास और प्रगति तथा सैन्य क्षमताओं को अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए पूरी मानवीय क्षमताओं को प्रयोग करना चाहिए।
सशस्त्र सेना के सुप्रिम कमान्डर ने ईरान के आर्मी चीफ़ मेजर जनरल अब्दुर्रहमीम मूसवी के क्रांति और एकता पर आधारित दृष्टिकोण की सराहना करते हुए कहा कि मेजर जनरल मूसवी ने कृपा और सैन्य विभाग से अपनी निर्भरता के साथ जिसकी रक्षा और जिस पर बल दिया जाना चाहिए, सशस्त्र सेना में एकता के बारे में बहुत अच्छी अच्छी बातें कीं और उनका यह बयान कि प्रशासनिक मामले में बुद्धिमत्ता और आंतरिक पवित्र का दर्पण है जो जनता में सेना को और अधिक लोकप्रिय बनाता है।
पूरा इस्राईल मिज़ाइलों के निशाने परः सैयद नसरुल्लाह
हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा है कि इस्लामी प्रतिरोध आंदोलनों के पास ऐसे मिज़ाइल मौजूद हैं जो इस्राईल के भीतर हर स्थान को लक्ष्य बनाने में सक्षम हैं।
प्राप्त रिपोर्ट अनुसार हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने लेबनान की राजधानी बेरूत के दक्षिण में एक चुनावी जनसभा को अपने वीडियो कांफ्रेंसिंग के द्वारा संबोधित करते हुए कहा कि हिज़्बुल्लाह किसी भी रूप में प्रतिरोध के रास्ते से पीछे नहीं हटेगा। उन्होंने कहा कि प्रतिरोध और दृढ़ता पर कोई समझौता नहीं हो सकता इसलिए कि बड़े संघर्ष और बलिदान के बाद हमने उसे प्राप्त किया है और यह हमारे सम्मान और गरिमा का कारण हैं।
हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने लेबनान के सूर शहर को प्रतिरोध का शहर बताते हुए कहा कि सूर शहर के नागरिकों ने वर्ष 1980 में अतिक्रमणकारी ज़ायोनियों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध आरंभ किया था और शहादत प्रेमी कार्यवाहियों द्वारा इस्राईल की शक्ति के भ्रम को तोड़ दिया था।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने लेबनानी जनता से आग्रह किया कि वह 6 मई 2018 को लेबनान के संसदीय चुनाव में भरपूर भाग लें और लेबनान को सुरक्षा प्रदान करने वाले, आशा और वफ़ादारी के गठबंधन के प्रतिनिधियों को वोट दें।
इमाम ज़ैनुल आबगदीन अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का जन्म पांच शाबान सन 38 हिजरी में हुआ था।
उन्होंने पवित्र नगर मदीना में आंखें खोली थीं। उन्के पिता का नाम इमाम हुसैन और माता का नाम शहरबानो था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन या इमाम सज्जाद का नाम अली था किंतु अधिक उपासना और तपस्या के कारण उन्हें ज़ैनुल आबेदीन के नाम से ख्याति मिली जिसका अर्थ होता है उपासना की शोभा। उनके बारे में कहा जाता था कि जब वे ईश्वर की उपासना में लीन हो जाते थे तो उनका सारा ध्यान ईश्वर की ही ओर होता था। कहते हैं कि जिस समय नमाज़ पढ़ने के उद्देश्य से इमाम सज्जाद वुज़ू के लिए जाते थे तो उनके चेहरे का रंग पीला पड़ जाता था। जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि क्या तुमको नहीं पता है कि वुज़ू करके इन्सान, किसकी सेवा में उपस्थित होने जाता है।
अपने पिता इमाम सज्जाद के बारे में इमाम मुहम्मद बाक़र कहते हैं कि मेरे पिता जब भी ईश्वर की किसी विभूति का उल्लेख करते थे तो पहले ईश्वर के सामने नतमस्तक होते थे। आपके तेजस्वी मुख पर सजदे का निशान साफ दिखाई देता था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन के बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का कहना है कि उनके काल में आसमान के नीचे उन जैसा कोई था ही नहीं। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी भी हराम नहीं खाया। इमाम सज्जाद ने हराम की तरफ़ कोई क़दम नहीं उठाया। उन्होंने जो कुछ भी किया वह ईश्वर की प्रशंसा के लिए किया।
बचपन में ही इमाम ज़ैनुल आबेदीन की माता का स्वर्गवास हो गया था। उन्होंने अपने जीवन के दो वर्षा अपने दादा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सत्ताकाल का समय देखा था। वे अपने चाचा इमाम हसन से बहुत प्यार करते थे। वे अपने चाचा इमाम हसन की सेवा में उपस्थित होकर आध्यात्म की शिक्षा लेते थे। जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन की आयु 12 वर्ष की थी उस समय उनके पिता इमाम हुसैन की इमामत का काल आरंभ हुआ था। सन 61 हिजरी क़मरी से इमाम सज्जाद की इमामत या ईश्वरीय मार्गदर्शन का काल आरंभ हुआ।
कहते हैं कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन, अपने दादा हज़रत अली अलैहिस्सलाम से बहुत मिलते-जुलते थे। वे अपने दादा की ही भांति रात के समय अधिक से अधिक उपासना करते और क़ुरआन पढ़ा करते थे। उनके घर पर निर्धनों को खाना खिलाने के लिए दस्तरख़ान बिछता था जिसपर भूखे आकर खाना खाया करते थे। इसके अतिरिक्त वे छिपकर भी लोगों की सहायता करते थे। उनके समय में 300 से अधिक एसे ग़रीब परिवार थे जिनकी सहायता इमाम सज्जाद छिपकर किया करते थे और उन लोगों को यह पता नहीं था कि उन्हें खाने का सामान कौन देता है। वे मश्क में पानी भरकर रात के अंधरे में लोगों के घर पानी पहुंचाते थे। स्वयं वे बहुत ही सादा खाना खाते थे।
ईश्वरीय संदेश को लोगों तक पहुंचाने का दायित्व, प्रत्येक ईश्वरीय दूत का है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन के कांधे पर वही दायित्व था जिसका निर्वाह हज़रत अली ने किया था। यह एक वास्तविकता है कि ईश्वरीय दूतों या ईश्वरीय प्रतिनिधियों की ज़िम्मेदारियां एक ही हैं किंतु काल के हिसाब से इनमें परिवर्तन होता रहता है। यही वजह है कि परिस्थितियों के कारण मूल सिद्धात में परिवर्तन नहीं किया जा सकता हां, शैलियों या तरीक़ों को बदला जा सकता है। सभी ईश्वरीय दूतों का यह दायित्व रहा है कि वे अत्याचार और पथभ्रष्टता के विरुद्ध आवाज़ उठाएं। इसी दायित्व का निर्वाह इमाम हसन और इमाम हुसैन ने भी किया। इतिहास बताता है कि इमाम हसन और इमाम हुसैन ने शैलियां अलग अलग अपनाई थीं किंतु दोनों का लक्ष्य एक ही था।
इतिहास बताता है कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के काल में इस बात का मौक़ा नहीं था कि लोगों को एकत्रित करके कुछ किया जाए। उमवी शासकों ने घुटन का ऐसा वातावरण बना दिया था जिसके कारण लोगों में भय व्याप्त हो चुका था। यह ऐसा ज़माना था कि जब न तो इमाम मुहम्मद बाक़र और इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल जैसा वातावरण था जहां लोगों को सरलता से ज्ञान दिया जा सके और न ही इमाम अली अलैहिस्सलाम के ज़माने जैसा काल था जब दुश्मन के विरुद्ध सेना बनाकर उसका मुक़ाबला किया जा सकता था। यही कारण है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने एक तीसरा रास्ता निकाला। वे जानते थे कि समाज में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। अनैतिक बातों को प्रचलित किया जा रहा है। शासन के विरुद्ध राजनीतिक दृष्टि से किसी भी प्रकार का काम करने का अवसर नहीं था।
इन सभी बातों के दृष्टिगत इमाम ने दुआओं के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन आरंभ किया। उन्होंने दुआओं के माध्यम से लोगों को संदेश देने का काम आरंभ किया। संघर्ष और प्रचार की इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की एक शैली दुआ थी। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने दुआ के परिप्रेक्ष्य में बहुत से इस्लामी ज्ञानों व विषयों को बयान किया और उन सबको सहीफये सज्जादिया नाम की किताब में एकत्रित किया गया है। इस किताब को अहले बैत की इंजील और आले मोहम्मद की तौरात कहा जाता है। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम अपनी दुआओं के माध्यम से लोगों के मन में इस्लामी जीवन शैली के कारणों को उत्पन्न करते हैं। इमाम ने दुआ को महान व सर्वसमर्थ ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का सबसे उत्तम साधन बताया वह भी उस काल में जब लोग दुनिया के पीछे भाग रहे थे। रोचक बात यह है कि इमाम जगह-जगह पर इमामत और अहलेबैत की सत्यता को बयान करते थे।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन की दुआएं उनके काल की घटनाओं की व्याख्या करती हैं। सहीफ़ए सज्जादिया की दुआओं ने बड़े-बड़े धर्मगुरूओं और साहित्यकारों को बहुत प्रभावित किया है। इमाम की दुआएं आने वाले समय में लोगों के लिए पाठ हैं। वास्तव में इमाम सज्जाद ने दुआओं के माध्यम से लोगों का प्रशिक्षण किया है। एक अमरीकी विद्धान और सहीफ़ए सज्जादिया के अंग्रेज़ी भाषा के अनुवादक "विलयम चिटिक" कहते हैं कि यह किताब विभिन्न चरणों में लोगों को ईश्वर के बारे में बताती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम या इमाम सज्जाद ने दुआओं का चयन करके न केवल अपने काल के लोगों को इस्लाम की शिक्षा दी बल्कि अपने बाद के लोगों के लिए भी ऐसा ख़ज़ाना छोड़ा जो हमेशा मानवता का मार्गदर्शन करता रहेगा।
चौथे शुक्रवार प्रदर्शन मुक़ाबले के लिए इज़राइल तैयार है
अंतर्राष्ट्रीय कुरआन समाचार एजेंसी ने 48 न्यूज साइट के मुताबिक बताया कि लीस्तीनी आज शुक्रवार को लगातार चौथे सप्ताह "शोहदा और असीर" नामी रैली आयोजित करेंग़े।
जबकि इजरायल के अधिकारी संघर्ष कर रहे हैं कि डर और खौफ पैदा कर के शुक्रवार के प्रदर्शनों में फिलीस्तीनियों को भाग़ लेने से रोका जाए हेलीकॉप्टर के माध्यम से शिविरों और उन इलाकों में आरोप फैल रहे हैं और इसमें भाग लेने वाले को चेतावनी दे रहे हैं।
दूसरी तरफ नेशनल एसोसिएशन ऑफ मिलिटरी फोर्स फॉर द रिटर्न एंड द ब्रेकिंग ऑफ द घेराबंदी ने पूरे फिलीस्तीनी लोगों से आज के प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए आग्रह किया है।
उल्लेखनीय है कि आज तक 35 फिलिस्तीनी इस विरोध में शहीद हो चुके हैं और 4,000 से अधिक लोग घायल है, यह अनुमान लगाया जाता है कि शहीदों और घायल लोगों की संख्या आज भी बढ़ेगी।