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मलेशिया के अधिकारियों ने बताया है कि थाईलैंड की सीमा से लगे मलेशिया के उत्तरी राज्य पर्लिस में दो स्थानों पर सामूहिक क़ब्रें मिली हैं।

पुलिस का कहना है कि यह सामूहिक क़ब्रें, दर्जन भर ख़ाली कैंपों में मिलीं।  इन कैंपों में मानव तस्करों ने म्यंमार के रोहिंग्या मुसलमानों को रखा था।  मलेशिया के गृहमंत्री ने कहा है कि क़ब्रों में मौजूद शवों की पहचान की कोशिश की जा रही है।  ज़ाहिद हामिद का कहना था कि इस बात की संभावना पाई जाती है कि यह क़ब्रे पलायनकर्ता रोहिंग्या मुसलमानों की हों।  हालांकि इन सामूहिक क़ब्रों से 100 लाशें निकाली जा चुकी हैं किंतु अभी यह विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता है कि कुल कितने शव हो सकते हैं। 

इससे पहले इसी महीने के आरंभ में थाईलैण्ड में पुलिस ने इसी प्रकार की क़ब्रों का पता लगाया था और मलेशिया से मिलने वाली सीमा पर क़ब्रों से कम से कम 33 शव बरामद किये थे। 

इस दुखद घटना से मानव तस्करों के उस नेटवर्क का पता चला है जो पलायनकर्ताओं को कैंपों में बंदी के रूप में रखते हैं।

ज्ञात रहे कि मलेशिया का उत्तरी भाग उस मार्ग पर स्थित है जहां से दक्षिण एशियाई देशों के लिए म्यांमार से बड़े पैमाने पर मानव तस्करी होती है। इसका शिकार अधिकतर वे लोग बनते हैं जो या तो अपने देश में विभिन्न कारणों से पलायन करने को मजबूर हैं या फिर रोजगार की तलाश में दूसरे देश जाना चाहते हैं।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले थाईलैंड के सोंगखला प्रांत में भी ऐसी ही सामूहिक कब्रें मिल चुकी हैं। यह कब्रें उन स्थानों पर पाई गई हैं जहां पर कभी मानव तस्करी के संदिग्ध अड्डे संचालित होते थे। 

 

पाकिस्तान ने कहा है कि आतंकवाद, भारत व पाकिस्तान का संयुक्त दुश्मन है।

राष्ट्रीय सुरक्षा व विदेशी मामलों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के सलाहकार सरताज अज़ीज़ ने भारतीय रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के हालिया धमकीपूर्ण बयान पर गहरी चिंता जताते हुए कूटनयिक भाषा में घोषणा की है कि आतंकवाद, भारत व पाकिस्तान का संयुक्त शत्रु है। पर्रिकर ने कहा था कि अन्य देशों की ओर से हो रही आतंकी कार्यवाहियों के मुक़ाबले के लिए भारत भी आतंकवादियों का सहारा ले सकता है।

रविवार की शाम पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी होने वाले एक बयान में सरताज अज़ीज़ ने का है कि भारत के एक केंद्रीय मंत्री की ओर से दिया गया हालिया बयान, पाकिस्तान में आतंकी कार्यवाहियों में भारत के लिप्त होने संबंधी पाकिस्तान की चिंताओं को सही होने का एक और प्रमाण है। यह पहली बार है जब किसी मंत्री ने स्पष्ट रूप से आतंकवाद से मुक़ाबले के बहाने किसी अन्य देश के विरुद्ध आतंकी कार्यवाही का खुल कर समर्थन किया है।

सरताज अज़ीज़ ने कहा है कि पाकिस्तान ने भारत सहित अपने सभी देशों के साथ संबंध बेहतर बनाने की निष्ठापूर्ण नीति अपना रखी है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद भारत और पाकिस्तान दोनों ही का शत्रु है और आवश्यक है कि दोनों देश इस संयुक्त दुश्मन को हराने के लिए एक दूसरे से सहयोग करें हालांकि पाकिस्तान को आतंकवाद कारण अधिक दुख व पीड़ा उठानी पड़ी है।

 

 

रविवार, 24 मई 2015 10:18

इताअत

قرآن کریم : تلك حدود الله فلا تعتدوها و من يتعد حدود الله فاولئك هم الظالمون

क़ुरआने मजीद : यह अल्लाह की हुदूद हैं इनसे आगे न बढ़ो जो आल्लाह की हुदूद से आगे बढ़े वह सब ज़ालेमीन में से हैं।

 सूरए बक़रः आयत न. 229

अगर हम यह मानलें कि यह पूरी ज़मीन एक इंसान के हाथ में है तो इसमें कोई शक नही है कि वह इंसान ज़िन्दगी के हर पहलु में बहुत ज़्यादा आज़ाद होगा। जहाँ उसका दिल चाहेगा मकान बनायेगा, जिस हिस्से में चाहेगा खेती करेगा, जिस जगह बाग़ लगाना चाहेगा लगा लेगा क्योंकि वह ज़मीन पर रहने वाला तन्हा इंसान होगा। लेकिन इसके बावजूद भी वह खाने पीने, काम करने वग़ैरा में महदूद ही रहेगा। इस बिन पर अगर इंसान इस ज़मीन पर तन्हा रहेगा तब भी उसे मजबूरन कुछ हुदूद की रिआयत करनी होगी। क्योंकि वह उस हालत में किसी ख़ास जगह पर आराम करने और कुछ खास चीज़े खाने पर मजबूर होगा। इस मुक़द्दमे से यह बात ज़ाहिर होती है कि समाजी ज़िन्दगी में सबसे पहली ज़रूरत एक क़ानूनी ज़िन्दगी की है। दूसरे लफ़्ज़ों में इस तरह कहा जा सकता है कि जब इंसान की फ़रदी ज़िन्दगी इजतेमाई ज़िन्दगी में तबदील हो जाती है तो इंसानों के इख़्तियार महदूद हो जाते हैं क्योंकि समाज में एक निज़ाम व क़ानून का दौर दौरा हो जाता है।

इस अस्ले अव्वल के लिहाज़ से इजतेमाई ज़िन्दगी से जो चीज़ वुजूद में आती है, वह क़ानूनी ज़िन्दगी व हद व हुदूद की रिआयत है, चाहे यह इजतेमा दो इंसानों पर ही मुशतमिल हो। मिसाल के तौर पर अगर पूरी ज़मीन पर फ़क़त दो इंसान रहे तो उनकी ज़िम्मेदारी है कि वह क़ानून के मुताबिक़ ज़िन्दगी बसर करें, यानी उनमें से हर एक की ज़िम्मेदारी है कि अपनी हद व हुदूद की रिआयत करें और अपनी हद से आगे न बढ़ें।

लिहाज़ा इजतेमाई ज़िन्दगी का बुनियादी मसला क़ानून की ज़रूरत और उनकी रिआयत है।

ख़ुदा वन्दे आलम ने इस बारे में फ़रमाया है कि जो हुदूद से आगे बढ़े उसने खुद अपने ऊपर ज़ुल्म किया है। जाहिर है कि एक बेक़ानूनी समाज़ को मफ़लूज बना देती है और जब समाज मफ़लूज हो जायेगा तो उसका नुक़्सान समाज के हर फ़र्द होगा। लिहाज़ा जो लोग क़ानून तोड़ते हैं, वह हक़ीक़त में अपने ऊपर ज़ुल्म करते हैं। इस लिए आराम व सुकून पाने के लिए समाज के हर फ़र्द को क़ानून का एहतेराम करते हुए उसकी पैरवी करनी चाहिए।

अफ़सोस है कि बाज़ समाज में समाजी ज़िन्दगी तो पाई जाती हैं लेकिन उनके अफ़राद को क़ानून की रिआयत की मालूमात नही है। इससे मालूम होता है कि उनका समाज तरकीब के लिहाज़ से तो इजतेमाई हो गया है लेकिन उसके अफ़राद में अभी तक इजतेमाई ज़िन्दगी की क़ाबिलियत पैदा नही हुई है। दूसरे लफ़ज़ों में इस तरह कहा जा सकता है कि ऐसा समाज उस इंसान की तरह है जिसने जिस्मानी एतेबार से तो रुश्द कर लिया हो लेकिन अक़्ली व फ़िक्री एतेबार से रुश्द के मरहले तक न पहुँचा हो।

इस तरह के समाज़ में क़ानून तोड़ने की आदत पाई जाती है। ज़ाहिर है कि इंसानों के ज़ाती फ़ायदे इस बात का सबब बनते हैं कि ज़वाबित को नज़र अंदाज़ करके रवाबित को नज़र में रखा जाता है। इसे उसे देख कर क़ानून की रिआयत किये बिना अपना काम करने की कोशिश की जाती है। इस तरह के अफ़राद अपने फ़ायदे के लिए समाजी निज़ाम व ज़वाबित को पामाल करके रवाबित से काम निकालते है।

आज एक ऐसी मुश्किल को हल करने की सआदत हासिल की है जो न ताग़ूत के ज़माने में हल हुई थी और न अब तक जमहूरी इस्लामी के दौर में और वह है ट्रैफिक की मुश्किल। आज तेहरान शहर में कुछ गिने चुने हज़रात के अलावा बाक़ी लोग ड्राइविंग के क़ानूनों की रिआयत नही करते। बल्कि हालत यह है कि ड्राइवर हर तरह की ख़िलाफ़ वरज़ी करते हुए आपना रास्ता साफ़ करके आगे बढ़ने की कोशिश करता है। जबकि ट्रैफ़िक पुलिस के अफ़सर क़ानूनों की ख़िलाफ़ वरज़ी करने वाले ड्राइवरों पर जुर्माना जहाँ तहाँ नक़द जुर्माना करते रहते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी ड्राइवर ख़िलाफ़ वरज़ी करते रहते हैं। याद रखना चाहिए कि जुर्माने या जेल की सज़ा के ज़रिये किसी को क़ानून का ताबे नही बनाया जा सकता, बल्कि इसके लिए ज़रूरी है कि उसकी समाजी फ़िक्र को इतना वसी बना देना चाहिए कि उसके अन्दर क़ानून की पैरवी करने का जज़बा पैदा हो जाये। कोई ऐसा काम करना चाहिए कि ड्राइवर मुकम्मल तौर पर क़ानूनों की रिआयत करने पर ईमान ले आयें ताकि बाद में पुलिस के मौजूद रहने और जुर्माना करने की ज़रूरत न रहे। ड्राइवर अपने दिल के उस ईमान की वजह से ख़िलाफ़ वरज़ी की तरफ़ मायल न हों। 

समाजी ज़िन्दगी यानी शख़्सी उम्मीदों की नफ़ी

हमारे समाज में कुछ अफ़राद को छोड़ कर सभी में तवक़्क़ो पाई जाती है। लोग, ख़ुद को समाज के दूसरे लोगों से बड़ा मानते हुए यह चाहते हैं कि सब काम ताल्लुक़ात की बिना पर हल हो जायें। इस तरह के लोग अपने आपको सबसे अलग समझते हैं और किसी भी समाजी पहलु में क़ानून की रिआयत नही करते और क़ानून तोड़कर अपनी चाहत को पूरा करते हैं। लोगों का यह रवैया इस बात की हिकायत करता है कि क़ानून कमज़ोर लोगों के लिए है, उन्हें हुकूमत के तमाम ख़र्चों को पूरा करना चाहिए और बदले में क़ानून की रिआयत भी। हक़ीक़त यह है कि क़ानून तोड़ने वाले अफ़राद ख़ुद को समाज के आम लोगों से बड़ा समझते हैं और अपने लिए एक ख़ास वज़अ के क़ायल होते हैं। उनका यह रवैया राजा, प्रजा और ग़ुलाम व मालिक के निज़ाम से पनपा है। आज इस्लाम तमाम लोगों को क़ानून के सामने बराबर समझता है और किसी को भी यह हक़ नही देता कि वह ख़ुद को किसी तरह भी दूसरों से बड़ा समझे। इस्लाम ने तबईज़ के तमाम अवामिल को इंसानों के दरमियान से ख़त्म करके तमाम मख़लूक़ को  बराबर कर दिया है। जिस तरह इबादत में समाज का एक आली इंसान (ज़िम्मेदारी के एतेबार से) नमाज़े जमाअत की पहली सफ़ में खड़ा हो सकता है इसी तरह समाजके एक सादे इंसान को भी उसकी बराबर में खड़े होकर नमाज़ पढ़ने का पूरा पूरा हक़ है। दूसरी जंगे जहानी के दौरान मग़रिबी मुमालिक के एक अख़बार में एक तस्वीर छपी जिसमें यह दिखाया गया कि ब्रितानी वज़ीरे आज़म लाइन में खड़ा अपनी बारी का इंतेज़ार कर रहा है ताकि अपने हिस्से का खाना ले सके। किसी भी समाज का तकामुल व तरक़्क़ी क़ानून व मुक़र्रेरात की रिआयत में नहुफ़्ता हैं। जिस मुआशरे की समाजी सतह और नज़रियात ऊँचे होते हैं उसमें वसी पैमाने पर क़ानून की पैरवी का जज़्बा पाया जाता है। आख़िर में हम कह सकते हैं कि क़ानून तोड़ना जहाँ एक ग़ैरे इंसानी अमल है, वहीँ इस्लाम की नज़र में दूसरों के हुक़ूक़ की पामाली है। इस्लामी अहकाम में मिलता है कि अगर कोई इंसान नमाज़ की सफ़ में अपनी जानमाज़ बिछादे तो फिर दूसरों को वहाँ नमाज़ पढ़ने और अल्लाह की इबादत करने का हक़ नही है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा है कि इस्लामी जगत की वर्तमान समस्याओं के समाधान का नुस्ख़ा, पवित्र क़ुरआन के आदेशों के सामने नतमस्तक हो जाना, थोपी गयी आधुनिक अज्ञानता के समाने न झुकना और इस अज्ञानता के मुक़ाबले में प्रतिरोध करना है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के उपलक्ष्य में तेहरान में आयोजित पवित्र क़ुरआन की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि खेद की बात यह है कि आज इस्लामी जगत, अज्ञानी व्यवस्था के दबाव से उत्पन्न गृहयुद्ध और आंतरिक मतभेदों के कारण कमज़ोर और निर्धनता का शिकार है।

उनका कहना था कि इन थोपे गये दबावों से मुक़ाबले का एकमात्र मार्ग, पवित्र क़ुरआन के सामने नतमस्तक होना और उसके उच्च लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए मज़बूत इरादे का होना है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि पवित्र क़ुरआन के लक्ष्यों की ओर एक क़दम बढ़ाया जाए तो ईश्वर दुगुनी शक्ति प्रदान करेगा और यह वह विषय है जिसका अनुभव ईरानी राष्ट्र ने किया है और ज़ोर ज़बरदस्तियों के मुक़ाबले में प्रतिरोध द्वारा, अधिक आशा और क्षमता प्राप्त की है।

उन्होंने बड़ी शक्तियों के मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र के डटे रहने के अनुभव से लाभ उठाने को इस्लामी जगत की समस्याओं के समाधान का तरीक़ा बताया और कहा कि मुसलमानों में भतभेद फैलाना और उन्हें दो गुटों में विभाजित करना, आज शत्रुओं साज़िश है, इस लिए सभी को होशियार रहना चाहिए कि कहीं ऐसा न हो कि लोगों में मतभेद पैदा हो जाए और इस्लाम तथा क़ुरआन के शत्रुओं के षड्यंत्र सफल हो जाएं।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि हर वह आवाज़ जो लोगों के मध्य मतभेद फैलाने मे प्रयोग हो, वह शत्रु का लाउडस्पीकर है। उनका कहना था कि शीया और सुन्नी, अरब और ग़ैर अरब तथा संप्रदाय और जाति के आधार पर मतभेद फैलाना तथा राष्ट्रवाद की विचाधारा को हवा देना, मुसलमानों के शत्रुओं के कार्यक्रमों हैं जिसके मुक़ाबले में पूरी दूरदर्शिता और मज़बूती के साथ डट जाने की आवश्यकता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि धर्मगुरुओं, बुद्धिजीवियों, लेखकों, छात्रों, पवित्र क़ुरआन के हाफ़िज़ों और शोधकर्ताओं का दायित्व है कि वह लोगों में जागरुकता बढ़ाएं और लोगों को पवित्र क़ुरआन की ओर लेकर आएं। उन्होंने कहा कि वास्तविक इस्लामी जागरुकता वह है जिसका प्रभाव कभी समाप्त नहीं होता बल्कि इसक प्रभाव दिन प्रतिदिन बढ़ता जाएगा।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि परमाणु वार्ता के संदर्भ में पश्चिम की धूर्तता पर ईरान की प्रतिक्रिया बहुत तीव्र होगी।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बुधवार को इमाम हुसैन कैडिट कालेज में कैडिटों के मध्य बोलते हुए परमाणु वार्ता की ओर संकेत किया।  उन्होंने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, विदेशियों को सैन्य प्रतिष्ठानों के निरीक्षण की कदापि अनुमति नहीं देगा।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने देश के परमाणु वैज्ञानिकों से साक्षात्कार लिये जाने पर आधारित पश्चिमी मांग को एक प्रकार की जांच बताया।  उन्होंने कहा कि इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि शत्रुओं को जान लेना चाहिए कि ईरान के अधिकारी और ईरानी राष्ट्र, वर्चस्ववादियों की मांग के सामने झुकने वाले नही हैं।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने परमाणु वार्ता में सामने वाले पक्ष की धूर्तता और हटधर्मी को इस्लामी व्यवस्था के सम्मुख एक चुनौती बताया।  उन्होंने कहा कि शत्रुओं ने अभी ईरानी राष्ट्र और उसके अधिकारियों को उचित ढंग से नहीं पहचाना है।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि सामने वाले पक्ष की जिस मांग के भी सामने थोड़ी नर्मी दिखाई जाए तो ऐसे में वे एक नई मांग पेश करेंगे।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि वर्चस्ववादियों की मांगों के सामने संकल्प की मज़बूत दीवार की भांति डटे रहना चाहिए।  उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्र, इन सभी चुनौतियों का सामना करते हुए पूरे विश्वास के साथ आगे बढ़ता रहेगा।  वरिष्ठ नेता का कहना था कि इस बात की अनुमति नहीं दी जा सकती कि विदेशी, ईरानी राष्ट्र के वैज्ञानिकों और मेधावियों से पूछताछ करें।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा कि परमाणु वार्ताकार, परमाणु वार्ता में ईरानी राष्ट्र की महानता को सिद्ध करें।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शत्रुओं और फ़ार्स की खाड़ी के कुछ देशों के अधिकारियों की ओर से ईरान की सीमा पर प्राक्सी वॉर पर आधारित समाचारों के बारे में कहा कि यदि कोई भी ग़लत हरकत की गई तो फिर इस्लामी गणतंत्र ईरान की प्रतिक्रिया बहुत ही तीव्र होगी।

ईरान को अलग-थलग करने पर आधारित शत्रुओं के दुष्प्रचारों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि ईरान की इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था का स्थान, अपने आंरभ से अबतक राष्ट्रों के दिलों में है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने आगे कहा कि ईरानी अधिकारियों को जान लेना चाहिए कि नीच शत्रु से मुक़ाबले का एकमात्र मार्ग दृढ़ता एवं संकल्प है। 

 

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की विश्वव्यापी हुकूमत में अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर बहुत व्यापक पैमाने पर किया जायेगा। “अम्र बिल मारूफ़” का अर्थ है लोगों को अच्छे काम करने के लिए कहना और “नही अनिल मुनकर” का अर्थ है लोगों को बुराइयों से रोकना। इस बारे में कुरआने करीम ने भी बहुत ज़्यादा ताकीद की है और इसी वजह से इस्लामी उम्मत को मुंतख़ब उम्मत    (चुना हुआ समाज) के रूप में याद किया गया है।[1]

इसके ज़रिये तमाम वाजेबाते इलाही पर अमल होता है.[2]. और इसको छोड़ना हलाक़त, नेकियों की बर्बादी और समाज में बुराइयों के फैलने का असली कारण है।

अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर का सबसे अच्छा और सबसे ऊँचा दर्जा यह है कि हुकूमत के मुखिया और उसके पदाधिकारी नेकियों की हिदायत करने वाले और बुराईयों से रोकने वाले हों।

हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ. स.) ने फरमाया :

امام محمد باقر(ع):"اَلمَهدِي وَ اٴَصْحَابُهُ - يَاٴْمُرُوْنَ بِالمَعْرُوفِ وَ يَنْهَونَ عَنِ المُنْکِر"[3]

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) और उनके मददगार अम्र बिल मअरुफ़ और नही अनिल मुनकर करने वाले होंगे।

बुराइयों से मुक़ाबला

बुराईयों से रोकना जो कि इलाही हुकूमत की एक विशेषता है, सिर्फ़ ज़बानी तौर पर नहीं होगा, बल्कि बुराईयों का क्रियात्मक रूप में इस तरह मुकाबला किया जायेगा, कि समाज में बुराई और अख़लाक़ी नीचता का वजूद बाक़ी न रहेगा और इंसानी ज़िन्दगी बुराईयों से पाक हो जायेगी।

जैसे कि दुआए नुदबा, जो कि ग़ायब इमाम की जुदाई का दर्दे दिल है, में बयान हुआ है

”اَيْنَ قَاطِعُ حَبَائِلِ الْکِذْبِ وَ الإفْتَرَاءِ، اَیْنَ طَامِسُ آثَارِ الزَّيْغِ وَ الأهوَاءِ” [4]

कहाँ है वह जो झूठ और बोहतान की रस्सियों का काटने वाला है और कहाँ है वह जो गुमराही व हवा व हवस के आसार को ख़त्म करने वाला है।

अल्लाह की हदों को जारी करना

समाज के उपद्रवी व बुरे लोगों से मुक़ाबले के लिए विभिन्न तरीक़े अपनाये जाते हैं। हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत में बुरे लोगों से मुक़ाबले  के लिए तरीक़े अपनाये जायेंगे। एक तो यह कि बुरे लोगों को सांस्कृतिक प्रोग्राम के अन्तर्गत कुरआन व मासूमों की शिक्षाओं के ज़रिये सही अक़ीदों व ईमान की तरफ़ पलटा दिया जायेगा और दूसरा तरीक़ा यह कि उनकी ज़िन्दगी की जायज़ ज़रुरतों को पूरा करने के बाद समाजिक न्याय लागू कर के उनके लिए बुराई का रास्ता बन्द कर दिया जायेगा। लेकिन जो लोग उसके बावजूद भी दूसरों के अधिकारों को अपने पैरों तले कुचलेंगे और अल्लाह के आदेशों का उलंघन करेंगे उनके साथ सख्ती से निपटा जायेगा। ताकि उनके रास्ते बन्द हो जायें और समाज में फैलती हुई बुराईयों की रोक थाम की जासके। जैसे कि बुरे लोगों की सज़ा के बारे में इस्लाम के अपराध से संबंधित क़ानूनों में वर्णन हुआ है।

हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी (अ. स.) ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत नक्ल की जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की विशेषताओं का वर्णन करते हे फरमाया हैं कि

वह अल्लाह की हुदूद को स्थापित करके उन्हें लागू करेंगे...[5]

न्याय पर आधारित फ़ैसले

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की हुकूमत का एक महत्वपूर्ण कार्य समाज के हर पहलू में न्याय को लागू करना होगा। उनके ज़रिये पूरी दुनिया न्याय व समानता से भर जायेगी जैसे कि ज़ुल्म व सितम से भरी होगी। अदालत के फैसलों में न्याय का लागू होना बहुत महत्व रखता है और इसके न होने से सब से ज़्यादा ज़ुल्म और हक़ तलफी होती है।  किसी का माल किसी को मिल जाता है !, नाहक़ खून बहाने वाले को सज़ा नहीं मिलती !, बेगुनाह लोगों की इज़्ज़त व आबरु पामाल हो जाती है!। दुनिया भर की अदालतों में सब से ज़्यादा ज़ुल्म समाज के कमज़ोर लोगों पर हुआ है। अदालत में फैसले सुनाने वाले ने मालदार लोगों और ज़ालिम हाकिमों के दबाव में आकर बहुत से लोगों के जान व माल पर ज़ुल्म किया है। दुनिया परस्त जजों ने अपने व्यक्तिगत फ़ायदे और कौम व कबीला परस्ती के आधार पर बहुत से गैर मुंसेफाना फैसले किये हैं और उन को लागू किया है। खुलासा यह है कि कितने ही ऐसे बेगुनाह लोग हैं, जिनको सूली पर लटका दिया गया और कितने ही ऐसे मुजरिम लोग हैं जिन पर क़ानून लागू नही हुआ और उन्हें सज़ा नहीं मिली।

हज़रत इमाम महदी (अ. स.) की न्याय पर आधारित हुकूमत, हर ज़ुल्म व सितम और हर हक़ तलफी को ख़त्म कर देगी। वह जो कि अल्लाह के न्याय के मज़हर है, न्याय के लिए अदालतें खोलेंगे और उन  अदालतों में नेक, अल्लाह से डरने वाले और बारीकी के साथ हुक्म जारी करने वाले न्यायधीश नियुक्त करेंगे ताकि दुनिया के किसी भी कोने में किसी पर भी ज़ुल्म न हो।

हज़रत इमाम रिज़ा (अ. स.), हज़रत इमाम महदी (अ. स.) के ज़हूर के सुनहरे मौके की तारीफ़ में एक लंबी रिवायत के अन्तर्गत फरमाते हैं कि

”فَاِذَا خَرَجَ اَشْرَقَتِ الاٴرْضُ بِنُوْرِ رَبِّهَا، وَ َوضَعَ مِيزَانَ العَدْلِ بَيْنَ النَّاسِ فَلا يَظْلِمُ اَحَدٌ اَحَدًا“[6]

जब वह ज़हूर करेंगे तो ज़मीन अपने रब के नूर से रौशन हो जायेगी और वह लोगों के बीच हक़ व अदालत की तराज़ू स्थापित करेंगे, अतः वह ऐसी अदालत जारी करेंगे कि कोई किसी पर ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म व सितम नहीं करेगा।

प्रियः पाठकों ! इस रिवायत से यह मालूम होता है कि उनकी हुकूमत में अदालत में न्याय व इन्साफ़ पूर्म रूप से लागू होगा, जिससे ज़ालिम और ख़ुदगर्ज़ इंसानों के लिए रास्ते बन्द हो जायेंगे । अतः इसका नतीजा यह होगा कि ज़ुल्म व सितम बंद हो जायेगा और दूसरों के अधिकारों की रक्षा होगी

 


[1] .सूरः ए आले इमरान, आयत न. 110

[2] . इस अहम वाजिब के बारे में हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ. स.) फरमाते हैं कि (”ان الامر بالمعروف و  النھی عن المنکر ۔۔۔ فریضة عظیمة بھا تقام الفرائض“(امر بالمعروف اور نھی عن المنکر ۔۔۔) अम्र बिल मारुफ़ और नही अनिल मुनकर ऐसे वाजिबात हैं जिन के सबब तमाम वाजेबात का क़ायम है (मिज़ानुल हिकमत, मोतरज्जिम, जिल्द न. 8, पेज न. 3704)

[3] . बिहार उल  अनवार, जिल्द न. 51, पेज न. 47

[4] . मफ़ातीह उल जिनान, दुआए नुदबा ।

[5] . बिहार उल अनवार, पेज न. 52, बाब न. 27, हदीस न. 4 

[6] बिहार उल  अनवार,  जिल्द न. 52, पेज न. 321

 

भारत के जमीअते ओलमाए हिंद नामक संगठन ने इस देश में अतिवादी हिंदुओं की ओर से मुसलमानों के विरुद्ध सांप्रदायिकता पर आधारित कार्यवाहियों की निंदा की है।

मौलाना महमूद असअद मदनी ने भारत में बढ़ती सांप्रदायिकता पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि सांप्रदायिक शक्तियों को कमज़ोर करने के लिए सैक्यूलर लोगों को सामने आना होगा। उन्होंने कहा कि भारत की प्रगति और विकास में मुसलमानों की भी भूमिका रही है। मौलाना मदनी ने कहा कि भारत का इतिहास और देश की संस्कृति शताब्दियों पुरानी है। उन्होंने कहा कि यहां पर शताब्दियों से विभिन्न धर्मों और पंथों के लोग रहते आए हैं किंतु उनके बीच सौहार्दपूर्ण संबन्ध रहे हैं। मौलाना ने कहा कि पिछले कुछ समय से चरमपंथियों ने इस सौहार्दपूर्ण वातावार को दूषित करने के प्रयास तेज़ कर दिये हैं जिसमें दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है।

जमीअते ओलमाए हिंद के अध्यक्ष ने कहा कि देश में इस भाईचारे के माहौल को बाक़ी रखने की आवश्यकता है ताकि देश को नफ़रत की आग में जलने से बचाया जा सके।

 

ईरान की ताइक्वांडो की पुरुष टीम ने विश्व चैंपियनशिप फिर अपने नाम कर ली।

रूस में 144 देशों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में 23वीं अन्तर्राष्ट्रीय ताइक्वांडो प्रतियोगिता चल रही है। इस अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में ईरान की ताइक्वांडो टीम ने सोमवार को विश्व चैंपियनशिप का ख़िताब जीता। ईरान की टीम ने दक्षिणी कोरिया, रूस और उज़्बेकिस्तान जैसी प्रबल टीमों को हरा कर यह ख़िताब अपने नाम किया। ईरान ऐसी स्थिति में ताइक्वांडो का विश्व चैंपियन बना है कि अभी इस प्रतियोगिता की समाप्ति में एक दिन का समय शेष है और ईरान को कुछ अन्य मेडल मिलने की आशा है।

ईरान की टीम ने सन 2011 में पहली बार दक्षिणी कोरिया में ताइक्वांडो की विश्व चैंपियनशिप अपने नाम की थी

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि शत्रु धर्म और जाति द्वारा मतभेद उत्पन्न कर रहे हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने पीशमर्गा कुर्द सेना के शहीदों की याद में आयोजित सम्मेलन के आयोजकों से भेंट में एक बयान दिया था जिसे सोमवार को सननदज नगर में सम्मेलन के दौरान पढ़ा गया।

वरिष्ठ नेता ने  युद्ध के मैदान में कुर्द पीशमर्गा के जवानों के साहस की सराहना करते हुए कहा कि ईरान में क्रांति के आरंभिक वर्षों में क्रांति के शत्रुओं ने ईरान के कुर्दिस्तान क्षेत्र में अशांति फैलाने का भरपूर प्रयास किया यहां तक कि कई कुर्द धर्मगुरुओं को शहीद भी कर दिया गया किंतु उनकी साज़िश नाकाम रही।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लाम के शत्रु धार्मिक उन्मान फैलाकर और शीआ सुन्नी की बात करके मुसलमानों में फूट डालने का प्रयास कर रहे हैं और खेद की बात है कि कुछ लोग, उनकी बातों से धोखा खा रहे हैं।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि जो लोग भी, सुन्नी मुसलमानों से हमदर्दी प्रकट करते शीआ मुसलमानों को निशाना बनाते हैं वास्तव में उन्हें इस्लाम और सुन्नी मुसलमानों से कोई रूचि नहीं होती और इसी प्रकार शीआ मुसलमानों में जो लोग धार्मिक भावनाओं को बढ़ाते हैं उनका संबंध धर्म से नहीं होता।

वरिष्ठ नेता ने इराक में सुन्नी मुसलमानों के लिए अमरीकी कांग्रेस के हालिया प्रस्ताव की ओर संकेत करते हुए सवाल किया कि क्या वास्तव में अमरीकियों को सुन्नी मुसलमानों की चिंता है?

वरिष्ठ नेता ने कहा कि वह लोग हर उस चीज़ के दुश्मन हैं जिसमें इस्लाम की झलक हो , उनके लिए शीआ सुन्नी में कोई अंतर नहीं है बल्कि शीआ सुन्नी की बात केवल मुसलमानों को आपस में लड़ाने और उनमें फूट डालने के लिए करते हैं।

 

 

इराक़ की उच्च इस्लामी परिषद के प्रमुख ने देश के विभाजन और उसके विध्वंसक परिणामों की ओर से सचेत किया है।

सफ़ीर न्यूज़ एजेन्सी की रिपोर्ट के अनुसार इराक़ की उच्च इस्लामी परिषद के प्रमुख सैयद अम्मार हकीम ने रविवार को बग़दाद में राजनीति और विज्ञान के क्षेत्र में सक्रिय लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि इराक़ विभाजित हुआ तो इससे केवल ज़ायोनी शासन लाभ उठाएगा।

अम्मार हकीम ने कहा कि इस्राईल क्षेत्र के देशों को कमज़ोर करने के लिए होने वाले समस्त प्रयासों से लाभ उठाता है और यदि इराक़ विभाजित हुआ तो छोटे देश और विभाजन के परिणाम में अस्तित्व में आने वाले छोटे क्षेत्रों को विभिन्न चुनौतियों और भीषण मतभेदों का सामना करना पड़ेगा।

इराक़ की उच्च इस्लामी परिषद के  के प्रमुख ने समस्त इराक़ी पार्टियों और जनता के हर वर्ग के मध्य एकता और एकजुटता की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इराक़ की वर्तमान समस्याएं, विभाजन के बाद पैदा होने वाली समस्याओं से बहुत कम हैं। सैयद अम्मार हकीम ने कहा कि आंतरिक एकजुटता, विदेशी शक्तियों के षड्यंत्रों को सफल होने नहीं देगी और अपने देश के बारे में फ़ैसला करने का अधिकार केवल इराक़ी जनता को है और उन्हें समस्त फ़ैसलों में अपने राष्ट्रीय हितों को दृष्टिगत रखना चाहिए।

इराक़ की उच्च इस्लामी परिषद के प्रमुख ने कहा कि दूसरों के षड्यंत्रों और योजनाओं का आधार, उनके अपने हित हैं और इराक़ियों को अपने हितों की रक्षा का प्रयास स्वयं करना चाहिए। सैयद अम्मार हकीम ने बल दिया कि इराक़ी कुर्दों, शीयों और सुन्नियों के हित समान हैं।

उन्होंने इराक़ के विभाजन के विध्वंसक परिणाम और उसके क्षेत्र के दूसरे देशों में बढ़ने की ओर से सचेत किया और कहा कि धार्मिक नेतृत्व, इराक़ में शांति का रक्षक है और उसने देश के सामने आने वाली समस्त चुनौतियों में सहायता की है।