رضوی

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यमनी सैन्य प्रवक्ता जनरल याहया सरिया ने कहा कि गाजा के समर्थन में इजरायल की नौसैनिक नाकाबंदी को सख्त बनाया जाएगा और इजरायल के साथ सहयोग करने वाली कंपनियों के जहाजों पर हमलों को तेज किया जाएगा।

यमनी सशस्त्र बलों ने एक बयान में घोषणा की है कि गाजा पर ज़ायोनी अत्याचारों के जवाब में इजरायली हितों के खिलाफ हमलों को और अधिक तीव्र किया जाएगा दुश्मन की नौसैनिक नाकाबंदी के चौथे चरण की शुरुआत कर दी गई है। 

मेजर जनरल याहया सरिया ने कहा कि गाज़ा में जारी नरसंहार, बमबारी, घेराबंदी, भूख-प्यास और वैश्विक खामोशी के खिलाफ यमन अपनी धार्मिक, नैतिक और मानवीय जिम्मेदारी महसूस करता है। गाजा के निर्दोष फिलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचार ऐसे नहीं हैं कि कोई सचेत मनुष्य उन पर चुप रह सके। 

याहया सरिया ने बयान में कहा कि हम अल्लाह पर भरोसा करते हुए गाजा के मजलूम लोगों के समर्थन में सैन्य कार्रवाइयों को तीव्र कर रहे हैं और नौसैनिक घेराबंदी के चौथे चरण की शुरुआत कर रहे हैं इस चरण में उन सभी जहाजों को निशाना बनाया जाएगा जो किसी भी ऐसी कंपनी के स्वामित्व में हों जो इजरायली बंदरगाहों के साथ सहयोग कर रही हो। 

प्रवक्ता ने सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि सभी कंपनियों को चाहिए कि वे तुरंत इजरायली बंदरगाहों के साथ अपना सहयोग बंद कर दें, अन्यथा उनके जहाजों को चाहे वे किसी भी दिशा में जा रहे हों, यमनी मिसाइलों और ड्रोन्स से निशाना बनाया जाएगा। 

बयान में आगे कहा गया कि यदि वैश्विक समुदाय यमनी सेना के हमलों की तीव्रता को रोकना चाहता है, तो उसे चाहिए कि वह इजरायल पर दबाव डाले ताकि वह अपने हमले बंद करे और गाजा की घेराबंदी खत्म करे। 

अंत में बयान में स्पष्ट किया गया कि यमनी सेना की ये सभी कार्रवाइयाँ फिलिस्तीनी लोगों के साथ नैतिक और मानवीय प्रतिबद्धता का प्रतीक हैं। जैसे ही गाजा पर हमले बंद होंगे और घेराबंदी खत्म की जाएगी, हमारी सैन्य कार्रवाइयाँ भी रुक जाएँगी।

 

 यमन की सशस्त्र सेना ने एक बयान जारी कर ज़ायोनी शासन को चेतावनी दी है कि ग़ाज़ा के समर्थन में हमले तेज़ होंगे और इस्राइल की नाकाबंदी और सख्त होगी।

यमन के सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर यहिया सरीअ ने अपने बयान में कहा कि अतिग्रहित फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों ख़ासकर ग़ाज़ा पट्टी में तेजी से बदलती स्थिति, जारी सुनियोजित नरसंहार और महीनों से चल रहे क्रूर नाकाबंदी के तहत हजारों फिलिस्तिनियों की शहादत के मद्देनजर - जबकि अरब, इस्लामिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सन्नाटा छाया हुआ है - यमन खुद को इन मजलूम फिलिस्तिनियों के प्रति धार्मिक, नैतिक और मानवीय जिम्मेदारी का पाबंद समझता है जो हर दिन, हर घंटे हवाई, ज़मीनी और समुद्री बमबारी के साथ-साथ कड़ी नाकाबंदी के कारण भूख-प्यास से जूझते हुए भी डटे हुए हैं।"

 अल-मसीरा के हवाले से पार्स टूडे की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिगेडियर सरीअ ने आगे कहा कि इस पृष्ठभूमि में, यमन सशस्त्र बलों ने दुश्मन के खिलाफ सैन्य कार्रवाइयों को तेज़ करने और समुद्री नाकाबंदी के चौथे चरण की शुरुआत करने का फैसला किया है।"

 यमन सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया: "यह नया चरण उन सभी जहाजों को निशाना बनाएगा जो जायोनी शासन की बंदरगाहों के साथ किसी भी तरह का सहयोग रखते हों, चाहे वे किसी भी देश या कंपनी से संबंध रखते हों और यह कार्रवाई हर उस जगह पर की जाएगी जहां यमन सशस्त्र बलों की पहुंच संभव हो।"

 ब्रिगेडियर यहिया सरी ने चेतावनी दी: "यमनी सशस्त्र बल सभी कंपनियों को चेतावनी देता है कि वे इस बयान के जारी होने के क्षण से ही ज़ायोनी शासन की बंदरगाहों के साथ अपना सहयोग तुरंत बंद कर दें। अन्यथा, उनके जहाजों को, उनके गंतव्य की परवाह किए बिना, किसी भी स्थान पर जहां हमारे मिसाइलों और ड्रोनों की पहुंच होगी, निशाना बनाया जाएगा।"

 ब्रिगेडियर यहिया सरी ने ज़ोर देकर कहा: "यमनी सशस्त्र बल सभी देशों से आग्रह करता है कि यदि वे हमले के इस बढ़े हुए चरण को रोकना चाहते हैं, तो वे जायोनी शासन पर आक्रमणों को समाप्त करने और ग़ाज़ा की नाकाबंदी हटाने के लिए दबाव डालें, क्योंकि इस दुनिया में कोई भी स्वतंत्र विचार वाला व्यक्ति जो कुछ हो रहा है उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता।"

 यमन के सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ने स्पष्ट किया: "यमन के सशस्त्र बलों द्वारा किए जा रहे कार्य फिलिस्तीनी लोगों के प्रति हमारी नैतिक और मानवीय प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। ग़ाज़ा पर आक्रमण रुकने और उसकी नाकाबंदी हटते ही हमारी सभी सैन्य कार्रवाइयां तुरंत बंद हो जाएंगी।

 

नजफ अशरफ /हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा हाफ़िज़ बशीर हुसैन नजफ़ी ने अंतरराष्ट्रीय संगठनों और मानवाधिकार संस्थाओं ने गाज़ा में हालात को लेकर चिंता जताते हुए तत्काल मानवीय सहायता पहुंचाने की अपील की है।

मज़लूम गाज़ा के लोगो के ख़िलाफ़ इज़राईली अपराधों की निरंतरता के बारे में, मरजए आलीक़द्र हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा हाफ़िज़ बशीर हुसैन अल नजफ़ी के केंद्रीय दफ़्तर नजफ़ अशरफ़ के बयान का अनुवाद।

بسم الله الرحمن الرحيم
हम अब भी बेहद तीव्र पीड़ा के साथ मज़लूम अहल-ए-ग़ाज़ा की त्रासदी की निरंतरता पर नज़र बनाए हुए हैं, जो क़ाबिज़, विस्तारवादी और बर्बर सैयोनी गिरोह की ओर से आधुनिक दौर में क़ौमों के ख़िलाफ़ अंजाम दिए गए सबसे घिनौने अपराधों के परिणामस्वरूप पैदा हुई है।

जिनसे निहत्थे आम नागरिक, यहाँ तक कि बच्चे, महिलाएं और बुज़ुर्ग तक महफ़ूज़ नहीं रह सके,अब यह ऐसे मुक़ाम तक पहुँच चुकी है जिसकी भीषण भयावहता का वर्णन करने में शब्द असमर्थ हैं, जो उनके ऊपर प्यास, भूख और ज़िंदगी की सबसे बुनियादी ज़रूरतों की कमी की सूरत में नज़र आ रहा है।

और अफ़सोस की बात यह है कि यह सब ऐसी ख़ामोशी और लापरवाही के बीच हो रहा है जिसका कोई औचित्य नहीं है उन देशों की तरफ़ से जिन्होंने दुनिया के कानों को अपने पशु-अधिकारों की रक्षा और देखभाल के दावों से भर रखा है।

मानवाधिकारों के वैश्विक रक्षक होने का दावा करते हुए दशकों बिताने के बावजूद, सिवाय कुछ शर्मनाक कोशिशों के जो कुछ देशों या कुछ व्यक्तियों ने अपनी क्षमता के अनुसार की हैं।और इस स्थिति से, हम विश्व के देशों, विश्व के सम्मानित व्यक्तियों और विश्व के स्वतंत्र लोगों से अपील करते हैं कि वे इस उत्पीड़ित क़ौम की राहत में तत्काल मदद करने के लिए मजबूत और गंभीर प्रयास करें।
और नियत का हिसाब रखने वाला अल्लाह ही है। ولا حولَ ولا قوَّةَ إلَّا باللهِ العليِّ ‏العظيمِ

 

ऑस्ट्रेलिया में 7 अक्टूबर 2023 को फ़िलिस्तीनी संगठन हमास के इज़राइल पर सीमा पार हमलों के बाद से इस्लामोफोबिया की घटनाओं में तेज़ी से वृद्धि हुई है।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2023 से नवंबर 2024 तक इस्लामोफोबिया के 600 से अधिक व्यक्तिगत और ऑनलाइन मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें लगभग 75% पीड़ित महिलाएं और लड़कियां हैं, जबकि अधिकतर हमलावर गैर-मुस्लिम पुरुष होते हैं। ऑनलाइन घटनाओं में 250% और व्यक्तिगत हमलों में 150% की वृद्धि हुई है। हमले खास तौर पर हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक राजनीतिक परिस्थितियां इस स्थिति को बढ़ावा देती हैं, लेकिन राजनीतिक बयानबाज़ी और स्थानीय कारण भी महत्वपूर्ण हैं। प्रभावित महिलाओं को रोज़मर्रा की जिंदगी में इस्लामोफोबिया का सामना करना पड़ रहा है, जो अब एक गंभीर समस्या बन चुकी है।

यह रिपोर्ट मोनाश और डीकिन विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा तैयार की गई है, जिन्होंने लाखों सोशल मीडिया पोस्ट और शिकायतों का विश्लेषण किया है। परिणामस्वरूप, इस्लामोफोबिया न केवल व्यक्तिगत हमलों के रूप में बल्कि ऑनलाइन नफरत और अपमान के रूप में भी बहुत बढ़ गया है, खासकर महिलाओं को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है।

संक्षेप में, ऑस्ट्रेलिया में फिलिस्तीन-इज़राइल संघर्ष के बाद इस्लामोफोबिया में भारी वृद्धि हुई है, विशेषकर मुस्लिम महिलाएं इसका शिकार हो रही हैं, और यह समस्या अब सरकार और समाज दोनों से समाधान की मांग करती है।

 

 

सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार 12-दिवसीय युद्ध में ईरान के मिसाइल हमलों का मुक़ाबला करने के लिए अमेरिकी सैनिकों ने 100 से अधिक THAAD मिसाइलें दागीं, जो इस उन्नत वायु रक्षा प्रणाली के स्टॉक का एक बड़ा हिस्सा था।

अमेरिका के पास वर्तमान समय में सात THAAD सिस्टम हैं जिनमें से दो इस युद्ध में इज़राइल का समर्थन करने के लिए तैनात किए गए थे।

 अमेरिकी रक्षा विभाग के 2026 के बजट अनुमानों के मुताबिक़ अमेरिका ने पिछले साल केवल 11 नई THAAD मिसाइलें खरीदी थीं और इस वित्तीय वर्ष में केवल 12 अतिरिक्त मिसाइलें प्राप्त करने की उम्मीद है।

 अमेरिकी मिसाइल रक्षा एजेंसी के 2025 के बजट रिपोर्ट के अनुसार ये मिसाइलें लॉकहीड मार्टिन द्वारा निर्मित हैं और प्रत्येक की कीमत लगभग 12.7 मिलियन डॉलर है।

 एक अमेरिकी सेना के एक अनाम सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी ने कहा: "इस युद्ध में इज़राइल में तैनात अमेरिकी सैनिकों द्वारा THAAD मिसाइलों के कुल स्टॉक का लगभग 25% उपयोग किया गया।" 

 

 एक मोरक्कन विश्लेषक ने चेतावनी दी है कि जायोनी शासन, जातीय और धार्मिक विभाजनों का फायदा उठाकर पश्चिम एशिया में 'सांप्रदायिकता की महामारी' को हवा दे रहा है।

मोरक्को के प्रमुख राजनीतिक चेहरों में से एक, हसन औरीद (Hassan Aourid) ने "इजराइल और पश्चिम एशिया में महामारी का पर्दाफ़ाश" शीर्षक वाले अपने लेख में जायोनी शासन की भूमिका का विश्लेषण किया है, जो क्षेत्र में जातीय और धार्मिक मतभेदों को बढ़ावा दे रहा है। सीरिया के सुवैदा क्षेत्र में दुरूज़ कम्युनिटी के समर्थन के बहाने इजराइल के हमले का जिक्र करते हुए, उनका मानना है कि सीरिया की क्षेत्रीय अखंडता के लिए एक गंभीर और अपरिहार्य ख़तरा पैदा हो गया है, जिससे देश कमज़ोर हो रहा है।

 औरीद ने चेतावनी दी कि यह ख़तरा सिर्फ़ सीरिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रक्रिया मोरक्को सहित क्षेत्र के अन्य देशों में भी फैल सकती है।

 उनका मानना है कि सुवैदा में हाल की घटनाएं और सीरिया में जायोनी शासन की सीधी दखलंदाजी कोई संयोग नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र को फिर से डिजाइन करने का एक प्रयोग है, - कुछ-कुछ नए साइक्स-पिकॉट जैसा, लेकिन पुरानी औपनिवेशिक विभाजनों से कहीं अधिक गहरा और जटिल, जिसका उद्देश्य पहले से विभाजित ग्रुप्स को और बांटना तथा टुकड़ों में बंटे देशों को और विखंडित करना है।

वह इन घटनाओं को सिर्फ़ सांप्रदायिक विस्फोट नहीं, बल्कि एक खतरनाक सिंड्रोम मानते हैं, जो क्षेत्र की राजनीतिक भूगोल को धार्मिक और जातीय सीमाओं के आधार पर फिर से लिखना चाहता है, एक ऐसी घटना जो अरब जगत के पश्चिमी हिस्से को भी अपनी चपेट में ले सकती है।

औरीद ने अपने लेख में ज़ोर देकर कहा कि पश्चिम एशिया में जातीय आधार पर राज्य बनाने का विचार जायोनी शासन की रणनीतिक सोच में लंबे समय से मौजूद है, और अब यह सिद्धांत से आगे बढ़कर आधिकारिक नीति बन चुका है।

इस राजनीतिक विशेषज्ञ का कहना है कि जायोनी शासन की इस रणनीति में नया पहलू यह है कि अब यह महज़ शोध या थिंक टैंक के विश्लेषणों तक सीमित नहीं है। सीरिया में सैन्य उकसावे, गोलान क्षेत्र पर क़ब्ज़ा, दमिश्क के आसपास बमबारी, लेबनान पर दबाव और जॉर्डन के ख़िलाफ़ लगातार धमकियों जैसे कदमों के ज़रिए इज़राइल सीधे तौर पर सांप्रदायिकता के प्रोजेक्ट में शामिल हो गया है।

औरीद लिखते हैं: सांप्रदायिकता की इस महामारी को बढ़ावा देने वाला कारण बाहरी ताकतों द्वारा मतभेदों का फायदा उठाना और सांप्रदायिक समूहों को हथियारबंद करना है। लेकिन यह महामारी उस समाज में पनपती है, जिसमें पहचान की सुरक्षा का अभाव होता है। 

 

 एक दस्तावेज़ी और विश्लेषणात्मक संग्रह में, हम विश्वसनीय ऐतिहासिक,और व्याख्यात्मक कथनों के ज़रिये मोहर्रम और इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन तक पहुँचेंगे ताकि असल स्रोतों से आशूरा के सच को उजागर किया जा सके।

इमाम सज्जाद (अ) ने शम (सीरिया) में यज़ीद के दरबार में एक महत्वपूर्ण खुतबा दिया था, जो क़र्बला के बाद क़ैदीयो के शम में होने के दिनों के अंत में पेश किया गया माना जाता है। इस खुतबे से पहले यज़ीद ने अपने आदेश से ख़तीब को मिम्बर से ऐसा भाषण देने को कहा था जिसमें उसने बनी उमय्या की तारीफ़ की और इमाम अली (अ) और उनके वंश के खिलाफ निन्दा की थी। इस पर इमाम सज्जाद ने तत्काल खड़े होकर उस ख़तीब की आलोचना की और अपने पैतृक वंश के फ़ज़ाइलों का वर्णन किया। उन्होंने छह विशेषताओं और सात फज़ीलतों का जिक्र करते हुए अपने और अपने वंश के धार्मिक और नैतिक गुणों का वर्णन किया और यज़ीद और उसके दरबारी योजना का पर्दाफाश किया।

इस खुतबे के बाद यज़ीद ने कर्बला के क़ैदीयो को शम में रखने को उचित नहीं समझा और उनके मदीना जाने का रास्ता तैयार किया। इस खुतबे ने सभा में भारी असर डाला, जिसमें लोगों के दिलों में जागरूकता, रोने और विरोध की आवाज़ें उठीं।

सबा में उपस्थित लोगों की प्रतिक्रिया

जब इमाम साज़िद (अ.स) ने ख़ुतबा दिया, तो मस्जिद में मौजूद लोग बहुत प्रभावित हुए। रियाद उल-कुद्स में लिखा है कि यज़ीद बिना नमाज़ पढ़े मस्जिद से बाहर चला गया, जिससे सभा में चलबढ़ हो गई और इमाम सज्जाद (अ) मिंबर से नीचे उतर आए। लोग इमाम के चारों ओर इकट्ठे हो गए और अपने व्यवहार के लिए सबने माफी मांगी।

कुछ शोधकर्ताओं के मुताबिक़, इमाम सज्जाद (अ) के ख़ुतबे के बाद विरोध शुरू हो गया; चिल्लाहट, रोना और सिसकियाँ सभा में फैल गईं और कई लोग खलीफ़ा ए मुस्लिमीन की इक़्तेदा किए बिना सभा छोड़ गए।

ख़ुतबे के बाद, वहाँ मौजूद एक यहूदी विद्वान ने यज़ीद पर गुस्सा जाहिर किया और कहा कि जिसने अपने पैग़म्बर की बेटी के बेटे को इस तरह शहीद किया, वह ज़ायम (खलीफ़ा) कैसे हो सकता है। उसने सभा में मौजूद लोगों को डाँटा कि "कसम से अगर हमारे पैग़म्बर मूसा बिन इमरान के यहाँ अगली पीढ़ी होती, तो हम उसे पूरी इज़्ज़त देते, शायद उसकी इबादत तक करते। आप लोग, जिनका पैगम्बर कल दुनिया से गया, आज उसके बेटे पर तलवार चलाते हैं? यह तुम्हारे लिए शर्मनाक है!"

स्रोतः

इरशाद शेख मुफ़ीद

नफ़्स अल महमूम मुहद्दिस क़ुमी

वीकी फ़िक़्ह

मनाक़िब इब्ने शहर आशोब

 

 

इमाम अली (अ) की नहजुल बलाग़ा की हिकमत संख्या 50, इंसानों के दिलों को जंगली और रेगिस्तानी जानवरों जैसा बताती है, और उन्हें सुधारने और उनके प्रति प्रेम और स्नेह पैदा करने को उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की कुंजी मानती है।

अमीरुल-मोमेनीन इमाम अली (अ) नहजुल बलाग़ा में "दिलों को अपनी ओर आकर्षित करने की विधि" की व्याख्या करते हुए कहते हैं:

हिकमत संख्या 50:

«قُلُوبُ الرِّجَالِ وَحْشِیَّةٌ، فَمَنْ تَأَلَّفَهَا أَقْبَلَتْ عَلَیْه क़ोलूबुर रेजाले वहशीयुन, फ़मन तअल्लफ़हा अक़लबत अलैहे»

“इंसानों के दिल जंगली और रेगिस्तानी जानवरों जैसे होते हैं, और जो कोई उन्हें विकसित करता है, वे उसकी ओर आकर्षित होते हैं।”

नहजुल बलाग़ा में इमाम अली (अ) और दिल जीतने की कला

इस ज्ञानपूर्ण वाक्य में, इमाम (अ) दोस्त बनाने और अपने प्रति दिल जीतने का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते हैं।

एक व्यक्ति अनजान लोगों की उपस्थिति में खुद को अलग-थलग महसूस करता है, लेकिन जब कोई उसके साथ प्यार से पेश आता है, तो वह उनसे परिचित हो जाता है।

नहजुल बलाग़ा के कुछ टीकाकारों के अनुसार, यह बात नए शहर या मोहल्ले में रहने आने वाले लोगों में स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती है। वे शुरू में तो अपने करीबी पड़ोसियों से भी परहेज़ करते हैं, लेकिन जब वे उनका अभिवादन करते हैं, उनसे मिलते हैं और उन्हें उपहार देते हैं, तो उनके बीच दोस्ती स्थापित हो जाती है।

यह विचार कि चूँकि मनुष्य स्वभाव से सामाजिक होते हैं, इसलिए वे हर अजनबी से तुरंत प्यार करने लगते हैं, गलत है। मानवता के निर्माण के लिए कुछ परिस्थितियाँ ज़रूरी होती हैं, जैसे दुश्मनी के लिए भी परिस्थितियाँ ज़रूरी होती हैं। इमाम (अ) ने इसी तथ्य की ओर इशारा किया है जिसका उल्लेख अन्य रिवायतों में भी मिलता है, जैसे कि प्रसिद्ध कहावत: "मनुष्य दया का दास है।"

एक अरब कवि ने कहा है:

जब तुम मुझसे दूर हो जाओगे, तो मैं भी तुमसे दूर हो जाऊँगा, लेकिन जब तुम प्रेम के द्वार से आओगे, तो मैं तुमसे मित्रता करूँगा।

कुछ टीकाकारों का कहना है कि यहाँ "पुरुष" शब्द का प्रयोग केवल बड़े और शक्तिशाली लोगों के लिए करना उचित नहीं है, क्योंकि इस वाक्यांश का स्पष्ट अर्थ सामान्य लोगों से है।

अल्लाह के रसूल (स) की एक रिवायत भी इसकी गवाही देती है: तीन बातें एक व्यक्ति के अपने मुसलमान भाई के प्रति प्रेम का वर्णन करती हैं। जब वह उससे मिलता है, तो वह उसे शुभ समाचार देता है, और जब वह उसके साथ बैठता है, तो वह सभा में उसके लिए जगह बनाता है, और उसे उसके प्रिय नाम से पुकारता है।

"तीन बातें हैं जो एक ईमान वाले भाई के प्रेम को शुद्ध करती हैं: उससे प्रसन्न मुख से मिलना, उसे सभा में स्थान देना, और उसे उसके प्रिय नाम से पुकारना।" (काफ़ी, खंड 2, पृष्ठ 643, अध्याय 3)

इस वाक्य को ज़मख़्शरी (रबी अल-अबरार) और तरतुशी (सिराज अल-मुलुक) ने भी उद्धृत किया है, और संभवतः उन्होंने इसे सैय्यद रज़ी के नहजुल-बलाग़ा से उद्धृत नहीं किया है। कुछ पुस्तकों में, इस वाक्य को एक उपदेश का हिस्सा बताया गया है जिसमें इमाम (अ.स.) ने धर्म और दुनिया के तौर-तरीकों की व्याख्या की थी। कहो।

स्रोत: पुस्तक "पयाम ए इमाम अमीरूल मोमेनीन (अ)" (आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी), नहजुल-बलाग़ा की व्याख्या।

 

इज़राईल मीडिया ने स्वीकार किया है कि गोलानी ब्रिगेड के एक सैनिक की मौत के बाद युद्ध की शुरुआत से अब तक इजरायली सेना के 896 कर्मी मारे जा चुके हैं।

इज़रायली मीडिया ने घोषणा की है कि गाज़ा में जारी युद्ध के दौरान जायोनी सेना के मृतकों की संख्या 896 हो गई है।

ताज़ा घटना में इजरायली गोलानी ब्रिगेड का एक सैनिक मारा गया जबकि कम से कम छह अन्य सैनिक घायल हुए। 

हिब्रू भाषा के न्यूज़ पोर्टल "हदशोत बज़मान" ने बताया कि गाज़ा में एक इजरायली बख्तरबंद वाहन के रास्ते में लगे बम के विस्फोट से एक जायोनी सैनिक मारा गया जबकि दो अन्य घायल हुए। 

इससे पहले भी जायोनी मीडिया ने गाजा में सेना के खिलाफ असामान्य और कठोर कार्रवाइयों को स्वीकार किया था, जो वास्तव में फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों के ऑपरेशनों की सफलता का स्पष्ट प्रमाण है। 

 

आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारिम शिराज़ी ने "खुमैनी उदाहरण" प्रशिक्षण शिविर के अवसर पर अपने संदेश में, पवित्र कुरान की रोशनी में शिक्षा के सिद्धांतों की ओर इशारा किया और इस्लामी क्रांति के नेता, हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनेई के बयानों को इमाम खुमैनी (र) के स्कूल की सर्वोत्तम व्याख्या बताया।

आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारिम शिराज़ी ने "खुमैनी उदाहरण" प्रशिक्षण शिविर के अवसर पर अपने संदेश में, पवित्र कुरान की रोशनी में शिक्षा के सिद्धांतों की ओर इशारा किया और इस्लामी क्रांति के नेता, हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनेई के बयानों को इमाम खुमैनी (र) के स्कूल की सर्वोत्तम व्याख्या बताया

संदेश का पूरा पाठ इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

सबसे पहले, हम हाल ही में थोपे गए युद्ध के शहीदों, सेनापतियों, बुद्धिजीवियों, सेनानियों और अपने उत्पीड़ित देशवासियों की स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और ईरान और इस्लामी क्रांति के शत्रुओं के विनाश और अपमान के लिए अल्लाह तआला से दुआ करते हैं।

पवित्र क़ुरआन के शिक्षाप्रद सिद्धांतों में से एक यह है कि यह विश्वासियों के लिए एक आदर्श और उदाहरण प्रस्तुत करता है ताकि वे अपनी बौद्धिक शैली और व्यावहारिक आचरण पर विचार करके सुख और मोक्ष के मार्ग पर चल सकें। यह आदर्श और उदाहरण केवल अम्बिया (अ) तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अल्लाह के औलिया और सच्चे सेवक भी शामिल हैं, जैसा कि पवित्र क़ुरआन कहता है:

"निश्चय ही इब्राहीम और उनके साथियों में तुम्हारे लिए एक उत्तम उदाहरण है।"

निःसंदेह, हमारे समय का एक प्रमुख और उज्ज्वल उदाहरण क्रांति के महान नेता, इमाम खुमैनी हैं, जो अपनी बौद्धिक नींव, वैचारिक प्रणाली और व्यावहारिक जीवन में हमारे लिए एक उज्ज्वल उदाहरण रहे हैं।

यह ज़रूरी है कि इमाम खुमैनी के न्यायशास्त्र संबंधी विचारों, उनकी सामाजिक समझ, कुरान और सुन्नत की उनकी समझ, उनकी ईमानदारी और उनके सामूहिक संघर्ष को स्पष्ट रूप से समझाया जाए, खासकर युवा मदरसा छात्रों को, ताकि उनका मार्ग न तो भुलाया जाए और न ही किसी विकृति या विचलन का शिकार हो।

इस्लामी क्रांति के नेता, हज़रत आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई, जो दिवंगत इमाम के एक विशिष्ट शिष्य थे, के कथनों को खुमैनी के मत की सर्वोत्तम व्याख्या माना जाता है।

यह प्रशिक्षण शिविर और इसके जैसे अन्य कार्यक्रम ऐसे बहुमूल्य अवसर हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है, इसलिए इनकी सराहना की जानी चाहिए।

अंत में, मैं इस प्रशिक्षण शिविर के सभी आयोजकों और प्रतिभागियों को धन्यवाद देना चाहता हूँ, उनकी सफलता के लिए दुआ करता हूँ, और अल्लाह तआला से मरहूम इमाम (र) के पद को ऊँचा करने की दुआ करता हूँ।

क़ुम - नासिर मकारिम शिराज़ी