
رضوی
इमाम हसन (अ) के दान देने और क्षमा करने की कहानी।
एक दिन इमाम हसन (अ) घोड़े पर सवार कहीं जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया। इमाम हसन (अ) चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे, जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो इमाम हसन (अ) ने उसे मुसकुरा कर सलाम किया और कहने लगेः
ऐ शेख़, मेरे विचार में तुम यहां अपरिचित हो और तुमको धोखा हो रहा है, अगर भूखे हो तो तुम्हें खाना खिलाऊं, अगर कपड़े चाहिये तो कपड़े पहना दूं, अगर ग़रीब हो तो तुम्हरी ज़रूरत पूरी कर दूं, अगर घर से निकाले हुये हो तो तुमको पनाह दे दूं और अगर कोई और ज़रूरत हो तो उसे पूरा करूं। अगर तुम मेरे घर आओ और जाने तक मेरे घर में ही रहो तो तुम्हारे लिये अच्छा होगा क्योंकि मेरे पास एक बड़ा घर है तथा मेहमानदारी का सामान भी मौजूद है।
सीरिया के उस नागरिक ने जब यह व्यवहार देखा तो पछताने और रोने लगा और इमाम को संबोधित करके कहने लगाः मैं गवाही देता हूं कि आप ज़मीन पर अल्लाह के प्रतिनिधि हैं तथा अल्लाह अच्छी तरह जानता है कि अपना प्रतिनिधित्व किसे प्रदान करे। आप से मिलने से पहले आपके पिता और आप मेरी निगाह में लोगों के सबसे बड़े दुश्मन थे और अब मेरे लिये सबसे से अच्छे हैं।
यह आदमी मदीने में इमाम हसन का मेहमान बना और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. एवं उनके अहलेबैत का श्रद्धालु बन गया। इमाम हसन (अ) की सहनशीलता व सब्र इतना मशहूर था कि "हिल्मुल- हसन" अर्थात हसन की सहनशीलता सब की ज़बानों पर रहता था।
पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और हज़रत अली के बेटे इमाम हसन भी अपने नाना और पिता की तरह अल्लाह की इबादत के प्रति बहुत ज़्यादा पाबंद एवं सावधान थे। अल्लाह की महानता का इतना आभास करते थे कि नमाज़ के समय चेहरा पीला पड़ जाता और जिस्म कांपने लगता था, हर समय उनकी ज़बान पर अल्लाह का ज़िक्र व गुणगान ही रहता था।
इतिहास में आया है कि किसी भी ग़रीब व फ़क़ीर को उन्होने अपने पास से बिना उसकी समस्या का समाधान किये जाने नहीं दिया। किसी ने सवाल किया कि आप किसी मांगने वाले को कभी ख़ाली हाथ क्यों नहीं लौटाते। तो उन्होने जवाब दिया" मैं ख़ुद अल्लाह के दरवाज़े का भिखारी हूं,और उससे आस लगाये रहता हूं, इसलिये मुझे शर्म आती है कि ख़ुद मांगने वाला होते हुये दूसरे मांगने वाले को ख़ाली हाथ भेज दूं। अल्लाह ने मेरी आदत डाली है कि लोगों पर ध्यान दूं और अल्लाह की अनुकंपायें उन्हें प्रदान करूं।"
इमाम हसन (अ) ने 48 साल से ज़्यादा इस दुनिया में अपनी रौशनी नहीं बिखेरी लेकिन इस छोटी सी अवधि में भी उनका समय भ्रष्टाचारियों से लगातार जंग में ही बीता। अपने पिता की शहादत के बाद इमाम हसन (अ) ने देखा कि निष्ठावान व वफ़ादार साथी बहुत कम हैं इसलिये मोआविया से जंग का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलेगा इसलिये उन्होने मुआविया द्वारा प्रस्तावित सुलह को अपनी शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया। इस शान्ति संधि का नतीजा यह निकला कि वास्तविक मुसलमानों को ख़्वारिज के हमलों से नजात मिल गयी और जंग में उनकी जानें भी नहीं गईं।
इमाम हसन(अ) के ज़माने के हालात के बारे में आयतुल्लाह ख़ामेनई कहते हैं" हर क्रान्तिकारी व इंक़ेलाबी के लिये सबसे कठिन समय वह होता है जब सत्य व असत्य आपस में बिल्कुल मिले हुये हों-----(इस हालत को निफ़ाक़ या मित्थ्या कहते हैं) इमाम हसन के ज़माने में निफ़ाक़ की उड़ती धूल हज़रत अली के ज़माने से बहुत ज़्यादा गाढ़ी थी इमाम हसने मुज्तबा (अ) जानते थे कि उन थोड़े से साथियों व सहायकों के साथ अगर मुआविया से जंग के लिये जाते हैं और शहीद हो जाते हैं तो इस्लामी समाज के प्रतिष्ठत लोगों पर छाया हुआ नैतिक भ्रष्टाचार उनके ख़ून (के प्रभाव) को अर्थात उनके लक्ष्य को आगे बढ़ने नहीं देगा। प्रचार, पैसा और मुआविया की कुटिलता, हर चीज़ पर छा जायेगी तथा दो एक साल बीतने के बाद लोग कहने लगेंगे कि इमाम हसन(अ) व्यर्थ में ही मुआविया के विरोध में खड़े हुये। इसलिये उन्होने सभी कठिनाइयां सहन कीं लेकिन ख़ुद को शहादत के मैदान में जाने नहीं दिया,क्योंक् जानते थे कि उनका ख़ून अकारत हो जायेगा।
इस आधार पर इमाम हसन(अ) की एक विशेषता उनका इल्म व बुद्धिमत्ता थी। पैगम्बरे इस्लाम (स) इमाम हसन (अ) की बुद्धिमत्ता के बारे में कहते " अगर अक़्ल को किसी एक आदमी में साकार होना होता तो वह आदमी अली के बेटे हसन होते ।"
पैगम्बर मुहम्मद साहिब के सही किरदार को पेश किया जाए.
आज जबकि मानव समाज आध्यात्मिक पतन की ओर उनमुख है। तथा असदाचारिता, असत्यता ,छल, कपट, द्वेष, भोग विलासिता तथा अमानवियता चारों ओर व्याप्त है। इस पतन को रोकने के लिए अति आवश्यक है कि मानव जाति के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत किया जाये। जिसका अनुसरन करके मानव जाति का कल्याण हो सके।हम विशवास के साथ कहते हैं कि अगर मानवता पूर्णरूप से आदरनीय पैगम्बर मुहम्मद साहिब का अनुसरण करे तो कल्याण पासकती है।क्योंकि आदरनीय पैगम्बर मुहम्मद साहिब मे एक आदर्श के समस्त गुण विद्यमान हैं।
आज दुश्मन आदरनीय पैगम्बर मुहम्मद साहिब के किरदार को ग़लत तरीक़े से पेश केर के मानव समाज को असदाचारिता, असत्यता ,छल, कपट, द्वेष, भोग विलासिता तथा अमानवियता की उर ले जाना चाहता है. हमारे लिये यह ज़रूरी है की हम ,आदरनीय पैगम्बर मुहम्मद साहिब के किरदार को सही तरीक़े से पेश करें और इस समाज को गुमराही से बचाएं.
हज़रत पैगम्बर के पिता का नाम अब्दुल्लाह था जो ;हज़रत अबदुल मुत्तलिब के पुत्र थे। तथा पैगम्बर (स) की माता का नाम आमिना था, जो हज़रत वहाब की पुत्री थीं। हज़रत पैगम्बर का जन्म मक्का नामक शहर मे सन्(1) आमुल फील मे रबी उल अव्वल मास की 17वी तारीख को हुआ था। हज़रत पैगम्बर के पिता का स्वर्गवास पैगम्बर के जन्म से पूर्व ही हो गया था। और जब आप 6 वर्ष के हुए तो आपकी माता का भी स्वर्गवास हो गया। अतः8 वर्ष की आयु तक आप का पलन पोषण आपके दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने किया।दादा के स्वर्गवास के बाद आप अपने प्रियः चचा हज़रत अबुतालिब के साथ रहने लगे।
उनके चचा हज़रत अबुतालिब सदैव उनको अपनी शय्या के पास सुलाते थे। वह कहते हैं कि मैने कभी भी पैगम्बर को झूट बोलते, अनुचित कार्य करते व व्यर्थ हंसते हुए नही देखा। वह बच्चों के खेलों की ओर भी आकर्षित नही थे। सदैव तंन्हा रहना पसंद करते तथा मेहमान से बहुत प्रसन्न होते थे।
जब आपकी आयु 25 वर्ष की हुई तो अरब की एक धनी व्यापारी महिला जिनका नाम खदीजा था उन्होने पैगम्बर के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा। पैगम्बर ने इसको स्वीकार किया तथा कहा कि इस सम्बन्ध मे मेरे चचा से बात की जाये। जब हज़रत अबुतालिब के सम्मुख यह प्रस्ताव रखा गया तो उन्होने अपनी स्वीकृति दे दी। तथा इस प्रकार पैगम्बर(स) का विवाह हज़रत खदीजा पुत्री हज़रत ख़ोलद के साथ हुआ। निकाह स्वयं हज़रत अबुतालिब ने पढ़ा। हज़रत खदीजा वह महान महिला हैं जिन्होने अपनी समस्त सम्पत्ति इस्लाम प्रचार हेतू पैगम्बर को सौंप दी थी।
हज़रत मुहम्मद (स) जब चालीस वर्ष के हुए तो उन्होने अपने पैगम्बर होने की घोषणा की। जब कुऑन की यह आयत नाज़िल हुई कि,,वनज़िर अशीरतःकल अक़राबीन.परन्तु हज़रत अली (अ) के अलावा किसी ने भी साहयता का वचन नही दिया। इसी समय से मक्के के सरदार आपके विरोधी हो गये तथा आपको यातनाऐं देने लगे।
हज़रत पैगम्बर(स. की चारित्रिक विशेषताऐं
हज़रत पैगम्बर को अल्लाह ने समस्त मानवता के लिए आदर्श बना कर भेजा था। इस सम्बन्ध मे कुऑन इस प्रकार वर्णन करता-लक़द काना लकुम फ़ी रसूलिल्लाहि उसवःतुन हसनः अर्थात पैगम्बर का चरित्र आप लोगो के लिए आदर्श है। अतः आप के व्यक्तित्व मे मानवता के सभी गुण विद्यमान थे। आप के जीवन की मुख्य विशेषताऐं निम्ण लिखित हैं।
सत्यता
सत्यता पैगम्बर के जीवन की विशेष शोभा थी। पैगम्बर (स) ने अपने पूरे जीवन मे कभी भी झूट नही बोला। पैगम्बरी की घोषणा से पूर्व ही पूरा मक्का आप की सत्यता से प्रभावित था। आप ने कभी व्यापार मे भी झूट नही बोला। वह लोग जो आप को पैगम्बर नही मानते थे वह भी आपकी सत्यता के गुण गाते थे। इसी कारण लोग आपको सादिक़(अर्थात सच्चा) कहकर पुकारते थे।
अमानतदारी(धरोहरिता)
पैगम्बर के जीवन मे अमानतदारी इस प्रकार विद्यमान थी कि समस्त मक्कावासी अपनी अमानते आप के पास रखाते थे। उन्होने कभी भी किसी के साथ विश्वासघात नही किया। जब भी कोई अपनी अमानत मांगता आप तुरंत वापिस कर देते थे। जो व्यक्ति आपके विरोधि थे वह भी अपनी अमानते आपके पास रखाते थे। क्योंकि आप के पास एक बड़ी मात्रा मे अमानते रखी रहती थीं, इस कारण मक्के मे आप का एक नाम अमीन पड़ गया था। अमीन (धरोहर)
सदाचारिता
पैगम्बर के सदाचार की अल्लाह ने इस प्रकार प्रसंशा की है इन्नका लअला ख़ुलक़िन अज़ीम अर्थात पैगम्बर आप अति श्रेष्ठ सदाचारी हैं। एक दूसरे स्थान पर पैगम्बर की सदाचारिता को इस रूप मे प्रकट किया कि व लव कानत फ़ज़्ज़न ग़लीज़ल क़लबे ला नग़ज़्ज़ु मिन हवालीका अर्थात ऐ पैगम्बर अगर आप क्रोधी स्वभव वाले खिन्न व्यक्ति होते, तो मनुष्य आपके पास से भागते। इस प्रकार इस्लाम के विकास मे एक मूलभूत तत्व हज़रत पैगम्बर का सद्व्यवहार रहा है।
समय का सदुपयोग
हज़रत पैगम्बर की पूरी आयु मे कहीं भी यह दृष्टिगोचर नही होता कि उन्होने अपने समय को व्यर्थ मे व्यतीत किया हो । वह समय का बहुत अधिक ध्यान रखते थे। तथा सदैव अल्लाह से दुआ करते थे, कि ऐ अल्लाह बेकारी, आलस्य व निकृष्टता से बचने के लिए मैं तेरी शरण चाहता हूँ। वह सदैव मसलमानो को कार्य करने के लिए प्रेरित करते थे।
अत्याचार विरोधी
हज़रत पैगम्बर अत्याचार के घोर विरोधि थे। उनका मानना था कि अत्याचार के विरूद्ध लड़ना संसार के समस्त प्राणियों का कर्तव्य है। मनुष्य को अत्याचार के सम्मुख केवल तमाशाई बनकर नही खड़ा होना चाहिए। वह कहते थे कि अपने भाई की सहायता करो चाहे वह अत्याचारी ही कयों न हो। उनके साथियों ने प्रश्न किया कि अत्याचारी की साहयता किस प्रकार करें? आपने उत्तर दिया कि उसकी साहयता इस प्रकार करो कि उसको अत्याचार करने से रोक दो।
बुराई के बदले भलाई की भावना
आदरनीय पैगम्बर की एक विशेषता बुराई का बदला भलाई से देना थी। जो उन को यातनाऐं देते थे, वह उन के साथ उनके जैसा व्यवहार नही करते थे। उनकी बुराई के बदले मे इस प्रकार प्रेम पूर्वक व्यवहार करते थे, कि वह लज्जित हो जाते थे।
यहाँ पर उदाहरण स्वरूप केवल एक घटना का उल्लेख करते हैं। एक यहूदी जो पैगम्बर का विरोधी था। वह प्रतिदिन अपने घर की छत पर बैठ जाता, व जब पैगम्बर उस गली से जाते तो उन के सर पर राख डाल देता। परन्तु पैगम्बर इससे क्रोधित नही होते थे। तथा एक स्थान पर खड़े होकर अपने सर व कपड़ों को साफ कर के आगे बढ़ जाते थे। अगले दिन यह जानते हुए भी कि आज फिर ऐसा ही होगा। वह अपना मार्ग नही बदलते थे। एक दिन जब वह उस गली से जा रहे थे, तो इनके ऊपर राख नही फेंकी गयी। पैगम्बर रुक गये तथा प्रश्न किया कि आज वह राख डालने वाला कहाँ हैं? लोगों ने बताया कि आज वह बीमार है। पैगम्बर ने कहा कि मैं उस को देखने जाऊगां। जब पैगम्बर उस यहूदी के सम्मुख गये, तथा उस से प्रेम पूर्वक बातें की तो उस व्यक्ति को ऐसा लगा, कि जैसे यह कई वर्षों से मेरे मित्र हैं। आप के इस व्यवहार से प्रभावित होकर उसने ऐसा अनुभव किया, कि उस की आत्मा से कायर्ता दूर हो गयी तथा उस का हृदय पवित्र हो गया। उनके साधारन जीवन तथा नम्र स्वभव ने उनके व्यक्तितव मे कमी नही आने दी, उनके लिए प्रत्येक व्यक्ति के हृदय मे स्थान था।
दया की प्रबल भावना
आदरनीय पैगम्बर मे दया की प्रबल भावना विद्यमान थी। वह अपने से छोटों के साथ प्रेमपूर्वक तथा अपने से बड़ो के साथ आदर पूर्वक व्यवहार करते थे ।वह अनाथों व भिखारियों का विशेष ध्यान रखते थे उनको को प्रसन्नता प्रदान करते व अपने यहाँ शरण देते थे। वह पशुओं पर भी दया करते थे तथा उन को यातना देने से मना करते थे।
जब वह किसी सेना को युद्ध के लिए भेजते तो रात्री मे आक्रमण करने से मना करते, तथा जनता से प्रेमपूर्वक व्यवहार करने का निर्देश देते थे । वह शत्रु के साथ सन्धि करने को अधिक महत्व देते थे। तथा इस बात को पसंद नही करते थे कि लोगों की हत्याऐं की जाये। वह सेना को निर्देश देते थे कि बूढ़े व्यक्तियों, बच्चों तथा स्त्रीयों की हत्या न की जाये तथा मृत्कों के शरीर को खराब न किया जाये
स्वच्छता
पैगम्बर स्वच्छता मे अत्याधिक रूचि रखते थे। उन के शरीर व वस्त्रों की स्वच्छता देखने योग्य होती थी। वह वज़ू के अतिरिक्त दिन मे कई बार अपना हाथ मुँह धोते थे।वह अधिकाँश दिनो मे स्नान करते थे। उनके कथनानुसार वज़ु व स्नान इबादत है। वह अपने सर के बालों को बेरी के पत्तों से धोते और उनमे कंघा करते और अपने शरीर को मुश्क व अंबर नामक पदार्थों से सुगन्धित करते थे। वह दिन मे कई बार तथा सोने से पहले व सोने के बाद अपने दाँतों को साफ़ करते थे। भोजन से पहले व बाद मे अपने मुँह व हाथों को धोते थे तथा दुर्गन्ध देने वाली सब्ज़ियों को नही खाते थे।
हाथी दाँत का बना कंघा सुरमेदानी कैंची आईना व मिस्वाक उनके यात्रा के सामान मे सम्मिलित रहते थे। उनका घर बिना साज सज्जा के स्वच्छ रहता था। उन्होने चेताया कि कूड़े कचरे को दिन मे उठा कर बाहर फेंक देना चाहिए। वह रात आने तक घर मे नही पड़ा रहना चाहिए। उनके शरीर की पवित्रता उनकी आत्मा की पवित्रता से सम्बन्धित रहती थी। वह अपने अनुयाईयों को भी चेताते रहते थे कि अपने शरीरो वस्त्रों व घरों को स्वच्छ रखा करो। तथा जुमे (शुक्रवार) को विशेष रूप से स्नान किया करो। दुर्गन्ध को दूर करने हेतू शरीर व वस्त्रो को सुगन्धित करके जुमे की नमाज़ मे सम्मिलित हुआ करो ।
दृढनिश्चयता
पैगम्बर मे दृढनिश्चयता चरम सीमा तक पाई जाती थी।वह निराशावादी न होकर आशावादी थे। वह पराजय से भी निराश नही होते थे। यही कारण है कि ओहद नामक युद्ध की पराजय ने उनको थोड़ा भी प्रभावित नही किया। तथा बनी क़ुरैज़ा(अरब के एक कबीले का नाम) द्वारा अनुबन्ध तोड़कर विपक्ष मे सम्मिलित हो जाने से भी उन पर कोई प्रभाव नही पड़ा।बल्कि वह शीघ्रता पूर्वक हमराउल असद नामक युद्ध के लिए तैयार होकर मैदान मे आगये।
सावधानी व सतर्कता
पैगम्बर(स.) सदैव सावधानी व सतर्कता बरतते थे। वह शत्रु की सेना का अंकन इस प्रकार करते कि उससे युद्ध करने के लिए कितने व किस प्रकार के हथियारों की आवश्यक्ता है। वह नमाज़ के समय मे भी सतर्क व सवधान रहते थे।
मानवता के प्रति प्रेम
पैगम्बर(स.) के हृदय मे समस्त मानवजाति के प्रति प्रेम था। वह रंग या नस्ल के कारण किसी से भेद भाव नही करते थे । उनकी दृष्टि मे सभी मनुष्य समान थे। वह कहते थे कि सभी मनुष्य अल्लाह से जीविका प्राप्त करते हैं। उन्होने जो युद्धों किये उनके पीछे भी महान लक्ष्य विद्यमान थे।वह सदैवे मानवता के कल्याण के लिए ही युद्ध करते थे। पैगम्बर सदैव अपने अनुयाईयों को मानव प्रेम का उपदेश देते थे। पैगम्बर ने मनुष्यों को निम्ण लिखित संदेश दिया
1- मानवता की सफलता का संदेश
2- युद्ध से पूर्व शान्ति वार्ता का संदेश
3- बदले से पहले क्षमा का संदेश
4- दण्ड से पूर्व विन्रमता या क्षमा का संदेश
5.उच्चयतम कोटी की नेतृत्व क्षमता।
आदरनीय पैगम्बर को अल्लाह ने नेतृत्व की उच्चय क्षमता प्रदान की थी। उनकी इस क्षमता को अरब जाती की स्थिति को देखकर आंका जा सकता है। उन्होने उस अरब जाती का नेतृत्व किया, जो अपनी मूर्खता व अज्ञानता के कारण किसी को भी अपने से बड़ा नही समझते थे। जो सदैव रक्त पात करते रहते थे। सदाचार उनको छूकर भी नही निकला था। ऐसे लोगों को अपने नेतृत्व मे लेना बहुत कठिन कार्य था। परन्तु इन सब अवगुणो के होते हुए भी पैगम्बर ने अपने कौशल से उनको इस प्रकार प्रशिक्षित किया कि सब आपके समर्थक बन गये। तथा अपने प्राणो की आहुती देने के लिए धर्म युद्ध के लिए निकल पड़े।
आदरनीय पैगम्बर युद्ध के लिए एक से अधिक सेना नायकों का चयन करते तथा गंभीरता पूर्वक उनके मध्य कार्यों व शक्तियों का विभाजन कर नियम बनाते थे।वह राजनीतिक तथा शासकीय सिधान्तों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते थे।उन्होने विभिन्न विभागों की नीव डाली। वह सेनापतियों का चुनाव सुचरित्र को आधार बनाकर करते थे
6.क्षमा दान की प्रबल भावना
आदरनीय पैगम्बर(स.) मे क्षमादान की भावना बहुत प्रबल थी।बदले की भावना उनके अन्दर बिल्कुल भी विद्यमान नही थी। उन्होने अपनी क्षमा भावना का पूर्ण परिचय मक्के की विजय के समय कराया। जब उनके शत्रुओं को बंदी बनाकर उनके सम्मुख लाया गया तो उन्होने यातनाऐं देनेवाले सभी शत्रुओं को क्षमा कर दिया। अगर पैगम्बर(स.) चाहते तो उनसे बदला ले सकते थे परन्तु उन्होने शक्ति होते हुए भी ऐसा नही किया। अपितु सबको क्षमा करके कहा कि जाओ तुम सब स्वतन्त्र हो।
उनकी शक्ति शाली आत्मा सदैव क्षमादान को वरीयता देती थी। ओहद नामक युद्ध मे जो पाश्विक व्यवहार उनके चचा श्री हमज़ा पुत्र श्री अब्दुल मुत्तलिब के साथ किया गया(अबु सुफियान की पत्नि व मुआविया की माँ हिन्दा ने उनके मृत्य शरीर से उनका कलेजा निकाल कर खाने की चेष्टा की) उस को देख कर वह बहुत दुखीः हुए। परन्तु पैगम्बर ने उसके परिवार के मृत्य लोगों के साथ ऐसा व्यवहार नही किया। यहाँ तक कि जब वह स्त्री बंदी बनाकर लाई गई, तो आपने उससे बदला न लेकर उसे क्षमा कर दिया। यही नही अपितु पैगम्बर ने अबुक़ुतादा नामक उस व्यक्ति को भी चुप रहने का आदेश दिया जो उसको अपशब्द कह रहा था।
खैबर नामक युद्ध मे जब यहूदियों ने मुसलमानो के सम्मुख हथियार डाल दिये व युद्ध समाप्त हो गया तो यहूदियों ने भोजन मे विष मिलाकर पैगम्बर के लिए भेजा । पैगम्बर को उनके इस षड़यन्त्र का ज्ञान हो गया। परन्तु उन्होने इसके उपरान्त भी यहूदियों को कोई दण्ड नही दिया तथा क्षमा करके स्वतन्त्र छोड़ दिया।
तबूक नामक युद्ध से लौटते समय मुनाफिकों के एक संगठन ने पैगम्बर की हत्या का षड़यन्त्र रचा। जब पैगम्बर एक पहाड़ी दर्रे को पार कर रहे थे तो मुनाफिक़ीन ने योजनानुसार आप के ऊँट को भड़का दिया। ताकि पैगम्बर ऊँट से गिर कर मर जाऐं, परन्तु वह विफल रहे। और पैगम्बर ने सब को पहचान लिया परन्तु उनसे बदला नही लिय । तथा अपने दोस्तों के आग्रह पर भी उन के नाम नही बताये।
7.उच्चतम सामाजिक जीवन शैली
पैगम्बर(स.) का सामाजिक जीवन बहुत श्रेष्ठ था वह लोगों के मध्य सदैव प्रसन्नचित्त रहते थे। किसी की ओर घूर कर नही देखते थे। अधिकाँश उन की दृष्टि पृथ्वी पर रहती थी। दूसरों के सामने अपने पैरो कों मोड़ कर बैठते थे। किसी के भी सम्मुख वह पैर नही फैलाते थे। जब वह किसी सभा मे जाते थे तो अपने बैठने के लिए निकटतम स्थान को चुनते थे । वह इस बात को पसंद नही करते थे, कि सभा मे से कोई व्यक्ति उनके आदर हेतू खड़ा हो, या उनके लिए किसी विशेष स्थान को खाली किया जाये। वह बच्चों तथा दासों को भी स्वंय सलाम करते थे। वह किसी के कथन को बीच मे नही काटते थे। वह प्रत्येक व्यक्ति से इस प्रकार बात करते कि वह यह समझता कि मैं पैगम्बर के सबसे अधिक निकट हूँ। वह अधिक नही बोलते थे तथा धीरे धीरे व रुक रुक कर बाते करते थे। वह कभी भी किसी को अपशब्द नही कहते थे। वह बहुत अधिक लज्जावान व स्वाभीमानी थे। जब वह किसी के व्यवहार से दुखित होते तो दुखः के चिन्ह उनके चेहरे से प्रकट होते थे, परन्तु वह अपने मुख से गिला नही करते थे। वह सदैव रोगियों को देखने के लिए जाते तथा मरने वालों के जनाज़ों (अर्थी) मे सम्मिलित होते थे। वह किसी को इस बात की अनुमति नही देते थे कि उनके सम्मुख किसी को अपशब्द कहें जायें।
8.कानून व न्याय प्रियता
कानून का पालन व न्याय प्रियता पैगम्बर(स.) की मुख्य विशेषताएं थीं।हज़रत पैगम्बर अपने साथ दुरव्यवहार करने वाले को क्षमा कर देते थे, परन्तु कानून का उलंघन करने वालों कों क्षमा नही करते थे। तथा कानूनानुसार उसको दणडित किया जाता था। वह कहते थे कि कानून व न्याय सामाजिक शांति के रक्षक हैं। अतः ऐसा नही हो सकता कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए कानून को बलि चढ़ा कर पूरे समाज को दुषित कर दिया जाये। वह कहते थे कि मैं उस अल्लाह की सौगन्ध खाकर कहता हूँ जिसके वश मे मेरी जान है कि न्याय के क्षेत्र मे मैं किसी के साथ भी पक्षपात नही करूगां। अगर मेरा निकटतम सम्बन्धि भी कोई अपराध करेगा तो उसे क्षमा नही करूगां और न ही उसको बचाने के लिए कानून को बली बनाऊँगा।
एक दिन पैगम्बर ने मस्जिद मे अपने प्रवचन मे कहा कि अल्लाह ने कुऑन मे कहा है कि प्रलय मे कोई भी अत्याचारी अपने अत्याचार के दण्ड से नही बच सकेगा। अतः अगर आप लोगो मे से किसी को मुझ से कोई यातना पहुंची हो या किसी का कोई हक़ मेरे ऊपर बाक़ी हो तो वह मुझ से लेले। उस सभा मे से सबादा पुत्र क़ैस नामक एक व्यक्ति खड़ा हुआ। तथा कहा कि ऐ पैगम्बर जब आप तायिफ़(एक स्थान का नाम) से लौट रहे थे तो आप के हाथ मे एक असा (लकड़ी का ड़डां) था। आप उसे घुमा रहे थे वह मेरे पेट मे लगा जिससे मुझे पीड़ा हुई। आप ने कहा कि मैं सौगन्ध के साथ कहता हूँ कि मैंने ऐसा जान बूझ कर नही किया परन्तु तू फिर भी उसका बदला ले सकता है। यह कह कर आपने अपना असा मंगाया तथा उस असा को सबादा के हाथ मे देकर कहा कि इससे तेरे शरीर के जिस भाग को पीड़ा पहुँची हो, तू इस से मेरे शरीर के उसी भाग को पीड़ा पहुँचा। उस ने कहा कि ऐ पैगमबर मैने आपको क्षमा किया । आपने कहा कि अल्लाह तुझे क्षमा करे। यह थी इस महान् पैगम्बर की न्याय प्रियता तथा सामाजिक क़ानून की रक्षा।
9.जनता के विचारों का आदर
जिन विषयों के लिए कुऑन मे आदेश मौजूद होता आदरनीय पैगम्बर(स.) उन विषयों मे न स्वयं हस्तक्षेप करते और न ही किसी दूसरे को हस्तक्षेप करने देते थे। वह स्वयं भी उन आदेशों का पालन करते तथा दूसरों को भी पालन करने पर बाध्य करते थे। क्योकि कुऑन के आदेशों की अवहेलना कुफ्र (अधर्मिता) है। इस सम्बन्ध मे कुऑन स्वयं कहता है कि व मन लम यहकुम बिमा अनज़ालल्लाहु फ़ा उलाइका हुमुल काफ़िरून। अर्थात वह मनुषय जो अल्लाह के भेजे हुए क़ानून के अनुसार कार्य नही करते वह समस्त काफ़िर (अधर्मी) हैं। जिन विषयों के लिए कुऑन मे आदेश नही होता था उनमे हस्तक्षेप नही करते थे। उन विषयों मे जनता स्वतन्त्र थी तथा सबको अपने विचर प्रकट करने की अनुमति थी।
वह दूसरों के परामर्श का आदर करते तथा परामर्श पर विचार करते थे। बद्र नामक युद्ध के अवसर पर आपने तीन बार अपने साथियों से विचार विमर्श किया । सर्वप्रथम इस बात पर परामर्श हुआ कि कुरैश से लड़ा जाये या इनको इनके हाल पर छोड़ कर मदीने चला जाये। सब ने जंग करने को वरीयता दी । दूसरी बार छावनी के स्थान के बारे मे परामर्श हुआ। तथा इस बार हबाब पुत्र मुनीज़ा की राय को वरीयता दी गयी। तीसरी बार युद्ध बन्धकों के बरे मे मशवरा लिया गया। कुछ लोगों ने कहा कि इन की हत्या करदी जाये, तथा कुछ लोगों ने कहा कि इनको फिदया (धन) लेकर छोड़ दिया जाये। पैगम्बर ने दूसरी राय का अनुमोदन किया। इसी प्रकार ओहद नामक युद्ध मे भी पैगम्बर ने अपने साथियों से इस बात पर विचार विमर्श किया, कि शहर मे रहकर सुरक्षा प्रबन्ध किये जायें या शहर से बाहर निकल कर पड़ाव डाला जाये व शत्रु को आगे बढने से रोका जाये। विचार के बाद दूसरी राय पारित हुई । इसी प्रकार अहज़ाब नामक युद्ध के अवसर पर भी यह परामर्श हुई कि शहर मे रहकर लड़ा जाये या बाहर निकल कर जंग की जाये। काफी विचार विमर्श के बाद यह पारित हुआ कि शहर से बाहर निकल कर युद्ध किया जाये। अपने पीछे की ओर पहाड़ी को रखा जाये तथा सामने की ओर खाई खोद ली जाये, जो शत्रु को आगे बढ़ने से रोक सके ।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि सब मुसलमान आदरनीय पैगम्बर को त्रुटि भूल चूक तथा पाप से सुरक्षित मानते थे। तथा उनके कार्यों पर आपत्ति व्यक्त करने को अच्छा नही समझते थे। परन्तु अगर कोई पैगम्बर के किसी कार्य की आलोचना करता तो वह आलोचक को शांति पूर्ण ढंग से समझाते तथा उसको संतोष जनक उत्तर देकर उसके भम्र को दूर करते थे। उनका दृष्टिकोण यह था कि सृष्टि के रचियता ने चिंतन आलोचना व दो वस्तुओं के मध्य एक को वरीयता दने की शक्ति प्रत्येक व्यक्ति को प्रदान की है। यह केवल सामाजिक आधार रखने वाले शक्ति शाली व्यक्तियों से ही सम्बन्धित नही है । अतः मनुष्यों से चिंतन व आलोचना के इस अधिकार को नही छीनना चाहिये।
शासकीय सद्व्यवहार
वह सदैव प्रजा के कल्याण के बरे मे सोचते थे। पैगम्बर ने स्वंय एक स्थान पर कहा कि -मै जनता कि भलाई का जनता से अधिक ध्यान रखता हूँ। तुम लोगों मे से जो भी स्वर्गवासी होगा तथा सम्पत्ति छोड़ कर जायगा वह सम्पत्ति उसके परिवार की होगी। परन्तु अगर कोई ऋणी होगा या उसका परिवार दरिद्र होगा तो उसके ऋण को चुका ने तथा उसके परिवार के पालन पोषण का उत्तरदायित्व मेरे ऊपर होगा।
पैगम्बर(स.) ने न्याय व दया पर आधारित अपनी इस शासन प्रणाली द्वारा संसार के समस्त शासकों को यह शिक्षा दी कि समाज मे शासक की स्थिति एक दयावान व बुद्धिमान पिता की सी है। शासक को चाहिये कि हर स्थान पर जनता के कल्याण का ध्यान रखे तथा अपनी मन मानी न करे।
पैगम्बर वह महान् व्यक्ति हैं जिन्होने बहुत कम समय मे मानव के दिलों मे अपने सद्व्यवहार की अमिट छाप छोड़ी। उन्होने अपने सद्व्यवहार, चरित्र व प्रशिक्षण के द्वारा अरब हत्यारों को शान्ति प्रियः, झूट बोलने वालों को सत्यवादी, निर्दयी लोगों को दयावान, नास्तिकों को आस्तिक, मूर्ति पूजकों को एकश्वरवादी, असभ्यों कों सभ्य, मूर्खों को बुद्धि मान, अज्ञानीयों को ज्ञानी, तथा क्रूर स्वभव वाले व्यक्तियों को विन्रम बनाया।
जब पैगम्बर हज करके मक्के से मदीने की ओर लौट रहे थे, तो ग़दीर नामक स्थान पर आपको अल्लाह की ओर से आदेश प्राप्त हुआ, कि हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करो। पैगम्बर ने पूरे क़ाफिले को रुकने का आदेश दिया। तथा एक व्यापक भाषण देते हुए कहा कि मैं जल्दी ही तुम लोगों के मध्य से जाने वाला हूँ। अतः मैं अल्लाह के आदेश से हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता हूँ। पैगम्बर का प्रसिद्ध कथन कि जिस जिस का मैं मौला हूँ उस उस के अली मौला हैं। इसी अवसर पर कहा गया था।
सन् 11 हिजरी मे सफर मास की 28 वी तारीख को तीन दिन बीमार रहने के बाद आपकी शहादत हो गयी। हज़रत अली (अ) ने आपको ग़ुस्लो कफ़न देकर दफ़्न कर दिया। इस महान् पैगम्बर के जनाज़े (पार्थिव शरीर) पर बहुत कम लोगों ने नमाज़ पढ़ी। इस का कारण यह था कि मदीने के अधिकाँश मुसलमान पैगम्बर के स्वर्गवास की खबर सुनकर सत्ता पाने के लिए षड़यण्त्र रचने लगे थे। तथा पैगम्बर के अन्तिम संसकार मे सम्मिलित न होकर सकीफ़ा नामक स्थान पर एकत्रित थे।
मॉस्को में पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के संबंध में कार्यक्रम आयोजित
पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास और इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत के उपलक्ष्य में मॉस्को में ईरान के इस्लामी सेंटर में शोकसभा आयोजित हुई।
सोमवार को 28 सफ़र 1446 हिजरी क़मरी बराबर दो सितंबर 2024 है और यह वह दिन है जब पैग़म्बरे इस्लाम का स्वर्गवास हुआ था और उनके प्राणप्रिय पौत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम शहीद हुए थे।
इस संबंध में अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम से प्रेम करने वालों की उपस्थिति में रूस की राजधानी मॉस्को में ईरान के इस्लामी सेंटर में शोकसभा आयोजित हुई। इस शोकसभा का आयोजन "मिल्लते इमाम हुसैन" नामक छात्रों के एक गुट ने किया था।
ईरान सहित दुनिया के मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास और इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर इमाम बारगाहों और मस्जिदों में शोकसभा आयोजित करके अज़ादारी करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास और इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर दुनिया के समस्त मुसलमानों और दूसरे स्वतंत्रता प्रेमियों की सेवा में सांत्वना प्रस्तुत करती है।
नेतनयाहू और इज़राईल के युद्धमंत्री के बीच लोकझोंक
ग़ाज़ा पट्टी में युद्धविराम को लेकर इज़राईली सरकार के प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री के बीच भीषण लोकझोंक की सूचना है।
एक अमेरिकी संचार माध्यम ने ग़ाज़ा पट्टी में युद्धविराम को लेकर ज़ायोनी सरकार के प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री के बीच भीषण लोकझोंक की सूचना दी है।
ग़ज़ा पट्टी में युद्धविराम को लेकर ज़ायोनी सरकार के सुरक्षा मंत्रिमंडल की बैठक हुई।
अमेरिकी मिडिया Axios के हवाले से बताया है कि इस बैठक में ज़ायोनी सरकार के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने सलाहुद्दीन अर्थात फ़िलाडेल्फ़िया में इस्राईली सैनिकों के बने रहने पर आधारित अपनी योजना पेश की परंतु इस्राईल के युद्धमंत्री योव गैलेंट ने उन पर हमला किया और नेतनयाहू पर आरोप लगाया कि वह अपने दृष्टिकोणों को इस्राईली सैनिकों पर थोप रहे हैं।
इस्राईल के युद्धमंत्री ने कहा कि मंत्रिमंडल को जल्द से जल्द युद्धविराम के प्रयास में रहना चाहिये और इस युद्धविराम को केवल बंदियों के आदान- प्रदान तक सीमित नहीं होना चाहिये क्योंकि युद्धविराम तेलअवीव के लिए महत्वपूर्ण है।
क्या वेस्ट बैंक में तीसरा इंतफ़ाज़ा शुरू होने जा रहा है?
इस्राईलियों के लिए सबसे भयानक सपना, वेस्ट बैंक में नरक के द्वार का खुलना है।
कड़ी निगरानी और सुरक्षा के बावजूद, इस्राईली सुरक्षा बल अवैध बस्तियों में बसने वाले सैटलर्स को सुरक्षा प्रदान नहीं कर पा रहे हैं। इस्राईली सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान और इस्लामी रेज़िस्टेंस, रिंग ऑफ़ फ़ायर की रणनीति पर चल रहे हैं, ताकि इस्राईल को युद्ध के कई मोर्चों पर फंसाया जा सके।
इस रिंग की पहली कड़ी में बेस्ट बैंक और ग़ज़ा में स्थित वह गुट आते हैं, जो ज़ायोनी शासन और सैटलर्स के ख़िलाफ़ प्रतिरोध कर रहे हैं और उनके लिए माहौल को असुरक्षित बना रहे हैं। युद्धविराम वार्ता के दौरान नेतनयाहू की नकारात्मक और ग़ैर-रचनात्मक स्थिति स्पष्ट होने के बाद, इस्लामिक आंदोलन हमास और इस्लामिक जिहाद ने क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में अपनी पूरी ताक़त से अभियान शुरू कर दिया और नेतनयाहू को राजनीतिक वार्ता से पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया।
ज़ायोनी शासन की सेना और सुरक्षा बलों ने वेस्ट बैंक के उत्तर में सैन्य-नागरिक लक्ष्यों के ख़िलाफ़ एक पूर्वव्यापी और त्वरित अभियान शुरू किया। ऐसे में कुछ विश्लेषक इस सवाल का जवाब तलाश कर रहे हैं कि क्या वेस्ट बैंक में युद्धक्षेत्र के विस्तार के साथ ज़ायोनी पूर्वी मोर्चे पर प्रतिरोध का सामना करने के लिए तैयार हैं?
इस्राईल के विदेश मंत्री इज़रायल काट्ज़ ने अपने एक ट्वीट में दावा किया कि जॉर्डन से वेस्ट बैंक तक हथियारों की तस्करी की प्रक्रिया ने इस सेना के हस्तक्षेप की आवश्यकता बढ़ा दी है है। इसी तरह से उन्होंने ईरान पर आरोप लगाते हुए दावा किया कि तेहरान, पूर्वी मोर्चे पर युद्ध शुरू करने की योजना बना रहा है। काट्ज़ ने वेस्ट बैंक में मौजूदा सुरक्षा स्थिति का हवाला देते हुए ग़ज़ा की तरह, वेस्ट बैंक से नागरिकों को निकालने का आह्वान भी किया।
इस तरह के दावों से पता चलता है कि ज़ोयनी शासन, वेस्ट बैंक में राजनीतिक और सुरक्षा की मौजूदा स्थिति को बदलने की तैयारी कर रहा है।
अगस्त के आखिरी दिनों में प्रतिरोधी अभियानों के दायरे में वृद्धि के संबंध में ख़ालिद मशल के ख़ुलासे के कुछ ही घंटों के बाद, ज़ायोनी सेना ने उत्तरी वेस्ट बैंक पर हमला कर दिया। नूर अल-शम्स, जेनिन, तुलकेरम और नाब्लुस क्षेत्र ज़ायोनी सेना के हालिया हमलों में निशाना बने हैं।
फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इस हमले में कम से कम 10 फ़िलिस्तीनी शहीद गए, जिनमें वेस्ट बैंक में इस्लामिक जिहाद के मुख्य कमांडरों में से एक मोहम्मद जाबेर भी शामिल थे। यह खुली आक्रामकता तब हो रही है, जब इस क्षेत्र में फ़िलिस्तीनी हितों के तथाकथित रक्षक के रूप में फ़िलिस्तीनी अथॉर्टि ने उसके ख़िलाफ़, थोड़ा सा भी प्रतिरोध नहीं दिखाया है, बल्कि वह नेतनयाहू के सहयोगी की तरह काम कर रही है।
इस्राईल ने बाइडन के तीन-चरणीय प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, जिसके बाद हमास और फ़िलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद आंदोलन ने इस शासन के हितों के ख़िलाफ़ अभियान के रूप में दक्षिणी तेल-अवीव पर हमला किया।
30 अगस्त को, हमास ने दो कार बम धमाकों में कई ज़ायोनी बलों को गंभीर रूप से घायल कर दिया। इन सफल अभियानों के बाद, इस फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधी समूह ने चेतावनी दी कि अगर नेतनयाहू की आक्रामक नीति जारी रही, तो ऐसी कार्यवाहियां अधिक गंभीरता के साथ दोहराई जाएंगी।
उसके कुछ ही घंटों के बाद, हेब्रोन में एक अन्य आत्मघाती हमले में 3 ज़ायोनी सुरक्षा बल मारे गए। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि तेहरान में इस्माईल हनिया की हत्या के बाद, इस्लामिक आंदोलन हमास और इस्लामिक जिहाद ने पूरे क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में असुरक्षा के बदले असुरक्षा का समीकरण बनाने का फ़ैसला किया है। इस रणनीति के तहत तेहरान ने हनिया की हत्या के बदले के वादे के साथ अर्ध-कठिन युद्ध शुरू कर दिया है।
तीसरे इंतिफ़ादा की शुरुआत के साथ, "पत्थर" अब प्रतिरोध का एकमात्र हथियार नहीं रह गया है।
आर्थिक संकेतकों की गिरावट, अंतर्राष्ट्रीय सहमति और क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में सार्वजनिक सुरक्षा का नुक़सान, ज़ायोनियों को 1987-1993 और 2000-2005 में फ़िलिस्तीनियों के विद्रोह की याद दिलाता है। उस समय इस संकट से निकलने के लिए, ज़ायोनियों को दूसरे पक्ष को कुछ रियायतें देनी पड़ीं थीं, चाहे वह दिखावा ही क्यों नहीं था।
अब, ग़ज़ा युद्ध की शुरूआत के कई महीनों के बाद, बेन गुविर द्वारा अल-अक्सा मस्जिद को बार-बार निशाना बनाए जाने और क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों के उत्तर में इस्राईली सेना के हमलों ने फ़िलिस्तीनियों के इंतेफ़ाज़ा की संभावना को पहले से कहीं अधिक बढ़ा दिया है। पूर्वी मोर्चे के खुलने का मतलब, पत्थरों या लाठियों के माध्यम से लोगों का प्रतिरोध नहीं है, बल्कि आज प्रतिरोध स्वचालित हथियारों जैसे विभिन्न उन्नत हथियारों से जवाब देने की क्षमता रखता है।
बड़ा दुःस्वप्न
ज़ायोनियों का सबसे बड़ा दुःस्वप्न वेस्ट बैंक में नरक के द्वार खुलना है। हालांकि यह फ़िलिस्तीनी क्षेत्र तीन क्षेत्रों "ए", "बी" और "सी" में विभाजित है। ज़ायोनी सैनिक, इन इलाक़ो में सभी ज़ायोनी आक्रमणकारियों का बचाव नहीं कर सकते हैं और प्रतिरोधियों की आसानी से पहचान नहीं कर सकते हैं।
तेल अवीव, गोश एट्ज़ियन, कर्मी तज़ूर और अल-ख़लील के अभियानों में तेल अवीव के लिए यह संदेश है कि प्रतिरोध बंद नहीं होगा और क़ब्ज़ा करने वालों का सामना करने के तरीक़े समय, स्थान और संभावना के अनुसार बदल जाएंगे।
नेतनयाहू को सत्ता में बने रहने के लिए ग़ज़ा युद्ध जारी रखने या संकट को क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों से बाहर ले जाने के अलावा, कोई दूसरा रास्ता खोजना होगा, क्योंकि इस जोखिम भरे खेल में, सीधे ज़ायोनी शासन की आंतरिक सुरक्षा निशाना बन सकती है।
कर्बला के शहीदो की याद में मजलिस आयोजित
उन्नाव,कर्बला के 72 शहीदों की याद में मजलिस आयोजित की गई जिसको मौलाना नदीम असगर ने संबोधित किया।
चेहल्लुम पर कर्बला में इमाम हुसैन सहित 72 शहीदों को याद किया गया वाराणसी से आए मौलाना नदीम असगर ने मजलिस को संबोधित किया। मजलिस बाद विभिन्न शहरों से आए शायरों ने रात भर कलाम पढ़े। अंजुमन इमामिया ने ताबूत व अलम का जुलूस उठाकर करबला पहुंचाया गया।
शहीदों की याद में चेहल्लुम पर कस्बा के हाता बाजार मोहल्ला स्थित महमूद अहसन के इमामबाड़े में रविवार रात आयोजित मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना नदीम ने कहा कि शासक यजीद का कोई नामलेवा नहीं है। जबकि इमाम हुसैन सहित 72 शहीदों को पूरे विश्व में गम मनाते हुए उन्हें याद किया जाता है।
मेरठ से आए शायर फकरी, मुजफ्फर नगर से खुर्शीद, सुल्तानपुर के वकार, उतरौला के इफहाम, मौरावां के शायर रजा ने अपने कलामों से करबला में शहीदों के ऊपर ढाए गए जुल्मों को याद कर गम मनाया संचालन जाहिद काजमी ने किया।
सोमवार सुबह इमामबाड़ा में आयोजित मजलिस के बाद अंजुमन इमामिया ने ताबूत, अलम व ताजिए का जुलूस निकाला।
जो बाकरगंज, पीरजादगान, सैय्यदवाड़ा, राहतगंज बाजार, टिकुली, सरॉय खुर्रम आदि मोहल्लों से होता हुआ कस्बा से बाहर स्थित करबला पहुंचा। जहां ताजिए सुपुर्दे खाक किए गए।
इमाम रज़ा (अ) की शहादत, 26 लाख तीर्थयात्री मशहद पहुंच चुके
ख़ुरासान रिज़वी के संस्कृति, सामाजिक मामलों और तीर्थयात्रा के उप निदेशक ने तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि का उल्लेख किया और कहा: पैगंबर (स) की रेहलत और इमाम मुज्तबा (अ) की शहादत के अवसर पर, संख्या तीर्थयात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, अब तक मशहद पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या 26 लाख से अधिक हो गई है।
खुरासान रिज़वी के संस्कृति, सामाजिक मामलों और तीर्थयात्रा के उप निदेशक ने तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि का उल्लेख किया और कहा: शहादत के अवसर पर तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि हुई है, अब तक की संख्या मशहद पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या 2.6 मिलियन से अधिक हो गई है।
हुज्जतुल-इस्लाम गुनाबादी नेजाद ने मशहद में एक पत्रकार को साक्षात्कार देते हुए कहा: नवीनतम जानकारी के अनुसार, पिछले दिन अकेले 443,122 लोगों ने मशहद में प्रवेश किया।
उन्होंने कहा: नवीनतम जानकारी के अनुसार, पिछले एक सप्ताह में 2 मिलियन 696 हजार 184 लोगों ने पवित्र मस्जिद में प्रवेश किया है और यह संख्या आज से पैगंबर (स) की रेहलत और इमाम मुजतबा की शहादत की रात तक पर्याप्त बढ़ सकता है
अरबईन हुसैनी ज़ुल्म व अन्याय के ख़िलाफ़ एक संघर्ष
अरबईन उस मुसलमान की आत्मा का अंश है जो मज़लूम इंसानों की मुक्ति के लिए संघर्ष करता है और साथ ही वह अल्लाह की ओर वापसी का इच्छुक है।
एक रूसी पत्रकार ने कहा है कि अरबईन उस मुसलमान की आत्मा का अंश है जो मज़लूम इंसानों की मुक्ति के लिए संघर्ष करता है और साथ ही वह अल्लाह की ओर वापसी का इच्छुक है।
एक रूसी पत्रकार अरबईन में भाग लेने के लिए इराक़ गया था वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के लाखों श्रद्धालुओं की भव्य उपस्थिति को देखकर कहता है कि अरबईन एक धार्मिक कार्यक्रम व समारोह है और उसमें भाग लेने वाले दो करोड़ से अधिक लोग फ़िलिस्तीनी जनता व लोगों के लिए न्याय के इच्छुक हैं और दुनिया को इस मामले की अनदेखी नहीं करनी चाहिये।
रूसी पत्रकार अब्बास जुमा ने, जो कर्बला में मौजूद हैं, रविवार को एक साक्षात्कार में कहा कि अरबईन मुसलमानों की ज़िन्दगी की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, अरबईन शिया मुसलमानों के तीसरे इमाम के पावन लहू को याद करने और उनके प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करने का दिन और ज़ुल्म व अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष का प्रतीक है।
उन्होंने इराक़ में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के अवसर पर उनके श्रद्धालुओं के मध्य अपनी उपस्थिति की ओर संकेत करते हुए कहा कि इमाम हुसैन अलै. के श्रद्धालुओं का संदेश स्पष्ट है, वे चाहते हैं कि जिन लोगों ने क़ुर्बानी दी है उन्हें भुलाया न जाये और अपने इमाम की भांति प्रतिरोध व संघर्ष के मार्ग को जारी रखें।
अरबईन, मुसलमानों की एकता व समरसता की भूमि प्रशस्त करता है
यह रूसी पत्रकार आगे कहता हैः अरबईन में शामिल होकर न केवल शिया बल्कि समस्त मुसलमान एक राष्ट्र व समुदाय बन सकते हैं और कर्बला तक जाने वाले रास्ते के दौरान कुछ श्रद्धालुओं के हाथों में फ़िलिस्तीन के झंडे को भी देखा जा सकता है।
उसने कहा कि ईरान, इराक़, यमन, सीरिया, लेबनान और दूसरे देशों द्वारा फ़िलिस्तीन का समर्थन इस बात का सूचक है कि सच्चा और वास्तविक़ ईमान हमेशा कामयाब व विजयी है और हर लड़ाई व विवाद की पहचान अस्थाई है परंतु अरबईन का अर्थ और उसकी पहचान बहुत गहरी और विस्तृत है।
रूसी पत्रकार अब्बास जुमा आगे कहते हैं कि अरबईन हर उस मुसलमान की आत्मा का अंश है जो दूसरे मज़लूम इंसानों की मुक्ति व उद्धार के लिए कोशिश करता है और साथ ही वह अल्लाह की ओर वापसी का इच्छुक भी है।
पश्चिम कभी भी अरबईन को नहीं समझ सकता
इस्लाम धर्म ग्रहण कर चुका रूसी पत्रकार कहता है कि पश्चिम कभी भी अरबईन को नहीं समझ सकता और जब हम अपने अमेरिकी और यूरोपीय सहयोगियों से कहते हैं कि कर्बला के रास्ते में हम और सभी लोग फ्री में खाते और पीते हैं और फ़्री में उपचार भी होता है तो वे विश्वास नहीं करते हैं।
वह कहता है कि पश्चिम में लोग हमेशा डर की हालत में रहते हैं क्योंकि वे इस बात को भूल गये हैं कि आत्मा हमेशा- हमेशा रहने वाली चीज़ है और उन्होंने स्वयं को भौतिक चीज़ों से घेर लिया है और पूरी ताक़त के साथ उन्हें पकड़ लिया है क्योंकि उनके पास कुछ और नहीं है।
मकान, गाड़ी, बैंक- बैलेंस और दूसरी चीज़ें उनके पास हैं केवल यह दिखाने के लिए कि हम हैं और हमारे पास ये चीज़ें हैं। इस आधार पर वे हमें नहीं समझ सकते। इस प्रकार कि हम किसी और दुनिया के इंसान हैं।
आख़री नबी हज़रत मुहम्मद स. का संक्षिप्त जीवन परिचय।
एक संपूर्ण और बेहतरीन मॉडल की पहचान और उसे अपना मॉडल बनाना हर बामक़सद ज़िन्दगी जीने वाले आदमी की पैदाइशी ज़रूरत है। इसलिये कि इसका ज़िन्दगी के हर मैदान में, हर छोटे बड़े नैतिक मामले में, तरक़्क़ी के हर मोड़ पर और समाज की राजनीतिक, क़ानूनी और कल्चरल समस्याओं पर बहुत ज़्यादा असर पड़ता है। अल्लाह तआला ने बहुत सारे पैग़म्बर भेजे ताकि आध्यात्मिक तरक़्क़ी और इंसानी कमाल चाहने वाले लोग उनकी ज़िन्दगी को देख और पढ़ कर सौ
आख़री नबी हज़रत मुहम्मद स. का संक्षिप्त जीवन परिचय।
अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: एक संपूर्ण और बेहतरीन मॉडल की पहचान और उसे अपना मॉडल बनाना हर बामक़सद ज़िन्दगी जीने वाले आदमी की पैदाइशी ज़रूरत है। इसलिये कि इसका ज़िन्दगी के हर मैदान में, हर छोटे बड़े नैतिक मामले में, तरक़्क़ी के हर मोड़ पर और समाज की राजनीतिक, क़ानूनी और कल्चरल समस्याओं पर बहुत ज़्यादा असर पड़ता है। अल्लाह तआला ने बहुत सारे पैग़म्बर भेजे ताकि आध्यात्मिक तरक़्क़ी और इंसानी कमाल चाहने वाले लोग उनकी ज़िन्दगी को देख और पढ़ कर सौभाग्य, तरक़्क़ी और कमाल का रास्ता तय करें। पैग़म्बरो में सर्वश्रेष्ठ और सबसे महान आख़री नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स.अ हैं जिनकी ज़िन्दगी और कैरेक्टर को अल्लाह नें क़यामत तक के इन्सानों के लिये मॉडल बनाया है। आप स.अ. पर ईमान लाने वाले आपके साथी आपका हर काम नज़दीक से देखते और बहुत ज़्यादा प्रभावित होते थे, उसके बाद उनके कैरेक्टर और हावभाव में ऐसा बदलाव आता था कि न पूछिये! आपके सबसे क़रीबी सहाबी जिनको पाला पोसा भी आप ही ने था, हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ. थे जो हर समय आपके साथ रहते और हर चीज़ आपसे सीखते थे। जिसे मौला अली अ. नें नहजुल बलाग़ा के एक ख़ुतबे में भी बयान किया है। इसमें कोई शक नहीं कि रसूले ख़ुदा स. का कैरेक्टर इन्सानों के लिये कल भी एक बेहतरीन मॉडल था, आज भी है और कल भी रहेगा।
आज की दुनिया नें बहुत तरक़्क़ी कर ली है और हर तरह से पहले के मुक़ाबले में पूरी तरह बदल चुकी है लेकिन नैतिकता, अख़्लाक़ और आध्यात्मिकता में रसूलुल्लाह स.अ. की शिक्षाओं की मोहताज है। इसी मक़सद से हमनें यह छोटा सा आर्टिकिल तैयार किया है इसे पढ़ने वालों के सामने पेश कर रहे हैं।
- शुभ जन्म के समय की घटनाएं
अहलेबैत अ. के मानने वालों यानी इसना अशरी शियों के अनुसार ख़ातेमुल अम्बिया हज़रत मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह स.अ. 17 रबीउल अव्वल सन् एक आमुल फ़ील को मक्के में पैदा हुए थे। उसी साल हबशा के राजा अबरहा नें हाथियों की फ़ौज लेकर मक्के में ख़ानए काबा पर हमला किया था। हुज़ूर स.अ. के जन्म से पहले ही आपके पिता का निधन हो चुका था। जब 6 साल के थे प्यारी मां आमेना बिन्ते वहब भी दुनिया से गुज़र गईं। बचपन में ही यतीम हो गए और उसके बाद आपके दादा अब्दुल मुत्तलिब अ. और चचा अबू तालिब अ. नें आपको पालने की ज़िम्मेदारी संभाली। चालीस साल की उम्र और उसके बाद तक ऐसी ऐसी अजीब घटनाएं घटती रहीं जिन्हें पढ़ और सुन कर हर मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम आश्चर्य चकित रह जाता है। फ़ारस का आतिश कदा बुझ गया, ज़लज़ला आया और बुत अपनी जगह से उखड़ गए, शैतान रोया.. यह सारी चीज़ें बता रही थीं कि कोई बड़ी घटना हुई है और एक नेक और बेमिसाल बच्चा यानी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स. दुनिया में आए हैं जो अत्याचार, कुफ़्र और गुमराही से भरी दुनिया को तौहीद, ख़ुदा परस्ती, तक़वा, सदाचार और इंसानी कमाल का रास्ता दिखाएंगे।
- सीरिया का ऐतिहासिक सफ़र और ईसाई पादरियों की भविष्यवाणी
हुज़ूर स. नें दो बार सीरिया का ऐतिहासिक सफ़र किया है; एक बार 12 साल की आयु में और एक बार पच्चीस साल की उम्र में। पहले सफ़र मं राहिब बहीरा नें हज़रत अबूतालिब अ. को होशियार किया था कि यहूदियों की तरफ़ से आप स. से बुरा बर्ताव किया जाएगा। दूसरे सफ़र में राहिब नस्तूरा नें ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलद के ग़ुलाम मीसरा को हुज़ूर स. के शानदार भविष्य की ख़ुशख़बरी सुनाई थी। इस सफ़र में आपने ख़दीजा स. के व्यापार को बहुत ज़्यादा फ़ायदा पहुंचाया और मीसरा नें भी उन्हें आपकी स. ईमानदारी के बारे में बताया। जब आप 20 साल के थे तो आपनें हलफ़ुल फ़ुज़ूल नामक एक समझौते में हिस्सा लिया। इसी दौरान आप स. मुहम्मद अमीन के नाम से ने जाने लगे। आपका कैरेक्टर मक्के के उस दौर के जाहिल समाज में लोगों के लिये बहुत ही अजीब था।
- ख़दीजा स. से शादी
25 साल की उम्र में आपनें ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलद से शादी की। वह एक सती साध्वी, पाक दामन, मुत्तक़ी व सदाचार और अल्लाह से डरने वाली औरत और उनके पास बहुत ज़्यादा धन दौलत थी। हज़रत ख़दीजा अ. ने अपनी दौलत का पूरा अधिकार रसूलुल्लाह स. को दिया। हज़रत ख़दीजा अ. का व्यक्तित्व, आपकी इस्लाम और रसूलल्लाह स. की सेवा और दूसरी ख़ूबियों के हवाले से अलग से चर्चा करने की ज़रूरत है।
- अली इब्ने अबी तालिब अ. का पालन पोषण
13 रजब सन् तीस आमुल फ़ील को एक मोवअहिद (अल्लाह को एक मानने वाला) बाप (हज़रत अबूतालिब अ.) और नेक मां (हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद अ.) के यहां एक बच्चा पैदा हुआ जिसका जन्म काबे के अन्दर हुआ था। वह बच्चा छ: साल की उम्र में सही प्रशिक्षण के मक़सद से रसूलल्लाह स. और जनाबे ख़दीजा स. के घर चला आया। इमाम अली अ. नहजुल बलाग़ा के एक ख़ुतबे में बयान करते हैं कि आपका रसूलुल्लाह स. से कितना नज़दीकी सम्बंध था और किस तरह आपनें रसूलुल्लाह स. से शिक्षा पाई और आध्यात्मिक अनुकम्पाएं हासिल कीं
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जन्म रमज़ान मास की पन्द्रहवी (15) तारीख को सन् तीन (3) हिजरी में मदीना नामक शहर में हुआ था। जलालुद्दीन नामक इतिहासकार अपनी किताब तारीख़ुल खुलफ़ा में लिखता है कि आपकी मुखाकृति हज़रत पैगम्बर से बहुत अधिक मिलती थी।
पालन पोषण
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का पालन पोषन आपके माता पिता व आपके नाना हज़रत पैगम्बर (स0) की देख रेख में हुआ। तथा इन तीनो महान् व्यक्तियों ने मिल कर हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम में मानवता के समस्त गुणों को विकसित किया।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इमामत का समय
शिया सम्प्रदाय की विचारधारा के अनुसार इमाम जन्म से ही इमाम होता है। परन्तु वह अपने से पहले वाले इमाम के स्वर्गवास के बाद ही इमामत के पद को ग्रहन करता है। अतः हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भी अपने पिता हज़रत इमाम अली की शहादत के बाद इमामत पद को सँभाला।
जब आपने इमामत के पवित्र पद को ग्रहन किया तो चारो और अराजकता फैली हुई थी। व इसका कारण आपके पिता की आकस्मिक शहादत थी। अतः माविया ने जो कि शाम नामक प्रान्त का गवर्नर था इस स्थिति से लाभ उठाकर विद्रोह कर दिया।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सहयोगियों ने आप के साथ विश्वासघात किया उन्होने धन ,दौलत ,पद व सुविधाओं के लालच में माविया से साँठ गाँठ करली। इस स्थिति में इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सम्मुखदो मार्ग थे एक तो यह कि शत्रु के साथ युद्ध करते हुए अपनी सेना के साथ शहीद होजाये। या दूसरे यह कि वह अपने सच्चे मित्रों व सेना को क़त्ल होने से बचालें व शत्रु से संधि करले । इस अवस्था में इमाम ने अपनी स्थित का सही अंकन किया सरदारों के विश्वासघात व सेन्य शक्ति के अभाव में माविया से संधि करना ही उचित समझा।
संधि की शर्तें
1-माविया को इस शर्त पर सत्ता हस्तान्त्रित की जाती है कि वह अल्लाह की किताब (कुरऑन) पैगम्बर व उनके नेक उत्तराधिकारियों की शैली के अनुसार कार्य करेगा।
2-माविया के बाद सत्ता इमाम हसन अलैहिस्सलाम की ओर हस्तान्त्रित होगी व इमाम हसन अलैहिस्सलाम के न होने की अवस्था में सत्ता इमाम हुसैन को सौंपी जायेगी। माविया को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने बाद किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करे।
3-नमाज़े जुमा में इमाम अली पर होने वाला सब (अप शब्द कहना) समाप्त किया जाये। तथा हज़रत अली को अच्छाई के साथ याद किया जाये।
4-कूफ़े के धन कोष में मौजूद धन राशी पर माविया का कोई अधिकार न होगा। तथा वह प्रति वर्ष बीस लाख दिरहम इमाम हसन अलैहिस्सलाम को भेजेगा। व शासकीय अता (धन प्रदानता) में बनी हाशिम को बनी उमैया पर वरीयता देगा। जमल व सिफ़्फ़ीन के युद्धो में भाग लेने वाले हज़रत इमाम अली के सैनिको के बच्चों के मध्य दस लाख दिरहमों का विभाजन किया जाये तथा यह धन रीशी इरान के दाराबगर्द नामक प्रदेश की आय से जुटाई जाये।
5-अल्लाह की पृथ्वी पर मानवता को सुरक्षा प्रदान की जाये चाहे वह शाम में रहते हों या यमन मे हिजाज़ में रहते हों या इराक़ में काले हों या गोरे। माविया को चाहिए कि वह किसी भी व्यक्ति को उस के भूत काल के व्यवहार के कारण सज़ा न दे।इराक़ वासियों से शत्रुता पूर्ण व्यवहार न करे। हज़रत अली के समस्त सहयोगियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाये। इमाम हसन अलैहिस्सलाम ,इमाम हुसैन व पैगम्बर के परिवार के किसी भी सदस्य की प्रकट या परोक्ष रूप से बुराई न कीजाये।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के संधि प्रस्ताव ने माविया के चेहरे पर पड़ी नक़ाब को उलट दिया तथा लोगों को उसके असली चेहरे से परिचित कराया कि माविया का वास्तविक चरित्र क्या है।
इमाम हसन (अ) के दान देने और क्षमा करने की कहानी।
एक दिन इमाम हसन (अ) घोड़े पर सवार कहीं जा रहे थे कि शाम अर्थात मौजूदा सीरिया का रहने वाला एक इंसान रास्ते में मिला। उस आदमी ने इमाम हसन को बुरा भला कहा और गाली देना शुरू कर दिया। इमाम हसन (अ) चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे ,जब वह अपना ग़ुस्सा उतार चुका तो इमाम हसन (अ) ने उसे मुसकुरा कर सलाम किया और कहने लगेः
ऐ शेख़ ,मेरे विचार में तुम यहां अपरिचित हो और तुमको धोखा हो रहा है ,अगर भूखे हो तो तुम्हें खाना खिलाऊं ,अगर कपड़े चाहिये तो कपड़े पहना दूं ,अगर ग़रीब हो तो तुम्हरी ज़रूरत पूरी कर दूं ,अगर घर से निकाले हुये हो तो तुमको पनाह दे दूं और अगर कोई और ज़रूरत हो तो उसे पूरा करूं। अगर तुम मेरे घर आओ और जाने तक मेरे घर में ही रहो तो तुम्हारे लिये अच्छा होगा क्योंकि मेरे पास एक बड़ा घर है तथा मेहमानदारी का सामान भी मौजूद है।
सीरिया के उस नागरिक ने जब यह व्यवहार देखा तो पछताने और रोने लगा और इमाम को संबोधित करके कहने लगाः मैं गवाही देता हूं कि आप ज़मीन पर अल्लाह के प्रतिनिधि हैं तथा अल्लाह अच्छी तरह जानता है कि अपना प्रतिनिधित्व किसे प्रदान करे। आप से मिलने से पहले आपके पिता और आप मेरी निगाह में लोगों के सबसे बड़े दुश्मन थे और अब मेरे लिये सबसे से अच्छे हैं।
यह आदमी मदीने में इमाम हसन का मेहमान बना और पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. एवं उनके अहलेबैत का श्रद्धालु बन गया। इमाम हसन (अ) की सहनशीलता व सब्र इतना मशहूर था कि “हिल्मुल- हसन ” अर्थात हसन की सहनशीलता सब की ज़बानों पर रहता था।
इबादत
पैग़म्बरे इस्लाम के नाती और हज़रत अली के बेटे इमाम हसन भी अपने नाना और पिता की तरह अल्लाह की इबादत के प्रति बहुत ज़्यादा पाबंद एवं सावधान थे। अल्लाह की महानता का इतना आभास करते थे कि नमाज़ के समय चेहरा पीला पड़ जाता और जिस्म कांपने लगता था ,हर समय उनकी ज़बान पर अल्लाह का ज़िक्र व गुणगान ही रहता था।
इमाम हसन गरीबो के साथ
इतिहास में आया है कि किसी भी ग़रीब व फ़क़ीर को उन्होने अपने पास से बिना उसकी समस्या का समाधान किये जाने नहीं दिया। किसी ने सवाल किया कि आप किसी मांगने वाले को कभी ख़ाली हाथ क्यों नहीं लौटाते। तो उन्होने जवाब दिया “ मैं ख़ुद अल्लाह के दरवाज़े का भिखारी हूं ,और उससे आस लगाये रहता हूं ,इसलिये मुझे शर्म आती है कि ख़ुद मांगने वाला होते हुये दूसरे मांगने वाले को ख़ाली हाथ भेज दूं। अल्लाह ने मेरी आदत डाली है कि लोगों पर ध्यान दूं और अल्लाह की अनुकंपायें उन्हें प्रदान करूं।
हज़रत इमामे हसन (अ.स.) के कथन
१. जो शख़्स (मनुष्य) हराम ज़राये से दौलत (धन) जमा करता है ख़ुदावन्दे आलम उसे फ़क़ीरी और बेकसी में मुबतला करता है।
२. दो चीज़ो से बेहतर कोई शैय (चीज़) नहीं एक अल्लाह पर ईमान और दूसरे ख़िदमते ख़ल्क (परोपकार)।
३. ख़ामोश सदक़ा (गुप्त दान) ख़ुदावन्दे आलम के ग़ज़ब (प्रकोप) को ख़त्म कर देता है।
४. हमेशा नेक लोगों की सोहबत (संगत) इख़्तेयार (ग्रहण) करो ताकि अगर कोई कारे नेक (अच्छा कार्य) करो तो तुम्हारी सताएश (प्रशंसा) करें और अगर कोई ग़लती हो जाये तो मुतावज्जेह (ध्यान दियालें) करें।
५. जिसने ग़लत तरीक़े से माल जमा किया वह माल ग़लत जगहों पर और नागहानि-ए-हवादिस (अचानक घटित होने) में सर्फ़ होता है।
६. हर शख़्स की क़ीमत उसके इल्म के बराबर है।
७. तक़वा (सँयम ,ईश्वर से भय) से बेहतर लिबास ,क़नाअत (आत्मसंतोष) से बेहतर माल ,मेहरबानी व रहम से बेहतर एहसान मुझे न मिला।
८. बुरी आदतें जाहिलों की मुआशेरत (कुसंग) में और नेक ख़साएल (अच्छी आदतें) अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) की सोहबत (संगत) से मिलते हैं।
९. अपने दिल को वाएज़ व नसीहत (अच्छे उपदेश) से ज़िन्दा रखो।
१०. गुनाहगारों (पापियों) को नाउम्मीद (निराश) मत करो (क्योंकि) कितने गुनाहगार ऐसे गुज़रे जिनकी आक़ेबत ब-ख़ैर हुई।
११. सबसे बेचारा वह शख़्स है जो अपने लिये दोस्त (मित्र) न बना पाये।
१२. जो शख़्स दुनिया की बेऐतबारी को जानते हुए उस पर ग़ुरूर (घमण्ड) करे बड़ा नादान है।
१३. ख़ुश अख़लाक़ (सुशील) बनो ताकि क़यामत (महाप्रलय) के दिन तुम पर नर्मी की जाए।
१४. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह इन्सान को नेकियों से महरूम कर देता है।
१५. हमेशा नेक बात कहो ताकि नेकि से याद किये जाओ।
१६. अल्लाह की ख़ुशनूदी माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है और अल्लाह का ग़ज़ब उनके ग़ज़ब के साथ है।
१७. अल्लाह की किताब पढ़ा करो और अल्लाह की नाराज़गी और ग़ज़ब से ख़बरदार रहो।
१८. बुख़्ल (कंजूसी) और ईमान एक साथ किसी के दिल में जमा नहीं हो सकता।
१९. किसी इन्सान को दूसरे पर तरजीह (प्राथमिकता) नहीं दी जा सकती मगर दीन या किसी नेक काम की वजह से।
२०. मैने किसी सितमगर को सितम रसीदा के मानिन्द नहीं देखा मगर हासिद (ईर्ष्यालु) को।
२१. अपने इल्म (ज्ञान) को दूसरों तक पहुँचाओ और दूसरों के इल्म (ज्ञान) को ख़ुद हासिल करो।
२२. अपने भाईयें से फ़ी सबीलिल्लाह (केवल ईशवर के लिए) भाई चारा रखो।
२३. नेकियों और अच्छाइयों का अन्जाम उसके आग़ाज़ (प्रारम्भ) से बेहतर है।
२४. अच्छाई से लज़्ज़त बख़्श कोई और मसर्रत नहीं।
२५. अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) से पेश आती हो।
२६. जिसका हाफ़ेज़ा (याद्दाश्त) क़वी (ताक़तवर) न हो और अपना दर्स (पाठ) पूरे तौर से याद न कर पाता हो उसे चाहिये के वह उस्ताद के बयान करदा मतालिब (मतलब का बहु) पर ग़ौर करे और अपने पास महफ़ूज़ (सुरक्षित) करे ताकि वक़्ते ज़रूरत काम आये।
२७. जितना मिले उसपर ख़ुश रहना इन्सान को पाकदामनी तक ले जाता है।
२८. नुक़सान उठाने वाला वह शख़्स है जो ओमूरे दुनिया (सांसारिक कार्य) में इस तरह मश्ग़ूल रहे के आख़ेरत (आख़रत) के ओमूर रह जायें।
२९. धोका और मक्र (छल) ख़ासतौर से उस शख़्स के साथ जिसने तुमको अमीन (सच्चा) समझा कुफ़्र है।
३०. गुनाह क़ुबूलियते दुआ में मानेअ और बदख़ुल्क़ी शर व फ़साद का बायस (कारण) है।
३१. तेज़ चलने से मोमिन का वेक़ार (आत्मसम्मान) कम होता है और बाज़ार में चलते हुए खाना पस्ती (नीचता) की अलामत है।
३२. जब कोई तुम्हारा ख़ैर अन्देश (शुभचिन्तक) अक़्लमन्द तुमको कुछ बताये तो उसे क़ुबूल करो और उसकी ख़िलाफ़ वर्ज़ी (विरोध) से बचो क्योंकि उसमें हलाक़त है।
३३. नादानों की बातों की बेहतरीन जवाब ख़ामोशी है।
३४. हासिद (ईर्ष्यालु) को लज़्ज़त ,बख़ील (कंजूस) को आराम और फ़ासिक़ (ईशवरीय आदेशों का मन से विरोध) को एहतेराम (आदर) तमाम लोगों से कम मिलता है।
३५. बेहतरीन किरदार गुर्सना (भूखे) को खाना खिलाना और बेहतरीन काम जाएज़ काम में मशग़ूल (लिप्त) रहना।
३६. जब तुम बुरे काम से परेशान हो और नेक कामों से ख़ुशहाल तो समझ लो के तुम मोमिन हो।
३७. बेहतर यह है के तुम अपने दुश्मन पर ग़लबा (विजय) हासिल (प्राप्त) करने से पहले अपने नफ़्स पर क़ाबू पा लो।
३८. बख़ील (कंजूस) इन्सान अपने अज़ीज़ों (रिश्तेदारों) में ख़ार रहता है।
३९. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह (पाप) इन्सान के हस्नात (अच्छाइयों) को भी तबाह (बर्बाद) कर देता है।
४०. जिसके पास अज़्म (द्रढ़ता) व इरादा है वह दूसरों लोगों के मुक़ाबले में अपने ऊपर मुसल्लत (हावी) है।
माविया से सुलह के बाद जबकि इमाम हसन (अ.स.) ने हुकुमत को छोड़ दिया था लेकिन फिर भी माविया का आपके वूजुदे मुबारक को बरदाश्त करना बहुत सख्त था और वैसे भी सिर्फ इमाम हसन (अ.स) ही वो शख्सियत थे कि जो माविया को अपनी मनमानी करने और यज़ीद को अपना जानशीन बनाने और खिलाफत को विरासती करने मे सबसे बड़े मुखालिफ थे और उस दौर मे सिर्फ इमाम हसन (अ.स.) ही वो सलाहियत रखते थे कि जो उम्मत की रहबरी और हिदायत के लिऐ जरूरी थी ।
और सुलह के बाद से ही हमेशा उसकी कोशीश रही कि किसी भी तरह से इमाम हसन (अ.स.) को जल्दी से जल्दी मौत के दामन मे पहुंचा दे लिहाजा पोशीदा तौर पर उसने इस काम के लिऐ मदीने की मस्जिद मे भी कई दफा इमाम हसन (अ.स.) पर हमले कराऐ लेकिन जब इन हमलो का कोई नतीजा नही निकला तो माविया ने इमाम हसन (अ.स) की ज़ौजा जोदा बिन्ते अशअस के ज़रीए आपको ज़हर दिलाकर शहीद करा दिया।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 50 हिजरी मे सफ़र मास की 28 तरीख को हुई।
समाधि
जब इमाम हसन (अ.स.) की शहादत का वक्त करीब आया तो आपने अपने भाई इमाम हुसैन (अ.स.) को अपने करीब बुलाया और उन हज़रत से इरशाद फरमायाः ये तीसरी मरतबा है कि मुझे ज़हर दिया गया है लेकिन इस से पहले जहर असर नही कर पाया था औऱ क्यों कि इस बार असर कर गया है तो मै मर जाऊंगा और जब मै मर जाऊं तो मुझे मेरे नाना रसूले खुदा (स.अ.व.व) के पहलु मे दफ्न कर देना क्योंकि कोई भी मुझसे ज्यादा वहाँ दफ्न होने का हक़दार नही है लेकिन अगर मेरे उस जगह दफ्न होने की मुखालिफत हो तो इस हाल मे ख़ून का एक क़तरा भी न बहने देना।
और जब इमाम शहीद हो गऐ और उनके जिस्मे अतहर को रसूले खुदा (स.अ.व.व) के रोज़ाऐ मुबारक मे दफ्न करने के लिऐ ले जाया जाने लगा तो मरवान बिन हकम और सईद बिन आस आपके वहा दफ्न होने की मुखालिफत करने लगे और उनके साथ-साथ आयशा भी मुखालिफत करने लगी और कहने लगी कि मै हसन के यही दफ्न होने की बिल्कुल इजाज़त नही दूंगी क्यो कि ये मेरा घर है।
इस पर आयशा के भतीजे कासिम बिन मौहम्मद बिन अबुबकर ने कहा कि क्या दोबारा जमल जैसा फितना खड़ा करना चाहती हो ?
जिस वक्त इमाम के वहा दफ्न की मुखालिफत की जा रही थी तो वो लोग कि जो इमाम की मैय्यत मे शिरकत के लिऐ आऐ हुऐ थे चाहते थे कि मरवानीयो के साथ जंग करे और इस काम के लिऐ इमाम हुसैन (अ.स.) से इजाज़त मांगने लगे लेकिन इमाम हुसैन (अ.स.) ने इमाम हसन की वसीयत को याद दिलाया और इमाम हसन (अ.स.) को जन्नतुल बकी मे दफ्न कर दिया।
।। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिंव वा आले मुहम्मद।।