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अरबईन का मार्च "ईमान और इश्क़" का संयोजन और शआएरे इलाही में है / काश मैं भी ज़ाएरीने अरबईन के साथ होता

राजनीतिक समूह: क्ररांति के सर्वोच्च नेता अनोखी घटना और अज़ीम हरकत और अरबईन हुसैनी अ. का पुर मअना मार्च को हमेशा बाक़ी रहने वाली नेकी बताया और कहा: "प्यार और विश्वास" और "अक़्ल और भावना" का संयोजन अहलेबैत के मक्तब की अनूठी विशेषताओं में से है तथा दुनिया के विभिन्न देशों से से आऐ हुऐ मोमनीन द्वारा प्यार और ईमानदारी की हरकत इस अभूतपूर्व घटना में बेशक दिव्य अनुष्ठान (शआएरे इलाही)में है।

अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी (IQNA के सर्वोच्च नेता के कार्यालय की जानकारी डेटाबेस के अनुसार, हज़रत अयातुल्ला ख़ामेनई ने आज सोमवार 30 नवंबर को, दर्से ख़ारिज फिक़्ह जलसे में अद्वितीय और सार्थक आंदोलन और अर्थवाली अरबईन हुसैनी के मार्च को बाक़ी रहनने वाली नेकी बताया और कहा: "प्यार और विश्वास" और "अक़्ल और भावना" का संयोजन अहलेबैत के मक्तब की अनूठी विशेषताओं में से है तथा दुनिया के विभिन्न देशों से आऐ हुऐ मोमनीन द्वारा प्यार और ईमानदारी की हरकत इस अभूतपूर्व घटना में बेशक दिव्य अनुष्ठान (शआएरे इलाही)में है।
हज़रत अयातुल्ला ख़ामेनई ने चालीसवें तीर्थयात्रियों के स्वागत में इराकी लोगों की उदारता और दया की ओर इशारा करते उन लोगों को जिन्हों ने इस सार्थक और समृद्ध हरकत में भाग लेने का अवसर मिला है  सलाह दी कि मौक़े को ग़नीमत शुमार करें और कहा: हम भी दूर से चालीसवें के ज़ायरीन की हालत पर रश्क कर रहे हैं ऐ काश हम भी आप के साथ होते।
सर्वोच्च नेता, पैगंबर (PBUH) के परिवार के साथ आध्यात्मिक और प्यार के रिश्ते बनाने का अवसर और इन विशिष्ट,प्रमुख,नूरानी व मलकूती हस्तियों की ज़ियारत को इस्लामी संप्रदायों के बीच शिया सोच की विशेषताओं में जाना और कहा: ईरान और दुनिया के सभी देशों के लोगों की अरबईन के मार्च में अज़ीम हरकत अहलेबैत के मक्तब की अनूठी विशेषताओं में से है कि उसमें" दिली विश्वास, आस्था और विश्वास"  की लहर तथा "प्यार और स्नेह" भी।
उन्होंने इसी तरह चालीसवें के तीर्थयात्रियों को नियमों और सिफारिशों का पालन करने को कहा और ज़ोर दिया: सरकार ने देश छोड़ने के लिए नियमों को बनाया है अवश्य पालन किया जाना चाहिऐ और इस मापदंड के बाहर कोई हरकत मान्य नहीं है।

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम की रैली में विश्व के विभिन्न देशों के लोगों की उपस्थिति को स्पष्ट रूप से ईश्वरीय संस्कारों में से क़रार दिया है।

सोमवार को इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने इराक़ में इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के अवसर पर विशाल रैली को एक अद्वितीय आंदोलन एवं यादगार संस्कार बताया और कहा, प्रेम और ईमान और बुद्धि और भाव पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के अद्वितीय सिद्धांत की विशेषता है।

इराक़ी जनता की ओर से इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम की विशाल रैली में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं की नि:स्वार्थ सेवा और स्वागत की ओर संकेत करते हुए वरिष्ठ नेता ने इस रैली में भाग लेने वालों से सिफ़ारिश करते हुए कहा, इस सुअवसर के महत्व को पहचानें।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि चेहलुम में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं को देखकर उन पर गर्व होता है, काश हम भी उनके साथ इसमें भाग ले सकते।
वरिष्ठ नेता ने कहा ईरान और दुनिया भर से बड़ी संख्या में लोगों का चेहलुम की रैली में उपस्थित होना, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों की शिक्षाओं की शानदार विशिष्टता है। इससे दृढ़ विश्वास, सच्चे ईमान और गहरी आस्था का पता चलता है।

वरिष्ठ नेता ने चेहलुम में इराक़ पहुंचने वाले श्रद्धालुओं से नियमों के पालन की सिफ़ारिश की और कहा, सरकार ने देश से बाहर जाने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए हैं, इन नियमों का पालन किया जाना चाहिए।  

 

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

 पश्चिमी देशों के युवाओं के नाम

अंधे आतंकवाद ने फ़्रांस में जिन कड़वी घटनाओं को जन्म दिया, उन्होंने मुझे एक बार फिर आप युवाओं से संवाद पर तैयार किया। मेरे लिए यह खेदजनक है कि संवाद की पृष्ठभूमि इस प्रकार की घटनाएं बनें लेकिन सच्चाई यह है कि अगर पीड़ादायक मामले, समाधन पर विचार की भूमि और सहचिंतन का अवसर उपलब्ध न कराएं तो नुक़सान दुगना होगा। दुनिया में किसी भी स्थान पर किसी भी इंसान की पीड़ा अपने आप में पूरी मानतवा के लिए दुखदायी होती है। वह दृश्य कि बच्चा अपने प्रिय लोगों के सामने दम तोड़ देता है, एक मां जिसके घर की ख़ुशी शोक में बदल जाती है, एक पति जो अपनी पत्नी का निर्जीव शरीर उठाए किसी ओर भाग रहा है, या वह दर्शक जिसे नहीं मालूम कि कुछ ही क्षणों बाद वह अपने जीवन का अंतिम सीन देखने जा रहा है, यह दृष्य ऐसे नहीं हैं जो देखने वाले की भावनाओं को झिंझोंड़ न दें। जिसके अंदर तनिक भी प्रेम और मानवता है, वह यह दृश्य देखकर प्रभावित और दुखी होगा। चाहे वह फ़्रांस में दिखाई दें या फ़िलिस्तीन, इराक़, लेबनान और सीरिया में। निश्चित रूप से डेढ़ अरब मुसलमानों की यही भावनाएं हैं और वह इन त्रासदियों को अंजाम देने वालों और ज़िम्मेदारों से घृणा करते हैं। लेकिन मामला यह है कि अगर आज के यह दुख और आज की यह पीड़ा बेहतर तथा सुरक्षित भविष्य के निर्माण की नींव न बनें तो इनकी हैसियत कड़वी और परिणामहीन यादों तक सीमित होकर रह जाएगी। यह मेरा विश्वास है कि केवल आप युवा ही आज के प्रतिकूल परिवर्तनों से पाठ लेकर भविष्य के निर्माण की नई राहें तलाश करने और ग़लत दिशा की ओर प्रगति को रोकने में सक्षम होंगे जिस ने पश्चिम को आज इस स्थान पर पहुंचा दिया है।

यह सही है कि आतंकवाद आज हमारी और आपकी संयुक्त समस्या है। लेकिन आपको यह मालूम होना चाहिए कि जिस अशांति और बेचैनी का सामना आपने हालिया त्रासदी में किया और उस दुख और पीड़ा में जिसे इराक़, यमन, सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान की जनता वर्षों से झेल रही है, दो बुनियादी फ़र्क़ हैं। एक तो यह कि इस्लामी जगत क्षेत्रफल की दृष्टि से कई गुना बड़े इलाक़े में, इससे कई गुना बड़े पैमाने पर और बहुत लंबी अवधि के दौरान हिंसा और आतंकवाद की भेंट चढ़ रहा है। दूसरे यह कि दुर्भाग्यवश इस हिंसा का हमेशा कुछ बड़ी शक्तियों की ओर से विभिन्न शैलियों से और बहुत प्रभावी रूप में समर्थन किया जाता रहा है। आज शायद ही ऐसा कोई होगा जिसे अलक़ायदा, तालेबान, और इस मनहूस श्रंखला की कड़ियों के निर्माण, उनके सशक्तीकरण और उन्हें हथियारों की सप्लाई में संयुक्त राज्य अमरीका की भूमिका की जानकारी न हो। इस प्रत्यक्ष संरक्षण के साथ-साथ तकफ़ीरी आतंकवाद के जाने-पहचाने और खुले समर्थक, सबसे अधिक दक़ियानूसी राजनैतिक व्यवस्था के स्वामी होने के बावजूद, हमेशा पश्चिम के घटकों की पंक्ति में शामिल रहे हैं, जबकि क्षेत्र में प्रगतिशील लोकतंत्र से उपजे उज्जवल और विकसित विचारों का क्रूरता से दमन किया गया है। इस्लामी जगत में जागरुकता के आंदोलन के साथ पश्चिम का दोहरा रवैया पश्चिमी नीतियों में विरोधाभास का मुंह बोलता सुबूत है।

इस विरोधाभास का एक और रूप इस्राईल का सरकारी आतंकवाद है। फ़िलिस्तीन की पीड़ित जनता 60 साल से अधिक समय से अत्यंत भयानक आतंकवाद का सामना कर रही है। यदि आज यूरोप के लोग कुछ दिन अपने घरों में शरण लेने पर मजबूर हैं और भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर जाने से परहेज़ कर रहे हैं तो फ़िलिस्तीनी परिवार दसियों साल से यहाँ तक कि अपने घर में भी ज़ायोनी शासन के विध्वंसकारी और जनसंहारी तंत्र से सुरक्षित नहीं हैं। आज हिंसा की कौन सी ऐसी क़िस्म है कि क्रूरता की दृष्टि से जिसकी तुलना ज़ायोनी शासन के कालोनी निर्माण से की जा सकती है? यह सरकार अपने प्रभावी समर्थकों या विदित रूप से स्वाधीन अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की ओर से किसी भी प्रकार की गंभीर और प्रभावी आलोचना का सामना किए बग़ैर, रोज़ाना फ़िलिस्तीनियों के घरों को ध्वस्त करती है, उनके बाग़ों और खेतों को बर्बाद करती है, यहाँ तक कि उन्हें सामान हटाने और खेतों की फ़सलें काटने तक की मोहलत नहीं देती। यह सब कुछ आम तौर पर महिलाओं और बच्चों की आंसू बहाती आँखों के सामने होता है, जो अपने परिवार के लोगों को मार खाते और यातनागृहों में स्थानान्तरित होते देख रहे होते हैं। क्या आज की दुनिया में आप इतने व्यापक पैमाने पर, इस मात्रा में और इस लंबी अवधि तक अंजाम पाने वाली किसी और निर्ममता से अवगत हैं? सिर से पांव तक लैस सैनिक के सामने केवल विरोध कर देने के जुर्म में बीच सड़क पर एक महिला को गोलियों से भून देना, अगर आतंकवाद नहीं तो क्या है? क्या इस लिए कि यह बर्बरता चूंकि एक अतिग्रहणकारी सरकार के सैनिक अंजाम दे रहे हैं, अतः उसे चरमपंथ नहीं कहना चाहिए? या केवल इस कारण कि यह दृश्य चूंकि 60 साल से टीवी स्क्रीनों पर लगातार दिखाई देते रहे हैं, अतः हमारी अंतरात्मा को नहीं झिंझोड़ते!

हालिया वर्षों में इस्लामी जगत पर सैनिक चढ़ाई कि जिसमें अनगिनत जानें गईं, पश्चिम की विरोधाभासी शैली का एक और उदाहरण है। हमले का निशाना बनने वाले देशों ने जानी नुक़सान उठाए, इसके अलावा उनकी मूल आर्थिक और औद्योगिक संरचनाएं नष्ट हो गईं, उनकी उन्नति और उनका विकास गतिहीन हो गया, कुछ मामलों में वह दसियों साल पीछे चले गए। इसके बावजूद दुस्साहस के साथ उनसे कहा जाता है कि वह ख़ुद को पीड़ित न समझें! यह कैसे संभ  व है कि किसी देश को खंडहर में बदल दिया जाए, उसके शहरों और गांवों को राख का ढेर बना दिया जाए और फिर उससे कहा जाए कि कृपा करके आप ख़ुद को पीड़ित न मानिए! त्रासदियों को भूल जाने और उन्हें न समझने का आह्वान करने के बजाए क्या सच्चाई के साथ माफ़ी मांग लेना बेहतर नहीं है? इन वर्षों के दौरान इस्लामी जगत को हमलावरों के दोग़लेपन और मास्क चढ़े चेहरों से जो दुख पहुंचा है वह भौतिक नुक़सान से कम नहीं है।

प्रिय युवाओ! मैं आशा करता हूं कि आप इस वक़्त या भविष्य में धोखे से दूषित सोच को बदलेंगे, उस सोच को जिसका सारा कमाल दीर्घकालिक लक्ष्यों को छुपाना और विनाशकारी उद्देश्यों को सजाना- संवारना है। मेरे विचार में सुरक्षा और निश्चिंता का माहौल बनाने के संबंध में पहला क़दम हिंसाजनक इस सोच में सुधार करना है। जब तक पश्चिम की राजनीति पर दोहरे मापदंडों का प्रभुत्व रहेगा, जब तक आतंकवाद को अच्छे और बुरे में बांटा जाता रहेगा, उस समय तक हिंसा की जड़ों को कहीं और खोजने की ज़रूरत नहीं है।

खेद की बात है कि यह जड़ें वर्षों की इस अवधि में धीरे धीरे पश्चिम की सांस्कृतिक नीतियों की गहराई तक भी फैल गई हैं और इसने एक ख़ामोश और ग़ैर महसूस हमले का रास्ता समतल किया है। दुनिया के बहुत से देश अपनी राष्ट्रीय एवं स्थानीय संस्कृति पर गर्व करते हैं। उन संस्कृतियों पर जिन्हों ने उत्थान और प्रगति के साथ ही सैकड़ों साल से मानव समाजों को विधिवत रूप से  हर प्रकार से तृप्त किया है। इस्लामी जगत भी इससे अपवाद नहीं है। लेकिन वर्तमान काल में पश्चिमी जगत आधुनिक साधनों की मदद से दुनिया की संस्कृतियों को एकसमान बना देने पर अड़ा हुआ है। मैं अन्य राष्ट्रों पर पश्चिमी संस्कृति थोपे जाने और स्वाधीन संस्कृतियों को महत्वहीन ठहराए जाने को एक ख़ामोश और अत्यंत विनाशकारी हिंसा मानता हूं। समृद्ध संस्कृतियों का अपमान और उनके आदरपूर्ण आयामों की अवमानना ऐसे समय की जा रही है कि जब विकल्प बनने वाली संस्कृति में उनका स्थान लेने की क्षमता कदापि नहीं है। उदाहरण स्वरूप आक्रामक रवैया तथा नैतिक निरंकुशता जैसे दो तत्वों  ने जो दुर्भाग्यवश पश्चिमी संस्कृति के बुनियादी तत्व बन चुके हैं, उसकी लोकप्रियता और स्थान को ख़ुद उसकी जन्मस्थली में बहुत नीचे तक गिरा दिया है। अब सवाल यह है कि अगर हम आध्यात्म की विरोधी, हिंसा से भरी  और अश्लीलता परोसने वाली संस्कृति को स्वीकार न करें तो क्या हम गुनहगार हैं? अगर हम इस विनाशकारी बाढ़ का रास्ता रोक दें जो तथाकथित कला के विभिन्न रूपों में हमारे युवाओं की ओर भेजी जा रही है, तो क्या हमने अपराध किया है? मैं सांस्कृतिक रिश्तों के महत्व और मूल्य का इंकार नहीं करता। यह रिश्ते जब भी स्वाभाविक वातावरण में और मेज़बान समाज का सम्मान करते हुए स्थापित किए गए हैं उनसे उत्थान, ऊंचाई और समृद्धि मिली है। इसके विपरीत विषम और थोपे गए रिश्ते नाकाम और नुक़सानदेह साबित हुए हैं। बड़े ही खेद के साथ मुझे कहना पड़ता है कि दाइश जैसे पस्त गुट आयातित संस्कृतियों से इन्हीं विफल रिश्तों की पैदावार हैं। अगर ख़राबी आस्था में होती तो साम्राज्यवादी दौर से पहले भी इस्लामी जगत में ऐसे गुट उभरे होते। जबकि इतिहास इसके विपरीत गवाही देता है। पुष्ट ऐतिहासिक तथ्यों से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि किस प्रकार एक आदिवासी क़बीले के भीतर मौजूद अतिवादी और ठुकरा दी गई विचारधारा से साम्राज्यवाद के मिलाप ने इस क्षेत्र में चरमपंथ का बीज बोया?! वरना कैसे संभव है कि दुनिया के सबसे शिष्टाचारिक और मानवताप्रेमी पंथ से जिसके मूल दस्तावेज़ में एक इंसान की हत्या को पूरी मानवता के क़त्ल के समान ठहराया गया हो, दाइश जैसा कूड़ा बाहर आए?

दूसरी ओर यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि वह लोग जो यूरोप में जन्में और उसी वातावरण में वैचारिक एवं मनोवैज्ञानिक परवरिश पायी, इस प्रकार के गुटों की ओर क्यों उन्मुख हो रहे हैं? क्या यह स्वीकार किया जा सकता है कि कुछ लोग युद्धग्रस्त क्षेत्रों की एक दो यात्रा करके अचानक इतने चरमपंथी बन जाएं कि अपने ही देश के लोगों पर गोलियों की बौछार कर दें? हिंसा से उत्पन्न हुए दूषित वातावरण में पूरी उम्र सांस्कृतिक कुपोषण के असर की कदापि उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इस संबंध में समग्र विश्लेषण करना चाहिए। ऐसा विश्लेषण जो समाज के निहित और विदित प्रदूषणों को उजागर कर दे। शायद औद्योगिक व आर्थिक विकास के वर्षों में असमानता और कभी-कभी क़ानूनी एवं ढांचागत भेदभाव के नतीजे में पश्चिमी समाजों के कुछ वर्गों के अंदर बोई गई घृणा ने ऐसी गुत्थियां बना दी हैं जो थोड़े-थोड़े अंतराल से इस बीमार शक्ल मे खुलती हैं।

बहरहाल आप ही को अपने समाज की ऊपरी तहों को हटाकर इन गुत्थियों और द्वेषों को खोजना और समाप्त करना है। खाईं को और गहरा करने के बजाए उसे पाटना चाहिए। आतंकवाद से मुक़ाबले में सबसे बड़ी ग़लती उतावलेपन में की गयी प्रतिक्रिया है जो वर्तमान दूरियों को और बढ़ाती है। क्षणिक उबाल और जल्दबाज़ी में उठाया जाने वाला हर क़दम जो यूरोप और अमरीका में बसे मुस्लिम समुदाय को जिसमें दसियों लाख सक्रिय और ज़िम्मेदार इंसान शामिल हैं, अलग-थलग, भयभीत और परेशान करे, अतीत से भी अधिक उन्हें उनके मूल अधिकारों से वंचित करे, और समाज की मुख्य धारा से दूर कर दे, वह न केवल यह कि समस्या का हल नहीं है बल्कि दूरियों में और वृद्धि तथा द्वेष में और गहराई का कारण बनेगा। सतही और प्रतिशोधात्मक उपायों का परिणाम , विशेष रूप से यदि उसे क़ानूनी औचित्य भी दे दिया जाए, धुर्वीकरण के और बढ़ने और भविष्य के संकटों का रास्ता समतल होने के अलावा कुछ नहीं निकलेगा। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार कुछ यूरोपीय देशों में ऐसे क़ानून बनाए गए हैं जो नागरिकों को मुसलमानों की जासूसी के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह बर्ताव अत्याचारपूर्ण है और हम सब जानते हैं कि अत्याचार हर हाल में पलटने और वापसी की विशेषता रखता है। दूसरे यह कि मुसलमान इस अकृतज्ञता के पात्र नहीं हैं। पश्चिमी दुनिया शताब्दियों से मुसलमानों को भलीभांति पहचानती है। उस युग में भी जब पश्चिमवासी इस्लामी धरती पर मेहमान बने और घर के मालिक की दौलत पर उनकी नज़रें गड़ गईं और उस काल में भी जब वह मेज़बान थे और उन्होंने मुसलमानों के विचारों और कामों से लाभ उठाया, प्रायः उन्होंने हमदर्दी और सहनशीलता के अलावा कुछ नहीं देखा है। अतः मैं आप युवाओं से चाहता हूँ कि एक सही पहचान और गहरे बोध के आधार पर तथा प्रतिकूल अनुभवों से पाठ लेते हुए इस्लामी जगत के साथ सही और सम्मानजनक रिश्ते की नींव रखिए। ऐसा हो गया तो वह दिन दूर नहीं जब आप देखेंगे कि इस निष्कर्ष के आधार पर तैयार की गई इमारत अपने वास्तुकारों पर विश्वास और संतोष की छाया किए हुए है, उन्हें संरक्षण और निश्चिंता की ऊर्जा प्रदान कर रही है और धरती पर उज्जवल भविष्य की आशा की किरणें बिखेर रही है।

सैयद अली ख़ामेनई

8 आज़र 1394 (हिजरी शम्सी बराबर 29 नवंबर 2015)

रविवार, 29 नवम्बर 2015 11:04

वरिष्ठ नेता का हज संदेश

सलाम हो सम्मानीय काबे पर जो एकेश्वरवाद का केन्द्र, मोमिनों का परिक्रमा स्थल और फ़रिश्तों के उतरने की जगह है, और सलाम हो पवित्र मस्जिदुल हराम, अरफ़ात, मशअर और मिना पर, और सलाम हो ईश्वरीय भय से सहमे दिलों पर, ईश्वर का गुणगान करती ज़बानों पर, ज्ञान की खुली आँखों पर और पाठ सीखने के बाद पैदा होने वाले विचारों पर, और सलाम हो आप हज का सौभाग्य प्राप्त करने वालों पर कि जिन्हें, ईश्वरीय बुलावे के अवसर पर “हम  हाज़िर हैं” कहने और कृपा से भरे इस वातावरण में उपस्थित रहने का अवसर मिला।

सब से पहला कर्तव्य, इस वैश्विक, ऐतिहासिक व हमेशा से जारी "हम हाज़िर हैं" की पुकार पर विचार करना है। "निश्चित रूप से गुणगान, नेमत और सत्ता भी तेरे लिए है, कोई तेरा भागीदार नहीं है हम हाज़िर हैं।" सभी गुणगान उसके लिए, सभी नेमतें उसकी तरफ़ से हैं और हर प्रकार की सत्ता पर उसी का अधिकार है, यह है वह विचारधारा, जो हाजियों को, इस अर्थपूर्ण उपासना के आरंभ में दी जाती है और इस संस्कार के अगले चरण, इसी आधार पर आगे बढ़ते हैं और इसी लिए यह एक कभी न भुलाई जाने वाली शिक्षा और कभी न भूलने वाले पाठ की भांति हाजी के सामने रखा जाता और अपने जीवन को उसके साथ मिलाने का आदेश दिया जाता है। इस महापाठ को सीखना और उसे व्यवहारिक बनाना वही विभूतिपूर्ण स्रोत है जो मुसलमानों के जीवन में ताज़गी, नए प्राण और प्रफुल्लता भर सकता और उन्हें उन समस्याओं से जिनमें वे –आज या जब भी- फंसे हैं, निकाल सकता है।

आत्ममुग्धता के दानव का, घमंड व इच्छाओं के दानव का, वर्चस्व जमाने और स्वीकार करने के दानव का, विश्व साम्राज्य के दानव का, सुस्ती व दायित्वहीनता के दानव का और मनुष्य की प्रतिष्ठा को अपमान में बदलने वाले सभी दानवों का, हृदय की गहराई से निकल कर मनुष्य की जीवन शैली बनने वाली इस इब्राहीमी उपासना द्वारा, अंत किया जा सकता है और इस प्रकार स्वतंत्रता, सम्मान और सुरक्षा; निर्भरता, कठिनाई व समयस्या का स्थान ले लेगी।

हज करने वाले भाइयो व बहनो! आप जिस देश या जिस राष्ट्र से हों, इस शिक्षाप्रद ईश्वरीय आदेश पर चिंतन करें और इस्लामी जगत की समस्याओं विशेषकर पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ़्रीक़ा की समस्याओं पर ध्यान देकर, अपनी क्षमता व संभावनाओं के अनुसार, अपने लिए कर्तव्यों का निर्धारण करें और फिर उसके पालन का प्रयास करें।

आज इस क्षेत्र में एक ओर अमरीका की दुष्टतापूर्ण नीतियाँ, जो इस क्षेत्र में युद्ध, रक्तपात, तबाही, विस्थापन, निर्धनता, पिछड़ेपन और जातीय व सांप्रदायिक मतभेदों का कारण बनी हैं, और दूसरी ओर ज़ायोनी शासन के अपराध, जिसने फ़िलिस्तीनी देश में अपनी अतिग्रहणकारी नीतियों को दुष्टता व कठोरता के चरम पर पहुंचा दिया है और मस्जिदुल अक़्सा की पवित्रता की बार–बार अवमानना तथा पीड़ित फ़िलिस्तीनियों की धन-संपत्ति व जीवन का दमन, आप सभी मुसलमानों के लिए प्रथम मुद्दा है जिस पर आप सब को विचार करना और इसके प्रति अपने इस्लामी कर्तव्य को पहचानना चाहिए। इस संदर्भ में धर्मगुरुओं और सांस्कृतिक व राजनीतिक बुद्धिजीवियों का दायित्व, अत्यधिक भारी है और खेद की बात है कि अधिकांश इसकी अनदेखी करते हैं। धर्मगुरुओं को, धार्मिक मतभेद की आग भड़काने के बजाए और राजनेताओं को दुश्मन के सामने रक्षात्मक नीति अपनाने के बजाए और सांस्कृतिक बुद्धिजीवीयों को कम महत्व वाले मुद्दों में व्यस्त होने के बजाए इस्लामी जगत की बड़ी पीड़ा को समझना चाहिए और अपनी उस भारी ज़िम्मेदारी को, जिसके पालन के बारे में ईश्वरीय अदालत में उनसे सवाल किया जाएगा, स्वीकार करना और उसे पूरा करना चाहिए। क्षेत्र में, इराक़ में, सीरिया में, यमन में, बहरैन में और पश्चिमी तट में, ग़ज़्ज़ा में और एशिया व अफ़्रीक़ा के अन्य देशों में पीड़ादायक घटनाएं, इस्लामी राष्ट्र की मुख्य समस्याएं हैं जिनके पीछे, साम्राज्यवादियों के हाथ को देखना और उनका समाधान खोजना चाहिए। राष्ट्रों को इन सब चीज़ों की, अपनी-अपनी सरकारों से मांग करनी चाहिए और सरकारों को अपनी इस भारी ज़िम्मेदारी के प्रति वफ़ादार रहना चाहिए।

हज और उसके महान संस्कार, इस ऐतिहासिक कर्तव्य के आदान-प्रदान व प्रकट होने का सर्वश्रेष्ठ स्थान हैं और अनेकेश्वरवादियों से विरक्तता का अवसर, जिसे हर जगह के सभी हाजियों की भागीदारी से आयोजित होना चाहिए, इस व्यापक उपासना की एक अत्यधिक स्पष्ट राजनीतिक क्रिया है।

इस वर्ष, मस्जिदुल हराम में घटने वाली पीड़ादायक व विनाशकारी घटना से हाजियों और उनके राष्ट्रों को दुख पहुँचा है। यह सही है कि इस घटना का शिकार होने वालों को, जो नमाज़, तवाफ़ और उपासना के दौरान, अपने ईश्वर के पास चले गए, बहुत बड़ी सफलता मिली और वे ईश्वरीय शांति व कृपा की छाया में सो गए और यह विचार, उनके परिजनों के लिए बहुत बड़ी सांत्वना है किंतु यह चीज़ ईश्वरीय अतिथियों की सुरक्षा के ज़िम्मेदारों के दायित्व में कमी का कारण नहीं बन सकती। इस दायित्व का पालन और इस ज़िम्मेदारी को निभाना, हमारी निश्चित मांग है।

सलाम हो आप सब पर

सैयद अली ख़ामेनई

4 ज़िलहिज्जा 1436 हिजरी क़मरी बराबर 18 सितम्बर 2015

 

फ़िलिस्तीनी अधिकारियों का कहना है कि अक्तूबर के शुरू से अब तक इस्राईली सैनिक 2,400 फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार कर चुके हैं, जिनमें 1200 से अधिक बच्चे शामिल हैं।

क़ैदियों के मामलों के आयोग सीपीए ने शनिवार को एक बयान जारी करके कहा है कि फ़िलिस्तीनी नागरिकों की एक बड़ी संख्या को नियमों में अनेक परिवर्तन करके हिरासत में लिया गया है।

आयोग ने संयुक्त राष्ट्र से फ़िलिस्तीनी नागरिकों विशेषकर इस्राईली जेलों में बहुत ही विषम स्थिति में रखे जाने वाले फ़िलिस्तीनी क़ैदियों की सुरक्षा की मांग की है।

फ़िलीस्तीनियों के साथ एकजुटता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर जारी होने वाले इस बयान में कहा गया है कि अभी भी 430 बच्चों और 40 महिलाओं समेत कुल 7,000 फ़िलिस्तीनी नागरिक ज़ायोनी शासन की सलाख़ों के पीछे हैं।

बयान में उल्लेख किया गया है कि जब से नया इंतेफ़ाज़ा शुरू हुआ है, फ़िलिस्तीनी नागरिकों की गिरफ़्तारी में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और लगभग 500 नागरिकों को बिना किसी आरोप पत्र के जेलों में रखा जा रहा है।

फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़, अक्तूबर से अब तक इस्राईली सैनिकों के हाथों 100 से अधिक फ़िलिस्तीनी नागरिक शहीद हो चुके हैं।

नाइजीरिया के राष्ट्रपति ने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से भेंटवार्ता की है। 

इस भेंट में वरिष्ठ नेता ने इस्लाम और मुसलमानों की पहचान की सुरक्षा के लिए इस्लामी देशों के बीच सहकारिता बढ़ाने को मूल आवश्यकता बताया।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने नाइजीरिया के राष्ट्रपति मुहम्मद बूहारी के साथ भेंट में बल दिया कि आतंकवाद से मुक़ाबले के लिए बने अन्तर्राष्ट्रीय गठबंधन पर किसी भी स्थिति में भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि यह गठबंधन विशेषकर अमरीका, ढके-छिपे ढंग से आतंकवादियों की सहायता कर रहा है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि आतंकवाद विरोधी अभियान में अमरीका और योरोप से सहायता तथा सहकारिता की आशा, किसी भी स्थिति में उचित नहीं है।  उन्होंने कहा कि ठोस जानकारी के अनुसार इराक़ में अमरीका और क्षेत्र के रूढ़ीवादी अरब देश आईएसआईएल या दाइश की खुलकर सहायता कर रहे हैं।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लाम के स्पष्ट शत्रुओं और उन लोगों को कैंची के दो फल बताया जो इस्लाम के नाम पर इस्लाम से शत्रुता कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के ख़तरनाक शत्रुओं के बारे में इस्लामी देशों को परस्पर अपनी पहचान की सुरक्षा के उद्देश्य से सहकारिता करते हुए अपने हितों की सुरक्षा करनी चाहिए।

नाइजीरिया के राष्ट्रपति ने इस भेंट में ईरान के साथ सुदृढ़ संबन्धों पर बल देते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान एक महान और प्रगतिशील देश है जिसके पास संबन्धों को बढ़ाने की अपार क्षमता मौजूद है।

दूसरी ओर वेनेज़ोएला के राष्ट्रपति ने भी सोमवार को इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से तेहरान में भेंट की। इस भेंट में वरिष्ठ नेता ने कहा कि स्वतंत्र देशों की प्रगति का एकमात्र मार्ग, इरादों की लड़ाई में प्रतिरोध और जनता पर भरोसा है।

वरिष्ठ नेता ने लैटिन अमरीकी क्षेत्र में अमरीका की लोभी नीति की ओर संकेत करते हुए कहा कि अमरीका इस क्षेत्र को अपने लिए सुरक्षित क्षेत्र समझता था किंतु वेनेज़ुएला ने अपने प्रयासों से इस क्षेत्र को पहचान वाले क्षेत्र में बदल दिया। उन्होंने कहा कि वेनेज़ुएला पर दबाव डालने से अमरीका का उद्देश्य, वेनेज़ुएला राष्ट्र और सरकार के प्रतिरोध को समाप्त करना है।

इस भेंट में वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति मादूरो ने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से पुनः भेंट पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि ईरान और वेनेज़ुएला, वास्तविक मित्र हैं जिनके संबन्ध बहुत प्रगाढ़ हैं।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि पूरी दुनिया में कहीं भी अगर कोई वर्चस्ववाद व साम्राज्य के खिलाफ खड़ा होता है तो इस्लामी गणतंत्र ईरान उसका समर्थन करेगा ।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने मंगलवार को बोलिविया के राष्ट्रपति एवो मोरालिस से मुलाकात में साम्राज्यवाद और युवाओं की पहचान बदलने हेतु अमरीका की खतरनाक नीतियों के सामने बोलिविया तथा लेटिन अमरीका के अन्य देशों के संर्घष की सराहना करते हुए कहा कि संकल्प में मज़बूती और सहयोग व संपर्क में वृद्धि करके इस प्रकार की वर्चस्ववादी नीतियों के सामने डट जाना चाहिए।

वरिष्ठ नेता ने साम्राज्यवादी अमरीका के साथ संघर्ष को बोलिविया के लिए तेल के राष्ट्रीयकरण से भी अधिक महत्वपूर्ण बताया और कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान विश्व में कहीं भी वर्चस्ववाद और साम्राज्य के सामने खड़े होने वाले का साथ देता है।

इस भेंट में बोलिविया के राष्ट्रपति ने भी वरिष्ठ नेता से भेंट पर अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हुए अन्य देशों के आतंरिक मामलों में अमरीकी हस्तक्षेप को एक बड़ी समस्या बताया और कहा कि सत्ता में आने के साथ ही ईरान के साथ संबंध के सदंर्भ में अमरीका की चेतावनी पर मैंने बल दिया कि हमारा देश एक स्वाधीन देश है और अन्य देशों के साथ संबंध स्थापना में हमें किसी से अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है।

उन्होंने कहा कि ईरान और बोलिविया दो इतिहासिक, सांस्कृतिक व जन तांत्रिक घटक हैं और हमें आशा है कि विभिन्न क्षेत्रों में दोनों देशों के संबंधों में अधिक विस्तार होगा और उनका देश सदैव ईरान के रुख़ की सराहना करता है।

बोलिविया के राष्ट्रपति ने वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई को समस्त स्वाधीन क्रांतियों विशेषकर लेटिन अमरीका की क्रांति का पितामाह और मार्गदर्शक बताया औकर कहा कि हमने आप के मूल्यवान व प्रेरणादायक व आशाजनक बयानों से बहुत कुछ सीखा है।

ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने इराक़ के राष्ट्रपति फ़ोआद मासूम से मुलाक़ात में कहा कि इराक़ी राष्ट्र बहुत महान और प्राचीन इतिहास का स्वामी है जिसके पास बड़े विवेकपूर्ण और शक्तिशाली युवा हैं।

तेहरान की यात्रा पर आए इराक़ के राष्ट्रपति फ़ोआद मासूम मंगलवार को इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता से मिले। इस अवसर पर वरिष्ठ नेता ने कहा कि दोनों देशों के बीच बहुत पुराने संबंध हैं जो किसी एक क्षेत्र में दो पड़ोसी देशों के आम संबंधों से कहीं अधिक हैं।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने बाहरी शक्तियों के उकसावे पर सद्दाम शासन की ओर से आठ वर्षीय युद्ध थोपे जाने के बावजूद ईरान और इराक़ की जनता के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों और भाईचारे का हवाला देते  हुए कहा कि यह बहुत आश्चर्यजनक तथ्य है। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन के चेहलुम के अवसर पर पैदल कर्बला जाने वालों के जुलूस इस मैत्रीपूर्ण संबंध का एक नमूना है।  उन्होंने कहा कि इराक़ की जनता ईरानी दर्शनार्थियों की आवभगत और प्रेमपूर्ण बर्ताव में हरगिज़ कोई कमी नहीं होने देती।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इराक़ में हालिया दिनों दाशइ के ख़िलाफ़ सेना और स्वयंसेवी बलों की अच्छी प्रगति तथा किसी हद तक इस संकट पर क़ाबू पाने में मिलने वाली सफलता का हवाला देते हुए इराक़ की एकता को बनाए रखने पर बल दिया।  उन्होंने कहा कि इराक़ी शासन के वर्तमान ढांचे में राष्ट्रपति को विशेष स्थान प्राप्त है और वह मतभेदों को नियंत्रित तथा एकता को प्रबल करने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इराक़ में मतभेद की आग भड़काने की विदेशी साज़िशों का हवाला देते हुए कहा कि इराक़ी जनता जिसमें शिया, सुन्नी, अरब और कुर्द सब शामिल हैं, शताब्दियों से एक-दूसरे के साथ बग़ैर किसी समस्या के जीवन व्यतीत कर रहे हैं।  उन्होंने कहा कि बहुत खेद की बात है कि क्षेत्र के कुछ देश तथा कुछ बाहरी शक्तियां विवादों को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने का प्रयास कर रही हैं अतः उनका मुक़ाबला करना चाहिए और मतभेद उत्पन्न करने वाली बातों से परहेज़ किया जाना चाहिए।

इस्लामी क्रान्ति  के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इराक़ इस समय अपनी महान जनता तथा सृजनकारी युवाओं की मदद से अतीत की तुलना में बहुत अलग देश बन चुका है। उन्होंने कहा कि इराक़ के युवा अब जाग चुके हैं और उन्हें अपनी शक्ति का अनुमान हो चला है और निश्चित रूप से इस प्रकार के युवा कभी भी अमरीकी वर्चस्व को स्वीकार नहीं करेंगे।

इस मुलाक़ात में इराक़ के राष्ट्रपति फ़ोआद मासूम ने इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता से अपनी मुलाक़ात पर ख़ुशी ज़ाहिर की और कहा कि इराक़ की जनता भी एक वरिष्ठ धर्मगुरू के रूप में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की बात मानती है। उन्होंने कहा कि इराक़ में मतभेदों से दूर रहने और एकता को मज़बूत करने के बाद आपकी अनुशंसाओं का निश्चित रूप से असर होगा।

शनिवार, 28 नवम्बर 2015 05:48

आतंकी गुट इस्लाम से कोसों दूर

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि आतंकी गुटों से मुक़ाबले का मार्ग, इस्लामी गतिविधियों में जनता को शामिल करना और बौद्धिक व वैचारिक आंदोलनों को मज़बूत बनाना है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शनिवार को तुर्कमनिस्तान के राष्ट्रपति क़ुरबान क़ुली बरदी मुहम्मदोफ़ से मुलाक़ात में ईरान व तुर्कमनिस्तान के निकट व मैत्रीपूर्ण संबंधों और द्विपक्षीय सहयोग के विस्तार तथा क्षेत्र में भड़काई जा रही आग से मुक़ाबले के लिए मौजूद क्षमताओं की ओर संकेत करते हुए कहा कि आतंकी गुटों से मुक़ाबले और उनके प्रभाव को विफल बनाने का मार्ग, सही इस्लामी गतिविधियों में जनता को शामिल करना और संतुलित व बौद्धिक आंदोलनों को मज़बूत बनाना है। उन्होंने कहा कि पड़ोसी व मुस्लिम देशों की सुरक्षा व प्रगति इस्लामी देशों के हित में है और ईरान व तुर्कमनिस्तान की सीमाएं, दोनों देशों के लिए शांति व संतोष की सीमाएं रही हैं। वरिष्ठ नेता ने लोगों के सिर काटने और उन्हें जलाने जैसे आतंकी गुटों के पाश्विक अपराधों को इस्लाम से इन गुटों का दूर दूर तक संबंध न होने की निशानी बताया और कहा कि इस्लाम, दूसरों के साथ बंधुत्व, प्रेम और सद्भावना का धर्म है और इन अपराधों का इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है।

इस मुलाक़ात में तुर्कमनिस्तान के राष्ट्रपति क़ुरबान क़ुली बरदी मुहम्मदोफ़ अपनी तेहरान यात्रा पर प्रसन्नता जताते हुए वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात को अपने लिए गर्व की बात बताया और कहा कि दोनों देशों के संबंध सदैव अच्छे रहे हैं और वे एक दूसरे के हर सुख-दुख के साथी हैं। उन्होंने इसी प्रकार क्षेत्र की राजनैतिक स्थिति को अनुचित बताते हुए आतंकी गुट दाइश के अपराधों की ओर संकेत किया और कहा कि दाइश और उस जैसे गुट इस्लाम से कोसों दूर हैं और बड़े खेद की बात है कि कुछ सरकारें इनका समर्थन करती हैं।

ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने अल्जीरिया के प्रधानमंत्री अब्दुल मालिक सलाल से मुलाक़ात में कहा कि ईरानी राष्ट्र, साम्राज्यवाद के विरुद्ध अलजीरिया की जनता की क्रान्ति के दौरान किए गए संघर्ष के कारण इस देश और वहां की जनता के बारे में सकारात्मक सोच रखता है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने मंगलवार को होने वाली अपनी इस मुलाक़ात में बहुत से क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मामलों में ईरान और अलजीरिया के विचारों की निकटता का हवाला देते हुए कहा कि आशा है कि निकट भविष्य में दोनों देशों का संयुक्त आयोग गठित हो जाने के बाद द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों में और अधिक विस्तार होगा।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने दाइश के बारे में अल्जीरिया के प्रधानमंत्री के बयान और इस्लाम की छवि ख़राब करने वाले आतंकी संगठनों के विरुद्ध क्षेत्र के देशों की ओर से कार्यवाही की ज़रूरत पर उनके आग्रह का हवाला देते हुए कहा कि दाइश और उन आतंकियों का मुद्दा जो इस्लाम के नाम पर पूरे क्षेत्र में फैल गए हैं कोई सामान्य और प्राकृतिक मुद्दा नहीं है बल्कि इन आतंकियों को अस्तित्व में लाया गया है और उनका समर्थन हो रहा है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने क्षेत्र के कुछ देशों की ओर से दाइश के आतंकियों को दी जाने वाली मदद तथा अमरीका और इस्लाम की दुशमन अन्य शक्तियों की ओर से आतंकियों के समर्थन का हवाला देते हुए कहा कि वे इस्लामी देश जिन्हें चिंता है और जो एक दूसरे से समन्वय रखते हैं आपसी संवाद और सहयोग द्वारा आतंकियों से मुक़ाबले का व्यवहारिक रास्ता तलाश कर सकते हैं।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद अलजीरिया, ईरान, सीरिया और कुछ अन्य देशों की सम्मिलिति से बनने वाले मोर्चे का उल्लेख करते हुए कहा कि कुछ देश, जो अमरीका के इशारों नी चलते हैं, उस मोर्चे की गतिविधियों के मार्ग में रुकावट बन गए लेकिन आज ऐसा लगता है कि समान दृष्टिकोण रखने वाले इस्लामी देशों की सम्मिलिति से एक बार फिर यह मोर्चा बनाने के लिए भूमि समतल हो गई है।

इस मुलाक़ात में अलजीरिया के प्रधानमंत्री अब्दुल मालिक सलाल ने कहा कि तेहरान में गैस निर्यातक देशों का शिखर सम्मेलन बहुत सफल रहा। उन्होंने ईरान के अधिकारियों से अपनी मुलाक़ातों का हवाला देते हुए कहा कि क्षेत्र में दाइश तथा अन्य आतंकी संगठनों से मुक़ाबला करने सहित अनेक राजनैतिक मामलों में ईरान और अलजीरिया के दृष्टिकोणों में समानता है।