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ईरान के मामलों में अमेरिका के पूर्व प्रतिनिधि का कहना है कि ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिकी सैन्य हमला, एक ग़लती थी।

रॉबर्ट मैली ने बुधवार को अमेरिकी नेटवर्क एमएसएनबीसी के साथ एक साक्षात्कार में स्वीकार किया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिकी सैन्य हमला, एक ग़लती थी और तेहरान दबाव में आकर रणनीतिक रियायतें देने वाला नहीं है।

परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन के प्रयासों की विफलता का उल्लेख करते हुए, मैली ने ज़ोर देकर कहा कि केवल प्रतिबंध लगाना देशों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने के लिए पर्याप्त नहीं है, और सैन्य विकल्प ईरानी परमाणु मुद्दे का समाधान नहीं है।

ओबामा प्रशासन में परमाणु वार्ता का नेतृत्व करने वाले मैली ने लीबिया, इराक़, उत्तर कोरिया और यूक्रेन जैसे विभिन्न देशों के अनुभवों की ओर इशारा किया और कहाः अगर मैं ईरानी अधिकारियों की जगह होता, तो शायद मैं यह निष्कर्ष निकालता कि मुझे परमाणु हथियारों की आवश्यकता है, क्योंकि ग़द्दाफ़ी को उसके परमाणु कार्यक्रम को आत्मसमर्पण करने के बाद, उखाड़ फेंका गया था, और सद्दाम हुसैन, जिसके पास बम नहीं था, वह भी गिर गया, लेकिन उत्तर कोरिया, जिसके पास बम है, बच गया।

यहूदीवादी अखबार ने गाज़ा में जारी नरसंहार के बारे में भयावह खुलासा करते हुए कहा है कि पिछले एक महीने के दौरान इस्राइली सेना ने गाजा में एक हज़ार फिलिस्तीनी बच्चों को शहीद कर दिया है।

इस्राइली अखबार हारेत्ज़ ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में खुलासा किया है कि इस्राइली सेना ने पिछले एक महीने के दौरान गाज़ा पर हवाई हमलों में लगभग 1000 फिलिस्तीनी बच्चों को मार डाला है। 

यह रिपोर्ट कतर के प्रसारण संस्थान अलजज़ीरा के जरिए सामने आई है जिसमें गाजा में जारी नरसंहार के एक और भयानक पहलू को उजागर किया है। 

इन नए आंकड़ों के सामने आने के बाद गाजा में जारी हिंसा और मानवीय त्रासदी की गंभीरता पर वैश्विक स्तर पर चिंता और बढ़ गई है। 

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि गाजा में अकाल, बच्चों की मौत और विनाश के ये दृश्य पूरी दुनिया के नैतिक विवेक के लिए चुनौती बन चुके हैं। 

वहीं अमेरिका के प्रसिद्ध सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने भी इस्राइली नीतियों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि इस्राइल की अतिवादी सरकार गाजा में सामूहिक भूख को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है ताकि फिलिस्तीनियों का नरसंहार पूरा किया जा सके। 

अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों और मानवाधिकार संगठन इस नए खुलासे को मानवता के खिलाफ अपराध बता रहे हैं और युद्ध अपराधों की जांच पर जोर दे रहा हैं।

 

ग़ज़्ज़ा में बढ़ती मानवीय त्रासदी के बीच, जहाँ भूखमरी बच्चों और आम लोगों की जान ले रही है, आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली सिस्तानी के कार्यालय ने एक आपातकालीन बयान जारी किया है, जिसमें इस्लामी और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से फ़िलिस्तीनी लोगों को सामूहिक मौत से बचाने का आहवान किया गया है और इस त्रासदी के सामने विश्व की अंतरात्मा की चुप्पी के खिलाफ चेतावनी दी गई है।

ग़ज़्ज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी लोगों को जो मानवीय आपदा झेलनी पड़ रही है - एक ऐसी स्थिति जो व्यापक भूखमरी और घेराबंदी व लगातार आक्रमण के कारण पीड़ा को बढ़ाए हुए है - और दो साल तक निरंतर बर्बादी और निर्दोष बच्चों, महिलाओं और बुज़ुर्गों की हत्याओं के बाद, विश्व भर में इस त्रासदी को रोकने की आवाज़ें तेज होती जा रही हैं।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली सिस्तानी के कार्यालय ने, जो इस्लामी उम्मत के मामलों में अपनी स्थिर भूमिका और अत्याचार के शिकारों के समर्थन के लिए जाने जाते हैं, एक बयान जारी किया है। इसमें उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अरब और इस्लामी देशों से अपनी नैतिक और इंसानी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने और असैन्य लोगों को भूख और मौत के संकट से बचाने के लिए तुरन्त कार्रवाई करने का आग्रह किया है।

बयान का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

लगभग दो साल की लगातार हत्या और विनाश के बाद, जिसमें सैकड़ों हज़ार शहीद और घायल हुए हैं और शहरों व आवासीय इलाकों को पूरी तरह तबाह कर दिया गया है, इन दिनों ग़ज़्ज़ा पट्टी में पीड़ित फिलिस्तीनी लोग बेहद कठिन जीवन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं; खासकर भोजन की कमी जो व्यापक अकाल का रूप ले चुकी है और यहाँ तक कि बच्चे, मरीज़ और बूढ़े भी इससे प्रभावित हुए हैं।

हालाँकि कब्ज़ाधारक ताकतों से इसके अलावा कुछ भी अपेक्षित नहीं है – जो फिलिस्तीनियों को उनके भूमि से बेदखल करने के लिए लगातार निर्दयता दिखा रही हैं – लेकिन दुनिया के देशों, विशेष रूप से अरब और इस्लामी देशों से उम्मीद की जाती है कि वे इस बड़ी मानवीय आपदा को जारी रखने न दें और इसे समाप्त करने के लिए पूरी कोशिश करें। उन्हें अत्यधिक दबाव डालना चाहिए ताकि कब्ज़ाधारक और उनके समर्थक तुरंत रास्ते खोलें और बच्चों, बीमारों और निर्दोष नागरिकों तक खाद्य सामग्री और अन्य आवश्यक वस्तुएं पहुँच सकें।

ग़ज़्ज़ा में फैली व्यापक अकाल की दिल दहला देने वाली तस्वीरें, जो मीडिया में सामने आ रही हैं, हर जागरूक इंसान की अंतरात्मा को झकझोर देती हैं और जिनके पास थोड़ी भी संवेदनशीलता है, उनसे खाने-पीने का सुख छीन लेती हैं। ठीक वैसे ही जैसे अमीरुल-मोमेनीन अली (अ) ने इस्लामी भूमियों में एक महिला के साथ हुए अत्याचार के बारे में कहा था: "अगर कोई मुस्लिम इस त्रासदी को देखकर दुःख के कारण मर जाए, तो न केवल उस पर कोई दोष नहीं, बल्कि वह प्रशंसा का हकदार है।"

ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीयुल अज़ीम


 25 जुलाई 2025 

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली सिस्तानी का कार्यालय - नजफ अशरफ

 

 

कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आन्दोलन पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि यह न तो दस दिन के भीतर लिए गए किसी अचानक निर्णय का परिणाम था और न ही इसकी योजना यज़ीद के शासन को देखकर तैयार की गई थी।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के जीवन में ही इस स्थिति का अनुमान लगा लिया गया था कि इस्लाम के समानता और जनाधिकारों पर आधारित मानवीय सिद्धांत, जब भी किसी अत्याचारी के मार्ग में बाधा उत्पन्न करेंगे, उन्हें मिटाने का प्रयास किया जाएगा और इस्लाम के नाम पर अपनी मनमानी तथा एश्वर्य का मार्ग प्रशस्त किया जाएगा।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के जीवन में अनके अन्यायी और दुराचारी व्यक्तियों ने वाह्य रूप से तो इस्लाम स्वीकार कर लिया था परन्तु वे सदैव पैग़म्बरे इस्लाम और उनकी शिक्षाओं को अपने हितों के विपरीत समझते रहे और इसी कारण उनसे और उनके परिजनों से सदैव शत्रुता करते रहे।  दूसरी ओर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम ने अपने परिजनों का पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा और चरित्र निर्माण सबकुछ ईश्वरीय धर्म के अनुसार किया था और उनको एसी आध्यात्मिक एवं मानसिक परिपक्वता प्रदान कर दी थी कि वे बचपन से ही अपने महान सिद्धांतों पर अडिग रहते थे।  यह रीति उनके समस्त परिवार में प्रचलित थी।  इस विषय में पुत्र और पुत्रियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं था।  इसीलिए जिस गोदी में पलने वाले पुत्र हसन व हुसैन बनकर मानव जाति के लिए आदर्श बन गए उसी प्रकार उसी गोदी और उसी घर में पलने वाली बेटियों ने ज़ैनब और उम्मे कुल्सूम बनकर यज़ीदी शासन की चूलें हिला दीं।  इस परिवार में पुरुषों और महिलाओं के महत्व में कोई अंतर नही था।  यदि अंतर था तो बस उनके कार्यक्षेत्रों में।  इस्लामी आदर्शों की सुरक्षा के क्षेत्र में ही यही अंतर देखने में आता है।  बचपन मे तीन महीने की अवधि में नाना और फिर माता के स्वर्गवास के पश्चात समाज तथा राजनीति के विभिन्न रूप, लोगों के बदलते रंग और इस्लाम को मिटाने के अत्याचारियों के समस्त प्रयास हुसैन और ज़ैनब ने साथ-साथ देखे थे और उनसे निबटने का ढंग भी उन्होंने साथ-साथ सीखा था।

 हज़रत ज़ैनब का विवाह अपने चाचा जाफ़र के पुत्र अब्दुल्लाह से हुआ था।  अब्दुल्लाह स्वयं भी अद्वितीय व्यक्तित्व के स्वामी थे और अली व फ़ातिमा की सुपुत्री ज़ैनब भी अनुदाहरणीय थीं।  विवाह के समय उन्होंने शर्त रखी थी कि उनको उनके भाइयों से उन्हें अलग रखने पर विवश नहीं किय जाएगा और यदि भाई हुसैन कभी मदीना नगर छोड़कर गए तो वे भी उनके साथ जाएंगी।  पति ने विवाह की इस शर्त का सदैव सम्मान किया।  हज़रत ज़ैनब, अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र के दो पुत्रों, औन और मुहम्मद की माता थीं।  यह बच्चे अभी दस बारह वर्ष ही के थे कि इमाम हुसैन को यज़ीद का समर्थन न करने के कारण मदीना नगर छोड़ना पड़ा।  हज़रत ज़ैनब अपने काल की राजनैतिक परिस्थितियों को भी भलि-भांति समझ रही थीं और यज़ीद की बैअत अर्थात आज्ञापालन न करने का परिणाम भी जानती थीं।  वे व्याकुल थीं परन्तु पति की बीमारी को देखकर चुप थीं।  इसी बीच अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र ने स्वयं ही उनसे इस संवेदनशील स्थिति में भाई के साथ जाने को कहा और यह भी कहा कि बच्चों को भी अपने साथ ले जाओ तथा यदि समय आजाए, जिसकी संभावना है, तो एक बेटे को अपनी ओर से और दूसरे की मेरी ओर से पैग़म्बरे इस्लाम से सुपुत्र हुसैन पर से न्योछावर कर देना।   इन बातों से एसा प्रतीत होता है कि अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र भी जानते थे कि इमाम हुसैन का मिशन, ज़ैनब के बिना पूरा नहीं हो सकता।

 ज़ैनब कर्बला में आ गईं। कर्बला में उनके साथ आने वाले अपने बच्चे ही नहीं बल्कि भाइयों के बच्चे भी उन्ही की गोदी मे पलकर बड़े हुए थे और यही नहीं माता उम्मुलबनीन की कोख से जन्में चारों भाइयों का बचपन भी उन्ही की गोदी में खेला था।

 ज़ैनब कर्बला में अपने भाई हुसैन के लिए पल-पल बढ़ते ख़तरों का आभास करके ही कांप जाती थीं।  इसीलिए वे भाई से कहती थीं कि पत्र लिखकर अपने मित्रों को सहायता के लिए बुला लीजिए।  विभिन्न अवसरों पर देखा गया कि इमाम हुसैन अपनी बहन से संवेदनशील विषयों पर राय लिया करते थे और परिस्थितियों को नियंत्रित करने में भी हज़रत ज़ैनब सदैव अपने भाई के साथ रहीं।

 नौ मुहर्रम की रात्रि जो हुसैन और उनके साथियों के जीवन की अन्तिम रात्रि थी, हज़रत ज़ैनब ने अपने दोनों बच्चों को इस बात पर पूरी तरह से तैयार कर लिया था कि उन्हें इमाम हुसैन की रक्षा के लिए रणक्षेत्र मे शत्रु का सामना करना होगा और इस लक्ष्य के लिए मृत्यु को गले लगाना होगा।  बच्चों ने भी इमाम हुसैन के सिद्धांतों की महानता को इस सीमा तक समझ लिया था कि मृत्यु उनकी दृष्टि में आकर्षक बन गई थी।

 आशूर के दिन जनाब ज़ैनब ने अपने हाथों से बच्चों को युद्ध के लिए तैयार किया और उनसे कहा था कि औन और मुहम्मद हे मेरे प्रिय बच्चो! हुसैन और उनके लक्ष्य की सुरक्षा के लिए तुम्हारा बलिदान अत्यंत आवश्यक है वरना यह मां तुम्हें कभी मौत की घाटी में नहीं जाने देती।  देखो रणक्षेत्र में मेरी लाज रख लेना।  और बच्चों ने एसा ही किया।

इराकी संसद की सुरक्षा और रक्षा समिति ने आधिकारिक तौर पर हश्शुद अलशाबी को इराकी सशस्त्र बलों में शामिल किया गया।

इराकी संसद की सुरक्षा और रक्षा समिति ने घोषणा की है कि हश्शुद अलशाबी को आधिकारिक रूप से इराकी सशस्त्र बलों का हिस्सा बना दिया गया है और इसके प्रमुख को मंत्री के पद पर नियुक्त किया जाएगा तथा वे राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सदस्य भी होंगे। 

अब से हश्शुद अलशाबी इराकी सशस्त्र बलों में गिनी जाएगी और कानून के अनुसार, यह इराकी सशस्त्र बलों की उच्च कमान के अधीन होगी। इसके कर्मियों को इराकी रक्षा मंत्रालय के सैन्य अकादमी में प्रशिक्षित किया जाएगा। 

यह संगठन आध्यात्मिक और वित्तीय रूप से इराक के अन्य सैन्य संगठनों से स्वायत्त है, लेकिन फिर भी इराकी सशस्त्र बलों की उच्च कमान के अधीन रहेगा।

 

ग़ज़्ज़ा में हज़ारों निर्दोष लोग बेरहमी से मारे जा रहे हैं और बच पाने वाले भी भूख और दवा की कमी से दिन-ब-दिन दम तोड़ रहे हैं। शेख अल-अज़हर ने पुनः स्पष्ट किया कि जो भी हथियारों से इज़राइली शासन की सहायता करता है या नरसंहार को बढ़ावा देने वाले झूठे बयान देता है, वह इस अत्याचार में बराबर का भागीदार है।

जामेअ अज़हर मिस्र के प्रमुख अहमद अल-तैय्यब ने ग़ज्ज़ा की विनाशकारी स्थिति पर गहरा चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज मानवता का एक सबसे बड़ा इम्तिहान चल रहा है। उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि जो कोई भी हथियारों के ज़रिये इज़राइल का समर्थन करता है या उसके फैसलों को सही ठहराता है, वह इस अपराध में साझेदार है।

शेख अल-अज़हर ने विशेष रूप से ज़ोर दिया कि कब्ज़ाधारक गाज़ा के लोगों को जानबूझकर भूखा रखे हुए हैं, जो रोटी के एक टुकड़े और पानी की बूंद के लिए तरस रहे हैं, साथ ही शरणार्थी ठिकानों और राहत केंद्रों को भी गोलीबारी से निशाना बनाया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि ग़ज़्ज़ा में हजारों निर्दोष लोग बेरहमी से मारे जा रहे हैं और बच पाने वाले भी भूख और दवा की कमी से दिन-ब-दिन दम तोड़ रहे हैं। शेख अल-अज़हर ने पुनः स्पष्ट किया कि जो भी हथियारों से इज़राइली शासन की सहायता करता है या नरसंहार को बढ़ावा देने वाले झूठे बयान देता है, वह इस अत्याचार में बराबर का भागीदार है।

ग़ज़्ज़ा में चल रहे अकाल और भुखमरी की समस्या इस क्षेत्र की पूरी तरह घेराबंदी और मानवीय सहायता के रोके जाने के कारण और भी विकट होती जा रही है। उन्होंने विश्व समुदाय से अपील की है कि वे इस आपदा को रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई करें और गाजा के लोगों को राहत पहुंचाने का रास्ता खोलें।

हौज़ा ए इल्मिया के प्रख्यात, सक्रिय और विनम्र शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख अहमद शबानी ने दुनिया को अलविदा कहा, उनके निधन की खबर ने शैक्षणिक और धार्मिक हलकों में दुःख की लहर दौड़ा गई, जिससे उनके शिष्यों, सहयोगियों और प्रियजनों को गहरा सदमा पहुंचा है।

हौज़ा एलमिया के प्रख्यात, सक्रिय और विनम्र शिक्षक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शेख अहमद शबानी ने दुनिया से विदा ले ली। उनके निधन की खबर ने शैक्षणिक और धार्मिक हलकों में दुःख की लहर दौड़ा दी, जिससे उनके शिष्यों, सहयोगियों और प्रियजनों को गहरा सदमा पहुंचा है।   

मरहूम की सादगी, परहेज़गारी, अनुशासन और छात्रों के प्रति निस्वार्थ प्रेम उनके जीवन की विशेषता थी उनका पवित्र जीवन वास्तव में एक धार्मिक विद्वान के लिए एक आदर्श उदाहरण था। 

हौज़ा सूत्रों के अनुसार, मरहूम हमेशा छात्रों को नमाज़-ए-शब की ताकीद किया करते थे और खुद भी इस पर अमल करते थे। पढ़ाई के समय वे छात्रों के साथ पुस्तकालय में मौजूद रहते और अपने कथन व आचरण से एक आदर्श प्रस्तुत करते थे। 

उनका पूरा जीवन ज्ञान और कर्म, विनम्रता और ईमानदारी, सच्चाई और पवित्रता की जीती-जागती मिसाल था ऐसे सक्रिय शिक्षक का जाना शैक्षणिक और धार्मिक जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। 

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी इस दुःखद घटना पर मरहूम के परिवारजनों और चाहने वालों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करता है। 

 

 

ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद क़ालीबाफ़ ने शहीद ग़ुलाम अली रशीद के परिवार से मुलाक़ात के दौरान इज़राईल शासन के ख़िलाफ़ सफलता में उनकी भूमिका की सराहना की।

ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद क़ालीबाफ़ ने ख़ातमु अलअंबिया हेडक्वार्टर के पूर्व प्रमुख शहीद जनरल ग़ुलाम अली रशीद और उनके बेटे शहीद अब्बास रशीद को श्रद्धांजलि दी और इज़राइल के ख़िलाफ ऐतिहासिक प्रतिक्रिया को अभूतपूर्व बताया। 

विस्तार से बताया गया कि क़ालीबाफ़ ने शहीद जनरल रशीद के घर पर उनके परिवार से मुलाक़ात कर शोक व्यक्त किया और कहा कि जिस तरह से 12 दिन के युद्ध में ज़ायोनी सरकार को जवाब दिया गया, वह उसके इतिहास में एक अनोखा मोड़ है।

इस तरह की हिम्मत और ऊर्जा किसी और देश में नहीं देखी गई। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने साबित किया कि वह यह क्षमता रखता है। इन सभी कार्यवाहियों में शहीद जनरल रशीद की भूमिका प्रमुख और निर्णायक थी। 

क़ालीबाफ़ ने शहीद जनरल रशीद के व्यक्तित्व को अद्वितीय बताया और कहा कि उनकी दूरदर्शिता, रणनीति, रचनात्मकता और साहसी नेतृत्व ने ईरान की सैन्य रणनीति को नई दिशा दी। 

उनके अनुसार, शहीद जनरल रशीद न केवल युद्ध के मैदान के विशेषज्ञ थे, बल्कि बौद्धिक और संचालनात्मक स्तर पर भी एक दुर्लभ रत्न थे। 

उन्होंने शहीद जनरल रशीद और उनके बेटे की शहादत के बाद परिवार के दुःख को गहरा सदमा बताया और दुआ की कि ईश्वर इस सब्र का सर्वोत्तम प्रतिफल प्रदान करे। 

इस अवसर पर उन्होंने इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स (IRGC) की खुफिया शाखा के उप प्रमुख शहीद मेजर जनरल हसन मोहक्किक के घर जाकर उनके परिवार से भी मुलाक़ात की और उन्हें भी श्रद्धांजलि अर्पित की।

 

27 देशों ने ग़ज़्जा पर हमले बंद करने और तुरंत संघर्ष विराम की मांग की है। इन देशों ने ग़ज़्ज़ा के लोगों के साथ एकजुटता जताई है।

ब्रिटेन और 27 अन्य देशों ने ग़ज़्ज़ा में तत्काल युद्धविराम की मांग की है। इन देशों का कहना है कि ग़ज़्ज़ा के नागरिकों की तकलीफें असहनीय हो गई हैं। एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि इज़राइल की मदद पहुंचाने की प्रक्रिया खतरनाक है और वे इसे कड़ी निन्दा करते हैं।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ग़ज़्ज़ा में हमास के नियंत्रण वाली स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि सप्ताहांत में खाना मिलने का इंतजार करते हुए 100 से ज्यादा फिलिस्तीनी इज़रायली फायरिंग में मारे गए और 19 अन्य भोजन की कमी से जान गंवा बैठे।

हालांकि, इज़राइल के विदेश मंत्रालय ने इन देशों के बयान को खारिज किया और कहा कि उनका बयान हकीकत से परे है और हमास को गलत संदेश देता है। इज़राइल ने हमास पर युद्ध विराम और बंदियों की रिहाई पर नए समझौते पर आने के बजाय झूठ फैलाने और मदद की आपूर्ति कमजोर करने का आरोप लगाया है।

पिछले 21 महीनों से हमास के साथ जारी युद्ध में ग़ज़्ज़ा में इज़राइल की नीतियों की निंदा करने वाले कई अंतरराष्ट्रीय बयानों के विपरीत, यह घोषणा सच्चाई के लिए सराही जा रही है।

इस बयान पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, इटली, जापान, न्यूजीलैंड और स्विट्ज़रलैंड सहित 27 देशों के विदेश मंत्री शामिल हैं।

 

गज़्ज़ा पट्टी में इसराइली और मिस्री सख्त घेराबंदी के कारण एक गम्भीर मानवीय संकट पैदा हो गया है, जिसका सबसे बड़ा पहलू व्यापक भूख और खाद्य सामग्री की भारी कमी है।

हाल के दिनों में ग़ज़्ज़ा के हालात की दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं, जो इस क्षेत्र में अकाल, भूखमरी और कुपोषण के संकट को दर्शाती हैं।

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और सहायता संगठनों की रिपोर्ट के अनुसार, ग़ज़्ज़ा पट्टी जिसमें लगभग 20 लाख लोग रहते हैं, को रोजाना लगभग 600 ट्रकों की खाद्य सामग्री की जरूरत होती है। लेकिन हक़ीक़त में केवल 50 से 100 ट्रक ही अनियमित और बहुत कम मात्रा में वहां पहुंचते हैं। इस घेराबंदी के कारण फसलों, सामान और जरूरी चीजों का आवागमन इसराइल के कब्जे वाले इलाकों और मिस्र की सीमाओं से बहुत सीमित हो गया है, जिसके चलते कई परिवार कई दिनों तक भोजन नहीं पा रहे हैं और भूख की मुश्किल स्थिति में हैं।

खाद्य पदार्थ, ईंधन और पानी की भारी कमी ने हालात को बेहद कठिन बना दिया है। रिपोर्ट्स में बताया गया है कि बच्चे और आम जनता बहुत ज्यादा भूखे हैं, कई मौतें भी भूख के कारण हो रही हैं। यूनिसेफ और अनरवा ने चेतावनी दी है कि कुपोषण की स्थिति अभूतपूर्व रूप से बढ़ गई है और अस्पताल भरे हुए हैं जहां भूखे मरीजों के लिए दवाइयां और बेड की कमी है। सामान और लोगों की कम आमदनी के कारण काले बाज़ार ने जन्म लिया है, जिससे बहुत से गरीब लोग खाद्य सामग्री खरीद पाने में असमर्थ हो गए हैं।

इस मानवीय संकट में, कार्यकर्ताओं ने तीन मुख्य कदमों पर ज़ोर दिया है:

  1. भरोसेमंद संस्थाओं जैसे "ईरान हमदिल" को वित्तीय सहायता देना ताकि आवश्यक वस्तुएं भेजने और ट्रकों की संख्या बढ़ाने में मदद मिल सके।
  2. ग़ज़्ज़ा के लोगों की मुसीबत दूर होने की फरियाद में दुआ और रोज़ा रख कर माअनवी सहायता देना।
  3. मीडिया और जन जागरूकता के ज़रिए इस संकट को भुलाए जाने से रोकना और पश्चिमी देशों और इज़राइल पर घेराबंदी खत्म करने के लिए दबाव बनाना।

साथ ही, अन्य इस्लामी देशों द्वारा शांति के जहाज़ भेजकर घेराबंदी तोड़ने की बात की गई है, लेकिन ईरान युद्ध की स्थिति के कारण ऐसा नहीं कर सकता। इस क्षेत्र के दूसरे देश इस काम में अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।

अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी बताया गया है ताकि बार-बार दर्दनाक तस्वीरें देखने से उत्पन्न चिंता और डिप्रेशन से बचा जा सके। दुआ और उम्मीद के साथ-साथ व्यावहारिक मदद में बने रहना जरूरी है।

यह भी याद दिलाया गया है कि यमन के संकट से गुजरते हुए अनुभव से सीख लेकर इस तरह की मुसीबतों को पार किया जा सकता है।

इस प्रकार, ग़ज़्ज़ा की भयावह स्थिति को देखते हुए, लोगों की मदद के लिए दिल से साथ देना और मिल-जुलकर आर्थिक, आध्यात्मिक और मीडिया के ज़रिए सहायक कदम उठाना सबसे प्रभावी रास्ता माना जाता है। ये कदम फंसे हुए लोगों की मदद करने और उनके तकलीफों को कम करने में बहुत अहम हैं।