
رضوی
हुसैनी अनुष्ठानों का पुनरुद्धार, अहले बैत(अ.) की अवधारणा से प्रेरणा के लिए एक अवसर
अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार ऐजेंसी समाचार एजेंसी नून इराक के अनुसार, ग्रैंड अयातुल्ला मोहम्मद सईद अल-हकीम ने, Arbaeen तीर्थयात्रा की पूर्व संध्या पर तीर्थयात्रियों के प्रतिनिधिमंडलों और इमाम हुसैन के रौज़ के लिए अहलेबैत (अ.स) के प्रेमियों से मिल्यून लोगों की रैली, जिन्हों ने इराक़ की यात्रा की, के साथ मुलाकात में कहाः Arbaeen तीर्थयात्रा को, अहले बैत(अ.) के मज़्हब के विचारों और उदात्त सिद्धांतों व इसी तरह मुसलमानों के बीच सहयोग, अच्छे संस्कारों से सजने, अच्छे ब्यवहार, ईमानदारी और सच्चाई, माता-पिता के साथ अच्छाई, धैर्य और सहन के बारे में जागरूकता के लिए एक अवसर बताया।
अयातुल्ला हकीम ने कहाः कि इन विशेषताओं के साथ शियाओं के होने से अहले बैत (अ.) पूरी दुनिया के लिए सम्मान का कारण बनेंगे, और उन्हें Ashura समारोह का लाभ उठाने और ऐसे शरीफ़ समारोहों को पाक दामनी,वाजेबात के पालन, बलिदान, दुश्मन न करने,दूसरों से मोहब्बत करने व अन्य नैतिक मूल्यों के रूप में अवधारणाओं और सिद्धांतों को व्यक्त करने की ओर बुलाया जो कि इमाम हुसैन की जीवनी व क्रांति में पाऐ जाते हैं।
रोहिंग्या मुसलमानों की दयनीय स्थिति पर यूनीसेफ़ की चेतावनी
संयुक्त राष्ट्र संघ बाल कोष (यूनीसेफ़) ने बांग्लादेश में रोहिंग्या मुसलमानों की दयनीय स्थिति के संबंध में चेतावनी दी है।
बांग्लादेश-म्यांमार सीमा पर रोहिंग्या मुसलमानों के शरणार्थी शिविर का दौरा करने वाले यूनीसेफ़ के एक अधिकारी ने रविवार को बताया कि लगभग 90 प्रतिशत रोहिंग्या शरणार्थी कुपोषण का शिकार हैं और अत्यंत दुर्दशा में जीवन बिता रहे हैं। अधिकारी ने बताया कि रोहिंग्या शरणार्थी 24 घंटे में केवल एक बार खाने खाते हैं और लगभग डेढ़ लाख बच्चों और महिलाओं को कुपोषण की स्थिति से बाहर निकलने लिए तुरंत मदद की ज़रूरत है।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की शहादत।
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों समेत ईश्वर के प्रिय बंदों का शुभ जन्म दिवस या शहादत का दिन उनके जीवन की अहम घटनाओं पर एक सरसरी नज़र डालने का अवसर होता है।
इस सीमित समय में उन महान हस्तियों की जीवनी पर भी सरसरी नज़र डालना संभव नहीं है बल्कि उनके जीवन के कुछ पन्नों पर ही नज़र डाली जा सकती है। बारह मुहर्रम की तारीख़ एक रिवायत के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सुपुत्र हज़रत इमाम अली इब्ने हुसैन ज़ैनुल आबेदीन की शहादत की तारीख़ है जबकि एक अन्य रिवायत के अनुसार उनकी शहादत 25 मुहर्रम को हुई थी।
इमाम अली इब्ने हुसैन के कई उपनाम थे जिनमें सज्जाद, सैयदुस्साजेदीन और ज़ैनुल आबेदीन प्रमुख हैं। उनकी इमामत का काल कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद शुरू हुआ। इस काल की ध्यानयोग्य विशेषताएं हैं। इमाम सज्जाद ने इस काल में अत्यंत अहम और निर्णायक भूमिका निभाई। कर्बला की घटना के समय उनकी उम्र 24 साल थी और इस घटना के बाद वे 34 साल तक जीवित रहे। इस अवधि में उन्होंने इस्लामी समाज के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली और विभिन्न मार्गों से अत्याचार व अज्ञानता के प्रतीकों से मुक़ाबला किया।
इस मुक़ाबले के दौरान इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के चरित्र में जो बात सबसे अधिक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है वह कर्बला के आंदोलन की याद को जीवित रखना और इस अमर घटना के संदेश को दुनिया तक पहुंचाना है। इमाम सज्जाद को वर्ष 95 हिजरी में 12 मुहर्रम को उस समय के उमवी शासक वलीद इब्ने अब्दुल मलिक के आदेश पर एक षड्यंत्र द्वारा ज़हर देकर शहीद कर दिया गया।
कभी कभी एक आंदोलन को जारी रखने और उसकी रक्षा करने की ज़िम्मेदारी, उसे अस्तित्व में लाने से अधिक मुश्किल व संवेदनशील होती है। ईश्वर की इच्छा थी कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला की घटना के बाद जीवित रहें ताकि पूरी सूझ-बूझ व बुद्धिमत्ता के साथ अपने पिता इमाम हुसैन के आंदोलन का नेतृत्व करें। उन्होंने ऐसे समय में इमामत का पद संभाला जब बनी उमय्या के शासकों के हाथों धार्मिक मान्यताओं में फेरबदल कर दिया गया था और अन्याय, सांसारिक मायामोह और संसार प्रेम फैला हुआ था। उमवी शासन धर्मप्रेम का दावा करता था लेकिन इस्लामी समाज धर्म की मूल शिक्षाओं से दूर हो गया था। सच्चाई यह थी कि उमवी, धर्म का चोला पहन कर इस्लामी मान्यताओं को नुक़सान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने आशूरा की घटना को अपने हित में इस्तेमाल करने और इमाम हुसैन व उनके साथियों के आंदोलन को विद्रोह बताने की कोशिश की।
इन परिस्थितियों में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने दायित्वों को दो चरण में अंजाम दिया, अल्पकालीन चरण और दीर्घकालीन चरण। अल्पकालीन चरण, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत और इमाम सज्जाद व उनके अन्य परिजनों की गिरफ़्तारी के तुरंत बाद आरंभ हुआ था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन के दायित्व का दीर्घकालीन चरण उनके दमिश्क़ से मदीना वापसी के बाद शुरू हुआ। इमाम हुसैन की शहादत के बाद इमाम सज्जाद और हज़रत ज़ैनब समेत उनके परिजनों को उमवी शासन के अत्याचारी सैनिकों ने गिरफ़्तार कर लिया था। उन्हें गिरफ़्तार करने के बाद कूफ़ा नगर लाया गया जहां इमाम सज्जाद ने लोगों के बीच इस प्रकार भाषण दिया कि उसी समय वहां के लोगों की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे और उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन से माफ़ी मांगी। इमाम ने उनके जवाब में कहा था। हे लोगो! मैं हुसैन का बेटा अली हूं। उसका बेटा जिसका तुमने सम्मान न किया। हे लोगो! ईश्वर ने हम पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को अच्छी तरह से आज़माया है और कल्याण, न्याय व ईश्वरीय भय व पवित्रता को हमारे अस्तित्व में रखा है। क्या तुमने मेरे पिता को पत्र नहीं लिखा था और उन्हें आज्ञापालन का वचन नहीं दिया था? लेकिन इसके बाद तुमने धोखा दिया और उनसे लड़ने के लिए उठ खड़े हुए, कितने बुरे लोग हो तुम!
इमाम अली इब्ने हुसैन की बातें आशूरा के आंदोलन और लोगों के मन व विचारों के बीच एक पुल के समान थीं। उन संवेदनशील परिस्थितियों में यद्यपि मर्म स्पर्षी दुख इमाम सज्जाद को तड़पा रहे थे लेकिन वे अच्छी तरह जानते थे कि इमाम हुसैन की सत्यता को लोगों के समक्ष बयान करने का सबसे प्रभावी मार्ग, उमवी शासकों की पोल खोलना है ताकि सोई हुई आत्माओं को जगाया जा सके और इमाम हुसैन व उनके साथियों के ख़िलाफ़ उमवियों के झूठे व विषैले प्रोपेगंडों को नाकाम बनाया जा सके। बंदि बनाए जाने के दिन इमाम सज्जाद और पैग़म्बरे इस्लाम के अन्य परिजनों के लिए बहुत कड़े थे। इस दौरान इमाम ज़ैनुल आबेदीन और हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का अस्तित्व अन्य बंदियों के लिए बहुत बड़ा सहारा था।
कर्बला के आंदोलन के संदेशवाहक इमाम सज्जाद के जीवन के अहम आयामों में से एक वर्तमान सीरिया की उमवी मस्जिद में उनका ठोस भाषण भी है। जब उन्हें गिरफ़्तार करके मुआविया के पुत्र यज़ीद के दरबार में लाया गया तो उन्होंने देखा कि यज़ीद जीत के नशे में चूर है। यज़ीद सोच रहा था कि हालात उसके हित में हैं लेकिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पूरे साहस के साथ मिम्बर पर गए और उन्होंने एक ज़बरदस्त भाषण दिया। उन्होंने कहाः हे लोगो! ईश्वर ने हम पैग़म्बर के परिजनों को ज्ञान, धैर्य, दानशीलता, महानता, शब्दालंकार और साहस जैसी विशेषताएं प्रदान की हैं और ईमान वालों के दिलों में हमारा प्रेम रखा है। हे लोगो! जो मुझे नहीं पहचानता मैं उसे अपना परिचय देता हूं। इसके बाद उन्होंने अपने आपको पैग़म्बर इस्लाम का नाती बताया और कहाः मैं सबसे उत्तम इंसान का पुत्र हूं, मैं उसका बेटा हूं जिसे मेराज की रात मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक़सा ले जाया गया। फिर उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शौर्य और पैग़म्बर की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा अलैहस्सलाम के गुणों व विशेषताओं का उल्लेख किया और फिर अपने पिता इमाम हुसैन के बारे में कहा। मैं उसका बेटा हूं जिसे प्यासा शहीद कर दिया गया। उसे अत्याचार के साथ ख़ून में नहला दिया गया और उसका शरीर कर्बला की ज़मीन पर गिर पड़ा। उसकी पगड़ी और वस्त्र को चुरा लिया गया जबकि आसमान पर फ़रिश्ते रो रहे थे। मैं उसका बेटा हूं जिसके सिर को भाले पर चढ़ाया गया और उसके परिजनों को बंदी बना कर इराक़ से शाम लाया गया। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के बातें इतनी झिंझोड़ देने वाली थीं कि यज़ीद और उमवी शासन हिल कर रह गया और उन्हें कर्बला के आंदोलन की उफनती हुई लहरों में अपना तख़्त डूबता हुआ महसूस हुआ। यही कारण था कि उन्हों ने जल्द से जल्द बंदियों के कारवां को मदीना लौटाने का फ़ैसला किया।
मदीने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की वापसी के बाद उनका दायित्व एक नए चरण में पहुंच गया। उन्होंने इस चरण में दीर्घकालीन लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश की। उस समय की अनुचित परिस्थितियों के दृष्टिगत इमाम सज्जाद ने लोगों की धार्मिक आस्थाओं को सुधारने और उन्हें मज़बूत बनाने की कोशिश की। इसी कारण उन्होंने अपनी इमामत के 34 वर्षीय काल में अत्यंत मूल्यवान धार्मिक शिक्षाएं अपनी यादगार के रूप में छोड़ीं और ज्ञान व सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
कर्बला की घटना के बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का एक मूल्यवान काम, अत्यंत समृद्ध दुआओं का वर्णन है। उनकी ये दुआएं सहीफ़ए सज्जादिया नामक एक पुस्तक में एकत्रित कर दी गई हैं। इस किताब में बंदा अपने पालनहार से अपने दिल की बातें करता है लेकिन अगर इन दुआओं को गहरी नज़रों से देखा जाए तो पता चलता है कि इमाम सज्जाद ने दुआ के माध्यम से जीवन, सृष्टि, आस्था संबंधी मामलों और व्यक्तिगत व सामूहिक नैतिकता को बड़ी गहराई से बयान किया है बल्कि इन दुआओं के ज़रिए उन्होंने कुछ राजनैतिक मामलों की भी समीक्षा की है।
सहीफ़ए सज्जादिया, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के ज्ञान व अध्यात्म की महानता के एक आयाम को समझने का उत्तम माध्यम है। हम इस मूल्यवान किताब को जितना अधिक ध्यान से पढ़ते जाएंगे उतना ही नए नए क्षितिज हमारे सामने खुलते चले जाएंगे। उन्होंने दुआ के सांचे में ईश्वर के आदेशों और इस्लामी शिक्षाओं के प्रसार के मार्ग में बहुत बड़े बड़े क़दम उठाए हैं जिस पर विद्वान और बुद्धिजीवी आश्चर्यचकित हैं। एक वरिष्ठ धर्मगुरू शैख़ मुफ़ीद कहते हैं। सुन्नी धर्मगुरुओं ने इमाम सज्जाद से इतने अधिक ज्ञान हासिल किए हैं कि जिन्हें गिना नहीं जा सकता। दुआओं, उपदेशों और क़ुरआने मजीद की हलाल व हराम बातों के बारे में उनसे बहुत अधिक हदीसें उद्धरित की गई हैं। अगर हम उनके बारे में विस्तार से बात करना चाहेंगे तो फिर बात बहुत लम्बी हो जाएगी।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम को अपनी इमामत की पूरी अवधि में उमवी शासकों के द्वेष व शत्रुता का सामना रहा। उनमें से हर एक शासक ने इस्लाम के इस प्रकाशमान दीपक को बुझाने की कोशिश की। वर्ष 95 हिजरी में उनमें से एक दुष्ट शासक की कोशिशें सफल हो गईं और वलीद बिन अब्दुल मलिक ने उन्हें ज़हर के माध्यम से शहीद करवा दिया। इस प्रकार ज्ञान व अध्यात्म की सेवा में असंख्य यादगारें छोड़ने के बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपने पालनहार से जा मिले। इस अवसर पर हम एक बार फिर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।
म्यांमार में फिर शुरू हुआ रोहिंग्या मुसलमानों का नरसंहार
म्यांमार में कुछ दिनों की शांति के बाद एक बार फिर से रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार का सिलसिला शुरू हो गया है।
अलआलम टीवी चैनल की रिपोर्ट के अनुसार म्यांमार की सेना और चरमपंथी बौद्धों द्वार रोहिंग्या मुसलमानों का लगातार नरसंहार किया जा रहा है। शुक्रवार को एक बार फिर म्यांमार के कई क्षेत्रों में कट्टरपंथी बौद्ध इस देश की सेना के साथ मिलकर रोहिंग्या मुसलमानों पर हमला करते दिखाई दिए हैं।
राष्ट्र संघ की ताज़ा रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई है कि बांग्लादेश की ओर पीड़ित रोहिंग्या मुसमलानों के पलायन का सिलसिला न केवल जारी है बल्कि इसमें वृद्धि हुई है। इस बीच बांग्लादेश के स्थानीय मानवाधिकार संगठनों ने सूचना दी है कि पीड़ित रोहिंग्या महिलाओं और बच्चों में विभिन्न तरह की बीमारियां फैल रही हैं।
इंग्लैंड के ईसाई और मुसलमानों की बैठक
न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक बताया कि यह भोज "पडोसी के साथ प्रेम" शीर्षक के तहत आयोजित किया गया था, जिसमें लंदन पार्क के फिंसबरी मस्जिद पर हालिया घटना की निंदा की गई।
इसके अलावा इस सभा में ब्रिटिश समुदाय की मुस्लिम सेवाओं की सराहना की ग़ई।
यह सम्मेलन अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ दया और दोस्ती और अतिवादी समूहों से लड़ने और उनके लक्ष्यों को कार्यान्वित करने से रोकने के लिए आयोजन किया गया।
कुछ ही दिन पहले लंदन में इस्लामिक समूहों द्वारा एक शांतिपूर्ण मार्च आयोजित किया गया था जिसमें मुस्लिम और गैर-मुस्लिम ने आईएसआई के अपराधों की निंदा करते हुए कहा कि यह लोग़ धार्मिक शिक्षाओं से दुर हैं।
रोहिंग्यों के घर को जलाया जाना जारी है
ने रायटर के मुताबिक बताया कि पिछले पांच हफ्तों में म्यांमार के सैनिकों ने पांच लाख से अधिक रोहंगिया मुस्लिम परीशान किया जिस की वजह से बांग्लादेश भाग गए हैं।
म्यांमार का यह दावा है कि मुस्लिम जातीय के साथ युद्ध आतंकवादियों की सफाई है।
बांग्लादेश और म्यांमार ने सोमवार को सहमति व्यक्त किया कि इस देश में मुसलमान जिनका नाम शरणार्थियों रूप में पंजीकृत है म्यांमार लौट आएंगे, लेकिन बांग्लादेश के शिविरों में रहने वाले को इस पर कोई भरोसा नहीं है।
रोहंग्या का अब्दुल्ला नामी शरण लेने वाला आदमी का कहना है कि "सब कुछ जलाया जा चुका है, यहां तक कि लोगों को भी जलाया ग़या है।कीसी के पस म्यांमार में रहने का कोई भी अधिकार नहीं है
रशीदा बेग़म जो सोमवार को बांग्लादेश आई हैं कहती हैं कि फौजी लोग घर आकर बचे लोगों को घर छोड़ने की चेतावनी दे रहे हैं। लोगों को घरों से बाहर निकाल कर घरों को जला दिया।
हज के दौरान, सऊदी अधिकारियों ने ईरान के विरुद्ध ख़ूब प्रोपेगैंडें किएः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई ने ईरान के सामने एक बड़े अंतर्राष्ट्रीय प्रचारिक मोर्चे की उपस्थिति और गतिविधियों का उल्लेख करते हुए कहा कि हज, दुनिया के लोगों के साथ संपर्क स्थापित करने का बेहतरीन प्रचारिक स्थान और सामने वाले पक्षों के प्रोपेगैंडों को विफल बनाने का बेहतरीन अवसर है।
ईरान की हज संस्था के अधिकारियों और हज संस्था के प्रमुख ने मंगलवार को इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। वरिष्ठ नेता ने इस अवसर पर अपने संबंधोन में ईरान के मुक़ाबले में विभिन्न प्रकार के प्रचारिक संसाधनों और उपकरणों से लैस एक बहुत ही ख़तरनाक और सक्रिय प्रचारिक मोर्चे की उपस्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि इस्लामी व्यवस्था इस मोर्चे के विरुद्ध प्रतिरोध और इसका तोड़ करने के लिए असंख्य क्षमताओं की मालिक है।
उन्होंने कहा कि इस ख़तरनाक मोर्चे का मुक़ाबला करने का मार्ग लोगों को वास्तविकताओं से अवगत करना और सही व सक्रिय प्राचारिक शैली से लाभ उठाना और सामने वाले पक्ष पर सही ढंग से प्राचारिक वार करना है और हज इस कार्यवाही के लिए एक मुख्य और बुनियादी केन्द्र है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि हमारे लिए हाजियों की सुरक्षा, उनकी प्रतिष्ठा और उनका सम्मान सबसे अधिक महत्वपूर्ण था और इसी बात को लेकर सबसे अधिक चिंता थी। वरिष्ठ नेता ने कहा कि अधिकारियों की रिपोर्टों के अनुसार ईरानी हाजी अधिकतर अवसरों पर इस वर्ष अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान की दृष्टि से राज़ी थे, यद्यपि कुछ अवसरों पर कुछ उल्लंघन भी हुए हैं जिनकी पैरवी की जानी चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने हज के दौरान लोगों से ईरान के संपर्क की क्षमताओं और गतिविधियों को बंद या सीमित कर दिए जाने जैसे दुआए कुमैल और अनेकेश्वरवादियों से विरक्तता की कार्यवाही और इसी प्रकार प्राचारिक सेमीनारों और कांफ़्रेंसों को समाप्त या उन्हें सीमित कर देने पर आधारित कार्यवाही को इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध सऊदी सरकार का हथकंडा क़रार दिया।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि आज इस्लामी जगत में बहुत अधिक विचारक और बुद्धिजीवी एेसे हैं जो इस्लामी गणतंत्र ईरान की ज़बान से सच्चाई सुनने को बेताब हैं, इस आधार पर साम्राज्यवाद का विरोध, पश्चिम की प्रवत्ति को उजागर करने, इस्लाम के दुश्मनों से विरिक्तता और दुआए कुमैल में वर्णित उच्च विषय वस्तु को गहरे साहित्य, ज़बान और बयान तथा मज़बूत तर्क के माध्यम से आधुनिक प्रचारिक उपकरणों और संसाधनों से दुनिया वालों तक पहुंचाने की आवश्यकता है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ईरान के विरुद्ध नकारात्मक प्रोपेगैंडों की यलग़ार के वातावरण में संबोधिकों के मन में शंकाओं को एक स्वभाविक बात बताया और कहा कि हज के दौरान सऊदी अधिकारियों ने बहुत निर्लज्जता का प्रदर्शन करते हुए टेलीवीजन पर आकर इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध बातें कीं, जिसके परिणाम में दुनिया के दूसरे देशों के आम नागरिकतं के मन में यह बातें शंकाएं पैदा करती हैं किन्तु लोगों से संपर्क बनाए रखकर इस प्रकार की शंकाओं को दूर कीजिए और सामने वाले पक्ष के घेरे को तोड़ दीजिए।
नौ मुहर्रम का विशेष कार्यक्रम।
यद्यपि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का अत्याचार विरोधी भव्य आंदोलन, दस मुहर्रम सन 61 हिजरी क़मरी में करबला के मैदान में अंजाम पाया किन्तु इस आंदोलन के कारण विभिन्न घटनाएं सामने आईं।
हम आशूरा से जितना निकट हो रहे हैं, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों के विरुद्ध यज़ीद इब्ने मुआविया की भ्रष्ट सरकार की अत्याचारी कार्यवाहियां बढ़ती जा रही हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आशूरा आंदोलन के अस्तित्व में आने में नवीं मुहर्रम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नवीं मुहर्रम को करबला की तपती हुई धरती पर कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं जिनसे पहले तो यह सिद्ध हो गया कि उमर इब्ने साद के नेतृत्व में यज़ीदी सेना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों के बीच युद्ध होना तय है और हर प्रकार के समझौते का मार्ग बंद हो गया। दूसरा यह कि दसवीं मुहर्रम या आशूरा के दिन युद्ध निश्चित होगा। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम नवीं मुहर्रम के बारे में कहते हैं कि नवीं मुहर्रम का दिन वह दिन है जिस दिन इमाम हुसैन और उनके साथियों को कर्बला के मैदान में घेर लिया गया और उसके बाद यज़ीदी सेना उनके विरुद्ध एकट्ठा होना शुरु हो गयी। इब्ने ज़ियाद और उमर इब्ने साद अधिक सैनिकों के एकत्रित होने से प्रसन्न थे। उस दिन इमाम हुसैन और उनके साथियों को अक्षम समझ रहे थे और उन्हें विश्वास था कि अब उनके लिए कोई सहायता नहीं पहुंचेगी और इराक़ी भी उनका साथ नहीं देंगे।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने यद्यपि यज़ीद के हाथ में हाथ देने को अपमान समझा किन्तु वह युद्ध और रक्तपात नहीं चाहते थे। दूसरी ओर यज़ीदी सेना का सेनापति उमर इब्ने साद पूरी तरह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की पैग़म्बरे इस्लाम से निकटता से अवगत था और वह चाहता था कि किसी प्रकार इमाम हुसैन को बैयत के लिए राज़ी कर ले। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उमरे साद से अपनी मुलाक़ात में उसको इस काम के परिणाम से अवगत कराया था और उसको पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से युद्ध करने और उनका ख़ून बहाने से मना किया है। उसको सरकार की ओर से रय सरकार की ज़िम्मेदारी देने का वादा किया गया था इसीलिए वह आग्रह कर रहा था कि इमाम हुसैन, यज़ीद की आज्ञापालन का वचन दे दें। इसी बीच यज़ीदी सेना का लालची, निर्दयी और सबसे नीच सेनापति शिम्र इब्ने ज़िल जौशन करबला पहुंच गया जिसके बाद झड़पें और रक्तपात निश्चित हो गया। वह अपने साथ चार हज़ार सैनिकों को करबला लाया था। कुछ सूत्रों ने इस असमान युद्ध में यज़ीदी सेना की संख्या लगभग बीस से तीस हज़ार बतायी थी। दूसरी ओर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों पर सात मुहर्रम से ही पानी बंद कर दिया गया था, नवीं मुहर्रम को इमाम हुसैन और उनके साथी पूरी तरह परिवेष्टन में आ गये और उनको अब और अधिक सहायता पहुंचने की आशा नहीं थी।
करबला के मैदान में शिम्र इब्ने ज़िल जौशन अपने साथ सैनिकों के अलावा एक पत्र भी लाया था जो कूफ़े के गवर्नर की ओर से लिखा गया था। इस पत्र में उमर इब्ने साद को आदेश दिया गया था कि या इमाम हुसैन से बैयत लो या उनसे युद्ध करो। इसी प्रकार इब्ने ज़ियाद ने उमर इब्ने साद को धमकी दी थी कि यदि वह यह काम नहीं कर सकता तो सेना का नेतृत्व शिम्र के हवाले कर दे। यह बात स्पष्ट हो गयी थी कि यह पत्र शिम्र के प्रभाव को क्रियान्वित करने के लिए लिखा गया था। बहरहाल इब्ने साद रय की सरकार को हाथ से गंवाना नहीं चाहता था और उसने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर हमले का फ़ैसला कर दिया।
शिम्र ने नवीं मुहर्रम को एक अन्य षड्यंत्रकारी कार्यवाही की। उसने इमाम हुसैन की सेना के ध्वजवाहक हज़रत अब्बास इब्ने अली को इमाम हुसैन से अलग करने का प्रयास किया। हज़रत अब्बास, इमाम हुसैन की शक्ति, सेना के ध्वजवाहक और बच्चों व महिलाओं का सहारा थे, यदि हज़रत अब्बास इमाम हुसैन को छोड़कर चले जाते तो इमाम हुसैन की क्रांति को बहुत नुक़सान पहुंचता।
शिम्र ने अपने षड्यंत्र को व्यवहारिक बनाने के लिए हज़रत अब्बास और उनके तीन भाईयों को एक पत्र लिखा और कहा कि चूंकि आपकी मां का संबंध हमारे क़बीले से है, हम आपको शरण देते हैं, किन्तु जब शिम्र ने हज़रत अब्बास को पुकारा तो उन्होंने उसका जवाब तक नहीं दिया, यहां तक कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने स्वयं हज़रत अब्बास से शिम्र के पास जाने को कहा। जब हज़रत अब्बास और उनके भाईयों को यह पता चला कि शिम्र ने उनको संरक्षण देने की पेशकश की है तो वह बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने क्रोध में कहा कि तुझ पर और तेरे संरक्षण पर ईश्वर की धिक्कार हो, हम संरक्षण में हों और पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे को कोई संरक्षण न हो। इस साहसिक व मुंहतोड़ जवाब ने शिम्र की योजनाओं पर पानी फेर दिया और उसे हज़रत अब्बास और इमाम हुसैन के बीच मतभेद पैदा करने से पूरी निराशा हो गयी। शिम्र को पता चल गया कि हज़रत अब्बास अपने भाई के प्रति सरापा निष्ठा हैं और दोनों भाईयों के बीच रिश्ता बहुत मज़बूत है।
शिम्र इब्ने ज़िल जौशन का षड्यंत्र विफल होने के बाद उमर इब्ने साद ने नवीं मुहर्रम की शाम अपने सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार रहने का आदेश दे दिया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को जब यह पता चला कि यज़ीदी सेना हमला करने ही वाली है तो उन्होंने हज़रत अब्बास को बुलाया और कहा कि जाओ उन लोगों से एक दिन की मोहलत ले लो ताकि हम अंतिम रात अपने ईश्वर के गुणगान और उसकी उपासना में बिताएं। ईश्वर जानता है कि मैं नमाज़ और पवित्र क़ुरआन की तिलावत को बहुत पसंद करता हूं। चूंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की इच्छा तर्कसंगत और मानवीय थी, इब्ने साद ने पहले तो इसका विरोध किया किन्तु उसकी सेना के कुछ कमान्डरों का कहना था कि युद्ध को सुबह तक के लिए टाल दे इसीलिए उसने इमाम हुसैन की यह बात मान ली। न मुहर्रम की रात इमाम हुसैन और उनके साथियों और परिजनों के तंबुओं से पवित्र क़ुरआन की तिलावत, ईश्वर के गुणगान की आवाज आ रही थी। रिवायत बयान करने वाला कहता है कि इमाम हुसैन और उनके साथियों और परिजनों पर मौत का ख़ौफ़ तनिक भी दिखाई नहीं दे रहा था, हर व्यक्ति, बच्चा और महिला अपने ईश्वर के गुणगान में लीन थी। इसी बीच इमाम हुसैन ने अपने साथियों को एकत्रित किया और कहा कि यह लोग मेरी जान के दुश्मन हैं, इन को तुम से कुछ लेना देना नहीं है, रात के अंधरे का फ़ायदा उठाओ और निकल जाओ, यदि तुम दीपक की रोशनी से शरमा रहे हो तो मैं दीपक बुझा देता हूं, उसके बाद इमाम हुसैन ने तंबू का दीपक बुझा दिया। इमाम हुसैन के साथी अपनी जगह से हिले भी नहीं बल्कि उन्होंने एक आवाज़ में कहा कि हे पैग़म्बर के नाती यदि आपकी मुहब्बत में 70 बार मारे जाएं और ज़िंदा किए जाएं तब भी हम आपको अकेला नहीं छोड़ेंगे।
वास्तव में नवीं मुहर्रम को हज़रत अब्बास ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। यही कारण है कि नवी मुहर्रम के दिन विशेष रूप से हज़रत अब्बास और उनकी निष्ठा, साहस और प्रतिभा को याद किया जाता है। वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रक्तरंजित आंदोलन के दौरान बल्कि बचपने से ही इमाम हुसैन से विशेष श्रद्धा रखते थे और उनका सम्मान करते थे। उन्होंने कभी भी इमाम हुसैन को भाई नहीं कहा बल्कि उनको सदा स्वामी कहते थे। उन्होंने अपने भाई इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ अपने पिता से ज्ञान प्राप्त किया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि मेरे बेटे अब्बास ने बचपन में मुझसे इस प्रकार ज्ञान प्राप्त किया जैसे कबूतर अपने बच्चों को दाना भराता है। इस आधार पर अब्बास इब्ने अली न केवल एक साहसी योद्धा बल्कि पवित्र और समस्त नैतिक गुणों से सुसज्जित एक धर्मगुरु थे। यही कारण है कि हज़रत इमाम हुसैन उनका विशेष सम्मान करते थे और उनको अमानतदार और अपने विश्वास का केन्द्र कहते थे, इमाम हुसैन ने हज़रत अब्बास को अपनी सेना का ध्वजवाहक बनाया था।
आशूर का दिन हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के साहस, बलिदान और त्याग का दिन है। वह हर जगह मौजूद होते थे और तंबुओं की रक्षा करत थे। सैनिक एक एक करके शहीद होते रहे, हज़रत अब्बास को रणक्षेत्र में जाने की प्रतीक्षा थी। उनके तीनों भाई रणक्षेत्र में गये और वीरता के साथ युद्ध करते हुए शहीद हो गये। अब कोई भी नहीं बचा, तो इमाम हुसैन के पास सिर छुकाकर रणक्षेत्र में जाने की अनुमति लेने आए। इमाम हुसैन ने कहा कि अब्बास मैं तुम्हें रणक्षेत्र जाने की अनुमति नहीं दे सकता, तुम तो मेरी सेना के सेना पति हो, इस पर हज़रत अब्बास ने कहा कि स्वामी, अब वह सेना ही कहां जिसका मैं सेनापति था, सेना जहां गयी है मुझे भी वहां जाने की अनुमति दें, दोनों भाईयों में देर तक बातें होती रही, इसी बची तंबुओं से बच्चों की रोने और हाय प्यास हाय प्यास की आवाज़ें आने लगीं, इमाम हुसैन ने कहा कि अब्बास बच्चे तीन दिन के प्यासे हैं उनके लिए पानी का प्रबंध करो, हज़रत अब्बास तंबु से निकल कर फ़ुरात की ओर रवाना हो गये, यज़ीदी सेना ने फ़ुरात पर पैहरा लगा दिया, सैनिकों की संख्या बढ़ा दी, हज़रत अब्बास ने हमला किया और नहर पर क़ब्ज़ा कर लिया, छागल में पानी भरा और तंबू की ओर रवाना हुए इसी बीच बिखरी हुई सेना, सिमट गयी सबने एक साथ हमला कर दिया, दुश्मन के हमले में उनका एक हाथ कट गया, उन्होंने दूसरे हाथ में छागल ले ली, इसी बीच उनके दूसरे हाथ पर तीर लगा, उन्होंने सीने पर छगल दबा ली, इसी बीच एक तीर छागल पर आकर लगा, पूरा पानी बह गया, उन्होंने फिर से घोड़े को फ़ुरात की ओर मोड़ दिया, इसी बीच एक दुश्मन ने उनके सिर पर गदे से हमला किया, हज़रत अब्बास घोड़े से ज़मीन पर गिर पड़े, इमाम हुसैन को आवाज़ दी, स्वामी मेरा सलाम स्वीकार करें, इमाम हुसैन तेज़ी से हज़रत अब्बास के पास पहुंचे, कहा भय्या कोई वसीयत है, कहा, मैं अंतिम बार आपके दर्शन करना चाहता हूं पर मेरी आंख में तीर लगा हुआ है, इमाम हुसैन ने तीर निकाला और ख़ून साफ़ किया। अब्बास ने कहा दूसरी वसीयत यह हैं कि मेरी लाश तंबू में न ले जाइयेगा। इमाम हुसैन हज़रत अब्बास के शव पर बैठकर मर्सिया पढ़ने लगे, भय्या तुम्हारे मरने से मेरी कमर टूट गयी, अब वह आखें सोएंगी जो जागती थीं और वह आंखें जाएंगी जो सोती थीं।
इस्राईल पश्चिमी तट में हज़ारों घर बनाने के प्रयास में
ज़ायोनी शासन के अधिकारी पश्चिमी तट और बैतुल मुक़द्दस में नयी ज़ायोनी बस्तियों के निर्माण की योजना की समीक्षा कर रहे हैं।
फ़िलिस्तीनी इन्फ़ारमेशन सेन्टर की रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी तट और बैतुल मुक़द्दस में नई कालोनियों के निर्माण की योजना, पुष्टि के लिए इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामीन नितिनयाहू के पास भेज दी गयी है।
इस ज़ायोनी वेबसाइट ने बल दिया है कि इन योजनाओं में से एक अलख़लील शहर में तीस घरों पर आधारित एक बस्ती का निर्माण भी शामिल है।
ज़ायोनी शासन के गठबंधन मंत्रीमंडल के सभी सदस्य, पश्चिमी तट में नई कालोनियों के निर्माण की योजनाओं का समर्थन करते हैं।
अमरीका में डोनल्ड ट्रम्प के सत्ता में पहुंचने से फ़िलिस्तीनी धरती पर ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण की योजना को गति प्रदान करने में इस्राईल अधिक दुसाहसी हो गया है।
ट्रंप के भाषण में मूर्खता, निराशा और अज्ञानता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं: आयतुल्लाह ख़ामेनई
अहलेबैत (अ)न्यूज़ एजेंसी अबनाःप्राप्त जानकारी के अनुसार सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने कहा कि ट्रंप का भाषण बेवक़ूफ़ी , मायूसी और ग़ुस्से से भरा है। एवं ऐसे राष्ट्रपति के कारण अमेरिकन विद्वान भी शर्मिन्दा हैं। सुप्रीम लीडर राष्ट्रीय हितों की संरक्षक समिति के सदस्यों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति का भाषण ग़ुस्से और हताशा से भरा एवं मूर्खतापूर्ण है। ईरान की तरक़्क़ी दुश्मनों से बर्दाश्त नहीं हो रही, एवं लेबनान, सीरिया, इराक़ को अपने अधिकार में लेने का उनका सपना टूट चुका है। वह हमारे ख़िलाफ़ कुछ कर नहीं सकते इसलिये अमर्यादित एवं गंदी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। ट्रंप को अपनी बयानबाज़ी एवं घटिया भाषा के लिए ईरानी राष्ट्र से माफ़ी माँगनी चाहिये।