
رضوی
पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स.अ:व:व) का जीवन परिचय
पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स.अ:व:व) का जीवन परिचय
आपका नाम मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह व आपके अलक़ाब मुस्तफ़ा, अमीन, सादिक़,इत्यादि हैं।
माता पिता
हज़रत पैगम्बर के पिता का नाम अब्दुल्लाह था जो ;हज़रत अबदुल मुत्तलिब के पुत्र थे। तथा पैगम्बर (स) की माता का नाम आमिना था, जो हज़रत वहब की पुत्री थीं।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत पैगम्बर का जन्म मक्का नामक शहर मे सन्(1) आमुल फील मे रबी उल अव्वल मास की 17वी तारीख को हुआ था।
बीवीयों के नाम
ख़दीजा बीनते खुवैलीद, ज़ैनब बिन्ते खोज़ैमा, सौदा, आयशा, हफ़सा, उम्मे सल्मा, ज़ैनब बीनते जहश, ज़वेरिआ बिन्ते हारिस, उम्मे हबीबा, सफ़िया, मैमूना
बेटों के नाम क़ासिम (तैय्यब), अब्दुल्लाह (ताहिर), इब्राहीम
बेटी का नाम फ़ातिमा
घरेलू नाम अबुल क़ासिम
लक़ब (उपाधि) रसूल अल्लाह, ख़ातिम'उन नबीयीन
उम्र 63 साल
नुबुव्वत 23 साल
शहादत सोमवार, 28 सफ़र 11 हिजरी को मदीना में
दफ़न मदीना
पालन पोषण
हज़रत पैगम्बर के पिता का स्वर्गवास पैगम्बर के जन्म से पूर्व ही हो गया था। और जब आप 6 वर्ष के हुए तो आपकी माता का भी स्वर्गवास हो गया। अतः8 वर्ष की आयु तक आप का पलन पोषण आपके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने किया।दादा के स्वर्गवास के बाद आप अपने प्रियः चचा हज़रत अबुतालिब के साथ रहने लगे। हज़रत आबुतालिब के घर मे आप का व्यवहार सबकी दृष्टि का केन्द्र रहा। आपने शीघ्र ही सबके हृदयों मे अपना स्थान बना लिया।
हज़रत पैगम्बर बचपन से ही दूसरे बच्चों से भिन्न थे। उनकी आयु के अन्य बच्चे गदें रहते, उनकी आँखों मे गन्दगी भरी रहती तथा बाल उलझे रहते थे। परन्तु पैगम्बर बचपन मे ही व्यस्कों की भाँति अपने को स्वच्छ रखते थे। वह खाने पीने मे भी दूसरे बच्चों की हिर्स नही करते थे। वह किसी से कोई वस्तु छीन कर नही खाते थे। तथा सदैव कम खाते थे कभी कभी ऐसा होता कि सोकर उठने के बाद आबे ज़मज़म(मक्के मे एक पवित्र कुआ) पर जाते तथा कुछ घूंट पानी पीलेते व जब उनसे नाश्ते के लिए कहा जाता तो कहते कि मुझे भूख नही है । उन्होने कभी भी यह नही कहा कि मैं भूखा हूं। वह सभी अवस्थाओं मे अपनी आयु से अधिक गंभीरता का परिचय देते थे। उनके चचा हज़रत अबुतालिब सदैव उनको अपनी शय्या के पास सुलाते थे। वह कहते हैं कि मैने कभी भी पैगम्बर को झूट बोलते, अनुचित कार्य करते व व्यर्थ हंसते हुए नही देखा। वह बच्चों के खेलों की ओर भी आकर्षित नही थे। सदैव तंन्हा रहना पसंद करते तथा मेहमान से बहुत प्रसन्न होते थे।
विवाह
जब आपकी आयु 25 वर्ष की हुई तो अरब की एक धनी व्यापारी महिला जिनका नाम खदीजा था उन्होने पैगम्बर के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा। पैगम्बर ने इसको स्वीकार किया तथा कहा कि इस सम्बन्ध मे मेरे चचा से बात की जाये। जब हज़रत अबुतालिब के सम्मुख यह प्रस्ताव रखा गया तो उन्होने अपनी स्वीकृति दे दी। तथा इस प्रकार पैगम्बर(स) का विवाह हज़रत खदीजा पुत्री हज़रत ख़ोलद के साथ हुआ। निकाह स्वयं हज़रत अबुतालिब ने पढ़ा। हज़रत खदीजा वह महान महिला हैं जिन्होने अपनी समस्त सम्पत्ति इस्लाम प्रचार हेतू पैगम्बर को सौंप दी थी।
पैगम्बरी की घोषणा
हज़रत मुहम्मद (स) जब चालीस वर्ष के हुए तो उन्होने अपने पैगम्बर होने की घोषणा की। तथा जब कुऑन की यह आयत नाज़िल हुई कि,,वनज़िर अशीरतःकल अक़राबीन(अर्थात ऐ पैगम्बर अपने निकटतम परिजनो को डराओ) तो पैगम्बर ने एक रात्री भोज का प्रबन्ध किया। तथा अपने निकटतम परिजनो को भोज पर बुलाया.। भोजन के बाद कहा कि मै तुम्हारी ओर पैगम्बर बनाकर भेजा गया हूँ ताकि तुम लोगो को बुराईयो से निकाल कर अच्छाइयों की ओर अग्रसरित करू। इस अवसर पर पैगम्बर (स) ने अपने परिजनो से मूर्ति पूजा को त्यागने तथा एकीश्वरवादी बनने की अपील की। और इस महान् कार्य मे साहयता का निवेदन भी किया परन्तु हज़रत अली (अ) के अलावा किसी ने भी साहयता का वचन नही दिया। इसी समय से मक्के के सरदार आपके विरोधी हो गये तथा आपको यातनाऐं देने लगे।
आर्थिक प्रतिबन्ध : मक्के के मूर्ति पूजकों का विरोध बढ़ता गया । परन्तु पैगम्बर अपने मार्ग से नही हटे तथा मूर्ति पूजा का खंण्डन करते रहे। मूर्ति पूजको ने पैगम्बर तथा आपके सहयोगियो पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिये। इस समय आप का साथ केवल आप के चचा अबुतालिब ने दिया। वह आपको लेकर एक पहाड़ी पर चले गये । तथा कई वर्षो तक वहीं पर रहकर पैगम्बर की सुरक्षा करते रहे। पैगम्बर को सदैव अपने पास रखते थे। रात्रि मे बार बार आपके स्थान को बदलते रहते थे।
हिजरत
आर्थिक प्रतिबन्धो से छुटने के बाद पैगम्बर ने फिर से इस्लाम प्रचार आरम्भ कर दिया। इस बार मूर्ति पूजकों का विरोध अधिक बढ़ गया ।तथा वह पैगम्बर की हत्या का षड़यंत्र रचने लगे। इसी बीच पैगम्बर के दो बड़े सहयोगियों हज़रत अबुतालिब तथा हज़रत खदीजा का स्वर्गवास हो गया। यह पैगम्बर के लिए अत्यन्त दुखः दे हुआ। जब पैगम्बर मक्के मे अकेले रह गये तो अल्लाह की ओर से संदेश मिला कि मक्का छोड़ कर मदीने चले जाओ। पैगम्बर ने इस आदेश का पालन किया और रात्रि के समय मक्के से मदीने की ओर प्रस्थान किया। मक्के से मदीने की यह यात्रा हिजरत कहलाती है। तथा इसी यात्रा से हिजरी सन् आरम्भ हुआ। पैगम्बरी की घोषणा के बाद पैगम्बर 13 वर्षों तक मक्के मे रहे।
मदीने मे पैगम्बर को नये सहयोगी प्राप्त हुए तथा उनकी साहयता से पैगम्बर ने इस्लाम प्रचार को अधिक तीव्र कर दिया। दूसरी ओर मक्के के मूर्ति पूजको की चिंता बढ़ती गयी तथा वह पैगम्बर से मूर्तियो के अपमान का बदला लेने के लिये युद्ध की तैयारियां करने लगे। इस प्रकार पैगम्बर को मक्का वासियों से कई युद्ध करने पड़े जिनमे मूर्ति पूजकों को पराजय का सामना करना पड़ा। अन्त मे पैगम्बर ने मक्के जाकर हज करना चाहा परन्तु मक्कावासी इस से सहमत नही हुए। तथा पैगमबर ने शक्ति के होते हुए भी युद्ध नही किया तथा सन्धि कर के मानव मित्रता का परिचय दिया। तथा सन्धि की शर्तानुसार हज को अगले वर्ष तक के लिए स्थगित कर दिया। सन् 10 हिजरी मे पैगम्बर ने 125000 मुस्लमानो के साथ हज किया। तथा मुस्लमानो को हज करने का प्रशिक्षण दिया।
उत्तराधिकारी की घोषणा :
जब पैगम्बर हज करके मक्के से मदीने की ओर लौट रहे थे, तो ग़दीर नामक स्थान पर आपको अल्लाह की ओर से आदेश प्राप्त हुआ, कि हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करो। पैगम्बर ने पूरे क़ाफिले को रुकने का आदेश दिया। तथा एक व्यापक भाषण देते हुए कहा कि मैं जल्दी ही तुम लोगों के मध्य से जाने वाला हूँ। अतः मैं अल्लाह के आदेश से हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता हूँ। पैगम्बर का प्रसिद्ध कथन कि जिस जिस का मैं मौला हूँ उस उस के अली मौला हैं। इसी अवसर पर कहा गया था।
शहादत(स्वर्गवास)
सन् 11 हिजरी मे सफर मास की 28 वी तारीख को तीन दिन बीमार रहने के बाद आपकी शहादत हो गयी। हज़रत अली (अ) ने आपको ग़ुस्लो कफ़न देकर दफ़्न कर दिया। इस महान् पैगम्बर के जनाज़े (पार्थिव शरीर) पर बहुत कम लोगों ने नमाज़ पढ़ी। इस का कारण यह था कि मदीने के अधिकाँश मुसलमान पैगम्बर के स्वर्गवास की खबर सुनकर सत्ता पाने के लिए षड़यण्त्र रचने लगे थे। तथा पैगम्बर के अन्तिम संसकार मे सम्मिलित न होकर सकीफ़ा नामक स्थान पर एकत्रित थे।
हज़रत पैगम्बर(स. की चारित्रिक विशेषताऐं
हज़रत पैगम्बर को अल्लाह ने समस्त मानवता के लिए आदर्श बना कर भेजा था। इस सम्बन्ध मे कुऑन इस प्रकार वर्णन करता-लक़द काना लकुम फ़ी रसूलिल्लाहि उसवःतुन हसनः अर्थात पैगम्बर का चरित्र आप लोगो के लिए आदर्श है। अतः आप के व्यक्तित्व मे मानवता के सभी गुण विद्यमान थे। आप के जीवन की मुख्य विशेषताऐं निम्ण लिखित हैं।
सत्यता
सत्यता पैगम्बर के जीवन की विशेष शोभा थी। पैगम्बर (स) ने अपने पूरे जीवन मे कभी भी झूट नही बोला। पैगम्बरी की घोषणा से पूर्व ही पूरा मक्का आप की सत्यता से प्रभावित था। आप ने कभी व्यापार मे भी झूट नही बोला। वह लोग जो आप को पैगम्बर नही मानते थे वह भी आपकी सत्यता के गुण गाते थे। इसी कारण लोग आपको सादिक़(अर्थात सच्चा) कहकर पुकारते थे।
अमानतदारी(धरोहरिता)
पैगम्बर के जीवन मे अमानतदारी इस प्रकार विद्यमान थी कि समस्त मक्कावासी अपनी अमानते आप के पास रखाते थे। उन्होने कभी भी किसी के साथ विश्वासघात नही किया। जब भी कोई अपनी अमानत मांगता आप तुरंत वापिस कर देते थे। जो व्यक्ति आपके विरोधि थे वह भी अपनी अमानते आपके पास रखाते थे। क्योंकि आप के पास एक बड़ी मात्रा मे अमानते रखी रहती थीं, इस कारण मक्के मे आप का एक नाम अमीन पड़ गया था। अमीन (धरोहर)
सदाचारिता
पैगम्बर के सदाचार की अल्लाह ने इस प्रकार प्रसंशा की है इन्नका लअला ख़ुलक़िन अज़ीम अर्थात पैगम्बर आप अति श्रेष्ठ सदाचारी हैं। एक दूसरे स्थान पर पैगम्बर की सदाचारिता को इस रूप मे प्रकट किया कि व लव कानत फ़ज़्ज़न ग़लीज़ल क़लबे ला नग़ज़्ज़ु मिन हवालीका अर्थात ऐ पैगम्बर अगर आप क्रोधी स्वभव वाले खिन्न व्यक्ति होते, तो मनुष्य आपके पास से भागते। इस प्रकार इस्लाम के विकास मे एक मूलभूत तत्व हज़रत पैगम्बर का सद्व्यवहार रहा है।
समय का सदुपयोग
हज़रत पैगम्बर की पूरी आयु मे कहीं भी यह दृष्टिगोचर नही होता कि उन्होने अपने समय को व्यर्थ मे व्यतीत किया हो । वह समय का बहुत अधिक ध्यान रखते थे। तथा सदैव अल्लाह से दुआ करते थे, कि ऐ अल्लाह बेकारी, आलस्य व निकृष्टता से बचने के लिए मैं तेरी शरण चाहता हूँ। वह सदैव मसलमानो को कार्य करने के लिए प्रेरित करते थे।
अत्याचार विरोधी
हज़रत पैगम्बर अत्याचार के घोर विरोधि थे। उनका मानना था कि अत्याचार के विरूद्ध लड़ना संसार के समस्त प्राणियों का कर्तव्य है। मनुष्य को अत्याचार के सम्मुख केवल तमाशाई बनकर नही खड़ा होना चाहिए। वह कहते थे कि अपने भाई की सहायता करो चाहे वह अत्याचारी ही कयों न हो। उनके साथियों ने प्रश्न किया कि अत्याचारी की साहयता किस प्रकार करें? आपने उत्तर दिया कि उसकी साहयता इस प्रकार करो कि उसको अत्याचार करने से रोक दो।
बुराई के बदले भलाई की भावना
आदरनीय पैगम्बर की एक विशेषता बुराई का बदला भलाई से देना थी। जो उन को यातनाऐं देते थे, वह उन के साथ उनके जैसा व्यवहार नही करते थे। उनकी बुराई के बदले मे इस प्रकार प्रेम पूर्वक व्यवहार करते थे, कि वह लज्जित हो जाते थे।
यहाँ पर उदाहरण स्वरूप केवल एक घटना का उल्लेख करते हैं। एक यहूदी जो पैगम्बर का विरोधी था। वह प्रतिदिन अपने घर की छत पर बैठ जाता, व जब पैगम्बर उस गली से जाते तो उन के सर पर राख डाल देता। परन्तु पैगम्बर इससे क्रोधित नही होते थे। तथा एक स्थान पर खड़े होकर अपने सर व कपड़ों को साफ कर के आगे बढ़ जाते थे। अगले दिन यह जानते हुए भी कि आज फिर ऐसा ही होगा। वह अपना मार्ग नही बदलते थे। एक दिन जब वह उस गली से जा रहे थे, तो इनके ऊपर राख नही फेंकी गयी। पैगम्बर रुक गये तथा प्रश्न किया कि आज वह राख डालने वाला कहाँ हैं? लोगों ने बताया कि आज वह बीमार है। पैगम्बर ने कहा कि मैं उस को देखने जाऊगां। जब पैगम्बर उस यहूदी के सम्मुख गये, तथा उस से प्रेम पूर्वक बातें की तो उस व्यक्ति को ऐसा लगा, कि जैसे यह कई वर्षों से मेरे मित्र हैं। आप के इस व्यवहार से प्रभावित होकर उसने ऐसा अनुभव किया, कि उस की आत्मा से कायर्ता दूर हो गयी तथा उस का हृदय पवित्र हो गया। उनके साधारन जीवन तथा नम्र स्वभव ने उनके व्यक्तितव मे कमी नही आने दी, उनके लिए प्रत्येक व्यक्ति के हृदय मे स्थान था।
दया की प्रबल भावना
आदरनीय पैगम्बर मे दया की प्रबल भावना विद्यमान थी। वह अपने से छोटों के साथ प्रेमपूर्वक तथा अपने से बड़ो के साथ आदर पूर्वक व्यवहार करते थे ।वह अनाथों व भिखारियों का विशेष ध्यान रखते थे उनको को प्रसन्नता प्रदान करते व अपने यहाँ शरण देते थे। वह पशुओं पर भी दया करते थे तथा उन को यातना देने से मना करते थे।
जब वह किसी सेना को युद्ध के लिए भेजते तो रात्री मे आक्रमण करने से मना करते, तथा जनता से प्रेमपूर्वक व्यवहार करने का निर्देश देते थे । वह शत्रु के साथ सन्धि करने को अधिक महत्व देते थे। तथा इस बात को पसंद नही करते थे कि लोगों की हत्याऐं की जाये। वह सेना को निर्देश देते थे कि बूढ़े व्यक्तियों, बच्चों तथा स्त्रीयों की हत्या न की जाये तथा मृत्कों के शरीर को खराब न किया जाये
स्वच्छता
पैगम्बर स्वच्छता मे अत्याधिक रूचि रखते थे। उन के शरीर व वस्त्रों की स्वच्छता देखने योग्य होती थी। वह वज़ू के अतिरिक्त दिन मे कई बार अपना हाथ मुँह धोते थे।वह अधिकाँश दिनो मे स्नान करते थे। उनके कथनानुसार वज़ु व स्नान इबादत है। वह अपने सर के बालों को बेरी के पत्तों से धोते और उनमे कंघा करते और अपने शरीर को मुश्क व अंबर नामक पदार्थों से सुगन्धित करते थे। वह दिन मे कई बार तथा सोने से पहले व सोने के बाद अपने दाँतों को साफ़ करते थे। भोजन से पहले व बाद मे अपने मुँह व हाथों को धोते थे तथा दुर्गन्ध देने वाली सब्ज़ियों को नही खाते थे।
हाथी दाँत का बना कंघा सुरमेदानी कैंची आईना व मिस्वाक उनके यात्रा के सामान मे सम्मिलित रहते थे। उनका घर बिना साज सज्जा के स्वच्छ रहता था। उन्होने चेताया कि कूड़े कचरे को दिन मे उठा कर बाहर फेंक देना चाहिए। वह रात आने तक घर मे नही पड़ा रहना चाहिए। उनके शरीर की पवित्रता उनकी आत्मा की पवित्रता से सम्बन्धित रहती थी। वह अपने अनुयाईयों को भी चेताते रहते थे कि अपने शरीरो वस्त्रों व घरों को स्वच्छ रखा करो। तथा जुमे (शुक्रवार) को विशेष रूप से स्नान किया करो। दुर्गन्ध को दूर करने हेतू शरीर व वस्त्रो को सुगन्धित करके जुमे की नमाज़ मे सम्मिलित हुआ करो ।
दृढनिश्चयता
पैगम्बर मे दृढनिश्चयता चरम सीमा तक पाई जाती थी।वह निराशावादी न होकर आशावादी थे। वह पराजय से भी निराश नही होते थे। यही कारण है कि ओहद नामक युद्ध की पराजय ने उनको थोड़ा भी प्रभावित नही किया। तथा बनी क़ुरैज़ा(अरब के एक कबीले का नाम) द्वारा अनुबन्ध तोड़कर विपक्ष मे सम्मिलित हो जाने से भी उन पर कोई प्रभाव नही पड़ा।बल्कि वह शीघ्रता पूर्वक हमराउल असद नामक युद्ध के लिए तैयार होकर मैदान मे आगये।
सावधानी व सतर्कता
पैगम्बर(स.) सदैव सावधानी व सतर्कता बरतते थे। वह शत्रु की सेना का अंकन इस प्रकार करते कि उससे युद्ध करने के लिए कितने व किस प्रकार के हथियारों की आवश्यक्ता है। वह नमाज़ के समय मे भी सतर्क व सवधान रहते थे।
मानवता के प्रति प्रेम
पैगम्बर(स.) के हृदय मे समस्त मानवजाति के प्रति प्रेम था। वह रंग या नस्ल के कारण किसी से भेद भाव नही करते थे । उनकी दृष्टि मे सभी मनुष्य समान थे। वह कहते थे कि सभी मनुष्य अल्लाह से जीविका प्राप्त करते हैं। उन्होने जो युद्धों किये उनके पीछे भी महान लक्ष्य विद्यमान थे।वह सदैवे मानवता के कल्याण के लिए ही युद्ध करते थे। पैगम्बर सदैव अपने अनुयाईयों को मानव प्रेम का उपदेश देते थे।
पैगम्बर ने मनुष्यों को निम्ण लिखित संदेश दिया
1- मानवता की सफलता का संदेश
2- युद्ध से पूर्व शान्ति वार्ता का संदेश
3- बदले से पहले क्षमा का संदेश
4- दण्ड से पूर्व विन्रमता या क्षमा का संदेश
5-उच्चयतम कोटी की नेतृत्व क्षमता।
आदरनीय पैगम्बर को अल्लाह ने नेतृत्व की उच्चय क्षमता प्रदान की थी। उनकी इस क्षमता को अरब जाती की स्थिति को देखकर आंका जा सकता है। उन्होने उस अरब जाती का नेतृत्व किया, जो अपनी मूर्खता व अज्ञानता के कारण किसी को भी अपने से बड़ा नही समझते थे। जो सदैव रक्त पात करते रहते थे। सदाचार उनको छूकर भी नही निकला था। ऐसे लोगों को अपने नेतृत्व मे लेना बहुत कठिन कार्य था। परन्तु इन सब अवगुणो के होते हुए भी पैगम्बर ने अपने कौशल से उनको इस प्रकार प्रशिक्षित किया कि सब आपके समर्थक बन गये। तथा अपने प्राणो की आहुती देने के लिए धर्म युद्ध के लिए निकल पड़े।
आदरनीय पैगम्बर युद्ध के लिए एक से अधिक सेना नायकों का चयन करते तथा गंभीरता पूर्वक उनके मध्य कार्यों व शक्तियों का विभाजन कर नियम बनाते थे।वह राजनीतिक तथा शासकीय सिधान्तों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते थे।उन्होने विभिन्न विभागों की नीव डाली। वह सेनापतियों का चुनाव सुचरित्र को आधार बनाकर करते थे
क्षमा दान की प्रबल भावना
आदरनीय पैगम्बर(स.) मे क्षमादान की भावना बहुत प्रबल थी।बदले की भावना उनके अन्दर बिल्कुल भी विद्यमान नही थी। उन्होने अपनी क्षमा भावना का पूर्ण परिचय मक्के की विजय के समय कराया। जब उनके शत्रुओं को बंदी बनाकर उनके सम्मुख लाया गया तो उन्होने यातनाऐं देनेवाले सभी शत्रुओं को क्षमा कर दिया। अगर पैगम्बर(स.) चाहते तो उनसे बदला ले सकते थे परन्तु उन्होने शक्ति होते हुए भी ऐसा नही किया। अपितु सबको क्षमा करके कहा कि जाओ तुम सब स्वतन्त्र हो।
उनकी शक्ति शाली आत्मा सदैव क्षमादान को वरीयता देती थी। ओहद नामक युद्ध मे जो पाश्विक व्यवहार उनके चचा श्री हमज़ा पुत्र श्री अब्दुल मुत्तलिब के साथ किया गया(अबु सुफियान की पत्नि व मुआविया की माँ हिन्दा ने उनके मृत्य शरीर से उनका कलेजा निकाल कर खाने की चेष्टा की) उस को देख कर वह बहुत दुखीः हुए। परन्तु पैगम्बर ने उसके परिवार के मृत्य लोगों के साथ ऐसा व्यवहार नही किया। यहाँ तक कि जब वह स्त्री बंदी बनाकर लाई गई, तो आपने उससे बदला न लेकर उसे क्षमा कर दिया। यही नही अपितु पैगम्बर ने अबुक़ुतादा नामक उस व्यक्ति को भी चुप रहने का आदेश दिया जो उसको अपशब्द कह रहा था।
खैबर नामक युद्ध मे जब यहूदियों ने मुसलमानो के सम्मुख हथियार डाल दिये व युद्ध समाप्त हो गया तो यहूदियों ने भोजन मे विष मिलाकर पैगम्बर के लिए भेजा । पैगम्बर को उनके इस षड़यन्त्र का ज्ञान हो गया। परन्तु उन्होने इसके उपरान्त भी यहूदियों को कोई दण्ड नही दिया तथा क्षमा करके स्वतन्त्र छोड़ दिया।
तबूक नामक युद्ध से लौटते समय मुनाफिकों के एक संगठन ने पैगम्बर की हत्या का षड़यन्त्र रचा। जब पैगम्बर एक पहाड़ी दर्रे को पार कर रहे थे तो मुनाफिक़ीन ने योजनानुसार आप के ऊँट को भड़का दिया। ताकि पैगम्बर ऊँट से गिर कर मर जाऐं, परन्तु वह विफल रहे। और पैगम्बर ने सब को पहचान लिया परन्तु उनसे बदला नही लिय । तथा अपने दोस्तों के आग्रह पर भी उन के नाम नही बताये।
उच्चतम सामाजिक जीवन शैली
पैगम्बर(स.) का सामाजिक जीवन बहुत श्रेष्ठ था वह लोगों के मध्य सदैव प्रसन्नचित्त रहते थे। किसी की ओर घूर कर नही देखते थे। अधिकाँश उन की दृष्टि पृथ्वी पर रहती थी। दूसरों के सामने अपने पैरो कों मोड़ कर बैठते थे। किसी के भी सम्मुख वह पैर नही फैलाते थे। जब वह किसी सभा मे जाते थे तो अपने बैठने के लिए निकटतम स्थान को चुनते थे । वह इस बात को पसंद नही करते थे, कि सभा मे से कोई व्यक्ति उनके आदर हेतू खड़ा हो, या उनके लिए किसी विशेष स्थान को खाली किया जाये। वह बच्चों तथा दासों को भी स्वंय सलाम करते थे। वह किसी के कथन को बीच मे नही काटते थे। वह प्रत्येक व्यक्ति से इस प्रकार बात करते कि वह यह समझता कि मैं पैगम्बर के सबसे अधिक निकट हूँ। वह अधिक नही बोलते थे तथा धीरे धीरे व रुक रुक कर बाते करते थे। वह कभी भी किसी को अपशब्द नही कहते थे। वह बहुत अधिक लज्जावान व स्वाभीमानी थे। जब वह किसी के व्यवहार से दुखित होते तो दुखः के चिन्ह उनके चेहरे से प्रकट होते थे, परन्तु वह अपने मुख से गिला नही करते थे। वह सदैव रोगियों को देखने के लिए जाते तथा मरने वालों के जनाज़ों (अर्थी) मे सम्मिलित होते थे। वह किसी को इस बात की अनुमति नही देते थे कि उनके सम्मुख किसी को अपशब्द कहें जायें।
कानून व न्याय प्रियता
कानून का पालन व न्याय प्रियता पैगम्बर(स.) की मुख्य विशेषताएं थीं।हज़रत पैगम्बर अपने साथ दुरव्यवहार करने वाले को क्षमा कर देते थे, परन्तु कानून का उलंघन करने वालों कों क्षमा नही करते थे। तथा कानूनानुसार उसको दणडित किया जाता था। वह कहते थे कि कानून व न्याय सामाजिक शांति के रक्षक हैं। अतः ऐसा नही हो सकता कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए कानून को बलि चढ़ा कर पूरे समाज को दुषित कर दिया जाये। वह कहते थे कि मैं उस अल्लाह की सौगन्ध खाकर कहता हूँ जिसके वश मे मेरी जान है कि न्याय के क्षेत्र मे मैं किसी के साथ भी पक्षपात नही करूगां। अगर मेरा निकटतम सम्बन्धि भी कोई अपराध करेगा तो उसे क्षमा नही करूगां और न ही उसको बचाने के लिए कानून को बली बनाऊँगा।
एक दिन पैगम्बर ने मस्जिद मे अपने प्रवचन मे कहा कि अल्लाह ने कुऑन मे कहा है कि प्रलय मे कोई भी अत्याचारी अपने अत्याचार के दण्ड से नही बच सकेगा। अतः अगर आप लोगो मे से किसी को मुझ से कोई यातना पहुंची हो या किसी का कोई हक़ मेरे ऊपर बाक़ी हो तो वह मुझ से लेले। उस सभा मे से सबादा पुत्र क़ैस नामक एक व्यक्ति खड़ा हुआ। तथा कहा कि ऐ पैगम्बर जब आप तायिफ़(एक स्थान का नाम) से लौट रहे थे तो आप के हाथ मे एक असा (लकड़ी का ड़डां) था। आप उसे घुमा रहे थे वह मेरे पेट मे लगा जिससे मुझे पीड़ा हुई। आप ने कहा कि मैं सौगन्ध के साथ कहता हूँ कि मैंने ऐसा जान बूझ कर नही किया परन्तु तू फिर भी उसका बदला ले सकता है। यह कह कर आपने अपना असा मंगाया तथा उस असा को सबादा के हाथ मे देकर कहा कि इससे तेरे शरीर के जिस भाग को पीड़ा पहुँची हो, तू इस से मेरे शरीर के उसी भाग को पीड़ा पहुँचा। उस ने कहा कि ऐ पैगमबर मैने आपको क्षमा किया । आपने कहा कि अल्लाह तुझे क्षमा करे। यह थी इस महान् पैगम्बर की न्याय प्रियता तथा सामाजिक क़ानून की रक्षा।
जनता के विचारों का आदर
जिन विषयों के लिए कुऑन मे आदेश मौजूद होता आदरनीय पैगम्बर(स.) उन विषयों मे न स्वयं हस्तक्षेप करते और न ही किसी दूसरे को हस्तक्षेप करने देते थे। वह स्वयं भी उन आदेशों का पालन करते तथा दूसरों को भी पालन करने पर बाध्य करते थे। क्योकि कुऑन के आदेशों की अवहेलना कुफ्र (अधर्मिता) है। इस सम्बन्ध मे कुऑन स्वयं कहता है कि व मन लम यहकुम बिमा अनज़ालल्लाहु फ़ा उलाइका हुमुल काफ़िरून। अर्थात वह मनुषय जो अल्लाह के भेजे हुए क़ानून के अनुसार कार्य नही करते वह समस्त काफ़िर (अधर्मी) हैं। जिन विषयों के लिए कुऑन मे आदेश नही होता था उनमे हस्तक्षेप नही करते थे। उन विषयों मे जनता स्वतन्त्र थी तथा सबको अपने विचर प्रकट करने की अनुमति थी।
वह दूसरों के परामर्श का आदर करते तथा परामर्श पर विचार करते थे। बद्र नामक युद्ध के अवसर पर आपने तीन बार अपने साथियों से विचार विमर्श किया । सर्वप्रथम इस बात पर परामर्श हुआ कि कुरैश से लड़ा जाये या इनको इनके हाल पर छोड़ कर मदीने चला जाये। सब ने जंग करने को वरीयता दी । दूसरी बार छावनी के स्थान के बारे मे परामर्श हुआ। तथा इस बार हबाब पुत्र मुनीज़ा की राय को वरीयता दी गयी। तीसरी बार युद्ध बन्धकों के बरे मे मशवरा लिया गया। कुछ लोगों ने कहा कि इन की हत्या करदी जाये, तथा कुछ लोगों ने कहा कि इनको फिदया (धन) लेकर छोड़ दिया जाये। पैगम्बर ने दूसरी राय का अनुमोदन किया। इसी प्रकार ओहद नामक युद्ध मे भी पैगम्बर ने अपने साथियों से इस बात पर विचार विमर्श किया, कि शहर मे रहकर सुरक्षा प्रबन्ध किये जायें या शहर से बाहर निकल कर पड़ाव डाला जाये व शत्रु को आगे बढने से रोका जाये। विचार के बाद दूसरी राय पारित हुई । इसी प्रकार अहज़ाब नामक युद्ध के अवसर पर भी यह परामर्श हुई कि शहर मे रहकर लड़ा जाये या बाहर निकल कर जंग की जाये। काफी विचार विमर्श के बाद यह पारित हुआ कि शहर से बाहर निकल कर युद्ध किया जाये। अपने पीछे की ओर पहाड़ी को रखा जाये तथा सामने की ओर खाई खोद ली जाये, जो शत्रु को आगे बढ़ने से रोक सके ।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि सब मुसलमान आदरनीय पैगम्बर को त्रुटि भूल चूक तथा पाप से सुरक्षित मानते थे। तथा उनके कार्यों पर आपत्ति व्यक्त करने को अच्छा नही समझते थे। परन्तु अगर कोई पैगम्बर के किसी कार्य की आलोचना करता तो वह आलोचक को शांति पूर्ण ढंग से समझाते तथा उसको संतोष जनक उत्तर देकर उसके भम्र को दूर करते थे। उनका दृष्टिकोण यह था कि सृष्टि के रचियता ने चिंतन आलोचना व दो वस्तुओं के मध्य एक को वरीयता दने की शक्ति प्रत्येक व्यक्ति को प्रदान की है। यह केवल सामाजिक आधार रखने वाले शक्ति शाली व्यक्तियों से ही सम्बन्धित नही है । अतः मनुष्यों से चिंतन व आलोचना के इस अधिकार को नही छीनना चाहिये।
शासकीय सद्व्यवहार
वह सदैव प्रजा के कल्याण के बरे मे सोचते थे। पैगम्बर ने स्वंय एक स्थान पर कहा कि -मै जनता कि भलाई का जनता से अधिक ध्यान रखता हूँ। तुम लोगों मे से जो भी स्वर्गवासी होगा तथा सम्पत्ति छोड़ कर जायगा वह सम्पत्ति उसके परिवार की होगी। परन्तु अगर कोई ऋणी होगा या उसका परिवार दरिद्र होगा तो उसके ऋण को चुका ने तथा उसके परिवार के पालन पोषण का उत्तरदायित्व मेरे ऊपर होगा।
पैगम्बर(स.) ने न्याय व दया पर आधारित अपनी इस शासन प्रणाली द्वारा संसार के समस्त शासकों को यह शिक्षा दी कि समाज मे शासक की स्थिति एक दयावान व बुद्धिमान पिता की सी है। शासक को चाहिये कि हर स्थान पर जनता के कल्याण का ध्यान रखे तथा अपनी मन मानी न करे।
पैगम्बर वह महान् व्यक्ति हैं जिन्होने बहुत कम समय मे मानव के दिलों मे अपने सद्व्यवहार की अमिट छाप छोड़ी। उन्होने अपने सद्व्यवहार, चरित्र व प्रशिक्षण के द्वारा अरब हत्यारों को शान्ति प्रियः, झूट बोलने वालों को सत्यवादी, निर्दयी लोगों को दयावान, नास्तिकों को आस्तिक, मूर्ति पूजकों को एकश्वरवादी, असभ्यों कों सभ्य, मूर्खों को बुद्धि मान, अज्ञानीयों को ज्ञानी, तथा क्रूर स्वभव वाले व्यक्तियों को विन्रम बनाया।
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद
आयतुल्लाह खमेनेई ने 3 हज़ार से अधिक क़ैदियों की सज़ा माफ़ की
ईरान की इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने पैग़म्बरे रहमत हज़रत मोहम्मद मुस्तफा (अस) के शुभ जन्मदिन के अवसर पर देश की विभिन्न जेलों में अलग अलग अपराध के लिए बंद सज़ा याफ्ता क़ैदियों को न्यायपालिका की अपील पर बड़ी राहत दी है।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम लीडर ने जहाँ कुछ बंदियों की रिहाई पर सहमति जताई हैं वहीँ कुछ क़ैदियों की सज़ा घटा दी गयी तो कुछ को माफ़ी दी गई है।
पैग़म्बरे रहमत हज़रत मोहम्मद मुस्तफा (अस) और इमाम जाफर सादिक (अस) के जन्म के अवसर पर सर्वोच्च नेता की ओर से जारी माफ़ी का विवरण देते हुए, न्यायपालिका के उप प्रमुख ने कहा: मौत की सजा पाने वाले 69 दोषियों की सज़ा आजीवन कारावास में बदल दी गई, और देश की सुरक्षा और अखंडता को खतरे में डालने वाले दोषियों में से 140 महिला और 39 पुरुषों को भी माफी दे दी गई है।
अमेरिका के दौरे पर रवाना हुए मोदी क्वाड समिट में लेंगे हिस्सा
अब तक 8 बार अमेरिका के दौरे पर जा चुके भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर अमेरिका के दौरे पर निकल चुके हैं। विदेश मंत्रालय के मुताबिक पीएम मोदी आज से 23 सितंबर तक अमेरिका के दौरे पर रहेंगे। इस दौरान वह क्वाड नेताओं के चौथे समिट में भाग लेंगे, जो आज डेलावेयर के विलमिंगटन में आयोजित होगा। इस समिट की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन मेजबानी करेंगे।
वहीं अमेरिका दौरे पर रवाना होने के बाद प्रधानमंत्री ने एक्स पर पोस्ट में लिखा कि आज, मैं राष्ट्रपति बाइडेन के गृहनगर विलमिंगटन में आयोजित क्वाड शिखर सम्मेलन में भाग लेने और न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भविष्य के शिखर सम्मेलन को संबोधित करने के लिए अमेरिका की तीन दिवसीय यात्रा पर जा रहा हूं।
तालिबान ने ईरान से माफ़ी मांगी, पाकिस्तान को दी सफाई
अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ाबिज़ तालिबान एक बार फिर अपने हरकतों की वजह से मीडिया की सुर्ख़ियों में बने हुए हैं। दर असल हाल ही तालिबान अधिकारियों ने ईरान और पाकिस्तान दोनों देशों के अलग अलग कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। इस बीच पाकिस्तान और ईरान का राष्ट्रगान बजाए गए, लेकिन तालिबानी अधिकारी अपनी जगह से खड़े नहीं हुए, जिसके बाद उन्हें दोनों देशों की ओर से गुस्से का सामना करना पड़ा है।
पेशावर में 17 सितंबर को हो रहे एक प्रोग्राम के दौरान अफगान मिशन के दूत हाफिज मोहिबुल्लाह शाकिर समेत तालिबान अधिकारी पाकिस्तान के राष्ट्रगान के दौरान सीट पर बैठे रहे। वहीं, उसके 2 दिन बाद ईरान से भी ऐसी ही खबर सामने आई। तेहरान में हो रही इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिटी कॉन्फ्रेंस के दौरान जब मेजबान देश ईरान का राष्ट्रगान शुरू हुआ तो सब लोग खड़े हो गए, लेकिन तालिबान प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख और उप मंत्री अज़ीज़ुर्रहमान मंसूर बैठे रहे। इस हरकत के बाद जब पाकिस्तान और ईरान की तरफ से विरोध किया गया तो तालिबान ने ईरान से माफी मांग ली, लेकिन पाकिस्तान की सफाई देकर छुट्टी कर दी।
फिलिस्तीन का झंडा थामना अपराध नहीं
कर्नाटक में ईदे मिलादुन-नबी के जुलूसों में फिलिस्तीनी झंडे लहराए जाने पर राज्य की राजनीती गरमा गई है। इस बीच राज्य के मंत्री बी. जेड. जमीर अहमद खान ने झंडे लहराए जाने का बचाव करते हुए बीजेपी पर हमला बोला। मंत्री ने जोर देकर कहा कि फिलिस्तीनी झंडा लहराना कोई मुद्दा नहीं है। केंद्र सरकार फिलिस्तीन को खुला समर्थन करती है।
जमीर अहमद खान ने चित्रदुर्ग, दावणगेरे और कोलार जैसी जगहों पर जुलूसों के दौरान फिलिस्तीनी झंडे लहराए जाने पर आपत्ति जताने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की आलोचना की। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों के पक्ष में नारे लगाना अस्वीकार्य माना जा सकता है, लेकिन सिर्फ झंडा थामना कोई गलत काम नहीं है। केंद्र सरकार ने खुद फिलिस्तीन को समर्थन दिया है, केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि हम फिलिस्तीन का समर्थन कर रहे हैं।
बता दें कि पिछले सप्ताह चिकमगलुरु में छह नाबालिगों को हिरासत में लिया गया था। इन नाबालिगों को दोपहिया वाहन चलाते समय फिलिस्तीनी झंडा थामे दिखाया गया था।
श्रीलंका में तख्तापलट के बाद पहला चुनाव
पिछले काफी समय से राजनैतिक एवं आर्थिक उथल पुथल का शिकार रहे श्रीलंका में आज तख्तापलट के बाद पहला चुनाव हो रहा है जिसमे राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के सामने सत्ता बचने की चुनौती है। चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि 1982 के बाद से श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनावों के इतिहास में पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है। इस चुनावी लड़ाई में विक्रमसिंघे को अनुरा कुमारा दिसानायके और साजिथ प्रेमदासा से कड़ी टक्कर मिल रही है। इनके अलावा और भी कई उम्मीदवार हैं जो चुनावी मैदान में मजबूती से ताल ठोक रहे हैं।
मतगणना के बाद चुनाव परिणाम का ऐलान रविवार को किया जाएगा। मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के अपने प्रयासों की सफलता के आधार पर एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे हैं जिस के लिए कई विशेषज्ञ विक्रमसिंघे की तारीफ कर चुके हैं।
सरकार की नजर अन्य अल्पसंख्यक वर्गों की संपत्तियों पर भी है! असदुद्दीन ओवैसी
क्या वक़्फ़ संशोधन विधेयक शुरुआत है? सरकार की नजर अन्य अल्पसंख्यक वर्गों की जमीनों और हिंदू बोर्ड के स्वामित्व वाली लाखों एकड़ जमीन पर भी है, जबकि वक्फ बोर्ड के पास केवल कुछ लाख एकड़ जमीन है।
हालांकि विवादास्पद वक्फ विधेयक पर जेपीसी सक्रिय रूप से बैठकें कर रही है और विभिन्न 'हितधारक' अपने विचार रख रहे हैं और यह संदेश दिया जा रहा है कि देश में वक्फ बोर्डों के पास लाखों एकड़ जमीन है, लेकिन हकीकत क्या है? सोशल मीडिया पर या विभिन्न हिंदुत्व घाटी समाचार पोर्टलों के माध्यम से बताया जा रहा है। इस संबंध में मशहूर हिंदी अखबार 'अमर अजाला' की एक लंबी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जिसमें सिलसिलेवार तरीके से बताया गया है कि वक्फ बिल लाने के पीछे सरकार का मकसद क्या है, सरकार के पास कितनी जमीन है. वक्फ बोर्ड और हिंदुओं के विभिन्न बोर्डों के पास कितनी जमीन है, रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि सरकार वक्फ बिल के जरिए एक तीर से कई लोगों को मारना चाहती है, उसका मकसद हर वर्ग और हर व्यक्ति की जमीन पर कब्जा करना है धार्मिक संस्था है ऐसे में अगर अगले कुछ महीनों में हिंदुओं के साथ-साथ अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के विभिन्न बोर्डों की जमीनों पर कब्जा करने के लिए कोई विधेयक लाया जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।
बिल लाने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
अमरजाला की रिपोर्ट के मुताबिक वक्फ संशोधन बिल लाने का मकसद सरकार को एक तीर से मारना है. बिल के विरोधियों ने साफ तौर पर कहा है कि सरकार फिलहाल इस बिल के जरिए मुसलमानों को निशाना बना रही है, लेकिन इसका मुख्य मकसद विभिन्न राज्यों के हिंदू बोर्डों की जमीनों का अधिग्रहण करना है, लेकिन इससे पहले उन्होंने मुसलमानों के बाद सिखों जैसे अन्य अल्पसंख्यकों को भी जमीन दे दी है. बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों की भूमि और संपत्ति का अधिग्रहण करने का भी प्रयास करेगा। विरोधियों का यह भी कहना है कि मोदी सरकार ने हिंदुओं को नुकसान पहुंचाने वाले कई विवादास्पद कानून पेश किए हैं और लाने का इरादा रखती है, लेकिन उन्हें मुस्लिम विरोध के पर्दे के तहत पेश करती है ताकि उसके आम समर्थकों को कोई संदेह न हो और हिंदुत्व घाटी में भी खुश रहें। ऐसे कानून आमतौर पर मुसलमानों द्वारा तुरंत उठाए जाते हैं, जिससे सरकार को अपना संदेश देने का मौका मिलता है, लेकिन वास्तव में वे कानून हिंदुओं के लिए अधिक हानिकारक होते हैं।
यूपी सरकार का विवादित बिल
उदाहरण के तौर पर मुस्लिमों की संपत्ति जब्त करने के लिए यूपी सरकार ने वंशज विधेयक पेश किया, लेकिन इसके निहितार्थ को समझते हुए खुद कई बीजेपी विधायकों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. पता चला कि जैसे ही सरकार ने इसे लागू करना शुरू किया, उसे अपनी ही पार्टी के भीतर से कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, जिसके बाद बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और फिर कानून को रोक दिया गया. फिलहाल इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, हालांकि मुसलमान मौजूदा वक्फ बिल के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, लेकिन जब अन्य वर्गों के खिलाफ बिल लाया जाएगा और उनकी जमीनें जब्त करने की कोशिश की जाएगी, तो वे भी आवाज उठाएंगे करने के लिए मजबूर किया गया।
किसके पास कितनी जमीन?
विवादित वक्फ बिल के समर्थन में सोशल मीडिया पर लगातार यह अभियान चलाया जा रहा है कि रेलवे और सेना के बाद सबसे ज्यादा जमीन और संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास है, लेकिन उपरोक्त अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक वक्फ बोर्ड के पास वर्तमान में देश में केवल 9.5% भूमि है, 100,000 एकड़ भूमि है, जो पूरे देश के क्षेत्रफल का केवल कुछ प्रतिशत होगी, जबकि इसकी तुलना में, विभिन्न राज्यों में हिंदू बोर्डों के पास कई लाख एकड़ भूमि है। रेलवे और सेना की कुल भूमि से भी अधिक होगी। उदाहरण के लिए, अकेले तमिलनाडु में, हिंदू बोर्ड के पास 3.5 लाख एकड़ ज़मीन है, जबकि इसके पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में, हिंदू बोर्ड के पास 465,000 एकड़ ज़मीन है। गौरतलब है कि इन जमीनों पर हिंदू बोर्ड द्वारा विभिन्न मंदिर, आश्रम, धर्मशालाएं और अन्य इमारतें स्थापित की गई हैं जिनका उपयोग केवल हिंदुओं द्वारा किया जाता है। हिंदू बोर्डों को इनके किराये से भी अरबों रुपये मिलते हैं।
हिज़्बुल्लाह के वरिष्ठ सैन्य कमांडर इब्राहीम अक़ील शहीद
हिज़्बुल्लाह लेबनान ने दक्षिणी लेबनान में ज़ायोनी सेना की बमबारी में अपने वरिष्ठ सैन्य कमांडर की शहादत की खबर दी है।
हिज़्बुल्लाह ने आधिकारिक तौर पर ज़ायोनी सेना की ने बेरूत के दक्षिणी उपनगरों पर बमबारी में अपने वरिष्ठ कमांडरों में से एक हाज इब्राहीम अकील उर्फ अब्दुल कादिर की शहादत की घोषणा की है।
हिज़्बुल्लाह के बयान में कहा गया है कि महान सैन्य कमांडर इब्राहीम अकील एक लंबी उम्र तक रहे ख़ुदा में जिहाद करने के बाद अपने शहीद दोस्तों, भाईयों और अपने शहीद नेताओं के साथ शामिल हो गए।
गौरतलब है कि ज़ायोनी सेना के F-35 युद्धक विमानों ने बेरूत के दक्षिणी उपनगरों में एक आवासीय इमारत पर बमबारी की थी, जिसमें 14 लोगों की मौत हो गई और 66 लोग घायल हो गए थे।
हिज़्बुल्लाह के शहीद कमांडर इब्राहीम अक़ील
दक्षिणी लेबनान के ज़ाहिया शहर में अवैध राष्ट्र इस्राईल ने एक रिहाइशी इमारत पर बमबारी करते हुए कई लोगों को मार डाला। इस हमले में हिज़्बुल्लाह के वरिष्ठ सैन्य कमांडर और संस्थापक सदस्य इब्राहीम अक़ील भी शहीद हो गए। जिन्हे ज़ायोनी सेना ने चार मिसाइलों का निशाना बनाया।
पाकिस्तान, तकफ़ीरी आतंकी गुट ने की 5 लोगों की हत्या
पाकिस्तान में एक बार फिर शिया समुदाय को निशाना बनाते हुए टारगेट किलिंग की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। ताज़ा मामला उत्तर-पश्चिम में खैबर पख्तूनख्वा के क्षेत्र का है जहाँ आतंकी गुट ने 5 लोगों को बेरहमी से मौत के घाट उतार कर उनके घरों में आग लगा दी।
आईएसआईएस आतंकी समूह ने एक बयान जारी कर पाकिस्तान के शियाओं के खिलाफ अपने नए अपराध की ज़िम्मेदारी स्वीकार की है।
इस आतंकवादी समूह ने दावा किया कि उसने पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम में खैबर पख्तूनख्वा के "मर्दन" क्षेत्र के "रुस्तम" गांव में पांच शियों को शहीद कर दिया और उनके घर में आग लगा दी। इस आतंकवादी घटना के बारे में अधिक विवरण प्रकाशित नहीं किया गया है।
पिछले कुछ दशकों में सिपाहे सहाबा और लश्कर झांगवी जैसे तकफ़ीरी वहाबी आतंकी संगठनों द्वारा हजारों पाकिस्तानी शियों को शहीद किया गया है, लेकिन यह पहली बार है कि तकफ़ीरी समूह आईएसआईएस ने पाकिस्तान में शियों की शहादत की जिम्मेदारी ली है।