رضوی

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भारत के इतिहास में संभवत: पहली बार ऐसा हुआ कि किसी प्रसिद्ध संगठन के आह्वान के बिना ही मंगलवार को देशव्यापी बंद होने की सनसनी फैल गयी।

इस भारत बंद का सबसे ज्यादा असर बिहार में देखा गया जहां कई जगह दंगे, आगजनी, सड़क जाम और सेवा बाधित की गयी जबकि देश के दूसरे हिस्सों में इस बंद का ज्यादा असर नहीं दिखा। बिहार और राजस्थान से हिंसक घटनाएं सामने आ रही हैं। दंगाइयों द्वारा ट्रेन रोके जाने और गोलीबारी की सूचना है। बिहार में कई पुलिसकर्मियों के घायल होने की खबर हैं जबकि राजस्थान में बंद के चलते दुकानें कराई गई हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार को आरक्षण के विरोध में सवर्णों द्वारा बुलाए गए कथित तौर पर ‘भारत बंद’ के चलते सभी राज्यों से सतर्क रहने को कहा है। केंद्र ने सीधे तौर पर कहा है कि इस दौरान अपने क्षेत्र में होने वाली हिंसा के लिए ज़िलाधिकारी और पुलिस अधिकारी व्यक्तिगत रूप से ज़िम्मेदार होंगे। सरकार ने सरकारी कर्मचारिओं को कथित तौर पर बुलाए गए बंद में हिस्सा ना लेने की सलाह दी गई है।

पाकिस्तान की पुलिस ने उस अमरीकी कूटनयिक का ड्राइविंग लाइसेंस रद्द कर दिया है जो ट्रैफ़िक क़ानून का उल्लंघन करते हुए एक पाकिस्तान युवा की मोटर साइकिल को टक्कर मार कर उसकी मौत का कारण बना था।

पाकिस्तानी पुलिस का कहना है कि ट्रैफिर क़ानून का उल्लंघन करने वाला यह अमरीकी कूटनयिक कि जिसने अपनी गाड़ी से टक्कर मारकर मोटर साइकिल पर सवार एक पाकिस्तान युवक की हत्या कर दी और दूसरे को बुरी तरह घायल कर दिया अब पाकिस्तान में ड्राइविंग नहीं कर सकेगा। 

इस अमरीकी कूटनयिक का नाम सरकार की वाॅच लिस्ट में भी शामिल कर दिया गया है। उक्त अमरीकी कूटनयचिक की गाड़ी से हताहत होने वाले पाकिस्तानी युवा के परिजनों ने अमरीकी सैन्य अताशी के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज कराके उसके विरुद्ध कार्यवाही की मांग की है।

सूचना के अनुसार अमरीकी मिलेट्री अताशी जोज़ेफ़ एमैनुलए ने सोमवार को विदेश भागने का भी प्रयास किया जिसे पाकिस्तानी पुलिस ने विफल बना दिया।

ज्ञात रहे कि पाकिस्तान में अमरीकी कूटनयिक की गाड़ी से पाकिस्तानी युवा की मौत की घटना पर इस्लामाबाद में अमरीकी राजदूत को विदेशमंत्रालय में तलब किया जा चुका है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने रविवार को ईरान के सशस्त्र बल के कमान्डरों के एक गुट से मुलाक़ात में शक्ति, सुरक्षा, सम्मान और निर्धारत समय में पर्याप्त क्षमता की प्राप्ति को सशस्त्र बल के मुख्य लक्ष्य गिनवाए।

उन्होंने इस्लामी व्यवस्था पर दुश्मन के अभूतपूर्व हमले का कारण इस व्यवस्था का दिन प्रतिदिन शक्तिशाली होना बताया क्योंकि दुश्मन इस बढ़ती ताक़त से ख़तरा महसूस कर रहा है।

इस्लामी गणतंत्र क्षेत्र में तनाव व सैन्य टकराव नहीं चाहता लेकिन उसने दुश्मनों व अतिक्रमणकारियों को यह दर्शा दिया है कि जब भी जहां भी ज़रूरी होगा वह सुरक्षा को नुक़सान पहुंचाने वाले तत्वों का मुक़ाबला करेगा और अपनी रक्षा व निवारक शक्ति बढ़ाने के लिए उसे किसी की इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।

इस्लामी गणतंत्र ख़तरों के मुक़ाबले में निवारक शक्ति को बनाए रखने के पीछे दो उद्देश्य रखता है।

पहला उद्देश्यः ज़रूरी क्षेत्रों में रक्षा उद्योग का स्वदेशी होना ख़ास तौर पर मीज़ाईल रक्षा के क्षेत्र में, क्योंकि जब निवारक शक्ति की बात होती है तो यह रणनैतिक हैसियत रखती है।

दूसरा उद्देश्यः इस दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए विशेषज्ञ बल को ट्रेनिंग देने, ट्रेनिंग के लिए आधुनिक तंत्र को इस्तेमाल करने और ज़रूरी प्रोत्साहन देने पर आधारित है।  

 

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध संगठन ने कहा है कि ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के ख़िलाफ़ अपने अपराधों पर पर्दा डालने के लिए ग़ज़्ज़ा पट्टी पर हमला किया है।

हमास के प्रवक्ता फ़ौज़ी बरहूम ने अपने एक बयान में कहा कि ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमले, वापसी के अधिकार की रैली से ज़ायोनी शासन में पैदा होने वाली बौखलाहट को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि यह रैली अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन की ताक़त को तोड़ने और उसके अपराधों को संसार के सामने लाने में सफल रही है और इसी तरह यह फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के प्रतिरोध के साधनों में विस्तार की भी सूचक है। ज्ञात रहे कि ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने सोमवार को दो बार ग़ज़्ज़ा पट्टी के उत्तर में हमास के ठिकानों पर हमले किए।

 

इस बीच पश्चिमी तट के उत्तर में स्थित नाबलुस में फ़िलिस्तीनी बच्चों व बंदियों के समर्थन की राष्ट्रीय समिति ने सोमवार को जुलूस निकाल कर ज़ायोनी शासन की जेलों में बंद फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के समर्थन की घोषणा की। जुलूस में शामिल लोगों ने ज़ायोनी शासन की जेलों में बंद सभी फ़िलिस्तीनी बच्चों की तुरंत रिहाई की मांग की।

 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि ईरान की बढ़ती हुयी ताक़त से दुश्मन डरा हुआ है।

रविवार को ईरान के सशस्त्र बल के कमान्डरों के एक गुट ने इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई से तेहरान में मुलाक़ात की। इस अवसर पर उन्होंने रजब, शाबान और रमज़ान के महीनों की पवित्रता के मद्देनज़र इन महीनों को ईश्वर के नेक बंदों के लिए ईद बताया और इन महीनों में निहित आध्यात्म से ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठाने की अनुशंसा की। 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने मौजूदा दौर को इस्लामी गणतंत्र के सम्मान का दौर बताते हुए कहा कि इस्लामी व्यवस्था पर अभूतपूर्व स्तर पर हमले का कारण इस व्यवस्था की दिन प्रतिदिन बढ़ती ताक़त है क्योंकि दुश्मन इस बढ़ती ताक़त से डर रहा है, इसलिए उसके हमले बढ़ गए हैं।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि दुश्मनों की साज़िशों के बावजूद, इस्लामी व्यवस्था दिन प्रतिदिन ताक़तवर होती जाएगी। 

इस अवसर पर ईरानी सशस्त्र बल के चीफ़ आफ़ स्टाफ़ मोहम्मद बाक़ेरी ने पिछले साल के दौरान सशस्त्र बल गतिविधियों व उपलब्धियों पर आधारित एक रिपोर्ट इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता को पेश की और नए साल में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए ज़्यादा से ज़्यादा कोशिश करने का वचन दिया। 

 

हमास के पोलिस ब्यूरो सदस्य इस्माईल हनीया (बाएं) के पिछले तेहरान दौरे पर इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की है (फ़ाइल फ़ोटो)

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा है कि फ़िलिस्तीन की मुक्ति का सिर्फ़ एक ही रास्ता है और वह प्रतिरोध है।

उन्होंने फ़िलिस्तीन और उसके संघर्षकर्ताओं के संपूर्ण समर्थन की ईरान की सैद्धांतिक नीति पर बल देते हुए कहा कि फ़िलिस्तीन के मुद्दे का हल इस्लामी जगत में प्रतिरोधी धड़े को मज़बूत करना और अतिग्रहणकारी शासन और उसके समर्थकों के ख़िलाफ़ संघर्ष को तेज़ करना है। 

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने हमास के पोलित ब्यूरो सदस्य इस्माईल हनीया के कुछ दिन पहले आए ख़त के जवाब में बुधवार को बल दिया कि धोखेबाज़, झूठे व अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन से बातचीत की दिशा में बढ़ना इतनी बड़ी ग़लती है जिसकी माफ़ी नहीं है क्योंकि

ऐसा करना  फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की सफलता को पीछे ढकेलना और इसका नुक़सान सिर्फ़ पीड़ित फ़िलिस्तीनी राष्ट्र को उठाना पड़ेगा। 

उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बात में शक नहीं होना चाहिए कि फ़िलिस्तीन के पीड़ित राष्ट्र की मुक्ति का सिर्फ़ एक ही रास्ता है और वह प्रतिरोध व संघर्ष का रास्ता है। 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्माईल हनीया के ख़त में महान इस्लामी जगत के सामने चुनौतियों के संबंध में जिन बिन्दुओं का उल्लेख है उसकी हम पुष्टि करते हैं और हम आप और आप जैसों के समर्थन को अपना कर्तव्य समझते हैं। इस्माईल हनीया ने अपने ख़त में क्षेत्र के कुछ अरब देशों की ग़द्दारी और उनकी बड़े शैतान अमरीका के अनुसरण में ख़तरनाक साज़िश तथा दुश्मन के अपराध व अत्याचार के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीनियों के संघर्ष का उल्लेख था।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने बल दिया कि राष्ट्रों और ख़ास तौर पर इस्लामी व अरब देशों में आत्म सम्मान वाले जवानों और फ़िलिस्तीन के विषय पर ख़ुद को उत्तरदायी समझने वाली सरकारों को चाहिए कि वह वीरता व युक्ति से भरे संघर्ष से दुश्मन को पतन की ओर बढ़ने पर मजबूर कर दें। 

ग़ौरतलब है कि हमास के पोलित ब्यूरो के सदस्य इस्माईल हनीया ने कुछ दिन पहले आयतुल्लाहिल उज़्म़ा ख़ामेनई के नाम ख़त में बैतुल मुक़द्दस और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के ख़िलाफ़ साम्राज्य की साज़िश के विभिन्न आयामों का उल्लेख किया और हमास के प्रति ईरानी राष्ट्र के समर्थन व वरिष्ठ नेता के मार्गदर्शन की सराहना की थी। इस ख़त में हनीया ने उल्लेख किया कि साम्राज्यवादी शक्तियां प्रतिरोध के क़िले ग़ज़्ज़ा को गिराना और अतिग्रहणकारी शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष को ख़त्म करना चाहती हैं।  

 

 

भारत की अंतर्राष्ट्रीय पोर्ट कंपनी ने कहा है कि दक्षिण पूर्वी ईरान की चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए पूंजीनिवेश का सिलसिला जा रहेगा।

कंपनी ने शुक्रवार को घोषणा की कि उसने बंदरगाह के पहले फ़ेज़ को विकसित करने के लिए 14 क्रेनों का बंदोबस्त शुरू कर दिया है। यह क्रेनें फ़िनलैंड की एक कंपनी बना रही है जिस पर 18 मिलियन डालर की लागत आएगी।

समझौते के आधार पर इस कंपनी को बंदरगाह के शहीद बहिश्ती स्केलेट का संचालन दस साल के लिए दिया जाएगा जबकि यह कंपनी परियोजना पर साढ़े आठ करोड़ डालर से अधिक का निवेश कर रही है।

चाबहार बंदरगाह की परियोजना को ईरान, भारत और अफ़ग़ानिस्तान के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। तीनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने मई 2016 में ट्रांज़िट समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम आयतुल्लाह सैयद अहमद ख़ातेमी ने कहा कि ज़ायोनी शासन को मान्यता देना सऊदी अरब की सरकार के लिए बहुत बड़ा कलंक का टीका है।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम आयतुल्लाह सैयद अहमद ख़ातेमी ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि अतीत में ग़ज़्ज़ और लेबनान पर ज़ायोनी शासन के हमले सऊदी अरब के पैसे और प्रोत्साहन से हुए थे। उन्होंने कहा कि किसी सक्षम इस्लामी न्यायालय सऊदी अरब के ख़िलाफ़ मुक़द्दमा चलाया जाना चाहिए और तकफ़ीरी आतंकी संगठन दाइश, का समर्थन करने और बेगुनाहों का ख़ून बहाने के मामले में उसे दंडित किया जाना चाहिए।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि सऊदी अरब ज़ायोनी शासन के अपराधों में पूरी तरह शामिल है, इराक़ और लेबनान के चुनावों में हस्तक्षेप के लिए सऊदी सरकार ने करोड़ों डालर ख़र्च किए लेकिन आज देखने में यही आ रहा है कि सऊदी सरकार पतन की ढलान पर आगे बढ़ रही है।

आयतुल्लाह सैयद अहमद ख़ातेमी ने ज़ायोनी शासन के अपराधों तथा उसके हाथों उन फ़िलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों के जनसंहार का हवाला दिया जो अपने छिने हुए इलाक़ों में वापस जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे, उन्होंने कहा कि ज़ायोनी शासन की प्रवृत्ति की ख़ूंख़ार है और ज़ायोनियों को शक्ति और प्रतिरोध के अलावा कोई भाषा समझ में नहीं आती।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने ज़ायोनी शासन से फ़िलिस्तीनियों की अतीत की वार्ताओं का हवाला देते हुए कहा कि इन वार्ताओं से फ़िलिस्तीनियों को निर्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला है अतः अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन से वार्ता की बात करना स्ट्रैटेजिक ग़लती ही नहीं एक अपराध है।

पंद्रह रजब सन 63 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार की एक महान महिला ने इस नश्वर संसार को विदा कहा।

यह महिला पैग़म्बरे इस्लाम की नातिन हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा थीं जिन्होंने इस्लामी इतिहस के उस संवेदनशील काल में एक अमिट भूमिका निभाई। हज़रत ज़ैनब का नाम कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के साथ हमेशा के लिए जुड़ा हुआ है। उन्होंने अपनी माता हज़रत फ़ातेमा और पिता हज़रत अली से अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने का पाठ सीखा था और कर्बला की घटना के बाद उन्होंने अपने भाषणों से यज़ीद के अत्याचारों को स्पष्द कर दिया और सत्य के मार्ग में किसी भी प्रकार के त्याग व बलिदान से नहीं चूकीं।

जब अली और फ़ातेमा की पहली बेटी ने इस संसार में आंखें खोलीं तो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम यात्रा पर थे। माता-पिता ने प्रतीक्षा की कि पैग़म्बर वापस आ जाएं और वही उनकी बेटी का नाम रखें जिस तरह से उन्होंने ईश्वर की इच्छा से हसन और हुसैन का नाम रखा था। जब पैग़म्बरे इस्लाम यात्रा से वापस लौटे तो अपनी प्राण प्रिय सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के घर गए। हज़रत अली ने अपनी बेटी को पैग़म्बर की गोद में दे दिया। उन्होंने बच्ची को चूमा और उसका नाम ज़ैनब रखा जिसका अर्थ होता है बाप का श्रृंगार। इसके बाद उन्होंने अपना गाल, ज़ैनब के गाल पर रखा और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। उनसे पूछा गया कि हे पैग़म्बर! आपके रोने का कारण क्या है? उन्होंने कहाः ये बच्ची मुसीबतों में मेरे हुसैन के साथ होगी।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपना जीवन, उस घराने में आरंभ किया जो कल्याण व परिपूर्णता का केंद्र था। पैग़म्बरे इस्लाम का प्रेम और उनका अंतरज्ञान हर दिन उनके अस्तित्व को नई शक्ति देता था। उन्होंने धाराप्रवाह भाषण और शब्दालंकार अपने पिता से, पवित्र अपनी माता से, धैर्य व प्रतिरोध अपने भाइयों हसन और हुसैन से सीखा था। वे संयम और ईश्वर से प्रसन्नता के उच्च स्थान पर आसीन थीं। इस तरह के वातावरण में नैतिक गुणों और शिष्टाचारिक विशेषताओं से संपन्न होने का तथा ईश्वरीय ज्ञानों की प्राप्ति का उनके पास भरपूर अवसर था। उनके भतीजे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने उनसे कहा था। हे फुफी! ईश्वर की कृपा से आप बिना गुरू की ज्ञानी हैं, आपके पास जो समझ-बूझ और ज्ञान है वह किसी से प्राप्त किया हुआ नहीं बल्कि आपका अपना है।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा क़ुरआन की व्याख्याकर्ता थीं। जिन दिनों हज़रत अली अलैहिस्सलाम कूफ़े में इस्लामी शासक के रूप में मौजूद थे उस दौरान हज़रत ज़ैनब अपने घर में महिलाओं के समक्ष क़ुरआने मजीद की व्याख्या करती थीं। उनके अथाह ज्ञान का एक अन्य प्रमाण उनके वे भाषण हैं जो उन्होंने कूफ़े और शाम में दिए थे और अनेक इस्लामी विद्वानों ने उन भाषणों का अनुवाद और व्याख्या की है। इन भाषणों से इस्लामी ज्ञानों विशेष कर क़ुरआने मजीद के संबंध में उनकी दक्षता का पता चलता है। उन्होंने अपने इन भाषणों में जो आयतें प्रयोग की हैं वे विभिन्न क्षेत्रों में अनेक शंकाओं को दूर करती हैं।

जब हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की आयु विवाह के योग्य हुई तो उनकी शादी उनके चाचा जाफ़र के बेटे अब्दुल्लाह से कर दी गई। अब्दुल्लाह काफ़ी धनवान थे लेकिन हज़रत ज़ैनब ने, जो उच्च व परिपूर्ण विचारों की स्वामी थीं, अपने आपको भौतिक जीवन की चकाचौंध में सीमित नहीं किया। उन्होंने सीखा था कि कभी भी और किसी भी स्थिति में सच्चाई को अत्याचारियों के हितों की भेंट नहीं चढ़ने देना चाहिए। उन्होंने शादी के समय अब्दुल्लाह के सामने यह शर्त रखी थी कि वे अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का साथ कभी नहीं छोड़ेंगी और अब्दुल्लाह ने यह शर्त मान ली थी। यही कारण था कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जब मदीना नगर से कर्बला के लिए निकले तो हज़रत ज़ैनब भी अपने भाई के साथ हो गईं और कर्बला की अमर घटना में वे अत्याचारी और पापी उमवी शासक यज़ीद के मुक़ाबले में उठ खड़ी हुईं।

नमाज़, एक ऐसी महान व बेजोड़ शक्ति के साथ गहरा संबंध है जिसके शासन ने पूरे संसार को अपने घेरे में ले रखा है। पूरी सृष्टि उसी की युक्ति से अस्तित्व में आई है। इंसान ऐसे ईश्वर के सामने नतमस्तक हो कर अपने अस्तित्व के भीतर प्रेम व अध्यात्म की आत्मा को मज़बूत करता है। सही अर्थ में नमाज़ पढ़ने वाला, जो ईश्वर का गुणगान करता है, महान आत्म सम्मान प्राप्त कर लेता है और ईश्वर के अलावा किसी के भी सामने नहीं झुकता। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के आध्यात्मिक गुणों में ईश्वर से उनके संपर्क, दुआ, प्रार्थना और नमाज़ को विशेष स्थान प्राप्त है। उपासना के मामले में वे अपनी माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की तरह थीं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मेरी फुफी ज़ैनब, कूफ़े से शाम के रास्ते में भी अनिवार्य नमाज़ों के साथ ही नाफ़ेला नमाज़ें भी पूरी तरह अदा करती थीं और कई स्थानों पर वे बैठ कर नमाज़ पढ़ती थीं। कूफ़े से शाम का रास्ता वह था जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को बंदी बना कर ले जाया जा रहा था और उन पर तरह तरह की मुसीबतें ढाई जा रही थीं।

हम इतिहास में जहां भी देखें, आशूरा का नाम जिससे भी सुनें और उसे जिस कोण से भी देखें, उस महान घटना के नेता इमाम हुसैन के साथ हज़रत ज़ैनब का नाम दिखाई देगा जो इस घटना के हर क्षण में उपस्थित रहीं और पलक झपकने जितने समय के लिए भी कर्बला की घटना से दूर नहीं होतीं। आशूरा इमाम हुसैन के नाम से जीवित और हज़रत ज़ैनब की सहायता से इतिहास में अमर है। हज़रत ज़ैनब कर्बला की घटना में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ भरपूर तरीक़े से उपस्थित थीं और उनकी शहादत के बाद उन्होंने उनके आंदोलन के संदेश को संसार तक पहुंचाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि बहादुर केवल वह नहीं है जो रणक्षेत्र में जा कर लड़े और बिल्कुल भयभीत न हो। बहादुर उसे कहते हैं जो पहाड़ की तरह डटा रहे और घटनाएं उसके ईमान को कमज़ोर न होने दें। कर्बला की घटना में हज़रत ज़ैनब का ईमान न केवल यह कि कमज़ोर नहीं हुआ बल्कि ईश्वर पर भरोसे से हर दिन उनके ईमान में वृद्धि ही होती गई। उनका साहस कर्बला की घटना के बाद अधिक खुल कर सामने आया।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के परिजनों को बंदी बना कर कर्बला से कूफ़े लाया गया। रास्ते में तरह तरह के दुख और मुसीबतें उठा कर यह कारवां ऐसी स्थिति में कूफ़ा पहुंचा कि पूरे शहर को यज़ीद की जीत पर सजाया गया था। जब कारवां के लोगों विशेष कर हज़रत ज़ैनब ने यह दृश्य देखा तो उनके दुख में वृद्धि हो गई क्योंकि कूफ़ा उन लोगों के लिए परिचित शहर था। कभी वे एक सम्मानीय महिला के रूप में अपने पिता और परिजनों के साथ पूरे आदर के साथ इस शहर में आई थीं। इस शहर की महिलाओं ने उनसे ज्ञान अर्जित किया था।

दुखों के पहाड़ के बावजूद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपने आपको टूटने नहीं दिया। वे पूरी दूरदर्दिशता से परिस्थितियों पर नज़र रखे हुए थीं और समस्त दुखों व कठिनाइयों के बावजूद शहीदों का संदेश लोगों तक पहुंचाना और यज़ीद की अत्याचारी सरकार की सच्चाई सामने लाना चाहती थीं। इसके अलावा उन्होंने उन अत्याचारों का वर्णन करके जो यज़ीद के सैनिकों ने पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों पर किए थे, लोगों का अत्याचारी शासक के विरुद्ध उठ खड़े होने के लिए आह्वान किया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने कूफ़े के लोगों से इस प्रकार दो टूक बात की कि उनकी आंखों से आंसू जारी हो गए। बनी हाशिम की इस साहसी महिला ने दिखा दिया कि यज़ीद और उसके परिवार से अधिक भ्रष्ट कोई नहीं है। उनके भाषण सुन कर कूफ़े के लोग रोने लगे कि वे क्यों सच्चाई से अवगत नहीं थे और उन्होंने क्यों इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सहायता नहीं की।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा सत्य की रक्षा और ईश्वर की प्रसन्नता के लिए दुख सहन करने में मुसलमान महिलाओं की सबसे अच्छी आदर्श हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई हज़रत ज़ैनब को इतिहास का सर्वोत्तम आदर्श बताते हुए कहते हैं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा इतिहास का वह सर्वोत्तम आदर्श हैं जो इतिहास की एक सबसे अहम घटना में एक महिला की उपस्थिति की महानता को दर्शाता है। यह जो कहा जाता है कि आशूरा में और कर्बला की घटना में तलवार पर ख़ून विजयी हुआ, और वास्तव में भी ऐसा ही है, तो इस विजय की सूत्रधार हज़रत ज़ैनब हैं वरना ख़ून तो कर्बला में ही समाप्त हो गया था। यह घटना दर्शाती है कि महिला, इतिहास में हाशिये पर नहीं है बल्कि वह इतिहास की अहम घटनाओं के केंद्र में है। क़ुरआने मजीद ने भी अनेक स्थानों पर इस बात पर बल दिया है लेकिन यह प्राचीन समुदायों की बात नहीं बल्कि निकट के इतिहास से संबंधित है। यह एक जीवित घटना है जिसमें इंसान हज़रत ज़ैनब को देख सकता है कि वे एक बेजोड़ महानता के साथ मैदान में आती हैं और ऐसा कारनामा करती हैं कि दुश्मन जो विदित रूप से सैन्य रणक्षेत्र में विजयी हो गया था और उसने अपने विरोधियों का जनसंहार कर दिया था, अपने ही सत्ता केंद्र और अपने ही महल में अपमानित हो गया। हज़रत ज़ैनब ने उसके माथे पर हमेशा के लिए धिक्कार का निशान लगा दिया और उसकी विजय को पराजय में बदल दिया। यह है हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का कारनामा। उन्होंने दिखा दिया कि महिला की पवित्रता को एक सम्मान और बड़े जेहाद में बदला जा सकता है।

हज़रत ज़ैनब ने अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सालम से सुन रखा था कि इंसान में जब तक तीन विशेषताएं न हों वह ईमान की वास्तविकता को समझ नहीं सकता, धर्म का ज्ञान, कठिनाइयों पर धैर्य और जीवन के मामलों में अच्छा संचालन। इस महान महिला ने कठिन दायित्वों को स्वीकार किया और धैर्य ने एक रत्न की तरह उनकी आत्मा को संवारा। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की नज़र में सच के मार्ग में प्रतिरोध और ईश्वरीय लक्ष्यों के मार्ग में जान देना सुंदर है और मानवता हमेशा ही इस सुंदरता को सराहती है। यही कारण था कि जब अत्याचारी उमवी शासक यज़ीद ने हज़रत ज़ैनब का मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा कि देखा ईश्वर ने कर्बला में हुसैन और उनके साथियों के साथ क्या किया? तो उन्होंन बड़े ठोस स्वर में जवाब दिया था। मैंने सुंदरता के अलावा कुछ नहीं देखा। प्रिय श्रोताओ हम आपकी सेवा में एक बार फिर हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहात पर हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।

 

म्यांमार सरकार ने रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों के घरों और ज़मीनो पर बांग्लादेश के बौद्धों को बसाने की योजना पर अमल शुरू कर दिया है।

मंगलवार को प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, म्यांमार सरकार और सेना ने पूर्व नियोजित साज़िश के तहत रोहिंग्याओं का जनसंहार किया और जीवित रह जाने वालों को घर बार छोड़ने पर मजबूर कर दिया। जिसके बाद अब उनके घरों और ज़मीनों में बौद्धों को बसाया जा रहा है।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, रोहिंग्या मुसलमानों की ज़मीनें और घर बांग्लादेश के बौद्धों को अलाट कर दी गई हैं।

म्यांमार सरकार ने यह क़दम, बांग्लादेश में शरण लेने वाले लाखों रोहिंग्या मुसलमानों की वापसी को रोकने के लिए उठाया है।

ग़ौरतलब है कि क़रीब 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश के काक्स बाज़ार इलाक़े में शरणार्थी कैम्पों में बहुत ही दयनीय जीवन बिता रहे हैं।