
رضوی
मुक़ावमत ने खबीस यहूदी शासन को बातचीत करने पर मजबूर कर दिया
ईरान के शहर दीवंदरह के अहले सुन्नत इमाम ए जुमआ ने कहा,शोहद ए मुक़ावमत की शहादत के बाद मुक़ावमत का महवर और भी ताकतवर होकर सामने आया और खबीस यहूदी राज्य को बातचीत पर मजबूर कर दिया।
शहर दीवंदरह के अहले सुन्नत इमामे जुमा मौलवी जलाल मुरादी ने शहदा ए मुक़ावमत (प्रतिरोध के शहीदों) की याद में आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण देते हुए शहीद सैयद हसन नसरल्लाह और शहीद सैयद हाशिम सफीउद्दीन के भव्य जनाज़े का ज़िक्र किया और कहा,शहीद सैयद नसरल्लाह, हनिया, सनवार, और सरदार मुक़ावमत हाजी क़ासिम सुलेमानी क़ुद्स के शहीद हैं जिन्होंने अपनी जानों का नज़्राना बैतुल मुक़द्दस (यरुशलम) की आज़ादी के लिए पेश किया।
उन्होंने और कहा,दुश्मन यह समझ रहा था कि इन महान शख्सियतों और नेताओं की शहादत से यह तहरीक (आंदोलन) कमजोर या खत्म हो जाएगी लेकिन दुनिया ने देखा कि ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ।
इमाम ए जुमा दीवंदरह ने कहा,शहदा ए मुक़ावमत की शहादत के बाद, मुक़ावमत का महवर और भी ताकतवर होकर सामने आया और खबीस ज़ायोनी राज्य को बातचीत पर मजबूर कर दिया।
मौलवी जलाल मुरादी ने कहा,ज़ायोनी राज्य ने मुक़ावमत की सभी शर्तों को स्वीकार कर लिया और यह इस मुक़ावमत की सबसे बड़ी कामयाबी है।
पूरा फ़िलिस्तीन जब तक आज़ाद नहीं हो जाता प्रतिरोध जारी रहेगा:हमास
हमास ने कहां, जब तक पूरा फ़िलिस्तीनी इलाक़ा आज़ाद नहीं हो जाता तब तक प्रतिरोध जारी रहेगा जिसमें सशस्त्र प्रतिरोध भी शामिल है प्रतिरोध का हथियार हमारे लोगों है और इसका मकसद हमारे लोगों और हमारे पवित्र स्थलों की सुरक्षा है।
हमास ने एक बयान में कहा है कि न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित डॉ. मूसा अबू मरज़ूक़ के बयान सही नहीं हैं यह बयान कल रात ‘क़ुद्स प्रेस’ में प्रकाशित हुआ। बयान के अनुसार, “यह इंटरव्यू कुछ दिन पहले लिया गया था, लेकिन प्रकाशित किए गए अंश हमारे जवाबों को सही तरह से पेश नहीं करते हैं। उन्हें उनके संदर्भ से बाहर निकालकर इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि वे इंटरव्यू की असली भावना को नहीं दर्शाता हैं।
हमास के बयान में कहा गया कि डॉ. अबू मरज़ूक़ ने इस बात पर जोर दिया कि 7 अक्टूबर का ऑपरेशन हमारे लोगों के प्रतिरोध, नाकाबंदी, क़ब्ज़े और बस्तियों के खिलाफ उनके अधिकार का प्रतीक है। बयान में यह भी कहा गया कि इस इंटरव्यू में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इज़रायली क़ब्ज़ाधारी युद्ध-अपराध और नरसंहार के ज़िम्मेदार हैं जो ग़ाज़ा पट्टी में हमारे लोगों के खिलाफ हो रहे हैं। ये अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन हैं और पूरी दुनिया के लिए झटका हैं।
हमास के अनुसार, अबू मरज़ूक़ ने इस इंटरव्यू में यह भी दोहराया कि हमास अपने स्थायी रुख पर अडिग है और जब तक पूरा फ़िलिस्तीनी इलाक़ा आज़ाद नहीं हो जाता तब तक प्रतिरोध जारी रहेगा जिसमें सशस्त्र प्रतिरोध भी शामिल है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि प्रतिरोध का हथियार हमारे लोगों का है और इसका मकसद हमारे लोगों और हमारे पवित्र स्थलों की सुरक्षा है। जब तक हमारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा है तब तक इसे त्यागना संभव नहीं है।
नई सीरियाई सरकार एक आतंकवादी समूह है। इज़रायली विदेश मंत्री
इज़रायली शासन के विदेश मंत्री गिदोन सार ने दावा किया है कि सीरिया की नई सरकार इदलिब के एक इस्लामी चरमपंथी समूह से बनी है, जिसने जबरन दमिश्क़ पर क़ब्ज़ा कर लिया है नई सीरियाई सरकार एक आतंकवादी समूह है।
इज़रायली शासन के विदेश मंत्री गिदोन सार ने दावा किया है कि सीरिया की नई सरकार इदलिब के एक इस्लामी चरमपंथी समूह से बनी है, जिसने जबरन दमिश्क़ पर क़ब्ज़ा कर लिया है। नई सीरियाई सरकार एक आतंकवादी समूह है।उन्होंने कहा कि बशर अलअसद के सत्ता से हटने पर इज़रायल को खुशी है लेकिन कुर्दों को नुकसान पहुंचा रही है।
गिदोन सार ने चेतावनी देते हुए कहा कि इज़रायल अपनी सीमाओं की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा उन्होंने दावा किया कि सीरिया में हमास और इस्लामिक जिहाद इज़रायल के खिलाफ नया मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
इससे पहले इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इज़रायली सेना के एक कार्यक्रम में कहा था कि उनकी सेना गोलान हाइट्स और बफर ज़ोन में बनी रहेगी।
उन्होंने यह भी कहा कि हयात तहरीर अलशाम और सीरिया की नई सेना को दमिश्क़ के दक्षिण में घुसने नहीं दिया जाएगा। नेतन्याहू ने धमकी दी थी कि, इज़रायल दक्षिणी सीरिया में द्रूज़ समुदाय के खिलाफ किसी भी खतरे को बर्दाश्त नहीं करेगा।
इज़रायली हस्तक्षेप के खिलाफ विरोध प्रदर्शन इज़रायली नेताओं के इन बयानों के बाद, सीरिया के दारा और सुवैदा प्रांतों में इज़रायली हस्तक्षेप के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन हुए।
स्थानीय नागरिकों और समुदायों ने मांग की कि इज़रायल सीरिया के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करे। कुछ प्रदर्शनकारियों ने इज़रायल पर आरोप लगाया कि वह सीरिया में अस्थिरता फैलाने और विभाजन की राजनीति करने की कोशिश कर रहा है।
ज़ायोनी शासन, मानसिक संकट से लेकर मीडिया संकट तक
ज़ायोनी मीडिया येदीयेत अहारनोत ने इज़राइल की सेना में मनोवैज्ञानिक संकट के बारे में रिपोर्ट दी है।
ज़ायोनी समाचार पत्र येदीयेत अहारनोत ने रिपोर्ट दी है कि हालिया युद्ध के मैदान से लौटे 1 लाख 70 हज़ार इज़राइली सैनिकों ने मनोवैज्ञानिक सहायता प्राप्त करने के लिए इज़राइल के युद्ध मंत्रालय के उपचार कार्यक्रम में रजिस्ट्रेशन कराया है।
कई इज़राइली रिज़र्विस्ट सैनिक जो महीनों से युद्ध के मैदान में हैं, मनोवैज्ञानिक उपचार की तलाश में हैं, लेकिन उन्हें मनोचिकित्सकों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। यह पूरी कहानी नहीं है और मानसिक संकट केवल उन समस्याओं में से एक है जिसने इन दिनों इज़राइल को जकड़ रखा है।
राजनीति विज्ञान विशेषज्ञ सैयद अला मूसवी का मानना है कि इज़राइल को आंतरिक संकट, सैन्य नाकामियों और घटती शक्ति का सामना करना पड़ा है।
इज़राइली सैन्य विश्लेषक अमीर बू हबूत ने भी 7 अक्टूबर के हमले की जांच रिपोर्ट के जारी होने की की पूर्व संध्या पर ज़ायोनी शासन की सेना के वरिष्ठ कमांडरों के बीच पाए जाने वाले तेज़ तनाव की सूचना दी है।
अमीर बू हबूत का कहना है: सैन्य सूत्रों से पता चला कि जांच के शुरुआती नतीजों से सेना के जनरल स्टाफ में गंभीर मतभेद पैदा हो गए और नए चीफ ऑफ स्टाफ और इज़राइली जनरलों के बीच अविश्वास बढ़ गया है।
"अस्तित्वगत संकट" फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन (हमास) की बढ़ती शक्ति के बारे में अपनी राय में एक इज़राइली सैन्य विशेषज्ञ द्वारा इस्तेमाल किया गया एक और शब्द है।
पूर्व इज़राइली जनरल और इज़राइली सेना के पूर्व डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ यायर गोलान ने कहा कि हमास अभी भी ग़ज़ापट्टी के नियंत्रण में है। उनका कहना था: इज़राइल न केवल बाहरी खतरों के कारण बल्कि आंतरिक विभाजन और बिखराव के कारण भी अपने इतिहास में सबसे गंभीर अस्तित्व संकट का सामना कर रहा है।
इज़रायल का मीडिया विफलता संकट भी इन दिनों एक मुद्दा है जिसे इज़रायली विशेषज्ञ भी स्वीकार करते हैं।
इस संबंध में ज़ायोनी शासन के पूर्व प्रवक्ता एलोन लेवी ने एक विश्लेषण में कहा: ज़ायोनी शासन ने हमेशा अपने विस्तारवादी लक्ष्यों और मीडिया प्रचार के माध्यम से अपने कार्यों को वैध बनाने के लिए जनता की राय को अपने साथ करने का प्रयास किया है लेकिन तूफ़ान अल-अक्सा ऑपरेशन ने इस लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ पैदा कर दिया है।
इज़राइल के पूर्व प्रवक्ता के अनुसार, यह शासन, ग़ज़ा युद्ध में विश्व जनमत को प्रभावित करने के अपने महान प्रयासों के बावजूद और इस क्षेत्र में मीडिया नेटवर्क की सारी शक्ति का उपयोग करने के बावजूद, सैन्य युद्ध में नाकाम होने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त नहीं करने के अलावा, मीडिया युद्ध में भी बुरी तरह से नाकाम रहा और ग़ज़ा में अपने अपराधों और हत्याओं को छुपा नहीं सका।
क्या अमेरिकी राष्ट्रपति मूर्ख या दुष्ट हैं?
एक अमेरिकी विश्लेषक ने अमेरिका के राष्ट्रपति "डोनल्ड ट्रम्प" को पूरी तरह से बेवक़ूकफ़ क़रार दिया है।
अमेरिकी राजनीतिक विशेषज्ञ "डेविड ब्रूक्स" ने कहा: "ट्रम्प और उनके व्यवहार के बारे में एक प्रकार की दोहरी "दुष्टता" या "मूर्खता" है, हालांकि, वह निश्चित रूप से एक मूर्ख व्यक्ति हैं!
"न्यूयॉर्क टाइम्स" पत्रिका के टीकाकार "डेविड ब्रूक्स" ने लिखा: अपनी दुष्टता के बावजूद, दुष्ट लोग अपने हितों को अच्छी तरह से जानते व समझते हैं, लेकिन बेवकूफ लोगों की अपनी मूर्खता की कोई सीमा नहीं होती और यहां तक कि अपने और अपने देश के हितों के ख़िलाफ़ भी क़दम उठा देते हैं, निश्चित रूप से ट्रम्प का संबंध भी इसी ग्रुप से है।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर "मानुशे शफ़ीक" भी अमेरिकी राष्ट्रपति को बेवकूफ क़रार देते हैं जिन्होंने इस देश को विमर्श और बौद्धिक दृष्टिकोण से पूरी तरह से ख़ाली कर दिया है। शफीक ने कहा: ऐसा लगता है जैसे उन्होंने अमेरिका और दुनिया में शैतानों के युग की शुरुआत कर दी है!
एक प्रमुख अमेरिकी विश्लेषक और टीकाकार "थॉमस फ्रीडमैन" ने भी कहा कि ट्रम्प अपने राष्ट्रपति पद को आजीवन कार्यकाल बनाने का इरादा रखते हैं।
वह कहते हैं कि ट्रम्प दुनिया को वास्तव में ट्रम्प टॉवर में एक खुदरा स्टोर की तरह देखते हैं, मिसाल के तौर पर, वह फ्रांस से कहते हैं, आप अपनी इस बेकरी के लिए पर्याप्त किराया नहीं दे रहे हैं! वह यूरोप को एक व्यापारिक ग्रुप के रूप में देखते हैं जो अमेरिका पर बहुत अधिक दबाव डाल सकता है, इसलिए वह इसे तोड़ना और फिर इनमें से हर देश के साथ व्यक्तिगत रूप से बातचीत करना पसंद करते हैं लेकिन उन्हें इसके परिणामों का अंदाज़ा नहीं है।
इसी सन्दर्भ में, अमेरिकी मुद्दों के विशेषज्ञ अमीर अली अबुलफ़त्ह" ने भी एक्स पर लिखा: ट्रम्प हमेशा बाक़ी रहने वाली सत्ता के प्यासे हैं, चाहे वह आजीवन राष्ट्रपति हों या राजा।
लेकिन ये चाहत सैन्य तख्तापलट या अमेरिकी संविधान में बदलाव के बिना संभव नहीं है, पहले को यानी सैन्य तख़्तापलट को सेना के समर्थन की आवश्यकता होती है, जिसका सेना समर्थन नहीं करती है, और दूसरे को अर्थात संविधान में परिवर्तन को कांग्रेस और राज्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है, जिसका वे भी समर्थन नहीं करते हैं।
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ अब्दुल रज़ा फ़र्जीराद भी मानते हैं कि ट्रम्प साम्राज्यवादी नीतियों का पालन करते हैं। उनका कहना है: अमेरिकी राष्ट्रपति का मुख्य लक्ष्य घरेलू जनमत और अपने मतदाताओं के आधार को बनाए रखना है। उनके मुताबिक ट्रम्प ने अस्थायी तौर पर तानाशाही और ज़बरदस्ती की नीति अपनाई है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल के विश्लेषक "जेरार्ड बेकर" भी विभिन्न देशों के खिलाफ ट्रम्प के टैरिफ़ वॉर की शुरुआत का उल्लेख करते हैं और इस युद्ध को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा उठाया गया सबसे मूर्खतापूर्ण क़दम क़रार देते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इस प्रक्रिया के जारी रहने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचेगा।
आबिद होना आसान है जब्कि अब्द होना मुश्किल हैः डॉ कमाल हुसैनी
कोपागंज मऊ में एक भव्य वार्षिक समारोह "ताजदार-ए-वफा" का आयोजन हुआ। इस समारोह का नाम "आल इंडिया तारीखी बज्म-ए-मकासिदा" था। यह समारोह हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास की विलादत के अवसर पर मनाया गया था।
हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास की एक बड़ी विशेषता यह है कि उन्हें इमाम की जुबान से "अब्द सालेह" का खिताब मिला था। अब्द सालेह की महानता यह है कि अब्द होना मुश्किल है, जबकि आबिद होना आसान है। हम कलमा मे शहादतैन में कहते हैं: "अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दहु व रसूलहु", जिसका अर्थ है कि मुहम्मद अल्लाह के अब्द और रसूल हैं। यहां रिसालत पर अब्दियत को प्राथमिकता दी गई है। शैतान ने अपनी मेहनत और रियाजत से "अब्द" तो नहीं बन सका, लेकिन "अब्द" बनने की कोशिश की। अब्द का अर्थ है कि तुम्हारा खुदा तुमसे क्या चाहता है, यह देखना चाहिए, न कि तुम्हारा दिल तुमसे क्या चाहता है।
हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास ने अल्लाह, रसूल और इमाम की इतनी अच्छी तरह से आज्ञा मानी कि इमाम जैनुल आबेदीन ने उन्हें "अब्द सालेह" कहकर सलाम किया। यह बातें हुज्जतुल इस्लाम डॉ. सैयद कमाल हुसैनी ने अपने भाषण में कहीं। वे जमिया अल-मुस्तफा हिंद के प्रतिनिधि हैं और ईरान कल्चर हाउस दिल्ली से जुड़े हैं।
उन्होंने कहा कि दुनिया में एक ही समय में सूरज और चंद्रमा एक साथ नहीं चमकते। लेकिन कर्बला के आसमान पर एक ही समय में सूरज और चंद्रमा दोनों चमक रहे थे। इमाम हुसैन आफताब-ए-इमामत थे, जबकि हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास "क़मर बानी हाशिम" थे।
हुज्जतुल इस्लाम डॉ. सैयद कमाल हुसैनी ने फारसी में भाषण दिया, जिसका अनुवाद हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद अतहर जाफरी कश्मीरी ने किया। उन्होंने कहा कि हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास को जो उच्च पद मिला, उसमें उनकी माता अम्मुल बनीन, पिता अली इब्न अबी तालिब और रसूल और इमाम के परिवार की शिक्षा और परवरिश का बड़ा योगदान है।
शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद अबुल कासिम रिजवी ने अपने भाषण में कहा कि हज़रत अली को सभी लोग प्यार करते हैं। काबा ने 13 रजब को जिस तरह से हज़रत अली को चाहा, वह एक अनोखी ऐतिहासिक सच्चाई है। उसी तरह हज़रत अली ने जिसे चाहा, वह हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास हैं।
उन्होंने कहा कि जब निष्ठा, ईमानदारी और सच्चाई की बात होती है, तो मुहम्मद की शख्सियत समझ में आती है। जब ज्ञान और बहादुरी की बात होती है, तो अली की शख्सियत याद आती है। जब पवित्रता की बात होती है, तो फातिमा की शख्सियत याद आती है। जब धैर्य की बात होती है, तो हसन की शख्सियत याद आती है। जब शहादत की बात होती है, तो हुसैन की शख्सियत याद आती है। और जब वफादारी की बात होती है, तो हज़रत अबुल फजल अल-अब्बास की शख्सियत याद आती है।
इस कार्यक्रम का आरंभ हुज्जतुल इस्लाम मौलाना कारी नाजिम अली नजफी ने कुरआन की तिलावत से किया। शायरों ने "फज़ीलतों के हर आसमान पर वफा का सूरज जगा करेगा" के नाम से अपनी शायरी पेश की। हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद सफदर हुसैन ने स्वागत भाषण दिया। कार्यक्रम के मुख्य आयोजक हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सरकर मुहम्मद ने सभी का धन्यवाद किया। इस कार्यक्रम में कई उलेमा, शायर और मोमिनों ने भाग लिया।
तौबा और मग़फ़िरत का दरवाज़ा
अपने गुनाहों से तौबा करो और अल्लाह से मग़फिरत और माफी की उम्मीद रखें ।
وَمَنْ يَعْمَلْ سُوءًا أَوْ يَظْلِمْ نَفْسَهُ ثُمَّ يَسْتَغْفِرِ اللَّهَ يَجِدِ اللَّهَ غَفُورًا رَحِيمًا.
النساء110.
और जो भी किसी के साथ बुराई करेगा या अपने नफ़्स पर ज़ुल्म करेगा उसके बाद इस्तग़फ़ार करेगा तो ख़ुदा को ग़फ़ूर और रहीम पाएगा।
इस आयत में अल्लाह ने इंसानों को यह संदेश दिया है कि वह अपने गुनाहों से तौबा करें और अल्लाह से मग़फिरत की उम्मीद रखें।
इसमें इंसानों को इस्तग़फार की तरफ रग़बत दिलाई गई है ताकि वह अल्लाह के क़रीब आएं। हक़ के रास्ते से भटकने वालों के लिए रहमत का दरवाजा खुला है। गुनाह करने और अपने नफ्स पर ज़ुल्म करने वालों के लिए हर वक्त इस्तग़फ़ार का वसीला मौजूद है। इस आयत में दो गुनाहों का जिक्र है । बुराई और ज़ुल्म । दोनों के बीच बहुत फर्क है । क़ुरआन की तफ़्सीर करने वालुकुछ लोगों का कहना है कि बुराई वह गुनाह है जो किसी और शख्स के साथ अंजाम दिया गया हो और ज़ुल्म अपने नफ्स पर भी हो सकता है । कुछ मुफस्सिरीन का कहना है कि बुराई गुनाहे कबीरा है और अपने नफ्स पर ज़ुल्म छोटा गुनाह, जबकि कुछ उलमा का कहना इसके एकदम उलट है, यानी ज़ुल्म बड़ा गुनाह है चाहे वह अपने नफ्स पर ही हो ।
आयत के अहम संदेश
1.इस्तग़फ़ार की अहमियत : गुनाह के बाद अल्लाह से तौबा और इस्तग़फ़ार इंसान के दिल को सुकून देता है और उसके गुनाहों की माफी का कारण भी बनता है।
- अल्लाह की रहमत और मग़फिरत में कोई कमी नहीं । इंसान चाहे जितना बड़ा गुनाह कर ले अल्लाह की तरफ वापसी के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं।
- इंसान ख़ताकार है: इंसान ग़लतियां करने वाला है, लेकिन अल्लाह ने तौबा का दरवाज़ा खुला रखा है ताकि वह अपनी गलतियों से सीख लेकर वापस अल्लाह की बारगाह में पलट सके।
मौलाना सैयद नईम अब्बास आबदी का निधन
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद नईम अब्बास आबदी के निधन पर सैयद रज़ी हैदर फंदीड़वी ने दु:ख व्यक्त करते हुए परिवार के प्रति संवेदना व्यक्ति की है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद नईम अब्बास आबदी के निधन पर सय्यद रज़ी हैदर फंदीड़वी ने दु:ख व्यक्त करते हुए परिवार के प्रति संवेदना व्यक्ति की है।
शोक संदेश इस प्रकार है:
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन।
बहुत दुख के साथ यह खबर प्राप्त हुई कि मौलाना सय्यद नईम अब्बास आबदी नोगांववी साहब इस संसार को अलविदा कह गए यह घटना ज्ञान और धर्म से जुड़े वर्गों के लिए एक अपूरणीय क्षति है। मरहूम एक प्रख्यात आलिम-ए-दीन, मिल्लत के निष्ठावान सेवक और धर्म के मुबल्लिग़ थे, जिनकी बौद्धिक और धार्मिक सेवाओं को हमेशा याद किया जाएगा।
मैं इस दुखद घड़ी में आपके पूरे परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं मैं बारगाहे रब्बूबियत में मरहूम की मग़फिरत और बुलंदी-ए-दराजात के लिए दुआ करता हूं और अल्लाह ताला से दुआ करते हैं की अल्लाह ताला मरहूम की मग़फिरत फरमाए घर वालों को सब्र आता करें मरहूम के दरजात को बुलंद करें।
वास्सलाम
सैयद रज़ी हैदर फंदीड़वी
सय्यद अली की तलवार और सय्यद हसन का खून निश्चित रूप से विजय प्राप्त करेगा
हज़रत मासूमे (स) की पवित्र दरगाह के उपदेशक ने कहा: प्रतिरोध के शहीद, सय्यद हसन नसरूल्लाह, विलायत फ़क़ीह के शहीद और इमाम खुमैनी (र) के मार्ग के शहीद थे। यदि इस्लामी दुनिया भर के विद्वान और मौलवी सय्यद हसन नसरल्लाह जैसे हो जाएं तो चीजें बदल जाएंगी।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद हाशिम अल हैदरी ने सय्यद हसन नसरूल्लाह और सय्यद हाशिम सफीउद्दीन की याद में हजरत मासूमे (स) की पवित्र दरगाह में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा: सय्यद हसन नसरूल्लाह एक बहादुर, वफादार, ईमानदार और ईश्वर के मार्ग में एक योद्धा थे, जो इमाम खुमैनी (र) और विलायत-ए-फकीह के स्कूल के छात्र थे।
उन्होंने कहा: आज हमें जिहाद-ए-तबीन के माध्यम से सय्यद हसन के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए और विश्वास रखना चाहिए कि सय्यद अली की तलवार और सय्यद हसन का खून निश्चित रूप से अमेरिका और इज़रायल की तलवारों पर विजय प्राप्त करेगा।
हुज्जतुल इस्लाम सय्यद हाशिम अल-हैदरी ने कहा: सय्यद हसन नसरूल्लाह वर्षों तक पूरे साहस, विश्वास, ईमानदारी और अंतर्दृष्टि के साथ इज़रायल के खिलाफ खड़े रहे और 32 वर्षों तक लेबनान में हिजबुल्लाह के महासचिव और मुसलमानों के वली ए फ़क़ीह के सैनिक बने रहे। शहीद सय्यद हसन के दिल में डर या निराशा के लिए कोई जगह नहीं थी; वह व्यवस्थित जिहाद और स्पष्टीकरण के जिहाद दोनों में साहस से भरे थे।
"अहलेबैत इराक" संगठन के महासचिव ने कहा: शहीद सय्यद हसन नसरूल्लाह का दिल आशा से भरा था। आज हमें भी आशा, साहस और बिना किसी भय या निराशा के साथ आगे बढ़ना होगा। उनका कार्य ईश्वर पर भरोसा रखना और क़ुरआन की इस आयत पर विश्वास करना था: "यदि तुम अल्लाह की सहायता करोगे, तो वह तुम्हारी सहायता करेगा
शहीद नसरूल्लाह का अंतिम संस्कार उत्पीड़न के विरुद्ध मुस्लिम एकता का प्रतीक
पूर्व संसद सदस्य ने कहा: शहीद सय्यद नसरूल्लाह का अंतिम संस्कार उत्पीड़न के खिलाफ मुसलमानों की एकता का प्रतीक था।
ईरान के इस्फ़हान शहर में शहीद सय्यद नसरूल्लाह के अंतिम संस्कार समारोह में भाषण के दौरान, हुज्जतुल इस्लाम अहमद सालिक काशानी ने कहा: अल्लाह ने दुश्मनों की अंतहीन साजिशों के सामने अपनी शक्ति दिखाई है। शहीद सय्यद नसरल्लाह का यह भव्य अंतिम संस्कार एक जनमत संग्रह और मुसलमानों की शक्ति का प्रकटीकरण था, जिसने दुश्मनों को लेबनान की ताकत और मुसलमानों की एकता का संदेश दिया।
उन्होंने इस आयोजन में 79 देशों के 500 से अधिक समूहों और 400 प्रमुख हस्तियों की भागीदारी को इस्लाम और क़ुरआन के लिए एक बड़ा सम्मान बताया और कहा: क़ुरआन की शिक्षाओं और धार्मिक हस्तियों के प्रति समर्थन एक व्यक्ति को सर्वोच्च आध्यात्मिक पुरस्कार की ओर ले जाता है।
ईरानी संसद के पूर्व सदस्य ने कहा: इस महान व्यक्ति और शहीद का अंतिम संस्कार मुसलमानों के उत्पीड़न के खिलाफ एकजुटता का प्रतीक था। प्रतिरोध के शहीद पूरे मुस्लिम उम्माह के लिए एक उदाहरण हैं, जिन्होंने इज़रायल को अपमानित किया है।
हुज्जतुल इस्लाम सालिक ने कहा: क्रांति के सर्वोच्च नेता का अनुसरण करना इस्लामी दुनिया में आशा और अंतर्दृष्टि का रहस्य है। मुस्लिम उम्माह के भीतर एकता और एकजुटता सभी समस्याओं का सबसे अच्छा समाधान हो सकती है और इस्लामी दुनिया के लिए मुक्ति का साधन बन सकती है।