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हज़रत इमाम ज़ैनुल आबिदीन अलैहिस्सलाम की दुआओं के संग्रह सहिफ़ा ए सज्जादिया की परिचयात्मक बैठक के दौरान इस महान पुस्तक के रोमानियाई भाषा में अनुवाद का विमोचन किया गया यह बैठक बुखारेस्ट में इमाम अली अलैहिस्सलाम फाउंडेशन में आयोजित की गई।

एक रिपोर्ट के अनुसार ,हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की दुआओं के संग्रह सहिफ़ा सज्जादिया की परिचयात्मक बैठक में इस महान पुस्तक के रोमानियाई भाषा में अनुवाद का विमोचन किया गया यह कार्यक्रम रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट में इमाम अली अलैहिस्सलाम फाउंडेशन में आयोजित हुआ।

इस आयोजन में बुखारेस्ट में कई प्रसिद्ध विद्वान और सांस्कृतिक हस्तियां उपस्थित थीं कार्यक्रम के वक्ताओं में डॉ. ग्रिगोरे, बुखारेस्ट विश्वविद्यालय में अरबी भाषा के प्रोफेसर और पुस्तक के अनुवादक, शामिल थे।

इसके अलावा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद हमीद हुसैनी, बुखारेस्ट के इमाम और इमाम अली अलैहिस्सलाम फाउंडेशन के निदेशक, और डॉ. इज़्ज़त नज़ाकतगु, जो रोमानिया में रहने वाले एक प्रसिद्ध ईरानी व्यक्तित्व हैं, ने भी इस अवसर पर संबोधित किया।

कार्यक्रम के अंत में इस्लामी गणराज्य ईरान के राजदूत ने डॉ. ग्रिगोरे का विशेष रूप से फूलों के साथ सम्मान किया राजदूत ने अपने संबोधन में आज की दुनिया में आध्यात्मिकता और धर्म के महत्व पर प्रकाश डाला और इन मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

समारोह के अंत में इस पुस्तक को अनुवादक, प्रकाशक और इमाम अली अलैहिस्सलाम फाउंडेशन के निदेशक के हस्ताक्षरों के साथ उपस्थित मेहमानों में वितरित किया गया।

इस पहल ने प्रतिभागियों के बीच गर्मजोशी भरी बातचीत और विचार-विमर्श का अवसर प्रदान किया और इस सांस्कृतिक आयोजन को और अधिक ऊर्जावान बना दिया।

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन ख़त्तात ने कहा: अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा (अ) को लोगों को अंधकार, बहुदेववाद और मूर्तिपूजा से बचाने और उन्हें प्रकाश की ओर मार्गदर्शन करने का कार्य सौंपा, और एक अन्य जिम्मेदारी थी "व ज़क्किरहुम बे अय्यामिल्लाह।" इसका मतलब यह है कि पैगंबर मूसा (अ) का यह कर्तव्य था कि वे लोगों को अल्लाह के दिनों की याद दिलाएं।

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन अब्दुल अमीर ख़त्तात ने अल्लाह के दिनों और भोर पर चर्चा करते हुए कहा: अल्लाह तआला ने पैगंबर मूसा (अ) के लिए दो ज़िम्मेदारियाँ बताई हैं। इस आयत में उन पर... पहली जिम्मेदारी इस प्रकार बताई गई है: "और हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ भेजा, ताकि वह तुम्हारी क़ौम को अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाए।" अर्थात्, पैगम्बर मूसा (अ) को आदेश दिया गया था कि वह अपनी क़ौम को अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाए। यह वह मिशन है जो सभी पैगम्बरों के लिए स्पष्ट और सामान्य है।

उन्होंने कहा: दूसरी जिम्मेदारी है "व ज़क्किरहुम बे अय्यामिल्लाह", जिसका अर्थ है कि लोगों को अल्लाह के दिनों की याद दिलाना पैगम्बर मूसा (अ) का कर्तव्य है। इसका अर्थ यह है कि पैगम्बर मूसा (अ) को लोगों को अल्लाह के दिनों की याद दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जो उसकी शक्ति, दया और न्याय की अभिव्यक्तियाँ हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन ख़त्तात ने मानवीय स्थिति को विस्मृति और लापरवाही बताया और कहा: अगर हम चाहते हैं कि कोई चीज़ हमारे दिल और दिमाग में बनी रहे तो हमें उस पर लगातार ध्यान देना चाहिए। यदि इसके संरक्षण और स्मरण पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह भुला दिया जाएगा। इसी प्रकार दुश्मन जल्लाद और शहीद का स्थान भी बदलना चाहता है, इसलिए हमें दुश्मन की चालों से सावधान रहने की जरूरत है।

इस्लामी मानविकी पर चर्चा के लिए तेहरान में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई, जिसमें देश के विभिन्न धार्मिक और शैक्षणिक नेताओं ने भाग लिया।

इस्लामी मानविकी पर विचार-विमर्श के लिए तेहरान में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई, जिसमें देश के विभिन्न धार्मिक और शैक्षणिक नेताओं ने भाग लिया। यह बैठक हौज़ा इल्मिया के इस्लामिक ह्यूमैनिटीज लीडरशिप इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित की गई थी और इसका उद्देश्य इस्लामी सिद्धांतों के प्रकाश में मानविकी में बदलाव के तरीके खोजना था।

बैठक की अध्यक्षता हौज़ा ए इल्मिया और इस्लामिक ह्यूमैनिटीज के नीति-निर्माण संस्थान के प्रमुख आयतुल्लाह अली रजा आराफी ने की। प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित मानवता में परिवर्तन लाना देश के सामने सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है।

आयतुल्लाह आरफ़ी ने कहा कि इस कार्य का उद्देश्य इस्लामी संस्थाओं और सरकारी क्षेत्रों के बीच सामंजस्य पैदा करना है ताकि शासन प्रणाली की समस्याओं का समाधान किया जा सके। उन्होंने कहा कि हमें वर्तमान युग की समस्याओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ऐसे कदम उठाने चाहिए जिनसे देश को व्यावहारिक रूप से लाभ मिल सके।

उन्होंने कहा कि इस्लामी मानवता के क्षेत्र में अलग-अलग दृष्टिकोण हैं, लेकिन इमाम खुमैनी (र) और इमाम खामेनेई के विचार हमारे मार्गदर्शन के मूल सिद्धांत होने चाहिए। इसके अलावा, अल्लामा तबातबाई, शहीद मुताहरी, अल्लामा मिस्बाह और अन्य शैक्षणिक हस्तियों के विचारों से लाभ उठाना भी आवश्यक है।

आयतुल्लाह आरफ़ी ने आगे कहा कि मदरसों को इस्लामी मानवता के बुनियादी मुद्दों को समझना चाहिए और अपनी संरचना में सुधार करना चाहिए। उन्होंने उदाहरण दिया कि समकालीन न्यायशास्त्र विभाग की स्थापना इसी उद्देश्य से की गई है ताकि न्यायशास्त्र आधुनिक युग के प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम हो सके।

अंत में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें सिद्धांत-निर्माण और प्रणाली-निर्माण की ओर बढ़ना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि आर्टिफ़िशीयल इंटेलीजेंस (एआई) और मानविकी के एकीकरण पर महत्वपूर्ण प्रगति हो रही है, विशेष रूप से नूर रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की।

भारत के गणतंत्र दिवस, 26 जनवरी के अवसर पर मदरसा अल-काइम क़ुम अल-मुक़द्देसा में एक भव्य समारोह आयोजित किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में छात्रों ने भाग लिया और अपनी मातृभूमि के प्रति अपने प्रेम का इजहार किया। यह कार्यक्रम मगरिब की नमाज के बाद शाम 7 बजे से 9 बजे तक आयोजित किया गया।

26 जनवरी के अवसर पर मदरसा अल-काइम क़ुम अल-मुक़द्देसा में एक भव्य समारोह आयोजित किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में छात्रों ने भाग लिया और अपनी मातृभूमि के प्रति अपने प्रेम का इजहार किया। यह कार्यक्रम मगरिब की नमाज के बाद शाम 7 बजे से 9 बजे तक आयोजित किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत मौलाना फैजुल हसन द्वारा पवित्र कुरान के पाठ के साथ हुई, जिसके बाद राष्ट्रगान गाया गया। इसके बाद हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सैयद मुहम्मद जौन आबिदीन ने अपने संबोधन में भारत के इतिहास में मुस्लिम शासकों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत ने मुस्लिम शासकों के काल में महत्वपूर्ण प्रगति की, जिसका उदाहरण ताजमहल और दिल्ली में जामा मस्जिद जैसी इमारतें हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अंग्रेजों ने भारत को सिर्फ लूटा और पिछड़ा बनाया।

कार्यक्रम का संचालन हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिजवी ने किया। इस अवसर पर बोलते हुए हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना अली अब्बास खान ने भारत की आजादी में मुसलमानों की भूमिका और बलिदान पर विस्तृत चर्चा की।

मौलाना मुहम्मद काशिफ ने "जिंदा बद ऐ वतन" शीर्षक से एक सुंदर कविता प्रस्तुत की, जबकि मौलाना इरफान आलम पुरी और मौलाना नदीम सिरसिवी ने अपनी कविताओं के माध्यम से गणतंत्र दिवस के अवसर पर मातृभूमि के प्रति अपने प्रेम का इजहार किया।

यह कार्यक्रम हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मुशावरती काउंसिल (तशक्कुलहाए फरहांगी हिन्दुस्तान) द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें विद्यार्थियों का उत्साह एवं देशभक्ति झलकी।

ईरानी सेना के हवाई दस्ते के 100 हेलीकॉप्टरों के साथ "इक्तेदार" सैन्य अभ्यास, जिसमें कई नए हेलीकॉप्टरों को इस ताकत में शामिल किया गया, की अध्यक्षता मेजर जनरल क़ियॉमर्थ हैदरी, ईरानी सेना के थलसेना के कमांडर द्वारा की गई। यह अभ्यास सुरक्षा, हमलावर और गतिशील अभ्यासों के साथ-साथ एक साथ आयोजित किया गया था, और यह नफ़्त शहर क्षेत्र में हुआ।

इस अभ्यास के दौरान, किरमंशाह स्थित हवाई दस्ते के पहले बेस में 205, 206, 209 और 214 हेलीकॉप्टरों का ओवरहाल किया गया और इन्हें हवाई दस्ते की हेलीकॉप्टर बेड़े में शामिल किया गया। ये हेलीकॉप्टर पहले ऑपरेशनल सर्कल से बाहर हो गए थे क्योंकि उन्हें अपनी मरम्मत और पुर्जों की आपूर्ति की जरूरत थी।

मेहदी खलजी, जो एक ईरान-विरोधी विश्लेषक हैं, ने बीबीसी के एंकर के इस सवाल के जवाब में कहा कि "क्या आपको लगता है कि ये नीतियां एक निश्चित समय के भीतर इस्लामी गणराज्य की रीढ़ तोड़ सकती हैं?"
उन्होंने कहा: "मुझे नहीं लगता कि ईरान का कमजोर होना इस्लामी गणराज्य के पतन का कारण बनेगा। केवल आर्थिक दबाव या अंतरराष्ट्रीय अलगाव किसी भी सरकार को गिराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।"

उन्होंने आगे कहा: "हम चाहते हैं कि ईरान की सरकार गिर जाए और एक गैर-धार्मिक शासन स्थापित हो, लेकिन सच्चाई यह है कि ईरान के विरोधी भ्रमित है और ईरानी समाज को समझने में पूरी तरह से असमर्थ है। यहां तक कि अधिकतम दबाव की नीतियां भी इस्लामी गणराज्य को बदलने में सक्षम नहीं हो सकतीं।"

 

अगर अबू तालिब और उनका बेटा इमाम अली अ.स. न होते तो दीन का नाम व निशान तक न होता, अबू तालिब ने मक्के में आपका भरपूर सहयोग दिया और आपके बेटे ने मदीने में भरपूर योगदान किया।

हज़रत अबूतालिब अ.स. जिनको सैय्यदुल् बतहा भी कहा जाता था, आपकी वफ़ात पैग़म्बरे इस्लाम की मदीने की ओर हिजरत से पहले 10 बेसत को हुई, एक रिवायत के अनुसार आपकी वफ़ात के समय आपकी उम्र 80 वर्ष थी। (मुंतख़बुत् तवारीख़, पेज 43)

आपका नाम इमरान और वालिद का नाम अब्दुल मुत्तलिब था। (बिहारुल अनवार, जिल्द 35, पेज 138, उम्दतुत्तालिब, पेज 21)

आपका ईमान

अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि, शिया हज़रत अबू तालिब अ.स. के इस्लाम लाने और अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखने के सिलसिले में एकमत हैं, उनका मानना है कि आपने कभी भी बुतों की इबादत नहीं की, आप का इस्लाम और ईमान शियों में इस हद तक मशहूर है कि शिया उलेमा ने इस बारे में कई किताबें लिखीं हैं।

शेख़ सदूक़ फ़रमाते हैं कि, हदीस में यह तक मौजूद है कि हज़रत अबदुल मुत्तलिब अल्लाह की ओर से हुज्जत और हज़रत अबू तालिब आप के उत्तराधिकारी थे, हदीस के अनुसार हज़रत मूसा का असा और हज़रत सुलैमान की अंगूठी और भी नबियों की बहुत सी वस्तुएँ अबदुल मुत्तलिब द्वारा आप तक पहुँची जिन्हें आप ने आख़िरी नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स.अ. के हवाले किया। ( काफ़ी, जिल्द 1, पेज 445, कमालुद्दीन, पेज 665, अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 394)

इब्ने असीर जज़री शाफ़ेई ने अपनी किताब जामेउल उसूल में लिखा कि, पैग़म्बर के सब चचाओं में केवल हमज़ा, अब्बास और अबू तालिब ईमान लाए थे।

अल्लामा तबरिसी लिखते हैं कि, अहले बैत अ.स. हज़रत अबू तालिब के ईमान पर एकमत (इजमा) हैं, और अहले बैत अ.स. का एकमत होना हुज्जत है क्योंकि वह सक़लैन में से एक हैं जिन से पैग़म्बर ने जुड़े रहने का हुक्म हदीसे सक़लैन में दिया है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 35, पेज 138-139, तफ़सीरे मजमउल बयान, जिल्द 4, पेज 31, अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 385)

हज़रत अबू तालिब के ईमान के बारे में बहुत सी किताबें लिखी गईं हैं जिनमें से पहली किताब 630 हिजरी में लिखी गई, और उस समय से अब तक आप के ईमान और दीन की ख़िदमत के हौसले के विषय पर विभिन्न भाषाओं में अनेक किताबें लिखी जा चुकी हैं। (अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 330-409, क़लाएदुन नुहूर, पेज 284)

इमाम रज़ा अ.स. अब्दुल अज़ीम हसनी के जवाब में फ़रमाते हैं कि, अगर तुम्हें हज़रत अबू तालिब के ईमान में शक है तो तुम्हारा ठिकाना जहन्नुम है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 7, पेज 395, अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 395, ईमाने अबू तालिब, अल्लामा अमीनी, पेज 90)

पैग़म्बर के समर्थन में हज़रत अबू तालिब द्वारा कहे जाने वाले शेर, हज़रत अबू तालिब की वफ़ात के समय इमाम अली अ.स. द्वारा कहे जाने वाले शेर, क़ुरैश का मस्जिदुल हराम में पैग़म्बर की ओर बुरी नज़र डालते समय अबू तालिब द्वारा कहे जाने वाले शेर, सूखा पड़ने के समय में अल्लाह की बारगाह में दुआ में प्रयोग किए गए शब्द, यह सभी इस बात को दर्शाते हैं कि आप ईमान की मज़बूती में उस जगह पहुँचे हुए थे कि दूसरा कोई उस तक नहीं पहुँच सकता।

शायद यही कारण है कि इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि, अल्लाह की क़सम, मेरे वालिद, मेरे जद, हाशिम, और अब्दे मनाफ़ ने कभी भी बुत की पूजा नहीं की, पूछा गया फिर किसकी इबादत करते थे?

आप ने फ़रमाया वह काबा की ओर नमाज़ पढ़ते थे और हज़रत इब्राहीम के दीन पर थे। ( कमालुद्दीन, पेज 175, अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 387, वक़ाएउल अय्याम, जिल्द 1, पेज 290—06)

अहले सुन्नत के मशहूर आलिम इब्ने अबिल हदीद का कहना है कि, अगर अबू तालिब और उनका बेटा (इमाम अली अ.स.) न होते तो दीन का नाम व निशान तक न होता, अबू तालिब ने मक्के में आपका भरपूर सहयोग दिया और आपके बेटे ने मदीने में भरपूर योगदान किया। (शरहे नह्जुल-बलाग़ह, इब्ने अबिल हदीद, जिल्द 14, पेज 74-80)

आप की वफ़ात पर पैग़म्बर की प्रतिक्रिया

जिस समय इमाम अली अ.स. ने हज़रत अबू तालिब की वफ़ात की ख़बर पैग़म्बर को दी आप बहुत उदास हुए और फ़रमाया ऐ अली जाओ और ग़ुस्ल, कफ़न और हुनूत (सजदे में बदन के जिन हिस्सों पर काफ़ूर का लगाना वाजिब है) करो, फ़िर मुझे ख़बर दो, जब इमाम अली अ.स. ने जब सभी अरकान अदा कर दिए और अपने वालिद के जनाज़े को तैयार कर दिया, फ़िर पैग़म्बर आप के जनाज़े पर आए,

जैसे ही आप उदासी भरी नज़र से हज़रत अबू तालिब के जनाज़े को देखा और फ़रमाया, ऐ चचा जान आप ने मुझ पर बहुत एहसान किए, अल्लाह आपको नेक सिला दे, ऐ चचा आप ही ने बचपन में मेरी सरपरस्ती की और मेरी ज़िम्मेदारी संभाली और पूरी दयालुता से मेरी मदद की और मेरा साथ दिया। ( बिहारुल अनवार, जिल्द 22, पेज 261, अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 373-386)

हज़रत अबू तालिब की वफ़ात के बाद जिबरील अल्लाह की ओर से ख़बर लेकर आए कि, आपकी सरपरस्ती और देखभाल करने वाला इस दुनिया से चला गया अब आप मदीने की ओर हिजरत कीजिए। (उसूले काफ़ी, जिल्द 1, पेज 440, बिहारुल अनवार, जिल्द 19, पेज 14)

इमाम सादिक़ अ.स. अपने वालिद उन्होने अपने वालिद इसी तरह इमाम हुसैन अ.स. से नक़्ल है कि, इमाम अली अ.स. कुछ लोगों के साथ मस्जिद में बैठे हुए थे, एक शख़्स ने खड़े हो कर पूछा, ऐ अमीरुल मोमेनीन अ.स. आप इस महत्वपूर्ण और महान जगह पर हैं लेकिन आपके वालिद (मआज़ अल्लाह) जहन्नुम की आग में हैं।

इमाम अली अ.स ने फ़रमाया, ख़ामोश.... अल्लाह तेरा बुरा करे, उस ख़ुदा की क़सम जिस ने मोहम्मद (स.अ.) को सच्चा नबी बना कर भेजा, अगर मेरे वालिद इस धरती के सभी पापियों और गुनहगारों के लिए शफ़ाअत कर दें तो अल्लाह क़ुबूल कर लेगा, क्या जन्नत और जहन्नुम का मालिक किसी जहन्नमी के बेटे को बनाया जा सकता है?

उस ख़ुदा की क़सम जिस ने मोहम्मद (स.अ.) को सच्चा नबी बना कर भेजा, पंजतन अ.स. के नूर के अलावा क़यामत में सबका नूर अबू तालिब अ.स. के नूर के सामने फीका पड़ जाएगा, जान लो अबू तालिब का नूर हम अहले बैत के नूर से है जिसको अल्लाह ने हज़रत आदम अ.स. के नूर से दो हजार वर्ष पहले पैदा किया है। (कन्ज़ुल फ़वाएद, पेज 80, एहतेजाज, जिल्द 1, पेज 341)

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों में से एक हैं। वह हिजरी क़मरी की दूसरी सदी की महान हस्ती हैं। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने बहुत से राजनीतिक और सामाजिक कार्यों को स्पष्ट करने की बुनियाद रखी और लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया। 

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम के सुपुत्र हैं और उनका जन्म 128 हिजरी क़मरी में हुआ था और उनकी प्रसिद्ध उपाधि अब्दुस्सालेह और बाबुल हवाएज है और वह सातवें इमाम हैं।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला और 35 वर्षों तक उनकी इमामत रही। 

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की इमामत के दौरान कई अत्याचारी अब्बासी ख़लीफ़ाओं की सरकारें रहीं। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को अब्बासी ख़लीफ़ा ने मदीना से इराक़ बुला लिया और लोगों को जागरुक करने वाली और न्यायप्रेमी गतिविधियों के कारण कई वर्षों तक इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को जेल में रखा गया।

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के सबसे प्रसिद्ध सुपुत्र का नाम इमाम अली बिन मूसा रज़ा है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का पवित्र रौज़ा ईरान के मशहद नगर में स्थित है जबकि उनकी बहन हज़रत फ़ातेमा मासूमा सलामुल्लाह अलैहा का पवित्र रौज़ा ईरान के क़ुम नगर में स्थित है।

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने तौहीद, नबुअत, इमामत, माअद अर्थात क़यामत, धार्मिक और नैतिक विषयों के बारे में छोटी- बड़ी हज़ारों हदीसों को बयान किया है। इसी प्रकार इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने विभिन्न क्षेत्रों में बहुत से मेधावी, प्रतिभाशाली और होनहार शियों की प्रशिक्षा की है।

इसी प्रकार इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने यहूदी और ईसाई विद्वानों से विभिन्न मुनाज़रे किये हैं जिनका वर्णन और उल्लेख इतिहास और हदीस की किताबों में किया गया है।

"मुस्नद अलइमाम अलकाज़िम"नाम की एक किताब है। इस किताब में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की तीन हज़ार से अधिक हदीसों को जमा किया गया है जिनमें से कुछ को इमाम के अनुयाइयों ने नक़्ल व बयान किया है।

लोगों को जागरुक बनाने वाली सामाजिक गतिविधियों के कारण इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को कई बार जेल में बंद किया गया और अंत में अब्बासी ख़लीफ़ा हारून के आदेश से इमाम को ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।

शिया और सुन्नी किताबों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम अपने समय में ज्ञान, उपासना, सहनशीलता और दान में अपनी मिसाल ख़ुद थे यानी कोई भी उनके समान नहीं था। दूसरे शब्दों में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम सद्गुणों की प्रतिमूर्ति थे।

अहले सुन्नत की महान हस्तियां एक धार्मिक विद्वान के रूप में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का सम्मान करते थे और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम करने वालों की भांति उनकी पावन समाधि की ज़ियारत करने के लिए जाते थे।

सातवें इमाम, इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम और नवें इमाम, इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का पवित्र रौज़ा इराक़ के बग़दाद नगर के उत्तर क़ाज़ेमैन नगर में स्थित है और हज़ारों लोग उनकी ज़ियारत के लिए जाते हैं।

यहां हम इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के कुछ कथनों का वर्णन कर रहे हैं।

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है कि ज़मीन पर अल्लाह के कुछ बंदे हैं जो लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने का प्रयास करते हैं। वे प्रलय के दिन उसके अज़ाब से सुरक्षित हैं।

سَمِعتُ أبَا الحَسَن عليه السلام يَقُول: اِنَّ لِلّهِ عِبادا فىِ الأَرْضِ يَسْعَوْنَ فىحَوائِجِ النّاسِ هـُمُ الاْمِنُونَ يـَوْمَ القِيـامَةِ. [وسائل الشيعه، ج 11 ص 582.]

 

 मोअम्मर बिन ख़ल्लाद कहता है कि मैंने सुना है कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम फ़रमाया कि मैंने लोगों के ज्ञान को चार चीज़ों में पाया। पहला यह कि तुम अपने पालनहार को पहचानो, दूसरे तुम यह जानो कि उसने तुम्हारे साथ और तुम्हारे लिए क्या किया, तीसरे यह जानो कि वह तुमसे क्या चाहता है और चौथे यह जानो कि कौन सी चीज़ तुम्हें तुम्हारे धर्म से बाहर कर रही है।

عَـنِ الكاظِـم عليه السلام: وَجَدْتُ عِلْمَ النّاسِ فى اَرْبَـعٍ: اَوَّلُــها اَنْ تَعْرِفَ رَبَّكَ، وَالثّانِيَةُ اَنْ تَعْرِفَ ما صَنَعَ بِكَ، وَالثّـالِثَةُ اَنْ تَعْـرِفَ مـا اَرادَ مِنْكَ، وَالرّابِعَةُ اَنْ تَعْرِفَ ما يُخْرِجُكَ مِنْ دينِكَ. [كشف الغمّه، ج 3 ص 45.]

अल्लाह के धर्म की पहचान

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं अल्लाह के धर्म को समझो और उसमें चिंतन- मनन करो। बेशक धर्म की पहचान अंतर्दृष्टि की कुंजी और कमाले इबादत है।

عَن مُوسَى بنِ جَعفَر عليه السلام: تَفَـقَّـهُوا فى ديـنِ اللّه ِ، فَإنَّ الْفِقْهَ مِفْتاحُ الْبَصيرَةِ وَتَمامُ الْعِبادَةِ. [مسند الامام الكاظم عليه السلام، ج 3 ص 249.]

 

 

 

 

 

 

 

दुनिया के बारे में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं

 

दुनिया समुद्र के पानी की भांति है। प्यासा जितना भी उससे पीये प्यास बढ़ती जाती है यहां तक कि वह प्यासे को मार डालती है। 

 

مِن وَصِيَّةِ مُوسَى بنِ جَعفَر عليه السلام: مَثَلُ الدُّنْيا مَثَلُ ماءِ الْبَحْرِ كُلَّما شَرِبَ مِنْهُ الْعَطْشـانُ ازْدادَ عَطَشا حَتّى يَقْتـُلَهُ. [بحارالانوار، ج 75 ص 311.]

 

 

 

 

सब्र व धैर्य के महत्व के बारे में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं" धैर्य करने वाले के लिए एक मुसीबत है जबकि बेसब्रे के लिए दो है।

 قالَ الكاظِم عليه السلام: اَلْمُصيبَةُ لِلصّابِرِ واحِدَةٌ وَلِلْجـازِعِ اثنـَتـانِ. [بحارالانوار، ج 75، ص 326.]

 

  तन्हाई में अल्लाह से शर्म करना

 अकेले व तन्हाई में अल्लाह से शर्म करने के बारे में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं तन्हाई में अल्लाह से उस तरह शर्म करो जिस तरह लोगों के सामने शर्म करते हो।

 عَنِ الكاظِم عليه السلام: اِسْتَحْيـُوا مِنَ اللّه ِ فى سـَرائِـرِكُمْ كَما تَسْتَحْيُونَ مِنَ النّاسِ فى عَلانِيَتِكُمْ. [تحف العقو، ص 394]

 

  

इंसान की अक़्ल आंतरिक हुज्जत है। इस बारे में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने हेशाम बिन हेकम से फ़रमाया। अल्लाह की लोगों पर दो हुज्जते हैं एक खुली व स्पष्ट हुज्जत और दूसरी पोशिदा व निहित हुज्जत किन्तु खुली हुज्जत पैग़म्बर और रसूल हैं जबकि बुद्धि आंतरिक व निहित हुज्जत है। MM  

 

قالَ مُوسَى بنُ جَعفَر عليه السلام: اِنَّ لِلّهِ عَلَى النّاسِ حُجَّتَيْنِ حُجـَّةً ظاهِـرَةً وَحُجـَّةً باطِنـَةً، فَاَمَّا الَّظاهِرَةُ فَالرُّسُلُ وَالأَنْبِياءُ وَالأَئِمَّةُ، وَاَمـَّا الْبـاطِنـَةُ فَالْعـُقـُولُ. [اصول كافى ج 1 ص 16]

 

 

 

इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) का किरदार न केवल मुसलमानों बल्कि पूरी मानवता के लिए आदर्श है

इबादत और अल्लाह से लगाव:

इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) अपनी इबादत और अल्लाह से गहरे रिश्ते के लिए मशहूर थे।

इल्म

वे बहुत बड़े आलिम (ज्ञानी) थे और इस्लामी शिक्षा और हदीस (पैगंबर के कथन) के बड़े जानकार थे। उनके इल्म से सबको फायदा हुआ।

मेहरबानी और दूसरों की मदद

इमाम (अ.स.) हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते थे। वे बहुत दयालु और उदार थे।

सब्र:

इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) ने हमेशा गुस्से पर काबू रखा और सख़्त हालात में भी धैर्य नहीं खोया।

सच और न्याय:

उन्होंने हमेशा सच का साथ दिया और लोगों को भी सच्चाई और इंसाफ सिखाया।

 शहादत

इमाम (अ.स.) ने धर्म और सच की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी और इस्लाम को मजबूत किया।

 

 

हालिया कुछ हफ्तों में, खासकर 60-दिन की युद्धविराम अवधि के समाप्ति के निकट, इस्राइल और हिज़बुल्लाह के बीच उत्तरी फ़िलिस्तीन और लेबनान के मोर्चे पर संभावित टकराव और इसके परिणामों पर कई विश्लेषण और लेख प्रकाशित हुए हैं।

कुछ विश्लेषणों में हिज़बुल्लाह की कमजोरी और पीछे हटने की संभावना का ज़िक्र किया गया है, खासकर इसके शीर्ष नेताओं और कमांडरों, विशेष रूप से शहीद सैयद हसन नसरल्लाह, की हत्या के बाद।

यहां तक कि कुछ प्रमुख और अनुभवी विश्लेषकों ने यह दावा किया है कि हिज़बुल्लाह के पास आगे की रणनीति नहीं है। उनका कहना है कि भविष्य में, खासकर सीरिया में बदलावों और दमिश्क के पतन के बाद, हिज़बुल्लाह और अधिक पीछे हट सकता है।

वे इस संदर्भ में हिज़बुल्लाह के 'सुलेमान फ्रांजिएह' को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने से पीछे हटने और 'जोसेफ औन', लेबनानी सेना के कमांडर, जो सऊदी अरब और अमेरिका द्वारा समर्थित हैं, को स्वीकार करने का उदाहरण देते हैं।