हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने परमाणु सहमति को ईरानी जनता के धैर्य का परिणाम बताया है।
उन्होंने जुमे की नमाज़ में अपने ख़ुत़्बे में कहा कि इस्लामी क्रांति के शत्रुओं ने जब यह समझ लिया कि प्रतिबंधों और दबाव से इस्लामी गणतंत्र ईरान को चोट नहीं पहुंचाई जा सकती तो उसने विवश होकर वार्ता का मार्ग अपनाया। हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने कहा कि वर्चस्ववादी यह चाह रहे थे कि प्रतिबंध लगाकर ईरान की अर्थव्यवस्था को ख़राब कर दिया जाए जिसके कारण ईरानी जनता को सरकार के विरूद्ध उकसाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वे यह सोच रहे थे कि इस प्रकार वातावरण को दूषित करके शासन व्यवस्था को गिराया जा सकता है किंतु उन्हें पराजय का मुहं देखना पड़ा।
तेहरान के अस्थाई इमामे जुमा ने कहा कि अत्याचारपूर्व प्रतिबंध, न केवल यह कि ईरानी राष्ट्र को सरकार से विमुख नहीं कर सके बल्कि इससे ईरानी जनता में महाशक्तियों के प्रति घृणा में वृद्धि हुई। इससे यह पता चलता है कि ईरानी राष्ट्र, इस्लामी क्रांति की आकांक्षाओं की सुरक्षा के लिए अब भी तैयार है।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने कहा कि विश्व की शक्तियां यह सोच भी नहीं सकती थीं कि ईरानी युवा, यूरेनियम का 20 प्रतिशत संवर्धन करने में सक्षम होंगे और इसी प्रकार वे अन्य विकास के कार्य कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि वार्ता की मेज़ पर इन शक्तियों की उपस्थिति, ईरान की कमज़ोरी की वजह से नहीं थी बल्कि ईरान की दिन-प्रतिदिन बढ़ती शक्ति के भय से थी।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने 26 फ़रवरी को होने वाले संसदीय एवं वरिष्ठ नेता का चयन करने वाली परिषद के चुनावों की ओर संकेत करते हुए कहा कि ईरान में चुनाव, लोकतंत्र को सुदृढ़ करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि देश की जनता आगामी चुनावों में बढ-चढ़कर भााग लेगी।