
رضوی
शहीदों का संदेश लोगों तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी किसकी है?
अगर कर्बला में हज़रत इमाम हुसैन (अ) की अन्याय पूर्ण शहादत न हुई होती, और अगर हज़रत ज़ैनब (स) और इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) ने कूफ़ा और शाम में वे सच्चे और जागरूकता भरे उपदेश न दिए होते, तो लोगों पर सच्चाई ज़ाहिर न होती, और बनी उम्य्या की अंदरूनी गंदगी और उनके अविश्वास से भरे चेहरे साफ़ न होते।
अस सलामो अलैका या अबा अब्दिल्लाहिल हुसैन (अ)
कभी-कभी पाखंड और छल का चेहरा तब तक उजागर नहीं होता जब तक कि उत्पीड़ितों का खून न बहाया जाए और शहादत न हो जाए।
अगर कर्बला में इमाम हुसैन (अ) की अन्याया पूर्ण शहादत न हुई होती, और अगर हज़रत ज़ैनब (स) और इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) ने कूफ़ा और शाम में वे सच्चे और जागरूकता भरे उपदेश न दिए होते, तो लोगों पर सच्चाई ज़ाहिर न होती, और बनी उम्याय की अंदरूनी गंदगी और उनके कुफ़्र से भरे चेहरे साफ़ न होते।
कभी-कभी सच्चाई को उजागर करने और मुनाफ़िक़ों को बदनाम करने के लिए ख़ून बहाना और अपनी जान कुर्बान करना ज़रूरी हो जाता है। या कम से कम, शहीदों के ख़ून का पैगाम बेख़बर जनता तक पहुँचाना ज़रूरी है।
यह काम जागरूक, जागरूक और धार्मिक रूप से जागरूक व्यक्तियों की ज़िम्मेदारी है, और इसे "जिहाद-ए-तबीन" कहा जाता है; ताकि दुश्मन के झूठे प्रचार की लहर के पीछे सच्चाई छिपी न रहे।
लेखक: हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन जवाद मुहद्देसी
भूख और प्यास से बेहाल फिलिस्तीनियों पर इजरायली गोलीबारी
संयुक्त राष्ट्र के विश्व भोजन कार्यक्रम WFP ने एक बयान में गाजा में खाद्य सहायता प्राप्त करने के लिए कतार में खड़े नागरिकों पर इजरायली हमलों की कड़ी निंदा की है बयान के अनुसार, भूख से तड़प रहे फिलिस्तीनी नागरिकों पर इजरायली टैंकों, स्नाइपर्स और अन्य सैन्य साधनों से हमले किए गए।
संयुक्त राष्ट्र के विश्व भोजन कार्यक्रम WFP ने एक बयान में गाजा में खाद्य सहायता प्राप्त करने के लिए कतार में खड़े नागरिकों पर इजरायली हमलों की कड़ी निंदा की है बयान के अनुसार, भूख से तड़प रहे फिलिस्तीनी नागरिकों पर इजरायली टैंकों, स्नाइपर्स और अन्य सैन्य साधनों से हमले किए गए।
WFP ने कहा कि जो लोग शहीद हुए वे सिर्फ अपने परिवार के लिए आटा लेने की कोशिश कर रहे थे, जबकि वे गंभीर भूख का सामना कर रहे थे संयुक्त राष्ट्र के इस कार्यक्रम के अनुसार, गाजा में खाद्य संकट अपने सबसे खराब स्तर पर पहुंच चुका है, जहां हर तीन में से एक व्यक्ति कई दिनों तक भूखा रहता है।
संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और सभी संबंधित पक्षों से आग्रह किया है कि वे भूख से तड़पते गाजा के नागरिकों तक तुरंत और सुरक्षित खाद्य सहायता पहुंचाना सुनिश्चित करें। संस्था ने आगे कहा कि रविवार को सहायता कार्यकर्ताओं पर जायोनी गोलीबारी मानवीय सेवाओं के लिए खतरनाक हालात को दर्शाती है।
यह हमला उत्तरी गाजा के ज़ीकीम इलाके में हुआ, जब फिलिस्तीनी शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या खाद्य सहायता के वितरण का इंतज़ार कर रही थी इस कायराना हमले में कम से कम 18 फिलिस्तीनी शहीद हो गए और दर्जनों घायल हो गए।
यह मजलूम लोग सिर्फ एक किलो आटे के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर खड़े थे और इजरायली जुल्म ने उन्हें खून में नहला दिया।
बाल हत्यारा ग़ज़्ज़ा में भी घुटने टेकने पर मजबूर
ग़ासिब इज़राइल ने अपनी नापाक नीतियों में बदलाव करते हुए गाजा में युद्धविराम के लिए इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के साथ गंभीर बातचीत शुरू कर दी है।
हिब्रू दैनिक हारेत्ज़ ने कहा है कि तेल अवीव ने गाजा युद्ध को समाप्त करने के लिए पहली बार हमास के साथ सीधी बातचीत शुरू की है।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, इस बार की बातचीत पिछली बातचीत से अलग है, क्योंकि इसका मुख्य ध्यान युद्धविराम और स्थायी समाधान की दिशा में प्रगति पर है।
जानकारी के अनुसार, कब्ज़ा करने वाली सरकार ने इस बार ज़ायोनी प्रतिनिधिमंडल को काफ़ी व्यापक अधिकार दिए हैं, ताकि इस मुद्दे पर एक स्वीकार्य समझौते पर पहुँचा जा सके।
सूत्रों ने कहा है कि दोहा में चल रही बातचीत कई जटिल मुद्दों के कारण आसान नहीं है, हालाँकि, कतर में ज़ायोनी प्रतिनिधिमंडल की उपस्थिति एक सकारात्मक संकेत है कि एक समझौते की उम्मीद की जा सकती है।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस संबंध में हिब्रू समाचार पत्र येदिओथ अहरोनोथ ने भी कल रात जिम्मेदार सूत्रों का हवाला देते हुए खबर दी थी कि अगले दो सप्ताह के भीतर गाजा के संबंध में समझौता संभव प्रतीत होता है।
ज़ायोनिज़्म और साम्राज्यवादी ताक़तों के ख़िलाफ़ जीत नज़दीक है :अमेरिकी पत्रकार
अमेरिकी स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक कार्यकर्ता ने ज़ायोनिज़्म और साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ ईरानी जनता की सफलता का रहस्य एकजुटता और दृढ़ता को बताया।
कैला वॉल्श ने जो अंतर्राष्ट्रीय मीडिया फेस्टिवल "सोबह" में भाग लेने के लिए तेहरान आई हैं, ईरानी समाचार एजेंसी से हुई बातचीत में अपने विचार साझा किए। यह साक्षात्कार रविवार को प्रकाशित हुआ था।
आपको ईरान और इजरायल के बीच युद्ध की खबर कैसे मिली और आपकी प्रतिक्रिया क्या थी?
मैं लंबे समय से, यहां तक कि "तूफ़ान अल-अक्सा" से पहले भी, इस क्षेत्र की घटनाओं को फॉलो कर रही थी। फिलिस्तीन में 75 साल से जारी नरसंहार हो रहा है लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण है इस नरसंहार, ज़ायोनिज़्म और अमेरिकी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ सामने आने वाला प्रतिरोध। "ऑप्रेशन ट्रुथ प्रामिस-3" और 12-दिवसीय युद्ध शुरू होने पर मेरी पहली प्रतिक्रिया थी कि आखिरकार ज़ायोनी शासन को अपने कर्मों का फल मिल रहा है।
सिर्फ़ ज़ायोनी शासन ही नहीं, बल्कि पूरी अमेरिकी साम्राज्यवादी व्यवस्था, जिसने न सिर्फ फिलिस्तीन बल्कि यमन, लेबनान, सीरिया, ईरान, इराक और दुनिया के सभी उत्पीड़ित देशों के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है।
क्या आपको लगता है कि इज़राइल को ईरान पर हमले में सफलता मिली?
बिल्कुल नहीं। यहां आकर मैंने देखा कि ईरान के लोग कितने दृढ़, एकजुट और मजबूत हैं। यहां एकजुटता और संघर्ष की भावना बहुत प्रबल है। ईरान ने अपनी सैन्य क्षमताओं को स्वदेशी तकनीक से विकसित किया है, प्रतिबंधों के बावजूद उत्पादन किया है। ज़ायोनी शासन और अमेरिकी सरकार अपने हमलों के प्रभाव के बारे में झूठ बोल रहे हैं। वे अपनी ताक़त को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना चाहते हैं, लेकिन वास्तव में वे कागजी शेर से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
ईरान ने 50 साल से अधिक समय तक, सभी कठिनाइयों के बावजूद, प्रतिरोध किया है, राज्य परिवर्तन के प्रयासों, थोपे गए युद्धों और यहां तक कि पश्चिम द्वारा किए गए नरसंहार के खिलाफ। मुझे पूरा विश्वास है कि सियोनिज़्म और साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ जीत नज़दीक है।
युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है। यह दावा कि ईरान की परमाणु क्षमता नष्ट हो गई है, झूठ है। अमेरिका और ज़ायोनी यह प्रोपेगैंडा कर रहे हैं क्योंकि उनके कोई भी लक्ष्य पूरे नहीं हुए हैं।
ईरान की मिसाइल क्षमता के बारे में आपकी क्या राय है? जब ईरान ने इज़राइल पर हमला किया, तो आपको कैसा लगा?
मुझे लगा कि अंततः इजरायल के अपराधों का जवाब ईरानी मिसाइल हमले से मिल रहा है। अमेरिकी कार्यकर्ता माल्कम एक्स ने इसे "चिड़ियाँ घोंसले में लौट आई हैं" कहा था।
ज़ायोनी सैनिकों को मलबे से निकाले जाने के दृश्य देखना जबकि उन्होंने पूरे प्रतिरोध की धुरी में तबाही मचाई है, यह सिर्फ़ एक छोटी शुरुआत है, उससे कहीं बड़ा इन ज़ायोनियों और साम्राज्यवादियों को क़ीमत चुकानी पड़ी।
12 दिन का युद्ध तनाव को बढ़ाने वाला था। अमेरिका में, ज़ायोनी शासन पर हमले देखकर हमें बहुत संतुष्टि हुई। अमेरिका में ईरान और प्रतिरोध की धुरी के साथ एकजुटता दिखाने के लिए ईरानी झंडे लेकर विरोध प्रदर्शन हुए लेकिन हम अमेरिकियों का कर्तव्य है कि हम अपने विरोध को और बढ़ाएं क्योंकि नरसंहार और युद्ध और तेज हो रहा है।
मीडिया फेस्टिवल और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
कई देशों के पत्रकार "मीडिया के ख़िलाफ आतंकवाद की निंदा" कार्यक्रम में भाग लेने तेहरान आए हैं। यह आयोजन 12 दिवसीय युद्ध के दौरान इज़राइली हमलों का सामना करने वाले स्थलों का दौरा करने और शहीद पत्रकारों को श्रद्धांजलि देने के लिए किया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया फेस्टिवल "सुबह" का उद्देश्य वैश्विक मीडिया में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों और मीडिया कर्मियों के बीच सहयोग बढ़ाना है। यह फेस्टिवल 2023 से सक्रिय है और प्रतिभाशाली मीडिया पेशेवरों को पहचानने का प्रयास करता है और साथ ही उन्हें अपनी कलात्मक रचना और सृजनात्मकता को जारी रखने के लिए उचित अवसर प्रदान करता है।
जब तक खतरा मौजूद है, हथियारों पर बहस बेमानी है
लेबनान के सूरू उलेमा संघ के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम शेख अली यासीन अलआमिली ने इस बात पर जोर दिया है कि सरकार के पास इजरायल की किसी भी आक्रामकता का जवाब देने की ताकत नहीं है, ऐसे में प्रतिरोध को निहत्था करने की बातें आत्महत्या के समान हैं और कोई समझदार व्यक्ति ऐसा नहीं करेगा।
अंजुमने उलेमा ए लेबनान के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम शेख अली यासीन अलआमिली ने कहा कि जब तक इन हथियारों की ज़रूरत मौजूद है इन्हें सौंपने के बारे में बहस करना बेमानी है। खास तौर पर हम दुश्मनों की तरफ से नरसंहार के गवाह हैं जो हर तरफ से हमें घेरे हुए हैं और लेबनान के सभी इलाकों में कत्लेआम की लहर जारी है और जायोनी-अमेरिकी साजिश आतंकवाद के एक अकल्पनीय स्तर तक पहुंच चुकी है।
शेख यासीन ने कहा कि लोगों का सब्र इजरायल के हमलों को रोकने में सरकार की बेरुखी पर एक हद तक पहुंच चुका है और यह नामंजूर है कि हमारे लोगों का खून बहाया जाए और कोई जवाब या रुकावट न हो।
सूरू उलेमा संघ के प्रमुख ने आगे कहा कि जो लोग निहत्था होने की बात करते हैं, वे लेबनान के लोगों के कत्लेआम के इंतजार में हैं, जैसे गाजा में, स्वीडा और सीरियाई तटों पर हो रहा है, इसलिए वे वतन से मोहब्बत, इंसानियत और यहां तक कि अक्ल से भी महरूम हैं।
शेख यासीन ने लेबनान की सरकार से मांग की कि वह नेतृत्व संभाले और इजरायल की ताजा आक्रामकता के प्रभावित शरणार्थियों के लिए राष्ट्रपति से लेकर कर्मचारी तक अपनी जिम्मेदारी अदा करे।
उन्होंने कहा कि शरणार्थियों की वापसी का मामला किसी राजदूत के दौरे या किसी भी तरह के गैर-जरूरी इंतजार से कहीं ज्यादा अहम है।
अंत में, शेख यासीन ने इराक के वासित प्रांत के शहर कूत में आगजनी के प्रभावितों के प्रति संवेदना जताई और लेबनान की मदद में इराक की भूमिका पर जोर देते हुए इराक और उसके लोगों की लगातार हिमायत पर बल दिया है।
क्या ज़ायोनियों को इज़राइली शासन के भविष्य की कोई उम्मीद है?
हिब्रू अख़बार मआरीव ने ज़ायोनियों के नज़दीक भविष्य को लेकर एक सर्वेक्षण के नतीजे जारी किए।
हिब्रू अख़बार मआरीव के एक सर्वेक्षण के अनुसार, जिसके नतीजे रविवार को जारी किए गए, 66 प्रतिशत ज़ायोनियों ने "इज़राइल" के भविष्य को लेकर अपनी निराशा ज़ाहिर की है।
इस सर्वेक्षण में 73 प्रतिशत ज़ायोनियों का मानना है कि नेतन्याहू की सरकार को हालात सुधारने के लिए ग़ज़ा युद्ध खत्म करना चाहिए और सभी बंदियों को वापस लाना चाहिए।
मआरीव के सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि 79 प्रतिशत ज़ायोनी, इज़राइल के भविष्य की सुरक्षा के लिए हरेदी यहूदियों को भी सैन्य सेवा में भेजना ज़रूरी मानते हैं।
इस सर्वेक्षण के अनुसार, 39 प्रतिशत ज़ायोनियों का यह भी मानना है कि इज़राइल में अगले 20 सालों में जीवन स्तर आज से भी बदतर या बहुत बदतर हो जाएगा।
इटली की यूनिवर्सिटी ने इजरायल से शैक्षिक बहिष्कार . ईरानी यूनिवर्सिटियों के साथ सहयोग की घोषणा
यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरेंस ने BDS अभियान के तहत कब्ज़ाकारी इजरायली शैक्षिक संस्थानों से संबंध तोड़ते हुए तेहरान यूनिवर्सिटी, इस्फ़हान यूनिवर्सिटी और शहीद बहिशती यूनिवर्सिटी के साथ शैक्षिक संबंध बनाए रखने का फैसला किया है।
यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरेंस ने BDS अभियान के तहत कब्ज़ाकारी इजरायली शैक्षिक संस्थानों से संबंध तोड़ते हुए तेहरान यूनिवर्सिटी, इस्फ़हान यूनिवर्सिटी और शहीद बहिशती यूनिवर्सिटी के साथ शैक्षिक संबंध बनाए रखने का फैसला किया है।
इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरेंस ने घोषणा की है कि इसकी पांच फैकल्टीज़ ने कब्ज़ाकारी इजरायली संस्थानों के साथ सभी वैज्ञानिक और शोध संबंध तोड़ दिए हैं।
स्पष्ट रहे यह फैसला वैश्विक स्तर पर जारी शैक्षिक बहिष्कार और BDS यानी इजरायल के साथ बहिष्कार, निवेश न करने और प्रतिबंध के अभियान के तहत किया गया है।
इस कदम पर कब्ज़ाकारी जायोनी वेबसाइट वाई नेट ने तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए फ्लोरेंस यूनिवर्सिटी को आलोचना का निशाना बनाया।
वेबसाइट ने इस बात पर खास तौर पर नाराजगी जताई कि फ्लोरेंस यूनिवर्सिटी ईरान की प्रमुख यूनिवर्सिटियों यानी तेहरान यूनिवर्सिटी, इस्फ़हान यूनिवर्सिटी और शहीद बहेशती यूनिवर्सिटी के साथ अपने शैक्षिक संबंध बनाए हुए है, जबकि इजरायली संस्थानों से संबंध तोड़ दिए हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरेंस ने स्पष्ट किया है कि वह खुद को इजरायल के खिलाफ वैश्विक स्तर पर जारी BDS अभियान का हिस्सा मानती है, जो फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में जायोनी सरकार के बहिष्कार की हिमायत करती है।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन की ज़िन्दगी इमामों की ज़िन्दगी के जगमगाते अध्याय की झलक
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम तीन किरदार अदा कर रहे थे दो किरदार उनके और बाक़ी इमामों के बीच कॉमन हैं। इस्लाम और इस्लामी समाज के सिलसिले में अपनी इमामत के 250 साल के दौर में सारे इमाम जो अहम फ़रीज़ा अदा कर रहे थे, उनमें से एक इस्लामी ज्ञान, इस्लामी ज्यूरिसप्रूडेंस का प्रचार और इस्लाम पर थोपी जाने वाली ख़ुराफ़ातों से उसकी रक्षा थी।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम तीन किरदार अदा कर रहे थे दो किरदार उनके और बाक़ी इमामों के बीच कॉमन हैं।
इस्लाम और इस्लामी समाज के सिलसिले में अपनी इमामत के 250 साल के दौर में सारे इमाम जो अहम फ़रीज़ा अदा कर रहे थे, उनमें से एक इस्लामी ज्ञान, इस्लामी ज्यूरिसप्रूडेंस का प्रचार और इस्लाम पर थोपी जाने वाली ख़ुराफ़ातों से उसकी रक्षा थी और दूसरा इस्लामी समाज के गठन के लिए रास्ता समतल करना था, एक ऐसा समाज जिसे अलवी हुकूमत के तहत चलाया जाए।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पर अपनी इमामत के दौरान दूसरा फ़रीज़ा करबला की घटना की याद को ज़िन्दा रखने का भी था और यह भी एक पाठ है। करबला का वाक़या, ऐसा वाक़या था जो इसलिए घटा ताकि इतिहास, आने वाली नस्लें और आख़िरी ज़माने तक के मुसलमान इससे सबक़ हासिल करें।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और खेती (8)
अहादीस में है कि ज़राअत (खेती) व काश्त कारी सुन्नत है। हज़रत इदरीस के अलावा कि वह ख़य्याती करते थे। तक़रीबन जुमला अम्बिया ज़राअत किया करते थे। हज़रात आइम्माए ताहेरीन (अ.स.) का भी यही पेशा रहा है लेकिन यह हज़रात इस काश्त कारी से ख़ुद फ़ायदा नहीं उठाते थे बल्कि इस से ग़ुरबा, फ़ुक़रा और तयूर के लिये रोज़ी फ़राहम किया करते थे। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) फ़रमाते हैं ‘‘ माअजरा अलज़रा लतालब अलफ़ज़ल फ़ीह वमाअज़रा अलालैतना वलहू अल फ़क़ीरो जुल हाजता वलैतना वल मना अलक़बरता ख़सता मन अल तैर ’’ मैं अपना फ़ायदा हासिल करते के लिये ज़राअत नहीं किया करता बल्कि मैं इस लिये ज़राअत करता हूँ कि इस से ग़रीबों , फ़क़ीरों मोहताजों और ताएरों ख़ुसूसन कु़बर्रहू को रोज़ी फ़राहम करूँ। (सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 1 सफ़ा 549)
वाज़े हो कि कु़बरहू वह ताएर हैं जो अपने महले इबादत में कहा करता है ‘‘ अल्लाह हुम्मा लाअन मबग़ज़ी आले मोहम्मद ’’ ख़ुदाया उन लोगों पर लानत कर जो आले मोहम्मद (स.अ.) से बुग़्ज़ रखते हैं। (लबाब अल तावील बग़वी)
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और फ़ित्नाए इब्ने ज़ुबैर
मुवर्रिख़ मि0 ज़ाकिर हुसैन लिखते हैं कि अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर जो आले मोहम्मद (स. अ.) का शदीद दुश्मन था 3 हिजरी में हज़रत अबू बकर की बड़ी साहब ज़ादी असमा के बतन से पैदा हुआ, इसे खि़लाफ़त की बड़ी फ़िक्र थी। इसी लिये जंगे जमल में मैदान गरम करने में उसने पूरी सई से काम लिया था। यह शख़्स इन्तेहाई कन्जूस और बनी हाशिम का सख़्त दुश्मन था और उन्हें बहुत सताता था। बरवाएते मसूदी उसने जाफ़र बिन अब्बास से कहा कि मैं चालीस बरस से तुम बनी हाशिम से दुश्मनी रखता हूँ। इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के बाद 61 हिजरी में मक्का में और रजब 64 हिजरी में मुल्के शाम के बाज़ इलाक़ों के अलावा तमाम मुमालिके इस्लाम में इसकी बैअत कर ली गई। अक़दुल फ़रीद और मरूज उज़ ज़हब में है कि जब इसकी कु़व्वत बहुत बढ़ गई तो उसने ख़ुतबे में हज़रत अली (अ.स.) की मज़म्मत की और चालीस रोज़ तक ख़ुत्बे में दुरूद नहीं पढ़ा और मोहम्मद हनफ़िया और इब्ने अब्बास और दीगर बनी हाशिम को बैअत के लिये बुलाया उन्होंने इन्कार किया तो बरसरे मिम्बर उनको गालियां दीं और ख़ुत्बे से रसूल अल्लाह (स. अ.) का नाम निकाल डाला और जब इसके बारे में इस पर एतिराज़ किया गया तो जवाब दिया कि इस से बनी हाशिम बहुत फ़ुलते हैं, मैं दिल में कह लिया करता हूँ। इसके बाद उस ने मोहम्मद हनफ़िया और इब्ने अब्बास को हब्से बेजा में मय 15 बनी हाशिम के क़ैद कर दिया और लकड़िया क़ैद ख़ाने के दरवाज़े पर चिन दीं और कहा कि अगर बैअत न करोगे तो मैं आग लगा दूंगा। जिस तरह बनी हाशिम के इन्कारे बैअत पर लकड़िया चिनवा दी गई थीं। इतने में वह फ़ौज वहां पहुँच गई जिसे मुख़्तार ने उनकी मदद के लिये अब्दुल्लाह जदली की सर करदगी में भेजी थी और उसने इन मोहतरम लोगों को बचा लिया और वहां से ताएफ़ पहुँचा दिया। (अक़दे फ़रीद व मसूदी)
उन्हीं हालात की बिना पर हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अकसर फ़ित्नाए इब्ने ज़ुबैर का ज़िक्र फ़रमाते थे। आलिमे अहले सुन्न्त अल्लामा शिबली लिखते हैं कि अबू हमज़ा शुमाली का बयान है कि एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और चाहा कि आपसे मुलाक़ात करूँ लेकिन चूंकि आप घर के अन्दर थे, इस लिये सुए अदब समझते हुए मैंने आवाज़ न दी। थोड़ी देर के बाद ख़ुद बाहर तशरीफ़ लाए और मुझे हमराह ले कर एक जानिब रवाना हो गए। रास्ते में आपने एक दिवार की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमाया, ऐ अबू हमज़ा ! मैं एक दिन सख़्त रंजो अलम में इस दीवार से टेक लगाए खड़ा था और सोच रहा था कि इब्ने ज़ुबैर के फ़ितने से बनी हाशिम को क्यों कर बचाया जाए। इतने में एक शरीफ़ और मुकद्दस बुज़ुर्ग साफ़ सुथरे कपड़े पहने हुए मेरे पास आए और कहने लगे आखि़र क्यों परेशान खड़े हैं? मैंने कहा मुझे फ़ितनाए इब्ने ज़ुबैर का ग़म और उसकी फ़िक्र है। वह बोले, ऐ अली इब्नुल हुसैन (अ.स.) ! घबराओ नहीं जो ख़ुदा से डरता है, ख़ुदा उसकी मद्द करता है। जो उससे तलब करता है वह उसे देता है। यह कह कर वह मुक़द्दस शख़्स मेरी नज़रों से ग़ाएब हो गये और हातिफ़े ग़ैबी ने आवाज़ दी। ‘‘ हाज़ल खि़ज़्र ना हबाक़ा ’’ कि यह जो आपसे बातें कर रहे थे वह जनाबे खि़ज्ऱ (अ.स.) थे। (नुरूल अबसार सफ़ा 129, मतालेबुल सुवेल सफ़ा 264, शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 178) वाज़े हो कि यह रवायत बरादराने अहले सुन्नत की है। हमारे नज़दीक इमाम कायनात की हर चीज़ से वाक़िफ़ होता है।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की अपने पदरे बुज़ुर्गवार के क़र्ज़े से सुबुक दोशी
उलेमा का बयान है कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) क़ैद ख़ाना ए शाम से छूट कर मदीने पहुँचने के बाद से अपने पदरे बुज़ुर्गवार हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के क़र्ज़े की अदाएगी की फ़िक्र में रहा करते थे और चाहते थे कि किसी न किसी सूरत से 75 हज़ार दीनार जो हज़रत सय्यदुश शोहदा का क़र्ज़ा है मैं अदा कर दूं। बिल आखि़र आपने ‘‘ चश्मए तहनस ’’ को जो कि इमाम हुसैन (अ.स.) का बामक़ाम ‘‘ ज़ी ख़शब ’’ बनवाया हुआ था फ़रोख़्त कर के क़रज़े की अदाएगी से सुबुक दोशी हासिल फ़रमाई। चशमे के बेचने में यह शर्त थी कि शबे शम्बा को पानी लेने का हक़ ख़रीदने वाले को न होगा बल्कि उसकी हक़दार सिर्फ़ इमाम (अ.स.) की हमशीरा होंगी।
(बेहारूल अनवार, वफ़ा अल वफ़ा जिल्द 2 सफ़ा 249 व मनाक़िब जिल्द 4 सफ़ा 114)
माविया इब्ने यज़ीद की तख़्त नशीनी और इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.)
यज़ीद के मरने के बाद उसका बेटा अबू लैला, माविया बिन यज़ीद ख़लीफ़ा ए वक़्त बना दिया गया। वह इस ओहदे को क़बूल करने पर राज़ी न था क्यों कि वह फ़ितरतन हज़रत अली (अ.स.) की मोहब्बत पर पैदा हुआ था और उनकी औलाद को दोस्त रखता था। बा रवायत हबीब अल सैर उसने लोगों से कहा कि मेरे लिये खि़लाफ़त सज़ावार और मुनासिब नहीं है मैं ज़रूरी समझता हूँ कि इस मामले में तुम्हारी रहबरी करूँ और बता दूं कि यह मन्सब किस के लिये ज़ेबा है, सुनो ! इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) मौजूद हैं उन में किसी तरह का कोई ऐब निकाला नहीं जा सकता। वह इस के हक़ दार और मुस्तहक़ हैं, तुम लोग उनसे मिलो और उन्हें राज़ी करो अगरचे मैं जानता हूँ कि वह इसे क़ुबूल न करेंगे।
मिस्टर ज़ाकिर हुसैन लिखते हैं कि 64 हिजरी में यज़ीद के मरते ही माविया बिन यज़ीद की बैअत शाम में, अब्दुल्लाह इब्ने ज़ुबैर की हिजाज़ और यमन में हो गई और अब्दुल्लाह इब्ने ज़ियाद ईराक़ में ख़लीफ़ा बन गया।
माविया इब्ने यज़ीद हिल्म व सलीम अल बतआ जवाने सालेह था। वह अपने ख़ानदान की ख़ताओं और बुराईयों को नफ़रत की नज़र से देखता और अली (अ.स.) और औलादे अली (अ.स.) को मुस्तहक़े खि़लाफ़त समझता था। (तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 सफ़ा 37) अल्लामा मआसिर रक़म तराज़ हैं कि 64 हिजरी में यज़ीद मरा तो उसका बेटा माविया ख़लीफ़ा बनाया गया। उसने चालीस रोज़ और बाज़ क़ौल के मुताबिक़ 5 माह खि़लाफ़त की। उसके बाद ख़ुद खि़लाफ़त छोड़ दी और अपने को खि़लाफ़त से अलग कर लिया। इस तरह कि एक रोज़ मिम्बर पर चढ़ कर देर तक ख़ामोश बैठा रहा फिर कहा, ‘‘ लोगों ! ’’ मुझे तुम लोगों पर हुकूमत करने की ख़्वाहिश नहीं है क्यों कि मैं तुम लोगों की जिस बात (गुमराही और बे ईमानी) को ना पसन्द करता हूँ वह मामूली दरजे की नहीं बल्कि बहुत बड़ी है और यह भी जानता हूँ कि तुम लोग भी मुझे ना पसन्द करते हो इस लिये कि मैं तुम लोगों की खि़लाफ़त से बड़े अज़ाब में मुब्तिला और गिरफ़्तार हूँ और तुम लोग भी मेरी हुकूमत के सबब मुमराही की सख़्त मुसीबत में पड़े हो। ‘‘ सुन लो ’’ कि मेरे दादा माविया ने इस खि़लाफ़त के लिये उस बुज़ुर्ग से जंगो जदल की जो इस खि़लाफ़त के लिये उस से कहीं ज़्यादा सज़ावार और मुस्तहक़ थे और वह हज़रत इस खि़लाफ़त के लिये सिर्फ़ माविया ही नहीं बल्कि दूसरे लोगों से भी अफ़ज़ल थे इस सबब से कि हज़रत को हज़रत रसूले ख़ुदा (स. अ.) से क़राबते क़रीबिया हासिल थी। हज़रत के फ़जा़एल बहुत थे। ख़ुदा के यहां हज़रत को सब से ज़्यादा तक़र्रूब हासिल था। हज़रत तमाम सहाबा, महाजेरीन से ज़्यादा अज़ीम उल क़द्र, सब से ज़्यादा बहादुर, सब से ज़्यादा साहेबे इल्म, सब से पहले ईमान लोने वाले, सब से आला अशरफ़ दर्जा रखने वाले और सब से पहले हज़रत रसूले ख़ुदा (स. अ.) की सोहबत का फ़ख्ऱ हासिल करने वाले थे। अलावा इन फ़ज़ाएल व मनाक़िब के वह जनाबे हज़रत रसूले ख़ुदा (स. अ.) के चचा ज़ाद भाई, हज़रत के दामाद और हज़रत के दीनी भाई थे जिनसे हज़रत ने कई बार मवाख़ात फ़रमाई। जनाबे हसनैन (अ.स.) जवानाने अहले बेहिश्त के सरदार और इस उम्मत में सब से अफ़ज़ल और परवरदए रसूल (स. अ.) और फ़ात्मा बुतूल (स. अ.) के दो लाल यानी पाको पाकीज़ा दरख़ते रिसालत के फूल थे। उनके पदरे बुज़ुर्गवार हज़रत अली (अ.स.) ही थे। ऐसे बुज़ुर्ग से मेरा दादा जिस तरह सरकशी पर आमादा हुआ उसको तुम लोग ख़ूब जानते हो और मेरे दादा की वजह से तुम लोग जिस गुमराही में पड़े उस से भी तुम लोग बे ख़बर नहीं हो। यहां तक कि मेरे दादा को उसके इरादे में कामयाबी हुई और उसके दुनिया के सब काम बन गए मगर जब उसकी अजल उसके क़रीब पहुँच गई और मौत के पंजों ने उसको अपने शिकंजे में कस लिया तो वह अपने आमाल में इस तरह गिरफ़्तार हो कर रह गया कि अपनी क़ब्र में अकेला पड़ा है और जो ज़ुल्म कर चुका था उन सब को अपने सामने पा रहा है और जो शैतनत व फ़िरऔनियत उसने इख़्तेयार कर रखी थी उन सब को अपनी आख़ों से देख रहा है। फिर यह खि़लाफ़त मेरे बाप यज़ीद के सिपुर्द हुई तो जिस गुमराही में मेरा दादा था उसी ज़लालत में पड़ कर मेरा बाप भी ख़लीफ़ा बन बैठा और तुम लोगों की हुकूमत अपने हाथ में ले ली हालां कि मेरा बाप यज़ीद भी इस्लाम कुश बातों दीन सोज़ हरकतों और अपनी रूसियाहियो की वजह से किसी तरह उसका अहल न था कि हज़रत रसूले करीम (स. अ.) की उम्मत का ख़लीफ़ा और उनका सरदार बन सके, मगर वह अपनी नफ़्स परस्ती की वजह से इस गुमराही पर आमादा हो गया और उसने अपने ग़लत कामों को अच्छा समझा जिसके बाद उसने दुनियां में जो अंधेरा किया उस से ज़माना वाक़िफ़ है कि अल्लाह से मुक़ाबला और सरकशी करने तक पर आमादा हो गया और हज़रत रसूले ख़ुदा (स. अ.) से इतनी बग़ावत की कि हज़रत की औलाद का ख़ून बहाने पर कमर बांध ली, मगर उसकी मुद्दत कर रही और उसका ज़ुल्म ख़त्म हो गया। वह अपने आमाल के मज़े चख रहा है और अपने गढ़े (क़ब्र्र) से लिपटा हुआ और अपने गुनाहांे की बलाओं में फंसा हुआ पड़ा है। अलबत्ता उसकी सफ़ाकियों के नतीजे जारी और उसकी ख़ूं रेज़ियों की अलामतें बाक़ी हैं। अब वह भी वहां पहुँच गया जहां के लिये अपने करतूतों का ज़ख़ीरा मोहय्या किया था और अब किये पर नादिम हो रहा है। मगर कब? जब किसी निदामत का कोई फ़ायदा नहीं और वह इस अज़ाब में पड़ गया कि हम लोग उसकी मौत को भूल गये और उसकी जुदाई पर हमें अफ़सोस नहीं होता बल्कि उसका ग़म है कि अब वह किस आफ़त में गिरफ़्तार है, काश मालूम हो जाता कि वहां उसने क्या उज़्र तराशा और फिर उससे क्या कहा गया, क्या वह अपने गुनाहों के अज़ाब में डाल दिया गया और अपने आमाल की सज़ा भुगत रहा है? मेरा गुमान तो यही है कि ऐसा ही होगा। उसके बाद गिरया उसके गुलूगीर हो गया और वह देर तक रोता रहा और ज़ोर ज़ोर से चीख़ता रहा।
फिर बोला, अब मैं अपने ज़ालिम ख़ानदान बनी उमय्या का तीसरा ख़लीफ़ा बनाया गया हूँ हालां कि जो लोग मुझ पर मेरे दादा और बाप के ज़ुल्मों की वजह से ग़ज़ब नाक हैं उनकी तादाद उन लोगों से कहीं ज़्यादा है जो मुझ से राज़ी हैं।
भाईयों मैं तुम लोगों के गुनाहों के बार उठाने की ताक़त नहीं रखता और ख़ुदा वह दिन भी मुझे न दिखाए कि मैं तुम लोगों की गुमराहियांे और बुराईयों के बार से लदा हुआ उसकी दरगाह में पहुँचूँ। अब तुम लोगों को अपनी हुकूमत के बारे में इख़्तेयार है उसे मुझ से ले लो और जिसे पसन्द करो अपना बादशाह बना लो कि मैंने तुम लोगों की गरदनों से अपनी बैअत उठा ली । वस्सलाम । जिस मिम्बर पर माविया इब्ने यज़ीद ख़ुत्बा दे रहा था उसके नीचे मरवान बिन हकम भी बैठा हुआ था। ख़ुत्बा ख़त्म होने पर वह बोला, क्या हज़रत उमर की सुन्नत जारी करने का इरादा है कि जिस तरह उन्होंने अपने बाद खि़लाफ़त को ‘‘ शूरा ’’ के हवाले किया था तुम भी इसे शूरा के सिपुर्द करते हो। इस पर माविया बोला, आप मेरे पास से तशरीफ़ ले जायें, क्या आप मुझे भी मेरे दीन मंे धोखा देना चाहते हैं। ख़ुदा की क़सम मैं तुम लोगों की खि़लाफ़त का कोई मज़ा नहीं पाता अलबत्ता इसकी तलखि़यां बराबर चख रहा हूँ। जैसे लोग उमर के ज़माने में थे, वैसे ही लोगों को मेरे पास भी लाओ। इसके अलावा जिस तारीख़ से उन्होंने खि़लाफ़त को शूरा के सिपुर्द किया और जिस बुज़ुर्ग हज़रत अली (अ.स.) की अदालत में किसी क़िस्म का शुब्हा किसी को हो भी नहीं सकता, इसको उस से हटा दिया। उस वक़्त से वह भी ऐसा करने की वजह से क्या ज़ालिम नहीं समझे गये। ख़ुदा की क़सम अगर खि़लाफ़त कोई नफ़े की चीज़ है तो मेरे बाप ने उस से नुक़सान उठाया और गुनाह ही का ज़ख़ीरा मोहय्या किया और अगर खि़लाफ़त कोई और वबाल की चीज़ है तो मेरे बाप को उस से जिस क़द्र बुराई हासिल हुई वही काफ़ी है।
यह कह कर माविया उतर आया, फिर उसकी माँ और दूसरे रिश्ते दार उसके पास गये तो देखा कि वह रो रहा है। उसकी मां ने कहा कि काश तू हैज़ ही में ख़त्म हो जाता और इस दिन की नौबत न आती । माविया ने कहा ख़ुदा की क़सम मैं भी यही तमन्ना करता हूँ फिर कहा मेरे रब ने मुझ पर रहम नहीं किया तो मेरी नजात किसी तरह नहीं हो सकती। उसके बाद बनी उमय्या उसके उस्ताद उमर मक़सूस से कहने लगे कि तू ही ने माविया को यह बातें सिखाई हैं और उसको खि़लाफ़त से अलग किया है और अली (अ.स.) व औलादे अली (अ.स.) की मोहब्बत उसके दिल में रासिख़ कर दी है। ग़र्ज़ उसने हम लोगों के जो अयूब व मज़ालिम बयान किये उन सब का बाएस तू ही है और तू ही ने इन बिदअतों को उसकी नज़र में पसंदीदा क़रार दे दिया है जिस पर उस ने यह ख़ुत्बा बयान किया है। मक़सूस ने जवाब दिया ख़ुदा की क़सम मुझ से उसका कोई वास्ता नहीं है बल्कि वह बचपन ही से हज़रत अली (अ.स.) की मोहब्बत पर पैदा हुआ है लेकिन उन लोगों ने बेचारे का कोई उज्ऱ नहीं सुना और क़ब्र खोद कर उसे ज़िन्दा दफ़्न कर दिया।
(तहरीर अल शहादतैन सफ़ा 102, सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 122, हैवातुल हैवान जिल्द 1 सफ़ा 55, तारीख़े ख़मीस जिल्द 2 सफ़ा 232, तारीख़े आइम्मा सफ़ा 391)
मुवर्रिख़ मिस्टर ज़ाकिर हुसैन लिखते हैं, इसके बाद बनी उमय्या ने माविया बिन यज़ीद को भी ज़हर से शहीद कर दिया। उसकी उम्र 21 साल 18 दिन की थी। उसकी खि़लाफ़त का ज़माना चार महीने और बा रवायते चालीस यौम शुमार किया जाता है। माविया सानी के साथ बनी उमय्या की सुफ़यानी शाख़ की हुकूमत का ख़ात्मा हो गयाा और मरवानी शाख़ की दाग़ बेल पड़ गई। (तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 सफ़ा 38) मुवर्रिख़ इब्नुल वरदी अपनी तारीख़ में लिखते हैं कि माविया इब्ने यज़ीद के मरने के बाद शाम में बनी उमय्या ने मुतफ़्फ़ेक़ा तौर पर मरवान बिन हकम को ख़लीफ़ा बना लिया।
मरवान की हुकूमत सिर्फ़ एक साल क़ायम रही फिर उसके इन्तेक़ाल के बाद उसका लड़का अब्दुल मलिक इब्ने मरवान ख़लीफ़ाए वक़्त क़रार दिया गया।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की शहादत
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने कर्बला की महान घटना के बाद लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। सज्जाद, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को एक प्रसिद्ध उपाधि थी। महान ईश्वर की इच्छा से इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला में जीवित बच गये था ताकि वह कर्बला की महान घटना के अमर संदेश को लोगों तक पहुंचा सकें।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ज्येष्ठ सुपुत्र हैं और 36 हिजरी क़मरी में उनका जन्म पवित्र नगर मदीने में हुआ और 57 वर्षों तक आप जीवित रहे। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के जीवन का महत्वपूर्ण भाग कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आरंभ हुआ। कर्बला की महान घटना के समय इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम बीमार थे और इसी कारण वे कर्बला में सत्य व असत्य के युद्ध में भाग न ले सके।
कर्बला की घटना का एक लेखक हमीद बिन मुस्लिम लिखता है “आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्लाम के शहीद हो जाने के बाद यज़ीद के सैनिक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास आये। वह बीमार और बिस्तर पर सोये हुए थे। चूंकि यज़ीद की सैनिकों को यह आदेश दिया गया था कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिवार के समस्त पुरुषों की हत्या कर दें इसलिए उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को भी शहीद करना चाहा परंतु उन्होंने इमाम को बीमारी के बिस्तर पर देखकर उन्हें छोड़ दिया।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आशूर के दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के बीमार होने में ईश्वरीय रहस्य व तत्वदर्शिता नीहित है ताकि वह अपने पिता के मार्ग को जारी रख सकें। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की इमामत 34 वर्षों तक थी और उनकी ज़िम्मेदारियों का एक महत्वपूर्ण भाग इस्लामी जगत तक कर्बला की महत्वपूर्ण घटना के संदेशों को पहुंचाना था।
कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इस्लामी समाज की स्थिति बहुत ही संवेदनशील चरण में प्रविष्ट हो गयी थी। एक ओर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के संदेशों को लोगों के लिए बयान किये जाने और बनी उमय्या के झूठे दावों के प्रचार से मुकाबला किये जाने की आवश्यकता थी और दूसरी ओर इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं को बयान करके उन ग़लत बातों से मुकाबले की ज़रूरत थी जो इस्लाम की शिक्षाओं के लिए ख़तरा बनी हुई थीं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार की परिस्थिति में अपने कार्यक्रम को एक नियत समय में पूरा किया। आरंभ में कुछ समय तक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने खुत्बों व भाषणों के माध्यम से लोगों को सच्चाई से अवगत करके अपने पिता के मार्ग को जारी रखा और अपेक्षाकृत लंबे समय तक इस्लाम धर्म की विशुद्ध शिक्षाओं को बयान करके लोगों की सोच और व्यवहार को बेहतर बनाने का प्रयास किया।
आशूर के बाद की घटनाओं में आया है कि सन 61 हिजरी क़मरी में 12 मोहर्रम को इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम बंदियों के काफिले के साथ कूफा आये। बंदियों का जो काफिला था उसमें कर्बला की घटना में बच जाने वाले बच्चे और महिलाएं थीं। इस काफिले में दो महान हस्तियां एक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और दूसरे हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा थीं। इन दो महान हस्तियों की मौजूदगी बंदियों की ढ़ारस और उनकी शक्ति का कारण थी। जब यह काफिला कर्बला से कूफा पहुंचा तो बंदियों को देखने के लिए बहुत बड़ी भीड़ एकत्रित थी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने उस समय अवसर को उचित समझा और लोगों को संबोधित करके कहा हे लोगो! मैं हुसैन का बेटा अली हूं। मैं उसका बेटा हूं जिसकी प्रतिष्ठा का तुमने अनादर किया। लोगों, ईश्वर ने हम अहलेबैत की परीक्षा ले ली है। सफलता, न्याय और सदाचारिता को हमारे अंदर रख दिया है और गुमराही एवं बर्बादी को हमारे दुश्मनों को दे दिया है। क्या तुम लोगों ने हमारे पिता को पत्र नहीं लिखा था और उनसे बैअत नहीं की थी अर्थात उनकी आज्ञापालन का वचन नहीं दिया था? किन्तु उसके बाद तुम लोगों ने धोखा दिया और उनके विरुद्ध युद्ध करने के लिए खड़े हो गये। कितना बुरा कार्य किये और कितना बुरा सोचे। अगर पैग़म्बरे इस्लाम तुमसे कहें कि मेरे बेटे की हत्या कर दी मेरा अनादर किया और तुम मेरी क़ौम व अनुयाई नहीं हो तो तुम किस मुंह से उन्हें देखोगे?
एक दूसरे अवसर पर जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम काफिले के साथ शाम पहुंचे तो उन्होंने अत्याचारी व भ्रष्ट शासक यज़ीक के सामने अदम्य साहस का परिचय देते हुए कहा हे लोगो जो मुझे पहचानता है वह पहचानता है और जो नहीं जानता उसके लिए मैं अपना परिचय कर रहा हूं ताकि वह पहचान जाये। मैं उसका बेटा हूं जो बेहतरीन हज करने वाला था यानी मैं पैग़म्बरे इस्लाम का बेटा हूं जो जिब्राईल के साथ मेराज अर्थात आसमान पर गये और वहां उसने आसमान के फरिश्तों के साथ नमाज़ पढ़ी। वह ईश्वरीय संदेश प्राप्त करने वाला था मैं लोक-परलोक की महिला फातेमा का बेटा हूं और कर्बला की भूमि में ख़ून से रंगीन व लतपथ होने वाले का बेटा हूं।“
जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का भाषण यहां तक पहुंचा जो यज़ीद के दरबार में मौजूद लोग बहुत प्रभावित हुए और कुछ लोगों ने रोना शुरू कर दिया। अत्याचारी शासक यज़ीद की सरकार के आधार हिल गये। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के अलावा हज़रत ज़ैनब ने भी यज़ीद के दरबार में जो भाषण दिया था वह लोगों की जागरुकता का कारण बना इस प्रकार से कि कुछ लोगों ने यज़ीद के दरबार में ही आपत्ति जताई। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और हज़रत ज़ैनब के वास्तविकता प्रेमी भाषणों ने बनी उमय्या की सरकार के प्रति लोगों की घृणा में वृद्धि कर दी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के भाषण से यज़ीद बहुत चिंतित हो गया। उसने इमाम को चुप कराने और परिस्थिति को बदलने के लिए मोअज़्ज़िन को अज़ान देने के लिए कहा। इमाम अज़ान की आवाज़ सुनकर चुप हो गये और अज़ान देने वाला जब इस वाक्य पर पहुंचा कि मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद ईश्वर के दूत हैं तो इमाम ने यज़ीद से कहा क्या यह पैग़म्बर मेरे पूर्वज का नाम है या तेरे? अगर तू यह कहे कि मेरे पूर्वज का नाम है तो सब जान जायेंगे कि तू झूठ बोल रहा है और अगर तू यह कहे कि मेरे पूर्वज का नाम है तो तुमने किस दोष में मेरे पिता की हत्या की और उनके माल को लूट लिया और उनकी महिलाओं को बंदी बनाया? प्रलय के दिन तुझ पर धिक्कार हो।“
इतिहास में आया है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिजनों ने यज़ीद की उसी सभा में इमाम हुसैन और दूसरे शहीदों के साथ कर्बला में जो कुछ हुआ था उसे बयान करना आरंभ कर दिया। यज़ीद इस सभा के माध्यम से अपनी प्रतिष्ठा व रोब में वृद्धि की कुचेष्टा में था परंतु स्थिति उसकी अपेक्षा के बिल्कुल विपरीत हो गयी जिससे वह बहुत चिंतित हो गया। जब शाम के लोग कर्बला में शहीद होने वाली हस्तियों और उनके अतीत से अवगत हो गये और बनी उमय्या के अपराधों से पर्दा उठ गया तो भ्रष्ट शासक यज़ीद जनमत को गुमराह करने की सोच में पड़ गया। उसने बंदियों के साथ अपने अत्याचारपूर्ण व्यवहार को परिवर्तित और उनके साथ सम्मान पूर्वक व्यवहार करने का प्रयास किया। वह इस बात से भयभीत था कि कहीं लोग उसकी सरकार के विरुद्ध आंदोलन न कर दें इसीलिए उसने कर्बला के बंदियों को ढ़ारस बधाने का प्रयास किया और इस तरीक़े से उसने अपने पापों पर पर्दा डालने की चेष्टा की।
अतः वह कर्बला के बंदियों की उस इच्छा के समक्ष घुटने टेक देने पर बाध्य हो गया कि वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाना चाहते हैं और उसने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाने के लिए “दारूल हिजारह” नामक स्थान को विशेष कर दिया और बंदियों ने सात दिनों तक इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का शोक मनाया। धीरे-2 इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम शहादत व कर्बला की घटना की ख़बर पूरे शहर में फैल गयी। यज़ीद ने जब स्थिति को ख़राब होते देखा तो उसने कारवां को मदीने भेजने का निर्णय किया। जब यह कारवां शाम से मदीना पहुंचा तो नगर के लोग उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़े। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम शोकाकुल लोगों के मध्य मिम्बर पर गये और ईश्वर की प्रशंसा करने के बाद फरमाया हे लोगो! ईश्वर ने बहुत बड़ी विपत्ति से हमारी परीक्षा ली है। इस विपत्ति का कोई उदाहरण नहीं है। हे लोगो! कौन है जो इस महा त्रासदी को सुनकर प्रसन्न होगा? कौन दिल है जो हुसैन बिन अली की शहादत की ख़बर सुनकर दुःखी नहीं होगा? कौन आंख है जो आंसू नहीं बहायेगी? हम ईश्वर की ओर से आये हैं और ईश्वर की ही ओर पलट कर जायेंगे। इस हृदयविदारक मुसीबत में हम ईश्वर की ओर ध्यान देते हैं और उसके मार्ग में समस्त मुसीबतों को सहन करने के लिए तैयार हैं और हम जानते हैं कि ईश्वर प्रतिशोध लेने वाला है।“
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने पवित्र नगर मदीना में कर्बला की घटना की याद को जीवित रखा और वास्तविकताओं को बयान करके कर्बला के बाद के आंदोलनों की भूमि तैयार कर दी। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने प्रयास से अमवी शासकों के चेहरों पर पड़ी नक़ाब को हटा दिया। साथ ही उन्होंने इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं के प्रचार-प्रचार के लिए काफी प्रयास किया। इस प्रकार इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत के 34 वर्षों के दौरान उस समय के समाज में विभिन्न रूपों में जागरूकता की लहर पैदा कर दी। जब अमवी शासक वलीद बिन अब्दुल मलिक ने स्वयं को इस जागरूकता की लहर के मुक़ाबले में अक्षम देखा तो उसने जागरूकता के स्रोत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को शहीद करने का षडयंत्र रचा परंतु वह इस बात से अचेत था कि सच्चाई का दीप कभी बुझता नहीं है और वह हमेशा प्रज्वलित व प्रकाशमयी रहेगा। अंततः अमवी शासक वलीद ने एक षडयंत्र रचकर इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को वर्ष 94 हिजरी क़मरी में शहीद करवा दिया।