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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पाँच नेक सिफ़तें
हदीस-
अन अनस बिन मालिक क़ाला “समिति रसूलल्लाहि(स) फ़ी बाअज़ि ख़ुतबिहि व मवाइज़िहि..... रहिमल्लाहु अमराअनक़द्दमा ख़ैरन,व अनफ़क़ा क़सदन, व क़ाला सिदक़न व मलका दवाइया शहवतिहि व लम तमलिकहु, व असा अमरा नफ़्सिहि फ़लम तमलिकहु।[1] ”
तर्जमा-
अनस इब्ने मालिक से रिवायत है कि उन्होंने कहा मैंने रसूलुल्लाह के कुछ ख़ुत्बों व नसीहतो में सुना कि आप ने फ़रमाया “अल्लाह उस पर रहमत नाज़िल करे जो ख़ैर को आगे भेजे, और अल्लाह की राह में मुतवस्सित तौर पर ख़र्च करे, सच बोले, शहवतों पर क़ाबू रखे और उनका क़ैदी न बने, नफ़्स के हुक्म को न माने ताकि नफ़्स उस पर हाकिम न बन सके। ”
हदीस की शरह-
पैग़म्बरे अकरम (स) इस हदीस में उस इंसान को रहमत की बशारत दे रहे हैं जिस में यह पाँच सिफ़ात पाये जाते हैं।
1- “क़द्दमा ख़ैरन” जो ख़ैर को आगे भेजता है यानी वह इस उम्मीद में नहीं रहता कि दूसरे उसके लिए कोई नेकी भेजें, बल्कि वह पहले ही अपने आप नेकियों को ज़ख़ीरा करता है और आख़ेरत का घर आबाद करता है।
2- “ अनफ़क़ा क़सदन ” मुतवस्सित तौर पर अल्लाह की राह में ख़र्च करता है उसके यहाँ इफ़रातो तफ़रीत नही पायी जाती (यानी न बहुत ज़्यादा, न बहुत कम) बल्कि वह अल्लाह की राह में ख़र्च करने के लिए वसती राह को चुनता है। न इतना ज़्यादा ख़र्च करता कि ख़ुद कंगाल हो जाये और न इतना ख़सीस होता कि दूसरों को कुछ न दे। “ व ला तजअएल यदाका मग़लूलतन इला उनुक़िहि व ला तबसुतहा कुल्ला अलबस्ति फ़तक़उदा मलूमन महसूरन।”[2] अपने हाथों को अपनी गर्दन पर न लपेटो (अल्लाह की राह में ख़र्च करने से न रुको) और अपने हाथों को हद से ज़्यादा भी न खोलो ताकि .......................................
एक दूसरे मक़ाम पर फ़रमाया “व अल्लज़ीना इज़ा अनफ़क़ू लम युसरिफ़ु व लम यक़तुरु व काना बैना ज़ालिक क़वामन। [3]”
वह जब अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं तो न इसराफ़ करते हैं और न ही कमी बल्कि इन दोनो के बीच एतेदाल क़ायम करते हैं (बल्कि इन दोनों के बीच का रास्ता इख़्तियार करते हैं।)
3- “व क़ाला सिदक़न ” सच बोलता है उसकी ज़बान झूट से गन्दी नही होती।
ऊपर बयान की गयीं तीनों सिफ़ते पसंदीदा हैं मगर चौथी और पाँचवी सिफ़त की ज़्यादा ताकीद की गई है।
4-5 व मलिका दवाइया शहवतिहि व लम तमलिकुहु , व असा अमरा नफ़्सिहि फ़लम तमलिकहु वह अपने शहवानी जज़बात पर क़ाबू रखता है और उनको अपने ऊपर हाकिम नही बनने देता। क्योंकि वह अपने नफ़्स के हुक्म की पैरवी नही करता इस लिए उसका नफ़्स उस पर हाकिम नही होता। अहम बात यह है कि इंसान को अपने नफ़्स के हाथो असीर नही होना चाहिए बल्कि अपने नफ़्स को क़ैदी बना कर उसकी लगाम अपने हाथों में रखनी चाहिए। और इंसान की तमाम अहमियत इस बात में है कि वह नफ़्स पर हाकिम हो उसका असीर न हो। जैसे- जब वह ग़ुस्से में होता है तो उसकी ज़बान उसके इख़्तियार में रहती है या नही ? या जब उसके सीने में हसद की आग भड़कती है तो क्या वह उसको ईमान की ताक़त से ख़ामौश कर सकता है ? ख़ुलासा यह है कि इंसान एक ऐसे दो राहे पर खड़ा है जहाँ से एक रास्ता अल्लाह और जन्नत की तरफ़ जाता है और दूसरा रास्ता जिसकी बहुतसी शाखें हैं जहन्नम की तरफ़ जाता है। अलबत्ता इस बात का कहना आसान है मगर इस पर अमल करना बहुत मुशकिल है। कभी- कभी अरबाबे सैरो सलूक (इरफ़ानी अफ़राद) के बारे में कहा जाता है कि “ इस इंसान ने बहुत काम किया है ”यानी इसने अपने नफ़्स से बहुत कुशती लड़ी है और बार बार गिरने और उठने का नतीजा यह हुआ कि यह नफ़्स पर मुसल्लत हो गया और उसको अपने क़ाबू में कर लिया।
नफ़्स पर तसल्लुत क़ायम करने के लिए रियाज़ की ज़रूरत है, क़ुरआन के मफ़हूम और अहलेबैत की रिवायात से आशना होने की ज़रूरत है। इंसान को चाहिए कि हर रोज़ क़ुरआन, तफ़्सीर व रिवायात को पढ़े और उनको अच्छी तरह अपने ज़हन में बैठा ले और इस तरह उनसे ताक़त हासिल करे। कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि “ हम जानते हैं कि यह काम बुरा है मगर पता नही ऐसा क्यों होता है कि जब हम इस काम के क़रीब पहुँचते हैं तो हम अपने ऊपर कन्ट्रोल नही कर पाते।” ममलूक होने के माअना ही यह हैं कि जानता है मगर कर नही सकता क्योंकि ख़ुद मालिक नही है। जैसे किसी तेज़ रफ़्तार गाड़ी का ड्राईवर गाड़ी के अचानक किसी ढालान पर चले जाने के बाद कहे कि अब गाड़ी मेरे कन्ट्रोल से बाहर हो गई है, और वह किसी पहाड़ से टकरा कर खाई में गिर कर तबाह हो जाये। या किसी ऐसे इंसान की मिस्ल जिसकी रफ़्तार पहाड़ के ढलान पर आने के बाद बे इख़्तियार तेज़ हो जाये तो अगर कोई चीज़ उसके सामने न आये तो वह बहुत तेज़ी से नीचे की तरफ आयेगा जब तक कोई चीज़ उसे रोक न ले,लेकिन अगर वह पहाड़ी के दामन तक ऐसे ही पहुँच जाये तो नीचे पहुँच कर उसकी रफ़्तार कम हो जायेगी और वह रुक जायेगा। नफ़्स भी इसी तरह है कितनी दर्दनाक है यह बात कि इंसान जानता हो मगर कर न सकता हो। अगर इंसान उस ज़माने में कोई गुनाह करे जब वह उसके बारे में न जानता हो तो शायद जवाबदेह न हो।
यह सब हमारे लिए तंबीह (चेतावनी) है कि हम अपने कामों की तरफ़ मुतवज्जेह हों और अपने नेक कामों को आगे भेज़ें। लेकिन अगर हमने कोई बुरा काम अंजाम दिया और उसकी तौबा किये बग़ैर इस दुनिया से चले गये तो हमें उसके अज़ाब को भी बर्दाश्त करना पड़ेगा। क्योंकि इंसान की तकालीफ़ मरने के बाद ख़त्म हो जाती हैं और फ़िर न वह तौबा कर सकता है और न ही कोई नेक अमल अंजाम दे सकता है।
[1] बिहार जिल्द 74/179
[2] सूरए इसरा आयत 29
[3] सूरए फ़ुरक़ान आयत 67
भारत में अल्पसंख्यक, असुरक्षा के वातावरण में-आर्चबिशप फेराओ
भारत के गोवा राज्य के आर्चबिशप ने कहा कि देश में अल्पसंख्यकों के मन में भय और असुरक्षा बढ़ती जा रही है।
उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के विरुद्ध बढ़ रही घटनाओं को लेकर इसाइयों में दहशत का माहौल हैं।
गोवा के आर्चबिशप फिलिप नेरी फेराओं ने यह बात रायपुर की एक 48 साल की नन के साथ हुई रेप की घटना के प्रति संवेदना जताते हुए कही। फिलिप नेरी फेराओं ने देश में अल्पसंख्यकों पर भय और असुरक्षा की भावना घर कर गई है। उन्होंने कहा कि हम दुआ करते हैं कि जल्द ही भय और असुरक्षा के बादल छंट जाएं ताकि हम स्वतंत्रता, शांति और न्यायपूर्ण जीवन जी सकें।
फेराओं ने खेद व्यक्त हुए कहा कि यह दुखद है कि रेप की घटना को अंजाम देने वाले अपराधियों को अब तक गिरफ्तार नहीं किया जा सका है।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले रायपुर के एक मेडिकल सेंटर में अपनी ड्यूटी पूरी करके सो रही 48 साल की नन के कमरे में दो लोग घुस आए और उन्होंने नन के साथ गैंगरेप किया। बलात्कार की इस घटना को लेकर ईसाई सुमदाय के लोगों में भारी आक्रोश पाया जाता है।
न्यायपालिका को दबाव व प्रलोभन तथा धमकी का मुकाबला करना चाहिए
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने न्यायपालिका के अधिकारियों से भेंट में कहा है कि धमकी, लोभ, मित्रता और जनमत के दबाव जैसे न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों का मुकाबला किया जाना चाहिए।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने रविवार की शाम न्यायपालिका के अधिकारियों से अपनी भेंट में न्याय प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए मार्गदर्शन दिये और इस्लामी गणतंत्र ईरान की न्याय पालिका के पहले प्रमुख और ईरान के संविधान के मुख्य रचयिता डाक्टर बहिश्ती को श्रंद्धाजलि अर्पित की।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि न्यायपालिका देश के तीन अतिमहत्वपूर्ण विभागों में से एक है तथा देश में इस्लामी नियमों के पालन की मुख्य ज़िम्मेदार भी है इस लिए इस पालिका से संघर्ष व अत्याधिक प्रयास की आशा रखना उचित है।
इस अवसर पर ईरान की न्यायपालिका प्रमुख आयतुल्लाह आमुली लारीजानी ने न्यायपालिका की कार्यवाहियों के बारे में रिपोर्ट पेश की।
इस्लामी देशों से संबंध विस्तार, ईरान की मूल नीति
विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा है कि मोरोको सहित इस्लामी देशों के साथ संबंध विस्तार, ईरान की सैद्धांतिक नीति है।
मर्ज़िया अफ़ख़म ने रविवार को पत्रकारों से बात करते हुए ईरान व मोरोको के संबंधों के बारे में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि तेहरान व रेबात के संबंधों में विस्तार आ रहा है और ईरान की नीति सभी क्षेत्रों में मोरोको के साथ अपने सहयोग को विस्तार देने की है। उन्होंने कहा कि तेहरान में मोरोको का दूतावास खुलने और ईरान के राजदूत के मोरोको जाने के बाद दोनों देशों के संबंधों में नया अध्याय खुलेगा।
विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने इसी प्रकार बताया कि ईरान व मोरोको ने अपने राजनैतिक व आर्थिक संबंधों का स्तर ऊंचा उठाने और व्यापारिक शिष्टमंडलों की आवाजाही को अपने कार्यक्रमों में शामिल कर रखा है। मर्ज़िया अफ़ख़म ने कहा कि ईरान, परस्पर सम्मान और दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के आधार पर उत्तरी अफ़्रीक़ा के देशों के साथ सहयोग पर बल देता है।
रमज़ान से प्रभावित अमरीकी कंपनी, जारी की वीडियो क्लिप
अमरीका में एक कंपनी ने पवित्र रमज़ान के दौरान मुसलमानों की परंपरा पर एक संक्षिप्त फिल्म बनाई है।
Piximotion नामक अमरीकी कंपनी ने यह छोटा सा वीडियो क्लिप तैयार किया है जिसमें दिखाया गया है कि रमज़ान के दौरान मुसलमान किस प्रकार से रोज़ा रखते हैं। Press and Guid साइट के अनुसार मात्र 30 सैकेंड के इस क्लिप में रमज़ान के दौरान मुसलमानों में पाए जाने वाले डिस्पलिन को दिखाया गया है। इसमे दिखाया गया है कि किस प्रकार से मुसलमान एक साथ बैठकर अनुशासन के साथ रोज़ा खोलते हैं।
यह वीडियो क्लिप, www.itsramadan.org पर उपलब्ध है। यह क्लिप इस वाक्य के साथ समाप्त होता है कि रमज़ान शुरू हो चुका है और आपको रमज़ान मुबारक हो।
उल्लेखनीय है कि Piximotion नामक अमरीकी कंपनी ने यह वीडिय क्लिप ऐसी स्थिति में बनाकर जारी की है कि जब पश्चिम में मुसलमान, इस्लामोफोबिया का शिकार हैं। उन्हें बहुत स्थानों पर अपमान का सामना करना पड़ रहा है।
एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि ग्यारह सितंबर की घटना के बाद से पश्चिम में इस्लाम के विरुद्ध दुष्प्रचारों में तेज़ी से वृद्धि देखने में आई है।
प्रतिबंधों को तत्काल हटना चाहिएः काज़िम सिद्दीक़ी
तेहरान के इमामे जुमा ने कहा है कि ईरान के विरुद्ध लगे प्रतिबंधों को तत्काल हटना चाहिए।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने कहा कि ईरान के विरुद्ध लगे प्रतिबंधों को पूर्ण रूप से स्थगित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर प्रकार के प्रतिबंधों को समझौते पर हस्ताक्षर के ही समय हट जाना चाहिए न कि उन्हें विलंबित किया जाए।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने अपने जुमे के ख़ुत्बे में ईरान तथा गुट पांच धन एक के बीच जारी परमाणु वार्ता की ओर संकेत करते हुए कहा कि वह प्रतिबंधों के सामने घुटने टेकने वाला नहीं और पूरी क्षमता के साथ वार्ता में उपस्थित है।
उन्होंने परमाणु वार्ता के बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के बयान का उल्लेख किया। हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने कहा कि वरिष्ठ नेता के बयान ने व्यवस्था के अधिकारियों को मनोबल दिया और उनके परस्पर अधिक से अधिक निकट होने की भूमिका प्रशस्त की। तेहरान के इमामे जुमा ने कहा कि ईरानी राष्ट्र अपमान स्वीकार करने वाला राष्ट्र नहीं है। उन्होंने कहा कि अन्य देशों की भांति वह वर्चस्ववादियों की हर मांग को स्वीकार नहीं कर सकता।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने कहा कि परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण प्रयोग के संदर्भ में ईरान, जितना भी सशक्त होगा उतना ही वह वार्ता में मज़बूत स्थिति में रहेगा। उन्होंने कहा कि अगर ईरान पीछे हटता है तो फिर वह हार जाएगा। इमामे जुमा ने कहा कि यह जान लेना चाहिए कि सामने वाले पक्ष के वादे खोखले हैं और शत्रु पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने अपने ख़ुत्बे के अन्य भाग में पवित्र रमज़ान का उल्लेख करते हुए कहा कि यह महीना, ईश्वरीय आतिथ्य का महीना है जिसे विशेष महत्व प्राप्त है।
इस सप्ताह को अमरीकी मानवाधिकार सप्ताह का नाम दिया जाना चाहिए!
वरिष्ठ नेता ने कहा है कि ईरान की जुम्हूरी इस्लामी पार्टी के कार्यालय में बम विस्फोट के ज़िम्मेदार आज़ादी के साथ अमरीका व युरोप में घूम रहे हैं और जो लोग अमरीका की दुष्टता को मीडिया के पर्दे के पीछे छिपाने की कोशिश करते हैं वह वास्तव में ग़द्दार हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने शनिवार की शाम 28 जून वर्ष 1981 की घटना में शहीद होने वालों के परिजनों से एक भेंट में यह बात कही।
याद रहे 28 जून वर्ष 1981 में ईरान की तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी जुम्हूरी इस्लामी के कार्यालय में एक मीटिंग के दौरान बम विस्फोट हुआ था जिसमें ईरान के तत्कालीय न्यायपालिका प्रमुख आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद हुसैनी बहिश्ती और 72 उच्चाधिकारी शहीद हो गये थे।
वरिष्ठ नेता ने इस घटना की ओर संकेत करते हुए कहा कि 28 जून वर्ष 1981 की घटना कि जिसमें आयतुल्लाह बहिश्ती और कई मंत्री और सांसद तथा उच्च अधिकारी शहीद हुए थे स्वाभाविक रूप से ईरान में इस्लामी क्रांति की विफलता का कारण बन सकती थी किंतु इन शहीदों के खून की बरकत से, यह घटना ईरानी राष्ट्र के मध्य अधिक एकजुटता का कारण बनी और क्रांति अधिक मज़बूती के साथ अपनी राह पर आगे बढ़ी और इस घटना से ईरानी समाज में इस्लामी क्रांति के प्रभाव की गहराई से शत्रु भी अवगत हो गये तथा इसके साथ ही उनके वास्तविक चेहरे भी सामने आ गये क्योंकि इस घटना के बहुत से ज़िम्मेदार आज भी युरोप और अमरीका में आज़ादी के साथ सक्रिय हैं और बड़े बड़े सरकारी अधिकारियों से भेंटवार्ता करते हैं बल्कि उनके लिए मानवाधिकार की रक्षा के विषय पर सम्मेलन भी आयोजित किये जाते हैं।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमारे देश में 17 हज़ार लोगों की आतंकवादी घटनाओं में हत्या की गयी और मारे जाने वालों में महिलाएं, बच्चे, किसान, क्लर्क और शिक्षक शामिल हैं और इन हत्याओं के ज़िम्मेदार मानवाधिकारों की रक्षा का दावा करने वाले देशों में शरण लिये हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने 28 जून वर्ष 1981 में बम विस्फोट, 28 जून वर्ष 1987 में ईरान के सरदश्त क्षेत्र पर रासायनिक बमबारी और तीन जूलाई वर्ष 1988 में ईरान के यात्री विमान को मार गिराने जैसी घटनाओं का उल्लेख करते हुए इन्हें अमरीका और उसके घटकों की आतंकवादी गतिविधियों का नमूना बताया और कहा कि बहुत से लोगों का यह विचार है कि जून के महीने के इस हफ्ते को अमरीकी मानवाधिकार सप्ताह का नाम दिया जाना चाहिए।
रोज़े के जिस्मानी फ़ायदे, साइंस की निगाह में
आज हम लोग रमज़ान के मुबारक महीने मे एक दीनी कर्तव्य समझ कर रोज़े रखते हैं जो सही भी है लेकिन दीनी कर्तव्य और सवाब के अलावा भी रोज़े के बहुत से फ़ायदे हैं जिनमे से कुछ फ़ायदे हमारी सेहत व स्वास्थ से सम्बन्धित हैं, लेकिन हम में से बहुत से लोग यह नही जानते कि रोज़ा हमारी सेहत के लिए कितना ज़रूरी है। अगर रोज़ा सही तरीक़े से रखा जाए और सेहत के नियमों का पालन किया जाए तो यह हमारे लिए आख़ेरत के साथ ही दुनिया मे भी बहुत फ़ायदा पहुंचा सकता है। रोज़ा हमारे जिस्म से ज़हरीली और हानिकारक चीज़ों और टाक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करता है, ब्लड सुगर को कम करता है, यह हमारी खाने पीने की आदतों मे सुधार करता है और हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाता है तथा हमारे जिस्म की बीमारियों से लड़ने की ताक़त मे बढ़ोत्तरी करता है।
हम अपने खाने पीने के दौरान बहुत से ज़हरीले पदार्थ या टाक्सिन्स लेते हैं, जैसे डिब्बा बन्द खाने पीने की चीज़ें, जिनको सड़ने या ख़राब होने से बचाने के लिए ऐसी चीज़ें मिलाई जाती हैं जो ज़हरीली होती हैं इसके अलावा आजकल अनाज,फल व सब्ज़ियां उगाने मे ज़हरीली दवाओं का इस्तेमाल होता है, साथ ही हमारे जिस्म मे मेटाबोलिज़्म के दौरान बहुत से ज़हरीले पदार्थ या टाक्सिन्स निकलते हैं, जिनका बड़ा हिस्सा पेशाब,पाख़ाना और पसीने द्वारा हमारे जिस्म के बाहर निकाल दिया जाता है, फिर भी इन टाक्सिन्स की बड़ी मात्रा हमारे जिस्म के अन्दर ही रह जाती है जो हमारे जिस्म में मौजूद चर्बी या फ़ैट के अन्दर इकट्ठा होती रहती है। जब हम रोज़ा रखते हैं (ख़ासतौर से लम्बे समय तक, जैसे-रमज़ान के मुबारक महीने मे एक महीने तक लगातार) तो हमारे जिस्म मे जमी हुइ चर्बी या फ़ैट गलने लगता है और ज़हरीले पदार्थ या टाक्सिन्स बाहर निकलने लगते हैं जो जिगर व किडनी की मदद से जिस्म के बाहर निकाल दिये जाते हैं इस प्रॉसेस को डिटाक्सीफ़िकेशन कहते हैं। (यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि हम रोज़े के दौरान फ़ैट वाली व तली हुइ चीज़ों से परहेज़ करें तभी रोज़ा रखने का पूरा फ़ायदा उठा सकेंगे और अपने जिस्म को सेहतमन्द रख सकेंगे)।
रोज़े का सकारात्मक असर हमारे हाज़्मे या डाइजेशन पर भी पड़ता है, रोज़े के दौरान हमारे डाइजेस्टिव सिस्टम को आराम करने का मौक़ा मिल जाता है, रोज़े के दौरान डाइजेस्टिव एन्ज़ाइम्स का बनना या निकलना बन्द नही होता बल्कि धीमा हो जाता है जिससे हमारी बाडी के लिक्विड्स के बैलेंस मे मदद मिलती है, साथ ही हमारा डाइजेस्टिव सिस्टम धीरे-धीरे काम करता रहता है, इस लिए इफ़्तार या सहरी मे लिया गया फ़ूड लगातार छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटता रहता है और डाइजेस्टिव इन्ज़ाइम्स की मदद से डाइजेस्ट होता रहता है जिसके नतीजे मे हमे एनर्जी मिलती है और हमारे डाइजेस्टिव सिस्टम को खाना डाइजेस्ट करने के लिए दिन भर का समय मिल जाता है जिससे उस पर अधिक बोझ नही पड़ता और हमारा हाज़्मा दुरूस्त रहता है। क्योंकि रोज़े मे एसिड्स का बनना पूरी तरह बन्द नही होता इस लिए जिन लोगों को एसिडिटी की बीमारी हो या पेट मे अल्सर हों उन्हें डाक्टर की सलाह से रोज़ा रखना चाहिए।
नई खोजों से पता चला है कि रोज़ा इन्फ़्लामेशन या सूजन वाली बीमारियों में फ़ायदेमन्द है और कुछ स्टडीज़ बताती हैं कि यह एलर्जी को ठीक करने मे भी मददगार है। जिन बीमारियों मे रोज़े से फ़ायदा होने का पता चला है उनमे रुयूमैटायड अर्थरायटिस (जोड़ों की सूजन), सोरिएसिस (चमड़ी की बीमारी), कोलाईटिस (आन्तों की सूजन), और आन्तों के अल्सर आदि की बीमारियां शामिल हैं।
रोज़े का रोल सुगर की बीमारी या डायबिटीज़ मे भी काफ़ी इम्पार्टेंट पाया गया है। रोज़ा हमारे जिस्म मे इकट्ठा ग्लूकोज़ को छोटे-छोटे टुकड़ों मे तोड़ देता है जो एनर्जी मे बदल जाता है नतीजे मे हमारी बॉडी का सुगर लेवेल कम हो जाता है और डायबिटीज़ के मरीज़ को राहत देता है, साथ ही पैंक्रियाज़ को भी आराम मिल जाता है।
रोज़े के नतीजे मे हमारे जिस्म मे इकट्ठा फ़ैट टुकड़ों मे टूटकर एनर्जी मे बदल जाता है या अगर हम दूसरे शब्दों मे कहें तो हमारे जिस्म की चर्बी गल जाती है इस प्रकार मोटे लोगों को और उन लोगों को कि जिनका पेट निकल आया है स्लिम करने मे रोज़ा मदद करता है।
रोज़ा रखना ब्लड प्रेशर के मरीज़ों को भी फ़ायदा पहुंचाता है। स्टडीज़ बताती हैं कि रोज़ा दवा के बाद ब्लडप्रेशर कम करने का सबसे बड़ा साधन है। रोज़ा अथीरोस्क्लेरोसिस के ख़तरे को कम करता है ( अथीरोस्क्लेरोसिस नसों की ऐसी बीमारी है जिसमे नसों के अन्दर फ़ैट जम जाता है जिसके नतीजे मे दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा रहता है)। रोज़े मे फ़ैट टुकड़ों मे बंटकर एनर्जी मे बदल जाता है, इस प्रकार इस बीमारी से बचाव करता है।
रोज़ा हमे हेल्दी लाइफ़स्टाइल अपनाने मे मदद करता है। यह हमे अपने ऊपर कन्ट्रोल करने मे सहायक है, रोज़ा हमे दिनभर नशे व सेहत के लिए हानिकारक चीज़ों से बचाता है, ऐसा देखा गया है कि रोज़े मे नशे की तलब या तो कम हो जाती है या ख़त्म हो जाती है। अब हमारे उपर है कि हम इस अवसर का कितना फ़ायदा उठा पाते हैं, निश्चित रूप से हमे चाहिए कि हम अपने उपर कन्ट्रोल करें और अपनी सेहत के दुश्मन न बनें और रमज़ान का मुबारक महीना गुज़रने के बाद अपनी खाने पीने या नशे की बुरी आदतों पर नियन्त्रण रखकर इन चीज़ों से दूर हो चुके हों। इंशा अल्लाह।
मिस्र में शिया मुसलमानों के बढ़ते प्रभाव से बौखलाई अल अज़हर युनिवर्सिटी।
अल-अज़हर विश्वविद्यालय दुनिया में सुन्नी मुसलमानों की बड़ी शैक्षिक संस्थाओं में से है जिसने दबे शब्दों में यह घोषणा की है कि रमज़ान के पवित्र महीने में ऐसे कार्यक्रम रखे जाएंगे जिससे मिस्र में सुन्नी मुसलमानों को शिया मत स्वीकार करने से रोका जाएगा।
अल-आलम नेटवर्क के अनुसार अल-अज़हर विश्वविद्यालय के प्रमुख शैख़ अहमद अल-तैय्यब ने एक कर्यक्रम में दबे शब्दों में यह इशारा किया कि रमज़ान के पवित्र महीने में होने वाले उनके कर्यक्रमों में दिये जाने वाले भाषण इस प्रकार के होगें जिससे वे लोग जो शिया मत के निकट हो रहे हैं, दूर हो जाएं। शैख़ अहमद अल-तैय्यब ने बताया है कि इस वर्ष रमज़ान में वे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के साथियों के विषय पर भाषण देंगे और जो मिस्र के सटेलाईट चैनेलों द्वारा प्रसारित भी किया जाएगा। अल-अज़हर विश्वविद्यालय के प्रमुख ने कहा कि इधर कई वर्षों से हमारे सुन्नी युवा शिया मत की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जिसको रोकने के लिए हमारे धर्मगुरूओं को चाहिए कि इस वर्ष रमज़ान में अपने भाषणों को पैग़ामबरे इस्लाम (स) के साथियों के जीवन पर केन्द्रित करें।
समाचार पत्र रायुल यौम के अनुसार अल-अज़हर विश्वविद्यालय के प्रमुख ने चेतावनी देते हुए कहा है कि जो लोग पैग़ामबरे इस्लाम (स) के साथियों के व्यक्तित्व पर कटाक्ष करते हैं वे लोग वास्तव में सुन्नी युवाओं के विरुद्ध कार्य करते हैं। शैख़ अहमद अल-तैय्यब ने कहा है कि मिस्र में कुछ संगठित और बहुपक्षीय संगठन दूसरे मतों की ओर निमंत्रण देकर देश के युवाओं की एकता और अखंडता को तोड़ने के प्रयास में हैं, वे लोग सुन्नी युवाओं को अपना मत छोड़ कर किसी अन्य मत स्वीकार करने की ओर आमंत्रित कर रहे हैं। अल-अज़हर के प्रमुख ने कहा कि हमारा अपने युवाओं के प्रति धार्मिक दायित्व है कि उन पर होने वाले दूसरे धर्मों के प्रहार को रोकें और उनका सही दिशा में मार्गदर्शन करें।
शैख़ अहमद तैय्यब ने कहा कि दूसरे धर्म के प्रचारक पहले तो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रेम का सहारा लेकर हमारे जवानो को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और बाद में उनको हज़रत उमर के विरुद्ध यह कह कर बहका देते हैं कि उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेटी हज़रते फ़ातेमा ज़हरा (स) का घर जलाया था और फिर हमारे युवाओं से यह कह कर के यह लोग हज़रत फ़ातेमा (स) और हज़रत अली (अ.स.) के विरोधी थे उन पर धिक्कार कराया जाता है।
इमाम ख़ुमैनी जीवन भर ईश्वर के मार्ग में संघर्षरत रहे
इमाम ख़ुमैनी, इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा है कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी, उस महान आन्दोलन का स्पष्ट प्रतीक हैं जिसे ईरानी राष्ट्र ने आरंभ किया और जिसने पूरे इतिहास को परिवर्तित कर दिया।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने गुरूवार को तेहरान में स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी की 26वीं बरसी के अवसर पर उनके मज़ार पर उपस्थित होकर पुष्पांजलि अर्पित की।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी, एक वैचारिक, राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा के जनक हैं। उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्र ने उनकी इस विचारधारा को स्वीकार किया और वह उस मार्ग पर चल पड़ा।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी, एक महान धर्मशास्त्री, दर्शनशास्त्री और तत्वदर्शी थे किंतु उनके व्यक्तित्व को इनमें से किसी एक में सीमित नहीं कहा जा सकता।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी, अपनी समस्त शैक्षिक योग्यताओं के साथ ईश्वर के मार्ग में संघर्ष के लिए उठ खड़े हुए और अपनी आयु के अन्तिम समय तक संघर्षरत रहे।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने एक ऐसे जनान्दोलन को अस्तित्व प्रदान किया जो न केवल ईरान में बल्कि पूरे संसार में अद्वितीय है।