
رضوی
इमाम बाक़िर और ईसाई पादरी
एक बार इमाम बाक़िर (अ.स.) ने अमवी बादशाह हश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हुक्म पर अनचाहे तौर पर शाम का सफर किया और वहा से वापस लौटते वक्त रास्ते मे एक जगह लोगो को जमा देखा और जब आपने उनके बारे मे मालूम किया तो पता चला कि ये लोग ईसाई है कि जो हर साल यहाँ पर इस जलसे मे जमा होकर अपने बड़े पादरी से सवाल जवाब करते है ताकि अपनी इल्मी मुश्किलात को हल कर सके ये सुन कर इमाम बाकिर (अ.स) भी उस मजमे मे तशरीफ ले गऐ।
थोड़ा ही वक्त गुज़रा था कि वो बुज़ुर्ग पादरी अपनी शानो शोकत के साथ जलसे मे आ गया और जलसे के बीच मे एक बड़ी कुर्सी पर बैठ गया और चारो तरफ निगाह दौड़ाने लगा तभी उसकी नज़र लोगो के बीच बैठे हुऐ इमाम (अ.स) पर पड़ी कि जिनका नूरानी चेहरा उनकी बड़ी शख्सीयत की गवाही दे रहा था उसी वक्त उस पादरी ने इमाम (अ.स )से पूछा कि हम ईसाईयो मे से हो या मुसलमानो मे से?????
इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः मुसलमानो मे से।
पादरी ने फिर सवाल कियाः आलिमो मे से हो या जाहिलो मे से?????
इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः जाहिलो मे से नही हुँ।
पादरी ने कहा कि मैं सवाल करूँ या आप सवाल करेंगे
इमाम (अ.स) ने फरमाया कि अगर चाहे तो आप सवाल करें।
पादरी ने सवाल कियाः तुम मुसलमान किस दलील से कहते हो कि जन्नत मे लोग खाऐंगे-पियेंगे लेकिन पैशाब-पैखाना नही करेंगे? क्या इस दुनिया मे इसकी कोई दलील है?
इमाम (अ.स) ने फरमायाः हाँ, इसकी दलील माँ के पेट मे मौजूद बच्चा है कि जो अपना रिज़्क़ तो हासिल करता है लेकिन पेशाब-पेखाना नही करता।
पादरी ने कहाः ताज्जुब है आपने तो कहा था कि आलिमो मे से नही हो।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः मैने ऐसा नही कहा था बल्कि मैने कहा था कि जाहिलो मे से नही हुँ।
उसके बाद पादरी ने कहाः एक और सवाल है।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बिस्मिल्लाह, सवाल करे।
पादरी ने सवाल कियाः किस दलील से कहते हो कि लोग जन्नत की नेमतो फल वग़ैरा को इस्तेमाल करेंगें लेकिन वो कम नही होगी और पहले जैसी हालत पर ही बाक़ी रहेंगे।
क्या इसकी कोई दलील है?
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बेशक इस दुनिया मे इसका बेहतरीन नमूना और मिसाल चिराग़ की लौ और रोशनी है कि तुम एक चिराग़ से हज़ारो चिराग़ जला सकते हो और पहला चिराग़ पहले की तरह रोशन रहेगा ओर उसमे कोई कमी नही होगी।
पादरी की नज़र मे जितने भी मुश्किल सवाल थें सबके सब इमाम (अ.स) से पूछ डाले और उनके बेहतरीन जवाब इमाम (अ.स) से हासिल किये और जब वो अपनी कम इल्मी से परेशान हो गया तो बहुत गुस्से आकर कहने लगाः
ऐ लोगों एक बड़े आलिम को कि जिसकी मज़हबी जानकारी और मालूमात मुझ से ज़्यादा है यहा ले आऐ हो ताकि मुझे ज़लील करो और मुसलमान जान लें कि उनके रहबर और इमाम हमसे बेहतर और आलिम हैं।
खुदा कि क़सम फिर कभी तुमसे बात नही करुगां और अगर अगले साल तक ज़िन्दा रहा तो मुझे अपने दरमियान (इस जलसे) मे नही देखोंगे।
इस बात को कह कर वो अपनी जगह से खड़ा हुआ और बाहर चला गया।।।।।
(ये आरटीकल जनाब मेहदी पेशवाई की किताब "सीमाये पीशवायान" से लिया गया है।)
हज़रत इमाम मोहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अ.स. का जन्म 1 रजब अल-मुरज्जब 57 हिजरी को मदीना में हुआ था। आपका परिवार पवित्रता की पहली कड़ी है, जिसका वंश माता और पिता दोनों की ओर से हज़रत अली इब्न अबी तालिब अ.स. से मिलता है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) का जन्म 1 रजब अल-मुरज्जब 57 हिजरी को मदीना में हुआ था। आपका परिवार पवित्रता की पहली कड़ी है, जिसकी वंशावली माता और पिता दोनों की ओर से हज़रत अली इब्न अबी तालिब (अ) तक मिलती है, क्योंकि आपकी माँ इमाम हसन से हैं और आपके पिता इमाम हुसैन (अ) से है।
उनका उपनाम अबू जाफ़र है और उनकी उपाधियाँ हादी और शाकिर हैं। बाकिर उनकी सबसे प्रसिद्ध उपाधि है।
आपकी इस उपाधि के बारे में जाबिर इब्ने अब्दुल्ला अंसारी की रिवायत है कि अल्लाह के रसूल ने आपको यह उपाधि प्रदान की और मुझसे कहा कि इसका नाम मेरे नाम से मिलता जुलता है और यह लोगों में सबसे ज्यादा मेरे जैसा है। आप उन्हें मेरा सलाम कहना (याकूबी, खंड 2 पृष्ठ 320)।
आपकी शैक्षणिक स्थिति का ज्ञान यह है कि आपको इतिहास में ऐसे शब्द मिलते हैं कि "कुरान की व्याख्या, हलाल और हराम के शब्द और नियम केवल आप ही थे" (इब्न शहर आशोब, मनाकिब आले अबी तालिब, भाग 4, पेज 195) ) और विभिन्न धर्मों के प्रमुखों से शास्त्रार्थ किया।
यह आपके ज्ञान के स्तर के लिए पर्याप्त है कि "इस्लाम की दुनिया के सहाबा, ताबेईन और तबे ताबेईन और महान न्यायविदों ने आपसे धार्मिक शिक्षाओं और आदेशों की नकल की है, आपके परिवार में ज्ञान के आधार पर उत्कृष्टता होगी अकेले।" (शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, भाग 2, पेज 155)
उन्होंने अपने जीवन के चार धन्य वर्ष अपने दादा इमाम हुसैन (अ) की छाया में बिताए और 38 वर्ष अपने पिता अली इब्न अल हुसैन सैयद सज्जाद (अ) की छाया में बिताए। उनकी इमामत की कुल अवधि इसमें 19 वर्ष शामिल हैं।
आप कर्बला की घटना के एकमात्र युवा मासूम गवाह हैं, जिन्होंने कर्बला की दर्दनाक घटनाओं को अपनी आंखों से देखा है जब आप चार साल के थे, तो आप खुद एक जगह कहते हैं, जब मेरे दादा हुसैन बिन अली कर्बला मे शहीद हुए थे तो मैं चार साल का था । आपकी शहादत के समय जो कुछ हुआ वह मेरी आंखों के सामने है (याकूबी, भाग 2, पेज 320)।
आपकी जीवनी
वह लोगों के साथ घुल-मिल जाते थे, लोगों के बीच सादिक और अमीन के नाम से जाने जाते थे, अपने पूर्वजों की तरह कड़ी मेहनत करते थे, इसलिए इतिहास में पाया जाता है कि एक दिन कड़ी धूप में वह खेतों में थे। किसी ने तुम्हें गर्मी में फावड़ा चलाते देखा और कहा, "तुम भी इतनी गर्मी में दुनिया के लिए निकले हो?" ऐसे में अगर आपकी मौत हो जाये तो क्या होगा? आपने उत्तर दिया कि यदि मैं इसी अवस्था में मर जाऊँ तो मैं ईश्वर की आज्ञाकारिता की अवस्था में इस संसार से चला जाऊँगा क्योंकि मैं इस कठिन परिश्रम के द्वारा स्वयं को लोगों से स्वतंत्र कर रहा हूँ।
वह हमेशा ईश्वर के स्मरण में लगे रहते थे और उनके देने-देने की कोई मिसाल नहीं थी (शेख मुफीद, अल-अरशद, खंड 2, पृष्ठ 161)।
इमाम बाकिर (अ.स.) के समय की स्थितियाँ।
इमाम मुहम्मद बाक़िर (एएस) के शासनकाल के दौरान जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, वे बहुत जटिल और आत्मा को कुचलने वाली थीं, कुछ सबसे महत्वपूर्ण कठिनाइयाँ हैं:
- राजनीतिक भ्रष्टाचार: उनकी इमामत के दौरान अल मारवान का शासन था, जिन्होंने अपने शासन के दौरान इस्लामी समाज पर जाहिली रीति-रिवाज और जाहिली विचार थोपे थे और पूरे सरकारी ढांचे में राजनीतिक भ्रष्टाचार था।
- सांस्कृतिक विचलन:
अल-मारवान ने पूरे इस्लामी समाज के जीवन को संस्कृति और संस्कृति के आधार पर विभाजित कर दिया था और किसी को भी समाज में इस्लामी और मुहम्मदी संस्कृति को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं थी और विचलित विचारों की दूरी थी।
- सामाजिक दंगे:
सामूहिक रूप से उस समय के इस्लामी समाज में इतना भ्रष्टाचार था कि जातीय श्रेष्ठता, अन्याय के कीड़े सर्वत्र दिखाई देते थे और उनसे लड़ने की क्षमता किसी में नहीं थी।
इमाम मुहम्मद बाक़िर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इन परिस्थितियों में धीरे-धीरे लोगों को इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं से अवगत कराया और संस्कृति और संस्कृति के क्षेत्र में परिवर्तन को अपना नारा बनाकर चुपचाप समाज की बौद्धिक और बौद्धिक नींव पर काम किया। क्या
इसलिए, मस्जिद-उल-नबी में मुसनद दर बिछाकर, उन्होंने कुरान की आयतों की रोशनी में इस्लामी ज्ञान की प्यास को सींचा और पैगंबर की मस्जिद को इस्लामी संस्कृति के एक शानदार महल में बदल दिया।
उन्होंने जिदु-जिहाद के 19 वर्षों के दौरान गांव-गांव जाकर असंख्य शिष्यों को प्रशिक्षित किया, जिन्होंने इस्लाम की सच्ची छवि पेश की, उनके द्वारा प्रशिक्षित शिष्यों में से 467 लोगों के नाम आज भी स्रोतों में उपलब्ध हैं। शेख तुसी, रिज़ल, 102) जिनमें ज़रारा बिन आयिन, अबू बसीर मोरादी, बारिद बिन मुआविया बिजली, मुहम्मद बिन मुस्लिम थकाफ़ी, फ़ाज़िल बिन यासर, जाबिर बिन यज़ीद जाफ़ी और अन्य अपने आप में एक समूह के रूप में पहचाने जाते हैं।
यह आपके शैक्षणिक और सांस्कृतिक आंदोलन का ही परिणाम है कि आज इमामी स्कूल एक समृद्ध और व्यापक स्कूल के रूप में जाना जाता है।
आज अगर इमामिया स्कूल दुनिया में एक मजबूत अवधारणा वाले धर्म के रूप में जाना जाता है तो यह आपके प्रयासों और कोशिशों का ही नतीजा है।
अकादमिक और बौद्धिक हलकों में जब भी शिया की बात होती है तो आपको कभी भुलाया नहीं जा सकता क्योंकि शिया की बुनियाद और बुनियाद आपकी ही कोशिशों का नतीजा है।
आपअगर अंधेरे और अज्ञानता के अंधेरे में मस्जिद-ए-नबवी में ज्ञान का दीपक नहीं जलाया गया होता, तो शायद आज मुहम्मदी शिक्षाओं के बजाय जाहिली रीति-रिवाजों को पवित्रता मिल गई होती। बाकिर अल मुहम्मद की शहादत जब तक दुनिया में ज्ञान रहेगा दुनिया आपको सलाम करती रहेगी।
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अ.स. का राजनीतिक संघर्ष
हुकूमत इमाम बाकिर अ.स. से हर कुछ दिन पर पूछताछ करके उनको तकलीफ़ देने और उनका ध्यान भटकाने की कोशिश में लगी हुई थी, ज़ाहिर है इमाम अ.स. अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकते थे, ऐसे घुटन के माहौल में इमाम अ.स. ने दीन के अहकाम और इस्लामी वैल्यूज़ को बाक़ी रखने के लिए कई कामयाब रास्ते अपनाए
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इमाम बाक़िर अ.स. के दौर में कैसे कैसे ज़ालिम हाकिम थे और इमाम अ.स. और आपके शियों के लिए हालात कितने सख़्त थे आपने पढ़ा, यहां तक कि इमाम अ.स. से मिलने पर पाबंदी थी, इमाम अ.स. को हर कुछ दिन पर पूछताछ कर के उनको तकलीफ़ देने और उनका ध्यान भटकाने की कोशिश में लगे हुए थे, ज़ाहिर है इमाम अ.स. अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकते थे, ऐसे घुटन के माहौल में इमाम अ.स. ने दीन के अहकाम और इस्लामी वैल्यूज़ को बाक़ी रखने के लिए कई कामयाब रास्ते अपनाए जिनको हम इस भाग में आपके सामने पेश कर रहे हैं।
तक़य्या
तक़य्या की अहमियत के बारे में इमाम बाक़िर अ.स. फ़रमाते हैं कि तक़य्या मेरे और मेरे वालिद के दीन का हिस्सा है जो तक़य्या पर ईमान नहीं रखता उसका ईमान ही कामिल नहीं। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 431)
तक़य्या करने की परिस्तिथियां भी बयान की गई हैं जैसे जान का ख़तरा, अपनी कमाई के लुटने का ख़तरा, इस्लामी वैल्यूज़ की नाबूदी का ख़तरा वग़ैरह... इन हालात में इंसान तक़य्या पर अमल करते हुए इन ख़तरों से ख़ुद को बचा सकता है।
रिवायत में है कि हमरान ने इमाम बाक़िर अ.स. की इस हदीस को सुन कर आपसे सवाल किया कि आपका इमाम अली अ.स. और इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. के बारे में क्या कहना है? इमाम अ.स. ने फ़रमाया ऐ हमरान, अल्लाह ने उन लोगों के लिए उसी तरह ही शहादत लिखी थी और अल्लाह ने पैग़म्बर स.अ. द्वारा उन सभी घटनाओं का इल्म इन पाक हस्तियों तक पहुंचा दिया था इसलिए वह जानते हुए उन तमाम घटनाओं पर सब्र के साथ उसी राह में डटे हुए थे क्योंकि अल्लाह की यही मर्ज़ी थी। (उसूले काफ़ी, जिल्द 2, पेज 30)
इस्लामी हाकिमों को उनकी ज़िम्मेदारी बताना
इमाम अ.स. की यही कोशिश थी कि वह इस्लामी हाकिमों को उनकी ज़िम्मेदारी याद दिलाएं, और आप उनके ग़लत फ़ैसले और उनके ज़ुल्म पर उनकी आलोचना भी करते थे और उनको याद दिलाते रहते थे कि उन्होंने ख़िलाफ़त और हुकूमत को अहलेबैत अ.स. से छीना है, जैसे आपने फ़रमाया पांच चीज़ों पर इस्लाम की बुनियाद रखी गई है, नमाज़, ज़कात, रोज़ा, हज और विलायत, ज़ोरारह ने पूछा इनमें से कौन बेहतर है? इमाम अ.स. ने फ़रमाया विलायत सबसे बेहतर है क्योंकि इमाम ही वह है जो इन चारों की ओर लोगों की हिदायत करेगा। (उसूले काफ़ी, जिल्द 2, पेज 18)
ज़ालिम हुकूमत के सहयोग से रोकना
इमाम अ.स. हमेशा मोमेनीन को ज़ालिम हुकूमत के हर तरह के सहयोग से रोकते, और अपने इस पैग़ाम को हर कुछ समय पर उम्मत तक पहुंचाते, अक़बा इब्ने बशीर असदी का बयान है कि मैंने इमाम बाक़िर अ.स. से कहा कि मैं अपनी क़ौम में से सबसे अच्छे ख़ानदान से हूं, मेरी क़ौम के मामलों को हल करने वाला अब इस दुनिया में नहीं रहा और क़ौम वालों ने अब मुझे उसकी जगह क़ौम के मामलों की देखभाल का ज़िम्मेदार बनाने का इरादा किया है इस बारे में आपका क्या विचार है?
इमाम अ.स. ने फ़रमाया अगर जन्नत में जाना पसंद नहीं तो जाओ क़ौम के मामलों के ज़िम्मेदार बन जाओ, क्योंकि कभी कभी ज़ालिम हाकिम मुसलमानों पर हुकूमत ही इसी लिए करता है ताकि उनका ख़ून बहा सके, तुम हुकूमत के एक छोटे पद को ही स्वीकार करने की बात कर रहे हो लेकिन फिर भी उन्हीं ज़ालिम हाकिमों के जुर्म और अपराध में शामिल रहोगे, ऐसा तो हो सकता है उनकी हुकूमत से तुमको थोड़ा सा भी फ़ायदा न मिले लेकिन उनकी जुर्म की दुनिया के हिस्सेदार ज़रूर कहलाओगे, तभी वहीं बैठे एक शख़्स ने सवाल किया कि मैं हज्जाज के दौर से अब तक (किसी इलाक़े का) हाकिम रहा हूं क्या मेरे लिए तौबा का कोई रास्ता है? इमाम अ.स. उसके सवाल को सुन कर चुप हो गए उसने अपना सवाल फिर दोहराया, इमाम अ.स. ने फ़रमाया जिस जिस का हक़ छीना गया है (चाहे ज़ुल्म किया हो चाहे माल लूटा हो चाहे किसी और तरह से हक़ छीना गया हो) उन सब को उनका हक़ वापस लौटा कर ही तौबा क़ुबूल हो सकती है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 377)
इमाम अ.स. के शियों में से अब्दुल ग़फ़्फ़ार इब्ने क़ासिम नाम के एक शख़्स का बयान है कि मैंने इमाम बाक़िर अ.स. से कहा मेरे हाकिम से क़रीब होने और उसके दरबार में आने जाने के बारे में आपका क्या कहना है? इमाम अ.स. ने फरमाया मेरी नज़र में सही नहीं है, मैंने कहा कभी शाम जाना होता है तो इब्राहीम इब्ने वलीद के पास भी चला जाता हूं? इमाम अ.स. ने फ़रमाया ऐ अब्दुल ग़फ़्फ़ार तुम्हारा हाकिमों के साथ उठने बैठने और उनके दरबार में आने जाने से तीन नुक़सान हैं, पहला यह कि तुम्हारे दिल में दुनिया की मोबब्बत बढ़ेगी दूसरा यह कि मौत को भूल जाओगे और तीसरा यह कि अल्लाह ने जो तुम्हारे मुक़द्दर में रखा है उससे नाराज़ रहोगे।
अब्दुल ग़फ़्फ़ार कहते हैं मैंने कहा मेरा वहां जाने का मक़सद केवल व्यापार करना रहता है, इमाम अ.स. ने फ़रमाया ऐ अल्लाह के बंदे मैं दुनिया से पूरी तरह मुंह मोड़ लेने के लिए नहीं कह रहा बल्कि मेरे कहने का मतलब यह है कि हराम कामों और गुनाहों से बचो, दुनिया की चकाचौंध से मुंह मोड़ लेना फ़ज़ीलत है लेकिन गुनाह को छोड़ना वाजिब है, और इस समय तुम्हारे लिए फ़ज़ीलत हासिल करने से ज़्यादा गुनाहों से बचना ज़रूरी है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 377)
इसी तरह जब लोग मदीने के नए हाकिम के पास मुबारकबाद के लिए जा रहे थे इमाम अ.स. ने फ़रमाया मदीने के नए हाकिम का घर जहन्नम के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है। (उसूल काफ़ी, जिल्द 5, पेज 105)
खुलेआम विरोध करना
इमाम बाक़िर अ.स. ने एक ओर से ज़ालिम हुकूमत के विरुध्द हज़रत ज़ैद और हज़रत मुख़्तार जैसों के आवाज़ उठाने का समर्थन किया दूसरी ओर आपने ख़ुद जब भी सही समय देखा ज़ालिम हुकूमत का विरोध कर उनकी आलोचना की, आप फ़रमाते थे कि जो भी किसी ज़ालिम और पापी हाकिम के पास जा कर उसको तक़वा की ओर दावत देगा और उसके नेक रास्ते पर चलने की नसीहत करेगा उसको सारे इंसानों और जिन्नातों के बराबर सवाब मिलेगा। (बिहारुल अनवार, जिल्द 75, पेज 375, वसाएलुश शिया, जिल्द 11, पेज 406)
इसी तरह आपने सभी ज़ालिम हाकिमों की हुकूमत को हराम बताते हुए उनके ख़िलाफ़ विरोध करने को सही ठहराया था। (उसूले काफ़ी, जिल्द 1, पेज 184)
हश्शुद शआबी को खत्म करने के हम पूरी तरीके से खिलाफ
इराक़ के पूर्व प्रधानमंत्री और कानून राज्य गठबंधन के प्रमुख ने कहा,हम विशेष रूप से हश्शुद शआबी को भंग करने के बारे में किसी भी पक्ष की बात को स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि यह एक आधिकारिक संस्था है और सशस्त्र बलों के कमांडर इन चीफ के साथ जुड़ी हुई है हथियारों पर नियंत्रण और उन्हें सरकार के अधीन रखना आवश्यक है।
,एक रिपोर्ट के अनुसार ,इराक़ के पूर्व प्रधानमंत्री और कानून राज्य गठबंधन के प्रमुख ने कहा कि संसद की छुट्टियों के बाद चुनावी कानून में सुधार पर चर्चा की जाएगी उन्होंने कहा,राजनीतिक प्रक्रिया में सद्र आंदोलन की भागीदारी आवश्यक है।
गठबंधन बनाने को लेकर हमारे पास कोई लाल रेखा नहीं है, लेकिन अब तक कोई गठबंधन नहीं बना है और समन्वय फ्रेमवर्क ने आगामी चुनावों में एकल सूची के रूप में भाग लेने पर सहमति नहीं बनाई है।
शफ़क़ना और इराक की आधिकारिक समाचार एजेंसी के अनुसार अलमालिकी ने कहा कि बगदाद सीरिया के विभाजन में कोई मदद नहीं करेगा। उन्होंने कहा,सीरिया में जो कुछ हुआ, वह अप्रत्याशित नहीं था बल्कि इसकी पहले से तैयारी की गई थी।
उन्होंने कहा,सीरिया में असद सरकार के पतन के बाद इज़रायली शासन ने दमिश्क़ तक बढ़त हासिल की लेबनान की नाकाबंदी कर दी गई और फिलिस्तीन के मुद्दे को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है तुर्की भी आगे बढ़ेगा। हम उम्मीद करते हैं कि बदलावों की यह आंधी संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और सऊदी अरब तक पहुंचेगी।
इराक़ के पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा,राष्ट्रीय एकता और राजनीतिक ताकतों की समझदारी राजनीतिक प्रक्रिया को बनाए रखने की मजबूत दीवार होगी इस बीच प्रतिबंधित ‘बाथ पार्टी’ फितना और साजिश फैलाने की कोशिश कर रही है। उन्हें समाज और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा कड़ी निगरानी में रखा जाना चाहिए।
कानून राज्य गठबंधन के प्रमुख ने कहा,मैं 7 अक्टूबर की घटना में साजिश होने की संभावना को खारिज करता हूं। इस्राइली शासन को अपने इतिहास में पहली बार अपमान का सामना करना पड़ा है।
अंत में अल मालिकी ने कहा,हम विशेष रूप से हश्सुद अलशाबी को भंग करने के बारे में किसी भी पक्ष की बात को स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि यह एक आधिकारिक संस्था है और सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ के साथ जुड़ी हुई है। हथियारों पर नियंत्रण और उन्हें सरकार के अधीन रखना आवश्यक है।
शहीद जनरल कासिम सुलेमानी
शहीद जनरल कासिम सुलेमानी शहादत के इस सफर में अकेले नहीं थे और उनके साथ ईरान के सबसे करीबी लोगों में से एक अबू महदी अल-मुहंदिस भी शहीद हुए थे।
शहादत के इस सफर में शहीद जनरल कासिम सुलेमानी अकेले नहीं थे और उनके साथ ईरान के सबसे करीबी लोगों में से एक अबू महदी अल-मुहंदिस भी शहीद हुए थे। अबू महदी, जिसने इराक में बाअसी शासन के खिलाफ युद्ध के बाद से ईरान का समर्थन कर रहे थे, उन्होने हाल के वर्षों में आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई में कासिम सुलेमानी का पक्ष लिया था।
शहीद कासिम सुलेमानी की जीवनशैली सभी के लिए एक आदर्श
ईरान के लोरेस्तान प्रांत में प्रतिनिधि वली फकीह ने कहा: ईमानदारी और संरक्षकता हज कासिम स्कूल की प्रमुख विशेषताओं में से हैं।
ख़ुर्रमाबाद के प्रतिनिधि से बातचीत के दौरान लुरेस्टन प्रांत में वली फ़िक़ह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अहमद रज़ा शाहरुखी ने कहा: "सरदार शहीद क़ासिम सुलेमानी, जो दिलों के नेता हैं, उनकी जीवन शैली एक आदर्श उदाहरण है हम सभी को इस शहीद के जीवन के प्रमुख पहलुओं को समाज के सभी वर्गों, विशेषकर युवा पीढ़ी को समझाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा: शहीद हज कासिम सुलेमानी ने उन्हीं विचारों और सिद्धांतों के साथ इस्लामी भूमि की रक्षा की और क्रांति के सर्वोच्च नेता मुदज़िला अल-अली ने भी उन्हें एक स्कूल के रूप में पेश किया।
खुर्रमाबाद के इमाम जुमा ने कहा: हज कासिम के स्कूल में कई महत्वपूर्ण तत्व शामिल हैं। वक्ताओं, शोधकर्ताओं और लेखकों को अपने उपदेशों और लेखों में इन तत्वों का वर्णन करना चाहिए।
हुज्जतुल-इस्लाम वाल-मुस्लिमीन शाहरखी ने हज कासिम स्कूल की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख किया और कहा: ईमानदारी, दासता, अखंडता और पवित्रता के लिए अहल अल-बेत का प्यार, संरक्षकता, साहस और बहादुरी इस स्कूल की मुख्य विशेषताएं हैं।
उन्होंने आगे कहा: शहादत, युद्ध के मैदान में निडरता और उत्पीड़ितों और वंचितों के समर्थन के लिए देश की सीमाओं के बाहर उपस्थिति भी हज कासिम स्कूल की विशेषताओं में से एक है।
मध्य पूर्व में स्थिरता स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य के बिना संभव नहीं
फिलिस्तीनी तहरीक फतह ने एक बार फिर ज़ोर देकर कहा है कि गाजा पर इजरायल की आक्रमकता को समाप्त करना गाजा और पश्चिमी तट का पुन, एकीकरण करना और यरुशलम को राजधानी घोषित करके फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
एक रिपोर्ट के अनुसार , फिलिस्तीनी आंदोलन फतह ने एक बार फिर इस बात पर ज़ोर दिया है कि गाज़ा पर इज़राइल की आक्रामकता को समाप्त करना गाज़ा और पश्चिमी तट का पुनः एकीकरण करना, और यरुशलम को राजधानी घोषित करके फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
फतह आंदोलन ने फिलिस्तीन क्रांति की साठवीं वर्षगांठ के अवसर पर जारी एक बयान में कहा कि एक स्वतंत्र और स्वायत्त फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के बिना मध्य पूर्व में शांति, स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करना असंभव है।
बयान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चुप्पी की निंदा की गई है, जो इज़राइल को गाज़ा में नरसंहार की लड़ाई जारी रखने, पश्चिमी तट पर हमलों गिरफ्तारियों और सामूहिक सज़ा की नीतियों को बढ़ावा देने का प्रोत्साहन दे रही है इसलिए फिलिस्तीनी राज्य के बिना न तो शांति संभव है और न ही मध्य पूर्व में वास्तविक सहअस्तित्व।
अधिक ठंड के कारण ग़ाज़ा में कई बच्चों की मौत
संघर्ष और ठंड के कारण ग़ाज़ा में कई बच्चों की मौत,हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक महज़ हफ़्तेभर में ग़ाज़ा में 6 बच्चों की सर्दी के कारण मौत हो गई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,संघर्ष और ठंड के कारण ग़ाज़ा में कई बच्चों की मौत,हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक महज़ हफ़्तेभर में ग़ाज़ा में 6 बच्चों की सर्दी के कारण मौत हो गई है।
दरअसल भीषण ठंड में भी बेघर हो चुके हज़ारों फ़िलस्तीनी टेंट्स में रहने के लिए मजबूर हैं यूएन का कहना है कि इसराइल की पाबंदियों की वजह से ग़ाज़ा में मदद नहीं पहुंचा पा रही है।
इसराइल के जुल्म के कारण ग़ज़ा में सहायता पहुंचाने से कई अंजुमन वंचित है ग़ज़ा में इजरायल के फौजी किसी भी चीज को प्रवेश होने की अनुमति नहीं दे रहे हैं जिसके कारण परिवार के कई सदस्य और बच्चे मर चुके हैं
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का जीवन परिचय
नाम व लक़ब (उपाधियां)
आपका नाम मुहम्मद व आपका मुख्य लक़ब बाक़िरूल उलूम है।
जन्म तिथि व जन्म स्थान
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 57 हिजरी मे रजब मास की प्रथम तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।
माता पिता
हज़रत इमाम बाकिर अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़ातिमा पुत्री हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम हैं।
पालन पोषण
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का पालन पोषण तीन वर्षों की आयु तक आपके दादा इमाम हुसैन व आपके पिता इमाम सज्जाद अलैहिमुस्सलाम की देख रेख मे हुआ। जब आपकी आयु साढ़े तीन वर्ष की थी उस समय कर्बला की घटना घटित हुई। तथा आपको अन्य बालकों के साथ क़ैदी बनाया गया। अर्थात आप का बाल्य काल विपत्तियों व कठिनाईयों के मध्य गुज़रा।
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम का शिक्षण कार्य़
इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत की अवधि मे शिक्षा के क्षेत्र मे जो दीपक ज्वलित किये उनका प्रकाश आज तक फैला हुआ हैं। इमाम ने फ़िक़्ह व इस्लामी सिद्धान्तो के अतिरिक्त ज्ञान के अन्य क्षेत्रों मे भी शिक्षण किया। तथा अपने ज्ञान व प्रशिक्षण के द्वारा ज्ञानी व आदर्श शिष्यों को प्रशिक्षित कर संसार के सम्मुख उपस्थित किया। आप अपने समय मे सबसे बड़े विद्वान माने जाते थे। महान विद्वान मुहम्मद पुत्र मुस्लिम ,ज़ुरारा पुत्र आयुन ,अबु नसीर ,हश्शाम पुत्र सालिम ,जाबिर पुत्र यज़ीद ,हिमरान पुत्र आयुन ,यज़ीद पुत्र मुआविया अजःली ,आपके मुख्यः शिष्यगण हैं।
इब्ने हज्रे हीतमी नामक एक सुन्नी विद्वान इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के ज्ञान के सम्बन्ध मे लिखता है कि इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने संसार को ज्ञान के छुपे हुए स्रोतो से परिचित कराया। उन्होंने ज्ञान व बुद्धिमत्ता का इस प्रकार वर्नण किया कि वर्तमान समय मे उनकी महानता सब पर प्रकाशित है।ज्ञान के क्षेत्र मे आपकी सेवाओं के कारण ही आपको बाक़िरूल उलूम कहा जाता है। बाक़िरूल उलूम अर्थात ज्ञान को चीर कर निकालने वाला।
अब्दुल्लाह पुत्र अता नामक एक विद्वान कहता है कि मैंने देखा कि इस्लामी विद्वान जब इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की सभा मे बैठते थे तो ज्ञान के क्षेत्र मे अपने आपको बहुत छोटा समझते थे। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने कथनो को सिद्ध करने के लिए कुऑन की आयात प्रस्तुत करते थे। तथा कहते थे कि मैं जो कुछ भी कहूँ उसके बारे मे प्रश्न कर ?मैं बताऊँगा कि वह कुरआन मे कहाँ पर है।
इमाम बाक़िर और ईसाई पादरी
एक बार इमाम बाक़िर (अ.स.) ने अमवी बादशाह हश्शाम बिन अब्दुल मलिक के हुक्म पर अनचाहे तौर पर शाम का सफर किया और वहा से वापस लौटते वक्त रास्ते मे एक जगह लोगो को जमा देखा और जब आपने उनके बारे मे मालूम किया तो पता चला कि ये लोग ईसाई है कि जो हर साल यहाँ पर इस जलसे मे जमा होकर अपने बड़े पादरी से सवाल जवाब करते है ताकि अपनी इल्मी मुश्किलात को हल कर सके ये सुन कर इमाम बाकिर (अ.स) भी उस मजमे मे तशरीफ ले गऐ।
थोड़ा ही वक्त गुज़रा था कि वो बुज़ुर्ग पादरी अपनी शानो शोकत के साथ जलसे मे आ गया और जलसे के बीच मे एक बड़ी कुर्सी पर बैठ गया और चारो तरफ निगाह दौड़ाने लगा तभी उसकी नज़र लोगो के बीच बैठे हुऐ इमाम (अ.स) पर पड़ी कि जिनका नूरानी चेहरा उनकी बड़ी शख्सीयत की गवाही दे रहा था उसी वक्त उस पादरी ने इमाम (अ.स )से पूछा कि हम ईसाईयो मे से हो या मुसलमानो मे से ?????
इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः मुसलमानो मे से।
पादरी ने फिर सवाल कियाः आलिमो मे से हो या जाहिलो मे से ?????
इमाम (अ.स) ने जवाब दियाः जाहिलो मे से नही हुँ।
पादरी ने कहा कि मैं सवाल करूँ या आप सवाल करेंगे ?????
इमाम (अ.स) ने फरमाया कि अगर चाहे तो आप सवाल करें।
पादरी ने सवाल कियाः तुम मुसलमान किस दलील से कहते हो कि जन्नत मे लोग खाऐंगे-पियेंगे लेकिन पैशाब-पैखाना नही करेंगे ?क्या इस दुनिया मे इसकी कोई दलील है ?
इमाम (अ.स) ने फरमायाः हाँ ,इसकी दलील माँ के पेट मे मौजूद बच्चा है कि जो अपना रिज़्क़ तो हासिल करता है लेकिन पेशाब-पेखाना नही करता।
पादरी ने कहाः ताज्जुब है आपने तो कहा था कि आलिमो मे से नही हो।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः मैने ऐसा नही कहा था बल्कि मैने कहा था कि जाहिलो मे से नही हुँ।
उसके बाद पादरी ने कहाः एक और सवाल है।
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बिस्मिल्लाह ,सवाल करे।
पादरी ने सवाल कियाः किस दलील से कहते हो कि लोग जन्नत की नेमतो फल वग़ैरा को इस्तेमाल करेंगें लेकिन वो कम नही होगी और पहले जैसी हालत पर ही बाक़ी रहेंगे।
क्या इसकी कोई दलील है ?
इमाम (अ.स) ने फरमायाः बेशक इस दुनिया मे इसका बेहतरीन नमूना और मिसाल चिराग़ की लौ और रोशनी है कि तुम एक चिराग़ से हज़ारो चिराग़ जला सकते हो और पहला चिराग़ पहले की तरह रोशन रहेगा ओर उसमे कोई कमी नही होगी।
पादरी की नज़र मे जितने भी मुश्किल सवाल थें सबके सब इमाम (अ.स) से पूछ डाले और उनके बेहतरीन जवाब इमाम (अ.स) से हासिल किये और जब वो अपनी कम इल्मी से परेशान हो गया तो बहुत गुस्से आकर कहने लगाः
ऐ लोगों एक बड़े आलिम को कि जिसकी मज़हबी जानकारी और मालूमात मुझ से ज़्यादा है यहा ले आऐ हो ताकि मुझे ज़लील करो और मुसलमान जान लें कि उनके रहबर और इमाम हमसे बेहतर और आलिम हैं।
खुदा कि क़सम फिर कभी तुमसे बात नही करुगां और अगर अगले साल तक ज़िन्दा रहा तो मुझे अपने दरमियान (इस जलसे) मे नही देखोंगे।
इस बात को कह कर वो अपनी जगह से खड़ा हुआ और बाहर चला गया।
हज़रते इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के कथन
१. जो शख़्स किसी मुसलमान को धोका दे या सताये वह मुसलमान नहीं।
२. यतीम बच्चों पर माँ बाप की तरह मेहरबानी करो।
३. खाने से पहले हाथ धोने से फ़ख़्र (निर्धनता) कम होता है और खाने के बाद हाथ धोने से ग़ुस्सा (क्रोध) ।
४. क़र्ज़ कम करो ताकि आज़ाद रहो और गुनाह (पाप) कम करो ताकि मौत में आसानी हो।
५. हमेशा नेक काम करो ताकि फ़ायदा उठाओ बुरी बातों से परहेज़ (बचो) करो ताकि हमेशा महफ़ूज़ (सुरक्षित) रहो।
६. ताअत (अनुसरण) व क़नाअत (आत्मसंतोष) बे नियाज़ी (बे परवाही) और इज़्ज़त का बायस है और गुनाह व लालच बदबख़्ती (अभाग्य) और ज़िल्लत का मोजिब (कारण) है।
७. जिस लज़्ज़त में अन्जाम कार पशेमानी हो नेकी नहीं।
८. दुनिया फ़क़त दो आदमियों के लिये बायसे ख़ैर (शुभ होने का कारण) है एक वह जो नेक आमाल में रोज़ इज़ाफ़ा करे ,दूसरा वह जो गुज़िश्ता गुनाहों (भूतकालीन पाप) की तलाफ़ी तौबा (प्रायश्चित) के ज़रिये करे।
९. अक़लमन्द वह है जिसका किरदार (चरित्र) उसकी गुफ़्तार (कथन) की तसदीक़ (प्रमाणित) करे और लोगों से नेकी का बर्ताव (व्यवहार) करे।
१०. बदतरीन शख़्स वह जो अपने को बेहतरीन (अच्छा) शख़्स ज़ाहिर करे।
११. अपने दोस्त के दुश्मनों से रफ़ाक़त (मित्रता) मत करो वरना अपने दोस्त को गवाँ (खो) दोगे।
१२. हर काम को उसके वक़्त (समय) पर अन्जाम (पूरा करो) दो जल्दबाज़ी से परहेज़ (बचो) करो।
१३. बड़े गुनाहों का कफ़्फ़ारा (रहजाना) बेकसों की मदद और ग़मज़दो की दिलजूई में है।
१४. जो दिन गुज़र गया वह तो पलट कर आयेगा नहीं और आने वाले कल पर भरोसा किया नहीं जा सकता।
१५. हर इन्सान अपनी ज़बान के नीचे पोशीदा (छिपा) है जब बात करता है तो पहचाना जाता है।
१६. माहे मुबारक रमज़ान के रोज़े अज़ाबे इलाही के लिये ढाल हैं।
१७. काहिली से बचो (क्योंकि) काहिल अपने हुक़ूक़ (हक़ का बहु वचन) अदा नहीं कर सकता।
१८. तुम में सबसे ज़्यादा अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो नादानों (अज्ञानियों) से फ़रार ( दूर भागे) करे।
१९. बुज़ुर्गों (अपने से बड़ों का) का एहतेराम (आदर) करो क्योंकि उनका एहतेराम (आदर) ख़ुदा की इबादत (तपस्या) के मानिन्द (तरह) है।
२०. सिल्हे रहम (अच्छा सुलूक) घरों की आबादी और तूले उम्र (दीर्घायु) का बायस (कारण) है।
२१. इसराफ़ (अपव्यय) में नेकी (अच्छाई) नहीं और नेकियों में इसराफ़ का वुजूद (अस्तित्व) नहीं।
२२. जिस मामले में पूरी वाक़्फ़ियत (जानकारी) नहीं उसमें दख़्ल मत दो वरना (मौक़े की ताक में रहने वाले) बुरे और बदकिरदार (दुष्कर्मी) लोग तुमकों मलामत का निशाना बनायेंगे।
२३. हमेशा लोगों से सच बोलो ताकि सच सुनों (याद रखो) सच्चाई तलवार से भी ज़्यादा तेज़ है।
२४. लोगों से मुआशेरत (अच्छा रहन सहन) निस्फ़ (आधा) ईमान है और उनसे नर्म बर्ताव आधी ज़िन्दगी।
२५. ज़ुल्म (अन्याय) फ़ौरी (तुरन्त) अज़ाब का बायस है।
२६. नागहानिए हादसात (अचानक घटनायें) से बचाने वाली कोई चीज़ दुआ से बेहतर नहीं ।
२७. मुनाफिक़ (जिसका अन्दरुनी और बाहरी व्यवहार में अन्तर हो ) से भी ख़ुश अख़लाक़ी से बात करो ।
२८. मोमिन से दोस्ती में ख़ुलूस पैदा करो ।
२९. हक़ (सत्य) के रास्ते (पथ) पर चलने के लिए सब्र का पेशा इख़्तियार करो ।
३०. ख़ुदावन्दे आलम मज़लूमों (जिनके साथ अन्याय किया गया हो) की फ़रयाद को सुनता है और सितमगारों (जिन्होंने ज़ुल्म किया हो) के लिए कमीनगाह में है ।
३१. सलाम और ख़ुश गुफ़्तारी गुनाहों से बख़्शिश (मुक्ति) का बायस (कारण) है।
३२. इल्म (ज्ञान) हासिल (प्राप्त) करो ताकि लोग तुम्हें पहचानें और उस पर अमल करो ताकि तुम्हारा शुमार ओलमा (ज्ञानियों) में हो।
३३. इबादते इलाही में ख़ास ख़्याल रखो आमाले ख़ैर (शुभकार्य) में जल्दी करो और बुराईयों से इज्तेनाब (बचो) करो।
३४. जब कोई मरता है तो लोग पूछते हैं क्या छोड़ा लेकिन जब फ़रिश्ते (ईश्वरीय दूत) सवाल करते हैं क्या भेजा ?
३५. बेहतरीन इन्सान वह है जिसका वजूद दूसरों के लिये फ़ायदा रसां (लाभकारी) हो।
३६. क़ायम आले मोहम्मद (अ.स.) वह इमाम हैं जिनको ख़ुदावन्दे आलम तमाम मज़ाहब पर ग़लबा ऐनायत (प्रदान) करेगा।
३७. खाना ख़ूब चबाकर खाओ और सेर होने से पहले खाना छोड़ दो।
३८. ख़ालिस इबादत (सच्चे मन से तपस्या) यह है कि इन्सान ख़ुदा के सिवा किसी से उम्मीदवार न हो और अपने गुनाहों के अलावा किसी से डरे नहीं।
३९. उजलत (जल्दी) हर काम में नापसन्दीदा मगर रफ़े शर (बुराई को दूर करने में) में।
४०. जिस तरह इन्सान अपने लिये तहक़ीराना (अनादर) लहजा नापसन्द करता है दूसरों से भी तहक़ीराना (अनादर) लहजे में गुफ़्तगू (बात चीत) न करे।
शहादत (स्वर्गवास)
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 114 हिजरी मे ज़िलहिज्जा मास की सातवीँ (7) तिथि को सोमवार के दिन हुई। बनी उमैय्या के ख़लीफ़ा हश्शाम पुत्र अब्दुल मलिक के आदेशानुसार एक षड़यन्त्र के अन्तर्गत आपको विष पान कराया गया। शहादत के समय आपकी आयु 57 वर्ष थी।
समाधि
हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मदीने के जन्नातुल बक़ी नामक कब्रिस्तान मे है। प्रत्येक वर्ष लाखो श्रृद्धालु आपकी समाधि पर सलाम व दर्शन हेतू जाते हैं।
हज 2025;हज यात्रियों की सुविधा के लिए हज खर्च जमा करने की अंतिम तारीख 6 जनवरी
हज कमिटी ऑफ इंडिया ने हज यात्रियों की सुविधा के लिए और जनमानस की मांग पर वेटिंग लिस्ट में चयनित हज यात्रियों के लिए हज खर्च की पहली और दूसरी किस्त की राशि ₹2,72,300 जमा करने की अंतिम तारीख 6 जनवरी 2025 तक बढ़ा दी है।
एक रिपोर्ट के अनुसार , नई दिल्ली/ हज कमिटी ऑफ इंडिया ने हज यात्रियों की सुविधा के लिए और जनमानस की मांग पर वेटिंग लिस्ट में चयनित हज यात्रियों के लिए हज खर्च की पहली और दूसरी किस्त की राशि ₹2,72,300 जमा करने की अंतिम तारीख 6 जनवरी 2025 तक बढ़ा दी है।
ड्रॉ में पहले से चयनित हज यात्री भी 6 जनवरी तक हज खर्च की दूसरी किस्त ₹1,42,000 जमा कर सकते हैं।
हज कमिटी ऑफ इंडिय द्वारा जारी सर्कुलर में हज यात्रियों से इस सुविधा का लाभ उठाने की अपील की गई है यह अंतिम तारीख है और इसके बाद किसी और विस्तार की संभावना नहीं है।
हज यात्री https://hajcommittee.gov.in वेबसाइट या हज सुविधा ऐप के माध्यम से क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, या यूपीआई द्वारा ई-पेमेंट कर सकते हैं।
यात्री स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की किसी भी शाखा में पे-इन स्लिप और बैंक रेफरेंस नंबर के जरिए हज समिति के खाते में राशि जमा कर सकते हैं।
वेटिंग लिस्ट से चयनित यात्री, राशि जमा करने के बाद 8 जनवरी 2025 तक निम्नलिखित दस्तावेज
जमा करें:
- मूल अंतर्राष्ट्रीय पासपोर्ट (मशीन रीडेबल) और उसका स्व-सत्यापित कॉपी।
- मेडिकल स्क्रीनिंग और फिटनेस प्रमाणपत्र।
- शपथ पत्र।
- बैंक की पे स्लिप।
- हज आवेदन फॉर्म की प्रति।
हज खर्च की तीसरी किस्त की घोषणा हवाई यात्रा किराए और सऊदी अरब में होने वाले खर्चों के निर्धारण के बाद की जाएगी।
अधिक जानकारी के लिए
हज कमिटी ऑफ इंडिया,
की वेबसाइट https://hajcommittee.gov.in या राज्य हज समितियों के कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।