
رضوی
इस्लाम के पैग़म्बर (स) मानव जाति के लिए सबसे अच्छा उदाहरण
ईरान के हमदान शहर के इमाम जुमा ने कहा: आज हम पवित्र पैगंबर की शिक्षाओं और जीवन से दूरी के कारण कई सामाजिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ये दिन हमारे प्यारे पैगंबर (स) के जीवन को जानने और उनका अनुसरण करने का सबसे अच्छा अवसर हैं।
ईरान के हमदान के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हबीबुल्लाह शबानी ने पैग़म्बर (स) की मृत्यु और इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत के अवसर पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए कहाः आज हम समाज में जिस खाई का सामना कर रहे हैं, वह पैग़म्बर (स) के जीवन और उनकी शिक्षाओं से दूरी के कारण है।
उन्होंने कहा: हम जितना पवित्र पैगम्बर (स) के करीब होंगे और उनके रास्ते पर चलेंगे, उतना ही हम समाज में सुधार देखेंगे।
हुज्जतुल-इस्लाम शबानी ने कहा: इस्लाम के पैगंम्बर (स) मानव जाति के लिए सबसे अच्छा उदाहरण हैं। पवित्र पैग़म्बर (स) कहते हैं कि समाज की सबसे अच्छी नींव "परिवार और घर" है और भगवान द्वारा एक आदमी को दिया गया सबसे अच्छा आशीर्वाद "एक गुणी पत्नी" है।
उन्होंने पवित्र पैग़म्बर (स) की जीवनी का वर्णन किया और कहा: वह (स) कहते हैं कि "यदि आप किसी का भला करना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपने परिवार, अपनी पत्नी और अपने बच्चों से शुरुआत करें।" इसी तरह, पैग़म्बर (स) की नजर में, सबसे अच्छा आदमी वह है जो घर के कामों में अपनी पत्नी की मदद करता है।
उन्होंने कहा: इस्लाम के पैगम्बर (स) खुद घरेलू कामों में अपनी पत्नी की मदद करते थे और इसे अहले-बैत (अ) के जीवन में देखा जा सकता है।
इस्राईल को बनाने में ब्रिटेन की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकताः कनआनी
ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने ज़ायोनी सरकार के प्रति ब्रिटेन के समर्थन की ओर संकेत करते हुए बल देकर कहा कि क्षेत्रीय राष्ट्र और विश्व के देश इस बात का नहीं भुलेंगे कि ब्रितानी राजनेताओं ने इस्लामी जगत के केन्द्र में अपारथाइड सरकार उत्पन्न करने में किस प्रकार प्रयास किया।
ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने सोशल साइट एक्स पर लिखा कि एतिहासिक वर्चस्ववादी रवइया, उसे जारी रखने के लिए प्रयास, फूट डालना और फ़िलिस्तीन जैसे मामले व संकट को जन्म देना पश्चिम एशिया में ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनआनी ने कहा कि ब्रिटेन आज भी ज़ायोनी सरकार का समर्थन करके नरसंहार, सामूहिक हत्या और ग़ज़ा पट्टी और पश्चिमी किनारे के फ़िलिस्तीनियों को बेघर करने में इस्राईल के अपराधों में शामिल है।
विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने इसी प्रकार ब्रिटिश साम्राज्य से मुक़ाबला व संघर्ष करने में शहीद रईस अली दिलवारी और उनके प्रयासों को याद किया और कहा कि ब्रिटेन सहित दूसरे साम्राराज्यवादियों से मुक़ाबला करने और राजनीतिक स्वतंत्रता व स्वाधीनता प्राप्त करने में ईरानी राष्ट्र का लंबा व गौरवांवित इतिहास है।
ईरान में शहरीवर महीने की 12 तारीख़ को शहीद रईस अली दिलवारी को याद किया जाता है और 12 शहरीवर को ईरान में ब्रिटेन साम्राज्य से संघर्ष का नाम दिया गया है।
रईस अली दिलवारी एक स्वतंत्रताप्रेमी व्यक्ति थे और ईरान के दक्षिण में स्थित तंगीस्तान और बूशहर में ब्रितानी साम्राज्य के ख़िलाफ़ होने वाले आंदोलन के नेता थे। यह आंदोलन 1882 से लेकर 1915 तक चला। यह वह समय था जब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था।
इराक़ में क्रांति के सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि से शेख़ ज़कज़की की मुलाक़ात
शेख ज़कज़की ने नाइजीरिया और अफ्रीका के प्रतिष्ठित विद्वानों के साथ नजफ अशरफ में क्रांति के सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि आयतुल्ला मुज्तबा हुसैनी से मुलाकात की।
नाइजीरिया के इस्लामिक मूवमेंट के नेता हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लिमिन शेख इब्राहिम ज़कज़की ने इराक में क्रांति के सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि आयतुल्लाह सैयद मुजतबा हुसैनी से मुलाकात की और इस्लामिक दुनिया में चल रहे हालातों और घटनाओं पर चर्चा की, खासकर अफ्रीका से जुड़े मुद्दों पर बात की।
बैठक के दौरान इराक में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने शेख ज़कज़की के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए प्रसन्नता व्यक्त की और नजफ़ में पढ़ रहे अफ्रीकी छात्रों से भी चर्चा की।
इस नाइजीरियाई शिया नेता ने अपनी गतिविधियों और समर्थन के लिए इराक में क्रांति के सर्वोच्च नेता के कार्यालय को धन्यवाद दिया।
इस मुलाकात में दोनों नेताओं ने इस्लामिक दुनिया के मौजूदा हालात और खासकर अफ्रीका से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की।
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के मौके पर शोक में डूबा ईरान
आज पूरे ईरान में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत का ग़म मनाया जा रहा है जगह जगह मजलिस और जुलूस निकाले जा रहे हैं।
ईरान में आज इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत का शोक मनाया जा रहा है।
आज 4 सितंबर बुधवार को पैग़म्बरे इस्लाम स.ल. के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर पूरे ईरान में शोक सभाएं आयोजित की जा रही हैं और जूलूस निकाले जा रहे हैं।
दुनिया भर में और ख़ास तौर पर ईरान में शिया मुसलमान अपने आठवें इमाम हज़रत इमाम अली रज़ा अ.स. की शहादत की बरसी पर शोक और ग़म मना रहे हैं।
उधर ख़ुरासाने रज़वी प्रांत के गवर्नर ने कहा है कि 1 सितम्बर से अब तक 26 लाख 15 तीर्थयात्री और श्रद्धालु पवित्र नगर मशहद पहुंच चुके हैं।
ख़बरों में बताया गया है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए 10 हज़ार से अधिक पाकिस्तानी तीर्थयात्री ज़मीनी रास्ते से पवित्र नगर मशहद पहुंच चुके हैं जबकि सैकड़ों भारतीय श्रद्धालु भी मशहद में मौजूद हैं।
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का शहादत के मौके पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब
आठवें इमाम हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत के मौके पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा मशहद के चारों तरफ़ दूर दूर की बस्तियों, गावों और शहरों से श्रद्धालु पैदल चलकर मशहद पहुंचे जबकि दुनया के दर्जनों देशों से भी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या मशहद में नज़र आई।
पैग़म्बरे इस्लाम के वंशज और शिया मसलक के मानने वालों के आठवें इमाम हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर शनिवार को पूरा ईरान शोक में डूबा रहा।
आठवें इमाम हज़रत रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत के मौके पर श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा मशहद के चारों तरफ़ दूर दूर की बस्तियों, गावों और शहरों से श्रद्धालु पैदल चलकर मशहद पहुंचे जबकि दुनया के दर्जनों देशों से भी श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या मशहद में नज़र आई।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के पैग़म्बरे आज़म में लाखों लोगों का मजमा नज़र आया और सबने बड़ी श्रद्धा से इमाम रज़ा का शहादत दिवस मनाया।
इस मौक़े पर सारे ही लोग शोकाकुल थे मगर जिस एकता व समरसता का प्रदर्शन किया गया वो अपने आप में बहुत बड़ा संदेश है।
कल के दिन मशहद में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के हरम में कई पारम्परिक कार्यक्रम आयोजित किए गए जिसमें श्रद्धालुओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शहादत दिवस पर पवित्र नगर क़ुम में भी श्रद्धालुओं ने भव्य कार्यक्रम आयोजित किया क़ुम में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन हज़रत मासूमा का रौज़ा है श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या ने क़ुम में हज़रत मासूमा के रौज़े में पहुंच कर ताज़ियत संवेदना पेश करने के कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
सक़ीफ़ा बनी सईदा" के फ़ितने ने अहले-बैत (अ) की शहादतों और उत्पीड़न की नींव रखी
ईरान के ख़ुरासान रज़वी प्रांत में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने कहा: इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत सकीफ़ा बानी सईदा के परिणामस्वरूप हुई जो नाजायज़ घटना को दर्शाती है। यह एक कड़वी और अप्रिय दुर्घटना थी जो पवित्र पैगंबर (स) की मृत्यु के बाद इस्लाम की उम्मत में घटी और इसने उम्मत को इमामत के रास्ते से भटका दिया।
ईरान के खुरासान-रिज़वी प्रांत मे वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने पवित्र पैगम्बर (स) ने सफ़र महीने के आखिरी दिनों में महदिया मशहद में आयोजित एक मजलिसे अज़ा को संबोधित किया और कहा: आज वह दिन है अहले-बैत (अ) के सभी कष्टों और उत्पीड़न की शुरुआत।
उन्होंने कहा: पवित्र पैगंबर (स) के स्वर्गवास के दिन, कुछ तथाकथित मुसलमानों की ओर से एक बड़ा फितना हुआ। जिसने उनके अहले-बैत (अ) की तमाम शहादतों और ज़ुल्मों की बुनियाद रखी और यह फ़ितना "सक़ीफ़ा बानी सईदा" था।
आयतुल्लाह अलम उल-हुदा ने कहा: पवित्र पैगंबर (स) के स्वर्गवास हज़रत फातिमा ज़हरा (स) के उत्पीड़न और इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत के साथ पैगंबर (स) के स्वर्गवास के दिन से जुड़ी हुई है। तकरान इस तथ्य का वर्णन करते हैं कि स्वर्गवास के दिन जो हुआ, उसकी सबसे बड़ी अभिव्यक्ति और उदाहरण इमाम हसन मुजतबा (अ) के जीवन और शहादत में देखा जा सकता है।
उन्होंने कहा: इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत सकीफ़ा बानी सईदा के परिणामस्वरूप हुई जो गैर-शरिया घटना को दर्शाती है। यह एक कड़वी और अप्रिय दुर्घटना थी जो पवित्र पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद इस्लाम की उम्मत में घटी और इसने उम्मत को इमामत के रास्ते से भटका दिया।
युद्ध शुरू होने से इज़राइल ने 98 फ़िलिस्तीनी पत्रकारों का अपहरण कर लिया
फ़िलिस्तीनी प्रिज़नर्स सोसाइटी ने कहा है कि युद्ध की शुरुआत के बाद से इज़रायली सेना ने 98 फ़िलिस्तीनी पत्रकारों का अपहरण कर लिया है, जिनमें से 52 पत्रकार इज़रायली जेलों में कैद हैं। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) की रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायली हमलों में 116 पत्रकार मारे गए हैं।
फ़िलिस्तीनी कैदी समूह ने कहा है कि युद्ध की शुरुआत के बाद से इज़रायली सेना ने 98 फ़िलिस्तीनी पत्रकारों का अपहरण कर लिया है, जिनमें से 52 पत्रकार अभी भी इज़रायली जेलों में कैद हैं। फिलिस्तीनी प्रिज़नर्स सोसाइटी ने अपने बयान में कहा कि "हिरासत में लिए गए कैदियों में से 15 प्रशासनिक जेलों में हैं, जिनमें 6 महिला पत्रकार और गाजा के लगभग 17 पत्रकार शामिल हैं।"
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इज़राइल की प्रशासनिक हिरासत नीति के अनुसार, इजरायली अधिकारियों को फिलिस्तीनी कैदियों की हिरासत को बिना किसी आरोप या अभियोजन के बढ़ाने का अधिकार है। फिलिस्तीनी प्रिज़नर्स सोसाइटी ने अपने बयान में बताया है कि गाजा में हिरासत में लिए गए पत्रकारों में निदाल अल-वाहदी और हाशिम अब्दुल वहीद शामिल हैं, जिन्हें जबरन गायब कर दिया गया, जबकि उनकी स्थिति के बारे में कोई नहीं जानता।
पत्रकारों की सुरक्षा हेतु समिति की रिपोर्ट
पत्रकारों की सुरक्षा करने वाली समिति ने हाल ही में कहा है कि इज़राइल ने 7 अक्टूबर, 2023 से अब तक 116 पत्रकारों की हत्या कर दी है। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2 सितंबर, 2024 को सीपीजे की प्रारंभिक जांच से पता चला कि गाजा में इजरायली युद्ध के परिणामस्वरूप मरने वाले 41,000 फिलिस्तीनियों में 116 पत्रकार शामिल थे। सीपीजे ने 1992 में पत्रकारों की मौत पर डेटा इकट्ठा करना शुरू किया। समिति के अनुसार, गाजा में बिताया गया समय पत्रकारों के लिए सबसे खराब समय था।
सीपीजे ने कहा कि वह न्यायेतर हत्याओं के 130 मामलों की जांच कर रहा है। इजरायल ने गाजा पट्टी से सैकड़ों फिलिस्तीनियों को हिरासत में लिया है, लेकिन इजरायली अधिकारियों ने हिरासत में लिए गए फिलिस्तीनियों की वास्तविक संख्या का खुलासा नहीं किया है।
मोमिन को कैसा होना चाहिये? इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कोई भी बंदा ईमान की हक़ीक़त के शिखर पर नहीं पहुंच सकता मगर यह कि उसमें तीन विशेषतायें हों। धर्म की पहचान, जिन्दगी में सही कार्यक्रम बनाना और जीवन की कठिनाइयों व सख्तियों पर धैर्य करना।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून के नाम जो लिखा था उसमें फ़रमाया है कि अल्लाह के दोस्तों के साथ दोस्ती वाजिब है, इसी प्रकार अल्लाह के दुश्मनों से दुश्मनी रखना और बेज़ारी करना वाजिब है।
हज़रत अली बिन मूसा अर्रज़ा अलैहिस्सलाम सातवें इमाम, इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के बेटे हैं और वह इस्ना अश्री शियों के आठवें इमाम और पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हैं और उनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम की सिफारिशें हैं।
20 वर्षों तक इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत थी। जिस समय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की इमामत थी उस वक्त हारून रशीद, अमीन और मामून अब्बासी शासकों का शासन था। सन् 200 हिजरी क़मरी में मामून ने इमाम को मदीना से ईरान के ख़ुरासान प्रांत के मर्व शहर आने पर मजबूर किया। मर्व उस समय अब्बासी ख़लीफ़ाओं की सरकार का केन्द्र था।
मामून ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को उत्तराधिकारी के पद को क़बूल करने पर बाध्य किया और अंततः उसने 203 हिजरी क़मरी में इमाम को ज़हर देकर शहीद करवा दिया। उसके बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को जिस जगह पर दफ्न किया गया वह जगह "मशहदुर्रज़ा" के नाम से मशहूर हो गयी और आज दुनिया के लाखों शिया और ग़ैर शिया पूरे साल उनकी पावन समाधि की ज़ियारत के लिए आते रहते हैं।
यहां पर हम मोमिन की विशेषताओं के बारे में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की कुछ हदीसों को बयान कर रहे हैं।
हक़ीक़ते ईमान के शिखर पर पहुंचने का रास्ता
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कोई भी बंदा ईमान की हक़ीक़त के शिखर पर नहीं पहुंच सकता मगर यह कि उसमें तीन विशेषतायें हों। धर्म की पहचान, जिन्दगी में सही कार्यक्रम बनाना और जीवन की कठिनाइयों व सख्तियों पर धैर्य करना। (तोहफ़ुल उक़ूल)
ईमान के पहलु
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ईमान के बारे में इरशाद फ़रमाते हैं "दिल से पहचान व क़बूल करना, ज़बान से स्वीकार करना और शरीर के अंगों से अमल करना। (तोहफ़ुल उक़ूल)
क्रोध और ख़ुशी की हालत में मोमिन का व्यवहार
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कि मोमिन जब ग़ुस्सा करता है तो उसका ग़ुस्सा उसे हक़ से बाहर नहीं करता है और जब राज़ी व ख़ुश होता है तो उसकी ख़ुशी उसे बातिल व ग़लत चीज़ों में दाख़िल नहीं करती है और जब ताक़त व क़ुदरत पैदा करता है तो अपने हक़ से अधिक नहीं लेता है। (बेहारुल अन्वार)
अल्लाह के दोस्तों के साथ दोस्ती और अल्लाह के दुश्मनों से दुश्मनी व बेज़ारी
इमाम रज़ा अलैहिस्लाम इरशाद फ़रमाते हैं कि अल्लाह के दोस्तों से दोस्ती करना वाजिब और इसी तरह उसके दुश्मनों और सरगनाओं से दुश्मनी और बराअत व बेज़ारी वाजिब है। (वसाएलुश्शिया)
अल्लाह के बेहतरीन बंदे
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से अल्लाह के नेक बंदों के बारे में सवाल किया गया तो इमाम ने फ़रमाया अल्लाह के नेक बंदे जब नेक काम करते हैं तो प्रसन्न होते हैं, जब ग़लत काम व गुनाह करते हैं तो इस्तेग़फ़ार करते हैं, जब उन्हें कोई चीज़ दी जाती है वे उसका शुक्र अदा करते हैं और जब किसी मुसीबत में गिरफ्तार होते हैं तो धैर्य करते हैं और जब क्रोधित होते हैं तो माफ़ और नज़रअंदाज़ कर देते हैं। (मुसनद अलइमाम रज़ा अलैहिस्सलाम)
लोगों का शुक्रिया अदा करना अल्लाह का शुक्र है
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कि जो लोगों का शुक्रिया अदा नहीं करता वह अल्लाह का भी शुक्र अदा नहीं करता। (उयूनो अख़बार्रिज़ा अलैहिस्सलाम)
दुनिया से हलाल लाभ उठाना
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कि दुनिया से लाभ उठाओ। इसलिए कि हलाल की हद तक दिल की मांगों को पूरा करो, जहां तक मुरव्वत ख़त्म न हो और उसमें फ़ुज़ूलख़र्ची न हो। इस तरीक़े से धार्मिक कार्यों में मदद लो। (फ़िक़्हुर्रज़ा)
बाप के सामने विन्रम रहना
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रताते हैं कि तुम पर बाप की इताअत और उसके साथ नेकी करना वाजिब है, उससे नम्रता से और झुक कर पेश आओ, इसी प्रकार बाप का सम्मान करो और उसकी मौजूदगी में आवाज़ नीची रखो। (फ़ेक़हुर्ररज़ा अलैहिस्सलाम)
बक़ीअ में एक दिन एक खूबसूरत दरगाह जरूर बनेगी, मौलाना असलम रिज़वी
अल-बक़ीअ संगठन के आध्यात्मिक व्यक्ति मौलाना सैयद मेहबूब महदी आब्दी नजफ़ी ने इमाम हसन (अ) की शहादत पर इस्लामी दुनिया के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की और कहा कि जिस तरह इमाम हुसैन (अ) पैगम्बरों के वारिस हैं, इमाम हसन अलैहिस्सलाम भी पैगम्बरों के वारिस हैं।
इमाम हसन मुजतबा (अ) की शहादत के संबंध में क़ुरआन के महान व्याख्याता मौलाना सैयद महबूब महदी आब्दी नजफ़ी की अध्यक्षता में मुंबई में एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया 'एएन, अल-बक़ीअ संगठन शिकागो, अमेरिका की ओर से ज़ूम के माध्यम से जिसमें विभिन्न देशों के विद्वानों ने जन्नत अल-बक़ीअ और इमाम हसन (अ) के उत्पीड़न का वर्णन किया।
अपने उद्घाटन और अध्यक्षीय भाषण में, अल-बक़ीअ संगठन के आध्यात्मिक नेता मौलाना सैयद मेहबूब महदी आब्दी नजफ़ी ने इमाम हसन (अ) की शहादत पर इस्लामी दुनिया के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की और कहा कि जिस तरह इमाम हुसैन ( अ) पैगंबरों के उत्तराधिकारी हैं, उसीतरह इमाम हसन (अ) भी पैगंबरों के उत्तराधिकारी हैं, एसएनएन चैनल ने बक़ीअ आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया है फायदा यह हुआ कि आज यह आंदोलन घर-घर तक पहुंच गया है। पूरी दुनिया में अल-बक़ीअ संगठन के आंदोलन को समर्थन मिलने की एक वजह लगातार होने वाला ये सम्मेलन भी है।
अमेरिका से मौलाना सैयद कल्बे अब्बास रिजवी ने कहा कि यह हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम इस मुद्दे पर एक साथ आवाज उठाएं और जन्नतुल बकी के बारे में हैशटैग चलाएं, इसलिए मुझे लगता है कि मौलाना कल्बे अब्बास रिजवी का बेहतर परिणाम सामने आएगा आंदोलन का समर्थन किया और इसकी सफलता के लिए दुआ की।
अमरोहा से आए मौलाना कारी अहमद हसन ने कहा कि कुरान ने सभी मुसलमानों से अहले-बैत से प्यार करने की मांग की है। यह एक सच्चाई है कि जब आप उनसे प्यार करते हैं, तो आप उनकी कब्रों से भी प्यार करेंगे - यह कैसे उचित है कि अहले-बैत के सदस्यों को शहादत से पहले उनके दरवाजे जलाकर सताया गया था और शहादत के बाद, उन्हें ध्वस्त करके सताया गया था। घर जलाना भी दुखदायी है और मजार तोड़ना भी दुखदायी है, फिर भी अगर कोई प्रेम का दावा करता है तो वह प्रेम नहीं, पाखंड है।
इराक के नजफ अशरफ से आयतुल्लाह शेख बशीर नजफी के प्रतिनिधि मौलाना सैयद जमान जाफरी नजफी ने कहा कि जन्नत अल-बकी के पुनर्निर्माण के आंदोलन को शिया और सुन्नी के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि जन्नत अल-बकी के लिए आवाज उठा रहे हैं। अहले-बैत के अधिकार के लिए है अपनी आवाज उठाओ। पूरे मुस्लिम उम्माह की आस्थाएं और भावनाएं मुस्लिम उम्माह से जुड़ी हुई हैं। इस मुद्दे को शिया धर्म से जोड़कर पेश करने के पीछे एक घिनौनी साजिश है। उनका मानना है कि पैगंबर के 10,000 साथी जन्नत अल-बक़ी में दफ़न हैं आंदोलन केवल शियाओं तक ही सीमित नहीं है।
पुणे शहर के मौलाना असलम रिज़वी ने कहा कि जब तक जन्नतुल बकी में एक खूबसूरत दरगाह नहीं बन जाती, तब तक यह आंदोलन इसी तरह जारी रहेगा। जन्नत-उल-बाकी आपको आवाज दे रहे हैं कि इस आंदोलन के लिए कौन घर छोड़ेगा। हुसैन की आवाज कल भी और आज भी सुनाई देती है, फर्क सिर्फ इतना है कि 61 हिजरी में ये आवाज कर्बला से उठी थी और आज ये आवाज बकीअ से आ रही है।
बांद्रा मुंबई के जुमे के इमाम मौलाना सैयद जुल्फिकार मेहदी ने कहा कि कर्बला में इमाम हुसैन (अ) की दरगाह पर इस वक्त लाखों जायरीन मौजूद हैं, लेकिन इमाम हसन मुजतबा (अ) की कब्र वीरान है नम आँखों और खुले दिल से कहा जाए कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम पर शहादत से पहले भी ज़ुल्म हुआ था और शहादत के बाद भी ज़ुल्म हो रहा है, आवाज़ उठानी चाहिए ताकि ये आवाज़ आले सऊद के कानों तक पहुँचे।
एसएनएन चैनल के प्रधान संपादक मौलाना अली अब्बास वफ़ा ने सभी विद्वानों का स्वागत किया और इस विद्वान सम्मेलन में अपना बहुमूल्य समय देने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
इमाम हसन अ.ह की महानता रसूले इस्लाम स.अ की ज़बानी।
हदीसों की किताबों में इब्ने अब्बास के हवाले से बयान हुआ है कि रसूले इस्लाम स.अ. इमाम हसन अलैहिस्सलाम को अपने कांधे पर सवार किए हुए कहीं ले जा रहे थे किसी ने कहा अरे बेटा तुम्हारी सवारी कितनी अच्छी है? रसूले इस्लाम स.अ. ने फ़रमाया यह क्यों नहीं कहते कि सवार कितना अच्छा है?
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम रसूले इस्लाम के नवासे से और उनके फूल हैं। आप संयम, सब्र, सहनशीलता और दान देने में रसूल का दूसरा रूप थे। रसूले इस्लाम स. आपसे बहुत ज्यादा मुहब्बत करते थे आपकी मोहब्बत मुसलमानों के बीच मशहूर थी किताबों में रसूले इस्लाम स. के निकट इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महत्व व स्थान के बारे में बहुत कुछ बयान हुआ है इसलिए हम कुछ हदीसें यहां पेश कर रहे हैं।
हज़रत आएशा से रिवायत है कि रसूले इस्लाम स.अ. ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को गोद में लिया और उनको अपने सीने से चिमटाते हुए कहा है ऐ मेरे खुदा यह मेरा बेटा है मैं इससे मोहब्बत करता हूं और जो इससे मोहब्बत करे मैं उससे मोहब्बत करूंगा।
बर्रा इब्ने आजिब ने बयान किया है मैंने रसूले इस्लाम स. को देखा कि आप अपने कंधों पर इमाम हसन अ. और इमाम हुसैन अ. को सवार किए हुए फरमा रहे हैं ऐ मेरे अल्लाह मैं इनसे मोहब्बत करता हूं और तू भी उनसे मोहब्बत कर इब्ने अब्बास ने भी बयान किया है।
जो जन्नत के जवानों के सरदार को देखना चाहता है वह हसन की ज़ियारत करे।
रसूले इस्लाम ने फरमाया हसन दुनिया में मेरे फूल हैं।