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ईरान और भारत, वीज़ा में सुविधा पर सहमत
ईरान और भारत ने नयी दिल्ली में होने वाली एक बैठक में दोनों देशों के नागरिकों के लिए वीज़ा प्रक्रिया को आसान बनाने पर सहमति प्रकट की है।
रिपोर्ट के अनुसार नयी दिल्ली में ईरानी दूतावास के सूत्रों ने बताया है कि इस बैठक में इस बात पर सहमति हुई है कि यदि ईरानी छात्र को किसी भारतीय विश्व विद्यालय में प्रवेश मिल जाता है तो उन्हें यथाशीघ्र भारत का वीज़ा दे दिया जाएगा।
इसी प्रकार इस बैठक में इस बात पर भी सहमति हुई है कि ईरानी व्यापारी और उदयोगपतियों को , कंपनी और व्यापार संघ के पत्र या फिर किसी भारतीय व्यापारिक पार्टनर की ओर से पत्र होेने की दशा में तत्काल वीज़ा दे दिया जाएगा।
इस बैठक में इसी प्रकार बंदियों को आदान- प्रदान, और अपराधियों के प्रत्यर्पण पर भी सहमति हुई और इसे दोनों देशों की संसद में पारित होने की दशा में लागू कर दिया जाएगा।
खबर के अनुसार निकट भविष्य में ईरान और भारत के नागरिकों के लिए दोनों देशों में "वीज़ा अॅान अराइवल" की सुविधा भी प्रदान की जाएगी ।
अश्वेत मुस्लिम महिला जज ने क़ुरआन की सौगंध ली
अमरीका में एक अश्वेत मुस्लिम महिला जज ने क़ुरआन की सौगंध से काम शुरू किया है।
न्यूयार्क डेली न्यूज़ ने रिपोर्ट दी है कि अमीरका के न्यूयार्क राज्य के ब्रोकलिन-7 क्षेत्र मेें नागरिक न्यायालय की जज के रूप में केरोलिन वाॅकर डियालो नामक अश्वेत मुस्लिम महिला ने मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ क़ुरआने मजीद की सौगंध खा कर अपने पेशेवराना काम का आरंभ किया है। रिपोर्ट के अनुसार गुरुवार को अमरीकी न्यायालयों में प्रचलित बाइबल की सौगंध खाने के तरीक़े के विपरीत श्रीमति डियालो ने क़ुरआन की सौगंध खाई और न्यायाधीश का पद संभाला।
इस समारोह में भाग लेने वाले लोगों द्वारा समारोह की वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर शेयर किए जाने के बाद, इस संबंध में विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं और श्रीमति डियालो के समर्थक उनकी सुरक्षा को लेकर अत्यंत चिंतित हैं।
وَكَذَٰلِكَ أَنزَلْنَاهُ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ وَأَنَّ اللَّـهَ يَهْدِي مَن يُرِيدُ
इसी प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को स्पष्ट आयतों के रूप में अवतरित किया। और बात यह है कि अल्लाह जिसे चाहता है मार्ग दिखाता है[22:16]
वरिष्ठ नेता का पत्र, विदेश मंत्रालय की जनकूटनीति
पश्चिमी देशों के युवाओं के नाम इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के संदेश को बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुंचाने के लिए जनकूटनीति का प्रयोग किया जा रहा है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सादिक़ हुसैन जाबिरी अंसारी ने सोमवार को पश्चिमी देशों के युवाओं के नाम आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई के ख़त के संबंध में, विदेश मंत्रालय द्वारा उठाए गए क़दम के बारे में कहा कि वरिष्ठ नेता के दूसरे संदेश के जारी होने के साथ साथ विदेश मंत्रालय ने इस संदेश के विश्व स्तर पर सही तरह से प्रतिबिंबन के लिए, विदेशों में ईरानी दूतावासों को निर्देश दिए।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने मिना त्रासदी और इसकी जांच कमेटी के बारे में कहा कि इस विषय के संबंध में ईरान की नीति स्पष्ट है कि हज के संस्कारों के आयोजन की मेज़बानी करने वाली सऊदी सरकार पर, स्वाभाविक रूप से इस मेज़बानी के विभिन्न आयामों की क़ानूनी दृष्टि से ज़िम्मेदारी बनती है।
नेपाल संविधान पर गतिरोध जारी, सरकार और मधेसियों की वार्ता विफल
नेपाल में सरकार और मधेसी समुदाय के बीच शुक्रवार को दूसरे दिन भी वार्ता परिणामहीन रही जिसके बाद नये संविधान पर गतिरोध जारी है।
सरकार और मधेसी समुदाय के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता विफल रही समाप्त हो गई क्योंकि दोनों पक्ष अपनी मांगों पर अड़े हैं जबकि मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस बैठक में शामिल ही नहीं हुआ।
नेपाल कांग्रेस के महासचिव प्रकाश मान सिंह ने कहा कि नेपाली कांग्रेस वार्ता में शामिल नहीं हुई क्योंकि पार्टी ने सरकार, मधेसी और नेपाली कांग्रेस के बीच त्रिपक्षीय बैठक में शामिल होने से पहले वरिष्ठ मधेसी नेताओं के साथ बातचीत करने को वरीयता दी।
नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष सुशील कोईराला ने तराई मधेस डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष महंत ठाकुर के साथ वर्तमान राजनीतिक संकट से जुड़े मुद्दों और गतिरोध दूर करने के विषय पर बातचीत की।
मधेसी नये संविधान के तहत अपनी पैतृक भूमि के विभाजन का विरोध कर रहे हैं।
कुरान हाफ़िज़ों की पीढ़ी अल अक्सा मस्जिद को मुक्त कराऐगी
अंतरराष्ट्रीय समूह: हमास के राजनीतिक ब्यूरो के वाइस चेयरमैन ने कहा: फिलिस्तीन की कुरआनी, ईमानी और मस्जिदी पीढ़ी, जो इच्छा शकक्ति रखती है क़ुद्स व अल-अक्सा मस्जिद को निकट भविष्य में मुक्त कराऐगी.
फिलिस्तीन प्रेस समाचार एजेंसी "सफ़ा" के हवाले से, इस्माइल Haniya, पूर्व फिलिस्तीनी प्रधानमंत्री व फिलिस्तीनी इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन 'हमास' के राजनीतिक ब्यूरो के उपाध्यक्ष ने कल 12 दिसम्बर को दक्षिणी गाजा पट्टी में स्थित "राफ़ा" प्रांत में क़ुरान सीखने वालों के स्नातक समारोह में 'ताजुलवक़ार 7" के शीर्षक पर भाषण दिया।
उन्होंने कहा: कि जो विश्वास रखता है अपने प्रतिद्वंद्वी पर सफल हो सकता है यहां तक कि यदि कोई हथियार भी हाथ में नहीं रखता हो।
इस्माइल Haniyeh, ने कहा:ऐक विश्वास वाला आदमी विपरीत ऐक अविश्वासी पर, स्वतंत्रता और जीत हासिल करने के लिए अपनी क्षमता रखता है।
हमास के राजनीतिक ब्यूरो के उप-राष्ट्रपति ने इस समारोह में जो राफा में 200 कुरान हाफ़िज़ों सम्मान देने कके लिऐ आयोजित किया गया था कहा: इस पीढ़ी ने अपने साहस और ताक़त को कुरान और सुन्नत से लिया है।
उन्होंने कहा: कौन लोग हैं जिन्हों ने मस्जिद अक़्सा में गार्डों को जो यहूदी षड्यंत्र को हराने में सक्षम थे, प्रोत्साहित किया? वही क़ुरान और ईमान के हामिल पुरुष की महिलाऐं जो यहूदी occupiers के खिलाफ खड़े हो गए हैं।
हनीयह ने अंत में कहा: फिलिस्तीन की कुरआनी, ईमानी और मस्जिदी पीढ़ी, जो इच्छा शकक्ति रखती है क़ुद्स व अल-अक्सा मस्जिद को निकट भविष्य में मुक्त कराऐगी.
अलख़लील में एक फ़िलिस्तीनी महिला शहीद
अतिग्रहणकारी ज़ायोनी सैनिकों ने एक फ़िलिस्तीनी महिला को गोली मार कर शहीद कर दिया है।
प्राप्त सूचना के अनुसार ज़ायोनी सैनिकों ने अलख़लील नगर में करयात अरबा नामक एक यहूदी बस्ती के निकट एक फ़िलिस्तीनी महिला को गोली मार कर हताहत कर दिया। ज़ायोनी सैनिकों का दावा है कि वह चाक़ू से हमला करने का इरादा रखती थी।
इस बीच चरमपंथी ज़ायोनियों ने मुसलमानों के पवित्र स्थल मस्जिदुल अक़सा के अनादर की कार्यवाहियों का क्रम जारी रखते हुए एक बार फिर इस पवित्र स्थल पर हमला किया है। रविवार को चरमपंथी ज़ायोनियों के एक गुट ने पुलिस की सहायता से इस मस्जिद पर हमला किया जिसके बाद मस्जिद के रक्षकों और नमाज़ियों से उनकी झड़पें हुईं।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम मरातिबे कमाले ईमान
हदीस-
अन नाफ़े इब्ने उमर,क़ाला “क़ाला रसूलूल्लाहि (स.) “ला यकमलु अब्दुन अलइमाना बिल्लाहि, हत्ता यकूना फ़िहि ख़मसु ख़िसालिन- अत्तवक्कुलु अला अल्लाहि, व अत्तफ़वीज़ो इला अल्लाहि, व अत्तसलीमु लिअमरिल्लाहि, व अर्रिज़ा बिकज़ाइ अल्लाहि, व अस्सबरो अला बलाइ अल्लाहि, इन्नाहु मन अहब्बा फ़ी अल्लाहि, व अबग़ज़ा फ़ी अल्लाहि, व आता लिल्लाहि, व मनाअ लिल्लाहि, फ़क़द इस्तकमला इलईमाना।”[1]
तर्जमा-
नाफ़े ने इब्ने उमर से नक़्ल किया है कि हज़रत रसूले अकरम (स.) ने फ़रमाया कि अल्लाह पर बन्दें का ईमान उस वक़्त तक कामिल नही होता जब तक उस में पाँच सिफ़ात पैदा न हो जाये- अल्लाह पर तवक्कुल, तमाम कामों को अल्लाह पर छोड़ना, अल्लाह के अम्र को तस्लाम करना, अल्लाह के फ़ैसलों पर राज़ी रहना, अल्लाह की तरफ़ से होने वाली आज़माइश पर सब्र करना, और समझलो कि जो दोस्ती व दुश्मनी, अता व मनाअ, अल्लाह की वजह से करे उसने अपने ईमान को कामिल कर लिया है।
हदीस की शरह-
इस हदीस में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) कमाले ईमान के मरातिब को बयान फ़रमा रहे हैं और इल्मे अख़लाक़ के कुछ उलमा ने भी सैरो सलूक के मरहले में तक़रीबन यही बातें बयान की हैं।
1- “अत्तवक्कुलु अला अल्लाह”पहला मरहला तवक्कुल है। हक़ीक़त में मोमिन यह कहता है कि चूँकि उसके इल्म, क़ुदरत और रहमानियत का मुझे इल्म है और मैं उस पर ईमान रखता हूँ, इस लिए अपने कामों में उसको वकील बनाता हूँ।
2- “व अत्तफ़वीज़ु अला अल्लाह ” दूसरा मरहला तफ़वीज़ है। तफ़वीज़ यानी सपुर्द करना या सौंपना। पहले मरहले में मोमिन अपने चलने के लिए अल्लाह की राह को चुनता है। मगर इस दूसरे मरहले में मोमिन हक़ीक़तन अल्लाह से कहता है कि अल्लाह ! तू ख़ुद बेहतर जानता है मैंनें तमाम चीज़े तेरे सपिर्द कर दी हैं।
तवक्कुल और तफ़वीज़ में फ़र्क़
तवक्कुल की मंज़िल में इंसान अपने तमाम फ़ायदों को अहमियत देता है इस लिए अपने नफ़ेअ की तमाम हदों को देखता है। लेकिन तफ़वीज़ की मंज़िल में वह यह तो जानता है कि फ़ायदा है, मगर फ़ायदे की हदों के बारे में नही जानता इस लिए सब कुछ अल्लाह के सपुर्द कर देता है क्योंकि इस मरहले में उसे अल्लाह पर मुकम्मल ऐतेमाद हासिल हो जाता है।
3- “व अत्तसलीमु लि अम्रि अल्लाह” यह मरहला दूसरे मरहले से बलन्द है। क्योंकि इस मरहले में इंसान फ़ायदे को अहमियत नही देता, तवक्कुल के मरहले में ख़वाहिश (चाहत) मौजूद थी, लेकिन तस्लीम के मरहले में ख़वाहिश नही पायी जाती।
सवाल- अगर इस मरहले में ख़वाहिश नही पायी जाती तो फ़िर दुआ क्यों की जाती है ?
जवाब- तस्लीम का मतलब यह नही है कि हम अल्लाह से दरख़वास्त न करें , बल्कि तस्लीम का मतलब यह है कि अगर हम अल्लाह से कोई चीज़ चाहें और वह न मिले तो, तस्लीम हो जायें।
4- “व अर्रिज़ा बि क़ज़ाइ अल्लाह” रिज़ा का मरहला तीसरे मरहले से भी बलन्द है। तस्लीम के मरहले में इंसान के लिए फ़ायदे हैं मगर इंसान उनसे आँखें बन्द कर लेता है।लेकिन रिज़ा का मरहला वह है जिसमें इंसान के नफ़्स में भी अपनी ख़वाहिशात के लिए ज़िद नही पायी जाती है, और रिज़ा व तस्लीम के बीच यही फ़र्क़ पाया जाता है।
अल्लाह की तरफ़ सैर और उससे क़रीब होने के यह चार मरहले हैं जिनको अलफ़ाज़ में बयान करना आसान है लेकिन इन सब के बीच बहुत लम्बे-लम्बे रास्ते हैं। कभी कभी इन मरहलों को “ फ़ना फ़ी अल्लाह” का नाम भी दिया जाता है। फ़ना के दो माअना है जिनमें से एक माक़ूल है और वह फ़ना रिज़ायत के मरहले तक पहुँचना है। और इस मरहले में इंसान अपनी तमाम ख़वाहिशात को अल्लाह की ज़ात के मुक़ाबिल में भूल जाता है, और फ़ना फ़ी अल्लाह के यही सही माअना हैं जो शरीयत और अक़्ल के मुताबिक़ है।
अलबत्ता यह मरहले दुआ और अल्लाह से हाजत तलब करने की नफ़ी नही करते हैं। क्यों कि अगर कोई कमाले ईमान के आख़री मरहले यानी रिज़ा के मरहले तक भी पहुँच जाये, तो भी दुआ का मोहताज है।
इन तमाम मक़ामात को सब्र के ज़रिये हासिल किया जा सकता है। सब्र तमाम नेकियों की जड़ है। अमारुल मोमिनीन (अ.) की वसीयत में पाँचवी फ़रमाइश सब्र के बारे में है जो दूसरी चारो फ़रमाइशों के जारी होने का ज़ामिन है। काफ़ी है कि इंसान इन कमालात तक पहुँचने के लिए कुछ दिनों में अपने आप को तैयार करे, लेकिन इससे अहम मसअला यह है कि इस रास्ते पर बाक़ी रहे। जिन लोगों ने इल्म, अमल, तक़वा और दूसरे तमाम मरतबों को हासिल किया हैं उनके बारे कहा गया है कि वह सब्र के नतीजे में इस मंज़िल तक पहुँचे हैं।
हदीस के आखिर में जो जुम्ला है वह पहले जुम्लों का मफ़हूम है यानी दोस्ती, दुश्मनी, किसी को कुछ देना या किसी को मना करना सब कुछ अल्लाह के लिए हो, क्योंकि यह सब कमाले ईमान की निशानियाँ है।
[1] बिहार जिल्द 74/177
भारत में पैगंबर की वफ़ात पर शोक सभाओं का आयोजन
अंतरराष्ट्रीय समूह: 28 सफ़र समय शुक्रवार की रात हजारों भारतीय मुसलमानों ने पैगंबर (PBUH) और इमाम हसन (अ.स) की मौत की सालगिरह पर शोक सभाऐं और विलाप के अनुष्ठान में भाग लिया।
अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी (IQNA) शुक्रवार रात 11 दिसम्बर को भारत में पैगंबर (PBUH)की वफ़ात और हजरत इमाम हसन (अ.स) की शहादत के दिन की याद में शोक सभा आयोजित की गईं।
हिन्दी अज़ादारों ने दिल्ली, लखनऊ, हैदराबाद, मुंबई और विशेष रूप से कश्मीर सहित देश के विभिन्न शहरों में पैगंबर (PBUH) की वफ़ात और इमाम हसन (एएस) की शहादत की सालगिरह पर शोक में भाग लिया।
नई दिल्ली में कश्मीर मस्जिद से मातमी अन्जुमनों ने हररकत शुरू की और दो किलोमीटर के बाद दरगाह शरीफ़ मे अंत किया।
शोक दसतों कके आगे आगे बैनरों पर इस्लामी क्रांति के नेता और इमाम खुमैनी की टिप्पणियों को विशेष ररूप से अज़ादारी के महत्व पर हिंदी व अंग्रेजी में लिखा गया था।
सुरक्षा बलों ने रास्ते के दौरान अज़ादारों को सुरक्षाप्रदान करने की।
शोक समारोह में सुन्नी और हिंदुओं की ऐकक ससंख्यया ने भी मुसलमानों के साथ भाग लिया।
पैगंबर की वफ़ात की शोक सभा भी कल रात देर रात तक जारी रही और लोगों ने अज़ादारी के अलावा धार्मिक नेताओं के भाषण भी सुनें।
लखनऊ, उत्तर प्रदेश की राजधानी, सबसे बड़ी शिया की आबादी वाला शहर है इस क्षेत्र में शोक समारोह उत्साह के साथ आयोजित किया जाता है।
इसी तरह पैगंबर इस्लाम और इमाम हसन (अ.स) का शोक समारोह कल रात नई दिल्ली में इस्लामी गणराज्य ईरान के संस्कृति हाउस में उनके परिवारों की संस्थाओं के अधिकारियों की मौजूदगी के साथ आयोजित किया गया था।
कुरआन मुसलमानों का पहला संविधान है
अंतरराष्ट्रीय समूह: बेरूत में शेख अब्दुल लतीफ ने पवित्र कुरान के सम्मान जश्न में कुरआन को मुसलमानों का पहला संविधान और कानून का मुख्य स्रोत बताया है।
"Lybanvn फ़ाइलज़" वेबसाइट के मुताबिक बताया कि बेरूत के "Alzydanyh" क्षेत्रीय कुरान सेवा केन्द्र से फारिग़ पुरुष और महिला के सम्मान में समारोह आयोजित किया गया था।
यह समारोह लेबनान के दारुल फतवा में देश के ग्रैंड मुफ्ती शेख अब्दुल Daryan और विद्वानों और हाफीज़ों की उपस्थिति में आयोजित किया गया।
शेख अब्दुल Daryan ने समारोह में बोलते हुए कहा कि लेबनान में कुरान सेवा के लिए बहुत केन्द्र हैं इसी लिए देश में कुरान पाठकों की संख्या अधिक है।
इस समारोह में बेरूत के शेख़ुल क़ुर्रा शेख मोहम्मद AKKAWI, ने जीवन में तिलावते कुरआन के महतव पर तकरीर किया।
समारोह के अंत में शेख अब्दुल लतीफ Daryan और शेख मोहम्मद AKKAWI, ने लाइसेंस (पारंपरिक सुन्नियों के बीच कुरआन प्रमाण पत्र) को बेरूत के "Alzydanyh" क्षेत्रीय कुरान सेवा केन्द्र से फारिग़ पुरुष और महिला के सम्मान में समारोह मे सम्मानित किया