رضوی

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दक्षिणी लेबनान के ज़ाहिया में रिहायशी ईमारत को निशाना बनाकर किये गए ज़ायोनी सेना के हमलों में शहीद होने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 45 हो गई है।

लेबनान के सस्वास्थ्य मंत्रालय के आपातकालीन संचालन केंद्र ने कहा है कि पिछले दो दिनों में बेरूत के दक्षिणी उपनगरों पर ज़ायोनी सेना के बर्बर हमले में पीड़ितों की संख्या 45 शहीदों तक पहुँच गई है।

इस केंद्र ने एक बयान जारी कर कहा, ''लगातार तीसरे दिन मलबा हटाने का काम जारी रखने के साथ-साथ देश की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के साथ समन्वय कर शहीदों के शवों की पहचान और डीएनए परीक्षण के लिए नमूने लिए जा रहे हैं।

 

लेबनान में इसराइली हमले में शहीद हुए लोगों के परिवार वालों से ईरान के राष्ट्रपति ने मुलाकात की।

ईरानी राष्ट्रपति मसूद पिज़ेशकियान ने फ़राबी नेत्र अस्पताल का दौरा करते हुए हाल ही में लेबनान में इज़राईली आतंकवादी हमले में घायल हुए कुछ लोगों से मुलाकात किया।

सूचना मंच वेबसाइट के अनुसार बताया कि हमारे देश के राष्ट्रपति मसूद पिज़शिकियन आज शुक्रवार को दोपहर में फ़राबी नेत्र अस्पताल में भाग लेने के दौरान हाल के आतंकवादी हमले के कुछ घायल लोगों के बीच थे।

लेबनान में ज़ायोनी शासन जिन्हें ईरान में स्थानांतरित किया गया था पेजेश्कियान को इन लोगों के इलाज की ताजा स्थिति की भी जानकारी दी गई।

इस बैठक के दौरान राष्ट्रपति के कार्यालय के प्रमुख लेबनान के राजदूत मोहसिन हाजी मिर्जाई और लोग भी राष्ट्रपति के साथ थे लेबनानी राजदूत ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के समर्थन की भी सराहना किया।

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के संजौली मस्जिद को लेकर खड़े किये गए विवाद की आग हिन्दुत्ववदी संगठन पूरे प्रदेश में फैलाने में जुट गए हैं। आए दिन मस्जिदों के विरोध में हिमाचल के अलग-अलग हिस्सों में हिन्दू संगठनों के लोग सड़क पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं। शुक्रवार को भी कई जिलों में हिन्दू संगठनों के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया।

धर्मशाला जिला हेडक्वार्टर से सटे कोतवाली बाजार को व्यापार मंडल के लोगों ने तीन घंटे तक बंद कर बीच रोड पर हनुमान चालीसा का पाठ किया और डीएम को ज्ञापन सौंपकर बाहरी लोगों की जांच करने की मांग की। वहीं,मंडी शहर में बन रही मस्जिद पर नगर निगम ने बड़ी कार्रवाई करते हुए मस्जिद की बिजली, पानी काटने के आदेश जारी किए हैं।

 

इस्लामी क्रांति के नेता ने पैग़म्बर मुहम्मद (स) और इमाम जाफ़र सादिक (अ) के धन्य जन्मदिन के अवसर पर, शनिवार, 21 सितंबर, 2024 की सुबह, कुछ उच्च- देश के रैंकिंग अधिकारियों, तेहरान में नियुक्त इस्लामी देशों के राजदूतों ने वहदत-ए-इस्लामी सम्मेलन के प्रतिभागियों और कुछ सार्वजनिक वर्गों से मुलाकात की।

इस्लामी क्रांति के नेता ने पवित्र पैगंबर मुहम्मद (स) और इमाम जाफ़र सादिक (अ) के धन्य जन्मदिन के अवसर पर, शनिवार 21 सितंबर 2024 की सुबह, कुछ उच्च पदस्थ अधिकारी देश के तेहरान में इस्लामी देशों के राजदूत नियुक्त, एकता ने इस्लामी सम्मेलन के प्रतिभागियों और कुछ सार्वजनिक वर्गों से मुलाकात की।

पवित्र पैगंबर मुहम्मद (स) और इमाम जाफर सादिक (अ) को उनके जन्मदिन पर बधाई देते हुए, उन्होंने ईद मिलाद-उल-नबी को मानव खुशी के अंतिम और पूर्ण नुस्खे की प्रस्तावना बताया और कहा कि पैगंबर ईश्वर के पूरे इतिहास में, मनुष्य की यात्रा में ऐसे कारवां नेता रहे हैं जो रास्ता भी दिखाते हैं और प्रकृति, सोचने की शक्ति और बुद्धि को जागृत करके, सभी मनुष्यों को रास्ता निर्धारित करने की शक्ति भी देते हैं।

आयतुल्लाह अली खामेनेई ने मक्का में अल्लाह के रसूल के 13 साल के संघर्ष, कठिनाइयों, भूख और बलिदान और फिर मुस्लिम उम्माह की नींव रखने की प्रस्तावना के रूप में प्रवास का वर्णन किया और कहा कि आज कई इस्लामी देश हैं और दुनिया में लगभग 2 अरब मुसलमान रहते हैं लेकिन उन पर "उम्मत" लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि उम्मा एक ऐसा समूह है जो पूर्ण सद्भाव और पूर्ण भावना के साथ एक लक्ष्य की ओर बढ़ता है लेकिन हम मुसलमान आज बिखरे हुए हैं।

इस्लामी क्रांति के नेता ने कहा कि मुसलमानों के विभाजन और बिखराव का परिणाम इस्लाम के दुश्मनों का प्रभुत्व और कुछ इस्लामी देशों के भीतर यह अहसास है कि उन्हें अमेरिका के समर्थन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यदि मुसलमान विभाजित और बिखरे हुए नहीं होते, तो वे एक-दूसरे के संसाधनों और समर्थन का उपयोग करके एक एकजुट इकाई बन सकते थे, जो सभी प्रमुख शक्तियों से अधिक मजबूत होती और फिर उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के समर्थन की आवश्यकता नहीं होती। .

क्रांति के नेता ने मुस्लिम उम्मा के गठन के लिए प्रभावी तत्वों के बारे में कहा कि इस्लामी सरकारें इस संबंध में प्रभावी हो सकती हैं, लेकिन उनकी भावना मजबूत नहीं है और यह इस्लामी दुनिया की विशेषताओं, यानी राजनेताओं, विद्वानों के कारण है। सत्ता में यह भावना पैदा करना बुद्धिजीवियों, प्रोफेसरों, धनाढ्य वर्गों, बुद्धिजीवियों, कवियों, लेखकों और राजनीतिक एवं सामाजिक विश्लेषकों की जिम्मेदारी है।

उन्होंने कहा कि एकता और मुस्लिम उम्माह के गठन के कुछ कट्टर दुश्मन हैं, और मुस्लिम उम्माह के भीतर पाई जाने वाली कुछ कमजोरियाँ, विशेष रूप से धार्मिक और धार्मिक मतभेदों को भड़काने वाली, मुस्लिम उम्माह के गठन को रोकने के लिए सबसे महत्वपूर्ण शत्रुतापूर्ण रणनीति में से एक हैं। वहां एक है।

आयतुल्लाह खामेनेई ने इस संबंध में कहा कि इमाम खुमैनी, ईश्वर की दया और आशीर्वाद उन पर हो, उन्होंने इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले शिया और सुन्नी की एकता पर जोर दिया था, क्योंकि इस्लामी दुनिया को एकता से ताकत मिलती है।

उन्होंने इस्लामी दुनिया को ईरान के एकता के संदेश के संबंध में एक महत्वपूर्ण बिंदु की ओर इशारा करते हुए कहा कि अगर हम चाहते हैं कि दुनिया के लिए एकता का हमारा संदेश प्रामाणिक हो, तो हमें व्यावहारिक रूप से अपने भीतर एकता पैदा करनी होगी और वास्तविक लक्ष्यों की ओर बढ़ना होगा राय या विचार के मतभेद का असर देश की एकता और एकजुटता पर नहीं पड़ना चाहिए।

इस्लामी क्रांति के नेता ने गाजा, पश्चिमी जॉर्डन, लेबनान और सीरिया में ज़ायोनीवादियों के खुले बेशर्म अपराधों की ओर इशारा किया और कहा कि उनके अपराधों का निशाना मुजाहिदीन नहीं बल्कि आम लोग हैं और जब उन्होंने फ़िलिस्तीन में मुजाहिदीन को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया। जब भी संभव हुआ, उन्होंने अपना अज्ञानी और दुर्भावनापूर्ण गुस्सा नवजात शिशुओं, छोटे बच्चों और अस्पताल के मरीजों पर निकाला।

उन्होंने कहा कि इस संकटपूर्ण स्थिति का कारण इस्लामी समाज की अपनी आंतरिक शक्ति का उपयोग करने में असमर्थता है। उन्होंने एक बार फिर सभी इस्लामी देशों को ज़ायोनी सरकार के साथ अपने आर्थिक संबंधों को पूरी तरह से ख़त्म करने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि इस्लामी देशों को भी ज़ायोनी सरकार के साथ अपने राजनीतिक संबंधों को पूरी तरह से कमज़ोर करना चाहिए और इसका राजनीतिक विरोध करना चाहिए और मीडिया को अपने हमले तेज़ करने चाहिए और खुले तौर पर दिखाएं कि वे फ़िलिस्तीनी लोगों के साथ खड़े हैं।

इस बैठक की शुरुआत में, राज्य के राष्ट्रपति श्री डॉ. मसूद अल-बदज़िकियन ने मुसलमानों के बीच एकता और भाईचारा पैदा करने के लिए पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के जीवन की ओर इशारा किया। और ज़ायोनी सरकार की आक्रामकता और अपराधों को रोकने का तरीका, मुसलमानों के भाईचारे और एकता की घोषणा की और कहा कि यदि मुसलमान एकजुट होते, तो ज़ायोनी शासन को महिलाओं और बच्चों के वर्तमान अपराधों और नरसंहार को अंजाम देने की हिम्मत नहीं होती।

 

 

 

 

 

संयुक्त राष्ट्र महिला ने गाजा में किए गए सर्वेक्षणों और शोध के आधार पर अपनी हालिया रिपोर्ट में खुलासा किया है कि फिलिस्तीनी क्षेत्र में 155,000 गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रसव पूर्व और प्रसव के बाद जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है। फ़िलिस्तीनी क्षेत्र में विभिन्न बीमारियों से प्रभावित महिलाओं और लड़कियों की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक है।

ग़ज़्ज़ा में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर यूएन वूमेन ने अपनी जेंडर अलर्ट रिपोर्ट में कहा है कि "गाजा में लगभग 155,000 गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को प्रसव पूर्व और प्रसव के बाद की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।" चिकित्सकीय दवाओं की कमी के कारण महिलाओं को गर्भावस्था, प्रसव और प्रसवोत्तर देखभाल के दौरान कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जिन गर्भवती महिलाओं से बातचीत की गई, उनमें से 92 प्रतिशत महिलाओं को मूत्र पथ में संक्रमण, 76 प्रतिशत को एनीमिया और 44 प्रतिशत को उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ा। 16% महिलाएँ रक्तस्राव से पीड़ित हैं जबकि 12% महिलाएँ मृत प्रसव से पीड़ित हैं।

यूएन वूमेन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि कैंसर से प्रभावित 5,000 से ज्यादा महिलाओं को तत्काल इलाज की जरूरत है लेकिन सभी सेवाएं निलंबित कर दी गई हैं। ग़ज़्ज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 70% दवाएं और 83% चिकित्सा आपूर्ति समाप्त हो गई है, जिसके कारण फिलिस्तीनी क्षेत्र के अस्पतालों और चिकित्सा केंद्रों को हृदय ऑपरेशन, विभिन्न हृदय रोगों के उपचार सहित अपनी चिकित्सा सेवाएं निलंबित करनी पड़ी हैं उल्लेखनीय हैं। ओसीएचए द्वारा जारी रिपोर्टों के अनुसार, गाजा में एकमात्र कैंसर उपचार केंद्र अब कार्यात्मक नहीं है और रेडियोथेरेपी और प्रणालीगत कीमोथेरेपी की कमी है। साथ ही, महिलाएं और लड़कियां विभिन्न संक्रमणों से प्रभावित होती हैं।

यूएन वूमेन के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 25% महिलाएं त्वचा संक्रमण से प्रभावित हैं, जो पुरुषों की तुलना में दोगुनी है। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोगों और हेपेटाइटिस ए से प्रभावित महिलाओं की संख्या दो-तिहाई है। मधुमेह और रक्तचाप से प्रभावित महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक है, जबकि नागरिकों के लिए चिकित्सा सेवाओं तक पहुंच असंभव हो गई है। इजरायली आक्रमण के कारण 7 अक्टूबर 2023 से 18 सितंबर 2024 तक 42 हजार 272 से ज्यादा फिलिस्तीनियों की जान जा चुकी है जबकि 95 हजार 551 घायल हैं।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने कहा: आज ईरान की रक्षा और प्रतिरोधक शक्ति, इस स्तर पर पहुंच गई है कि किसी भी शैतान को ईरान पर हमले के बारे में सोचने की भी हिम्मत नहीं है।

पवित्र प्रतिरक्षा सप्ताह के अवसर पर तेहरान में देश के सशस्त्र बलों की परेड के दौरान ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने इस बात पर जोर दिया कि ईरान की जनता ने इराक़ी तानाशाह सद्दाम द्वारा थोपे गये आठ साल के युद्ध के दौरान दुश्मनों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

उनका कहना था कि यह साज़िश सैन्य बलों और ईरान के सभी लोगों की एकता की वजह से ही नाकाम हुई जो साम्राज्यवादी देशों द्वारा ईरान और इस्लामी क्रांति को नष्ट करने के लिए अंजाम दी गयी थी और जनता ने दुश्मनों को निराश कर दिया और कायरतापूर्ण हमलों को बेअसर कर दिया।

 राष्ट्रपति पिज़िश्कियान ने कहा: पवित्र प्रतिरक्षा सप्ताह उन महान और अज्ञात शहीदों के बलिदान की याद दिलाता है जिन्होंने इस्लामी क्रांति की रक्षा के लिए इस ज़मीन में जगह अपने पाक ख़ून का बलिदान दिया।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने एकता सप्ताह का ज़िक्र करते हुए कहा: आज, हम पूरी दुनिया के सामने पूरी ताक़त से यह घोषणा कर सकते हैं कि हम अपने देश की रक्षा करने में सक्षम हैं और साथ ही मुस्लिम देशों के साथ एकता और सामंजस्य और इन प्रियजनों के साथ, अपने क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिर बनाए रखने में भी सक्षम हैं। राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने कहा कि आइए शांति, सम्मान और गौरव को दुनिया के सामने पेश करें और एकता और एकजुटता के साथ रक्तपिपासु, हड़पने वाले और नरसंहार करने वाले ज़ायोनी शासन को उसकी औक़ात दिखाएं जो न तो महिलाओं और बच्चों पर दया करता है, न ही बूढ़ों और युवाओं पर।

 राष्ट्रपति ने कहा कि यदि इस्लामी उम्मा एकजुट हो जाए तो ज़ायोनी शासन इस तरह के अपराध नहीं कर पाएगा। इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने देश में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए इस्लामी गणतंत्र ईरान के सशस्त्र बलों के प्रयासों की सराहना की और ज़ोर दिया: आज ईरान का सम्मान और अधिकार, सशस्त्र बलों के बलिदानों की देन है।

 

 

इमाम सादिक़ और रसूले इस्लाम सअ की विलादत के मौके पर कुछ उलमा और छात्रों के सरों पर अमामा रखते हुए प्रसिद्ध धर्मगुरु और मरजए तक़लीद हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमुली ने कहा कि मदरसे और यूनिवर्सिटी समाज को भटकने से बचाते हैं वह समाज को नई ज़िन्दगी देते हैं और इमाम मासूम और अंबिया की राह पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

उन्होंने कहा कि इंसान अमर होना चाहता है और अमृत की तलाश में है और यह गलत नहीं अच्छी बात है लेकिन उसे पता होना चाहिए कि यह अमृत न बारिश की तरह बरसता है न किसी झरने की शक्ल में है बल्कि क़ुरआन के मुताबिक़ अल्लाह और उसके रसूल की आवाज़ पर लब्बैक कहो ताकि हमेशा ज़िंदा रहो और अमर हो जाओ।

उन्होंने कहा कि हमारे अइम्मा ए अतहार मासूम थे उनके मानने वालों को भी गुनाह से दूर रहने की कोशिश करना चाहिए।

 

 

 

सैयद सदरुद्दीन कबांची ने नमाजे जुमआ के ख़ुत्बे में इज़राइल की हार और लेबनान में नरसंहार की निंदा करते हुए कहा कि इज़राइल मौत के कगार पर है और अपने अवश्यंभावी अंत से बचने के लिए संघर्ष कर रहा है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, नजफ अशरफ़ के इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलमीन सैयद सदरुद्दीन कबांची ने अपने जुमा के ख़ुत्बे में लेबनान में इजरायली आक्रमण की निंदा करते हुए कहा कि इजरायल द्वारा बेरूत और अन्य स्थानों पर संचार उपकरणों में किए गए धमाकों के परिणामस्वरूप कम से कम 20 लोगों की शहादत और 400 के घायल होने पर हम लेबनान की जनता के साथ पूरी एकजुटता व्यक्त करते हैं।

यह नरसंहार युद्ध के सभी सिद्धांतों का उल्लंघन है और इस पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी दुखद है।

उन्होंने आगे कहा कि इज़राइल ग़ज़ा की जंग में हार के बाद अपने अवश्यंभावी अंत से बचने की कोशिश कर रहा है लेकिन यह हकीकत है कि वह अपनी मौत के करीब पहुंच चुका है।

सैयद सदरुद्दीन कबांची ने कहा कि वैश्विक स्तर पर जिसमें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बयान और संयुक्त राष्ट्र महासभा की घोषणाएँ शामिल हैं इजरायल के पतन का संकेत दे रहे हैं और यह बात वैश्विक आक्रोश से भी स्पष्ट होती है।

अपने दूसरे ख़ुत्बे में उन्होंने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम की विलादत का ज़िक्र करते हुए उनके पाँच प्रमुख गुणों का उल्लेख किया जिन्हें पैगंबर स.अ.व. ने अपनी ज़िन्दगी में अपनाने की हिदायत दी।

  1. ज़मीन पर बैठकर खाना
  2. बिना काठी के गधे की सवारी करना
  3. अपने हाथ से दूध निकालना
  4. अपनी जूतियाँ खुद मरम्मत करना
  5. बच्चों को सलाम करना ताकि ये अमल सुन्नत बन जाएँ।

उन्होंने हज़रत अबूज़र ग़िफ़ारी को पैगंबर स.अ.व. द्वारा दी गई सात नसीहतों का भी ज़िक्र किया जिनमें ज़रूरतमंदों से मुहब्बत, हकीकतपसंदी, हक़गोई, रिश्तेदारों से संबंध बनाए रखने की अहमियत और ज्यादा से ज्यादा लाहौल वला क़ूवत इल्ला बिल्लाह का बिरद शामिल है।

आखिर में सैयद कबांची ने हज़रत इमाम जाफर सादिक़ अ.स. की विलादत का ज़िक्र करते हुए इमाम की एक रिवायत पेश की जिसमें आपने अपने अनुयायियों को ईमानदारी, सच बोलने और अच्छे आचरण की सलाह दी और फ़रमाया कि ऐसे लोगों को देखकर लोग कहेंगे कि यह जाफ़री शिया है और इससे इमाम को ख़ुशी होगी।

नाम व लक़ब (उपाधि) हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का नाम जाफ़र व आपका मुख्य लक़ब सादिक़ है। माता पिता हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत उम्मे फ़रवा पुत्री क़ासिम पुत्र मुहम्मद पुत्र अबुबकर हैं।

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय

नाम व लक़ब (उपाधि)

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का नाम जाफ़र व आपका मुख्य लक़ब सादिक़ है।

माता पिता

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत उम्मे फ़रवा पुत्री क़ासिम पुत्र मुहम्मद पुत्र अबुबकर हैं।

जन्म तिथि व जन्म स्थान

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 83 हिजरी के रबी उल अव्वल मास की 17 वी तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।

 

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का शिक्षा अभियान

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस्लामी समाज मे शिक्षा केप्रचार व प्रसार हेतू एक महान अभियान शुरू किया। शिक्षण कार्य के लिए उन्होने पवित्र स्थान मस्जिदे नबवी को चुना तथा वहा पर बैठकर शिक्षा का प्रसार व प्रचार आरम्भ किया। ज्ञान के प्यासे मनुष्य दूर व समीप से आकर उनकी कक्षा मे सम्मिलित होते तथा प्रश्नो उत्तर के रूप मे अपने ज्ञान मे वृद्धि करते थे।

आप के इस अभियान का मुख्य कारण बनी उमैय्या व बनी अब्बास के शासन काल मे इस्लामी समाज मे आये परिवर्तन थे। इनके शासन काल मे यूनानी ,फ़ारसी व हिन्दी भाषा की पुस्तकों का अरबी भाषा मे अनुवाद मे हुआ। जिसके परिणाम स्वरूप मुसलमानों के आस्था सम्बन्धि विचारो मे विमुख्ता फैल गयी। तथा ग़ुल्लात ,ज़िन्दीक़ान ,जाएलाने हदीस ,अहले राए व मुतासव्वेफ़ा जैसे अनेक संमूह उत्पन्न हुए। इस स्थिति मे हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के लिए अवश्यक था कि इस्लामी समाज मे फैली इस विमुख्ता को दूर किया जाये। अतः हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने ज्ञान के आधार पर समस्त विचार धाराओं को निराधार सिद्ध किया। व समाज मे शिक्षा का प्रसार व प्रचार करके समाज को धार्मिक विघटन से बचा लिया। तथा समाज को आस्था सम्बन्धि विचारों धार्मिक निर्देशों व नवीनतम ज्ञान से व्यापक रूप से परिचित कराया। तथा अपने ज्ञान के आधार पर एक विशाल जन समूह को शिक्षित करके समाज के हवाले किया। ताकि वह समाज को शिक्षा के क्षेत्र मे और उन्नत बना सकें।

आपके मुख्य शिष्यों मे मालिक पुत्र अनस ,अबु हनीफ़ा ,मुहम्द पुत्र हसने शेबानी ,सुफ़याने सूरी ,इबने अयीनेह ,याहिया पुत्र सईद ,अय्यूब सजिस्तानी ,शेबा पुत्र हज्जाज ,अब्दुल मलिक जरीह अत्यादि थे।

जाहिज़ नामक विद्वान हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिक्षा प्रसार के सम्बन्ध मे लिखते है कि-

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने ज्ञान रूपी नदियां पृथ्वी पर बहाई व मानवता को ज्ञान रूपी ऐसा समुन्द्र प्रदान किया जो इससे पहले मानवता को प्राप्त न था। समस्त संसार ने अपके ज्ञान से अपनी प्यास बुझाई।

मुनाज़ेरा ए इमाम सादिक़ (अ)

इब्ने अबी लैला से मंक़ूल है कि मुफ़्ती ए वक़्त अबू हनीफ़ा और मैं बज़्मे इल्म व हिकमते सादिक़े आले मुहम्मद हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम में वारिद हुए।

इमाम (अ) ने अबू हनीफ़ा से सवाल किया कि तुम कौन हो ?

अबू हनीफ़ा मैं: अबू हनीफ़ा

इमाम (अ): वही मुफ़्ती ए अहले इराक़

अबू हनीफ़ा: जी हाँ

इमाम (अ): लोगों को किस चीज़ से फ़तवा देते हो ?

अबू हनीफ़ा: क़ुरआन से

इमाम (अ): क्या पूरे क़ुरआन ,नासिख़ और मंसूख़ से लेकर मोहकम व मुतशाबेह तक का इल्म है तुम्हारे पास ?

अबू हनीफ़ा: जी हाँ

इमाम (अ): क़ुरआने मजीद में सूर ए सबा की 18 वी आयत में कहा गया है कि उन में बग़ैर किसी ख़ौफ़ के रफ़्त व आमद करो।

इस आयत में ख़ुदा वंदे आलम की मुराद कौन सी चीज़ है ?

अबू हनीफ़ा: इस आयत में मक्का और मदीना मुराद है।

इमाम (अ): (इमाम (अ) ने यह जवाब सुन कर अहले मजलिस को मुख़ातब कर के कहा) क्या ऐसा हुआ है कि मक्के और मदीने के दरमियान में तुम ने सैर की हो और अपने जान और माल का कोई ख़ौफ़ न रहा हो ?

अहले मजलिस: बा ख़ुदा ऐसा तो नही है।

इमाम (अ): अफ़सोस ऐ अबू हनीफ़ा ,ख़ुदा हक़ के सिवा कुछ नही कहता ज़रा यह बताओ कि ख़ुदा वंदे आलम सूर ए आले इमरान की 97 वी आयत में किस जगह का ज़िक्र कर रहा है:

व मन दख़लहू काना आमेनन

अबू हनीफ़ा: ख़ुदा इस आयत में बैतल्लाहिल हराम का ज़िक्र कर रहा है।

इमाम (अ) ने अहले मजलिस की तरफ़ रुख़ कर के कहा क्या अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर और सईद बिन जुबैर बैतुल्लाह में क़त्ल होने से बच गये ?

अहले मजलिस: आप सही फ़रमाते हैं।

इमाम (अ): अफ़सोस है तुझ पर ऐ अबू हनीफ़ा ,ख़ुदा वंदे आलम हक़ के सिवा कुछ नही कहता।

अबू हनीफ़ा: मैं क़ुरआन का नही क़यास का आलिम हूँ।

इमाम (अ): अपने क़यास के ज़रिये से यह बता कि अल्लाह के नज़दीक क़त्ल बड़ा गुनाह है या ज़ेना ?

अबू हनीफ़ा: क़त्ल

इमाम (अ): फ़िर क्यों ख़ुदा ने क़त्ल में दो गवाहों की शर्त रखी लेकिन ज़ेना में चार गवाहो की शर्त रखी।

इमाम (अ): अच्छा नमाज़ अफ़ज़ल है या रोज़ा ?

अबू हनीफ़ा: नमाज़

इमाम (अ): यानी तुम्हारे क़यास के मुताबिक़ हायज़ा पर वह नमाज़ें जो उस ने अय्यामे हैज़ में नही पढ़ी हैं वाजिब हैं न कि रोज़ा ,जब कि ख़ुदा वंदे आलम ने रोज़े की क़ज़ा उस पर वाजिब की है न कि नमाज़ की।

इमाम (अ): ऐ अबू हनीफ़ा पेशाब ज़्यादा नजिस है या मनी ?

अबू हनीफ़ा: पेशाब

इमाम (अ): तुम्हारे क़यास के मुताबिक़ पेशाब पर ग़ुस्ल वाजिब है न कि मनी पर ,जब कि ख़ुदा वंदे आलम ने मनी पर ग़ुस्ल को वाजिब किया है न कि पेशाब पर।

अबू हनीफ़ा: मैं साहिबे राय हूँ।

इमाम (अ): अच्छा तो यह बताओ कि तुम्हारी नज़र इस के बारे में क्या है ,आक़ा व ग़ुलाम दोनो एक ही दिन शादी करते हैं और उसी शब में अपनी अपनी बीवी से हम बिस्तर होते हैं ,उस के बाद दोनो सफ़र पर चले जाते हैं और अपनी बीवियों को घर पर छोड़ देते हैं एक मुद्दत के बाद दोनो के यहाँ एक एक बेटा पैदा होता है एक दिन दोनो सोती हैं ,घर की छत गिर जाती है और दोनो औरतें मर जाती हैं ,तुम्हारी राय के मुताबिक़ दोनो लड़कों में से कौन सा ग़ुलाम है ,कौन आक़ा ,कौन वारिस है ,कौन मूरिस ?

 

अबू हनीफ़ा: मैं सिर्फ़ हुदूद के मसायल में बाहर हूँ।

इमाम (अ): उस इंसान पर कैसे हद जारी करोगे जो अंधा है और उस ने एक ऐसे इंसान की आंख फोड़ी है जिस की आंख सही थी और वह इंसान जिस के हाथ में नही हैं और वह इंसान जिस के हाथ नही है उस ने एक दूसरे इंसान का हाथ काट दिया है।

अबू हनीफ़ा: मैं सिर्फ़ बेसते अंबिया के बारे में जानता हूँ।

इमाम (अ): अच्छा ज़रा देखें यह बताओ कि ख़ुदा ने मूसा और हारून को ख़िताब कर के कहा कि फ़िरऔन के पास जाओ शायद वह तुम्हारी बात क़बूल कर ले या डर जाये। (सूर ए ताहा आयत 44)

यह लअल्ला (शायद) तुम्हारी नज़र में शक के मअना में है ?

इमाम (अ): हाँ

इमाम (अ): ख़ुदा को शक था जो कहा शायद

अबू हनीफ़ा: मुझे नही मालूम

इमाम (अ): तुम्हारा गुमान है कि तुम किताबे ख़ुदा के ज़रिये फ़तवा देते हो जब कि तुम उस के अहल नही हो ,तुम्हारा गुमान है कि तुम साहिबे क़यास हो जब कि सब से पहले इबलीस ने क़यास किया था और दीने इस्लाम क़यास की बुनियाद पर नही बना ,तुम्हारा गुमान है कि तुम साहिबे राय हो जब कि दीने इस्लाम में रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहो अलैहि वा आलिहि वसल्लम के अलावा किसी की राय दुरुस्त नही है इस लिये कि ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है:

फ़हकुम बैनहुम बिमा अन्ज़ल्लाह

तू समझता है कि हुदूद में माहिर है जिस पर क़ुरआन नाज़िल हुआ है तुझ से ज़्यादा हुदुद में इल्म रखता होगा। तू समझता है कि बेसते अंबिया का आलिम है ख़ुदा ख़ातमे अंबिया अंबिया के बारे में ज़्यादा वाक़िफ़ थे और मेरे बारे में तूने ख़ुद ही कहा फ़रजंदे रसूल ने और कोई सवाल नही किया ,अब मैं तुझ से कुछ सवाल पूछूँगा अगर साहिबे क़यास है तो क़यास कर।

अबू हनीफ़ा: यहाँ के बाद अब कभी क़यास नही करूँगा।

इमाम (अ): रियासत की मुहब्बत कभी तुम को इस काम को तर्क नही करने देगी जिस तरह तुम से पहले वालों को हुब्बे रियासत ने नही छोड़ा।

(ऐहतेजाजे तबरसी जिल्द 2 पेज 270 से 272)

इमाम सादिक़ और मर्दे शामी

हश्शाम बिन सालिम कहते है कि एक दिन मै कुछ लोगो के साथ इमाम सादिक़ (अ.स) की खिदमत बैठा था कि एक शामी मर्द ने आपके हुज़ुर मे आने की इजाज़त माँगी और इमाम से इजाज़त लेने के बाद आपके सामने हाज़िर हुआ।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः बैठ जाओ और उस से पूछाः क्या चाहते हो ?

शाम के रहने वाले उस मर्द ने इमाम (अ.स) से कहाः सुना है कि आप लोगो के सवालो के जवाब देते है लेहाज़ा मैं भी आप से बहस और मुनाज़ेरा करना चाहता हुँ।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः किस मौज़ू (विषय) मे ?

शामी ने कहाः क़ुरआन पढ़ने के तरीक़े के बारे मे।

इमाम (अ.स) ने अपने सहाबी और शार्गिद जमरान की तरफ मुँह करके फरमायाः जमरान इस शख्स का जवाब दो।

शामी ने कहाः मै चाहता हुँ कि आप से बहस करूँ।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः अगर जमरान को हरा दिया तो समझो मुझे हरा दिया।

शामी ने न चाहते हुऐ भी जनाबे जमरान से मुनाज़ेरा किया अब शामी जो भी सवाल पूछता गया और जनाबे जमरान ने दलीलो के साथ जवाब दिये और आखिर मे उसने हार मान ली।

इमाम (अ.स) ने फरमायाः तूने जमरान के इल्म को कैसा पाया ?

शामी ने जवाब दियाः बहुत जबरदस्त ,जो कुछ भी मैने इससे पूछा इसने बहुत अच्छा जवाब दिया।

फिर शामी ने कहा कि मैं चाहता हुँ कि लुग़त (शब्दार्थ) और अरबी अदब (व्याकरण) के बारे मे बहस करुँ।

इमाम (अ.स) ने अपने सहाबी और शार्गिद अबान बिन तग़लब की तरफ मुँह करके फरमायाः अबान इसका जवाब दो।

जनाबे अबान ने भी जनाबे जमरान की तरह उस शख्स के हर सवाल का बेहतरीन जवाब दिया और उस मर्दे शामी को हरा दिया।

शामी ने कहाः मैं अहकामे इस्लामी के बारे मे आप से मुनाज़ेरा करन चाहता हुँ।

इमाम (अ.स) ने अपने शार्गिद जनाबे ज़ुरारा से कहा कि इससे मुनाज़ेरा करो और ज़ुरारा ने भी शामी के दाँत खट्टे कर दिये और उसे मुनाज़ेरे मे मात दी।

शामी ने फिर इमाम (अ.स) से कहा कि मैं इल्मे कलाम (अक़ीदे) के बारे मे आपसे बहस करना चाहता हुँ।

इमाम (अ.स) ने मोमीने ताक़ को हुक्म दिया कि उस शामी से मुनाज़ेरा करे।

कुछ ही देर गुज़री थी कि मोमीने ताक़ ने उसे शिकस्त दे दी।

इसी तरह उस शामी शख्स ने इमाम (अ.स) से अलग अलग विषयो पर मुनाज़ेरे की माँग की और इमाम (अ.स) ने अपने शार्गिदो को उससे मुनाज़ेरे के लिऐ हुक्म दिया और वो मर्दे शामी इमाम (अ.स) के तमाम शार्गिदो से हारता चला गया।

और इस खूबसूरत लम्हे पर इमाम (अ.स) के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ती चली गई।

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम विद्वानो की दृष्टि मे

अबुहनीफ़ा की दृष्टि मे

सुन्नी समुदाय के प्रसिद्ध विद्वान अबु हनीफ़ा कहते हैं कि मैं ने हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से बड़ा कोई विद्वान नही देखा। वह यह भी कहते हैं कि अगर मैं हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्लाम से दो साल तक ज्ञान प्राप्त न करता तो हलाक हो जाता। अर्थात उन के बिना कुछ भी न जान पाता।

इमाम मालिक की दृष्टि मे

सुन्नी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध विद्वान इमाम मालिक कहते हैं कि मैं जब भी हज़रत इमाम सादिक़ के पास जाता था उनको इन तीन स्थितियों मे से किसी एक मे देखता था। या वह नमाज़ पढ़ते होते थे ,या रोज़े से होते थे ,या फिर कुऑन पढ़ रहे होते थे। वह कभी भी वज़ू के बिना हदीस का वर्णन नही करते थे।

इब्ने हजरे हीतमी की दृष्टि मे

इब्ने हजरे हीतमी कहते हैं कि हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से ज्ञान के इतने स्रोत फूटे कि आम जनता भी उनके ज्ञान के गुण गान करने लगी। तथा उनके ज्ञान का प्रकाश सब जगह फैल गया। फ़िक्ह व हदीस के बड़े बड़े विद्वानों ने उनसे हदीसें नक्ल की हैं।

अबु बहर जाहिज़ की दृष्टि मे

अबु जाहिज़ कहते हैं कि हज़रत इमाम सादिक़ वह महान् व्यक्ति हैं जिनके ज्ञान ने समस्त संसार को प्रकाशित किया। कहा जाता है कि अबू हनीफ़ा व सुफ़याने सूरी उनके शिष्यों मे से थे। हज़रत इमाम सादिक़ का इन दो विद्वानो का गुरू होना यह सिद्ध करता है कि वह स्वंय एक महानतम विद्वान थे।

इब्ने ख़लकान की दृष्टि मे

प्रसिद्ध इतिहासकार इब्ने ख़लकान ने लिखा है कि हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम शियों के इमामिया सम्प्रदाय के बारह इमामो मे से एक हैं। व हज़रत पैगम्बर(स.) के वँश के एक महान व्यक्ति हैं। उनकी सत्यता के कारण उनको सादिक़ कहा जाता है। (सादिक़ अर्थात सत्यवादी) उनकी श्रेष्ठता व महानता किसी परिचय की मोहताज नही है। अबूमूसा जाबिर पुत्र हय्यान तरतूसी उनका ही शिष्य था।

शेख मुफ़ीद की दृष्टि मे

शेख मुफ़ीद कहते हैं कि हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने ज्ञान को इतना अधिक फैलाया कि वह जनता मे प्रसिद्ध हो गये। व उनके ज्ञान का प्रकाश सभी स्थानों पर पहुँचा।

हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के कथन

१. हर बुज़ुर्गी और शरफ़ की अस्ल तवाज़ो है।

२. जिन कामों के लिये बाद में माज़ेरत करना पड़े उनसे परहेज़ (बचो) करो।

३. अपने दिलों (मन का बहु) को क़ुराने मजीद की तिलावत और अस्तग़फ़ार (प्रायश्चित) से नूरानी रखो।

४. अगर कोई तुम पर एहसान करे तो तुम उसके एहसान को चुकाओ और अगर यह न कर सकते हो तो उसके लिये दुआ करो।

५. जिस तरह तुम यह चाहते हो की लोग तुमसे नेकी करें तुम भी दूसरों से नेकी करो।

६. सफ़र (यात्रा) से पहले हमसफ़र (जिसके साथ सफ़र कर रहा है) को और घर लेने से पहले हमसाया (पड़ोसी) को ख़ूब परख लो।

७. किसी फ़क़ीर को ख़ाली वापिस न करो कुछ न कुछ ज़रूर दे दो ।

८. अव्वल वक़्त नमाज़ अदा (पढ़ो) करो अपने दीन के सुतून (खम्भो) को मज़बूत करो।

९. लोगों को ख़ुश करने के लिये ऐसा काम न करो जो ख़ुदावन्दे आलम को नापसन्द हो।

१०. दोस्तों (मित्रों) को हज़र (मौजूदगी) में एक दूसरे से मिलते रहना चाहिये और सफ़र में ख़ुतूत (ख़त का बहु वचन) के ज़रिये राबता (सम्बन्ध) रखना चाहिये।

११. शराबियों से दोस्ती मत करो।

१२. अच्छे काम इन्सान को बूरे वक़्त में बचाते है।

१३. (अगर) आज तुम अपने किसी भाई की मदद करोगे तो कल हज़ारों लोग तुम्हारी मदद करेगें।

१४. मौत की याद बुरी ख़्वाहिशों (इच्छाओं) को दिल से (मन से) ज़ाएल (दूर) करती है।

१५. माँ बाप की फ़रमांबरदारी ख़ुदावन्दे आलम की इताअत (आज्ञा का पालन) है।

१६. हसद ,कीना और ख़ुद पसन्दी (स्वार्थ) दीन के लिये आफ़त हैं।

१७. सिल्हे रहम आमाल को पाकीज़ा (पवित्र) करता है।

१८. ख़ुदावन्दे आलम उस शख़्स पर रहमत करे जो इल्म (ज्ञान) को ज़िन्दा रखे।

१९. ग़ुस्सा हर बुराई का पेशख़ेमा है।

२०. जिसकी ज़बान सच बोलती है उसका अमल भी पाक होता है।

२१. अपने वालदैन (माता पिता) से नेकी करो ताकि तुम्हारी औलाद (बच्चे) तुम से नेकी करें।

२२. ख़ामोंशी से बेहतर कोई चीज़ नहीं है।

२३. कुफ़्र की बुनियाद तीन चीज़ हैं 1.लालच ,2.तकब्बुर (घमण्ड) ,3.हसद।

२४. नेक बातें तहरीर (लिखावट) में लाओ और उसे अपने भाईयों में तक़सीम करो।

२५. मुझे वह शख़्स नापसन्द है जो अपने काम में सुस्ती करे।

२६. हरीस (लालची) मत बनो क्योंकि उससे इन्सान की आबरू चली जाती है और वह दाग़दार हो जाता है।

२७. बदतरीन लग़्ज़िश यह है के इन्सान अपने उयूब (ऐब का बहु वचन) की तरफ़ मुतावज्जेह (ध्यान) न दे।

२८. शराबियों से कोई राबता (सम्बन्ध) न रखो।

२९. जिस घर या जिस नशिस्त में मोहम्मद (स 0)का नाम मौजूद हो वह बा बरकत व मुबारक है।

३०. लिखे हुए कागज़ात को नज़्रे आतिश (जलाओ नहीं) न करो अगर जलाना है तो पहले नविश्त ए जात (लिखे हुए को) को महो (मिटा) कर दो।

३१. कभी गुनाह को कम न समझो मगर गुनाह से इज्तेनाब (बचो) करो।

३२. जिसने लालच को अपना पेशा बनाया उसने ख़ुद को रूसवा (ज़लील) कर लिया।

३३. जल्दबाज़ी हमेशा पशेमानी (पश्चाताप) का बायस (कारण) होती है।

३४. मौत की याद बेतुकी ख़्वाहिशों (व्यर्थ इच्छाओं) को दिल से निकाल देती है।

३५. निजात व सलामती हमेशा (सदैव) ग़ौर व फ़िक्र (सोचविचार) से हासिल (प्राप्त) होती है।

३६. ख़ुदावन्दे आलम की ख़ुशनूदी (ख़ुशी) माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है।

३७. जो शख़्स कम अक़्लों और बेवकूफ़ों से दोस्ती करता है वह अपनी आबरू ख़ुद कम करता है।

३८. शराब से बचो के यह तमाम बुराईयों की कुंजी है।

३९. मेदा तमाम बुराईयों का ख़ज़ाना है और परहेज़ हर इलाज का पेशख़ेमा है।

४०. जिस तरह ज़्यादा पानी से सब्ज़ा पज़मुर्दा हो जाता है उसी तरह ज़्यादा खाने से दिल मुर्दा हो जाता है।

शहादत (स्वर्गवास)

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 148 हिजरी क़मरी मे शव्वाल मास की 25 वी तिथि को हुई। अब्बासी शासक मँनसूर दवानक़ी के आदेशानुसार आपको विषपान कराया गया जो आपकी शहादत का कारण बना।

समाधि

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मदीने के जन्नःतुल बक़ी नामक कब्रिस्तान मे है। यह शहर वर्तमान समय मे सऊदी अरब मे है।

 

 

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा (स.अ.व.स) जिनको अल्लाह ने सभी मुसलमानों के लिए उस्वतुल हस्ना (आइडियल) बनाकर भेजा है और हम सब की ज़िम्मेदारी है कि पैग़म्बरे अकरम (स) की सीरत और उनके जीवन को आइडियल बनाते हुए उस पर अमल करें ताकि हमारा जीवन कामयाब हो सकें।

हम इस लेख में पैग़म्बर (स) के साधारण जीवन की कुछ मिसालों को शिया और सुन्नी किताबों से पेश कर रहे हैं ताकि सभी मुसलमान पैग़म्बर (स) की रोज़ाना की ज़िंदगी को देखते हुए अपनी ज़िंदगी को उसी तरह बना सकें।

सबसे पहले तो इस्लाम में साधारण जीवन किसे कहते हैं इसको समझना होगा। इस्लाम की निगाह में साधारण जीवन और सादा ज़िंदगी का मतलब है दुनिया की चमक धमक से मोहित होकर उसके पीछे न भागे और दुनिया, दौलत और दुनिया के पदों को हासिल करने के लिए ही सारी कोशिश न हो, ऐसा नहीं है कि इस्लाम ने पैसा कमाने या अच्छा जीवन बिताने पर रोक लगाई है, बल्कि आप ख़ूब कमाइये अच्छा जीवन बिताइये लेकिन साथ साथ अल्लाह के हुक्म पर भी अमल कीजिए और उसके ग़रीब बंदों का भी ख़याल कीजिए।

  आप (स) का खाना पीना

  हज़रत उमर का बयान है कि एक दिन मैं पैग़म्बरे इस्लाम (स) से मिलने गया देखा आप एक बोरी पर लेटे आराम कर रहे हैं और आप का खाना भी जौ की रोटी ही हुआ करती थी, मैं आपको बोरी पर लेटे हुए देखकर रोने लगा, पैग़म्बर (स) ने पूछा: ऐ उमर! क्यों रो रहे हो? मैंने कहा: या रसूल अल्लाह! (स) मैं कैसे न रोऊं, आप अल्लाह के ख़ास बंदे होकर बोरी पर लेटते हैं और जौ की रोटी खाते हैं जबकि ख़ुसरू और क़ैसर (दोनों ईरानी बादशाह थे) अनेक तरह की नेमतें और खाने खाते, नर्म बिस्तर पर सोते। पैग़म्बर (स) ने मुझ से कहा कि ऐ उमर! क्या तुम राज़ी नहीं हो कि वह लोग दुनिया के मालिक रहें और आख़ेरत पर हमारा अधिकार रहे, मैं उनके जवाब से सहमति जताते हुए चुप हो गया। (सुननुल कुबरा, बैहक़ी, जिल्द 7, पेज 46, सहीह इब्ने हब्बान, जिल्द 9, पेज 497)

  पैग़म्बर (स) के खाने के बारे में बहुत सारी हदीसें बयान हुई हैं, जैसे यह कि आपने पूरे जीवन में कभी भी तीन रात लगातार भर पेट खाना नहीं खाया। (अल-एहतजाज तबरसी, जिल्द 1, पेज 335, सुननुल कुबरा, जिल्द 2, पेज 150)

  कभी कभी तो तीन महीने गुज़र जाते थे आपके घर खाना पकाने के लिए चूल्हा तक नहीं जलता था क्योंकि अधिकतर आपका खाना खजूर और पानी हुआ करता था और कभी कभी आपके पड़ोसी आपके लिए भेड़ का दूध भेज देते थे वही आपका खाना होता था। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 307, सुननुल कुबरा, जिल्द 7, पेज 47)

  कुछ रिवायतों में इस तरह भी नक़्ल हुआ है कि आप लगातार दो दिन जौ की रोटी भी नहीं खाते थे। (मुसनदे अहमद इब्ने हंबल, जिल्द 6, पेज 97, अल-बिदाया वल-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 6, पेज 58)

  अनस इब्ने मालिक से रिवायत नक़्ल हुई है कि एक बार हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) आपके लिए रोटी लेकर आईं, आपने पूछा बेटी क्या लाई हो? हज़रत ज़हरा (स.अ) ने फ़रमाया: बाबा रोटी बनाई थी दिल नहीं माना आपके लिए भी ले आई, आपने फ़रमाया बेटी तीन दिन बाद आज रोटी खाऊंगा। (तबक़ातुल कुबरा, इब्ने असाकिर, जिल्द 4, पेज 122)

  यह रिवायत भी अनस से नक़्ल हुई है कि मेहमान के अलावा कभी भी आपके खाने में रोटी और गोश्त एक साथ नहीं देखा गया। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 404, सहीह इब्ने हब्बान, जिल्द 14, पेज 274)

  अबू अमामा से नक़्ल है कि कभी भी पैग़म्बर (स) के दस्तरख़ान से रोटी का एक भी टुकड़ा बचा हुआ नहीं देखा गया। (वसाएलुश-शिया, हुर्रे आमुली, जिल्द 5, पेज 54, अल-नवादिर, फ़ज़्लुल्लाह रावंदी, पेज 152)

  आप (स.अ) का लिबास

  पैग़म्बर (स) कपड़े पहनने में भी सादगी का ध्यान रखते थे, आप कभी पैवंद लगे कपड़े भी पहनते थे। (अमाली, शैख़ सदूक़, पेज 130, मकारिमुल अख़लाक़, पेज 115) इसी तरह कभी कभी आपको ऊन के मामूली कपड़े पहने भी देखा गया। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 456, मीज़ानुल एतदाल, जिल्द 3, पेज 128) अनस इब्ने मालिक से रिवायत है कि रोम के बादशाह ने एक बड़ी क़ीमती रिदा आपको तोहफ़े के रूप में भेजी, पैग़म्बर (स) उसको पहनकर जब लोगों के बीच आए तो लोगों ने पूछा, ऐ रसूले ख़ुदा! (स) क्या यह रिदा आसमान से आई है? आपने फ़रमाया: तुम लोगों को यह रिदा देखकर आश्चर्य हो रहा है जबकि ख़ुदा की क़सम! जन्नत में साद इब्ने मआज़ का रूमाल इस से ज़ियादा क़ीमती है, फिर आपने वह रिदा जाफ़र इब्ने अबी तालिब को देकर रोम के बादशाह को वापस भेज दी। (सहीह बुख़ारी, जिल्द 7, पेज 28, तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 457) आप अपने सोने के लिए जिस बिस्तर का प्रयोग करते थे वह खजूर के पेड़ की छाल से बना हुआ था (तारीख़े दमिश्क़, जिल्द 4, पेज 105)

हज़रत आयेशा से रिवायत है कि एक दिन किसी अंसार की बीवी किसी काम से पैग़म्बर (स) के घर आई, उसने मेरे घर में पैग़म्बर (स) का बिस्तर देखा और जब वापस गई तो उसने ऊन से बने बिस्तर को आपके लिए भेजवाया, पैग़म्बर (स) जब घर आए तो उन्होंने उस बिस्तर के बारे में पूछा, मैंने बताया अंसार के घराने की एक औरत ने आपके मामूली बिस्तर को देखने के बाद यह ऊनी बिस्तर भेजा है, आपने उसी समय कहा कि इसको वापस करवा दो, फिर मुझ से फ़रमाया कि अगर मैं चाहता तो अल्लाह सोने और चांदी के पहाड़ को मेरे क़ब्ज़े में दे देता। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 465, सीरए हलबी, जिल्द 3, पेज 454)

  एक और रिवायत में है कि कभी कभी पैग़म्बर (स) रिदा बिछाकर ही सोते थे और अगर कोई चाहे उसकी जगह कुछ और बिछा दे तो आप मना करते थे। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 467, अल-बिदाया वल-निहाया, जिल्द 6, पेज 56)

  अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद से नक़्ल की गई रिवायत में मिलता है कि एक दिन पैग़म्बर (स) खजूर की चटाई पर सो रहे थे, चटाई पर सोने की वजह से आपके बदन पर निशान पड़ गए थे, जब आप उठे तो मैंने पैग़म्बर (स) से कहा, या रसूल अल्लाह! (स) अगर आपकी अनुमति हो तो इस चटाई के ऊपर बिस्तर बिछा दिया जाए ताकि आपके बदन पर इस तरह के निशान न बनें, आपने फ़रमाया: मुझे इस दुनिया की आराम देने वाली चीज़ों से क्या लेना देना, मेरी और दुनिया की मिसाल एक सवारी की तरह है जो थोड़ी देर आराम करने के लिए एक पेड़ के नीचे रुकती है और उसके बाद तेज़ी से अपनी मंज़िल की ओर बढ़ जाती है। (तारीख़े दमिश्क़, जिल्द 3, पेज 390, तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 363)

  आप (स) का मकान

  वाक़ेदी ने अब्दुल्लाह इब्ने ज़ैद हज़ली से रिवायत की है कि जिस समय उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ के हुक्म से पैग़म्बर (स) और उनकी बीवियों के घर वीरान किए गए मैंने वह मकान देखे थे, आंगन की दीवारें कच्ची मिट्टी की थीं और कमरे, लकड़ी, खजूर की छाल और कच्ची मिट्टी से बने हुए थे, आपका कहना था कि मेरी निगाह में सबसे बुरा यह है कि मुसलमानों का पैसा घरों के बनवाने में ख़र्च हो। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 499, अमताउल असमाअ, जिल्द 10, पेज 94)

वलीद इब्ने अब्दुल मलिक के दौर में उसके हुक्म के बाद पैग़म्बर (स) और आपकी बीवियों के कमरों को तोड़कर मस्जिद में शामिल कर लिया गया, सईद इब्ने मुसय्यब का कहना है कि ख़ुदा की क़सम! मैं चाहता था कि पैग़म्बर (स) का पूरा घर वैसे ही बाक़ी रहे ताकि मदीने के लोग आपके घर को देखकर समझ सकें कि आप कितना साधारण जीवन बिताते थे और फिर लोग दौलत और अच्छे मकानों की आरज़ू को छोड़कर सादगी की ओर आकर्षित होते। (अमाली, पेज 130, मकारिमुल अख़लाक़, पेज 115)

  इंसान की बुनियादी ज़रूरते यही तीन हैं एक उसका खाना, दूसरा उसके कपड़े और तीसरा उसका घर, हम इस लेख में देख सकते हैं कि इन तीनों में अल्लाह के बाद सबसे महान शख़्सियत का जीवन कितना सादा और साधारण था।