
رضوی
इजरायल,अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ आखिरी सांस तक संघर्ष जारी रहेगा
यमन की उच्च राजनीतिक परिषद के सदस्य मोहम्मद अली हौसी ने सना पर अमेरिका के हमलों के बाद ऐलान किया कि अंसारुल्लाह की कार्रवाइयां जारी रहेंगी और उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हम इन हमलों को कोई महत्व नहीं देते।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,यमन की उच्च राजनीतिक परिषद के सदस्य मोहम्मद अली हौसी ने अलमयादीन के साथ एक साक्षात्कार में इस बात पर ज़ोर दिया कि यमन के लोग अपनी जवाबी कार्रवाइयों और प्रतिक्रियाओं को जारी रखेंगे।
उन्होंने कहा,हम आक्रमणकारी हवाई हमलों की निंदा करते हैं हमारा संघर्ष जारी रहेगा।यमन की उच्च राजनीतिक परिषद के सदस्य ने कहा,हमारी कार्रवाई जारी रहेगी और हम किसी भी कार्रवाई चाहे वह अमेरिका की ओर से हो या किसी अन्य की ओर से हम महत्व नहीं देते।
मंगलवार तड़के अमेरिकी-ब्रिटिश गठबंधन के आक्रमणकारी हमलों ने सना में कई स्थानों को बमबारी का निशाना बनाया। बताया जा रहा है कि इन हमलों में यमन के रक्षा मंत्रालय की इमारत भी प्रभावित हुई है।
अमेरिका और ब्रिटेन के यमन पर हमले का उद्देश्य ज़ायोनी शासन इज़राइल को समुद्री घेराबंदी से बचाना है।
मुसलमानों को उनकी धार्मिक संपत्ति से वंचित करने की साज़िशः मौलाना अरशद मदनी
जमीयत उलमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने वक्फ संशोधन विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि यह मुसलमानों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाला विधेयक है, जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नही किया जा सकता है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, जमीयत उलमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने आंध्र प्रदेश में एक रैली को संबोधित करते हुए वक्फ संशोधन विधेयक की सभी खामियां बताईं और कहा कि यह विधेयक मुसलमानों के वक्फ अधिकारों को छीनने की साजिश है और यह इस बात का सबूत है कि सरकार मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप करना चाहती है।
उन्होंने कहा कि यह बिल वक्फ की रक्षा के लिए लाया गया था लेकिन इसमें किए गए बदलावों से साबित होता है कि यह बिल मुसलमानों को उनकी धार्मिक संपत्ति से वंचित करने के लिए लाया जा रहा है।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा, इस बिल का होना न सिर्फ मुसलमानों का धार्मिक मुद्दा है, बल्कि हमारे संवैधानिक अधिकारों पर भी हमला है।
उन्होंने कहा कि संविधान की रक्षा से ही देश बचेगा और संविधान का उल्लंघन करने पर देश की अखंडता को खतरा होगा।
उन्होंने कहा कि फिलहाल केंद्र सरकार वक्फ संशोधन बिल ला रही है और समान नागरिक संहिता लागू करने की बात भी कर रही है।
ध्यान दें कि भारत की केंद्र सरकार का कहना है कि नए संशोधन बिल से वक्फ संपत्तियों की रक्षा करने में मदद मिलेगी।
वक्फ संपत्तियों का मुद्दा हाल के वर्षों में भाजपा और दक्षिणपंथी हिंदू नेताओं के लिए एक गर्म विषय रहा है।
मजलिस ए ख़ुबरेगान का क्षेत्रीय परिस्थितियों और सीरिया की घटनाओं पर बयान
मजलिस ए ख़ुबरेगान ने हालिया क्षेत्रीय घटनाक्रम और सीरिया में हो रहे घटनाओं के संदर्भ में एक बयान जारी किया है बयान में मौजूदा हालात का गहराई से विश्लेषण करते हुए उम्मत-ए-मुस्लिमाह को दुश्मनों की साज़िशों के प्रति सतर्क रहने की अपील की गई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,पश्चिमी एशिया के हालिया घटनाक्रम विशेषकर सीरिया की घटनाओं के संदर्भ में मजलिस ए ख़ुबरेगान-ए-रहबरी ने एक बयान जारी किया है इस बयान में सीरिया की स्थिति पर हज़रत आयतुल्लाह अली ख़ामनेई के हिकमत और रौशनी से भरे बयानों की सराहना की गई।
बयान का पाठ इस प्रकार है:
بسم الله الرحمن الرحیم
إِنَّ ٱلَّذِینَ قَالُواْ رَبُّنَا ٱللَّهُ ثُمَّ ٱسۡتَقَٰمُواْ تَتَنَزَّلُ عَلَیۡهِمُ ٱلۡمَلَـٰٓئِکَةُ أَلَّا تَخَافُواْ وَلَا تَحۡزَنُواْ وَأَبۡشِرُواْ بِٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِی کُنتُمۡ تُوعَدُونَ
जो लोग कहते हैं हमारा रब अल्लाह है और उस पर स्थिर रहते हैं उन पर फरिश्ते उतरते हैं और कहते हैं कि मत डरो मत उदास हो और तुम्हें उस जन्नत की शुभ सूचना हो जिसका तुमसे वादा किया गया था।
पश्चिम एशिया विशेष रूप से सीरिया में हालिया घटनाएं दुश्मन मीडिया की साजिशों और तकफ़ीरी आतंकवादियों की झूठी छवि पेश करने के कारण दुनिया की राय को प्रभावित करने की कोशिश कर रही हैं।
इसके बावजूद रहबर ए मुअज़्ज़म ने अपने व्यापक और बुद्धिमान बयानों के माध्यम से इस शैतानी प्रक्रिया के छिपे और खुले पहलुओं को स्पष्ट किया और प्रतिरोध मोर्चे के खिलाफ रचे गए षड्यंत्र को उजागर किया।
मजलिस ए ख़ुबरिगान ने सीरिया के मामलों पर रहबर-ए-मुअज़्ज़म के जागरूक और उम्मीदों से भरे दृष्टिकोण की सराहना की बयान में यह भी कहा गया कि रहबर ए मुअज़्ज़म ने सीरिया के युवाओं की क्रांति प्रतिरोध मोर्चे के विस्तार और क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य की ओर इशारा किया। इसके अलावा प्रतिरोध मोर्चे के शहीदों और महान नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
मजलिस ए ख़ुबरेगान ने ज़ोर दिया कि प्रतिरोध और डटे रहना ही इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों के खिलाफ जीत का एकमात्र रास्ता है। अमेरिका और ज़ायोनी शासन जैसे अत्याचारी ताकतों के साथ समझौता करने से कुछ हासिल नहीं होगा।
कहा गया कि इतिहास गवाह है कि चाहे कर्बला की घटना हज़रत इमाम हुसैन अ.स. और उनके साथियों की शहादत हो या ईरानी इस्लामी क्रांति के खिलाफ थोपे गए युद्ध, लेबनान के खिलाफ 33 दिनों का युद्ध या हाल ही में 7 अक्टूबर के बाद ग़ज़्ज़ा में 50,000 मासूम लोगों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की शहादत हर बार अत्याचारी शक्तियां नष्ट हुईं।
अंत में बयान ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बुराई पर विजय के लिए विश्वास को मजबूत करना कर्तव्यों का पालन करना सतर्कता के साथ मैदान में मौजूद रहना और जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।
गोलन घाटी पर जबरदस्ती कब्जा और जुल्म को लेकर इजरायल की निंदा
इराक,ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और कतर ने कब्जे वाले गोलान हाइट्स में बस्तियों का विस्तार करने की योजना को मंजूरी देने की इजरायल की निंदा की हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार , सऊदी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि यह फैसला सीरिया की सुरक्षा और स्थिरता बहाल करने की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने के प्रयासों का एक सिलसिला है।
मंत्रालय ने सीरिया की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की आवश्यकता पर बल दिया यूएई ने अपने विदेश मंत्रालय के एक बयान में चेतावनी दी कि इजरायली कार्रवाई से क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है।
ईरान ने कहा कि इसराइल गोलन घाटी पर कब्जा करके वहां के लोगों पर जुल्म कर रहा है इसके लिए सभी को आवाज उठाने की आवश्यकता है।
यूएई कब्जे वाले गोलान हाइट्स की कानूनी स्थिति को बदलने के उद्देश्य से सभी उपायों और प्रथाओं को स्पष्ट रूप से खारिज करता है। बयान में कहा गया है कि गोलान हाइट्स में इजरायली बस्तियों का विस्तार सीरिया की सुरक्षा स्थिरता और संप्रभुता के लिए सीधा खतरा है।
एक बयान में कतर के विदेश मंत्रालय ने इस फैसले को सीरियाई क्षेत्रों पर इजरायली आक्रामकता की श्रृंखला में एक नया प्रकरण और अंतरराष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन बताया हैं।
ग़ज़्ज़ा में नरसंहार रुकवाना दुनिया की ज़िम्मेदारी
मानवाधिकार संगठन के महासचिव एग्नेस कैलामार्ड ने कहा कि इजराइल का दावा है कि उसकी लड़ाई हमास के खिलाफ है, जो सच नहीं है, वह बिना किसी भेदभाव के सभी फिलिस्तीनियों को निशाना बना रहा है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की महासचिव एग्नेस कैलोमार्ड ने कहा है कि कब्जे वाले इजरायली अधिकारी एक साल से अधिक समय से अपने सहयोगियों और दुनिया के अधिकांश देशों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि आत्मरक्षा में गाजा पट्टी को नष्ट करने के उनके प्रयास उचित हैं। उन्होंने कहा कि यह विनाश, क्रूर और निरंतर सैन्य आक्रमण का युद्ध है। कैलोमार्ड ने रविवार को अमेरिकी पत्रिका न्यूजवीक में अपने लेख में कहा कि दावा है कि गाजा पर नरसंहार का युद्ध केवल हमास को खत्म करने के लिए है, न ही भौतिक विनाश के लिए। एक राष्ट्रीय और जातीय समूह के रूप में फ़िलिस्तीनी, आंशिक रूप से ही सही, एक वास्तविकता है। हकीकत तो यह है कि इजराइल बिना किसी भेदभाव के सभी फिलिस्तीनियों को निशाना बना रहा है. एमनेस्टी ने हाल ही में गाजा पट्टी में फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायली कब्जे वाले राज्य के चल रहे नरसंहार के निर्णायक सबूत प्रकाशित किए।
एमनेस्टी इंटरनेशनल के एक अधिकारी ने बताया कि एमनेस्टी की जांच से साबित होता है कि इजराइल ने नरसंहार किया है. ये जांच कड़ी मेहनत, शोध और कठोर कानूनी विश्लेषण पर आधारित हैं। हमारे शोध से पता चलता है कि इज़राइल ने फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार किया है और जारी रख रहा है। वह कहती हैं कि इजरायल ने नरसंहार कन्वेंशन के तहत गाजा में फिलिस्तीनियों के खिलाफ अमानवीय कृत्य किए, जिसमें प्रत्येक फिलिस्तीनी को निशाना बनाकर हत्याएं और व्यवस्थित, पूर्व-निर्धारित शारीरिक और मनोवैज्ञानिक यातनाएं शामिल हैं।
कैलामार्ड ने कहा कि कब्जे वाली सेनाओं ने गाजा को इतनी तेजी से नष्ट कर दिया और इस सदी में किसी अन्य युद्ध में इस पैमाने पर इतना विनाश नहीं हुआ। शहर तबाह कर दिए गए और महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे, कृषि भूमि और सांस्कृतिक और धार्मिक स्थल नष्ट कर दिए गए। उन्होंने कहा, "हजारों फिलिस्तीनी मारे गए। गाजा की आबादी अकाल और अनगिनत बीमारियों का शिकार थी।" संगठन की रिपोर्ट में पेश किए गए सबूतों से साफ पता चलता है कि इजरायली सैन्य अभियान का जानबूझकर किया गया उद्देश्य गाजा पट्टी में फिलिस्तीनियों को नष्ट करना है। शीर्ष इज़रायली अधिकारियों ने फ़िलिस्तीनियों को उनकी बुनियादी मानवीय ज़रूरतों से वंचित करने का काम किया। कब्ज़ा करने वाली सेना ने बार-बार मनमाने और भ्रमित करने वाले सामूहिक निकासी आदेश जारी किए, नागरिकों को छोटे और कम रहने योग्य क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर किया, महत्वपूर्ण जीवन-समर्थक बुनियादी ढांचे पर भी जानबूझकर हमले किए गए। उन्होंने कहा, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे नतीजे कितने असंतोषजनक हैं।" ऐसी क्रूरता के सामने निष्क्रियता अक्षम्य है क्योंकि हमने जो सबूत प्रकाशित किए हैं उनका मतलब है कि छिपाने के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए इज़राइल के सहयोगियों को यह दिखावा करना बंद करना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय अपराध नहीं हुए हैं। अब मानवता की रक्षा करने का समय आ गया है जो विश्व का कर्तव्य है।
कतर ने फिर सीरिया में दूतावास खोलने के लिए प्रतिनिधिमंडल भेजा
कतर के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माजिद अल अंसारी ने कहा कि सीरिया में कतर के दूतावास को फिर से खोलने की प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए कतरी राजनयिक प्रतिनिधिमंडल सीरिया की राजधानी दमिश्क पहुंच चुका है।
एक रिपोर्ट के अनुसार , प्रतिनिधिमंडल ने सीरिया की संक्रमणकालीन सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और सुरक्षा शांति, विकास और समृद्धि की खोज में सीरियाई लोगों का समर्थन करने के लिए कतर की प्रतिबद्धता की पुष्टि की हैं।
अलअंसारी ने यह भी कहा कि बैठक के प्रतिभागियों ने कतरी मानवीय सहायता के प्रवाह को बढ़ाने के तरीकों पर भी चर्चा की और इस महत्वपूर्ण चरण के दौरान सीरियाई आबादी की तत्काल जरूरतों का आकलन किया।
हयात तहरीर अलशाम के नेतृत्व वाले उग्रवादी गठबंधन द्वारा 8 दिसंबर को पूर्व राष्ट्रपति बशर अलअसद को अपदस्थ करने के कुछ दिनों बाद कतर ने बुधवार को दमिश्क में अपने दूतावास को फिर से खोलने की घोषणा की हैं।
कतर ने 2011 में दमिश्क में अपना दूतावास बंद कर दिया था सीरिया में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का प्रकोप जारी हैं।
कतर और ईरान ने सीरिया पर इजरायली हमलों को रोकने के लिए कार्रवाई कि आग्रह किया
ईरान और कतर ने रविवार को सीरिया के बुनियादी ढांचे पर इजरायल के हमलों और अरब राज्य पर उसके चल रहे कब्जे को समाप्त करने के लिए तत्काल प्रयास करने का आह्वान किया हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरानी विदेश मंत्री सईद अब्बास अराघची और कतर के विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान बिन जसीम अल थानी ने सीरिया में नवीनतम घटनाक्रमों पर चर्चा की सीरिया को स्थिर करने और सीरियाई लोगों की भागीदारी के साथ एक समावेशी राजनीतिक प्रणाली बनाने में मदद करने के लिए निरंतर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय परामर्श की आवश्यकता पर बल दिया।
बशर अलअसद की सरकार के पतन के बाद से इजरायल ने सीरिया में हवाई हमलों में काफी वृद्धि की है साथ ही महत्वपूर्ण सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना बनाकर जमीनी अभियान चलाए हैं।
इजरायली सेना ने इजरायल और सीरिया के बीच 1974 के युद्धविराम समझौते के तहत स्थापित विसैन्यीकृत बफर जोन को भी पार कर लिया है और सीमावर्ती क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया है।
इस बीच ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) ने सीरिया के बुनियादी ढांचे पर अमेरिकी और इजरायली हमलों की निंदा की है और उन्हें आक्रामकता और सीरिया की संप्रभुता के उल्लंघन की निरंतरता बताया है।
IRGC ने अपने आधिकारिक समाचार सिपाह न्यूज़ पर एक बयान में संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल पर सीरिया के महत्वपूर्ण केंद्रों को निशाना बनाने और देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए मौजूदा अस्थिरता का फायदा उठाने का आरोप लगाया हैं।
हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. एक बहादुर और पवित्र खानदान की खातून थी
हज़रत इमाम अली अ.स. की शरीके हयात हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. की शहादत को लगभग 15 साल का समय गुज़र चुका था, इमाम अली अ.स. ने अपने भाई अक़ील को जो ख़ानदान और नस्लों की अच्छी पहचान रखते थे अपने पास बुला कर उनसे फ़रमाया कि एक बहादुर ख़ानदान से एक ऐसी ख़ातून तलाश करें जिस से बहादुर बच्चे पैदा हों
हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. इतिहास की उन महान हस्तियों में से हैं जिनके चार बेटों ने कर्बला में इस्लाम पर अपनी जान क़ुर्बान की, उम्मुल बनीन यानी बेटों की मां, आपके चार बहादुर बेटे हज़रत अब्बास अ.स. जाफ़र, अब्दुल्लाह और उस्मान थे जो कर्बला में इमाम हुसैन अ.स. की मदद करते हुए कर्बला में शहीद हो गए।
जैसाकि आप जानते होंगे कि हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. का नाम फ़ातिमा कलाबिया था लेकिन आप उम्मुल बनीन के नाम से मशहूर थीं, पैग़म्बर स.अ. की लाडली बेटी, इमाम अली अ.स. की शरीके हयात हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. की शहादत को लगभग 15 साल का समय गुज़र चुका था,
इमाम अली अ.स. ने अपने भाई अक़ील को जो ख़ानदान और नस्लों की अच्छी पहचान रखते थे अपने पास बुला कर उनसे फ़रमाया कि एक बहादुर ख़ानदान से एक ऐसी ख़ातून तलाश करें जिस से बहादुर बच्चे पैदा हों, हज़रत अली अ.स. जानते थे कि सन् 61 हिजरी जैसे संवेदनशील और घुटन वाले दौर में इस्लाम को बाक़ी रखने और पैग़म्बर स.अ. की शरीयत को ज़िंदा करने के लिए बहुत ज़्यादा क़ुर्बानी देनी होगी ख़ास कर इमाम अली अ.स. इस बात को भी जानते थे कि कर्बला का माजरा पेश आने वाला है इसलिए ज़रूरत थी ऐसे मौक़े के लिए एक बहादुर और जांबाज़ बेटे की जो कर्बला में इमाम हुसैन अ.स. की मदद कर सके।
जनाब अक़ील ने हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. के बारे में बताया कि पूरे अरब में उनके बाप दादा से ज़्यादा बहादुर कोई और नहीं था, इमाम अली अ.स. ने इस मशविरे को क़ुबूल कर लिया और जनाब अक़ील को रिश्ता ले कर उम्मुल बनीन के वालिद के पास भेजा उनके वालिद इस मुबारक रिश्ते से बहुत ख़ुश हुए और तुरंत अपनी बेटी के पास गए ताकि इस रिश्ते के बारे में उनकी मर्ज़ी का पता कर सकें, हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. ने इस रिश्ते को अपने लिए सर बुलंदी और इफ़्तेख़ार समझते हुए क़ुबूल कर लिया और फिर इस तरह हज़रत उम्मुल बनीन स.अ. की शादी इमाम अली अ.स. के साथ हो गई।
हज़रत उम्मुल बनीन एक बहादुर, मज़बूत ईमान वाली, ईसार और फ़िदाकारी का बेहतरीन सबूत देने वाली ख़ातून थीं, आपकी औलादें भी बहुत बहादुर थीं लेकिन उनके बीच हज़रत अब्बास अ.स. को एक ख़ास मक़ाम और मर्तबा हासिल था।
हज़रत उम्मुल बनीन अ.स., बनी उमय्या के ज़ालिम और पापी हाकिमों के ज़ुल्म जिन्होंने इमाम हुसैन अ.स. और उनके वफ़ादार साथियों को शहीद किया था उनकी निंदा करते हुए सारे मदीने वालों के सामने बयान करती थीं ताकि बनी उमय्या का असली चेहरा लोगों के सामने आ सके, और इसी तरह मजलिस बरपा करती थीं ताकि कर्बला के शहीदों का ज़िक्र हमेशा ज़िंदा रहे, और उन मजलिसों में अहलेबैत अ.स. के घराने की ख़्वातीन शामिल हो कर आंसू बहाती थीं, आप अपनी तक़रीरों अपने मरसियों और अशआर द्वारा कर्बला की मज़लूमियत को सारी दुनिया के लोगों तक पहुंचाना चाहती थीं।
आपकी वफ़ादारी और आपकी नज़र में इमामत व विलायत का इतना सम्मान था कि आपने अपने शौहर यानी इमाम अली अ.स. की शहादत के बाद जवान होने के बावजूद अपनी ज़िंदगी के अंत तक इमामत व विलायत का सम्मान करते हुए दूसरी शादी नहीं की, और इमाम अली अ.स. की शहादत के बाद लगभग 20 साल से ज़्यादा समय तक ज़िंदगी गुज़ारी लेकिन शादी नहीं की, इसी तरह जब इमाम अली अ.स. की एक बीवी हज़रत अमामा के बारे में एक मशहूर अरबी मुग़ैरह बिन नौफ़िल से रिश्ते की बात हुई तो इस बारे में हज़रत उम्मुल बनीन अ.स. से सलाह मशविरा किया गया तो उन्होंने फ़रमाया, इमाम अली अ.स. के बाद मुनासिब नहीं है कि हम किसी और मर्द के घर जा कर उसके साथ शादी शुदा ज़िंदगी गुज़ारें....।
हज़रत उम्मुल बनीन अ.स. की इस बात ने केवल हज़रत अमामा ही को प्रभावित नहीं किया बल्कि लैलै, तमीमिया और असमा बिन्ते उमैस को भी प्रभावित किया, और इमाम अली अ.स. की इन चारों बीवियों ने पूरे जीवन इमाम अली अ.स. की शहादत के बाद शादी नहीं की।
हज़रत उम्मुल बनीन अ.स. की वफ़ात
हज़रत उम्मुल बनीन अ.स. की वफ़ात के बारे में कई रिवायत हैं, कुछ में सन् 70 हिजरी बयान किया गया है और कुछ दूसरी रिवायतों में 13 जमादिस-सानी सन् 64 हिजरी बताया गया है, दूसरी रिवायत ज़्यादा मशहूर है।
जब आपकी ज़िंदगी की आख़िरी रात चल रहीं थीं तो घर की ख़ादिमा ने उस पाकीज़ा ख़ातून से कहा कि मुझे किसी एक बेहतरीन जुमले की तालीम दीजिए, उम्मुल बनीन ने मुस्कुरा कर फ़रमाया, अस्सलामो अलैका या अबा अब्दिल्लाह अल-हुसैन।
इसके बाद फ़िज़्ज़ा ने देख कि हज़रत उम्मुल बनीन अ.स. का आख़िरी समय आ पहुंचा, जल्दी से जा सकर इमाम अली अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. की औलादों को बुला लाईं, और फिर कुछ ही देर में पूरे मदीने में अम्मा की आवाज़ गूंज उठी।
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. के बेटे और नवासे उम्मुल बनीन अ.स. को मां कह कर बुलाते थे, और आप उन्हें मना भी नहीं करती थीं, शायद अब उनमें यह कहने की हिम्मत नहीं रह गई थी कि मैं हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. की कनीज़ हूं।
आपकी वफ़ात के बाद आपको पैग़म्बर स.अ. की दो फुफियों हज़रत आतिका और हज़रत सफ़िया के पास, इमाम हसन अ.स. और हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद अ.स. की क़ब्रों के क़रीब में दफ़्न कर दिया गया।
हज़रत उम्मुल बनीन (स), अहले-बैत (अ) के लिए ज्ञान और प्रेम का एक व्यावहारिक उदाहरण
हुज्जतुल-इस्लाम वाल-मुस्लिमीन सय्यद हुसैन मोमिनी ने ज्ञान और अहले-बैत (अ) के लिए प्रेम को मानव खुशी का स्रोत बताया और कहा कि हज़रत उम्मुल बनीन (स) ने अपना सारे प्यार अल्लाह के रास्ते मे समर्पित कर दिया।
हज़रत मासूमा (स) की दरगाह के खतीब हुज्जतुल-इस्लाम वाल-मुस्लिमीन सय्यद हुसैन मोमिनी ने ज्ञान और अहले-बैत (अ) के लिए प्रेम को मानव खुशी का स्रोत बताया और कहा कि हज़रत उम्मुल बनीन (स) ने अपना सारे प्यार अल्लाह के रास्ते मे समर्पित कर दिया। ।
उन्होंने कल रात हज़रत मासूमा के हरम में कहा,पवित्र कुरान में ज्ञान और प्रेम के महत्व का वर्णन किया गया है, निर्दोषों की बातें, प्रार्थनाएं और तीर्थयात्रा जैसे तीर्थयात्रा के नाम जामिया कबीरा मे बयान हुए है।
उन्होंने कहा: यदि कोई व्यक्ति अपनी पूजा पद्धति में इन दो सिद्धांतों को शामिल करता है, तो वह इस दुनिया और परलोक दोनों में सफलता प्राप्त कर सकता है। ज्ञान और प्रेम किसी व्यक्ति को पहाड़ की तरह दृढ़, दृढ़ आस्तिक बना सकते हैं।
हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मोमिनी ने बताया कि ईश्वर ने मनुष्य को उसके सच्चे ज्ञान के लिए बनाया है और जो कोई भी इस ज्ञान को प्राप्त कर लेता है, वह सच्चा गुलाम बन जाता है। ऐसा बंदा अल्लाह से स्वतंत्र हो जाता है।
उन्होंने आगे कहा: ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करना और उनके निषेधों से बचना ज्ञान और प्रेम का परिणाम है और यही इस दुनिया और उसके बाद खुशी का स्रोत है।
उन्होंने हज़रत सय्यद अल-शाहदा (अ) का उल्लेख किया और कहा: कर्बला की घटना में सबसे गंभीर परीक्षणों के बावजूद, इमाम हुसैन (उन पर शांति) पूरी तरह से ईश्वर की आज्ञा के प्रति समर्पित थे।
उन्होंने अल्लाह के रसूल (स) के ज्ञान को आस्था का आधार बताया और कहा कि अल्लाह के दूत की सभी बातें ईश्वर की ओर से हैं, और चौदह मासूमों (उन पर शांति हो) के प्रति प्रेम है। ) दिव्य प्रेम का कारण है।
हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मोमिनीन ने हज़रत उम्मुल-बानीन का उल्लेख किया और कहा: इस महान महिला का नाम इतिहास में दर्ज है, जिन्होंने हज़रत फातिमा (स) के बच्चों की देखभाल की थी। एक परिवार की स्थापना की जो कर्बला की घटना के लिए जिम्मेदार था।
उन्होंने कहा: हज़रत उम्मुल-बानीन का प्यार और ज्ञान, उन पर शांति हो, अहले-बैत (अ) पूर्ण और सच्चा था, और उन्होंने अपना जीवन भगवान की खुशी के लिए समर्पित कर दिया।
हज़रत उम्मुल बनीन (स) कर्बला में क्यों नहीं थीं?
कर्बला में महिलाओं का उपस्थित होना कभी भी वाजिब नहीं था, और इमाम हुसैन (अ) ने अपने साथियों की मौजूदगी का निर्णय मसलहत और आवश्यकता के आधार पर लिया था। जो लोग कर्बला गई, वे शहीदों की पत्नियाँ थीं या वे व्यक्ति थे जिनकी वहाँ मौजूदगी क़याम के उद्देश्यों के लिए जरूरी थी।
केंद्रीय धार्मिक सवालों के उत्तर देने वाले केंद्र ने "हज़रत उम्मुल बनीन (स) की कर्बला में अनुपस्थिति के कारण" पर एक सवाल-जवाब प्रकाशित किया है, जिसे हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं:
प्रश्न:
सलाम और शुक्रिया, क्यों हज़रत उम्मुल बनीनी (स) कर्बला में नहीं थीं, जबकि हज़रत ज़ैनब (स) और हज़रत रबाब (स) अपने छह महीने के बच्चे के साथ कर्बला में थीं, जबकि हज़रत उम्मुल-बनीन (स) भी मदीना में थीं? क्यों उन्होंने इमाम हुसैन (अ) का साथ नहीं दिया?
उत्तर:
इमाम हुसैन (अ) के साथियों का कर्बला में होना कई कारणों पर निर्भर था:
- शारीरिक और मानसिक ताकत:कर्बला तक का सफर बहुत कठिन था, और इसके लिए शारीरिक और मानसिक ताकत की जरूरत थी। हज़रत उम्मुल-बनीन (स) की शारीरिक स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है, इसलिए हो सकता है कि उनकी शारीरिक हालत कर्बला जाने के लिए उपयुक्त न रही हो।
- हज़रत उम्मुल-बनीन (स) की इच्छा और संतुष्टि:हालांकि हज़रत उम्मुल-बनीन (स) मदीना में थीं, लेकिन संभव है कि इमाम हुसैन (अ) ने उन्हें कर्बला न लेजाने का निर्णय लिया हो। इमाम हुसैन (अ) अपने फैसले मसलहत और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लेते थे।
- इमाम हुसैन (अ) का निर्णय:इमाम हुसैन (अ) ने कर्बला में अपने साथियों का चयन करते समय समाज की जरूरतों और क़याम के उद्देश्यों को ध्यान में रखा। हो सकता है कि इमाम हुसैन (अ) ने हज़रत उम्मुल-बनीन (स) को कर्बला न भेजने का निर्णय लिया हो, या फिर किसी और वजह से उन्हें यह निर्णय लेना पड़ा हो।
इसके विपरीत, हज़रत ज़ैनब (स) का कर्बला में होना इमाम हुसैन (अ) के फैसले और क़याम के संदेश को फैलाने के लिए अहम था। हज़रत ज़ैनब (स) ने कर्बला के बाद उस घटनाक्रम का संदेश लोगों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अगर वह कर्बला में नहीं होतीं, तो इमाम हुसैन (अ) का क़याम अधूरा रह जाता।
इसके अलावा, हज़रत रबाब (स), जो इमाम हुसैन (अ) की पत्नी थीं, कर्बला में अपने छह महीने के बच्चे के साथ थीं। यह इमाम हुसैन (अ) की मसलहत और निकटता की वजह से था।
निष्कर्ष:
कर्बला में महिलाओं का उपस्थित होना कभी भी वाजिब नहीं था। इमाम हुसैन (अ) ने अपने साथियों का चयन मसलहत और जरूरतों के आधार पर किया। कर्बला जाने वाले लोग या तो शहीदों की पत्नियाँ थीं या वे व्यक्ति थे जिनकी वहाँ मौजूदगी क़याम के उद्देश्यों के लिए जरूरी थी।