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कतर के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माजिद अल अंसारी ने कहा कि सीरिया में कतर के दूतावास को फिर से खोलने की प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए कतरी राजनयिक प्रतिनिधिमंडल सीरिया की राजधानी दमिश्क पहुंच चुका है।

एक रिपोर्ट के अनुसार , प्रतिनिधिमंडल ने सीरिया की संक्रमणकालीन सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और सुरक्षा शांति, विकास और समृद्धि की खोज में सीरियाई लोगों का समर्थन करने के लिए कतर की प्रतिबद्धता की पुष्टि की हैं।

अलअंसारी ने यह भी कहा कि बैठक के प्रतिभागियों ने कतरी मानवीय सहायता के प्रवाह को बढ़ाने के तरीकों पर भी चर्चा की और इस महत्वपूर्ण चरण के दौरान सीरियाई आबादी की तत्काल जरूरतों का आकलन किया।

हयात तहरीर अलशाम के नेतृत्व वाले उग्रवादी गठबंधन द्वारा 8 दिसंबर को पूर्व राष्ट्रपति बशर अलअसद को अपदस्थ करने के कुछ दिनों बाद कतर ने बुधवार को दमिश्क में अपने दूतावास को फिर से खोलने की घोषणा की हैं।

कतर ने 2011 में दमिश्क में अपना दूतावास बंद कर दिया था  सीरिया में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का प्रकोप जारी हैं।

 

 

 

 

 

ईरान और कतर ने रविवार को सीरिया के बुनियादी ढांचे पर इजरायल के हमलों और अरब राज्य पर उसके चल रहे कब्जे को समाप्त करने के लिए तत्काल प्रयास करने का आह्वान किया हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी विदेश मंत्री सईद अब्बास अराघची और कतर के विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान बिन जसीम अल थानी ने सीरिया में नवीनतम घटनाक्रमों पर चर्चा की सीरिया को स्थिर करने और सीरियाई लोगों की भागीदारी के साथ एक समावेशी राजनीतिक प्रणाली बनाने में मदद करने के लिए निरंतर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय परामर्श की आवश्यकता पर बल दिया।

बशर अलअसद की सरकार के पतन के बाद से इजरायल ने सीरिया में हवाई हमलों में काफी वृद्धि की है साथ ही महत्वपूर्ण सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना बनाकर जमीनी अभियान चलाए हैं।

इजरायली सेना ने इजरायल और सीरिया के बीच 1974 के युद्धविराम समझौते के तहत स्थापित विसैन्यीकृत बफर जोन को भी पार कर लिया है और सीमावर्ती क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया है।

इस बीच ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) ने सीरिया के बुनियादी ढांचे पर अमेरिकी और इजरायली हमलों की निंदा की है और उन्हें आक्रामकता और सीरिया की संप्रभुता के उल्लंघन की निरंतरता बताया है।

IRGC ने अपने आधिकारिक समाचार सिपाह न्यूज़ पर एक बयान में संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल पर सीरिया के महत्वपूर्ण केंद्रों को निशाना बनाने और देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए मौजूदा अस्थिरता का फायदा उठाने का आरोप लगाया हैं।

 

 

 

 

 

हज़रत इमाम अली अ.स. की शरीके हयात हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. की शहादत को लगभग 15 साल का समय गुज़र चुका था, इमाम अली अ.स. ने अपने भाई अक़ील को जो ख़ानदान और नस्लों की अच्छी पहचान रखते थे अपने पास बुला कर उनसे फ़रमाया कि एक बहादुर ख़ानदान से एक ऐसी ख़ातून तलाश करें जिस से बहादुर बच्चे पैदा हों

हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. इतिहास की उन महान हस्तियों में से हैं जिनके चार बेटों ने कर्बला में इस्लाम पर अपनी जान क़ुर्बान की, उम्मुल बनीन यानी बेटों की मां, आपके चार बहादुर बेटे हज़रत अब्बास अ.स. जाफ़र, अब्दुल्लाह और उस्मान थे जो कर्बला में इमाम हुसैन अ.स. की मदद करते हुए कर्बला में शहीद हो गए।

जैसाकि आप जानते होंगे कि हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. का नाम फ़ातिमा कलाबिया था लेकिन आप उम्मुल बनीन के नाम से मशहूर थीं, पैग़म्बर स.अ. की लाडली बेटी, इमाम अली अ.स. की शरीके हयात हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. की शहादत को लगभग 15 साल का समय गुज़र चुका था,

इमाम अली अ.स. ने अपने भाई अक़ील को जो ख़ानदान और नस्लों की अच्छी पहचान रखते थे अपने पास बुला कर उनसे फ़रमाया कि एक बहादुर ख़ानदान से एक ऐसी ख़ातून तलाश करें जिस से बहादुर बच्चे पैदा हों, हज़रत अली अ.स. जानते थे कि सन् 61 हिजरी जैसे संवेदनशील और घुटन वाले दौर में इस्लाम को बाक़ी रखने और पैग़म्बर स.अ. की शरीयत को ज़िंदा करने के लिए बहुत ज़्यादा क़ुर्बानी देनी होगी ख़ास कर इमाम अली अ.स. इस बात को भी जानते थे कि कर्बला का माजरा पेश आने वाला है इसलिए ज़रूरत थी ऐसे मौक़े के लिए एक बहादुर और जांबाज़ बेटे की जो कर्बला में इमाम हुसैन अ.स. की मदद कर सके।

जनाब अक़ील ने हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. के बारे में बताया कि पूरे अरब में उनके बाप दादा से ज़्यादा बहादुर कोई और नहीं था, इमाम अली अ.स. ने इस मशविरे को क़ुबूल कर लिया और जनाब अक़ील को रिश्ता ले कर उम्मुल बनीन के वालिद के पास भेजा उनके वालिद इस मुबारक रिश्ते से बहुत ख़ुश हुए और तुरंत अपनी बेटी के पास गए ताकि इस रिश्ते के बारे में उनकी मर्ज़ी का पता कर सकें, हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. ने इस रिश्ते को अपने लिए सर बुलंदी और इफ़्तेख़ार समझते हुए क़ुबूल कर लिया और फिर इस तरह हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. की शादी इमाम अली अ.स. के साथ हो गई।

हज़रत उम्मुल बनीन एक बहादुर, मज़बूत ईमान वाली, ईसार और फ़िदाकारी का बेहतरीन सबूत देने वाली ख़ातून थीं, आपकी औलादें भी बहुत बहादुर थीं लेकिन उनके बीच हज़रत अब्बास अ.स. को एक ख़ास मक़ाम और मर्तबा हासिल था।

हज़रत उम्मुल बनीन अ.स., बनी उमय्या के ज़ालिम और पापी हाकिमों के ज़ुल्म जिन्होंने इमाम हुसैन अ.स. और उनके वफ़ादार साथियों को शहीद किया था उनकी निंदा करते हुए सारे मदीने वालों के सामने बयान करती थीं ताकि बनी उमय्या का असली चेहरा लोगों के सामने आ सके, और इसी तरह मजलिस बरपा करती थीं ताकि कर्बला के शहीदों का ज़िक्र हमेशा ज़िंदा रहे, और उन मजलिसों में अहलेबैत अ.स. के घराने की ख़्वातीन शामिल हो कर आंसू बहाती थीं, आप अपनी तक़रीरों अपने मरसियों और अशआर द्वारा कर्बला की मज़लूमियत को सारी दुनिया के लोगों तक पहुंचाना चाहती थीं।

आपकी वफ़ादारी और आपकी नज़र में इमामत व विलायत का इतना सम्मान था कि आपने अपने शौहर यानी इमाम अली अ.स. की शहादत के बाद जवान होने के बावजूद अपनी ज़िंदगी के अंत तक इमामत व विलायत का सम्मान करते हुए दूसरी शादी नहीं की, और इमाम अली अ.स. की शहादत के बाद लगभग 20 साल से ज़्यादा समय तक ज़िंदगी गुज़ारी लेकिन शादी नहीं की, इसी तरह जब इमाम अली अ.स. की एक बीवी हज़रत अमामा के बारे में एक मशहूर अरबी मुग़ैरह बिन नौफ़िल से रिश्ते की बात हुई तो इस बारे में हज़रत उम्मुल बनीन अ.स. से सलाह मशविरा किया गया तो उन्होंने फ़रमाया, इमाम अली अ.स. के बाद मुनासिब नहीं है कि हम किसी और मर्द के घर जा कर उसके साथ शादी शुदा ज़िंदगी गुज़ारें....।

हज़रत उम्मुल बनीन अ.स. की इस बात ने केवल हज़रत अमामा ही को प्रभावित नहीं किया बल्कि लैलै, तमीमिया और असमा बिन्ते उमैस को भी प्रभावित किया, और इमाम अली अ.स. की इन चारों बीवियों ने पूरे जीवन इमाम अली अ.स. की शहादत के बाद शादी नहीं की।

हज़रत उम्मुल बनीन अ.स. की वफ़ात

हज़रत उम्मुल बनीन अ.स. की वफ़ात के बारे में कई रिवायत हैं, कुछ में सन् 70 हिजरी बयान किया गया है और कुछ दूसरी रिवायतों में 13 जमादिस-सानी सन् 64 हिजरी बताया गया है, दूसरी रिवायत ज़्यादा मशहूर है।

जब आपकी ज़िंदगी की आख़िरी रात चल रहीं थीं तो घर की ख़ादिमा ने उस पाकीज़ा ख़ातून से कहा कि मुझे किसी एक बेहतरीन जुमले की तालीम दीजिए, उम्मुल बनीन ने मुस्कुरा कर फ़रमाया, अस्सलामो अलैका या अबा अब्दिल्लाह अल-हुसैन।

इसके बाद फ़िज़्ज़ा ने देख कि हज़रत उम्मुल बनीन अ.स. का आख़िरी समय आ पहुंचा, जल्दी से जा सकर इमाम अली अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. की औलादों को बुला लाईं, और फिर कुछ ही देर में पूरे मदीने में अम्मा की आवाज़ गूंज उठी।

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. के बेटे और नवासे उम्मुल बनीन अ.स. को मां कह कर बुलाते थे, और आप उन्हें मना भी नहीं करती थीं, शायद अब उनमें यह कहने की हिम्मत नहीं रह गई थी कि मैं हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. की कनीज़ हूं।

आपकी वफ़ात के बाद आपको पैग़म्बर स.अ. की दो फुफियों हज़रत आतिका और हज़रत सफ़िया के पास, इमाम हसन अ.स. और हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद अ.स. की क़ब्रों के क़रीब में दफ़्न कर दिया गया।

 

 

 

 

 

हुज्जतुल-इस्लाम वाल-मुस्लिमीन सय्यद हुसैन मोमिनी ने ज्ञान और अहले-बैत (अ) के लिए प्रेम को मानव खुशी का स्रोत बताया और कहा कि हज़रत उम्मुल बनीन (स) ने अपना सारे प्यार अल्लाह के रास्ते मे समर्पित कर दिया। 

हज़रत मासूमा (स) की दरगाह के खतीब हुज्जतुल-इस्लाम वाल-मुस्लिमीन सय्यद हुसैन मोमिनी ने ज्ञान और अहले-बैत (अ) के लिए प्रेम को मानव खुशी का स्रोत बताया और कहा कि हज़रत उम्मुल बनीन (स) ने अपना सारे प्यार अल्लाह के रास्ते मे समर्पित कर दिया। ।

उन्होंने कल रात हज़रत मासूमा के हरम में कहा,पवित्र कुरान में ज्ञान और प्रेम के महत्व का वर्णन किया गया है, निर्दोषों की बातें, प्रार्थनाएं और तीर्थयात्रा जैसे तीर्थयात्रा के नाम जामिया कबीरा मे बयान हुए है।

उन्होंने कहा: यदि कोई व्यक्ति अपनी पूजा पद्धति में इन दो सिद्धांतों को शामिल करता है, तो वह इस दुनिया और परलोक दोनों में सफलता प्राप्त कर सकता है। ज्ञान और प्रेम किसी व्यक्ति को पहाड़ की तरह दृढ़, दृढ़ आस्तिक बना सकते हैं।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मोमिनी ने बताया कि ईश्वर ने मनुष्य को उसके सच्चे ज्ञान के लिए बनाया है और जो कोई भी इस ज्ञान को प्राप्त कर लेता है, वह सच्चा गुलाम बन जाता है। ऐसा बंदा अल्लाह से स्वतंत्र हो जाता है।

उन्होंने आगे कहा: ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करना और उनके निषेधों से बचना ज्ञान और प्रेम का परिणाम है और यही इस दुनिया और उसके बाद खुशी का स्रोत है।

उन्होंने हज़रत सय्यद अल-शाहदा (अ) का उल्लेख किया और कहा: कर्बला की घटना में सबसे गंभीर परीक्षणों के बावजूद, इमाम हुसैन (उन पर शांति) पूरी तरह से ईश्वर की आज्ञा के प्रति समर्पित थे।

उन्होंने अल्लाह के रसूल (स) के ज्ञान को आस्था का आधार बताया और कहा कि अल्लाह के दूत की सभी बातें ईश्वर की ओर से हैं, और चौदह मासूमों (उन पर शांति हो) के प्रति प्रेम है। ) दिव्य प्रेम का कारण है।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मोमिनीन ने हज़रत उम्मुल-बानीन का उल्लेख किया और कहा: इस महान महिला का नाम इतिहास में दर्ज है, जिन्होंने हज़रत फातिमा (स) के बच्चों की देखभाल की थी। एक परिवार की स्थापना की जो कर्बला की घटना के लिए जिम्मेदार था।

उन्होंने कहा: हज़रत उम्मुल-बानीन का प्यार और ज्ञान, उन पर शांति हो, अहले-बैत (अ) पूर्ण और सच्चा था, और उन्होंने अपना जीवन भगवान की खुशी के लिए समर्पित कर दिया।

 

 कर्बला में महिलाओं का उपस्थित होना कभी भी वाजिब नहीं था, और इमाम हुसैन (अ) ने अपने साथियों की मौजूदगी का निर्णय मसलहत और आवश्यकता के आधार पर लिया था। जो लोग कर्बला गई, वे शहीदों की पत्नियाँ थीं या वे व्यक्ति थे जिनकी वहाँ मौजूदगी क़याम के उद्देश्यों के लिए जरूरी थी।

केंद्रीय धार्मिक सवालों के उत्तर देने वाले केंद्र ने "हज़रत उम्मुल बनीन (स) की कर्बला में अनुपस्थिति के कारण" पर एक सवाल-जवाब प्रकाशित किया है, जिसे हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं:

प्रश्न:
सलाम और शुक्रिया, क्यों हज़रत उम्मुल बनीनी (स) कर्बला में नहीं थीं, जबकि हज़रत ज़ैनब (स) और हज़रत रबाब (स) अपने छह महीने के बच्चे के साथ कर्बला में थीं, जबकि हज़रत उम्मुल-बनीन (स) भी मदीना में थीं? क्यों उन्होंने इमाम हुसैन (अ) का साथ नहीं दिया?

उत्तर:
इमाम हुसैन (अ) के साथियों का कर्बला में होना कई कारणों पर निर्भर था:

  1. शारीरिक और मानसिक ताकत:कर्बला तक का सफर बहुत कठिन था, और इसके लिए शारीरिक और मानसिक ताकत की जरूरत थी। हज़रत उम्मुल-बनीन (स) की शारीरिक स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है, इसलिए हो सकता है कि उनकी शारीरिक हालत कर्बला जाने के लिए उपयुक्त न रही हो।
  2. हज़रत उम्मुल-बनीन (स) की इच्छा और संतुष्टि:हालांकि हज़रत उम्मुल-बनीन (स) मदीना में थीं, लेकिन संभव है कि इमाम हुसैन (अ) ने उन्हें कर्बला न लेजाने का निर्णय लिया हो। इमाम हुसैन (अ) अपने फैसले मसलहत और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लेते थे।
  3. इमाम हुसैन (अ) का निर्णय:इमाम हुसैन (अ) ने कर्बला में अपने साथियों का चयन करते समय समाज की जरूरतों और क़याम के उद्देश्यों को ध्यान में रखा। हो सकता है कि इमाम हुसैन (अ) ने हज़रत उम्मुल-बनीन (स) को कर्बला न भेजने का निर्णय लिया हो, या फिर किसी और वजह से उन्हें यह निर्णय लेना पड़ा हो।

इसके विपरीत, हज़रत ज़ैनब (स) का कर्बला में होना इमाम हुसैन (अ) के फैसले और क़याम के संदेश को फैलाने के लिए अहम था। हज़रत ज़ैनब (स) ने कर्बला के बाद उस घटनाक्रम का संदेश लोगों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अगर वह कर्बला में नहीं होतीं, तो इमाम हुसैन (अ) का क़याम अधूरा रह जाता।

इसके अलावा, हज़रत रबाब (स), जो इमाम हुसैन (अ) की पत्नी थीं, कर्बला में अपने छह महीने के बच्चे के साथ थीं। यह इमाम हुसैन (अ) की मसलहत और निकटता की वजह से था।

निष्कर्ष:
कर्बला में महिलाओं का उपस्थित होना कभी भी वाजिब नहीं था। इमाम हुसैन (अ) ने अपने साथियों का चयन मसलहत और जरूरतों के आधार पर किया। कर्बला जाने वाले लोग या तो शहीदों की पत्नियाँ थीं या वे व्यक्ति थे जिनकी वहाँ मौजूदगी क़याम के उद्देश्यों के लिए जरूरी थी।

 

जनाबे उम्मुल बनीन (स) अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़ौजा और अलमदारे करबला हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की माँ थीं। इन की विलादत कूफ़ा शहर के नज़दीक हुईं थीं।

आप का असली नाम फ़ातिमा ए कलाबिया था।

जनाबे उम्मुल बनीन (स) के पिता हज़्ज़ाम बिन ख़ालिद बिन रबी कलाबिया थे तथा आप को अरब के प्रसिध्द बहादुरों में गिना जाता था एवं अपने क़बीले के सरदार भी थे और आप की माता का नाम समामा (ثمامه) था।

रिवायत में बयान हुआ है कि जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) की शहादत के कुछ महीनों बाद इमाम अली अलैहिस्सलाम ने अपने बड़े भाई जनाबे अक़ील को बुलाया जो कि उस समय के सबसे बड़े नसब शिनास थे और उन से कहा कि ऐ भाई अक़ील! मुझे किसी ऐसी औरत के बारे में बताओ कि जिससे मैं विवाह कर सकूं ताकि ख़ुदा उसके ज़रिए मुझे एक दिलेर और बहादुर बेटा दे। तब जनाबे अक़ील ने हज़रत अली (अ) को जनाबे उम्मुल बनीन (स) और उनके परिवार के बारे में बताया और कहा कि ऐ अली! तुम फ़ातिमा ए कलाबिया से विवाह करो। क्योंकि मैं अरब में उनके ख़ानदान से अधिक बहादुर किसी को नहीं जानता हूं। इमाम अली (अ) ने जनाबे अक़ील की बात से सहमत होकर जनाबे उम्मुल बनीन (स) से विवाह कर लिया।

विवाह के बाद जब जनाबे उम्मुल बनीन (स) हज़रत अली (अ) के घर में आईं तो आप ने इमाम अली (अ) से कहा कि ऐ मेरे आक़ा! आज से आप मुझे उम्मुल बनीन यानी बच्चों की माँ कहा करें ताकि ऐसा न हो कि आप मुझे फ़ातिमा कहकर पुकारें और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) के बच्चे अपनी माँ को याद करके ग़मज़दा हो जायें।

जनाबे उम्मुल बनीन (स) ने जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) की औलाद को अपने बच्चों से अधिक मोहब्बत दी और सदा अपने बच्चों को नसीहत की कि देखो! तुम अली (अ) की औलाद ज़रूर हो लेकिन अपने आप को हमेशा फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) के बच्चों का ग़ुलाम समझना।

जब करबला की घटना के बाद बशीर ने आपको आपके चारों बेटों (हज़रत अब्बास, जाफ़र, अब्दुल्लाह, उस्मान अ.) की शहादत की ख़बर दी तो जनाबे उम्मुल बनीन (स) ने कहा कि ऐ बशीर! तूने मेरे दिल के टुकड़े टुकड़े कर दिये और ज़ोर ज़ोर से रोना शुरू कर दिया। बशीर ने कहा कि ख़ुदावंद आप को इमाम हुसैन (अ) की शहादत पर अजरे अज़ीम इनायत करें, तो उम्मुल बनीन (स) ने जवाब दिया, मेरे सारे बेटे और जो कुछ भी इस दुनिया में है सब मेरे हुसैन (अ) पर क़ुरबान...

आप के चार बेटे हज़रत अब्बास, अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान (अ) थे जो सब के सब करबला के मैदान में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ शहीद हुए।

जनाबे उम्मुल बनीन (स) ने 13 जमादिस्सानी सन 64 या 70 हिजरी में मदीना शहर में वफ़ात पाई और आप की क़ब्र जन्नतुल बक़ी क़ब्रिस्तान में है।

? *अल्लाह हुम्मा अज्जिल ले वलियेकल फ़रज...*

इराकी प्रधानमंत्री मोहम्मद अलसुदानी ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मुलाकात के दौरान सीरिया के हालात के बारे में चर्चा की इस मौके पर उन्होंने कहा सीरिया पर किसी भी तरह की आक्रमानता बर्दाश्त नहीं करेंगे।

एक रिपोर्ट के अनुसार,इराकी प्रधानमंत्री मोहम्मद अलसुदानी ने

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मुलाकात के दौरान सीरिया के हालात के बारे में चर्चा की इस मौके पर उन्होंने कहा सीरिया पर किसी भी तरह की आक्रमानता बर्दाश्त नहीं करेंगे।

इस बैठक में दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के उपायों और क्षेत्र के हालिया घटनाक्रम, विशेष रूप से सीरिया की स्थिति, पर चर्चा की। अलसुदानी के कार्यालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि इराक के प्रधानमंत्री और अमेरिकी विदेश मंत्री ने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों पर चर्चा की जो सीरिया में सुरक्षा और पूरे क्षेत्र में स्थिरता बढ़ाने के लिए किए जा रहे हैं।

अलसुदानी ने इस महत्वपूर्ण और निर्णायक चरण में सीरिया का समर्थन करते हुए जोर दिया कि मित्र देशों को सीरियाई जनता की मदद करनी चाहिए ताकि वे अपने देश का पुनर्निर्माण कर सकें और उन चुनौतियों का सामना कर सकें जो इस देश की शांति को प्रभावित कर सकती हैं।

 

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सीरिया की प्रबंधन प्रक्रिया में देश के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि इराक सीरिया में संक्रमणकालीन चरण का प्रबंधन करने वालों से कथनी नहीं करनी” की अपेक्षा करता है।

 

अलसुदानी ने यह स्पष्ट किया कि इराक सीरिया की भूमि पर किसी भी हमले की अनुमति नहीं देगा। उन्होंने कहा कि इस तरह के हमले क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिए खतरा हैं।

 

 

 

 

 

सोमवार, 16 दिसम्बर 2024 17:20

जंगबन्दी से आक्रमण का अंत हुआ

हिज़्बुल्लाह लेबनान के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम शेख नईम क़ासिम ने अपने भाषण में इसराइल के आक्रमणकारी की ओर से युद्धविराम की मांग पर चर्चा करते हुए कहा कि हाल ही में हुए युद्धविराम समझौते से प्रतिरोध नहीं बल्कि आक्रमणकारी ज़ायोनी हमलों का अंत हुआ है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, हिज़्बुल्लाह लेबनान के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम शेख नईम क़ासिम ने कल अपने भाषण में कहा कि सभी अरबी और इस्लामी देशों पर यह ज़िम्मेदारी है कि वे ग़ाज़ा का समर्थन करें।

उन्होंने कहा कि आक्रमणकारी इसराइल क्षेत्र में किसी भी प्रतिरोध योजना को खत्म करने की कोशिश कर रहा है और हिज़्बुल्लाह ने इसराइली सरकार पर जोरदार हमला किया है।

शेख नईम क़ासिम ने आगे कहा कि हमने आक्रमणकारी इसराइली सरकार के खिलाफ प्रतिरोध के रास्ते में बड़ी कुर्बानियाँ दी हैं और आक्रमणकारी सरकार के साथ युद्धविराम समझौता केवल आक्रमण के अंत के लिए था न कि प्रतिरोध के अंत के लिए।

उन्होंने स्पष्ट किया कि दुश्मन का मुकाबला उचित ताकत के साथ किया जाना चाहिए और कुर्बानियाँ प्रतिरोध के रास्ते को सरल बनाती हैं हमारी ज़मीन को प्रतिरोध के बिना मुक्त नहीं किया जा सकता।

हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने कहा कि प्रतिरोध के युद्ध के तरीके और संसाधन परिस्थितियों के अनुसार बदल सकते हैं।

शेख नईम क़ासिम ने कहा कि युद्धविराम समझौते का लेबनान के आंतरिक मामलों से कोई संबंध नहीं है और हिज़्बुल्लाह ने आक्रमणकारी इसराइल की ओर से समझौते का उल्लंघन होने पर धैर्य का प्रदर्शन किया।

हिज़्बुल्लाह के प्रमुख ने कहा कि प्रतिरोध द्वारा दी गई कुर्बानियाँ वह कीमत हैं जो उसने अपनी निरंतरता के लिए चुकाई हैं।

 

इज़राईली सेना ने सीरिया के दक्षिण पूर्वी प्रांत क़ुनैतरा में नागरिकों को विस्थापित करने के लिए बुनियादी ढांचे को नष्ट करने की रणनीति अपनाई है।

,एक रिपोर्ट के अनुसार , इज़राईली सेनाओं ने सीरिया के दक्षिण पूर्वी प्रांत क़ुनैतरा में नागरिकों को विस्थापित करने के लिए बुनियादी ढांचे को व्यवस्थित तरीके से नष्ट करने की रणनीति अपनाई है।

अलजज़ीरा के मैदानी रिपोर्टर, मुन्तसिर अबू नबूत के अनुसार, इसराइली सेना ने सीरिया के कई गांवों और शहरों में प्रवेश कर पानी और बिजली की आपूर्ति लाइनों को तोड़फोड़ कर नष्ट कर दिया, ताकि स्थानीय निवासियों को जीवन की बुनियादी सुविधाओं से वंचित कर उन्हें क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर किया जा सके।

मुन्तसिर अबू नबूत ने बताया कि क़ुनैतरा के मुख्य क्षेत्रों में इसराइली सैन्य टैंकों ने स्थानीय सड़कों को नुकसान पहुंचाया दोनों ओर के पेड़ों को काट दिया, और बिजली के खंभों को गिरा दिया हैं।

 

उन्होंने आगे बताया कि इसराइली सेनाओं ने अल हमिदिया कस्बे सहित कई इलाकों के निवासियों को क्षेत्र खाली करने का आदेश दिया। हालांकि, जब स्थानीय निवासियों ने इन आदेशों को मानने से इनकार कर दिया, तो इसराइली सेना ने उनके संसाधनों को काटकर उन्हें जबरन विस्थापित करने का माहौल बना दिया।

ज़ायोनी सेना ने हाल ही में एक खाली सीरियाई सैन्य कमांड केंद्र पर हमला किया और एक तलाशी अभियान शुरू किया। इस अभियान के दौरान उन्हें इसराइली वायुसेना का सहयोग प्राप्त था जिसकी उपस्थिति का संकेत हवाई जहाजों की आवाज़ों से मिलता रहा। स्थानीय चश्मदीदों के मुताबिक, इसराइली सेना इन इलाकों में हथियारों की तलाश कर रही है।

इन आक्रामक कार्रवाइयों का उद्देश्य स्पष्ट रूप से सीरियाई नागरिकों को उनके क्षेत्रों से बेदखल करना और सीरिया में अपनी रणनीतिक स्थिति को मज़बूत करना है। बुनियादी संसाधनों की तोड़फोड़ और स्थानीय ढांचे की तबाही इस क्षेत्र में इसराइल की आक्रामक नीतियों की निरंतरता को दर्शाती है।

यह घटनाएं ऐसे समय में हो रही हैं जब सीरिया गृहयुद्ध और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है। इसराइल की इन आक्रामक रणनीतियों को क्षेत्र में अपनी ताकत बढ़ाने और सीरिया के संसाधनों को कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

वैश्विक समुदाय ने अब तक इन कदमों पर चुप्पी साध रखी है जबकि सीरियाई जनता को और अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

 

 

 

 

 

तारागढ़ के इमाम जुमा ने अपने जुमे के खुत्बे मे आयतुल्लाहिल-उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के हालिया बयान का जिक्र करते हुए कहा, "दो दिन पहले, इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि सीरिया में जो घटनाएँ हो रही हैं, वे बिना शक़ और शुब्हा के अमेरिका और इज़राइल के साझा मंसूबे के तहत हो रही हैं।

हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद नकी महदी ज़ैदी ने तारागढ़, भारत में जुमे की नमाज के खुतबे में नमाजियों को तक़वा की सलाह दी और फिर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के वसीयत नामे के एक हिस्से "लोगों के हक़ अदा करो" की व्याख्या करते हुए शिष्य के हकों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि गुरू और शिष्य के बीच एक गहरा रिश्ता होता है और अगर हम इस्लामी सिस्टम के उद्देश्य पर नजर डालें तो उनमें से एक प्रमुख उद्देश्य है चरित्र निर्माण, जिसे उस्ताद ही पूरा कर सकते हैं।

खुतबे में मौलाना नकी महदी ज़ैदी ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के "रेसालतुल हुकूक" से शिष्य के हक़ के बारे में कुछ बातें बताईं:

  1. जो इल्म और हिकमत उस्ताद ने हासिल की है, वह खुदा के फजल से मिली है, इसमें उस्ताद का कुछ भी नहीं है, जिससे उस्ताद का ज्ञान पर घमंड खत्म होता है।
  2. उस्ताद को इल्म और हिकमत का ख़ज़ाना माना गया है और उसे बांटते समय उसे दयालु और मुस्कुराते हुए देना चाहिए।
  3. इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम उस्ताद को ज्ञान का ख़ज़ाना समझते हैं और उसे बांटने को धन खर्च करने जैसा मानते हैं, जिसमें कोई कंजूसी नहीं होनी चाहिए।

मौलाना नकी महदी ज़ैदी ने कहा कि गुरू को शिष्य को अच्छे और शालीन तरीके से पढ़ाना चाहिए, ताकि उनके दिल में ज्ञान प्राप्त करने की लगन पैदा हो।

उन्होंने कहा कि इल्म हासिल करने के बारे में रसूल अक़रम (स) ने फरमाया, "जो शख्स इल्म की तलाश में जाता है और उसे पा लेता है, अल्लाह उसे दो गुना सवाब देता है, और जो उसे नहीं पा पाता, अल्लाह उसे एक सवाब देता है।"

रसूल अक़रम (स) ने कहा, "जिसे इल्म हासिल करते हुए मौत आ जाए, तो जन्नत में उसका दर्जा अंबिया अलैहेमुस्सलाम से एक दर्जा ऊँचा होगा, बशर्ते कि वह इल्म इस्लाम को ज़िंदा करने के लिए हासिल कर रहा हो।"

तारागढ़ के इमाम जुमा ने हाल ही में मदरसा जाफ़रिया तारागढ़ की तालिबा मक़रम फातिमा मरहूमा के निधन पर दुःख प्रकट करते हुए उनकी मग़फिरत की दुआ की। उन्होंने कहा कि जिस लड़की को वे पढ़ा रहे थे, कभी नहीं सोचा था कि उन्हें उसकी जनाज़े की नमाज़ भी पढ़ानी पड़ेगी।

मौलाना नकी महदी जद़ैदी ने वर्तमान घटनाओं पर चिंता जताई, खासकर ग़ज़ा, लेबनान और सीरिया के मुद्दों पर। उन्होंने सीरिया में हज़रत ज़ैनब और हज़रत सकीना के मजारों के अपमान की खबरों पर भी चिंता जताई और दुआ की कि इस्लामी प्रतिरोध बरकरार रहे और सीरिया में अमन कायम हो।

आखिर में, उन्होंने आयतुल्लाहिल-उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई के हालिया बयान का जिक्र करते हुए कहा, "दो दिन पहले, इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि सीरिया में जो घटनाएँ हो रही हैं, वे बिना शक़ और शुब्हा के अमेरिका और इज़राइल के साझा मंसूबे के तहत हो रही हैं। बेशक, इन हमलावरों के अलग-अलग मकसद हैं, कुछ उत्तर या दक्षिण सीरिया में ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि अमेरिका इस इलाके में अपनी मौजूदगी बनाना चाहता है। लेकिन वक्त यह साबित करेगा कि इनमें से कोई भी अपने मकसद तक नहीं पहुंचेगा। सीरिया के क़ब्ज़े वाले इलाके शामी नौजवानों की बहादुरी और इज्जत से आज़ाद होंगे, इसमें कोई शक नहीं। यह होगा, अमेरिका सीरिया में अपनी जगह नहीं बना पाएगा। अल्लाह की मदद से प्रतिरोधी मोर्चे के जरिए अमेरिका को इस इलाके से बाहर कर दिया जाएगा।"