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इमाम मेहदी अ.स. की विलादत और उनकी ग़ैबत का कारण
हम सब ये बात जानते हैं कि हमारे आख़िरी इमाम की विलादत को गुप्त (पोशीदा) रखा गया था, लेकिन बहुत से लोगों के दिल में इस बात के लेकर सवाल भी उठता है कि आपकी पैदाइश को पोशीदा रखने का आख़िर क्या कारण था? तारीख़ की किताबों में इस सवाल का इस कुछ तरह से जवाब दिया गया है कि, बहुत सारी हदीसों में इस बात को बयान किया गया है कि बनी अब्बास के तानाशाहों को यह बात स्पष्ट रूप से पता थी कि, इमाम हसन असकरी अ.स के घर "मेहदी" नाम का एक बेटा पैदा होने वाला है जो अत्याचारियों की ईंट से ईंट बजा देगा और पीड़ित लोगों की मदद करेगा और पूरी दुनिया को अत्याचार और पाप से मुक्त कर देगा।
यही वजह है कि अब्बासी बादशाह मोतमिद इमाम असकरी अ. स के घर पर कड़ी निगाह रखे हुए था, यहाँ तक कि उसने कुछ दाईयो को लगा रखा था कि वह हर कुछ दिनों पर अलवियों ख़ास कर इमाम के घर जा कर पता करती रहें, और अगर किसी भी बच्चे के बारे में शक हो कि वह "मेहदी" है तो उसे तुरंत मार दें। यही कारण है कि अल्लाह की मर्ज़ी भी यह थी कि इमाम मेहदी अ.स की पैदाइश को गुप्त रखा जाए। इमाम की ग़ैबत का कारण
- इमाम महदी अ. अल्लाह की आख़िरी निशानी हैं, आप का मिशन इस धरती पर न्यायप्रिय शासन की स्थापना करना है।
- अगर समाज ऐसी सत्ता प्रणाली को स्वीकार करेगा तभी ऐसे शासन की स्थापना संभव है।
हदीसों में इमाम की ग़ैबत के कारणों को इस प्रकार बयान किया है।
- न्यायिक सत्ता प्रणाली की स्थापना
- इंसानों के आज़माने के लिए
- आपकी सुरक्षा के लिए
मशहूर विद्वान मोहक़्क़िक़ तूसी अपनी किताब तजरीद में लिखते हैं कि, इमाम का होना अल्लाह का एहसान है,
इमाम को संसार के कार्यों में इख़्तियार देना यह दूसरा एहसान है, और उनका हमारे बीच न होना यह हमारी क्षमता की कमी है। (मजमूआ ए ज़िंदगानिए चहारदा मासूम, पेज 1274)
दूसरे शब्दों में ग़ैबत के कारणों को इस प्रकार बयान किया जा सकता है
- लोगों को आज़माने के लिए।
- अल्लाह की सुन्नत यही रही है कि कभी कभी अपने पैग़म्बर और वली को लोगों की निगाह से छिपा के रखता है।
- हम अपने गुनाहों के कारण उन्हें नहीं देख पाते।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामनेई के नौरोज़ के बधाई संदेश की कुछ अहम बातें
शनिवार को ईरानी नए साल की शुरुवात हो गई। नौरोज़ के बधाई संदेश में ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामनेई ने कई अहम बातों की तरफ इशारा किया
आयतुल्लाह ख़ामेनई ने पिछले साल को कोरोना महामारी और अमेरिका के अधिकतम दबाव से मुकाबले के लिए ईरानी राष्ट्र की क्षमताओं के उजागर होने का साल बताते हुए कहा कि ईरान के दुश्मन, जिनमें सबसे ऊपर अमेरिका है, इस उम्मीद में थे कि ईरानी राष्ट्र उनके सामने घुटने टेक दे हालाँकि हम जानते थे कि ईरान कभी भी अमेरिका के सामने घुटने नहीं टेकेगा बल्कि अमेरिका के सामने डट जाएगा और हुआ भी यही ईरान और ईरान की जनता अमेरिका के सामने डट गई जिससे ये बात साबित हो गई है कि हमको दुनिया की कोई भी ताक़त झुका नहीं सकती और आज ख़ुदअमेरिका और उसके यूरोपीय दोस्त मान रहे हैं कि उनकी अधिकतम दबाव की नीति विफल हो चुकी है।
ईदे नौरोज़ के अवसर सुप्रीम लीडर ने अपने संदेश में उत्पादन का समर्थन जारी रखने, कठिनाइयों के मुक़ाबले में घुटने न टेकने और रुकावटों व बाधाओं को ख़त्म किये जाने पर ज़ोर दिया ।
आयतुल्लाह ख़ामेनई ने अपने संदेश में जिन बातों पर ज़ोर दिया वो इस तरह की है।
- दबावों व कठिनाइयों के मुकाबले में डट जाना और देश के भविष्य के निर्माण के लिए आगे बढ़ते रहना
- विकास कार्यों को लगातार जारी रहना। इसी प्रकार उत्पादन के मार्ग की रुकावटों को दूर करने के लिए प्रयासों का हमेशा जारी रहना।
- ईरानी राष्ट्र ने इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से जिस तरह से दुनिया की साम्राज्वादी ताक़तों का मुक़ाबिला किया वैसे ही ये आगे भी मुक़ाबिला करता रहेगा ।
- मुश्किलों और कठिनाइयों का समाधान, एक राष्ट्र के मज़बूत होने का कारण बनता है जिस तरह महान ईरानी राष्ट्र ने अब तक किया है।
- बहरहाल अब तक ईरानी राष्ट्र ने अनगिनत कठिनाइयों का डटकर मुकाबला और उनका समाधान किया और उसके इस काम का नतीजा ईरान की मज़बूती है और दुनिया के बहुत से देश और लोग ईरान को आदर्श की दृष्टि से देखते हैं।
इमाम सज्जाद अ.स. की नज़र में माँ बाप की अहमियत
इमाम सज्जाद अ.स. की विलादत के समय इमाम अली अस ज़ाहिरी हुकूमत थी आपने इमाम अली अ.स. की ख़ेलाफ़त के तीन साल और इमाम हसन अ.स. की ख़ेलाफ़त के कुछ महीने देखे हैं, ज़ाहिरी खिलाफत के अलावा आपने इमाम अली अ स और इमाम हसन और इमाम हुसैन अ स के साथ ज़िन्दगी गुज़ारी और आप 61 हिजरी में आशूर के दिन कर्बला में भी मौजूद थे और इमाम हुसैन अ.स. की शहादत के बाद अपने शियों की सरपरस्ती को क़ुबूल करते हुए इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली।
जिस दौर में इमाम सज्जाद अ.स. ज़िंदगी गुज़ार रहे थे उस वक़्त हुकूमत की पूरी कोशिश थी कि मज़हब की बुन्यादों को बदल दिया जाए और इस्लामी अहकाम इब्ने ज़ियाद, हज्जाज और मरवान जैसे बे दीनों के हाथ का खिलौना बनते जा रहे थे, ऐसे माहौल में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि लोगों की नैतिकता (अख़लाक़) कितनी गिर चुकी होगी और लोग कितने ज़्यादा जेहालत के अंधेरों में खोए होंगे, बनी उमय्या के इन बे दीन हाकिमों ने मदीने और आस पास के इस्लामी शहरों के दीनी माहौल को इतना ख़राब कर दिया था कि दो अहम ख़तरे सामने खड़े दिखाई दे रहे थे, पहला इस्लामी माहौल और संस्कृति की जगह ग़ैर इस्लामी माहौल और संस्कृति, दूसरे ऐश और आराम की ज़िंदगी।
जिस समय ज़ुल्म और सितम,अत्याचार अपनी सारी हदों को पार कर चुका था, उस वक़्त की बनी उमय्या की हुकूमत के बे दीन हाकिम शराफ़त और आज़ादी को पैग़म्बर स.अ. के शहर से छीन रहे थे, हक़ की आवाज़ उठाने वालों और पैग़म्बर स.अ. की सुन्नत को ज़िंदा रखने वालों को मिटाने की हर मुमकिन कोशिश की जा रही थी ऐसे हालात और ऐसे माहौल में इमाम सज्जाद अ.स. ने अपनी दुआओं के ज़रिए दीनी मआरिफ़ को मिटने से बचाया और समाज जो लगभग मुर्दा हो चुका था दोबारा उसमें रूह फूक दी जिससे एक बार फिर लोग नमाज़ इबादत और अल्लाह से क़रीब होने लगे।
हदीस विशेषज्ञों का कहना है कि इमाम सज्जाद अ.स. से नक़्ल होने वाली 254 दुआएं मौजूद हैं जिसमें सहीफ़ए सज्जादिया के अलावा हुक़ूक़ नामी रिसाला और ज़ोह्द नामी रिसाला भी मौजूद है।
मां का हक़ इमाम सज्जाद अ स की नज़र में
क़ुर्आन और हदीस में वालेदैन के साथ नेक बर्ताव करने पर बहुत ज़ोर दिया गया है, जिसकी ओर इमाम सज्जाद अ.स. ने भी हुक़ूक़ नामी रिसाले में इशारा किया है, आपने रिश्तेदारों के हुक़ूक़ को जहां बयान किया वही वहां मां के हक़ को इस तरह बयान किया है कि तुम पर मां का हक़ यह है कि उसने तुमको 9 महीने पेट में इस तरह रखा कि कोई दूसरा इस काम पर तैय्यार नहीं हो सकता, मां ही वह है जिसने तुमको दिल का लहू दूध की शक्ल में पिलाया यह भी केवल मां ही है जो अपने बच्चे के लिए कर सकती है, उसने पूरे ध्यान से अपनी आंख, कान, नाक, हाथ, पैर और बदन के हर हिस्से से तुम्हारा ख़्याल रखा, और ऐसा भी नहीं कि इस काम के लिए उसको किसी तरह की लालच या ज़ोर ज़बर्दस्ती हो बल्कि हंसी ख़ुशी शौक़ के साथ ऐसा किया, उसने जब तुम पेट में थे हर तरह के दर्द, तकलीफ़, मुश्किल और बीमारी को केवल तुम्हारे लिए सहन किया तब कहीं अल्लाह ने तुम्हें मां के पेट से निकाल कर इस दुनिया में भेजा।
यही वो मां थी जो ख़ुद तो भूखी रही लेकिन तुमको कभी भूखा नहीं रखा, ख़ुद प्यासी रही लेकिन तुम्हें जब जब प्यास लगी उसने तेरी प्यास बुझाई, वह ख़ुद तो धूप में बैठी लेकिन तुमको हमेशा चिलचिलाती गर्मी से बचाया, उसने हर वह काम किया जिससे तुम्हारी ज़िंदगी में ख़ुशियां और आराम आ सके, उसकी भरपूर कोशिशों से तुमको चैन की नींद आती रही है।
उसका पेट तुम्हारा घर उसकी गोद तुम्हारा झूला उसका वजूद तुम्हें हर परेशानी और कठिनाइयों से बचाने का में मददगार था, उसने दुनिया की सर्दी और गर्मी को बर्दाश्त किया ताकि तुम सुकून सो जी सको, इसलिए तुम हमेशा मां का उतना ही शुक्रिया अदा करो जितना उसने तुम्हारे लिए तकलीफ़ें और कठिनाइयां झेली हैं, और याद रहे तुम अल्लाह की मदद और तौफ़ीक़ के बिना मां का शुक्रिया नहीं अदा कर सकते।
बाप का हक़ इमाम सज्जाद अ स की नज़र में
आपने बाप के हक़ के बारे में फ़रमाया, ध्यान रहे कि तुम बाप ही की वजह से दुनिया में हो अगर वह न होते तो तुम भी न होते, इसलिए हमेशा ख़्याल रहे जब भी किसी नेमत और अच्छाई के मिलते समय दिल में घमंड पैदा हो तो तुरंत यह सोंचना कि इस नेमत और अच्छाई में तुम्हारे वालिद का हाथ है क्योंकि तुम उनकी वजह से ही दुनिया में हो, और फिर ख़ुदा की बारगाह में बाप जैसी नेमत मिलने पर उसका शुक्रिया अदा करो।
वालेदैन के हक़ में दुआ
इस बारे में सहीफ़ए सज्जादिया की 24वीं दुआ में मिलता है कि ख़ुदाया हमारे वालेदैन को विशेष सम्मान दे और अपनी ख़ास रहमत हमेशा उन पर नाज़िल कर....
ख़ुदाया! वालेदैन का सम्मान करना जैसा तू चाहता है वैसे ही करने की तौफ़ीक़ दे, हमें हमेशा वालेदैन के हक़ को अदा करने की तौफ़ीक़ दे.....
ख़ुदाया! मेरे दिल में मेरे वालेदैन की वैसी ही हैबत तारी कर दे जैसे बादशाहों की हैबत लोगों के दिलों में होती है, और मुझे तौफ़ीक़ दे कि मैं उनके साथ ऐसा रवैया अपनी सकूं जैसा एक मां अपने बच्चे के साथ अपनाती है.....
ख़ुदाया! अगर मेरे वालेदैन मुझ पर कम मेहेरबान हों तो तू उसे मेरी निगाह में ज़्यादा कर दे, और अगर उनके लिए मेरे अधिक सम्मान को मेरी निगाह में हमेशा कम दिखा.....
ख़ुदाया! मेरी मदद कर ताकि उनके सामने मैं हमेशा धीमी आवाज़ में बात करूं और हमेशा उनके लिए मेरा दिल नर्म रहे......
ख़ुदाया! मेरे बचपन में जिस तरह उन्होंने मेरी तरबियत की और मुझे सम्मान दिया तू उन्हें सम्मान दे और इसका उनको बेहतरीन सवाब दे, और जिस तरह उन्होंने मेरे बचपन में मुझे हर तकलीफ़ से बचाया तू उन्हें पूरी उम्र हर तकलीफ़ और मुसीबत से महफ़ूज़ रख.....
ख़ुदाया! अगर मेरे वालेदैन ने कभी मेरे साथ बुरा बर्ताव किया हो या मेरा हक़ पूरा न किया हो या मेरी तरबियत में कोई कमी की हो तो मैंने उनको माफ़ किया क्योंकि मैं इनमें से किसी काम के लिए उनको दोष नहीं दूंगा बल्कि इन सब में मेरी ही कमी है उनके एहसान और उनके हक़ मुझ पर बहुत अधिक है, मैं उनके बर्ताव को ले कर तेरी बारगाह में शिकायत कर ही नहीं सकता, ख़ुदाया तू उनके साथ नर्मी और मोहब्बत के साथ बर्ताव कर......
ख़ुदाया! अगर तू ने मुझसे पहले मेरे वालेदैन के गुनाहों को माफ़ कर दिया तो उनको मेरी शफ़ाअत की अनुमति देना और अगर मुझे उन से पहले माफ़ कर दिया तो मुझे उनकी शफ़ाअत की अनुमति देना, ताकि हम साथ में तेरी रहमत, करम और मोहब्बत को हासिल कर सकें इसलिए कि तू बड़ा मेहेरबान है और तू ही नेमतें देने वाला और रहम व करम वाला है।
इमाम हुसैन अ.स. ज़िंदगी इमाम मेहदी अ.स. की ज़बानी
ऐ हुसैन इब्ने अली आप रसूल के बेटे, क़ुर्आन की तफ़्सीर और और उम्मत की शक्ति थे, आप अल्लाह के अहकाम पर पूरी तरह अमल करते थे और अल्लाह के लिए गए वादों को पूरा करने की पूरी कोशिश करते थे,आप गुनहगारों को देख कर उदास होते थे और इस ज़मीन के ज़ालिमों की कभी भी बर्दाश्त नहीं करते थे, आप देर तक रुकूअ और सजदे अंजाम देते, आप दुनिया के सब से सबसे मुत्तक़ी और परहेज़गार इंसान थे।" (बिहारुल अनवार, जिल्द 101, पेज 239)
अगर इमाम मेहदी अ.स. द्वारा इमाम हुसैन अ.स. के बारे में दिए गए बयान पर ग़ौर किया जाए तो मालूम होगा कि आपके बयान में इमाम हुसैन अ स की कुछ ख़ुसूसियत ज़ाहिर होती हैं, जैसे आप रसूल के बेटे, क़ुर्आन की तफ़्सीर हैं यानी जो कुछ क़ुर्आन में शब्दों की शक्ल में मौजूद है वह सब आप के जीवन में दिखाई देता है, इस्लाम की ताक़त इमामत होती है, आप ने इमाम हुसैन अ.स. को इस्लाम की ताक़त इसी लिए कहा क्योंकि इस्लाम पर सब से बुरा समय आप के दौर में पड़ा और आपने भी इस्लाम के हाथ बनते हुए उसकी ऐसी रक्षा की कि अब क़यामत तक कोई बुरी निगाह डालने की हिम्मत भी नहीं कर सकता, और इसी प्रकार जब आप इबादत के लिए खड़े होते तो अपने समय के सबसे बड़े आबिद कहलाते थे।
अगर देखा जाए तो हम केवल इमाम हुसैन अ.स. के जीवन को केवल कर्बला के ज़रिए जानते हैं कि आप ने अत्याचार और अन्याय के ख़िलाफ़ आंदोलन किया, और ये बात रौशन है कि आपकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी उप्लब्धि यही है लेकिन केवल यही नहीं है, इमाम हुसैन अ.स की इबादत जिसकी तरफ़ इमाम मेहदी अ.स. ने इशारा किया है, और ख़ास कर दुआए अरफ़ा में जिस तरह आपने अल्लाह से दुआ की है उससे आपका अल्लाह से संबंध कितना गहरा था इस बात का पता चल जाता है।
अबू हमज़ा सूमाली का बयान है कि एक बार मैंने इमाम बाक़िर अ स से कहा, ऐ पैग़म्बर के बेटे क्या आप लोग क़ाएम नहीं हैं? और हक़ को क़ाएम करने वाले नहीं हैं?
फिर केवल इमाम मेहदी अ.स. को ही क़ाएम क्यों कहा जाता है?
इमाम अ स ने फ़रमाया, जब इमाम हुसैन अ.स. को कर्बला में तीन दिन का भूका प्यासा शहीद किया गया, तो फ़रिश्तों के बीच कोहराम मच गया था, फ़रिश्तों ने पूछा था ख़ुदाया क्या तू अपने सब से प्यारे और चहीते बंदों के क़त्ल करने वालों को बिना सज़ा दिए छोड़ देगा?
अल्लाह ने अपनी इज़्ज़त और जलाल की क़सम कहते हुए कहा था ऐ फ़रिश्तों, उनसे बदला ज़रूर लूँगा चाहे कुछ समय बाद ही क्यों न हो, फिर अल्लाह ने उनके सामने से पर्दा हटाते हुए इमाम हुसैन अ.स. की नस्ल से आने वाले सभी इमामों के नूर को पहचनवाया, फ़रिश्ते यह देख कर ख़ुश हो गए, फिर देखा उनमें से एक नूर क़याम की हालत में अल्लाह की इबादत में व्यस्त है, अल्लाह ने फ़रमाया, यह क़ाएम है जो हुसैन के क़त्ल करने वालों से बदला लेगा। (दलाएलुल-इमामत, तबरी, पेज 239)
क्रिस्टल मस्जिद, मलेशिया
क्रिस्टल मस्जिद वान मैन, तेरेगानगू, मलेशिया के द्वीप पर इस्लामी विरासत पार्क में स्थित है, और यह इस देश में सबसे महत्वपूर्ण मस्जिदों में से एक है।
मस्जिद का आकर्षण इसके बाहरी डिजाइन के कारण है। क्रिस्टल मस्जिद की दीवारें स्टील, कांच और क्रिस्टल से बनाई गई हैं, जो आर्किटेक्चर के इस उत्कृष्ट कृति के निर्माण में उपयोग की जाने वाली मुख्य सामग्री है और इसका नाम भी तदनुसार चुना गयया है।
पाकिस्तान में वजीरखान मस्जिद
पाकिस्तान के पंजाब शहर लाहौर में दुनिया के शाह के दौर बनाई गई थी
यह मस्जिद गुरानी साम्राज्य में बहतरीन मस्जिदों में से एक है
(कुल शरीफ मस्जिद) रूस के शहर कज़ान की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है
कुल शरीफ मस्जिद, कज़ान महान मध्ययुगीन मस्जिदों में से एक थी। जो 16 वीं शताब्दी मशहुर मस्जिद है कुल- शरीफ मे दो मंजिल हैं एक मंजिल प्रार्थना और एक मंजिल इस्लामी संग्रहालय के आवंटित की ग़ई है।
हज़रत फ़ातेमा मासूमा का शुभ जन्म दिवस
पहली ज़ीक़ादा सन 173 हिजरी क़मरी को मदीना नगर में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन के घर में एक फूल खिला जिसका नाम फ़ातेमा रखा गया।
इस महान महिला के जन्म से इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का घर ख़ुशियों से भर गया। उनकी मां का नाम नजमा था जो अपनी सदाचारिता की वजह से ताहेरा कही जाती थीं जिसका अर्थ होता है पवित्र। हज़रत फ़ातेमा मासूमा की मां अपने समय की महान महिला थीं। हज़रत मासूमा ने अपने पिता इमाम मूसा काज़िम, मां नजमा ख़ातून और भाई इमाम रज़ा की छत्रछाया में ज्ञान व आत्मज्ञान के उच्च चरण को हासिल किया। हज़रत मासूमा का व्यक्तित्व बचपन से ही इतना आकर्षक था कि पूरा परिवार और ख़ास तौर पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उनका बहुत सम्मान करते थे।
रिवायत में है कि एक दिन इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के श्रद्धालुओं का एक गुट मदीना पहुंचा ताकि अपनी मुश्किलों का हल उनसे पूछे। जब श्रद्धालुओं का कारवां इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के घर के द्वार पर पहुंचा तो उसे पता चला कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम घर पर नहीं हैं। सफ़र की थकान और फिर इमाम की अनुपस्थिति से कारवां वाले बड़े दुखी थे कि अचानक एक छोटी बच्ची इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के घर से बाहर आयी और उसने कारवां वालों के दुख को यह कहते हुए दूर किया कि आप लोग अपने सवाल पेश कीजिए ताकि मैं उसका जवाब दूं। उन्होंने ऐसा ही किया। यह बच्ची हज़रत मासूमा थी। उन्होंने उस कमसिनी में कारवां वालों के जवाब विस्तार से लिखकर उनके हवाले किये। कारवां वालों ने जवाब देखे तो हैरत में पड़ गए। वे लोग ख़ुशी ख़ुशी अपने वतन की ओर चल पड़े। रास्ते में उनकी मुलाक़ात इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से हुयी तो उन्होंने बताया कि आपकी बेटी ने किस तरह उनके सवालों के जवाब दिए और सारे जवाब इमाम को दिखाए। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने जवाब पढ़े, मुस्कुराए और तीन बार कहाः "बाप क़ुर्बान हो जाए।"
यह घटना हज़रत फ़तेमा मासूमा के बचपन में उनके महान व्यक्तित्व की झलक पेश करती और उनकी बुद्धिमत्ता का बखान करती है।
हज़रत मासूमा अपनी दादी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की तरह जो पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों में एक आदर्श हस्ती हैं, अत्याचार व घुटन भरे दौर में धैर्य व दृढ़ता का बहुत ही सुंदर नमूना पेश किया। हज़रत मासूमा उपासना, सदाचारिता, सच्चाई, उदारता, कठिनाइयों के मुक़ाबले में दृढ़ता, क्षमाशीलता और चरित्रता की दृष्टि से आदर्श हस्ती हैं। हज़रत मासूमा इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के बच्चों में अपने भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बाद व्यक्तित्व व आत्मोत्थान की दृष्टि से सबसे ऊपर हैं। यह ऐसी हालत में है कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के 18 या 19 बेटियां थीं और उनमें हज़रत मासूमा सबसे प्रतिष्ठित थीं। वरिष्ठ धर्मगुरु शैख़ मोहम्मद तक़ी तुस्तरी ने अपनी किताब "क़ामूसुर रेजाल" में हज़रत मासूमा को आदर्श महिला के रूप में परिचित कराया है और उन्हें इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की संतानों में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बाद सबसे महान बताया है। वह इस बारे में लिखते हैः "इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम की संतानों में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बाद, किसी की भी शान हज़रत मासूमा जैसी नहीं है।"
हज़रत मासूमा के जीवन में मिलता है कि आप ईश्वर की उपासना में लीन रहती थीं। आप बहुत ही चरित्रवान हस्ती थीं। आपको मासूमा कहने की वजह शायद यह है कि आपके व्यक्तित्व में आपकी दादी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की पवित्रता झलकती थी। रवायत के अनुसार, इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने आपको मासूमा का लक़ब दिया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम क़ुम शहर के मशहूर मुहद्दिस सअद बिन सअद अश्अरी को संबोधित करते हुए फ़रमायाः "हे सअद! तुम्हारे यहां हमारे परिजन में से एक की क़ब्र बनेगी। सअद कहते हैं कि मैंने कहाः मेरी जान पर आप पर क़ुर्बान हो, क्या आप इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की बेटी फ़ातेमा की क़ब्र के बारे में फ़रमा रहे है? तो इमाम रज़ा ने फ़रमायाः हां! जो भी मासूमा का उनके हक़ को समझते हुए दर्शन करे, वह स्वर्ग में जाएगा।"
हज़रत मासूमा का एक और लक़ब करीमए अहलेबैत है। जिसका अर्थ है दानी। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों में यह लक़ब सिर्फ़ हज़रत मासूमा से विशेष है। हज़रत मासूमा का रौज़ा ईरान के पवित्र नगर क़ुम में है और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शब्दों में उनके रौज़े से करामात ज़ाहिर होती है। जो भी दूर या निकट से उनका दर्शन करे उसके हिस्से में भी करामात आएगी।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः "जान लो कि स्वर्ग के आठ द्वार है कि इनमें से 3 क़ुम की ओर हैं। मेरी संतान में एक महिला का वहां देहांत होगा जिनका नाम फ़ातेमा है वह मेरे बेटे मूसा की बेटी है। उनकी सिफ़ारिश से हमारे सभी शिया स्वर्ग में जाएंगे।"
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के बच्चों को अपने पिता की तरह अब्बासी शासक के घोर अत्याचार का सामना करना पड़ा। इन बच्चों की सबसे बड़ी मुसीबत उनके पिता की शासक हारून रशीद की जेल में शहादत थी। मामून के शासक बनते ही जो बहुत ही चालाक और मक्कार था, इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के बच्चों को निर्वासित कर दिया गया और कुछ शहीद हो गए।
हज़रत मासूमा के लिए जो अपने भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से बहुत श्रद्धा रखती थीं, उनकी दूरी बहुत सख़्त थी। मामून के आदेश से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को ज़बरदस्ती मदीना से मर्व अर्थात मौजूदा मशहद शहर बुलाया जाना, पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के लिए बहुत दुखद घटना थी। इन परिजनों ने ईश्वर की प्रसन्नता के लिए निर्वासन को क़ुबूल किया और धैर्य से काम लिया।
इस बीच हज़रत मासूमा दादी हज़रत ज़ैनब की तरह हुकूमत के दबाव के मुक़ाबले में डट गयीं और ग़दीरे ख़ुम की घटना के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम के कथन को बयान करने और इस्लामी शिक्षाओं के प्रसार के साथ अपने भाई के साथ राजनैतिक-सामाजिक आंदोलन के लिए मैदान में आ गयीं और पलायन को तत्कालीन हालात पर आपत्ति दर्ज कराने के रूप में चुना।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मर्व पलायन के एक साल बाद अपनी सम्मानीय बहन हज़रत मासूमा को ख़त लिखा जिसे पाते ही हज़रत मासूमा अपने धार्मिक कर्तव्य को अंजाम देने के लिए अपने कुछ भाइयों व भतीजों के साथ ख़ुरासान की ओर चल पड़ीं। हज़रत मासूमा रास्ते में विभिन्न शहरों में इस्लाम की उच्च शिक्षाओं और पैग़म्बरे इस्लाम व उनके पवित्र परिजनों के कथन बयान करतीं, लोगों के सवालों के जवाब देतीं और उनमें जागरुकता पैदा करतीं। हज़रत मासूमा को अपने दौर के हालात की अच्छी समझ थी इसलिए वे मामून की मक्कारी भरी चालों को नाकाम बनाने के लिए हदीसों को ज़्यादा बयान करती थीं। ऐसी हदीसें जिनमें पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की इमामत को अनिवार्य बताया गया है। हज़रत मासूमा अपने पिता के कठिन दौर को अच्छी तरह समझती थीं इसलिए वह इमामत की अहमियत का बहुत ज़्यादा वर्णन करती थीं। जिस समय हज़रत मासूमा के भाई इमाम रज़ा को शासक मामून ने अपना उत्तराधिकारी घोषित करने के लिए ख़ुरासान बुलाया था, हज़रत मासूमा ने समझ लिया था कि उन्हें भी इस अत्याचार के ख़िलाफ़ हज़रत ज़ैनब की तरह मैदान में आना होगा। यही वजह है कि हज़रत मासूमा जो हदीसें बयान की हैं उनमें ज़्यादातर इमामत की अहमियत के बारे में है।
हज़रत मासूमा इस सफ़र में अपने भाई से न मिल सकीं और वह क़ुम के निकट सावे शहर पहुंची तो बीमार हो गयीं और उसी बीमारी की हालत में वह क़ुम पहुंची। क़ुम शहर के प्रतिष्ठित लोग उनके स्वागत के लिए निकले और अद्वितीय स्वागत किया। हज़रत मासूमा 17 दिन इस शहर में ज़िन्दा रहीं। इस दौरान वह ईश्वर की उपासना करतीं और लोगों के सवालों के जवाब देतीं। हज़रत मासूमा जिस मदरसे में उपासना करती थीं उसका नाम सतिय्या था और अब इसका नाम बैतुन नूर पड़ गया है जिसका हज़रत मासूमा के श्रद्धालु दर्शन करते हैं। अंततः 10 रबीउस्सानी 201 हिजरी क़मरी में हज़रत मासूमा ने इस नश्वर संसार को अलविदा कहा और शिया उनके शोक में डूब गए। आज हज़रत मासूमा का रौज़ा श्रद्धालुओं के दर्शन का केन्द्र बना हुआ है।
हज़रत मासूमा के रौज़े के दर्शन के समय जो ज़ियारत पढ़ी जाती है उसमें आपके 8 लक़ब का उल्लेख है जिससे आपके महान व्यक्तित्व का पता चलता है।
بَقِيَّتُ اللَّـهِ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
यदि तुम मोमिन हो तो जो अल्लाह के पास शेष रहता है वही तुम्हारे लिए उत्तम है। मैं तुम्हारे ऊपर कोई नियुक्त रखवाला नहीं हूँ।" [11:86]
सबानजी सेंट्रल मस्जिद – अदाना - , तुर्की
शहर अदाना में स्थित सबानजी सेंट्रल मस्जिद, तुर्की में सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है, जिसमें 52,600 वर्ग मीटर का एक क्षेत्र और अंतर्निहित 6,600 वर्ग मीटर का क्षेत्र शामिल है, और अदाना शहर के आकर्षण का एक हिस्सा है ।यह मस्जिद 1998 में बनाई गई थी।