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यमन ने अमेरिका इस्राईल की साज़िश को किया विफल, युद्धपोत को बनाया निशाना
ग़ज़्ज़ा और फिलिस्तीन के समर्थन में इस्राईल के हितों को लगातार निशाना बना रहा यमन अमेरिका ब्रिटेन और उनके सहयोगी तथाकथित मुस्लिम देशों के निशाने पर है। आये दिन अमेरिका और ब्रिटेन के हमलों का सामना कर रहे यमन ने मक़बूज़ा फिलिस्तीन और यमन के तट पर तैनात एक अमेरिकी विमानवाहक पोत पर चार मिसाइलें दागीं हैं और साथ ही चार ड्रोन से हमला किया है।
यमन के सशस्त्र बलों ने एक बयान में कहा कि यह ऑपरेशन सोमवार को चलाया गया, जिसमें यूएसएस हैरी ट्रूमैन और तीन ज़ायोनी सैन्य ठिकानों पर हमला किया गया । इनमें से दो तल अवीव के पास याफ्फा शहर के पास मौजूद थे।
प्रेस टीवी की रिपोर्ट केअनुसार, "यमन के मिसाइल और ड्रोन ने उत्तरी लाल सागर में अमेरिकी विमानवाहक पोत यूएसएस हैरी ट्रूमैन को निशाना बनााया । इस रिपोर्ट के मुताबिक इस विमानवाहक पोत से यमन पर हमला करने का प्लान किया जा रहा था। इस हमले के बाद अमेरिका और अवैध ज़ायोनी राष्ट्र के इरादों पर पानी फिर गया है।
मुसलमान के घर मे रख दी मूर्ति, मंदिर का दावा
उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों मे मस्जिदों के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम के बीच अब मस्जिदों के साथ साथ मुसलमान घरों पर भी हिंदुत्ववादी संगठनों ने दावा करना शुरू कर दिया है। ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश के फीरोजाबाद का है जहां मुस्लिम आबादी में मकान का ताला तोड़कर मूर्तियों को स्थापित किया गया है। फिरोजाबाद के पुराना रसूलपुर मे हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने एक मकान का ताला तोड़ दिया और मूर्ति रख कर दावा किया कि यहां शिव मंदिर है।
यह जगह एक मुस्लिम घर का हिस्सा थी, जिसे शिव मंदिंर बताया जा रहा है। इसे 35 साल पहले एक मुस्लिम परिवार को बेचा गया था लेकिन, अब हिंदू संगठनों ने वहां देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित करने का फैसला किया है। रसूलपुर इलाके की गली नंबर आठ में मुहम्मद यासीन के घर पर शिव मंदिर होने का दावा किया जा रहा है ,जिसका आकार 100 वर्ग फीट बताया जाता है।
मुबल्लिग ए दीन समय की चुनौतियों से अवगत होना चाहिए
अशूरा फाउंडेशन नजफ़ ए अशरफ़ के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त और मशहूर इस्लामी प्रचारक एवं वक्ता हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद अबुल क़ासिम रिज़वी के सम्मान में नजफ के छात्रों और उलेमा ने एक स्वागत समारोह का आयोजन किया।
कार्यक्रम की शुरुआत ज़ियारत-ए-अशूरा और क़ुरआन मजीद की तिलावत से हुआ ज़ियारत-ए-अशूरा का पाठ मौलाना शेख़ इमरान करगली ने किया जबकि मौलाना अली इमाम मारूफ़ी नजफी ने क़ुरआन की आयतें प्रस्तुत कीं।
कार्यक्रम का संचालन हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मिर्ज़ा ज़हीन नजफी ने किया उन्होंने मौलाना सैयद अबुल क़ासिम रिज़वी की प्रशंसा में सुंदर काव्य प्रस्तुत कर माहौल को मोहक बना दिया। इसके बाद हुज्जतुल इस्लाम सैयद अली मोहम्मद नजफी बकनालवी और हुज्जतुल इस्लाम सैयद अबूज़र खुर्रम आबादी ने अपने प्रेरणादायक भाषणों और विचारों से सभा को नई ऊंचाई दी।
मौलाना सैयद अबुल क़ासिम रिज़वी ने समारोह में विशेष सम्मानित अतिथि और मेलबर्न के इमामे जुमा व शिया उलमा काउंसिल ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष, मौलाना सैयद अबुल क़ासिम रिज़वी ने सभा को संबोधित किया उन्होंने अपने वक्तव्य की शुरुआत कुछ अशआर से की और फिर इस्लामी मुबल्लिग़ की जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला।
मौलाना सैयद अबुल क़ासिम रिज़वी के मुख्य बिंदु:
- मुबल्लिग़ के गुण,इस्लामी प्रचारक को विनम्र (मुतवाज़े) और संतुलित (मुतवाजन) होना चाहिए,वह समकालीन चुनौतियों और समस्याओं से परिचित हो,लोगों तक उसकी पहुँच आसान हो।अपने वक्तव्य को क़ुरआन और हदीस के प्रमाणों से सुसज्जित करे।
- धर्मों के बीच समन्वय,मौलाना ने बताया कि मौलाए कायनात हज़रत अली अ.स ने अपनी पैदाइश के तीन दिन बाद ही रसूल-ए-अकरम स.अ.व की गोद में तमाम आसमानी किताबों की तिलावत करके धर्मों के बीच संवाद की नींव रखी।
- फ़िक़्ह इस्लामी कानून का महत्व,उन्होंने उल्लेख किया कि भारत में शहीद सालेस (तीसरे शहीद) ने फ़िक़्ह-ए-इमामिया के आधार पर फ़ैसले सुनाए और अपनी विद्वता का प्रमाण दिया।
4.मौलाना ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में एकता इत्तेहाद बेन-उल-मुस्लिमीन आवश्यक है।मोमिनों के बीच एकता (इत्तेहाद बेन-उल-मोमिनीन भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मौलाना के अंत में दुआ-ए-इमाम-ए-ज़माना (अ) पढ़ी गई और दुआ के साथ समारोह का समापन हुआ अंत में, नज़र-ए-मौला अ.स. के साथ सभी मेहमानों की सेवा की गई कार्यक्रम के अंत में मौलाना मिर्ज़ा ज़हीन नजफी जो अशूरा फाउंडेशन के प्रमुख हैं ने सभी मेहमानों और प्रतिभागियों का धन्यवाद किया।
ग़ाज़ा में शहीदों की संख्या 46 हज़ार के करीब पहुँच गई
ग़ाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने आज दोपहर सोमवार को घोषणा की है इज़रायली सेना के ग़ाज़ा पर हमले लगातार जारी हैं और पिछले 24 घंटों के दौरान दर्जनों फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार , ग़ाज़ा की स्वास्थ्य मंत्रालय ने आज दोपहर सोमवार को घोषणा किया हैं इज़रायली सेना के ग़ज़ा पर हमले लगातार जारी हैं और पिछले 24 घंटों के दौरान दर्जनों फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।
ग़ाज़ा की स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी है कि इज़रायली सेना ने एक सभा पर हमला कर पिछले 24 घंटों में 48 फ़िलिस्तीनियों को शहीद और 75 को घायल कर दिया है।
यह सूचना फ़िलिस्तीन के कब्जे वाले क्षेत्रों में चल रही जंग के 458वें दिन जारी की गई है इसके अनुसार ग़ज़ा में शहीदों की कुल संख्या 45,854 तक पहुँच चुकी है जबकि घायलों की संख्या 1,09,139 हो गई है।
मंत्रालय ने कहा है कि अब भी बड़ी संख्या में शहीद मलबे के नीचे दबे हुए हैं लेकिन युद्ध की स्थिति के कारण राहतकर्मियों को मलबा हटाने और शहीदों को बाहर निकालने का मौका नहीं मिल रहा।
ग़ाज़ा की पट्टी पिछले साल अक्टूबर के मध्य से इज़रायली सेना की भारी बमबारी का शिकार है, और इस्राइली सरकार ने इस क्षेत्र को कड़े घेरे में ले रखा है।
ग़ज़ा के लोग अपने तबाह घरों के कारण टेंटों में शरण लेने पर मजबूर हैं, जबकि कुछ लोग स्कूलों में रह रहे हैं। हालांकि, ये टेंट और स्कूल भी सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि इज़रायली सेना अक्सर प्रतिरोधी तत्वों की मौजूदगी का बहाना बनाकर उन पर हमले करती रहती है।
मानवाधिकार संगठनों ने कई बयानों में कहा है कि ग़ज़ा के लोगों को खाने और दवाओं की गंभीर कमी का सामना करना पड़ रहा है। इन संगठनों ने इज़रायल से अपील की है कि ग़ज़ा में राहत सामग्री ले जाने वाले अधिक ट्रकों को प्रवेश की अनुमति दी जाए।
गत वर्ष इमाम रज़ा (अ) के हरम के विदेशी आगंतुकों को प्रदान की गई सेवाओ पर एक रिपोर्ट
हज़रत इमाम अली रज़ा (अ) का नूरानी और मलाकूती हरम उन सभी तीर्थयात्रियों के लिए एक महान शरण स्थल है जो इस हरम की ज़ियारत के लिए दुनिया भर से आते हैं।
इमाम रज़ा (अ) के तीर्थयात्री दूर व दराज़ के क्षेत्रो और विभिन्न देशों से आते हैं। इन तीर्थयात्रियों को विभिन्न और विविध सेवाएं प्रदान करता है नीचे सौर वर्ष 1403 की शुरुआत से लेकर आज तक विदेशी आगंतुकों को प्रदान की गई सेवाओं की एक संक्षिप्त रिपोर्ट दी गई है।
रमज़ान के पवित्र महीने के लिए विशेष कार्यक्रम
चूँकि नए साल के दिन और ईद नौरोज़ रमज़ान के पवित्र महीने में आते हैं, इसलिए विदेशी तीर्थयात्रियों के कार्यालय ने "हिल हिलालक" जैसे इस पवित्र महीने के लिए उपयुक्त पारंपरिक कार्यक्रमों के साथ नए साल की शुरुआत की, यह पारंपरिक कार्यक्रम पवित्र महीने का पहला है रमज़ान की रात इमाम खुमैनी (र) हॉल में आयोजित की गई, जिसमें बारह देशों के चालीस बच्चों और युवाओं ने भाग लिया।
शब ए क़द्र के अवसर पर, इमाम रज़ा (अ) के हरम के दार अल-मरहमा, दार अल-रहमा और ग़दीर में अरब, आज़ेरी और उर्दू भाषा के तीर्थयात्रियों के लिए एक दुआ का विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया था। विश्व कुद्स दिवस पर तूहान अल एहरार शीर्षक के तहत एक कांफ्रेंस आयोजित की गई , जिसमें "फतेह इश्क" शीर्षक के तहत विभिन्न भाषाओ मे तराने पढ़े गए।
यौवन समारोह का आयोजन
विदेशी आगंतुक कार्यालय के प्रशासन द्वारा विदेशी आगंतुकों को प्रदान की जाने वाली एक अन्य सेवा उन लड़कों और लड़कियों के लिए जशन-ए-बुलुग़त शीर्षक के तहत समारोहों का आयोजन करना है, जो सिन्ने तकलीफ तक पहुंच चुके हैं, जिसमें उन्हें धार्मिक और शरिया मुद्दों के बारे में जानकारी दी जाती है।
तदनुसार, मई 2024 में, सीरिया, बहरीन और इराक के 26 अरबी भाषी बच्चों के लिए जशन ए बुलुगत आयोजित किया गया था, और इसी तरह, अप्रैल 2024 में, हरम इमाम को लड़कियों के लिए सबसे बड़े उत्सव का नाम दिया गया था। इस्लामी दुनिया में यह समारोह इमाम रज़ा (अ) के हरम में आयोजित किया गया था और दिसंबर 2024 में, 22 अरबी भाषी लड़कियों ने रावक मिल में अपने वयस्क होने का जश्न मनाया, ये लड़कियाँ इराक, सीरिया, लेबनान और बहरीन से थीं।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि जो लड़के और लड़कियाँ नमाज और इबादत करने के लिए बाध्य हो गए थे, उन्हें वयस्क होने के समय विभिन्न सांस्कृतिक उपहार जैसे नमाज़ की चादर, जा नमाज (मुसल्ला) और तस्बीह आदि दिए जाते है।
करामत की दस रात पर कार्यक्रमों का आयोजन
हज़रत फातिमा मासूमा (स) और हज़रत इमाम अली रज़ा (अ) के जन्म की दस रातो के दौरान, इस्लामी देशों से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री इमाम रज़ा (अ) की दरगाह पर आते हैं। विदेशी आगंतुक प्रशासन इनके लिए विशेष स्वागत समारोह आयोजित करता है विशेष आयोजनों के आयोजन के साथ-साथ आगंतुक।
पिछले साल, इशरा करामत के विशेष समारोह "अशरा ए करामत" के शीर्षक के तहत आयोजित किए गए थे, उनमें हज़रत मासूमा (अ) और हज़रत इमाम रज़ा (अ) सहित उर्दू भाषी महिलाओं के लिए विशेष उत्सव कार्यक्रम आयोजित किए गए थे ग़दीर में, अज़ेरी भाषा के तीर्थयात्रियों के लिए विशेष कार्यक्रम रावक दार-उल-रहमा में आयोजित किए गए थे, और अरबी भाषा के तीर्थयात्रियों के लिए विशेष कार्यक्रम, जिसमें पाठ और शाम की कविता शामिल थी, रावक दार-उल-रहमा में आयोजित किए गए थे और इसके अलावा, ग़दीर प्रांगण में सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं और इन धन्य दिनों पर रिज़वी आशीर्वाद उपहार भी पेश किए गए।
विभिन्न अवसरों पर विदेशी आगंतुकों के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित करना
उर्दू भाषा के तीर्थयात्रियों के लिए सेवा के शहीदों की स्मृति में एक समारोह का आयोजन, "शोहदा ए दर ग़ुरबत" शीर्षक के तहत आयोजित 9वें सम्मेलन के उद्घाटन सत्र का आयोजन, कुद्स शरीफ के विचारों के प्रतिरोध और समर्थन की अकादमिक सम्मेलन की समीक्षा, उर्दू भाषा का आयोजन इमाम जवाद (अ) की शहादत के अवसर पर तीर्थयात्रियों के लिए शोक समारोह, 22 नवविवाहित जोड़ों के लिए एक समारोह और मेडागास्कर, भारत, सीरिया, इंग्लैंड, इराक, अमेरिका और 25 विदेशी जोड़ों के लिए एक विवाह समारोह का आयोजन यह फ़्रांस से था, यह कार्यक्रम अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) और हज़रत फातिमा ज़हरा (स) की शादी की सालगिरह के अवसर पर आयोजित किया गया था, ईद के अवसर पर अराफा प्रार्थना के अवसर पर एक भव्य समारोह आयोजित किया गया था अल-ग़दीर। "इस्लाम की दुनिया की लड़कियों के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन" अज़ेरी, अरबी और उर्दू भाषी तीर्थयात्रियों के लिए इमाम रज़ा श्राइन के विदेशी आगंतुक कार्यालय द्वारा आयोजित कुछ कार्यक्रम हैं।
मुहर्रम और सफ़र अल-मुजफ्फर के दिनों में, हज़रत सय्यद अल-शाहेदा इमाम हुसैन (अ) की मजलिसे करना भी इमाम रज़ा (अ) तीर्थ के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में शामिल है।
इज़रायली हमलों में अब तक 202 फ़िलिस्तीनी पत्रकारों की शहादत
7 अक्टूबर 2023 के बाद से अब तक कुल 202 पत्रकार शहीद हो चुके हैं यह आंकड़े न केवल पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की भयावहता को उजागर करते हैं, बल्कि उस कठिनाई को भी रेखांकित करते हैं जिसके बीच फ़िलिस्तीनी पत्रकार अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार , फ़िलिस्तीनी पत्रकार संघ ने 2024 में इज़रायली शासन द्वारा फ़िलिस्तीनी पत्रकारों पर किए गए हमलों पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है।
फ़िलिस्तीनी समाचार एजेंसी शहाब के हवाले से 2024 के दौरान इज़रायली हमलों में 111 पत्रकार शहीद हुए यह आंकड़ा पत्रकारों के खिलाफ इज़रायली हमलों की गंभीरता और मीडिया स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरे को दर्शाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, 7 अक्टूबर 2023 के बाद से अब तक कुल 202 पत्रकार शहीद हो चुके हैं। ये आंकड़े न केवल पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की भयावहता को उजागर करते हैं, बल्कि उस कठिनाई को भी रेखांकित करते हैं जिसके बीच फ़िलिस्तीनी पत्रकार अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।
इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि इज़रायल द्वारा 145 पत्रकारों को हिरासत में लिया गया, जिनमें से करीब 60 अभी भी जेलों में बंद हैं इनमें से दो पत्रकार अब तक लापता हैं, जिनका कोई सुराग नहीं मिल सका है। यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और प्रेस स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है।
इज़रायली हमलों के कारण होने वाले कुल नुकसानों की ओर ध्यान दिलाते हुए, रिपोर्ट में बताया गया कि 7 अक्टूबर 2023 से अब तक 45,805 लोग शहीद हो चुके हैं।
घायलों की संख्या भी चौंकाने वाली है जो 109,064 तक पहुंच गई है यह आंकड़े न केवल मानव जीवन की अपूरणीय क्षति को दर्शाते हैं बल्कि यह भी दिखाते हैं कि मीडिया कर्मियों पर हमले न केवल स्वतंत्रता पर हमला हैं बल्कि यह उस सच्चाई को दबाने की कोशिश है जो दुनिया के सामने लाई जानी चाहिए।
फ़िलिस्तीनी पत्रकार संघ ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठनों से अपील की है कि वे इस अत्याचार के खिलाफ ठोस कदम उठाएं और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
अर्दोग़ान को चोट देने की तैयारी में लगा इस्राईल, सीरिया बनेगा रणक्षेत्र
फिलिस्तीन और सीरिया से ग़द्दारी करते हुए इस्राईल और अमेरिका के अरमानों को पूरा करने के जुटे अर्दोग़ान को अब इस्राईल से ही ज़ोर का झटका लगने वाला है। पिछले एक साल से भी अधिक समय से फिलिस्तीन में क़त्ले आम कर रहा इस्राईल अब अपने निकट सहयोगी अर्दोग़ान को झटका देने को तैयार है। इस्राईल नाटो सदस्य तुर्की के साथ युद्ध को लेकर तैयारी करने जा रहा है। नागेल कमेटी ने रक्षा बजट और सुरक्षा रणनीति से जुड़ी रिपोर्ट में इस्राईल को तुर्की के साथ सीधी टक्कर के लिए तैयार रहने को कहा है। ज़ायोनी सरकार ने इस समिति का गठन किया था। कमेटी ने कहा है कि तुर्की की महत्वाकांक्षा है कि खत्म हो चुके ओटोमन साम्राज्य की ताकत को फिर बहाल किया जाए। तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोग़ान की मुस्लिम दुनिया का खलीफा बनने की चाहत अवैध राष्ट्र के साथ तनाव बढ़ा सकती है, जो संभवतः संघर्ष में बदल सकता है।
सरदार शहीद क़ासिम सुलैमानी फ़ौजी सरहदों के साथ साथ अख़्लाक़ी सरहदों के रक्षक थें
जनरल कासिम सुलैमानी एक महान फ़ौजी के साथ साथ हमदर्द बाप परिवार वालों और समाज वालों से मेहरबानी से पेश आना हर मैदान में जितनी तारीफ की जाए कम हैं।
फ़ौजी संगठनों में ट्रेनिंग पाने और ऊंचे ओहदों तक पहुंचने वाले ज़्यादातर लोगों के पास, जो इस माहौल में पहुंचने से पहले जो भी नज़रिया और मेज़ाज रखते हों, फ़ौजी संगठन और माहौल में ख़ुद को ढालने के लिए अपने रवैये और नज़िरये को बदलने के अलावा कोई चारा नहीं होता। इस माहौल का तक़ाज़ा यह है कि अगर कोई हुक्म इंसान की सोच और व्यक्तिगत नज़रिये के ख़िलाफ़ भी है तब भी उस पर अमल किया जाए।
स्वाभाविक सी बात है कि इस तरह के माहौल में ढलना और उसे बर्दाश्त करना, कठिन और थका देने वाला होता है। इस माहौल का सबसे अहम नतीजा सारे सदस्यों की सोच, नज़रिये और रवैये को एक जैसा बनाना है।
अलग तरह के ऑप्रेशन्ज़ और जंग के मुख़्तलिफ़ मैदानों में काम कर चुके एक तजुर्बेकार कमांडर की हैसियत से शहीद क़ासिम सुलैमानी बड़े हैरतअंगेज़ तरीक़े से एक आला दर्जे के फ़ौजी कमांडर की ज़िम्मेदारियों, जिनमें से कुछ बहुत ही ख़ुश्क और पूरी तरह डिसिप्लिन वाली ज़िम्मेदारियां थीं और अख़लाक़ी मूल्यों पर अमल करने वाले एक इंसान, हमदर्द बाप और मेहरबान दोस्त के किरदार के बीच बहुत रोचक और कलात्मक तरीक़े से तालमेल बनाने में कामयाब हुए। इस लेख में शहीद अलहाज क़ासिम सुलैमानी की कुछ अहम ख़ुसूसियतों का सरसरी तौर पर जायज़ा लिया गया है।
सादगी और विनम्रता
चाहे व्यक्तिगत ज़िन्दगी हो या जंग का मैदान हो, शहीद क़ासिम सुलैमानी अपने पहनावे और रहन सहन के लेहाज़ से भी और बर्ताव के लेहाज़ से भी बहुत विनम्र मेज़ाज के थे। अपने ओहदे के बरख़िलाफ़ उनकी ज़िन्दगी के संसाधन एक आम इंसान की तरह ही थे।
ज़्यादातर प्रोग्रामों में जैसे शहीदों और अपने साथियों के जनाज़े के जुलूस, शहीदों के घरवालों और शहीदों के बच्चों से मुलाक़ात, तक़रीरों और अवाम से मुलाक़ातों में वह बिना किसी प्रोटोकोल के शरीक होते थे। वह इस बात से बड़ी शिद्दत से परहेज़ करते थे कि प्रोग्रामों या बैठकों में तवज्जो का केन्द्र बनें।
यहाँ तक कि एक बार किसी प्रोग्राम में तय पाया था कि दाइश को शिकस्त देने पर इस्लामी जुम्हूरिया ईरान की क़ुद्स फ़ोर्स को सम्मानित किया जाए, शहीद सुलैमानी को यह भनक लग गई कि ख़ुद उन्हें सम्मानित करने का प्रोग्राम है तो उन्होंने इस प्रोग्राम में शिरकत ही नहीं की और अपनी तरफ़ से एक नुमाइंदे को भेज दिया। उनकी यह सादगी और विनम्रता, जंग के मैदान में भी और उनके साथियों के बीच भी बहुत वाज़ेह थी।
सिहापियों से उनका रिश्ता कमांडर और सिपाही से ज़्यादा बाप-बेटे या दो भाइयों वाला था। उनके मातहत सिपाही फ़ौजी क़ानून और डिसिप्लिन से ज़्यादा उनसे मोहब्बत और अपनी दिली ख़्वाहिश की बिना पर उनके हुक्म की तामील करते थे। उनकी सादगी और इंकेसारी का अहम नमूना यह था कि सभी उन्हें, उनके नाम से पहचानते थे और फ़ौजी रैंक के बजाए, उनके नाम से पुकारते थे और कहते थेः हाज क़ासिम!
जंग के मैदान में भी अख़लाक़ी वैल्यूज़ पर पूरी तवज्जो
जंग के इलाक़ों में, जहाँ जंगी हथियारों की फ़ायरिंग की आवाज़ हर तरफ़ से सुनाई देती है, शहीद क़ासिम सुलैमानी मुख़्तलिफ़ मौक़ों पर ख़ुद को दाइश के ख़िलाफ़ कठिन ऑप्रेशनों के लिए तैयार करने वाले प्रतिरोध के जियालों के लिए मुख़्तसर तक़रीर किया करते थे। जंग के हालात से परिचित लोगों के लिए जनरल सुलैमानी की अख़लाक़ी बातों के सिलसिले में शायद सबसे पहला ख़याल यह आए कि वह अपने जांबाज़ों और फ़ोर्सेज़ को यह नसीहत कर रहे होंगे कि जंगी क़ैदियों के साथ बुरा बर्ताव न करें या औरतों और बच्चों के साथ बुरा सुलूक न करें।
हक़ीक़त यह है कि शहीद क़ासिम सुलैमानी एक सच्चे मुसलमान सिपाही की हैसियत से इन सारी चीज़ों का बहुत बारीकी से ख़्याल रखते थे। उनकी अख़लाकी महानता का एक छोटा सा पहलू उनकी इस बात से झलकता हैः ʺहमें, जो यहाँ (जंग के मैदान में) मौजूद हैं, हलाल और हराम पर गहरी नज़र रखनी चाहिए...हम, दूसरों के घरों को मनमाने ढंग से इस्तेमाल नहीं कर सकते।ʺ
जंग के इलाक़े में मौजूद ग़ैर फ़ौजी लोगों के जिस्म और जज़्बात को किसी तरह का कोई नुक़सान न पहुंचे, यह शहीद सुलैमानी के जंग के मैदान के अख़लाक़ का बुनियादी उसूल था और इस अख़लाक़ की बुनियाद इस्लाम की मूल शिक्षाएं और इस्लामी विचार थे।
एक बार सीरिया में दाइश के साथ जारी जंग में किसी इलाक़े में जनरल सुलैमानी ने किसी वीरान घर में नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ के बाद एक ख़त में घर के मालिक से नमाज़ पढ़ने की इजाज़त मांगी और अपना पता और टेलीफ़ोन नंबर तक उस घर में रख दिया ताकि बाद में घर के मालिक को अगर उनके वहाँ नमाज़ पढ़ने पर कोई एतराज़ हो या कोई मुतालेबा हो तो वह उसे पेश कर सके।
इसी तरह लड़ाई के दौरान एक जंगी इलाक़े के मुआयने की जनरन सुलैमानी की एक क्लिप मौजूद है जिसमें अचानक वह एक घबराई हुयी गाय को देखते हैं। वह ड्राइवर से गाड़ी रोकने के लिए कहते हैं और गाय के क़रीब जाकर खाने पीने की चीज़ें उसे देते हैं।
शहीद जनरल सुलैमानी का अख़लाक़ के लेहाज़ से चिंता का दायरा इतना व्यापक था उसमें ईरान के पहाड़ी इलाक़े के हिरन भी आते थे। इराक़ में दाइश के ख़िलाफ़ जंग के दौरान, ठंडक के मौसम में, उन्होंने आईआरजीसी की कमान के हेडक्वार्टर से संपर्क किया और अपने साथियों से कहा कि वह छावनी के क़रीब के हिरनों के लिए, जो क़रीब के पहाड़ में ज़िन्दगी गुज़ारते हैं, चारा रख दें क्योंकि सर्दी के मौसम में इन हिरनों के लिए अपने लिए चारा ढूंढना बड़ा कठिन होगा।
जनरल सुलैमानी की अज़ीम शख़्सियत का राज़
शहीद जनरल सुलैमानी जहाँ फ़ौजी और स्ट्रैटिजिक मामलों की पहचान में इतनी महारत रखते थे कि साम्राज्यवादी मोर्चे में उनके दुश्मन तक उनकी फ़ौजी ताक़त व सलाहियत के क़ायल थे, वहीं अख़लाक़ी बारीकियां उनके लिए इनती अहम थीं कि अपने बहुत ही व्यस्त मन में भी वह उनके लिए मुनासिब सोच और अमल के लिए गुंजाइश निकाल लेते हैं।
जनरल सुलैमानी की इतनी बहुमुखी शख़्सियत की इस कैफ़ियत की वजह उनके विचारों और नज़रियों में ढूंढी जा सकती है।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई जनरल सुलैमानी की शख़्सियत के बारे में कहते हैः ʺवह हक़ीक़त में सबके लिए क़ुरबानी का जज़्बा रखते थे। दूसरी ओर वह ख़ुलूस से काम करने वाले आध्यात्मिक और परहेज़ागर आदमी थे, उनमें सही अर्थों में आध्यात्मिकता थी और ज़रा भी दिखावा नहीं करते थे।
अलग अलग दुश्मनों के मुक़ाबले में वह अलग अलग मुल्कों के बियाबानों और पहाड़ी इलाक़ों में गए। वह इस्लाम और इमाम ख़ुमैनी की दर्सगाह में परवान चढ़ने वालों में नुमायां इंसान थे, उन्होंने अपनी पूरी उम्र अल्लाह की राह में जेहाद करते हुए गुज़ार दी।
सीरिया में ISIS की क्रूर कार्रवाई, कई नागरिकों को मौत के घाट उतारा
सीरिया की सत्ता पर क़ब्ज़ा जमाने के बाद तकफीरी आतंकी गुटों का क्रूर चेहरा खुल कर सामने आ रहा है। सीरिया मे तकफीरी आतंकियों के अत्याचार का शिकार 9 लोगों के शव मिले हैं।
सीरियाई सूत्रों ने कहा है कि दैरूज़्ज़ोर और हुम्स के निवासी आतंकियों के निशाने पर हैं। पिछले 24 घंटों के दौरान आतंकवादी संगठन ISIS ने 9 लोगों की हत्या कर दी है। पीड़ितों के शव बरामद कर लिए गए हैं, जिनमें से कुछ सीरियाई सेना के जवान भी हैं।
दैरूज़्ज़ोर और अन्य क्षेत्रों असद सरकार के पतन के बाद, आईएसआईएस तत्वों ने दर्जनों सैनिकों का अपहरण कर लिया और जिनमे से कुछ लोगों का अभी तक कोई अता पता नहीं है।
सूत्रों ने आगे कहा कि सीरिया में असद शासन के अंत के बाद आईएसआईएस के क्रूर अभियान तेज हो गए हैं, जबकि जोलानी शांति स्थापित करने के बजाय, ज़ायोनी अमेरिकी योजना को पूरा करने के लिए जुटा हुआ है।
महाकुंभ को बम से उड़ाने की धमकी, नासिर निकला आयुष
भारत मे इसलामोफोबिया के तहत नित नए हथकंडों के बीच अब महाकुंभ मे बम धमाकों की धमकी दी गई है। खास बात यह है कि नासिर के फर्जी नाम से यह धमकी किसी मुस्लिम ने नहीं बल्कि कट्टर हिन्दुत्व का शिकार आयुष ने दी।
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) मे महाकुंभ की तैयारी के बीच बिहार के पूर्णिया से नासिर पठान नाम के शख्स ने सोशल मीडिया पर प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ मेले को बम से उड़ाने की धमकी दी है। इस धमकी के बाद पुलिस सक्रिय हुई और पूर्णिया से एक युवक को गिरफ्तार कर लिया।
गिरफ्तारी के बाद पता चला कि धमकी देने वाला शख्स मुस्लिम नहीं बल्कि हिंदू है जिसका असली नाम आयुष कुमार जायसवाल है। यूपी पुलिस ने भवानीपुर थाने की मदद से शनिवार को आयुष को गिरफ्तार कर लिया।