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ईरान के एक वरिष्ठ धर्मगुरू आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी ने अल-अज़हर विश्वविद्यालय के प्रमुख की ओर से शिया और सुन्नी मुसलमानों के बुद्धिजीवियों की बैठक का स्वागत किया है।

उन्होंने शिया-सुन्नी एकता के बारे में डाक्टर अहमद तैय्यब की मांग का स्वागत करते हुए कहा कि हम आपकी इस पहल का समर्थन करते हैं।  आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी ने कहा कि आपकी यह बात सही है कि शिया और सुन्नी, इस्लामी जगत के दो बाज़ूओं के समान हैं।  उन्होंने कहा कि ऐसे में कि जब शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने के प्रयास किये जा रहे हैं, एकता के उद्देश्शय से शिया और सुन्नी मुसलमानों के बुद्धिजीवियों की बैठक का आहृवान, प्रशंसनीय पहल है।

आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी ने कहा कि हम यह मानते हैं कि शियों के बारे में आपकी ओर से बयान की गई बातें, ऐसी हैं जिनपर विचार-विमर्श किये जाने की आवश्यकता है।  उन्होंने कहा कि इस प्रकार के विषयों को मीडिया के माध्यम से उठाने से इस्लाम के विरोधी इन बातों का दुरूपयोग करते हुए शिया-सुन्नी मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाते हैं जिससे तनाव बढ़ता है।

आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी ने कहा कि दोनों के बीच मतभेद के विषयों को संचार माध्यमों के बजाए दोनो समुदायों के धर्मगुरूओं की उपस्थिति में प्रस्तूत किया जाए ताकि उनके उचित उत्तर पेश किये जाएं।

 

हदीस-

 क़ाला रसूलुल्लाहि सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम “अय्युहा अन्नासु! ला तोतूल हिकमता ग़ैरा अहलिहा फ़तज़लिमुहा, व ला तमनऊहा अहलहा फ़तज़लिमुहुम, व ला तुआक़िबु ज़ालिमन फ़यबतुला फ़ज़लुकुम, व ला तुराऊ अन्नासा फ़यहबता अमलुकुम, व ला तमनऊ अलमौजूदा फ़यक़िल्ला खैरु कुम, अय्युहन नास! इन्नल अशयाआ सलासतुन- अमरुन इस्तबाना रुशदुहु फ़त्तबिऊहु, व अमरुन इस्तबाना ग़ैय्युहु फ़जतनिबुहु, व अमरुन उख़तुलिफ़ा अलैकुम फ़रुद्दुहु इला अल्लाहि........”[1]

तर्जमा-

हज़रत रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने फरमाया “ ऐ लोगो ! नाअहल अफ़राद को  इल्मो हिकमत ना सिख़ाओ क्योंकि यह इल्मो हिकमत पर ज़ुल्म होगा, और अहल अफ़राद को इल्मो हिकमत अता करने से मना न करो क्योंकि यह उन पर ज़ुल्म होगा। सितम करने वाले से (जिसने आपके हक़ को पामाल किया है) बदला न लो क्योंकि इससे आपकी अहमियत ख़त्म हो जायेगी। अपने अमल को ख़ालिस रख़ो और लोगों को खुश करने के लिए कोई काम अंजाम न दो, क्योंकि अगर रिया करोगे तो आपके आमाल हब्त (नष्ट) हो जायेंगे।जो तुमेहारे पास मौजूद है उसमें से अल्लाह की राह में ख़र्च करने से न बचो, क्योंकि अगर उसकी राह में ख़र्च करने से बचोगे तो अल्लाह आपकी ख़ैर को कम कर देगा। ऐ लोगों ! कामों की तीन क़िस्में हैं। कुछ काम ऐसे हैं जिनका रुश्द ज़ाहिर है लिहाज़ा उनको अनजाम दो, कुछ काम ऐसे हैं जिनका बातिल होना ज़ाहिर लिहाज़ा उनसेपरहेज़ करो और कुछ काम ऐसे हैं जो तिम्हारी नज़र में मुशतबेह( जिनमें शुबाह पाया जाता हो) हैं बस उनको समझने के लिए उनको अल्लाह की तरफ़ पलटा दो।”

हदीस की शरह-

यह हदीस दो हिस्सों पर मुश्तमिल है।

हदीस का पहला हिस्सा-

हदीस के पहले हिस्से में पैग़म्बरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम पाँच हुक्म बयान फ़रमा रहे हैं।

1-     ना अहल लोगों को इल्म अता न करों कियोंकि यह इल्म पर ज़ुल्म होगा।

2-     इल्म के अहल लोग़ों को इल्म अता करने से मना न करो क्योंकि यह अहल अफ़राद पर ज़ुल्म होगा। इस ताबीर से यह मालूम होता है कि तालिबे इल्म के लिए कुछ ज़रूरी शर्तें हैं, उनमें से एक शर्त उसकी ज़ाती क़ाबलियत है। क्योंकि  जिस शख़्स में क़ाबलियत नही पायी जाती उसके पास इल्म हासिल करने का सलीक़ा भी नही होता। और इल्म वह चीज़ है जिसके लिए बहुत ज़्यादा सवाब बयान किया गया है।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम फ़रमाते हैं  कि  जो इल्म हासिल करने के क़ाबिल नही है उसको कोई चाज़ न सिख़ाओ क्योंकि अगर उसने कुछ सीख़ लिया ते वह उसको ग़लत कामों में इस्तेमाल करेगा और दुनिया को तबाह कर देगा क्योंकि जाहिल आदमी ना किसी जगह को ख़राब करता है न आबाद। मौजूदा ज़माने में इस्तेमारी हुकुमत के वह सरकरदा अफ़राद जो दुनिया में फ़साद फैला रहे हैं ऐसे ही आलिम हैं।

क़ुरआन में मुख़तलिफ़ ताबीरें पायी जाती हैं जो यह समझाती हैं कि तहज़ीब के बग़ैर इल्म का कोई फ़ायदा नही है। कहीँ इरशाद होता “हुदन लिल मुत्तक़ीन ”[2] यह मुत्तक़ीन के लिए हिदायत है।  कहीँ फ़रमाया जाता है “....इन्ना फ़ी ज़ालिका लआयातिन लिक़ौमिन यसमऊन”[3] दिन और रात में उन लोग़ों के लिए निशानियाँ हैं जिनके पास सुनने वाले कान हैं।

इससे मालूम होता है कि हिदायत उन लोगों से मख़सूस है जो इसके लिए पहले से आमादा हों। इसी ताबीर की बिना पर गुज़िश्ता ज़माने में उलमा हर शागिर्द को अपने दर्स में शिरकत की इजाज़त नही देते थे। बल्कि पहले उसको अख़लाक़ी ऐतबार से परखते थे ताकि यह ज़ाहिर हो जाये कि उसमें किस हद तक तक़वा पाया जाता है।

अलबत्ता किसी को भी अपने इल्म को छुपाना नही चाहिए बल्कि उसे अहल अफ़राद को सिखाना चाहिए और अपने इल्म के ज़रिये लोगों के दुख दर्द को दूर करना चाहिए, चाहे वह दुख दर्द माद्दी हो या मानवी। मानवी दुख दर्द ज़्यादा अहम हैं क्योंकि अल्लाह इस बारे में हिसाब लेगा। रिवायत में मिलता है कि “ मा अख़ज़ा अल्लाहु अला अहलिल जहलि अन यतअल्लमु, हत्ता अख़ज़ा अला अहलिल इल्मि अन युअल्लिमु।” [4] अल्लाह ने जाहिलों से यह वादा लेने से पहले कि वह सीख़े, आलिमों से वादा लिया कि वह सिखायें।

इस्लाम में पढ़ना और पढ़ाना दोनो वाजिब हैं। और यह दोनों वाजिब एक दूसरे से जुदा नही हैं क्योंकि आपस में लाज़िम व मलज़ूम हैं। 

     अगर कोई ज़ालिम आप पर ज़ुल्म करे और आप उससे बदला लें तो आपकी अहमियत ख़त्म हो जायेगी और आप भी उसी जैसे हो जायेंगे। अलबत्ता यह उस मक़ाम पर है जब ज़ालिम उस माफ़ी से ग़लत फ़ायदा न उठाये, या इस माफ़ी से समाज पर बुरा असर न पड़े।

4-     अपने अमल को ख़ालिस और बग़ैर रिया के अंजाम दो। यह काम बहुत मुश्किल है, क्योंकि रिया, अमल के फसाद के सरचश्मों में से फ़क़त एक सर चश्मा है वरना दूसरे आमिल जैसे उज्ब, शहवाते नफ़सानी वग़ैरह भी अमल के फ़साद में दख़ील हैं और अमल को तबाह व बर्बाद कर देते हैं। मसलन कभी मैं इस लिए नमाज़ पढ़ूँ कि खुद अपने आप से राज़ी हो जाऊँ, दूसरे लोगों से कोई मतलब वास्ता नही, ख़ुद यह काम भी अमल के फ़साद की एक किस्म का सबब बनता है। या नमाज़ को आदतन पढ़ूँ या नमाज़े शब को इस लिए पढ़ूँ ताकि दूसरों से अफ़ज़ल हो जाऊ....., यह इल्लतें भी अमल को फ़ासिद करती हैं।

5-     अगर कोई तुम से कोई चीज़ माँगे और वह चीज़ आपके पास हो तो देने से मना न करो। क्योँकि अगर देने से मना करोगे तो अल्लाह आपके ख़ैर को कम कर देगा। क्योंकि “कमालुल जूदि बज़लुल मौजूद ” है यानी जो चीज़ मौजूद हो उसको दे देना ही सख़ावत का कमाल है। मेज़बान के पास जो चीज़ मौजूद है अगर मेहमान के सामने न रख़े तो ज़ुल्म है, और इसी तरह अगर मेहमान उससे ज़यादा माँगे जो मेजबान के पास मौजूद है तो वह ज़ालिम है।

हदीस का दूसरा हिस्सा

हदीस के दूसरे हिस्से में कामों की सहगाना तकसीम की तरफ़ इशारा किया गया है।

1-     वह काम जिनका सही होना ज़ाहिर है।

2-     वह काम जिनका ग़लत होना ज़ाहिर है।

3-     वह काम जो मुश्तबेह हैं। यह मुश्तबेह काम भी दो हिस्सों में तक़सीम होते हैं।

अ-    शुबहाते मोज़ूय्यह 

आ-  शुबहाते हुक्मिय्यह

यह हदीस शुबहाते हुक्मिय्यह की तरफ़ इशारा कर रही है। कुछ रिवायतों में         “ अल्लाह की तरफ़ पलटा दो ” की जगह “मुश्तबेह कामों में एहतियात करो क्योँकि मुश्तबिहात मुहर्रेमात का पेश ख़ेमा है।” बयान हुआ है। कुछ लोगों को यह कहने की आदत होती है कि “ कुल्लु मकरूहिन जायज़ुन” यानी हर मकरूह जायज़ है। ऐसे लोगों से कहना चाहिए कि सही है आप जाहरी हुक्म पर अमल कर सकते हैं लेकिन जहाँ पर शुबहा क़तई है अगर वहाँ पर इंसान अपने आपको शुबहात में आलूदा करे तो आहिस्ता आहिस्ता उसके नज़दीक गुनाह की बुराई कम हो जायेगी और वह हराम में मुबतला हो जायेगा। अल्लाह ने जो यह फ़रमाया है  कि “शैतानी अक़दाम से डरो”  शैतानी क़दम यही मुश्तबेहात हैं। नमाज़े शब पढ़ने वाले  मुक़द्दस इंसान को शैतीन एक ख़ास तरीक़े से फ़रेब देता है । वह उससे यह नही कहता कि जाकर शराब पियो, बल्कि पहले यह कहता है कि नमाज़े शब को छोड़ो यह जुज़े वाजिबात नही है। अगर इस बात को क़बूल कर लिया तो आहिस्ता आहिस्ता वाजिब नमाज़ को अव्वले वक़्त पढ़ने के सिलसिले में क़दम बढ़येगा और कहेगा कि अव्वले वक़्त पढ़ना तो नमाज़ की शर्त नही है। और फिर इसी तरह धीरे धीरे उसको अल्लाह से दूर कर देगा।  

अगर इंसान वाक़ियन यह चाहता हो कि निशाते रूही और मानवी हालत हासिल करे तो उसे चाहिए कि मुश्तबेह ग़िज़ा,जलसात व बातों से परहेज़ करे और मक़ामे अमल में एहतियात करे।                                                                                   


 


[1] बिहारुल अनवार जिल्द 74/179

[2] सूरए बक़रह आयत न.2

[3] सूरए यूनुस आयत न. 67

[4] बिहारुल अनवार जिल्द 2/80

 

शनिवार, 01 अगस्त 2015 10:51

बेनियाज़ी

 

नबी ए अकरम (स) ने फ़रमाया:

خيرالغني غني النفس

बेहतरीन बेनियाज़ी नफ़्स की बेनियाज़ी है।

तबीयत एक अच्छा मदरसा है जिसकी क्लासों में तरबीयत की बहुत सी बातें सीखी जा सकती हैं। तबीयत के इन्हीं मुफ़ीद व तरबीयती दर्सों में से एक दर्स यह है कि जानवरों की ज़िन्दगी के निज़ाम में अपने बच्चों से मेहर व मुहब्बत की एक हद मुऐयन होती है। दूसरे लफ़्ज़ों में यह कहा जा सकता है कि जानवर अपने बच्चे से उसी मिक़दार में मुहब्बत करता है, जितनी मिक़दार की उस बच्चे को ज़रूरत होती है। इसलिये जानवर अपने बच्चे को सिर्फ़ उसी वक़्त तक दाना पानी देते हैं जब तक वह उसे ख़ुद से हासिल करने के काबिल न हो। लेकिन जैसे ही उसमें थोड़ी बहुत ताक़त आ जाती है और हरकत करने लगता है फौरन माँ की मुहब्बत से महरूम हो जाता है, उसे तन्हा छोड़ दिया जाता है ताकि ख़ुद अपने पैरों पर खड़े होकर जिना सीख ले।

माँ बाप को चाहिये कि वह अपने घरों में तबीयत के इस क़ानून की पैरवी करते हुए अपने बच्चों को ख़ुद किफ़ाई का दर्स दें, ताकि वह आहिस्ता आहिस्ता अपने पैरों पर खड़ा होना सीख जायें।

उन्हे बताया जाये कि अल्लाह ने सबसे बेहतरीन और क़ीमती जिस्मी व फ़िक्री ख़ज़ानों को तुम्हारे वुजूद में क़रार दिया है। अब यह तुम्हारी ख़ुद की ज़िम्मेदारी है कि उस ज़ख़ीरे को हासिल करके ख़ुद को ग़ैरे ख़ुदा से बेनियाज़ कर लो।

वालेदैन को चाहिए कि इस वाक़ेईयत को बयान करने के अलावा वह अपने बच्चों को अमली तौर पर अलग ज़िन्दगी बसर करने और अपने पैरों पर खड़ा होना सिखायें।

कुछ माँ बाप इस बात को भूल ही जाते हैं कि उनके बच्चे एक न एक दिन उनके बग़ैर ज़िन्दगी बसर करने पर मजबूर होंगें।

लिहाज़ा वह उनके तमाम छोटे बड़े कामों में दख़ालत करते हैं और उन्हे ख़ुद फ़ैसला करने का मौक़ा ही नही देते। वह बच्चों की जगह ख़ुद ही फ़ैसला करके सारे काम अँजाम दे लेते हैं।

इस तरह की तरबीयत का नतीजा यह होगा कि बच्चे चाहते या न चाहते हुए ख़ल्लाक़ियत, ग़ौर व फ़िक्र में पीछे रह कर धीरे धीरे दूसरों पर मुनहसिर हो जायेंगे और समाजी ज़िन्दगी से हाथ धो बैठेगें। ऐसे बच्चे आला तालीम हासिल करने के बावजूद समाजी तरक्क़ी के एतेबार से कमज़ोर रह जाते हैं। वह समाजी ज़िन्दगी में कम कामयाब हो पाते हैं और दूसरों के मोहताज हो जाते हैं। क्योंकि उन्हे घर में मुस्तक़िल ज़िन्दगी बसर करने के उसूल नही सिखाये गये। जबकि माँ बाप घर के अन्दर ही अपने बच्चों की ग़ैरे मुस्तक़ीम तौर पर ऐसी तरबियत कर सकते हैं, वह उन्हें धीरे धीरे ग़ौरो फ़िक्र करना सिखायें उनकी राये को अहमियत दें और आहिस्ता आहिस्ता उनके लिए फ़िक्री व माली इस्तक़लाल का ज़मीना फ़राहम करें।  

इस्लाम के तरबियती परोग्राम इस तरह तरतीब दिये गये हैं कि वह बुनियादी तौर पर इंसान को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाते हैं और दूसरों की बैसाखियों पर चलने से रोकते हैं।  क्योंकि दूसरों के सहारे ज़िन्दगी बसर करने से इंसान की इज़्ज़त व शराफ़त खत्म हो जाती है और बुनियादी तौर पर इंसान का वुजूद गुम हो के रह जाता है, उसके मानवी व फ़िक्री खज़ाने का सही इस्तेमाल नही हो पाता और यह इंसान कके लिए सबसे बड़ी तौहीन है। क्योंकि दूसरों के सहारे ज़िन्दगी बसर करने से ना इंसान का वुजूद पहचाना जाता है और न ही उसकी सलाहियतें सामने आ पातीं।

नबी ए अकरम(स) फ़रमाते हैं:

ملعون من القي كله علي الناس

जो दूसरों पर मुनहसिर हो जाये और दूसरों की बैसाख़ियों पर चलने लगे वह अल्लाह की रहमत  से दूर हो जायेगा।

ज़ाहिर है कि अल्लाह की रहमत से दूरी के लिये यही काफ़ी है कि वह ख़ुद अपने वुजूद की अहमियत को न जान सका और उसकी तमाम ताक़ते इस्तेमाल के बग़ैर ही बेकार हो कर रह गईं।  इससे भी बढ़कर यह कि जब किसी की निगाहें दूसरों पर टिक जायेंगी तो वह अल्लाह के लुत्फ़ व करम को जानने व समझने से महरूम हो जायेगा और यह अल्लाह की रहमत से दूरी की एक क़िस्म है।

इस्लाम के तरबीयती प्रोग्रामों का ग़ैरे मुस्तक़ीम मक़सद यह हैं कि इंसान के सामने जो जिहालत के पर्दे पड़े हैं उन्हें हटा कर इस हक़ीक़त को ज़ाहिर करे कि तमाम ख़ूबियाँ और कमालात अल्लाह के इख़्तियार में है और अल्लाह फ़य्याज़ अलल इतलाक़ है लिहाज़ा अपनी ख़्वाहिशों के हुसूल के लिये उसकी बारगाह में हाथ फैलाने चाहिए।

इसी बुनियाद पर कुछ हदीसों का मज़मून यह हिकायत करता हैं कि इंसान को अल्लाह की ज़ात से उम्मीदवार रहना चाहिए और यह हक़ीक़त उसी वक़्त सामने आती है जब इंसान दूसरे तमाम इँसानों से मायूस हो जाता है। कुछ दूसरी हदीसों के मज़मून इस तरह दलालत करते हैं कि जब किसी इंसान को किसी चीज़ की ज़रूरत पेश आती है तो उसकी वह ज़रूरत उसी वक़्त पूरी होगी जब वह तमाम लोगों से मायूस होकर सिर्फ़ अल्लाह से उम्मीदवार हो, ज़ाहिर है कि ऐसे में उसकी ज़रूरतें ज़रूर पूरी होगीं।

मरहूम शैख अब्बास क़ुम्मी ने अपनी किताब सफ़ीनतुल बिहार के सफ़ा 327 पर इस रिवायत को नक़्ल किया हैं कि इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रया:

اذا ارد احدكم  ان لا يسال الله شيئا الا اعطاه فليياس من الناس كلهم  و لا يكون له رجاة  الا من عند الله عز و جل فادا علم الله عز و جل دالك من قلبه لم يسال الله شيئا الا اعطاه

जब भी तुम में कोई शख़्स यह चाहे कि उसकी हाजत बिला फ़ासला पूरी हो जाये उसे चाहिये कि तमाम लोगों से उम्मीदे तोड़ कर सिर्फ़ अल्लाह से लौ लगाये जब अल्लाह उसके क़ल्ब में इस कैफ़ियत के देखेगा तो जो चीज़ उसने माँगी होगी उसे ज़रूर ता करेगा।  कुछ दूसरी हदीसों में आया है कि मोमिन का फ़ख़्र व बरतरी इस बात में है कि वह तमाम लोगों से अपनी उम्मीदें तोड़ ले। यानी अगर कोई इंसान खुद साज़ी की मंज़िल में इस मर्तबे पर पहुँच जाये कि तमाम इंसानों से क़ते उम्मीद करके सिर्फ़ अल्लाह से लौ लगाये रहे तो वह इस कामयाबी को हासिल करने के बाद दूसरों पर फ़ख़्र करने का हक़दार है।  

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:

ثلثة هن فخر المومن زينته في الدنيا و الاخرة  الصلوة في اخر الليل و ياسه مما في ايدي الناس و وولاية من ال محمد ( ص(

तीन चीज़े ऐसी हैं कि जो दुनिया व आख़िरत में मोंमिन के लिये ज़ीनत व फ़ख्र शुमार होती हैं। एक तो नमाज़े शब पढ़ना, दूसरे लोगों के पास मौजूद चीज़ों से उम्मीद तोड़ लेना, तीसरे पैग़म्बरे इस्लाम (स) की औलाद से जो इमाम है उनकी विलायत को मानना।

नायाब ख़ज़ाना

कुछ हदीसें ऐसी हैं कि जो इंसानो को ज़्यादा की हवस से रोकते हुए उन्हे क़नाअत का दर्स देना चाहती हैं।

ज़ाहिर है कि जब इंसान ख़ुद को सँवार कर क़नाअत करना सीख जाता है तो हक़ीक़त में वह ऐसे ख़ज़ाने का मालिक बन जाता है जिसमें कभी कमी वाक़ेअ नही होती।  

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते है:

لا كنز اغني من القناعة

क़नाअत से बढ़ कर कोई ख़ज़ाना नही है।

नबी ए अकरम(स) फ़रमाते हैं:

خير الغني غني النفس

सबसे बड़ा ख़ज़ाना नफ़्स की बेनियाज़ी है।

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:

من رزق ثلثا نال ثلثا و هو الغني الاكبر القناعة بما اعطي واليس مما في ايدي الناس و ترك الفضول

जिस किसी को यह तीन चीज़ें मिल गईं उसे बहुत बड़ा ख़ज़ाना मिल गया।

जो कुछ उसे मिला है उस पर क़नाअत करे और जो लोगों के पास है उससे उम्मीदों को तोड़ ले और फ़ुज़ूल कामों को छोड़ दे।

उसूले काफ़ी में हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम से इस तरह नक़्ल हुआ है:

رايت الخير كله قد اجتمع في قطع الطمع عما في ايدي الناس

तमाम नेकियाँ और ख़ूबियाँ एक चीज़ में जमा हो गयीं हैं और वह लोगों से उम्मीद न रखना है।

कुछ हदीसों में बेनियाज़ी को इंसान का हक़ीक़ी ख़ज़ाना क़रार दिया गया है। ज़ाहिर है कि माल जमा करने से इंसान बेनियाज़ नही होता बल्कि उसकी ज़रूरतें और बढ़ जाती है।

नबी ए अकरम(स) फ़रमाते हैं:

ليس الغناء  في كثرة العرض  و انما الغناء غني النفس

माल जमा करने में बेनियाज़ी नही है, बल्कि बेशक नफ़्स को बेनियाज़ बनाना बेनियाज़ी है।

कुछ दहीसों में इस तरह बयान हुआ है कि बुनियादी तौर पर मोमिन के लिए बेहतर है कि अल्लाह के सिवा कोई और उसका वली ए नेअमत न हो। हर इंसान एक न एक दिन अपनी रोज़ी और क़िस्मत को ज़रूर हासिल कर लेगा,  इसको बुनियाद बनाकर मज़बूत अक़ीदे के साथ सिर्फ़ अल्लाह को ही वली नेअमत मानना चाहिए।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम को वसीयत करते हुए फ़रमाया कि:

و ان استطعت  ان لا يكون بينك و بينت الله ذونعمة فافعل فانك مدرك قسمك و اخذ سهمك و ان اليسر من الله اكرم  و اعظم من الكثير من خلقه

अगर ताक़त व क़ुदरत हो तो कोशिश करो कि तुम्हारे और तुम्हारे रब के दरमियान कोई दूसरा वली नेमत न होने पाये। यक़ीनन तुम्हारी क़िस्मत में जो कुछ है वह तुम्हे मिलकर रहेगा और अगर ख़ुदा की तरफ़ से मिलने वाली नेअमत, लोगों की तरफ़ से मिलनी वाली नेअमतों से मिक़दार में कम हो तो भी वह कम मिक़दार अहम है, क्योंकि अल्लाह की तरफ़ से मिलने वाली नेअमतों में में बरकत होती है।

तारीख़े इस्लाम में मिलता है कि एक ग़रीब, बाल बच्चों वाले शख़्स ने अपनी बीवी से मशवरा कर के तय किया कि पैग़म्बर इस्लाम (स) की ख़िदमत में हाज़िर होकर  उनसे मदद की दरख़्वास्त करेगा। जब वह मस्जिद में पहुँचा और अपनी बात कहनी  चाही उसी वक़्त अल्लाह के नबी(स) ने फ़रमाया:

من سئلنا اعطيناه  و من استغني اعطاه الله

जो हमसे मदद माँगेगा हम उसकी मदद करेंगें और जो ख़ुद को बेनियाज़ कर लेगा अल्लाह तअला उसकी मदद करेगा और उसे बेनियाज़ बना देगा।

यह वाक़िया तीन बार तकरार हुआ। वह ग़रीब शख़्स पैग़म्बरे इस्लाम(स.) की रहनुमाई के असर से जंगलों में पहुँच कर मेहनत व मज़दूरी में लग गया और रोज़ाना ज़्यादा से ज़्यादा मेहनत करने लगा यहाँ तक कि धीरे धीरे उसकी ग़ुरबत दूर हो गई।

इस हदीस से तरबीयत का जो सबसे ज़रीफ़ व अहम नुक्ता सामने आता है वह यह है कि जो दूसरों से उम्मीदों को तोड़ कर ख़ुद अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करे  और अपनी वुजूद की ताक़त व सलाहियत को काम में लाये वह यक़ीनी तौर पर दूसरों से बेनियाज़ हो जायेगा।

बच्चों की तालीम व तरबीयत में माँ बाप की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी यह है कि वह बच्चों को तदरीजन यह समझाये कि उनके वुजूद में हर तरह की ताक़त व सलाहियत पायी जाती हैं। लिहाज़ा वह दूसरों पर तकिया करने और उनसे मदद माँगने के बजाए ख़ुद अपने पैरों पर खड़े हों और अपनी ज़ात में मौजूद ताक़त, सलाहियत व फ़िक्र से फ़ायदा उठायें।

माँ बाप और उस्तादों की ज़िम्मदारी है कि वह बच्चों को धीरे धीरे से इस हक़ीक़त से आगाह करें। लिहाज़ा ज़रूरी है कि उन्हे मारने पीटने और धमकाने के बजाए उनके मुसबत पहलुओं की ताईद करते हुए उन्हों मज़बूत बनाया जाये, उनका हौसला बढ़ाया जाये और उन्हे इतमिनान दिला जाये ताकि वह यक़ीन व इसबात की मंज़िल तक पहुँच जायें।

हमें यह कभी नही भूलना चाहिये कि बच्चे बड़ों के बरख़िलाफ़ कशमकश व तज़बज़ुब का शिकार होते हैं, लिहाज़ा उन्हे दूसरों की ताईद की बहुत ज़्यादा ज़रूरत होती है।

हमें उनसे जुरअत के साथ कहना चाहिए कि तुम्हारे अन्दर ताक़त है तुम हर काम कर  सकते हो।

इस तरह के जुमलों से उनकी हिम्मत बढ़ा कर धीरे धीरे उन्हे मुस्तक़िल ज़िन्दगी की राहें दिखाई जा सकती है। इस तरह वह अमली तौर पर ख़ुद पर भरोसा करते हुए अपनी ज़ाती सलाहियतों से पनाह लेंगे और धीरे धीरे उनकी ख़ुदा दाद सलाहियतें ज़ाहिर होने लगेंगीं।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने मुसलमानों के बीच एकता को अमृत समान बताया है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शनिवार को तेहरान में देश के अधिकारियों और इस्लामी देशों के राजदूतों से भेंट में उपस्थित लोगों को ईंद की बंधाई दी।   उन्होंने कहा कि क्षेत्र में जारी सांप्रदायिक हिंसा, ज़ायोनी शासन से मुसलमानों का ध्यान हटाने के लिए कराई जा रही है।  उन्होंने कहा कि इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए क्षेत्र पर हिंसा थोपी गई है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि क्षेत्र में पाई जाने वाली वर्तमान हिंसा और हिंसक कार्यवाहियां, क्षेत्र पर थोपी जा चुकी हैं।  आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि इस्लामी जगत के धर्मगुरूओं, जागरूक लोगों, मेधावियों, राजनेताओं और अधिकारियों को इस प्रकार के षडयंत्रों के प्रति सचेत रहना चाहिए।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि क्षेत्र में जो कुछ हो रहा है वह अस्वभाविक है क्योंकि क्षेत्र में शताब्दियों से शिया और सुन्नी मुसलमान, एक साथ रहते आए हैं।  उन्होंने कहा कि यदि इस्लामी जगत संगठित होता तो वह विश्व में एक अद्वितीय शक्ति होता।  उन्होंने कहा कि बड़ी शक्तियों ने अपने हितों तथा ज़ायोनी शासन की रक्षा के लिए मुसलमानों के बीच मतभेदों को उत्पन्न किया है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने आईएसआईएल जैसे आतंकवादी संगठन को अस्तित्व में लाने के बारे में कुछ अमरीकी अधिकारियों की स्वीकारोक्ति का उल्लेख किया।  उन्होंने कहा कि ऐसे में इस आतंकवादी संगठन का मुक़ाबला करने के लिए गठबंधन बनाना, स्वीकार्य योग्य बात नहीं है।  वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा कि क्षेत्र के बारे में वर्चस्ववादियों की नीति, स्पष्ट रूप से विध्वंसकारी है जिसके प्रति सबको सचेत रहना चाहिए।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इराक़ का उल्लेख करते हुए कहा कि इस देश के बारे में वर्चस्ववादियों की नीति, जनता के हाथों चुनी सरकार का तख़्ता गिराना, इराक़ में सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ाना और इस प्रकार उसका विघटन करना है।  उन्होंने कहा कि इसके विपरीत इराक़ के बारे में इस्लामी गणतंत्र ईरान की नीति, इस देश की लोकतांत्रिक सरकार का समर्थन करना और उसकी संप्रभुता का सम्मान करना है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सीरिया संकट के संबन्ध में कहा कि इस देश के बारे में वर्चस्ववादियों की नीति सीरिया की जनता पर विदेशियों की नीतियों को थोपना और ऐसी लोकतांत्रिक सरकार का तख़्ता पलटना है जो ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में डटी हुई है।  उन्होंने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ऐसी सरकार का समर्थन करता है जिसका उद्देश्य ज़ायोनी शासन का मुक़ाबला करना हो।  वह इस प्रकार की सरकार को इस्लामी जगत के लिए विभूति के रूप में देखता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि अमरीका, यमन के भगोड़े राष्ट्रपति के समर्थन के साथ ही यमन की जनता के जनसंहार का भी समर्थन करता है।

आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान/ इराक़, सीरिया, यमन, लेबनान तथा बहरैन में निजी हितों के चक्कर में नहीं है बल्कि उसका यह मानना है कि इन देशों के भविष्य का निर्धारण वहां की जनता के हाथों होना चाहिए और दूसरों को इन देशों के मामले में हस्तक्षेप करने और उनके बारे में निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा है कि अपवित्र हाथों ने क्षेत्र के लोगों के लिए पवित्र रमज़ान को कड़वा बना दिया।

आज तेहरान की केन्द्रीय ईद की नमाज़ वरिष्ठ नेता की इमामत में अदा की गयी। उन्होंने नमाज़े ईद के अपने भाषणों में क्षेत्र के संकटों की ओर संकेत करते हुए कहा कि पवित्र रमज़ान से पहले और उसके बाद के क्षेत्रीय परिवर्तनों से अप्रिय घटनाएं सामने आई हैं और क्षेत्र की मुसलमान व मोमिन जनता ने शत्रुओं के काले करतूत के कारण बहुत अधिक कठिन दिन गुज़ारे।

उन्होंने ईरान और गुट पांच धन एक की वार्ता और इसी प्रकार ईरान की वार्ताकार टीम के अथक प्रयासों की सराहना की और बल दिया कि पेश किया गया मसौदा चाहे पारित हो या न हो, ईरान की वार्ताकार टीम के प्रयास सराहनीय हैं।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरान कभी भी शत्रुओं के विस्तारवाद के आगे नहीं झुकेगा और व्यवस्था के मूल सिद्धांतों को नुक़सान पहुंचाने की किसी को भी अनुमति नहीं दी जाएगी। उनका कहना थ कि ईरान की प्रतिरक्षा और सुरक्षा सीमाओं की भी रक्षा की जाएगी यद्यपि इस संबंध में शत्रुओं की बहुत बड़ी भूमिका है।  उनका कहना था कि चाहे परमाणु वार्ता का मसौदा पारित हो या न हो, ईरान क्षेत्र में अपने मित्रों के समर्थन से पीछे नहीं हटेगा और यमनी, फ़िलिस्तीनी, बहरैनी, इराक़ी, सीरियाई और लेबनानी राष्ट्र का सदैव समर्थन होता रहेगा।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि परमाणु वार्ता के मसौदे की तैयारी से अमरीका की साम्राज्यवादी सरकार के मुक़ाबले में ईरान की नीतियों में तनिक भी परिवर्तन नहीं आएगा और जैसा कि बारंबार यह दोहराया जा चुका है कि ईरान को अमरीका के साथ अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर वार्ता नहीं करनी है और उसने परमाणु मुद्दे पर हितों के आधार पर ही वार्ता की है।  

वरिष्ठ नेता ने क्षेत्र में अमरीका और ईरान की नीतियों में पाये जाने वाले भीषण मतभेद की ओर संकेत करते हुए कहा कि अमरीका, लेबनान के प्रतिरोध पर आतंकवाद का आरोप लगाता है किन्तु अपने पिट्ठु ज़ायोनी शासन का समर्थन करता है और इस प्रकार की नीति रखने वालों से किस प्रकार वार्ता की जा सकती है।

उन्होंने हालिया परमाणु वार्ता के बाद अमरीकी अधिकारियों की प्रसन्नता के बारे में कहा कि वास्तविकता कुछ और ही है, वे अपने राष्ट्र से सच नहीं बोलते और यह दावा करते हैं कि उन्होंने ईरान को झुका लिया तो उनका यह सपना चकनाचूर हो जाएगा।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लामी क्रांति के आरंभ से अब तक अमरीका में पांच राष्ट्रपति इसी सोच में इस दुनिया से चले गये कि वे ईरान को झुका लेंगे, वह और उनकी कामनाएं दोनों की मिट्टी में मिल गयीं। उन्होंने कहा कि आर्थिक दृष्टि से विश्व की छह बड़ी शक्तियां, बारह साल बाद इस लक्ष्य के साथ कि ईरान को परमाणु उद्योग से रोक दें, आज ईरान के कुछ हज़ार सेन्ट्रीफ़्यूज के काम करने को सहन करने पर विवश हुईं, ईरान की परमाणु उद्योग के विकास और उसके जारी रहने को सहन करने पर विवश हुईं, इसका अर्थ ईरानी राष्ट्र की जीत और उसकी संप्रभुता है।

 

आयतुल्लाह अहमद ख़ातेमी ने कहा है कि फ़िलिस्तीनियों की विजय का एकमात्र मार्ग प्रतिरोध है।

आयतुल्लाह अहमद ख़ातेमी ने तेहरान में जुमे की नमाज़ में अपने भाषण में कहा कि फ़िलिस्तीन के बारे में अबतक न जाने कितनी वार्ताएं हुईं किंतु उनसे फ़िलिस्तीनियों को कोई लाभ नहीं हुआ।  उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनियों को अबतक यदि किसी चीज़ से लाभ हुआ है तो वह उनका जनान्दोलन अर्थात इन्तेफ़ाज़ा है।

आयतुल्लाह अहमद ख़ातेमी ने कहा कि यही प्रतिरोध था जिसने ईरानी राष्ट्र को 36 साल पहले सफलता प्रदान की।  उन्होंने कहा कि हालांकि इस्राईल ने पिछले दशकों के दौरान फ़िलिस्तीनियों पर नाना प्रकार के अत्याचार किये हैं और उसे बड़ी शक्तियों का खुला समर्थन भी प्राप्त है किंतु अब वह विघटन की ओर बढ़ रहा है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि शत्रु द्वारा ईरान पर प्रतिबंध लगाने का वास्तविक लक्ष्य उसे उसके वास्तविक स्थान तक पहुंचने से रोकना है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शनिवार की शाम को पूरे ईरान के हज़ारों शिक्षकों और विश्व विद्यालयों के प्रोफ़ेसरों से मुलाक़ात में एक प्रयत्नशील पीढ़ी की शिक्षा व प्रशिक्षण में शिक्षकों की भूमिका को अनुदाहरणीय बताया और शैक्षणिक वातावरण को अनुचित बातों से दूर रखे जाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि देश की वैज्ञानिक प्रगति की रफ़्तार में किसी भी स्थिति में कमी नहीं आनी चाहिए। उन्होंने ईरान द्वारा विश्व स्तर पर विज्ञान में सोलहवां स्थान प्राप्त किए जाने को पिछले दस पंद्रह वर्षों में ईरान के विश्व विद्यालयों और वैज्ञानिक केंद्रों के निरंतर प्रयासों का परिणाम बताया और कहा कि देश के अधिकारियों को दोगुना प्रयास करके वैज्ञानिक प्रगति की रफ़्तार को धीमा नहीं होने देना चाहिए।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने शत्रुओं के षड्यंत्रों के मुक़ाबले में देश के शिक्षकों और वैज्ञानिक तंत्र की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि प्रतिबंधों के पीछे शत्रुओं का वास्तविक लक्ष्य परमाणु मामला या आतंकवाद व मानवाधिकार जैसे विषय नहीं हैं क्योंकि वे स्वयं आतंकवाद के पालन पोषण या मानवाधिकार के विरोध के केंद्र हैं बल्कि उनका वास्तविक लक्ष्य ईरानी राष्ट्र को उसके सही सभ्य स्थान तक पहुंचने देने से रोकना है और आवश्यक है कि हम अपने सही स्थान को पहचान कर देश की गौरवपूर्ण रफ़्तार को जारी रखें और इस मामले में शिक्षकों और वैज्ञानिक केंद्रों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा है कि शायरों व कवियों को सत्य के मोर्चे का समर्थक होना चाहिए।

पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के बड़े नाती हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर विश्व तथा ईरान के शायरों और कवियों ने वरिष्ठ नेता से भेंट की। इस भेंट में वरिष्ठ नेता ने शायरों व कवियों को हज़रत इमाम हसन के शुभ जन्म दिवस की बधाई दी और कहा कि शायरों पर बड़े दायित्वों के निर्वाह की भूमि प्रशस्त करने की अद्वितीय ज़िम्मेदारियां हैं। वरिष्ठ नेता ने कहा कि शायरों को दुनिया के साम्राज्यवादी मोर्चे के षड्यंत्रों के मुक़ाबले में सत्य के मोर्चे की रक्षा करनी चाहिए। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि क्रांतिकारी शेर, वह शेर होते हैं जो क्रांति के लक्ष्यों की सेवा अर्थात न्याय, मानवता, एकता, राष्ट्रीय गौरव, बहुपक्षीय विकास और मनुष्य के निर्माण के लिए हो।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने देश के दरदश्त क्षेत्र में सद्दाम शासन की ओर से की गई रासायनिक बमबारी की बरसी की ओर संकेत किया और कहा कि शायर और कवियों ने पूरी दुनिया में ईरानी राष्ट्र पर होने वाले अत्याचार को प्रतिबिंबित किया। उन्होंने कहा कि दुनिया का मीडिया जो अमरीका, ब्रिटेन और ज़ायोनियों के वर्चस्व में है, कभी तो एक जानवर के मारे जाने पर हंगामा खड़ा कर देता है किन्तु इसके मुक़ाबले में दुनिया में होने वाले विभिन्न अपराधों विशेषकर हालिया दिनों में यमन पर जारी पाश्विम बमबारी तथा पिछले वर्ष ग़ज़्ज़ा और लेबनान पर हुए हमलों पर मौन धारण किए रहता है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह बहुत अच्छी बात है कि वर्तमान परिवर्तनों और घटनाओं पर युवा शायरों की ओर से त्वरित प्रतिक्रिया सामने आती है।

ईरान के यात्री विमान पर अमरीकी हमले और अमरीका की ओर से प्रयोजित आतंकवादी कार्यवाही की बरसी के अवसर पर ईरान के विदेशमंत्रालय ने एक बयान जारी करके इस हमले को अतंरराष्ट्रीय नियमों का खुला उल्लंघन और अमरीका द्वारा आतंकवाद का एक नमूना बताया है।

विदेशमंत्रालय ने ईरान के एयरबस यात्री विमान पर तीन जूलाई वर्ष 1988 में अमरीकी युद्धपोत से दो राकेट फायर किये जाने और इस आतंकवादी कार्यवाही में 12 वर्ष की आयु से 66 बच्चों सहित 290 यात्रियों की मौत की बरसी के अवसर पर अपने एक बयान में इस हमले को सरकारी आतंकवाद का नमूना बताते हुए कहा कि अमरीका का यह अपराध कभी भुलाया नहीं जाएगा।

विदेशमंत्रालय के बयान में कहा गया है कि इस हमले से अमरीका की ओर से मानवाधिकारों की रक्षा के दावे की पोल भी खुल गयी।

याद रहे ईरान एयर के यात्री विमान  की फ्लाइट नंबर 655 ने 3 जूलाई वर्ष 1988 को ईरान के बंदर अब्बास नगर से दुबई के लिए उड़ान भरी थी किंतु फार्स की खाड़ी में तैनात अमरीकी युद्धपोत यूएसएस वेन्सन्स ने उसे मार गिराया और इस हमले में विमान में सवार सभी 290 लोग मारे गये जिनमें 46 विदेशी और 66 बच्चे भी शामिल थे।   

अमरीकी सरकार ने 61.8 मिलयन डालर हमले का शिकार होने वालों के परिजनों और इसी प्रकार 70 मिलयन डालर, यात्री विमान के तबाह होने के लिए अदा किये थे किंतु इस हमले के लिए अमरीका ने माफी मांगने से इन्कार कर दिया और हमले करने वाले अमरीकी नौसेना के कप्तान विलयम राजर्स को, वीरता का तमग़ा भी दिया गया।

 

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी ने इस्लामी के शत्रुओं के षडयंत्रों के मुक़ाबले में मुस्लिम राष्ट्र में शीया सुन्नी एकता की आवश्यकता पर बल दिया।

आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि इस समय इस्लामी जगत की हालत बड़ी गंभीर और संवेदनशील है। उन्होंने कहा कि इस्लाम के शत्रु अपनी पूरी शक्ति से इस्लामी जगत में युद्ध की आग भड़काने में लगे हुए हैं।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि क्षेत्र के कुछ देश शत्रुओं की इन साज़िशों के परिणामों पर कोई ध्यान दिए बिना उनके सुर से सुर मिल रहे हैं और अपना पेट्रो डालर आतंकी संगठनों के प्रशिक्षण पर ख़र्च कर रहे हैं।

आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी ने इस्लामी जगत के धर्मगुरुओं और प्रतिष्ठित हस्तियों से अपील की कि वह मार्गदर्शन करें और मानवीय व इस्लामी मूल्यों को निशाना बनाने वाली गतिविधियों की रोक थाम में अपनी भूमिका निभाएं।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि कुछ पश्चिमी देश इस धारणा में हैं कि सीरिया, इराक़, लेबनान तथा अन्य देशों में आतंकी संगठनों की सहायता करके वे मुसलमानों को नुक़सान पहुंचाने में कामयाब हो जाएंगे लेकिन यह आग अंततः आतंकियों के समर्थकों को भी भस्म कर देगी।

आयतुल्लाह मोहम्मद इमामी काशानी ने सऊदी अरब और कुवैत में शीयों पर होने वाले आतंकी हमलों की निंदा की और कहा कि शीया और सुन्नी समुदायों को चाहिए कि बहुत चौकसी बरतते हुए मतभेद उत्पन्न करने वाली साज़िशों का पता लगाएं और उनका मुक़ाबला करें।