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एक ज़ायोनी मीडिया ने स्वीकार किया कि इज़राइली शासन पश्चिम एशिया में तुर्किए के विस्तारवाद पर अंकुश लगाना चाहता है और सीरिया को कई क्षेत्रों में विभाजित करके क्षेत्र में अपने हितों को सुरक्षित करना चाहता है।

ज़ायोनी समाचार पत्र "येदियेत अहारनोत" ने एलान किया है कि "बश्शार असद" की सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद "नए सीरिया" में स्थापित दिखावे की शांति बहुत चिंताजनक है।

ज्यादातर विश्लेषकों का मानना ​​है कि सीरिया जल्द ही आतंकियों का अड्डा बन जाएगा।

इस ज़ायोनी अख़बार का मानना ​​है कि सीरिया में सशस्त्र विपक्ष के नेता "अबू मोहम्मद अल-जुलानी" के दुनिया के संबंध में और निश्चित रूप से इज़राइल के बारे में दिए गये बयानों को, जो हर पल अपना रूप बदलते रहे हैं और धीरे-धीरे एक सैन्य वर्दी से सूट और टाई वाले व्यक्ति में बदल चुके हैं, ग़लत नहीं ठहराया जाना चाहिए और ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।

वहीं राजनीतिक मुद्दों के विश्लेषक "अब्दुर्रहीम अंसारी" ने भी मौजूदा सीरिया को पूरी तरह से मक़बूज़ा देश क़रार दिया है।

एक्स सोशल नेटवर्क पर "अंसारी" ने इस सवाल के जवाब में कहा कि सीरिया पर क़ब्ज़ा होगा या नहीं? उन्होंने लिखा, ''सीरिया पर अभी क़ब्ज़ा है। इस देश की सरकार पर हावी विद्रोहियों का नेता, सीरियाई नहीं कहा जाता है।

इस विश्लेषक ने आगे कहा, इस देश की नई सरकार में 50 से अधिक ग़ैर-सीरियाई लोगों को नियुक्त किया गया है, जिनमें से कुछ को अरबी भी नहीं आती है, ऐसी व्यवस्था नहीं चलेगी।

पश्चिम एशियाई मुद्दों के एक अन्य विशेषज्ञ हुसैन हाजी भी मानते हैं कि सीरिया में स्थिति बहुत नाज़ुक है और सीरिया में मौजूदा संकट ऐसा है कि इसने कई राजनेताओं को भ्रमित कर दिया है।

उनके अनुसार, 40 से अधिक ग्रुप्स, जिनमें से सभी को राजनीतिक हथियारबंदी की उपाधि प्राप्त है, सीरिया में हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं और यह एक दोहरी घटना है।

राजनीतिक मुद्दों के विशेषज्ञ सैफ़ अल-रज़ा शेहाबी ने ज़ोर देकर कहा: अमेरिका और इज़राइल की रणनीतियों में, अरब और इस्लामी देशों को विभाजित करना है, और अब वाशिंगटन और तेल अवीव सीरिया को विभाजित करने के लिए सबसे अच्छी पोज़ीशन में हैं।

आयतुल्लाह दरी नजफ़ाबादी ने शहीद सुलैमानी की पांचवीं बरसी के मौके पर अपने एक संदेश में इस महान शहीद को ज़ुल्म और नाइंसाफी के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक करार दिया और कहा,उनकी याद हमेशा क़ौमों के दिलों में ज़िंदा रहेगी।

एक रिपोर्ट के अनुसार , सूबा ए मरकज़ी में वली ए फ़क़ीह के नुमाइंदे आयतुल्लाह क़ुरबान अली दरी नजफ़आबादी ने शहीद क़ासिम सुलैमानी की पांचवीं बरसी के मौके पर जारी अपने संदेश में कहा,यह महान शहीद ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध की प्रतीक हैं और आधुनिक ईरानी व क्षेत्रीय इतिहास में उनका एक अनोखा स्थान है उनकी याद हमेशा क़ौमों के दिलों में ज़िंदा रहेगी।

आयतुल्लाह दरी नजफ़आबादी ने कहा,पाँच साल गुज़र चुके हैं जब इस बहादुर फ़ौजी सिपाह-ए-कुद्स के मशहूर कमांडर शहीद क़ासिम सुलैमानी को शहीद किया गया।

वैश्विक अहंकार और स्वतंत्रता-प्रेमी क़ौमों के खूंखार दुश्मन, जिनकी अगुवाई शैतानी राज्य आतंकवाद और आपराधिक यहूदीवाद कर रहे थे ने हमारे अज़ीज़ सालार और उनके साथी मुजाहिदीन के खून को बहाकर दुनिया को अपनी असली सूरत दिखा दी।

लेकिन वे यह नहीं जानते थे कि जैसे 61 हिजरी में कर्बला के शहीदों के पवित्र खून ने इस्लाम को और ज़िंदा कर दिया था वैसा ही यहां भी है।

उन्होंने कहा,सालार सुलैमानी तमाम पीढ़ियों के लिए एक बेहतरीन आदर्श हैं वे निस्संदेह इस्लामी क्रांति और रक्षा आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक थे।

आयतुल्लाह दरी नजफ़आबादी ने कहा,रहबर-ए-मुअज़्ज़म ने शहीद सुलैमानी की शहादत के मौके पर अपने संदेश में उन्हें इस्लाम के प्रशिक्षित और इमाम ख़ुमैनी रह. के मक़तब के शिष्य कहा उनके आचरण, व्यवहार और जीवन के हर पहलू में इस मक़तब की झलक साफ़ देखी जा सकती है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा मक़ारिम शीराज़ी ने विश्व प्रतिरोध दिवस के अवसर पर अपने बयान में कहा कि हमें हर हाल में इस्लामी प्रतिरोध को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास करना चाहिए।

एक रिपोर्ट के अनुसार , आयतुल्लाहुल उज़मा नासिर मक़ारिम शीराज़ी ने विश्व प्रतिरोध दिवस के अवसर पर अपने बयान में कहा कि चाहे हम धर्म के अनुयायी हों या केवल दुनियावी मामलों में रुचि रखने वाले इस्लाम के समर्थक हों या केवल राष्ट्र और जाति के प्रेमी राजनेता हों या धर्मगुरु हर स्थिति में इस्लामी प्रतिरोध के पुनर्जीवन के लिए प्रयास करना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा कि अल्लाह तआला ही सच्ची उम्मीद का स्रोत और इंसान की स्थिरता और प्रतिरोध का मूल केंद्र है इसी कारण हमें हर क्षेत्र में अल्लाह पर भरोसा करते हुए इस्लामी प्रतिरोध को मजबूत करने के लिए संघर्ष करना चाहिए।

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन नासिर रफ़ीई ने हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के पवित्र हरम में तकरीर करते हुए कहा कि माहे रजब माफी रहमत और अल्लाह के करीब होने का महीना है।

एक रिपोर्ट के अनुसार , हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन नासिर रफ़ीई ने हज़रत मासूमा सलामुल्लाह अलैहा के पवित्र हरम में भाषण करते हुए कहा कि माहे रजब माफी, रहमत और अल्लाह के करीब होने का महीना है इस महीने को तौबा तवस्सुल और बदलाव के लिए खास अहमियत दी जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस्लामी इतिहास की कई अहम घटनाएँ इन्हीं महीनों में घटी हैं जैसे कि रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वआलिहि वसल्लम की बअसत माहे रजब में कुरआन का नुज़ूल (उतरना) माहे रजब में और मुंजी-ए-आलम बशरियत (इमामे ज़माना) की विलादत माहे शाबान में हुई।

हुज्जतुल इस्लाम रफ़ीई ने इमाम बाकिर अलेहिस्सलाम की शख्सियत पर रौशनी डालते हुए कहा कि वे इबादत सामाजिक मामलों और राजनीतिक मैदान में एक मुकम्मल मिसाल थे उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अल्लाह की रज़ा को अहमियत दी और अपने मानने वालों को हमेशा अल्लाह के जिक्र से गाफिल न होने की ताकीद की।

उन्होंने कहा कि इमाम बाकिर अलेहिस्सलाम ने सामाजिक रिश्तों और उम्मत-ए-मुसलिमा के मामलों पर खास तवज्जो दी और अपने दौर के ज़ालिम हुक्मरान के हाथों शहीद हुए।

कासिम सुलैमानी की शहादत की बरसी के मौके पर उन्होंने कहा,शहीद सालार कासिम सुलैमानी तक़वा, इख़लास, अहले बैत अ.स. से मोहब्बत, तवाज़ो (नम्रता), ज़हानत (बुद्धिमत्ता), मज़बूत इंतेज़ामी सलाहियत (प्रबंधन क्षमता) और इनक़लाबी रूह (क्रांतिकारी भावना) के मालिक थे। उनकी शुजाअत (बहादुरी) और दुश्मन से बेख़ौफ़ी उनकी अहम खूबियों में शामिल थीं। वह दुश्मन के लिए एक बड़ी रुकावट थे इसलिए उन्हें अमेरिका के अभिशप्त राष्ट्रपति के हुक्म पर शहीद कर दिया गया।

आख़िर में उन्होंने शहीद कासिम सुलैमानी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वे दीनदार अहले बैत के आशिक बहादुर, विनम्र और बेहतरीन प्रशासक थे उनकी जिंदगी इस्लाम और मुसलमानों की खिदमत के लिए वक़्फ़ थी और उनकी शहादत ने उनकी जद्दोजहद को और भी ज़िंदा कर दिया।

ब्रिटेन में महिलाओं के ख़िलाफ हिंसा एक चिंताजनक संकट बन गई है।

ब्रिटिश समाचारपत्र द गार्डियन ने एक चौंकाने वाली रिपोर्ट में लिखा है कि ब्रिटेन में पिछले साल (2024) में 80 महिलाओं की हत्या कर दी गई और यह समस्या अभी भी इंग्लैंड के लिए एक जटिल और चिंताजनक मुद्दा है।

यह रिपोर्ट एक व्यापक समस्या का ही एक हिस्सा है, जिसकी पुष्टि आधिकारिक आंकड़े भी करते हैं।

ब्रिटिश पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, इस देश में औसतन हर तीन दिन में एक महिला की हत्या एक पुरुष द्वारा कर दी जाती है।

यह चिंताजनक आँकड़ा न केवल संकट की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि इसके अंतर्निहित कारणों और कारकों की जांच करने की आवश्यकता पर भी रोशनी डालता है।

 

 इंग्लैंड में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा, कारण और छुपे कारक

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इंग्लैंड में महिलाओं के ख़िलाफ हिंसा में वृद्धि के पीछे कई कारक शामिल हैं। इस देश की लैंगिक मुद्दों पर समाजशास्त्री और विशेषज्ञ सारा जॉनसन कहती हैं: महिलाओं के ख़िलाफ हिंसा लैंगिक असमानता की संस्कृति में निहित है जो अभी भी आधुनिक ब्रिटिश समाज में नज़र आती है।

उन्होंने कहा: शक्ति की असमानता, आर्थिक निर्भरता और सांस्कृतिक मुद्दे अभी भी ऐसे कारक हैं जो घरेलू हिंसा और अन्य अपराधों का आधार बनते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रकार की हिंसा में नशीली दवाओं और शराब की लत जैसे कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इंग्लैंड में हाल के वर्षों में दर्ज किए गए कई हत्या के मामले, जिनमें गार्जियन द्वारा रिपोर्ट किए गए मामले भी शामिल हैं, नशीली दवाओं की लत से जुड़े हुए हैं।

इंग्लैंड में एक आपराधिक मनोवैज्ञानिक प्रोफ़ेसर जेम्स रिचर्डसन का मानना ​​है कि इन पदार्थों के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव, विशेष रूप से घरेलू वातावरण में, हिंसक तनाव पैदा करने में एक महत्वपूर्ण कारक हैं।

एक अन्य महत्वपूर्ण कारक हिंसा से निपटने के बारे में शिक्षा और सार्वजनिक जागरूकता की कमी है।

इंग्लैंड में महिला अधिकार कार्यकर्ता "एमिली स्टीवर्ट" के अनुसार, स्कूलों में बचपन से शिक्षा के साथ समाज में संस्कृति महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

दुर्भाग्य से, कई मामलों में, महिलाओं को क़ानूनी सुरक्षा से लाभ नहीं मिलता है। ब्रिटिश न्याय प्रणाली की नाकामी और पीड़ितों की सुरक्षा अन्य मुद्दे हैं जिन पर विशेषज्ञ ध्यान देते रहे हैं।

इंग्लैंड में घरेलू और यौन हिंसा के कई पीड़ित हिंसा की रिपोर्ट करने से बचते हैं क्योंकि उन्हें इस देश की न्याय प्रणाली पर भरोसा नहीं है।

घरेलू हिंसा के पीड़ितों का बचाव करने वाली वकील "एलिज़ाबेथ मैक्कार्थी" इस बारे में कहती हैं: लंबी और जटिल न्यायिक प्रक्रियाएं, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समर्थन की कमी, और कुछ मामलों में, पीड़ितों की उसी हिंसक माहौल में वापसी की वजह से कई महिलाएं अपने मामलों को आगे बढ़ाने की हिम्मत ही नहीं करतीं। इस मुद्दे के कारण न केवल हिंसा जारी है, बल्कि अपराधियों को जवाबदेह ठहराने की संभावना भी कम हो गई है।

उनके अनुसार, इंग्लैंड में एक और गंभीर समस्या सहायता सेवाएं प्रदान करने के लिए संसाधनों और धन की कमी है।

पीड़ितों को परामर्श और अस्थायी आवास जैसी सेवाएं प्रदान करने वाले कई सहायता केंद्र धन की कमी का सामना कर रहे हैं।

इस समस्या की वजह से कई पीड़ितों को मदद पाने में बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पारंपरिक कारकों के साथ नई तकनीकों ने भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा में नए मौक़े और आयाम पैदा कर दिए हैं।

 विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इंग्लैंड में डिजिटल स्टॉकिंग (stalking) और साइबर उत्पीड़न जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं।

 

घरेलू हिंसा पर टेक्नालाजी के प्रभाव के शोधकर्ता क्लेयर एंड्रयूज का कहना है कि टेक्नालाजी अपराधियों को अपने पीड़ितों को नियंत्रित करने और उनके साथ दुर्व्यवहार करने के लिए विकसित उपकरणों का इस्तेमाल करने की इजाज़त देती है।

सॉफ़्टवेयर को ट्रैक करना, सोशल मीडिया यूज़र्स के अकाउंट्स की हैकिंग और यहां तक ​​कि ऑनलाइन धमकियां, उन चीज़ों में से हैं, जिन्होंने महिलाओं को नई हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया है।

विशेषज्ञों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ हिंसा का संकट केवल पीड़ितों तक ही सीमित नहीं है बल्कि, परिवार, बच्चे और आम तौर पर ब्रिटिश समाज इन हिंसा से प्रभावित होते हैं।

हालांकि इस समस्या से निपटने के लिए कुछ शुरुआती उपाय किए गए हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना ​​है कि ये उपाय पर्याप्त नहीं हैं और तत्काल और गंभीर कार्रवाई के बिना ये दुखद आंकड़े जारी रहेंगे।

आतंकवाद से मुक़ाबले के महानायक जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत की पांचवीं बरसी गुरूवार को ईरान के किरमान प्रांत में मनाई गयी। इस अवसर पर दसियों हज़ार लोग उनकी समाधि पर हाज़िर हुए।

जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत की पांचवीं बरसी के कार्यक्रम का आरंभ, इराक़ी अधिकारियों द्वारा शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की समाधि पर भावभीन श्रद्धांजलि अर्पित करना, नये ईसवी साल के आरंभ होने के साथ ग़ाज़ा के लोगों के समर्थन में कई देशों में प्रदर्शन, कड़ाके की ठंड और फ़िलिस्तीनियों की जानों को ख़तरा, अमेरिका के न्यू ऑर्लियंस में ट्रक से हमला, ट्रम्प के होटल के सामने विस्फ़ोट और यूरोप को रूसी गैस का निर्यात बंद, ईरान और विश्व की कुछ महत्वपूर्ण ख़बरें हैं जिनका हम यहां पर उल्लेख कर रहे हैं।

शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी इस्लामी फ़ोर्स सिपाहे पासदारान आईआरजीसी के क़ुद्स ब्रिगेड के कमांडर थे और तीन जनवरी 2020 को वे इराक़ी सरकार के आधिकारिक निमंत्रण पर इराक़ की यात्रा पर थे और बग़दाद के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से बाहर कुछ दूरी पर अमेरिका के आतंकवादी सैनिकों ने ड्रोन से उन पर आक्रमण किया जिसमें वह शहीद हो गये। उनके साथ इराक़ के स्वयं सेवी बल हश्दुश्शाबी के डिप्टी कमांडर अबू मेंहदी अलमोहिन्दिस और दूसरे आठ लोग भी शहीद हो गये।

आतंकवाद के महानायक जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत की पांचवी बरसी मनाई गयी। उनकी शहादत की बरसी के कार्यक्रम में दसियों हज़ार लोगों ने भाग लिया। 

इराक़ के स्वयं सेवी बल हश्दुश्शाबी के प्रमुख फ़ालेह अलफ़य्याज़ ने बुधवार को शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की शूरवीरता की प्रशंसा करते हुए था कि इराक़ ने शहीद अलमोहन्दिस और क़ासिम सुलैमानी सहित अपने बेहतरीन वीर सपूतों और नेताओं को आतंकवाद से मुक़ाबले के मार्ग में क़ुर्बान कर दिया।

इराक़ के बद्र संगठन के महासचिव हादी अलआमेरी ने बुधवार को जनरल क़ासिम सुलैमानी और अबू मेंहदी अलमोहन्दिस की शहादत की पांचवी बर्सी के अवसर पर बग़दाद में कहा कि शहीद सुलैमानी बहुत जुझारू थे और इराक़ और सीरिया में बहुत सी चुनौतियों के मुक़ाबले में उन्होंने बहुत ही उल्लेखनीय व अविस्मरणीय भूमिका निभाई है।

भारत नियंत्रित कश्मीर में भाषा के उस्ताद और प्रोफ़ेसर ने बुधवार को कहा कि कश्मीर और करगिल सहित भारत के विभिन्न भागों में शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी को प्रतिरोध के प्रेरणादायक व प्रतीक के रूप में लोग पहचानते हैं।

भारत नियंत्रित कश्मीर में भाषा के उस्ताद मोहम्मद रज़ा ने कहा कि शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की भारत में लोकप्रियता का एक कारण इराक़ में दाइश के नियंत्रण से भारतीय नर्सों को स्वतंत्र करवाना था और इस विषय का उल्लेख भारतीय संचार माध्यमों ने जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत के बाद किया था।

हमास के प्रवक्ता जिहाद ताहा ने कहा कि गाजा युद्धविराम समझौते से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए हमास के एक प्रतिनिधिमंडल ने मिस्र की राजधानी काहिरा का दौरा किया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,हमास के प्रवक्ता जिहाद ताहा ने कहा कि गाजा युद्धविराम समझौते से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए हमास के एक प्रतिनिधिमंडल ने मिस्र की राजधानी काहिरा का दौरा किया है।

ताहा ने बताया कि प्रतिनिधिमंडल की काहिरा यात्रा गाजा की स्थिति के संबंध में मिस्र, कतर और तुर्किये सहित मध्यस्थों के साथ चल रही चर्चा का हिस्सा थी।

ताहा ने कहा इस यात्रा का उद्देश्य इजरायल द्वारा हाल ही में लगाई गई बाधाओं और शर्तों को संबोधित करना है उन्होंने कहा कि हमास फिलिस्तीनी लोगों के लाभ के लिए किसी भी प्रयास के लिए खुला है और इजरायल आक्रामकता और हत्याओं को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है।

ताहा ने उम्मीद जताई कि अगर इज़राइल अपनी हालिया शर्तों को पलट दे तो एक समझौता हो सकता है।

इस सप्ताह की शुरुआत में इज़राइली राज्य के स्वामित्व वाले कान टीवी ने बताया कि हमास ने कैदियों की अदला बदली के बिना एक सप्ताह के युद्धविराम का प्रस्ताव दिया था। इज़राइल ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया और हमास से युद्धविराम से पहले रिहाई के लिए बंधकों की सूची उपलब्ध कराने की मांग की।

हमास के एक सूत्र ने खुलासा किया कि मिस्र के अधिकारियों के साथ काहिरा में हमास प्रतिनिधिमंडल की बैठकों के परिणामस्वरूप युद्धविराम समझौते में बाधा डालने वाले कुछ विवादास्पद बिंदुओं को स्थगित करने का प्रस्ताव आया था।

सूत्र ने गुमनाम रूप से बात करते हुए बताया कि प्रस्ताव सहित मिस्र पक्ष के साथ हुए समझौते 20 जनवरी से पहले एक समझौते को सुरक्षित करने के अंतिम प्रयास में इज़राइल को प्रस्तुत किए जाएंगे

फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने गुरुवार को घोषणा की है ग़ाज़ा में युद्ध के 454वें दिन इजरायली हमलों के कारण 28 और फ़िलिस्तीनी शहीद और 59 घायल हो गए।

एक रिपोर्ट के अनुसार , फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि 7 अक्टूबर 2023 से शुरू हुए युद्ध में अब तक शहीदों की संख्या 45,581 हो गई है, जबकि घायलों की संख्या 1,08,438 तक पहुंच चुकी है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, हजारों फ़िलिस्तीनी अभी भी लापता हैं और कई शहीदों के शव मलबे के नीचे दबे हुए हैं जिन्हें निकालने की कोशिशें असफल रही हैं।

आज हुए इजरायली हमलों में एक बड़ा हादसा ख़ान यूनुस के अलमवासी क्षेत्र में हुआ जहां एक कथित सुरक्षित क्षेत्र में फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के तंबू को निशाना बनाया गया।

इस बर्बर बमबारी में कम से कम 11 लोग शहीद हो गए जिनमें तीन बच्चे, ग़ाज़ा पुलिस के महानिदेशक सरलश्कर मुहम्मद सलाह उनके डिप्टी हुसाम शहवान (अबू शरूक), और 12 अन्य लोग घायल हो गए।

ये ताज़ा हमले इजरायली हमलों की क्रूरता को दर्शाते हैं जहां नागरिक इलाकों शरणार्थी शिविरों और बच्चों तक को निशाना बनाया जा रहा है।

 

सीरिया के दक्षिणी अलेप्पो प्रांत को इजरायली युद्धक विमानों ने वहां के रक्षा कारखानों और एक अनुसंधान केंद्र पर हमला किया और अलेप्पो प्रांत को हिलाकर रख दिया

एक रिपोर्ट के अनुसार ,स्थानीय मीडिया और एक युद्ध मॉनिटर के अनुसार विस्फोटों की एक श्रृंखला ने सीरिया के दक्षिणी अलेप्पो प्रांत को हिलाकर रख दिया क्योंकि इजरायली युद्धक विमानों ने वहां रक्षा कारखानों और एक अनुसंधान केंद्र पर हमले किया।

अलसफीरा शहर जहां रक्षा सुविधाएं स्थित हैं में कई विस्फोट हुए इस हमले में शहर के बाहरी इलाके में एक वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र को निशाना बनाया गया।

ब्रिटेन स्थित युद्ध निगरानीकर्ता सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स ने कम से कम सात बड़े विस्फोटों की पुष्टि की और कहा कि इजरायली विमानों ने अलसफिरा रक्षा कारखानों और एक अनुसंधान केंद्र दोनों पर बमबारी की।

वेधशाला ने बताया कि नवीनतम हमले से पिछले साल दिसंबर की शुरुआत में पूर्व सीरियाई राष्ट्रपति बशर अलअसद की सरकार के पतन के बाद से सीरियाई क्षेत्र पर इजरायली हवाई हमलों की कुल संख्या 498 हो गई है।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहु अलैहे व आलेही वसल्लम के परिजनों ने धर्म से दिगभ्रमित करने वाले विचारों और अत्याचारी शासनों के अंधकारमयी कालों में, चमकते हुए सूर्य की भांति अत्याचार व अज्ञानता के अंधकार को मिटाया और मिटाना सिखाया ताकि उन मूल्यों को जनता के सामने लाएं जिनका पालन मानवता के लिए आवश्यक है परन्तु जिनकी अनदेखी की जा रही है। वे धर्म से संबंधित बातों के सही उत्तर देने वाले थे। उन्होंने इस्लामी शिक्षाओं की व्याख्या और उनकी रक्षा की तथा लोगों का सही मार्गदर्शन किया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस से रजब की पहली तारीख़ सुशोभित हो उठी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने 57 हिजरी क़मरी में मदीना नगर में आंखें खोलीं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहु अलैहे व आलेही वसल्लम ने बहुत पहले जाबिर इबने अब्दुल्लाह अंसारी नामक अपने एक साथी को इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के जन्म की शुभ सूचना देते हुए कहा थाः हे जाबिर! तुम उस समय जीवित रहोगे और मेरे पुत्रों में से एक पुत्र का दर्शन करोगे कि जिनका उपनाम बाक़िर होगा। तो मेरा सलाम उन तक पहुंचा देना। इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने पांचवे इमाम को बाक़िर की उपाधि दी। इमाम को बाक़िरुल उलूम कहा जाता था जिसका अर्थ होता है ज्ञान की गुत्थियों को सुलझाने और उसका विस्तार करने वाला। जाबिर इबने अब्दुल्लाह अंसारी जीवित रहे और वृद्धावस्था में उन्होंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के दर्शन किए और पैग़म्बरे इस्लाम का सलाम उन तक पहुंचाया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का एक प्रसिद्ध कथन जो उन्होंने अपने एक मित्र को संबोधित करते हुए जिनका नाम जाबिर इबने यज़ीदे जोअफ़ी था कहाः हे जाबिर! क्या किसी के लिए केवल मित्रता का दावा करना पर्याप्त है? ईश्वर की सौगंध कोई व्यक्ति हमारा अनुयायी नहीं मगर यह कि वह ईश्वर से डरे और उसके आदेश का पालन करे। हमारे अनुयाइयों की पहचान है कि वे विनम्र और ईमानदार होते हैं तथा ईश्वर को बहुत अधिक याद करते हैं। रोज़ा रखते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं। माता पिता के साथ भलाई करते हैं, सच बोलते हैं और क़ुरआन की तिलावत करते हैं। निर्धन पड़ोसियों की सहायता करते हैं और दूसरों से अच्छे ढंग से अच्छी बात करते हैं। तो ईश्वर के प्रकोप से डरो और जो कुछ ईश्वर के पास है उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास करो। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने लगभग 19 वर्षों तक इमामत अर्थात जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के व्यवहार में दो बातें सबसे अधिक दिखायी देती हैं। एक ज्ञान के विस्तार के लिए अथक प्रयास और दूसरे इस्लामी समाज में इमामत के विषय की व्याख्या। इमामत का विषय ऐसा है जो इस्लामी जगत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस बात में संदेह नहीं कि इस्लामी समाजों के सांसारिक मामलों का बेहतर ढंग से संचालन और एक आदर्श जीवन की प्राप्ति, एक ओर इन समाजों के नेताओं के व्यवहार तो दूसरी ओर देश के ज्ञान, संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था संबंधी प्रगति पर निर्भर है। आज विभिन्न ज्ञानों का उत्पादन और उनमें विस्तार तथा उनका स्थानांतरण देशों की सबसे मूल्यवान संपत्ति है। यदि मानव समाज की आवश्यकताओं को शैक्षिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंधी क्षेत्रों में विभाजित किया जाए तो वही समाज ऐश्वर्य एवं शांति प्राप्त कर सकता है जो इन आवश्यकताओं को पूरा करने में सफल हो जाए। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस बात के दृष्टिगत कि व्यापक ज्ञान और उच्च संस्कृति से संपन्न मुसलमान सफलता की उच्च चोटियों पर पहुंच सकते हैं, इस्लामी शिक्षाओं की व्याख्या की और उनके प्रसार के लिए अथक प्रयास किया और मदीना नगर में एक बड़े विद्यालय की स्थापना की। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के वैज्ञानिक व सांस्कृतिक आंदोलन में ज्ञान की विभिन्न शाखाएं शामिल थीं और इमाम ने इस्लामी समाज की निहित क्षमताओं को निखारा। सभी विद्वानों का यह मानना है कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इस्लामी धर्मशास्त्र की एक शाखा उसूले फ़िक़्ह अर्थात ज्यूरिसप्रूडेन्स के सिद्धांतों का आधार रखा और इस प्रकार इस्लामी विद्वानों के लिए इजतेहाद अर्थात धार्मिक नियमों में शोध का द्वार खोला। जिस समय अत्याचारी उमवी शासक धार्मिक शिक्षाओं में चिंतन से मना करते थे, इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने अपनी चर्चाओं भाषणों और क्लासों में बुद्धि के महत्व का उल्लेख करते हुए लोगों को चिंतन मनन की ओर बुलाया। जैसा कि इस सदंर्भ में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का एक कथन हैः ईश्वर लोगों को उनकी बुद्धि के आधार पर परखेगा और उनसे पूछताछ करेगा। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम, विद्वानों, विचारकों और धर्मगुरुओं को राष्ट्रों के कल्याण और दुर्भाग्य के लिए ज़िम्मेदार मानते थे। क्योंकि यही लोग अपने वैचारिक व सांस्कृतिक मार्गदर्शन से समाज को परिपूर्णतः या पतन की ओर ले जाते हैं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की दृष्टि में सत्ता के ध्रुव के रूप में शासक की भी राष्ट्रों के कल्याण या उनकी पथभ्रष्टता में भूमिका होती है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के एक स्वर्ण कथन का हवाला देते हुए कहते थेः जब भी हमारे समुदाय के दो गुट अच्छे होंगे तो समुदाय के सभी मामले सही दिशा में होंगे और यदि वे दोनों गुट पथभ्रष्ट हो जाएं तो हमारे पूरे समुदाय को पथभ्रष्टता की ओर ले जाएंगे एक धर्मगुरुओं व विद्वानों का गुट और दूसरा शासकों व अधिकारियों का। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम धार्मिक शिक्षाओं को अंधविश्वास व भ्रांतियों से शुद्ध करने के लिए दो महत्वपूर्ण स्रोतों अर्थात क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के व्यवहार व शिष्टाचार पर बल देते हुए इन दोनों को शिक्षाओं व विचारों का मानदंड बताते थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम क़ुरआन के सर्वश्रेष्ठ व्याखयाकार के रूप में क़ुरआनी आयतों की सही व पथप्रदर्शक व्याख्या कर विरोधियों व अवसरवादियों को लाजवाब कर देते थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपनी बात के तर्क के रूप में सदैव ईश्वर के कथन को पेश करते और अपने साथियों से कहा करते थेः जब भी मैं कोई बात कहूं तो पवित्र क़ुरआन से उसका संबंध हमसे पूछो ताकि उससे संबंधित आयत की मैं तुम्हारे सामने तिलावत करूं। इमाम चाहते थे कि जो भी बात इस्लाम के हवाले से कही जाए उसका मापदंड क़ुरआन हो और समाज में सत्य और असत्य के बीच अंतर करने वाली किताब के रूप में क़ुरआन का स्थान हो। इमाम मोहम्म बाक़िर अलैहिस्सलाम सत्य और असत्य के बीच अंतर के लिए दूसरा मापदंड पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और उनके पवित्र परिजनों के शिष्टाचार व व्यवहार को बताते थे। इमाम मोहम्म बाक़िर अलैहिस्सलाम इस बात पर बहुत बल देते थे कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन ही मार्गदर्शक हैं। इमाम मोहम्म बाक़िर अलैहिस्सलाम इस्लामी एक इस्लामी समाज में मार्गदर्शक की आवश्यकता को बयान करते हुए एक तुल्नात्मक बयान में इमाम व मार्गदर्शक के महत्व का इन शब्दों में उल्लेख करते हैः जब भी कोई व्यक्ति किसी लंबे मार्ग पर चलता है तो उसका प्रयास होता है कि उसे मार्गदर्शन करने वाली कोई ऐसी चीज़ मिल जाए जो उसे ग़लत मार्ग पर जाने से बचा ले अब जबकि मनुष्य के सामने ईश्वरीय मूल्यों व आध्यात्मिक मार्गों की पहचान के मार्ग में बहुत सी समस्याएं व जटिल स्थिति होती है और उसे परिपूर्णतः तक पहुंचने के लिए एक ऐसे मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है जिससे वह संतुष्ट रहे तो प्रयास करो कि धर्म के मार्ग और आध्यात्मिक वास्तविकताओं को समझने के लिए अपने लिए एक मार्गदर्शक चुन लो। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इमामत अर्थात जनता के ईश्वरीय मार्गदर्शन के महत्व के बारे में कहते हैः इस्लाम पांच खंबो पर टिका हैः नमाज़, रोज़ा, ज़कात हज और विलायत और विलायत इन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। विलायत का अर्थ होता है इस्लामी नियमों के अनुसार चलायी जाने वाली व्यवस्था का प्रमुख और स्पष्ट है कि यह काम पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चात उनके पवित्र परिजनों और उनके प्रतिनिधियों के अतिरिक्त कोई नहीं कर सकता था। यदि समाज का संचालक व मार्गदर्शक सही न होगा तो बहुत से इस्लामी आदेशों का पालन नहीं हो सकेगा या यह कि उनके मुख्य बिन्दुओं की अनदेखी की जाएगी। यदि इस्लामी समाज के उपासना संबंधी, आर्थिक, सैन्य और राजनैतिक मामलों में से हर एक का सही निरीक्षण न होगा तो उसके सही पालन की गारेंटी नहीं दी जा सकती और इस बात में संदेह नहीं कि एक सदाचारी व समझदार नेता समाज में न्याय के व्यवहारिक होने की भूमि प्रशस्त करते हैं। इस संदर्भ में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः न्याय का विभूतियों भरा मैदान कितना व्यापक है कि जब शासक लोगों पर न्याय के साथ शासन करते हैं तो आम लोग को आर्थिक समृद्धता व शांति प्राप्त होती है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम संसार में चमक रहे सूर्य की भांति ज्ञान के क्षितिज पर चमके और उनके महान स्थान की व्याख्या के लिए इस इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि इस्लामी स्रोतों में सबसे अधिक कथन इमाम मोहम्मद बाक़िर और उनके सुपुत्र हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम के हैं। एक बार फिर इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिन पर हार्दिक बधाई के साथ कार्यक्रम का अंत उनके एक स्वर्ण कथन से कर रहे हैः

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः परिपूर्णतः तीन चीज़ों में निहित हैः धर्म का ज्ञान और उसमें सोच विचार, समस्याओं के समय धैर्य और जीवन की आवश्यकताओं की प्राप्ति के लिए सुनियोजित कार्यक्रम में।