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इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने साम्राज्यवादी शक्तियों तथा उन्हें सबसे प्रमुख, अमरीका को आधुनिक अज्ञानता के अस्तित्व में आने का मुख्य कारण बताया।
इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी के ऐलान (बेअसत) और मेराज की वर्षगांठ पर शनिवार के दिन तेहरान में तैनात इस्लामी देशों के राजदूतों इस्लामी व्यवस्था के उच्च अधिकारियों तथा विभिन्न सामाजिक वर्गों से मुलाक़ात में ईरानी राष्ट्र, विश्व भर के मुसलमानों तथा स्वतंत्र स्वभाव रखने वाले इंसानों को इस महान ईद की मुबारकबाद पेश की और कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के बीते 35 साल के अनुभवों से साबित हो चुका है कि महान इस्लामी समुदाय दो कारकों तत्वदर्शिता और दृढ़ संकल्प को बाक़ी रखते हुए आधुनिक अज्ञानता का मुक़ाबला कर सकता है और उसे पराजित भी कर सकता है।इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर ने क्षेत्र के देशों को एक दूसरे से डराने और काल्पनिक शत्रु गढ़कर पेश कर देने की साम्राज्यवादी शक्तियों की साज़िश की ओर से बहुत होशियार रहने की नसीहत की और कहा कि साम्राज्यवादी शक्तियों की कोशिश यह है कि असली दुश्मन अर्थात साम्राज्यवाद, उसके जुड़े ही लोगों और ज़ायोनियों को एक किनारे पर रखें और इस्लामी देशों को एक दूसरे के मुक़ाबले में ला खड़ा करें, अतः इस रणनीति का जो वास्तव में आधुनिक अज्ञानता है, मुक़ाबला किया जाना चाहिए।
इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर के अनुसार वर्तमान परिस्थितियों में, क्षेत्र में साम्राज्यवाद की दुष्टतापूर्ण नीतियों का मुख्य केन्द्र, क्षद्म युद्ध की आग भड़काना है। सुप्रीम लीडर ने कहा कि वह अपने लाभ और हथियार बनाने वाली कंपनियों की जेबें भरने की कोशिश में हैं, अतः क्षेत्र के देशों को चाहिए कि बहुत होशियारी से काम करें ताकि इस जाल में न फंसें।
इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर ने ज़ोर देकर कहा कि अमरीका फ़ार्स खाड़ी में शांति स्थापित करने के विचार में नहीं है और उसे इस बारे में कोई भी बयान देने का अधिकार भी नहीं है। सुप्रीम लीडर ने कहा कि यदि फ़ार्स खाड़ी का क्षेत्र शांत और स्थिर रहेगा तो इसका फ़ायदा सबको पहुंचेगा, लेकिन यदि फ़ार्स खाड़ी का क्षेत्र अशांत हो गया तो क्षेत्र के सभी देशों में अशांति फैल जाएगी।
इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर ने क्षेत्र में शांति व सुरक्षा की रक्षा का प्रयास करने के अमरीकी दावे के ग़लत होने का एक उदाहरण पेश करते हुए यमन की संकटमय स्थिति का उल्लेख किया और कहा कि आज यमन बेगुनाह बच्चों और महिलाओं के जनसंहार का मैदान बन गया है और यह काम विदित रूप से मुसलमान देशों के हाथों हो रहा है जबकि इसका योजनाकार और असली कारक अमरीका है।
इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर ने अमरीकी अधिकारियों के एक और झूठ का हवाला देते हुए उनकी ओर से ईरान पर आतंकवाद का समर्थन करने संबंधी आरोप का उल्लेख किया। सुप्रीम लीडर ने कहा कि ईरानी जनता ने देश के भीतर उस आतंकवाद का दृढ़ता के साथ मुक़ाबला किया जिसने अमरीकी पैसे और समर्थन से सिर उभारा था, किंतु ईरान पर आतंकवाद के समर्थन का आरोप  लगाया जाता है जबकि आतंकवाद की असली समर्थक अमरीकी सरकार है।
इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर ने बल देकर कहा कि ईरानी राष्ट्र हमेश आतंकवाद तथा उसके समर्थकों के ख़िलाफ़ मोर्चाबंद रहा है और हमेशा लड़ता रहेगा। सुप्रीम लीडर ने कहा कि ईरानी राष्ट्र, इराक़, सीरिया, लेबनान और अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में हमेशा उन लोगों की मदद करता रहेगा जो अत्यंत ख़तरनाक आतंकियों तथा आतंकी ज़ायोनियों से लड़ रहे हैं।

 

रविवार, 17 मई 2015 10:49

हिदायत व रहनुमाई

وَنَصَحْتُ لَكُمْ وَلَكِن لاَّ تُحِبُّونَ النَّاصِحِينَ

 

और मैने तुम्हे नसीहत की मगर तुम नसीहत करने वालों को पसंद नही करते।

सूरः ए आराफ़ आयत 78

समाजी ज़िन्दगी, दर अस्ल इंसान का बहुत से नज़रियों व अफ़कार से दो चार होना है। उनमें से कुछ अफ़कार मज़बूत व पायदार होते हैं और कुछ कमज़ोर और बेबुनियाद। जिस तरह से हर इंसान की शक्ल व सूरत एक दूसरे से जुदा और अलग है उसी तरह हर इंसान के अफ़कार व नज़रियात भी जुदा जुदा हैं।

अफ़कार के इस इख़्तेलाफ़ से जो नतीजा सामने आता है वह यह है कि इंसान को चाहिये कि वह पहली फ़ुरसत में दूसरों के मोहकम व मज़बूत नज़रियों से फ़ायदा उठाये और दूसरे मरहले में लोगों की राहनुमाई व हिदायत करे।

समाजी ज़िन्दगी आपसी लेन देन का नाम है, जिसमें कभी इंसान समाज से कुछ लेता है और कभी समाज को कुछ देता है। समाजी ज़िन्दगी की एक ख़ुसूसियत यह है कि इसमें अफ़कार की रद्दो बदल की वजह से कमज़ोर व अधूरी फ़िक्र भी मोहकम व यक़ीनी फ़िक्र में बदल जाती हैं। इस्लाम ने इंसानों को गोशा नशीनी की ज़िन्दगी

से बाहर निकलने और समाजी ज़िन्दगी बिताने का जो पैग़ाम दिया है वह दर हक़ीक़त उनके अफ़कार की परवरिश व रुश्द का इन्तेज़ाम है।

इसी बुनियाद पर जो दूसरा काम अंजाम दिया गया है वह यह है कि इंसानों को लापरवाई से निकाला गया है, यानी इस्लामी समाज मे तमाम अफ़राद इस बात के ज़िम्मेदार हैं कि वह लोगों की ग़लत फ़िक्रों के मुक़ाबले में उनकी राहनुमाई करते हुए उनके ग़लत नज़रियों की इस्लाह करके उन्हे मोहकम बनायें।

जाहिर है कि एक ग़लत फ़िक्र मुमकिन है कि एक बीमारी के वायरस से ज़्यादा ख़तरनाक और नुक़सान देह साबित हो सकती है। क्योंकि बीमारी का इलाज तो कुछ अर्से तक आराम और दवा खाकर किया जा सकता है, लेकिन एक कमज़ोर और ग़लत फ़िक्र मुमकिन है कि इंसानों को नाबूदी की दलदल में इस तरह फँसा दे कि इंसान ज़िन्दगी के आख़री लम्हे तक उससे निजात न पा सके।  इससे भी बढ़ कर यह कि मुमकिन है कि एक ग़लत व अधूरी फ़िक्र समाज में राएज व मशहूर हो कर एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैल जाये। लिहाज़ा मोमिन व मुतदय्यिन लोगों का फ़रीज़ा है कि लोगों कोنصح المستشير و النصيحة للمسلمين  के तहत जिसका ज़िक्र क़ुरआन व रिवायात में हुआ है हिदायत व राहनुमाई करे। यानी मशवेरा करने वालों को अच्छा मशवेरा दे और मुसलमानों को नसीहत करे।  

इसी बुनियाद पर इस्लाम ने मशवरे की रविश को मुसलमानों में नेकी और भलाई का काम क़रार देते हुए तमाम मुसलमानों को उसकी तरफ़ तवज्जो दिलाई है।

ख़ुदावंदे आलम क़ुरआने मजीद में फ़रमाता है:

 

 وَشَاوِرْهُمْ فِي الأَمْر

 

यानी ऐ अल्लाह के नबी किसी काम को अंजाम देने के लिए तमाम मुसलमानों से मशवेरा किया करो।

(सूरः ए आले इमरान आयत 159)

और एक दूसरी जगह इरशाद होता है:

 

 وَأَمْرُهُمْ شُورَى بَيْنَهُمْ

 

यानी मुसलमानों का काम हमेशा मशवेरों के साथ होता है।

(सूरह शूरा आयत 38)

लिहाज़ा मोमिनीन ककी ज़िम्मेदारी है कि अगर समाज में कमज़ोरियों और बुराईयों को देखें तो उनका मुक़ाबला करें दूसरे अफ़राद की राहनुमाई करें। इसी तरह समाज के हर फ़र्द की ज़िम्मेदारी है कि जब कोई मुसलमान उसकी हिदायत और रहनुमाई करे तो उसकी नसीहत को दिल व जान से क़बूल करे।

वाज़ेह है कि अगर यह बुराईयाँ हलाल व हराम तक पहुच जायें तो इस्लाम ने तमाम मुसलमानों को इसकी उमूमी नज़ारत (देख रेख) या अम्र बिल माऱूफ़ व नही  अनिल मुनकर का हुक्म दिया है।

एक ऐसा ज़रीफ़ नुक्ता जिसको बयान करने में ग़फ़लत नही बरतनी चाहिये वह यह है कि हिदायत व रहनुमाई एक बहुत ही लतीफ़ व ज़रीफ़ काम है। लिहाज़ा नसीहत करने वाले को यह काम निहायत दिक़्क़त से अंजाम देना चाहिये ताकि उसे इस काम की तौफ़ीक़ मिलती रहे, वरना न सिर्फ़ यह कि दूसरों के कामों को बनाने और सँवारने में कामयाब नही होगें, बहुत से लोगों को अपना दुश्मन भी बना लेगें। जबकि अगर हम अपना काम होशियारी से अंजाम दें तो दुश्मनों के बजाए नए नए दोस्त बना सकते हैं।

नसीहत व हिदायत इस्लाम की नज़र में

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से यह रिवायत नक़्ल हुई है कि

 

من رأي اخاه علي امر يكرهه فلم يرده عنه و هو يقدر عليه فقد خانه

 

जो भी अपने मोमिन भाई को कोई ऐसा काम करते हुए देखे जो नाज़ेबा और बुरा हो, तो अगर वह उसे रोकने की क़ुदरत रखता हो तो उसे रोके और अगर वह लापरवाई के साथ उसके पास से गुज़र जाये तो बेशक उसने उसके साथ ख़ियानत की है।

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से नक़्ल हुआ है कि:

 

يجب للمومن علي  ا لمومن ان يناصحه

 

हर मोमिन पर वाजिब है कि वह दूसरे मोमिन की रहनुमाई और हिदायत करे।

दूसरी रिवायतों के मुतालए से मालूम होता है कि यह हिदायत व रहनुमाई सिर्फ़ मुलाक़ात तक महदूद नही है बल्कि अगर इंसान जानता हो कि फ़लाँ मुसलमान ग़लत राह पर चल रहा है तो अब उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह उसकी राहनुमाई करे। चाहे वह शख़्स वहाँ मौजूद भी न हो और उसने उससे उसका तक़ाज़ा भी न किया हो।  

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से नक़्ल हुआ है कि

 

يجب للمومن علي  ا لمومن ان يناصحه له في المشهد والمغيب

 

हर मोमिन के लिये ज़रूरी है कि अगर वह किसी को बुराई करते देखे तो उसकी रहनुमाई करे चाहे यह काम उसकी मौजूदगी में हो या उसकी ग़ैर मौजूदगी में।

सबसे बेहतरीन मोमिन भाई कौन हैं ?

इस्लाम चाहता है कि लोगों में क़बूल करने का माद्दा पैदा हो इस लिये ऐब और कमियों के सुनने को तोहफ़े देने की तरह कहा गया है। जो लोग अख़लाक़ी सिफ़ात रखते हैं और लोगों को उनके ऐबों की तरफ़ मुजवज्जे करते हैं, उन्हें बेहतरीन भाईयों से ताबीर किया गया है।

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:

 

خير اخواني من اهدي الي عيوبي

 

मेरे बेहतरीन ईमानी भाई वह हैं जो मुझे मेरी कमियों और बुराईयों का तोहफ़ा दें।

हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से नक़्ल हुआ है कि आपने अपने कुछ दोस्तों से फ़रमाया एक शख़्स को आपने तौबीख़ की और कहा उससे कह दो: ان الله اذا ارد بعبد خيرا اذا عوتب قبل अल्लाह जब अपने बंदों पर लुत्फ़ व करम करता है तो जब कोई उसे उसकी कमियों की तरफ़ तवज्जो दिलाता है तो वह उसे क़बूल कर लेता है।

इस बहस के आख़िर में इस नुक्ते की तरफ़ भी तवज्जो देनी चाहिये कि इंसानों की हिदायत व रहनुमाई एक ऐसा अमल है जिसकी बराबरी कोई भी अमल नही कर सकता।

 

سمعت ابا عبد الله (ع) يقول عليك بالنصح لله في خلقه فلن تلقاه بعمل افضل منه

 

मैंने हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से सुना कि आप फ़रमा रहे थे: जहाँ तक हो सके लोगों की हिदायत व रहनुमाई की कोशिश करते रहो, क्योंकि अल्लाह के नज़दीक इससे ज़्यादा बेहतर कोई अमल नही है।

इस हदीस में जिस ज़रीफ़ व दक़ीक़ नुक्ते की तरफ़ इशारा किया गया है वह यह है कि लोगों की हिदायत और नसीहत हर तरह की शख़्सी और नफ़सानी ग़रज़ से ख़ाली होनी चाहिये ताकि इसकी अहमियत के अलावा लोगों के दिलों पर भी उसका असर हो और वह उन्हे बदल सके।
 

 

मंगलव९र की सुबह भारत की राजधानी दिल्‍ली, बिहार, पश्चिम-बंगाल, राजस्‍थान, हरियाणा, झारखंड, असम और ओडीशा सहित उत्‍तर भारत के कई इलाकों में भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं।

स्थानीय समय के अनुसार मंगलवार दोपहर लगभग 12.35 बजे पहला झटका महसूस किया गया।  इन राज्यों के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और अंबिकापुर में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए।  भूकंप के तेज झटकों से एक बार फिर दशहत का माहौल उत्पन्न हो गया और लोग घरों से बाहर निकल कर सड़कों पर तथा खुले मैदानों में आ गए। भूकंप के झटकों के बाद दिल्ली और कोलकाता में मेट्रो सेवा रोक दी गई है।

नेपाल में एयरपोर्ट को बंद किया गया है और उड़ानों को दो ब‍जे तक के लिए बंद कर दिया गया है। भूकंप की तीव्रता रिक्‍टर पैमाने पर 7.4 बताई गई है। भूकंप के कारण करीब 30 सेकंड्स तक धरती हिलती रही।यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक, इसके बाद करीब 12.47 बजे भूकंप का दूसरा झटका नेपाल के कोडारी में आया है। इसकी तीव्रता रिक्‍टर पैमाने पर करीब 5.6 बताई जा रही है।

नेपाल और भारत के अलावा बांग्लादेश और पाकिस्तान में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। भारत में दो मौतों की सूचना है। मकान गिरने के कारण यूपी के संभल में एक व्‍यक्ति की और बिहार की राजधानी पटना में दीवार गिरने से एक व्‍यक्ति की मृत्यु के समाचार हैं। 

भूकंप का केन्द्र काठमांडू से 70 किमी दूर चीन-नेपाल सीमा के पास जियांग में जमीन से 19 किमी नीचे बताया गया है। भूकंप के झटके काफी देर तक महसूस किए गए हैं।

उल्लेखनीय है कि 25 अप्रैल को आए भूकंप ने नेपाल को तबाह कर दिया था। इसमें 8 हजार से ऊपर लोगों की मौत हो गई थी और लाखों लोग बेघर हो गए थे। तब से लेकर अब तक नेपाल और भारत में कई भूकंप के झटके आ चुके हैं। 

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्री ने कहा है कि परमाणु समझौते के संदर्भ में आतंरिक और कांग्रेस की समस्याओं का समाधान अमरीकी सरकार का कर्तव्य है।

विदेशमंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने सोमवार की शाम दक्षिण अफ्रीका की अपनी समकक्ष के साथ संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में दक्षिण अफ्रीका के एक पत्रकार के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि हमें यह पता है कि अमरीका के भीतर और बाहर कुछ लोग, परमाणु समझौता नहीं चाहते और यदि अमरीकी सरकार, ईरानी जनता का सम्मान करना और समझौते को अंतिम रूप देने का इरादा रखती है तो अमरीकी कांग्रेस और इस देश के भीतर की समस्याओं का निवारण उसका कर्तव्य है और हमसे अमरीका की आतंरिक राजनीति का कोई संबंध नहीं है।

विदेशमंत्री ने कहा कि खेद की बात है कि ईरान में क्रांति के बाद अमरीका की शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों के कारण ईरानी जनता में अमरीका के प्रति अविश्वास जड़ पकड़ चुका है जिसका निवारण अमरीका को विश्वास बहाल करके करना होगा।

विदेशमंत्री ने कहा कि चरमपंथ और आतंकवाद अफ्रीका और हमारे क्षेत्र के लिए समान खतरा है और बड़े खेद की बात है कि बोको हराम, अन्नुस्रा फ्रंट, अश्शबाब , अलकाएदा और आईएसआईएल जैसे चरमपंथी संगठन इस्लाम के नाम पर वह काम करते हैं जिनका इस्लामी शिक्षाओं से कोई संबंध नहीं है किंतु इस प्रकार के खतरों की रोकथाम का रास्ता, विदेशी हस्तक्षेप कदापि नहीं है क्योंकि हम लीबिया में विदेशी हस्तक्षेप का परिणाम देख चुके हैं।

विदेशमंत्री ने रूसी पत्रकार के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने यमन के संकट और सऊदी अरब के गैर कानूनी हमलों के आरंभ से ही कहा है कि यमन की समस्या का सैन्य समाधान संभव नहीं है और इस प्रकार के हमलों से आज जनता के जनसंहार के अलावा कोई परिणाम निकलने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि यमन के युद्ध विराम को स्थायी होना चाहिए ।

 

भारत के केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री ने कहा है कि ताजमहल में मंदिर होने का कोई प्रमाण नहीं है।

डॉ. महेश शर्मा ने लोकसभा में स्पष्ट किया कि विश्व विख्यात धरोहर ताजमहल के हिन्दू मंदिर होने का कोई रिकार्ड मौजूद नहीं है।

ज्ञात रहे कि लखनऊ के अधिवक्ता हरीशंकर जैन सहित आगरा के कुछ वकीलों ने 8 अप्रैल को ताजमहल के हिन्दू मंदिर होने को लेकर आगरा की अदालत में एक याचिका दायर की थी।

इस याचिका पर कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व विभाग, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय तथा राज्य के गृह सचिव को नोटिस भेजकर जवाब मांगा था।

परिवाद में ताजमहल को तेजोमहालय मंदिर घोषित करने की मांग की गई है। अदालत ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर छह मई को जवाब दाखिल करने को कहा था, अब तक जवाब दाखिल नहीं हुआ है।

कुछ इतिहासकारों का यह भी दावा था कि ताजमहल भगवान शिव का मंदिर था तथा इसका नाम तेजो महालय था।

ताजमहल को हिन्दू मंदिर मानने वालों को सोमवार को उस वक्त धक्का लगा जब केंद्र सरकार ने स्पष्ट कह दिया कि इस दावे का कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है।  

 

सोमवार, 11 मई 2015 04:15

ख़न्दा पेशानी

 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

जिस दुनिया में हम ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं वह जज़्ब व कशिश की दुनिया है। ताजिर, अपने सामान को इस तरह शक्ल व सूरत देने की कोशिश करते हैं कि वह दूसरों की नज़र को जज़्ब कर सके। सनअती मुल्कों में गाड़ियों के माडल में जो हर रोज़ तबदीलियाँ आती रहती हैं, उसकी वजह सिर्फ़ उनकी जज़्ज़ाबियत में इज़ाफ़ा करना है ताकि वह दूसरों के मुक़ाबेले ख़रीदारों की नजरों को अपनी तरफ़ ज़्यादा जज़्ब कर सके। बहर हाल तिजारत की सनअत में नफ़्सियाती मसाइल ने अपनी जगह अच्छी तरह बनाली है।

समाजी ज़िन्दगी में जो चीज़ तमाम इंसानों के पास होनी चाहिए और जिससे हर इंसान को फ़ायदा उठाना चाहिए वह खुश मिज़ाजी है। यानी इंसान का चेहरा खिला हो और उसके होंटों पर मुस्कुराहट हो। अख़लाक़, दीन और नफ़सियात की नज़र से यह एक ऐसी हक़ीक़त है जिससे इन्कार नही किया जा सकता।

आइने ज़िन्दगी नामी किताब के मुसन्निफ़ ने इंसानों की कामयाबी के जिन अवामिल को बयान करने की कोशिश की है उनमें से एक आमिल इंसान का खुश मिज़ाज होना भी है। मुखतलिफ़ मिज़ाजों के मुताले से यह बात मालूम होती है कि ख़ुश मिज़ाजी हर इंसान को पसंद है और यह सामने वाले इंसान पर असर अन्दाज़ होती है।

जो अफ़राद खुश मज़ाज होते हैं, वह समाजी ज़िन्दगी में दूसरों को मुक़ाबिल ज़्यादा कामयाब है।

ख़ुश मज़ाज अफ़राद के मुक़ाबेले में ऐसे लोग भी हैं जो हमेशा नाक भौं चढ़ाये रहते हैं और दूसरों से बहुत ही लापरवाई के साथ मिलते हैं। ऐसे मिज़ाज के अफ़राद अगर अपने काम में सच्चे हों तब भी लोग उनसे मिलना जुलना पसन्द नही करते और इसकी सबसे अहम वजह उनका बद मिज़ाज होना है। 

इस्लाम की नज़र में खुश मिज़ाजी का मक़ाम

इस्लाम एक दीने अख़लाक़ व ज़िन्दगी है। इस्लाम वह दीन है जिसके पैगम्बर ने फ़रमाया कि मुझे इस लिए मबऊस किया गया ताकि मकारिमे अखलाक़ को पूरा करूँ। इस्लाम गोशा नशीनी का दीन नही है, बल्कि इंसानों को समाजी ज़िन्दगी की तालीम देने वाला दीन है। लिहाज़ा इस्लामी समाज का एक अख़लाक़ी क़ानून यह है कि समाजी ज़िन्दगी में हर इंसान की ज़िम्मेदारी है कि वह दूसरे के साथ खुश मिज़ाजी के साथ पेश आये और मुस्कुराते हुए दूसरों का इस्तक़बाल करे।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम, मुत्तक़ीन के सिफ़ात बयान करते हुए फ़रमाते हैं कि मुत्तक़ी का रंज व ग़म उसके अन्दर छुपा होता है, लेकिन उसकी खुशी के आसार उसके चेहरे पर होते हैं।

 

بشره في وجهه و حزنه في قلبه

 

यानी उसकी ख़ुशियाँ उसके चेहरे पर और उसका ग़म उसके सीने में होता है।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से रिवायत है कि एक शख़्स ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की ख़िदम में हाज़िर होकर अर्ज़ किया कि ऐ अल्लाह के नबी! मुझे कुछ नसीहत फ़रमाइये।

हज़रत ने जवाब दिया कि अपने भाईयों से खुश के साथ मुस्कुराते हुए मुलाक़ात करो।

 

عن ابي  جعفر(ع) قال اتي رسول الله (ص) رجل فقال يا رسول الله اوصني فكان فيما اوصاه ان قال الق اخاك بوجه منبسط

 

नफ़्सियाती एतेबार से यह बात वाज़ेह है कि खुश मिज़ाजी दिलों को अपनी तरफ़ जज़्ब करती है। खुश मिज़ाज अफ़राद से इंसान मिलने का इश्तियाक़ रखते हैं। लिहाज़ा पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उस इंसान को नसीहत में इसी हस्सास व दक़ीक़ नक्ते की तरफ़ इशारा किया और फ़रमाया कि हमेशा अपने भाईयों से खन्दा पेशानी के साथ मुलाक़ात करो।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से एक रिवायत इस तरह नक़्ल हुई है

 

قال ثلاث من اتي الله بواحدة منهن اوجب الله له الجنة الانفاق من اقتار والبشر لجميع العلم و الانصاف من نفسه

 

“तीन चीज़ें ऐसी हैं कि अगर कोई उनमें से किसी एक के साथ भी अल्लाह की बारगाह में पहुँचेगा तो अल्लाह उस पर जन्नत को वाजिब कर देगा।

पहली चीज़ यह है कि इंसान ग़ुरबत में भी अल्लाह की राह में ख़र्च करे। दूसरे यह कि तमाम इंसानों से खुश मिज़ाजी के साथ मिले और तीसरे यह कि वह इन्साफ़वर हो।”

इस रिवायत से यह बात सामने आती है कि इंसान सिर्फ़ एक मख़सूस गिरोह से ही खुशी ख़ुशी न मिले, बल्कि तमाम अफ़राद के साथ खुशी के साथ मुस्कुराते हुए मिले। यानी जो भी उससे मुलाक़ात करे उसका ख़ुश अख़लाक़ी के साथ मुस्कुरा कर इस्तक़बाल करे।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से यह रिवायत नक़्ल हुई है कि

 

عن ابي عبد الله (ع) قال قلت له ما حد الخلق قال تلين جناحك و تطيب كلامك و تلقي اخاك ببشر حسن

 

इमाम अलैहिस्सलाम का एक सहाबी कहता है कि मैंने हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया कि ख़ुश अख़लाक़ी का क्या मेयार है ?

इमाम अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया कि इनकेसारी से काम लो, अपनी ज़बान को शीरीं बनाओ और अपने भाईयों से खुशी के साथ मिलो।  

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया कि

 

قال رسول الله (ص) يا بني عبد المطلب انكم لن تسعوا الناس باموالكم فالقوهم بطلاقة الوجه و حسن البشر

 

ऐ ! अब्दुल मुत्तलिब की औलाद तुम अपने माल के ज़रिये तमाम इंसानों को राहत नही पहुँचा सकते, लिहाज़ा तुम सबके साथ खिले हुए चाहरे और मुस्कुराहट के मुलाक़ात करो।

खन्दा पेशानी के साथ मिलने में जो एक अहम नुक्ता पोशीदा है वह यह है कि इससे दुशमनी और कीनः ख़त्म होते है और उसकी जगह मुहब्बत पैदा हो जाती है।

इसी लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया कि

 

 حسن البشر يذهب بالسخيمة

 

यानी खुश मिज़ाजी कीने व दुशमनी को ख़त्म कर देती है।

इस बिना पर माँ बाप की एक अहम ज़िम्मेदारी यह है कि वह अपने बच्चों को खन्दा पेशानी के साथ मिलने जुलने का आदी बनायें।

ज़ाहिर है कि अगर बच्चे को बचपन से ही अहम व मुफ़ीद बातों की तालीम दी जायेगी तो धीरे धीरे उसे उन पर मलका हासिल हो जायेगा और वह उसकी शख़्सियत का जुज़ बन जायेंगी।

माँ बाप को चाहिए कि अपने बच्चों को इन अख़लाक़ी सिफ़ात की तालीम देकर उन्हें समाजी ज़िन्दगी के लिए तैयार करें।

हमें यह नही भूलना चाहिए कि इस सिलसिले में सबसे बेहतरीन तालीम ख़ुद माँ बाप का किरदार व रफ़्तार है, जो बच्चों के लिए नमूना बनता है। यानी माँ बाप को इस बात की कोशिश करनी चाहिए कि वह अपने घर में अमली तौर पर बच्चों को ख़न्दा पेशानी के साथ मिलने की तालीम दें।

इसमें कोई शक व शुब्हा नही है कि जब तक इंसान किसी चीज़ को अमली तौर पर ख़ारिज में नही देखता उसे अपनी ज़िन्दगी का जुज़ नही बनाता।

 

भारतीय उद्योगपतियों ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए तेहरान और नई दिल्ली के बीच हुए समझौते का स्वागत किया है।

द फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैम्बर्स ऑफ़ कामर्स एंड इंडस्ट्री एफ़आईसीसीआई ने एक बयान जारी करके अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंच आसान बनाने की योजना के समझौते का स्वागत किया है।

एफ़आईसीसीआई ने अपने एक बयान में कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में पुनर्निमाण एवं विकास कार्यों में वह हमेशा से ही अग्रणि रहा है।

उल्लेखनीय है कि 7 मई को तेहरान और नई दिल्ली के बीच ईरान के दक्षिणपूर्वी प्रांत सीस्तान-बलूचिस्तान में स्थित रणनीतिक बंदरगाह चाबहार के विकास के समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे।

भारतीय केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की तेहरान यात्रा के दौरान ईरान के रोड्स एवं नगर विकास मंत्री अब्बास अहमद अख़ूंदी के साथ उनकी वार्ता के बाद, इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे।

भारत इस बंदरगाह के विकास के बाद, 10 वर्षों तक इसका संचालन करेगा और इस अवधि के बाद, बिना किसी भुगतान के इसे ईरान के हवाले कर देगा।

अमरीका ने ईरान और भारत के बीच इस समझौते का कड़ा विरोध किया है। वाशिंगटन ने भारत और अन्य देशों को ईरान के साथ परमाणु समझौते से पहले व्यापारिक संबंधों में विस्तार के प्रति धमकी दी है।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, नई दिल्ली चाबहार से अफ़ग़ानिस्तान-ईरान सीमा पर स्थित मिलक तक रेलवे लाइन भी बिछाने की योजना बना रहा है।

 

इस्राईल के एक उच्च न्यायालय ने अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के पश्चिमी तट में स्थित एक गांव को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया है।

ज़ायोनी अदालत के इस फ़ैसले के साथ ही लगभग 30 वर्षों से अपनी ही ज़मीन पर अधिकार के लिए लड़ रहे 340 परिवारों के पैरों के नीचे से ज़मीन और सिरों से छत का साया छीन लिया जाएगा।

ज़ायोनी शासन ने दक्षिणी हेब्रोन हिल्स इलाक़े के गांव सूसिया को गिराने का आदेश दिया था, जिसके ख़िलाफ़ गांव वालों ने ज़ायोनी अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था, लेकिन अदालत ने भी उनकी अपील ठुकरा दी।

फ़िलिस्तीनी नागरिकों का कहना है कि इलाक़े पर ज़ायोनियों के क़ब्ज़े के बाद से उन्हें अपनी पैत्रिक भूमि पर किसी तरह के निर्माण की अनुमति नहीं थी और अब दस्तावेज़ पूरे न होने का बहाना बनाकर पूरे गांव के विध्वंस का आदेश दे दिया गया है।

उल्लेखनीय है कि ज़ायोनी शासन ने इलाक़े में सैनिकों के प्रशिक्षण के लिए केन्द्र की स्थापना के उद्देश्य से 8 फ़िलिस्तीनी गांवों के विध्वंस का आदेश दिया है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरानी राष्ट्र की महानता व गौरव की रक्षा की आवश्यकता पर बल दिया है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने बुधवार की सुबह देश के शिक्षाविदों से होने वाली मुलाक़ात में देश व विश्व स्तर पर कई ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचार प्रकट किये।

वरिष्ठ नेता ने परमाणु वार्ता के आयोजन के समय अमरीकी अधिकारियों के धमकी भरे बयानों का उल्लेख करते हुए कहा कि हम धमकी के साथ वार्ता का समर्थन नहीं करते और देश के अधिकारियों और विदेशमंत्रालय को रेड लाइनों पर ध्यान देना चाहिए।

वरिष्ठ नेता ने अमरीकी अधिकारियों की ओर से सैन्य हमले की धमकियों के बारे में कहा कि हम ने पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति के समय में भी कहा था और आज फिर कह रहे हैं कि ईरानी राष्ट्र हर ख़तरे का मज़बूती के साथ मुक़सबला करेगा और उसका जवाब देगा।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि विभिन्न देशों के नेताओं के बयानों के आधार पर यह एक वास्तविकता है कि जिस प्रकार के प्रतिबंध ईरान पर लगाए गये अगर किसी और देश पर लगाए गये होते तो उस देश को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता किंतु इस्लामी गणंतत्र ईरान अबतक सिर उठाए खड़ा है।

उन्होंने कहा कि अमरीकियों को वार्ता की यदि ईरान से ज़्यादा नहीं तो ईरान से कम ज़रूरत नहीं है और हम यह चाहते हैं कि परमाणु मामले का समाधान हो किंतु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि यदि प्रतिबंध नहीं हटाए गये तो हम देश नहीं चला पांएगे।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध के दौरान विश्व की सभी शक्तियों ने ईरानी राष्ट्र को घुटने टेकने पर विवश करने का भरसक प्रयास किया किंतु वह एसा कर नहीं पाए इसलिए इस राष्ट्र की महानता की रक्षा की जानी चाहिए।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि आज विश्व की सब से घृणित सरकार, अमरीका की है और उसका एक कारण, यमन में सऊदी अरब के अपराधों का समर्थन है।

उन्होंने कहा कि आले सऊदी सरकार, बिना किसी कारण के और सिर्फ इसलिए कि यमन के लोग उस व्यक्ति को सत्ता में नहीं देखना चाहते जिसका सऊदी समर्थन करते हैं, यमनी जनता और महिलाओं व बच्चों का नरसंहार कर रही है और अमरीका भी इस महाअपराध का समर्थन करता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि यमन की संघर्षकर्ता जनता को हथियारों की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इस देश की सारी सैन्य छावनियां उसके हाथ में हैं बल्कि इस देश की जनता को घेराबंदी के कारण दवाओं और ईधंन की आवश्यकता है किंतु इस देश में राहत संस्थाओं को भी नहीं जाने दिया जा रहा है।

 

हज़रत अली (अ) ऐसी शख़्सीयत हैं कि जिन के नज़रियात उलूमे एलाही के मुख्तलिफ़ अबवाब मे रौशन हैं।

अहले सुन्नत के फ़िक़ही मनाबे मे भी हज़रत अली (अ) के इरशादात और आपकी सीरत एक फ़िकही बुनियाद शुमार किए जाते हैँ। आने वाली मिसाले उन्ही के नमूने हैँ।:

1- दसूकी का क़ौल है कि: हज़रत अली (अ) अज़ान मे जुम्ला “हय्या अला ख़ैरिल अमल” को “हय्या अलल फलाह” के बाद फरमाते थे-

2- नवी ने रोज़े के सिलसिले मे हज़रत अली (अ) की सीरत को यूँ बयान किया है कि आप रोज़ा रखने और इफ्तार करने के सिलसिले मे रोयते हिलाल को वसीला करार देते थे-

3- शरबीनी का क़ौल है: हज़रत अली अ ने हम्ल की क़लील तरीन मुद्दत छह माह बयान की है-

जैसा कि कहते हैं: हज़रत अली अ ने कुर्आनी तफक्कुरात और इस्लामी नज़रियात के ज़ेरे नज़र मुरतद को तौबा का ख़ास वक्त देते थे ताकि वो दायर ए इस्लाम मे पलट आए।

मुकद्दमा

हुज़ूरे सरवरे काएनात (स) का बुलन्द तरीन क़ौल “अना मदीनतुल इल्म व अलीयुन बाबोहा” आलमे इस्लाम मे एक रब्बानी शख्सीयत के मक़ाम को बयान करता है हज़रत अली (अ) ऐसी शख्सीयत थे जिन की तहकीक उलूमे एलाही के मुख्तलिफ अब्वाब मे जल्वागर है हज़रत अली (अ) उलूमे आसमानी व रब्बानी मे यगाना व बेमिसाल थे- हज़रत अली (अ) से इत्तेसाल और आप से तोशए इल्म का पाना ओरफा का एक इफ्तेख़ार है फ़िक़हीयों का इफ्तेख़ार आपकी सीरत से फ़िक़ही मोज़ूआत के अख्ज़ करने मे है यही नही बल्कि इल्म के मुतालाशी तमाम अफ़राद इस आलिमे रब्बानी के हुज़ूर मे कस्बे फैज़ करते रहे हैं।

इस मक़ाले मे हज़रत अली (अ) के इल्मी पहलूओं मे से एक पहलू की तरफ़ कि जो इमाम अली (अ) की फ़िक़ही सीरत है तवज्जो दी गई है सीरते अल्वी के बयान के सिलसिले मे इस मक़ाले मे फ़िक्हे शीया की जानिब तवज्जो नही दी गई है बल्कि तन्हा अहले सुन्नत की फ़िक़ही किताबो मे इमाम अली (अ) के मकामो मन्ज़िलत को पेशे नज़र क़रार दिया गया है-

इस नुक्ते को बयान करने का मक़सद ये है कि इमाम अली (अ) न तन्हा शीयों के दरमियान बा उन्वाने इमाम या मुक्तदा या फिर उलूमे आँसमानी के दरयाफ्त करने के मरकज़ की हैसियत से पहचाँने जाते हैं। बल्कि अहले सुन्नत के फ़िक़ही मनाबे मे भी आप की सीरत और आपका इरशाद अहले सुन्नत के फ़िक़ही बुनियादों मे से एक बुनियाद शुमार किया जाता है- चूँकि कलामे अली (अ) और सीरते अली अ फ़िक़ही मनाबे मे बहुत ज़्यादा हैं। इसलिए हम यहाँ फक़त चन्द नमूनों की जानिब इशारा करेंगे और अबवाबे फ़िक़ही की तरतीब के लिहाज़ से अहले सुन्नत के नज़रियात को मद्दे नज़र रखते हुए इमाम अली (अ) के फ़िक़ही नज़रियात के मसादीक़ को बयान करेंगे-

1- सीरते हज़रत अली )अ( अज़ान मे

शीया और अहले सुन्नत के दरमियान फ़िकही मबाहिस मे से एक बहेस अज़ान के अज्ज़ा और जुम्लात के बारे मे है इस सिलसिले मे मुख्तलिफ बहसें पाई जाती हैं। हम यहाँ सिर्फ एक बहेस को बयान कर रहें हैं।:

दसूकी ने अपने गरानकद्र फ़िक़ही हाशिए मे फोक़हा ए अहले सुन्नत मे से किसी एक के क़ौल को नक्ल किया है कि: “पहली बार सुल्तान यूसुफ सलाहुद्दीन अय्यूबी के ज़माने मे ये हुक्म नाफिज़ किया गया था कि” मिस्र और शाम मे अज़ाने सुब्ह से पहले “अस्सलामो अला रसूलिल्लाह” कहा जाना चाहिए-ये अमल 777 तक जारी रहा और सलाहुद्दीन बरसी के हुक्म के मुताबिक अज़ान मे “अस्सलातो वस्सलामो अलैका या रसूल अल्लाह” कहा जाने लगा नीज़ सुल्तान मन्सूर हाजी बिन अशरफ के ज़माने मे ये हुक्म था कि अज़ान के बाद पैगम्बरे इस्लाम (स) पर दुरूद और सल्वात भेजी जाए ये अमल 791 मेसूरत पज़ीर हुआ और इसी तरह जारी रहा, लेकिन दसूकी फरमाते हैं। हज़रत अली अ ने जुम्लए “हय्या अला ख़ैरिल अमल” को“हय्या अलल फलाह” के बाद अज़ान मे इज़ाफा किया और ये मस्अला आज इस ज़माने मे भी शीया एतेदाकात का जुज़ है- ( दसूकी, भाग 1 पेज 193 )

अलबत्ता शीयो का अपने ज़माने के आइम्मा अ की रवायत की पैरवी मे इस बात पर इत्तेफाक है कि जुम्लए हय्या अला ख़ैरिल अमल जुज़े अज़ान है और बेलाल भी अज़ाने सुब्ह मे इस जुम्ले को कहते थे- नीज़ बहुत से गिरोहे अस्हाब भी ये जुम्ला अदा किया करते थे-

सैय्यद मुर्तज़ा फरमाते हैं। अहले सुन्नत ने रवायत की है कि हय्या अला ख़ैरिल अमल पैग्मबरे अकरम (स) की ज़िन्दगी मे भी कहा जाता था और ये दावा हुआ है कि ये जुम्ला नस्ख़ कर दिया गया, हाँ जिस ने भी दावाए नस्ख़ किया है उसे चाहिए के दलील लाए जब कि इस सिलसिले मे कोई दलील वुजूद नही रखती- ( सैय्यद मुर्तज़ा 1451 हदीस, पेज 137 )

इब्ने अरबी का क़ौल है “हय्या अला ख़ैरिल अमल” रसूले खुदा स के ज़माने मे ऐसा ही था और रवायत भी है कि जँगे ख़न्दक मे लोग ख़न्दक खोदने मे मश्गूल थे के नमाज़ का वक्त हो गया- मुनादी ने अहले ख़न्दक को आवाज़ लगाई“हय्या अला ख़ैरिल अमल” पस जिस ने भी इस जुम्ले का अज़ान का जुज़ करार दिया है उस ने ख़ता नही की बल्कि अगर ये ख्बर सही है उस ने उनकी इक्तेदा की है या फिर सुन्नते हस्ना को काएम किया है- ( इब्ने अरबी 1987 ई0, भाग 1 पेज 400 )

बहरहाल जैसा कि मुलाहिज़ा हुआ कि: अज़ान मे जुम्लए “हय्या अला ख़ैरिल अमल”का इज़ाफा इमाम अली (अ) की सीरतों मे से एक सीरत है।

2. वज़ू मे इमाम अली (अ) की सीरत

अहले सुन्नत की फ़िकही किताबों मे वज़ू की बहेस मे एक मस्ला जूते या इन जैसी चीज़ो पर मसा के जवाज़ या अदमे जवाज़ के सिलसिले मे काबिले तवज्जो है-

शरबीनी अपनी फ़िकही किताब मे नक्ल करते हैं। कि हज़रत अली (अ) ने उन के जवाब मे जो ये कहते थे कि “हम ने अपने इज्तिहाद के ज़रिए ये नुक्ता अख्ज़ किया है कि जूते या इन जैसी चीज़ो पर मसा किया जा सकता है” फरमाया: अगर मुमकिन होता के दीने इस्लाम शख्सी राए नज़रिए व सलीके के ज़रीए बयान की जाए तो तबीयत इस बात का तकाज़ा करती कि धोने के लिए इन्सान जूते के तल्वे धोए न कि जूते को धोए- ( शरबीनी 1377,ज/1 स/67 )

शरबीनी इमाम अली अ के इस रोये और क़ौल को नक्ल करने के ज़रिए शरीअते इस्लाम मे शख्सी राए और ज़ाती तरीके को काबिले कुबूल अम्र करार देते हैं।

3- इमाम अली (अ) की सीरत नमाज़ मे

नोवी पैग्मबर अकरम स की इस हदीस को नक्ल करने के बाद कि:

 

"لا صلوة مة لمن لم یقرأ بأم القرآن"

 

“अगर कोई शख्स नमाज़ को सूरह हम्द के साथ न पढे उसकी नमाज़ ही नही है”

इस सिलसिले मे इमाम अली (अ) की सीरत को बयान करते हुए फरमाते हैं।:

इमाम अली (अ) नमाज़ की शुरू की दो रिक्अतों मे सूरह हम्द की केराअत करते थे और आखिर की दो रिक्अतों मे तस्बीहाते अरबआ को पढते थे- ( नोवी, भाग 3 पेज 362 )

इसी तरह शरवानी नमाज़ के ख़ुशू के सिलसिले मे आयत :

 

"قد افلح المومنون الذین هم فی صلاتهم خاشعون"

 

“वो मोमेनीन ब तहकीक कामयाब हैं जो अपनी नमाज़ मे ख़ाशे हैं। से इस्तेनाद करते हुए फरमाते हैं कि इमाम अली (अ) एक मुफस्सिरे कुर्आन की हैसीयत से इस आए मे लफ्ज़े ख़ाशेऊन की तफ्सीर दिल के नर्म होने, बदन के तमाम आज़ा व जवारेह के हरकते इज़ाफी से महफूज़ रहने और ख़ालिके काएनात की तरफ पूरी तरह मुतावज्जे रहने से करते हैं। (शवानी 1985 ई0, भाग 2 पेज 101)

4- इमाम अली (अ) की सीरत रोज़े मे

नवी रोज़े मे इमाम अली (अ) की सीरत के बयान मे फ़रमाते हैँ:

इमाम अली (अ) माहे रमज़ान के रोज़े का आगाज़ चाँद देख कर करते थे- और चाँद ना देखने की सूरत मे माहे शाबान के मुकम्मल होने के बाद माहे रमज़ान का आगाज़ करते थे. वो इस नक्ल के ज़रीए सीरते अलवी की ताईद करते हैं कि “वलीद बिन उत्बा का बयान है कि मैने हज़रत अली (अ) के ज़माने मे एक बार 28 दिन रोज़ा रखा पस हज़रत ने मुझे हुक्म दिया कि मै एक रोज़े की कज़ा करूं” और खतीब ने एक बयान मे दावा कीया है कि इस साल माहे रमज़ान 29 दिन का था- (नोवी, भाग 6 पेज 421)

5- हज़रत अली (अ) की सीरत जेहाद मे

जेहाद की बहसों मे पेश आने वाले मसाएल मे से एक मसला उन लोगों से क़ेताल का है जो हुकूमते इस्लामी पर खुरूज करते हैं। हेजावी जो किताब “अलकेना” के मोअल्लिफ हैं इन लोगों से केताल के सिलसिले मे जो लोग हुदूदे एलाही से तजावुज़ करते हैं और इमामो हुकूमते इस्लामी पर खुरूज करते हैँ या वो लोग जो बागीं किये जाते हैं- लिखते हैं:

“बगेया” लफ्ज़ ज़ुल्म के मफहूम मे है जिस के माने हद से तजावुज़ के हैं क्यूँकि लोग हुकूमते इस्लामी पर खुरूज करते हैं उन्होने हक से उदूल किया है- इस कज़िए मे बुनियादो अस्ल एक ऐसी आयत को करार दिया है जिस मे ख़ालिके काएनात फरमाता है:

 

و ان طاءفتان من المومنین اقتتلوا فاصلحوا بینھما فان بغت احداھما علی الاخری فقاتلوا التی تبغی حتی تفیءالی امر اللھ فان فاءت فاصلحوابینھما بالعدل و اقسطوا ان اللھ یحب المقسطین۔

 

“अगर मोमेनान के दो गिरोहों के दरमियान आपस मे मुकातिला हो जाए तो दोनो के दरमियान सुलह कर दो, लेकिन अगर एक गिरोह दूसरे ज़्यादती करे तो ज़्यादती करने वाले गिरोह के साथ जिहाद करो” (हुजरात/9)

हेजावी इस सिलसिले मे फरमाते हैं कुर्आनी असास की बुनियाद पर जिस दूसरे गिरोह के साथ जिहाद का हुक्म दिया गया है ये वही मुस्लमान हैं जो इमाम के मुखालिफ हैं, इस आयत की बुनियाद पर इमाम अली (अ)ने जन्गे सिफ्फीन और नहरवान मे शिरकत की और उन लोगों से जिहाद किया जो हुकूमते एलाही के खिलाफ कयाम कर रहे थे- ( हेजावी, भाग 2 पेज 202)

जैसा की बयान हुआ ये फ़िक्हे अहले सुन्नत हज़रत अली (अ) अहले कुफ्र के साथ जिहाद के इस रवय्ये को फ़िकही और हुकूमती रवय्या शुमार करते हैं और आयते कुर्आन के ज़रिए इसे मुस्तनद करार देते हुए ये नतीजा निकालते हैं कि हज़रत अली (अ) को इस गिरोह के साथ जो हुकूमते एलाही से तज़ाद और तअर्रुज़ रखता है जिहाद करना ही चाहिए था।

6- हज़रत अली (अ) की सीरत क़ज़ावत मे

किताबे क़ज़ा की बहसों मे से एक बहस ये भी है कि क़ाज़ी को चाहिए कि तरफैन दावा की निसबत मसावात से काम ले और एक को दूसरे पर तरजीह न दे- लेकिन किताबे “फ़तहुल वहाब” मे बयान हुआ है कि काज़ी इस सूरत मे कि तरफैन मे एक काफिर और दूसरा मुस्लमान हो तो मुस्लमान को बेहतर मकाम पर बैठा सकता है-

मोअल्लिफे किताब ने अपने इस फत्वे को हज़रत अली (अ) के फेल और रवय्ये से मुस्तनद किया है कि जब हज़रत अली (अ) का एक यहूदी के साथ दावा हुआ और आप काज़ी के पास गए तो शुरैहे काज़ी के पास बैठ कर फरमाया कि अगर मेरा मद्दे मुकाबिल मुस्लमान होता तो मै भी इस के पहलू मे और काज़ी के रूबरू बैठता- ( अन्सारी,1418 ई0 भाग 2 पेज 371 )

इसी तरह मालिक और अहमद से रवायत हुई है कि ग़ुलामों के जराएम के सिलसिले मे हज़रत अली (अ) की एक खास सीरत रही है मिसाल के तौर पर एक बार ग़ुलाम और कनीज़ एक ख़ास गुनाह के मुरतकिब हो गए हज़रत अली (अ) ने दोनो को पचास पचास कोडे मारने का हुक्म दिया और फरमाया कि अगर गुलाम और कनीज़ ऐसे गुनाह के मुरतकिब हों तो मीज़ान के एतेबार से कोडे मारने मे फ़र्क़ नही होना चाहिए।

अहले सुन्नत ने भी हज़रत अली (अ) की सीरत के मुताबिक इसी तरह का फत्वा दिया है-( हेजावी, पीशीन पेज 180 )

7- हज़रत अली (अ) की सीरत हम्ल की कम तरीन मुद्दत के बयान मे

फ़िक़ही मबहिस मे एक बहेस ये भी है कि कितनी कम मुद्दत मे मुम्किन है कि एक बच्चा दुनियाँ मे आए और उसकी मेकदार कितने दिनो की होगी इस सिलसिले मे फोकहाए शीया और अहले सुन्नत के अकवाल अलग हैं फोक़हा ए अहले सुन्नत मे शरबीनी इस सिलसिले मे हज़रत अली (अ) के इस्तिम्बात की तरफ इशारा करते हैं कि वो इस बयान के बाद कि हम्ल कि अकल मुद्दत उस ज़माने को कहा जाता है जिस मे मर्द और ज़न की मुशतरक इम्काने ज़िन्दगी का इम्कान मौजूद हो और उस काएदे की तरफ इशारा है कि निसबते इम्काने ज़िन्दगी के वसीले से साबित होता है- फ़रमाते हैं हज़रत अली (अ) के इस्तिम्बाते कुर्आन के नतीजे मे हम्ल की सब से मुख्तसर मुद्दत छह माह है-

शरबीनी हज़रत अली (अ) से नक्ल करते हैं कि खुदा वन्दे आलम ने कुर्आने मजीद मे फरमाया:

 

حملھ و فصالھ ثلاثون شھرا

 

“औरत के हम्ल और बच्चे के माँसे जुदा होने का मज्मुई मुद्दत तीस माह है”-

जैसा कि दूसरे मकाम पर इरशाद होता है فصالھ فی عامین  बच्चो को चाहिए कि कम अज़ कम दो साल की मुद्दत तक अपनी माँ का दूध पीये तीस महीने मे से चौबीस महीने कम करने के नतीजे मे छह माह बाकी बचते हैँ इसी बेना पर हज़रत अली (अ)के नज़रिए के मुताबिक हम्ल की कमतरीन मुद्दत छह माह होती है- ( शरबीनी, गुज़श्ता हवाला, भाग 3 पेज 338 )

8- गुमशुदा शौहर के बारे मे हज़रत अली (अ) की सीरत

फिक की एक दूसरी बहेस गुमशुदा शौहर के सिलसिले मे है और वो ये है कि अगर कोई शख्स तूलानी मुद्दत तक गाएब हो जाए और उसका कोई पता न हो तो उसकी ज़ौजा की क्या सूरत होगी और वो किस मुद्दत तक सब्र करेगी- शरबीनी ने अपनी किताब “मुग्नियुल मोहताज” मे मोलाए काएनात के नज़रए की जानिब इशारा करते हुए फरमाया कि अगर कोई शख्स गाएब हो जाए और उसका कोई पता न हो तो उसकी ज़ौजा उस वक्त तक शादी नही कर सकती जब तक कि शौहर की मौत का यकीन पैदा न हो जाए- जैसा कि इमाम शाफेई ने हज़रत अली (अ) से नक्ल किया है कि आप ने फरमाया: गुमशुदा शौहर की ज़ौजा अगर उस सख्ती मे मुबतिला हो जाए कि उसका शौहर गुम हो जाए तो उसके लिए सब्र के अलावा कोई चारा नही है- वो उस वक्त तक शादी नही कर सकती जब तक शौहर के मरने की खबर उस तक न पहुँच जाए या ये कि उसका शौहर पलट आए-

शरबीनी इस क़ौल की वज़ाहत मे कहते हैँ: क्योकि अस्ल हयात पर बाकी रहना है और जब एक शख्स गाएब हुआ तो अस्ल ये है कि वो अभी ज़िन्दा है और यकीन से मुराद वही रुजहान है इस सूरत मे कि अपने शौहर की मौत की ख़बर का रुजहान उसे हासिल हो और ये दो आदिल की गवाही से हासिल हो और साथ ही उसे अपने शौहर की मौत की शोहरत हासिल हुई हो- ( शरबीनी, गुज़श्ता हवाला, स/397 )

9- हद्दे शराब नोशी के सिलसिले मे आपकी (अ) की सीरत

किताबे हुदूद की बहसों मे से एक शराब नोशी की हुदूद कोडे लगाने के सिलसिले मे है- अनस बिन मालिक से नक्ल है कि रसूले इस्लाम उस शख्स को जो शराब नोशी का मुरतकिब हुआ था कोडे के बजाए लकडी या छडी वगैरा से चालीस ज़र्ब मारते थे- हज़रत अबू बक्र के ज़माने मे भी शराबी को चालीस कोडे मारे जाते थे, हज़रत उमर के ज़माने मे शराब पीने वाले को कोडे मारने के सिलसिले मे हज़रत अली (अ) से सवाल किया गया, आप (अ) ने फरमाया:

शराब पीने वाले की हद का मीज़ान 80 कोडे हैं हज़रत की दलील ये थी कि वो शख्स जो शराब पीता है मस्त हो जाता है मस्त इन्सान हिज़यान का मुरतकिब होता है और हिज़यान गोई के वक्त वो लोगों को नारवाँ और ना काबिले बरदाशत निसबतें लगाता है और लोगों को बुरी निसबतें देना इफ्तेरा का मूजिब है और चूँकि इफ्तेरा की हद की मीज़ान 80 कोडे हैं लिहाज़ा शराब नोश के सिलसिले मे भी मीज़ाने हद 80 कोड़े ही होंगी- ( अन्सारी, गुज़श्ता हवाला, पेज 288 )

जैसा कि देखा गया कि शराब नोशी की बहस मे अस्रे पैग्मबर (स) से लेकर उमर के ज़माने तक एक तारीखी दौर पाया जाता है- हज़रत अली (अ) ने इस कानून को मुनज़्ज़म करने के उन्वान से 80 कोडे की सज़ा को मोअय्यन किया है और आज भी इस सिलसिले मे हज़रत अली (अ) की फ़िकही सीरत पर अमल हो रहा है।

शरबीनी भी इस सिलसिले मे हज़रत अली (अ) की सीरत के बारे मे दूसरा कज़या यूं बयान करते हैं कि हज़रत अली (अ) ने उस बूढे को जिस ने माहे रमज़ान मे शराब पी ली थी 80 कोडे मारे फिर दूसरे दिन कोडे की 20 ज़रबें मज़ीद मांरी और फरमाया मे ने तुझे 80 कोडे इसलिए मारे कि तूने शराब पी थी और आज 20 कोडे मज़ीद इसलिए मारे के तूने खुदा वन्दे आलम की शान मे जसारत की और माहे रमज़ान की हुरमत को पामाल किय

हज़रत अली (अ) का ये अमल भी अहले सुन्नत के फत्वे की बुनियाद क़रार दिया गया है-

अहले सुन्नत कोड़े मारने की कैफियत के बारे मे भी हज़रत अली (अ) के इस क़ौल की पैरवी करते हैं कि कोड़े की ज़र्ब बदन के मुख्तलिफ आज़ा पर मारी जाए।

10- हद्दे मुरतद के सिलसिले मे हज़रत अली (अ) की सीरत

अहले सुन्नत की इबारत मे इरतेदाद की निस्बत वारिद हुआ है कि मुरतद वो है जो दीने इस्लाम से पलट जाए वो मर्द हो या औरत उस से इस बात का मुतालिबा किया जाएगा कि वो तौबा करे (हकीकत मे ये तौबा उसके हुक्मे कत्ल से पहले वाके होगी क्योंकि मुरतद शख्स की हद फक्त कत्ल है) क्यूंकि अहले सुन्नत की ताबीरात मे आया है कि इन्सान इस्लाम के ज़रिए मोहतरम हुआ था अगरचे वो अभी खुद को गैर मुस्लमान कह रहा है फिर भी ये एहतेराम इस्लाम उसके हक मे बाकी है- लिहाज़ा उस से तौबे का मुतालिबा किया जाएगा अगर तौबा करे तो वो आज़ाद है-

लेकिन वो बहेस जिसे अहले सुन्नत ने इस बारे मे पेश किया है कि मुरतद को तौबा के लिए कितनी मुद्दत तक इख्तियार दिया जाएगा हेजावी हज़रत उमर के ज़माने मे राएज रविश की जानिब इशारा करते हुए फरमाते हैं कि तीन रोज़ का इख्तियार दिया जाएगा नीज़ ये भी फरमाते हैं कि इमाम मालिक ने हज़रत उमर की रविश को मद्दे नज़र रखते हुए ये फत्वा दिया कि अगर मुरतद तीन दिन की मुद्दत के बाद तौबा न करे तो उसे कत्ल कर दिया जाए।

हेजावी ने इस रविश को ज़ईफ करार देते हुए हज़रत अली (अ) से नक्ल किया है कि हज़रत अली (अ) ने हुक्म दिया है कि मुरतद को तौबा के लिए दो माह का वक्त दिया जाएगा अगर वो तौबा करले तो उसकी तौबा कबूल करते हुए उसके इस्लाम को कबूल करेंगें और उसे आज़ाद कर देंगें ताकि वो अपनी ज़िन्दगी गूज़ारे- हज़रत अली (अ) से मनकूल हेजावी के इस क़ौल की बुनियाद पर अगर मुरतद दोबारा अपने इस बुरे अमल की तकरार करे तो उस से फिर तौबा का मुतालिबा किया जाएगा और उसे दो माह का मौका दिया जाएगा ताकि वो अपने अकीदे से दस्त बरदार हो जाए- (हेजावी, गुज़श्ता हवाला, भाग 2 पेज 206)

कारेईन कराम जैसा कि आपने मुलाहिज़ा फरमाया कि हेजावी के नक्ल के मुताबिक हज़रत अली (अ) ने दूसरों की रविश के बरख़िलाफ मुरतद को तौबा के लिए दो माह का इख्तियार दिया है आपने इस रविश को कुर्आन मजीद की इस आए मुबारिका से मुस्तनद किया है:

 

( قل للذین کفروا ان ینتھوا یغفرلھم ما قد سلف )

 

ऐ पैग्मबर(स) काफिरों से कह दीजए कि अगर वो अपनी कुफ्र आमेज़ बातें तर्क कर दें तो खुदा उनको मांफ कर देगा और उनके गुज़श्ता आमाल को दर गुज़र कर देगा- (इन्फाल,28)

11- क़ेसास के सिलसिले मे हज़रत अली (अ) की सीरत

क़ेसास के बारे मेफ़िकही बहसों मे से एक बहस क़ेसास का जुर्म के बराबर होना है इस माने मे कि अगर कोई शख्स कीसी जुर्म का मुर्तकिब हो और मुकाबिल को कोई ज़रर पहुचे तो केसास इस सूरत मे होना चाहिए कि जितना नुक़सान मुन्जी अलैह को पहुँचा है उतना ही नुक़सान मुजरिम को भी पहुँचाया जाए- अलबत्ता ये अम्र बहुत मुश्किल होता है इसी लिए बहुत मवाके पर केसास नकदी जुर्माने मे तब्दील हो जाता है- लेकिन गुज़श्ता ज़माने मे जहाँ तक मुम्किन हो सकता था केसास ही की कोशिश की जाती थी-

दसूकी इस ज़िम्न मे फरमाते हैं कि अहदे उस्मान मे एक शख्स ने दूसरे शख्स को ऐसी ज़र्ब लगाई जिसकी वजह से उसकी एक आँख की बीनाई खत्म हो गई लेकिन उसकी आँख को मामूल के मुताबिक कोई और नुकसान नही हुआ- हज़रत उस्मान ने ख़लीफ ए मुस्लेमीन होने की हैसीयत से केसास का हुक्म तो दे दिया लेकिन ये मुश्किल दरपेश आई कि आया मुजरिम की आँख को नुकसान पहुँचाया जाए या फिर कोई दूसरा तरीका इख्तियार किया जाए- मुश्किल को हल्लाले मुश्किलात हज़रत अली (अ) के सामने पेश किया गया तो आप ने फरमाया एक आईना लाया जाए और एक कपडा मुजरिम की आँख पर डाल कर सूरज को आईने पर इस तरह चमकाए कि सूरज का अक्स मुजरिम की आँख पर पडे इस तरह उसकी आँख की बीनाई तो चली जाएगी मगर आँख अपने मामूल पर बाकी रहेगी- ( दसूकी, गुज़शता हवाला, पेज 254 )

नतीजा

जो चीज़ गुज़श्ता तमाम बहसों से हासिल होती है वो ये है कि हज़रत अली (अ) एक ऐसी शख्सीयत के उनवान से रब्बानी उलूम से बहरामन्द और फिक के मुख्तलिफ अबवाब मे एक खास सीरत के मालिक हैं और ये सीरत अहले सुन्नत के नज़दीक भी फ़िकही मनाबे के उनवान से तस्लीम की जाती है-

हवाले

1- कुरईन करीम

2- इब्ने अरबी मोहयुद्दीन, अलफोतुहातुल मिया

3- अन्सारी, ज़करया, फत्हुल वहाब, दारुल किताब अलइल्मीया, बैरूत 1418 ह0

4- हेजावी, मूसा, अलइक्ना, दारूल मारफा, बैरूत,

5- दसूकी, मुहम्मद बिन उरफा, हाशिया अस्सूकी अलश्शरहिल कबीर, दारूल अहया अलकुतुबिल अरबीया, बैरूत

6- सैय्यद मुर्तज़ा, इल्मुल होदा, अलइन्तेसार, जामिआ मुदर्रेसीन, कुम 1415 ह0

7- शरबीनी, शम्सुद्दीन मुहम्मद, अलइक्ना फी हल्लिल अल्फाज़ अबी शुजा, दारू मारफा, बैरूत

8- शरबीनी, शम्सुद्दीन मुहम्मद, मुगनियुल मोहताज, दारे अहया अत्तोरासुल अरबी, बैरूत 1377

9- शरवानी, अब्दुल हमीद, हवाशियुश शरवानी, दारे अहया अत्तोरासुल अरबी, बैरूत 1985 ई0

10- नोवी, मोहयुद्दीन, अलमजमू फी शरहिल मोहज़्ज़ब, दारूल फिक्र, बैरूत