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ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़ेश्कियान और उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने इस्लामी क्रांति की 46वीं वर्षगांठ और अशरा-ए-फज्र के अवसर पर इमाम खुमैनी रह. के मजार पर हाजिरी दी और उनके सिद्धांतों के प्रति अपनी निष्ठा दोहराई हैं।

ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़ेश्कियान और उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने इस्लामी क्रांति की 46वीं वर्षगांठ और अशरा-ए-फज्र के अवसर पर इमाम खुमैनी रह. के मजार पर हाजिरी दी और उनके सिद्धांतों के प्रति अपनी निष्ठा दोहराई हैं।

शनिवार को राष्ट्रपति और उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने तेहरान में इमाम खुमैनी र.ह.के मजार की गुलपोशी की और सूरह फातिहा की तिलावत की इस अवसर पर उन्होंने इस्लामी क्रांति और ईरानी इस्लामी गणराज्य के संस्थापक को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके विचारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया।

इस समारोह में राष्ट्रपति और मंत्रियों ने आयतुल्लाह हाशमी रफसंजानी और इमाम खुमैनी र.ह.के पुत्र सैयद अहमद खुमैनी को भी याद किया और उनके लिए सूरह फातिहा पढ़ी।

इसके अलावा राष्ट्रपति मसऊद पेज़ेश्कियान और उनकी कैबिनेट ने क्रांति के शहीदों, जिनमें शहीद मोहम्मद अली रजाई, मोहम्मद जवाद बा हुनर और आयतुल्लाह बहिश्ती शामिल हैं, के मजारों पर भी श्रद्धांजलि दी और उनकी आत्मा के लिए प्रार्थना की।

इस अवसर पर इमाम खुमैनी र.ह.के नवासे और उनके मजार के संरक्षक, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हसन खुमैनी ने राष्ट्रपति और उनकी कैबिनेट का स्वागत किया और पूरे कार्यक्रम में उनके साथ रहे।

ईरानी विदेश मंत्री ने कहा,अमेरिका द्वारा ईरान की जब्त संपत्तियों की बहाली विश्वास बहाली की दिशा में पहला कदम साबित होगी।

ईरानी विदेश मंत्री ने कहा,अमेरिका द्वारा ईरान की जब्त संपत्तियों की बहाली विश्वास बहाली की दिशा में पहला कदम साबित होगी।

ईरानी विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची ने कहा कि यदि अमेरिका ईरान की जब्त की गई संपत्तियों को बहाल करता है तो यह विश्वास बहाली की दिशा में पहला कदम होगा उन्होंने यह भी कहा कि ईरान और अमेरिका के बीच लंबे समय से अविश्वास की स्थिति बनी हुई है, जिसे केवल शब्दों से खत्म नहीं किया जा सकता।

  1. अमेरिका की नई सरकार की नीति पर नजर:

अराक़ची ने कहा कि ईरान अमेरिकी नीतियों पर कड़ी नजर रखे हुए है और जो बाइडेन प्रशासन ईरान, परमाणु समझौते और ईरानी परमाणु कार्यक्रम को लेकर क्या नीति अपनाता है उसी के अनुसार ईरान अपनी रणनीति तय करेगा।

  1. ईरान का परमाणु कार्यक्रम अविनाशी:

ईरानी विदेश मंत्री ने कहा कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम ईरानी वैज्ञानिकों के दिमाग में है, ज़मीन पर नहीं इसे बमबारी या हवाई हमलों से नष्ट नहीं किया जा सकता। ईरान की परमाणु सुविधाएं केवल एक या दो स्थानों तक सीमित नहीं हैं बल्कि कई जगहों पर फैली हुई हैं और उनकी सुरक्षा बेहद कड़ी है, जिससे उन पर हमला करना आसान नहीं।

  1. परमाणु हमले की स्थिति में ईरान की कड़ी प्रतिक्रिया:

अराक़ची ने चेतावनी दी कि यदि ईरानी परमाणु स्थलों पर हमला किया गया, तो ईरान तत्काल और निर्णायक प्रतिक्रिया देगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका और इजराइल जानते हैं कि ईरान किन लक्ष्यों को निशाना बना सकता है।

  1. परमाणु हथियार बनाना हराम

अराक़ची ने कहा कि ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं हैं और यह उसके सैन्य सिद्धांत का हिस्सा भी नहीं है ईरान की सुरक्षा अन्य तरीकों से सुनिश्चित की जाती है और परमाणु हथियार हमारे लिए इस्लामी दृष्टि से हराम हैं।

ईरान के सर्वोच्च नेता ने एक स्पष्ट फतवा जारी किया है जिसमें परमाणु हथियारों समेत सभी विध्वंसक हथियारों के निर्माण, भंडारण और उपयोग को इस्लाम में निषिद्ध (हराम) बताया गया है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हमारे पास परमाणु हथियार बनाने की तकनीकी क्षमता है लेकिन क्या हम इसे बनाएंगे? बिल्कुल नहीं। न पहले हमारा ऐसा इरादा था न अब है, और न ही भविष्य में होगा।

 

ईरान इस्लामिक गणराज्य में दस दिवसीय फ़ज्र समारोह की शुरुआत हो गई है। ये समारोह इस्लामिक गणराज्य ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी की मातृभूमि पर वापसी और इस्लामी क्रांति की सफलता की चवालिस्वीं वर्षगांठ के मौके पर पूरे देश में आयोजित किए जाते हैं।

ईरान इस्लामिक गणराज्य में दस दिवसीय फ़ज्र समारोह की शुरुआत हो गई है। ये समारोह इस्लामिक गणराज्य ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी की मातृभूमि पर वापसी और इस्लामी क्रांति की सफलता की चवालिस्वीं वर्षगांठ के मौके पर पूरे देश में आयोजित किए जाते हैं। अशरा ए फ़ज्र के पहले दिन से पूरे देश के स्कूलों में घंटी बजाई गई।

फ़ज्र समारोह की शुरुआत के मौके पर, इस्लामिक क्रांति के नेता आयतुल्लाह सय्यद अली खामेनेई ने इमाम खुमैनी के मज़ार पर नमाज अदा की।

फ़ज्र समारोह की शुरुआत के अवसर पर अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे, जिनमें तेहरान के महराबाद हवाई अड्डे से ऐतिहासिक बहेश्ते ज़हरा कब्रिस्तान तक, इमाम खुमैनी की वापसी के मार्ग पर हेलीकॉप्टरों द्वारा फूलों की वर्षा, सशस्त्र बलों की मोटरसाइकिल परेड और इमाम खुमैनी की मज़ार में विशेष कार्यक्रम प्रमुख रूप से शामिल हैं।

इस्लामी क्रांति की सफलता के जश्न और इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम खुमैनी की मातृभूमि पर वापसी के अवसर पर पूरे देश में विभिन्न रंग-बिरंगे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें खलीज फारस में समुद्री जहाजों के हार्न बजाना भी शामिल है।

28 रजब को इमाम हुसैन अ.स. ने मदीने से हिजरत की, और पूरी दुनिया वालों के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का खुला संदेश था यज़ीद की बैय्यत से इनकार और दीने खुदा की सुरक्षा करना,

28 रजब को इमाम हुसैन अ.स. ने मदीने से हिजरत की, और पूरी दुनिया वालों के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का खुला संदेश था यज़ीद की बैय्यत से इनकार और दीने खुदा की सुरक्षा करना,

इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय वलीद के दरबार में जाना आपके लिए ख़तरनाक हो सकता है، इमाम ने कहा कि में जाऊँगा तो ज़रूर लेकिन अपनी सुरक्षा का इंतेज़ाम करके वलीद से मिलूँगा खुद अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रातों रात मदीने से मक्के की तरफ फरार कर गए।

मुआविया जहन्नम रसीद हुआ तो मदीने में बनी उमय्या के गवर्नर वलीद ने इमाम हुसैन (अ.स.) को संदेश भेजा कि वह दरबार में आयें उनके लिए यज़ीद का एक ज़रूरी पैग़ाम है। इमाम हुसैन (अ.स.) उस समय इब्ने ज़ुबैर के साथ मस्जिद-ए-नबवी में बैठे थे।

जब यह संदेश आया तो इमाम से इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय इस तरह का पैग़ाम आने का मतलब क्या हो सकता है? इमाम हुसैन (अ.स.) ने कहा कि लगता है कि मुआविया की मौत हो गई है और शायद यज़ीद की बैअत के लिए वलीद ने हमें बुलाया है। इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय वलीद के दरबार में जाना आपके लिए ख़तरनाक हो सकता है। इमाम ने कहा कि में जाऊँगा तो ज़रूर लेकिन अपनी सुरक्षा का इंतेज़ाम करके वलीद से मिलूँगा। खुद अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रातों रात मदीने से मक्के की तरफ फरार कर गए।

इमाम बनी हाशिम के जवानों को लेकर वलीद के दरबार में पहुँच गए। लेकिन अपने साथ आये बनी हाशिम के जवानों से कहा कि वह लोग बाहर ही ठहरे और अगर इमाम की आवाज़ बुलंद हो तो अन्दर आ जाएँ।

इमाम वलीद के दरबार में पहुँचे तो उस समय वलीद के साथ बनी उमय्या का अहम् सरदार और रसूलो अहले बैते रसूल का बदतरीन दुश्मन मरवान भी बैठा हुआ था। इमाम हुसैन (अ.स.) तशरीफ़ लाए तो वलीद ने मुआविया की मौत कि ख़बर देने के बाद यज़ीद की बैअत के लिए कहा। इमाम हुसैन (अ.स.) ने यज़ीद की बैअत करने से साफ़ इनकार कर दिया और वापस जाने लगे तो पास बैठे हुए मरवान ने कहा कि अगर तूने इस वक़्त हुसैन को जाने दिया तो फिर ऐसा मौक़ा नहीं मिलेगा यही अच्छा होगा कि इनको गिरफ़्तार करके बैअत ले ले या फिर क़त्ल कर के इनका सर यज़ीद के पास भेज दे।

यह सुनकर इमाम हुसैन (अ.स.) को जलाल आ गया और आपने बुलंद आवाज़ में फ़रमाया “भला तेरी या वलीद कि यह मजाल कि मुझे क़त्ल कर सकें?” इमाम हुसैन (अ.स.) की आवाज़ बुलंद होते ही उनके छोटे भाई हज़रत अब्बास के नेतृत्व मैं बनी हाशिम के जवान तलवारें उठाये दरबार में दाखिल हो गए लेकिन इमाम ने इन नौजवानों को सब्र की तलक़ीन की और घर वापस आ कर मदीना छोड़ने के बारे मैं मशविरा करने लगे।

बनी हाशिम के मोहल्ले मैं इस खबर से शोक का माहौल छा गया। इमाम हुसैन (अ.स.) अपने खानदान के साथ मदीना छोड़ कर मक्का की ओर हिजरत कर गए जहाँ आप लगभग साढ़े चार महीने खाना ए काबा के नज़दीक रहे लेकिन हज का ज़माना आते ही इमाम को खबर मिली कि यज़ीद ने हाजियों के लिबास में क़ातिलों का एक ग्रुप भेजा है जो इमाम को हज के दौरान क़त्ल करने की नीयत से आया है। वैसे तो हज के दौरान हथियार रखना हराम है और एक चींटी को भी मार दिया जाए तो इंसान पर कफ्फ़ारा लाज़िम हो जाता है लेकिन यज़ीद और बनी उमय्या के लिए इस्लामी उसूल या काएदे कानून क्या मायने रखते थे?

जिस वक़्त पूरा आलमे इस्लाम सिमट कर मक्का की तरफ आ रहा था इमामे हुसैन ने हुरमते काबा बचाने के लिए हज को उमरह में बदल कर मक्का से कर्बला की तरफ हिजरत का फैसला किया।

 

शाबाना हज़रत रसूल्लाह (स) का महीना है इस महीने उनके प्यारो का जन्म हुआ।

शाबान का महीना हिजरी कैलेंडर का आठवां महीना है और यह महीना रहमतुन लिल आलमीन, हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (अ) से जुड़ा हुआ है। जैसा कि खुद रसूल अल्लाह (स) ने फ़रमाया: "रजब अल्लाह का महीना है, शाबान मेरा महीना है और रमजान मेरी उम्मत का महीना है।" इसके अलावा उन्होंने यह भी फरमाया: "शाबान मेरा महीना है, अल्लाह उस बंदे पर रहमत नाज़िल करे जो इस महीने में मेरी मदद करेगा, जो कोई भी इस महीने में एक रोज़ा रखेगा, उस पर जन्नत वाजिब हो जाएगी।" रसूल अल्लाह (स) ने एक और जगह पर कहा: "शाबान वह महीना है जिसमें अमाल (अच्छे कार्य) क़ुबूल होते हैं जबकि लोग इससे गाफिल होते हैं।" अमीरुल मोमिनीन, इमाम अली (अ) ने फरमाया: "शाबान रसूल अल्लाह (स) का महीना है।"

कुछ हदीसों में शाबान को महीनों का सरदार भी कहा गया है। इमाम जाफर सादिक़ (अ) से रिवायत है कि जब शाबान का चाँद आसान पर नज़र आता तो इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ) अपने साथियों को इकट्ठा करते और कहते थे: "क्या तुम जानते हो कि यह कौन सा महीना है?" यह महीना शाबान है। रसूल अल्लाह (स) ने फ़रमाया कि यह मेरा महीना है। इसलिए रसूल अल्लाह (स) की मोहब्बत और अल्लाह के करीब होने के लिए इस महीने में रोज़ा रखो। उस अल्लाह की क़सम! जिसके हाथ में अली बिन हुसैन की जान है, मैंने अपने वालिद इमाम हुसैन (अ) से सुना कि अमीरुल मोमिनीन (अ) ने फ़रमाया: "जो भी शाबान के महीने में रसूल अल्लाह (स) की मोहब्बत और अल्लाह के करीब होने के लिए रोज़ा रखेगा, वह अल्लाह का महबूब होगा, क़यामत के दिन अल्लाह की करामत उसके साथ होगी और जन्नत उसके ऊपर वाजिब हो जाएगी।"

सफ़वान जमाल से रिवायत है कि इमाम जाफर सादिक़ (अ) हमें हुक्म देते थे कि अपने आस-पास के लोगों को शाबान में रोज़ा रखने के लिए तैयार करो। हमने उनसे पूछा, "क्या आप इस महीने की फ़ज़ीलत बयान करें?" तो इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया: "जब शाबान का महीना शुरू होता तो रसूल अल्लाह (स) मदीना में पुकारने वाले को हुक्म देते कि वह ऐ मदीना वालो! जान लो, यह महीना मेरा महीना है। अल्लाह उस बंदे पर रहमत नाज़िल करे जो इस महीने में मेरी मदद करेगा, यानी रोज़ा रखे।" अमीरुल मोमिनीन (अ) ने कहा: "जब से मैंने रसूल अल्लाह (स) के पुकारने की आवाज़ सुनी है, मैंने शाबान में रोज़ा कभी नहीं छोड़ा। इंशा अल्लाह, जीवन भर शाबान के रोज़े नहीं छोड़ूँगा।"

शाबान रसूल अल्लाह (स) का महीना है, इस महीने में रसूल अल्लाह (स) के चाहने वालों की विलादत हुई।

3 शाबान 5 हिजरी को रसूल अल्लाह (स) के प्यारे नवासे इंसानियत के महान नेता इमाम हुसैन (अ) का जन्म हुआ, जिन्होंने इस्लाम की रक्षा के लिए महान कुर्बानियाँ दीं और रसूल अल्लाह (स) की हदीस "मैं हुसैन से हूँ" की व्याख्या की।

4 शाबान 26 हिजरी को अल्लाह के मुखलिस बंदे और रसूल अल्लाह (स) के मुतीअ खालिस हज़रत अबुल फ़ज़्लिल अब्बास (अ) का जन्म हुआ। जिनकी तमन्ना रसूल अल्लाह (स) के नफ़्स अमीरुल मोमीन अली इब्न अबि तालिब (अ) ने की, बिन्ते रसूल हज़रत ज़हरा (स) ने जिन्हे अपना बेटा कहा, इमाम हुसैन (अ) ने जिन्हे अपनी सेना का सेनापति बनाया, हज़रत अब्बास (अ) ने दीन की नुसरत मे अपनी दोनो भुजाए क़ुरबान कर दी रिवायत के अनुसार आपकी यही दोनो भुजाए उम्मत की शफ़ाअत का माध्यम बनेगी।

5 शाबान 38 हिजरी को इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ) का जन्म हुआ।

11 शाबान को शबीह-ए-रसूल (स) और मोअज़्ज़िन-ए-सुब्ह-ए-आशूरा हज़रत अली अकबर (अ) का जन्म हुआ।

15 शाबान 255 हिजरी को मुंज़ी-ए-आलम-ए-बशरियत, क़ुत्ब-ए-आलम-ए-इमकान, लंगर-ए-ज़मीन-ओ-आसमां, साहिब-ए-ज़माना, ख़ातम-ए-औसिया इमाम महदी (अ) का जन्म हुआ और उसी दिन 329 हिजरी को उनके आख़िरी नाइब ख़ास हज़रत अली बिन मुहम्मद समरी (अ) का निधन हुआ।

18 शाबान 326 हिजरी को इमाम महदी (अ) के तीसरे नाइब ख़ास हज़रत हुसैन बिन रूह नुबख़ती (र) का निधन हुआ, जिनके ज़रिए मोमेनीन अपने मौला और आका इमाम ज़माना (अ) के पास दुआ भेजते थे।

शाबान महीने के आमाल:

रोज़ा रखना।

सलवात पढ़ना।

सदक़ा देना।

मुनाजात शाबानिया पढ़ना।

रोज़ाना 70 बार  "असतग़फिरुल्लाह व असअलुहुत तौबा" पढ़ना।

रोज़ाना 70 बार "असतग़फिरुल लाहिल्लज़ी ला इलाहा इल्ला हुवर्रहमानुर्रहीमुलहय्युलक़य्यूमू व अतूबू इलैही" पढ़ना।

जुमेरात की खास नमाज़।

सलवात शाबानिया पढ़ना।

"ख़ुदाया! इमाम ज़माना अ.ज.अ. के ज़ुहूर में ताजील फ़रमा। आमीन।"

28 रजब को इमाम हुसैन अ.स. ने मदीने से हिजरत की, और पूरी दुनिया वालों के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का खुला संदेश था यज़ीद की बैय्यत से इनकार और दीने खुदा की सुरक्षा करना।

28 रजब को इमाम हुसैन अ.स. ने मदीने से हिजरत की और पूरी दुनिया वालों के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का खुला संदेश था यज़ीद की बैय्यत से इनकार और दीने खुदा की सुरक्षा करना,

इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय वलीद के दरबार में जाना आपके लिए ख़तरनाक हो सकता है، इमाम ने कहा कि में जाऊँगा तो ज़रूर लेकिन अपनी सुरक्षा का इंतेज़ाम करके वलीद से मिलूँगा खुद अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रातों रात मदीने से मक्के की तरफ फरार कर गए।

मुआविया जहन्नम रसीद हुआ तो मदीने में बनी उमय्या के गवर्नर वलीद ने इमाम हुसैन (अ.स.) को संदेश भेजा कि वह दरबार में आयें उनके लिए यज़ीद का एक ज़रूरी पैग़ाम है। इमाम हुसैन (अ.स.) उस समय इब्ने ज़ुबैर के साथ मस्जिद-ए-नबवी में बैठे थे।

जब यह संदेश आया तो इमाम से इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय इस तरह का पैग़ाम आने का मतलब क्या हो सकता है? इमाम हुसैन (अ.स.) ने कहा कि लगता है कि मुआविया की मौत हो गई है और शायद यज़ीद की बैअत के लिए वलीद ने हमें बुलाया है।

इब्ने ज़ुबैर ने कहा कि इस समय वलीद के दरबार में जाना आपके लिए ख़तरनाक हो सकता है। इमाम ने कहा कि में जाऊँगा तो ज़रूर लेकिन अपनी सुरक्षा का इंतेज़ाम करके वलीद से मिलूँगा। खुद अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रातों रात मदीने से मक्के की तरफ फरार कर गए।

इमाम बनी हाशिम के जवानों को लेकर वलीद के दरबार में पहुँच गए। लेकिन अपने साथ आये बनी हाशिम के जवानों से कहा कि वह लोग बाहर ही ठहरे और अगर इमाम की आवाज़ बुलंद हो तो अन्दर आ जाएँ।

इमाम वलीद के दरबार में पहुँचे तो उस समय वलीद के साथ बनी उमय्या का अहम् सरदार और रसूलो अहले बैते रसूल का बदतरीन दुश्मन मरवान भी बैठा हुआ था। इमाम हुसैन (अ.स.) तशरीफ़ लाए तो वलीद ने मुआविया की मौत कि ख़बर देने के बाद यज़ीद की बैअत के लिए कहा। इमाम हुसैन (अ.स.) ने यज़ीद की बैअत करने से साफ़ इनकार कर दिया और वापस जाने लगे तो पास बैठे हुए मरवान ने कहा कि अगर तूने इस वक़्त हुसैन को जाने दिया तो फिर ऐसा मौक़ा नहीं मिलेगा यही अच्छा होगा कि इनको गिरफ़्तार करके बैअत ले ले या फिर क़त्ल कर के इनका सर यज़ीद के पास भेज दे।

यह सुनकर इमाम हुसैन (अ.स.) को जलाल आ गया और आपने बुलंद आवाज़ में फ़रमाया “भला तेरी या वलीद कि यह मजाल कि मुझे क़त्ल कर सकें?” इमाम हुसैन (अ.स.) की आवाज़ बुलंद होते ही उनके छोटे भाई हज़रत अब्बास के नेतृत्व मैं बनी हाशिम के जवान तलवारें उठाये दरबार में दाखिल हो गए लेकिन इमाम ने इन नौजवानों को सब्र की तलक़ीन की और घर वापस आ कर मदीना छोड़ने के बारे मैं मशविरा करने लगे।

बनी हाशिम के मोहल्ले मैं इस खबर से शोक का माहौल छा गया। इमाम हुसैन (अ.स.) अपने खानदान के साथ मदीना छोड़ कर मक्का की ओर हिजरत कर गए जहाँ आप लगभग साढ़े चार महीने खाना ए काबा के नज़दीक रहे लेकिन हज का ज़माना आते ही इमाम को खबर मिली कि यज़ीद ने हाजियों के लिबास में क़ातिलों का एक ग्रुप भेजा है जो इमाम को हज के दौरान क़त्ल करने की नीयत से आया है। वैसे तो हज के दौरान हथियार रखना हराम है और एक चींटी को भी मार दिया जाए तो इंसान पर कफ्फ़ारा लाज़िम हो जाता है लेकिन यज़ीद और बनी उमय्या के लिए इस्लामी उसूल या काएदे कानून क्या मायने रखते थे?

जिस वक़्त पूरा आलमे इस्लाम सिमट कर मक्का की तरफ आ रहा था इमामे हुसैन ने हुरमते काबा बचाने के लिए हज को उमरह में बदल कर मक्का से कर्बला की तरफ हिजरत का फैसला किया।

अरब लीग ने फिलिस्तीनियों को विस्थापित करने की अमेरिकी योजना को अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताते हुए खारिज कर दिया है।

अरब लीग महासचिव ने दोहराया कि मध्य पूर्व में स्थिरता और शांति केवल फिलिस्तीनी मुद्दे के न्यायोचित समाधान और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त दो-राज्य समाधान के कार्यान्वयन के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इसलिए, इसकी आवश्यकता है 1967 से पहले की सीमाओं पर एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना, जिसकी राजधानी पूर्वी यरुशलम होगी। एक बयान में, लीग ने जोर देकर कहा कि इन सहमत सिद्धांतों और स्थापित मानदंडों से कोई भी विचलन, जो अरब और अंतर्राष्ट्रीय आम सहमति का खंडन करेगा, लंबे समय तक चलेगा संघर्ष को बढ़ावा मिलेगा तथा शांति और भी बिगड़ेगी। जिससे क्षेत्र के लोगों, विशेषकर फिलिस्तीनियों की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया गया कि फिलिस्तीनियों को निर्वासन, विलय या अवैध यहूदी बस्तियों के विस्तार के माध्यम से विस्थापित करने के प्रयास लगातार विफल रहे हैं।

अरब लीग ने उन सभी देशों से आग्रह किया है जो शांति के मार्ग के रूप में द्वि-राज्य समाधान का समर्थन करते हैं कि वे इस समाधान को प्राप्त करने के लिए एक विश्वसनीय प्रक्रिया में तत्काल और लगन से शामिल हों तथा इसे जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करें। यह समाधान फिलिस्तीनियों, इजरायलियों और पूरे क्षेत्र के लिए सुरक्षा और शांति सुनिश्चित करने का एकमात्र व्यवहार्य तरीका है।

हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने आज सुबह अशरा ए फ़ज्र के आगमन के मौके पर इमाम ख़ुमैनी र.ह. के मज़ार पर हाज़िरी दी फ़ातिहा पढ़ी और इस्लामी गणराज्य ईरान के संस्थापक को श्रद्धांजलि अर्पित की।

हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आज सुबह अशरा-ए-फ़ज्र के आगमन के मौके पर इमाम ख़ुमैनी र.ह. के मज़ार पर हाज़िरी दी फ़ातिहा पढ़ी और इस्लामी गणराज्य ईरान के संस्थापक को श्रद्धांजलि अर्पित की।

रहबर-ए-इंक़लाब ने 30 अगस्त 1981 के आतंकी धमाके और 28 जून 1981 को प्रधानमंत्री कार्यालय में हुए आतंकी हमले में शहीद होने वालों की कब्रों पर भी हाज़िरी दी।

इस मौके पर उन्होंने शहीद आयतुल्लाह बहिश्ती, मोहम्मद अली रजाई और हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन बाहुनर सहित सभी शहीदों की याद को सम्मानपूर्वक किया।

हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस्लामी क्रांति, शहीद-ए-दिफ़ा-ए-मक़दस और मुदाफ़ेआन-ए-हरम (पवित्र स्थलों के रक्षक) के मज़ारों पर भी फ़ातिहा पढ़ी और उनके मर्तबे की बुलंदी के लिए दुआ की।

स्वीडन में कुरआन पाक को जलाने की कई घटनाओं में शामिल 38 वर्षीय इराकी शरणार्थी सलवान मोमिका गोलीबारी की एक घटना में मारा गया।

स्वीडन में कुरआन पाक को जलाने की कई घटनाओं में शामिल 38 वर्षीय इराकी शरणार्थी सलवान मोमिका गोलीबारी की एक घटना में मारा गया।

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह घटना स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम के पास स्थित सोडरटेल्जे शहर में हुई जहां एक सशस्त्र व्यक्ति ने मोमिका के निवास में घुसकर उन पर गोलियां चला दीं, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई।

सूत्रों के अनुसार फायरिंग के समय मोमिका सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टिकटॉक पर लाइव वीडियो स्ट्रीमिंग कर रहा था। स्वीडिश पुलिस और न्यायिक अधिकारियों ने उनकी मौत की पुष्टि कर दी है और मामले की जांच जारी है।

सलवान मोमिका द्वारा कुरान जलाने की घटनाओं को लेकर मुस्लिम दुनिया में गहरा आक्रोश था और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई तथा शरणार्थी दर्जे की समाप्ति की मांग की जा रही थी। हालांकि उनकी अचानक मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं और स्वीडिश अधिकारी घटना से जुड़ी अधिक जानकारियां जुटा रहे हैं।

पूर्व राष्ट्रपति मरज़ूक़ी को मुख्य रूप से अरब बहार और ट्यूनीशियाई तानाशाह ज़ैनुल अबेदीन बिन अली को पद से हटाने के बाद देश की राजनीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जाना जाता है।

पूर्वी अफ्रीकी देश ट्यूनीशिया के पूर्व राष्ट्रपति ने फिलिस्तीनियों को "अपनी पहली आज़ादी के लिए लड़ने वाले अंतिम अरब" कहा। लंदन में मेमो द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व राष्ट्रपति मोनसेफ मरज़ूक़ी ने कहा कि फिलिस्तीन "अपनी पहली आज़दी के लिए लड़ने वाला अंतिम अरब राष्ट्र है।" मंगलवार को लंदन के पी-21 गैलरी में बोलते हुए, मरज़ूकी ने ट्यूनीशिया और इस क्षेत्र में लोकतंत्र के लिए संघर्ष को फिलिस्तीनी संघर्ष से जोड़ने की कोशिश की और कहा कि अगर ट्यूनीशिया और मिस्र तानाशाही की ओर नहीं मुड़ते, तो ग़ज़्ज़ा पट्टी की चल रही नाकेबंदी खत्म हो जाती। यह टिकता नहीं. पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि मैं सीरिया और गाजा की वर्तमान स्थिति के बीच संबंध देखता हूं। वह कड़ी स्वतंत्रता की कड़ी है। अन्य अरब राष्ट्रों ने पश्चिमी उपनिवेशवाद से स्वतंत्रता प्राप्त की और फिर उन्हें तानाशाही से मुक्ति के लिए दूसरी बार संघर्ष करना पड़ा, लेकिन फिलिस्तीन को अभी तक अपनी पहली आज़ादी प्राप्त नहीं हुई है।

मरज़ूक़ी ने कहा, "हमें ग़ज़्ज़ा पर गर्व है।" मेरा मानना ​​है कि इस युद्ध में ग़ज़्ज़ा की जीत हुई। उन्होंने कहा कि इजरायल का दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय नहीं रहा है। मरज़ूकी ने फिलीस्तीनी संघर्ष के बाद उभरे "मंडेला समाधान" के प्रति आशा व्यक्त की तथा दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला और अन्य हस्तियों के नेतृत्व में सशस्त्र प्रतिरोध की ओर भी इशारा किया। उन्होंने जोर देकर कहा, "मैं हिंसा से बहुत नफरत करता हूं, लेकिन अगर मुझे लड़ना पड़ा तो मैं लड़ूंगा।"

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