رضوی

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ईरानी संसदसभापित ने अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के पालन पर आयोजित एक बैठक में इज़राइली शासन की ग़ाज़ा में की गई कार्रवाइयों की तुलना नाज़ियों के अपराधों से की है।

 मोहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ ने मंगलवार को जिनेवा में विश्व की संसदों के अध्यक्षों के छठे सम्मेलन के मार्जिन पर आयोजित "अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन: अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की गारंटी" विषय की बैठक में कहा: " ग़ाज़ा में हो रहा अपराध केवल एक क्षेत्रीय संकट नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए ख़तरे की घंटी है।"

 क़ालीबाफ़ ने आगे कहा: "यह ज़ायोनी शासन एक ऐसा शासन है जो शांतचित्त होकर और योजनाबद्ध तरीके से एक ऐसा अपराध कर रहा है, मानो यह इतिहास के सबसे भयानक अपराधों के सपनों से निकला हो।"

 उन्होंने जोर देकर कहा: "इज़राइल के सामने खड़े होने में हर पल की देरी, 21वीं सदी के नाज़ियों के अपराधों में साझीदारी के समान है। अगर 21वीं सदी के ये नाज़ी ग़ाज़ा में जीत जाते हैं, तो यह आग दुनिया के अन्य हिस्सों में भी फैल जाएगी।"

 अमेरिका ने चीन को चेतावनी दी

अमेरिकी वित्त मंत्री "स्कॉट बेसेंट" ने मंगलवार को देशों के आंतरिक मामलों में खुला हस्तक्षेप करते हुए घोषणा की कि स्टॉकहोम में अमेरिका-चीन व्यापार वार्ता के दौरान, चीनी अधिकारियों को चेतावनी दी गई है कि रूस और ईरान से प्रतिबंधित तेल की ख़रीद जारी रखने पर 100% तक भारी टैरिफ लगाया जा सकता है।

 यमनी हमला बेन-गुरियन हवाई अड्डे पर

यमन के सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल यहिया सरई ने मंगलवार को एक बयान में घोषणा की कि फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में एक विशेष सैन्य अभियान के तहत, याफ़ा क्षेत्र में स्थित बेन-गुरियन हवाई अड्डे को हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल "फिलिस्तीन-2" से निशाना बनाया गया। बयान के अनुसार यह ऑपरेशन पूरी तरह से सफल रहा।

 मेदवेदेव ने ग्राहम की बयानबाजी का जवाब दिया

रूस की सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष "दिमित्री मेदवेदेव" ने मंगलवार को अमेरिकी रिपब्लिकन सीनेटर "लिंडसे ग्राहम" के उस बयान का जवाब दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि यूक्रेन युद्ध के समाधान के लिए मा᳴स्को को अब बातचीत की मेज़ पर आना चाहिए। मेदवेदेव ने स्पष्ट किया: "यह तय करना कि मा᳴स्को कब बातचीत की मेज़ पर आएगा, यह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प या किसी और का निर्णय नहीं है।"

 यूनान के समुद्र तटों पर ज़ायोनी पर्यटकों का प्रवेश रोका गया

ग़ाज़ा में नरसंहार और मानवीय सहायता को रोके जाने के विरोध में, यूनान के लोगों ने इज़रायली पर्यटकों को अपने देश के द्वीपों में प्रवेश करने से रोक दिया है। इस मुद्दे ने यूनानी पुलिस के साथ उनकी झड़पों को जन्म दिया है।

 अल्बानेस ने ज़ायोनी शासन के अपराधों के खिलाफ़ पश्चिम की निष्क्रियता पर आपत्ति जताई

संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टर "फ्रांसेस्का अल्बानेस" ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक संदेश में कहा: "इज़रायल के प्रति अंतरराष्ट्रीय कानून लागू करने में पश्चिमी नेताओं की पूर्ण अक्षमता, उनकी निष्क्रियता का एक महाकाव्य है। मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति कुछ नहीं करते, ध्यान भटकाते हैं, कुछ मंत्रियों पर प्रतिबंध लगाते हैं - लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय कानून का कार्यान्वयन नहीं है।"

 संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में फ़िलिस्तीन देश के गठन पर सहमति

संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क में आयोजित "अंतर्राष्ट्रीय फ़िलिस्तीन सम्मेलन" के अंतिम बयान के मसौदे के अनुसार, जिसका उद्देश्य फिलिस्तीन मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के प्रयासों को आगे बढ़ाना है, प्रतिभागियों ने संघर्ष और युद्ध को समाप्त करने तथा एक स्वतंत्र फिलिस्तीन देश के गठन की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की।

 ईरान-रूस मीडिया सहयोग को मजबूत करने की आवश्यकता

मॉस्को में ईरान के राजदूत "काज़िम जलाली" और रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता "मारिया ज़खारोवा" ने मंगलवार को एक बैठक में दोनों देशों के बीच संबंधों को नुकसान पहुंचाने वाली मीडिया शरारतों का ज़िक्र करते हुए, फ़र्ज़ी ख़बरों और विनाशकारी मीडिया प्रवाह से निपटने के उपायों पर चर्चा की और इस संबंध में सुझाव पेश किए।

 इज़रायली राजदूत का यौन कांड - यूएई में शर्मसार

इज़राइली चैनल 12 ने खुलासा किया कि यूएई में इज़राइल के राजदूत "योसी शेली" एक यौन कांड के बाद पद छोड़कर तेल अवीव लौटेंगे।

 यूरोप को ईरान पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं - रूसी विशेषज्ञ

रूसी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर "लाना रवांदी फ़िदाई" ने कहा कि यूरोपीय ट्रॉइका ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी के पास ईरान पर प्रतिबंध वापस लगाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

 UNRWA: ग़ाज़ा को हवाई सहायता भेजना ख़तरनाक और बेअसर

UNRWA की संचार निदेशक "जुलिएट तोमा" ने कहा कि ग़ाज़ा को हवाई मार्ग से सहायता भेजना प्रचार तो करता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से अप्रभावी है, जबकि ट्रकों से सहायता भेजना बेहतर विकल्प है।

 

 

तीन यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के नेताओं ने एक बार फिर ईरान को ट्रिगर मैकेनिज्म सक्रिय करने की धमकी दी है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान के अनुसार, "ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर, तीनों देशों के नेताओं ने सहमति व्यक्त की है कि अगर ईरान अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ सहयोग करने और कूटनीति पर लौटने में विफल रहता है, तो अगस्त के अंत में उस पर फिर से प्रतिबंध लगाए जाएँगे।"

तीन यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के नेताओं ने एक बार फिर ईरान को ट्रिगर मैकेनिज्म सक्रिय करने की धमकी दी है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान के अनुसार, "ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर, तीनों देशों के नेताओं ने सहमति व्यक्त की है कि अगर ईरान अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ सहयोग करने और कूटनीति पर लौटने में विफल रहता है, तो अगस्त के अंत में उस पर फिर से प्रतिबंध लगाए जाएँगे।"

जब भी विश्व शक्तियों द्वारा ईरान पर कड़े प्रतिबंधों की धमकी दी जाती है, तो कोई भी हँसे बिना नहीं रह सकता। ईरान पिछले चालीस वर्षों से पश्चिम के बढ़ते आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंधों से जूझ रहा है, लेकिन पश्चिमी दबाव के आगे झुकने के बजाय, ईरान ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की एक सफल नीति अपनाई है।

ईरान ने समझौते का पालन किया है

2015 से 2018 तक, आईएईए निरीक्षकों ने अपनी रिपोर्टों में पुष्टि की कि ईरान परमाणु समझौते का पूरी तरह से पालन कर रहा है, लेकिन बदले में ईरान को क्या मिला? समझौते की एक प्रमुख शर्त यह थी कि ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी, बदले में उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित किया जाएगा। हालाँकि, पश्चिमी देश, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, प्रतिबंधों को हटाने में अनिच्छुक रहे हैं। हालाँकि कुछ प्रतिबंध प्रतीकात्मक रूप से हटा दिए गए थे, लेकिन व्यवहार में ईरान की अर्थव्यवस्था को कोई बड़ी राहत नहीं मिली है। अंतर्राष्ट्रीय बैंकों और कंपनियों ने अमेरिकी दबाव में ईरान के साथ व्यापार करने से परहेज किया है, जिससे ईरान समझौते का आर्थिक लाभ नहीं उठा पा रहा है।

अमेरिका की वापसी और वैश्विक चुप्पी

2018 में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एकतरफ़ा तौर पर जेसीपीओए से हटने की घोषणा की और "अधिकतम दबाव" की नीति के तहत ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। इस फ़ैसले ने समझौते की मूल भावना को गहरा आघात पहुँचाया। यूरोपीय देशों (यूके, फ़्रांस, जर्मनी) ने अमेरिका के फ़ैसले की निंदा की, लेकिन व्यवहार में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। उन्होंने ईरान के साथ व्यापार के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था शुरू की, लेकिन यह व्यवस्था अप्रभावी साबित हुई और ईरान की आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं कर सकी।

विश्व शक्तियों की इस चुप्पी ने ईरान के आत्मविश्वास को और कमज़ोर कर दिया। ईरान का कहना था कि अगर समझौते के पक्ष अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर रहे हैं, तो ईरान को भी समझौते से छूट दी जा सकती है। परिणामस्वरूप, ईरान ने 2019 से अपने परमाणु कार्यक्रम पर कुछ सीमाएँ तोड़नी शुरू कर दीं, जैसे कि यूरेनियम संवर्धन का स्तर बढ़ाना, लेकिन उसने हमेशा दावा किया कि ये उपाय अस्थायी थे और बातचीत के ज़रिए इन्हें वापस लिया जा सकता है।

आईएईए के विरुद्ध हालिया विवाद और आरोप

हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2024-2025 के दौरान, ईरान और इज़राइली-अमेरिकियों के बीच तनाव चरम पर पहुँच गया है। इज़राइल ने प्रमुख ईरानी सैन्य अधिकारियों और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया है और ईरानी परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला किया है। ईरान ने अपनी जाँच के बाद निष्कर्ष निकाला है कि कुछ आईएईए निरीक्षकों ने इज़राइल और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए जासूसी की थी, जिसके कारण ईरान ने आईएईएनिरीक्षकों को अपने प्रतिष्ठानों में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया। ईरान का कहना है कि यह निर्णय उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए आवश्यक था, क्योंकि निरीक्षकों की रिपोर्ट संवेदनशील जानकारी लीक कर रही थी जिसका इस्तेमाल हमलों के लिए किया गया था। आईएईए ने अभी तक यह साबित नहीं किया है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है, लेकिन उसने चेतावनी दी है कि ईरानी परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमले क्षेत्र में तबाही मचा सकते हैं। ईरान का कहना है कि उसने अपनी परमाणु गतिविधियों का विस्तार केवल रक्षात्मक उद्देश्यों के लिए किया है, और यह पश्चिमी आक्रमण का जवाब है।

प्रतिबंधों का प्रभाव और ईरान का लचीलापन

ईरान पिछले चार दशकों से विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों के अधीन है। इन प्रतिबंधों के बावजूद, ईरान ने अपनी रक्षा क्षमताओं, विशेष रूप से मिसाइल और ड्रोन तकनीक में उल्लेखनीय प्रगति की है। हाल ही में ईरान-इज़राइल संघर्ष के दौरान, ईरानी मिसाइलों ने इज़राइल की उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों (जैसे एरो और डेविड्स स्लिंग) को नष्ट कर दिया, जिससे इज़राइली शहरों और कतर में एक अमेरिकी सैन्य अड्डे को भारी नुकसान पहुँचा। यह घटनाक्रम प्रतिबंधों के बावजूद ईरान की आत्मनिर्भरता और तकनीकी क्षमताओं को दर्शाता है।

ईरान का कहना है कि प्रतिबंधों के खतरे का उस पर कोई असर नहीं है, क्योंकि वह दशकों से इनका सामना कर रहा है। सच तो यह है कि जेसीपीओए के तहत प्रतिबंधों को कभी पूरी तरह से हटाया नहीं गया है, और दी गई प्रतीकात्मक राहत ईरान की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए अपर्याप्त रही है। इसलिए, "स्नैपबैक" तंत्र या नए प्रतिबंधों का खतरा ईरान के लिए कोई नई बात नहीं है। मिसाइल और ड्रोन तकनीक में ईरान की प्रगति ने साबित कर दिया है कि प्रतिबंध उसकी आत्मनिर्भरता को कमज़ोर करने के बजाय मज़बूत करते हैं। वर्तमान स्थिति में, "स्नैपबैक" तंत्र का खतरा ईरान पर दबाव बढ़ाने का एक और प्रयास है, लेकिन इसका ईरान पर कोई असर नहीं होगा, हालाँकि इससे क्षेत्र में तनाव और बढ़ेगा। पश्चिमी शक्तियों को यह समझना चाहिए कि ईरान अतीत में धमकियों के आगे नहीं झुका है और भविष्य में भी ऐसा नहीं करेगा। ईरान ने अपना परमाणु कार्यक्रम नहीं छोड़ा है।लेकिन वह हमेशा बातचीत के लिए तैयार रहा है, लेकिन पश्चिमी शक्तियों ने हमेशा उसे धोखा दिया है।

लेखक: जमाल अब्बास फ़हमी

आज जब कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत की हर तरफ़ धूम है जिसको देखो वहीं आपकी ज़ियारत के लिये दुनिया के कोने कोने से चला जा रहा है तो इस समय कुछ इस्लाम के दुश्मन और हुसैनियत से दूर लोग इसके विरुद्ध दुषप्रचार कर रहे हैं और हर प्रकार से इसको इस्लाम के विरुद्ध और बिदअत बताने का प्रयत्न कर रहे हैं, और कहते हैं कि चूँकि यह पैदल यात्रा चेहलुम में कर्बला जाना पैग़म्बर (स) के ज़माने में नहीं था इसलिये यह बिदअत है और मुसलमानों को यह नहीं करना चाहिए यह शिक्र है आदि, लेकिन इन बिदअत कहने वालों ने एक बार भी यह न

आज जब कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत की हर तरफ़ धूम है जिसको देखो वहीं आपकी ज़ियारत के लिये दुनिया के कोने कोने से चला जा रहा है तो इस समय कुछ इस्लाम के दुश्मन और हुसैनियत से दूर लोग इसके विरुद्ध दुषप्रचार कर रहे हैं और हर प्रकार से इसको इस्लाम के विरुद्ध और बिदअत बताने का प्रयत्न कर रहे हैं, और कहते हैं कि चूँकि यह पैदल यात्रा चेहलुम में कर्बला जाना पैग़म्बर (स) के ज़माने में नहीं था इसलिये यह बिदअत है और मुसलमानों को यह नहीं करना चाहिए यह शिक्र है आदि, लेकिन इन बिदअत कहने वालों ने एक बार भी यह नहीं सोंचा कि पैग़म्बर के ज़माने में तो स्वंय इनका भी वजूद नहीं था तो क्या यह स्वंय भी बिदअत की पैदाइश हैं?!

बहरहाल इस लेख में हमाला मक़सद बिदअत पर बहस करना नहीं है, लेकिन चूँकि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के विरुद्ध आज यह वहाबी लोग बहुत कुछ बोल रहे हैं इसलिये हम इस लेख में अहलेबैत (अ) की हदीसों द्वारा इमाम हुसैन (अ) ज़ियारत को छोड़ देने के नतीजों और प्रभावों के बारे में बातचीत करेंगे।

  1. हलबी ने इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः जो भी इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को छोड़ दे, जब कि वह इस कार्य पर सामर्थ हो तो उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की अवहेलना की है।
  2. अबदुर्रहमान बिन कसीर रिवायत करते हैं कि इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमायाः अगर कोई पूरा जीवन जह करता रहे, लेकिन इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत न करे उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अधिकारों में से एक अधिकार का हनन किया है, एक दूसरी रिवायत में आया हैः अगर तुम में से कोई हज़ार हज करे, लेकिन हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत के लिये न जाए उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अधिकारों में से एक अधिकार का हनन किया है।
  3. मोहम्मद बिन मुस्लिम ने अबू जाफ़र (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः जो भी हमारे शियों मे से इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत पर न जाए उसका ईमान और दीन ख़राब हो गया है।
  4. एक दूसरी रिवायत में आया है कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत का न करना आप पर ज़ुल्म है। अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने फ़रमायाः मेरे पिता, हुसैन (अ) पर क़ुरबान हो जाएं, वह कूफ़ा के द्वार पर क़ल्त किया जाएगा, मैं देख रहा हूँ कि जंगली जानवरों ने अपनी गर्दनों को उसके शरीर पर झुका रखा है और सुबह तक उस पर मरसिया पढ़ते हैं, जब ऐसा है, मेरे हुसैन (अ) पर अत्याचार करने से बचो।
  5. इब्ने मैमून ने रिवायत की है कि इमाम सादिक़ (अ) ने मुझ से फ़रमायाः मुझे सूचना मिली है कि हमारे कुछ शिया एक साल, दो साल और इससे अधिक उमर उनकी बीत चुकी है लेकिन वह हुसैन इब्ने अली बिन अबीतालिब (अ) की ज़ियारत को नहीं जाते हैं। (यानी कई कई साल हुसैन की ज़ियारत के लिये कर्बला नहीं जाते हैं)

मैंने कहाः मेरी जान आप पर क़ुरबान! मैं ऐसे बहुत अधिक लोगों को नहीं जानता हूँ (कि वह ज़ियारत को न जाएं)

आपने फ़रमायाः ईश्वर की सौगंध उन्होंने ग़ल्त किया और ईश्वर के सवाब को बरबाद किया और मोहम्मद (स) के पड़ोस से दूर हो गये।

मैंने पूछाः अगर कोई हर साल एक बार ज़ियारत पर जाए तो क्या यह काफ़ी है?

आपने फ़रमायाः हाँ, उसका बाहर निकलना ही अल्लाह के नज़दीक़ बहुत सवाब रखता है और उसके लिये नेकी है।

कहा गया है कि आपकी यह बात (कि उसने ईश्वर के सवाब को बरबाद किया है) उस व्यक्ति के लिये भी सही है जो बहुत दूर रहता है और इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत पर जाने पर सामर्थ भी रखता है लेकिन तीन साल तक न जाए।

  1. बहुत सी रिवायतों में आया है कि ज़ियारत पर न जाना आयु को घटाता है, दूसरी रिवायत में आया है कि आपकी ज़ियारत को छोड़ना, जीवन से एक साल कम कर देता है, और इसमें कोई संदेह नहीं है।
  2. एक रिवायत के अनुसार, आपकी ज़ियारत को छोड़ने वाला, अगर स्वर्ग में प्रवेश करे, उसका स्थान स्वर्ग के हर मोमिन के स्थान से नीचा होगा, और पैग़म्बर (स) के पड़ोस से दूर है।
  3. इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को छोड़ने वाला नर्क वालों मे से है और वह लज्जित और अपमानित होगा।

(ख़साएसे हुसैनिया किताब से लिया गया)

 हुज्जतुल इस्लाम सैयद मुख़्तार हुसैन जाफ़री ने "हिंदुस्तान टाइम्स" द्वारा रहबर-ए-इन्क़िलाब इस्लामी हज़रत आयतुल्लहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई की शान में की गई गुस्ताख़ी की कड़ी निंदा करते हुए इसे यहूदी व पश्चिमी एजेंडे का हिस्सा और करोड़ों विलायत-परस्तों की भावनाओं पर हमला क़रार दिया।

भारत के राज्य जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ आलिम-ए-दीन हुज्जतुल इस्लाम सैयद मुख़्तार हुसैन जाफ़री ने अपने बयान में हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा रहबर-ए-इन्क़िलाब इस्लामी की शान में की गई बेहूदा टिप्पणी की सख़्त अल्फ़ाज़ में निंदा की है।

उन्होंने कहा,हम भारतीय मीडिया के उस घटिया, बेशर्म और गैर ज़िम्मेदार रवैये की कड़ी निंदा करते हैं, जिसमें रहबर-ए-मुअज़्ज़म, वली-ए-फ़क़ीह, इमाम सैयद अली ख़ामेनई पर बेबुनियाद, बकवास और सरासर झूठे इल्ज़ाम लगाए गए कि जैसे वह नशे के आदी हैं। यह आरोप न सिर्फ़ ईरान के रूहानी निज़ाम पर हमला है, बल्कि करोड़ों आशिक़ाने विलायत की भावनाओं को रौंदने की घिनौनी कोशिश है।

उन्होंने आगे कहा,भारतीय मीडिया को न सच्चाई से कोई वास्ता है, न तहक़ीक़ से। यह महज़ पश्चिमी व यहूदी एजेंडे को पूरा कर रहा है, जो हमेशा से मुस्लिम नेतृत्व को बदनाम करने की साज़िश करता आया है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ईरान में नशाखोरी के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानून मौजूद हैं, जिनमें मौत की सज़ा तक शामिल है। रहबर-ए-मुअज़्ज़म ने कई बार अपने ख़िताबों में नशे को ‘तबाहकुन, शैतानी हथियार’ कहा है। ऐसे झूठे प्रोपेगेंडा सिर्फ़ यहूदी लॉबी, अमेरिकी व पश्चिमी खुफिया एजेंसियों और उनके स्थानीय गुलामों का मानसिक हमला हैं।

अंत में उन्होंने दुनिया भर के मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा,हमें रहबर की रहनुमाई, परहेज़गारी और सच्चाई की पहचान को आम करना होगा और उनकी शान में गुस्ताख़ी करने वालों को सख़्त से सख़्त जवाब देना होगा। यह चुप रहने का नहीं, बोलने और डटकर जवाब देने का समय है रहबर की इज़्ज़त हमारी ग़ैरत है, और ग़ैरत का सौदा नहीं किया जाता।

 

नई दिल्ली में ईरानी दूतावास ने कुछ भारतीय मीडिया संस्थानों द्वारा ईरान और उसकी नेतृत्व के खिलाफ प्रकाशित असंतुलित और गैर जिम्मेदाराना खबरों को खारिज करते हुए कहा है कि ऐसी रिपोर्टिंग न केवल जनता के विश्वास को ठेस पहुँचाती है बल्कि पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों का भी उल्लंघन है।

नई दिल्ली स्थित इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के दूतावास द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में कुछ भारतीय मीडिया द्वारा ईरान और उसके महान नेतृत्व के खिलाफ प्रसारित खबरों को तथ्यों के विपरीत और सनसनी फैलाने वाला बताया गया है। 

बयान में कहा गया है कि इस तरह की अप्रमाणित और पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग न केवल जनता के विश्वास को ठेस पहुँचाती है, बल्कि इन मीडिया संस्थानों की पेशेवर प्रतिष्ठा को भी गंभीर नुकसान पहुँचाती है। 

दूतावास ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जनता को सही जानकारी प्राप्त करने के अधिकार पर जोर देते हुए कहा कि मीडिया को अपनी खबरों में निष्पक्षता, पारदर्शिता और पेशेवर ईमानदारी को ध्यान में रखना चाहिए, और ईरान से संबंधित किसी भी जानकारी को प्रकाशित करने से पहले विश्वसनीय स्रोतों से इसकी पुष्टि करनी चाहिए। 

बयान में आगे कहा गया है कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के सर्वोच्च नेता, जो देश की सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर भी हैं, ने सियोनी हमले के दौरान बड़ी हिकमत और साहस के साथ नेतृत्व करते हुए देश को एक बड़ी सफलता दिलाई। ईरान ने इस युद्ध में सियोनी सरकार को निर्णायक हार दी, जिसे वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण रक्षात्मक सफलता के रूप में मान्यता मिली। 

अंत में, ईरानी दूतावास ने भारतीय मीडिया से आग्रह किया कि वह विदेशी प्रचार का औजार बनने के बजाय पत्रकारिता की ईमानदारी, संतुलन और जिम्मेदारी का प्रदर्शन करे, और ईरान भारत के बीच मौजूद ऐतिहासिक और मैत्रीपूर्ण संबंधों को और मजबूत करने में सकारात्मक भूमिका निभाए।

 

इस्फ़हान के इमाम जुमा ने कहा: कुरान से दूरी जीवन को आध्यात्मिक मृत्यु की ओर ले जाती है, जबकि कुरान के साथ जीवन व्यतीत करना और उसे मार्गदर्शक बनाना सभी की ज़िम्मेदारी है और समाज की आध्यात्मिक जीवन की कुंजी है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन रसूल हक़शनास ने कुरान करीम के मार्गदर्शन और समाज सुधार में अद्वितीय भूमिका की ओर इशारा करते हुए कहा,कुरान करीम एक आसमानी किताब और सबसे व्यापक दैवीय स्रोत के रूप में ईमान वालों के लिए रहमत, शिफा और सलामती का कारण है, जबकि यह ज़ालिमों और काफिरों के लिए हानिकारक है। 

उन्होंने आगे कहा,यह किताब, जो हर प्रकार की तहरीफ़ से पाक है, मोमिनीन पर कई ज़िम्मेदारियाँ डालती है, जैसे कुरान के दुश्मनों से दूरी, इसकी आयतों में गहराई से सोचना, कुरानी शिक्षाओं पर अमल करना, दूसरों को कुरान सिखाना और इस आसमानी किताब की हिफाज़त करना। 

हुज्जतुल इस्लाम हक़शनास ने कहा, यह कर्तव्य पिछले कुछ वर्षों में इस्लामी क्रांति और दुनिया के कई देशों का ध्यान केंद्रित बने हैं, जिसके परिणामस्वरूप अवकाफ़ सांस्कृतिक संस्थानों और अन्य संगठनों द्वारा कुरानिक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया है।

यह प्रतियोगिताएँ समाज सुधार और व्यक्तियों की आंतरिक बीमारियों के इलाज का प्रभावी साधन मानी जाती हैं, क्योंकि समाज की मुक्ति और प्रगति का एकमात्र मार्ग कुरान से जुड़ाव है।उन्होंने कहा, यह कार्यक्रम विशेष रूप से युवाओं में आध्यात्मिक उत्साह और जोश को बढ़ाते हैं और उन्हें कुरान की आयत
«فَاستَبِقُوا الخَیرات»
(अच्छे कार्यों में एक-दूसरे से आगे बढ़ो) के अनुसार नेकियों में प्रयास और प्रतिस्पर्धा की ओर ले जाते हैं। 

हुज्जतुल इस्लाम हक़शनास ने आगे कहा, कुरानिक गतिविधियों के प्रभाव को बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि आम लोगों के कुरान से लगाव और प्रेम को और मजबूत किया जाए, ताकि कुरान समाज के जीवन में रच-बस जाए। कुरान से दूरी जीवन को आध्यात्मिक मृत्यु की ओर ले जाती है, जबकि कुरान के साथ जीवन व्यतीत करना और उसे अपना नेता बनाना सभी की ज़िम्मेदारी है।

 

यमनी सैन्य प्रवक्ता जनरल याहया सरिया ने कहा कि गाजा के समर्थन में इजरायल की नौसैनिक नाकाबंदी को सख्त बनाया जाएगा और इजरायल के साथ सहयोग करने वाली कंपनियों के जहाजों पर हमलों को तेज किया जाएगा।

यमनी सशस्त्र बलों ने एक बयान में घोषणा की है कि गाजा पर ज़ायोनी अत्याचारों के जवाब में इजरायली हितों के खिलाफ हमलों को और अधिक तीव्र किया जाएगा दुश्मन की नौसैनिक नाकाबंदी के चौथे चरण की शुरुआत कर दी गई है। 

मेजर जनरल याहया सरिया ने कहा कि गाज़ा में जारी नरसंहार, बमबारी, घेराबंदी, भूख-प्यास और वैश्विक खामोशी के खिलाफ यमन अपनी धार्मिक, नैतिक और मानवीय जिम्मेदारी महसूस करता है। गाजा के निर्दोष फिलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचार ऐसे नहीं हैं कि कोई सचेत मनुष्य उन पर चुप रह सके। 

याहया सरिया ने बयान में कहा कि हम अल्लाह पर भरोसा करते हुए गाजा के मजलूम लोगों के समर्थन में सैन्य कार्रवाइयों को तीव्र कर रहे हैं और नौसैनिक घेराबंदी के चौथे चरण की शुरुआत कर रहे हैं इस चरण में उन सभी जहाजों को निशाना बनाया जाएगा जो किसी भी ऐसी कंपनी के स्वामित्व में हों जो इजरायली बंदरगाहों के साथ सहयोग कर रही हो। 

प्रवक्ता ने सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि सभी कंपनियों को चाहिए कि वे तुरंत इजरायली बंदरगाहों के साथ अपना सहयोग बंद कर दें, अन्यथा उनके जहाजों को चाहे वे किसी भी दिशा में जा रहे हों, यमनी मिसाइलों और ड्रोन्स से निशाना बनाया जाएगा। 

बयान में आगे कहा गया कि यदि वैश्विक समुदाय यमनी सेना के हमलों की तीव्रता को रोकना चाहता है, तो उसे चाहिए कि वह इजरायल पर दबाव डाले ताकि वह अपने हमले बंद करे और गाजा की घेराबंदी खत्म करे। 

अंत में बयान में स्पष्ट किया गया कि यमनी सेना की ये सभी कार्रवाइयाँ फिलिस्तीनी लोगों के साथ नैतिक और मानवीय प्रतिबद्धता का प्रतीक हैं। जैसे ही गाजा पर हमले बंद होंगे और घेराबंदी खत्म की जाएगी, हमारी सैन्य कार्रवाइयाँ भी रुक जाएँगी।

 

 यमन की सशस्त्र सेना ने एक बयान जारी कर ज़ायोनी शासन को चेतावनी दी है कि ग़ाज़ा के समर्थन में हमले तेज़ होंगे और इस्राइल की नाकाबंदी और सख्त होगी।

यमन के सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर यहिया सरीअ ने अपने बयान में कहा कि अतिग्रहित फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों ख़ासकर ग़ाज़ा पट्टी में तेजी से बदलती स्थिति, जारी सुनियोजित नरसंहार और महीनों से चल रहे क्रूर नाकाबंदी के तहत हजारों फिलिस्तिनियों की शहादत के मद्देनजर - जबकि अरब, इस्लामिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सन्नाटा छाया हुआ है - यमन खुद को इन मजलूम फिलिस्तिनियों के प्रति धार्मिक, नैतिक और मानवीय जिम्मेदारी का पाबंद समझता है जो हर दिन, हर घंटे हवाई, ज़मीनी और समुद्री बमबारी के साथ-साथ कड़ी नाकाबंदी के कारण भूख-प्यास से जूझते हुए भी डटे हुए हैं।"

 अल-मसीरा के हवाले से पार्स टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिगेडियर सरीअ ने आगे कहा कि इस पृष्ठभूमि में, यमन सशस्त्र बलों ने दुश्मन के खिलाफ सैन्य कार्रवाइयों को तेज़ करने और समुद्री नाकाबंदी के चौथे चरण की शुरुआत करने का फैसला किया है।"

 यमन सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया: "यह नया चरण उन सभी जहाजों को निशाना बनाएगा जो जायोनी शासन की बंदरगाहों के साथ किसी भी तरह का सहयोग रखते हों, चाहे वे किसी भी देश या कंपनी से संबंध रखते हों और यह कार्रवाई हर उस जगह पर की जाएगी जहां यमन सशस्त्र बलों की पहुंच संभव हो।"

 ब्रिगेडियर यहिया सरी ने चेतावनी दी: "यमनी सशस्त्र बल सभी कंपनियों को चेतावनी देता है कि वे इस बयान के जारी होने के क्षण से ही ज़ायोनी शासन की बंदरगाहों के साथ अपना सहयोग तुरंत बंद कर दें। अन्यथा, उनके जहाजों को, उनके गंतव्य की परवाह किए बिना, किसी भी स्थान पर जहां हमारे मिसाइलों और ड्रोनों की पहुंच होगी, निशाना बनाया जाएगा।"

 ब्रिगेडियर यहिया सरी ने ज़ोर देकर कहा: "यमनी सशस्त्र बल सभी देशों से आग्रह करता है कि यदि वे हमले के इस बढ़े हुए चरण को रोकना चाहते हैं, तो वे जायोनी शासन पर आक्रमणों को समाप्त करने और ग़ाज़ा की नाकाबंदी हटाने के लिए दबाव डालें, क्योंकि इस दुनिया में कोई भी स्वतंत्र विचार वाला व्यक्ति जो कुछ हो रहा है उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता।"

 यमन के सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया: "यमन के सशस्त्र बलों द्वारा किए जा रहे कार्य फिलिस्तीनी लोगों के प्रति हमारी नैतिक और मानवीय प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। ग़ाज़ा पर आक्रमण रुकने और उसकी नाकाबंदी हटते ही हमारी सभी सैन्य कार्रवाइयां तुरंत बंद हो जाएंगी।

 

नजफ अशरफ /हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा हाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों और मानवाधिकार संस्थाओं ने गाज़ा में हालात को लेकर चिंता जताते हुए तत्काल मानवीय सहायता पहुंचाने की अपील की है।

मज़लूम गाज़ा के लोगो के ख़िलाफ़ इज़राईली अपराधों की निरंतरता के बारे में, मरजए आलीक़द्र हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा हाफ़िज़ बशीर हुसैन अल नजफ़ी के केंद्रीय दफ़्तर नजफ़ अशरफ़ के बयान का अनुवाद।

بسم الله الرحمن الرحيم
हम अब भी बेहद तीव्र पीड़ा के साथ मज़लूम अहल-ए-ग़ाज़ा की त्रासदी की निरंतरता पर नज़र बनाए हुए हैं, जो क़ाबिज़, विस्तारवादी और बर्बर सैयोनी गिरोह की ओर से आधुनिक दौर में क़ौमों के ख़िलाफ़ अंजाम दिए गए सबसे घिनौने अपराधों के परिणामस्वरूप पैदा हुई है।

जिनसे निहत्थे आम नागरिक, यहाँ तक कि बच्चे, महिलाएं और बुज़ुर्ग तक महफ़ूज़ नहीं रह सके,अब यह ऐसे मुक़ाम तक पहुँच चुकी है जिसकी भीषण भयावहता का वर्णन करने में शब्द असमर्थ हैं, जो उनके ऊपर प्यास, भूख और ज़िंदगी की सबसे बुनियादी ज़रूरतों की कमी की सूरत में नज़र आ रहा है।

और अफ़सोस की बात यह है कि यह सब ऐसी ख़ामोशी और लापरवाही के बीच हो रहा है जिसका कोई औचित्य नहीं है उन देशों की तरफ़ से जिन्होंने दुनिया के कानों को अपने पशु-अधिकारों की रक्षा और देखभाल के दावों से भर रखा है।

मानवाधिकारों के वैश्विक रक्षक होने का दावा करते हुए दशकों बिताने के बावजूद, सिवाय कुछ शर्मनाक कोशिशों के जो कुछ देशों या कुछ व्यक्तियों ने अपनी क्षमता के अनुसार की हैं।और इस स्थिति से, हम विश्व के देशों, विश्व के सम्मानित व्यक्तियों और विश्व के स्वतंत्र लोगों से अपील करते हैं कि वे इस उत्पीड़ित क़ौम की राहत में तत्काल मदद करने के लिए मजबूत और गंभीर प्रयास करें।
और नियत का हिसाब रखने वाला अल्लाह ही है। ولا حولَ ولا قوَّةَ إلَّا باللهِ العليِّ ‏العظيمِ

 

ऑस्ट्रेलिया में 7 अक्टूबर 2023 को फ़िलिस्तीनी संगठन हमास के इज़राइल पर सीमा पार हमलों के बाद से इस्लामोफोबिया की घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि हुई है।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2023 से नवंबर 2024 तक इस्लामोफोबिया के 600 से अधिक व्यक्तिगत और ऑनलाइन मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें लगभग 75% पीड़ित महिलाएं और लड़कियां हैं, जबकि अधिकतर हमलावर गैर-मुस्लिम पुरुष होते हैं। ऑनलाइन घटनाओं में 250% और व्यक्तिगत हमलों में 150% की वृद्धि हुई है। हमले खास तौर पर हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक राजनीतिक परिस्थितियां इस स्थिति को बढ़ावा देती हैं, लेकिन राजनीतिक बयानबाज़ी और स्थानीय कारण भी महत्वपूर्ण हैं। प्रभावित महिलाओं को रोज़मर्रा की जिंदगी में इस्लामोफोबिया का सामना करना पड़ रहा है, जो अब एक गंभीर समस्या बन चुकी है।

यह रिपोर्ट मोनाश और डीकिन विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार की गई है, जिन्होंने लाखों सोशल मीडिया पोस्ट और शिकायतों का विश्लेषण किया है। परिणामस्वरूप, इस्लामोफोबिया न केवल व्यक्तिगत हमलों के रूप में बल्कि ऑनलाइन नफरत और अपमान के रूप में भी बहुत बढ़ गया है, खासकर महिलाओं को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है।

संक्षेप में, ऑस्ट्रेलिया में फिलिस्तीन-इज़राइल संघर्ष के बाद इस्लामोफोबिया में भारी वृद्धि हुई है, विशेषकर मुस्लिम महिलाएं इसका शिकार हो रही हैं, और यह समस्या अब सरकार और समाज दोनों से समाधान की मांग करती है।