
رضوی
इस्लामी क्रांति के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में युवाओं की भूमिका पर वरिष्ठ नेता का बल
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने छात्रों से मुलाक़ात में छात्रों की भावनाओं, प्रभावी पहचान के अहसास, ईमानी प्रेरणाओं और लक्ष्यों के प्रति कटिबद्धता को भविषय व ईरान के विकास की आशा बताया है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार की शाम विभिन्न वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और सामाजिक छात्र संस्थाओं के सैकड़ों प्रतिनिधियों से मुलाक़ात में कहा कि देश की क्षमताओं व संभावनाओं को दृष्टि में रख कर, लक्ष्यों की ओर बढ़ने की प्रक्रिया को गति प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न विभागों की समस्याओं और कमियों को दूर करने का मूल समाधान यह है कि उनमें युवा, सक्रिय, ईमान वाले और जोशीले युवाओं को शामिल किया जाए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि निश्चित रूप से इस्लामी व्यवस्था आगे की ओर बढ़ रही है और भविष्य आज से बेहतर व युवाओं से संबंधित होगा लेकिन उसके लिए ज़रूरी है कि सीधे मार्ग पर बिना थके निरंतर आगे बढ़ते रहा जाए। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने राष्ट्रीय आत्म विश्वास, राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक स्वाधीनता और सोच, अभिव्यक्ति और कर्म की आज़ादी को इस्लामी व्यवस्था की उमंगों में से बताया और कहा कि अगर आज़ादी न हो तो समाज में विकास नहीं होगा लेकिन आज़ादी भी क़ानून के परिप्रेक्ष्य में होनी चाहिए अन्यथा वह निरंकुशता का कारण बन जाएगी।
हम युद्ध से नहीं डरतेः सैयद हसन नसरुल्लाह
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने बल दिया है कि हिज़्बुल्लाह युद्धोन्मादी नहीं है किन्तु युद्ध से डरता भी नहीं है।
ज्ञात रहे कि 25 मई सन 2000 को हिज़्बुल्लाह ने लेबनान के अतिग्रहित भूमि के बड़े भू-भाग से ज़ायोनियों के चंगुल से स्वतंत्र करा लिया था।
इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने शुक्रवार को दक्षिणी लेबनान की स्वतंत्रता और प्रतिरोध की विजय की 18वीं वर्षगांठ के अवसर पर अपने भाषण में कहा वर्ष 1982 से 2000 तक प्रतिरोध के पास श्रमबल और संसाधन दोनों ही बहुत कम थे किन्तु प्रतिरोधक बल ने यह सिद्ध कर दिया कि वह विजय के योग्य हैं और विजय के अनुभव ने यह दर्शा दिया कि ज़ायोनी दुश्मन ने प्रतिरोध के सामने आत्मविश्वास खो दिया।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने हिज़्बुल्लाह के विरुद्ध अमरीकी और फ़ार्स खाड़ी सहयोग परिषद के प्रतिबंधों की ओर संकेत करते हुए कहा कि प्रतिबंधों का उद्देश्य, लोगों को प्रतिरोध के केन्द्र से दूर करना है किन्तु अमरीका और उसके घटकों का प्रतिरोध के केन्द्र से टकराव, विफल हो गया है।
हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि सीरिया में हिज़्बुल्लाह की उपस्थिति, आतंकवाद से संघर्ष के लिए थी। उन्होंने कहा कि अमरीका ने सीरिया की सरकार को गिराने के लिए पूरी दुनिया से आतंकवादियों को एकत्रित किया था किन्तु सीरिया के घटक इस देश के पतन की कभी भी अनुमति नहीं देंगे।
वरिष्ठ नेता, ट्रम्प का हश्र बुश और रीगन जैसा ही होगा
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने कहा है कि ईरान के साथ अमरीका की दुश्मनी गहरी है, लेकिन इस्लामी क्रांति की सफ़लता के बाद से देश के ख़िलाफ़ समस्त अमरीकी साज़िशें नाकाम रही हैं।
बुधवार को वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाक़ात में कहा, अगर ईरानी अधिकारी अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी करेंगे तो ईरान निश्चित रूप से अमरीका को पराजित कर देगा।
वरिष्ठ नेता का कहना था कि इस्लामी क्रांति की सफ़लता के बाद से आज तक अमरीका ने इस्लामी गणतंत्र के ख़िलाफ़ विभिन्न प्रकार की साज़िशें की हैं और विभिन्न प्रकार के राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक और प्रचारिक क़दम उठाए हैं।
उन्होंने उल्लेख किया कि अमरीका ने इस्लामी क्रांति को उखाड़ फेंकने के लिए जो कुछ हो सकता था वह किया, लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी है और भविष्य में भी उसे हार का मुंह देखना होगा।
वरिष्ठ नेता का कहना था कि अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति का हश्र भी पूर्व राष्ट्रपतियों जॉर्ज डब्लयू बुश और रोनाल्ड रीगन जैसा ही होगा और वह भी उन्हीं की तरह इतिहास में गुम हो जायेंगे।
उन्होंने कहा, परमाणु वार्ता की शुरूआत से अब तक अमरीका के व्यवहार से साबित हो गया कि ईरान, अमरीका पर भरोसा नहीं कर सकता, इसलिए कि अमरीका अपने वचनों का सम्मान नहीं करता है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई का कहना था कि अमरीका ने परमाणु समझौते से निकलकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 2231 प्रस्ताव का उल्लंघन किया है, यूरोपीय देशों को सुरक्षा परिषद में अमरीका के ख़िलाफ़ प्रस्ताव लाना चाहिए और अमरीका के इस क़दम पर आपत्ति जतानी चाहिए।
उन्होंने कहा परमाणु समझौते को बाक़ी रखने की शर्त यह है कि तीनों यूरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्षों को चाहिए कि मिसाइल और क्षेत्र में ईरान की उपस्थिति का मुद्दा नहीं उठाने का वचन दें।
पूरी दुनिया, पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी के शोक में
इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित पूरी दुनिया में आज पैग़म्बरे इस्लाम (स) की निष्ठावान पत्नी का शोक मनाया जा रहा है।
शनिवार दस रमज़ान बराबर 26 मई 2018, पैग़म्बरे इस्लाम की निष्ठावान पत्नी हज़रत ख़दीजा के स्वर्गवास का दिन हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम द्वारा पैग़म्बरी की घोषणा के दसवें वर्ष रमज़ान महीने की १० तारीख़ और मक्का से मदीना पलायन से तीन वर्ष पहले हज़रत ख़दीजा का स्वर्गवास हुआ था।
हज़रत ख़दीजा जहां अरब समाज में एक बहुत पूंजीपति महिला थीं वहीं उन्हें एक आध्यामिक, पवित्र, त्यागी, ऊंची व दूरगामी सोच रखने वाली महिला के रूप में भी जाना जाता था। इस्लाम से पहले के काल में भी जब पाक दामनी को कोई विशेष महत्व नहीं था तब हज़रत ख़दीजा ताहेरा के नाम से प्रसिद्ध थीं।
पवित्र रमज़ान का महीना इस्लामी जगत की उस महान महिला के स्वर्गवास की याद दिलाता है जो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की बहुत अच्छी जीवन साथी थीं।
हज़रत ख़दीजा सलामुल्लाह अलैहा ने पैग़म्बरे इस्लाम के साथ 24 साल वैवाहिक जीवन बिताया। इस दौरान उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम और इस्लाम की बहुत सेवा की।
उन्होंने उस समय पैग़म्बरे इस्लाम की आत्मिक, भावनात्मक और वित्तीय मदद की और उनकी पैग़म्बरी की पुष्टि की जब पैग़म्बरे इस्लाम को पैग़म्बर मानने के लिए कोई तय्यार न था। अनेकेश्वरवादियों के मुक़ाबले में हज़रत ख़दीजा की पैग़म्बरे इस्लाम को मदद, उनकी मूल्यवान सेवा का बहुत बड़ा भाग है।
हज़रत ख़दीजा जब तक ज़िन्दा रहीं उस वक़्त तक अनेकेश्वरवादियों को इस बात की इजाज़त न दी कि वे पैग़म्बरे इस्लाम को यातना दें। जब पैग़म्बरे इस्लाम दुख से भरे घर लौटते थे तो हज़रत ख़दीता उनकी ढारस बंधातीं और उनके मन को हलका करती थीं।
* पार्स टूडे अपने पाठकों और श्रोताओ की सेवा में पैग़म्बरे इस्लाम की निष्ठावान पत्नी के स्वर्गवास के अवसर पर हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करता है।*
अमरीकी ईरान की प्रगति से क्रोधित हैं और यह क्रोध उन्हें ले डूबेगा, आयतुल्लाह इमामी काशानी
तेहरान के जुमे के इमाम ने कहा है कि अमरीकी ईरान की प्रगति से क्रोधित हैं और इसी क्रोध में मर जाएंगे।
तेहरान की जुमे की नमाज़ आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी की इमामत में अदा की गयी। उन्होंने नमाज़ के विशेष भाषण में दुश्मन और उनकी साज़िश को पहचानने पर बल देते हुए कहाः "अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प की परमाणु समझौते जेसीपीओए के संबंध में कार्यवाही से पता चलता है कि इस देश के अधिकारियों को इस्लाम से दुश्मनी है और वे इस्लामी समाज को नुक़सान पहुंचाने में लगे हुए हैं।"
उन्होंने इस बात का उल्लेख करते हुए कि दुश्मन चाहते हैं कि इस्लामी जगत आर्थिक व सुरक्षा के क्षेत्र में हमेशा मुश्किल में फंसा रहे, कहा कि दुश्मन जानते हैं कि इस्लाम, समाजों की प्रगति, सम्मान और शक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है, इसलिए इस ईश्वरीय धर्म को नुक़सान पहुंचाने में लगे हैं।
तेहरान के जुमे के इमाम ने ईश्वर पर आस्था, दृढ़ता, आंतरिक क्षमता के इस्तेमाल, एकता और युवा व उपयोगी मानव संसाधन के इस्तेमाल को दुश्मन की साज़िशों से निपटने के उपाय बताए।
आयतुल्लाह इमामी काशानी ने कहा कि भविष्य इस्लामी जगत का है और दुश्मनों का विनाश होगा।
अमरीका और यूरोप के बारे में ईरान का रोडमैप तय, वरिष्ठ नेता ने पेश कर दिया पूरा ख़ाका
ईरान में इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण और निर्णायक है।
इस समय जब ईरान के संबंध में अमरीका ने दुस्साहसी क़दम उठाया है और परमाणु समझौते से बाहर निकल कर ईरान पर प्रतिबंध लगाने का एलान कर दिया है तो वरिष्ठ नेता ने अपने भाषण में बड़े ही स्पष्ट शब्दो में अनेक तथ्यों को बयान किया और अमरीका से निपटने और साथ ही यूरोप के बारे में बड़े महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया।
अमरीका के बारे में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित कियाः
- इस बात की संभावना ही नहीं है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, अमरीका से इंटरैक्शन कर सकेः अमरीका अपनी प्रतिबद्धताओं का भी ध्यान नहीं रखता। आप यह न कहिए कि यह तो इस सरकार ने किया है, ट्रम्प ने किया है, नहीं, पिछली सरकार भी जिसने हमसे वार्ता की, जिसके विदेश मंत्री दस दिन पंद्रह दिन तक यूरोप में बड़ी तनमयता से इस वार्ता में लगे रहे, उस सरकार ने भी एक अलग अंदाज़ से उल्लंघन किया। उसने भी प्रतिबंध लगाए और उसने भी अपनी प्रतिबद्धताओं के ख़िलाफ़ काम किया।
- ईरान से अमरीका की गहरी दुशमनीः यह दुशमनी मामूली नहीं है। विरोध परमाणु कार्यक्रम जैसी चीज़ों के कारण नहीं है। बहस यह है कि वह इस शासन व्यवस्था के ही विरोधी हैं जो इस संवेदनशील क्षेत्र में मज़बूत से खड़ी है, विकास कर रही है, अमरीका के अत्याचारों का विरोध करती है, अमरीका को कोई भी ग़ुंडा टैक्स देने के लिए तैयार नहीं है, जिसने पूरे इलाक़े में प्रतिरोध की भावना में नई जान डाल दी है, अमरीका इस शासन व्यवस्था के ख़िलाफ़ है।
- यदि अमरीका के सामने नर्मी बरती जाए तो वह और दुस्साहसी हो जाता हैः हम जिस मामले में भी ज़रा सा पीछे हटे उस मामले में अमरीका अधिक दुस्साहसी हो गया। वह दुष्ट राष्ट्रपति जो दुष्टता की प्रतिमा था अर्थात बुश जूनियर उसने उस समय की ईरानी सरकार की ओर से दिखाई गई नर्मी और ढील के जवाब में ईरान की दुष्टता की धुरी कहा था।
- यदि डट जाया जाए तो अमरीका पीछे हटने पर मजबूर हो जाता हैः संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने यूरेनियम के संवर्धन के ईरान के अधिकार को स्वीकार किया तो इसका कारण वार्ता नहीं थी। कोई भी इस भूल में न रहे। इसकी वजह थी हमारी प्रगति। चूंकि हम प्रगति कर चुके थे। चूंकि हम आगे बढ़ चुके थे। चूंकि हम 20 प्रतिशत के ग्रेड तक पहुंच चुके थे तो वह स्वीकार करने पर मजबूर हुए, वरना अगर वार्ता से हमें यह अधिकार मिलने की बात होती तो हमें कभी भी यह अधिकार नहीं मिल पाता।
- महत्वपूर्ण मामलों में यूरोप अमरीका के साथ खड़ा होता हैः हम यूरोप से झगड़ा करने का इरादा नहीं रखते लेकिन सच्चाई से हमें अवगत होना चाहिए। इन तीनों देशों ने साबित कर दिया है कि संवेदनशील मामलों में वह अमरीका का साथ देते हैं और अमरीका के पदचिन्हों पर चलते हैं। परमाणु वार्ता के दौरान फ़्रांस के विदेश मंत्री की घटिया हरकत सबको याद है। अच्छे पुलिस मैन और बुरे पुलिस मैन के खेल में फ़्रांस को बुरे पुलिस मैन का रोल दिया गया था अलबत्ता अमरीका के समन्वय से।
- देश के महत्वपूर्ण मामलों के समाधान को विदेशी मामलों और परमाणु समझौते पर निर्भर करना बड़ी ग़लती हैः देश के महत्वपूर्ण मुद्दों को, आर्थिक विषयों को, देश के दूसरे महत्वपूर्ण विषयों को एसी चीज़ से जोड़ देना जो हमारे अपने हाथ में नहीं है देश के बाहर है, उसका फ़ैसला देश के बाहर होता है, उचित नहीं है। यदि हम अपने आर्थिक मामलों को, रोज़गार के मामलों को परमाणु समझौते से जोड़ेंगे तो नतीजा यह होगा कि सबको कई महीना इंतेज़ार करना पड़ेगा कि यह पता चले कि विदेशी क्या फ़ैसला करते हैं।
अमरीका ने तो परमाणु समझौते से बाहर निकलने की घोषणा कर दी है लेकिन यूरोपीय संघ बार बार कह रहा है कि वह परमाणु समझौते का पालन करता रहेगा। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि यूरोप के साथ भी यदि परमाणु समझौते को जारी रखना है तो उससे ठोस गैरेंटी हासिल कर ली जाए क्योंकि यूरोपीय देशों पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता।
इस्लामी क्रान्ति का कहना है कि यूरोप गैरेंटी के रूप में छह क़दम उठाएः
- यूरोप अमरीका के हाथों परमाणु समझौते के उल्लंघन पर अपनी ख़ामोशी की भरपाई करे।
- सुरक्षा परिषद में अमरीका के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पेश करे कि उसने प्रस्ताव 2231 का उल्लंघन किया है।
- मिसाइली ताक़त और क्षेत्र में इस्लामी गतणंत्र ईरान की उपस्थिति को यूरोप न उठाए।
- इस्लामी गणतंत्र ईरान पर लगने वाले हर प्रतिबंध का मुक़ाबला करे।
- इस्लामी गणतंत्र ईरान जितना चाहे उतना तेल बेचे।
- यूरोपीय बैंक ईरान से व्यापार से संबंधित पैसे का ट्रांज़ैक्शन करें।
- अगर यूरोप ने इन मांगों को पूरा करने में टालमटोल किया तो रोकी जा चुकी परमाणु गतिविधियों को शुरू करने का ईरान को पूरा अधिकार होगा।
हरियाणा, गुरुग्राम में 37 स्थानों पर होगी जुमे की नमाज़
हरियाणा के गुरुग्राम शहर में प्रशासन ने जुमे की नमाज के लिए 37 स्थानों को चिन्हित किया है जहां पर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गये हैं।
गुरुवार को मुस्लिम समुदाय की पुलिस के साथ बैठक में इस बात पर सर्व सम्मति बन गई है। पुलिस आयुक्त कार्यालय में तीन घंटे चली बैठक में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने नमाज के दौरान इन सभी जगहों पर पुलिस सुरक्षा की मांग की। पुलिस ने भी उन्हें सुरक्षा देने का भरोसा दिया है।
सूत्रों का कहना है कि इनमें 13 खुली जगह हैं जबकि बाकि 24 मुस्लिम समुदाय के अपने स्थान हैं। सूत्रों का कहना है कि जुमे की नमाज़ पार्क, ग्रीन बेल्ट और सड़क पर अदा नहीं की जाएगी।
सूत्रों का कहना है कि पूर्वी ज़ोन में 12 जगह, पश्चिमी ज़ोन में पांच जगह, मानेसर ज़ोन में तीन और दक्षिणी ज़ोन में पांच जगह पर नमाज अदा की जाएगी। ज्ञात रहे कि 20 अप्रैल को कुछ कट्टरपंथी हिन्दु संगठनों ने नमाज पढ़ रहे लोगों को जबरन हटा दिया था और उसका वीडियो सोशल साइट पर वायरल भी कर दिया था।
पुलिस ने इस संबंध में 25 अप्रैल को मामला दर्ज कर गुरुवार को छह युवकों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। तनाव से पहले पहले मुस्लिम समुदाय शहर में 110 जगहों पर नमाज़ अदा करते थे।
परमाणु समझौते से अमेरिका का निकलना ग़लत थाः भारत
भारत के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि परमाणु समझौते से अमेरिका का निकलना असंतुलित और गलत था।
सहर टीवी की रिपोर्ट के अनुसार रविश कुमार ने गुरूवार को बल देकर कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान अब तक परमाणु समझौते के प्रति कटिबद्ध रहा है।
भारत के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने अमेरिका की ओर से परमाणु समझौते से निकलने पर खेद जताया और परमाणु समझौते के दूसरे पक्षों का आह्वान किया है कि वे इस समझौते के प्रति कटिबद्ध रहें।
रविश कुमार ने इसी प्रकार बल देकर कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण रहा है और परमाणु ऊर्जा से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए लाभ उठाने हेतु ईरान के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिये।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को सांप्रदायिक ताकतें बदनाम करना चाहतीं हैं, मौलाना कल्बे जवाद
लखनऊ 11 मई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्नाह की तस्वीर पर सांप्रदायिक ताकतों द्वारा योजनाबद्ध हंगामा करने और हालात ख़राब करने की निंदा करते हुए आज मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्नाह की तसवीर बरसों से लगी हुई है, यह अचानक आज कैसे तसवीर की याद आ गई है?
मौलाना ने कहा कि वास्तव में सांप्रदायिक ताक़तों को जिन्ना की तस्वीर के बहाने मुस्लिम विश्वविद्यालय को निशाना बनाना था क्योंकि यह लोग विश्वविद्यालय को सहन नहीं कर पा रहे हैं। वे चाहते हैं मुसलमान शिक्षा प्राप्त न कर पायें और जाहिल रहें, ताकि वे उन्हें अपना ग़ुलाम बना सकें और उनकों अपने फायदे के लिये इस्तेमाल कर सकें।
मौलाना ने कहा कि विश्वविद्यालय के छात्र बधाई के पात्र है कि जिन्होंने सब्र एवं धैर्य से काम लिया क्योंकि अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।
मौलाना ने कहा कि एक साज़िश के तहत हंगामा किया जा रहा है ताकि विश्वविद्यालय को बदनाम किया जा सके, इस पूरे मामले में हम विश्वविद्यालय और उसके छात्रों के साथ है, यदि छात्र धैर्य एवं सब्र से काम नहीं लेते तो हालात बहुत ख़राब हो सकते थे। इस मामले में, कुलपति की सराहना की जाती है जिनकी सूझ-बूझ और समझदारी के कारण हालात संभल गये, वरना सांप्रदायक ताक़तों की साजिश सफल हो गई होती।
अगर युरोपीय देशों ने गारंटी नहीं दी तो परमाणु समझौता नहीं रहेगा , वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति ने पिछली रात मूर्खतापूर्ण बातें कीं, शायद उनकी बातों में दस झूठ थे, उन्होंने सरकार और जनता को धमकी भी दी।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि मैं, ईरान की जनता की ओर से कहता हूं कि श्रीमान ट्रम्प आप कुछ बिगाड़ नहीं सकते।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बुधवार को " फरहंगियान विश्व विद्यालय " में शिक्षकों और छात्रों से एक भेंट में कहा कि हमने पहले ही कहा था कि ईरान के साथ अमरीका की समस्या, परमाणु ऊर्जा नहीं है बल्कि यह सब बहाने हैं, अब सब ने देख लिया , हमने जेसीपीओए को स्वीकार किया लेकिन इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ शत्रुता जारी है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि अब इलाक़े में हमारी भूमिका और मिसाइल का मुद्दा उठाया जा रहा है अगर हम इसे भी स्वीकार करें तो भी समस्या खत्म नहीं होगी कोई दूसरा मुद्दा आरंभ कर दिया जाएगा ।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान का अमरीका की ओर से विरोध का कारण यह है कि अमरीका का पूरी तरह से वर्चस्व था और इस्लामी क्रांति ने उसके रोक दिया। अमरीकी अन्य देशों में एसे शासक चाहते हैं जिनके धन वह लें और जो उनके आदेशों का पालन करें। वह इस्लामी गणतंत्र ईरान को भी आदेश देना चाहते हैं, अतीत में वह आदेश देते रहे हैं लेकिन अब क्रांति के बाद अमरीकियों को यह ईरान सहन नहीं हो रहा है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति का मूर्खतापूर्ण व आलोचनीय क़दम, हमारी आशा के विपरीत नहीं है, इस से पहले के राष्ट्रपतियों ने भी इस प्रकार के काम किये हैं, ईरानी राष्ट्र पूरी ताक़त से डटा हुआ है, वह सारे राष्ट्रपति मर चुके हैं , उनकी हड्डियां गल चुकी हैं और इस्लामी गणतंत्र ईरान यथावत बाक़ी है। यह श्रीमान भी मिट्टी में मिल जाएंगे और उनके शरीर को सांप बिच्छु खा जाएंगे और इस्लामी गणतंत्र ईरान यथावत बाक़ी रहेगा।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि अब यह कहा जा रहा है कि तीन युरोपीय देशों के साथ समझौता जारी रहेगा, मुझे इन तीन देशों पर भी भरोसा नहीं, इन पर भी भरोसा न करें अगर समझौता करना है तो व्यवहारिक गांरटी लेंगे अन्यथा यह देश भी अमरीका वाला ही काम करेंगे। अगर इन देशों से गारंटी नहीं ले पाए तो फिर जेसीपीओए को जारी नहीं रखा जा सकता।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि देश के नेता कड़ी परीक्षा में हैं , राष्ट्रीय सम्मान व राष्ट्रीय हितों की सही अर्थों में सुरक्षा होनी चाहिए।