
رضوی
जूलानी की चुप्पी और सीरिया में अमेरिकन और तुर्क सैनिकों में वृद्धि
सीरियाई सूत्रों के अनुसार, वाशिंगटन ने सीरिया के रक़्क़ा में एक उन्नत और विकसित सैन्य अड्डा बनाने के लिए पहला क़दम उठा लिया और उसे जूलानी की कमान में काम करने वाले तत्वों के किसी भी हमले या विरोध का सामना तक नहीं करना पड़ा ।
सीरियाई सूत्रों ने जूलानी के इशारे पर सीरिया के रक़्क़ा में पहले अमेरिकी सैन्य अड्डे के निर्माण की शुरुआत की सूचना दी है।
सीरियाई सूत्रों ने एलान किया है कि तीन हफ़्ते पहले से, अमेरिकी सेनाएं सीरिया में 10 सैन्य ठिकानों में अपने रैंकों को पुनर्गठित कर रही हैं और सैनिकों और सैन्य उपकरणों को इराक़ से सीरिया पहुंचा रही हैं।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी विशेष बलों को रक़्क़ा के बाहरी इलाक़े में सीरियाई सेना से संबद्ध एक सैन्य अड्डे पर तैनात किया गया है और इसके प्रवेश द्वार बंद कर दिए हैं।
कुछ दिनों पहले, यह बताया गया था कि अमेरिकी स्पेशल फ़ोर्स जिन्हें डेल्टा के नाम से जाना जाता है, खुद को एक ब्रांच-बेस पर तैनात करने के लिए, इराक़ के अल-वलीद बार्डर से सीरिया के रक़्क़ा पहुंची।
इस बीच, सीरियाई कुर्द डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेज़ (एसडीएफ) ने उत्तरी सीरिया में अलेप्पो के उपनगरीय इलाक़े में स्थित तिशरीन बांध के आसपास के इलाकों में एक पहाड़ी पर एक सैन्य अड्डा बनाने के तुर्किए के प्रयास की सूचना दी है।
इस ख़बर का एलान करते हुए सीरियाई कुर्दिश डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेज़ (एसडीएफ) ने पुष्टि की कि उन्होंने बनाए जा रहे तुर्किए के बेस पर हमला किया है।
अमेरिका समर्थित एसडीएफ ग्रुप पूर्वोत्तर सीरिया को नियंत्रित करता है, हालांकि, सीरिया में तुर्किये और उसके सहयोगी एसडीएफ़ के ख़िलाफ हैं और उक्त क्षेत्रों को उसके नियंत्रण से निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
सीरिया पर अबू मोहम्मद अल-जोलानी के नेतृत्व में तुर्किए के क़रीबी सशस्त्र विपक्षी गुटों के नियंत्रण और अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस सहित दूसरे पश्चिमी देशों के प्रतिनिधियों के साथ इस ग्रुप के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठकों से दबाव बढ़ने की वजह से एसडीएफ़ पर दबाव बढ़ने की उम्मीदें ज़्यसासदा हो गयी हैं।
ठीक उसी समय जब अमेरिका और तुर्किए ने सीरिया में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं, रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने जर्मन विदेश मंत्री से सीरिया में रूस के सैन्य ठिकाने के बारे में अटकलें लगाने के बजाय अपने देश में अमेरिकी अड्डों के भविष्य पर बातचीत करने की अपील की है।
रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता "मारिया ज़खारोवा" ने जर्मन विदेश मंत्री के हालिया बयानों के बारे में जिसमें उन्होंने कहा कि रूस को सीरिया में सैन्य अड्डों से वंचित कर दिया चाहिए, कहा कि यह बयान अमेरिकी सैन्य बेस की मेजबानी करने वाले देश की विदेशमंत्री द्वारा दिए जा रहे हैं।
यहां पर मेरा एक सवाल है: क्या जर्मन विदेश मंत्री वाशिंगटन से ऐसा अनुरोध करने के लिए तैयार हैं?
ज़ाखारोवा के अनुसार, जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक सीरिया में रूसी ठिकानों के बारे में अटकलें लगाने के बजाय अपने देश में अमेरिकी ठिकानों के भविष्य के बारे में बात करना पसंद करेंगी?
बश्शार असद" को सत्ता से हटाने के मक़सद से 27 नवम्बर 2024 की सुबह तक सीरिया में सशस्त्र विरोधियों ने देश के उत्तरी क्षेत्रों से अपना अभियान शुरू किया और अंततः 11 दिनों के बाद रविवार 8 दिसम्बर 2024 को दमिश्क शहर पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया जिसके बाद राष्ट्रपति बश्शार असद रूस भाग गये।
सीरिया में हालिया घटनाक्रम और इस देश पर विरोधियों का नियंत्रण तेज़ होने के बाद, रूस ने उत्तरी सीरिया से और इस देश के तटों पर स्थित ठिकानों से अपनी सेनाएं वापस बुला ली हैं लेकिन उसने अपने दो मुख्य ठिकानों, लाज़ेकिया के हमीमीम एयर बेस और तरतूस के नौसैनिक केंद्र को नहीं छोड़ा है।
बश्शार अल-असद की सरकार गिरने से पहले ईरान ने सीरिया से अपनी सलाहकार सेनाएं भी वापस बुला ली थीं। आईएसआईएस और अन्य आतंकवादी गुटों के हमले के बाद सीरियाई सरकार के सरकारी निमंत्रण पर ईरानी सलाहकार बलों को इस देश में भेजा गया था।
ज़ायोनी शासन ने दिसंबर मे 10 पत्रकारों की हत्या की
अवैध राष्ट्र इस्राईल ने गज़्ज़ा मे अपनी जनसंहार मुहिम के बीच पत्रकारों को भी जमकर निशाना बनाया है। फ़िलिस्तीनी पत्रकार संघ ने एक बयान में कहा है कि ज़ायोनी शासन लगातार फ़िलिस्तीनी पत्रकारों को जानबूझकर निशाना बना रहा है, जिसे पत्रकारों की सुनियोजित हत्या कहा जा सकता है।
इस बयान में कहा गया है कि पिछले महीने में, अतिक्रमणकारी ज़ायोनी सेना ने फिलिस्तीनी पत्रकारों के खिलाफ, विशेष रूप से गज़्ज़ा पट्टी में, अधिकारों के उल्लंघन, हमलों और जघन्य अपराध के 84 मामले किए, जिससे 10 पत्रकार शहीद हो गए। इनमें से पांच शहीदों को गज़्ज़ा के घटनाक्रम को सक्रिय रूप से कवर करते समय निशाना बनाया गया। इसके अलावा, फ़िलिस्तीनी पत्रकारों के परिवार के 8 सदस्य ज़ायोनी हमलों में शहीद हो गए और पत्रकारों और उनके परिवारों की 3 मंजिलें नष्ट हो गईं। दिसंबर महीने के दौरान गज़्ज़ा पट्टी में पांच पत्रकार घायल भी हुए।
इस्राईली हमलों के परिणामस्वरूप ग़ज़्ज़ा में कई मस्जिदों को नुकसान
फिलिस्तीनी बंदोबस्ती और धार्मिक मामलों के मंत्रालय ने रविवार को घोषणा की कि इजरायली हमलों के दौरान गाजा में दर्जनों मस्जिदें क्षतिग्रस्त या नष्ट हो गईं।
फ़िलिस्तीनी अधिकारियों ने कहा कि ज़ायोनी हमलों के परिणामस्वरूप गाजा में 1000 से अधिक मस्जिदें क्षतिग्रस्त हो गईं। तुर्की समाचार एजेंसी "टीआरटी" के अनुसार, फिलिस्तीनी अवकाफ मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि 815 मस्जिदें पूरी तरह से नष्ट हो गईं, जबकि 151 अन्य आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गईं।
वक़्फ़ मंत्रालय ने कहा कि इन हमलों के दौरान 19 कब्रिस्तान और 3 चर्च भी नष्ट हो गए हैं। यह विनाश 2024 में गाजा के खिलाफ इजरायल के हमलों के दौरान हुआ था।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टोर्क ने भी हमलों की निंदा करते हुए कहा, "गाजा में मानवाधिकारों का विनाश दुनिया की आंखों के सामने जारी है।" उन्होंने कहा कि इजराइल के सैन्य अभियानों के परिणामस्वरूप हजारों लोग शहीद हुए हैं, बड़े पैमाने पर विस्थापित हुए हैं और गाजा का क्षेत्र नष्ट हो गया है।
गाजा रेड क्रिसेंट के प्रमुख के अनुसार, इजरायली हमलों ने गाजा के 38 अस्पतालों में से 26 को पूरी तरह से अक्षम कर दिया है। पिछले हफ्ते, इजरायली सैनिकों ने कमाल अदवान अस्पताल पर हमला किया, अस्पताल के प्रमुख और 300 चिकित्सा कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया और मरीजों को जबरन बाहर निकाल दिया, जो गाजा की स्वास्थ्य प्रणाली के खिलाफ इजरायल का नवीनतम अपराध था।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त ने हमलों की जांच का आह्वान करते हुए कहा कि इजरायल के इस दावे की भी जांच की जानी चाहिए कि हमास साइटों का दुरुपयोग कर रहा है।
इमाम हादी अ.स.का ज़िक्र और उनके कथन हिदायत का एक महान स्रोत
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हुसैनी ने कहा,हज़रत इमाम हादी अ.स.की शहादत को हज़ार साल से अधिक का समय बीत चुका है लेकिन आज भी शैतानी स्वभाव वाले लोग सोशल मीडिया और दुश्मनों के प्रचार माध्यमों में इमाम हादी अ.स.को अपशब्द कहते और उनका अपमान करते हैं क्योंकि जहां इमाम हादी अ.स. का ज़िक्र और उनके कथन हों वहां हिदायत का एक महान स्रोत मौजूद होता है। दुश्मन यही चाहता है कि लोग उन्हें न पहचानें।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद मीर हाशिम हुसैनी ने हरम ए मुतहर हज़रत मासूमा स.ल. क़ुम में ख़िताब करते हुए कहा,अहले-बैत अ.स. से हमें जो सबक मिलता है वह यह है कि घमंड और मायूसी से बचना चाहिए।
ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं अहले-बैत अ.स.ने हमें यह सिखाया है कि बुलंदी के समय घमंड न करें और हार के समय मायूस न हों।
उन्होंने कहा,हज़रत इमाम हादी अ.स.ने अपनी छोटी सी उम्र में हिदायत का महान कार्य अंजाम दिया उन्होंने ऐसे हालात में अपनी इमामत की ज़िम्मेदारी निभाई जब तमाम ज़ालिम और साम्राज्यवादी ताकतें इस कोशिश में थीं कि अहले बैत अ.स. और उनकी तालीमात का नामोनिशान मिटा दें लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके।
हरम-ए-मुतहर हज़रत मासूमा स के इस खतीब ने कहा,आज भी अहले-बैत अ.स. के दुश्मन इमाम हादी अ.स.को बदनाम करने और उनकी पहचान मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जहां उनका ज़िक्र होता है वहां हिदायत के चश्मे फूटते हैं।
उन्होंने आगे कहा,अफ़सोस की बात यह है कि कभी कभी समाज में कुछ लोगों के कथन जैसे 'क़ौल सादिक़', 'क़ौल रज़ा', 'क़ौल अलहादी' और अन्य इमामों के फरामीन से अधिक प्रचलित हो जाते हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन हुसैनी ने कहा,
इमाम हादी अ.स. और अन्य इमामों अ.स.से नज़दीकी में अनगिनत बरकतें हैं। यही वजह है कि दुश्मनों ने उनकी तालीमात को मिटाने के लिए हर संभव कोशिश की लेकिन नाकाम रहे।
उन्होंने कहा,दुनियावी दौलत और इच्छाओं की वजह से कुछ लोगों ने इमाम रज़ा, इमाम जवाद और इमाम हादी अ.स. को छोड़कर वाक़िफ़िया फिरके की तरफ रुख कर लिया इमाम हादी अ.स. ने ऐसे दौर में बड़े कारनामे अंजाम दिए, जब मुनाफ़िक़त साम्राज्यवाद और बड़ी ताकतें अहले-बैत अ.स. का नाम मिटाने की कोशिश कर रही थीं।
इमाम तक़ी अ.स. का एक मुनाज़ेरा
इमाम रज़ा अ.स. को शहीद करने के बाद मामून चाहता था कि किसी
तरह से इमाम तक़ी अ.स. पर भी नज़र रखे और इस काम के लिये उसने अपनी बेटी उम्मे फ़ज़्ल का निकाह इमाम तक़ी से करना चाहा। इस बात पर तमाम अब्बासी मामून पर ऐतेराज़ करने लगे और कहने लगे कि अब जबकि अ़ली इब्ने मूसा रिज़ा अ.स. इस दुनिया से चले गये और खि़लाफ़त दुबारा हमारी तरफ़ लौटी है तो तू चाहता है कि फिर से खि़लाफ़त को अ़ली की औलाद को दे दे हम किसी भी हाल में यह शादी नहीं होने देगें। मामून ने पूछाः तुम क्या चाहते
इमाम तक़ी अ.स. का एक मुनाज़ेरा
इमाम रज़ा अ.स. को शहीद करने के बाद मामून चाहता था कि किसी तरह से इमाम तक़ी अ.स. पर भी नज़र रखे और इस काम के लिये उसने अपनी बेटी उम्मे फ़ज़्ल का निकाह इमाम तक़ी से करना चाहा।
इस बात पर तमाम अब्बासी मामून पर ऐतेराज़ करने लगे और कहने लगे कि अब जबकि अ़ली इब्ने मूसा रिज़ा अ.स. इस दुनिया से चले गये और खि़लाफ़त दुबारा हमारी तरफ़ लौटी है तो तू चाहता है कि फिर से खि़लाफ़त को अ़ली की औलाद को दे दे हम किसी भी हाल में यह शादी नहीं होने देगें।
मामून ने पूछाः तुम क्या चाहते हो? उन लोगों ने कहा ये लड़का नौजवान है और न ही इसके पास कोई इल्मो हिक्मत है तो मामून ने जवाब मे कहा तुम इस ख़ानदान को नहीं पहचानते अगर तुम चाहो तो आज़मा कर देख लो और किसी आलिम को बुला लाओ और इन से बहस करा लो ताकि मेरी बात की सच्चाई रौशन हो जाये।
अब्बासी लोगों ने याहिया बिन अक़सम नामक व्यक्ति को उसके इल्म की शोहरत की वजह से इमाम तक़ी अ.स. से मुनाज़रे के लिये चुना।
मामून ने एक जलसा रखा कि जिस में इमाम तक़ी अ.स. के इल्म और समझ को तौला जा सकता है। जब सब लोग हाज़िर हो गये तो याहिया ने मामून से पूछाः
क्या आपकी इजाज़त है कि मैं इस लड़के से सवाल करूं?
मामून ने कहा ख़ुद इन से इजाज़त लो, याहिया ने इमाम से इजाज़त ली तो इमाम ने फ़रमायाः जो कुछ भी पूछना चाहता है पूछ ले।
याहिया ने कहाः उस शख़्स के बारे में आप की क्या नज़र है कि जिसने अहराम की हालत में शिकार किया हो?
इमाम ने फ़रमायाः इस शख़्स ने शिकार को हिल मे मारा है या हरम में?
वो शख़्स अहराम की हालत में शिकार करने की मनाही को जानता था या नहीं जानता था??
उसने जानवर को जान के मारा है या ग़लती से??
ख़ुद वो शख़्स आज़ाद था या ग़ुलाम?
वह शख़्स छोटा था या बड़ा?
पहली बार यह काम किया था या पहले भी कर चुका था?
शिकार परिन्दा था या ज़मीनी जानवर?
छोटा जानवर था या बड़ा?
फिर से इस काम को करना चाहता है या अपनी ग़लती पर शरमिंदा है?
शिकार दिन में किया था या रात में?
अहराम उमरे का था या हज का?
याहिया बिन अक़सम अपने सवाल के अंदर होने वाले इतने सारे सवालों को सुन कर सकते में आ गया, उसकी कम इल्मी और कम हैसियती उसके चेहरे से दिखाई दे रही थी उसकी ज़बान ने काम करना बंद कर दिया था और तमाम मौजूदा लोगों ने उसकी हार को मान लिया था।
मामून ने कहा कि ख़ुदा का शुक्र कि जो मैं ने सोचा था वही हुआ है ओर फिर अपने रिश्तेदारों और ख़ानदान वालों से कहाः क्या अब उस बात को जान गये हो कि जिसे नहीं मान रहे थे?
कुछ देर बाद जलसा ख़त्म हो गया और सिवाये ख़लीफ़ा के ख़ास लोगों के सब लोग चले गये मामून ने इमाम तक़ी अ.स. की तरफ मुंह किया और इमाम के बयान किये हुवे हर एक मसले का जवाब इमाम से मालूम किया।
(ये आरटीकल जनाब मेहदी पेशवाई की किताब सीमाये पीशवायान से लिया गया है।)
इमाम अली नकी (अ) का उज्ज्वल जीवन
दुनिया के हर युग में वही नेता जीवित हैं, जिन्होंने ज़ुल्म और अत्याचार के माहौल में न्याय, ज्ञान और अंतर्दृष्टि के साथ मानवता का मार्गदर्शन किया और इमाम अली नक़ी (अ) का जीवन इसका एक उज्ज्वल उदाहरण है। नेतृत्व कि प्रत्येक विचारधारा के लिए, प्रेम एकता और नेतृत्व के सिद्धांतों का स्रोत है। आज के शासकों एवं सामाजिक नेताओं को अपने आचरण से निर्देशित होकर अपने दायित्वों का भलीभांति निर्वहन करना चाहिए।
दुनिया के हर युग में वही नेता जीवित हैं, जिन्होंने ज़ुल्म और अत्याचार के माहौल में न्याय, ज्ञान और अंतर्दृष्टि के साथ मानवता का मार्गदर्शन किया है और इमाम अली नक़ी (उन पर शांति हो) का जीवन इसका एक उज्ज्वल उदाहरण है। नेतृत्व जिसके लिए प्रत्येक विचारधारा प्रेम, एकता और नेतृत्व के सिद्धांतों का स्रोत है। आज के शासकों एवं सामाजिक नेताओं को अपने आचरण से निर्देशित होकर अपने दायित्वों का भलीभांति निर्वहन करना चाहिए।
अब्बासी सरकार का दबाव और इमाम (अ) की एकजुट भूमिका
इमाम अली नक़ी (अ) को अब्बासी ख़लीफ़ाओं, विशेषकर मुतावक्किल से गंभीर राजनीतिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उनकी लोकप्रियता को दबाने के लिए उन्हें समुराई में कैद कर लिया गया। लेकिन इमाम (अ) ने ज़ुल्म सहने के बावजूद अपनी नैतिकता, धैर्य और बुद्धिमत्ता से उम्मत का दिल जीत लिया। वह न केवल अपने अनुयायियों के लिए बल्कि अन्य विचारधारा के विद्वानों और जनता के लिए भी ज्ञान और आध्यात्मिकता का स्रोत थे। उनकी सभा में हर वर्ग के लोगों को अनुग्रह मिलता था।
नेतृत्व में इमाम की शैली
- न्याय एवं निष्पक्षता की स्थापना
इमाम अली नक़ी (अ) ने हमेशा न्याय और निष्पक्षता की शिक्षा दी। उनके अनुसार नेतृत्व का पहला कर्तव्य लोगों के अधिकारों की रक्षा करना और उत्पीड़न को समाप्त करने का प्रयास करना था। उनका जीवन यह सबक है कि न्याय से ही समाज में अमन-चैन स्थापित किया जा सकता है। यदि आज के शासक इस सिद्धांत को अपना लें तो सामाजिक विषमताएँ दूर हो सकती हैं।
- धार्मिक और शैक्षणिक एकता का उदाहरण
इमाम नक़ी (अ) ने अपने विद्वतापूर्ण तर्कों से हर विचारधारा के लोगों को प्रभावित किया। उनकी रचनाएँ और बातें तर्क और ज्ञान का सर्वोत्तम उदाहरण हैं। वह उन मुद्दों पर चर्चा करते थे जहां सभी विचारधाराओं के लिए समान मार्गदर्शन होता था। उनके व्यक्तित्व ने यह स्पष्ट कर दिया कि इस्लामी नेतृत्व को पूर्वाग्रह और संप्रदायवाद से ऊपर उठकर संपूर्ण उम्माह की सेवा करनी चाहिए।
- नैतिक नेतृत्व एवं उत्कृष्टता
इमाम (अ) के आचरण और चरित्र की छाप हर इंसान के दिल पर पड़ती है। अपने दुश्मनों को भी माफ कर देने और दया करने की उनकी आदत मुसलमानों के हर वर्ग के लिए एक मिसाल है। उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत हितों को महत्व नहीं दिया बल्कि हमेशा उम्माह की एकता और सुधार को अपना लक्ष्य बनाया।
इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम प्रेम और स्नेह का केंद्र
1- प्रेम पर आधारित रणनीतियाँ
इमाम अली नक़ी (अ) की शिक्षाएँ मानवता के प्रति सम्मान और सभी मुसलमानों के बीच प्रेम और स्नेह पर आधारित थीं। ये शिक्षाएं सभी विचारधाराओं को आमंत्रित करती हैं कि इस्लाम का असली चेहरा सांप्रदायिकता नहीं बल्कि एकता और भाईचारा है।
2- गैर-मुसलमानों के साथ व्यवहार
इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम के समय में न केवल मुसलमान बल्कि अन्य राष्ट्र भी उनके व्यक्तित्व से प्रभावित थे। उनकी शैली ने सिखाया कि सच्चा नेतृत्व मानवता के प्रत्येक सदस्य के लिए करुणा और दया की अभिव्यक्ति है।
इमाम अली नक़ी का नेतृत्व, ज्ञान और धैर्य आज के शासकों के लिए एक प्रकाशस्तंभ है। यदि प्रत्येक विचारधारा अपने जीवन को अपना आदर्श बना ले तो समाज न्याय, एकता और प्रेम का उद्गम स्थल बन सकता है। उनके सदाचारी जीवन का हर पहलू यह संदेश देता है कि नेतृत्व बल से नहीं, बल्कि नैतिकता, न्याय और परोपकार से होता है। ये सिद्धांत प्रत्येक शासक और प्रत्येक विचारधारा के अनुयायियों के लिए सम्मान और प्रेम का कारण हैं।
हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह सभी मुसलमानों को एकता और भाईचारे के रास्ते पर चलने में मदद करें, क्योंकि जब तक सभी मुसलमान एक मंच पर नहीं होंगे, दुश्मन हमारे बीच तरह-तरह की फूट पैदा करते रहेंगे।
हिज़्बुल्लाह अपनी क्षमताओं को आदिशक्ति प्रदान किया
अहमद अराक़ची ने एक साक्षात्कार में स्पष्ट किया कि ईरान का सीरिया के साथ संबंध वहां के पक्ष के व्यवहार पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा, “प्रतिरोध का भविष्य अभी भी उज्ज्वल है, और हिज़्बुल्लाह लगातार अपनी क्षमताओं को पुनः सशक्त कर रहा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार ,अहमद अराक़ची ने एक साक्षात्कार में स्पष्ट किया कि ईरान का सीरिया के साथ संबंध वहां के पक्ष के व्यवहार पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा,प्रतिरोध का भविष्य अभी भी उज्ज्वल है और हिज़्बुल्लाह लगातार अपनी क्षमताओं को पुनः सशक्त कर रहा है।
अहमद अराक़ची ने हमास और इज़रायली शासन के बीच युद्ध विराम पर हो रही अप्रत्यक्ष वार्ता के बारे में कहा कि ईरान किसी भी समझौते का समर्थन करेगा जिस पर हमास और फिलिस्तीनी खुद सहमत होंगे।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि तेहरान निर्माणात्मक और बिना देरी के वार्ता के लिए तैयार है। उन्होंने कहा ईरान का फॉर्मूला वही है जो परमाणु समझौते (JCPOA) में था। परमाणु कार्यक्रम को लेकर विश्वास पैदा करना और इसके बदले में प्रतिबंधों को हटाना।
उन्होंने बताया कि ईरान और यूरोपीय देशों के बीच वार्ता का दूसरा दौर दो हफ्ते के भीतर होगा। उन्होंने कहा,यूरोपीय देशों के साथ एक दौर की वार्ता हो चुकी है। दूसरा दौर निर्धारित किया गया है और यह अगले दो हफ्तों के अंदर तीन यूरोपीय देशों के साथ होगा।
उन्होंने कहा,ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम पर वार्ता फिर से शुरू करने के लिए तैयार है हमने 2 साल से अधिक समय तक 1+5 देशों के साथ ईमानदारी से वार्ता की और अंततः एक समझौते पर पहुंचे।
उन्होंने यह भी कहा दुनिया भर ने इस समझौते को एक राजनयिक सफलता के रूप में स्वीकार किया और सराहा। हमने इसे ईमानदारी से लागू किया, लेकिन अमेरिका ने बिना किसी कारण और तर्क के इससे बाहर होने का फैसला किया और स्थिति को यहां तक पहुंचाया।
अहमद अराक़ची ने अमेरिका के 2018 में JCPOA से बाहर होने को “बहुत बड़ी और रणनीतिक गलती” करार दिया। उन्होंने कहा 2015 से अब तक 10 साल बीत चुके हैं और कई घटनाक्रम हुए हैं। अमेरिका का समझौते से बाहर होना एक बड़ी रणनीतिक गलती थी, जिससे ईरान ने अपनी प्रतिक्रिया दी।
उन्होंने कहा,एक राजनयिक के रूप में मेरा मानना है कि सबसे कठिन परिस्थितियों में भी राजनयिक समाधान मिल सकते हैं, बशर्ते राजनीतिक इच्छाशक्ति हो और राजनयिक, रचनात्मकता और पहल दिखाएं। उन्होंने कहा, अगर विरोधी पक्षों में राजनीतिक इच्छाशक्ति है, तो समाधान खोजना मुश्किल हो सकता है लेकिन असंभव नहीं।
चीन और रूस की भूमिका पर उन्होंने कहा,चीन और रूस दोनों अतीत में प्रभावी वार्ता के सदस्य रहे हैं और ईरान के दृष्टिकोण से इन्हें अपनी रचनात्मक भूमिका जारी रखनी चाहिए यह हमारी इच्छा और उद्देश्य है।
साक्षात्कार में ईरान के विदेश मंत्री ने सीरिया के मुद्दे पर कहा,ईरान का मानदंड सीरिया के शासकों का व्यवहार है। उन्होंने कहा,हम सिर्फ सतही बदलाव नारों और घोषणाओं पर निर्णय नहीं लेते। हम प्रतीक्षा करेंगे कि संक्रमणकालीन सरकार अपनी नीतियां घोषित करे और स्थिरता प्राप्त करे निर्णय उनके व्यवहार के आधार पर लिया जाएगा।
उन्होंने स्पष्ट किया,ईरान पूरी नीयत से सीरिया में शांति चाहता है और वहां स्थिरता लाने में मदद करना चाहता है उन्होंने यह भी कहा,सभी क्षेत्रीय देशों को सहयोग करना चाहिए ताकि एक समावेशी सरकार बनाई जा सके, जो सीरिया के सभी समुदायों और समूहों को शामिल करे।
स्वीडन की राजधानी में इज़रायली अत्याचारों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन
स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम के मध्य क्षेत्र "ओडेन पॉलिन" में फिलिस्तीन समर्थकों का सामूहिक प्रदर्शन हुआ, प्रदर्शनकारी "फिलिस्तीन की आजादी" के नारों के साथ विदेश मंत्रालय की ओर मार्च कर रहे थे।
स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम के मध्य क्षेत्र "ओडेन पॉलिन" में फिलिस्तीन के समर्थकों द्वारा एक बड़ा प्रदर्शन किया गया।
प्रदर्शन में भाग लेने वाले एक कार्यकर्ता ने इजराइल की नापाक महत्वाकांक्षाओं और अधिक भूमि पर कब्जे के बारे में बात करते हुए कहा कि ऐसी सभाओं का उद्देश्य इन महत्वाकांक्षाओं को रोकना है।
प्रदर्शन में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया और तत्काल युद्धविराम, गाजा में इजरायली अत्याचारों को समाप्त करने और मानवीय सहायता प्रदान करने की मांग की। इस अवसर पर, प्रदर्शनकारियों ने बैनर और तख्तियां ले रखी थीं जिन पर लिखा था, "गाजा के बच्चों को मारा जा रहा है", "स्कूलों और अस्पतालों पर बमबारी की जा रही है", "नरसंहार बंद करो" और "फिलिस्तीन हमेशा के लिए रहेगा" ये संदेश सूचीबद्ध थे।
स्वीडिश कार्यकर्ता अलिकी हार्वे ने समाचार एजेंसी "अनातोली" को बताया कि इज़राइल का अंतिम लक्ष्य "ग्रेटर इज़राइल" बनाना है, और फिलिस्तीन समर्थक समूह इस योजना को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, "मैं यहां एक स्वतंत्र फिलिस्तीन का समर्थन करने के लिए आया हूं, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अब इजरायल पर प्रतिबंध लगाने, हथियारों की आपूर्ति में कटौती करने और युद्ध को समाप्त करने के लिए एकजुट होना चाहिए।"
हार्वे ने इस बात पर जोर दिया कि अमेरिका को इजराइल को हथियार भेजने से रोका जाना चाहिए और युद्ध अपराधों के लिए इजराइल को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए। जब तक इज़राइल खुद को रक्षात्मक रूप से कार्य करने के रूप में चित्रित करता रहेगा, वह एक आक्रामक आतंकवादी राज्य के रूप में भूमि पर कब्जा करना जारी रखेगा।"
इस बीच, गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि 7 अक्टूबर, 2023 से जारी युद्ध में शहीदों की संख्या 45,658 तक पहुंच गई है, जबकि 108,583 लोग घायल हुए हैं। कई लोग अभी भी मलबे में दबे हुए हैं और बचाव दल उन्हें बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं।
म्यांमार: जुंटा सरकार वार्षिक माफी के तहत 6,000 कैदियों को रिहा करेगी
म्यांमार की जुंटा सरकार ने वार्षिक माफी के तहत 6,000 कैदियों को रिहा करने की घोषणा की है। सरकार ने पहले फरवरी 2021 के तख्तापलट के बाद से हजारों प्रदर्शनकारियों और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है, जिसने म्यांमार के संक्षिप्त लोकतंत्र को समाप्त कर दिया और देश को अराजकता में डाल दिया।
म्यांमार की उग्रवादी जुंटा सरकार ने शनिवार को घोषणा की कि वह देश के स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में वार्षिक माफी के हिस्से के रूप में लगभग 6,000 कैदियों को रिहा करेगी। सत्तारूढ़ जुंटा ने कहा कि उसने मानवीय आधार पर माफी का आदेश दिया है। सरकार ने एक बयान में कहा, "जैसा कि देश ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से आजादी के 77 साल पूरे कर लिए हैं, 5,800 से अधिक कैदियों को रिहा कर दिया गया है।" हालाँकि, बयान में यह नहीं बताया गया कि इन कैदियों को किस अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था, या ये विदेशी किस देश के हैं, जिन्हें जनता द्वारा देश से बाहर निकाला जाएगा यह भी घोषणा की गई कि जिन 144 व्यक्तियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, उनकी सजा को 15 साल में बदल दिया जाएगा।
गौरतलब है कि म्यांमार अक्सर बौद्ध त्योहारों के मौके पर माफी की घोषणा करता है। पिछले साल 9,000 से अधिक कैदियों को रिहा किया गया था। राजधानी में वार्षिक स्वतंत्रता दिवस समारोह में लगभग 500 सरकारी और सैन्य प्रतिभागियों ने भाग लिया था। जनता प्रमुख, जो इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं थे, ने अपना भाषण उप सेना प्रमुख द्वारा पढ़ा। उन्होंने भाषण में दर्जनों जातीय सशस्त्र समूहों को हथियार डालने और शांतिपूर्ण तरीकों से राजनीतिक मुद्दे को हल करने की चेतावनी दी सेना ने लोकतांत्रिक चुनाव कराने का वादा किया और राष्ट्रीय एकता पर जोर दिया।
केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने अजमेर दरगाह में चढ़ाई PM मोदी की चादर
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने उर्स के मौके पर चादर चढ़ाई किरेन रिजिजू ने कहा कि लाखों लोग यहां आते हैं उन्हें शांति से प्रार्थना करने का मौका मिलना चाहिए।
एक रिपोर्ट के अनुसार , केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू शनिवार 4 जनवरी 2025 को पीएम नरेंद्र मोदी की भेजी हुई चादर लेकर अजमेर पहुंचे लगातार चल रहे अजमेर विवाद के बीच किरेन रिजिजू ने प्रधानमंत्री की तरफ से भेजी गई चादर अजमेर शरीफ की दरगाह पर चढ़ाई ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में चादर चढ़ाने पहुंचे किरेन रिजिजू ने कहा, अजमेर में उर्स के दौरान गरीब नवाज की दरगाह पर जाना हमारे देश की पुरानी परंपरा है।
किरेन रिजिजू ने कहा कि इस बार उर्स के मौके पर गरीब नवाज के यहां चादर चढ़ाने का मौका मुझे मिला है प्रधामनमंत्री मोदी का पैगाम भाईचारा और पूरा देश एक जुट होकर मिलजुल कर रहने का है. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि देश के एकजुट रहने के संदेश के साथ ही मैं अजमेर दरगाह में जा रहा हूं।
केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि कल हम निजामुद्दीन दरगाह में भी गए थे और वहां भी हमने सबके साथ मिलकर चादर चढ़ाया फिर दुआ मांगी रिजिजू ने कहा कि उर्स के इस शुभ अवसर पर हम सब यह चाहते हैं कि देश में अच्छा माहौल बनें और कोई भी ऐसा काम ना करें जिससे सौहार्द बिगड़े
उन्होंने कहा कि गरीब नवाज के यहां चाहे हिंदू हो, मुसलमान हो, बौद्ध हो, इसाई हो, सिख हो, पारसी हो, जैन हो सब आते हैं सबके लिए यहां दरवाजा खुला है, सबका यहां स्वागत है. नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री होने के नाते पूरे देश की तरफ से मुझे भेजा है मैं यहां प्रधानमंत्री के संदेश को पढ़ूंगा
किरेन रिजिजू ने कहा कि ख्वाजा मोईनूद्दीन चिश्ती के बारे में पूरी दुनिया जानती हैं. लाखों लोग यहां आते हैं. हालांकि यहां आने के लिए लोगों को खास कर महिलाओं और बुजुर्गों को काफी परेशानी होती है. हमारा अल्पसंख्यक मंत्रालय यहां के लिए कुछ नया लॉन्च करेगा।