
رضوی
इस्राईल ने गज़्ज़ा पट्टी पर हमला किया, झड़पें भी हुईं, कई शहीद 300 घायल
ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने शुक्रवार की रात, उत्तरी ग़ज़्ज़ा पट्टी में स्थित " बैत हानून" पर बमबारी की ।
ग़ज़्ज़ा पट्टी पर होने वाले इस हमले में कई फिलिस्तीनी घायल हुए हैं।
इस्राईली सेना ने दावा किया है कि यह हमला, ग़ज़्ज़ा पट्टी से यहूदी बस्तियों पर कुछ राकेट फायर किये जाने के बाद किया गया है।
बैतुल मुक़द्दस को, इस्राईल की राजधानी के रूप में स्वीकार करने के अमरीकी राष्ट्रपति के ग़ैर क़ानूनी फैसले के बाद अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में इस्राईली सैनिकों और फिलिस्तीनियों के बीच झड़पें आरंभ हो गयी हैं जिनमें चार फिलिस्तीनी शहीद और 300 से अधिक घायल हो चुके हैं।
शुक्रवार को फिलिस्तीन के विभिन्न इलाक़ों में हज़ारों फिलिस्तीनियों ने सड़कों पर निकल कर ट्रम्प के ग़ैर क़ानूनी फैसले का विरोध किया।
ईरान सहित विश्व के कई देशों में शुक्रवार को जुमा की नमाज़ के बाद व्यापक प्रदर्शन हुए जिनमें अमरीकी राष्ट्रपति के फैसले की आलोचना की गयी ।
ट्रैम्प के इस्लामोफैगस के उत्तर में टेक्सास के मुस्लिमों का शांति संदेश
अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार ऐजेंसी समाचार साइट फॉक्स न्यूज के अनुसार,यह कार्यक्रम इस शनिवार (2 दिसंबर)को आयोजित और उसमें दो अमेरिकन मुस्लिम मैल्कम एक्स (मैल्कम एक्स), काला कार्यकर्ता मानव अधिकारों और अफ्रीकी अमेरिकियों के अधिकारों की रक्षा करने वाला और पेशेवर मुक्केबाज मोहम्मद अली कुली की स्मृति में सम्मानित किया गया।
टेक्सास के एक मुस्लिम धार्मिक नेता उमर सुलैमान ने कहाःट्रम्प इस्लाम विरोधी फिल्मों के प्रकाशन के साथ, अमेरिकी मुसलमानों को बेवकूफ़ बताना चाहते हैं, जबकि ऐसा समुदाय जो अमेरिकी मुस्लिमों की तरह अच्छा हो कम है।
डोनाल्ड ट्रम्प ने, बुधवार (29 नवंबर) को, ब्रिटेन में एक जातिवाद पार्टी के उपाध्यक्ष के वीडियो को पुनर्स्थापित किया।
मैल्कम एक्स (नेब्रास्का में 1 9 मई, 1 9 25 में जन्मे, 21 फरवरी, 1 9 65 को न्यूयॉर्क में निधन हो गया), उम्मते -इस्लाम ग्रुप में शामिल होने के बाद, खुद के लिऐ मैल्कम एक्स नाम को चुना, और हज यात्रा के दौरान, अल-हाज मालिक अल-शब्बाज़ इस्लामी नाम को चुना। वह नस्लीय भेदभाव के साथ मुक़ाबला तथा साहसिक और जीवन के लिए भारी संघर्ष के कारण प्रसिद्ध हैं।
मोहम्मद अली कुली (केंटकी में 17 जनवरी, 1 9 42 में जन्म हुआ - 3 जून, 2016 को लुइसविल, केंटकी, संयुक्त राज्य अमेरिका में मृति पागऐ) एक अमेरिकी हेवीवेट बॉक्सर थे, जिसे इस वजन में शीर्ष मुक्केबाजी बॉक्सर का नाम दिया गया था।उन्हें रिंग बॉक्सिंग के अंदर और बाहर एक नागरिक कार्यकर्ता और प्रेरणादायक, विवादास्पद और चुनौतीपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार ऐजेंसी समाचार साइट फॉक्स न्यूज के अनुसार,यह कार्यक्रम इस शनिवार (2 दिसंबर)को आयोजित और उसमें दो अमेरिकन मुस्लिम मैल्कम एक्स (मैल्कम एक्स), काला कार्यकर्ता मानव अधिकारों और अफ्रीकी अमेरिकियों के अधिकारों की रक्षा करने वाला और पेशेवर मुक्केबाज मोहम्मद अली कुली की स्मृति में सम्मानित किया गया।
टेक्सास के एक मुस्लिम धार्मिक नेता उमर सुलैमान ने कहाःट्रम्प इस्लाम विरोधी फिल्मों के प्रकाशन के साथ, अमेरिकी मुसलमानों को बेवकूफ़ बताना चाहते हैं, जबकि ऐसा समुदाय जो अमेरिकी मुस्लिमों की तरह अच्छा हो कम है।
डोनाल्ड ट्रम्प ने, बुधवार (29 नवंबर) को, ब्रिटेन में एक जातिवाद पार्टी के उपाध्यक्ष के वीडियो को पुनर्स्थापित किया।
मैल्कम एक्स (नेब्रास्का में 1 9 मई, 1 9 25 में जन्मे, 21 फरवरी, 1 9 65 को न्यूयॉर्क में निधन हो गया), उम्मते -इस्लाम ग्रुप में शामिल होने के बाद, खुद के लिऐ मैल्कम एक्स नाम को चुना, और हज यात्रा के दौरान, अल-हाज मालिक अल-शब्बाज़ इस्लामी नाम को चुना। वह नस्लीय भेदभाव के साथ मुक़ाबला तथा साहसिक और जीवन के लिए भारी संघर्ष के कारण प्रसिद्ध हैं।
मोहम्मद अली कुली (केंटकी में 17 जनवरी, 1 9 42 में जन्म हुआ - 3 जून, 2016 को लुइसविल, केंटकी, संयुक्त राज्य अमेरिका में मृति पागऐ) एक अमेरिकी हेवीवेट बॉक्सर थे, जिसे इस वजन में शीर्ष मुक्केबाजी बॉक्सर का नाम दिया गया था।उन्हें रिंग बॉक्सिंग के अंदर और बाहर एक नागरिक कार्यकर्ता और प्रेरणादायक, विवादास्पद और चुनौतीपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।
इस्लामिक देशों के स्वास्थ्य मंत्री जेद्दाह में इकट्ठा हो रहे हैं
इंटरनेशनल कुरआन समाचार एजेंसी ने ईना के अनुसार बताया कि आईसीएओ की सहयोग और उपचार की वृद्धि, स्वस्थ जीवन शैली संक्रामक और गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और आपात स्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं में चिकित्सा शर्तों के लिए रणनीतियां बनाना जैसे मुद्दे पर इस बैठक में चर्चा की जाएग़ी।
इस बैठक, में मात एवं बाल की स्वास्थ्य और पोषण, दवाइयों, टीके और चिकित्सा प्रौद्योगिकी की खरीद में आत्मनिर्भरता जैसे मुद्दा की जांच की जाएगी।
इस बैठक में इसी तरह अध्ययन कमेटी की रिपोर्ट पर आर्थिक, सामाजिक और इस्लामिक देशों के शैक्षिक (अंकारा में स्थित) ओआइसी के सदस्य देशों में स्वास्थ्य पर भी चर्चा होगी।
इस्लामिक सलाहकार समूह के प्रमुख पोलियो उन्मूलन के जिम्मेदार भी हैं समूह ने भी गतिविधियों पर रिपोर्ट करेंगे, और ओआईसी-संबद्ध टीका उत्पादक समूह के प्रमुख इस क्षेत्र में टीके के उत्पादन और आत्मनिर्भरता पर रिपोर्ट करेंगे।
चाबहार बंदरगाह शांति व सुरक्षा में मज़बूती का कारण बनेगीः चीन
चीन ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के पहले भाग के उद्घाटन का स्वागत किया है और उसे क्षेत्र में शांति व सुरक्षा में मज़बूती का कारण बताया है।
समाचार एजेन्सी मेहर की रिपोर्ट के अनुसार चीन की विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता गेन्ग शोवांग ने बल देकर कहा कि बीजींग क्षेत्रीय देशों के मध्य मित्रतापूर्ण संबंधों में विस्तार और द्विपक्षीय रचनात्मक सहकारिता का स्वागत करता है।
साथ ही उन्होंने कहा कि ईरान के चाबहार बंदरगाह सहित क्षेत्रीय सहकारिता में वृद्धि क्षेत्र की शांति व सुरक्षा में वृद्धि का कारण बन सकती है।
चाबहार बंदरगाह के पहले भाग का उद्घाटन रविवार को राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी की उपस्थिति में हुआ। उस समय भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और कतर सहित विश्व के 17 देशों के अधिकारी मौजूद थे।
ज्ञात रहे कि स्ट्रैटेजिक महत्व और केन्द्रीय एशिया के देशों की मुक्त जेल क्षेत्रों तक निकट पहुंच के कारण चाबहार बंदरगाह काफी महत्वपूर्ण है।
शिया सुन्नी मिलकर करें दुशमनों का मुक़ाबला
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि इस्लामी जगत को चाहिए कि दुशमनों के मुक़ाबले में डट जाए।
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम आयतुल्लाह मुहम्मद अली मुवह्हेदी किरमानी ने एकता सप्ताह के आगमन की बधाई देते हुए आशा जताई कि शीया और सुन्नी समुदाय आपसी एकता को मज़बूत करके इस्लामी जगत के संयुक्त दुशमनों का डटकर मुक़ाबला करेंगे।
शुक्रवार को हिजरी क़मरी कैलेंडर के रबीउल औवल महीने की 12 तारीख़ है, सुन्नी समुदाय का मत है कि पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म इसी तारीख़ में हुआ था, शिया समुदाय का मानना है कि पैग़म्बरे इस्लाम का जन्म 17 रबीउल औवल को हुआ था। ईरान में इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी की पहल पर 12 रबीउल औवल से 17 रबीउल औवल तक शीया सुन्नी एकता सप्ताह मनाया जाता है।
आयतुल्लाह मुहम्मद अली मुवह्हेदी किरमानी ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि शिया और सुन्नी मुसलमानों को दुशमन के धोखे में नहीं आना चाहिए, यदि इस्लामी जगत एकजुट हो जाए तो शत्रु उसे कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकेगा।
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इस हफ़्ते के इमाम ने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजन शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच एकता का ध्रुव साबित हो सकते हैं लेकिन कुछ मुस्लिम देशों की सरकारें दुशमन की चाल में आकर इस्लामी जगत को एकजुट होने से रोक रही हैं।
आयतुल्लाह मुहम्मद अली मुवह्हेदी किरमानी ने इलाक़े में दाइश के ख़ातमे को ईश्वरीय वचन पूरा होने का उदाहरण बताया और कहा कि क़ुरआन में ईश्वर ने वादा किया है कि असत्य मिट जाने वाला है और सत्य बाक़ी रहने वाला हे।
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम आयतुल्लाह मुहम्मद अली मुवह्हेदी किरमानी ने कहा कि धार्मिक नेतृत्व, लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन, इस्लामी बलों और ईरान की शक्ति अब अमरीका की समझ में आ जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि दुशमन की साज़िशों में नहीं फंसना चाहिए बल्कि उनका डटकर मुक़ाबला करने की ज़रूरत है।
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत
पूरे इस्लामी जगत विशेषकर शिया समुदाय के लिए सन 260 हिजरी क़मरी की 8 रबीउल अव्वल दुख का संदेश लेकर आई।
आज ही के दिन जब इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत की ख़बर आम हुई तो सामर्रा के वे लोग भी इमाम असकरी के घर की ओर दौड़ पड़े जो लंबे समय से शासन के दमन के कारण अपनी आस्था को छिपाए हुए थे। इस दिन सामर्रा के लोग रोते-बिलखते, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के घर के बाहर एकत्रित हुए।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के पौत्र इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ग्यारहवें इमाम थे। आपका जन्म सन 232 हिजरी कमरी को हुआ था। इमाम हसन असकरी के पिता, दसवें इमाम, इमाम हादी अलैहिस्सलाम थे। इमाम असकरी की माता का नाम "हुदैसा" था जो बहुत ही चरित्रवान और सुशील महिला थीं। आपको असकरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तत्तकालीन अब्बासी शासक ने हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और उनके पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को सामर्रा के असकरिया नामक एक सैन्य क्षेत्र में रहने पर मजबूर किया था ताकि उनपर नज़र रखी जा सके। इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के उपनामों में नक़ी और ज़की है जबकि कुन्नियत अबू मुहम्मद है। जब आपकी आयु 22 वर्ष की थी तो आपके पिता इमाम अली नक़ी की शहादत हुई। इमाम हसन असकरी की इमामत का काल छह वर्ष था। आपकी आयु मात्र 28 वर्ष थी। शहादत के बाद इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को उनके पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की क़ब्र के पास दफ़्न कर दिया गया।
महापुरूषों विशेषकर इमामों का जीवन लोगों के लिए आदर्श है। जो लोग उचित मार्गदर्शन और कल्याण की तलाश में रहते हैं उन्हें इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का अनुसरण करना चाहिए। इमाम हसन असकरी, अपना अधिक समय ईश्वर की उपासना में बिताया करते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे दिन में रोज़े रखते और रात में उपासना किया करते थे। वे अपने काल के सबसे बड़े उपासक थे। इमाम असकरी के साथ रहने वालों में से एक, "मुहम्मद शाकेरी" का कहना है कि मैंने कई बार देखा है कि इमाम पूरी-पूरी रात इबादत किया करते थे। वे कहते हैं कि रात में कभी-कभी मैं सो जाया करता था लेकिन जब भी सोकर उठता था तो देखता था कि वे इबादत में मशग़ूल हैं।
अपने पिता की शहादत के समय इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम 22 साल के थे। उनके कांधे पर उसी समय से इमामत अर्थात ईश्वरीय मार्गदर्शन का दायित्व आ गया था। आपकी इमामत का काल 6 वर्ष था। इमामत के छह वर्षीय काल में उनपर अब्बासी शासन की ओर से कड़ी नज़र रखी जाती थी। सरकारी जासूस उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखते थे। एसे अंधकारमय काल में कि जब अज्ञानता से लोग जूझ रहे थे और भांति-भांति की कुरीतियां फैली हुई थीं, इमाम असकरी ने एकेश्वरवाद का पाठ सिखाते हुए लोगों को धर्म की वास्तविकता से अवगत करवाया। धर्म के मूल सिद्धांतों को लोगों तक पहुंचाने के लिए आपने अथक प्रयास किये। हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के जीवनकाल को मूलतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। पहला भाग वह है जिसे उन्होंने पवित्र नगर मदीने में व्यतीत किया। दूसरा भाग वह है जिसे उन्होंने इमामत का ईश्वरीय दायित्व संभालने के बाद सामर्रा में व्यतीत किया।
विरोधियों ने भी इमाम असकरी अलैहिस्सलाम की मानवीय विशेषताओं की पुष्टि की है। इस बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि इमाम के ज़माने के शिया, इमाम के विरोधी, धर्म पर आस्था न रखने वाले तथा अन्य सभी लोग इमाम के ज्ञान, उनकी पवित्रता, उनकी वीरता और अन्य विशेषताओं को स्वीकार करते थे। कठिनाइयों और समस्याओं के मुक़ाबले में इमाम का धैर्य और उनका प्रतिरोध प्रशंसनीय था। जब वे दुश्मनों के हाथों ज़हर से शहीद किये गए तो उनकी आयु मात्र 28 साल थी। 28 वर्ष की आयु में इमाम हसन असकरी ने अपनी योग्यताओं से जो स्थान लोगों के बीच बनाया था उसके कारण इमामत के विरोधी भी आपके आचरण और ज्ञान की प्रशंसा करते थे।
इमाम हसन असकरी का पूरा जीवन अब्बासी शाकसों के घुटन भरे राजनैतिक वातावरण में गुज़रा। आपने 28 वर्ष के अपने जीवनकाल में समाज पर एसी अमिट छाप छोड़ी जो आज भी मौजूद हैं। इतनी कम आयु में इमाम की शहादत यह दर्शाती है कि तत्कालीन अब्बासी शासक, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम से कितना प्रभावित और चिंतित थे। इमाम पूरे साहस के साथ लोगों से कहा करते थे कि वे राजनैतिक मामलों में पूरी तरह से होशियार रहें। वे शासकों की अत्याचारपूर्ण नीतियों की आलोचना किया करते थे। यह कैसे संभव था कि जब समाज, अज्ञानता के अंधकार में पथभ्रष्टता के मार्ग पर चल निकले और वे उनके मार्गदर्शन के लिए कोई काम अंजाम न दें। इमाम असकरी अलैहिस्सलाम ने अपने दायित्व का निर्वाह पूरी ज़िम्मेदारी के साथ किया। अब्बासी शासक यह चाहते थे कि इमाम को नज़रबंद करके लोगों के साथ उनके सीधे संपर्क को समाप्त कर दिया जाए। इस प्रकार वे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के प्रति अपनी शत्रुता का बदला लेते थे।
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के ऊपर तरह-तरह के प्रतिबंध थे। वे लोगों से सीधे तौर से मिल नहीं सकते थे। उनको एक स्थान पर नज़रबंद कर दिया गया था किंतु इसके बावजूद आपने लोगों तक ईश्वरीय संदेश पहुंचाया और उनको वास्तविकताओं से अवगत करवाया। एसे घुटन के वातावरण में इमाम ने न केवल यह कि लोगों तक अच्छाई के संदेश पहुंचाए बल्कि कुछ एसे लोगों का प्रशिक्षण भी किया जिन्होंने बाद में इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार – प्रसार और लोगों की शंकाओं का निवारण किया। जिन शिष्यों का इमाम ने घुटन भरे काल में प्रशिक्षण किया उन्होंने बाद के काल में वास्तव में बहुत ही ज़िम्मेदारी से लोगों का मार्गदर्शन किया। इस्लामी जगत के एक जानेमाने विद्वान और धर्मगुरू शेख तूसी ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने जिन शिष्यों का प्रशिक्षण किया उनकी संख्या 100 से भी अधिक हैं। उन्होंने उनमें से कुछ के नामों का उल्लेख इस प्रकार किया हैः अहमद अशअरी क़ुम्मी, उस्मान बिन सईद अमरी, अली बिन जाफ़र और मुहम्मद बिन हसन सफ्फार आदि।
बारह इमामों के बीच ग्यारहवें इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का विशेष स्थान है। इसका मुख्य कारण यह था कि उनको 12वें इमाम के नज़रों से ओझल हो जाने वाले काल की भूमिका प्रशस्त करनी थी। अंधकारमय काल में जब तरह-तरह की बुराइयां और कुरीतियां आम थीं एसे में इमाम पूरी दृढ़ता के साथ लोगों के सामने वास्तविकताओं को रख रहे थे। उस काल मे शिया मुसलमानों विशेषकर उनके संभ्रांत लोगों पर बहुत अधिक दबाव था। एसे में इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम अपने मार्गदर्शनों से उन्हें दबावों से बचाने के प्रयास कर रहे थे। उनका प्रयास था कि उनके मानने वाले, राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक दबाव के बावजूद पूरी दृढ़ता के साथ अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकें।
उस काल के एक वरिष्ठ शिया विद्धान "अली बिन हुसैन बिन बाबवैह क़ुम्मी" को पत्र लिखकर उनसे इस प्रकार कहा था कि तुम धैर्य से काम लो और इमाम के आने की प्रतीक्षा करो। वे कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते थे कि मेरे मानने वालों का सबसे अच्छा कर्म, इमाम के आने की प्रतीक्षा करना है। मेरे शिया दुख और दर्द में होंगे कि इस बीच मेरा बेटा जो बारहवां इमाम होगा, प्रकट होगा। वह धरती पर न्याय स्थापित करेगा ठीक उसी प्रकार जैसे वह अत्याचार से भर चुकी होगी। हे बाबवैह, तुम स्वंय धैर्य करो और मेरे मानने वालों को भी धैर्य करने की शिक्षा दो। अच्छा अंजाम ईश्वर से भय रखने वालों का होगा।
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर पुनः हार्दिक संवेदना प्रकट करते हुए कार्यक्रम के अंत में उनके कुछ कथन पेश करते हैं। आप कहते हैं कि मैं तुमसे अनुरोध करता हूं कि तुम ईश्वर का भय रखो, धर्म का पालन करो, सच बोलो, लोगों की अमानतों को वापस करो, पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार करो, लंबे सजदे करो और हमेशा प्रयासरत रहो। जो एसा करता है वह हमारा मानने वाला है। तुम हमारे लिए खुशी का कारण बनों दुख का नहीं। हमेशा ईश्वर को याद रखो। मौत को कभी न भूलो। पवित्र क़ुरआन पढ़ा करो और पैग़म्बरे इसलाम (स) पर दुरूद भेजो। मेरी इन बातों को याद रखो और उनपर अमल करो।
आईएस का अंत, अमरीका, ज़ायोनी और सऊदी साज़िशें नाकाम।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने जुमे की नमाज़ के विशेष भाषण में दाइश के अंत का उल्लेख करते हुए कहा कि अमरीका, ज़ायोनी शासन और सऊदी अरब दाइश के ज़रिए क्षेत्र में अराजकता, जंग, झड़प और अशांति फैलाना चाहते थे लेकिन उनकी साज़िशें नाकाम हो गयीं।
उन्होंने कहा कि मानव इतिहास में कोई ऐसा अपराध नहीं है जो दाइश ने न किया हो। उन्होंने कहा कि बेगुनाह लोगों का जनसंहार, उनकी गर्दने काटना, उन्हें आग में जलाना और मस्जिदों को ध्वस्त करना दाइश के अपराध का एक भाग है।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने दाइश पर जीत के तत्वों में वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई के मार्गदर्शन, आयतुल्लाह सीस्तानी के योगदान, आईआरजीसी की क़ुद्स ब्रिगेड के कमान्डर जनरल क़ासिम सुलैमानी की जंग के मैदान में युक्ति, इराक़ और सीरिया की सरकारों और इन दोनों देशों के स्वंय सेवी बल की ईश्वर पर आस्था और स्वंयसेवी बल की शहादत पाने की इच्छा, और इराक़ व सीरिया की सरकारों को ईरान की ओर से समर्थन को गिनवाया।
उन्होंने इस बात का उल्लेख करते हुए कि दुश्मन अभी भी ईरानोफ़ोबिया फैलाने की कोशिश में है, कहा कि दुश्मन ईरानोफ़ोबिया के ज़रिए इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को नुक़सान पहुंचाना चाहता है लेकिन इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था दिन प्रतिदिन मज़बूत होती जा रही है।
मिस्र में मस्जिद मे विस्फोट, वहाबी सोच का नतीजाः हिज़बुल्लाह
लेबनान के हिज़बुल्लाह संगठन ने मिस्र में नमाज़ के दौरान किये गए विस्फोट की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए इसे वहाबी व तकफ़ीरी विचारधारा का परिणाम बताया है।
अलमनार के अनुसार हिज़बुल्लाह ने एक बयान जानी करके मिस्र में जुमे के दिन नमाज़ियों को लक्ष्य बनाकर उनकी हत्या करने की भर्त्सना की है। हिज़बुल्लाह का कहना है कि यह हमला, वहाबी व तकफीरी विचाराधारा का नतीजा है। हिज़बुल्लाह के अनुसार इस प्रकार के हमलों का उद्देश्य, इस्लामी देशों में अस्थिरता उत्पन्न करना है।
उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को मिस्र के अलअरीश के "अर्रौज़ा" क्षेत्र में जुमे की नमाज़ के दौरान नमाज़ियों को लक्ष्य बनाकर मस्जिद के निकट विस्फोट पदार्थ रखा गया था जिसके विस्फोट होने और बाद में नमाज़ियों पर गोलीबारी के परिणाम स्वरूप कम से कम 235 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हो गए। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि मस्जिद के बाहर चार वाहनों पर सवार सशस्त्र आतंकवादियों ने अपनी जान बचाकर भागने वाले नमाज़ियों पर फ़ाएरिंग की। इस घटना को मिस्र की अबतक की सबसे भयानक आतंकवादी घटना बताया जा रहा है।
ईरान, एकता का ध्वजवाहक, ईरान से दूर रहने वाले भी हुए हैरान
ईरान की राजधानी तेहरान में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रेम करने वाले और तकफ़ीरी समस्या शीर्षक के अंतर्गत एक अंतर्राष्ट्रीय कांफ़्रेंस बुधवार को आरंभ हुई जिसमें दुनिया भर के लगभग पांच सौ बुद्धिजीवियों और प्रसिद्ध हस्तियों ने भाग।
यह इस प्रकार की पहली कांफ़्रेंस तेहरान में आयोजित हुई है जिसके लक्ष्यों में से एक लक्ष्य, दुनिया भर के मुसलमानों के बीच एकता पैदा करना है। यहां पर इस बात उल्लेख आवश्यक है कि ईरान में मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने के लिए एकता सप्ताह के अवसर पर भी अंतर्राष्ट्रीय कांफ़्रेंस आयोजित होती है।
सुन्नी मुसलमान 12 रबीउल अव्वल जबकि शीया मुसलमान 17 रबीउल अव्वल को पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का जन्म दिवस मनाते हैं। वर्षों पहले ईरान की इस्लाम क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी जगत में एकता का नारा लगाया और उन्होंने इस बात का प्रयोग मुसलमानों तथा विभिन्न संप्रदायों को एक दूसरे से निकट लाने के लिए किया और इन दोनों तारीख़ों के मध्य अंतर को मुसलमानों के मध्य “हफ्तये वहदत” अर्थात एकता सप्ताह के रूप में मनाये जाने की घोषणा की।
यह सप्ताह इस्लामी जगत में विशेषकर इस समय एकता व एकजुटता की आवश्यकता को बयान करने का बेहतरीन अवसर है क्योंकि इस समय दुनिया विशेषकर इस्लामी जगत को संकटों व समस्याओं का सामना है और एकता व एकजुटता से बहुत सी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
अब यहां पर प्रश्न यह उठता है कि जब ईरान में एकता सप्ताह की कांफ़्रेंस हर वर्ष होती है कि इस कांफ़्रेंस के आयोजन के पीछे क्या लक्ष्य है। इसका जवाब कांफ़्रेंस में गये रेडियो तेहरान के प्रतिनिधि अख़्तर रिज़वी ने कांफ़्रेंस में भाग लेने वालों से पूछा तो उनका कहना था कि लक्ष्य की दृष्टि से दोनों कांफ़्रेंस के लक्ष्य एक ही हैं किन्तु मुसलमानों के बीच एकता पैदा करना इस कांफ़्रेंस का एक लक्ष्य है जबकि इस कांफ़्रेंस के दूसरे भी लक्ष्य हैं जिसको कांफ़्रेंस के दौरान दुनिया भर से आए बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं से बातचीत के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा।
कांफ़्रेंस में शामिल सुन्नी समुदाय के धर्मगुरु ने कहा कि मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने के लिए ईरान के इस क़दम का हम स्वागत करते हैं और हम दुनिया के अन्य मुस्लिम देशों से भी यह अपील करते हैं कि वह ईरान का अनुसरण करते हुए अपने अपने देशों में भी मुसलमानों के बीच एकता को मजब़ूत करने के लिए कांफ़्रेंस आयोजित करें। उनका कहना था कि आज के दौर में मुसलमानों के बीच एकता सबसे महत्वपूर्ण ज़रूरत बन गयी है।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के जमीअते उलमा फ़ज़लुर्रहमान गुट के प्रतिनिधि ने कांफ़्रेंस में भाषण देते हुए कहा कि मैं ईरान से बहुत दूर था और मैं ईरान से घृणा करता था किन्तु यहां आने के बाद मेरा दृष्टिकोण पूरी तरह बदल गया। मैं ईरानियों को अपना दुश्मन समझता था किन्तु जिस प्रकार उन्होंने हमारा और दूसरे सुन्नी मुसलमान धर्मगुरुओं का स्वागत किया और उनका सम्मान किया, मैं देखकर आश्चर्यचकित रह गया।
दाइश का अंत, अमरीका और उसके घटकों के लिए झटका, वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बल दिया है कि दाइश के अभिशप्त अस्तित्व का अंत अमरीका की पूर्व और वर्तमान सरकारों तथा इस क्षेत्र में उसके घटकों के लिए एक अघात है कि जिन्हों ने इस गुट को बनाया था और हर तरह से उसकी मदद की थी ताकि पश्चिमी एशिया में अपना वर्चस्व बढ़ाएं और अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन को इस क्षेत्र पर थोप सकें।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने क्रांति संरक्षक बल आईआरजीसी की कु़दस ब्रिगेड के कमांडर, जनरल क़ासिम सुलैमनी के पत्र का उत्तर देते हुए कहा कि ईश्वर अपने पूरे अस्तित्व से आभार प्रकट करता हूं कि उसने आप और आप के असंख्य साथियों के बलिदानों से भरे संघर्ष में मदद की और अत्याचारियों द्वारा बोए गये कांटों को उसने सीरिया और इराक़ में आप जैसे अपने योग्य दासों के हाथों साफ कराया।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह केवल अत्याचारी व निर्लज्ज दाइश के लिए ही अघात नहीं था बल्कि इस पराजय से, दाइश से अधिक उस दुष्टतापूर्ण नीति को नुक़सान पहुंचा है जिसके तहत भ्रष्ट दाइश संगठन के सरगनाओं द्वरा क्षेत्र में गृहयुद्ध भड़काने, ज़ायोनी शासन के विरोध प्रतिरोध मोर्चे के अंत और स्वाधीन सरकारों को कमज़ोर करने की साज़िश रची गयी थी।