
رضوی
इस्राईल को हमास की चेतावनी, प्रदर्शनकारियों पर हमले रोक दे
फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने प्रदर्शनकारियों पर ज़ायोनी सैनिकों के हमले और तीन फ़िलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों की शहादत पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ज़ायोनी शासन को सचेत किया है।
इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार हमास ने शुक्रवार की शाम एक बयान में कहा कि ज़ायोनी सैनिकों के हाथों फ़िलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों की शहादत, इस शासन के अपराधी होने का चिन्ह है।
हमास के बयान में आया है कि अतिग्रहणकारियों के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीनी जनता का इंतेफ़ाज़ा जो अमरीकी राष्ट्रपति की कार्यवाहियों से मुक़ाबले के लिए, इस बात पर बल है कि फ़िलिस्तीनी कभी भी इस कार्यवाही को स्वीकार नहीं करेंगे और अपने अधिकारों की प्राप्ति तक इंतेफ़ाज़ा जारी रखेंगे।
शुक्रवार को ग़ज़्जा पट्टी और पश्चिमी तट में फ़िलिस्तीनियों के विरोध प्रदर्शनों पर ज़ायोनी सैनिकों के हमले में कम से कम 4 फ़िलिस्तीनी शहीद जबकि 367 घायल हो गये।
बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में स्वीकार करने के अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले के ़ख़िलाफ़ इस हफ़्ते के आरंभ से अब तक फ़िलिस्तीनियों के प्रदर्शनों पर ज़ायोनी सैनिकों की हमलों में कम से कम दो हज़ार लोग घायल हो चुके हैं।
इंडोनेशियाई मछुआरों द्वारा ताइवान में एक मस्जिद की स्थापना
atimes समाचार साइट के मुताबिक, 2014 में, यिलान सिटी के कुछ स्वदेशी मछुआरों को यह इरादा हुआ कि एक मस्जिद बनाने की जगह ढूंढी जाऐ।
उन्हों ने इस शहर में नैनान रोड पर एक पुरानी इमारत खरीदकर उसकी मरम्मत और पुनर्निर्मित किया फिर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया।
नेनफांगगांव के मछली पकड़ने की बंदरगाह में येलान शहर में 1,300 इंडोनेशियाई मछुआरे जो काम कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं।
आर्या, मुस्लिम मछुआरों में से एक ने कहा: मुसलमान रोज़ाना पांच प्रार्थनाओं को पढ़ने के लिए बाध्य होते हैं, और जब वे समुद्र में नहीं होते हैं, तो वे मस्जिद में प्रार्थना और कुरान पढ़ना पसंद करते हैं।
मस्जिद,इसी तरह मुस्लिम मछुआरों को इकट्ठा व संवाद करने का एक स्थान है और उसकी सफाई स्वयंसेवक सदस्यों द्वारा की जाती है।
हज़ारों संघर्षकर्ता इस्राईल से आरपार की लड़ाई का बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे हैं: क़स्साम ब्रिगेड
फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास की इज़्ज़ुद्दीन क़साम ब्रिगेड ने अपने बयान में इस्राईनल के विनाश तक क़ुद्स इंतेफ़ाज़ा के जारी रहने पर बल दिया है।
लेबनान की अलअहद वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम ब्रिगेड ने रविवार को एक बयान जारी करके बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी के रूप में स्वीकार किए जाने के अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले की निंदा करते हुए कहा कि यह कल्पना ही ग़लत हे कि ज़ायोनी फ़िलिस्तीन और बैतुल मुक़द्दस पर क़ब्ज़ा जमा लेंगे।
क़स्साम ब्रिगेड ने अपने बयान में बल दिया कि क़ुद्स इंतेफ़ाज़ा को पूरी शक्ति के साथ अपने रास्ते को जारी रखना होगा और अतिग्रहणकारियों से मुक़ाबले के लिए प्रतिरोध के सारे रास्तों को खुलना चाहिए।
क़स्साम ब्रिगेड के बयान में आया है कि बैतुल मुक़द्दस, पश्चिमी तट और ग़ज़्ज़ा पट्टी में इंतेफ़ाज़ा से नये परिवर्तन सामने आ रहेे हैं।
आयतुल्ला सिस्तानी ने कुद्स को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देने की निंदा किया
अल-आलम ने अपने तत्काल समाचार में एलान किया कि अयातुल्ला सिस्तानी ने अमेरिकी सरकार के निर्णय कुद्स को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के लिए निंदा किया।
अयातुल्ला सिस्तानी के बयान में कहा गया है: कि कुद्स को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के ट्रम्प के फैसले से सैकड़ों अरब और मुसलमानों की भावनाओं को चोट पहुंचाई है। इस निर्णय को ख़त्म कर कुद्स को फिलीस्तीनियों को वापस करना होगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार 6 सितंबर को व्हाइट हाउस के भाषण में कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने कुद्स को आधिकारिक तौर पर इज़राइल (जियोनिस्ट शासन) की राजधानी के रूप में मान्यता दी है, और तेल अवीव से शहर के दूतावासों की सेवाओं का स्थानांतरण तुरंत शुरू हुआ।
यह कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और पश्चिम एशियाई क्षेत्र के नेताओं द्वारा फैसले निंदा की गई है
फ़िलिस्तीन शीघ्र ही स्वतंत्र होगा, अमेरिका एवं और ज़ायोनी आज के फ़िरऔन हैः सुप्रीम लीडर
प्राप्त सूत्रों के अनुसार सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनई के ऑफ़िस की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम लीडर से ईरान के उच्च अधिकारियों एवं इस्लामिक देशों के राजदूत और वहदते इस्लामी कांफ्रेंस के मेहमानों ने कल हुसैनिया इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह में भेंट की, जिसमें सुप्रीम लीडर ने पैग़म्बरे अकरम की शिक्षाओं को इस्लाम की उम्मत की आज़ादी और क्षेत्रों से स्वतंत्रता की बुनियादी शर्त बताया है, और कहा कि अगर मुसलमान दुनिया में सम्मान और शक्ति चाहते हैं तो उन्हें आपसी एकता को अपने जीवन में सर्वोपरि रखना होगा।
सुप्रीम लीडर ने रसूले खुदा स. और इमाम सादिक. अलैहिस्सलाम के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर सभी इस्लामी जगत एवं खासतौर से हर स्वतंत्रता प्रेमी मनुष्य को बधाई देते हुए कहा कि पैग़म्बरे अकरम संपूर्ण मानवता के लिए अल्लाह की रहमत हैं, और आपके बताए रास्ते पर चलना संपूर्ण मानवता को जुल्म और सभी दुख दर्द से बचा सकता है। हज़रत आयतुल्लाह खामेनई ने अमेरिका, अवैध राष्ट्र इस्राईल, रूढ़िवाद की मोहरों को आज का फ़िरऔन बताते हुए उन्हें इस्लामी जगत के लिए सबसे बड़ा विश्वास्घाती बताया और कहा कि बहुत से अमेरिकी चाहते हुए या न चाहते हुए भी यह मान बैठे हैं कि भविष्य में पश्चिमी एशिया को हर हाल में युद्ध की आग में जलते रहना चाहिए जिससे कि अवैध ज़ायोनियों को राहत मिली रहे और इस्लामी जगत तरक़्क़ी से दूर रहे।
पैग़म्बरे इस्लाम का शुभ जन्म दिवस
शताब्दियों के इंतेज़ार का क्षण खत्म हुआ और मानवजाति के सबसे बड़े मार्गदर्शक ने इस दुनिया में क़दम रखा।
ईश्वर के सर्वश्रेष्ठ इंसान का जन्म हुआ, पूरी सृष्टि के लिए कृपा की वर्षा हुयी, दया व मार्गदर्शन का सोता फूटा और मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का प्रकाश मलकूती नामक आध्यात्मिक जगत पर छा गया।
ज्योतिषियों ने क़सम खायी कि उन्होंने ऐसे चमकदार सितारे को देखा है जिसके उदय से दुनिया में उथल पुथल मच जाएगी। उस समय हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा प्रकाश के हल्क़े में पैदा हुए। उनकी पैदाइश से अज्ञानता व भेदभाव के मरुस्थलीय रूप ने मोहब्बत व विचार के चमन का रूप धारण कर लिया। इंसान के जीवन में ठहराव आया। ईश्वर का संदेश लाने वाली इस हस्ती ने 17 रबीउल अव्वल को पवित्र नगर मक्के में एक सज्जन परिवार में आंखे खोलीं। जिनकी पैदाइश से ईश्वर पर आस्था रखने वालों के मन में ईश्वर की पहचान का सोता फूटा। ईश्वर ने उनके वजूद से पूरी मानव जाति को कृपा का तोहफ़ा भेजा। इस शुभ अवसर पर एक बार फिर आप सबको बधाई पेश करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम की मां हज़रत आमेना कहती हैं, "उस दिन मानो ईश्वरीय आभा मुझ पर छाया किए हुए थी। एक चमकता प्रकाश मेरे सिर के ऊपर से आसमान में गया। मेरे चारों ओर ईश्वरीय फ़रिश्ते उतरे और मैं अपने भीतर शांति का आभास करने लगी। पूरा कमरा प्रकाशमान हो गया और मेरा बेटा मोहम्मद दुनिया में आया। उनका चेहरा अपने पिता अब्दुल्लाह की तरह था लेकिन मोहम्मद अधिक सुंदर और उनके चेहरा अधिक आकर्षक था। उनके माथे पर आसमानी प्रकाश था जो बहुत ही सुंदर ढंग से चमक रहा था। मोहम्मद ने एक हाथ को ज़मीन पर और दूसरे हाथ को आसमान की ओर उठाया।उन्होंने बहुत ही सुंदर अंदाज़ में ईश्वर के अनन्य होने की गवाही दी। फ़रिश्तों ने उन्हें अपनी गोद में लिया और मुझे बधाई दी और बहुत ही स्वादिष्ट शर्बत मुझे पिलाया। उनमें से एक ने ऊंची आवाज़ में कहा, हे आमिना! अपने बेटे को ईश्वर के हवाले कर दो और कहो! उसे ईर्ष्या व द्वेष रखने वाले की बुराई से अनन्य ईश्वर की शरण में देती हूं।"
हज़रत अब्दुल मुत्तलिब हज़रत आमिना के पास पहुंचे और प्रकाश की तरह दमकते हुए इस नवजात को अपनी गोद में ले लिया और मस्जिदुल हराम ले गए ताकि ईश्वर का आभार प्रकट करें कि उसने उनके परिवार में ऐसे बच्चे को जन्म दिया। हज़रत अब्दुल मुत्तलिब काबे के भीतर गए। जिस समय हज़रत अब्दुल मुत्तलिब काबे में दाख़िल हो रहे थे कि उसी वक़्त बच्चे ने अपना मुंह खोला और काबे के भीतर यह आवाज़ गूंजने लगी बिस्मिल्लाह व बिल्लाह। इस दौरान एक आवाज़ आयी, "हे संसार के लोगों सत्य आया और असत्य मिट गया और असत्य तो मिटने ही वाला है।"
पैग़म्बरे इस्लाम जब 12 साल के थे तो अपने चाचा हज़रत अबू तालिब के साथ सीरिया के व्यापारिक सफ़र पर गए। रास्ते में कारवां ने एक उपासनास्थल में पड़ाव डाला। उस उपासनास्थल में एक नेक पादरी रहता था जिसका नाम बुहैरा था। बुहैरा मुसाफ़िरों का आव-भगत करते थे। जब मुसाफ़िर उपासनास्थल पहुंचे तो बुहैरा ने पूछाः कोई बाक़ी तो नहीं रह गया है? हज़रत अबू तालिब ने कहा, सिर्फ़ एक किशोर बाहर है। बुहैरा ने कहा कि उस किशोर को भी बुला लाइये। जिस वक़्त हज़रत मोहम्मद दाख़िल हुए तो बुहैरा ने हैरत से पूछाः मेरा एक सवाल है। मैं आपको लात और उज़्ज़ा की मूर्तियों की क़सम देता हूं कि सच बताइयेगा! हज़रत मोहम्मद ने जवाब दिया, मेरे निकट ये दोनों सबसे ज़्यादा अप्रिय चीज़ें हैं। बुहैरा ने कहा, आपको महान ईश्वर की क़सम देता हूं कि सच कहिएगा। हज़रत मोहम्मद ने कहा, "मैं हमेशा सच बोलता हूं।" बुहैरा ने पूछा, क्या चीज़ सबसे ज़्यादा पसंद है? हज़रत मोहम्मद ने कहा, एकान्त। बुहैरा ने कहा, "विभिन्न दृष्यों में कौनसा दृष्य सबसे ज़्यादा पंसद है?" हज़रत मोहम्मद ने कहा, "आसमान और तारे।" बुहैरा ने कुछ और सवालों के बाद हज़रत मोहम्मद के शानों को देखने की इच्छा जतायी क्योंकि बुहैरा अपने ज्ञान से समझ चुके थे कि मोहम्मद वही पैग़म्बर हैं जिनके आगमन की हज़रत ईसा शुभसूचना दे चुके थे। बुहैरा ने बड़ी उत्सुकता से हज़रत अबू तालिब से पूछाः यह बच्चा कौन है? हज़रत अबू तालिब ने कहा, मेरा बेटा है। बुहैरा ने कहा, नहीं! इस किशोर के पिता को जीवित नहीं होना चाहिए। हज़रत अबू तालिब ने हैरत से पूछाः आपको यह बातें कहां से मालूम हुयीं? बुहैरा ने कहा, इस किशोर का भविष्य बहुत अहम है। जो कुछ मैने उनमें देखा है दूसरे भी उसे देख कर समझ गए तो उन्हें मार डालेंगे। उनकी रक्षा करो क्योंकि यह अंतिम ईश्वरीय दूत हैं।
हज़रत मोहम्मद अपने दौर के दूषित समाज से बहुत दुखी थे। जैसे जैसे हज़रत मोहम्मद के विचार में गहरायी आती थी वैसे वैसे वह अपने और आम लोगों के बीच वैचारिक खाई को बढ़ता हुआ देखते थे। वह ज़्यादातर वक़्त हेरा नामक गुफा में बिताते और दुनिया की स्थिति के बारे में सोच विचार करते और ईश्वर की उपासना में समय बिताते। जब वह 40 साल के हुए तो एक दिन हेरा नामक गुफा में उपासना में लीन थे कि ईश्वरीय संदेश वही लाने वाला फ़रिश्ता प्रकट हुआ और उसने ईश्वर की ओर से पवित्र क़ुरआन की सबसे पहले उतरने वाली कुछ आयतें पढ़ीं।
पैग़म्बरे इस्लाम नैतिक मूल्यों के बाद लोगों के बीच एकता को मानव जाति की सफलता के लिए बहुत ज़रूरी मानते थे इसलिए उन्होंने एक दूसरे की दुश्मन जातियों को आपस में एकजुट किया और उनके मन में द्वेष के स्थान पर मोहब्बत और बिखराव की जगह पर एकता व भाईचारे का बीच बोया। पैग़म्बरे इस्लाम ने मदीना पलायन करने के पहले साल जो सबसे अच्छी पहल की वह यह थी कि उन्होंने सभी मुसलमानों के बीच चाहे वे मर्द हों या औरत बंधुत्व की संधि क़ायम की। यह ऐसी संधि थी जो जातीय व क़बायली भावना से हट कर सत्य व सामाजिक सहयोग की भावना पर आधारित थी।
यूं तो हर ईश्वरीय पैग़म्बर अच्छे व्यवहार व शिष्टाचार के स्वामी होते थे लेकिन अंतिम ईश्वरीयदूत हज़रत मोहम्मद मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम इस दृष्टि बहुत ही ऊंचे स्थान पर हैं। जैसा कि ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि मैं इसलिए पैग़म्बरी के लिए नियुक्त हुआ हूं कि नैतिकता को उसके चरम पर पहुंचाऊं। स्वंय ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम के शिष्टाचार की तारीफ़ में पवित्र क़ुरआन में कहा है कि हे पैग़म्बर अगर आप अच्छे स्वभाव के न होते तो लोग आपसे दूर हो जाते। पैग़म्बरे इस्लाम का मेहरबान स्वभाव हर एक को सम्मोहित कर लेता था।
पैग़म्बरे इस्लाम जिस रास्ते से गुज़रते थे हर दिन एक यहूदी अपने घर की छत से उन के सिर पर मिट्टी डालता था, लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम ख़ामोशी से गुज़र जाते और उसे कुछ नहीं कहते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि जब पैग़म्बरे इस्लाम उस रास्ते से गुज़रे तो उस यहूदी ने उन पर कूड़ा नहीं फेंका। आपने बहुत ही मीठे स्वर में पूछा कि आज मेरा दोस्त नज़र नहीं आया। लोगों ने बताया कि वह बीमार है। तो आप उसे देखने के लिए गए। उसके बिस्तर के किनारे इस तरह बैठ गए मानो उस व्यक्ति से किसी तरह का कोई कष्ट न पहुंचा हो। वह यहूदी पैग़म्बरे इस्लाम के इस व्यवहार से हैरत में पड़ गया।
जिस समय मक्का फ़त्ह हुआ और पैग़म्बरे इस्लाम पूरी शान के साथ मक्के में दाख़िल हुए तो इस्लाम का ध्वज उठाने वाले एक शेर पढ़ रहे थे जिसका अर्थ है, आज लड़ाई का दिन है। आज तुम्हारी जान माल हलाल समझी जाएगी और आज क़ुरैश के अपमान का दिन है। पैग़म्बरे इस्लाम ने जब यह सुना तो नाराज़ हुए और तुरंत कहा, आज कृपा का दिन है। आज क़ुरैश के सम्मान का दिन है। आज वह दिन है कि ईश्वर ने काबे को इज़्ज़त दिलायी।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, "ईश्वर का शुक्रिया कि उसने इतनी सारी जातियों में हमारे बीच हज़रत मोहम्मद को भेजा। हे ईश्वर उन पर अपनी कृपा नाज़िल कर जो तेरी वही के अमानतदार, तेरे बंदों में सबसे अच्छे बंदे हैं। वे अच्छाइयों के ध्वजवाहक और बरकत की कुन्जी हैं। हे प्रभु! उन्होंने तेरे मार्ग में जो कठिनायी सहन की उसके बदले में उन्हें स्वर्ग में ऐसा स्थान दे कि कोई भी उनके स्थान तक न पहुंच सके कोई फ़रिश्ता और पैग़म्बर उनकी बराबरी न करे।"
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस
सत्रह रबीउल अव्वल को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के शुभ जन्म दिवस के दिन ही उनके पवित्र परिवार में एक नवजात ने आंखें खोलीं जिसने आगे चल कर मानवता, ज्ञान, प्रतिष्ठा व अध्यात्म के संसार में अनेक अहम परिवर्तन किए।
वह नवजात, इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के घर में जन्मा था जिसका नाम जाफ़र रखा गया और आगे चल कर उसे सादिक़ अर्थात सच्चे की उपाधि दी गई।
इस्लामी समुदाय की एकता व एकजुटता का विषय पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के निकट अत्यंत महत्वपूर्ण मामलों में से एक था, इस प्रकार से कि वे मुसलमानों की एकता की रक्षा पर अत्यधिक बल देने के साथ ही इस पर ध्यान देने को धार्मिक विरोधियों के संबंध में शियों का मुख्य दायित्व बताते थे। इसी तरह उनका और उनके मानने वालों अर्थात शियों का व्यवहारिक चरित्र भी अन्य मुसलमानों के साथ सहनशीलता पर आधारित था जिससे उनके निकट इस विषय के महत्व का पता चलता है। यह बिंदु शिया मुसलमानों की सही धार्मिक संस्कृति को दर्शाने के साथ ही उन पर लगाए जाने वाले बहुत से आरोपों और भ्रांतियों को दूर कर सकता है।
पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन उन ईश्वरीय नेताओं में से हैं जिन्हें पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने क़ुरआने मजीद के साथ लोगों के कल्याण व मोक्ष का कारण बताया है। उनकी बातें, क़ुरआन की ही बातें हैं और उनका लक्ष्य ईश्वरीय आदेशों को लागू करना है। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ईश्वरीय नेताओं का संपूर्ण नमूना हैं जो हर चीज़ से ज़्यादा लोगों की एकता व एकजुटता के बारे में सोचते थे और हमेशा इस बात पर बल देते थे कि लोगों के बीच गहरे मानवीय व स्नेहपूर्ण संबंध होने चाहिए। वे कहते थे। एक दूसरे से जुड़े रहो, एक दूसरे से प्रेम करो, एक दूसरे के साथ भलाई करो और आपस में मेल-जोल से रहो। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का वंशज होने और गहरा ज्ञान, तत्वदर्शिता, शिष्टाचार और इसी प्रकार के अन्य सद्गुणों से संपन्न होने के कारण इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम मुसलमानों के बीच एकता के लिए मज़बूत पुल की हैसियत रखते थे।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम आपसी फूट को इस्लाम की कमज़ोरी और दुश्मन की ओर से ग़लत फ़ायदा उठाए जाने का कारण बताते थे। उन्होंने अपने एक साथी से इस प्रकार कहा थाः हमारे मानने वालों तक हमारा सलाम पहुंचाओ और उनसे कहो कि ईश्वर उस बंदे पर दया करता है जो लोगों की मित्रता को अपनी ओर आकृष्ट करे। इमाम सादिक़ का मानना था कि सभी धार्मिक वर्ग व गुट इस्लामी समाज के सदस्य हैं और उनका सम्मान व समर्थन किया जाना चाहिए क्योंकि वे भी शासकों के अत्याचारों से सुरक्षित नहीं रहे हैं। इसी लिए वे बल देकर कहते थे कि मुसलमानों के लिए ज़रूरी है कि वे आपसी मित्रता व प्रेम को सुरक्षित रखने के साथ ही सभी इंसानों की आवश्यकताएं पूरी करने में उनके सहायक रहें। वे स्वयं भी हमेशा ऐसा ही करते थे।
इतिहास साक्षी है कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की इमामत का काल, संसार में इस्लामी ज्ञानों यहां तक कि विज्ञान व दर्शनशास्त्र के विकास का स्वर्णिम काल था। उन्होंने सरकारी तंत्र की ओर से अपने और अपने प्रमुख शिष्यों के ख़िलाफ़ डाले जाने वाले भीषण दबाव और कड़ाई के बावजूद अपने निरंतर प्रयासों से इस्लामी समाज को ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद अपने प्रतिद्वंद्वियों से काफ़ी आगे पहुंचा दिया। इमाम सादिक़ और उनके पिता इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिमस्सलाम की इमामत के काल में यूनान के अनेक वैचारिक व दार्शनिक संदेह इस्लामी क्षेत्रों में पहुंचने के अलावा भीतर से भी विभिन्न प्रकार के ग़लत विचार पनप रहे थे। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इन दोनों मोर्चों के मुक़ाबले में अपने ज्ञान व युक्तियों से इस्लामी समाज की धार्मिक व वैज्ञानिक स समस्याओं का समाधान करने के अलावा उन उपायों की ओर से भी निश्चेतना नहीं बरती जो मुसलमानों के बीच एकता का कारण बनते थे। वे अपने अनुयाइयों से कहते थे कि सुन्नी रोगियों से मिलने के लिए जाया करो, उनकी अमानतें उन्हें लौटाओ, उनके पक्ष में न्यायालय में गवाही दो, उनके मृतकों के अंतिम संस्कारों में भाग लो, उनकी मस्जिदों में नमाज़ पढ़ो ताकि वे लोग कहें कि अमुक व्यक्ति जाफ़री है, अमुक व्यक्ति शिया है जो इस तरह के काम करता है और यह बात मुझे प्रसन्न करती है।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम को वास्तव में इस्लामी एकता का ध्वजवाहक कहा जा सकता है। वे मुसलमानों के बीच एकजुटता के लिए कहते थे। जो अहले सुन्नत के साथ नमाज़ की पहली पंक्ति में खड़ा हो वह उस व्यक्ति की तरह है जिसने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पीछे जमाअत से नमाज़ पढ़ी हो। उनके एक शिष्य इस्हाक़ इब्ने अम्मार कहते हैं। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने मुझसे कहाः हे इस्हाक़! क्या तुम अहले सुन्नत के साथ मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हो? मैंने कहा कि जी हां, मैं पढ़ता हूं। उन्होंने कहाः उनके साथ नमाज़ पढ़ो कि उनकी पहली पंक्ति में नमाज़ पढ़ने वाला, ईश्वर के मार्ग में खिंची हुई तलवार की तरह है। उनके इसी व्यवहार के कारण उनके शिष्यों में सिर्फ़ शिया नहीं थे बल्कि अहले सुन्नत के बड़े बड़े धर्मगुरू भी उनके शिष्यों में दिखाई देते हैं। मालिक इब्ने अनस, अबू हनीफ़ा, मुहम्मद इब्ने हसन शैबानी, सुफ़यान सौरी, इब्ने उययना, यहया इब्ने सईद, अय्यूब सजिस्तानी, शोबा इब्ने हज्जाज, अब्दुल मलिक जुरैह और अन्य वरिष्ठ सुन्नी धर्मगुरू इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिष्यों में शामिल हैं।
अहले सुन्नत के बड़े बड़े धर्मगुरुओं और इतिहासकारों ने इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की महानता के बारे में बातें कही हैं और उनके शिष्टाचार, अथाह ज्ञान, दान दक्षिणा और उपासना की सराहना की है। ज्ञान के क्षेत्र में उनकी महानता के बारे में इतना ही जानना काफ़ी है कि अहले सुन्नत के 160 से अधिक धर्मगुरुओं ने अपनी किताबों में उनकी सराहना की है और उनकी बातें व हदीसें लिखी हैं। अहले सुन्नत के इमाम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिष्य थे। मालिक इब्ने अनस ने इमाम सादिक़ से ज्ञान अर्जित किया और वे उनके शिष्य होने पर गर्व करते थे। अबू हनीफ़ भी दो साल तक उनके शिष्य रहे। वे इन्हीं दो वर्षों को अपने ज्ञान का आधार बताते थे और कहते थे कि अगर वे दो साल न होते तो नोमान (अबू हनीफ़ा) तबाह हो गया होता।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम एक स्थान पर कहते हैं। मुसलमान, मुसलमान का भाई और उसकी आंख, दर्पण व पथप्रदर्शक के समान है और व कभी भी उससे विश्वासघात नहीं करता और न ही उसे धोखा देता है। वह उस पर न तो अत्याचार करता है, न उससे झूठ बोलता है और न पीठ पीछे उसकी बुराई करता है। इस प्रकार उन्होंने मुसलमानों के बीच अत्यंत निकट व मैत्रीपूर्ण संबंधों व बंधुत्व पर बल देते हुए इस भाईचारे और निकट संबंध को बुरे व्यवहारों से दूर बताया है। उनके चरित्र से भी यही पता चलता है कि उन्होंने कभी भी अपने आपको सामाजिक या धार्मिक बंधनों और भेदभाव में नहीं फंसाया और हमेशा सभी इस्लामी मतों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों पर बल देते रहे।
शायद कुछ लोग यह सोचें कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने डर कर या अहले सुन्नत का ध्यान रखते हुए इस तरह की बातें कही हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि यह सोच न तो इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल की परिस्थितियों से समन्वित है और न वर्तमान समय के उच्च शिया धर्मगुरुओं के फ़त्वों से मेल खाती है क्योंकि इस समय भी शिया धर्मगुरुओं के फ़त्वे भी उन्हीं आधारों के अंतर्गत दिए गए हैं जिन्हें इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कई शताब्दियों पूर्व अहले सुन्नत के साथ व्यवहार के संबंध में बयान किया था।
मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने के लिए इस सुन्नी धर्मगुरु का एेतिहासिक क़दम, दुनिया हैरान
ईरान के उत्तरी ख़ुरासान के प्रसिद्ध सुन्नी धर्म गुरु मुल्ला अब्दुल्लाह अमानी ने इस्लामी जगत में एकता के विषय पर बल दिया है।
तस्नीम न्यूज़ एजेन्सी की रिपोर्ट के अनुसार ईरान का उत्तरी ख़ुरासान प्रांत सीमावर्ती प्रांतों में से एक है जहां विभिन्न जातियों और समुदाय के लोग रहते हैं। इस प्रांत में रहने वालों से कुछ का संबंध सुन्नी तुर्कमन से है। इन लोगों ने पूरी निष्ठा और सच्चाई के साथ इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गये युद्ध के दौरान देश का भरपूर साथ दिया और 30 शहीदों का बलिदान पेश किया।
इसी क्षेत्र के रहने वाले एक प्रसिद्ध धर्मगुरु का नाम हाजी अब्दुल्लाह अमानी है जिन्होंने वहां पर एक धार्मिक स्कूल खोला है और उसका नाम पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के नाम पर रखा है। उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि उनकी यह कार्यवाही, मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने का महत्वपूर्ण राज़ और केन्द्र है।
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने धार्मिक केन्द्र या मदरसे का नाम पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के नाम पर क्यों रखा? तो उनका कहना था कि आशा कि सभी मुस्लिम महिलाओं को हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) से जुड़ा रहना चाहिए और यदि वह उनसे जुड़ी रहती हैं कि ख़ुद ही वह पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण और पवित्र क़ुरआन की शिक्षा पर अमल करने के रास्ते पर चल पड़ेंगी।
जब उनसे दाइश के बारे में पूछा था तो उन्होंने कहा कि दाइश एक नया और ताज़ा विषय है किन्तु यदि इस्लाम धर्म के उदय के समय यह पथभ्रष्टता पैदा हो जाती तो मुसलमानों के लिए बड़ी समस्याएं पैदा हो जातीं। दाइश, यहूदी और काफ़िरों के विचारों का परिणाम है। हमारी ज़िम्मेदारी है कि इन ख़राब माहौल में अल्लाह की किताब और उसके पैग़म्बर की शिक्षाओं पर अमल करते रहें ताकि इस प्रकार की चीज़ें मुसलमानों को नुक़सान न पहुंचा सके।
बैतुलमुक़द्दस पर ट्रम्प का फैसला, अतिग्रहण को क़ानूनी ठहराने का प्रयास है, ईरान
संयुक्त राष्ट्र संघ में इस्लामी गणतंत्र ईरान के स्थायी प्रतिनिधि कहा है कि फिलिस्तीन पर नाजायज़ क़ब्ज़ा , इलाक़े के सभी संकटों की जड़ है।
ग़ुलामअली खुशरो ने बल दिया है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी बताना वास्तव में ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़े को क़ानूनी बनाने का प्रयास है।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में " संस्कृति व शांति " नामक एक सम्मेलन में ट्रम्प के हालिया की कड़े शब्दों में आलोचना की और उसे सभी अंतरराष्ट्रीय नियमों का खुला उल्लंघन बताया।
उन्होंने कहा कि बैतुल मुक़द्दस सहित फिलिस्तीनियों के निश्चित अधिकारों की अनदेखी की की किसी भी कोशिश से हालात और खराब होंगे और विश्व समुदाय अमरीका और ज़ायोनी शासन को इस ग़ैर ज़िम्मेदाराना और ग़ैर क़ानूनी फैसले के खतरनाक अंजाम का ज़िम्मेदार समझता है ।
ग़ुलामअली खुशरो ने कहा कि ट्रम्प के इस फैसले से पश्चिमी एशिया में शांति व स्थायित्व के बारे में अमरीका को दोग़लापन भी स्पष्ट हो गया और एक बार फिर यह भी साबित हो गया कि अमरीका ज़ायोनी शासन के समर्थन के लिए किस तरह से अंतरराष्ट्रीय नियमों और फिलिस्तीनियों के अधिकारों की अनदेखी करता है ।
याद रहे अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार को क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक विरोध के बावजूद एलान किया कि अमरीका बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी के रूप में मान्यता देता है।
पूरी दुनिया में ट्रम्प के इस फैसला का विरोध हो रहा है। क़ुद्स का इस्राईल ने सन 1967 में अतिग्रहण किया था।
बैतुल मुक़द्दस फ़िलिस्तीनियों को वापस दिलाने के लिए मुसलमान एकजुट होंः आयतुल्लाह सीस्तानी
इराक़ में शिया मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरू ने कहा है कि इस्लामी समुदाय, बैतुल मुक़द्दस फ़िलिस्तीनियों को वापस दिलाने के लिए एकजुट हो जाए।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सीस्तानी ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प की ओर से बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में मान्यता दिए जाने के फ़ैसले की निंदा करते हुए गुरुवार को कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति के इस क़दम ने दुनिया के दसियों करोड़ मुसलमानों और अरबों की भावनाओं को आहत किया है। उन्होंने कहा कि बैतुल मुक़द्दस के ख़िलाफ़ अमरीकी सरकार का फ़ैसला इस सच्चाई को बदल नहीं सकता कि यह पवित्र स्थल एक अतिग्रहित स्थान है और इसे इसके वास्तविक मालिकों यानी फ़िलिस्तीनियों को लौटाया जाना चाहिए।
इस बीच इराक़ी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अहमद महजूब ने भी एक बयान जारी करके कहा है कि गुरुवार को ट्रम्प के इस क़दम पर आपत्ति स्वरूप बग़दाद में अमरीका के राजदूत को विदेश मंत्रालय में तलब करके उन्हें इस बारे में इराक़ की आपत्ति से अवगत कराया गया। इराक़ के दो अन्य धर्मगुरुओं व राजनैतिक हस्तियों अम्मार हकीम और मुक़्तदा सद्र ने भी अमरीकी दूतावास को तेल अवीव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करके ट्रम्प के फ़ैसले की निंदा की और कहा कि मुसलमानों और मुस्लिम देशों को फ़िलिस्तीन समस्या की ओर से ध्यान नहीं हटाना चाहिए। मुक़्तदा सद्र ने अपने बयान में कहा है कि अरब व इस्लामी देशों के शासक जान लें कि अगर उन्होंने बैतुल मुक़द्दस से हाथ उठा लिया तो आगे चल कर उन्हें पछताना पड़ेगा।