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इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने धार्मिक प्रतिष्ठा व स्वतंत्र पहचान के साथ ईरान की आागामी पीढ़ी के प्रशिक्षण पर बल दिया है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार को देश के अध्यापकों और शिक्षकों से मुलाक़ात में धार्मिक, स्वतंत्र, प्रतिष्ठित, विशिष्ट मापदंडों से संपन्न व सक्रिय पहचान के साथ नयी पीढ़ी के प्रशिक्षण को शिक्षकों और अध्यापकों की भारी ज़िम्मेदारी बताया। उन्होंने बल देकर कहा कि यदि इन विशेषताओं से संपन्न समाज का गठन हो तो निश्चित रूप से बिना तेल के प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था, स्वतंत्र संस्कृति से संपन्नता, उपभोग मानक में सुधार और विस्तारवाद के मुक़ाबले में प्रतिरोध और डटे रहने का अर्थ समझ में आएगा।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस बात पर बल देते हुए कि हमें नई पीढ़ी के प्रशिक्षण के लिए विश्व साम्राज्यवादी व्यवस्था नामक प्रतिस्पर्धी का सामना है, कहा कि संभव है कि कुछ लोग आश्चर्य करें कि शिक्षा प्रशिक्षण और विश्व साम्राज्यवादी व्यवस्था के बीच क्या संबंध है जबकि वास्तविकता यह है कि राष्ट्रों विशेषकर ईरानी राष्ट्र की युवा पीढ़ी के लिए साम्राज्यवादी व्यवस्था के पास कार्यक्रम है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अमरीका, ज़ायोनी पूंजीनिवेशकों और कुछ साम्राज्यवादी सरकारों को विश्व साम्राज्यवादी व्यवस्था का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि साम्राज्यवादी व्यवस्था चाहती है कि देश की नई पीढ़ी एेसी हो जो वैश्विक मामलों में उनके दृष्टिगत विचारों, संस्कृति और शैलियों की स्वामी हो और अंततः बुद्धिजीवी, राजनेता और समाज के प्रभारी लोग वैसा ही सोचें और करें जैसा वे चाहते हैं।

वरिष्ठ नेता ने साम्राज्यवाद के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्राचीनता की ओर संकेत करते हुए कहा कि पश्चिमी विचारकों ने बारंबार कहा है कि 19वीं शताब्दी के साम्राज्यवादियों के सीमा विस्तार के कार्यक्रम के बजाए, कम ख़र्च वाली बेहतरीन शैली यह है कि विभिन्न देशों की युवा पीढ़ियों में अपनी संस्कृति और अपने विचार भर दिये जाएं और देश के बुद्धिजीवियों प्रभावी लोगों का प्रशिक्षण करना है जो साम्राज्यवादी व्यवस्था के सैनिकों की तरह काम करेंगे।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने क्षेत्र की कुछ सरकारों को साम्राज्यवादियों के इस कार्यक्रम का स्पष्ट उदाहरण बताया।

उन्होंने कहा कि यह सरकारें वही कार्य करती हैं जो अमरीका चाहता है, यहां तक कि सारा ख़र्चा भी स्वयं वहन करती हैं और कुछ विशिष्टताएं भी नहीं लेते। इसके मुक़ाबले में अमरीका केवल इन सरकारों की रक्षा करता है और उनके पतन में रुकावट बनता है।

वरिष्ठ नेता ने अपने भाषण के एक अन्य भाग में ईरानी नौसेना के युद्धाभ्यास के बारे में अमरीकी कांग्रेस में पेश किये जाने वाले बिल की ओर संकेत करते हुए कहा कि आज हमारे दुश्मन, अपनी अौक़ात से बढ़ कर बोल रहे हैं और यह योजना बना रहे हैं कि ईरान फार्स की खाड़ी में युद्धाभ्यास न करने पाए हालांकि उनकी इस तरह की बातें बकवास है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि फार्स की खाड़ी ईरानी राष्ट्र का घर और फार्स की खाड़ी और ओमान सागर के बहुत से तट इस शक्तिशाली राष्ट्र की संपत्ति हैं इस लिए हमें इस इलाक़े में उपस्थति रहना और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए और उल्टे हमें अमरीकियों से पूछना चाहिए कि वह हमें बताएं कि वह दुनिया के उस छोर से यहां क्यों आए हैं और क्यों युद्धाभ्यास करते हैं, जाएं वहीं सुअरों की खाड़ी में जाकर युद्धाभ्यास करें।


इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अपने भाषण में जिस सुअरों की खाड़ी का उल्लेख किया है वह वास्तव में क्यूबा में स्थित है ।

क्यूबा की राजधानी हवाना से 150 किलोमीटर की दूरी पर और कैरेबियन सागर में स्थित सूअरों की खाड़ी या बे आफ पिग्स को अमरीका के विफल सैन्य अभियान से ख्याति मिली।

17 अप्रैल सन 1961 में अमरीका ने क्यबूा में फीदेल कास्त्रों की सरकार का तख्ता पलटने के लिए क्यूबा सरकार के 1500 विरोधियों को सीआईए की कमान में भारी हथियारों से साथ इसी खाड़ी में भेजा लेकिन फीदेल कास्त्रों को अमरीका के इस खुफिया अभियान का पता चल चुका था और उनके सैनिकों ने केवल 48 घंटों में बे आॅफ पिग्स के अमरीकी अभियान को पूरी तरह से नाकाम बना दिया।

इस अभियान में हमला करने वाले या तो मारे गये या फिर सैनिकों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने कहा है कि ईरान व दक्षिण कोरिया के व्यापारिक संबंध ,मज़बूत स्ट्रेटजिक व्यापारिक रिश्ते में बदल जाएंगे।

डॅाक्टर हसन रूहानी ने सोमवार को ईरान व दक्षिण कोरिया के शिष्टमंडलों की बैठक और दोनों देशों के मध्य 19 समझौतों पर हस्ताक्षर के बाद पार्क ग्यून ही के साथ संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि दोनों देशों ने संकल्प किया है कि परस्पर व्यापार को वर्तमान स्तर से तीन गुना अर्थात 18 अरब डॅालर तक बढ़ा लें।

उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व और सुदूर पूर्व के दो महत्वपूर्ण देशों के रूप में ईरान और दक्षिण कोरिया के परस्पर संबंध बहुत अहम हैं और गत 54 बरसों के दौरान दोनों देशों के संबंध हमेशा अच्छे और सार्थक रहे हैं।

राष्ट्रपति ने दक्षिण कोरिया की अपनी समकक्ष के साथ वार्ता में मध्य पूर्व में शांति, यमन युद्ध के अंत और यमनियों के मध्य वार्ता, इराक औज्ञ सीरिया में आतंकवाद जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की।

उन्होंने कहा कि ईरान कोरिया प्रायद्वीप में शांति का इच्छुक है ।

इस अवसर पर दक्षिण कोरिया की राष्ट्रपति पार्क ग्यून ही ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि सन 1962 में दक्षिण कोरिया और ईरान के मध्य संबंध स्थापना के बाद से दक्षिण कोरिया के किसी भी राष्ट्रपति की यह पहली ईरान यात्रा है कहा कि यह यात्रा एेसे समय में हुई है कि जब ईरान और विश्व के अन्य देशों के साथ संबंधों का नया अध्याय आरंभ हुआ है और दोनों देश विभिन्न क्षेत्रों में संबंध विस्तार का संकल्प रखते हैं।  

दक्षिणी कोरिया की राष्ट्रपति पार्क ग्योनहे ने सोमवार की शाम इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।

इस मुलाक़ात में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने एशियाई देशों के साथ सहयोग में विस्तार के लिए ईरान की सकारात्मक दृष्टि की ओर संकेत करते हुए ईरान व दक्षिणी कोरिया के बीच निरंतर व टिकाऊ संपर्क को दोनों देशों के लिए लाभदायक बताया और कहा कि दोनों देशों के बीच होने वाले समझौते इस प्रकार होने चाहिए कि उन पर बाहरी तत्व व प्रतिबंध, नकारात्मक प्रभाव न डालने पाएं क्योंकि यह बिल्कुल भी उचित नहीं है कि ईरान व दक्षिणी कोरिया जैसे देशों के संबंध अमरीका के प्रभाव में रहें। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने क्षेत्र और विश्व में मौजूद सुरक्षा संबंधी महत्वपूर्ण समस्याओं की ओर संकेत करते हुए कहा कि अगर आतंकवाद और अशांति के ख़तरे से सही व वास्तविक ढंग से न निपटा गया तो भविष्य में उसका उपचार अधिक कठिन हो जाएगा और कोई भी देश इस ख़तरे से सुरक्षित नहीं रहेगा।


वरिष्ठ नेता ने अमरीका द्वारा आतंवाद के अच्छे और बुरे जैसे वर्गीकरण के बारे में कहा कि अमरीका, आतंकवाद से संघर्ष का नारा लगाता है लेकिन व्यवहार में वह सच्चाई के साथ काम नहीं करता, जबकि आतंकवाद हर स्थिति में और हर रूप में बुरा और देशों की सुरक्षा व राष्ट्रों के लिए ख़तरनाक है क्योंकि सुरक्षा के बिना कभी भी वांछित प्रगति नहीं हो सकती।

इस मुलाक़ात में, जिसमें राष्ट्रपति रूहानी भी उपस्थित थे, दक्षिणी कोरिया की राष्ट्रपति पार्क ग्योनहे ने अपनी तेहरान यात्रा को द्विपक्षीय संबंधों के विकास और परस्पर विश्वास में वृद्धि के लिए मूल्यवान अवसर बताया और कहा कि हमने प्रतिबंधों के काल में भी इस बात का प्रयास किया कि जहां तक संभव हो ईरान में अपनी उपस्थिति जारी रखें। उन्होंने आशा जताई कि भविष्य में दोनों देशों के संबंधों में विशेष कर आर्थिक क्षेत्र में पहले से अधिक विस्तार आएगा।

ईरानी संसद ने देश की रक्षात्मक क्षमता और शक्ति संतुलन को मज़बूत बनाने के लिए सशस्त्र बलों की मिसाइल क्षमता में वृद्धि के एक बिल को पारित कर दिया है।

रविवार को ईरानी सांसदों ने पांच वर्षीय विकास योजना से संबंधित एक बिल को पारित कर दिया, जिसके आधार पर देश मिसाइल उत्पादन, वायु रक्षा और इलेक्ट्रॉनिक वार की शक्ति में वृद्धि के साथ अपनी रक्षात्मक क्षमता मज़बूत कर सकेगा।  

इस बिल के आधार पर सरकार, आतंकवाद से मुक़ाबले के लिए ज़रूरी हथियारों का उत्पादन और अध्ययन कर सकेगी।

चार अप्रैल को ईरानी सांसदों ने एक बार फिर देश के मिसाइल कार्यक्रम का समर्थन किया था और ऐसे किसी भी क़दम की निंदा की थी, जो राष्ट्रीय सुरक्षा में बाधा उत्पन्न करे।

ईरानी सासंदों ने अमरीका द्वारा ईरान को सैन्य हमले की धमकी के साथ ही अपनी रक्षात्मक एवं मिसाइल क्षमता में विस्तार न करने की सिफ़ारिश को ऐतिहासिक जोक क़रार दिया।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि अमरीका के नेतृत्व में पश्चिमी मोर्चा एक व्यापक युद्ध द्वारा क्षेत्र पर वर्चस्व जमाने का प्रयास कर रहा है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार की शाम फ़िलिस्तीन के जेहादे इस्लामी संगठन के महासचिव रमज़ान अब्दुल्लाह से मुलाक़ात में कहा कि इस समय क्षेत्र में जो व्यापक युद्ध जारी है वह उसी युद्ध का क्रम है जो 37 साल पहले ईरान के विरुद्ध आरंभ हुआ था। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि फ़िलिस्तीन के मामले में ईरान की नीति न तो पहले सामयिक थी और न अब है, कहा कि इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले और संघर्ष के दौरान फ़िलिस्तीन के समर्थन और ज़ायोनी शासन से मुक़ाबले का विषय स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की नीतियों में कई बार बयान किया जाता रहा और इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद भी फ़िलिस्तीनी जनता का समर्थन, ईरान के सबसे पहले कामों में से एक था। अतः फ़िलिस्तीनी लक्ष्य का बचाव, स्वाभाविक रूप से इस्लामी गणतंत्र ईरान के सिद्धांतों में शामिल है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी मोर्चे के ख़िलाफ़ अमरीका के नेतृत्व में पश्चिमी मोर्चे की व्यापक लड़ाई का उद्देश्य, क्षेत्र पर नियंत्रण बताया और कहा कि क्षेत्र की परिस्थितियों की इस आयाम से समीक्षा की जानी चाहिए और इस परिप्रेक्ष्य में सीरिया, इराक़, लेबनान, व हिज़्बुल्लाह की समस्याएं, इसी व्यापक लड़ाई का भाग हैं। आयतुल्लाहिल उज़्म सैयद अली ख़ामेनेई ने इस बात पर बल देते हुए कि इन परिस्थितियों में फ़िलिस्तीन की रक्षा, इस्लाम की रक्षा का प्रतीक है, कहा कि साम्राज्यवादी मोर्चा इस बात का हर संभव प्रयास कर रहा है कि इस टकराव को शिया व सुन्नी के बीच युद्ध के रूप में पेश करे। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि सीरिया में शिया सरकार नहीं है, कहा कि लेकिन इस्लामी गणतंत्र ईरान, सीरिया सरकार का समर्थन कर रहा है क्योंकि जो लोग सीरिया के मुक़ाबले पर हैं वे वास्तव में इस्लाम के शत्रु हैं और अमरीका व ज़ायोनी शासन के हितों के लिए काम कर रहे हैं।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फ़िलिस्तीन के जेहादे इस्लामी संगठन के महासचिव रमज़ान अब्दुल्लाह के इस बयान की ओर संकेत करते हुए कि लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन पर अधिक दबाव डालने के प्रयास किए जा रहे हैं, कहा कि हिज़्बुल्लाह इससे कहीं अधिक शक्तिशाली है कि इस प्रकार के प्रयासों से उसे क्षति पहुंचे और आज ज़ायोनी शासन निश्चित रूप से हिज़्बुल्लाह से पहले से कहीं अधिक भयभीत व आतंकित है।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन जेहादे इस्लामी की सैन्य शाखा क़ुद्स ब्रिगेड ने एक वीडियो जारी करके अपने पहले ड्रोन का अनावरण किया है।

फ़िलिस्तीनी इन्फ़ारमेशन सेन्टर ने ज़ायोनियों के विरुद्ध कार्यवाही में प्रतिरोध की बढ़ती शक्ति से ज़ायोनियों के भय की ओर संकेत करते हुए रिपोर्ट दी कि क़ुद्स ब्रिगेड ने अपने सैन्य कमान्डर एवज़ अलक़ीक़ की बरसी के अवसर पर पहले ड्रोन के अनावरण की सूचना दी है।

अलक़ीक़ अलक़ुद्स ब्रिगेड के कमान्डर थे जिन्होंने अपनी आंतरिक क्षमताओं से भरपूर लाभ उठाते हुए फ़िलिस्तीन के सैन्य क्षेत्र में बहुत अधिक प्रगति की। 30 अप्रैल सन 2008 को दक्षिणी ग़ज़्ज़ा के शहर रफ़ह में ज़ायोनी सैनिकों की आतंकी कार्यवाही में वे मारे गये।

ज्ञात रहे कि हमास की सैन्य शाखा इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम ने जुलाई वर्ष 2014 में 50 दिवसीय ग़ज़्ज़ा युद्ध के दौरान पहली बार अपने ड्रोन का अनावरण किया था और उसने ज़ायोनी बस्तियों की ओर अपना एक ड्रोन विमान उड़ाया भी था।

इस्राईली सैनिकों ने इस ड्रोन को देखने के बाद अपने सैनिकों को अलर्ट कर दिया और उसके बाद मीज़ाइल मार कर ड्रोन को नष्ट कर दिया।

अमरीका के ओहायो राज्य में शिया और सुन्नी मुसलमान महिलाओं ने एक सम्मेलन का आयोजन किया ताकि यह साबित किया जा सके कि शिया और सुन्नी मुसलमानों में समानता, विभिन्नता से अधिक है।

कोलंबस डिसपैच के अनुसार ओहायो की शिया व सुन्नी महिलाओं का प्रयास है कि एक दूसरे के सहयोग से चरमपंथ का मुक़ाबला करें और इस्लाम के शांति संदेश को दूसरों तक पहुंचाएं।

इस रिपोर्ट के अनुसार ओहायो की शिया और सुन्नी महिलाओं ने वर्थिंग्टन चर्च की सदस्य बारबरा मेकवेकर द्वारा आयोजित सम्मेलन में भाग लिया।

इस सम्मेलन का उद्देश्य, विभिन्न धर्मों के मध्य समानताओं से लोगों को अवगत कराना था।

तुर्क अमरीकी सुन्नी मुसलमान और ओहायो यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर गुलचीन ओज़र का कहना था चरपंथियों की आवाज़ हमेशा मीडिया में सुनाई देती है किंतु जो मुस्लिम महिलाएं यहां एकत्रित हुई हैं वह मध्यमार्ग में विश्वास रखती हैं।

उन्होंने कहा कि शिया व सुन्नी मतों में समानता , उनके मतभेदों से कई गुना ज़्यादा है इस लिए हम लोग समानताओं पर ध्यान देना चाहते हैं।

ओहायो राज्य के डबलिन नगर की शिया डॅाक्टर अयसर हमूदी ने कहा कि आतंकवादी गुट दाइश के हाथों मारे जाने वाले अधिकांश लोग, मुसलमान हैं और दाइश के आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं है क्योंकि जिसे भी ईश्वर में विश्वास होता है वह एेसे अपराध बिल्कुल नहीं कर सकता।

उन्होंनें कहा कि कोई भी धर्म अपने भाईयों, अपने देश वासियों और इन्सानों से नफरत करना नहीं सिखाता और इस्लाम तो भाईचारे का धर्म है।

भारत में नियुक्त ईरानी राजदूत ने भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के आगामी ईरान दौरे को द्विपक्षीय संबंधों में विस्तार के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना है।

इरना के अनुसार, नई दिल्ली में ईरानी दूतावास में ईरानी संस्थाओं के अधिकारियों के बीच ईरानी राजदूत ग़ुलाम रज़ा अंसारी ने, दोनों देशों के संबंधों को पारंपरिक बताते हुए कहा कि ईरान के ख़िलाफ़ पाबंदियों के बावजूद, दोनों देशों के बीच पिछले वर्षों में 15 अरब डॉलर का व्यापार हुआ।

उन्होंने तेल, गैस, संचार, चाबहार बंदरगाह में पूंजिनिवेश,पेट्रोकेमिकल और उत्तर-दक्षिण कोरिडोर को वे क्षेत्र बताए जिनमें ईरान-भारत सहयोग कर सकते हैं।

नई दिल्ली में ईरानी राजदूत ने कहा कि भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 22 मई को तेहरान का दौरा करेंगे। जिसके दौरान वे राष्ट्रपति डॉक्टर हसन रूहानी, इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई, विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ सहित कुछ दूसरे वरिष्ठ ईरानी अधिकारियों से भेंट करेंगे।

मुहम्मद हुसैन मुक़ीमी ने गृहमंत्रालय में पत्रकारों से वार्ता में बताया कि जिन मतदान केन्द्रों में रात आठ बजे मतदान समाप्त हुए वहां मतगणना का काम आरंभ हो गया। ।

मुहम्मद हुसैन मुक़ीमी ने गृहमंत्रालय में पत्रकारों से वार्ता में बताया कि जिन मतदान केन्द्रों में रात आठ बजे मतदान समाप्त हुए वहां मतगणना का काम आरंभ हो गया।

चुनाव आयोग ने एक बयान जारी करके कहा है कि भारी मतदान और प्रान्तीय चुनाव अधिकारियों की मांग के बाद संविधान की धारा 10 के अनुसार गृहमंत्री ने मतदान की समय सीमा बढ़ाने का अधिकार गर्वनर को दे दिया।

बयान में बताया गया है कि कई क्षेत्रों में मतदान रात नौ बजे तक जारी रहा।

ईरान की 290 सीटों वाली संसद की 68 सीटों के लिए दूसरे चरण के लिए शुक्रवार को मतदान हुआ।

136 प्रत्याशी उन चुनाव क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं जहां गत फ़रवरी में हुए आम चुनाव में किसी भी प्रत्याशी को संसद में सदस्यता के आवश्यक मत नहीं मिला था।

ईरान के गृह मंत्रालय के अनुसार, 21 प्रांतों में 15350 मतदान केन्द्र बनाए गए थे।

इसी प्रकार 1 करोड़ 90 लाख मतपत्र प्रांतों में भेजे गए थे।

पूरे देश के 55 शहरों और क़स्बों में यह चुनाव हो रहा है।

राजधानी तेहरान में दूसरे चरण का मतदान नहीं हो रहा है क्योंकि दो महीना पहले हुए चुनाव में सभी 30 सीटों पर सुधारवादी और निर्दलीय उम्मीदवार आवश्यक मतों से विजयी हुये थे।

फ़िलिस्तीन के विभिन्न क्षेत्रों में जायोनी शासन की विध्वंसक कार्यवाहियां यथावत जारी हैं।

इस संबंध में हालिया दिनों में पश्चिमी किनारे पर जायोनी शासन की ओर से फिलिस्तीनियों के मकानों को ध्वस्त करने की प्रक्रिया तेज़ हो गयी है और यह विषय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता का विषय बना है। जायोनी शासन द्वारा फिलिस्तीनियों के मकानों को ध्वस्त करने के कारण बेघर होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या तेज़ वृद्धि हो रही है जिस पर संयुक्त राष्ट्रसंघ ने चिंता जताई है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने एक विज्ञप्ति जारी करके घोषणा की है कि जायोनी शासन द्वारा फिलिस्तीनियों के मकानों को ध्वस्त करने की प्रक्रिया में पिछले वर्ष की तुलना में लगभग चार गुना की वृद्धि हो गयी है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इसी प्रकार घोषणा की है कि वर्ष 2016 के आरंभ से अब तक फिलिस्तीनियों के 588 मकानों को ध्वस्त किया जा चुका है।

फ़िलिस्तीनियों के मकानों को ध्वस्त करने से जायोनी शासन का लक्ष्य जनसंख्या के ताने- बाने को इस्राईल के हित में बदलना है।

जायोनी शासन की ओर से फिलिस्तीनियों के मकान तोड़ने में तेज़ी के बीच ही इस्राईल और फिलिस्तीनी प्रशासन के मध्य तथाकथित शांतिवार्ता आरंभ किये जाने की भी बात की जा रही है।

इसी बीच फ्रांस ने एक योजना पेश की है जिसके तीन मूल बिन्दु हैं पहला यह कि एसी वार्ता आरंभ की जाये जिसके परिणाम 18 महीने के अंदर निकल जायें, दूसरे जो फिलिस्तीनी जहां पर शरणार्थी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं उन्हें कुछ हर्जाना देकर वहीं बसा दिया जाये और तीसरे इस्राईल को यहूदी सरकार के रूप में मान्यता दी जाये। इस विषय की 30 मई को समीक्षा किये जाने का कार्यक्रम है। फ्रांस की इस योजना को संचारिक हल्के ख़तरनाक बता रहे हैं। जायोनी शासन हमेशा ऐसी कार्यवाहियों की चेष्टा में रहता है जिससे फिलिस्तीनियों को अपना घर बार छोड़ना पड़े और उसकी यह नीति फिलिस्तीनी शरणार्थियों की संख्या में निरंतर वृद्धि का कारण बनी है।

ज्ञात रहे कि इस समय लगभग 55 लाख फिलिस्तीनी शरणार्थी हैं जो बहुत ही दयनीय स्थिति में रह रहे हैं। इस परिस्थिति में जायोनी शासन के अपराधों पर मानवाधिकार की रक्षा का दावा करने वाली पश्चमी सरकारों की चुप्पी उसके अपराधों में वृद्धि और उनके जारी रहने का कारण बनी है और पूरे दुस्साहस के साथ यह शासन फिलिस्तीनियों के विरुद्ध अपने अपराधों को जारी रखे हुए है।