
رضوی
20 लाख से अधिक हाजी अरफ़ात की ओर रवाना
हज के लिए मक्का पहुंच चुके हाजी बुधवार से हज के संस्कार शुरू कर रहे हैं। बुधवार को हाजियों की कुछ संख्या मक्के से अरफ़ात के मौदान की ओर जाएगी।
बीस लाख से अधिक हाजियों से पूरा मक्का शहर जगमगा रहा है और हर ओर लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक की आवाज़ गूंज रही है।
अरफ़ात से हाजी मुज़दलफ़ा और मशअर के लिए रवाना होंगे।
हाजियों की कुछ संख्या अरफ़ात के पहाड़ की ओर जाएगी जो मक्का से बारह किलोमीटर की दूरी पर है।
हाजी इन संस्कारों के बाद मेना जाएंगे और रमिए जमरात अर्थात शैतानों को कंकरियां मारने का संस्कार अदा करेंगे और क़ुरबानी करेंगे तथा सिर मुंडवाएंगे जिसके बाद मक्का वापस चले जाएंगे जहां तवाफ़ और सई करेंगे।
इस साल हाजियों की संख्या 26 लाख तक पहुंचने की आशा है।
दुनिया के साथ सार्थक सहयोग से ही राष्ट्रीय विकास मुमकिन है, रूहानी
राष्ट्रपति रूहानी ने कहा है कि इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था देश की स्वाधीनता की क़ीमत चुका रही है लेकिन दुश्मन की ओर से अलग थलग करने की कोशिश को कभी क़ुबूल नहीं करेगी।
राष्ट्रपति कार्यालय से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई की ओर से डॉक्टर हसन रूहानी की राष्ट्रपति के रूप में गुरुवार की नियुक्ति के बाद, राष्ट्रपति रूहानी ने कहा कि दुश्मनों की वैश्विक व्यवस्था में सक्रिय रूप से भागीदारी से रोकने की इच्छा के सामने नहीं ईरान नहीं झुकेगा। उन्होंने इसी प्रकार कहा कि मानव अनुभव से प्राप्त उपलब्धियों व बदलाव से दूर रखने की दुश्मन की इच्छा को भी ईरान क़ुबूल नहीं करेगा।
ईरानी राष्ट्रपति ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि परमाणु समझौता जेसीपीओए सार्थक सहयोग के लिए ईरान की सद्भावना को दर्शाता है और यह समझौता अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी रहा है, कहा कि अब ईरान विगत की तुलना में अधिक आत्म विश्वास व राष्ट्र के समर्थन से संविधान के अनुसार दुनिया के साथ सार्थक व प्रभावी सहयोग करेगा।
उन्होंने इस बात की ओर इशारा करते हुए कि इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था जनमत पर निर्भर व्यवस्था है, कहा कि जनता की भागीदारी इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को बंद गली में जाने से बचाती है।
ईरानी राष्ट्रपति ने बारहवीं सरकार के आर्थिक कार्यक्रम को व्यवस्था की मूल नीतियों व प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था के अनुरूप बताया। उन्होंने कहा कि ईरान सरकार देश में आर्थिक क्रान्ति लाना चाहती है और आज की दुनिया में देश एक दूसरे से जुड़े व पड़ोस की हैसियत रखते हैं कि ऐसे हालात में दुनिया के साथ सार्थक सहयोग के बिना राष्ट्रीय विकास मुमकिन नहीं है।
ग़ौरतलब है कि गुरुवार की सुबह तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में राष्ट्रपति की नियुक्ति का समारोह आयोजित हुआ जिसमें वरिष्ठ नेता ने जनादेश को लागू करते हुए डॉक्टर हसन रूहानी को राष्ट्रपति के लिए नियुक्त किया। (MAQ/N)
वरिष्ठ नेता ने की हसन रूहानी के राष्ट्रपति पद की पुष्टि
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने आज गुरूवार को डा. हसन रूहानी की देश के नए राष्ट्रपति के रूप में पुष्टि की।
गुरूवार 3 अगस्त को तेहरान में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने हसन रूहानी को मिले मतों को लागू करते हुए हसन रूहानी के ईरान के राष्ट्रपति के रूप में पुष्टि की है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने राष्ट्रपति चुनाव में डा. हसन रूहानी द्वारा भारी बहुमत से चनुाव जीतने को ईरान में लोकतंत्र की सुदृढ़ता बताते हुए प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था कार्यक्रम को लागू करने पर बल दिया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने राष्ट्रपति हसन रूहानी से कहा कि वे न्याय की स्थापित करने, वंचितों के समर्थन, और एकता तथा राष्ट्रीय सम्मान को सुदृढ करने के प्रयास करें।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान 110 वें अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के बाद राष्ट्रपति की नियुक्ति का अधिकार वरिष्ठ नेता का दायित्व है। ईरान में राष्ट्रपति पद का काल 4 वर्ष का है
ज्ञात रहे कि डा. हसन रूहानी ने 19 मई 2017 के 12वें राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत प्राप्त किया था। इस प्रकार वे दूसरी बार ईरान के राष्ट्रपति पद पर आसीन हो रहे हैं।
फारसी सीखें, 24वां पाठ
मुहम्मद लोरिस्तान प्रांत के एक छात्र से परिचित हुआ और उसने लोरी भाषा और लोरिस्तान प्रांत के बारे में कुछ नई बातें सीखीं। वह मसऊद से बात करता है जो हंसमुख स्वभाव का एक लम्बा युवा है। उसके चेहरे से ही स्नेह टपकता है और वह मनमोहर लोरी लहजे में अपने प्रांत के बारे में इस प्रकार उत्साह के साथ बात करता है कि मानो उसी समय उड़ कर वहां पहुंच जाना चाहता हो। मसऊद द्वारा की जाने वाली अत्यधिक तारीफ़ से मुहम्मद के मन में इस बात के लिए रुचि पैदा हो गई कि निकट से लोरिस्तान के लोगों व नगरों को देखा जाए। मसऊद, ख़ुर्रमाबाद नगर और उसके ऐतिहासिक अवशेषों के बारे में मुहम्मद से बात करता है और बताता है कि इस नगर के फ़लकुल अफ़लाक दुर्ग को न केवल नगर बल्कि प्रांत का भी प्रतीक समझा जा सकता है। लगभग डेढ़ हज़ार वर्ष पुराना यह दुर्ग, नगर के केंद्र में एक टीले पर स्थित है और इसमें अनेक कहानियां व रहस्य दबे हुए हैं। प्रिय श्रोताओ पहले आजके पाठ में आने वाले कुछ महत्वपूर्ण शब्दों पर ध्यान दीजिए उसके बाद हम आपको मुहम्मद और मसऊद की बात-चीत सुनवाएंगे।
ترجمه و تکرار
صحبت बात या वार्ता
آن پیداست वह स्पष्ट है
خرم آبادख़ुर्रमाबाद नगर
قدیمی प्राचीन
آثارअवशेष
تاریخی ऐतिहासिक
کدامकौन, क्या
قلعهदुर्ग
مربوط بهसे संबंधित
چه زمانی किस समय
پیش ازसे पहले
اسلامइस्लाम
دورهकाल, चरण
ساسانیसासानी
آن ساخته شده استवह निर्मित हुआ है
بارهاअनेक बार
آن مرمت شده استउसकी मरम्मत हुई है
کاربرد उपयोगिता
بالایपर, ऊपर
تپهटीला
به همین خاطرइसी कारण
من فکر می کنمमैं समझता हूं
نظامیसैनिक
حکومتیसरकारी
اکنونइस समय
استفاده می شودप्रयोग होता है
موزهसंग्रहालय
محلस्थान
بازدیدनिरीक्षण
تفریحमनोरंजन
گردشگرपर्यटक, सैलानी
خارجیविदेशी
مکانهایस्थान (अनेकवचन)
جالبरोचक
دیدنیदर्शनीय
دیگرअन्य
استانप्रांत
وجود دارد मौजूद हैं
آبشار झरना
جنگلवन
رودخانهनदी
زیادیअधिक
طبیعتप्रकृति
بسیارबहुत अधिक
من دوست دارمमुझे पसंद है
تو می آیی तुम चलोगे
تو باید بیاییतुम्हें आना ही होगा
با ماहमारे साथ
کوه بلندऊंचा पर्वत
زیباसुंदर
پرآبपानी से भरा हुआ
جنگلवन, जंगल
سرسبزहरा भरा
نزدیک निकट
चलिए अब मुहम्मद और मसऊद के पास चलते हैं, वे रेस्टोरेंट में बैठ कर बातें कर रहे हैं।
ترجمه و تکرار دو بار
محمد - از صحبت هایت پیداست که خرم آباد ، شهری قدیمی است . آثار تاریخی این شهر کدامند؟
मुहम्मदः तुम्हारी बातों से स्पष्ट है कि ख़ुर्रमाबाद एक प्राचीन नगर है, इस नगर के ऐतिहासिक अवशेष क्या हैं?
مسعود - شهر خرم آباد را با قلعه تاریخی فلک الافلاک می شناسند .
मसऊदः ख़ुर्रमाबाद नगर को फ़लकुल अफ़लाक के ऐतिहासिक दुर्ग से पहचाना जाता है।
محمد - این قلعه مربوط به چه زمانی است ؟
मुहम्मदः यह दुर्ग, किस समय से संबंधित है?
مسعود - این قلعه پیش از اسلام ، در دوره ساسانی ساخته شده و بارها مرمت شده است
मसऊदः यह दुर्ग इस्लाम से पूर्व, सासानी काल में बनायागया और कई बार इसकी मरम्मत हुई है।
محمد - قلعه فلک الافلاک چه کاربردی داشته است ؟
मुहम्मदः फ़लकुल अफ़लाक दुर्ग की क्या उपयोगिता थी?
مسعود - این قلعه بالای یک تپه ساخته شده است ، به همین خاطر فکر می کنم کاربرد نظامی و حکومتی داشته است .
मसऊदः यह दुर्ग एक टीले पर बना हुआ है, इसी कारण मुझे लगता है कि इसकी सैनिक व सरकारी उपयोगिता रही होगी।
محمد - اکنون از این قلعه چه استفاده ای می شود ؟
मुहम्मदः इस समय इस दुर्ग को किस प्रकार प्रयोग किया जाता है?
مسعود - اکنون قلعه فلک الافلاک ، موزه و محل تفریح و بازدید گردشگران ایرانی و خارجی است .
मसऊदः इस समय फ़लकुल अफ़लाक दुर्ग, संग्रहालय, मनोरंजन स्थल तथा ईरानी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
محمد - چه مکانهای جالب و دیدنی دیگری در استان لرستان وجود دارد ؟
मुहम्मदः लोरिस्तान प्रांत में और कौन से रोचक व दर्शनीय स्थान हैं?
مسعود - آبشارها ، جنگل ها و رودخانه های زیادی در لرستان هست .
मसऊदः लोरिस्तान में बड़ी संख्या में झरने, जंगल और नदियां मौजूद हैं।
محمد - من طبیعت ایران را بسیار دوست دارم .
मुहम्मदः मुझे ईरान की प्रकृति बहुत पसंद है।
مسعود - پس باید با ما به لرستان بیایی تا کوههای بلند ، آبشارهای زیبا ، رودخانه های پرآب و جنگل های سرسبز را از نزدیک ببینی
मसऊदः तो फिर तुम्हें हमारे साथ लोरिस्तान आना होगा ताकि ऊंचे पर्वतों, सुंदर झरनों, भरी नदियों और हर भरे जंगलों को निकट से देख सको
आइये एक बार फिर मुहम्मद और मसऊद की बातचीत सुनते हैं किंतु इस बार बिना अनुवाद के।
بدون ترجمه و تکرار یک بار. صدای ظروف در رستوران محمد - از صحبت هایت پیداست که خرم آباد ، شهری قدیمی است . آثار تاریخی این شهر کدامند؟ مسعود - شهر خرم آباد را با قلعه تاریخی فلک الافلاک می شناسند . محمد - این قلعه مربوط به چه زمانی است ؟ مسعود - این قلعه پیش از اسلام ، در دوره ساسانی ساخته شده و بارها مرمت شده است . محمد - قلعه فلک الافلاک چه کاربردی داشته است ؟ مسعود - این قلعه بالای یک تپه ساخته شده است ، به همین خاطر فکر می کنم کاربرد نظامی و حکومتی داشته است . محمد - اکنون از این قلعه چه استفاده ای می شود ؟ مسعود - اکنون قلعه فلک الافلاک ، موزه و محل تفریح و بازدید گردشگران ایرانی و خارجی است محمد - چه مکانهای جالب و دیدنی دیگری در استان لرستان وجود دارد ؟ مسعود - آبشارها ، جنگل ها و رودخانه های زیادی در لرستان هست . محمد - من طبیعت ایران را بسیار دوست دارم . مسعود - پس باید با ما به لرستان بیایی تا کوههای بلند ، آبشارهای زیبا ، رودخانه های پرآب و جنگل های سرسبز را از نزدیک ببینی .
मुहम्मद ने मसऊद से लोरिस्तान प्रांत के झरनों के बारे में पूछा। मसऊदने उसे नोजियान के झरने और इसी नाम के वन पर्यटन क्षेत्र के बारे में बताया। नोजियान झरना ख़ुर्रमाबाद के तीस किलो मीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है और ताफ़ नामक पर्वत से गिरता है। वहां एक अत्यंत सुंदर जंगल भी है और झरने के निकट मौजूद विभिन्न प्रकार के पेड़ों और वनस्पतियों ने इस क्षेत्र को अत्यंत दर्शनीय एवं मनमोहक बना दिया है। इसी झरने के निकट स्थित वार्क नामक झरना भी ईरान के सुंदरतम झरनों में से एक है। पतझड़ और शीत ऋतु में होने वाली अत्यधिक वर्षा के चलते लोरिस्तान प्रांत में अनेक झरने अस्तित्व में आ गए हैं। यही कारण है कि इस प्रांत की जलवायु संतुलित है और यहां कृषि एवं विशेष रूप से पशुपालन में काफ़ी प्रगति हुई है। इस प्रांत में बंजारों का एक गुट भी जीवन व्यतीत करता है। लोरिस्तान प्रांत के लोग अत्यंत सादे एवं अपनाइयत वाले हैं। मसऊद में भी ये विशेषताएं हैं। वह बहुत जल्दी मुहम्मद का मित्र बन गया और फिर उसने उसे अपने नगर आने का निमंत्रण दिया। उसकी बातों में इतनी निष्ठा थी कि मुहम्मद को उसका निमंत्रण स्वीकार ही करना पड़ा। मुहम्मद को इस बात की बहुत ख़ुशी है कि उसे मसऊद जैसा मित्र मिला। श्रोताओ कार्यक्रम आइये फ़ारसी सीखें का समय यहीं पर समाप्त होता है, अगले कार्यक्रम तक के लिए हमें अनुमति दीजिए।
इंडोनेशिया में मस्जिदों पर दाइश के साथ सहयोग करने का आरोप
अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी समाचार «abc» के अनुसार, इस समूह के अनुसार, इंडोनेशिया के 7 प्रांतों की 16 मस्जिदें के आधिकारिक तौर पर दाइश द्वारा समर्थन की पुष्टि की गई है और मस्जिदों के बारे में टीम की जांच जारी है ।
"ईधी भक्ती» (Adhe भक्ती), इस समूह के अध्यक्ष और विशेष रूप से आतंकवाद मुद्दों के विश्लेषक ने कहाः कि कुछ इस्लामी स्कूलों और कुरानी सत्र भी अतिवादी विचारों को बढ़ावा देने के लिए स्थानों के रूप में उपयोग किऐ जाते हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे समूह ने दाइश के समर्थन में मस्जिदों के प्रदर्शन के विभिन्न रूपों की पहचान की है
भक्ति ने कहा इन मस्जिदों में से कुछ अतिवादी विचारों को बढ़ावा देने के लिए ही हैं उनमें से कुछ दाइश के समर्थकों के लिए सभा की जगह के रूप में कार्य करते हैं और यहां तक कि कुछ मस्जिद के सेवक जो लोग इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के लिए उत्सुक हैं सहायता और उन्हें सीरिया के लिए भेजते हैं।
इस तहक़ीक़ाती टीम के सदस्यों ने कुछ महीनों तक मस्जिदों और कुरान बैठकों में नमाज़ियों के वस्त्र में भाग लिया और तक़रीरों और समारोहों को रिकार्ड किया है।
हज के दौरान फ़िलिस्तीन के मुद्दे को अनदेखा न किया जाएः वरिष्ठ नेता
हज संस्था के कर्मचारियों ने आज वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।
ईरान में हज सप्ताह के आरंभ होने और हज के लिए ईरानी हज यात्रियों की रवानगी के अवसर पर हज संस्था के अधिकारियों ने रविवार को तेहरान में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।
इस भेंटवार्ता में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि हज का एक सामाजिक आयाम भी है और यह, इस्लामी आस्था को प्रकट करने का माध्यम है। उन्होंने कहा कि स्वर्गीय इमाम कहा करते थे कि विरक्तता के बिना हज का कोई अर्थ नहीं है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि वर्तमान समय का ज्वलंत विषय, मस्जिदुल अक़सा है। उन्होंने कहा कि ज़ायोनी बहुत दुस्साहसी हो गए है। वे इस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं मानों वे मस्जिदुल अक़सा के मालिक हैं। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीन के मुद्दे को कभी न भुलाया जाए क्योंकि यह इस्लामी जगत का यह केन्द्रीय विषय है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि मुसलमानों की आस्था और इस्लामी विषयों विशेषकर फ़िलिस्तीन के विषय को उठाने के लिए पवित्र काबे, मक्के, मदीने, अरफ़ात, मशअर और मिना जैसे पवित्र स्थलों से अच्छा स्थान कहां होगा?
उन्होंने कहा कि हज के दौरान जिन विषयों को वहां पर उठाया जाना चाहिए उनमें इस्लामी देशों विशेषकर मध्यपूर्व में अमरीका की दुष्ट उपस्थिति और तकफ़ीरी आतंकवादी गुटों की हिंसक कार्यवाहियों का भी विषय शामिल है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि हज के दौरान मुसलमानों के बीच एकता स्थापित करने की बात को उठाना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने के लिए अरबों डालर ख़र्च किये जा रहे हैं। एेसे में मुसलमानों को बहुत होशियार रहने की ज़रूरत है और वे मतभेदों से बचें।
उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि इस बार हमारे लोगों को हज पर जाने का अवसर मिला।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने हज के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि हज के दौरान सुरक्षा का विषय विशेष महत्व का स्वामी है। उन्होंने कहा कि हम 2015 में हज के दौरान होने वाली घटना को भूले नहीं हैं। हाजियों की सुरक्षा की ज़िम्मदारी उस देश की है जहां पर पवित्र काबा स्थित है। दूसरे देशों को भी यह मांग करनी चाहिए कि हज के दौरान सुरक्षा को बनाए रखा जाए। मेज़बान देश को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पवित्र काबे और मिना जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने पाए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि इस वर्ष के हज के बारे में चिंताएं पाई जाती थीं किंतु देश के तीनों पालिकाओं ने यह निर्णय लिया कि हज के लिए जाया जाए।
ज्ञात रहे कि ईरान के हज यात्रियों के प्रमुख और हज के बारे में वरिष्ठ नेता के प्रतिनिधि अली क़ाज़ी असकरी के नेतृत्व में सोमवार को ईरान से हज की यात्रा पर जाने वाले यात्रियों का पहला जत्था रवाना होगा।
हज़रत मासूमा क़ुम का शुभ जन्म दिसव।
पहली ज़ीक़ादा सन 173 हिजरी क़मरी को हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की सुपत्री और हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन हज़रत फ़ातेमा का जन्म हुआ।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम हज़रत फ़ातेमा मासूमा के पिता थे। उनकी माता का नाम हज़रत नज्मा ख़ातून था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम, फ़ातेमा मासूमा के बड़े भाई थे। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम, हज़रत फ़ातेमा मासूमा के बारे में कहते हैं कि ईश्वर का हरम मक्का में है, उसके पैग़म्बर का हरम मदीना में है, हज़रत अली का हरम कूफ़ा में है जबकि हम अहलेबैत का हरम, क़ुम है। जान लो कि स्वर्ग के आठ दरवाज़े हैं जिनमें से तीन का रुख़, क़ुम की ओर है। मेरे ही वंश की एक महिला का क़ुम में मज़ार होगा। वह हमारे मानने वालों की शिफ़ाअत करेगी जिसके कारण वे लोग स्वर्ग में जाएंगे। श्रोताओ, मासूमा क़ुम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं।
हज़रत मासूमा क़ुम वह महान महिला हैं जो अपनी निष्ठा, उपासना, पवित्रता और ईशावरीय भय के माध्यम से परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचीं। मुसलमान महिलाओं के मध्य वे एक आदर्श महिला बन गईं। ज्ञान और ईमान के क्षेत्र में हज़रत फ़ातेमा मासूमा की सक्रिय उपस्थिति, इस्लामी संस्कृति व इतिहास में महिला के मूल्यवान स्थान की सूचक है। इस्लाम ने महिलाओं को हर क्षेत्र में प्रगति करने का अवसर प्रदान किया है। इसी अवसर का लाभ उठाकर कुछ महान महिलाएं, पुरुषों के लिए आदर्श बन गईं जिनमें से एक हज़रत मासूमा क़ुम हैं।
हज़रत फ़ातेमा मासूमा की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि उन्हें इस्लामी ज्ञान की भरपूर जानकारी थी। वे दूसरों को भी उसे बताया करती थीं। इस्लामी विद्वानों और इतिहासकारों का मानना है कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की बेटियों में हज़रत फ़ातेमा मासूमा को एक विशेष स्थान प्राप्त रहा। जब इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम घर पर मौजूद नहीं होते थे तो हज़रत फ़ातेमा मासूमा, लोगों के प्रश्नों का उत्तर देतीं और उनकी भ्रांतियों को दूर किया करती थीं।
हज़रत फ़ातेमा की कुछ प्रसिद्ध उपाधियां हैं जैसे मासूमा, मोहद्देसा, ताहिरा और हमीदा आदि। इनमें से हर उपाधि हज़रत फ़ातेमा मासूमा के सदगुणों के एक भाग की ओर संकेत करती है। यह उपाधियां इस बात की सूचक हैं कि हज़रत मासूमा विद्वान, वक्ता, दक्ष शिक्षक, उपासना और दूसरे समस्त सदगुणों से सुसज्जित थीं। हज़रत फ़ातेमा मासूमा ने अपने पिता हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम और अपने बड़े भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के मार्गदर्शन की छत्रछाया में अपने जीवन को महान ईश्वर की याद में बिताया और इस प्रकार उन्होंने ज्ञान और तक़वा के शिखर को प्राप्त किया। आध्यात्मिक पवित्रता के कारण ही हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी बहन को मासूमा की उपाधि दी थी। उन्होंने कहा था कि जो भी क़ुम में मासूमा की ज़ियारत करेगा वह उस व्यक्ति की भांति है जिसने हमारी ज़ियारत की है।
जैसाकि हमने आपको बताया कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बहन हज़रत मासूमा, सदगुणों की स्वामी थीं। उन्होंने यह गुण और विशेषताएं, अथक प्रयासों और ईश्वर की उपासना से हासिल किये थे। उनके भीतर ईश्वरीय भय पाया जाता था जिसके माध्यम से उन्होंने आध्यात्मक के उच्च चरणों को प्राप्त किया। बहुत से इस्लामी विद्धानों का कहना है कि एक आम इन्सान भी ईश्वर की उपासना करके आध्यात्म के उच्च चरणों को प्राप्त कर सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि आध्यात्मक के उच्च चरणों तक पहुंचने का सबसे अच्छा मार्ग ईश्वरीय भय है।
इस्लाम में श्रेष्ठता का मापदंड तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय व सदादारिता है। इसी प्रकार ज्ञान और ईमान भी श्रेष्ठता का मापदंड हैं। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि ज्ञान और ईमान के कारण ही इंसान में ईश्वर के प्रति भय उत्पन्न होता है। जिस इंसान के पास न तो ज्ञान हो और न ही ईमान तो कभी भी उसके अंदर ईश्वरीय भय उत्पन्न नहीं होगा। पवित्र क़ुरआन एक इंसान की दूसरे इंसान पर हर प्रकार की श्रेष्ठता का इंकार करते हुए कहता है कि किसी को किसी पर श्रेष्ठता प्राप्त नहीं है। हां जिसमे तक़वा या ईश्वरीय भय अधिक हो वह दूसरों पर श्रेष्ठता रखता है। दूसरे शब्दों में महान ईश्वर के निकट सबसे अधिक प्रतिष्ठित वही व्यक्ति वही है जिसका तक़वा सबसे अधिक हो।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वरीय भय या तक़वे के बाद जिस विशेषता का नंबर आता है उसे “इबरत” कहते हैं अर्थात विगत की बातों से पाठ लेना। इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि देखो उन लोगों का क्या हुआ जो सांसारिक मायामोह में फंसे हुए थे। देखों उन लोगों का अंजाम क्या रहा जो केवल धन-दौलत बटोरने में लगे रहे। याद रखो दुनिया ने किसी के साथ भी वफा नहीं की। एसे में केवल वे ही लोग सफल रहेंगे जिन्होंने दुनिया पर नहीं बल्कि ईशवर पर भरोसा किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि हमें यह देखना चाहिए कि हमसे पहले वालों का क्या हुआ? उन्होंने कौन से एसे काम किये जिसके कारण वे तबाह हो गए और उनका भविष्य अंधकारमय हो गया। हमको एसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिसके कारण हमारे साथ भी वैसा ही हो। वे कहते हैं कि हमें अपनी आंतरिक इच्छाओं का दास नहीं बनना चाहिए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कहना है कि मनुष्य को चाहिए कि वह आंतरिक इच्छाओं के मुक़ाबले में अडिग रहे, उनके सामने आत्मसमर्पण न करे।
इमाम अली कहते हैं कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के मार्ग में धैर्य को भी विशेष स्थान प्राप्त है। वे कहते हैं कि जीवन में कठिनाइयों का मुक़ाबला हमें धैर्य से करना चाहिए। हज़रत अली का कहना है कि धैर्य करना कोई सरल काम नहीं है लेकिन इसमें परिणाम बहुत अच्छे होते हैं। उनका कहना है कि धैर्यवान व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर उचित ढंग से नियंत्रण प्राप्त कर सकता है। ऐसे व्यक्ति का अपने मन-मस्तिष्क पर पूरा अधिकार रहता है। यही विशेषाधिकार उसे अपने जीवन में सफलता के शिखर की ओर ले जाता है। हज़रत अली कहते हैं कि मनुष्य की आंतरिक इच्छाएं, बेलगाम घोड़े की तरह होती हैं। इन अनियंत्रित इच्छाओं की लगाम धैर्य या सब्र है। मनुष्य को धैर्य के माध्यम से अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करते रहना चाहिए क्योंकि इनके नियंत्रण की स्थिति में ही मनुष्य संसार में सफल जीवन व्यतीत कर सकता है।
विद्धवानों का कहना है कि हज़रत मासूमा क़ुम की विशेषताओं में से एक विशेषता, शिफाअत है जो बहुत बड़ी विशेषता है। यह विशेषता पैग़म्बरे इस्लाम (स) से ही विशेष है। पवित्र क़ुरआन मे भी इस विशेषता का उल्लेख मिलता है। पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बाद इस विशेषता की स्वामी हज़रत मासूमा क़ुम हैं जिनके बारे में हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मेरे ही वंश की एक महिला का क़ुम में मज़ार होगा। वह हमारे मानने वालों की शिफ़ाअत करेगी जिसके कारण वे लोग स्वर्ग में जाएंगे।
आपको बताते चलें कि मासूमा क़ुम, अपने भाई इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात के लिए पवित्र नगर मदीना से मर्व जा रही थीं। 23 रबीउल अव्वल 201 हिजरी क़मरी को वे पवित्र नगर क़ुम पहुंची। जब हज़रत फ़ातेमा मासूमा क़ुम पहुंचीं तो इस नगर के लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। पैग़म्बरे इस्लाम (स) तथा उनके परिजनों से श्रृद्धा रखने वाले लोग उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़े। मासूमा क़ुम, 17 दिनों तक क़ुम में बीमारी की स्थिति में रहीं। बाद में 27 साल की उम्र में पवित्र नगर क़ुम में उनका स्वर्गवास हो गया। क़ुम नगर में ही उनका मज़ार है। ईरान के पवित्र नगर क़ुम में हज़रत फ़ातेमा मासूमा का रौज़ा, आज भी लाखों श्रृद्धाओं की आध्यात्मिक शांति का केन्द्र बना हुआ है। ईरान ही नहीं बल्कि विश्व के कोने-कोने से श्रृद्धालु वहां दर्शन के लिए जाते हैं। उनके शुभ जन्म दिवस के अवसर पर हम आप सबकी सेवा में पुनः बधाई प्रस्तुत करते हैं।
उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए ईरान को मिली बड़ी सफलता
शिया मुसलमानों के आठवें इमाम हज़रत इमाम अली रज़ा (अ) के शुभ जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर ईरान ने सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में लांच करने वाले राकेट सीमूर्ग़ का सफल परीक्षण करके इमाम ख़ुमैनी अंतरिक्ष केन्द्र का उद्घाटन किया है।
हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के मुताबिक़, इमाम ख़ुमैनी अंतरिक्ष केन्द्र ईरान का पहला स्थायी लॉंचिग पैड है। यह एक विशाल कॉम्पलैक्स है, जिसमें उपग्रहों को अंतरिक्ष में लांच करने वाले राकेट के निर्माण से लेकर कंट्रोल तक का कार्य किया जाता है।
यह आधुनिक तकनीक से लैस एक अंतरिक्ष केन्द्र है, जिसे दुनिया की आधुनिक तकनीक को नज़र में रखकर डिज़ाइन किया गया है।
इमाम ख़ुमैनी अंतरिक्ष केन्द्र अपने अंतिम चरण में पृथ्वी कक्ष एलईओ में देश की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है।
सीमूर्ग़ 250 किलो के उपग्रहों को पृथ्वी के 500 किलोमीटर तक के कक्ष में लांच कर सकता है।
हमास का पत्रः अल्लाह अलअक़सा की आज़ादी के बाद उसमें नमाज़ पढ़ने का गौरव ईरान के राष्ट्रपति को दे!
फ़िलिस्तीन के हमास संगठन के नेता इसमाईल हनीया ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी को एक पत्र लिखा है और मस्जिदुल अक़सा के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन की अतिक्रमणकारी हरकतों पर प्रकाश डाला है।
इसमाईल हनीया ने ईरान के अलावा दूसरे भी इस्लामी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के नाम पत्र लिखे हैं।
हमास के नेता इसमाईल हनीया ने अपने पत्र में लिखा कि अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन मस्जिदुल अक़सा पर कब्ज़ा करने की अपनी योजना पूरी करने के प्रयास में है और वह मस्जिदुल अक़सा का संचालन अपने एकाधिकार में लेना चाहता है। मस्जिदुल अक़सा आप सबसे मदद की गुहार लगा रही है, ज़ायोनी शासन इस मस्जिद पर जो नए तथ्य थोपने के प्रयास कर रहा है उस पर चुप नहीं रहा जा सकता।
हमास संगठन के राजनैतिक विभाग के प्रमुख ने अपने पत्र में आगे लिखा कि अरब जगत और ओआईसी ने मस्जिदु अक़सा के समर्थन में कई प्रस्ताव पारित किए हैं और अब समय आ गय है कि बैतुल मुक़द्दस के निवासियों की मदद के लिए इन प्रस्तावों को लागू किया जाए।
इसमाईल हनीया ने अपने पत्र में लिखा कि इस्लामी व अरब देशों के पास अनेक कूटनयिक, वैधानिक व प्रचारिक साधन मौजूद हैं और आज मस्जिदु अक़सा को इन साधनों की ज़रूरत है ताकि इस तरह ज़ायोनी शासन पर दबाव डाला जा सके। इस संदर्भ में कम से कम यह किया जा सकता है कि ज़ायोनी शासन को अलग थलग करने के लिए क़दम उठाए जाएं।
इसमाईल हनीया ने अपने पत्र में लिखा कि इस्लामी व अरब सरकारों ने साबित किया है कि उनके दिल आज भी मस्जिदुल अक़सा की मुहब्बत में धड़कते हैं, इसी लिए कई इस्लामी देशों में अलअक़सा के लिए गतिविधियां शुरु हो गईं। यदि आज हम ज़ायोनी शासन पर मिलकर दबाव डाल सकें तो मस्जिदुल अक़सा के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के अतिग्रहणकारी मंसूबों पर हमेशा के लिए रोक ल गा सकते हैं।
हमास के नेता ने अपने पत्र में लिखा कि इस एतिहासिक मोड़ पर हम आशा करते हैं कि इस्लामी जगत मस्जिदुल अक़सा के समर्थन में एकजुट हो जाएगा। पत्र में इसमाईल हनीया ने लिखा कि मस्जिदुल अक़सा पर केवल मुसलमानों का अधिकार है।
हमास के नेता इसमाईल हनीया ने कहा कि हम कामना करते हैं कि मस्जिदुल अक़सा स्वतंत्र होगी और इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति इसमें नमाज़ अदा करने का गौरव प्राप्त करेंगे।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत का विशेष कार्यक्रम
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने जीवनकाल में इस्लाम के प्रचार- प्रसार के लिए अथक प्रयास किये।
उन्होंने उस समय के अंधकारमय काल में लोगों का मार्गदर्शन किया और ज्ञान को व्यापक स्तर पर फैलाया। उन्होंने 34 वर्षों तक ईश्वरीय मार्गदर्शन के दायित्व का निर्वाह किया। इस दौरान लोगों के मार्गदर्शन के साथ ही साथ उन्होंने बहुत बड़े पैमाने पर लोगों को शिक्षित किया। 65 वर्ष की आयु में 25 शव्वाल सन् 148 हिजरी क़मरी को अब्बासी ख़लीफ़ा मंसूर दवानीक़ी के षडयंत्र से इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को ज़हर देकर शहीद कर दिया गया। उनके शहादत दिवस पर हम आपकी सेवा में हार्दिक संवेदनाएं प्रस्तुत करते हैं।
यहां हम इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के जीवन की एक घटना का उल्लेख करने जा रहे हैं। एक बार की बात है एक व्यक्ति इमाम की सेवा में उपस्थित हुआ। उसने कहा कि आप मुझे कुछ नसीहत करें ताकि मैं उससे लाभ उठा सकूं। उसके कहने पर इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने रोज़ी या आजीविका के बारे में उससे कुछ बातें कहीं। इमाम ने फरमाया कि हर मनुष्य की आजीविका को ईश्वर ने निश्चित कर दिया है। अब मनुष्य यदि ईश्वर पर भरोसा करता है और उसकी आजीविका भी सुनिश्चित की जा चुकी है तो फिर इस बारे में चिंता कैसी? अपने इस कथन से इमाम यह समझाना चाहते हैं कि जब यह सुनिश्चित हो चुका है कि किसी व्यक्ति की आजीविका क्या होगी तो फिर सीमा से अधिक प्रयास का लाभ क्या है। मोमिन वह है जो ईश्वर पर भरोसा करते हुए अपनी आजीविका के बारे में निश्चिंत रहे। यहां पर मुश्किल यह है कि लोग इस संबन्ध में अपने पालनहार और अन्नदाता पर भरोसा न करके स्वयं को समस्याओं में ग्रस्त कर लेते हैं। इमाम सादिक़ कहते हैं कि मुख्य समस्या यह नहीं है कि मनुष्य अपनी आजीविका को लेकर चिंतित है बल्कि वास्तविकता यह है कि आजीविका देने वाले पर उसे पूरा विश्वास नहीं है। इसी अविश्वास के कारण वह परेशान रहता है और हमेशा पैसे के लिए दौड़ता रहता है। यहां पर कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि मनुष्य आजीविका के लिए प्रयास करना बंद कर दे बल्कि उसके बारे में अधिक परेशान न हो क्योंकि वह तो मिलकर रहेगी। आजीविका के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मोमिन को चाहिए कि वह अपनी दिनचर्या को तीन भागों में विभाजित करे। उसके एक भाग को ईश्वर की उपासना में, दूसरे भाग को आजीविका हासिल करने में और तीसरे भाग को लोगों से मिलने-जुलने या स्वस्थ व अच्छे मनोरंजन के लिए विशेष करे।
यह सही है कि ईश्वर ने हर मनुष्य की आजीविका को उसके हित के अनुरूप निर्धारित किया है। हालांकि बहुत से लोग यह समझते हैं कि यदि उनके माल और संपत्ति में वृद्धि होगी तो उनका जीवन सफल होगा जबकि एसा कुछ नहीं है। कभी-कभी माल के अधिक होने से समस्याएं अधिक हो जाती हैं। यहां पर एक ध्यान योग्य बिंदु यह है कि अधिक से अधिक धन कमाने के चक्कर में मनुष्य लोभी हो जाता है। इस बारे में इमाम कहते हैं कि जब ईश्वर ने तुम्हारी आजीविका को निर्धारित कर दिया है तो फिर उससे अधिक कमाने की लालसा में अपना समय व्यर्थ करना कैसा? पवित्र क़ुरआन में कई स्थान पर इस बात उल्लेख किया गया है कि ईश्वर सबको आजीविका देता है और इस बारे में मनुष्य को चिंतित नहीं होना चाहिए। हां इसका यह अर्थ नहीं है कि इन्सान आजीविका कमाने के लिए प्रयास करना ही छोड़ दे बल्कि उसे चाहिये कि अपनी क्षमता व सीमा के अनुसार काम करे। मनुष्य को निंरतर प्रयास करते रहने चाहिए और परिणाम ईश्वर के ऊपर छोड़ देना चाहिए।
जहां कुछ लोग अधिक से अधिक पैसा कमाने के लिए परेशान रहते हैं वहीं कुछ लोग एसे भी हैं जो अधिक से अधिक बचाने के लिए प्रयासरत रहते हैं। एसे लोगों को कंजूस कहा जाता है। कंजूस निर्धनों की तरह ज़िन्दगी गुज़ारता है वह सदैव ही व्याकुल रहता है। वह अपने पैसों को बचाने के चक्कर में शांतिपूर्ण ढंग से जीवन व्यतीत नहीं कर पाता। उसकी मुख्य समस्या यह होती है कि पैसा होने के बावजूद वह ग़रीबों जैसा जीवन व्यतीत करता है। इमाम कहते हैं कि कंजूसी के मुक़ाबले में मनुष्य को दान देने की प्रवृत्ति सीखनी चाहिए। वे कहते हैं कि यदि मनुष्य के भीतर यह बात जगह कर जाए कि वह ईश्वर की राह में जितना भी ख़र्च करेगा ईश्वर उसको दस बराबर देगा तो वह कभी भी कंजूस नहीं हो सकता। कंजूसी एसी आदत है जिसकी इस्लामी शिक्षाओं में बहुत निंदा की गई है।
श्रोताओ यहां पर हम एक घटना का उल्लेख करने जा रहे हैं जो इस बारे में है कि ईश्वर पर भरोसा करके दान देने या ईश्वर के नाम पर किसी को क़र्ज़ देने का क्या परिणाम होता है। एक महापुरूष का कहना है कि आरंभ में जब मैं छात्र था मैं निर्धन था और मेरे पास पैसा बहुत कम था। एक बार एसा हुआ कि मैं बाज़ार से कुछ ख़रीदने गया। मेरी जेब में कुल पांच पैसे थे। उन्हीं पैसों से मैं अपने लिए कुछ ख़रीदना चाहता था। रास्ते में मुझे एक व्यक्ति मिला। उसने कहा कि इस समय मैं बहुत पेराशान हूं और मेरे पास एक पैसा भी नहीं है क्या आप मुझको कुछ पैसे उधार दे सकते हैं? इस पर महापुरूष ने कहा कि मेरे पास केवल 5 पैसे हैं अगर तुम चाहो तो मैं तुमको वह पैसे दे सकता हूं। उसने मुझसे पैसे ले लिए और मैं खाली हाथ बाज़ार से वापस घर की ओर जाने लगा। जब मैं उदासी के हाल में ख़ाली हाथ अपने घर जा रहा था तो रास्ते में मुझको एक सज्जन मिले। उन्होंने मुझे सलाम किया और मुझसे रोक कर बातें करने लगे। विदा होने से पहले उन्होंने अपना हाथ जेब में डाला और मेरे हाथ में कुछ देते हुए उन्होंने मेरी मुट्ठी बंद कर दी। यह करने के बाद वे आगे बढ़ गए। जब मैंने अपना हाथ खोला तो देखा कि उन्होंने मुझको पांच रूपये दिये हैं। पांच रूपये पाकर मैं बहुत ख़ुश हुआ और वापस बाज़ार की ओर जाने लगा। कुछ क़दम चलने के बाद किसी ने मेरे कांधे पर हाथ रखते हुए मुझसे कहा कि क्या आप मुझे कुछ पैसे दे सकते हैं। मैंने उस व्यक्ति को दखते हुए उसके हाथ पर वही पांच रूपये रख दिये। अब वह बाज़ार की ओर जा रहा था और मैं अपने घर की ओर। कुछ दूर चलने के बाद हमारे एक परिचित मिल गये जो मुझसे बातें करने लगे। बातें ख़त्म करके जब उन्होंने विदा ली तो बोले यह कुछ पैसे हैं जो मैं आपको देना चाहता हूं। यह कहते हुए उन्होंने मुझको पचार रूपये दे दिये। पचास रूपये पाकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ। मैं सोचने लगा कि मैंने पांच पैसे दिये तो पांच रूपये मिले। बाद में जब पांच रूपये दिये तो अब मुझको पचास रूपये मिल गए। अब एसा करता हूं कि यह पचास रूपये किसी को उधार दे दूंगा तो मुझको इसके दस गुने मिल जाएंगे। यह सोचकर मैं बाज़ार में बहुत देर तक टहलता रहा किंतु अब न तो कोई मुझसे उधार ही लेने आया और न ही मुझको कुछ देने। जब काफ़ी समय गुज़र गया और कोई नहीं आया तो यह बात मेरी समझ में आई कि पहले मैंने बिना किसी लालच के दिया तो मुझको दस बराबर मिले किंतु जब मेरे मन में लालच आ गई तो सब कुछ बदल गया।
अपने उपदेश को आगे बढ़ाते हुए इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मनुष्य को पता है कि पाप करने के बदले उसे अवश्य दंडित किया जाएगा। जब उसको यह बात पता है तो वह पाप क्यों करता है? एसा कैसे हो सकता है कि कोई पाप करे और उसको उसके बदले में दंडित न किया जाए। पवित्र क़ुरआन में इस बारे में ईश्वर कहता है कि उस दिन एसा होगा कि पापी, अपने पापों के दंड से बचने के लिए चाहेगा कि उसकी संतान या उसके सगे -संबन्धी दंड को भुगतें। प्रलय का दंड इतना कठोर होगा कि पापी, का पूरा प्रयास रहेगा कि वह किसी भी सूरत में दंड से बच जाए। हालांकि एसा होगा नहीं और उसको अवश्य दंड दिया जाएगा।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम एक अन्य विषय की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि प्रलय के दिन पुले सेरात से गुज़रना सबके लिए ज़रूरी है। वे कहते हैं कि यदि एसा है तो फिर घमण्ड किस बात का? घमण्ड एसी चीज़ है जिसकी निंदा इस्लामी शिक्षाओं में बहुत अधिक की गई है। घमण्डी व्यक्ति सामान्यतः अपनी धन संपत्ति, सुन्दरता, वंश, रंगरूप या इसी प्रकार की चीज़ों पर घमण्ड करता है। एसा व्यक्ति दूसरों को बहुत ही गिरी नज़र से देखता है। वह सोचता है कि मैं ही सब कुछ हूं और अन्य लोग कुछ नहीं हैं। हालांकि होता इसके बिल्कुल विपरत है। इस्लाम में घमण्ड के स्थान पर विनम्रता की शिक्षा दी गई है। हम देखते हैं कि हमारे महापुरूष विनम्र स्वभाव के हुआ करते थे घमण्डी नहीं।
अंत में इमाम एक अन्य बिंदु की ओर ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि जीवन में जितने भी सुख और दुख हैं उन सब से ईश्वर भलिभांति अवगत है। यदि कोई व्यक्ति दुखों पर संयम करता है और धैर्य से काम लेता है तो फिर वह समस्याओं के समय व्याकुल नहीं होता। इस बारे में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि यदि सब कुछ अल्लाह की ओर से है तो फिर परेशानियों के समय रोने-धोने से क्या फ़ाएदा? निश्चित रूप से अपने जीवन में पूरी तरह से ईश्वर पर भरोसा करने से मनुष्य के भीतर धैर्य पैदा होता है और मुश्किल के समय ईश्वर की ओर से उसकी सहायता भी की जाती है।
श्रोताओ इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर एक बार फिर आपकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं।