رضوی

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 इमाम ए जुमआ नजफ अशरफ हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन सैयद सदरुद्दीन क़बानची ने हुसैनिया आज़म फातिमिया में जुमआ के खुत्बे के दौरान कहा कि ज़ियारत-ए-अर्बईन हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक है।

इमाम ए जुमआ नजफ अशरफ हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन सैयद सदरुद्दीन क़बानची ने हुसैनिया आज़म फातिमिया में जुमआ के खुत्बे के दौरान कहा कि ज़ियारत-ए-अर्बईन हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक है। 

उन्होंने इस महान नेमत पर शिया मुसलमानों, खासकर इराकी मोमिनीन को मुबारकबादी पेश की उन्होंने इमाम सादिक (अ.स.) की एक हदीस का हवाला देते हुए कहा कि फरिश्ते इमाम हुसैन (अ.स.) के जायरीन के चेहरों को अपने हाथों से स्पर्श करते हैं और अल्लाह तआला सुबह-शाम उन पर जन्नत का रिज़्क नाज़िल फरमाता है। उन्होंने मोमिनीन से कहा कि इस सेवा में आगे बढ़ना सौभाग्य की बात है। 

खुत्बे में गाजा की स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि वहाँ अकाल और नरसंहार जैसी स्थिति बन चुकी है, जहाँ अब तक 124 बच्चे भूख से मर चुके हैं। उन्होंने मिस्र की सरकार से मांग की है की वह राहत मार्ग खोले ताकि फिलिस्तीनी लोगों को बचाया जा सके। 

इराकी स्थिति पर उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने बास पार्टी के प्रचारकों को गिरफ्तार किया है, जिसके लिए उन्होंने सुरक्षा बलों का आभार व्यक्त किया। 

उन्होंने जल संकट पर गहरी चिंता जताते हुए सरकार से तत्काल कदम उठाने की मांग की। साथ ही, उन्होंने कहा कि दीन में स्थिरता मानवीय विकास की आधारशिला है, और बिना विलायत और दीन के इंसान सिर्फ़ फसाद और खूनरिजी का शिकार होगा। 

अंत में, उन्होंने बास सरकार द्वारा हुसैनी संस्कृति को दबाने वाले गोपनीय दस्तावेज़ों का हवाला देते हुए हुसैन (अ.स.) के दुश्मनों के चेहरों को बेनकाब किया।

 

जबकि ग़ज़ा में भूख से होने वाली मौतों के आँकड़े रोज़ नए रिकॉर्ड बना रहे हैं, विश्व समुदाय इस क्षेत्र में आधिकारिक तौर पर "अकाल" घोषित करने के बजाय राजनीतिक समीकरणों के दलदल में फँसा हुआ है।

मोंसेफ़ खानी ने हाल ही में अलजज़ीरा अंग्रेज़ी वेबसाइट पर एक लेख में लिखा: ऐसी दुनिया में जहां खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में हर दिन उल्लेखनीय प्रगति हो रही है, तीन महीने के बच्चे 'यहिया' के निर्जीव शरीर पर फिलिस्तीनी मां 'अला अल-नज्जार' का रोना मानवता के ज़मीर को झिंझोड़ देता है।

पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार, 'अला अल-नज्जार' आज परिवेष्टन का शिकार ग़ज़ा में सैकड़ों फिलिस्तीनी माताओं में से एक है, जो जानबूझकर की गई भूखमरी की नीतियों के शिकार हुए अपने बच्चों के लिए शोक मना रही हैं।

9 जुलाई 2024 को, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के तहत कम से कम 11 विशेषज्ञों ने ग़ज़ा में अकाल को लेकर तत्काल चेतावनी जारी की। उनके बयान में कहा

गया: "हम घोषणा करते हैं कि फिलिस्तीनियों को जानबूझकर भूखा रखने की इज़राइल की नीति नरसंहार का एक रूप हैजिसने पूरे ग़ज़ा में अकाल की स्थिति पैदा कर दी है। हम विश्व समुदाय से ज़मीनी रास्ते से मानवीय सहायता पहुँचाने को प्राथमिकता देनेग़ज़ा की नाकाबंदी समाप्त करने और युद्धविराम लागू करने की माँग करते हैं।"

संयुक्त राष्ट्र संघ के विशेष रैपोर्टियर माइकल फ़ख्री (खाद्य अधिकार), पेड्रो अरोजो-अगुडो (स्वास्थ्य एवं पेयजल), और फ्रांसेस्का अल्बानेज़ (फिलिस्तीनी क्षेत्रों में मानवाधिकार) भी इन विशेषज्ञों में शामिल थे।

"अकालकी परिभाषा और घोषणा के मानदंड

2004 में, संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने "एकीकृत खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण (IPC)" प्रणाली बनाई, जो खाद्य असुरक्षा को मापने के लिए पांच-स्तरीय मात्रात्मक पैमाना है। इसका उद्देश्य सामूहिक कार्रवाई को प्रेरित करना है ताकि स्थिति स्तर 5 (अकाल) तक न पहुँचे।

IPC के अनुसार अकाल घोषित करने के मानदंड:

  • किसी क्षेत्र के 20 प्रतिशत या अधिक परिवारों को भोजन की गंभीर कमी का सामना करना पड़े।
  • बच्चों में तीव्र कुपोषण दर 30% से अधिक हो।
  • प्रतिदिन प्रति 10 हज़ार लोगों पर मृत्यु दर 2 से अधिक हो।

जब ये तीनों शर्तें पूरी हो जाएं, तो "अकाल" की घोषणा की जानी चाहिए। हालाँकि यह कानूनी बाध्यता नहीं बनाती, लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय मानवीय प्रतिक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत है।

सवाल: विशेषज्ञों ने एक साल पहले ही ग़ज़ा में अकाल की पुष्टि कर दी थी, फिर संयुक्त राष्ट्र संघ ने जुलाई 2024 तक (4 महीने की नाकाबंदी के बाद) आधिकारिक घोषणा क्यों नहीं की?

तत्काल सूचना के इस युग में, ग़ज़ा में भूख से हो रही मौतों की वास्तविकता स्पष्ट और निर्विवाद है। नाज़ी एकाग्र शिविरों की याद दिलाती दुर्बल लाशों की तस्वीरें ग़ज़ा की भयावह तस्वीर पेश करती हैं। फिर भी, UNRWA (20 जुलाई को) द्वारा ग़ज़ा के 10 लाख बच्चों के भूखमरी के खतरे की चेतावनी के बावजूद, अभी तक आधिकारिक अकाल घोषित नहीं किया गया है।

 पेशेवर कर्तव्यों पर राजनीतिक समीकरणों का दबाव

 अमेरिकी प्रभाव के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ की वर्तमान संस्कृति में, राजनीतिक गणनाएं पेशेवर जिम्मेदारियों पर हावी हैं। अधिकारी जानते हैं कि सही क्या है (या उम्मीद की जाती है कि जानते हों), लेकिन वे अपनी प्रतिष्ठा और नौकरी को खतरे में डालने से बचते हैं।

 अमेरिका ने ICC के अभियोजक करीम खान और फ्रांसेस्का अल्बानेज़ पर व्यक्तिगत हमले किए हैं, जो दिखाता है कि यह भूमिका खतरनाक भी हो सकती है। अल्बानेज़ को तो वेतन भी नहीं मिलता,उनका काम पूरी तरह स्वैच्छिक है, जो उनकी साहसिक स्थिति को और प्रशंसनीय बनाता है।

 संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस भी जटिल दबावों में हैं, जैसे कि अमेरिका द्वारा धन रोकने की धमकी। लेकिन अब जब अमेरिकी कांग्रेस ने संयुक्त राष्ट्र के फंडिंग को काटने का बिल पास कर दिया है, तो वाशिंगटन के गुस्से से बचने के लिए निष्क्रियता का कोई औचित्य नहीं बचता।

 ग़ज़ा की नाकाबंदी: एक युद्ध अपराध

 अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के रोम घोषणापत्र के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय संघर्ष में नागरिकों को भूखा रखना युद्ध अपराध है। 2 मार्च से ग़ज़ा की पूर्ण नाकाबंदी जिसने विशेष रूप से शिशुओं और बच्चों को प्रभावित किया है, ICC के अनुच्छेद 8 के तहत स्पष्ट रूप से युद्ध अपराध की श्रेणी में आती है। यह एक जानबूझकर की गई नीति का परिणाम है, जिसमें महीनों से मानवीय सहायता को रोका जा रहा है।

 नतीजा: आँकड़ों से परे

 इस रिपोर्ट में प्रत्येक संख्या के पीछे एक मानवीय कहानी है—जैसे तीन महीने के यह्या की, जिसने कभी सामान्य जीवन का स्वाद नहीं चखा। आज वैश्विक समुदाय के सामने एक कठिन विकल्प है: या तो इस मानवीय त्रासदी के प्रति मौन बनाए रखें, या इस अमानवीय नाकाबंदी को समाप्त करने के लिए निर्णायक कार्रवाई करें।

 

शिर्क करने वाला बड़ा ज़ालिम होता है इस लिए जो लोग हजरत अबू तालिब को ईमान वाला नहीं मानते वो माज अल्लाह हजरत अबू तालिब को मुशरिक समझते हैं यानी बड़ा ज़ालिम समझते हैं।

हजरत अबू तालिब को मोमिन न मानने वाले नीचे लिखी हुई कुरानी आयतों पर गौर फिक्र कर के तौबा करें और फिर से कलमा पढ़ कर मुसलमान बनें।

याद रखिए जो लोग हजरत अबुतालिब को मोमिन नहीं मानते वो अपने इस अमल से रसूल अल्लाह को माज अल्लाह जहन्नम की आग में जलने वाला  साबित करते हैं।

कुराने मजीद ने सूरए लुकमान की आयत नंबर 13 में शिर्क को बड़ा जुल्म कहा है और अल्लाह ताला ने साफ साफ एलान कर दिया है की।

"अल्लाह के साथ किसी को शरीक मत करना,शिर्क ज़ुल्मे अज़ीम है।

क्यों की शिर्क करने वाला बड़ा ज़ालिम होता है इस लिए जो लोग हजरत अबू तालिब को ईमान वाला नहीं मानते वो माज अल्लाह हजरत अबू तालिब को मुशरिक समझते हैं यानी बड़ा ज़ालिम समझते हैं।

सूरए हूद की आयत नंबर 113 में रसूल अल्लाह को हुक्म दिया गया है।

"और जालिमों की ओर न झुकना,अन्यथा तुम्हें भी अग्नि स्पर्श कर लेगी और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई सहायक नहीं है,फिर तुम्हारी सहायता नहीं की जायेगी"।

दोनों आयतों ने साफ कर दिया की क्यों की मुशरिक ज़ालिम है इस लिए जालिम की तरफ झुकने वाले को जहन्नम की आग जलाए गी ये किसी और का नहीं अल्लाह का फैसला है जिसे कोई बदल नहीं सकता।

 दुनिया का कोई भी मौलाना ये नहीं साबित कर सकता की रसूल अल्लाह का झुकाओ हजरत अबू तालिब की तरफ नही था? या रसूल अल्लाह अपने चचा हजरत अबू तालिब और अपनी चची जनाबे फातिमा बिनते असद को दिल से नहीं चाहते थे ? उनकी इज़्जत नहीं करते थे?

सब जानते हैं की रसूल अल्लाह के दिल में हजरत अबू तालिब की और हजरत अबू तालिब के दिल में रसूल अल्लाह की बेपनाह मोहब्बत थी, सब जानते हैं की दोनो का झुकाओ एक दूसरे की तरफ बहुत ज्यादा था इतना था की हजरत अबू तालिब के इंतकाल के साल को रसूल अल्लाह ने "आमुल हुजन" बना दिया यानी गम का साल कहा और रसूल अल्लाह ने खुद साल भर हजरत अबू तालिब का गम मनाया और गम मानने को कहा भी। इसका मतलब हजरत अबू तालिब के इंतेकाल के बाद भी रसूल अल्लाह का दिल हजरत अबू तालिब की तरफ पूरी तरह से झुका हुआ था और इसी लिए साल भर रसूल अल्लाह ने उनका गम मनाया और गम मानने का हुक्म दिया। इससे बड़ा ईमाने अबू तालिब के लिए और क्या सुबूत हो सकता है।

आखरी वक्त में कलमा पढवाने के इसरार की रवायत बुग्जे अली में गढ़ लेने वाले जाहिलों क्या कुरान के हुक्म के बाद भी रसूल अल्लाह किसी ईमान न रखने वाले मुशरिक की मौत के बाद भी उसकी तरफ झुक सकते थे? याद रखिए हजरत अबू तालिब और रसूल अल्लाह जैसी मोहब्बत की कोई मिसाल दुनिया नहीं पेश कर सकती।

दोनों आयतों और सीरते अबु तालिब पर गौर करने से ये नतीजा निकला की जो लोग हजरत अबू तालिब को मोमिन नहीं मानते हैं वो रसूल अल्लाह को माज अल्लाह जालिम की तरफ झुकाओ रख कर जहन्नम की आग में जलने वाला समझते हैं ऐसे लोग अपने अपने ईमान पर गौर करें की वोह हजरत अबू तालिब के ईमान का इंकार कर के रसूल अल्लाह पर बोहतन बांध रहे हे और खुद जहन्नम के दहाने पर कहां खड़े हो गए हैं।

जब तक अबू तालिब जिंदा रहे रसूल अल्लाह ने उनकी तरफ अपना झुकाओ रख कर और उनके इंतकाल के बात भी उनके तरफ झुकाओ रखा जिसका सुबूत उनके इंतकाल के साल का नाम रसूल अल्लाह ने आमुल हूजन रख दिया और अपने इस अमल से हजरत अबू तालिब के ईमान को रहती दुनिया तक कुरान की आयतों से साबित कर दिया।

अब वो लोग जो हजरत अबू तालिब को मोमिन नहीं मानते हैं वो अपना ईमान बचाने के लिए तौबा करें और कलमा पढ़ कर फिर से मुसलमान बनें और दोबारा कभी अपनी जुबान से हजरत अबू तालिब के ईमान का इंकार न करें इसी में उनकी खैर है।

काश मुसलमान मुल्ला की किताबों के बजाए अल्लाह की किताब मे गौर फिक्र कर के रसूल अल्लाह की सही मायनों में मदद करने वाले हजरत अबू तालिब के खिलाफ़ अपनी ज़ुबान न खोलता या कलम न चलाता तो उसका ईमान कभी बर्बाद न होता।

हजरत अबू तालिब के ईमान का इंकार करने वाले मुसलमानों सूरए लुकमान और सूरए हूद की आयत नंबर 113 में गैरो फिक्र करो,हजरत अबू तालिब की दी हुई बेशुमार कुर्बानियों पर गौर करो और तौबा कर के फिर से कलमा पढ़ लो ताकि तुम अपने आपको मुसलमान कह सको।

कारगिल-लद्दाख के एक प्रमुख धार्मिक विद्वान, एक विनम्र शिक्षक और अहलेल बैत (अ) की शिक्षाओं के एक ईमानदार सेवक शेख अहमद शबानी के निधन पर गहरा दुख और शोक व्यक्त किया। हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन शेख अब्दुल मजीद हकीम इलाही ने दिवंगत की विद्वत्तापूर्ण और मिशनरी सेवाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके परिवार और छात्रों के प्रति संवेदना व्यक्त की।

भारत में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन शेख अब्दुल मजीद हकीम इलाही ने प्रमुख धार्मिक विद्वान, विनम्र शिक्षक और अहलु बैत (अ) की शिक्षाओं के सच्चे सेवक, शेख अहमद शबानी (र) के निधन पर गहरा दुःख और शोक व्यक्त किया है। उन्होंने विद्वान की शैक्षणिक और मिशनरी सेवाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके परिवार और छात्रों के प्रति संवेदना व्यक्त की।

शोक संदेश इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन

हमें यह जानकर अत्यंत दुःख और शोक हुआ कि विद्वान, विनम्र शिक्षक और दीन के सच्चे सेवक, शेख अहमद शबानी (र) का निधन हो गया। उनके निधन की खबर से हृदय और आत्मा दोनों ही व्यथित हो गए।

मृतक कारगिल-लद्दाख के शैक्षणिक और धार्मिक हलकों में एक प्रभावशाली और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण धन्य जीवन शिक्षा, अध्यापन, उपदेश और युवाओं के धार्मिक एवं नैतिक प्रशिक्षण को पूरी ईमानदारी, विनम्रता और निष्ठा के साथ समर्पित कर दिया। उन्होंने मशहद और नजफ़ अशरफ़ के प्रतिष्ठित विद्वानों का आशीर्वाद प्राप्त किया और बाद में भारत और थाईलैंड में अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं के प्रचार में प्रमुख भूमिका निभाई। वे इस्लामी क्रांति के सच्चे समर्थक, हज़रत इमाम खुमैनी (अ) के एक निष्ठावान अनुयायी और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता (द ज) थे।

मृतक की प्रमुख सेवाओं में मुंबई में इमाम अमीर अल-मोमेनीन (अ) मदरसा और जामेअतुल बुतूल (अ) मदरसा का नेतृत्व, साथ ही महाराष्ट्र में इमाम अल-हादी (अ) मदरसा के प्रबंधन और पर्यवेक्षण की ज़िम्मेदारी शामिल है। इन संस्थानों के माध्यम से, उन्होंने शैक्षणिक, नैतिक और शैक्षिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय छाप छोड़ी। उनके व्यक्तित्व की विशिष्टता उनके अच्छे आचरण, सेवा में ईमानदारी, प्रबुद्ध चिंतन और छात्रों के आध्यात्मिक प्रशिक्षण और आत्म-शुद्धि पर विशेष ध्यान देने की थी।

मैं इस दुखद क्षति पर दिवंगत के सम्मानित परिवार, मदरसों, उनके सम्मानित छात्रों और लद्दाख क्षेत्र के सभी धर्मावलंबियों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना और सहानुभूति व्यक्त करता हूँ, और अल्लाह तआला से प्रार्थना करता हूँ कि इस दिव्य विद्वान को सर्वोच्च स्वर्ग में स्थान प्रदान करें,और जीवित बचे लोगों को धैर्य और महान पुरस्कार प्रदान करें।

वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह व बराकातोह

अब्दुल मजीद हकीम इलाही

 

इस्लामी क्रांति के नेता ने अपराधी ज़ायोनी शासन के हाथों कुछ ईरानी लोगों, कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की शहादत के चेहलुम के अवसर पर एक संदेश जारी किया है।

इस्लामी क्रांति के नेता ने अपराधी ज़ायोनी शासन के हाथों कुछ ईरानी लोगों, कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों की शहादत के चेहलुम के अवसर पर एक संदेश जारी किया है। क्रांति के नेता का संदेश इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

ईरान के गौरवशाली राष्ट्र!

हमारे कुछ प्रिय देशवासियों, जिनमें कुशल सैन्य कमांडर और प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक शामिल हैं, की शहादत का चालीसवा आ गया है। यह चोट दुष्ट और अपराधी ज़ायोनी शासन के प्रमुख समूह द्वारा पहुँचाई गई है, जो ईरानी राष्ट्र का घृणित और द्वेषपूर्ण शत्रु है। निस्संदेह, शहीद बाक़री, शहीद सलामी, शहीद राशिद, शहीद हाजीज़ादेह, शहीद शादमानी जैसे कमांडरों और अन्य सैन्यकर्मियों के साथ-साथ शहीद तेहरानची, शहीद अब्बासी और अन्य वैज्ञानिकों को खोना किसी भी राष्ट्र के लिए बहुत कठिन है, लेकिन मूर्ख और संकीर्ण सोच वाला शत्रु अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका। भविष्य ही बताएगा कि क्या ईरान सैन्य और वैज्ञानिक दोनों क्षेत्रों में पहले से कहीं अधिक तेज़ी से उन्नति करेगा इंशाल्लाह।

हमारे शहीदों ने स्वयं वह मार्ग चुना था जिसमें शहादत के उच्च पद को प्राप्त करने का कोई छोटा जोखिम नहीं था, और अंततः उन्होंने वह हासिल किया जिसका हर निस्वार्थ व्यक्ति सपना देखता है। उन्हें बधाई, लेकिन ईरान के लोगों, विशेषकर शहीदों के परिवारों और विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो शहीदों को करीब से जानते थे, उनका बिछड़ना कठिन, कड़वा और गंभीर है।

इस घटना में कुछ उज्ज्वल पहलू भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। पहला: शहीदों के जीवित बचे लोगों का धैर्य और दृढ़ साहस, जो इस्लामी गणतंत्र ईरान के अलावा इस तरह की घटनाओं में कहीं और नहीं देखा गया। दूसरा: शहीदों के अधीनस्थ संस्थानों की दृढ़ता, जिन्होंने इस भारी चोट के बावजूद, अवसरों को व्यर्थ नहीं जाने दिया और किसी भी बाधा को अपने आंदोलन में बाधा नहीं बनने दिया। तीसरा: ईरानी राष्ट्र की चमत्कारिक दृढ़ता का शानदार प्रदर्शन, जो उनकी एकता, मानसिक दृढ़ता और मैदान में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहने के दृढ़ संकल्प के रूप में सामने आया। इस्लामी ईरान ने इस घटना में एक बार फिर अपनी नींव की मजबूती का प्रदर्शन किया। ईरान के दुश्मन व्यर्थ प्रयास कर रहे हैं।

बेइज़्ने इलाही, इस्लामी ईरान अल्लाह की मदद से दिन-प्रतिदिन मजबूत होता जाएगा।

महत्वपूर्ण बात यह है कि हम इस वास्तविकता और अपने कंधों पर टिकी जिम्मेदारी की उपेक्षा न करें। राष्ट्रीय एकता की रक्षा करना हम सभी की जिम्मेदारी है। सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति में आवश्यक तेजी लाना विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों की जिम्मेदारी है। देश और राष्ट्र के सम्मान और गरिमा की रक्षा करना कलम और ज़ुबान का उपयोग करने वालों की निश्चित ज़िम्मेदारी है। देश को दिन-प्रतिदिन सुरक्षा, संरक्षा और राष्ट्रीय संप्रभुता के साधनों से सुसज्जित करना सैन्य कमांडरों की ज़िम्मेदारी है। देश के मामलों के प्रति गंभीर रहना, उन पर नज़र रखना और उन्हें लागू करना सभी प्रशासनिक संस्थाओं की ज़िम्मेदारी है। हृदयों का आध्यात्मिक मार्गदर्शन, उन्हें प्रबुद्ध करना और लोगों को धैर्य, शांति और दृढ़ता का उपदेश देना धार्मिक विद्वानों की ज़िम्मेदारी है, और क्रांतिकारी उत्साह, चेतना और भावना को बनाए रखना हम सभी की, विशेषकर युवाओं की ज़िम्मेदारी है। अल्लाह तआला सभी को सफलता प्रदान करें।

ईरानी राष्ट्र को आशीर्वाद मिले और शहीद युवाओं, शहीद महिलाओं और बच्चों, और सभी शहीदों और उनके शोक संतप्त परिवारों पर शांति हो।

वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातोह

सय्यद अली ख़ामेनेई

25 जुलाई, 2025

 

 

 ईरान का संचार उपग्रह "नाहीद 2" को, जिसे स्वदेशी संचार प्रौद्योगिकियों के विकास के उद्देश्य से डिज़ाइन और निर्मित किया गया है, अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया।

संचार उपग्रह "नाहीद 2" को अंतरिक्ष संगठन की निगरानी में और ईरान के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान तथा ज्ञान-आधारित कंपनियों की भागीदारी से विकसित किया गया है। यह ईरान की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में प्रगति का प्रतीक है।

"नाहीद 2" पहली बार केयू बैंड संचार, तीन-अक्षीय अभिविन्यास नियंत्रण और द्विदिश संचार जैसी प्रौद्योगिकियों का कक्षा में परीक्षण करेगा। इस उपग्रह का मुख्य मिशन लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में संचार प्रौद्योगिकियों का विकास और परीक्षण करना है। यह उपग्रह अधिक उन्नत संचार उपग्रहों के निर्माण के लिए एक प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करेगा और भविष्य के संचार उपग्रहों के लिए हार्डवेयर आधार तैयार करेगा।

 लगभग 110 किलोग्राम वजनी यह उपग्रह 500 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित किया गया है और यह ग्राउंड स्टेशनों के साथ तेज व सीधे संचार के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका प्राथमिक मिशन डेटा प्रसारण और प्राप्ति, तथा विभिन्न बैंड्स में संचार प्रणालियों का परीक्षण करना है। "केयू बैंड" का उपयोग व्यावसायिक अनुप्रयोगों जैसे सैटेलाइट इंटरनेट और टेलीविजन प्रसारण के लिए किया जाता है। इसके अलावा, नाहीद 2 तीन-अक्षीय अभिविन्यास नियंत्रण प्रणाली से लैस है जो इसे तीनों प्रमुख दिशाओं में अपनी स्थिति को समायोजित और स्थिर रखने की अनुमति देती है।

 इस परियोजना की एक प्रमुख विशेषता "खुलने वाले सौर पैनल" तकनीक का उपयोग है, जो पहली बार एक ईरानी उपग्रह में पूर्ण पैमाने पर लागू किया गया है। यह तकनीक उपग्रह को सूर्य से अधिक ऊर्जा अवशोषित करने और लंबे समय तक सक्रिय रहने में सहायता करती है।

 

"नाहीद 2", नाहीद कार्यक्रम के दूसरे चरण के रूप में, द्विदिश संचार स्थापित करने और अधिक जटिल मिशनों को निष्पादित करने की क्षमता रखता है। यह उच्च कक्षाओं में राष्ट्रीय संचार उपग्रहों के लिए एक परीक्षण मंच के रूप में भी कार्य कर सकता है। यह उपग्रह नाहीद 2 परियोजना से तकनीकी ज्ञान को देश के अन्य अंतरिक्ष कार्यक्रमों में स्थानांतरित करने में भी सहायता करेगा।

 "नाहीद 2" को रूस के वोस्तोचन कॉस्मोड्रोम से सोयुज रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था। इस लॉन्च में रूस के साथ सहयोग ईरान की सफल अंतरिक्ष कूटनीति को दर्शाता है जिसने अंतरिक्ष संबंधी प्रतिबंधों पर विजय प्राप्त की है। सोयुज प्रक्षेपण यान पर ईरानी अंतरिक्ष एजेंसी और ईरानी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के लोगों की उपस्थिति, इस अंतरराष्ट्रीय मिशन में ईरान की सक्रिय भागीदारी का प्रमाण है।

 

 

 हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन रवानबख्श ने कहा: आज ज़ियारत ए अरबईन एक बड़ा मीडिया माध्यम बन चुका है जहाँ 20 से 25 मिलियन लोग भाग लेते हैं और यह अहले बैत (अ) के प्रति एक अनोखी एकता और प्रेम का प्रदर्शन करता है।

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन रवानबख्श ने क़ुम मे हौज़ा ए इमाम काज़िम मे शुक्रवार की शाम को आयोजित खादिमीन-ए-हैयत-ए-खादिम-अल-रज़ा (अ) की सम्मानसभा में नमाज़ में ध्यान और केंद्रित होने के महत्व की ओर इशारा किया और कहा: हम सभी नमाज़ के दौरान ध्यान भटकाने की समस्या से जूझते हैं; आयातुल्लाह बहज़त (र) ने इस मसले के लिए एक बहुत प्रभावी उपाय बताया है। उन्होंने सुझाव दिया कि नमाज़ शुरू करने से पहले तीन ख़ास सलाम दिए जाएं: पहला सलाम अमीरुल मुमेनीन अली (अ) को, दूसरा सलाम इमाम हुसैन (अ) को, और तीसरा सलाम इमाम ज़माँन (अ) को। ये तीनों सलाम नमाज़ के दौरान इंसान का ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं और दिल की एकाग्रता बढ़ाते हैं।

इमाम हुसैन (अ) का परिचय, ज़ुहूर जल्दी होने का एक तरीका

उन्होंने इमाम ज़मान (अ) के ज़ुहूर का मार्ग प्रशस्त करने में इमाम हुसैन (अ) की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा: अगर हम चाहते हैं कि हज़रत महदी (अ) का ज़ुहूर जल्द हो, तो हमें इमाम हुसैन (अ) को पूरी दुनिया में परिचित कराना होगा।

क़ुम के संसद सदस्य ने कहा: एक हदीस में आया है कि इमाम महदी (अ) अपने ज़ुहूर के वक्त खुद को इन शब्दों से परिचित कराएंगे:
"الا یا اهل العالم ان جدّی الحسین قتلوه عطشانا؛ अला या अहलल आलम इन्ना जद्दी अल हुसैनो कत़लूहो अत्शाना;"
सुनो ऐ दुनिया के लोगो, मेरे दादा हुसैन को प्यासे मार दिया गया।

यह बयान दर्शाता है कि ज़ुहूर के समय दुनियाभर के लोग इमाम हुसैन (अ) को पहचानेंगे। इसलिए जितना हम इस मार्ग में हुसैन (अ) को दुनिया के सामने लाने की कोशिश करेंगे, उतना ही हम ज़ुहूर के जल्दी आने का रास्ता तैयार करेंगे।

ज़ियारत ए अरबईन, इमाम हुसैन (अ) को परिचित कराने का विशाल मीडिया प्लेटफॉर्म

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रवानबख्श ने अरबईन हुसैनी के जुलूस की महानता की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह इमाम हुसैन (अ) को दुनिया के सामने पेश करने वाले सबसे बड़े वैश्विक माध्यमों में से एक बन गया है। उन्होंने बताया: आज ज़ियारत ए अरबईन एक विशाल मीडिया प्लेटफॉर्म बन चुका है जहाँ 20 से 25 मिलियन लोग शरीक होते हैं, जो अहले-बैत (अ) के प्रति एक अद्वितीय एकता और प्रेम का प्रभावशाली दृश्य प्रस्तुत करता है।

इमाम खुमैनी (र) शिक्षा और अनुसंधान संस्थान के शिक्षण सदस्या ने यह भी कहा कि जिन लोगों को इस प्रभावशाली यात्रा में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त होता है, वे अशूरा की संस्कृति के परिचय में अहम भूमिका निभाते हैं। यह विशाल सभा भविष्य में एक उज्जवल राह और मुंजी ए ज़ुहूर की तैयारी का हिस्सा है।

ईरानी जनता समर्पणशील नहीं हैं

प्रतिनिधि सभा के सदस्य ने इमाम हुसैन (अ) के संदेश का हवाला देते हुए कहा कि अगर इमाम हुसैन (अ) समर्पण करने वाले होते, तो उन्होंने जिहाद का मार्ग नहीं चुना होता। उन्होंने संघर्ष और डटकर मुकाबला करने का रास्ता चुना। आज भी ईरानी जनता उनके रास्ते पर चल रही है। हम समर्पणशील नहीं, बल्कि संघर्षशील और डटे रहने वाले लोग हैं।

कर्बला से लेकर व्हाइट हाउस तक, हमारे सत्य की पुकार जारी है

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन रवानबख्श ने अंत में कहा: इंशाअल्लाह, हम इस संघर्षशील भावना को कायम रखेंगे। जल्द ही हमारी सच्चाई की आवाज़ व्हाइट हाउस को हिला देगी। यजीद और शिम्र को समझ लेना चाहिए कि हम इमाम महदी (अ) का इंतजार कर रहे हैं, और वह दिन आएगा जब हम अपनी आंखों से उस इलाही वादे को देखेंगे।

 

 

 

यमनी चैनल "अल-मसीरा" ने बताया कि आज राजधानी सना के "सत्तर चौक" पर एक अभूतपूर्व और ऐतिहासिक लाखों लोगों का मार्च निकाला गया, जो विशेष रूप से ग़ज़्ज़ा में उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनी लोगों के समर्थन में आयोजित किया गया था।

यमनी चैनल "अल-मसीरा" ने बताया कि आज राजधानी सना के "सत्तर चौक" पर एक अभूतपूर्व और ऐतिहासिक लाखों लोगों का मार्च निकाला गया, जो विशेष रूप से गाज़ा में उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनी लोगों के समर्थन में आयोजित किया गया था।

इस भव्य रैली के अंत में जारी बयान में कहा गया कि यमनी लोग अंसारुल्लाह आंदोलन के नेता सय्यद अब्दुल मलिक अल-हौसी के उस बयान का पुरज़ोर समर्थन करते हैं, जिसमें उन्होंने ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ आगे के उपायों और विकल्पों पर विचार करने की बात कही थी।

रैली में भाग लेने वाले लोगों ने स्पष्ट रूप से कहा कि फ़िलिस्तीनी लोगों के नरसंहार की असली ज़िम्मेदारी संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल की है, जबकि अरब सरकारें अपनी चुप्पी और निष्क्रियता के कारण इस जघन्य अपराध में समान रूप से भागीदार हैं।

प्रतिभागियों ने दोहराया कि ग़ज़्ज़ा और फ़िलिस्तीन का समर्थन करना न केवल यमन की आधिकारिक नीति है, बल्कि यमनी लोगों का स्थायी और अटल सार्वजनिक रुख भी है।

 

तनाव और मतभेद से भरी दुनिया में क़ुरआन हमें एक शक्तिशाली हथियार की ओर बुलाता है: वह हथियार है अच्छा बोलना है

हमारी वाणी हमारे आंतरिक चरित्र का दर्पण है। एक समाज जहाँ वाणी में शिष्टाचार, सम्मान और दया हो, वह एक सुरक्षित, शांत और मानवीय वातावरण बन जाता है। कुरआन में अल्लाह ने अच्छी वाणी के महत्व पर विभिन्न तरीकों से ज़ोर दिया है और इस संदर्भ में सबसे स्पष्ट निर्देश सूरह बक़रह के एक अंश में मिलता है:

 وَقُولُوا لِلنَّاسِ حُسْنًا"

(और लोगों से अच्छी बात करो)

 यह आयत केवल एक नैतिक सलाह नहीं बल्कि एक सामाजिक और मानवीय आदेश है। इसका अर्थ है कि सभी लोगों के साथ चाहे उनका धर्म, जाति या स्थिति कुछ भी हो अच्छे, कोमल और सम्मानजनक शब्दों में बात करो। यहाँ "النَّاسِ" लोगों शब्द इस आदेश की सार्वभौमिकता को दर्शाता है: यानी सभी मनुष्यों के साथ।

 अच्छी वाणी का अर्थ सिर्फ़ मीठा बोलना नहीं, बल्कि सच्चाई, शिष्टाचार, सांत्वना, अपमान से बचना और कठोर व कड़वे शब्दों से परहेज़ करना भी है। यहाँ तक कि अगर कोई हमारा विरोधी भी हो, तब भी हमारा कर्तव्य है कि हम उससे विनम्रता और सम्मान के साथ बातचीत करें।

 यह क़ुरआनी आदेश, एक स्वस्थ संवाद संस्कृति और समाज में भाषाई हिंसा की रोकथाम की बुनियाद है। जिस समाज के सदस्य इस सिद्धांत पर कायम रहें, वह व्यर्थ के विवादों, ग़लतफ़हमियों और सामाजिक दरारों से सुरक्षित रहेगा।

 अच्छी वाणी न केवल दूसरों के दिलों को शांति देती है, बल्कि अल्लाह के यहाँ इसका बड़ा प्रतिफल है, क्योंकि स्वयं अल्लाह नेकी, शिष्टाचार और मोहब्बत को पसंद करता है।

        (وَمَنْ أَحْسَنُ قَوْلًا مِّمَّن دَعَا إِلَى اللَّهِ وَعَمِلَ صَالِحًا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ الْمُسْلِمِين)

सूरे फ़ुस्सेलत

"और उससे बेहतर कथन किसका हो सकता है जो अल्लाह की ओर बुलाए, अच्छे कर्म करे और कहे कि निस्संदेह मैं मुसलमानों में से हूँ।" 

 

 इमामबारगाह हुसैनी ज़हरा, सिविल लाइंस, अलीगढ़, भारत में हमेशा की तरह इस साल भी एक मजलिस ए अज़ा का आयोजन किया गया। मजलिस की शुरुआत जनाब रज़ा हुसैन साहब और उनके साथियों के मरसिया के साथ हुई।

इमामबारगाह हुसैनी ज़हरा, सिविल लाइंस, अलीगढ़, भारत में हमेशा की तरह इस साल भी एक मजलिस ए अज़ा का आयोजन किया गया। मजलिस की शुरुआत जनाब रज़ा हुसैन साहब और उनके साथियों के मरसिया के साथ हुई।

मजलिस को एएमयूएबी हाई स्कूल के पूर्व प्रधानाचार्य, जनाब डॉ. अब्बास नियाज़ी ने संबोधित किया।

डॉ. नियाज़ी ने सूर ए अनआम की आयत 83-87 का पाठ किया और इसके अनुवाद को एक वार्तालाप बताया, और कहा कि यह हमारा प्रमाण है जो हमने इब्राहीम को उनकी क़ौम पर दिया था, और हम जिसे चाहते हैं उसे उच्च दर्जा देते हैं। और हमने इब्राहीम को इसहाक और याकूब दिए। और हमने नूह, दाऊद, सुलैमान, अय्यूब, यूसुफ, मूसा और हारून को बनाया। और हमने ज़करिया, यूनुस, ईसा, एलिय्याह, इस्माइल, एलीशा, यूनुस और लूत को बनाया। हमने उन सभी के जोड़े बनाए और उन्हें दुनिया से श्रेष्ठ बनाया।

डॉ. नियाज़ी ने आगे कहा कि यहाँ 18 नबियों का ज़िक्र किया गया है; उन्हें मार्गदर्शित, गुणवान, श्रेष्ठ, चुने हुए, किताब, ज्ञान और नबूवत का स्वामी बताया गया है, जो इस बात का प्रमाण है कि प्रकृति की दृष्टि में केवल वही लोग अनुसरण के योग्य हैं जो अल्लाह द्वारा चुने गए हैं और उनकी दृष्टि में चरित्रवान और मार्गदर्शन वाले हैं। अल्लाह तआला ने एक को दूसरे के साथ जोड़ा है।

इस अवसर पर, डॉ. नियाज़ी साहब ने हज़रत मुहम्मद (स) को, जो पैग़म्बर हबीब कुबरा, रहमतुल-लिल-आलमीन हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) थे, को अपना साथी और उत्तराधिकारी घोषित किया। इस संबंध में, उन्होंने हज़रत मुहम्मद (स) और हज़रत अली (अ) के फ़ज़ाइस, सिद्धताओं और महानता का वर्णन किया।

डॉ. नियाज़ी साहब ने कर्बला की महानता, उत्कर्ष और महानता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कर्बला का महत्व केवल मुस्लिम उम्मत में ही नहीं है, बल्कि यह क़यामत तक इस्लाम और मानवता के अस्तित्व की गारंटी भी है। कर्बला दुनिया के सभी उत्पीड़ित लोगों के लिए उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष करने का एक विद्यालय है।

उन्होंने मिम्बर की महत्ता एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुझमें कर्बला की घटना का वर्णन करने की क्षमता कहां है?