رضوی
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम और बीबी शतीता
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम के ज़माने मे नेशापुर के शियो ने मौहम्मद बिन अली नेशापुरी नामी शख़्स कि जो अबुजाफर खुरासानी के नाम से मशहूर था, को कुछ शरई रकम और तोहफे साँतवे इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे मदीने पहुँचाने के लिऐ दी।
उन्होंने तीस हज़ार दीनार, पचास हज़ार दिरहम, कुछ लिबास और कुछ कपड़े दिये और साथ ही साथ एक कापी भी दी कि जिस पर सील लगी हुई थी और उसके हर पेज पर एक मसला लिखा हुआ था और उस से कहा था कि जब भी इमाम की खिदमत मे पहुँचो सवालो की कापी इमाम को दे देना और अगले दिन उस कापी को उनसे वापस ले लेना अगर इस कापी की सील नही टूटी तो खुद इस की सील को तोड़ लेना और देख कि इमाम ने बग़ैर सील तोड़े हमारे सवालो के जवाब दिये है या नही? अगर सील तोड़े बग़ैर इन सवालो के जवाब लिख दिये गऐ है तो समझ लेना कि यही इमामे बर हक़ हैं और हमारे माल को लेने के लायक़ है वरना हमारे माल को वापस पलटा लाना।
इस तरह खुरासान के शिया ये चाहते थे कि हक़ीकी इमाम को पहचाने और उन पर यक़ीन करे और इसके ज़रीऐ से इमामत का झूठा दावा करने वालो के फरेब और धोके से बचे और जिस वक्त नेशापुर के रहने वालो का ये नुमाइंदा मौहम्मद बिन अली नेशापुरी अपने सफर के लिऐ चलने लगा तो एक बुज़ुर्ग खातून कि जिनका नाम शतीता था और वो अपने ज़माने के नेक और पारसा लोगो से एक थी, मौहम्मद बिन अली नेशापुरी के पास आई एक दिरहम और एक कपड़े का टुकड़ा उसे दिया और कहाः ऐ अबुजाफर मेरे माल मे से ये मिक़दार हक़्क़े इमाम है इसे इमाम की खिदमत मे पहुचां दे।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने उनसे कहाः मुझे शर्म आती है कि इतने थोड़े से माल को इमाम को दूँ।
जनाबे शतीता ने उस से कहाः खुदा वंदे आलम किसी के हक़ से शरमाता नही है (यानी ये कि इमाम के हक़ को देना ज़रूरी है चाहे वो कम ही क्यूं न हो) बस यही माल मेरे ज़िम्मे है और चाहती हूँ कि इस हाल मे परवरदिगार से मुलाक़ात करूँ कि हक़्क़े इमाम मे से कुछ भी मेरी गर्दन पर न हो।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने जनाबे शतीता की वो ज़रा सी रकम ली और मदीने चला गया और मदीने पहुँच कर अब्दुल्लाह अफतह1 का इम्तेहान लेकर ये समझ गया कि अब्दुल्लाह अफतह इमामत के क़ाबिल नही है और नाउम्मीदी की हालत मे उसके घर से निकला उसके बाद एक बच्चे ने उसे इमाम काज़िम के घर की तरफ हिदायत की।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने जब इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे पहुँचा तो इमाम (अ.स) ने उस से फरमाया कि ऐ अबुजाफर नाउम्मीद क्यो हो रहे हो?? मेरे पास आओ मैं वलीऐ खुदा और उसकी हुज्जत हुँ। मैने कल ही तुम्हारे सवालो के जवाब दे दिये है उन सवालो के मेरे पास लाओ और शतीता की दी हुई एक दिरहम को भी मुझे दो।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैं इमाम काज़िम (अ.स) की बातो और आपकी बताई हुई सही निशानीयो से हैरान हो गया और उनके हुक्म पर अमल किया।
इमाम काज़िम (अ.स) ने शतीता के एक दिरहम और कपड़े के टुकड़े को ले लिया और फरमायाः बेशक अल्लाह हक़ से शरमाता नही है और ऐ अबुजाफर शतीता को मेरा सलाम कहना और ये पैसो की थैली कि इसमे चालिस दिरहम हैं, और ये कपड़े का टुकड़ा कि जो मेरे कफन का टुकड़ा है, को भी शतीता को दे देना और उस से कहना कि इस कपड़े को अपने कफन मे रख ले कि ये हमारे ही खेत की रूई से बना हुआ है और मेरी बहन ने इस कपड़े को बनाया है और साथ ही साथ शतीता से कहना कि जिस दिन ये चीज़े हासिल करोगी उसके बाद से उन्नीस दिन से ज़्यादा ज़िन्दा नही रहोगी। मेरे तोहफे के दिये हुऐ चालिस दिरहम मे से सोलह दिरहम खर्च कर लो और चौबीस दिरहम को सदक़े और अपने कफन दफन के लिऐ रख लेना।
फिर इमाम काज़िम (अ.स) ने फरमाया कि उस से कहना कि उसकी नमाज़े जनाज़ा मैं खुद पढ़ाऊँगा।
और उसके बाद इमाम (अ.स) ने फरमाया कि बाक़ी माल को उनके मालिको को वापस दे देना और सवालो की कापी की सील को तोड़ कर देख कि मैंने उनके जवाबो को बग़ैर देखे दिया है या नही??
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैने कापी की सील को देखा उसे हाथ भी नही लगाया गया था और सील तोड़ने के बाद मैंने देखा सब सवालो के जवाब दिये जा चुके है।
जिस वक्त मौहम्मद बिन अली नेशापुरी खुरासान पलटा तो ताज्जुब के आलम मे देखता है कि इमाम काज़िम (अ.स) ने जिन लोगो के माल वापस पलटाऐ है उन सब ने अब्दुल्लाह अफतह को इमाम मान लिया है लेकिन जनाबे शतीता अब भी अपने मज़हब पर बाक़ी है।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैने इमाम काज़िम (अ.स) के सलाम को शतीता को पहुँचाया और वो कपड़ा और माल भी उसे दिया और जिस तरह इमाम काज़िम (अ.स) ने फरमाया था शतीता उन्नीस दिन बाद इस दुनिया से रूखसत हो गई।
और जब जनाबे शतीता इंतेक़ाल कर गई तो इमाम (अ.स) ऊँट पर सवार हो कर नेशापुर आऐ और जनाबे शतीता की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई।
आज भी लोग इस मौहतरम खातून को बीबी शतीता के नाम से याद करते है और आपका मज़ारे मुक़द्दस नेशापुर (ईरान) मे मौजूद है कि जहाँ रोज़ाना हज़ारो चाहने वाले आपकी क़ब्र की ज़ियारत के लिऐ आते है।
- अब्दुल्लाह अफतह इमाम सादिक का एक बेटा था कि जिसने इमामत का दावा किया था।
इमाम ख़ुमैनी ने फिलिस्तीन के बारे में जो कहा सच हो रहा है : आयतुल्लाह ख़ामेनेई
इमाम खुमैनी की 35वीं वर्षगांठ के अवसर पर इमाम खुमैनी के रौज़े में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि इमाम खुमैनी की याद में हर साल आयोजित होने वाली सभा इमाम खुमैनी के प्रति निष्ठा ओर उनसे अपने वादे की याद के साथ साथ देश के विकास के लिए एक महान सबक है।
ईरान के शहीद राष्ट्रपति के बारे में बात करते हुए आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि राष्ट्रपति रईसी और उनके साथियों की शहादत क्रांति के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है जिसमें हमने प्रिय और बेनजीर राष्ट्रपति को खो दिया है।
उन्होंने कहा कि आज फिलिस्तीन के बारे में इमाम खुमैनी की भविष्यवाणी हर्फ़ ब हर्फ़ सही और सच साबित हो रही है। इमाम ख़ुमैनी ने कहा था कि मैं इस्राईल के विघटन की आहट सुन रहा हूं। फ़िलिस्तीन आज दुनिया का सबसे बड़ा विषय बन गया है, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस्लामिक क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि अल-अक्सा तूफान ने ज़ायोनी शासन को हराने के लिए निर्णायक वार किया है।
पाकिस्तान में जबरन गायब हुए शिया अज़ादारो के परिवारों का विरोध प्रदर्शन
पाकिस्तान में जबरन गायब हुए शिया अज़ादारो के परिवारों ने अपने प्रियजनों की बरामदगी न होने के विरोध में प्रदर्शन किया और सरकारी संस्थाओं व अदालतों पर सवाल उठाया कि निर्दोष नागरिकों को वर्षों तक लापता रखना संविधान और कानून का स्पष्ट उल्लंघन है।
पाकिस्तान के कराची शहर में जबरन गायब हुए शिया अज़ादारो के परिवारों ने अपने प्रियजनों की बरामदगी न होने के विरोध में विरोध प्रदर्शन किया। पुरुषों और महिलाओं के साथ-साथ लापता शिया व्यक्तियों के मासूम बच्चे भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।
इस प्रदर्शन को इमामिया स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन पाकिस्तान के केंद्रीय अध्यक्ष फखर अब्बास नकवी, शिया उलेमा काउंसिल के केंद्रीय अतिरिक्त सचिव अल्लामा सय्यद नज़ीर अब्बास तकवी, मजलिस वहदत मुस्लिमीन के कराची डिवीजन के अध्यक्ष अल्लामा सादिक जाफरी, आलमदार रिज़वी और लापता अज़ादार अज़हर अब्बास की पत्नी ने संबोधित किया। इस अवसर पर अल्लामा सय्यद हैदर अब्बास आबिदी, मौलाना डॉ. अकील मूसा, अल्लामा सादिक रज़ा तक़वी, अल्लामा सय्यद अली अनवर जाफ़री, अल्लामा मुबाशिर हसन और जाफ़रिया मिल्लत से जुड़े अन्य विद्वान और नेता भी उपस्थित थे।
आईएसओ के केंद्रीय अध्यक्ष फखर नक़वी ने कहा कि शिया समुदाय ने पाकिस्तान में ज़िया-उल-हक़ जैसे तानाशाह को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था, इसलिए हम माँग करते हैं कि सभी लापता शिया लोगों को जल्द से जल्द रिहा किया जाए। अगर उन्हें रिहा नहीं किया गया, तो अल्लाह की मर्ज़ी से पूरे पाकिस्तान में विरोध अभियान चलाया जाएगा।
लापता शिया अज़ादार अज़हर अब्बास की पत्नी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि उन उत्पीड़ित शिया युवाओं पर शांति हो, जिन्होंने शिया समुदाय के अस्तित्व और गौरव के लिए अपना जीवन, परिवार और सब कुछ कुर्बान कर दिया। आज भी, कई शिया युवा पाँच से दस वर्षों से जबरन गायब होने के शिकार हैं और उनके परिवार अज्ञानता और दर्दनाक प्रतीक्षा की स्थिति में हैं। कई माता-पिता अपनों की वापसी की उम्मीद में इस दुनिया से चले गए, जबकि कुछ अपनी मृत्युशय्या पर इसी उम्मीद के सहारे हैं।
उन्होंने कहा कि हम, पाकिस्तान के देशभक्त नागरिक, सरकारी संस्थाओं से पूछते हैं कि शिया शोक मनाने वालों को बिना किसी अपराध या सबूत के सालों से जबरन गायब क्यों किया जा रहा है? यह कृत्य संविधान और कानून का स्पष्ट उल्लंघन है। न्याय के नाम पर अदालतें सिर्फ़ नई तारीख़ें देती हैं और जेआईटी सिर्फ़ पीड़ितों से पूछताछ करती हैं। अगर नागरिकों को न्याय नहीं मिलता है, तो अदालतें बंद कर देनी चाहिए ताकि हम ईश्वर से अपना न्याय मांग सकें।
अज़हर अब्बास की पत्नी ने आगे कहा कि अगर इन लापता शोक मनाने वालों के खिलाफ कोई अपराध है, तो उन्हें अदालतों में पेश किया जाना चाहिए, अन्यथा उन्हें बाइज़्ज़त बरी कर दिया जाना चाहिए। अगर ये संस्थाएँ सोचती हैं कि सालों बाद वे दिखा देंगी कि ये शोक मनाने वाले कभी थे ही नहीं, तो यह उनकी भूल है। हम अपनी आखिरी साँस तक इन उत्पीड़ित लोगों के लिए आवाज़ उठाते रहेंगे।
विद्वानों सहित बड़ी संख्या में इमाम हुसैन (अ) के अज़ादारो ने विरोध शिविर में भाग लिया और लापता शिया व्यक्तियों के परिवारों के साथ एकजुटता व्यक्त की।
इराक़ की सरकार और जनता ने अरबईन में व्यापक रूप से सार्थक किया
गृह मंत्री ने अरबईन के क्षेत्र में सक्रिय लोगों और अधिकारियों को धन्यवाद देते हुए एक संदेश में कहा, इराक़ की सरकार और जनता की उत्कृष्ट मेहमाननवाजी ने "हुब्बुल हुसैन को पूर्ण रूप से सार्थक किया।
गृह मंत्रालय के सूचना केंद्र की रिपोर्ट के मुताबिक, गृह मंत्री इस्कंदर मोमेनी ने एक संदेश जारी करके अर्बाइन में भाग लेने वाले लोगों और आयोजकों को धन्यवाद दिया।
गृह मंत्री का संदेश इस प्रकार है:
इस वर्ष के अर्बाइन में, शहीदों के सरदार हज़रत अबा अब्दुल्लाह अलहुसैन (अ.स.) के प्रति प्रेम और भक्ति के इतिहास में एक बार फिर एक विशाल और यादगार आध्यात्मिक महाकाव्य लिखा गया।
इन दिनों हमने उचित योजना और जनता तथा कार्यान्वयनकर्ताओं के बीच अभूतपूर्व एकता और सद्भावना को देखा, जिसके परिणामस्वरूप सुरक्षा, व्यवस्था, चिकित्सा, सार्वजनिक सेवाओं, परिवहन और 3 मिलियन 600 हज़ार से अधिक ईरानी तीर्थयात्रियों के सुगम और सरल आवागमन के दृष्टिकोण से अर्बाइन के वैश्विक समारोह का अद्वितीय आयोजन हुआ।
मैं ईरान की सम्मानित इस्लामी जनता, विशेष रूप से हुसैनी तीर्थयात्रियों, जो इस गौरवशाली घटना के मुख्य सूत्रधार थे, और मुक़ैबदारों (सेवा करने वालों) का आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने प्यार से ईरानी मेहमाननवाज़ी संस्कृति का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
मैं सभी सेवकों, विशेष रूप से कार्यकारी संस्थानों, अर्बाइन केंद्रीय मुख्यालय की 18 समितियों के गवर्नरों और प्रमुखों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने सटीक योजना और दिन-रात की मेहनत से इस अमर सम्मेलन के आयोजन में भूमिका निभाई। साथ ही, मैं मीडिया, विशेष रूप से राष्ट्रीय मीडिया, का विशेष धन्यवाद करता हूँ।
हम इस विशाल सम्मेलन को एक वैश्विक दृष्टिकोण से देखते हैं और हमें गर्व है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने पड़ोसी देशों के नागरिकों और तीर्थयात्रियों के लिए कर्बला की ओर जाने के लिए आवश्यक शर्तें प्रदान कीं, ताकि सभी इस दया के सागर से लाभान्वित हो सकें। इराक़ की सरकार और जनता की उत्कृष्ट मेहमाननवाज़ी ने "हुब्बुल हुसैन यजमअुना" को पूर्ण रूप से सार्थक किया।
आशा है कि यह विशाल वैश्विक सम्मेलन, उचित योजना के साथ, हर साल पहले से अधिक भव्यता के साथ आयोजित होगा।
नेतन्याहू इजरायल को विनाश की ओर ले जा रहे हैं
इजरायली सेना के पूर्व प्रमुख जनरल गादी आइजेनकोट ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की नेतृत्व शैली की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि उनकी नीतियाँ और कार्यशैली इजरायल को विनाश के कगार पर ले जा रही हैं।
इजरायली सेना के पूर्व प्रमुख जनरल गादी आइजेनकोट ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की नेतृत्व शैली की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि उनकी नीतियाँ और कार्यशैली इजरायल को विनाश के कगार पर ले जा रही हैं।
आइजेनकोट ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि 7 अक्टूबर 2023 (हमास के हमले के बाद) से अब तक 680 दिन से अधिक बीत चुके हैं, लेकिन इजरायली सेना अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रही है।
उन्होंने कहा कि इजरायली सैनिक अभी भी हमास की सुरंगों में जान गंवा रहे हैं, जबकि गाजा युद्ध के उद्देश्य अधूरे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि नेतन्याहू में नेतृत्व क्षमता और जिम्मेदारी का अभाव है। वह कठिन निर्णय लेने से बचते हैं और राष्ट्रीय हितों से ऊपर व्यक्तिगत व राजनीतिक समझौतों को प्राथमिकता देते हैं। यही रवैया इजरायल को विनाश की ओर धकेल रहा है।
मैं उन सभी को आमंत्रित करता हूँ जो इजरायली और यहूदी नैतिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं कि वे लापता सैनिकों के परिवारों के विरोध प्रदर्शन में शामिल हों और सरकार तक अपनी आवाज़ पहुँचाएँ, क्योंकि समय तेजी से बीत रहा है।
मज़बूत और शक्तिशाली ईरान कर्बला के शहीदों और शोहदा ए इक़्तेदार का ऋणी है
आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने कहा: ईरान कर्बला के शहीदों और वर्तमान शहीदों के खून का दावा तब कर सकता है जब वह उस मुकाम पर पहुँच जाए जहाँ दुश्मन मुसलमानों के नेता का अपमान करने की हिम्मत न कर सके। यही मुहर्रम और सफ़र की महानता है, जिसे सही ढंग से समझना ज़रूरी है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, ईरानी शिक्षा और प्रशिक्षण मंत्री अली रज़ा काज़मी और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल ने आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली से मुलाकात की।
इस बैठक में, आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमोली ने मुहर्रम और सफ़र के महीनों के अंत का ज़िक्र करते हुए, अहले-बैत (अ) को सच्चे शिक्षक बताया और कहा: ये पवित्र लोग न केवल लाभकारी शिक्षक थे, बल्कि उन्होंने समाज को अज्ञानता और गुमराही से बचाने और उसे बुद्धिमान और न्यायप्रिय बनाने के लिए लोगों के मार्गदर्शन के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
ज़ियारत ए अरबईन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा: जब हम अज़ा में कहते हैं: "और हमने तुम्हें खून के चाहने वालों में से बना दिया है," तो यह एक शैक्षिक कथन है, जिसका अर्थ है कि एक व्यक्ति को अहले-बैत का आध्यात्मिक पुत्र बनना चाहिए ताकि वह उनके खून का चाहने वाला बन सके। इस पद के लिए किसी पहचान पत्र की आवश्यकता नहीं है, बल्कि हर कोई अहले-बैत (अ) के मार्ग पर चलकर इस पद तक पहुँच सकता है। इस मरजा ए तकलीद ने शहीदों, सशस्त्र बलों, प्रशासनिक मामलों के शहीदों और अन्य मासूम शहीदों को श्रद्धांजलि दी और शहीदों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा: एक मजबूत और शक्तिशाली ईरान कर्बला के शहीदों और शोहदा ए इक़्तेदार का ऋणी है। इन प्रियजनों को अहले-बैत (अ) के पवित्र आंकड़ों के साथ पुनर्जीवित किया जाएगा, इंशाल्लाह।
कर्बला में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन; भारतीय विद्वानों ने अरबईन हुसैनी के सार्वभौमिक संदेश पर ज़ोर दिया
अहले बैत (अ) की विश्व सभा के तत्वावधान में कर्बला-ए-मौअल्ला में "अद्ल, इंसाफ और आलमी ज़िम्मेदारी" विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें भारत के कई विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया और अरबईन हुसैनी की महानता और इसके सार्वभौमिक संदेश पर अपने विचार व्यक्त किए।
अरबईन हुसैनी के अवसर पर अहले बैत (अ) की विश्व सभा के तत्वावधान में कर्बला-ए-मौअल्ला "अद्ल, इंसाफ और आलमी ज़िम्मेदारी" शीर्षक से एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया।
इसकी अध्यक्षता हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा रमज़ानी ने की। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि अद्ल और इंसाफ़ के साथ "चिंता" भी जुड़ी हुई है। एक उदार और न्यायप्रिय व्यक्ति दूसरों के मार्गदर्शन, उनकी धार्मिक और आध्यात्मिक समस्याओं और सामाजिक परिस्थितियों के प्रति चिन्तित रहता है। यही कारण है कि ईश्वर के पैगम्बर मानवता के प्रति अत्यंत दयालु और करुणामय थे।
ईरान, लेबनान, इंग्लैंड, भारत, पाकिस्तान, अमेरिका, फिलीपींस, डेनमार्क, तुर्की और अन्य देशों के धार्मिक और सांस्कृतिक हस्तियों और कार्यकर्ताओं ने इस सम्मेलन में भाग लिया और अरबाईन के संदेश के साथ-साथ बुद्धिजीवियों की वैश्विक ज़िम्मेदारियों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
इस अवसर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले कई विद्वानों और हस्तियों ने भी अपने विचार और राय प्रस्तुत कीं।
मजलिस उलेमा हिंद के अध्यक्ष और जामिया इमाम अमीरुल मोमिनीन (अ), नजफ़ी हाउस के प्रोफेसर मौलाना सैयद हुसैन मेहदी हुसैनी ने कहा कि "अरबईन हुसैनी की वैज्ञानिक और शिया पहचान को और मज़बूत किया जाना चाहिए। अहले-बैत की वैश्विक सभा को नजफ़ से कर्बला तक के मार्च के दौरान विभिन्न माध्यमों से युवाओं तक इस्लामी साहित्य, विशेष रूप से कुरान और हदीसों के संदेश पहुँचाने चाहिए ताकि वे केवल शारीरिक श्रम करके वापस न लौटें, बल्कि अपने साथ एक सार्वभौमिक और वैश्विक संदेश लेकर जाएँ।
प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान मौलाना डॉ. सय्यद कुल्बे रुशैद ने अरबईन और मार्च की महानता का वर्णन करते हुए कहा: "यह सभा वास्तव में बूंदों का एक सागर है जिसका नाम हुसैन (अ) है। किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि वह कर्बला आया है, बल्कि यह कि कर्बला ने उसे बुलाया है।" अरबईन की असली भावना शहीदों की कुर्बानियों की याद और उसके संदेश को जीवित रखना है।
शिया उलेमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष और मेलबर्न के इमाम जुमा मौलाना सय्यद अबुल क़ासिम रिज़वी ने कहा कि आज के आलोचकों को यह सोचना चाहिए कि उन्हें खुद पर भी ध्यान देना चाहिए। हमें मतभेदों से ऊपर उठकर अरबईन और इस्लामी क्रांति को मज़बूत करना होगा ताकि इराक़ देश मज़बूत बना रहे और मशी का यह सफ़र सुरक्षित रूप से जारी रहे।
दक्षिण भारत शिया उलेमा परिषद के अध्यक्ष मौलाना सैयद तकी रज़ा आबिदी (तकी आगा) ने अपने संबोधन में कहा: "अरबईन की वर्तमान महानता और निरंतरता शहीदों के बलिदानों का परिणाम है, इसलिए हमें इन शहीदों को नहीं भूलना चाहिए। ईरान की इस्लामी क्रांति और सर्वोच्च नेता के मार्गदर्शन ने इस यात्रा को जारी रखा है। आज ज़रूरत इस बात की है कि अरबाईन मार्च के दौरान शहीदों और इस्लामी क्रांति के संदेश को यथासंभव उजागर किया जाए ताकि तीर्थयात्रियों को इस बात का एहसास हो कि यह महान सभा शहीदों के खून से नहाई है।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का प्रतिनिधित्व करते हुए, फ़ज़ल मोइनुद्दीन चिश्ती अजमीरी ने हज़रत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की प्रसिद्ध कविता "शाह अस्त हुसैन" से अपने भाषण की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि अरबईन हुसैनी दुनिया का सबसे बड़ा जमावड़ा है। दुनिया भर में। नजफ़ से कर्बला तक की पैदल यात्रा इमाम हुसैन (अ) की याद में की जाती है जिसमें बुज़ुर्ग, बच्चे और जवान सभी शामिल होते हैं। यह इमाम हुसैन (अ) की महानता है कि उन्होंने पैग़म्बर (स) के धर्म की रक्षा की। आज जो धर्म हमारे पास है, वह इमाम हुसैन (अ) के महान बलिदानों का परिणाम है जो हमें विरासत में मिला है।
प्रसिद्ध स्तंभकार श्री आदिल फ़राज़ ने अपने संबोधन में कहा कि "वर्तमान युग के इस्लामोफ़ोबिया का मुकाबला अरबईन हुसैनी के संदेश से किया जा सकता है। इसके लिए ज़रूरी है कि हम मीडिया को मज़बूत करें और अरबईन हुसैनी के सार्वभौमिक संदेश का व्यापक प्रचार करें। अगर हम मीडिया पर ध्यान नहीं देंगे, तो अरबाईन का संदेश सीमित रह जाएगा। इसलिए ज़रूरी है कि मीडिया के ज़रिए सही इस्लामी छवि और अहलुल बैत (अ) की शिक्षाओं को दुनिया तक पहुँचाया जाए।"
इस मौके पर मजलिस-ए-वहदत-ए-मुस्लेमीन के अध्यक्ष अल्लामा राजा नासिर अब्बास जाफरी, उम्मत वाहिदा पाकिस्तान के प्रमुख अल्लामा मुहम्मद अमीन शाहिदी, अल-जवाद फाउंडेशन के महासचिव मौलाना सय्यद मनाजिर नकवी, आयतुल्लाहिल उज़्मा हाफिज बशीर नजफी के कार्यालय से मौलाना सय्यद जामिन जाफ़री, मशहद मुकद्दस से मौलाना सिब्त जैदी और एमडब्ल्यूएम नेता सय्यद नासिर अब्बास शिराज़ी भी मौजूद थे।
हौज़ा ए इल्मिया को बदलाव और प्रगति की आवश्यकता
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा: परिवर्तन और प्रगति की आवश्यकता वाले स्थानों में से एक हौज़ा ए इल्मिया है।
20 नवंबर, 2024 को, इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने जामेअतुज़ ज़हरा (अ) की स्थापना की 40वीं वर्षगांठ के अवसर पर इसके सदस्यों को अपने संबोधन में कहा:
हौज़ा ए इल्मिया को बदलाव की आवश्यकता है।
हौज़ा ए इल्मिया के लोगों के लिए, उपदेश देने के लिए, धर्म को आगे बढ़ाने के लिए और धार्मिक संप्रभुता स्थापित करने के लिए है।
हौज़ा ए इल्मिया का धार्मिक संप्रभुता के मूल सिद्धांतों से खुद को अलग करना पूरी तरह से अनुचित है; इसका कोई मतलब नहीं है; हौज़ा ए इल्मिया इसी उद्देश्य के लिए है, क्योंकि "لِیُظْهِرَهُ عَلَی الدِّینِ كُلِّهِ लेयुज़हेराहू अलद दीने कुल्लेह।"
अल्लाह तआला ने पैगम्बर मुहम्मद (स) को "لِیُظْهِرَهُ عَلَی الدِّینِ كُلِّهِ लेयुज़हेराहू अलद दीने कुल्लेह" के लिए भेजा; ताकि धर्म प्रबल हो, संप्रभुता स्थापित हो, ताकि मानव जीवन का प्रबंधन और नियंत्रण हो।
तो यह ज़िम्मेदारी उन लोगों की है जो पैगम्बर (स) के मार्ग पर चल रहे हैं, और इसका स्पष्ट उदाहरण और प्रकटीकरण इस्लामी संस्थाएँ हैं। इसलिए, इस्लामी संस्थाओं को इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए; इसमें कोई संदेह नहीं है।
अक़ीदा सबसे अनमोल दौलत है, अक़ीदा चोरों से सावधान रहें
स्वर्गीय आयतुल्लाहिल उज़्मा साफ़ी गुलपाएगानी ने अक़ीदे को इंसान की सबसे अनमोल दौलत बताया है और इस बात पर ज़ोर दिया है कि ईमान वालों को इस अनमोल रत्न की रक्षा करनी चाहिए और उन अक़ीदा चोरों से सावधान रहना चाहिए जो तरह-तरह के जाल और धोखे से इसे छीनने की कोशिश करते हैं।
आयतुल्लाहिल उज़्मा साफ़ी गुलपाएगानी (र) कहा करते थे कि दुनिया की हर दौलत और हर ओहदा किसी इंसान से छीना जा सकता है, लेकिन अगर अक़ीदा बना रहे, तो वह इंसान हारता नहीं है। लेकिन अगर अक़ीजा लगातार खोता रहे, तो चाहे इंसान के पास कितनी भी पूँजी क्यों न हो, वह "अल्लाहु अकबर और अल्लाहु अकबर" का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि अल्लाह के रसूल (स) और मासूम इमामों (अ) पर अक़ीदा सबसे अनमोल खज़ाना है जिसका कोई विकल्प नहीं है। यही कारण है कि विभिन्न शैतानी शक्तियाँ और भ्रामक जाल इस अक़ीदे को निशाना बनाने के लिए हमेशा सक्रिय रहते हैं।
स्वर्गीय मरजा ए तक़लीद ने ईमान वालों को सलाह दी कि वे अपनी बौद्धिक और धार्मिक सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दें और हर उस प्रलोभन और फुसफुसाहट से सावधान रहें जो उन्हें उनके ईमान और आस्था से वंचित कर सकती है।
यह बयान उनकी सलाह पर आधारित संग्रह, 110 पंद दिलनशीन में शामिल हैं।
इमाम हसन (अ) के दान देने और क्षमा करने की कहानी।
एक दिन इमाम हसन (अ) घोड़े पर सवार कहीं जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया। इमाम हसन (अ) चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे, जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो इमाम हसन (अ) ने उसे मुसकुरा कर सलाम किया और कहने लगेः
ऐ शेख़, मेरे विचार में तुम यहां अपरिचित हो और तुमको धोखा हो रहा है, अगर भूखे हो तो तुम्हें खाना खिलाऊं, अगर कपड़े चाहिये तो कपड़े पहना दूं, अगर ग़रीब हो तो तुम्हरी ज़रूरत पूरी कर दूं, अगर घर से निकाले हुये हो तो तुमको पनाह दे दूं और अगर कोई और ज़रूरत हो तो उसे पूरा करूं। अगर तुम मेरे घर आओ और जाने तक मेरे घर में ही रहो तो तुम्हारे लिये अच्छा होगा क्योंकि मेरे पास एक बड़ा घर है तथा मेहमानदारी का सामान भी मौजूद है।
सीरिया के उस नागरिक ने जब यह व्यवहार देखा तो पछताने और रोने लगा और इमाम को संबोधित करके कहने लगाः मैं गवाही देता हूं कि आप ज़मीन पर अल्लाह के प्रतिनिधि हैं तथा अल्लाह अच्छी तरह जानता है कि अपना प्रतिनिधित्व किसे प्रदान करे। आप से मिलने से पहले आपके पिता और आप मेरी निगाह में लोगों के सबसे बड़े दुश्मन थे और अब मेरे लिये सबसे से अच्छे हैं।
यह आदमी मदीने में इमाम हसन का मेहमान बना और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. एवं उनके अहलेबैत का श्रद्धालु बन गया। इमाम हसन (अ) की सहनशीलता व सब्र इतना मशहूर था कि "हिल्मुल- हसन" अर्थात हसन की सहनशीलता सब की ज़बानों पर रहता था।
पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और हज़रत अली के बेटे इमाम हसन भी अपने नाना और पिता की तरह अल्लाह की इबादत के प्रति बहुत ज़्यादा पाबंद एवं सावधान थे। अल्लाह की महानता का इतना आभास करते थे कि नमाज़ के समय चेहरा पीला पड़ जाता और जिस्म कांपने लगता था, हर समय उनकी ज़बान पर अल्लाह का ज़िक्र व गुणगान ही रहता था।
इतिहास में आया है कि किसी भी ग़रीब व फ़क़ीर को उन्होने अपने पास से बिना उसकी समस्या का समाधान किये जाने नहीं दिया। किसी ने सवाल किया कि आप किसी मांगने वाले को कभी ख़ाली हाथ क्यों नहीं लौटाते। तो उन्होने जवाब दिया" मैं ख़ुद अल्लाह के दरवाज़े का भिखारी हूं,और उससे आस लगाये रहता हूं, इसलिये मुझे शर्म आती है कि ख़ुद मांगने वाला होते हुये दूसरे मांगने वाले को ख़ाली हाथ भेज दूं। अल्लाह ने मेरी आदत डाली है कि लोगों पर ध्यान दूं और अल्लाह की अनुकंपायें उन्हें प्रदान करूं।"
इमाम हसन (अ) ने 48 साल से ज़्यादा इस दुनिया में अपनी रौशनी नहीं बिखेरी लेकिन इस छोटी सी अवधि में भी उनका समय भ्रष्टाचारियों से लगातार जंग में ही बीता। अपने पिता की शहादत के बाद इमाम हसन (अ) ने देखा कि निष्ठावान व वफ़ादार साथी बहुत कम हैं इसलिये मोआविया से जंग का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलेगा इसलिये उन्होने मुआविया द्वारा प्रस्तावित सुलह को अपनी शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया। इस शान्ति संधि का नतीजा यह निकला कि वास्तविक मुसलमानों को ख़्वारिज के हमलों से नजात मिल गयी और जंग में उनकी जानें भी नहीं गईं।
इमाम हसन(अ) के ज़माने के हालात के बारे में आयतुल्लाह ख़ामेनई कहते हैं" हर क्रान्तिकारी व इंक़ेलाबी के लिये सबसे कठिन समय वह होता है जब सत्य व असत्य आपस में बिल्कुल मिले हुये हों-----(इस हालत को निफ़ाक़ या मित्थ्या कहते हैं) इमाम हसन के ज़माने में निफ़ाक़ की उड़ती धूल हज़रत अली के ज़माने से बहुत ज़्यादा गाढ़ी थी इमाम हसने मुज्तबा (अ) जानते थे कि उन थोड़े से साथियों व सहायकों के साथ अगर मुआविया से जंग के लिये जाते हैं और शहीद हो जाते हैं तो इस्लामी समाज के प्रतिष्ठत लोगों पर छाया हुआ नैतिक भ्रष्टाचार उनके ख़ून (के प्रभाव) को अर्थात उनके लक्ष्य को आगे बढ़ने नहीं देगा। प्रचार, पैसा और मुआविया की कुटिलता, हर चीज़ पर छा जायेगी तथा दो एक साल बीतने के बाद लोग कहने लगेंगे कि इमाम हसन(अ) व्यर्थ में ही मुआविया के विरोध में खड़े हुये। इसलिये उन्होने सभी कठिनाइयां सहन कीं लेकिन ख़ुद को शहादत के मैदान में जाने नहीं दिया,क्योंक् जानते थे कि उनका ख़ून अकारत हो जायेगा।
इस आधार पर इमाम हसन(अ) की एक विशेषता उनका इल्म व बुद्धिमत्ता थी। पैगम्बरे इस्लाम (स) इमाम हसन (अ) की बुद्धिमत्ता के बारे में कहते " अगर अक़्ल को किसी एक आदमी में साकार होना होता तो वह आदमी अली के बेटे हसन होते ।"













